Monday, November 25, 2024
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लक्ष्मण झूला पर लंगूर ने अमिताभ को मारा था थप्पड़

<p><span style="line-height:1.6em">लक्ष्मणझूला और स्वर्गाश्रम आने वाले देश-विदेश के पर्यटकों को यहां के लंगूर अपने व्यवहार के कारण अक्सर याद रहते हैं। ऐसे में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन भला इन लंगूरों को कैसे भूल सकते हैं। 1978 में लक्ष्मणझूला में ही एक लंगूर ने बिग बी को थप्पड़ जड़ा था। यह बात बिग बी ने फेसबुक पर अपने प्रशंसकों के साथ साझा की है।</span></p>

<p>सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने एक ब्लैक एंड व्हाइट फोटो के साथ यह संस्मरण शेयर किया है। घटना तब की है जब सदी के महानायक अपने करियर के शुरुआती दौर में थे। अमिताभ बच्चन 1978 में फिल्म &#39;गंगा की सौगंध&#39; की शूटिंग के सिलसिले में ऋषिकेश आए थे। यहां उनके साथ फिल्म के अन्य साथी कलाकार भी थे। इसी दौरान का एक किस्सा उन्होंने अपने फेसबुक से शेयर किया है। महानायक ने लिखा है कि ..</p>

<p>हम तीर्थनगरी में &#39;गंगा की सौगंध&#39; की शूटिंग कर रहे थे। हमने पहले गंगा के ऊपर बने लक्ष्मणझूला पुल पर घुड़सवारी का सीन शूट किया। उस दिन की शूटिंग खत्म करने के बाद हम हरिद्वार स्थित गेस्ट हाउस के लिए लौट रहे थे। लक्ष्मणझूला में अचानक हमारी कार के सामने एक लंगूर आ गया। लंबी पूंछ, सफेद मुंह और ग्रे सी स्कीन वाला वह लंगूर कुछ खाने को तलाश रहा था। इस पर मैं कार से उतरा और उसके पास उसे कुछ चने और केले खिलाने के लिए पहुंचा। यह सब जैसे किसी फिल्म की स्क्रिप्ट जैसा ही था। यह सब पास ही खड़े दो-तीन लंगूर भी देख रहे थे। इसके बाद वह भी वहां आ गए, लेकिन उनमें से एक लंगूर ने मुझे देखा और मुझे एक जोरदार थप्पड़ मारा। मानों जैसे वो कह रहा हो कि मुझे भी कुछ खाने को दें। मुझे याद नहीं है पर वो शायद फीमेल लंगूर थी। इस पूरी घटना के साक्षी मेरे मेकअप मैन दीपक सावंत भी बने। सावंत मेरे साथ 35 वर्ष से काम कर रहे हैं।</p>

<p>फेसबुक पर अमिताभ बच्चन का यह संस्मरण तीर्थनगरी में उनके प्रशंसकों के लिए हैरान करने वाला है। इस संस्मरण के साथ ही फिल्म &#39;गंगा की सौगंध&#39; की शूटिंग के वह लम्हे भी ताजा हो गए जब लक्ष्मणझूला, गंगा के तट, ढालवाला के जंगल और चंद्रभागा नदी में अमिताभ बच्चन, अभिनेत्री रेखा, अमजद खान, बिंदू आदि पर इस फिल्म के दृश्य फिल्माए गए थे।</p>

<p>साभार &ndash;दैनिक जागरण से</p>
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बाबा रामदेव ने कहा, मैं नार्को टेस्ट के लिए तैयार

योगगुरु बाबा रामदेव ने कहा है कि अपने गुरू बाबा शंकरदेव के लापता होने के मामले में वह नारको टेस्ट के लिए तैयार हैं। बाबा रामदेव ने एक निजी टीवी चैनल से बातचीत के दौरान कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने बाबा शंकरदेव के लापता होने के बारे में उनसे लगभग एक घंटे तक पूछताछ की है और उन्हें पूछताछ के लिए फिर बुलाया गया है।

बाबा रामदेव ने चैनल से बातचीत के दौरान कहा कि कांग्रेस पार्टी उन्‍हें बलात्‍कार, हत्‍या और ड्रग्‍स तस्‍करी के मामले में फंसाना चाहती है। उन्‍होंने कहा कि उन पर कई बार दवाब बनाया गया कि वह कांग्रेस के ऊपर घोटालों, भ्रष्‍टाचार और काले धन के मुद्दे पर हमला न बोलें। अगर वह ऐसा करते रहेंगे तो उन्‍हें भी उनके खिलाफ कुछ करना होगा। इस बातचीत के दौरान उन्‍होंने कहा कि यह सब कुछ कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्‍व पर किया जा रहा है।

सीबीआई ने स्वामी रामदेव से उनके गुरु स्वामी शंकर देव का कथित रूप से अपहरण किये जाने के मामले की अपनी जांच के सिलसिले में पूछताछ की है। शंकर देव छह साल पहले हरिद्वार में सुबह की सैर पर निकलने के बाद लापता हो गये थे। जांच एजेंसी ने बाबा रामदेव से पिछले हफ्ते सीबीआई मुख्यालय में पूछताछ की गयी। सूत्रों ने बताया कि उनसे फिर पूछताछ की जा सकती है।

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पूनम पाँडे लापता, ढूँढ रही है दो राज्यों की पुलिस

कन्नड़ फिल्म के जरिए डेब्यू करने वाली विवादित मॉडल पूनम पांडे दो राज्यों की पुलिस के साथ लुकाछिपी का खेल खेल रही है। मुंबई और बेंगलूरू पुलिस एक मामले में पूनम पांडे को नोटिस थमाना चाहती है लेकिन वह मिल नहीं रही है।   बेंगलूरू की एक कोर्ट में निजी शिकायत की गई थी। इस मामले पर 31 अक्टूबर को सुनवाई है। एस उमेश ने कोर्ट में शिकायत की थी कि भगवान विष्णु के चित्र के साथ पूनम पांडे ने सेमी न्यूड फोटो खिंचवाया था। इससे हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं आहत हुई है।

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2012 में पूनम पांडे के सेमी न्यूड वाला विज्ञापन छपा था।   शिकायत के बाद पुलिस ने पूनम पांडे के खिलाफ आईपीसी की धारा 295 ए के तहत केस दर्ज किया था। कोर्ट ने 7 नवंबर 2012 और 26 फरवरी 2013 को पूनम पांडे के खिलाफ समन जारी किया। पूनम को अपनी सफाई देने के लिए कोर्ट में पेश होने को कहा गया। दोनों बार वह कोर्ट में पेश नहीं हुई।  पुलिस का कहना है कि पूनम पांडे लापता है,इसलिए वह उसे समन नहीं दे पाई है। इसी साल जून में भी पूनम के खिलाफ समन जारी किया गया। इस बार समन मुंबई के पुलिस कमिश्नर के जरिए देने को कहा गया लेकिन इस बार भी पूनम पांडे को समन नहीं मिला क्योंकि एक आईटम सॉन्ग की शूटिंग के लिए वह बेंगलूरू में है।

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नरेंद्र मोदी ने अमरीका को बताई गुजरात के विकास की कहानी

भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार व गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने इमर्जिंग मार्केट फोरम के जरिये सोमवार को अमेरिका को बताया कि भारत को महज एक बाजार समझना भूल होगी। उन्होंने भारत जैसे मानव संसाधन से परिपूर्ण देशों को उभरते हुए विकास केंद्र कहा। साथ ही गुजरात के विकास की कहानी भी सुनाई। मोदी ने बताया कि पानी व बिजली के संकट से जूझ रहे गुजरात को उन्होंने कैसे एनर्जी सरप्लस व पानीदार गुजरात बनाया। उन्होंने समरसता व सुशासन को लोकतंत्र की आत्मा बताया।

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गांधीनगर स्थित मुख्यमंत्री आवास से मोदी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सोमवार की शाम वाशिंगटन में "इमर्जिंग मार्केट फोरम" को संबोधित किया। "लोकतंत्र में प्रभावी शासन" विषय पर मोदी ने कहा कि जनता की सरकार के रूप में लोकतंत्र श्रेष्ठ शासन प्रणाली है। भारत जैसे विविधता भरे देश में लोकतंत्र से बेहतर दूसरी कोई शासन व्यवस्था नहीं हो सकती। परोक्ष रूप से केंद्र सरकार को नसीहत देते हुए मोदी ने कहा कि जनभागीदारी व जनविश्वास से ही इस व्यवस्था में कोई सरकार कायम रह सकती है। चुनाव जीतने के बाद सरकारों को यह नहीं मान लेना चाहिए कि उसे पांच साल का ठेका मिल गया है बल्कि उसे खुद को जनता का रखवाला व प्राकृतिक संसाधनों का ट्रस्टी समझना चाहिए। इन मुद्दों के जरिये मोदी ने केंद्र सरकार के घोटालों की ओर इशारा करने का प्रयास किया।�

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मोदी ने गुजरात विकास की कहानी बताते हुए कहा कि गति, कौशल व एक पैमाना तय करके चलने से ही बेहतर शासन दिया जा सकता है। उन्होंने सत्ता में आते ही स्मार्ट सिटी, पोर्ट सिटी व सेटेलाइट कम्युनिकेशन पर बल दिया। जनता के विश्वास व जनभागीदारी के साथ काम करते हुए उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर उपयोग किया।

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बकरीद पर गायों की कुर्बानी न करें मुसलमान, देवबंद के मुफ्ती की अपील

विश्र्व प्रसिद्ध इस्लामी इदारे दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम (कुलपति) मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने हिंदू समाज की धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखते हुए ईद-उल-जुहा पर गाय की कुर्बानी न करने की अपील मुसलमानों से की है। 

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मोहतमिम मौलाना अबुल कासिम नोमानी ने सोमवार को जारी बयान में कहा है कि त्योहारों पर सभी लोगों को एक-दूसरे की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। ईद-उल-जुहा पर मुस्लिम समाज के लोगों को चाहिए कि वे हिंदुओं के मजहबी जज्बातों का ख्याल रखें। उन्होंने कहा कि जिन राज्यों में गाय काटने पर प्रतिबंध है, वहां के बाशिंदे कानून और संप्रदाय विशेष की आस्था व धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए गाय की कुर्बानी बिल्कुल न करें। 

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साथ ही उन्होंने यह भी अपील की कि ईद-उल-जुहा पर कोई भी मुसलमान ऐसा कार्य न करे, जिससे किसी अन्य धर्म के लोगों की भावनाएं आहत हों। बता दें कि इससे पूर्व दारुल उलूम देवबंद द्वारा गाय की कुर्बानी न करने के संबंध में फतवा भी जारी किया जा चुका है।

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राईट टू रिजेक्ट फैसलाः भारतीय लोकतंत्र का स्वर्णीम दिन

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<p><strong>Right to Reject</strong></p>

<p>देश की सर्वच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला देकर भारतीय लोकतंत्र में नए प्राण फूंक दिए हैं।</p>

<p>पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) की याचिका पर सुनवाई करते फैसला दिया कि राईट टू रिजेक्ट एक आम मतदाता का संवैधानिक अधिकार है।&nbsp; पीयूसीएल ने यह याचिका 2004 में दायर की थी।<br />
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फ़ैसला सुनाते हुए उन्होंने कहा कि एक जीवंत लोकतंत्र में मतदाताओं को &#39;इनमें से कोई नहीं&#39; का विकल्प चुनने का अधिकार जरूर दिया जाना चाहिए।&nbsp; इस फ़ैसले का लाभ इस साल दिसंबर में दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में होने वाले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को मिलेगा।&nbsp; चुनाव में अब तक उम्मीदवारों को नकारने वाले वोटों को गिनने की कोई व्यवस्था नहीं है। इससे इसका चुनाव परिणाम पर असर भी नहीं पड़ता। सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांग थी कि अगर किसी निर्वाचन क्षेत्र में हुए मतदान में पचास फ़ीसद से अधिक मतदाता &#39;राइट टू रिजेक्ट&#39; का इस्तेमाल करते हैं तो, वहाँ दुबारा मतदान कराया जाना चाहिए।<br />
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&nbsp;मुख्तार अब्बास नकवी नकवी का कहना है कि चुनाव सुधार समय की जरूरत है। पीयूसीएल ने अपनी याचिका में मतदाताओं को सभी उम्मीदवारों को खारिज करने का अधिकार देने की मांग की थी। चुनाव आयोग भी इस मांग का समर्थन किया था। लेकिन क्लिक करें केंद्र सरकार इसके पक्ष में नहीं थी। उसका कहना था कि चुनाव का मतलब चुनाव करना होता है, खारिज करना नहीं।<br />
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सभी उम्मीदवारों को नकारने की वर्तमान व्यवस्था में मतदाता मतदान केंद्र पर जाकर पीठासीन अधिकारी से 49 ओ नाम के एक फ़ार्म की मांग करता है और उसे भर कर वापस कर देता है। लेकिन इस तरह के फार्म की गणना नहीं होती है।&nbsp; इस फ़ैसले के बाद भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने एक टीवी चैनल से कहा कि चुनाव सुधार समय की जरूरत है। इसलिए सरकार की ओर इसकी ओर तत्काल ध्यान देना चाहिए।<br />
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&#39;राइट टू रिजेक्ट&#39; और &#39; राइट टू रिकॉल&#39; यानी कि जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने की मांग को लेकर अभियान चलाने वाले और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का स्वागत किया। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इससे लोगों को बहुत अधिक उम्मीद नहीं करनी चाहिए।&nbsp; उन्होंने कहा कि यह सही मायने में तभी सार्थक होगा जब इसके आधार पर चुनाव परिणाम तय हो।सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिए अहम फैसले में मतदाता को राइट टू रिजेक्ट का अधिकार देने पर अपनी मुहर लगा दी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इसके तहत चुनाव आयोग को वोटिंग मशीन में इसकी व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं।<br />
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इस फैसले के तहत अगर चुनाव में मतदाता को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं आता तो उसे वोटिंग मशीन (ईवीएम) में &#39;नन ऑफ द एबव&#39; यानी &#39;उपरोक्त में कोई नहीं&#39; के विकल्प पर मुहर लगा सकता है। मुख्य न्यायाधीश पी। सतशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ गैर सरकारी संगठन पीयूसीएल की ओर से दाखिल लोकहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि एक व्यक्ति को संविधान वोट डालने का अधिकार और उसको खारिज करने का अधिकार भी उसकी अभिव्यक्ति को दर्शाता है।<br />
<br />
यह याचिका पिछले नौ सालों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित थी और गत 29 अगस्त को कोर्ट ने सभी पक्षों की बहस सुनकर फैसला सुरक्षित रख लिया था। उम्मीदवार को नकारने के हक पर आए इस फैसले के बेहद दूरगामी परिणाम होंगे। याचिका में मांग की गई है कि वोटिंग मशीन ईवीएम में एक बटन उपलब्ध कराया जाए जिसमें कि मतदाता के पास &#39;उपरोक्त में कोई नहीं&#39; पर मुहर लगाने का अधिकार हो। अगर मतदाता को चुनाव में खड़े उम्मीदवारों में कोई भी पसंद नहीं आता तो उसके पास उन्हें नकारने और उपरोक्त में कोई नहीं चुनने का अधिकार होना चाहिए।<br />
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चुनाव आयोग ने याचिका का समर्थन किया था जबकि सरकार ने विरोध किया था। अभी मौजूदा व्यवस्था में ऐसी कोई बटन ईवीएम में नहीं है। अगर किसी मतदाता को चुनाव में खड़ा कोई भी उम्मीवार पसंद नहीं आता है और वह बिना वोट डाले वापस जाना चाहता है तो उसे यह बात निर्वाचन अधिकारी के पास रखे रजिस्टर में दर्ज करानी पड़ती है।<br />
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याचिकाकर्ता का कहना था कि रजिस्टर में दर्ज करने से बात गोपनीय नहीं रहती। मतदान को गोपनीय रखने का नियम है। ईवीएम में बटन उपलब्ध कराने से मतदाता द्वारा अभिव्यक्त की गई राय गोपनीय रहेगी।<br />
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गौरतलब है कि मतदाताओं को राइट टू रिजेक्ट दिए जाने की मांग अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल करते रहे हैं। दो साल पहले अन्ना ने अनशन के दौरान भी यह मांग तेजी से रखी थी। उनका कहना था कि राइट टू रिकॉल और राइट टू रिजेक्ट जैसे अधिकारों से जनप्रतिनिधियों को सीधे तौर पर नियंत्रित किया जा सकता है।<br />
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गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा की ओर से पीएम पद के उम्मीनदवार नरेंद्र मोदी भी राइट टू रिजेक्ट का समर्थन कर चुके हैं। उन्होंने हाल ही में गांधीनगर में यंग इंडिया कॉनक्लेव में कहा था कि मतदाताओं को नेताओं को खारिज करने के लिए राइट टू रिजेक्ट का अधिकार मिलना चाहिए। उन्होंने साफ कहा कि इस अधिकार के मिलने के बाद गंदी हो चुकी राजनीति में सुधार संभव है।<br />
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केंद्र सरकार भी इस प्रावधान के पक्ष में दिखती है। कानून मंत्री के तौर पर कुछ साल पहले सलमान खुर्शीद ने चुनाव सुधार के लिहाज से राइट टू रिजेक्ट दिए जाने को सही कदम बताया था। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा था कि यह व्यवस्था पूरी तरह समस्या का समाधान नहीं कर सकती।<br />
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चुनाव आयोग भी देश की चुनाव प्रणाली से अपराधी प्रवृत्ति वाले उम्मीदवारों को दूर करने के लिए राइट टू रिजेक्ट के पक्ष में है। निर्वाचन आयुक्त एच।एस। ब्रह्मा ने हाल ही में कहा था, चुनाव आयोग राइट टू रिजेक्ट पहल का स्वागत करता है लेकिन राइट टू रिकॉल का नहीं, क्योंकि यह राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने के साथ ही विकास की गतिविधियों को प्रभावित करेगा। उन्होंने कहा कि आयोग ने दिसम्बर 2001 में सरकार से इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में इनमें से कोई नहीं विकल्प शामिल करने का प्रस्ताव दिया था ताकि मतदाता इसका इस्तेमाल कर सकें।</p>
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अल्लाह का नाम केवल मुसलमानों के लिए, मलेशिया की अदालत का फैसला

मलेशियाई की एक अपीली अदालत ने सोमवार को व्यवस्था दी कि ईसाई अखबार भगवान के संदर्भ में "अल्लाह" शब्द का इस्तेमाल नहीं करेंगे। कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला उस मुद्दे पर आया है, जिसे लेकर इस मुस्लिम देश में धार्मिक तनाव और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर सवाल उठते रहते हैं। 

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मलेशिया की अपीली अदालत के तीन मुस्लिम जजों ने वर्ष २००९ के निचली अदालत के फैसले को पलट दिया। निचली अदालत ने मलय भाषा के अखबार "द हेरॉल्ड" को ईश्वर के लिए "अल्लाह" शब्द के इस्तेमाल की इजाजत दी थी। हालांकि मलेशिया में ईसाइयों को तर्क है कि वो ऐसा सैकड़ों सालों से कर रहे हैं। 

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ईसाइयत का हिस्सा नहीं 

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अपने १०० पेज के फैसले के खास हिस्से पढ़ते हुए मुख्य जज मोहम्मद अपंदी ने कहा- "अल्लाह" शब्द का इस्तेमाल ईसाइयत का अभिन्ना अंग नहीं है। इस शब्द का इस्तेमाल करने से समुदाय में भ्रम की स्थिति पैदा होगी। अदालत ने कहा कि उसका मानना है कि इससे किसी के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है। सरकार की दलील थी कि अल्लाह शब्द मुस्लिमों के लिए है।

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२००८ से चल रहा है मामला 

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गौरतलब है कि २००८ में तत्कालीन गृहमंत्री ने अखबार को इस शब्द के इस्तेमाल की इजाजत देने से इंकार कर दिया था। जिसके बाद अखबार ने इसके खिलाफ अदालत में अपील की। २००९ में अदालत ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया। इस फैसले के बाद धार्मिक तनाव फैल गया था और चर्चों और मस्जिदों को निशाना बनाया गया था। सरकार का कहना था कि २००८ में तत्कालीन गृह मंत्री का अखबार को इसे छापने की इजाजत न देने का फैसला लोक व्यवस्था के तहत न्यायोचित था। सोमवार को फैसला आने के बाद अदालत के बाहर सैकड़ों की संख्या में खड़े मुस्लिम समुदाय के लोग बेहद खुश दिखे। मलेशिया की २.८ करोड़ की आबादी में दो तिहाई मुसलमान हैं।

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शिक्षा की अवधारणा ने बदला शिक्षक का महत्व

5 सितम्बर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की परंपरा बहुत पुरानी है। शिक्षक कौन होता है और उसका हमारे जीवन में क्या महत्त्व है?

वास्तव में शिक्षा है क्या?

क्या बच्चों की स्कूली पढ़ाई ही शिक्षा है या इससे कुछ अधिक है? बच्चे जो घर में सीखते हैं, दोस्तों से सीखते हैं, अपने अनुभव से सीखते हैं, वह सब क्या है?

जब शिशु पैदा होता है तो उसके पास केवल प्रकृति प्रदत्त ज्ञान होता है, वह ज्ञान जो प्रकृति के हर प्राणी के पास होता है। जो बात उसे बाकी जीवों से अलग करती है, वह है सीखने की अपार क्षमता। इस क्षमता के कारण वह पैदा होने के बाद से प्रतिदिन कुछ नया सीखता है। इस सीखने का पहला चरण शारीरिक ज्ञान है। इसके अंतर्गत वह अपने शरीर और उसकी आवश्यकताओं जैसे शौच, भूख, प्यास, दर्द, नींद आदि से अवगत होता है। दूसरे चरण में वह भावनात्मक आवश्यकताओं को समझता है जैसे स्नेह, रिश्ते, स्पर्श आदि। तीसरे चरण में सामाजिक आवश्यकताओं को जानता है और चौथा चरण स्वयं से साक्षात्कार का है। शैशव काल से लेकर मृत्युपर्यंत, इन चारों चरणों में व्यक्ति जो भी सीखता है वह शिक्षा है। चाणक्य हों या कबीर, प्लेटो हों या अरस्तु, नेहरु हों या महात्मा गाँधी, लगभग सभी विचारकों ने शिक्षा के क्षेत्र को अत्यधिक महत्त्व दिया और इसकी बेहतरी के लिए प्रयास भी किया।

गुरु और शिक्षक

शिक्षा से ही फिर अन्य दो शब्दों को प्रादुर्भाव हुआ, शिक्षक और शिक्षार्थी। शिक्षा देने वाला शिक्षक और शिक्षा ग्रहण करने वाला शिक्षार्थी। शिक्षा के मानव जीवन में महत्त्व के कारण ही शिक्षक का स्थान भी अत्यधिक महत्वपूर्ण बन गया। जिस प्रकार मानव सभ्यता का प्रारंभ भारत से हुआ उसी प्रकार शिक्षा पर चिंतन भी भारत से ही शुरू हुआ। गुरुकुल की अवधारणा इसका पहला चरण था। आदि काल में शिक्षा का क्षेत्र व्यापक था, पर उसका अधिकार सीमित था। यह अपने विकसित रूप में सबको उपलब्ध नहीं थी। चुनिन्दा जातियां और कुल ही इसके अधिकारी थे। लेकिन शिक्षा का क्षेत्र व्यापक होने के कारण शिष्य को पाकशास्त्र, गायन, नृत्य, शास्त्र, वेद, नीति, अस्त्र-शस्त्र के अलावा लकड़ी काटना तक सिखाया जाता था, भले ही वह राजकुमार ही क्यों न हो। माता-पिता अपनी संतानों को गुरु के सुपुर्द कर देते थे और शिक्षा समाप्त होने के बाद ही वे अपने घर को प्रस्थान करते थे। गुरुकुल में निवास के दौरान छात्रों किसी भी सूरत में परिवार से कोई संपर्क नहीं रहता था और वे पूर्णतया गुरु के ही संरक्षण में रहते थे। इसी कारण वे पूरी तरह गुरु निष्ठ होते थे और उस समय गुरु का आदर ईश्वर के समान ही था। गुरु भी अपने आचरण में इस सम्मान का पात्र बनने का पूरा प्रयास करते थे। उनके लिए शिष्य का हित ही सर्वोपरि था।

आज गुरु का स्थान शिक्षक ने ले लिया है यह कहना पूरी तरह सही तो नहीं होगा, पर और कोई विकल्प भी नहीं है। आज शिक्षा की अवधारणा ही बदल गयी है और इसी कारण शिक्षक का स्थान और महत्त्व भी घट गया है। आज शिक्षा जीवन नहीं, जीवन का एक अंग मात्र है, वह अंग जो जीविकोपार्जन का प्रबंध करता है। शिक्षा का अर्थ बदलने के साथ ही सब कुछ बदल गया। अब वह शिक्षा उपयोगी है, जो आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करे। शिष्य अर्थ से संचालित है तो शिक्षक कैसे इससे वंचित रह सकते हैं। सो सबके लिए शिक्षा का अर्थ केवल अर्थ ही रह गया। इसका मूल अर्थ कहीं खो सा गया। लेकिन यह बदलाव केवल प्रयोग में था, इसीलिए शिक्षा की बेहतरी के लिए निरंतर प्रयास चलता रहा। इसी क्रम में सीबीएसई ने सीसीई पैटर्न लागू किया जिसमें बालक के सम्पूर्ण विकास को ध्यान में रखकर पूरा पाठ्यक्रम बनाया गया। इसमें शिक्षक की भूमिका फिर महत्वपूर्ण हो गयी। अब वह केवल कॉपी जांचकर पास-फेल करने वाला कर्मचारी नहीं रह गया। एक बार फिर उसे बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को समझने और उसे निखारने का ज़िम्मा दिया गया। सभी शिक्षक अपने को इस भूमिका में फिट नहीं पाते सो कार्यभार बढ़ने से परेशान रहते हैं लेकिन अपनी सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए उन्हें अपने को इस भूमिका के लिए तैयार करना होगा। उन्हें कबीर का वह कुम्हार बनना होगा जो शिष्य रूपी कुम्भ को आकार देता है।

शिक्षक-छात्र संबंध

यदि देखा जाए तो सीबीएसई की यह पहल जड़ों की ओर लौटने का एक प्रयास ही कहा जायेगा। सीसीई एक तरह से भारतीय गुरुकुल की अवधारणा का ही एक अंग लगती है। अंतर है तो केवल शिक्षक या गुरु के प्रति समर्पण भाव का। यह समर्पण न तो शिक्षार्थियों में है और न ही उनके अभिभावकों में। इसके लिए केवल इन दोनों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। दूसरों का हमारे प्रति समर्पण हमारी पूँजी है और इस पूँजी को कमाने की ज़िम्मेदारी शिक्षक की ही है। जिन शिक्षण संस्थानों ने इसका प्रयास किया है उनके यहाँ अपने लोग अपने बच्चे छोड़ते हैं। यही कारण है कि इतने डे बोर्डिंग स्कूल और होस्टल्स चल रहे हैं।

इस आपसी विश्वास को और सुदृढ़ करना होगा। इस विश्वास को बढ़ाने की ज़िम्मेदारी इतनी संस्थान की नहीं है जितनी शिक्षकों की है क्योंकि अंत में शिक्षक ही वह कड़ी होता है जो बालकों से सीधे जुड़ा होता है। ऐसे में सबसे उत्तम है कि वह स्वयं अपनी ज़िम्मेदारी तय करे। इस ज़िम्मेदारी में केवल योजनाओं का क्रियान्वयन ही नहीं है, बल्कि उसका व्यक्तिगत आचरण भी है। अपने आचरण को आदर्श बनाकर ही वह छात्रों से आदर्श आचरण की अपेक्षा कर सकता है। झूठ बोलकर छुट्टी लेने वाला शिक्षक छात्रों से सत्य की अपेक्षा नहीं कर सकता। शिक्षा का उद्देश्य अपने जीवन में उतारकर ही एक शिक्षक उस उद्देश्य की प्राप्ति कर पायेगा और तब शिक्षक-छात्र का यह संबंध सही मायनों में अपनी आदर्श स्थिति को पा लेगा। वह आदर्श स्थिति, जिससे शिक्षा का आरंभ हुआ, जो गुरु-शिष्य संबंध पर आधारित थी। आदर्श शिक्षक-छात्र संबंध से प्राप्त शिक्षा ही बाकी शिक्षा का भी आधार बनती है।

आदर्श शिक्षक

जिस प्रकार घोड़ा भूखा मरने की हालत में भी मांस नहीं खा सकता, उसी प्रकार स्वस्थ व्यक्तित्व का स्वामी किसी भी परिस्थिति में अनैतिक कार्यों में लिप्त नहीं हो सकता। स्कूली शिक्षा के अलावा भी आज बच्चों के पास सीखने के लिए बहुत सी बातें हैं और वे सभी अच्छी नहीं हैं। आदर्श शिक्षक के छात्र इतने परिपक्व हो जाते हैं कि निर्णय ले सकें कि इस अनंत ब्रह्माण्ड में उन्हें क्या सीखना है और क्या नहीं। यह समझ ही व्यक्ति निर्माण है और इस समझ को विकसित करना हर शिक्षक की ज़िम्मेदारी। इस ज़िम्मेदारी से भागने वाला व्यक्ति शिक्षक नहीं, केवल एक वेतनभोगी कर्मचारी है जिसके लिए शिक्षक दिवस के आयोजन का कोई औचित्य नहीं। अंग्रेज़ी की कहावत है, ‘If you want to be treated like an emperor, behave like one.’ यदि आप राजा का सम्मान पाना चाहते हैं तो राजा की तरह व्यवहार कीजिये। इस सन्दर्भ में कह सकते हैं, कि यदि आप गुरु का सम्मान पाना चाहते हैं तो गुरु की तरह व्यवहार कीजिये।

संपर्क

साध्वी चिदर्पिता

शिक्षाविद्

एमए अंग्रेजी, एलएलबी, एमएड

Sadhvi Chidarpita < chidarpita@gmail.com> .

मूर्तियों के विसर्जन से प्रदूषित होती नदियाँ

<p>उदयपुर। &nbsp;झीलों की नगरी की झीले नये जल से लबालब है। नवरात्री का पर्व &nbsp;समापन की और अग्रसर है।नवरात्रि के दौरान जिन देवी मूर्तियों की पूजा अर्चना की गयी है उनके विषर्जन की तैयारिया चरम पर है।झीलों के जल को निर्मल रखने और देवी प्रतिमाओं का आदर इसी में निहित है कि मूर्तियों का विसर्जन झीलों में न करे।<br />
हाल ही में इलाहबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में संगम में मूर्ति विषर्जन पर रोक लगाई है। जब गंगा और यमुना जैसी सदानीरा बड़ी नदियों का पानी भी मूर्तिओ से प्रभावित होता है ऐसी &nbsp;स्थिति में शहर की &nbsp;झीलों का क्या हश्र होगा। डॉ मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित परिसंवाद में उक्त विचार उभर कर आये।<br />
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<p>झील संरक्षण समिति के अनिल मेहता व डॉ तेज राजदान ने कहा कि मूर्ति ,ताजिये या कोई अन्य पूजन या इबादत की सामग्री झील में प्रवाहित करना रुकना चाहिए।पेय जल को गन्दा करना अनुचित है।प्रशासन से बार बार आग्रह करने के उपरांत भी विषर्जन हेतु स्थान का निर्धारण नहीं होना संवेदन हीनता की निशानी है।<br />
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<p>बजरंग सेना के कमलेन्द्र सिंह पवार ने कहा कि झीलों में होने वाले विषर्जन को रोका जाना चाहिए।इस वर्ष एक सो पैतीस मुर्तिया &nbsp;मेलडी माता मंदिर से ले जाई गयी है जो पिछले वर्ष नवरात्री पश्चात् मंदिर में रखी गयी थी।पवार ने आग्रह किया की जो भी गरबा मंडल चाहे मेलडी मातामंदिर में मुर्तिया रख सकेगा और उसे अगले वर्ष पुनः ले जा सकेगा जिससे मूर्ति की हमेशा पूजा अर्चना भी होगी और अगले वर्ष के लिए संरक्षित भी।झील व पर्यावरण संरक्षण के लिए इस वर्ष तिरपन माताजी की तस्वीरे बाटी गयी है तथा जो गरबा मंडल मूर्ति को झील में विषर्जन नहीं करेगा उस गरबा मंडल को इस वर्ष बजरंग सेना द्वारा आयोजित पर्यावरण सम्मान समारोह में सम्मानित किया जायेगा।<br />
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<p>चाँद पोल नागरिक समिति के तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि पूजन सामग्री ,मूर्ति आदि का विषर्जन झीलों में करने की रवायत अब रुकनी चाहिए।प्रति वर्ष मूर्ति विषर्जन &nbsp;के पश्चात् झील प्रेमिओ द्वारा मूर्तियों को बहार निकल जाता है किन्तु मूर्तियों पर लगे कठोर और विषेले रंग जल में गुल जाते है जो जलीय जीवो के साथ ही मानव स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुचते है।रेड क्रोमियम व रात को चमकने वाले रंग में युरेनियम ऑक्साइड की मात्रा होती है जो दीर्घ अवधि तक अपना प्रभाव रखती है।<br />
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<p>डॉ मोहन सिंह मेहता ट्रस्ट के सचिव नन्द किशोर शर्मा ने बताया कि झील हितेषियो ,मिडिया ,नागरिक संस्थाओ एवं धार्मिक संघठनो ने मूर्ति ,ताजिये आदि के विषर्जन पर जो चेतना &nbsp;बनायीं है उसे और आगे ले जाने की जरुरत है।मूर्ति विषर्जन झीलों में ना होकर बहार ही हो तथा प्रशासन पुक्ता व्यवस्था करे जिससे इस वर्ष झीलों में विषर्जन रुके। शर्मा ने आगे कहा कि झीलों को स्वच्छ बनाये रखने का दायित्व प्रशासन का है।</p>

<p>&nbsp;नितेश सिंह</p>
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लंदन के डैली मेल ने लिखा- बेशर्म है भारत सरकार!

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<p>लंदन से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी अखबार &#39;डेली मेल&#39; ने अपनी अपनी वेबसाइट &lsquo;मेल ऑनलाइन टुडे&rsquo; में भारत सरकार को &lsquo;बेशर्म&rsquo; कहा है। &lsquo;मेल ऑनलाइन टुडे&rsquo; की एक खबर की हेडलाइन के मुताबिक- &ldquo;Shameless Union Cabinet approves ordinance to protect convict politicians despite Supreme Court efforts&rdquo; जिसका मतलब है- &ldquo;बेशर्म केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने सुप्रीम कोर्ट के प्रयासों के बावजूद अपराधी नेताओं को बचाने के लिए अध्यादेश को मंजूरी दी&rdquo; दरअसल इस शब्द का प्रयोग वेबसाइट ने इसलिए किया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार ने मंगलवार को अपराधी नेताओं को बचाने के लिए अध्यादेश को मंजूरी दे दी।</p>

<p>जिसके बाद अध्यादेश को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज दिया गया है। कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए सरकार पहले विधेयक लाई थी, लेकिन वह लोकसभा में अटक गया। माना जा रहा है कि सरकार के पास शीतकालीन सत्र तक इंतजार करने का समय नहीं है क्योंकि कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रशीद मसूद का मामला फंस रहा है। मसूद को दिल्ली की एक अदालत भ्रष्टाचार के जुर्म में दोषी ठहरा चुकी है। एक अक्टूबर को उन्हें सजा सुनाई जानी है।</p>

<p>चारा घोटाले में आरोपी लालू के मामले में भी 30 सितंबर को झारखंड की सीबीआई अदालत का फैसला आना है। अगर फैसला उनके खिलाफ गया तो भी अध्यादेश से उनकी सदस्यता बची रहेगी। इन परिस्थितियों में आमतौर पर गुरुवार को होने वाली कैबिनेट की बैठक दो दिन पहले ही बुलाई गई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में भाग लेने के लिए बुधवार को अमेरिका रवाना होने वाले हैं। इसलिए आनन-फानन में कैबिनेट की बैठक बुलाकर अध्यादेश को मंजूरी दे दी गई।</p>

<p>राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद कानूनन कोई अध्यादेश छह महीने तक प्रभावी रह सकता है। लेकिन, इस बीच अगर संसद सत्र पड़ता है तो अध्यादेश को विधेयक के रूप में पेश कर सदन की मंजूरी लेनी पड़ती है। सुप्रीम कोर्ट ने गत 10 जुलाई को दागी सांसदों-विधायकों को अयोग्यता से बचाने वाली जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।</p>

<p>सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, अदालत से दोषी करार होते ही सांसद-विधायक की सदस्यता खत्म हो जाएगी। संसद को अयोग्यता लंबित रखने का कानून बनाने का अधिकार नहीं है। इस फैसले के खिलाफ दाखिल सरकार की पुनर्विचार याचिका भी शीर्ष अदालत खारिज कर चुकी है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू है।</p>
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