Wednesday, July 3, 2024
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शशि सक्सेना की रचनाओं में मुखर परिवेश व मानवीय संवेदनाओं के स्वर

एक दिन रूठ गई बंदरिया
गई ना नाच दिखाने
शर्म से गर्दन नीची करके
बंदर चला कमाने।

बाल कविता ” बंदर चला कमाने ” में आगे आजकल सड़क बाजारों में मजनू टाइप के लड़के जो लड़कियों एवं महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार करते हैं उन पर कवयित्री प्रहार करती है….
बीच बजरिया मिली बंदरिया/ पहने सुंदर हार।
बंदर बोले मैडम हमको/ हो गया तुमसे प्यार।
हो गई मैडम आग बबूला/ मारी सेंडल एक।
बंदर जी झट भागे घर को / टाई-चश्मा फेंक।

बाल कविता के मध्यम से कितने गंभीर मानवीय संवेदना के विषय को सरल और सहज शब्दों में अभिव्यक्त किया है रचनाकार ने की बच्चों को छोड़ बड़ों को भी लुभाले। ऐसे ही एक बाल कविता में मोबाइल से गलत नंबर डायल करने से होने वाली परेशानी को इस प्रकार वक्त किया है।

एक दिन सोचा चुहिया ने/क्यों न एक मोबाइल लाऊं।
चैट करूंगी चूहे से नित/ और उदासी दूर भगाऊं।
लगा एक दिन नंबर रॉग/ म्याऊं म्याऊं दिया सुनाई।
तभी फेंक मोबाइल चुहिया/झटपट बिल में दौड़ी आई।

माँ शारदे के असीम वरदान से साहित्य और संगीत से जुड़ी शशि सक्सेना एक ऐसी रचनाकार हैं जिन्होंने आसपास के सामाजिक और पारिवारिक परिवेश और संदर्भों से जुड़ी घटनाओं और प्रसंगों को अपनी रचनाओं कविताओं और कहानियों में स्वतंत्र और मौलिक अभिव्यक्ति प्रदान की हैं। इनका प्रभावी और भावपूर्ण सृजन देख कर लगता है जैसे आपके और हमारे जीवन के इर्द- गिर्द का ही दृष्टांत और चित्रण चल रहा हो।

संगीत के सुर ताल कब कविता और कहानी के सुर बन गए पता ही नहीं चला। ये हिंदी भाषा में लक्षणा शेली में गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में, सभी नवरसों में कहानी, बाल कविताएं,‌बड़ी कविताएं, लेख, हास्य व्यंग्य, गीत, ग़ज़ल, और छन्द आदि में अपने मन के भावों को स्वतंत्र रूप से लिखने में सिद्धहस्त हैं। जापानी शैली की हाइकु अर्थात तीन पंक्तियों की छोटी कविता लिखने में भी प्रवीण हैं। इनके लिखे हाइकु ह्यूस्टन- अमेरिका से प्रकाशित प्रथम ‘श्रीराम पीयूष हाइकु’ में प्रकाशित होना गर्व का विषय है। “हाइकु” में कवयित्री ने कम शब्दों में गागर में सागर भरने का सफल प्रयास किया है। कुछ हाइकु की बानगी देखिए…
(1) खुशहाली है
कच्ची ईटों से बने
उन घरों में।
( 2 ) घोसलों से वो
उड़ान लेने लगे
मां का हाथ था।
( 3 ) घाव गंभीर
हथियार हैं देते
शब्द हंसते।।
( 4 ) दूध पीता तो
‌‌लातें मारता, पेट
भरने तक।।
( 5 ) तन शरीरी
भावना अशरीरी
चोट गहरी।।

छोटी कविता हाइकु के साथ – साथ अनेक बड़ी कविताएं भी इनकी अपनी साहित्यिक पूंजी हैं। “ बेटी” विषय पर लिखी इनकी एक कविता की बानगी देखिए जिसका अनुवाद और प्रकाशन उड़िया भाषा में भी हुआ है, कुछ इस प्रकार हैं …
बेटी देवी में है दुर्गा/ देह में ये जिगर का टुकड़ा ।
तुलसी है घर के आंगन की/ उषा की ये प्रथम किरण भी।
संध्या की यह पहले बाती/ रागों में यह भीमपलासी।
आभूषण में सुंदर कंगना/स्रोतों में निर्मल झरना।

पीहर की यह सोन चिरैया/ प्रियतम के घर की गौरैया।
रोशन है इससे घर आंगन/ इससे दुनियां लगती मधुबन।
त्योहारों में है यह दिवाली/ सूक्ष्मजीव में तितली प्यारी।
पक्षी में तो यह मयूर है/ पशुओं में यह गौ निरीह है।
बारंबार भगवान मनाऊं/ जन्म जन्म मैं बिटिया पाऊं।

बाल कविताओं में वर्तमान में गिरते मूल्यों की पुनर्स्थापना पर जो़र एवं युवा पीढ़ी को अपने कर्तव्य एवं निष्ठा के प्रति जागरूक कर बच्चों के जीवन में उच्च आदर्शों एवं संस्कारों की स्थापना कर मानव समाज की ऐसी समस्याओं को उद्घाटित करना जो बच्चों से अधिक बड़ों के सोच- सरोकारों का विषय बन जाएं। बच्चों को खेल-खेल में बिना मस्तिष्क पर बोझ डाले ऐसा ज्ञान देना जिसकी वर्तमान समय के दैनन्दिनी जीवन में महती आवश्यकता है।

रचनाकार की प्रकाशित “तितलियों के पंख” बाल कविता संग्रह में कुल 60 कविताएं हैं। इस संग्रह की सभी रचनाओं में कहानी शेर, भालू, हाथी जंगली जानवर तो कहीं घरेलु कुत्ता, बिल्ली तो कहीं पक्षी जगत् के उल्लू, चिड़िया, तोता, मैना आदि अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं तो कहीं ऋतुएं सर्दी, गर्मी, बरसात अपना रंग बिखेर रही हैं। कहीं कवयित्री बाल सुलभ खेल गुड्डा- गुड़िया, कबड्डी, अक्कड़-बक्कड़ आदि का दृश्य भी उपस्थित करना नहीं भूली हैं। संग्रह में काव्य रूपकों में बैंगन, भिंडी,आलू, मूली,गाजर अपना स्वाद छोड़ रहीं हैं तो कहीं बरगद आदि वृक्ष की शाखाएं बालकों का अभिनंदन करती दिखाई देती हैं। बड़ी कविताओं में सामाजिक व्यवस्था एवं मूल्यों पर तीखा प्रहार किया है।

रचनाओं में मौलिकता, सहजता और चित्रात्मकता को इस तरह पिरोया है कि बच्चों को मनोरंजन के साथ-साथ प्रत्यक्ष, परोक्ष रूप से उपदेश भी मिलता है।

इनकी कहानियों में सामाजिक बुराइयों का विच्छेदन और इलाज, सामाजिक ताने-बाने में उलझती आकृतियां, गृह कलह के शूल, उन पर लगाए गए मरहम, जीवन दर्शन, अंतिम पैराग्राफ तक बनी जिज्ञासा और लगभग सुखांत अंत पर आधारित कहानी संग्रह “रिटर्न-गिफ्ट” में 11 बड़ी और 17 लघु कथाएं शामिल हैं। कहानी “ नया घर” में नारी स्वभाव की शाश्वतता का दिलकश विवरण है “ सच है विधाता ने नारी के स्वभाव में कितने विलक्षण गुण समाहित किए हैं। कभी वह चंडी है तो कभी असहनीय आक्रोशों को आत्मसात कर निरंतर बहने वाली सरिता।“ जीवन दर्शन को दर्शाते हुए कहानी ”विश्वास”” का एक वाक्य-
“ औरत को जीवन के हर मोड़ पर अपने अरमानों का गला घोट कर समझौता करना होता है”। लेखिका की लघु कहानी ”सौदा” में समाज की असमानता का मार्मिक चित्रण और असमानता को दूर करने का संदेश है। लघु कहानियों के उद्देश्य रिश्तों के भावनात्मक मोड़ लिए हुए हैं । ’आत्मसंतुष्टि’ कहानी में धन को ही सब कुछ न मानकर मन की आत्मसंतुष्टि को अधिक महत्व दिया गया है। कहनी संग्रह की शीर्षक कहानी ‘रिटर्न-गिफ्ट’ स्पष्ट संदेश देती है कि जीवन में कितनी अदृश्य व अनाम खुशियां हैं जो हमारे एक सही क़दम से हमारे क़दम चूमने लगती हैं। इस पुस्तक की कहानियों में वह सब कुछ है जिसे आप हम सब प्राय: अपने जीवन में देखते हैं।

लगता है मानो मरुभूमि में कोई हरा भरा वृक्ष अपनी जिजीविषा ढूंढ रहा है। कहानियों के मुख्य स्वर हैं समाज, रिश्ते, भारतीय सांस्कृतिक मूल्य, मानवता के लिए जो उथल-पुथल मन में चल रही है वह सब यदि मन से मन का जुड़ाव हो और प्रत्येक को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास हो तो पुख़्ता से पुख़्ता संस्कार व आदतों को बदला जा सकता है। यह कृति राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा अनुदान एवं सहयोग राशि से सम्मानित है।

कहानी की विषयवस्तु सामाजिक उथल-पुथल को रूपायित करती हैं। समाज में प्रचलित प्रदर्शन व अहंकार को दूर कर सामाजिक, पारिवारिक रिश्तों में मूल्यों की स्थापना करती हैं एवं समाज की दकियानूसी परंपराओं पर हथौड़ा चलाया गया है। कहानियों के माध्यम से कहीं प्रेम तो कहीं साधना, कहीं दर्शन तो कहीं उपदेशों के माध्यम से नव समाज की रचना हेतु विचारों को उद्वेलित एवं झकझोरने वाली क्रांति का संदेश दिया है।

लेखिका ने राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचना प्रकाशन में विशेष स्थान बना कर हाड़ोती साहित्य का गौरव बढ़ाया है। है। नेपाल-भारत काव्य संग्रह’ में तीन कहानियां नेपाली भाषा में, दिल्ली से प्रकाशित ’संरचना ‘ में ‘संबोधन’ कहानी ,जयपुर से प्रकाशित ’एक कटोरी चीनी ‘ पुस्तक में दो लघु कथाएं, उड़िया पत्रिका ’अग्निरूपा ‘ में कविता ‘बेटी’, पटियाला की ‘ लघु कलश ‘में लघु कथाएं, पत्रिका ‘ नवतरंग ‘ में “हिंदी की शान” गुड़गांव से ’ “दैनिक नवसमाचार”’ में कहानियां, सहित धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, मनोरमा, गृहशोभा, जाह्नवी, चंपक, पराग,चंदामामा, नंदन,बालहंस आदि में इनकी रचनाओं का खून प्रकाशन हुआ है। ‘लीडिंग लेडिज़ ऑफ़ इंडिया’ पुस्तक में राजस्थान से रचनाकर का परिचय प्रकाशित हुआ है।

परिचय :
संगीत और साहित्य का संगम लिए रचनाकार शशि जैन का जन्म 7 अगस्त 1949 को अजमेर कर किशनगढ़ में पिता विश्वेश्वर नाथ सिन्हा और माता ब्रज रानी सिन्हा के आंगन में हुआ। आपने राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर, बी. एड. और संगीत गायन में एम.ए.( भास्कर) की शिक्षा प्राप्त की। ई-टीवी राज. से साक्षात्कार एवं आकाशवाणी द्वारा नियमित रूप से कहानी, वार्तायें, हास्य व्यंग्य आदि का प्रसारण होता है। लगभग 30 वर्षों तक डीसीएम कोटा की श्री रामलीला का संगीत एवं नृत्य निर्देशन किया है।

समर कैंप (पाई) राजस्थान पत्रिका एवं एन.सी.सी. कैंप में संगीत नृत्य प्रशिक्षण। आप मुंशी प्रेमचंद साहित्य रत्न सम्मान, सांस्कृतिक क्षेत्र में महाराष्ट्र सरकार व राजस्थान सरकार द्वारा नृत्य में सम्मानित, बेस्ट आर्टिस्ट’ एवं निर्णायक रूप में सम्मानित और समाज सेवा में अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ-साथ विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत और सम्मानित हो चुकी हैं। काव्य गोष्ठियों में आप काव्य पाठ करती हैं। आप सेवानिवृत्त व्याख्याता, (रा.विज्ञान), ‘निदेशक’, साधना संगीत संस्थान, कत्थक नृत्य गुरु एवं चार्टर, फाउण्डर प्रेसिडेंट इनर व्ह्वील क्लब, कोटा नोर्थ हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक विभिन्न संस्थाओं से जुड़ कर साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय हैं। चलते – चलते इनकी एक कविता “द्रौपदी”
के कुछ अंश देखिए……..
“हे ज्येष्ठ पिता! बतलाएं मुझे
कुलवधू, पुत्री में अंतर क्या?
पत्नी, वस्तु या व्यक्ति है?
यदि वस्तु है तो अधर्म है क्या
क्यों कुरुवंश की मर्यादा
केशों से पकड़ घसीटी गई?
हे पितामह! अब मौन हैं क्यों?
है क्या,समस्या का, समाधान यही ?

संपर्क :
ए -18, कृष्णा नगर
गली नं.- 1 बजरंग नगर,
कोटा -324001(राजस्थान)
मोबाइल : 9413470238
—————–
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा।

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समाज में राष्ट्रभक्ति और चरित्र निर्माण के लिए हुई संघ की स्थापना – अशोक पांडेय

मध्यभारत प्रांत के राजगढ़ और इटारसी में जारी संघ शिक्षा वर्गों एवं वनखेड़ी में घोष वर्ग का समापन

भोपाल। राजगढ़ और इटारसी में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिक्षा वर्गों और वनखेड़ी में आयोजित घोष वर्ग का रविवार को समापन हो गया। इस अवसर पर स्वयंसेवकों ने 20 दिन में प्राप्त प्रशिक्षण का प्रदर्शन किया। राजगढ़ के जीरापुर में वर्ग के समापन समारोह को प्रान्त के संघचालक श्री अशोक पांडेय जी ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हर भारतवासी में राष्ट्रभक्ति एवं चरित्र निर्माण के लिए हुई है।

प्रान्त संघचालक श्री पांडेय ने कहा कि जब डॉ. हेडगेवारजी ने संघ की स्थापना की, तब स्वतंत्रता का आंदोलन चल रहा था। उस समय उन्होंने अध्ययन, चिंतन किया और अंततः विचार किया कि देश को भले ही स्वतंत्रता प्राप्त हो जाए, लेकिन जब तक हममें यह विचार नहीं होगा कि हम पराधीन क्यों हुए। तब तक स्वतंत्रता स्थाई नहीं होगी। उन्होंने चिंतन के बाद पाया कि हम सामाजिक दृष्टि से एक नहीं थे, आपस में फूट थी, भेदभाव था, देश में एकता नहीं थी। इसलिए हमारी आजादी का अपहरण हुआ।इसलिए देश में राष्ट्रभक्ति एवं चरित्र की स्थापना के लिए संघ की स्थापना हुई।

श्री पांडेय ने कहा कि संघ ने स्थापना के बाद कई संघर्ष किये। दमन भी झेले। लेकिन उपेक्षा और दमन के बाद भी संघ कार्य में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में भागवत भूषण संत श्री प्रेमनारायण जी गेहूखेड़ी वाले एवं वर्ग के सर्वाधिकारी श्री सुनील जी पाठक उपस्थित रहे।

श्री पांडेय ने कहा कि संघ का उद्देश्य हमेशा पवित्र एवं ईश्वरीय कार्य रहा है। लोगों के चरित्र का निर्माण करने में संघ ने समाज में अपनी भूमिका अदा की है। स्वतंत्रता आंदोलन में संघ के स्वयंसेवकों ने भाग लिया। बंटवारे की त्रासदी में संघ ने कई राहत सेवा की। उन्होंने कहा कि समाज में संघ के विचार को फैलाया है। सेवा कार्य, समरसता का कार्य संघ के मूल में प्रारंभ से रहा है। चीन,पाकिस्तान से हुए युद्ध में स्वयंसेवकों ने सेना की मदद की। आज भी सम्पूर्ण देश में संघ द्वारा 1 लाख 50 हजार से अधिक सेवा कार्य चलाए जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि देश के अनेक मनीषियों ने समाज को समरस करने के कार्य किये। संघ भी समाज में समरसता लाने के लिए सतत कार्य करता है। अनेक मनीषियों ने पूर्व में भी समाज में यह भाव स्थापित किया कि गुण स्वभाव और श्रेष्ठता के आधार पर मनुष्य बड़ा होता है। जन्म और कुल के आधार पर नहीं। इसी के आधार पर संघ भी समाज मे समरसता स्थापित करने के लिए निरंतर कार्य कर रहा है। पर्यावरण के क्षेत्र में भी संघ कई कार्य कर रहा है। नागरिक अनुशासन, कुटुंब प्रबोधन, ग्राम विकास के माध्यम से देश के लोगों को श्रेष्ठ नागरिक बनाने का कार्य भी संघ कर रहा है। साथ ही स्व का बोध कराने के लिए भी निरंतर कार्य जारी है। वसुधैव कुटुम्बकम का भाव केवल हिन्दू धर्म में हैं। भारत को जानो, भारत को मानो और भारत के बनो। इस दिशा में भी संघ काम कर रहा है।

समारोह को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि पूज्य संत श्री प्रेमनारायण जी गेहूंखेड़ीवाले ने कहा कि हमारे भारत का भविष्य युवाओं के हाथों में है। युवा ही इस देश के भविष्य निर्माता है। इसलिए युवाओं में परिवार का भाव नितांत आवश्यक है। परिवार भाव एवं कुटुंब प्रबोधन से ही राष्ट्रप्रेम का भाव जागृत होगा। जिससे हमारा भारत पुनः विश्वगुरु बनेगा। आज के परिवेश में हम देख रहे हैं कि जिस प्रकार परिवार टूट रहे हैं और युवाओं के मन में परिवार भाव कम हो रहा है। वह हम सबके लिए चिंता का विषय है। इसलिए हम सबको परिवार भाव का जागरण करना होगा और कुटुंब प्रबोधन के माध्यम से समाज को जागृत करना होगा।

विगत 15 दिन से चल रहे इस वर्ग में 332 शिक्षार्थियों ने भाग लिया। शिक्षार्थियों ने 15 दिन में शिक्षा वर्ग में सिखे गए शारीरिक, योग, व्यायाम, दंड युद्ध, नियुद्ध, पदविन्यास आदि का प्रदर्शन किया।

इटारसी में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह में अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. दिनेश जैन ने कहा कि हिन्दू होने के नाते भारत की आधारभूत परिवार व्यवस्था को और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता है। इस अवसर पर स्वयंसेवकों ने समता, संचलन, दंड संचालन, दंडयुद्ध, नियुद्ध, पदविन्यास एवं गीत का प्रदर्शन किया गया। इस वर्ग में संघ दृष्टि के 16 जिलों, 80 खंडों और 12 मंडलों से 316 स्वयंसेवक शामिल हुए। इस अवसर पर वर्ग के सर्वाधिकारी श्री घनश्याम जी रघुवंशी, विभाग संघचालक श्री धन्नालाल जी दोंगने, नर्मदापुरम जिला संघ चालक श्री पावन जी अग्रवाल और कार्यक्रम के अतिथि श्री मोहन जी खंडेलवाल भी मंच पर उपस्थिति रहे।

वानखेड़ी के सरस्वती विद्यालय में आयोजित मध्यभारत प्रांत के 15 दिवसीय घोष वर्ग का समापन भी रविवार को संपन्न हुआ। इस अवसर पर प्रांत के सह संघचालक राजेश सेठी ने स्वयंसेवकों और नगर के गणमान्य नागरिकों को संबोधित करते हुए कहा कि अभी स्वतंत्रता का अमृतकाल चल रहा है और ईश्वरीय संयोग है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी अपने सौ वर्ष पूर्ण कर रहा है। आज संघ का विस्तार इतना व्यापक है कि अब संघ समाज के केंद्र में है। संघ दो विषयों को लेकर संभ्रम दूर करने कार्य कर रहा है। प्रथम, राष्ट्रीय चेतना का स्तर बढ़ाना है ताकि देश का एक प्रत्येक व्यक्ति का भाव जगे। द्वितीय, वैचारिक तंत्र का परिवर्तन होना। जब समाज का वैचारिक परिवर्तन होता तब समाज में राष्ट्रीय भावना का संचार होता है। समाज में राष्ट्रीय भावना पंच परिवर्तन के मार्ग से भी भी प्रशस्त होगी। इन पंच परिवर्तनों में समरसता, कुटुम्भ प्रबोधन, नागरिक शिष्टाचार, स्वदेशी भाव और पर्यावरण भी परिवर्तन के कारक होंगे।

उन्होंने बताया कि घोष आरम्भ से ही संघ का भाग रहा है। प्रारंभ में घोष की कुछ रचनायें अंग्रेजी घोष से ली गई थीं परंतु वर्तमान में संघ के घोष की सभी रचनाएं पूर्ण स्वदेशी हैं। संघ का घोष आज इतना सक्षम हो चुका है कि भारतीय सेना भी संघ घोष की 5-6 रचनाओं का वादन अपने घोष में करती है। यह बड़े ही गौरव का विषय है।

उन्होंने कहा कि संघ संस्कार देने की कार्यशाला है एक दिशा में सामूहिक रूप से कार्य करना संघ सिखाता हैं। यह वर्ग का समापन नहीं उद्घोष है। संघ समाज में नई चेतना जागृत करने का, वैचारिक भ्रम दूर करने एवं राष्ट्रीय चेतना का भाव जागृत करने का कार्य करता है। यह वर्ग उसी का उद्घोष है। उन्होंने पर्यावरण के विषय में कहा कि आज दुनिया ग्लोबल वार्मिंग समेत कई प्रकार की समस्याओं का सामना कर रही है। पर्यावरण की आज की गंभीर स्थिति जीवन शैली का परिणाम है जो कि पश्चिम से आई है। भारतीय संस्कृति प्राकृतिक जीवन शैली को बढ़ाने वाली है। उन्होंने प्लास्टिक पॉलिथीन के दुष्प्रभाव व वृक्षारोपण की महत्व पर चर्चा की।

इस अवसर पर जिला संघचालक शिवदयाज जी चौधरी और पूर्व सैनिक तथा समाजसेवी निरंजन वैष्णव जी भी मंच पर उपस्थित रहे। वर्ग कार्यवाह रामचन्द्र जी नागर ने अपने प्रतिवेदन में बताया कि स्वयंसेवकों ने पूरे 15 दिन अपने को संघ की गतिविधि में समर्पित करते हुए आनक, प्रणव , नगाग, तुर्य , स्वरद, शंख, वंशी आदि का शिक्षार्थियों ने प्रशिक्षण लिया। इस वर्ग में पूरे प्रांत से 98 स्वयंसेवक शामिल हुए।

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हर विलास सारदाः बाल विवाह प्रतिबन्ध अधिनियम- सारदा एक्ट के जनक

(हरबिलास शारदा जन्म 03 जून 1867- अजमेर, निधन 20 जनवरी 1955)

28 सितंबर 1929 को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ऑफ इंडिया में पारित हुआ। लड़कियों के विवाह की आयु 14 वर्ष और लड़कों की 18 वर्ष तय की गई जिसे बाद में लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 कर दिया गया। इसके प्रायोजक हरविलास शारदा थे जिनके नाम पर इसे ‘शारदा अधिनियम’ के नाम से जाना जाता है। यह छह महीने बाद 1 अप्रैल 1930 को लागू हुआ और यह केवल हिंदुओं के लिए नहीं बल्कि ब्रिटिश भारत के सभी लोगों पर लागू होता था।

अनेक मुसलमानों ने शारदा बिल के विरोध में लेख लिखे जो राष्ट्रीय अभिलेखागार में उपलब्ध है। मुस्लिम समाज उस समय इस सुधारवादी आंदोलन का मुखर विरोधी था। हमारे पूर्वज अडिग रहे और बिल को पास करवाकर बाल विवाह पर रोक लगवाई गई थी।

1937 में भारत में मुस्लिम पर्सनल कानून आने के बाद यह कानून मुस्लिमों पर अप्रभावी हो गया।

हरबिलास सारदा (1867-1955) एक शिक्षाविद, न्यायधीश, राजनेता एवं समाजसुधारक थे। वे आर्यसमाजी थे। इन्होने सामाजिक क्षेत्र में वैधानिक प्रक्रियाओं के क्रियान्यवन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इनके अप्रतिम प्रयासों से ही ‘बाल विवाह निरोधक अधिनियम, १९३०’ (शारदा ऐक्ट) अस्तित्व में आया।

हर बिलास सारदा का जन्म 3 जून 1867 को अजमेर में एक माहेश्वरी परिवार में हुआ था। उनके पिता श्रीयुत हर नारायण सारदा (माहेश्वरी) एक वेदांती थे, जिन्होंने अजमेर के गवर्नमेंट कॉलेज में लाइब्रेरियन के रूप में काम किया। उनकी एक बहन थी, जिसकी मृत्यु सितंबर 1892 में हुई थी।

सारदा ने 1883 में अपनी मैट्रिक परीक्षा पास की। इसके बाद, उन्होंने आगरा कॉलेज (तब कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध) में अध्ययन किया, और 1888 में बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने अंग्रेजी में ऑनर्स के साथ उत्तीर्ण किया, और दर्शन और फारसी भी किया। । उन्होंने 1889 में गवर्नमेंट कॉलेज, अजमेर में एक शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया। वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में आगे की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन अपने पिता के खराब स्वास्थ्य के कारण अपनी योजनाओं को छोड़ दिया। उनके पिता की मृत्यु अप्रैल 1892 में हुई; कुछ महीने बाद, उसकी बहन और माँ की भी मृत्यु हो गई[1]

सरदा ने ब्रिटिश भारत में बड़े पैमाने पर यात्रा की, उत्तर में शिमला से दक्षिण में रामेश्वरम तक और पश्चिम में बन्नू से पूर्व में कलकत्ता तक। 1888 में, सरदा ने इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र का दौरा किया। उन्होंने कांग्रेस की कई और बैठकों में भाग लिया, जिनमें नागपुर, बॉम्बे, बनारस, कलकत्ता और लाहौर शामिल थे

1892 में, सरदा ने अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत के न्यायिक विभाग में काम करना शुरू किया। 1894 में, वह अजमेर के नगर आयुक्त बने, और अजमेर विनियमन पुस्तक, प्रांत के कानूनों और नियमों के संकलन को संशोधित करने पर काम किया। बाद में, उन्हें विदेश विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उन्हें जैसलमेर राज्य के शासक के लिए संरक्षक नियुक्त किया गया। वह 1902 में अजमेर-मेरवाड़ा के न्यायिक विभाग में लौट आए। वहाँ पर, उन्होंने कुछ वर्षों तक अतिरिक्त अतिरिक्त सहायक आयुक्त, उप-न्यायाधीश प्रथम श्रेणी, और लघु कारण न्यायालय के न्यायाधीश सहित विभिन्न भूमिकाओं में काम किया। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अजमेर-मेरवाड़ा प्रचार बोर्ड के मानद सचिव के रूप में भी कार्य किया। 1923 में, उन्हें अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश बनाया गया। वह दिसंबर 1923 में सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए।

1925 में, उन्हें मुख्य न्यायालय, जोधपुर का वरिष्ठ न्यायाधीश नियुक्त किया गया

जनवरी 1924 में सरदा को केंद्रीय विधान सभा का सदस्य चुना गया, जब पहली बार अजमेर-मेरवाड़ा को विधानसभा में सीट दी गई। उन्हें 1926 और 1930 में फिर से विधानसभा के लिए निर्वाचित किया गया था। अब दलबदलू राष्ट्रवादी पार्टी का सदस्य, उन्हें 1932 में इसका उप नेता चुना गया। उसी वर्ष, उन्हें विधानसभा के अध्यक्षों में से एक चुना गया।

उन्होंने कई समितियों में कार्य किया, जिनमें शामिल हैं: याचिका समिति प्राथमिक शिक्षा समिति निवृत्ति समिति सामान्य प्रयोजन उप-समिति स्थायी वित्त समिति हाउस कमेटी (अध्यक्ष) बी। बी। & सी। आई। रेलवे सलाहकार समिति एक विधायक के रूप में, उन्होंने विधानसभा में पारित कई बिल पेश किए:

बाल विवाह निरोधक अधिनियम (सितंबर 1929 में पारित, 1930 में प्रभावी हुआ) अजमेर-मेरवाड़ा न्यायालय शुल्क संशोधन अधिनियम (पारित) अजमेर- मेरवाड़ा किशोर धूम्रपान विधेयक (राज्य परिषद द्वारा फेंका गया) हिंदू विधवाओं को पारिवारिक संपत्ति में अधिकार देने का विधेयक (सरकारी विरोध के कारण बाहर फेंक दिया गया) सारदा ने नगरपालिका प्रशासन में भी भूमिका निभाई। उन्हें 1933 में अजमेर म्युनिसिपल एडमिनिस्ट्रेशन इंक्वायरी कमेटी का सदस्य नियुक्त किया गया और 1934 में न्यू म्युनिसिपल कमेटी के सीनियर वाइस-चेयरमैन चुने गए।

विधायी राजनीति के अलावा, उन्होंने कई सामाजिक संगठनों में भी भाग लिया। 1925 में, उन्हें बरेली में अखिल भारतीय वैश्य सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया। 1930 में, उन्हें लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय सामाजिक सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया

हर बिलास सारदा बचपन से ही हिंदू सुधारक दयानंद सरस्वती के अनुयायी थे, और आर्य समाज के सदस्य थे। 1888 में, उन्हें समाज के अजमेर अध्याय का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, और राजपूताना की प्रतिनिधि सभा (आर्य समाजियों की प्रतिनिधि समिति) के अध्यक्ष भी थे। 1890 में, उन्हें परोपकारिणी सभा का सदस्य नियुक्त किया गया, दयानंद सरस्वती द्वारा नियुक्त 23 सदस्यों के एक निकाय ने उनकी इच्छा के बाद उनके कार्यों को किया। 1894 में, उन्होंने मोहनलाल पंड्या की जगह परोपकारिणी सभा के संयुक्त सचिव के रूप में ले ली, जब संगठन का कार्यालय उदयपुर से अजमेर चला गया। पांड्या के संन्यास के बाद, सरदा संगठन के एकमात्र सचिव बन गए।

सरदा ने अजमेर में एक डीएवी स्कूल की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और बाद में अजमेर के डीएवी समिति के अध्यक्ष बने। उन्होंने 1925 में मथुरा में दयानंद के जन्म शताब्दी समारोह के आयोजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह उस समूह के महासचिव थे, जिन्होंने 1933 में अजमेर में दयानंद की अर्ध शताब्दी के लिए एक समारोह का आयोजन किया था।

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उनके “ध्यान” पर आपका इतना ध्यान क्यूं!*

देश भर में पिछले एक डेढ़ माह से चल रही चुनावी रेलमपेल ने राज नेताओं को थका कर रख दिया है। पहली बार सात चरणों में संपन्न होने वाले लोकसभा चुनाव की गहमा-गहमी के चरमोत्कर्ष पर पहुंचते-पहुंचते गर्मी ने भी वो रौद्र रूप दिखाया कि नेताओं को मंच पर माइक थामते ही सिर पर पास रखी पानी की बोतल ऊंडेलनी पड़ी।

दिन-रात एक कर चुके स्टार प्रचारकों को भले ही अब उतनी धूल नहीं फांकना पड़ती, लेकिन मैराथन चुनाव रैलियों , रोड शो और लगातार चुनावी दौरों की हवाई यात्राओं ने उन्हें थकाकर चूर कर दिया है। न समय पर खाना खाने का ठिकाना न आराम और विश्राम का अता-पता। कहने वाले कह सकते हैं कि लोकतंत्र के इस महारणक्षेत्र में महाविजय हासिल करने के लिए महाआहुति तो देनी ही पड़ेगी। इसमें अचरज की क्या बात..!

पर अगर यदि किसी ने सवा महीने से बिना थके, बिना रुके अपने संकल्प की सिद्धि के लिए स्वयं को अहर्निश भाव से अनवरत झोंके रखा है, तो यह कर्मयोग आलसी, आराम तलब, सुविधाभोगी राजनीतिज्ञों को अटपटा लग रहा है। यदि कोई मुखर, निर्भीक, वाकपटु जन नेता अपने मिशन के अगले चरण के लिए स्वयं को ऊर्जित कर 48 घंटे के लिए मौन धारण कर ध्यान योग साधना में लीन हो जाए तो विरोधियों को इतनी चिल्ल-पों मचाने की क्या जरूरत है?

जब सातवें और अंतिम चरण का चुनाव प्रचार ही थम चुका है तो किसी राजनेता के एकांत में जाकर ध्यान योग करने से.. मौन रहने से.. भला आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन कैसे हो रहा है ? क्या “एकांत” और “मौन” को भी चुनाव प्रचार का हिस्सा माना जा सकता है? इस तरह की बहकी दलील “खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे” से ज्यादा महत्व नहीं रखती।

अगर चुनाव के दौरान आपने इतनी गर्मी सही है तो दिमाग को ठंडा रखना भी सीखिए। हताश-निराश होकर इतना बौखलाने की क्या जरूरत है? सातवें चरण का मतदान इत्मीनान से हो जाने दीजिए। थोड़ा धैर्य तो रखिए। चुनाव परिणाम कहीं भागे नहीं जा रहे..!
दक्षिण पश्चिमी मॉनसून इस बार केरल में समय से पहले दस्तक दे चुका है।

कन्याकुमारी में 48 घंटे के “ध्यान” योग और “मौन” तप के बाद जब बादल गरजेंगे और बिजली कड़केगी तो “हम लोग” मौसम का मिज़ाज कितना बदला हुआ पाएंगे? बस इसका इंतजार है सबको..! और आपको कहीं लंबी छुट्टियां मनाने का तो नहीं..? जिन बेचारी ईवीएम पर बार-बार गड़बड़ी की तोहमतें लगाई जाती रहीं वे भी अपना काम ईमानदारी से पूरा कर आपकी ओर मुंह बिचकाते हुए दड़बों में लौट जाएंगी। पर आपको शर्म न आएगी।

चलते-चलते एक बिन मांगी सलाह देने का लोभ संवरण नहीं हो पा रहा कि यदि चार तारीख तक आपको भी बेचैनी के कारण नींद न आए और बार बार करवटें बदलते रहें तो चंद्रमा पर चंद्रयान की लकीरें गिनने का उपक्रम अवश्य करें, क्योंकि मौन रहना आप सरीखे बड़बोले लोगों के बस में कहां?

“हाथ कंगन को आरसी क्या.? और पढ़े लिखे को फारसी क्या..?? जल्दी ही “दूध का दूध और पानी का पानी” हो ही जाएगा। तब तक “रघुपति राघव राजा राम सबको सन्मति दे भगवान..”।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व स्तंभकार हैं)

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रहस्य, चमत्कार और आकर्षण का केंद्र है ओड़िशा का विश्व विख्यात सूर्यमंदिर

ओड़िशा का विश्व विख्यात सूर्यमंदिर,कोणार्क आज भी विशेष आकर्षण का केन्द्र है। इस मंदिर के भग्नावशेष में भी प्रकृति के प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्यदेव को अपने 24 पहियोंवाले रथ पर आरुढ देखा जा सकता है। सूर्यमंदिर के 24 पहिये प्रत्यक्ष रुप में कालचक्र के प्रतीक हैं।

यह विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्यमंदिर बंगोपसागर(बंगाल की खाड़ी) के तट पर चन्द्रभागा नदी के समीप भग्नावशेष के रुप में अवस्थित है। इस मंदिर की अनुपम छटा सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अनुपम नजर आती है। ऐसा लगता है जैसे सूर्य की समस्त किरणें सबसे पहले धरती पर यहीं पर आलोकित कर रही हों।

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से लगभग 53 किलोमीटर की दूरी पर तथा श्री जगन्नाथपुरी धाम से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पूर्व दिशा में अवस्थित है यह विश्व विख्यात कोणार्क सूर्यमंदिर। इसका निर्माण 13वीं शताब्दी में गंगवंश के प्रतापी राजा नरसिंह देव ने किया था जिसे 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रुप में मान्यता प्रदान की गई। इस अनूठे मंदिर के निर्माण में कुल लगभग 2वर्ष लगे।जबकि निर्माण में कुल 1200 शिल्पकारों तथा कारीगरों ने योगदान किया।यह मंदिर ओडिशा की प्राचीन स्थापत्य और मूर्तिकल का बोजोड उदारण है।यह मंदिर सभी प्रकार से पूरे विश्व में कालचक्र के प्रतीक के रुप में विख्यात है।

मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त लाल पत्थर भी अपनी मोहकता से जैसे मानव की भाषा से कहीं अधिक मुखर नजर आते हैं।कोणार्क सूर्यमंदिर का निर्माण मंदिर का सबसे बडा आकर्षण है मुख्य मंदिर भगवान सूर्यदेव का अलौकिक मंदिर तथा उनकी पत्नी छाया देवी का अति दिव्य मंदिर।मंदिर को ऐसे निर्मित किया गया है कि जैसे प्रत्यक्ष प्रकृतिदेव भगवान सूर्य की समस्त किरणें सीधे सबसे पहले कोणार्क सूर्यदेव तथा उनकी पत्नी देवी छाया देवी के प्रथम दर्शन कर रहीं हों।

यह पूरा सूर्य मंदिर कुल 24 पहियों पर टिका हुआ है जिसके एक तरफ 12 पहिये तथा दूसरी तरफ 12 पहिये हैं। खण्डहर बने आज के सूर्यमंदिर के चार पहिये आज भी धूपघडी के रुप में इस्तेमाल किये जाते हैं।सूर्यमंदिर के मुख्य द्वार को गजसिंह द्वार कहा जाता है।यहां पर पत्थर के दो विशाल सिंह की मूर्तियां हैं जिसमें अपने पैरों से हाथी को कुचलते दिखाया गया है।

मंदिर में प्रवेश करते ही सबसे पहले नाट्य मंदिर आता है।मंदिर की सीढियां चौडी-चौडी हैं जो आनेवाले पर्यटकों को सूर्यमंदिर के जगमोहन मंदिर तक ले जाती हैं। सीढ़ियों के दोनों तरफ विशालकाय घोडे बने हैं जो देखने में ऐसे जीवंत लगते हैं जैसे वे तत्काल युद्ध के लिए दौड जाएंगे।मंदिर में तीन अति सुंदर मूर्तियां हैं जिनके स्थान को काफी सोच-समझकर रखा गया है।तीन मूर्तियों में एक है उगते सूरज की मूर्ति ,दूसरी दोपहर के सूरज की मूर्ति तथा तीसरी ढलते हुए सूरज की मूर्ति है।

मंदिर के प्रवेशद्वार के बगल में नवग्रहदेव की मूर्तियां हैं जिनके पूजन का व्यक्तिगत सुख-शांति के लिए विशेष महत्त्व बताया गया है। सूर्यमंदिर के दक्षिणी भाग में निर्मित दो विशालकाय घोडे ताकत और ऊर्जा के प्रतीक हैं। ये मूर्ति ओडिशा सरकार के राजकीय चिह्न हैं। मंदिर के निचले भाग में तथा मंदिर की दीवारों पर बनी कलाकृतियां अद्भुत हैं।यहां का प्रतिवर्ष आयोजित होनेवाला कोणार्क महोत्सव संगीत-नृत्य कला प्रेमियों के लिए अत्यंत आनंददायक होता है।

गौरतलब है कि मंदिर प्रांगण में कुल 22 अन्य मंदिर भी हैं। मंदिर की नक्काशियां मनमोहक हैं।सूर्यदेव की पत्नी छाया देवी के मंदिर में सबसे पहले एक सुंदर औरत की मूर्ति है जो अपने पति के आगमन की प्रतीक्षारत नजर आती है।और उसे ही देखने के लिए कोणार्क आनेवाले लोगों में अधिकतर नव दंपत्ति ही होते हैं जो वहां पर जीवन में प्रतीक्षा के महत्त्व को प्रत्यक्ष रुप में समझते हैं। प्रकृति के खुले वातावरण में निर्मित इस मंदिर की दीवारों की छटा दर्शनीय हैं जिन पर कामुक कलाकृतियों को भी बडी बारीकी से उकेरा गया है।यहां पर एक मगरमच्छ की भी मूर्ति है जिसने अपने मुंह में मछली दबाये हुए है।

गौरतलब है कि 1779 में कोणार्क के अरुण स्तंभ को लाकर पुरी के जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार के सामने स्थापित कर दिया गया है। एक समय था जब इस रथ के चौबीस पहिये थे जिसे कुल छः घोड़े खींच रहे हों लेकिन आज मात्र एक ही घोडा वहां पर दिखता है।कोणार्क सूर्यमंदिर को विरंचि-नारायण मंदिर भी कहा जाता है।पद्मपुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का पुत्र साम्ब जब शापग्रस्त होकर कोढ़ रोग से ग्रसित हो गया तब वह यही आकर बंगोपसागर के चन्द्रभागा सागर-संगम नदी तट पर पवित्र स्नानकर लगातार 12 वर्षों तक भगवान सूर्यदेव की घोर तपस्या की जिससे सूर्यदेव प्रसन्न होकर उसे कोढमुक्त का वरदान दिये।कहते हैं कि तभी से इस मंदिर में सर्योपासना आरंभ हुई।

सच तो यह है कि पिछले लगभग 700 वर्षों से देश-विदेश के हजारों कुष्ठरोगियों का निदान करता आ रहा है।कोणार्क सूर्यमंदिर आकर विश्व के चर्मरोगी सुबह-शाम सूर्यदेव की पहली किरणों का सेवन करते हैं और पूरी तरह से रोगमुक्त हो जाते हैं। कोणार्क सूर्यमंदिर की सबसे बडी अनोखी विशेषता यह भी है कि इसमें भगवान सूर्यदेव की तीन मूर्तियां हैं। एक बाल्यावस्था की,दूसरी युवावस्था की और तीसरी प्रौढावस्था की है। यही नहीं, यह ओड़िशा का विश्व विख्यात सूर्यमंदिर,कोणार्क शोधार्थियों के भी शोध का मुख्य केन्द्र बन चुका है।

(लेखक ओड़िशा की कला, संस्कृति व साहित्यिक गतिविधियों पर नियमित लेखन करते हैं और राष्ट्रपति से पुरस्कृत हो चुके हैं)

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ज्ञान चतुर्वेदी के नए उपन्यास ‘एक तानाशाह की प्रेमकथा’ का एक अंश।

ज्ञान चतुर्वेदी के नए उपन्यास ‘एक तानाशाह की प्रेमकथा’ का एक अंश। इस उपन्यास में लेखक ने प्रेम जैसे सार्वभौमिक तत्त्व को अपना विषय बनाया है और उसे वहाँ से देखना शुरू किया है जहाँ वह अपने पात्र के लिए ही घातक हो उठता है। वह आत्ममुग्ध प्रेम किसी को नहीं छोड़ता चाहे प्रेमी के लिए प्रेमिका हो, पति के लिए पत्नी हो या शासक के लिए देश।

***

देश में मुनादी पिट रही है। चैनल चैनल डुगडुगी, अख़बार-अखबार अलख, कानोकान कनकही।

सारे भोंपू बता रहे हैं कि कल सुबह, ठीक दस बजे बादशाह एक महत्त्वपूर्ण घोषणा करेगा। कल तानाशाह दरबार और राष्ट्र को एक साथ सम्बोधित करेगा।

राष्ट्र अभी से तरद्दुद में आ गया है कि कल वो क्या कहेगा? कौन सा नया शिगूफ़ा? कौन सी अनोखी सनक? सबको पता है कि बादशाह इस देश को आगे बढ़ाने की हड़बड़ी में है; वो आगे-पीछे की नहीं सोचता, मन में कोई योजना आई कि सब पर थोप दी; बाद में उनको सजा भी दी जिन्होंने एक शानदार योजना साजिशन फेल करा दी।…कल ऐसी ही कोई योजना न हो?

अन्देशे में है सारा देश कि पिछली बार जैसा तो कुछ नहीं करेगा? या उससे पहले जैसा कि जिसने पूरे देश को उथल-पुथल कर डाला था? या उससे भी पिछली घोषणा जैसा? या इन सबसे भी ख़राब कुछ एकदम अकल्पनीय?…या शायद इस बार कुछ बहुत अच्छा?…लोग बस कयास लगा सकते थे। जब से मुनादी हुई है, देश मानो रुक गया है। सब इसी चिन्ता में मुब्तिला हैं।

हर घर में यही विमर्श चल रहा है। हर तरफ़ बस यही चर्चा कि कल क्या कहने, करनेवाला है बादशाह? प्रजा कानाफूसी, बतकहियों, शर्त लगाने, सट्टेबाजी और बहस में मुब्तिला है आज; कल की कल देखी जाएगी! एक ही चर्चा, कल तानाशाह क्या बोलेगा? कोई बता नहीं सकता पर बता सब रहे हैं।

***

तानाशाह क्या घोषणा करेगा?

देश जानता है कि उसके अनुमान ग़लत सिद्ध होंगे पर लगा रहा है।

तानाशाह अपने इरादों की भनक कभी स्वयं को भी नहीं लगने देता। हर बाज़ी वह पत्तों को छाती से चिपकाकर खेलता है; साथ बैठा सहायक भी हैरान रह जाता है कि अभी तो बेगम फेंक रहा था, अचानक दुक्की क्यों उठा ली? बाजी अलग, गड्डी अलग; पत्ते ऐसे पैने कि बाजी खेलते-खेलते कौन सा पत्ता वो अपने सबसे क़रीबी शख़्स की गर्दन पर चला दे, कोई नहीं जानता।

राष्ट्र को पूरा एक दिन मिला है कि वह हर अनहोनी के लिए तैयार हो ले। वैसे राष्ट्र अब वैसा परेशान नहीं होता। आदी हो गया है इन बातों का। जो होगा, देखेंगे। तानाशाह की सनक के साथ जीना सीख चुका है देश। लोग टीवी के समक्ष बहस में उलझे हैं; गरमागरम पकौड़ों और चाय के साथ बड़ा मजा आता है राष्ट्र की चिन्ता करने में। हर मकान में उत्तेजित, मुस्कराते, गम्भीर, चिन्तित, हा हा ही ही करते, बहस में संलग्न, शोर को विमर्श मानने वाले नागरिक कयास में व्यस्त हैं।

***

मकान नम्बर दो, आशियाना तानाशाह नम्बर दो का। रस्तोगी जी और पायल का घर। इस घर को भी सम्भावित घोषणा ने अपनी तरह से चपेट में लिया।

कैसे? बताते हैं।

आज पायल को दफ़्तर से आते थोड़ी देर हुई।

रस्तोगी जी ऐसे सरकारी डिपार्टमेंट के मुलाजिम हैं जहाँ कोई कुछ पूछता नहीं; मुँह उठाए कभी भी आ जाओ और जब अकर्मण्यता से बोर हो जाओ तो बाहर निकल आओ, ऐसा कर्मठ वातावरण, वे हमेशा समय से पहले ही घर पहुँच जाते हैं। आज तो वे दोपहर ही घर लौट आए। अभी तलक एक नींद ले चुके हैं, दूसरी की तैयारी में थे कि पायल आ गई।

वह घर में घुसी कि रस्तोगी जी ने घड़ी पर नज़र डाली। बोले तो नहीं पर उनकी नजरें बहुत कुछ कह रही थीं।

पायल ने इस नज़र पर ध्यान न देकर उनको मुस्कराकर देखा, पर्स को सोफ़े पर उछाला और सीधे किचन में घुस गई। बिना कपड़े चेंज किये सबसे पहले चाय चढ़ा दी उसने। आज सिर भारी है। चाय चढ़ाकर बच्चों की तरफ़ गई। बच्चे अन्दर खेल रहे हैं। उनको खूब प्यार किया। वे अपने खेल में मशगूल रहे। वहाँ से लौटी। चाय की गैस को सिम पर करके वाशरूम गई, मुँह हाथ धोए, बाहर के कपड़े बदले, टी-शर्ट और पाजामा डाला और भागकर वापस किचन में पहुँच गई। चाय धीमी आँच पर भी उबलने लगी थी। चाय लेकर वापस लिविंग रूम में पहुँची। तानाशाह चुपचाप बैठा हुआ टीवी के रिमोट से खेल रहा था।

पायल ने बेहद सुन्दर और सिंपल पिंक पाजामे पर ढीली सी कालर वाली ब्लू टी शर्ट डाल रखी है। उसकी यह ड्रेस रस्तोगी जी को बड़ी दिलकश लगती है। कभी पहने तो उत्तेजित हो जाते हैं; हो गए; प्यार उमड़ आया। पास बैठने का इशारा करते हुए बोले, “ग़ज़ब लग रही हो यार। इस टी शर्ट में तुम्हारा टॉमबॉयिश लुक किसी को भी हिला दे।”

“तुम हिल गए न? मेरे लिए यही बहुत है…” कहकर हँसने लगी पायल।

उसने चाय के कप सामने रखे और तानाशाह से एकदम सटकर बैठ गई।

रस्तोगी जी के प्यार के बादल गहरे होकर घुमड़ने लगे। बूंदाबांदी होने लगी।

चाय पड़ी रही और उनका हाथ पायल के बदन पर घूमने लगा। पायल को भी अच्छा लगा गो कि उसने झूठ-मूठ आँखें दिखाईं, बच्चों के कमरे की तरफ़ इशारा करते हुए रस्तोगी जी को बरजा। वे शरारतन मुस्कराकर उसके और पास आ गए। सहलाते रहे उसका बदन।

पायल ने चाय का अपना कप उठा लिया।

उन्होंने कन्धा भींचा तो कप हिल गया।

“यार, चाय गिर जाएगी तुम पर, बहुत गर्म है।”

“हम उससे ज़्यादा गरम हैं।” कहकर वे खूब जोर से हँसे।

पायल ने कप वापस रख दिया।

फिर दोनों हाथ रस्तोगी जी के गले में डालकर टिक गई उनसे।

पायल का एक हाथ पति के कन्धे से खिसककर पीठ पर आ गया। उँगलियाँ नाचने लगीं वहाँ। उसकी एक आँख बच्चों के बेडरूम के दरवाजे पर है। तानाशाह ने अब उसको भरपूर आलिंगन में ले लिया था। बदन के साज पर रस्तोगी जी की उँगलियाँ चल रही हैं। सितार बजने लगा। सब कुछ बेहद आत्मीय, मादक और अद्भुत था। महक फैल रही थी। रस झरने लगा। नशा श्वासों में घुल रहा था। आनन्द में पायल की आँखें मुँदने लगीं। तानाशाह की उँगलियाँ नाचते हुए पायल की कमर से नीचे जा पहुँचीं। घने बादल घुमड़ आए। हवा तेज़ हो गई। पायल का जूड़ा खुल गया। खुले बाल लहराने लगे आनन्द की हवा में। उत्तेजना के अतिरेक में पायल ने आँखें बन्द कर लीं।

उसने हल्की सी आह भरी ही थी कि अचानक तानाशाह ने उसे बुरी तरह धकेलकर परे कर दिया।

पायल चौंक गई।… बच्चे आ गए क्या?… नहीं तो। उनकी तो अब भी अन्दर से आवाज़ आ रही है, फिर?

उसने आश्चर्य से पति की तरफ़ देखा जो उसे बेहद गुस्से से घूर रहा था।

“क्या हुआ यार?…अभी तो बड़े मूड में थे?” पायल ने मुस्कराते हुए पूछा।

“यह सब क्या है?” तानाशाह ने गुर्राकर पूछा।

पत्नी जान गई कि क्या शुरू करनेवाला है?

वह खिसककर उससे दूर बैठ गई।

“क्या हुआ?”

“तुमने शेविंग की है नीचे?”

“हाँ, तो?”

“तो का मतलब?”

“मतलब यह कि ऐसा क्या कर दिया मैंने; सब करते हैं यार, बड़ा अनहाइजीनिक सा लग रहा था।… इसमें क्या?”

“इसमें कुछ नहीं? वाह!!”

“सब करते हैं।”

“कितनों को करते देखा है?”

“पता है यार, नार्मल बात है…”

“नार्मल बात होती तो मैं कहता?”

“क्या एब्नॉर्मल कर दिया मैंने?”

“हमें तो यही नार्मल पता था कि पति कहे तो पत्नी शेव कर लेती हैं वरना…”

“वरना?”

“वरना क्यों करना।”

“तो मुझे इसके लिए भी तुम्हारे आदेश की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी? तुमको एप्लीकेशन देती कि…”

“…बताकर तो करतीं?”

“इसमें क्या बताना। तुमको पता चल ही जाता न?”

“पहले तो ग़लत काम करोगी और पकड़ ली जाओ तो बहस करोगी?”

“ग़लत काम? अब अपनी सफ़ाई के लिए भी तुमसे पूछना होगा?”

“मुझसे नहीं तो किससे? चेतन से? या कोई और भी है?”

वह तानाशाह को घूरकर देखती रही। यह आदमी पक्का पागल है। एकदम पागल। और इस पागलपन को ये प्यार कहता है, विश्वास करता है कि यही प्यार है।

“यार, तुम्हारा दिमाग़ ख़राब है।”

पायल दूर खिसककर बैठ गई और चाय उठा ली उसने। “अच्छा! मेरा दिमाग़ ख़राब है? रुको। कुछ दिखाता हूँ तुमको।”

रुकने का इशारा करते हुए वह लैपटॉप पर गूगल करने लगा—“हाऊ टू डिसाइड दैट माई वाइफ़ इज हैविंग एक्स्ट्रा मैराइटल अफेयर?” कई सारी पोस्ट सामने थीं।

एक पोस्ट खोलकर उसने लैपटॉप का स्क्रीन पत्नी की तरफ़ घुमा दिया।

“क्या है यह?” पायल ने पूछा।

“खुद पढ़कर देख लो।”

कहकर रस्तोगी जी ने चाय का कप उठा लिया। पायल चाय पीती हुई उसे घूरती रही। वह किसी जासूस की गहरी उसे वापस घूरता रहा। निगाहों से दोनों कुछ देर तक चुप रहकर चाय पीते रहे। दोनों के बीच खुला हुआ लैपटॉप पायल की तरफ़ देख रहा है। पायल ने ख़ाली कप जोर से काँच की सेंट्रल टेबल पर पटका और तिरस्कार और हिकारत की नजरों से देखते हुए लैपटॉप तानाशाह की तरफ़ घुमाते हुए कहा, “ऐसे ही ट्रेश पढ़-पढ़कर अपना दिमाग़ ख़राब करोगे और मेरा भी, जीवन भर?”

“यह ट्रेश नहीं, हक़ीक़त है। इसका प्वाइंट नम्बर चार पढ़ो।”

“मुझे कुछ नहीं पढ़ना। वैसे भी तुम रोज मुझे ऐसी पोस्ट्स भेजते रहते हो।”

“फिर भी तुम समझती नहीं?”

“मैं बिना पढ़े डिलीट कर देती हूँ इस कचरे को।… तुम्हारे दिमाग़ में यह सब जो चलता रहता है न—सेक्स फैंटेसीज, एक्ट्रा-मेराइटल अफेयर्स, यह सारा कचरा ऐसी ही ट्रेश पोस्ट्स पढ़कर अर्जित ज्ञान है…।”

“चलो, कहीं से अर्जित किया हो, है तो ज्ञान ही न?”

“ऐसे ज्ञान से तो अज्ञानी होना बेहतर…”

“…ताकि तुम गुलछर्रे उड़ाओ और मैं कुछ न पूछें?”

“तो ये शेविंग करना मेरा गुलछर्रे उड़ाना है?”

“नहीं, इसे गुलछर्रे उड़ाने की तैयारी कहते हैं,” कहकर वह ऐसा हँसा मानो कोई बहुत अर्थपूर्ण बात कह डाली हो।

“ऐसा लिखा है तुम्हारे गूगल ग्रन्थ में?” उसने भी व्यंग्यपूर्वक हँसकर पूछा।

“हाँ, प्वाइंट फोर पढ़ो न?”

कहकर उसने लैपटॉप का रुख़ फिर से पायल की तरफ़ कर दिया। पायल ने पढ़े बिना ही लैपटॉप को वापस उसकी ओर घुमा दिया।

“तुम तो पढ़ चुके न, तुम ही बता दो।”

उसने पायल को हिकारत से देखा और बोला—

“चलो, मैं ही बता देता हूँ। इसमें साफ़ लिखा है कि तुम्हारी औरत नियमित रूप से नीचे शेविंग करती है तो सतर्क हो जाओ, ज़रूर वह किसी के साथ अफेयर में है।” वह जोर-जोर से हँसने लगी।

“और तुम इस घटिया तर्क पर विश्वास करते हो!”

वह उसका मखौल करती हुई हँसने लगी।

तानाशाह उसे वितृष्णा से देखता रहा।

“हँस लीं, या और बाक़ी है?”

वह चुप हो गई।

“अब तो बता दो, किसके साथ चल रहा है तुम्हारा?”

वह हैरान रह गई। एकदम ही पागल है क्या?

“यार, गूगल-गंगा में आज गोता ही खा गए हो क्या? मैं हाईजैनिक रहूँ, नियमित शेव करूँ तो मैं चरित्रहीन!”

चुप रहकर घूर रहा है वह।

“सिम्पली डिस्गस्टिंग!!” पत्नी बोली।

अब वो उखड़ गया।

“डिस्सास्टिंग? मैंने एक सच बोल दिया तो डिस्गस्टिंग, वाह!”

“तुम इसे सच मानते हो?”

“सच है तो सच ही माना जाएगा।”

“तुम किसी अच्छे सायकेट्रिस्ट को दिखा लो न यार।”

“डिस्कोर्स मत बदलो पायल।”

“दिमाग़ गड़बड़ा गया है तुम्हारा।”

“चलो, मेरा दिमाग़ ठीक नहीं पर गूगल में जो लिखा है वो?”

“होगा वहाँ भी कोई तुम जैसा ही…”

“गूगल इसे एक एस्टेब्लिश्ड फ़ैक्ट बताता है और तुम इसे मेरा पागलपन बताकर बच निकलना चाहती हो? तुम आज रँगे हाथ पकड़ी गई हो पायल।”

“तुमने पकड़ा?”

“हाँ, मैंने; अभी पकड़ा न? शेव करके बैठी हो और बहस करती हो? बताती क्यों नहीं, चेतन के लिए की है या किसी और के लिए?”

“तुमको क्या लगता है?”

“मेरे लिए तो नहीं की, ये जानता हूँ बस।”

“हाँ तुम्हारे लिए नहीं की।”

“तो यह भी बता दो, किसके लिए की?”

“अपने लिए की; अपने लिए तो कर सकती हूँ न कि उसके लिए भी मुझे तुमसे परमीशन लेनी होगी?”

“तुम फिर से डिस्कोर्स बदल रही हो।”

“यार, तुम तो अपने डिस्कोर्स पर डटे हो न, डटे रहो।”

“देखो, सच बता दोगी तो मैं तुमसे कुछ नहीं बोलूँगा। प्वाइंट नम्बर फोर…”

“भाड़ में गया तुम्हारा प्वाइंट नम्बर फोर।” वह बिफर गई।

“ऐसा कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती तुम, मुझे तुमसे एकदम साफ़ सुनना है कि यह शेविंग किसके लिए की है तुमने?”

“भाड़ में जाओ, जो लगे वो समझ लो।”

वहाँ से उठकर वह दूर बैठ गई।

“आज भी चेतन से मिलकर आ रही हो न?” तानाशाह ने पुलिसिया अन्दाज में पूछा।

“वह तो रोज़ मिलता है।” पायल ने बेपरवाह जवाब दिया।

“तो क्या कहा उसने?”

“किस बारे में?”

“तुम्हारी इस चिकनी…”

“… दिमाग़ एकदम ही ख़राब हो गया है क्या?”

“मेरा कि तुम्हारा?” वह चुप हो गई।

इस बहस का कोई अन्त नहीं था। चुप रह जाना ही बेहतर। वह कसमसाता हुआ घूरता रहा उसे।

“तुमको पता नहीं, दुनिया के मर्द बड़े हरामी हैं।” रस्तोगी जी ने अब समझाने के स्वर में कहा।

“तुम भी तो उसी दुनिया से हो, और शायद मर्द भी हो,” पायल ने वितृष्णा के स्वर में कहा।

“हाँ मैं मर्द हूँ, इसीलिए जानता हूँ इन मर्दों को, तभी कह रहा हूँ।”

“सुन लिया मैंने।”

“सुनना नहीं, समझना होगा।”

“समझ भी लिया। तुम जैसा विद्वान आदमी समझाए तो कौन नहीं समझेगा?”

रस्तोगी जी घूरने लगे पायल को।

बात आगे बढ़ती, इससे पहले ही दोनों बच्चे एक-दूसरे के पीछे दौड़ते हुए लिविंग रूम में आ गए।

माँ-बाप को अपना चेहरा बदलना पड़ा।

आदर्श माँ-बाप हैं।

बच्चों को दोनों ही बेहद प्यार करते हैं, उनके प्रति गहरी जिम्मेदारी भी महसूस करते हैं; इसी के चलते ऐसा हर विवाद, एक सीमा पर आकर अगली बार के लिए स्थगित कर दिया जाता है। तानाशाह बेहद प्यार करता है पायल को। पायल को भी प्यार है अपने पति से जिसका प्यार और सन्देह एक साथ चलता है। दाम्पत्य एक तानाशाही में बदल गया है पर दोनों ही कमोबेश खुश रहते हैं।

देखिए न कि माँ अभी सब कुछ भूलकर बच्चों के साथ कैसी खिलखिला रही है। तानाशाह भी झूठ-मूठ ही सही, मुस्करा तो रहा है गो कि उसके चेहरे पर जगह-जगह प्वाइंट नम्बर फोर छपा हुआ है। पायल बच्चों के साथ कितनी खूबसूरत लग रही है! माँ के रूप में उसका चेहरा कितना आकर्षक लगता है!

रस्तोगी जी को पायल का हर रूप भाता है। बहुत प्यार करते हैं वे उसे।

अपनी बातें सुनाने में मशगूल हैं बच्चे, पायल भी तनाव भुलाकर बेहद सहज हो गई है। तानाशाह ने भी टीवी खोल लिया, कोई न्यूज़ चैनल। वही बहस चल रही थी कि बादशाह कल क्या बोल सकता है?

बहस कम, गुत्थमगुत्था ज्यादा; तू-तू-मैं-मैं, शोर-शराबा, बस। सभी अपनी बात एक साथ कह रहे हैं, रुकने, सुनने को तैयार नहीं कोई; स्कूल में ऐसा करते तो मास्टर मुर्गा बना देता!

तानाशाह बहुत रुचि के साथ बहस सुनने लगा। पायल भी अपनी एक आँख टीवी पर रखे है।

“क्या कहती हो जान? कल क्या बोलेगा बादशाह?”

रस्तोगी जी ऐसे सहज होकर पूछ रहे हैं मानो कुछ देर पहले की बातें मज़ाक़ में बोली हों।

पायल बच्चों में मग्न है।

“जो बोलना है, बोले; वह तो रोज़ ही कुछ न कुछ बोलता रहता है,” पायल ने बेपरवाही से कहा।

तानाशाह को बुरा लगा; यदि उसने कोई टास्क दी तो पत्नी को मनोयोग से उसमें पार्टिसिपेट करना चाहिए; यही नारी-धर्म है!

“फिर भी, कोई अन्दाज़ा?” तानाशाह ने फिर कहा।

“फ्रेंकली स्पीकिंग, मुझे इस बात में कोई इंट्रेस्ट ही नहीं,” पायल ने कहा।

“फिर भी? कुछ तो सोचो,” तानाशाह पूछता गया।

पत्नी अचानक मुस्कराने लगी। हँस ही पड़ी लगभग। वह उसका मुँह देखने

“बताऊँ?” पायल हँसती हुई बोली।

“बताओ न? कह तो रहा हूँ…”

वह हँसकर बोली और बोलने के बाद भी हँसती रही—

“हो सकता है कि कल से बादशाह बिना उचित परमीशन के ऐसी शेविंग करना गैर-क़ानूनी घोषित कर दे।”

तानाशाह तिलमिला गया।

“मज़ाक़ उड़ा रही हो?”

“मज़ाक़ नहीं, सच है। बादशाह लोग कुछ भी सोच लेते हैं। भाई!” वह मुस्कराती रही।

वह और तिलमिला गया।

बच्चे वहीं थे पर बोल ही दिया उसने—

“यह भी तो हो सकता है कि वह ऐसे अफेयर्स में इन्वॉल्व्ड लोगों को फाँसी चढ़ाने का क़ानून लाने की बात करे।” उसका लहजा बहुत तल्ख था, इतना तल्ख कि छोटा बेटा देखने लगा उन दोनों को।

पत्नी अलबत्ता मजे ले रही थी।

“इतनी बड़ी सज़ा! बाप रे!!” वह डरने का अभिनय करने लगी।

“चेतन जैसे लोग तभी होश में आएँगे।” वह अब भी तल्ख था।

“फाँसी चढ़ गया तो होश में कैसे आएगा?” वह छेड़ रही थी।

“क्या हुआ चेतन अंकल को पापा?”

“अपनी मम्मा से पूछो। वे ज्यादा जानती हैं चेतन अंकल को।”

वह अर्थपूर्ण ढंग से हँसा और रिमोट उठाकर टीवी में डूब गया।

किसी चैनल पर रोचक जूतमपैजार चल रही है। कोई कह रहा है कि पहले बादशाह यह बताए कि उसने पुरानी घोषणाओं का क्या किया? देश में विरोधी भी बोल लेते हैं कभी-कभी ।… पूरी पैनल उस आदमी पर चढ़ बैठी।… बादशाह जैसा आज तक कभी कोई हुआ भी है देश में?… इतना किया है उसने और तू स्साले ऐसी बातें…। अबे जा।… अबे तू जा!.. क्या कर लेगा बे?

बहस बौद्धिक मोड़ ले चुकी है।

साभार https://rajkamalprakashan.com/blog/ से

 

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अब तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं को हुई “ध्यान” से भी समस्या !

लोकसभा चुनावों के अंतिम दौर का प्रचार समाप्त होते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ध्यान करने के लिए कन्याकुमारी जा रहे हैं। यह समाचार मीडिया में आते ही मोदी विरोधियों ने तीखी बयानबाजी आरम्भ करके यह सिद्ध कर दिया कि पूरा का पूरा इंडी गठबंधन सनातन विरोधी है और इनकी मोहब्बत की दुकान में सनातन के विरुद्ध नफरत का सामान भरा पड़ा है।

चुनाव प्रचार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संपूर्ण इंडी गठबंधन को मुस्लिम तुष्टिकरण के सम्बन्ध में बेनकाब किया और अब उन्होंने स्वयं प्रधानमंत्री मोदी के ध्यान कार्यक्रम का विरोध करके प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा किए गए दावों की पुष्टि कर दी।

समाचारों के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी कन्याकुमारी में उसी शिला पर ध्यान लगाएंगे जहां स्वामी विवेकानंद ने ध्यान लगाकर विकसित भारत का सपना देखा था। इस शिला के ऊपर ही स्वामी विवेकानद की स्मृति में विवेकानंद रॉक मेमोरयिल बनाया गया है। ज्ञातव्य है कि प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार के बाद पहले भी ध्यान के लिए जाते रहे हैं 2014 में उन्होंने महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज से जुड़े प्रतापगढ़ में ध्यान लगाया था और 2019 केदारनाथ की रुद्र गुफा में ध्यान लगाया था।

विवेकानंद रॉक पर तीन दिन लगातार ध्यानावस्था में रहते हुए ही विवेकानंद जी को विकसित भारत का दर्शन मिला था, प्रधानमंत्री मोदी ने 2047 तक भारत को विकसित भारत बनाने का लक्ष्य रखा है संभवत इसी के दृष्टिगत उन्होंने ध्यान लगाने के लिए इस स्थान को चुना है ।

प्रधानमंत्री मोदी के ध्यान कार्यक्रम से विपक्ष बौखला गया है और अजीबोगरीब प्रतिक्रिया दे रहा है।पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस ध्यान को टीवी पर दिखाया गया तो उनकी पार्टी चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज करायेगी। उन्होंने आगे कहा कि अब प्रधानमंत्री मोदी को वहीं रह जाना चाहिए और आराम करना चाहिए।

कांग्रेस ने इसे आचार संहिता का उल्लंघन बताकर चुनाव आयोग के पास शिकायत तक दर्ज करवा दी है। इस विवाद में तमिलनाडु की सत्ताधारी द्रमुक भी कूद पड़ी है और उसने वहां के डीएम से शिकायत की है।यह वही ममता बनर्जी है जिनके राज में संदेशखाली होता है, बंगाल में रामनवमी मनाने पर प्रतिबंध लगाया जाता है, रामनवमी पर जानबूझकर दंगा कराया जाता है। जो द्रमुक शिकायत कर रही है वह सनातन के उन्मूलन की बात कर चुकी है।

बंगाल और तमिलनाडु, केरल में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का उद्घाटन समारोह टीवी पर न दिखया जाये इस पर पूरा जोर लगा दिया था। आज ये लोग ध्यान का विरोध कर रहे हैं जिन्होंने कभी योग दिवस व सूर्य नमस्कार आदि का भी विरोध किया, यह वही लोग हैं जो आयुर्वेद का विरोध करते हैं।

ममता बनर्जी प्रधानमंत्री मोदी के ध्यान कार्यक्रम से इसलिए घबरा गई है क्योंकि बंगाल के जनमानस में विवेकानंद के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस का बहुत अघिक प्रभाव है और अंतिम चरण की बची हुई सीटों पर इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ सकता है।बंगाल में ममता बनर्जी व उनकी पार्टी के कुछ नेताओं की विकृत बयानबाजी आहत साधु संत पहले ही प्रदर्शन कर चुके हैं अब उसके बाद प्रधानमंत्री का ध्यान योग ममता को बुरी तरह से परेशान कर रहा है क्योंकि जब प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में ध्यान लगाया तब पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बन गई और जब 2019 में केदारनथा धाम की गुफा में ध्यान लगाया तब भाजपा ने तीन सौ पार का लक्ष्य प्राप्त करने में सफल हुई ।

2024 के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी ने कमल के लिए मिशन 370 और अबकी बार 400 पार का नारा दिया है। अब विपक्ष को डर सता रहा है कि कहीं प्रधानमंत्री ध्यान लगाने के बाद अपना लक्ष्य प्राप्त करने मे सफल न हो जायें।

विवेकानंद रॉक मेमोरियल तमिलनाडु के कन्याकुमारी में समुद्र में स्थित एक भव्य स्मारक है यह जमीन तट से 500 दूर समुद्र में दो चट्टानों के ऊपर बना है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरकार्यवाह रहे एकनाथ रानाडे ने यह स्मारक मंदिर बनवाने में प्रमुख भूमिका निभाई। 2 सितंबर 1970 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डा. वी. वी. गिरि ने इसका उद्घाटन किया था।पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम ने भी 22 सितंबर 2006 को यहां दो घंटे तक ध्यान लगाया था।

आज विपक्षी इंडी गठबंधन ध्यान का विरोध कर रहा है।ध्यान हमारी सनातन संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है। ध्यान लगाने से शारीरिक व मानसिक विश्राम प्राप्त होता है। शरीर को एक नई ऊर्जा प्राप्त होती है और सबसे बड़ी बात यह है कि ध्यान थकान हटाने का एक बहुत बड़ा साधन है किंतु सेक्युलर ताकतों को विरोध करना है तो करना है। लेकिन जब दिल्ली के शराब घोटाले में फंसे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपश्यना करने जाते हैं तब यह दल उनका विरोध नही करते आखिर क्यों ?

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मानवीय संवेदनाओं और आनंद के स्वरों से गूंजती मेघना ‘ तरुण ‘ की रचनाएं….

मोती मिले ना मिले
समुद्र की गहराई तो नापना सीख जाओगे ।
इस जगह है ना सही और कहीं ,
परचम लहराने के काबिल हो जाओगे ,
जब संघर्षों की भट्टी में तपकर, तुम संघर्ष करना सीख जाओगे ।

खुद को मजबूर नहीं ,मजबूत साबित है करना। असफलता पग पग खड़ी
तुम प्रयासों से कभी न थकना ।
ऊंचाइयां तुम्हें नीचे गिरने के लिए नहीं
पैरों तले रखने के लिए बनी हैं ।
रस्सियां तुम्हारी गर्दन के लिए नहीं
सफलता खींच लाने के लिए बनी हैं ।

“जीवन का हवन कुंड: कोचिंग सिटी कोटा” शीर्षक से लिखी यह काव्य रचना मेघना ” तरुण” को एक चिंतनशील और समस्या का रास्ता सुझाने वाले रचनाकार की श्रेणी में ला खड़ा करती है। कोचिंग सिटी की सबसे भयावह समस्या विद्यार्थियों द्वारा विविध कारणों से अपनी जीवन लीला समाप्त कर देने के अत्यंत संवेदनशील विषय को आधार बना कर लिखी गई मानवीय पक्ष के सृजन की बानगी है।

भविष्य बनाने आए हो, यह रणभूमि है जिसके मायने समझने होंगे, असफलताओं से सामना भी होगा, तुम्हारी नादानी पिता के लिए कितनी पीड़ा दायक होगी, पिता के तप और त्याग को समझना होगा जिन्होंने तुम्हारी जवानी बनाने के लिए अपनी जवानी होम कर दी, समझना होगा कि मुमकिन कुछ नहीं है के भावों के तानेबाने को बुनकर सृजन के माध्यम से हवन कुंड से तप कर सफल हो कर निकलने की संदेश प्रधान रचना में आगे लिखती हैं….

असफलता पर उंगली उठाने वाले बहुत होंगे ।
तुम्हारी स्थितियों का क्या उन्हें भान,
जो कभी तुम्हारी परिस्थितियों से गुजरे ही नहीं।
तुम्हारे रण के क्या मायने उनके लिए ,
जो कभी रणभूमि में उतरे ही नहीं ।
थककर टूटेगी कमर इक दिन जब पिता की
तुम्हारे छूने से राहत मिल जाएगी ।
तुम्हारी अर्थी को कंधा देकर तो उनके
जीने की आस ही टूट जाएगी ।
ऐ ! चांद के टुकड़ों,आंखों के तारों , मिश्री की डोलियों , मोतियों की लड़ियों ,
रास्ते जिनके जो तय हैं
वह ना तुम्हें पता ना हमें पता ।
बस चलते रहना उस बुढ़ापे के लिए,
जिसने जवानी गला दी ,तुम्हारी जवानी के लिए ।
तुम आ जाना , मां भर लेगी आंचल में ,
तुम आ जाना राहें और भी हैं
तुम आ जाना घर तुम्हीं से रोशन है तुम आ जाना क्योंकि बस तुम हो तो सब कुछ मुमकिन है ।

दिलों को झकझोर देने वाली रचनाकार प्राय: हिंदी में और यदा-कदा राजस्थानी भाषा में गद्य और पद्य दोनों विधाओं में कविता, गीत,कहानी और उपन्यास, हास्य व्यंग्य आदि रचनाएं लिखती हैं। इनकी लेखन शैली प्रेरक,
कथात्मक,व्याख्यात्मक अथवा विवेचनात्मक और वर्णनात्मक है। लेखन में हास्य रस ,करुण रस ,वीर रस ,शांत रस, वत्सल रस और भक्ति रस साफ दिखाई देता है। लेखन का विषय मुख्यतः समसामयिक घटनाओं से प्रेरित है जिसमें अनुभव और आदर्श का वर्तमान घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक विवरण रखने का प्रयास किया गया है।

इनकी कविताएं अंतर्दृष्टि के विकास हेतु चेतना और विवेक को जागृत कर, सही गलत की निर्णय क्षमता विकसित करना और सत्य के लिए खड़े होने, गिरते हुए जीवन मूल्यों को बचाने की मुहिम का संदेश समाज को देती नज़र आती हैं। हताश और निराश जीवन की निरंतरता को बनाए रखने के लिए अपने आसपास बिखरे अदृश्य आनन्दों का आभास करने का पैगाम भी हैं कविताएं।

इनकी कविता ” सती का वियोग” उस धार्मिक प्रसंग का काव्यमय सृजन है जब पार्वती सती हो जाती है और भगवान शंकर उस वियोग में तांडव कर ब्रह्मांड को सिर पर उठा लेते हैं। सती को कंधे पर रख कर तांडव करते हैं। इस दौरान जहां – जहां सती के अंग और वस्त्र गिरते हैं वहां 51 शक्तिपीठ बन जाते हैं। रचनाकार ने सम्पूर्ण प्रसंग को बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी है इस सृजन में, देखिए बानगी…

जटा बिछन्न हो रही प्रचंड वेग था भरा,
भुजा में ले निष्प्राण दक्ष सुता, रूप विकराल हो रहा।
मही भी कांपती सी थी,अम्बर स्तब्ध था बना,
महाकाल के रोद्र वेग से ,कैलाश डोलता सा था।
चक्षु अंगार उडेलते से थे,कपोल रक्त तप्त थे, भिंची थीं दंत पंक्तियां ,भृकुटी पर शिखर बने। श्वास धोकनी बनी, नथुनों में कोप का फुलाव था,
अंतर की वेदना में निमग्न ,रुद्र कर्णविहीन थे।
श्वांसों की अग्नि ज्वाला से वसुधा भी भभक उठी,
प्रचंडता विकराल थी जल राशि भी धधक उठी।
जटा की चोट से कई ,विशाल वृक्ष नष्ट थे,
लघु दीर्घ तत्व सभी ,काल के गले मिले।
रुद्राक्ष माला टूट कर, प्रचंड वेग से गिरे ,
गिरे जहां-जहां घोर गर्त निर्मित किए।
पगों की थाप से उठे ,बवंडर विशाल थे, ‌ लिपट जिनमें प्राणी जगत ,तुंग पर घूमते थे।
भुजंग, नंदेश्वरी असंतुलित ,जटा में डोलते से थे ,
त्रिशूल के प्रहार से, धरा में पड़ी दरार थे।
डमग् डमग् डमरु का नाद कर्ण भेदी था ,
भाल विस्थापित विधु,शीतल नहीं आज तप्त था।
यह प्रेम था जो बना प्रलय ,त्रिनेत्र थे प्रतिशोध में लय,
कृपा निधान अनभिज्ञ थे तीनों लोक हो रहे क्षय।
विकराल रूप देखकर, देव-नर -प्राणी डरे,
विनीत नतमस्तक नारायण की शरण चले।सतीपति तांडव अब, विनाशकारी हो चला, करो उपाए हे! नारायण, बहुत विनाश हो चुका।क्षीर सागर के निवासी ,जगत कल्याण को उठे,
शेषनाग की शैय्या से ,कमलापति कैलाश चले।
उठा सुदर्शन चक्र ,सती की काया को खंड खंड किए ,
गिरे जहां अंग सती के इक्यावन शक्तिपीठ बने।
थमा अनर्थ ,यह क्रोध पर प्रहार था, ‌ ‌‌
कल्याणकारी ,”योगी शिव”का प्रादुर्भाव था।

प्रेमचंद ,बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, शरद चंद्र , महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, कैफ़ी आज़मी, रामधारी दिनकर, मैथिली शरण गुप्त , सियाराम शरण गुप्त आदि इनके पसंदीदा रचनाकार हैं। इनका प्रभाव भी इनकी रचनाओं पर नज़र आता है। दुनिया किस पर टिकी है…..?

इस शीर्षक से अपनी पहली कविता 1999 में 23 वर्ष की उम्र में लिखी और सृजन यात्रा निरंतर जारी है। इनके जीवन साथी तरूण मेहरा वन विभाग में सेवारत होने से इन्हें प्रकृति के अत्यधिक निकट से अनुभूत करने का अवसर प्राप्त हुआ और उन्हीं के अनुभवों को इन्होंने स्मृतियों के रूप में लिखा है साथ ही देश के विभिन्न प्राकृतिक स्थलों के यात्रा वृतांत भी लिखे हैं।

इनकी कविताओं का एक संग्रह ” पंच सोपान” नाम से राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित हुआ है। पंच सोपान की कविताओं को पांच भागों में विभक्त किया है । प्रथम सोपान “परम शक्ति” को माना है परम शक्ति में से जीव का उद्भव प्रकृति में होता है अतः” प्रकृति” द्वितीय सोपान कहा जा सकता है ।अब जीव अपने परिवर्धन के लिए नारी में संरक्षण प्राप्त करता है अतः नारी तृतीय सोपान है और नारी द्वारा जीव को कर्म करने योग्य बनाया जाता है ,” कर्म “तीसरा सोपान है और कर्म का अंतिम उद्देश्य आनंद है अतः “आनंद” जीव का अंतिम पांचवा सोपान है । इस आनंद में ही परमानंद की प्राप्ति होती है और इस प्रकार परम शक्ति से पुनः चक्र प्रारंभ होता है।

इस प्रकार पंच सोपान पुस्तक की संपूर्ण कविताओं को पांच भागों में विभक्त अवश्य किया है परंतु सभी कविताएं अपने आप में स्वतंत्र रचना है । एक साझा संकलन
“दिशाएं जिंदगी की” में भी आपकी दो कविता प्रकाशित हुई हैं। एक जीवन के विभिन्न आनन्दों से ओतप्रोत कविता है और दूसरी सैनिक के आनंद को सर्वोपरी बताती है।

गद्य लेखन में इनकी कहानियों की विषय वस्तु अधिकांश आसपास घटित छोटी-छोटी घटनाओं से प्रेरित है। जिसमें किसी मजदूर , विक्षिप्त ,नारी मन, भूख ,पारिवारिक आनंद और कहीं राजनीतिक खेल का सृजन करने की कोशिश भी की गई है । साथ ही कुरीतियों और पूर्वाग्रहों को उजागर करने का प्रयास भी है । कहानियों द्वारा समाज के अनछुए पहलुओं को सामने लाने का प्रयास किया है।

ये कहानी संग्रह की कृति पर कार्य कर रही हैं। है। जिसमें से “मेहनत का मोल” कहानी का आकाशवाणी द्वारा प्रसारण हो चुका है और “गुलमोहर का इंतजार” कहानी पुरस्कृत की जा चुकी है। “मेहनत का मोल” कहानी में एक बंगला बनाने के लिए आए हुए कुछ मजदूरों के समूह में से श्यामली मजदूरन की कहानी है जो उस बनते हुए बड़े से घर के हर कोने में स्वयं को रखकर देखती हैं । “गुलमोहर का इंतजार” मैं एक विक्षिप्त बालिका की कहानी है जो अपनी कामकाजी मां से स्नेह और परवाह हासिल नहीं कर पाती और जिसके लिए उसे कामवाली के भरोसे छोड़ दिया गया है । उसकी इस दशा का गुलमोहर के वृक्ष द्वारा अनुभव करना दर्शाया है।

ये एक उपन्यास लेखन पर भी काम कर रही हैं। उपन्यास की कहानी महिला प्रधान है। एकल जीवन यापन करती नारी संघर्षों को दर्शाती है। इस उपन्यास द्वारा महिला सशक्तिकरण को दर्शाया है । विपरीत परिस्थितियां होने पर भी नारी में इतनी क्षमता होती है कि उसे उसके कर्मों को करने से कोई नहीं रोक सकता।

वे कहती हैं यह उपन्यास कोई इसलिए पढ़े, क्योंकि उपन्यास में भारतीय नारी के परिवेश ,उसकी परवरिश , संस्कार , अंकुश का वह चित्रण है जो वास्तविक है और सदियों से चला आ रहा है तथा आज भी पर्दों के भीतर हमारे ही घरों में होता है । भीतर इसकी वास्तविकता आज भी कुंठित है । इसकी कई घटनाएं हमें अपने आसपास घटती हुई या स्वयं पर घटती हुई अनुभूत होती हैं । वर्तमान में ये कहानी संग्रह प्रकाशन की तैयारी में हैं।

परिचय :
मानवीय संवेदनाओं के साथ आनंद की प्राप्ति को लेकर लिखना जिनके लेखन का मर्म है ऐसी रचनाकार मेघना ‘तरुण ‘का जन्म 16 नवंबर 1976 को जोधपुर में पिता ओम प्रकाश मेहरा और माता प्रभा रानी मेहरा के आंगन में हुआ। आपने बी.एससी, हिंदी साहित्य में एम.ए., बी.एड.पीजी डिप्लोमा इन योग साइंस तथा कथक (भूषण, प्राचीन कला केंद्र ,चंडीगढ़ ) शिक्षा प्राप्त की। विद्यार्थी जीवन से अब तक आप काव्य मंचों पर कविता पाठ करती रही हैं। अनेक काव्य प्रतियोगिताओं में भी आपने भाग लिया।
चलते – चलते एक कविता के अंश……..
कविता तुम मेरी पहचान हो
जुड़ी हो मेरी हर धड़कन से
या मेरी आत्मा की आवाज हो
जो बहती हो प्राणों में ,रमती रक्तधारों में
ओह! मेरी कविता….
बस, मैं तुम सी और तुम मुझ सी हो ।

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लखनऊ जीपीओ द्वारा ग्राहकों के साथ बेहतर संचार के लिए दो नए नंबरों की शुरुआत

ग्राहक संचार का तात्पर्य किसी व्यवसाय या सेवा प्रदाता और उनके ग्राहकों के बीच सूचना एवं प्रतिक्रिया के आदान-प्रदान से हैं। इसमें ईमेल, फोन कॉल, मीटिंग और रिपोर्ट जैसे संचार के विभिन्न रूप शामिल हैं, और इसका उद्देशय यह सुनिश्चित करना हैं कि ग्राहक प्रदान कि गई सेवा या उत्पाद से संतुष्ट हैं।

इस संबंध में चीफ़ पोस्टमास्टर, लखनऊ जीपीओ द्वारा सूचित किया गया कि लखनऊ जीपीओ ने अपने ग्राहकों के साथ बेहतर संचार के लिए दो नए नंबर 0522-2237434 एवं 0522-2239103 की शुरुवात की हैं। जिसमे ग्राहकों को one stop solution की सुविधा प्रदान की गई है जिसके अंतर्गत ग्राहक लखनऊ जीपीओ की किसी भी शाखा में एक्सटेंशन कॉल के तहत बात कर सकते हैं एवं अपनी शिकायत कर सकते हैं। लखनऊ जीपीओ का यह कदम अपने ग्राहको के साथ बेहतर संबंध स्थापित करेगा।

इस संबंध में अवगत कराया जाता है कि ग्राहको की सभी समस्याओं को सक्रिय रूप से सुना जाएगा एवं ग्राहकों के समय का ध्यान रखते हुए सभी शिकायतों का समय से निवारण किया जाएगा।

चीफ पोस्टमास्टर

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गाँव का घर आज भी याद आता है

जिन लोगों का #गांव से #कनेक्शन रहा होगा उन लोगों के लिए यह पोस्ट है आप जरूर पढ़ें। शायद मैं गांव की उस आखिरी पीढ़ी की निशानी हूं जो आपके परदादा दादा हुआ करते थे जिस #आंगन में आपकी #किलकारी गूंजी थी जिसके ओसारा में दोचारा में आपका बचपन बीता बारिश की बूंदों को आपने कई बार सहा मैं आपका वो पुरखो वाला घर हु जो अब नहीं होने के बराबर है। कई पीढ़ियों के बच्चों के जन्म की किलकारी सोहर तो मैंने सुना ही कई डोलिया भी मेरे ही आंगन से निकली वक्त को बदलते देखा बच्चे को जवान जवान को बूढ़ा होते देखा पर मैं वहीं खड़ा था और सबको निहारता था कभी हंसता था कभी रोता था कभी गुनगुनाता था पर मेरे वजूद पर मुझे #घमंड था कि मैं हूं तो सर पर छाया है।

मेरे दीवारों में सीमेंट की जगह मिट्टी थी मेरे सर वाले छत पर कंक्रीट की जगह खप्पर बांस से प्रेम मोहब्बत बंधी हुई थी घरों में न पंखे थे न रोशनदान था फिर भी एक सुकून था खुद में घर होने का। मुझे लगता था कि जिनके लिए मैंने कई युग गुजार दी वह मुझे अंतिम समय में छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। मुझे सजाएंगे मेरे आंगन में उनके भी बच्चे जन्म लेंगे किलकारियां होंगी सोहर गाए जाएंगे बच्चों का मुंडन होगा बच्चों का विवाह होगा गाय के गोबर से अंगना लिपा जाएगा मंगल चारण होंगे। पर वक्त की मार सबसे ज्यादा मेरे ऊपर पड़ी लोग मुझे वीरान छोड़कर शहरों की तरफ चले गए जो रह गए उनको भी मैं अब किसी काम का नहीं लगता मेरे ही बगल में कंक्रीट का घर बनाकर बड़ी शान से रहते हैं ।

मैं जंगल झाड़ियों से किसी तरह अपने अंतिम सांस तक लड़ रहा हूं मैं केवल घर नहीं आपका पिता हूं माता हूं आपका पुरखों की आखिरी याद मैं आपकी मां बाप का वह आंसू हूं जो छठ में आपका इंतजार करती है कि मेरा बेटा गांव आएगा मेरे आंगन में किलकारी गुजरेगी पर बेटा को लगता है कि गांव जाने में खर्च बहुत है क्यों ना शहर में ही अपने छत पर छठ मना लिया जाए मां बेचारी रो सकती है इसके सिवा क्या कर सकती है साल दर साल इसी तरह बीतता रहा तो अगले साल ना मां होगी ना हम होंगे ना हमारा अस्तित्व होगा फिर सोचिए कौन आपकी याद में आंसू बहाएगा कौन आपको इस मतलबी दुनिया में याद करेगा हो सके तो लौट आइए अपनी विरासत की तरफ हो सके तो लौट आइए अपने गांव की तरफ छठ के ही बहाने मां के ही बहाने हमारे ही बहाने….

साभार- https://www.facebook.com/anoopnaraian.singh से

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