Saturday, February 22, 2025
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भारतीय फौजियों को मारने वाले फौजी का बेटा अदनान सामी भारत का मेहमान कैसे?

1965 और 1971 की लड़ाई में पाकिस्तानी वायुसेना से लड़े फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी के पुत्र हैं अदनाम सामी।  अदनान एक अर्से से भारत में वीसा की तिथि बढ़वाकर रह रहे हैं और पैसा बना रहे हैं।  भारत के किसी गायक को पाकिस्तान सरकार अपने यहां आकर गाने का मौका नहीं देती

पहले एक सवाल। क्या कारगिल या उससे पहले 1965 या 1971 में पाकिस्तान के साथ हुई जंग के नायक के पुत्र या पुत्री को पाकिस्तान में 'सेलिब्रिटी' का दर्जा मिल सकता है ? जरा सोचिए। सोचने के बाद आप कहेंगे ह्य कतई नहीं।' जाहिर है,आप इस तरह की उम्मीद नहीं कर सकते कि पाकिस्तान के साथ हुई जंग के किसी भारतीय नायक को या उसकी संतान को पाकिस्तान में कोई सम्मानजनक स्थान मिलेगा। ये भी लगभग नामुमकिन है कि भारतीय सेना के किसी योद्घा का अस्वस्थ होने पर पाकिस्तान में इलाज हो। पर यह सब भारत में हुआ और हो रहा है। बरसों से हो रहा है।

अब असली मुद्घे पर आते हैं। फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान को पाकिस्तान अपने सबसे आदरणीय योद्घाओं की श्रेणी में रखता है। वे उन्हीं अदनान सामी के पिता थे, जो गीत-संगीत से ज्यादा घरेलू पचड़ों में फंसे रहते हैं। हाल ही में अदनान सामी को भारत छोड़ने के लिए भी कहा गया था। उनका भारत में प्रवास का वीजा समाप्त हो गया था। उसका नवीनीकरण नहीं हुआ था। बाद में उन्होंने अपील की तो मामला सुलझता नजर आ रहा है। यानी वे भारत में आगे भी रहते रहेंगे।

अब फिर फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान पर लौटते हैं। उनका खास तौर पर उल्लेख पाकिस्तानी वायुसेना के संग्रहालय और वेबसाइट में किया गया है। उनके चित्र के साथ उनकी बहादुरी का बखान करते हुए कहा गया है, ह्यफ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान ने भारत के खिलाफ 1965 की जंग में शत्रु (भारत) के एक लड़ाकू विमान,15 टैंकों और 12 वाहनों को नष्ट किया। वे रणभूमि में विपरीत हालतों के बावजूद शत्रु की सेना का बहादुरी से मुकाबला करते रहे। फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान को उनकी बहादुरी के लिए सितारा-ए-जुर्रत से नवाजा जाता है।ह्ण स्वाभाविक रूप से फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान के संबंध में किए गए इस दावे की जांच की जरूरत नहीं है। सभी देश अपने योद्घाओं के रणभूमि के कारनामों को महिमामंडित करते हैं। पाकिस्तान तो इस तरह के दावों को करने में बहुत आगे रहा है।

फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान वायुसेना से रिटायर होने के बाद भी पाकिस्तान के सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे। डेनमार्क और नार्वे में राजदूत भी रहे। वे पाकिस्तान के राष्ट्रपतियों क्रमश:  गुलाम इसहाक खान, फारुख लेगारी और प्रधानमंत्रियों, बेनजीर भुट्टो,गुलाम मुस्तफा जोतोई और नवाज शरीफ के निजी स्टाफ में भी रहे। यानी पाकिस्तान में उनका एक अहम रुतबा रहा। उन्हें 14 अगस्त, 2012 में मरणोपरांत सितारा-ए-इम्तियाज से भी सम्मानित किया गया। बहरहाल, फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान को अपने मुल्क में जितना भी सम्मान मिले, इससे हमें क्या फर्क पड़ता है।

पर आप हैरान होंगे कि उसी फ्लाइट लेफ्टिनेंट सामी की किताब का विमोचन राजधानी नई दिल्ली में होता है। ये बात है 28 फरवरी,2008 की। पुस्तक का नाम था- थ्री प्रेसिडेंट एंड… लाइफ पवर एंड पलिटिक्स।

उस विमोचन के मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री आई.के. गुजराल और पंजाब के मुख्यमंत्री रहे अमरिंदर सिंह समेत राजधानी के सेमिनार सर्किट के तमाम नामी-गिरामी लोग मौजूद थे। गुजराल ने किताब का विमोचन किया। उन्होंने भारत-पाकिस्तान संबंधों पर अपने ख्यालात रखे। सामी अपनी किताब पर बोले। कुछ लोगों ने भारत-पाक संबंधों पर सवाल पूछे। उन्होंने अमन और बातचीत की वकालत की। पर, वे 1965 की जंग से जुड़े किसी भी मसले पर बात करने के लिए तैयार नहीं थे। वे अंग्रेजी,उर्दू और पंजाबी में गुफ्तुगू कर रहे थे। वहां पर ही पता चला कि सामी कौन हैं और अदनान सामी का उनसे क्या संबंध है। अदनान सामी उस कार्यक्रम में मौजूद नहीं थे।

 उसके बाद एक रोज खबर आई कि फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान का मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में निधन हो गया। वे केंसर से पीडि़त थे। पाकिस्तान और कुछ और देशों में इलाज चला था। उसके बाद अदनान सामी उन्हें इलाज के लिए मुंबई ले आए। तब ये बात काफी दिनों तक दिल के किसी कोने में चलती रही कि क्या हमारा दिल इतना विशाल है, कि हम उसे भी अपना अतिथि बनाने-मानने के लिए तैयार हो जाते हैं, जिसने हमारे खिलाफ जंग लड़ी हो? क्या 1971 की जंग के भारतीय नायक सैम मानेकशाह को पाकिस्तान में अपनी पुस्तक विमोचित करने का मौका मिलता?  क्या उनके या उनके जैसे किसी भारतीय योद्घा की संतान को पाकिस्तान में वही दर्जा मिल सकता था,जो हमने अदनान सामी को अपने यहां दिया है?

फ्लाइट लेफ्टिनेंट अरशद सामी खान की पुस्तक के विमोचन से लेकर उनका भारत में अपना इलाज करवाना और भारत की सरजमीं पर अंतिम सांसें लेना इस बात की गवाही हैं कि हम अलग हैं। क्या ये कोई मामूली बात है।  इसलिए हम चाहें तो अपने इन्क्रेडिबल इंडिया का नागरिक होने का दावा कर सकते हैं।

पिछले दिनों जब पाकिस्तान के गायक अदनान सामी के भारत छोड़ने संबंधी खबरें आईं तो उनके अब्बा का ख्याल बरबस ही तैर आ गया। उस कार्यक्रम का सारा माहौल भी दिमाग में फिर से जीवंत होने लगा। तब लगा कि जिस शख्स को भारत के खिलाफ बहादुरी से जंग लड़ने पर सम्मानित किया गया हो, उसके पुत्र को देश छोड़ने के लिए कहना कितना उचित है। वह तो करीब डेढ़ दशक से भारत में रह रहा है। यहां पर गीत-संगीत की दुनिया में अपने लिए एक मुकाम बना भी चुका है। मतलब यह कि अदनान सामी को तो अब हम अपना ही मानते हैं।  

सबसे आश्चर्य और क्षोभ इस बात का है कि जो शिव सेना और मनसे केंद्रीय सरकार की नौकरी के लिए आए दिन मुंबई से बाहर से आने वाले गरीब उत्तर भारतीयों और बिहारी छात्रों पर डंडेलेकर कूद पड़ती है वही शिव सेना और मनसे अदनान सामी को लेकर रहस्यमीय रूप से चुप बैठी है, और अदनान सामी भीरतीय टीवी चैनलो से लेकर देश भर में जगह-जगह कार्यक्रम देकर करोड़ों रूपये की कमाई कर रहा है। अदनान सामी ने लोखंडवाला की जिस बिल्डिंग में पूरा फ्लौर खरीद रखा है उसकी कीमत ही 100 करोड़ से कम नहीं होगी और उसका हर महीना का मैंटेनेंस ही 5 लाख रु. होता है। तो सवाल है कि अखिर अदनान सामी के हाथ ऐसा कौनसा खजाना लगा है कि उसने कुछ ही सालों में हमारे देश में करोड़ों की जायदाद बना ली और लाखों रुपये महीना सोसायट को मैंटेनेंस के नाम से देता है।

साभारः साप्ताहिक पाञ्जन्य से

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शाकाहारी व्यंजंनों की महारानी तरला दलाल नहीं रही

देश की जानी-मानी सेलेब्रिटी शेफ और खानपान पर लिखने वाली तरला दलाल का बुधवार को निधन हो गया। वह कुछ दिन से बीमार थीं। देश के कई हिस्सों में जब टेलीविजन नहीं पहुंचा था, तरला दलाल अपनी रेसिपी से पहुंची। उन्होंने कुकिंग पर 100 से ज्यादा किताबें लिखी हैं और 2007 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।

देश की पहली मास्टरशेफ तरला ने कुकरी शो के जरिए लोगों के दिलों में जगह बनाई। तरला दलाल के फेसबुक पर यह मैसे‌ज लिखा गया था, "हम तरला दलाल के करियर के तमाम सालों में आपसे मिली मोहब्बत और सहयोग के लिए धन्यवाद देते हैं। वह अब हमारे बीच नहीं रही हैं और सवेरे उनका देहांत हुआ। हम उन तमाम खुशियों के लिए उनका शुक्रिया अदा करते हैं, जो उनके टैलेंट ने हमें और हमारे परिवारों को दीं।"

'खाना खजाना' वाले संजीव कपूर ने इस पर प्रतिक्रिया जताते हुए कहा, "तरला दलाल पहली शख्स थीं, जिन्होंने कुकिंग की कला को सामने रखा। उनका जाना बड़ा नुकसान है।"

दलाल की कुल 30 लाख से ज्यादा किताबें बिकी हैं और उनकी रसोई की वजह से देश को कई नए स्वाद, व्यंजन और खुशबू का अहसास हुआ। वह खास तौर से अपने शाकाहारी व्यंजनों के लिए जानी जाती हैं।

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लोकतंत्र की सुदृढ़ता के लिये आचार्य तुलसी के प्रयासों को भुलाया नहीं जा सकता- आडवाणी

नई दिल्ली। पूर्व उपप्रधानमंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि देश में लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना एवं सुशाासन वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। आचार्य तुलसी ने लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिये महत्वपूर्ण उपक्रम किये। मेरे जीवन के भी यही दो मुुख्य लक्ष्य रहे हैं और इसके लिये आचार्य तुलसी की प्रेरणाएं मेरा निरन्तर मार्गदर्शन करती है।

श्री आडवानी आज आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी वर्ष के राजधानी दिल्ली में शुभारंभ के अवसर पर आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज एवं  शासनश्री मुनि सुखलालजी के सान्निध्य में यमुना स्पोर्ट्स काॅम्पलेक्स टीटी इन्डोर स्टेडियम, योजना विहार, आयोजित भव्य समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए बोल रहे थे।  कार्यक्रम की अध्यक्षता ग्रामीण विकास राज्यमंत्री श्री प्रदीप जैन ‘आदित्य’ ने की।  पूर्व स्वास्थ्य मंत्री दिल्ली सरकार डाॅ. हर्षवर्धन विशिष्ट अतिथि के रूप उपस्थित थे।

श्री आडवानी ने ‘अणुव्रत’ पत्रिका के ‘लोकतंत्र एवं अणुव्रत’ विशेषांक का लोकार्पण करते हुए कहा कि अणुव्रत आन्दोलन आचार्य श्री तुलसी की राष्ट्र को महान् देन है। नैतिकता और चरित्र की प्रतिष्ठा के लिये अणुव्रत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आज देश में मूल्यों की गिरावट का सिलसिला बना हुआ है, ऐसे समय में आचार्य तुलसी के उपदेशों एवं अणुव्रत के कार्यक्रमों की ज्यादा जरूरत है। राजनीति में नैतिकता की प्रतिष्ठा के लिये अणुव्रत के नियमों को अपनाया जाना उपयोगी है। उन्होंने आचार्य तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ से अपने निकट संबंधें की चर्चा करते हुए कहा कि आचार्य तुलसी अपने आपको पहले मानव, फिर धर्मिक, उसके बाद जैन और सबसे अंत में तेरापंथ का आचार्य मानते थे। ऐसे महामानव की जन्म शताब्दी का अवसर जीवन में सात्विकता को लाने के लिये संकल्पबद्ध होने का अवसर है।

ग्रामीण विकास राज्यमंत्री श्री प्रदीप जैन ‘आदित्य’ ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि आज देश में जो अशांति, असंतुलन एवं असंतोष का वातावरण है, उसके समाधन के लिये बाहरी नहीं, भीतरी शक्तियों का प्रस्फूटन जरूरी है। भौतिकता से नहीं, आध्यात्मिकता से ही शांति एवं सह-अस्तित्व को संभव किया जा सकता है। आचार्य तुलसी ने इंसान को इंसान बनाने के लिये अणुव्रत आन्दोलन चलाया। यह मानवता का दर्शन है। उन्होंने भगवान महावीर के इसी दर्शन को अन्तिम आदमी तक पहुंचाने के लिये भगीरथ प्रयास किये। श्री आदित्य ने आगे कहा कि-आचार्य तुलसी का सम्पूर्ण जीवन और उनके विचार जलते हुए दीप हैं। उनके विचारों और आदर्शों को अपनाकर हम अपने भीतर एक रोशनी का अवतरण कर सकते है। इसी से अहिंसा एवं शांति की स्थापना होगी।

पूर्व स्वास्थ्य एवं शिक्षा मंत्री दिल्ली सरकार डाॅ. हर्षवर्धन ने कहा कि कहा कि शिक्षा को मूल्यपरक बनाने के लिये आचार्य तुलसी की प्रेरणा जीवंत रहेगी। शिक्षा मंत्री के रूप में मुझे आचार्य तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ से जो मार्गदर्शन मिला, वह मेरा ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण शिक्षा जगत का पथ आलोकित करता रहेगा। उन्होंने आगे कहा कि हम जीवन की समस्याओं के समाधन के लिये मन्दिर, मस्जिद, चर्च जाते हंै और भगवान को पूजते हंै। आज से 2-3 हजार वर्ष पहले जिन महापुरुषों ने त्याग और तप किया, उनको हम आज पूजते हैं। आने वाले 2-3 हजार साल बाद आचार्य तुलसी को भगवान तुलसी के रूप में पूजा जायेगा। क्योंकि उन्होंने जो त्याग किया है, समर्पण किया है, मानवता के कल्याण के लिये अपना जीवन अर्पित किया, उसके लिये वे प्रणम्य है। डाॅ. हर्षवर्धन ने केवल जैन समाज को ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवता को संगठित करने और एक मंच पर लाने की आवश्यकता व्यक्त की।

आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज ने कहा कि आचार्य तुलसी जैन शासन के तेजस्वी आचार्य हैं, उनका अणुव्रत आन्दोलन अहिंसा एवं विश्वशांति का माध्यम बना। भगवान महावीर के अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकांत, अस्तेय एवं शांति के सिद्धान्तों को लोकव्यापी बनाने में आचार्य तुलसी का योगदान अविस्मरणीय रहेगा। जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय उनकी दूरगामी सोच का परिणाम है। जैन एकता की दृष्टि से किये उनके प्रयत्नों को उनकी जन्म शताब्दी वर्ष में और आगे बढ़ाने की जरूरत है।

शासनश्री मुनि सुखलालजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्य तुलसी विलक्षण महामानव थे। सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के लिये ही जागरूक रहते थे। जब-जब राष्ट्र के सम्मुख कोई बड़ी समस्या आयी, उन्होंने उसके समाधन के लिये अपना सहयोग प्रदत्त किया। चाहे पंजाब की समस्या हो या साम्प्रदायिक सौहार्द स्थापित करने की बात, चाहे भाषायी विवाद हो या संसदीय अवरोध- आचार्य तुलसी ने हर समस्या के समाधान के लिये मार्गदर्शन किया। अणुव्रत आन्दोलन  नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों की स्थापना का विशिष्ट कार्यक्रम है। उन्होंने ध्र्म को पंथ से उपर उठाकर सर्वजन हिताय बनाया। हम उनके उपकारों से उऋण नहीं हो सकेंगे। इसके लिये जरूरी है हम उनके आदर्शों को अपनाये।

आचार्य श्री महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री कन्हैयालाल जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि आचार्य तुलसी जन्मशताब्दी वर्ष आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में मुख्य रूप से चार चरणों में आयोजित होगा। उन्होंने आचार्य तुलसी के व्यक्तित्व के कई पहलुओं को उजागर करते हुए कहा कि डा. राधकृष्णन् द्वारा लिखी पुस्तक ‘लिविंग वीद परपज’ में उस समय आचार्य तुलसी की ऐसे अकेले जीवित महापुरुष थे, जिनका उल्लेखनीय रूप से वर्णन कालीदास, तुलसीदास, विवेकानन्द के समकक्ष इस पुस्तक में किया गया।

इस समारोह में चारों जैन सम्प्रदाय के परम वंदनीय आचार्य एवं साधु-साध्वी अपना सान्निध्य प्रदत्त किया, जिनमें परम श्रमण संघीय सलाहकार उप. प्र. तारक ऋषिजी महाराज, महासतीश्री मोहनमालाजी महाराज, महासतीश्री स्नेहलताजी महाराज, महासतीश्री वीणाजी महाराज,  मुनि मोहजीतकुमारजी, साध्वीश्री विद्यावतीजी द्वितीय, साध्वी यशोमतीजी, साध्वी रविप्रभाजी, साध्वी त्रिशलाकुमारीजी आदि ने आचार्य तुलसी के मानवतावादी उपक्रमों एवं नैतिक संस्कारों पर अपने उद्गार व्यक्त किये। आचार्य तुलसी जन्मशताब्दी वर्ष समारोह समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री हीरालाल मालू, पंजाब केसरी के उपाध्यक्ष श्री स्वदेश भूषण जैन, श्री पन्नलाल बैद, श्री भीकमचन्द सुराणा, श्री सुखराज सेठिया आदि ने अपने विचार व्यक्त करते हुए आचार्य तुलसी के अवदानों की चर्चा की। कार्यक्रम का संयोजन मुनि श्री मोहजीतकुमार ने किया। मंगलाचरण तेरापंथी युवती मंडल एवं कन्या मंडल ने किया। तेरापंथ युवक परिषद एवं तेरापंथ महिला मण्डल ने अपने गीत प्रस्तुत किये। आभार ज्ञापन तेरापंथी सभा के महामंत्राी श्री सुखराज सेठिया ने किया।

फोटों परिचय

 आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी वर्ष के राजधानी दिल्ली में शुभारंभ के अवसर यमुना स्पोर्ट्स काॅम्पलेक्स आयोजित भव्य समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए पूर्व उपप्रधानमंत्राी एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी । पास में बैठे है श्री कन्हैयालाल जैन, श्री मांगीलाल सेठिया, श्री हीरालाल मालू आदि।

 
प्रेषक
ललित गर्ग
प्रचार-प्रसार प्रभारी: जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा
210, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली-110002
पफोनः 011-23222965,23236727, मो. 9811051133, 9968431617

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दस साल की स्वीटी ने खोली दुनिया भर के अय्याशों की पोल, 103 भारतीय भी

लंदन। दुनिया भर में बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं का सच एक बार फिर सामने आया है। हाल में कंप्यूटर निर्मित फर्जी बच्ची 'स्वीटी' के फेर में 103 भारतीय फंस गए। इस दस वर्षीय बच्ची से 10 हफ्ते में दुनिया भर के करीब 20 हजार लोगों ने संपर्क साधा। इनमें 1000 लोगों ने वेबकैम के सामने कपड़े उतारने के लिए पैसे देने की पेशकश भी की। इनमें सबसे ज्यादा 254 अमेरिकी थे, जबकि 110 ब्रिटिश भी शामिल थे।

बच्चों के ऑनलाइन यौन उत्पीड़न के मामले में भारत तीसरे नंबर पर है। इन सभी लोगों के नाम पुलिस को सौंप दिए गए हैं। बच्चों के लिए काम करनी वाली डच संस्था टेरे डेस होमेज ने एक बच्ची का फर्जी प्रोफाइल बनाकर बच्चों के ऑनलाइन यौन उत्पीड़न की पड़ताल की। इसी के बाद हैरान कर देने वाला यह सच सामने आया है। शोधकर्ताओं ने साक्ष्य के तौर पर संदिग्धों की स्काइप और दूसरी सोशल साइट्स पर बने प्रोफाइल को पेश किया है। इस प्रोजेक्ट के निदेशक हंस गुयट ने कहा कि इससे निपटने के लिए हमें नए तरीके की जरूरत है। ऐसे मामले में पीड़ित और यौन उत्पीड़क सामने नहीं आते हैं। हमने अपनी फर्जी पहचान फिलीपींस की दस वर्षीय लड़की के रूप में जाहिर की थी। हमने कुछ भी नहीं कहा, लेकिन लोग हमें पैसे की पेशकश करने लगे थे। टेरे डेस होमेज ने ऑनलाइन सेक्स टूरिज्म को रोकने के लिए एक वैश्विक अभियान भी चला रखा है।

 

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आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी वर्ष का शुभारंभ 12 नवम्बर को दिल्ली में

नई दिल्ली।� अणुव्रत आंदोलन के प्रवर्तक, राष्ट्रसंत, मानवता के मसीहा, युगप्रधान आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी वर्ष का राजधानी दिल्ली में शुभारंभ 10 नवम्बर 2013 को होगा। इस अवसर पर शासनश्री मुनिश्री सुखलालजी के सान्निध्य में यमुना स्पोर्ट्स काॅम्पलेक्स टीटी इन्डोर स्टेडियम, योजना विहार, दिल्ली-110092 में प्रातः 9ः00 बजे भव्य समारोह आयोजित होगा जिसमें पूर्व उपप्रधानमंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता ग्रामीण विकास राज्यमंत्री श्री प्रदीप जैन ‘आदित्य’ करेंगे। पूर्वी दिल्ली के सांसद श्री संदीप दीक्षित एवं पूर्व स्वास्थ्य मंत्री दिल्ली सरकार डाॅ. हर्षवर्धन विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लेंगे।

आचार्य श्री महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री कन्हैयालाल जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि इस समारोह में चारों जैन सम्प्रदाय के परम वंदनीय आचार्य एवं साधु-साध्वी अपना सान्निध्य प्रदान करेंगे जिनमें परम पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज, श्रमण संघीय सलाहकार उप. प्र. तारक ऋषिजी महाराज, महासतीश्री मोहनमालाजी महाराज, महासतीश्री स्नेहलताजी महाराज, महासतीश्री वीणाजी महाराज, मुनि मोहजीतकुमारजी, साध्वीश्री विद्यावतीजी द्वितीय, साध्वी यशोमतीजी, साध्वी रविप्रभाजी, साध्वी त्रिशलाकुमारीजी आदि एक मंच पर आचार्य तुलसी के मानवतावादी उपक्रमों एवं नैतिक संस्कारों के विषय पर अपने उद्गार व्यक्त करेंगे।

जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा दिल्ली के महामंत्री श्री सुखराज सेठिया ने जानकारी देते हुए बताया कि आचार्य तुलसी जन्मशताब्दी वर्ष आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में मुख्य रूप से चार चरणों में आयोजित होगा प्रथम चरण 5 नवम्बर 2013 लाडनूं में भव्य रूप में आयोजित हुआ, द्वितीय चरण 5 फरवरी 2014 गंगाशहर (बीकानेर-राजस्थान) में, तृतीय चरण 7 सितम्बर 2014 को नई दिल्ली में तथा चतुर्थ चरण 25 अक्टूबर 2014 को समापन चरण के रूप में नई दिल्ली में आयोजित होगा। दिल्ली में आयोजित होने वाले जन्म शताब्दी समारोह की भव्य तैयारियां की जा रही हैं और उसका शुभारंभ 10 नवम्बर 2013 को विधिवत रूप से किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि लाडनूं, कोलकता, मुम्बई एवं बेंगलोर से चार अणुव्रत चक्र प्रवर्तन रथ पूरे भारत में परिभ्रमण करते हुए राजधानी दिल्ली पहुंचेंगे।

विदित हो आचार्य श्री तुलसी भारतीय संत परम्परा के उज्ज्वल नक्षत्र थे। उनका जन्म 20 अक्टूबर, 1914 (कार्तिक शुक्ला द्वितीया वि.स.1971) को राजस्थान के एक कस्बे लाडनूं में ओसवाल जैन परिवार में हुआ। 15 दिसम्बर, 1925 को जीवन के 12वें वर्ष में उन्होंने जैनधर्म के श्वेताम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय के अष्टमाचार्य कालूगणी के पास जैनमुनि-दीक्षा ग्रहण की। मात्रा 22 वर्ष की लघु वय में आप तेरापंथ के नवम आचार्य के रूप में अधिष्ठित हुए।
34 वर्ष की उम्र में 01 मार्च, 1949 को आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन के रूप में एक असाम्प्रदायिक नैतिक आन्दोलन का प्रवर्तन किया। उन्होंने करीब एक लाख किलोमीटर की पदयात्रा कर देश में अहिंसक चेतना, सह-अस्तित्व, सत्यनिष्ठा, प्रामाणिकता, सर्वधर्म सद्भाव, नैतिक अभ्युदय, मानवीय एकता, चरित्रा-शुद्धि एवं राजनीति में नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा आदि की दृष्टि से भगीरथ प्रयत्न किया। इसके साथ ही व्यसन-मुक्ति, रूढि़-उन्मूलन, नारी-जागरण, अस्पृश्यता-निवारण आदि क्षेत्रों में भी उनका योगदान अत्यंत उल्लेखनीय रहा है। पंजाब समस्या के समाधान में आचार्य तुलसी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भगवान महावीर के सिद्धान्तों को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर संप्रेषित करने हेतु समण श्रेणी का प्रादुर्भाव कर जैन इतिहास में एक नए अध्याय का सृजन किया।

आचार्य तुलसी ने प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान के नए आयाम दिए। अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय की दिशा में किए गए उनके प्रयास भी अत्यंत श्लाघनीय हंै। 18 फरवरी, 1994 को उन्होंने आचार्य पद का विसर्जन कर एक नया इतिहास रचा। मानवता की महनीय सेवा के लिए उन्हें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार आदि अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया। 23 जून, 1997 को गंगाशहर (बीकानेर) में उनका महाप्रयाण हो गया।

�संपर्क
(ललित गर्ग)
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फोनः 011-23222965, मो. 9811051133

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एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए सितारों की दिवाली पार्टी

एकता कपूर की बड़े सितारों से अनबन इस बार सुर्खियों में रही है शाहरुख, अक्षय और इमरान के बाद अब आमिर से भी उनकी लड़ाई का रास्ता खुल गया है। अब  आमिर खान ने अपने घर पर आयोजित दीवाली पार्टी की कपूर परिवार (एकता कपूर और उनके परिवार) का नाम हटा दिया।

बताया जा रहा है कि आमिर ने ये काम इमरान से एकता के बिगड़ते रिश्तों के चलते किया है। एकता कपूर ने भी अपने घर पर दीवाली पार्टी का आयोजन किया था जिसमें इमरान खान को नहीं बुलाया था।  आमिर को जब ये पता चला तो उन्होंने अपने भांजे का मान रखते हुए अपनी पार्टी में एकता को नहीं बुलाया। गौरतलब है कि वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई फिल्म की रिलीज के वक्त से ही एकता और इमरान के रिश्ते बिगड़े हुए थे।

 

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‘नेहरू को सताता था तख्तापलट का खौफ’

पीटीआई द्वारा जारी खबर में दावा किया गया है कि नई दिल्ली पूर्व थल सेनाध्यक्ष वी. के. सिंह ने अपनी किताब में दावा किया है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सैन्य तख्तापलट का 'खौफ' था और उन्हें सीमा पर चीनियों की मौजूदगी से अधिक तत्कालीन थलसेना प्रमुख जनरल थिमैया की लोकप्रियता की चिंता ज्यादा सताती रहती थी।

सिंह ने अपनी आत्मकथा 'करेज ऐंड कन्विक्शन' में लिखा है, 'आजादी के बाद से देश में शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व सैन्य तख्तापलट की आशंका से डरा-सहमा रहा है। यह किसी से छुपा नहीं है कि नेहरू के इर्द-गिर्द रहने वाले लोग सैन्य तख्तापलट के प्रति उनके खौफ का फायदा उठाते थे और असैन्य-सैन्य रिश्ते विकसित होते वक्त उन लोगों ने इस रिश्ते में सेंध लगाना शुरू कर दिया।' सिंह ने अपनी आत्मकथा लेखक और फिल्मकार कुणाल वर्मा के साथ लिखी है।

उन्होंने कहा कि भारत के पहले रक्षामंत्री के रूप में सरदार बलदेव सिंह के चुनाव ने भविष्य के लिए भारत की योजनाएं निश्चित कीं। सिंह ने कहा कि सरदार बलदेव सिंह अपनी पॉलिटिकल महारत के लिए ज्यादा जाने जाते थे ना कि सैन्य महारत के लिए। पूर्व सेनाध्यक्ष ने यह भी कहा कि अगर सिर्फ नेहरू की चली होती तो फील्ड मार्शल के एम करिअप्पा कभी भी आर्मी चीफ नहीं बन पाते। उन्होंने यह भी कहा कि इंदिरा गांधी को अपने पिता से न सिर्फ देश की सत्ता मिली थी, बल्कि वह भी अपने उपर किसी को देख नहीं सकती थीं।    

पूर्व आर्मी चीफ ने लिखा है, 'एक व्यक्ति के तौर पर जनरल थिमैया की लोकप्रियता की वजह से प्रधानमंत्री को सीमा पर चीनियों की मौजूदगी से ज्यादा बुरे सपने आते थे। अक्टूबर 1962 में जब हमला हुआ तो भारतीय थलसेना 'ऑपरेशन अमर' में शामिल थी जहां वे मकान बनाने का काम कर रहे थे जबकि हमारे हथियारों के कारखाने कॉफी बनाने की मशीन बना रहे थे।'

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एक शिक्षक जो तैरकर छात्रों को पढ़ाने जाता है!

अब्दुल मलिक पिछले बीस साल से प्रत्येक दिन नदी को तैरकर पार करके एक दूसरे गाँव के स्कूल में पढ़ाने जाते हैं.  भारत के दक्षिण राज्य केरल के एक छोटे से गाँव में रहने वाले गणित के शिक्षक अब्दुल मलिक ने 20 साल में आज तक कभी स्कूल पहुंचने में देरी नहीं की और न ही कभी छुट्टी की है.  आज भी वो सिर पर बैग रखकर एक रबड़ टायर के सहारे तैरकर बच्चों को पढ़ने स्कूल जाते हैं. अपने जीवन की इस अनोखी दास्तान को अब्दुल मलिक ने बीबीसी के ख़ास कार्यक्रम आउटलुक में साझा किया.

अपने गाँव के बारे में पूछने पर अब्दुल मलिक बताते हैं, '' यह एक बहुत छोटा सा गाँव है. यहाँ रहने वाले लोग भी साधारण हैं. लेकिन छोटा सा गाँव होने के बावजूद यह बहुत ही ख़ास है. बहुत से पढ़े-लिखे लोगों का यहाँ होना ही इसकी विशेषता है. एक ग्रामीण इलाका होने के बावजूद यहाँ बहुत से शिक्षक रहते हैं. यहाँ पीढ़ियों से पढ़ने-पढ़ाने की परम्परा रही है.''

आप एक शिक्षक क्यों बनना चाहते थे? यह पूछने पर अब्दुल मलिक कहते हैं, ''मुझे लगता है कि एक शिक्षक बनने से हमें एक अच्छे नागरिक बनने में मदद मिलती है. मैं बचपन से ही एक शिक्षक बनना चाहता था. शिक्षा हमें बच्चों के आदर्श बनने में सक्षम बनाती है.''  "मुझे लगता है कि एक शिक्षक बनने से हमें एक अच्छे नागरिक बनने में मदद मिलती है. मैं बचपन से ही एक शिक्षक बनना चाहता था. शिक्षा हमें बच्चों के आदर्श बनने में सक्षम बनाती है."

स्कूल से नदी की दूरी के बारे में बताते हुए मलिक कहते हैं कि, ''स्कूल मेरे गाँव के पास स्थित कादालुंदी नदी के दूसरे छोर पर बसे एक गाँव में है. सड़क मार्ग से जाने पर मेरे गाँव से स्कूल सात किलोमीटर दूर पड़ता है. लेकिन नदी को पार कर जाने में ये दूरी सिर्फ़ एक किलोमीटर होती है. इस गाँव में कोई शिक्षक औऱ डॉक्टर नहीं है. यह गाँव नदी से तीन तरफ से घिरा हुआ है.''

बीस साल पहले काम शुरु करते वक्त मलिक स्कूल कैसे जाते थे इस सवाल पर वे बताते हैं, ''इसके रास्ते में कोई भी पुल नहीं है. बस से स्कूल तक तक सात किलोमीटर के रास्ते के दौरान सिर्फ़ एक पुल है जो कि अभी हाल ही में बना है. जब मैं पहली बार स्कूल पढ़ाने गया था तो मैं बस लेकर जाता था और 12 किलोमीटर के बाद एक पुल पड़ता था. मुझे तीन-तीन बसें बदल कर जाना पड़ता था."  मलिक बताते हैं कि उन्हें घर से जल्दी निकलता होता था ताकि कभी स्कूल के लिए देरी न हो. सवा दस बजे तक स्कूल पहुँचने के लिए मुझे लगभग साढ़े आठ बजे घर से निकलना पड़ता था. इस तरह उन्हें गाँव से नदी के दूसरे छोर पर बसे गाँव तक पहुँचने में दो घंटे लग जाते थे. सबसे ज़्यादा वक्त तो बस का इंतज़ार करने में जाया हो जाता था.  

भारत के आम गाँवों के स्कूलों की स्थिति कुछ इसी तरह की होती है. पढ़ाने के लिए तैरकर स्कूल जाने का विचार कैसे आया, इस पर मलिक कहते हैं, ''एक साथी शिक्षक ने मुझे नदी में तैरकर स्कूल आने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने मुझे बताया कि तैरकर स्कूल आना मेरे लिए आसान रहेगा. फिर मैंने तैरना सीखा और इसके बाद मैं फिर मैं तैरकर स्कूल पढ़ाने के लिए जाने लगा.''

क्या कभी किसी ने आपको ऐसा करने से रोकने की कोशिश की? इस सवाल पर मलिक जबाव देते हैं ,''किसी ने मुझे रोकने की कोशिश नहीं की. हाँ शुरुआत में मेरे परिवार को थोड़ी दिक्कत हुई. मेरी माँ मेरे इस काम को लेकर चिंतित थीं क्योंकि नदी में पानी का स्तर बहुत ज्यादा होता था. लेकिन जल्द ही सब समझ गये कि मैं तैरकर आसानी से स्कूल जा सकूँगा और फिर सबने इसे स्वीकार कर लिया.''

अपनी दिनचर्या के बारे में अब्दुल मलिक कहते हैं, ''मैं साढ़े पाँच बजे सोकर उठता हूँ. चाय पीने के बाद मैं स्कूल का कुछ काम निबटाकर साढ़े आठ बजे तक नहाने के बाद शर्ट और धोती पहनकर मैं स्कूल के लिए निकल जाता हूँ. अपने बैग में छाता, तौलिया, लंच और कुछ किताबों से भरा बैग भी मेरे साथ होता था.''  "कादालुंदी नदी लगभग 70 मीटर चौड़ी है. इसलिए इसे पार करना ज़्यादा कठिन नहीं होता. कभी-कभी नदी में तैरते हुए पेड़, कीड़े-मकोड़े,नारियल, कूड़ा, भी होते हैं लेकिन मैं इन सबसे नहीं डरता. ये चीजें मुझे मेरे लक्ष्य से भटका नहीं सकतीं."

 

मलिक बताते हैं, ''नदी किनारे पहुँचने के बाद मैं अपने कपड़े उतार, तौलिया लपेट कर सारा सामान बैग में रख नदी में तैरने के लिए उतर जाता हूँ. मेरे पास रबड़ के टायर की तरह एक ट्यूब भी होती है जो मुझे नदी से डूबने से बचाने में मदद करती है. इसके लिए मेरे बैग में एक विशेष जगह है. तैरने के दौरान मैं सामान से भरा बैग अपने सर के ऊपर रखता हूँ. इसके बाद नदी के दूसरे छोर पर पहुँचने के बाद मैं अपने कपड़े दोबारा पहन स्कूल पहुँच जाता हूँ.''

अब्दुल मलिक नौवीं कक्षा से ही चश्मा पहनते हैं और तैरते वक्त भी वे इसे पहने रहते हैं.  मलिक के मुताबिक बरसात के मौसम में नदी में पानी थोड़ा गंदा होता है लेकिन सामान्यतः नदी में पानी साफ होता है. बरसात के मौसम में पानी में 20 फीट नीचे तैरता हूँ लेकिन गर्मियों में नदी का स्तर बहुत ही कम होता है.''  मलिक के इस जुनून को लेकर लोगों की प्रतिक्रया के बारे में मलिक कहते हैं, ''लोगों की पहली बार जब लोगों ने मुझे तैरते देखा था तो वे उत्साहित और हैरान थे लेकिन अब उन्हें इसकी आदत हो गई है.

वे जानते हैं कि साढ़े नौ बजे मैं उन्हें नदी में तैरते मिल जाऊँगा. तैरने के बाद मैं थकान महसूस नहीं करता. गर्मियों में तैरकर स्कूल पहुँचने के बाद मैं तरोताजा महसूस करता हूँ. स्कूल से लौटने के बाद भी मैं तैरने की वही प्रक्रिया दोहराता हूँ.''

 

साभार- http://www.bbc.co.uk/ से

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पारिवारिक जीवन मूल्य बचाने के लिए एक जैन मुनि का शंखनाद

मुंबई शहर में ऐसे तो हर दिन की न कोई आयोजन होता है जिसमें ग्लैमर की चकाचौंध से लेकर कॉर्पोरेट की दुनिया के कार्यक्रम भी शामिल होते हैं। लेकिन किसी कार्यक्रम में रविवार के दिन सुबह 10 बजे एक साथ हजारों लोग पहुँच जाए और ठीक दस बजते ही कार्यक्रम में परवेश बंद कर दिया जाए ऐसा अनुभव अपने आप में चौंकाने वाला था।

मुंबई के महालक्ष्मी मंदिर के पास स्थित खुले मैदान में पिछले कुछ रविवारों से ये नजारा देखने को मिला। इस परिसर में जैन मुनि परम पूज्य गणविजय श्री नय पद्मसागरजी  महाराज के प्रवचनों में परिवार में सद्भाव व पारिवारिक मूल्यों व संस्कृति को कैसे बचाया जाए इस विषय पर आयोजित प्रवचनों को सुने के बाद उनके व्यक्तित्व का एक अलग ही स्वरूप सामने आता है।

दस बजते ही श्री नय पद्मसागरजी  महाराज परिसर में प्रवेश करते हैं और हजारों लोगों की भीड़ का शोर-शराबा कदम निस्तब्धता में बदल जाता है। फिर कार्यक्रम की शुरुआत होती है बेहद औपचारिक रूप से इस आयोजन की सफलता से जुड़े कुछ लोगों का सम्मान होता है और फिर मुनि श्री श्री नय पद्मसागरजी  महाराज का ओजस्वी प्रवचन शुरु होता है। सब-कुछ मानो थम सा जाता है। किसी संत या मुनि को सुनते समय प्रायः हमारी धारणा होती है कि वे बहुत धीमे स्वर में अपनी बात कहेंगे, लेकिन श्री नय पद्मसागरजी  महाराज की वाणी को जोश और ओजस्व देखकर तो श्रोताओं की सुस्ती ही उड़ जाती है।

आज के दौर में पारिवारिक मूल्यों, संस्कारों और परंपराओं के विघटन पर वे चोट ही नहीं करते हैं बल्कि उसके सहज-सरल उपाय भी बताते हैं। वे महिलाओं का पक्ष भी लेते हैं और छोटी छोटी प्रेरक कथाओं और सारगर्भित उध्दरणों से महिलाओं को चेतावनी भी देते हैं। उनकी वामी का तेज प्रवाह चलताजाता है और श्रोता उसमें डूबता जाता है। दो ढाई घंटे तक अनवरत चलने वाले प्रवचन में उनकी वाणी का जोश कहीं कमजोर नहीं पड़ता, वे श्रोताओं को ललकारते भी हैं पुचकारते भी हैं और समझाते भी हैं, बात कहने का तरीका ऐसा कि उनका हर शब्द मर्मभेदी सा ह्रदय के तारों को झंकृत करता हुआ श्रोताओं की आँखों से आँसू बनकर निकलने लगता है।

परिवार की व्याख्या करते हुए वे कहते हैं, हमारी भारतीय संस्कृति में परिवार की परिभाषा बहुत व्यापक है जिसमें माता-पिता से लेकर भाई बहन, पति-पत्नी, ननंद भोजाई, बुआ-फूफा, मौसा-मौसी, काका-काकी सभी शामिल हैं। जबकि अंग्रेजी डिक्शनरी में फैमिली की परिभाषा में कहा गया है में पति-पत्नी इटीसी।

इसी मानसिकता पर चोट करते हुए श्री नय पद्मसागरजी  कहते हैं हमने अपने रिश्ते-नातों को ही भुला दिया। हमने अपने परिवार से परिवार के लोगों का ही पत्ता काट दिया तो फिर परिवार बचेगा कैसे? फैशन के नाम पर युवतियों के पहनावे पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय स्त्री अपने पारंपरिक परिधान में ही शीलवान और संकोची नज़र आती है। विदेशी पहनावे ने हमारी संस्कृति के साथ क्कूर मजाक किया है।

अपने तीखे प्रवचन के दौरान श्री नय पद्मसागरजी  ने स्त्रियों और पुरूषों दोनों को ही चेतावनी दि कि अगर उन्होंने पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मर्यादा का पालन नहीं किया तो उन्हें इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगें।  उन्होंने कहा कि आज मोबाईल और टीवी ने आपका पूरा समय छीन लिया है। पति जब काम से थका-हारा आकर घर ता है तो  पत्नी अपने टीवी धारावाहिक के ब्रेक का इंतज़ार करती है ताकि पति को पानी पिला सके। फिर अगले ब्रेक का इंतज़ार करती है ताकि खाना खिला सके। यही हाल पति महोदय का है वे खाना खाने के बाद अपने मोबाईल में मशगूल हो जाते हैं। यानी घर में किसी के पास किसी के लिए समय ही नहीं है।

उन्होंने कहा कि सामूहिक परिवार में बच्चे अपने काका-काकी, दादा-दादी और नाना-नानी के साये में कब बड़े हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता है लेकिन जब से नौकरी करने वाले पति-पत्नी ने अपने माता-पिता को घर से दूर किया है, उनकी संतानें भी उनसे दूर हो गई है। एक ओर तो वे अपनेही माता-पिता से प्यार से वंचित हैं तो दूसरी ओर उनके बच्चे अपने माता-पिता के प्यार से वंचित हैं। इसी वजह से बच्चों का पूरा समय टीवी और मोबाईल पर गेम खेलने में चला जाता है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि ये स्थिति बच्चों के व्यक्तित्व के ले बेहद खतरनाक है।

उन्होंने कहा कि किसी घर में जिस दिन सास अपनी बहू को बेटी मान लेगी उस दिन कई समस्याएँ अपने आप समाप्त हो जाएगी।

कई लोक कथाओं और ज्वलंत सामाजिक उदाहरणों के माध्यम से, अपने पास आने वाले लोगों द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली समस्याओं आदि के माध्यम से श्री नय पद्मसागरजी  ने कहा कि परिवार के सभी सदस्यों क एक दूसरे के प्रति समर्पण परिवार को ही नहीं बचाता है बल्कि पूरे परिवार में खुशहाली भी लाता है। प्रवचन के दौरान वहाँ मौजूद श्रोताओं की भीड़ कभी ठहाके लगाती तो कभी भावशून्य होकर उनके प्रवचनों की गंभीरता को समझने की कोशिश करती तो कभी तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनकी बात का समर्थन कर रही थी।

अपने प्रवचन के दौरान श्री नय पद्मसागरजी  ने जिस उष्मा, गरिमा और मर्मभेदी शब्दों के साथ परिवार नाम की परंपरा और विरासत को बचाने के लिए अपनी बात कही, वह अगर वहाँ मौजूद श्रोताओं के लिए सबक बन जाए तो पूरे समाज को एक नई दिशा मिल सकती है। 

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प्रधान मंत्री पर फिल्म बनाएंगे कुंदन शाह

जाने भी दो यारो जैसी कालजयी फिल्म के निर्देशक कुंदन शाह एक बार फिर सक्रिय हो चुके हैं। इस बार वे पी से पीएम तक नाम की व्यंग्यात्मक फिल्म बना रहे हैं। इस फिल्म का निर्माण पेन यानी पॉपुलर एंटरटेनमेंट नेटवर्क के जयंतीलाल गाडा कर रहे हैं। इस फिल्म में आज की राजनीति के विडंबनापूर्ण पक्ष को चित्रित किया जा रहा है।

फिल्म की कहानी के केंद्र में एक ऐसी औरत है, जो जिस्मफरोशी का धंधा करती है। लेकिन एक दिन जब उसके भीतर राजनीतिक महत्वाकांक्षा पनपती है, तो वह देह के सहारे शीर्ष पर पहुंच जाती है। इस फिल्म में पहले मल्लिका शेरावत को लिया जा रहा था, लेकिन अब उनकी जगह एक नई अभिनेत्री मीनाक्षी दीक्षित को मौका दिया जा रहा है। बता दें कि वीडियो कारोबार के लिए मशहूर पेन कंपनी अब पूरी तरह से फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कूद चुकी है। विद्या बालन अभिनीत फिल्म कहानी के निर्माण से चर्चा में आई इस कंपनी की नई फिल्म सिंह साब द ग्रेट है।

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