
रामेश्वरम में 22 तीर्थ (जलकूप/जलकुंड) का स्नान

भारतीय डाक विभाग द्वारा ‘कस्टमाइज्ड डाक टिकट’ और ‘विशेष आवरण’ जारी
‘राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान’ पर जारी डाक टिकट से इसकी लोकप्रियता का देश-विदेश में होगा और भी विस्तार-चीफ पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव
भारतीय डाक विभाग द्वारा राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान के 25वें वर्ष समारोह पर एक ‘कस्टमाइज्ड डाक टिकट’ और एक विशेष आवरण व विरूपण जारी किया गया। अहमदाबाद स्थित विज्ञान भवन, साइंस सिटी में 2 मार्च 2025 को आयोजित एक समारोह में गुजरात परिमंडल के चीफ पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने गुजरात सरकार में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्री (राज्य मंत्री) श्री जगदीश विश्वकर्मा एवं राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान के अध्यक्ष प्रो. अनिल सहस्त्रबुद्धे संग इसे जारी किया। इस अवसर पर डॉ. गुलशन राय, चेयरमैन, एनआईएफ इनक्यूबेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप काउंसिल, डॉ. अरविन्द रानाडे, निदेशक, राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान, श्री पीयूष रजक, प्रवर अधीक्षक डाकघर, गांधीनगर मंडल भी मौजूद रहे। इस समारोह में डॉ. जितेंद्र सिंह, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), भारत सरकार ने भी वर्चुअली जुड़कर अपनी शुभकामनाएँ दीं।
गुजरात सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्री (राज्य मंत्री) श्री जगदीश विश्वकर्मा ने कहा कि गुजरात राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से नई टेक्नोलॉजी को अपनाते हुए तमाम नवाचार कर रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रभाई मोदी जी के नेतृत्व में देश आज नित् नए आयाम रच रहा है। उद्योग जगत को भी इन नवोन्मेष का जमीनी स्तर पर खूब लाभ मिल रहा है। ‘आत्मनिर्भर भारत‘ एवं ‘विकसित भारत’ की संकल्पना के साथ स्किल डेवलेपमेंट, इज ऑफ़ डूइंग बिजनेस ने तमाम नए रोजगारों को जन्म दिया है। राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान के रजत जयंती समारोह पर भारतीय डाक विभाग ने डाक टिकट और विशेष आवरण जारी करके इसकी महत्त्ता को बखूबी प्रतिपादित किया है।
इस डाक टिकट के संबंध में चीफ पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि गुजरात की राजधानी गांधीनगर में ग्रामभारती,अमरापुर स्थित राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान ने अपने 25 वर्षों के सफर में सृजनात्मकता और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देते हुए नव-प्रवर्तकों को सशक्त बनाने, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति को बढ़ावा देने और भारत को ज्ञान-केंद्रित समाज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसे में इस उपलक्ष्य में जारी यह ‘कस्टमाइज्ड डाक टिकट’ और ‘विशेष आवरण’, नवाचार को प्रोत्साहित करने, सृजनशीलता के विकास को बढ़ावा देने तथा ‘आत्मनिर्भर भारत‘ एवं ‘विकसित भारत’ के लिए स्थायी व दीर्घकालिक समाधानों का समर्थन करने में इसके दूरदर्शितापूर्ण सफर को रेखांकित करता है।
चीफ पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि डाक टिकट किसी भी देश की सभ्यता, संस्कृति और विरासत के संवाहक होते हैं। समाज में नित् हो रहे विकास को डाक टिकटों के आईने में बखूबी देखा जा सकता है। राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान पर कस्टमाइज्ड डाक टिकट की 5000 शीट मुद्रित की गई हैं, जिसमें कुल 60 हजार डाक टिकटें हैं। विशेष आवरण को इन्हीं डाक टिकटों को लगाकर विरूपित किया गया है। इस डाक टिकट और विरूपण के माध्यम से राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान की लोकप्रियता देश-विदेश में और भी विस्तृत होगी।
राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान के अध्यक्ष प्रो. अनिल सहस्त्रबुद्धे ने बताया कि राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान-भारत की स्थापना 1 मार्च, 2000 को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के सहयोग से की गई ताकि प्रौद्योगिकी संबंधी नवोन्मेष और उत्कृष्ट पारंपरिक ज्ञान को जमीनी स्तर पर बढ़ावा दिया जा सके। अपनी स्थापना के बाद से यह प्रतिष्ठान जमीनी स्तर के विचारों को प्रभावी समाधानों में रूपांतरित करने में सहायक रहा है।
केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के परिसरों में चार वर्षीय शास्त्रीय पाठ्यक्रम
‘भारतीय ज्ञान परम्परा एवं अनुसंधान की दृष्टि’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी अप्रैल में
अखिल भारतीय पूर्णकालिक कार्यकर्ता अभ्यास वर्ग का शुभारंभ
भोपाल। विद्या भारती के 05 दिवसीय अखिल भारतीय पूर्णकालिक अभ्यास वर्ग के महाकुम्भ में आज विभिन्न प्रदर्शनी का सोमवार को शारदा विहार भोपाल मे उद्घाटन किया गया। उद्घाटन के अवसर पर मुख्य रूप से उपस्थित रहे श्री विश्वास कैलाश सारंग खेल एवं युवा कल्याण, सहकारिता मंत्री मध्यप्रदेश शासन, श्री दूसि रामकृष्ण राव विद्या भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष, श्री गोविंदचंद महंत विद्या भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री, श्री यतीन्द्र शर्मा, श्री श्रीराम आरावकर विद्या भारती के अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री, श्री निखिलेश महेश्वरी विद्या भारती मध्यभारत प्रांत के संगठन मंत्री व विद्या भारती के अन्य पदाधिकारी भी इस अवसर पर उपस्थित रहे।
तीन विशेष प्रदर्शनियाँ – संस्कृति, डिजिटल उपलब्धियाँ और शिशु वाटिका
संस्कृति प्रदर्शनी – लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर की 300वी जयंती के अवसर पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित है। मध्यप्रदेश की गौरव वीरांगना रानी दुर्गावती की 500वी जयंती के अवसर पर उनके शौर्य को दर्शाते हुए प्रदर्शनी है साथ ही मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक, धार्मिक व दार्शनिक धरोहरों की महत्ता को दर्शाती हुई मनमोहक प्रदर्शनी लगाई गई हैं।
डिजिटल उपलब्धियाँ प्रदर्शनी – डिजिटल प्रदर्शनी मे विद्या भारती द्वारा वर्षभर बालकों के सर्वांगीण विकास हेतु की जाने वाली गतिविधियाँ व अन्य सामाजिक सरोकार एवं शैक्षिक कार्यक्रमों की जानकारी इस प्रदर्शनी में दी गई है।
शिशु वाटिका प्रदर्शनी –विद्या भारती की शिशु शिक्षा की 12 शैक्षिक व्यवस्थाओं को प्रदर्शित किया गया, जिससे 12 शैक्षिक व्यवस्थाओं के माध्यम से शिशु को खेल-खेल में शिक्षा के माध्यम से सर्वांगीण विकास की अवधारणा को प्रदर्शित करती है।
विद्या भारती के कार्यों की सराहना –
प्रदर्शनियों के अवलोकन के पश्चात मंत्री श्री विश्वास कैलाश सारंग ने मीडिया से चर्चा करते हुए विद्या भारती के योगदान की सराहना की। उन्होंने कहा कि सरस्वती शिशु मंदिर केवल शिक्षा प्रदान करने का कार्य नहीं कर रहे, बल्कि वे संस्कार केंद्र के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने यह भी आशा व्यक्त की कि विद्या भारती का यह अखिल भारतीय पूर्णकालिक कार्यकर्ता प्रशिक्षण वर्ग नई शिक्षा नीति के प्रभावी क्रियान्वयन में अहम भूमिका निभाएगा।
प्रचार विभाग
विद्या भारती मध्यभारत
संपर्क सूत्र –
डॉ आशीष जोशी 942840000
चंद्रहंस पाठक 9425652963
यूँ शुरू हुआ था विक्रम महोत्सव ! विक्रम भारत का सोया हुआ पराक्रम था !
ये क्या हाल हो गया केजरीवाल का
एक चुनावी हार ने अरविंद केजरीवाल को कहां से कहां पहुंचा दिया! यह तमाम एकाधिकारवादी और अपने इलहाम में राजनीति करने वाले नेताओं के लिए सबक है। केजरीवाल ने पार्टी की सारी राजनीति अपने इर्द गिर्द सीमित रखा। तमाम संस्थापक और समझदार नेताओं को पार्टी से बाहर निकाल दिया। अपने करिश्मे पर राजनीति और नतीजा क्या हुआ? जैसे ही करिश्मा कम हुआ और चुनाव हारे वैसे ही अपनी ही पार्टी में स्थिति इतनी कमजोर हो गई कि अपने लिए एक राज्यसभा सीट के लिए मोलभाव करनी पड़ रही है। अरविंद केजरीवाल की ऐसी स्थिति नहीं रह गई कि कोई उनके लिए एक सीट खाली कर दे। इससे पहले दिल्ली का मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने अपनी पार्टी की महिला सांसद से सीट खाली करने को कहा था और उन्होंने मना कर दिया था। तब केजरीवाल किसी और को उनकी कानूनी सेवाओं के बदले राज्यसभा भेजना चाहते थे। लेकिन इस बार तो उनको अपने लिए राज्यसभा चाहिए थी और किसी ने इस्तीफे की पेशकश नहीं की।
जब कहीं से इस्तीफा नहीं हुआ तो अंत में मोलभाव का रास्ता निकाला गया। बताया जा रहा है कि पंजाब के राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को राज्य सरकार में मंत्री बनाने का वादा किया गया है। उनको पार्टी लुधियाना वेस्ट विधानसभा सीट पर उपचुनाव में उतार रही है। अभी उस सीट पर उपचुनाव की घोषणा नहीं हुई है लेकिन पार्टी ने अपने राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को उम्मीदवार बनाने का ऐलान कर दिया। वे विधानसभा चुनाव जीतेंगे तो मंत्री बनेंगे और उनके इस्तीफे से जो सीट खाली होगी उस पर केजरीवाल राज्यसभा जाएंगे। वे 2022 में राज्यसभा गए थे। सो, उनकी सीट का कार्यकाल 2028 तक है। सवाल है कि अगर सभी पार्टियों ने अंदरखाने तालमेल कर लिया और संजीव अरोड़ा नहीं जीत सके तो क्या होगा? इसी चिंता में अरोड़ा पहले इस्तीफा नहीं दे रहे हैं। सोचें, केजरीवाल कितने दयनीय हो गए हैं कि पहले तो किसी राज्यसभा सांसद ने पद नहीं छोड़ा और जिसने राज्य सरकार में मंत्री पद के लिए मोलभाव की वह भी विधानसभा चुनाव जीतने से पहले इस्तीफा देने को तैयार नहीं है।
जानकार सूत्रों का कहना है कि केजरीवाल के प्रतिनिधियों ने पंजाब के कारोबारी अशोक मित्तल से बातचीत की। आजकल केजरीवाल मित्तल को मिले पांच, फिरोजशाह रोड के बंगले में ही रहते हैं।
बताया जा रहा है कि मित्तल सीट खाली करने के लिए तैयार नहीं हुए। उनके राज्यसभा सांसद बनने के पीछे की कई कहानियां प्रचलित हैं लेकिन उनमें जाने की जरुरत नहीं है। आम आदमी पार्टी में उनके ‘महान’ योगदान के देखते हुए लोग सहज ही अंदाजा लगा लेते हैं कि वे कैसे राज्यसभा पहुंचे। यह भी खबर है कि केजरीवाल के नंबर दो नेता मनीष सिसोदिया ने अपने बेटे को अमेरिका में पढ़ाने के लिए करीब डेढ़ करोड़ रुपए अनसिक्योर लोन ‘दोस्तों’ से लिया है। उनमें एक ‘दोस्त’ अशोक मित्तल भी हैं, जिन्होंने 90 लाख से ज्यादा रुपए सिसोदिया को दिए हैं। बहरहाल, क्रिकेटर हरभजन सिंह से भी इस्तीफा कराने की बात हुई थी लेकिन वे भी पकड़ में नहीं आए। आम आदमी पार्टी के चुनाव रणनीतिकार संदीप पाठक या किसी और की सीट खाली कराने का प्रयास किया जा सकता था लेकिन केजरीवाल नया स्वाति मालीवाल बनाना नहीं चाहते हैं।
दरगाह की डेग से चर्च की वाइन तक में दिखती है ‘सेवा’, पर नजर नहीं आता संतों-मंदिरों का परोपकार
हिंदुओं के सारे धार्मिक संगठन बिना लोगों की जाति-धर्म-पंथ-वर्ग देखे परोपकार करते हैं। वह गरीब का पेट भरने के लिए उसके दरवाजे पर आने का इंतजार नहीं करते, या अपनी रसोइयाँ दिखाकर प्रचार नहीं करते। वह इलाज का लालच देकर लोगों का धर्मांतरण नहीं कराते, बेघरों को आश्रय देने के लिए उनका धर्म नहीं जाँचते, शिक्षा के नाम केवल शिक्षा देते हैं, अपना कोई मिशन पूरा नहीं करते।
दरगाह की बड़ी डेग में बनने वाले ‘मीठे राइस’ और चर्च में दी जाने वाली ‘लाल वाइन’ तो सोशल मीडिया पर अक्सर लोगों का ध्यान खींचते हैं लेकिन क्या कभी आपको इन जगहों पर मंदिर में बँटने वाले भंडारों के बारे में सुनने को मिलता है? अगर हाँ, तो क्या आप इन भंडारों के महत्व को समझ पाते हैं या आपके लिए ‘भूखे का पेट’ भरने का मतलब केवल ‘फीड द हंग्री’ को समझने तक ही सीमित है? पूरी बात का मतलब क्या है, ये नीचे आपको पढ़ने पर समझ आता जाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था- “साथियों, आज कल नेताओं का एक दल ऐसा है, जो धर्म का मजाक उड़ाने में और लोगों को तोड़ने में लगा है। वे हिंदुओं की आस्था से नफरत करने वाले लोग हैं। ये हमारी मान्यताओं, संस्कृति और मंदिरों पर हमला करते हैं और हमारे पर्व और परंपराओं को गाली देते हैं…हमारे मंदिर पूजा के केंद्र होने के साथ ही सामाजिक चेतना के भी केंद्र रहे हैं। हमारे ऋषियों ने आयुर्वेद और योग का विज्ञान दिया… दूसरों की सेवा करना और दूसरों के दुख दूर करना ही धर्म है।”
इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नें पंडित धीरेंद्र शास्त्री को ‘मेरा छोटा भाई’ बताते हुए कहा ता- “मेरे छोटे भाई धीरेंद्र शास्त्री लोगों को जागरूक करते रहते हैं। एकता का मंत्र भी देते हैं। अब उन्होंने एक और संकल्प लिया है- इस कैंसर हॉस्पिटल के निर्माण की जिम्मेदारी। यानी अब बागेश्वर धाम में भजन, भोजन और निरोगी जीवन तीनों का आर्शीवाद मिलेगा। इस कार्य के लिए मैं धीरेंद्र शास्त्री का अभिनंदन करता हूँ।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस शुभ अवसर पर पहुँचने से पूरे देश की नजर बागेश्वर धाम में खुले कैंसर अस्पताल पर गई। मीडिया में हर जगह इसकी चर्चा हुई। बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री जिन्हें सोशल मीडिया पर ‘कट्टर धार्मिक नेता’ के तौर पर पेश किया जाता है, उनकी इस पहल को हर समुदाय ने सराहा… लेकिन ऐसा नहीं है कि पंडित धीरेंद्र शास्त्री या किसी हिंदू संस्थान द्वारा समाज की भलाई के लिए सोचा गया कोई पहला कार्य है।
कई दशकों से हिंदू संस्थान लोगों के स्वास्थ, शिक्षा और उनकी बुनियादी जरूरतें पूरा करने की दिशा में काम करते आए हैं, मगर कभी उन्हें वो नाम और सम्मान नहीं मिला जितने के वो हकदार थे। खुद बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री लंबे समय से गरीब परिवार की बेटियों की शादी कराते रहे, लेकिन उनके इस कार्य की चर्चा आज जाकर हो रही है जब वहाँ राष्ट्रपति मुर्मू मौजूद हैं, जिनकी नजर में ये कार्य पुण्य का है, न कि कोई प्रोपगेंडा।
बागेश्वर धाम की तरह तमाम धार्मिक स्थल हैं और पंडित धीरेंद्र शास्त्री जैसे कई संत समाज के लोग, जो समय-समय पर संबल होने पर समाज के लिए ऐसे परोपकारी कदम उठाते आए हैं। उदाहरण तमाम हैं, लेकिन यहाँ चर्चा कुछ चंद की करते हैं…
आपने पटना के महावीर मंदिर के बारे में सुना होगा। 1730 में बना महावीर मंदिर, न जाने कितने सालों से रोजाना 3000-4000 लोगों का पेट भरता है। मंदिर की ओर से राम-रसोई, सीता रसोई चलाई जाती है जो हर श्रद्धालु का पेट भरने के लिए 10-10 तरीके के व्यंजन बनाती है। इसके अलावा इस मंदिर से तीन अस्पतालों के मरीजों के लिए भी तीनों समय का भोजन निशुल्क जाता है।
इसी तरह गोरखनाथ मंदिर। यहाँ के महंत स्वयं यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ हैं। इस मंदिर द्वारा गोरखनाथ चिकित्सालय विभिन्न प्रकार की चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करता है, जिसमें सामान्य OPD (आउट पेशेंट डिपार्टमेंट), पैथोलॉजी, ब्लड बैंक, डायलिसिस विभाग और विभिन्न विशेषज्ञताओं जैसे हृदय रोग, चर्म रोग, बाल रोग, मानसिक रोग आदि शामिल हैं। यहाँ पर मरीजों को मात्र 30 रुपए की फीस पर इलाज किया जाता है, जो इसे आर्थिक रूप से सुलभ बनाता है।
इसके बाद मुंबई का सिद्धि विनायक मंदिर। इस मंदिर का ट्रस्ट केवल धार्मिक गतिविधियों को नहीं देखता बल्कि सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय है। सिद्धि विनायक मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित फ्री कैंसर चिकित्सालय का उद्देश्य उन मरीजों को चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करना है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। यहाँ केवल मरीजों को उच्च गुणवत्ता की चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होतीं बल्कि यहाँ पर विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम काम करती है जो नवीनतम तकनीकों और उपचार विधियों का उपयोग करती है। इनका एक डायलिसिस केंद्र भी है उन रोगियों के लिए आवश्यक सेवाएँ प्रदान करता है जिन्हें किडनी संबंधी समस्याओं के कारण नियमित डायलिसिस की आवश्यकता होती है।
धार्मिक संगठन होते हुए सामाजिक कार्यों के लिए बढ़-चढ़कर योगदान देने वाली संस्थाओं में एक नाम इस्कॉन का भी है। इस्कॉन में न केवल जरूरतमंदों के लिए भोजन वितरण कार्यक्रम चलाया जाता है, बल्कि इस्कॉन द्वारा समय-समय मेडिकल कैंप, आयुर्वेदिक उपचार, स्वास्थ्य जाँच आदि भी कराई जाती है। शिक्षा के क्षेत्र में भी ये संगठन बढ़-चढ़कर भागीदारी दिखाता है। युवाओं को नैतिकता और जीवन के उद्देश्यों के बारे में बताता है।
कोविड काल में भी हिंदू मंदिरों ने आगे आ आकर जरूरतमंदों की सहायता की थी और सरकार का काम आसान करने का पूरा प्रयास किया था। महावीर मंदिर से मुफ्त में कोविड संक्रमितों के लिए ऑक्सीजन देने का काम शुरू हुआ था। मुंबई के जैन मंदिर ने अपने मंदिर को ही कोविड सेंटर में परिवर्तित करवा दिया था। महाराष्ट्र के संत गजानन मंदिर में 500-500 बेड के आइसोलेशन सेंटर बनाए गए थे। वाराणसी के काशी मंदिर ने मुफ्त में लोगों को दवाएँ वितरित की थीं। इस्कॉन मंदिर ने गर्भवती, बुजु्र्ग और बच्चों के लिए फ्री में खाने घर तक पहुँचाने की व्यवस्था की थी। इंदौर के राधास्वामी सत्संग व्यास को कोविड के समय में दूसरा सबसे बड़ा कोविड सेंटर बनाकर ऱखा गया था।
आर्थिक सहायता की बात करें तो इसमें भी हिंदू मंदिर कभी पीछे नहीं रहे। सोमनाथ मंदिर और गुजरात के अंबाजी मंदिर ने कोविड काल से निपटने के लिए 1-1 करोड़ रुपए सीएम राहत कोष में दिए थे। सिद्धिविनायक मंदिर ने कोरोना काल के वक्त महाराष्ट्र सरकार को 10 करोड़ की मदद की थी। शिरडी साई बाबा मंदिर ने भी मुख्य राहत कोष में 51 करोड़ रुपए देने का निर्णय लिया था। इसी तरह गोरखनाथ पीठ और उससे संबंधित कुछ संस्थाओं और महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् ने ‘पीएम केयर फंड’ एवं ‘मुख्यमंत्री राहत कोष’ में अब तक 51,00000 रुपए का योगदान भी दिया।
इसके अलावा बाहरी देशों में स्थित हिंदू मंदिरों ने भी संकट के काल में न केवल अपने देश के लोगों की सहायता की बल्कि भारत की मदद करने के लिए भी आगे आए। थाईलैंड के बैंकॉक में हिंदू समाज मंदिर ने भारत को कोरोनावायरस की दूसरी लहर से लड़ने में मदद करने के लिए समर्थन जुटाया। जॉर्जिया के ब्लूमिंगडेल में श्री राधेश्याम मंदिर सहित अमेरिका में कई हिंदू मंदिरों ने अहमदाबाद, भारत में एसजीवीपी होलिस्टिक अस्पताल को चिकित्सा सहायता के लिए सीधे धन जुटाया। लंदन में BAPS स्वामीनारायण मंदिर ने भी भारत के लिए 8 लाख 30 हजार डॉलर की की धनराशि जुटाई।
दिलचस्प बात ये हैं कि हिंदू मंदिरों, संगठनों, संस्थाओं ने ये सारे काम बिना किसी गुप्त उद्देश्य के किए। उन्होंने कभी कोई प्रलोभन देकर या अपना प्रचार करके ये नहीं दिखाया कि वो जगत में कल्याण के लिए क्या-क्या कर रहे हैं। बागेश्वर धाम में बना कैंसर अस्पताल बस एक और बड़ा उदाहरण है जो हिंदू संतों के उन प्रयासों को उजागर करता है जिन्हें वामपंथी हमेशा से दबाने की कोशिश करते रहे।
उन्हें हमेशा अगर परोपकार दिखा तो ईसाई मिशनरियों के कार्य में। उन्होंने मदर टेरेसा को ‘मसीह’ बता बताकर प्रमोट किया बिना ये देखे कि जिन्होंने भोपाल त्रासदी का समर्थन किया हो, इमरजेंसी में सुख खोजा हो, जिनकी शुरू की गई संस्था में लड़कियों के शोषण के मामले दर्ज होते रहे, वो- मसीह कैसे हो सकता है।
बड़ी चालाकी से वामपंथियों ने टेरेसा को ‘मदर’ की उपाधि दे दी, लेकिन साध्वी ऋतम्भरा की छवि कट्टर हिंदू से ऊपर नहीं उठने दी। वामपंथियों ने कभी साध्वी ऋतम्भरा जैसी सनातनी महिलाओं के बारे में दुनिया को ये बताना जरूरी नहीं समझा कि वह कैसे- वात्सल्य ग्राम के जरिए अनाथ बच्चों एवं परित्यक्त महिलाओं को आवास, भोजन, स्वास्थ्य एवं शिक्षा का प्रबन्ध करवाती हैं।
वामपंथियों ने आगे बढ़ाया पादरी बिजेंद्र जैसे लोगों का नाम जो खुलेआम लोगों को लालच देकर धर्मांतरित होने के लिए आकर्षित करते हैं और छवि बिगाड़ने की कोशिश की अनिरुद्ध आचार्य महाराज जैसे लोगों की, जो गौरी गोपाल आश्रम में वृद्धों के लिए आश्रम चलाते हैं, रोजाना न जाने कितनों को भोजन कराते हैं।
आज खोजेंगे तो ऐसे तमाम उदाहरण मिल जाएँगे, लेकिन पहले ऐसा संभव नहीं था। पहले हिंदू धर्म की बात करने वाला और प्रचार-प्रसार करने वाला कट्टर धर्मनेता की गिनती में आता था और जाकिर नाइक जैसे लोग समाज में शांति का संदेश देने वाले माने जाते थे।
आज स्थिति बदली है तो मालूम होना चाहिए कि हिंदुओं के सारे धार्मिक संगठन बिना लोगों की जाति-धर्म-पंथ-वर्ग देखे ये परोपकार करते हैं। वह गरीब का पेट भरने के लिए उसके दरवाजे पर आने का इंतजार नहीं करते, या अपनी रसोइयाँ दिखाकर प्रचार नहीं करते। वह इलाज का लालच देकर लोगों का धर्मांतरण नहीं कराते, बेघरों को आश्रय देने के लिए उनका धर्म नहीं जाँचते, शिक्षा के नाम केवल शिक्षा देते हैं, अपना कोई मिशन पूरा नहीं करते।
समाज की दिशा तय करता है सार्थक सिनेमा: कृष्णा गौर
सेज विश्वविध्यालय में हुआ “ग्वालियर शोर्ट फिल्म फेस्टिवल 2025” के पोस्टर का विमोचन
भोपाल. आज समाज की दिशा एवं दशा को निर्धारित करने के लिए सार्थक एवं उद्देश्यपूर्ण सिनेमा की अत्यंत आवश्यकता है, औऱ यह कार्य युवाओं के द्वारा ही सम्पन्न किया जा सकता है, इस दिशा में ग्वालियर शार्ट फ़िल्म फेस्टिवल का मंच देश के युवाओं के लिए एक अच्छा अवसर साबित होगा, जहां वह अपनी रचनात्मकता को एक सार्थक स्वरूप दे सकेंगे। उक्त बातें आज सेज विश्वविध्यालय में “ग्वालियर शोर्ट फिल्म फेस्टिवल 2025” के पोस्टर विमोचन कार्यक्रम में आज म.प्र. शासन माननीय पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री श्रीमती कृष्णा गौर ने कहीं.
इस अवसर सतपुड़ा चल चित्र समिति के अध्यक्ष लाजपत आहूजा और सेज विवि के प्रो वीसी डॉ नीरज उपमन्यु भी उपस्थित रहे। ज्ञात हो की सतपुड़ा चलचित्र समिति और विश्व संवाद केंद्र, मध्यप्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में 8-9 मार्च को ग्वालियर में ‘ग्वालियर शार्ट फ़िल्म फेस्टिवल 2025’ का आयोजन किया जा रहा है। इस हेतु प्रदेश भर के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में फेस्टिवल के पोस्टर का विमोचन किया जा रहा है। इसी तारतम्य में गुरुवार 27 फरवरी को सेज यूनिवर्सिटी, भोपाल में पोस्टर विमोचन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
इस अवसर पर सतपुडा चलचित्र समिति के अध्यक्ष श्री लाजपत आहूजा ने कहा कि इसमें प्रदेश के फिल्मकारों को अवसर मिलेगा। उनकी श्रेष्ठ फिल्मों को पुरस्कृत भी किया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि फेस्टिवल में फ़िल्म विधा से जुड़े विशेषज्ञ फ़िल्म निर्माण में रुचि रखने वालों से संवाद भी करेंगे। इस अवसर पर सेज विवि के प्रो वीसी डॉ नीरज उपमन्यु ने कहा कि ये हमारे विवि के छात्रों के लिए एक अवसर है, विशेषतौर पर फ़िल्म स्टडीज, विसुअल आर्ट के विद्यार्थियों के लिए। उन्होंने माननीय मंत्री जी एवं सतपुड़ा चलचित्र समिति के प्रति आभार व्यक्त किया। वही कार्यक्रम संचालन अभिलाष ठाकुर ने किया।
इन विषयों पर फिल्में आमंत्रित हैं: ग्वालियर फ़िल्म फेस्टिवल में चार कैटेगरी में फिल्में आमंत्रित हैं- शॉर्ट फिल्म, डॉक्यूमेंट्री, कैंपस फिल्म एवं रील्स कैटेगरी। फेस्टिवल के विषय महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, जनजाति समाज, ग्रामीण विकास, सामाजिक सद्भावना, भारतीय संस्कृति, हमारी धरोहर एवं लोकल सक्सेस स्टोरी पर आधारित है। फिल्म की अवधि भी निर्धारित की गई है, जिसमें शॉर्ट फिल्म 15 मिनट, डॉक्यूमेंट्री अधिकतम 25 मिनट और रील्स के लिए 1 मिनट की हो।
मिलेंगे एक लाख के पुरस्कार : फ़िल्म फेस्टिवल में विभिन्न श्रेणी में पुरस्कृत श्रेष्ठ फिल्मों को कुल एक लाख रुपये के पुरस्कार प्रदान किये जायेंगे। उल्लेखनीय है कि सतपुड़ा चलचित्र समिति भारतीय चित्र साधना से संबद्ध है। भारतीय चित्र साधना 2 वर्षों में एक बार राष्ट्रीय स्तर का फिल्म फेस्टिवल आयोजित करता है। इसी तारतम्य में प्रान्त स्तरीय फ़िल्म फेस्टिवल का आयोजन इस वर्ष ग्वालियर में किया जा रहा है।
श्री सुरेश प्रभुः भारतीय राजनीति का एक सौम्य, शालीन और अंतर्राष्ट्रीय चेहरा
हम जब किसी राजनेता के बारे में सोचते हैं तो एक छवि सामने आती है, टीवी पर बहस करने वाला, सड़क पर गाड़ियों के काफिलों के साथ सायरन बजाती हुई गाड़ियों के कारवाँ में जाने वाला या किसी ऐसे विषय पर कुछ भी बोलने वाला जिसकी उसे न तो समझ है न जानकारी। लेकिन भारतीय राजनीति में सुरेश प्रभु जैसा एक ऐसा राजनेता भी है, जो देस के विकास से जुड़े किसी भी मुद्दे पर एक सार्थक, सटीक व गंभीर विचार रखते हैं। वे देश और दुनिया के कई मंचों पर जाते हैं और आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, बुनियादी ढाँचे से लेकर राष्ट्र के विकास से जुड़े हर मुद्दे पर साधिकार बोलते हैं। उनको सुनना किसी के लिए भी रोमांचक और प्रेरक हो सकता है। सुरेश प्रभु जब किसी मंच से किसी भी विषय पर बोलते हैं तो उनको सुनने वालों में किसी देश के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, राजदूत, वहाँ के मंत्री ही नहीं होते बल्कि दुनिया के जाने-माने उद्योगपति, कारोबारी और सामाजिक क्षेत्रों में काम करने वाले लोग भी होते हैं। वो किसी भी मंच पर किसी भी विषय पर बोलें, वे अपने भाषण में गागर में सागर भरते हुए उस विषय को इतने रोचक ढंग से प्रस्तुत करते हैं कि उस विषय के जानकार और विशेषज्ञ तक हैरान रह जाते हैं।
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केंद्र में ऊर्जा मंत्री, रेल मंत्री, नागरिक उड्डयन मंच्री औरवाणिज्य मंत्री के रूप में उन्होंने किस तरह बुनियादी ढाँचों में बदलाव कर सशक्त व समर्थ भारत का मार्ग प्रशस्त किया इसके उदाहरण आज देखने को मिल रहे हैं। मीडिया और प्रचार-प्रसार से दूर सुरेश प्रभु आज भी लाखों उद्योगपतियों, व्यापारियों से लेकर इन्नोवेशन करने वाले नए उद्यमियों के साथ ही आम लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने हुए हैं। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्री सुरेश प्रभु इतने सहज-सरल हैं कि वे चाहे किसी उद्यगपति से मिलें या किसी जाने-अनजाने आम आदमी से, वे पूरी आत्मीयता और अहोभाव से मिलते हैं। एक बार जिससे मिल लें तो उसे शायद ही भूलते हैं।
श्री सुरेश प्रभु के वक्तव्य और साक्षात्कार दुनिया भर के पत्र-पत्रिकाओँ में निरंतर प्रकाशित होते रहते हैं, उनका एक यादगार साक्षात्कार जो https://indianinfrastructure.com/ में दो वर्ष पूर्व प्रकाशित हुआ था उसे हम अपने पाठकों के लिए हिंदी में प्रकाशित कर रहे हैं। उनके इस साक्षात्कार से पता चलता है कि देश के विकास को लेकर उनकी दृष्टि कितनी व्यापक और तथ्यात्मक है।
“भारत का भविष्य महान और अविश्वसनीय है” लगभग तीन दशकों तक सांसद रहे, सुरेश प्रभु भारत की विकास गाथा का एक अभिन्न अंग रहे हैं। उन्होंने नीति परिदृश्य, विशेषकर बुनियादी ढांचा नीति को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई सुधार पहलों का श्रेय भी उन्हें जाता है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री के रूप में, उन्होंने महत्वपूर्ण कानून, विशेष रूप से विद्युत अधिनियम, 2003 को आगे बढ़ाया। रेल मंत्री के रूप में, उन्होंने विश्वस्तरीय यात्री अनुभव बनाने के उद्देश्य से रेल बुनियादी ढांचे के विकास को तेजी से आगे बढ़ाया। विमानन मंत्रालय में, उन्होंने उड़ान, एमआरओ और राष्ट्रीय एयर कार्गो नीति जैसी महत्वपूर्ण नीतियों के कार्यान्वयन का नेतृत्व किया। इंडियन इन्फ्रास्ट्रक्चर की विशेष वर्षगांठ के अंक के लिए इस फ्री-व्हीलिंग साक्षात्कार में, प्रभु पिछले ढाई दशकों में बुनियादी ढांचा क्षेत्र की यात्रा और अगले 25 वर्षों में होने वाले बदलावों पर नज़र डालते हैं। श्री सुरेश प्रभु से लिए गए साक्षात्कार के प्रमुख अंश।
प्रश्नः पीछे मुड़कर देखें तो आप पिछले 25 वर्षों में भारत में बुनियादी ढांचे के विकास का आकलन कैसे करेंगे और आपको लगता है कि कौन से क्षेत्र ऐसे हैं जहां अच्छा प्रदर्शन नहीं हुआ है?
सुरेश प्रभुः सबसे पहले मैं भारतीय इंफ्रास्ट्रक्चर को 25 साल पूरे करने के लिए बधाई देना चाहूंगा। वास्तव में, प्रकाशन की यात्रा ने एक तरह से पिछले कुछ वर्षों में बुनियादी ढांचे के क्षेत्र की नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मैं यह विश्वास के साथ कह सकता हूं क्योंकि मैं पिछले 27 वर्षों से संसद में हूं और मैंने आपके विकास के साथ-साथ भारत की बुनियादी ढांचे की यात्रा में आपके योगदान को बहुत करीब से देखा है। आपकी पत्रिका ने बुनियादी ढांचा क्षेत्र के समुदाय के साथ विश्वसनीय बातचीत की सुविधा प्रदान की है।
बुनियादी ढांचे में बहुत व्यापक स्पेक्ट्रम शामिल है। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सड़क, रेलवे आदि सभी इसके दायरे में आते हैं। यह किसी भी देश के विकास का आधार है। लगभग दो दशक पहले, हमने महसूस किया कि भारत में बुनियादी ढांचे की बहुत बड़ी कमी है जिसे बड़ी मात्रा में भौतिक और सामाजिक बुनियादी ढांचे के निर्माण से दूर किया जा सकता है, लेकिन हमारे पास इसके लिए पर्याप्त संसाधनों की कमी है। जनता द्वारा दिए जाने वाले करों का अधिकांश उपयोग वेतन, व्यय और रक्षा जैसे विभिन्न पूर्व-निर्धारित व्ययों के लिए किया जा रहा था। और इस प्रकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी बनाने का विचार आया।
“मेरा मानना है कि निजी क्षेत्र के लिए भागीदारी करने का एक बड़ा अवसर है। और इसके लिए नीति स्थिरता अनिवार्य है। विनियामकों को स्वतंत्र बनाना भी बहुत महत्वपूर्ण है।”
भारत में, ऐसे अनोखे प्रयोग हुए हैं, जहाँ निजी धन का उपयोग करके सार्वजनिक अवसंरचना का निर्माण किया गया है। लेकिन निजी निवेश प्रतिफल चाहते हैं। सार्वजनिक निवेशों के विपरीत, जहाँ प्रतिफल की गणना सामाजिक लाभों के आधार पर की जाती है, निजी निवेश में शुद्ध वित्तीय प्रतिफल शामिल होता है, जिसमें इक्विटी धारक और प्रमोटर दोनों ही किए गए निवेश के लिए पर्याप्त रूप से पुरस्कृत होना चाहते हैं।
और इस प्रकार एक ओर अंतिम उपयोगकर्ताओं (जो प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष करों का भुगतान कर रहे हैं और सार्वजनिक भलाई की मांग कर रहे हैं) और दूसरी ओर निजी निवेशकों की अपेक्षाओं के बीच संतुलन बनाने की सबसे बड़ी चुनौती सामने आती है। मुझे याद है कि जब हम विद्युत क्षेत्र की इस दुविधा को सुलझाने का प्रयास कर रहे थे (और एक बार फिर, मैं आपको बधाई देना चाहूंगा क्योंकि आप पावर लाइन के प्रकाशक भी हैं, जो इस उद्योग की सर्वाधिक सम्मानित पत्रिकाओं में से एक है), तो हमने विद्युत अधिनियम, 2003 की परिकल्पना की, जिसने निजी निवेश के लिए व्यापक नीतिगत समर्थन प्रदान किया और आज स्थापित क्षमता का आधे से अधिक हिस्सा निजी क्षेत्र से आ रहा है।
विमानन एक और सफलता की कहानी है, जिसमें निजीकरण ने बढ़ती मांग को पूरा करने में मदद की है। भारत से लगभग एक हज़ार नए विमानों के ऑर्डर दिए गए हैं, और दोनों ही विमान निजी हैं। एक इंडिगो है और दूसरी हाल ही में निजीकृत एयर इंडिया है।
हालांकि, रेलवे क्षेत्र के कई सामाजिक दायित्व हैं – नेटवर्क लाभ के लिए नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था को एक आवश्यक सेवा प्रदान करने के लिए संचालित होता है, जो आपातकाल के दौरान माल और लोगों के परिवहन को सुनिश्चित करता है। जब मैंने रेल मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला, तो इस क्षेत्र में कम निवेश सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक था। निवेश का केवल एक ही स्रोत था, वित्त मंत्रालय द्वारा निधि आवंटन। हमारी योजना नई रेल लाइनें बिछाने, मौजूदा रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण करने और अत्याधुनिक यात्री सुविधाएं विकसित करने की थी। गोदामों, नए टर्मिनलों आदि की स्थापना करके माल परिवहन के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण को भी प्राथमिकता दी जा रही थी। इन्हें प्राप्त करने के लिए, केवल बजटीय आवंटन पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं था, और हमने अपने स्वयं के संसाधन जुटाने का फैसला किया, जैसे कि जीवन बीमा निगम से 1.5 ट्रिलियन रुपये का ऋण।
इस प्रकार, बुनियादी ढांचे के निर्माण पर पूंजीगत व्यय का समर्थन करने के लिए सार्वजनिक वित्त में सुधार की आवश्यकता है। जिस देश का सार्वजनिक वित्त अच्छी स्थिति में नहीं है, उसका भविष्य अंधकारमय है क्योंकि वहां हमेशा बुनियादी ढांचे की कमी या भारी सार्वजनिक ऋण बोझ की चुनौती रहेगी।
निजी क्षेत्र को शामिल करना एक उचित समाधान की तरह लग सकता है। संभवतः, निजी क्षेत्र बुनियादी ढांचे को बेहतर ढंग से संचालित करेगा, लेकिन कोई यह कैसे सुनिश्चित कर सकता है कि अंतिम उपयोगकर्ता को धोखा न दिया जाए? यहां, स्वतंत्र नियामकों की भूमिका और उनकी कार्यप्रणाली सर्वोपरि हो जाती है।
वास्तव में, यह कुछ ऐसा है जिस पर मुझे विश्वास है कि आने वाले वर्षों में हमें ध्यान देने की आवश्यकता होगी। हम स्वतंत्र और प्रबुद्ध नियामक कैसे बना सकते हैं, जो परिचालन दक्षता को प्रोत्साहित करेंगे और सरकार और निजी क्षेत्र दोनों के हितों के बारे में सोचेंगे। दक्षता महत्वपूर्ण होगी, लेकिन बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित (और पुरस्कृत) करने की भी आवश्यकता होगी।
भविष्य को देखते हुए, अगले दशक में आपको क्या अवसर दिख रहे हैं?
सुरेश प्रभुः मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि भारत का भविष्य बहुत बढ़िया और अविश्वसनीय है; इसका दोहन करने के लिए बुनियादी ढांचे की अहमियत सबसे ज़्यादा होगी। और बुनियादी ढांचे की संभावनाओं का दोहन करने के लिए निजी क्षेत्र महत्वपूर्ण है।
मेरा मानना है कि निजी क्षेत्र के लिए भागीदारी करने का एक बड़ा अवसर है। और इसके लिए, जैसा कि मैंने पहले ही उल्लेख किया है, नीति स्थिरता अनिवार्य है। नियामकों को स्वतंत्र बनाना भी बहुत महत्वपूर्ण है। साथ ही, निजी क्षेत्र को मध्यम से दीर्घकालिक दृष्टिकोण के साथ आना चाहिए और निवेश को तुरंत वापस पाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
इस बीच, बुनियादी ढांचे में प्रौद्योगिकी और डिजिटलीकरण की बढ़ती भूमिका भविष्य के लिए बड़ी उम्मीदें रखती है। सब कुछ डिजिटल हो रहा है – भविष्य डिजिटल बुनियादी ढांचे के निर्माण में निहित है, जो न केवल व्यवसायों को लाभ पहुंचाएगा बल्कि अंतिम उपयोगकर्ता अनुभव को भी बेहतर बनाएगा।
आपको क्या लगता है कि सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए?
सुरेश प्रभुः सरकार की प्रमुख पहलों में से एक पीएम गति शक्ति मास्टर प्लान की शुरुआत है। जब मैं वाणिज्य और उद्योग मंत्री था, तो प्रधानमंत्री ने लॉजिस्टिक्स पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मंत्रालय के भीतर एक नया विभाग बनाया था।
“सरकार को उद्यमशीलता को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित करना चाहिए। सरकार के भीतर भी अधिक उद्यमशीलता की भावना पैदा करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। ऐसा करने का एक तरीका सही नीतिगत ढांचा प्रदान करना और नए निवेश को प्रोत्साहित करना और प्रोत्साहित करना है। यह देश में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए एक गेम चेंजर हो सकता है।”
“बुनियादी ढांचे में प्रौद्योगिकी और डिजिटलीकरण की बढ़ती भूमिका भविष्य के लिए बड़ी उम्मीदें रखती है। भविष्य डिजिटल बुनियादी ढांचे के निर्माण में निहित है, जो न केवल व्यवसायों को लाभ पहुंचाएगा बल्कि अंतिम उपयोगकर्ता अनुभव को भी बेहतर बनाएगा।”