Wednesday, January 15, 2025
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उत्कल अनुज हिन्दी पुस्तकालय में हिन्दी कवितापाठ आयोजित

भुवनेश्वर। काफी लंबे अंतराल के बाद स्थानीय उत्कल अनुज हिन्दी पुस्तकालय में हिन्दी कवितापाठ आयोजित हुआ। अध्यक्षता रामकिशोर शर्मा ने की।कार्यक्रम का सफल संचालन आशु हास्य-विनोद कवि किशन खण्डेलवाल ने की।आयोजन की आरंभिक जानकारी देते हुए अशोक पाण्डेय ने नये साल में वैचारिक एकता बनाये रखने के लिए विचार-विनिमय संस्कृति को अपनाने की सलाह  दी जो उनके अनुसार कैलासपति भगवान भोलेनाथ-परिवार से ग्रहण की जा सकती है।

इस अवसर पर नालको के अवकाशप्राप्त सीएमडी डॉ एस के तमोतिया और उनकी पत्नी रानी तमोतिया का स्वागत करतल ध्वनियों के साथ किया गया। अवसर पर मोरारीलाल लढानिया, गोपालकृष्ण, समिता कानुनगो, आशीष विद्यार्थी, विनोद कुमार,विक्रमादित्य सिंह, रामकिशोर शर्मा,किशन खण्डेलवाल, शालीन अग्रवाल,रानी तमोतिया और सुधीर कुमार सुमन आदि ने अपनी-अपनी हिन्दी कविताओं का पाठ किया। सुभाष चन्द्र भुरा ने सभी को अपनी ओर से तथा उत्कल अनुज हिन्दी पुस्तकालय-परिवार की ओर से नव वर्षः2025 की अपनी शुभ कामनाएं दी तथा आगत सभी के प्रति हार्दिक आभार जताया।
समारोह की अध्यक्षता कर रहे रामकिशोर शर्मा ने कहा कि आज का आयोजित कविता पाठ सचमुच प्रेरणादयक रहा जिसके लिए सभी साधुवाद के हकदार हैं।ऐसा ही आयोजन भविष्य में भी हो।अंत में, सभी ने मुख्य संरक्षक की ओर से आयोजित अल्पाहार लिया।अवसर पर अनेक गणमान्य महिला-पुरुष श्रोतागण उपस्थित थे।

वर्ष 2024 के लिए शिवना प्रकाशन के प्रतिष्ठित सम्मानों की घोषणा

‘अंतर्राष्ट्रीय शिवना सम्मान’ संयुक्त रूप से प्रभात रंजन तथा मनीष वैद्य को, ‘शिवना कृति सम्मान’ प्रवीण कक्कड़ को
भोपाल/ सीहोर। शिवना प्रकाशन द्वारा दिए जाने वाले प्रतिष्ठित सम्मानों की घोषणा कर दी गयी है। शिवना प्रकाशन के ऑनलाइन आयोजन में वर्ष 2024 के लिए यह सम्मान दिये जाने की घोषणा की गयी है।

शिवना सम्मानों के लिए बनायी गयी चयन समिति के संयोजक, पत्रकार तथा लेखक आकाश माथुर ने जानकारी देते हुए बताया कि शिवना प्रकाशन द्वारा दो सम्मान प्रदान किये जाते हैं- एक ‘अंतर्राष्ट्रीय शिवना सम्मान’ जो वर्ष भर में सभी प्रकाशनों द्वारा प्रकाशित साहित्य की सभी विधाओं की पुस्तकों में से निर्णायकों द्वारा चयनित एक पुस्तक को प्रदान किया जाता है तथा दूसरा ‘शिवना कृति सम्मान’ जो वर्ष भर में शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में गुणवत्ता तथा विक्रय के सम्मिलित आधार पर एक पुस्तक को प्रदान किया जाता है।

वर्ष 2024 के लिए इन सम्मानों की घोषणा कथाकार, उपन्यासकार पंकज सुबीर ने ऑनलाइन की। ‘अंतर्राष्ट्रीय शिवना सम्मान’ राजपाल एंड संस प्रकाशन से प्रकाशित उपन्यास ‘क़िस्साग्राम’ के लिए प्रभात रंजन तथा सेतु प्रकाशन से प्रकाशित कहानी संग्रह ‘वांग छी’ के लिए मनीष वैद्य को संयुक्त रूप से प्रदान किया जायेगा। ‘शिवना कृति सम्मान’ अकादमिक पुस्तक ‘दण्ड से न्याय तक’ के लिए लेखक प्रवीण कक्कड़ को प्रदान किया जायेगा। निर्णायक मंडल में अमेरिका निवासी वरिष्ठ लेखक सुधा ओम ढींगरा तथा राष्ट्रपति स्वर्ण कमल सम्मान से सम्मानित लेखक यतीन्द्र मिश्र शामिल थे। आकाश माथुर ने बताया कि शीघ्र ही एक गरिमामय सम्मान समारोह में इन सम्मानित रचनाकारों तथा पूर्व में घोषित नवलेखन पुरस्कार के लेखकों रश्मि कुलश्रेष्ठ तथा शुभ्रा ओझा को सम्मान राशि, शॉल, तथा स्मृति चिह्न प्रदान कर यह सम्मान प्रदान किये जायेंगे।

आकाश माथुर
चयन समिति संयोजक
शिवना सम्मान
मोबाइल – 7000373096
व्हाट्सएप – 8817222209

शहरयार
संचालक – शिवना प्रकाशन
मोबाइल – 9806162184

स्वतंत्रता संग्राम और राजस्थान पर्यटन पुस्तकों का विमोचन

कोटा/  वैश्विक संस्था हिंदी साहित्य भारती के मदर टेरेसा स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में हिंदी साहित्य भारती के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व शिक्षा मंत्री उत्तर प्रदेश रविन्द्र शुक्ल ने डॉ. प्रभात कुमार सिंघल और डॉ. शशि जैन द्वारा संयुक्त रूप से लिखित पुस्तक ” धरोहरों की धरती राजस्थान का पर्यटन सफर ”  का विमोचन किया। इस अवसर पर  साहित्यकार योगेंद्र शर्मा की पुस्तक ” भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की भूली बिसरी यादें” का विमोचन भी किया गया। भारती के अन्य पदाधिकारी रजनीश भारतीय, योगेंद्र शर्मा, जगदीश सोनी,सीताराम मीणा ,आचार्य परमानंद काठिया, विशिष्ठ अतिथि जितेंद्र निर्मोही, रामेश्वर शर्मा ‘ रामू भैया ‘, डॉ. शशि जैन, महेश पंचोली भी उपस्थित रहें।
पुस्तक पर जानकारी देते हुए समीक्षक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने बताया कि पुस्तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की भूली बिसरी यादें मुख्य रूप से  भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के अचर्चित रहे सेनानियों पर केंद्रित है। इस दृष्टि से लेखक ने अनूठा प्रयास किया है। राजस्थान के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रसंगों के साथ केसरी सिंह बारहट के योगदान को बताया गया है। अन्य विषयों में हरिवंश राय बच्चन, पूर्व प्रधान मंत्री स्व. अटल बिहार वाजपेयी के योगदान और हाड़ोती की संस्कृति को दर्शाया गया है। उन्होंने धरोहरों की धरती राजस्थान का पर्यटन सफर की जानकारी देते हुए बताया कि यह पुस्तक राजस्थान पर्यटन के क्षेत्र में एक सम्पूर्ण गाइड है और पर्यटन की दृष्टि से उपयोगी है।
विमोचन अवसर पर साहित्यकार , कृष्णा कुमारी, डॉ. वैदेही गौतम, श्यामा शर्मा, डॉ. हिमानी भाटिया, गरिमा राकेश गौतम, रेणु राधे , राजेंद्र कुमार जैन, एडवोकेट अख्तर खान अकेला, पत्रकार के. डी .अब्बासी सहित  हिंदी साहित्य भारती के अनेक गणमान्य सदस्य मौजूद रहे।
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राज्य स्तरीय होली बाल लेखन प्रतियोगिता

कोटा/ बाल लेखन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से होली पर्व के उपलक्ष्य में ‘राज्य स्तरीय होली बाल कविता प्रतियोगिता’ का आयोजन किया जा रहा है। इसके लिए राजस्थान के रचनाकार होली के विभिन्न पहलुओं पर हिंदी भाषा में अपनी बाल कविता व्हाट्सअप संख्या (९४१३३५०२४२) पर १५ फरवरी तक भेज सकते हैं।
संयोजक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल के अनुसार यह आयोजन समरस संस्थान साहित्य सृजन भारत, गुजरात की कोटा इकाई और संस्कृति, साहित्य, मीडिया फोरम (कोटा) के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है। कविता अप्रकाशित और स्वरचित होनी आवश्यक है। चयनित प्रविष्टियों को पुरस्कृत कर संकलन प्रकाशित किया जाएगा, ताकि अधिक से अधिक बच्चों के हाथों में पहुंचे।

कैलिफोर्निया की भयावह आग में हॉलीवुड के नामी सितारों के करोड़ों के आशियाने खाक में मिल गए

अमेरिका के कैलिफोर्निया के जंगलों में लगी आग अब लॉस एंजिल्स तक पहुँच गई है। खबर आ रही है कि इन आग की लपटों में कई हॉलीवुड सितारों के घर समेत 2000 इमारतें जलकर बिलकुल खाक हो गई हैं और कुल 28 हजार घर इस आग के कारण प्रभावित हुए हैं। 5 लोगों की मौत के बीच इस भयावह स्थिति को नियंत्रित करने के लिए 1,30,000 लोगों को तुरंत घर खाली करने को कहा गया है और 3 लाख लोगों को सुरक्षित जगह जाने के निर्देश दिए गए हैं। सोशल मीडिया पर भी तस्वीरें सामने आ रही है जिसमें चारों तरफ आग ही आग दिख रही है। बताया जा रहा है कि जंगल से फैलना शुरू हुई आग अभी तक अलग-अलग क्षेत्रों में फैल गई है। इस भीषण आग की चपेट में 28 हजार एकड़ इलाका पूरी तरह से जल गया है।

अमेरिका में जो तूफ़ान पिछले दिनों आया उसकी हवाएं अमेरिका के पश्चिमी तट के बड़े और सूखे इलाके में जंगल में लगी आग को भड़काती चली गईं. हवा में उड़ते अंगारों ने एक के बाद एक हज़ारों घरों को अपनी चपेट में ले लिया. आग ने 42 वर्ग किलोमीटर इलाके को जलाकर राख कर दिया है।
आग की इन तस्वीरों को देखकर लगता है कि जैसे किसी युद्ध ग्रस्त इलाके से गुज़र रहे हों, जहां दुश्मन ने हर घर में आग लगा दी हो. लॉस एंजिलिस के Pacific Palisades इलाके में कोई मकान ऐसा नहीं बचा जो जला न हो. सिर्फ़ जला ही नहीं है बल्कि ऐसा जला है कि घर में कुछ दीवारों के अलावा कुछ नहीं बचा. यहां के अधिकतर घरों में लकड़ी का इस्तेमाल होता है इसलिए आग में वो धूधू कर जलते चले गए. उसके बाद एक तड़क भड़क भरा शहर जहां हर वक़्त रौनक रहती है वहां ऐसी मुर्दानगी सी छा गई. यहां के लोगों को यकीन ही नहीं हो रहा कि उनके आसपास आग ने एक ही दिन में ऐसी बर्बादी कर दी है कई लोगों के पास इसके लिए शब्द ही नहीं हैं.
इस आग में अब तक हज़ारों एकड़ भूमि जल चुकी है, बड़ी संख्या में घर ध्वस्त हुए हैं और अग्निशमनकर्मी इन लपटों पर क़ाबू पाने और फिर से आग लगने की घटनाओं को रोकने में जुटे हुए हैं.

यूएन प्रवक्ता स्तेफ़ान दुजैरिक ने गुरूवार को एक वक्तव्य जारी करते हुए बताया कि यूएन प्रमुख, जंगलों में लगी आग के तेज़ी से फैलने, उससे हुई व्यापक पैमाने पर हुई बर्बादी से स्तब्ध और दुखी हैं.

उन्होंने पीड़ितों के परिजन के प्रति अपनी शोक सम्वेदना व्यक्त की है और विस्थापित हुए लोगों के साथ एकजुटता जताई है. इनमें से अनेक लोग अपने घर खो चुके हैं.

इस दावानल में अब तक पाँच लोगों के मारे जाने की ख़बर है. एक हज़ार से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं और सैकड़ों इमारतें बर्बाद हो गई हैं.

अमेरिका में मौसमी पूर्वानुमान लगाने वाली कम्पनी ‘एक्यूवैदर’ के अनुसार, इस आपदा में 50 अरब डॉलर से अधिक का नुक़सान होने की आशंका है.

स्थानीय अधिकारियों ने इसे अभूतपूर्व, ख़तरनाक पैमाने पर फैली आग बताया है, जिसे नियंत्रण में लाने के लिए साढ़े सात हज़ार से अधिक अग्निशमन कर्मचारी प्रयासरत हैं.

शुष्क पौधे, वनस्पति, लकड़ी और तूफ़ान की रफ़्तार से चलने वाली हवाओं से इन आग की लपटों ने गहन रूप धारण कर लिया गया. आग लगने की छह अलग-अलग घटनाओं में क़रीब चार पर क़ाबू पाना सम्भव नहीं हो सका.

ज़रूरी संसाधनों की क़िल्लत और प्रभावित इलाक़ों तक पहुँचने के रास्ते में कठिनाई की वजह से इन लपटों को बुझाने में देरी हुई है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वनों में आग लगने की घटनाओं और उनसे होने वाले असर में कमी लाने के लिए रोकथाम रणनीति अपनाए जाने पर बल दिया. इनमें जंगलों में झाड़ियों की नियमित रूप से सफ़ाई करने, अग्निशमन टीम के लिए जल आपूर्ति मुहैया कराने और आग की लपटों पर क़ाबू पाने की क्षमता का परीक्षण करने समेत अन्य उपाय हैं.

रिपोर्ट्स के अनुसार, कैलिफोर्निया के जंगलों में 3 आग लगी है। इन्हें पैलिसेड्स, हर्स्ट और ईटन फायर का नाम दिया गया है। पैलिसेड्स फायर पैलिसेड्स ड्राइव के दक्षिण-पूर्व से शुरू हुई थी, जो 17,234 एकड़ इलाके को प्रभावित कर चुकी है। वहीं ईटन फायर लॉस एंजिल्स के उत्तर में फैले जंगलों में एक घाटी के पास लगी थी, जिसके कारण 10,600 एकड़ इलाका जल चुका है। हर्स्ट फायर सैन फर्नांडो के उत्तर में एक उपनगरीय इलाके में लगी थी और ये अब तक अपनी चपेट में 855 एकड़ इलाके को ले चुका है। खबरें अभी भी यही बता रही हैं कि आग पर काबू नहीं पाया जा सका है जिसके कारण कैलिफोर्निया के गवर्नर ने वहाँ आपातकाल की घोषणा कर दी है।

कैलिफोर्निया के जंगलों में लगी आग के पीछे का कारण सूखी लकड़ियाँ, बारिश में कमी और तेज रफ्तार में चल रही हवाओं को बताया जा रहा है। अक्टूबर में यहाँ बहुत ही कम मात्रा में बारिश हुई थी जिसकी वजह से लकड़ियाँ सूखती गईं। 6 जनवरी को डब जंगली इलाकों में पेड़ों के जलने की शुरुआत हुई तो ये आग देखते ही देखते फैल गई। कुछ ही घंटों में हजारों एकड़ के इलाके को अपनी चपेट में ले लिया।

भीषण आग के कारण शहरों में तबाही मची हुई है। केवल आम लोग ही नहीं हॉलीवुड स्टार्स तक अपना घर छोड़ने पर मजबूर हैं। अब तक सामने आई खबरों के मुताबिक कई हॉलीवुड स्टार्स

कई एक्टर्स ने ये नजारा देख रोते हुए अपनी भावना व्यक्त की। एक्टर जेम्स वुड्स जहाँ आंसू पोंछते हुए दिखे, वहीं क्रिस्टल ने इसे पूरी तरह टूटने वाला कहा। एक्टर्स ने कहा कि उन्हें इस आग के कारण अपना वो घर छोड़ना पड़ा जहाँ उनके बच्चे बड़े हुए। इसी प्रकार पेरिस हिल्टन ने भी मालिबु में लगी आग को देखने के बाद अपना दुख जताया।

लॉस एंजिल्स तक फैली आग के कारण बॉलीवुड अभिनेत्री नोरा फतेही को भी दिक्कत हुई। उन्हें आग के कारण समय से पहले उनका होटल छोड़ने को कहा गया, जिसके बाद उन्होंने अपने इंस्टा पर वीडियो शेयर की। उन्होंने कहा,  “मैं LA में हूँ और जंगल में लगी आग बहुत भयानक है। मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा। यह सच में भयानक है। हमें पाँच मिनट पहले ही यहाँ से निकलने का आदेश मिला है। इसलिए मैंने जल्दी से अपना सारा सामान पैक किया और मैं यहाँ से निकल रही हूँ। मैं एयरपोर्ट जाऊँगी और वहाँ आराम करूँगी क्योंकि आज मेरी फ्लाइट है और मुझे उम्मीद है कि मैं इसे पकड़ पाऊँ, वो कैंसिल न हो। ये सब बहुत ज्यादा डरावना है। मुझे उम्मीद है लोग सुरक्षित होंगे। इतना डरावना मैंने पहले कुछ नहीं देखा।”

बता दें कि कैलिफोर्निया के जंगल में आग पहली बार नहीं लगी। पिछले 50 सालों में कैलिफोर्निया में 78 बार आग लग चुकी है। चूँकि इन जंगलों के पास रिहायशी इलाके ज्यादा हैं इसलिए इस आग से होने वाला नुकसान बहुत ज्यादा होता है। बताया जाता है कि 1933 में लॉस एंजिलिस के ग्रिफिथ पार्क में लगी आग कैलिफोर्निया की सबसे भयावह आग थी। तब, लगभग 83 हजार एकड़ इलाके को चपेट में लिया था और 3 लाख से ज्यादा लोगों को दूसरे शहरों में जाना पड़ा था।

सर्वोच्च न्यायालय को 25 साल लगे ये पता लगाने में कि आरोपी नाबालिग है

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे शख्स को रिहा किया है जो लगभग 25 वर्ष से ही जेल में बंद था। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि जब उसने अपराध किया था तब वह नाबालिग था और जिला अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक उसके नाबालिग होने की बात को पहले नहीं स्वीकार किया गया। उसे पहले मौत की सजा मिली थी लेकिन राष्ट्रपति ने इसे उम्रकैद में बदल दिया था। अब उसकी उम्र को लेकर सच्चाई पता चलने के बाद उसे आजादी मिली है। वहीं उत्तर प्रदेश में पुलिस ने एक ऐसे शख्स को ढूँढा है, जिसकी हत्या के आरोप में 4 लोग जेल भी काट चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (8 जनवरी, 2025) को ओम प्रकाश नाम के शख्स को लगभग 25 वर्ष की जेल के बाद रिहा किया है। ओम प्रकाश को 1994 में उसके मालिक और परिवार की हत्या करने के दोष में यह जेल की सजा हुई थी। ओम प्रकाश को 2001 में पुलिस ने पकड़ा था। उसने बताया था कि 2001 में वह 20 वर्ष का था। इस मामले में निचली अदालत ने उसे बालिग़ के तौर पर सजा दी थी। निचली अदालत ने उसे फांसी की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने भी उसकी सजा बरकरार रखी। हालाँकि, ओमप्रकाश ने दावा किया कि वह नाबालिग था।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी सजा बरकरार रखी और नाबालिग वाले दावे को नहीं माना। उसकी पुनर्विचार याचिका भी ठुकराई गई। यहीं यह मामला नहीं रुका। ओम प्रकाश ने इसके बाद इस मामले में राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर की। यहाँ भी उसकी याचिका ठुकरा दी गई। जब उसने दूसरी बार राष्ट्रपति को यह याचिका दी तो उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया और कहा कि जब तक वह 60 साल का नहीं हो जाता, तब तक उसे रिहा नहीं किया जाएगा।

ओमप्रकाश थक हार कर फिर नाबालिग वाला दावा लेकर सुप्रीम कोर्ट के पास पहुँचा लेकिन इस बार उसका कोर्ट ने उसका केस लेने से ही इनकार कर दिया। खुद के नाबालिग होने का 2019 में उसने फिर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन फिर याचिका ख़ारिज कर दी गई। इसी दौरान उसकी हड्डियों का एक टेस्ट किया गया जिसमें साफ़ हुआ कि घटना के समय वह लगभग 14 वर्ष का रहा होगा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में उसे 7 जनवरी, 2025 को रिहा करने का आदेश दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “यह एक ऐसा मामला है जिसमें व्यक्ति कोर्ट गई गलती के कारण पीड़ित है। हमें बताया गया है कि जेल में उसका आचरण सामान्य रहा है, उसके खिलाफ कोई रिपोर्ट नहीं है। उसने समाज में फिर से घुलने-मिलने का अवसर खो दिया। उसने जो समय खोया है, वह उसकी किसी गलती के बिना कभी वापस नहीं आ सकता।” 2001 में पकड़े जाने और सजा दिए जाने के बाद ओम प्रकाश ने 7-8 बार अलग-अलग कोर्ट के सामने खुद के नाबालिग होने का दावा किया, लेकिन सिस्टम की गलती के चलते उसे 25 वर्ष बाद न्याय मिला।

जिसे पुलिस ने पकड़ा उसकी हत्या में 4 लोगों पर मुकदमा चल रहा है

सिस्टम की विफलता से नुकसान सिर्फ ओम प्रकाश को ही नहीं हुआ बल्कि बिहार में भी 4 लोग इसका शिकार हुए। बिहार के एक शख्स को हाल ही में उत्तर प्रदेश पुलिस ने झाँसी में रात को पेट्रोलिंग के दौरान देखा। पुलिस की पूछताछ में पता चला कि यह शख्स नथुनी पाल बिहार के देवरिया का रहने वाला है और वह बीते डेढ़ दशक से उत्तर प्रदेश में अलग-अलग जगह रह रहा है। जब पुलिस ने स्थानीय थाने से जानकारी ली तो पता चला कि जिस शख्स को उन्होंने ढूँढा है, उसके मर्डर के लिए बिहार में 4 लोगों पर मुकदमा चल रहा है।

यह मुकदमा नथुनी पाल के चाचा और तीन चचेरे भाइयों के खिलाफ ही दर्ज करवाया गया था। मुकदमा नथुनी पाल के मामा ने दर्ज करवाया था। इस मामले में चारों लोग 8 माह की जेल भी काट चुके हैं। अभी वह जमानत पर बाहर हैं। अब इस खबर के बाद उन्होंने हत्या का दाग धुलने पर ख़ुशी जताई है। वहीं दोनों जगह की पुलिस अब मामले को लेकर आगे कार्रवाई में जुटी है।

साभार-  https://hindi.opindia.com/ से

तीन नदियों के संगम और आध्यात्मिक धरोहर का केंद्र छत्तीसगढ़ का सांकरदाहरा

रायपुर । छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगांव विकासखंड में स्थित प्रसिद्ध सांकरदाहरा, आज न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल बन चुका है, बल्कि इसे छत्तीसगढ़ का दूसरा राजिम भी कहा जाने लगा है। शिवनाथ, डालाकस और कुर्रूनाला नदियों के संगम पर स्थित यह स्थान, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के कारण श्रद्धालुओं और पर्यटकों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।

सांकरदाहरा में शिवनाथ नदी के संगम के साथ डालाकस और कुर्रू नाला नदियां मिलती हैं। यहां नदी तीन धाराओं में बंट जाती है और फिर सांकरदाहरा के नीचे आपस में मिलती हैं। इस संगम पर स्थित मंदिर और नदी तट पर बनी भगवान शंकर की 32 फीट ऊंची विशालकाय मूर्ति हर आने वाले को मंत्रमुग्ध कर देती है। मंदिर का रमणीय दृश्य और नौका विहार की सुविधा इस स्थल को और भी खास बनाती है।

सांकरदाहरा में हर वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर तीन दिवसीय भव्य मेला लगता है। यहां न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपने पूर्वजों की अस्थि विसर्जन, मुण्डन और पिंडदान के लिए आते हैं। सांकरदाहरा के मंदिर परिसर में अनेक देवी-देवताओं के मंदिर हैं। नदी के बीचों-बीच शिवलिंग की स्थापना सांकरदाहरा विकास समिति द्वारा की गई है। इसके अलावा सातबहिनी महामाया देवी, अन्नपूर्णा देवी, संकट मोचन भगवान, मां भक्त कर्मा, मां शाकंभरी देवी, राधाकृष्ण, भगवान बुद्ध, दुर्गा माता और अन्य देवी-देवताओं के मंदिर श्रद्धालुओं के आस्था के केंद्र हैं। इन मंदिरों को ग्राम देवरी के ग्रामीणों के सहयोग से स्थापित किया गया है।

सांकरदाहरा के नामकरण के पीछे कई लोक कथाएं प्रचलित हैं। मान्यता है कि नदी के मध्य स्थित गुफा में शतबहनी देवी का निवास है। यह गुफा दो चट्टानों के बीच स्थित दाहरा (गहरा जलभराव) में है। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में लोहे के सांकर (लोहे का सामान) का बार-बार अदृश्य होना और चट्टान के पास पुनः प्रकट होना, इस स्थान के नामकरण का आधार बना।

यह स्थान कई अद्भुत घटनाओं का भी साक्षी है। वर्ष 1950 की एक घटना आज भी जनमानस के बीच प्रचलित है। कहा जाता है कि बरसात के मौसम में लकड़ी इकट्ठा करने गई एक गर्भवती महिला बाढ़ में फंस गई। उसे शतबहनी देवी का स्मरण करने का सुझाव दिया गया, और देवी की कृपा से वह सुरक्षित बच निकली। उस महिला ने बाद में एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम संकरु रखा गया। इस घटना ने इस स्थान की आध्यात्मिक महिमा को और भी बढ़ा दिया।

शासन द्वारा सांकरदाहरा में विकास कार्यों पर विशेष ध्यान दिया गया है। यहां धार्मिक आयोजन के लिए दो बड़े भवनों का निर्माण किया गया है। यहां एनीकट के निर्माण से हमेशा जलभराव रहता है, जिससे मुण्डन और पिंडदान जैसे धार्मिक अनुष्ठानों के लिए सुविधाएं बेहतर हुई हैं। पूजन सामग्री और अन्य दुकानों के संचालन से स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल रहा है।

सांकरदाहरा न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि आसपास के राज्यों के लोगों के लिए भी एक प्रमुख आध्यात्मिक और पर्यटन स्थल बन चुका है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिक महत्व और लोक कथाएं इसे अद्वितीय बनाती हैं। यह स्थान न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करने का माध्यम भी है।

वर्ष 2025 के हिन्दी गौरव अलंकरण के लिए नीरजा माधव व शिव कुमार विवेक चयनित

23 फ़रवरी को इन्दौर में आयोजित समारोह में होंगे अलंकृत
इंदौर । हिन्दी भाषा के विस्तार और प्रसार के लिए मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा वर्ष 2025 का हिन्दी गौरव अलंकरण सुप्रसिद्ध साहित्यकार नीरजा माधव (सारनाथ) और वरिष्ठ पत्रकार शिव कुमार विवेक  (भोपाल) को प्रदान किया जाएगा। यह समारोह 23 फ़रवरी को इंदौर में आयोजित होगा एवं इसमें विभूतियों को अलंकृत किया जाएगा।
संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने बताया कि ‘अलंकरण का यह छठवाँ वर्ष है। संस्थान द्वारा प्रतिवर्ष दो हिन्दी साधकों को ‘हिन्दी गौरव अलंकरण’ से विभूषित किया जाता है। चयन समिति द्वारा चयनित वर्ष 2025 के लिए डॉ. नीरजा माधव व शिवकुमार विवेक के हिन्दी के प्रति समग्र अवदान को रेखांकित करते हुए हिन्दी गौरव अलंकरण प्रदान किया जाएगा।’
सुप्रसिद्ध साहित्यकार, अनेक विधाओं में सिद्धहस्त लेखन करने वाली डॉ. नीरजा माधव प्रमुख रूप से अपने अनछुए राष्ट्रीय, अन्तरराष्ट्रीय मुद्दों पर कथा-लेखन के लिए पूरे देश एवं विदेश में चर्चित हैं। आप देश की सबसे पहली लेखिका हैं जिन्होंने तिब्बती शरणार्थियों, उनकी अहिंसक मुक्ति साधना तथा भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर कई किताबें लिखी हैं। डॉ. नीरजा माधव ने 13 उपन्यास, 12 कहानी संग्रह, 6 कविता संग्रह एवं 15 अन्य विधाओं में कुल 46 किताबों का लेखन किया है।
ख़्यात पत्रकार व मीडिया शिक्षक शिव कुमार विवेक जी वर्तमान में मीडिया शिक्षक व दैनिक अख़बार के सलाहकार सम्पादक हैं। आप 38 वर्षों से हिन्दी पत्रकारिता कर रहे हैं।
संस्थान द्वारा वर्ष 2020 में पद्मश्री अभय छजलानी एवं वरिष्ठ कवि राजकुमार कुम्भज को, वर्ष 2021 में वरिष्ठ साहित्यकार कैलाश चंद्र पंत व साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे को, वर्ष 2022 में कहानीकार डॉ. कृष्णा अग्निहोत्री व वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण कुमार अष्ठाना को एवं वर्ष 2023 में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. भगवती लाल राजपुरोहित व सुप्रसिद्ध मीडिया शिक्षक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी को अलंकृत किया जा चुका है।

कुम्भ मेले का आध्यात्मिक व धार्मिक ही नहीं आर्थिक महत्व भी है

हिंदू सनातन संस्कृति के अनुसार कुंभ मेला एक धार्मिक महाआयोजन है जो 12 वर्षों के दौरान चार बार मनाया जाता है। कुंभ मेले का भौगोलिक स्थान भारत में चार स्थानों पर फैला हुआ है और मेला स्थल चार पवित्र नदियों पर स्थित चार तीर्थस्थलों में से एक के बीच घूमता रहता है, यथा, (1) हरिद्वार, उत्तराखंड में, गंगा के तट पर; (2) मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर; (3) नासिक, महाराष्ट्र में गोदावरी के तट पर; एवं (4) उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती के संगम पर।

प्रत्येक स्थल का उत्सव, सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की ज्योतिषीय स्थितियों के एक अलग सेट पर आधारित है। उत्सव ठीक उसी समय होता है जब ये स्थितियां पूरी तरह से व्याप्त होती हैं, क्योंकि इसे हिंदू धर्म में सबसे पवित्र समय माना जाता है। कुंभ मेला एक ऐसा आयोजन है जो आंतरिक रूप से खगोल विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्मिकता, अनुष्ठानिक परंपराओं और सामाजिक-सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं के विज्ञान को समाहित करता है, जिससे यह ज्ञान में बेहद समृद्ध हो जाता है।

कुम्भ मूल शब्द कुम्भक (अमृत का पवित्र घड़ा) से आया है। ऋग्वेद में कुम्भ और उससे जुड़े स्नान अष्ठान का उल्लेख है। इसमें इस अवधि के दौरान संगम में स्नान करने से लाभ, नकारात्मक प्रभावों के उन्मूलन तथा मन और आत्मा के कायाकल्प की बात कही गई है। अथर्ववेद और यजुर्वेद में भी कुम्भ के लिए प्रार्थना लिखी गई है। इसमें बताया गया है कि कैसे देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन से निकले अमृत के पवित्र घड़े (कुम्भ) को लेकर युद्ध हुआ। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर कुम्भ को लालची राक्षसों के चंगुल से छुड़ाया था। जब वह इस स्वर्ग की ओर लेकर भागे तो अमृत की कुछ बूंदे चार पवित्र स्थलों पर गिरीं जिन्हें हम आज हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज के नाम से जानते हैं। इन्हीं चार स्थलों पर प्रत्येक तीन वर्ष पर बारी बारी से कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है।

कुम्भ मेला दुनिया में कहीं भी होने वाला सबसे बड़ा सार्वजनिक समागम और आस्था का सामूहिक आयोजन है। लगभग 45 दिनों तक चलने वाले इस मेले में करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना और रहस्यमयी सरस्वती के पवित्र संगम पर स्नान करने के लिए आते हैं। मुख्य रूप से इस समागन में तपस्वी, संत, साधु, साध्वियां, कल्पवासी और सभी क्षेत्रों के तीर्थयात्री शामिल होते हैं।

कुंभ मेले में सभी धर्मों के लोग आते हैं, जिनमें साधु और नागा साधु शामिल हैं, जो साधना करते हैं और आध्यात्मिक अनुशासन के कठोर मार्ग का अनुसरण करते हैं, संन्यासी जो अपना एकांतवास छोड़कर केवल कुंभ मेले के दौरान ही सभ्यता का भ्रमण करने आते हैं, अध्यात्म के साधक और हिंदू धर्म का पालन करने वाले आम लोग भी शामिल हैं।

कुंभ मेले के दौरान अनेक समारोह आयोजित होते हैं; हाथी, घोड़े और रथों पर अखाड़ों का पारंपरिक जुलूस, जिसे ‘पेशवाई’ कहा जाता है, ‘शाही स्नान’ के दौरान चमचमाती तलवारें और नागा साधुओं की रस्में, तथा अनेक अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां, जो लाखों तीर्थयात्रियों को कुंभ मेले में भाग लेने के लिए आकर्षित करती हैं।

महाकुंभ मेला 2025 प्रयागराज में 13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक आयोजित होने जा रहा है। यह एक हिंदू त्यौहार है, जो मानवता का एक स्थान पर एकत्र होना भी है। 2019 में प्रयागराज में अर्ध कुंभ मेले में दुनिया भर से 15 करोड़ पर्यटक आए थे। यह संख्या 100 देशों की संयुक्त आबादी से भी अधिक है। यह वास्तव में यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में सूचीबद्ध है।

कुंभ मेला कई शताब्दियों से मनाया जाता है। प्रयागराज कुंभ मेले का सबसे पहला उल्लेख वर्ष 1600 ई. में मिलता है और अन्य स्थानों पर, कुंभ मेला 14वीं शताब्दी की शुरुआत में आयोजित किया गया था। कुंभ मेला बेहद पवित्र और धार्मिक मेला है और भारत के साधुओं और संतों के लिए विशेष महत्व रखता है। वे वास्तव में पवित्र नदी के जल में स्नान करने वाले पहले व्यक्ति होते हैं। अन्य लोग इन साधुओं के शाही स्नान के बाद ही नदी में स्नान कर सकते हैं। वे अखाड़ों से संबंधित हैं और कुंभ मेले के दौरान बड़ी संख्या में आते हैं। घाटों की ओर जाते समय जब वे भजन, प्रार्थना और मंत्र गाते हैं, तो उनका जुलूस देखने लायक होता है।

कुंभ मेला प्रयागराज 2025 पौष पूर्णिमा के दिन शुरू होता है, जो 13 जनवरी 2025 को है और 26 फरवरी 2025 को समाप्त होगा। यह पर्यटकों के लिए भी जीवन में एक बार आने वाला अनुभव है। टेंट और कैंप में रहना आपको एक गर्मजोशी भरा एहसास देता है और रात में तारों से भरे आसमान को देखना अपने आप में एक अलग ही अनुभव है। कुंभ मेले में सत्संग, प्रार्थना, आध्यात्मिक व्याख्यान, लंगर भोजन का आनंद सभी उठा सकते हैं। महाकुंभ मेला 2025 में गंगा नदी में पवित्र स्नान, नागा साधु और उनके अखाड़े से मिलें। बेशक, यह कुंभ मेले का नंबर एक आकर्षण है। कुंभ मेले के दौरान अन्य आकर्षण प्रयागराज में घूमने लायक जगहें हैं जैसे संगम, हनुमान मंदिर, प्रयागराज किला, अक्षयवट और कई अन्य। वाराणसी भी प्रयागराज के करीब है और हर पर्यटक के यात्रा कार्यक्रम में वाराणसी जाना भी शामिल है।

महाकुम्भ 2025 में आयोजित होने वाले कुछ मुख्य स्नान पर्व निम्न प्रकार हैं –

मुख्य स्नान पर्व  13.01.2025
मकर संक्रान्ति  14.01.2025
मौनी अमावस्या  29.01.2025
बसंत पंचमी  03.02.2025
माघी पूर्णिमा  12.02.2025
महाशिवरात्रि  26.02.2025

प्रयागराज का अपना एक एतिहासिक महत्व रहा है। 600 ईसा पूर्व में एक राज्य था और वर्तमान प्रयागराज जिला भी इस राज्य का एक हिस्सा था। उस राज्य को वत्स के नाम से जाना जाता था और उसकी राजधानी कौशाम्बी थी, जिसके अवशेष आज भी प्रयागराज के दक्षिण पश्चिम में स्थित है। गौतम बुद्ध ने भी अपनी तीन यात्राओं से इस शहर को सम्मानित किया था। इसके बाद, यह क्षेत्र मौर्य शासन के अधीन आ गया और कौशाम्बी को सम्राट अशोक के एक प्रांत का मुख्यालय बनाया गया। उनके निर्देश पर कौशाम्बी में दो अखंड स्तम्भ बनाए गए जिनमें से एक को बाद में प्रयागराज में स्थानांतरित कर दिया गया। प्रयागराज राजनीति और शिक्षा का केंद्र रहा है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय को पूरब का ऑक्सफोर्ड कहा जाता था। इस शहर ने देश को तीन प्रधानमंत्रियों सहित कई राजनौतिक हस्तियां दी हैं। यह शहर साहित्य और कला के केंद्र के साथ साथ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का भी केंद्र रहा है।

प्रयागराज में आयोजित हो रहे महाकुम्भ का आध्यात्मिक महत्व तो है ही, साथ ही, आज के परिप्रेक्ष्य में इस महाकुम्भ का आर्थिक महत्व भी है। प्रत्येक 3 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होने वाले कुम्भ के मेले में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु ईश्वर की पूजा अर्चना हेतु प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक एवं उज्जैन में पहुंचते हैं। प्रयग्राज में आयोजित तो रहे महाकुम्भ की 44 दिनों की इस इस पूरी अवधि में प्रतिदिन एक करोड़ श्रद्धालुओं के भारत एवं अन्य देशों से प्रयागराज पहुंचने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है, इस प्रकार, कुल मिलाकर लगभग 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालुगण उक्त 44 दिनों की अवधि में प्रयागराज पहुंचेंगे।

करोड़ों की संख्या में पहुंचने वाले इन श्रद्धालुगणों द्वारा इन तीर्थस्थलों पर अच्छी खासी मात्रा में खर्च भी किये जाने की सम्भावना है। जिससे विशेष रूप से स्थानीय अर्थव्यवस्था को तो बल मिलेगा ही, साथ ही करोड़ों की संख्या में देश में रोजगार के नए अवसर भी निर्मित होंगे एवं होटल उद्योग, यातायात उद्योग, पर्यटन से जुड़े व्यवसाय, स्थानीय स्तर के छोटे छोटे उद्योग एवं विभिन्न उत्पादों के क्षेत्र में कार्य कर रहे व्यापारियों के व्यवसाय में भी अतुलनीय वृद्धि होगी। इस प्रकार, देश की अर्थव्यवस्था को भी, महाकुम्भ मेले के आयोजन से बल मिलने की भरपूर सम्भावना है।

(केंद्र सरकार एवं उत्तरप्रदेश सरकार की महाकुम्भ मेले से सम्बंधित वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी का उपयोग इस लेख में किया गया है।)

प्रहलाद सबनानी
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009

मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

प्रिय ग्लप: बंगला कहानियों का हिंदी अनुवाद

कोटा की साहित्यकार डॉ. अपर्णा पांडेय द्वारा अनुवाद कृति ” प्रिय ग्लप ” बांग्लादेश के कहानीकार बंदे अली मियां की 14 कहानियों का हिंदी भाषा में अनुवाद कृति है। भारत सरकार की ओर से इन्हें बांग्लादेश में हिंदी टीचर के रूप में भेजा गया था। प्रवास के दौरान इन्होंने बांग्ला कहानियों का हिंदी अनुवाद किया। जिन शब्दों में कठिनाई आई  अपने विद्यार्थियों से पूछने में कोई संकोच नहीं किया। कहानियों के अनुवाद की विशेषता है कि  उनके मूल स्वरूप में बदलाव नहीं हो और रोचकता भी बनी रहे। अधिकांश कहानियां बच्चों की मनोभावना को लेकर ज्ञान वर्धक हैं वहीं सभी के लिए संदेश परक है।
कहानियां   बच्चों को कोई न कोई सीख देती हैं और मनोरंजन भी करती हैं। शब्दों का चयन और वाक्यों का गठन सहज और सरल होने के साथ मूल कहानी के निकट है।
 संग्रह की  कहानी ” चाँद मामा का देश”, शीर्षक से ऐसी कहानी है जिसमें पिंटू चाँद मामा के देश की सपने में यात्रा करता है। इस रोचक बाल कहानी में दो बच्चों पिंटू और मंटू का आत्मविश्वास झलकता है जब वे  चाँद पर पहुंचे रॉकेट से भेजी चाँद की एक अखबार में छपी फोटो देख कर चर्चा करते हैं हम भी चाँद पर जाएंगे। मंटू कहता हैं देश विदेश के बड़े – बड़े वैज्ञानिकों ने मिल कर यह रॉकेट तैयार किया है, कहाँ वैज्ञानिक और कहां हम। जवाब में पिंटू आत्मविश्वास से कहता है हम को भी कम नहीं समझे। जिन वैज्ञानिकों ने कई खोजें की वे भी कभी हमारे जैसे ही बच्चें थे। हम भी जब बड़े हो जाएंगे ,तो निश्चित ही कुछ करेंगे।
 हम में से ही कोई वैज्ञानिक, दार्शनिक, शिल्पी, कवि, गायक और साहित्यकार बनेगा। उसी रात पिंटू  चाँद मामा लेने आते हैं। वह हवा में उड़ता हुआ चाँद के घर पहुंचता है। चाँद से पिंटू की रोचक वार्तालाप, चाँद का जो पक्ष हमें धरती से दिखाई देता है, चाँद पिंटू की उसका दूसरा पक्ष दिखता है तो वह आश्चर्य में पड़ जाता है। सब कुछ पृथ्वी जैसा लगा बस वहां के लोगों और खाने पीने की वस्तुओं के नाम बड़े अटपटे थे, समझ में न आने वाले। चाँद पर एक बच्चा पिंटू को अपने घर खाने के लिए ले जाता है। पिंटू उसके साथ चलते हुए ता ना ना ना – ता ना ना ना कहते हुए चल पड़ता है। पिता – अरे पिंटू उठो, नींद में क्या बडबडा रहे हो। पिंटू – उमा,  मैं नींद में था, चाँद मामा के देश में, चाँद मामा का देश – वो क्या सब स्वप्न था !! पिता उठो उठो, किताब पढ़ने बैठो।
  ” शहजादी का भाग्य ” भारत में प्रचलित कहानी की तरह है जिसमें जीवन में नमक का महत्व प्रतिपादित किया गया है। एक राजा अपनी तीन बेटियों राजकुमारियों से पूछता है तुम मुझे कितना प्रेम करती हो। बड़ी राजकुमारी कहती है वह शहद जैसा, बीच वाली कहती है शक्कर जैसा और छोटी कहती है नामक जैसा। राजा यह सुनकर छोटी राजकुमारी से क्रोधित हो उसे दूर गहन जंगल में भेज देता है। वहां एक लकड़हारा उसे अकेले देख अपनी बेटी अपने घर ले जाता है और अपनी बेटी की तरह परवरिश करता है। राजकुमारी दिन भर मोर पंख जमा करती है उन्हें खूबसूरत बनती है।
एक दिन वह पिता को कहती है इन्हें बाज़ार में बेच आओ कुछ रुपए आ जाएंगे। उधर से एक राजकुमार आता है और उसे ये पसंद आ जाते हैं। जब उसे पता चलता है यह उनकी बेटी ने बनाए है तो वह उस से मिलने लकड़हारे के साथ उसके घर चला जाता है। उसे राजकुमारी पसंद आती है और वह उसे अपने साथ ले जा कर विवाह कर आराम से रहने लगता है। एक दिन राजकुमारी अपने पिता को खाने पर बुलाती है। पिता सही समय पर पहुंच जाता है। राजकुमारी अपने पिता को पहले शहद में फिर शक्कर मिला भोजन देती है। जिसे राजा चख कर छोड़ देता है। अब वह नामक का भोजन देती है जिसे वह बड़े चाव से खाता है। राजकुमारी ओट से खड़ी यह सब देखती रहती है। जब पिता चाव से नामक वाला भोजन कर रहा था वह ओट से बाहर आई और बोली मैंने कहा था न मैं आपको नमक जितना प्यार करती हैं। राजा खुद ही कर दामाद और बेटी को अपने साथ ले जाता है, जहां वे आराम से रहने लगते है।
संदेश यही है कि जीवन में सब चीजों का अपना – अपना महत्व है। मीठे का मजा भी नामक के साथ है, दुख है तब ही सुख का महत्व है।
कहानी ” तीन मित्र” का संदेश है कि उतने पैर पसारिए जितनी चादर हो। कुछ भी खर्च करने से पहले अपनी जेब टटोल ले, ऐसा नहीं हो संकट में पड़ जाएं। दिन भर ट्राम में घूमने का टिकट ले कर तीन दोस्त जब किसी होटल पर खाना खाने बैठते हैं तो बिल चुकाने जितने पैसे किसी के पास नहीं होते। योजना बना कर वे बेरे की आंख पर पट्टी बांध देते हैं और उसे कहते हैं जिसे वह छू लेगा वहीं भुगतान करेगा। बेरा टकराता टकराता मैनेजर को छू लेता है। जब मैनेजर को वह यह बात बताता है तब तक तीनों मित्र रफूचक्कर हो जाते हैं।
ऐसे ही ज्ञानवर्धक, शिक्षाप्रद और जीवनोपयोगी संदेश लिए हैं आदेश का पालन, विपत्ति का साथी, परियों का देश, विचार, चलो आम इक्कठा करें, अतिथि पारायणता, सोच कर कार्य करो, लोभ का परिणाम, बेवकूफ बाघ और धूर्त शृंगाल, विजय वीर और स्वप्न बूढ़ा का देश कहानियां।
कृति की ” भूमिका ” में ढाका के एक समाचार पत्र के संपादक सैयद मेहंदी हसन लिखते हैं यह अनुवाद उत्कृष्ट ही नहीं है वरन दो देशों के साहित्य प्रेमियों के लिए सेतु का कार्य करेगा। इस संग्रह की कहानियां परियों का देश, चलों आम इक्कठा करें और चाँद मामा का देश कहानियां बाल मनोविज्ञान की प्रतिनिधि कहानियां हैं। लेखिका में एक शिक्षक ही नहीं वरन श्रेष्ठ अनुवादक भी नजर आता है। लेखिका ने मूल कथा की गहराई को संवेदनशीलता से समझा है और तब ही वे इनका भावात्मक अनुवाद कर पाई हैं। उनकी ये टिप्पणी निश्चित ही लेखिका की समझ, संवेदनशीलता और लेखन के शिल्प कौशल को इंगित करने को पर्याप्त है।
सभी सहयोगियों और शुभकामनाएं भेजने वालों का आभार व्यक्त करते हुए लेखिका ” मेरी कलम से ” में कृति की उपादेयता पर  लिखती है कि आदिकाल से ही कथा, ग्लप, आख्यायिका न केवल बच्चों वरन सभी के मनोरंजन के साधन रहे हैं वरन समय व्यतीत करने, चारित्रिक गुणों का विकास करने,नैतिक मूल्यों की स्थान और सामाजिक समस्याओं के निरूपण और समाधान का, कभी उपदेशात्मक तो कभी माँ की तरह ऊंगली  पकड़ कर राह दिखाने का कार्य समय – समय पर करती रही हैं। अनुवाद जहां एक देश की भाषा के साहित्य को दूसरे भाषा के साहित्य प्रेमियों को सुलभ करता है , वहीं उस देश की संस्कृति, विचारधारा और चिंतन से भी अवगत करता है। अनुवाद में अनुवादक को अपनी तरफ से कुछ भी कहने की अनुमति नहीं होती फिर भी रोचकता और सरसता बनाए रखने का प्रयास किया है।
 कृति का आरंभ बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त रहे हर्ष वर्धन श्रृंगला के पत्र से होती है जिसमें उन्होंने इनके अक्टूबर 2013 से 27 फरवरी 2017 के प्रवास के दौरान हिंदी टीचर के रूप में दी गई सेवाओं और उपलब्धियों की मुक्त कंठ से सराहना की है। इसके उपरांत साउथ एशिया के डायरेक्टर जनरल का संदेश पत्र है जिसमें उन्होंने शुभकामनाएं देते हुए लिखा कि आपकी हिंदी सेवाओं को यहां के विद्यार्थी लंबे समय तक याद रखेंगे।
इंदिरा गांधी  सांस्कृतिक केंद्र ढाका की निदेशक जयश्री  कंडू, एवं  इंटीग्रेटेड डिफेंस सर्विसेज के डायरेक्टर एम. एन, कंडू के साथ – साथ ग्वालियर और मैनपुरी के शिक्षाविदों के शुभकामना पत्र शामिल हैं। कहानियों की 78 पृष्ठ वाली कृति का रंगीन आवरण पृष्ठ आकर्षक और कलात्मक है।
पुस्तक : प्रिय ग्लप ( बंगला कहानियों का हिंदी अनुवाद)
अनुवादक : डॉ. अपर्णा पाण्डेय, कोटा
प्रकाशक : पंख प्रकाशन,मेरठ
प्रकार : पेपर बैक
मूल्य : 120