Thursday, January 16, 2025
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राजपाल यादव जेल से घर पहुँचे

फिल्म अभिनेता राजपाल यादव जेल की सज़ा काटने के बाद अपने घर कुंडरा पहुंचे।पांच करोड़ रुपयों की देनदारी के मामले में जेल जाने के बारे में राजपाल ने कहा कि उन्हीं को धोखा दिया गया और सजा भी उन्हें ही भुगतनी पड़ी। उनके साथ जो कुछ हुआ वह समय का खेल था, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।

राजपालयादव ने कहा कि जिस मामले में उन्होंने कोर्ट के चक्कर लगाए और सजा पाई, उस मामले की असलियत कुछ और ही है। चूंकि मामला कोर्ट में चल रहा है, इसलिए जैसा कोर्ट का आदेश होगा, उसका पालन किया जाएगा। बोले: इतना जरूर कहना चाहूंगा कि राजपाल किसी को धोखा नहीं दे सकता। यह समय का फेर ही है, जो बुरा वक्त देखना पड़ा। आगे सब ठीक हो जाएगा।

 

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मोबाईल कंपनियों पर करोड़ों बकाया, मगर वसूली की कोई पहल नहीं

दूरसंचार कंपनियों पर लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम शुल्क के रूप में सरकार के 17,980.77 करोड़ रुपये बकाया हैं, लेकिन यह राशि अदालती विवादों में फंसी है।

संचार और आईटी राज्यमंत्री मिलिंद देवड़ा ने लोकसभा को एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि  हां, मिलने वाली धन की बड़ी मात्रा कानूनी विवादों में फंसी है। उन्होंने कहा कि ब्याज सहित लाइसेंस फीस के तहत 2,073.02 करोड़ रुपये और स्पेक्ट्रम शुल्क के तहत 15,907.75 करोड़ रुपये कानूनी विवादों में फंसे हैं।

विभिन्न कंपनियों में से भारती एयरटेल पर कुल 5,540.68 करोड़ रुपये बकाया है जिसके बाद वोडाफोन पर 3,846.29 करोड़ रुपये, रिलायंस कम्युनिकेशंस पर 2,422.67 करोड़ रुपये, आइडिया पर 2,029.96 करोड़ रुपये, एयरसेल पर 1,351.51 करोड़ रुपये और टाटा टेलिसर्विसेज पर 1,402.02 करोड़ रुपये का बकाया है।

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नरेंद्र मोदी की सभा के लिए दस हजार चाय वालों को बुलावा

भाजपा अपने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की 22 दिसंबर को होने वाली रैली की ‘जबर्दस्त’ सफलता सुनिश्चित करने के लिए भरसक प्रयास कर रही है। साथ ही कांग्रेस को कड़ा संदेश देने के लिए तकरीबन 10 हजार चाय विक्रेताओं को न्योता दे रही है।

एक भाजपा नेता ने कहा कि ‘‘शहर के तकरीबन 10 हजार चाय विक्रेताओं को मोदीजी की रैली में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया जाएगा। हम उन्हें शीघ्र न्योता देंगे।’’ जब से मोदी को पार्टी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया है तब से वह अपनी चाय विक्रेता की पृष्ठभूमि का उल्लेख कर रहे हैं ताकि आम जनता के साथ अपना जुड़ाव दिखा सकें। 5000 निजी बसों के अतिरिक्त राज्य इकाई ने 20-22 ट्रेनों को बुक किया है ताकि राज्य के विभिन्न हिस्सों से अपने कार्यकर्ताओं को लाया जा सके। यह रैली मुंबई के बांद्रा कुर्ला कांप्लेक्स में  एमएमआरडीए मैदान में आयोजित की जा रही है।

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गम, गुस्से व जनाक्रोश की तपिश से झुलस रही लोहिया की जन्मस्थली

डॉ. राममनोहर लोहिया की जन्मस्थली वाले जिले अम्बेडकरनगर में खाकी पर खादी की बढ़ती हनक व अपराध एवं अपराधियों पर प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पाने से जहां लोगों में काफी गम, गुस्सा है वहीं व्यवस्था से भी भरोसा उठ रहा है। गम, गुस्से एवं ब्यापक जनाक्रोश की तपिश से समाजवाद के पुरोधा रहे डॉ. राममनोहर लोहिया की जन्म स्थली वाला यह जिला झुलस रहा है। गम्भीर आपराधिक मामलों में भी कार्रवाई को लेकर लाभ-हानि वाली राजनीति गंगा-जमुनी संस्कृति को झकझोर रही है। गत 3 मार्च 2013 को टाण्डा निवासी हिन्दू युवावाहिनी के जिलाध्यक्ष रामबाबू गुप्त की नृशंस हत्या और हत्याकाण्ड के अहम गवाह उसके भतीजे राममोहन गुप्त की 4 दिसम्बर 2013 को गोली मारकर की गई हत्या से टाण्डा समेत पूरे जिले में चौतरफा गम, गुस्सा और आक्रोश व्याप्त हो गया।

हत्याकाण्ड में काफी जद्दोजहद के बाद टाण्डा के सपा विधायक एवं उनके गुर्गों की नामजदगी भाजपा एवं हिन्दूवादी संगठनों के साथ-साथ व्यपार मण्डलों के आह्वान पर जिला बन्द का व्यापक असर, एस.टी.एफ. समेत जिले की पुलिस टीमों को लगाये जाने के बाद भी कार्रवाई के नाम पर नतीजा सिफर, बड़ों के बजाय छोटों की गर्दने नाप जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिशें। इंसाफ की मांग को लेकर पीड़ित परिवार का घर के सामने धरना फिर भी न्याय मिल पाने के आसार नहीं। यही हाल है डा. राममनोहर लोहिया की जन्म स्थली वाले अम्बेडकरनगर जिले की। कहने वालों के अनुसार विरोधियों को निबटाने का सियासी आकाओं ने ऐसा घिनौना खेल खेलना शुरू किया है जिससे उनके दामन तो दागदार हो ही रहे हैं, साथ ही सियासत भी दागदार होने लगी है। ऐसे में लोगों में गम, गुस्सा एवं आक्रोश पनपना लाजिमी है। टाण्डा के रामबाबू गुप्त की हत्या (3 मार्च 2013) के समय से ही जिले में तैनात होने वाले आला-हाकिमों का रवैया बेहद ही निराशा जनक रहा है।

रामबाबू गुप्ता हत्याकाण्ड में ही यदि पुलिस ने निष्पक्ष कार्रवाई कर असल गुनहगारों को जेल की सीखचों के पीछे पहुंचाया होता और मृतक के परिवारीजनों द्वारा दी जाने वाली शिकायती तहरीरों पर कार्रवाई की होती, सुरक्षा एवं संरक्षा प्रदान किया होता तो शायद उसके भतीजे राममोहन गुप्त की हत्या न होती। राममोहन गुप्त की हत्या में टाण्डा सपा विधायकएवं उनके तीन गुर्गों की नामजदगी तो हो ही गयी लेकिन पुलिस अभी तक चारों की गिरफ्तारी का साहस नहीं जुटा पायी है।

सपा विधायक को एक रसूखदार काबीना मंत्री का बेहद करीबी माना जाता है। यही कारण है कि जिले में तैनात होने वाले अधिकारी भी अपनी कुर्सी बचाने के लिए विधायक को ही खुश करने में लगे रहते हैं। राम मोहन गुप्त हत्या मामले में लापरवाही के लिए भाजपा एवं हिन्दूवादी संगठनो तथा व्यापार मण्डलों से जुड़े लोगों ने पुलिस अधीक्षक को निलम्बित किये जाने की मांग शुरू कर दिया। अलीगंज थानाध्यक्ष रमेशचन्द पाण्डेय एवं अन्य चार पुलिस कर्मियों को जहां निलम्बित कर दिया गया वहीं पर्यवेक्षण में शिथिलता के लिए सी.ओ. टाण्डा को स्थानान्तरित कर दिया गया। साथ ही अपर पुलिस अधीक्षक राजीव मल्होत्रा का भी तबादला कर दिया गया।

खबरों के अनुसार पुलिस ने यह दावा किया है कि जल्द ही हत्यारोपी पुलिस पकड़ में होंगे और हत्या का� राजफाश कर दिया जाएगा। विधायक समेत अन्य हत्यारोपियों के उच्च राजनीतिक पहुँच एवं प्रभाव के कारण धरने पर बैठे मृतक राममोहन गुप्त के परिजनों को इंसाफ मिल पाने के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं। आन्दोलन, जनपद बन्द, धरना-प्रदर्शन के बावजूद नामजद हत्यारोपियों का पुलिस पकड़ से दूर रहना अवश्य ही सोचनीय सा बना हुआ है। इस परिस्थिति को देखकर यह कहा जा सकता है कि सत्ता के प्रभाव से अधिकारियों के हाथ बंधे हुए है, शायद यही कारण है कि चाहकर भी वे आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं।

-रीता विश्वकर्मा
मो.नं. 8765552676

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इन्डियननेस बनाम भारतीयता

�“इन्डियननेस इन कम्युनिकेशन” या “इन्डियननेस इन एडवरटाइज़िग” जब मैंने पहली बार इन शीर्षकों को देखा तो बहुत अच्छा महसूस हुआ. लगा जैसे “चलो कहीं से तो बात शुरू हुई.” कुछ तो है ज़रूर कि लोग आज इसकी ज़रूरत महसूस कर रहे हैं और इसपर बड़े पैमाने पर गहन चर्चा हो रही है. वास्तविक तौर पर भारत ने महज़ २०० सालों की गुलामी झेली है, मगर व्यावहारिक तौर से हम आज भी गुलाम हैं….. अंग्रेजों के ना सही, अंग्रेजियत तो हावी है हम पर. सोचकर तकलीफ होती है कि भारत में रहकर, भारतीय होकर भी हम भारतीयता के प्रति लोगों को जागरूक कराने की कोशिश में जुटे हैं. कैसी विडम्बना है यह?

राष्ट्रीय साक्षरता मिशन का यह स्लोगन शायद आपको याद हो,

“पूरब से सूर्य उगा, फैला उजियारा.

जागी हर दिशा-दिशा, जागा जग सारा.”

आज सूर्य “ईस्ट” से निकलता है और “वेस्ट” में अस्त होता है. वैसे सूर्यास्त और सूर्योदय अब होता कहाँ है? अब तो “सनसेट” और “सन राईज़” की परम्परा चल पड़ी है. जागने के बजाय हम “वेक अप” करते है और सोने के बजाय “स्लीप” करते है. हमारे बच्चे “गुड मॉर्निंग” और “गुड नाइट” के ऐसे आदि हो चुके हैं कि “सुप्रभात” और “शुभ रात्री” उनके लिए विदेशी शब्द हैं. इतना ही नहीं, आशीर्वाद की जगह अब “बेस्ट विशेज़” ने ले ली है. माता-पिता और बुजुर्गों के आशीर्वाद से ज्यादा अहमियत हम दोस्तों और चाहने वालों के “बेस्ट विशेज़” को देने लगे हैं. चरण स्पर्श की हमारी भारतीय परम्परा अब “हैण्ड शेक” की पाश्चात्य शैली में तब्दील हो गयी है. उपरोक्त बातें महज़ कुछ उदाहरण हैं भारतीयता से दूर होती भारतीय संस्कृति की.

देखा जाए तो हमारे रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में पाश्चात्य शैली, पाश्चात्य विचार इस कदर घर कर गए हैं की अब तो भेद कर पाना भी मुश्किल लगता है. ऐसा नहीं है कि इसके (दुष्परिणाम) परिणाम लोगों को दिखाई नहीं दे रहे, किन्तु इसे नज़रअंदाज़ करने की सिवा उपाय क्या है, है न? यही ख़राबी है हम भारतीयों में, स्वयं को इतना बेबस और लाचार मान बैठते हैं कि कोई भी ऐरा,गैरा, नत्थू खैरा, अपनी उँगलियों पर नचा जाता है और हम ख़ुशी-ख़ुशी उसे ही स्वीकार कर बैठते हैं जिसका विरोध अंतर्मन कर रहा होता है. क्यों, और कब तक? कहते हैं जब तक स्वयं पर नहीं बीतती, तबतक उसे समझ पाना आसान नहीं होता.

मुझे भी इसका बोध तब हुआ जब मेरे सामने यह प्रश्न आया. पेशे से मैं एक शिक्षिका हूँ और पिछले चार सालों से भारत के एक प्रतिष्ठित संस्थान में पठन-पाठन का कार्य कर रही हूँ. यहाँ स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम चलाये जाते हैं और भारत के सभी भागों से विद्यार्थी यहाँ पढने आते है. विद्यार्थियों में इतनी विविधताओं के बावजूद कुछ बातें इनमें एकसमान हैं जैसे, १. पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के प्रति उनका आकर्षण; २. अंग्रेज़ी बोलने में फर्राटेदार, लिखने में व्याकरण की अनेक गलतियां, ३. हिंदी-भाषियों के प्रति हीन भावना; ३. हिंदी बोलने के प्रति हीन-भावना, ४. भाषा (हिंदी या अंग्रेज़ी) के समुचित ज्ञान का अभाव, ५. लिखने के प्रति अरुचि, ६.मोबाईल और इंटरनेट के बीच सिमटी दुनिया, ७. पुस्तकों, या यूँ समझ लीजिये, पढने से परहेज़, ९. सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर स्टेटस अपडेट करना दिन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य, १०. क्रियात्मकता में गूगल की महत्वपूर्ण भूमिका अर्थात कोई भी कार्य पूरा करने के लिए गूगल सर्च अनिवार्य.

लिखती जाऊं तो यह सूची� ना जाने और कितनी लम्बी होगी… मगर सच्चाई यही है कि आज की पीढ़ी हमारे संस्कार, हमारी संस्कृति से बहुत आगे निकल चुकी है. वो ज़माने लद गए जब गुरु के एक आदेश पर शिष्य अपना अंगूठा भी काट डालता था. अब तो शिष्य अंगूठा दिखा-दिखा कर गुरुओं का मज़ाक बनाने से भी बाज नहीं आते. (यहाँ मेरा अनुरोध है कि वाक्यों को शब्दशः लेने का कष्ट ना करें, भावनाओं को समझें) ऐसे में भारतीयता की बात करने वाले हम चंद लोगों की यह कोशिश कहीं हवाई क़िला बनकर ना रह जाए. बहरहाल, हमारा मानना है कि हमें फल की चिंता किये बिना अपना कार्य करते रहना चाहिए. सफलता-असफलता वक्त के साथ-साथ स्वयं परिलक्षित हो जायेगा.

सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि भारतीयता क्या है. क्या भारतीयता हिन्दी बोलने-समझने में है या सभी नव आगंतुक के समक्ष भारत की गौरव गाथा बखान करने में है या भारतीयता सदियों से आ रही परम्पराओं और रीति-रिवाजों का अन्धानुकरण करने का दूसरा नाम है. आखिर है क्या यह भारतीयता?

भारतीयता का ख़याल ज़हन में आते ही चंद शब्द स्वयं ही मस्तिष्कपटल पर अंकित होने लगते है. सभ्यता-संस्कृति, आचार-विचार, धर्म-संस्कार, खान-पान, रहन-सहन, पहनावा, भाषा आदि. तो क्या, यही भारतीयता है? या भारतीयता इन सबसे परे, इन सबसे ऊपर एक ऐसी सोच है जो भारत को भारत बनाती है, एक ऐसा भाव है जो सफल और सहज जीवन जीने का मार्गदर्शन करती है.

आइये जानने का प्रयास करें. भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां कदम-कदम पर विविधताएं दृष्टिगोचर होती है. अठाईस राज्यों व् छः केंद्र शाषित प्रदेशों के इस देश में लगभग २००० मातृभाषाएं बोली जाती है. हर राज्य का अपना खान-पान, अपना पहनावा; यहाँ के प्रत्येक नागरिक को अपना धर्म, अपना समुदाय, अपने संस्कार, अपनी परम्परा मानने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है. इतनी विभिन्नताओं के बावजूद भारत को एक सूत्र में बांधे रखने का नाम है है भारतीयता. भारतीयता एक विचार है जो प्रत्येक भारतीय को धरोहर के रूप में प्राप्त है.

भारतीयता एक दर्शन है जिसकी आज सम्पूर्ण विश्व को आवश्यकता है. भारतीयता गीता-सार है जो सभी विज्ञान का मूल है. भारतीयता स्वामी विवेकानंद का शिकागो में दिया गया भाषण है; भारतीयता गौतम बुद्ध के सिद्धार्थ से भगवान बनने की अमर कथा है, भारतीयता वीर शिवाजी, रानी लक्ष्मीबाई, टीपू सुलतान, महाराणा प्रताप जैसे शूरवीर योद्धाओं की गौरव गाथा है; भारतीयता मंगल पांडेय, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि के शहादत की गरिमामयी दास्तान है; भारतीयता डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, भीमराव आंबेडकर और राजा राम मोहन राय का भारत को सुदृढ़ और उन्नत बनाने का अनूठा स्वप्न है; भारतीयता रबीन्द्र नाथ टैगोर, भारतेन्दु हरिश्चंद, हजारी प्रसाद द्विवेदी, हरिवंश राय बच्चन सरीखे साहित्यकारों की रचना है; भारतीयता प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, माखनलाल चतुर्वेदी आदि का साहित्य है; भारतीयता कौटिल्य और अमर्त्य सेन का अर्थशास्त्र है; भारतीयता मदर टेरेसा का सेवा-भाव है; भारतीयता चाणक्य नीति है; कबीर वाणी है; रहीम के दोहे हैं; भारतीयता तुलसीदास की रामायण है; भारतीयता महर्षि व्यास की महाभारत है; भारतीयता कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स के अन्तरिक्ष की उड़ान है; भारतीयता सचिन तेंदुलकर की बल्लेबाज़ी है; धोनी की कप्तानी है; भारतीयता बिरजू महाराज के घुँघरू की थिरकन है; बिस्मिल्लाह खां की शहनाई है; भारतीयता लता मंगेशकर की सुरीली आवाज़ है; किशोर कुमार का अनोखा अंदाज है; भारतीयता अमिताभ बच्चन की बेहतरीन कलाकारी है और मीना कुमारी की नाज़ुक अदाकारी है; भारतीयता ए. आर रहमान का संगीत है और नीरज का गीत है. इतना ही नहीं, भारतीयता कभी ईद का चाँद है तो कभी दूज का; कभी भाई-बहन का रक्षा-बंधन है तो कभी पति-पत्नी का तीज-चौथ; भारतीयता दीवाली के दीयों की रौशनी है और होली के रंगों की रंगोली; दरअसल, भारतीयता भारत के कण-कण में है; यहाँ की सुबह में है, यहाँ की शामों में है.

जब भारतीयता इतना वृहत और विस्तृत है तो आज के बालमन और युवा इससे अनभिज्ञ क्यों हैं? क्यों यह भारतीयता इतना दुर्लभ हो गया है कि इसे पुनः स्थापित करने की कोशिश की जा रही है? क्यों भारत और भारतीयता एक बड़ा प्रश्नचिह्न बनकर हमारे सम्मुख खड़े हैं? उत्तर साफ़ है. जिस भारतीयता की आबो-हवा में हम पले-बढ़े हैं, आज की पीढ़ी उस वातावरण से अनजान है. धूल-मिट्टी से सनने वाले हाथों में अब मोबाइल, स्मार्ट फोन, लैपटॉप, और टैबलेट थमा दिए गए है. दिमाग से बनने वाले सवाल अब गूगल हल कर रहा है. लुका-छिपी, दौड़-भाग, कबड्डी, खो-खो जैसे खेलों की जगह अब एंग्री बर्ड, फ्रूट निन्जा, और क्रिमिनल केस ने ले ली है. प्रेमचंद के गोदान की जगह अब स्टेफनी मेयर की ट्वाईलाईट सागा ने ले ली है, रुडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक पर जे. के. राउलिंग का हैरी पॉटर हावी हो गया है. कत्थक, भरतनाट्यम, मणिपुरी, कुचिपुड़ी आदि नृत्य शैलियों पर बेली, हिप-हॉप, जैज़, सालसा, साम्बा आदि पाश्चात्य शैलियों का परचम लहरा रहा है.

हिन्दुस्तानी और कर्नाटिक संगीत की ऊपर पॉप, रैप और रॉक आलाप तान रहा है. लाल क़िला और इंडिया गेट पर यूँ तो हम तिरंगा लहराते हैं मगर नतमस्तक अंग्रेजियत के सामने होते हैं. पूरी-कचौड़ी, लिट्टी-चोखा, समोसा-जलेबी आदि पिज़्ज़ा, फ्रेंच-फ्राइज़, और बर्गर के समक्ष बेस्वाद हो चुके हैं. सत्तू, पोहा जैसे इंस्टैंट खाने की जगह मैगी और यिप्पी नूडल्स ने ले ली है. रसगुल्ला, गुलाब-जामुन और रसमलाई की मिठास केक, पेस्ट्री के सामने फीके पड़ चुके हैं. भारत की पहचान समझी जाने वाली भारत की हर बात अब भारत से दूर होती जा रही है, फिर भारतीयता कैसे बची रह सकती है. अब तो भारत भी भारत से दूर हो रहा है. जी हाँ, सही पढ़ा आपने. भारत की जगह अब एक नया देश बन रहा है- इण्डिया. आप बोलेंगे अंतर क्या है, दोनों एक ही हैं और यहीं मात खा जाते हैं हम. जिस तरह सिक्के के दोनों पहलु कभी एक नहीं हो सकते उसी तरह भारत और इण्डिया को एक समझना हमारी सबसे बड़ी भूल है. कहते हैं प्रत्येक भाषा का अपना एक संस्कार होता है, एक तहजीब होती है. इसी संस्कार और तहजीब का फ़र्क है भारत और इण्डिया में. भारत का इतिहास सदियों पुराना है – वेद, पुराण, ऋचाएं, ऋषि-मुनि, तप, योग, कर्म, फल आदि उसी स्वर्णिम इतिहास की देन हैं. इण्डिया तो भारत की गुलामी की ही तरह ईस्ट इण्डिया कम्पनी की देन है महज़ चंद सौ साल पुरानी. सदियों पुराने भारत पर जब इण्डिया अपना परचम लहराएगा तब भारतीयता का डगमगाना लाज़मी है.

भारत के संस्कार और इण्डिया के संस्कारों में वही फ़र्क है जो ‘लक्ष्मण’ और ‘लकी’ के संस्कारों में है. भारत में दुकानें हुआ करतीं थीं, इण्डिया में शॉपिंग मॉल्स हैं; भारत व्यक्ति-प्रधान है और इण्डिया ब्रैंड प्रधान. भारत संतुष्ट था और इण्डिया असंतुष्ट. ऐसे कई कारण व अवयव हैं जो भारतीयता को इण्डिया से दूर कर रहे है. वैश्वीकरण के इस युग में वैश्विक होना कोई अपराध नहीं, किन्तु वैश्विक होने के चक्कर में अपना अस्तित्व खो देना अपराधतुल्य माना जा सकता है. भारत यही अपराध कर रहा है. जाने या अनजाने में ही सही, अपनी अस्मिता, अपना अस्तित्व छोड़ यह पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति की नक़ल करने में ऐसे जुटा है कि अपने अक्स का ही भान नहीं रहा इसे. इण्डिया और भारत के बीच भारतीयता कहीं ज़ार-ज़ार हो रही है, इसका भी होश नहीं रहा इसे. उपाय क्या है? निदान क्या हो? समस्या समझ लेना और इसे स्वीकार कर लेना उपाय की ओर हमारा पहला कदम है. समस्या है और इस समस्या के दुष्परिणाम हम ऊपर देख भी चुके हैं. यदि हम अब भी सचेत नहीं हुए तो वे दिन दूर नहीं जब कम्प्यूटर और अन्य मशीनों की तरह हमारी संवेदनाएं भी मशीनी हो जाएगी; हमारे सामाजिक और मानवीय रिश्ते सोशल नेटवर्किंग साइट्स के समान लाइक्स और कमेंट्स तक सीमित रह जायेंगे. हमारी होली-दीवाली इंटरनेट मेसेजेस और ई-कार्ड्स के ज़रिये मनाई जायेगी. जब तक हमारी भारतीयता सुरक्षित है, हमें वलेंटाइन डे और फादर्स या मदर्स डे मनाने से कोई परहेज़ नहीं. मगर जहां भारतीयता पर ख़तरे के आसार नज़र आयेंगे, वहां अंकुश लगाना तो लाज़मी हो जाता है. विचार कीजिये, और खुद ही तलाशिये रास्ते जो भारतीयता की ओर ले जाएँ. जो प्रश्न, जो समस्याएं आपके सम्मुख प्रस्तुत किये गए हैं, उनका हल, उनका निराकरण आसान नहीं है. मगर आसानी से मिलने वाली चीजों में वो बात कहाँ जो मेहनत और परिश्रम से हासिल हो. भारतीयता की ओर हमारा सबसे बड़ा प्रयास यही होगा कि हम इसकी चर्चा करें, इससे अपनी युवा पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी का परिचय करायें. जाना कहाँ है इसका ज्ञान है हमें, बस रास्ते तलाशने होंगे. आइये हम सब मिलकर इसका आगाज़ करें, एक नई शुरुआत करें.

लेखिका दीपा कुमार मुंबई स्थित राष्ट्रीय फ़ैशन टेक्नोलॉजी संस्थान में एसिस्टेंट प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत हैं।

संपर्क

Assistant Professor
Department of Fashion Communication
National Institute of Fashion Technology, Mumbai
(Ministry of Textiles, Government of India)

Mobile: +91 8451007297
Email: journalistdeepa@gmail.com

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केजरीवाल दुनिया के सौ शीर्ष विचारकों में शामिल

आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविन्द केजरीवाल अमेरिकी पत्रिका फॉरेन पॉलिसी के वर्ष 2013 के 100 शीर्ष वैश्विक विचारकों में शामिल हैं। इस सूची में उन लोगों को शामिल किया गया है जिन्होंने दुनिया में अहम अंतर लाने में योगदान दिया और असंभव की सीमा को पीछे धकेल दिया।

उर्वशी बुटालिया और कविता कृष्णन जैसी कार्यकर्ताओं ने भी इस सूची में जगह हासिल की है जिसमें पहला स्थान अमेरिकी खुफिया सूचनाओं का खुलासा करने वाले एडवर्ड स्नोडन को मिला है।

45 वर्षीय केजरीवाल को सूची में 32वां स्थान मिला है। उन्हें वैश्विक विचारक माना गया है, क्योंकि उन्होंने भारत की राजधानी में भ्रष्टाचार को हटाने के लिए एक अभियान का नेतृत्व किया और देश का संभ्रांत वर्ग की चिंता का कारण बने।

पत्रिका के अनुसार केजरीवाल एक क्रांति को हवा दे रहे हैं, वह नई दिल्ली को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए एक प्रभावशाली अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं और जनता की जरूरतों की तरफ सरकार का ध्यान दोबारा आकर्षित कर रहे हैं। सूची में बुटालिया और कृष्णन दोनों ही 77वें स्थान पर हैं।

पत्रिका के अनुसार दोनों ना केवल विचारशील कार्यकर्ता हैं बल्कि दोनों भारत में यौन हिंसा की समस्या के खिलाफ खड़े अगुआ विरोधियों में से हैं।

सूची में शामिल अन्य भारतीयों में स्वास्थ्य अधिकार को लेकर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत आनंद ग्रोवर, गिवडायरेक्टली नाम के गैर सरकारी संगठन के सह संस्थापक रोहित वांचू, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में महामारी विशेषज्ञ एवं चिकित्सक संजय बसु और ऑनलाइन संगठन एजेंलिस्ट के सह संस्थापक नवल रविकांत के नाम हैं।

सूची में अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, जापानी प्रधानमंत्री शिंजो अबे, फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग और अमेरिकी मानवाधिकार उच्चायुक्त नवी पिल्लई के नाम भी शामिल हैं।

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दिग्विजय के खिलाफ म.प्र. के काँग्रेसियों की खुली बगावत

मध्य प्रदेश के कई प्रमुख काँग्रेसी नेता विधान सभा में चुनावों में कांग्रेस की ज़बर्दस्त हार को लेकर दिग्विजय सिंह के खिलाफ खुलकर सामने आ गए हैं।  कांग्रेसी नेताओं ने  मध्य प्रदेश में दिगिवजय सिंह के बायकॉट का एलान कर दिया गया है।

सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी के बाद उज्जैन जिले के महिदपुर से पराजित कांग्रेस प्रत्याशी कल्पना परूलेकर ने मध्‍य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ मोर्चा खोला है। परूलेकर ने कहा कि दिग्विजय का बायकाट होना चाहिए और उज्जैन सांसद प्रेमचंद गुड्डू को पार्टी से निकाला जाना चाहिए। इसके बाद ही मप्र में कांग्रेस का भला हो सकता है।

परूलेकर ने कहा कि महिदपुर में गुड्डू ने उन्हें हराने के लिए 12 करोड़ रुपए खर्च किए। परूलेकर ने कहा ‘मेरे खिलाफ चुनाव लडऩे वाले दिनेश जैन बोस गुड्डू के समर्थक हैं और गुड्डू दिग्विजय के। गुड्डू ने मीडिया में मुझे कमजोर प्रत्याशी के रूप में प्रचारित किया और पूरी पार्टी ने मेरे खिलाफ काम किया।’ परूलेकर ने बताया कि उन्होंने इस संबंध में राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और केंद्रीय मंत्री कमलनाथ सहित अन्य संबंधित जनों को एक पत्र लिखा है। वे बुधवार को यह पत्र मीडिया को जारी कर देंगी। परूलेकर के बयान पर टिप्पणी के लिए दिग्विजय उपलब्ध नहीं हुए, जबकि गुड्डू ने कहा कि ऐसे मामलों पर मीडिया की बजाय पार्टी के भीतर ही बात की जाना चाहिए।

 

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जन्म दिन पर मोमबत्तियाँ बुझाना अशुभ ही नहीं घातक भी

जन्म दिन  या किसी दूसरे मौके पर काटे जाने वाले केक पर सजीं मोमबत्तियों को फूंक मारकर बुझाना आपको भारी पड़ सकता है। सरकार इस पर पाबंदी लगाने के बारे में सोच रही है। मकसद है इसके कारण फैलने वाले इन्फेक्शन को रोकना।

राज्यसभा में  एक सवाल के जवाब में स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने बताया कि ऑस्ट्रेलिया ने साझे केक पर जलाई जाने वालीं मोमबत्तियों को फूंक मारकर बुझाने पर रोक लगा दी है। अब भारत सरकार भी इस विकल्प पर विचार कर रही है।

आजाद ने अविनाश राय खन्ना के सवाल के लिखित जवाब में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इंडियन मेडिकल काउंसिल ने बताया है कि ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अनुसंधान परिषद (एनएचएमआरसी) ने साझे केक पर जलाई जाने वालीं कैंडल्स को फूंक मारकर बुझाने पर रोक लगा दी है।

आजाद ने बताया कि एनएचएमआरसी ने डे केयर सेंटर्स को निर्देश दिया है कि वे इन्फेक्शन से बचाव के लिए बर्थडे मनाने वाले लोगों को अपना व्यक्तिगत 'कप केक' मुहैया कराए। आजाद ने कहा कि इंडियन मेडिकल काउंसिल ने इस बारे में खुद कोई रिसर्च नहीं की है। उन्होंने कहा कि केक पर मोमबत्ती जलाने की रस्म जारी रखी जाए या इसे बैन किया जाए, इस पर विचार हो रहा है।

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शिवराज का शपथ समारोह ज्योतिषियों के हिसाब से

भाजपा की तीसरी सरकार शनिवार को 14 दिसंबर को शपथ लेगी। शपथ समारोह के लिए भोपाल के भेल का जंबूरी मैदान सजकर तैयार हो गया है। ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन शनि प्रदोष तिथि होने के कारण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा शपथ लिये जाने का शुभ मुहूर्त है, क्योंकि इसके बाद खरमास लग जाएगा। ज्योतिष मनीषियों का कहना है कि 14 दिसंबर के दिन का मूलांक 5 है, वहीं श्री चौहान की जन्मतिथि 5 मार्च होने के कारण उनका मूलांक भी 5 ही है।

इस दिन शनिवार तथा प्रदोष यानि शनि न्याय के देवता और प्रदोष शिव का दिन है। उधर मुख्यमंत्री के नाम का प्रथम शब्द भी शिव होने से सभी संयोग शुभ बन रहे हैं।

शुभ है 14 दिसंबर : पंडितों के मुताबिक श्री चौहान के लिए 14 दिसंबर की तारीख सबसे उपयुक्त और शुभ फलदायक है। क्योंकि इस दिन सूर्य वृश्चिक राशि में है और शनि प्रदोष पड़ रहा है। इसके बाद खरमास लग जाएगा और खरमास में कोई भी शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।

 

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रेडिओ से मुफ्त में समाचार मिलेंगे एसएमएस से

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