भोपाल। सूचना क्रांति ने नए प्रतिमान खड़े किए हैं तो कई चुनौतियां और सवाल भी खड़े हो गए हैं। नए मीडिया की भूमिका को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। उत्तरप्रदेश और असम में भड़के दंगों के दौरान नए मीडिया की जो भूमिका रही, उससे नए मीडिया की जिम्मेदारी के भाव और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हुए। इस दौरान नए मीडिया की ओर से प्रसारित संदेशों, चित्रों की जांच तक की गई। इसीलिए नए मीडिया को तूफान की आहट तक माना जा रहा है। यह विचार दैनिक ट्रिब्यून के पूर्व सम्पादक विजय सहगल ने व्यक्त किए। वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (एमसीयू) और एशियन मीडिया इन्फार्मेशन एवं कम्युनिकेशन सेन्टर (एमिक) सिंगापुर के संयुक्त तत्वावधान में ‘नवीन मीडिया एवं जनसंवाद’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित थे। सेमिनार का आयोजन एमसीयू के सभागार में किया जा रहा है।
श्री सहगल ने कहा कि पत्रकारिता की साख, मूल्य, मर्यादाएं और आचार संहिता से भटकने वाला कोई भी माध्यम मीडिया नहीं रह जाता। इसी कारण नए मीडिया के सामने चुनौती अधिक है। दरअसल, परंपरागत मीडिया के मानदण्ड तय हैं। जबकि नए मीडिया की लाइन अभी तय नहीं। भारत में आज भी मूल्यआधारित पत्रकारिता के लिए ही स्थान है। श्री सहगल कहते हैं कि बाजारवाद और पेड न्यूज के आरोपों के बीच आज भी परंपरागत मीडिया भ्रष्टाचार, आतंकवाद और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ कड़ा रूख अपनाकर अपनी साख को बरकरार रखा है।
भारत में बढ़ रहे हैं समाचार-पत्र:
सेमिनार के उद्घाटन सत्र में एमिक के मण्डल सदस्य डा. विनोद सी. अग्रवाल ने कहा कि भारत दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है, जहां समाचार-पत्र लगातार वृद्धि कर रहे हैं। उनकी वृद्धि दर करीब 12 प्रतिशत है। जबकि अन्य देशों में वर्षों पुराने और स्थापित समाचार पत्र बंद हो रहे हैं। इसी बीच में सोशल मीडिया एक नई ताकत बनकर उभर रहा है। सोशल मीडिया के उपयोग के कारण ही लोगों में राजनीतिक जागरूकता और समझ बढ़ी है। हाल ही में हमने एक शोध किया कि सोशल मीडिया के माध्यम से पश्चिम से जो विचार आ रहे हैं उनसे भारतीय मूल्यों और परंपराओं में क्या बदलाव आ रहे हैं? शोध के नतीजे बताते हैं कि न हिन्दू बदल रहा है और न मुसलमान बदल रहा है। पारिवारिक और धार्मिक मान्यताओं की वजह से दोनों मजबूती के साथ अपनी परंपराओं से जुड़े हुए हैं। कहा जा रहा है कि संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। लेकिन शोध के नतीजे चैंकाने वाले हैं। आंकड़े बताते हैं कि संयुक्त परिवार टूट नहीं रहे हैं, हालांकि उनकी उम्र कम हो गई है। परिवार और पारिवारिक मूल्यों में कोई कमी नहीं आई है।
विश्व की आबादी से दोगुनी होगी वर्चुअल पापुलेशन :
सेमिनार के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे एमसीयू के कुलपति प्रो. बीके कुठियाला ने कहा कि दुनिया में दो तरह की सिविलाइजेशन का दौर शुरू हो चुका है, वर्चुअल और फिजीकल सिविलाइजेशन। आने वाले समय में जल्द ही दुनिया की आबादी से दो-तीन गुना अधिक आबादी इंटरनेट पर होगी। दरअसल, कई लोग अलग-अलग पहचान से इंटरनेट यूजर्स बन रहे हैं। इंटरनेट एक ऐसी टेक्नोलाजी के रूप में हमारे सामने आया है, जो उपयोग के लिए सबको उपलब्ध है और सर्वहिताय है। इस दौरान एमसीयू के रजिस्ट्रार चंदर सोनाने, रैक्टर प्रो. रामदेव भारद्वाज, प्रो. सीपी अग्रवाल, डा. श्रीकांत सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव, डा. आरती सारंग, आषीष जोषी, पीपी सिंह और डा. अविनाष वाजपेयी सहित अन्य उपस्थित थे।
एमसीयू समाचार का विमोचन:
सेमिनार के दौरान विश्वविद्यालय से संबद्ध केन्द्रों से संवाद स्थापित करने के लिए प्रारंभ की गई त्रैमासिक गृहपत्रिका एमसीयू समाचार का विमोचन किया गया। विमोचन के अवसर पर डा. पवित्र श्रीवास्तव ने पत्रिका की आवश्यकता के बारे में बताया।
इन्होंने प्रस्तुत किया शोधपत्र:
पहले दिन नवीन मीडिया एवं सामाजिक संवाद, राजनीतिक संचार और व्यक्ति का सशक्तिकरण विषय पर तीन तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। इनमें विभिन्न शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। तकनीकी सत्र की अध्यक्षता कर रहे एडीजी महान भारत ने कहा कि आज सोशल मीडिया हमारे जीवन को काफी हद तक प्रभावित कर रहा है। सत्र के मुख्य वक्ता डा. चन्द्रभानु पटनायक ने कहा कि जनसंचार के विशेषज्ञों के सामने सोशल मीडिया को सैद्धांतिक रूप से स्थापित करना चुनौती है। दरअसल, सोशल मीडिया भी कहीं न कहीं नियंत्रित हो रहा है, ऐसे में इसे जनमाध्यम कहा जाए या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है। शोधपत्र प्रस्तुत करने वालों में डा. पी. शशिकला, डा. मोनिका वर्मा, सुरेन्द्र पाल, मयंक शेखर मिश्रा, सायमा इम्तियाज, बबीता अग्रवाल, रामअवतार यादव, बृजेन्द्र शुक्ला, प्रदीप डहेरिया, आकांक्षा शुक्ला, मुक्ता मरतोलिया, जगमोहन राठौर शामिल रहे।
सेपर्क
(डा. पवित्र श्रीवास्तव)
विभागाध्यक्ष, जनसंपर्क विभाग
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