इतिहास के पन्नों से गुम सेठ रामदास जी गुड़वाले का नाम

सेठ रामदास जी गुडवाला दिल्ली के अरबपति सेठ और बेंकर थे. इनका जन्म दिल्ली में एक अग्रवाल परिवार में हुआ था. इनके परिवार ने दिल्ली में पहली कपड़े की मिल की स्थापना की थी।

सेठ रामदास जी गुड़वाले – 1857 के महान क्रांतिकारी, दानवीर जिन्हें फांसी पर चढ़ाने से पहले अंग्रेजों ने उनपर शिकारी कुत्ते छोड़े जिन्होंने जीवित ही उनके शरीर को नोच खाया।

उनकी अमीरी की एक कहावत थी “रामदास जी गुड़वाले के पास इतना सोना चांदी जवाहरात है की उनकी दीवारो से वो गंगा जी का पानी भी रोक सकते है”

जब 1857 में मेरठ से आरम्भ होकर क्रांति की चिंगारी जब दिल्ली पहुँची तो दिल्ली से अंग्रेजों की हार के बाद अनेक रियासतों की भारतीय सेनाओं ने दिल्ली में डेरा डाल दिया। उनके भोजन और वेतन की समस्या पैदा हो गई । रामजीदास गुड़वाले बादशाह के गहरे मित्र थे ।

रामदास जी को बादशाह की यह अवस्था देखी नहीं गई। उन्होंने अपनी करोड़ों की सम्पत्ति बादशाह के हवाले कर दी और कह दिया “मातृभूमि की रक्षा होगी तो धन फिर कमा लिया जायेगा। ” रामजीदास ने केवल धन ही नहीं दिया, सैनिकों को सत्तू, आटा, अनाज बैलों, ऊँटों व घोड़ों के लिए चारे की व्यवस्था तक की।

सेठ जी जिन्होंने अभी तक केवल व्यापार ही किया था, सेना व खुफिया विभाग के संघठन का कार्य भी प्रारंभ कर दिया उनकी संगठन की शक्ति को देखकर अंग्रेज़ सेनापति भी हैरान हो गए ।सारे उत्तर भारत में उन्होंने जासूसों का जाल बिछा दिया, अनेक सैनिक छावनियों से गुप्त संपर्क किया।

उन्होंने भीतर ही भीतर एक शक्तिशाली सेना व गुप्तचर संघठन का निर्माण किया। देश के कोने कोने में गुप्तचर भेजे व छोटे से छोटे मनसबदार और राजाओं से प्रार्थना की इस संकट काल में सभी सँगठित हो और देश को स्वतंत्र करवाएं।

रामदास जी की इस प्रकार की क्रांतिकारी गतिविधयिओं से अंग्रेज़ शासन व अधिकारी बहुत परेशान होने लगे।

कुछ कारणों से दिल्ली पर अंग्रेजों का पुनः कब्जा होने लगा । एक दिन उन्होंने चाँदनी चौक की दुकानों के आगे जगह-जगह जहर मिश्रित शराब की बोतलों की पेटियाँ रखवा दीं, अंग्रेज सेना उनसे प्यास बुझाती और वही लेट जाती । अंग्रेजों को समझ आ गया की भारत पे शासन करना है तो रामदास जी का अंत बहुत ज़रूरी है ।

सेठ रामदास जी गुड़वाले को धोखे से पकड़ा गया और जिस तरह से मारा गया वो क्रूरता की मिसाल है। पहले उन्हें रस्सियों से खम्बे में बाँधा गया फिर उन पर शिकारी कुत्ते छुड़वाए गए उसके बाद उन्हें उसी अधमरी अवस्था में दिल्ली के चांदनी चौक की कोतवाली के सामने फांसी पर लटका दिया गया।

सुप्रसिद्ध इतिहासकार ताराचंद ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेंट’ में लिखा है –
“सेठ रामदास गुड़वाला उत्तर भारत के सबसे धनी सेठ थे।अंग्रेजों के विचार से उनके पास असंख्य मोती, हीरे व जवाहरात व अकूत संपत्ति थी।

सेठ रामदास जैसे अनेकों क्रांतिकारी इतिहास के पन्नों से गुम हो गए क्या सेठ रामदास जैसे क्रांतिकारियों के बलिदान का ऋण हम चुका पाये???
तुम न समझो देश को आज़ादी यूं ही मिली है।

हर कली इस बाग की,कुछ खून पी कर ही खिली है।
मिट गये वतन के वास्ते,दीवारों में जो गड़े हैं।
महल अपनी आज़ादी के,शहीदों की छातियों पर ही खड़े हैं।।

साभार https://www.facebook.com/sohankumar.poddar से



किसी जमाने में मायापुरी की फिल्मी गपशप किसी फिल्म से कम रोमांचक नहीं होती थी

मायापुरी भारत की सबसे पुरानी और सबसे अधिक प्रसारित होने वाली हिंदी साप्ताहिक पत्रिका है। इसके प्रकाशन का सफर 1974 में शुरू हुआ और आज भी यह बॉलीवुड और फिल्मी गपशप की दुनिया में अपनी खास जगह बनाए हुए है। मायापुरी का यह सफर मायापुरी प्रकाशन समूह के साथ जुड़ा हुआ है, जिसकी नींव 1882 में अविभाजित पंजाब की राजधानी लाहौर में अरोरबंस प्रेस के नाम से पड़ी थी। विभाजन के बाद, समूह ने अपना मुख्य कार्यालय दिल्ली स्थानांतरित किया और ए.पी. बजाज के नेतृत्व में नई ऊंचाइयों को छुआ।

1974 में मायापुरी समूह ने भारत की पहली साप्ताहिक हिंदी फिल्म पत्रिका मायापुरी लॉन्च की। इस पत्रिका ने बहुत जल्द ही बॉलीवुड की दुनिया में अपनी एक विशेष पहचान बना ली। मायापुरी पत्रिका ने फिल्मी गपशप और बॉलीवुड खबरों को हिंदी पाठकों तक पहुँचाने का कार्य किया और इसे उत्तर भारत में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली फिल्मी पत्रिका बना दिया।

मायापुरी पत्रिका की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसकी प्रति सप्ताह प्रसार संख्या 3,40,000 से अधिक है और पाठकों की संख्या 30,60,000 तक पहुंच चुकी है। यह पत्रिका हर हफ्ते नई-नई फिल्मी खबरों, गपशप और बॉलीवुड सितारों के इंटरव्यूज से भरी होती है। इसने हिंदी भाषी क्षेत्रों में फिल्मी दुनिया की खबरों को लोगों तक पहुँचाने का काम बखूबी किया है।

आज भी मायापुरी पत्रिका हिंदी फिल्मी गपशप की दुनिया में अपनी पकड़ बनाए हुए है। भारत के उत्तरी क्षेत्रों में इसकी व्यापक मांग है और यह नाई की दुकानों से लेकर स्टैंड पर आसानी से उपलब्ध होती है। इस पत्रिका की एक खास पहचान है उसकी चमकदार आवरण और अंदर की रोचक सामग्री, जो इसे पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय बनाती है।

मायापुरी ने अपने स्थापना से लेकर आज तक भारतीय मीडिया जगत में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसने बॉलीवुड के हर छोटे-बड़े समाचार को हिंदी भाषी पाठकों तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई है। मायापुरी समूह की यह पहल और उसके बाद की सफलता एक प्रेरणास्रोत है, जो यह दर्शाता है कि सही समय पर सही कदम उठाकर किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त की जा सकती है।

मायापुरी पत्रिका न सिर्फ एक फिल्मी गपशप पत्रिका है, बल्कि यह भारतीय सिनेमा और उसकी बदलती तस्वीर की साक्षी भी है। यह भारतीय फिल्म उद्योग और उसके प्रशंसकों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करती है और इसे आगे भी जारी रखने का प्रयास करती रहेगी।

साभार-https://www.facebook.com/filmymooz से
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पश्चिम रेलवे विभिन्न गंतव्यों के लिए चलाएगी चार जोड़ी स्‍पेशल ट्रेनें

                                                            

 मुंबई> पश्चिम रेलवे द्वारा यात्रियों की सुविधा तथा उनकी मांग को पूरा करने के उद्देश्य से विशेष किराये पर चार जोड़ी स्पेशल ट्रेनें चलाने का निर्णय लिया गया है।

पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी श्री विनीत अभिषेक द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार इन स्‍पेशल ट्रेनों का विवरण इस प्रकार है:

1.    ट्रेन संख्या 09009/09010 मुंबई सेंट्रल – अमृतसर स्पेशल (02 फेरे)

ट्रेन संख्या 09009 मुंबई सेंट्रल – अमृतसर स्पेशल गुरुवार, 27 जून, 2024 को मुंबई सेंट्रल से 23.30 बजे प्रस्थान करेगी और शनिवार को 10.30 बजे अमृतसर पहुंचेगी। इसी तरहट्रेन संख्या 09010 अमृतसर – मुंबई सेंट्रल स्पेशल रविवार, 29 जून, 2024 को अमृतसर से 15.00 बजे प्रस्थान करेगी और अगले दिन 23.55 बजे मुंबई सेंट्रल पहुंचेगी।

यह ट्रेन दोनों दिशाओं में बोरीवलीवापीसूरतभरूचवडोदराआणंदअहमदाबादमहेसाणापालनपुरआबू रोडमारवाड़अजमेरजयपुरअलवररेवाड़ीरोहतकजींदजाखलधुरीलुधियानाजालंधर कैंट और ब्यास स्टेशनों पर रुकेगी।

इस ट्रेन में एसी 3-टियरस्लीपर क्लास और द्वितीय श्रेणी के सामान्य कोच होंगे।  

2.    ट्रेन संख्या 09041/09042 उधना – छपरा – वडोदरा साप्ताहिक स्पेशल (04 फेरे)

ट्रेन संख्या 09041 उधना – छपरा स्पेशल रविवार, 30 जून और 07 जुलाई, 2024 को उधना से 22.00 बजे प्रस्थान करेगी और मंगलवार को 09.00 बजे छपरा पहुंचेगी। इसी प्रकारट्रेन संख्‍या 09042 छपरा- वडोदरा स्पेशल मंगलवार, 02 और 09 जुलाई, 2024 को छपरा से 12.00 बजे प्रस्थान करेगी और अगले दिन 19.00 बजे वडोदरा पहुँचेगी।

यह ट्रेन दोनों दिशाओं में गोधरारतलामनागदाकोटासवाई माधोपुरगंगापुर सिटीबयानाआगरा फोर्टटूंडलाइटावागोविंदपुरीप्रयागराज छिवकीबनारसगाजीपुर सिटी और बलिया स्टेशनों पर रुकेगी। ट्रेन संख्या 09041 का सायन और भरूच स्टेशनों पर अतिरिक्त ठहराव होगा।

इस ट्रेन में स्लीपर क्लास और द्वितीय श्रेणी के सामान्य कोच होंगे।  

3.    ट्रेन संख्या 09029/09030 उधना – दानापुर – वडोदरा स्पेशल ट्रेन (02 फेरे)

ट्रेन संख्या 09029 उधना – दानापुर स्पेशल शनिवार, 29 जून, 2024 को उधना से 22.00 बजे प्रस्थान करेगी और सोमवार को 09.30 बजे दानापुर पहुँचेगी। इसी प्रकारट्रेन संख्या 09030 दानापुर- वडोदरा स्पेशल सोमवार, 01 जुलाई, 2024 को दानापुर से 12.30 बजे प्रस्थान करेगी और अगले दिन 21.00 बजे वडोदरा पहुंचेगी।

यह ट्रेन दोनों दिशाओं में गोधरारतलामनागदाकोटासवाई माधोपुरगंगापुर सिटीबयानाआगरा फोर्टटूंडलाइटावागोविंदपुरीप्रयागराज छिवकीमिर्जापुरपंडित दीन दयाल उपाध्यायबक्सर और आरा स्टेशनों पर रुकेगी। ट्रेन संख्या 09029 का सायन और भरूच स्टेशनों पर अतिरिक्त ठहराव होगा।

 इस ट्रेन में एसी 2-टियर, एसी 3-टियरस्लीपर क्लास और द्वितीय श्रेणी के सामान्य कोच होंगे।

4.    ट्रेन संख्‍या 09321/09322 डॉ. अंबेडकर नगर – श्री माता वैष्णो देवी कटड़ा (त्रि-साप्ताहिक) सुपरफास्ट स्पेशल [12 फेरे]

ट्रेन संख्‍या 09321 डॉ. अंबेडकर नगर – श्री माता वैष्णो देवी कटड़ा सुपरफास्ट स्पेशल 29 जून से 10 जुलाई, 2024 तक प्रत्येक शनिवारसोमवार और बुधवार को डॉ. अंबेडकर नगर से 10.30 बजे प्रस्थान करेगी और अगले दिन 16.00 बजे श्री माता वैष्णो देवी कटड़ा पहुंचेगी। इसी तरहट्रेन संख्‍या 09322 श्री माता वैष्णो देवी कटड़ा – डॉ. अंबेडकर नगर सुपरफास्ट स्पेशल 30 जून से 11 जुलाई, 2024 तक प्रत्येक रविवारमंगलवार और गुरुवार को श्री माता वैष्णो देवी कटड़ा  से 21.40 बजे प्रस्थान करेगी और अगले दिन 23.50 बजे डॉ. अंबेडकर नगर पहुंचेगी।

यह ट्रेन दोनों दिशाओं में इंदौरदेवासउज्जैनमक्सीबेरछाअकोदियाशुजालपुरकालापीपलसीहोरसंत हिरदाराम नगरभोपालविदिशागंज बसौदाबीनाललितपुरबबीनावीरांगना लक्ष्मीबाई झांसीग्वालियरदौलपुरआगरा कैंटमथुराफरीदाबादहजरत निजामुद्दीननई दिल्लीपानीपतकुरुक्षेत्रअंबाला कैंटलुधियानाजालंधर कैंटपठानकोट कैंटकठुआजम्मू तवी और शहीद कैप्टन तुषार महाजन स्टेशनों पर रुकेगी।

इस ट्रेन में एसी टियरस्लीपर क्लास और द्वितीय श्रेणी के सामान्य कोच होंगे।   

ट्रेन संख्या 09009, 09041, 09029 और 09321 की बुकिंग 26 जून 2024, से सभी पीआरएस काउंटरों और आईआरसीटीसी वेबसाइट पर शुरू होगी। ट्रेनों के ठहराव के समय और संरचना के संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए यात्री कृपया www.enquiry.indianrail.gov.in जाकर अवलोकन कर सकते हैं।

 




पश्चिम रेलवे द्वारा जारी किया गया ‘स्व-रक्षा गाइड’

मुंबई। पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक श्री अशोक कुमार मिश्र द्वारा 18 जून, 2024 को चर्चगेट स्थित पश्चिम रेलवे मुख्यालय में रेलवे कर्मचारियों के लिए कार्यस्थल सुरक्षा को समर्पित कार्मिक विभाग द्वारा संकलित पुस्तिका ‘स्व-रक्षा गाइड’ का विमोचन किया गया।

पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी श्री विनीत अभिषेक द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार ‘स्व-रक्षा गाइड’ का उद्देश्य रेलवे कर्मचारियों को महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रोटोकॉल के बारे में शिक्षित करना है, जिसमें पटरियों पर काम करने, ओवरहेड उपकरणों का संचालन करने और विशेष रूप से मानसून के मौसम में विद्युतीकरण को संभालने के उपाय शामिल हैं। इसमें शंटिंग संचालन के लिए सुरक्षा प्रक्रियाओं, चिकित्सा आपात स्थितियों के दौरान सीपीआर तकनीक और व्यक्तिगत सुरक्षा नियमों को भी शामिल किया गया है। गाइड व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) के सही उपयोग, सुरक्षित मशीनरी और उपकरण हैंडलिंग के साथ-साथ रेलवे परिचालन में संभावित खतरों के बारे में जागरूकता पर जोर देती है। यह पहल सुरक्षित कार्य वातावरण को बढ़ावा देने, कार्यस्थल पर चोटों को कम करने और अपने कर्मचारियों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए पश्चिम रेलवे की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।




पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक ने 7 कर्मचारियों को संरक्षा पुरस्कार प्रदान किया

मुंबई। पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक श्री अशोक कुमार मिश्र ने पश्चिम रेलवे के सात कर्मचारियों को सुरक्षित ट्रेन परिचालन में उत्कृष्ट कार्य निष्‍पादन के लिए प्रधान कार्यालय, चर्चगेट में सम्मानित किया। इन कर्मचारियों को अप्रैल तथा मई, 2024 के दौरान ड्यूटी में उनकी सतर्कता तथा अप्रिय घटनाओं को रोकने में उनके योगदान और परिणामस्‍वरूप सुरक्षित ट्रेन परिचालन सुनिश्चित करने के लिए सम्मानित किया गया। इन 07 कर्मचारियों में से 02 मुंबई सेंट्रल मंडल से, 02 वडोदरा मंडल से जबकि अहमदाबाद, रतलाम और भावनगर मंडलों से प्रत्‍येक मंडल से एक कर्मचारी शामिल हैं।

पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी श्री विनीत अभिषेक द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार श्री मिश्र ने सम्मानित किए गए कर्मचारियों की सतर्कता की प्रशंसा करते हुए कहा कि वे सभी कर्मचारियों के लिए अनुकरणीय आदर्श हैं। सम्मानित किए गए कर्मचारियों ने संरक्षा के विभिन्न क्षेत्रों जैसे रेल एवं ट्रैक फ्रैक्चर का पता लगाना, अप्रिय घटनाओं को रोकने के लिए आपातकालीन ब्रेक लगाना, कोचों में पाए जाने वाले धुएं को बुझाना, ब्रेक बाइंडिंग, लटकती वस्तुओं का पता लगाना आदि जैसे संरक्षा से संबंधित कार्यों को करते हुए ट्रेनों का सुरक्षित परिचालन सुनिश्चित करने में उत्साह और प्रतिबद्धता दिखाई।

पश्चिम रेलवे को इन सभी पुरस्कृत कर्मचारियों पर गर्व है जिन्होंने अपनी त्वरित कार्रवाई और सतर्कता से किसी भी अप्रिय घटना की संभावना को रोकने में मदद की।




हिमालय का साहसिक सफर: 11 साल की बालिका ने किया अतुलनीय काम

उत्तरकाशी। ट्रेकिंग का जादू पूरे भारत में फैल रहा है, और इसे सिर्फ बड़े ही नहीं बल्कि बच्चे भी बड़े चाव से अपना रहे हैं। उत्तराखंड की 11 वर्षीय उषा और उसके 16 वर्षीय भाई दिवाकर ने अपने पिता के साथ मिलकर एक अद्भुत साहसिक यात्रा पूरी की। उन्होंने बाली पास को सफलतापूर्वक पार कर लिया, जो कि 16,200 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक कठिन हिमालयी दर्रा है। गढ़वाल हिमालय में, गोविंद पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान से शुरू हुई यह रोमांचक सात दिवसीय यात्रा, 8 जून, 2024 को यमुनोत्री पहुंचकर समाप्त हुई।

इस साहसिक यात्रा का आयोजन माउंटबज़ प्राइवेट लिमिटेड द्वारा कुशलतापूर्वक किया गया था। यह यात्रा केवल शिखर तक पहुंचने की नहीं थी, बल्कि इसमें स्थिरता, अनुभवात्मक शिक्षा, टीम-बिल्डिंग और कौशल विकास जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को भी शामिल किया गया था। युवा यात्रियों ने योग, तंबू पिचिंग और समूह कार्यों में भाग लिया, जो सभी अनुभवी पेशेवरों की देखरेख में हुए।

11 वर्षीय उषा पाठक के लिए यह उच्च-ऊंचाई ट्रेकिंग का पहला अनुभव था। उसने उत्साह के साथ कहा, “मुझे बाली पास की यात्रा बहुत पसंद आई। बाली पास बहुत सुंदर था और मैं अपने पिता को मुझे वहां ले जाने के लिए धन्यवाद देना चाहती हूँ। मुझे भविष्य में और भी ट्रेक्स करने है क्योंकि मुझे पहाड़ बहुत पसंद हैं। मैंने तंबू लगाना और नदी पार करना भी सीखा!” दिवाकर, जो 16 साल का है, ने भी इस अनुभव को बेहद रोमांचक और शिक्षाप्रद पाया।

उसने कहा, “यह हमारी माउंटबज़ के साथ दूसरी ट्रेक थी, और यह पूरी तरह से रोमांचक थी। हमें बहुत मज़ा आया और मैंने पहाड़ों के बारे में बहुत कुछ सीखा। हमने माउंट स्वर्गारोहिणी, ब्लैक पीक, बंदरपूंछ और कई अन्य हिमालयी चोटियों को देखा। हमें पर्वतीय उचित व्यवहार, खतरे और सुरक्षा, कचरा प्रबंधन, जीवित रहने के पाठ और उच्च-ऊंचाई ट्रेकिंग के नियमों और अनियमों के बारे में मूल्यवान जानकारी दी गई। मैं एक दिन माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाला पर्वतारोही बनना चाहता हूँ।”

उनके पिता, श्री प्रकाश, ने आयोजन टीम का धन्यवाद करते हुए कहा, “एक पिता और शिक्षक के रूप में, मैं अपने बच्चों के लिए सब अच्छा चाहता हूँ। मैं प्रकृति-प्रेमी हूँ, और मैं चाहता हूँ कि मेरे बच्चे प्रकृति से जुड़ सकें और पर्यावरण का सम्मान करना सीख सकें। मुझे विश्वास है कि हमें माता-पिता के रूप में अपने बच्चों को प्रकृति में ले जाना चाहिए ताकि वे भविष्य में स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बन सकें और संसाधन प्रबंधन और समय प्रबंधन के मूल्यों को समझ सकें। मुझे अपने बच्चों के साथ-साथ एक्सपीडिशन लीडर, अरित्रा महापात्रा पर भी भरोसा था। मैं पूरी टीम का गहरा आभारी हूँ और अपनी अगली साहसिक यात्रा में उनके साथ जुड़ने की उम्मीद करता हूँ।”

एक्सपीडिशन लीडर, श्री अरित्रा महापात्रा, एक प्रमाणित पर्वतारोही ने तैयारी और सुरक्षा के महत्व पर जोर दिया। “हम अनुकूलन प्रक्रिया और सुरक्षा उपायों के बारे में बहुत विशिष्ट हैं। मेरे परीक्षण किए गए पर्वतारोहियों की टीम साहसिक दौरों के दौरान प्रत्येक ट्रेकर की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करती है। सही दृष्टिकोण के साथ, सब कुछ संभव है। हम सभी उम्र के लोगों के लिए रोमांच को आसानी से उपलब्ध कराना चाहते हैं। हमारे आउटबाउंड प्रशिक्षण कार्यक्रमों, उच्च-ऊंचाई अभियानों और ट्रेकिंग के माध्यम से, हम बच्चों को शुरुआती उम्र से ही नए अवसरों के दरवाजे खोलने का प्रशिक्षण दे रहे हैं।

सैनिक स्कूल, पुरुलिया के पूर्व छात्र और एक पर्वतारोही होने के नाते, मैंने समझा है कि अपने सपनों को हासिल करने से पहले एक बच्चे के लिए मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक रूप से सक्षम होना कितना महत्वपूर्ण है। और पहाड़ों से बेहतर शिक्षक कोई नहीं है। हमें बहुत खुशी है कि सभी सदस्य अच्छे स्वास्थ्य में पास को सफलतापूर्वक पार कर गए। हमें उम्मीद है कि हर कोई, विशेष रूप से बच्चे, पूरे प्रक्रिया से लाभान्वित हुए होंगे।”

माउंटबज़ प्राइवेट लिमिटेड के बारे में:
पर्वत अनुभवों को फिर से परिभाषित करने के दृष्टिकोण के साथ स्थापित, माउंटबज़ प्राइवेट लिमिटेड पहाड़ों पर आधारित साहसिक पर्यटन को सुलभ और स्थायी बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। वे उच्च-ऊंचाई अभियानों, ट्रेकिंग, रॉक क्लाइम्बिंग, रैपलिंग, छोटी यात्राओं, कैन्यनिंग और कैम्पिंग सहित सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला पेश करते हैं। सुरक्षा और ग्राहक संतोष पर ध्यान केंद्रित करते हुए, वे छात्रों में आत्मविश्वास और टीम-बिल्डिंग कौशल विकसित करने के लिए आउटबाउंड प्रशिक्षण कार्यक्रम भी प्रदान करते हैं। माउंटबज़ सभी उम्र के लोगों में साहसिक कार्य के प्रति प्रेम को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ पर्यावरण चेतना और प्रकृति के प्रति सम्मान को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।

संपर्क
Aritra Mahapatra – 7811998989
[email protected]
Sanjeev Umrao – 9935612032
[email protected]

 




ग्रहों की दशा-अंतर्दशा के सामान्य प्रभाव

(अपनी कुण्डली से स्वयं देखकर ज्योतिष की वैज्ञानिकता को समझने का प्रयास करें और बताएं कि आपकी कौन से ग्रह की दशा चल रही है)

मित्रों! मैं यहां पर ग्रहों की दशाओं से संबंधित कुछ सामान्य प्रभाव लिख रहा हूं, जिसके लिए आपको कोई विशेष ज्योतिषीय उपाय करने की आवश्यकता नहीं है। हां इतना जरूर है कि ज्योतिष पर भरोसा ना करने वाले मित्र अपने शरीर में ऐसे लक्षणों को देखकर चिंतित हो उठते हैं और अस्पतालों के चक्कर लगाते रहते हैं। डॉक्टर्स से जांच व दवा के नाम पर अनाप शनाप रूपया खर्च करते रहते हैं, जबकि शरीर के ऐसे लक्षणों की शत प्रतिशत जानकारी हमारी कुंडली बड़ी आसानी से दे देती है।

कभी कभी ऐसा होता है कि शरीर का तापमान औसत से एक डिग्री तक अधिक बना रहता है। इसका कारण है कि जब भी व्यक्ति मंगल की दशा अंतर्दशा भोग रहा हो अथवा मंगल गोचर में सूर्य, चंद्र, बुध व लग्न के अंश से सम्बंध स्थापित करे तो शरीर का तापमान बढ़ जाता है।

कभी कभी व्यक्ति को लगातार थकान का अनुभव होता है जो कई महीने तक चल सकता है। इसका कारण है कि जब भी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र की दशा में शनि का अन्तर हो अथवा शनि की दशा में शुक्र का अंतर हो तो उसे निरन्तर थकान का अनुभव हो सकता है।( लेकिन इस प्रभाव की संभावना तब कम होगी अगर शनि और शुक्र एक साथ बैठे हों, या एक केंद्राधिपति और दूसरा त्रिकोण का स्वामी हो या फिर एक ग्रह बलवान और दूसरा कमजोर हो)

अगर कोई व्यक्ति बृहस्पति की दशा अंतर्दशा से गुजर रहा है या फिर जिस ग्रह की अंतर्दशा से गुजर रहा है वो जलीय राशि में स्थित है तो उस व्यक्ति के वजन बढ़ने की पूरी संभावना है।

ये सामान्य प्रभाव हैं, जिनका मुझे कई कुंडलियों का प्रैक्टिकल अनुभव है। (लेख बड़ा ना हो इसलिए अन्य प्रभाव आगे लिखता रहूंगा) ! कृपया अपनी कुण्डली से स्वयं ग्रहों के इन प्रभावों को जांचने परखने की कोशिश करें ताकि आप ज्योतिष की वैज्ञानिकता को समझ सकें।

अन्त में एक बात जरूर कहना चाहता हूं कि ज्योतिष में किसी निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए पूरी कुण्डली का विश्लेषण करना आवश्यक होता है, ताकि सटीक फलादेश किया जा सके। कभी कभी हम जानकारी के अभाव में विपरीत फलादेश देख कर मन में ज्योतिष के प्रति अविश्वास पैदा कर लेते हैं। ठीक उसी तरह जैसे मेडिकल साइंस में जांच रिपोर्ट गड़बड़ होने, दवा गलत होने या डॉक्टर द्वारा सही मर्ज ना पकड़ पाने की वजह से हमारी बीमारी ठीक नहीं हो पाती है। परन्तु क्या तब हम मेडिकल साइंस के प्रति अपना भरोसा खत्म कर लेते हैं।

पंडित सौरभ दुबे ( Astrological Consultant)*
*काशी/बनारस/वाराणसी*
*Watsapp 9198818164*




इच्छ्वाकु वंश के महान राजा सगर

च्वयन आश्रम पर सगर का जन्म :-

अयोध्या के राजा बाहु का राज्य पूर्व में शकों के साथ आए हैहयों और तालजंघों ने छीन लिया था। यवन, पारद, कम्बोज, पहलव (और शक), इन पांच कुलों (राजाओं के) ने हैहयों के लिए और उनकी ओर से हमला किया। शत्रुओं ने बाहु से राज्य छीन लिया। उसने अपना निवास त्याग दिया और जंगल में चला गया। अपनी पत्नी के साथ, राजा ने तपस्या की। उसकी पत्नी, जो यदु के परिवार की सदस्य थी , गर्भवती थी और वह उसके पीछे चली गयी थी। उसकी सहपत्नी ने गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने की इच्छा से उसे जहर दे दिया था।

एक बार वह राजा विकलांग होते हुए भी पानी लाने गया। वृद्धावस्था एवं कमजोरी के कारण बीच में ही उनका निधन हो गया। उसने अपने पति की चिता को अग्नि दी और उस पर चढ़ गयी। भार्गव वंश के ऋषि और्व को दया आ गई उसने रानी को सती होने से रोक दिया। वह रानी को अपने आश्रम पर ले आये । परन्तु गर्भ पर उस विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ा; बल्कि उस विष को लिये हुए ही एक बालक का जन्म हुआ, जो ‘गर’ ( = विष)के साथ पैदा होने के कारण ‘सगर’ कहलाया। बालक का जन्म उसके शरीर में जहर के साथ हुआ था। उसके साथ ही उसकी माँ को दिया गया विष भी बाहर निकाल दिया गया।

संस्कार और शिक्षा:-

वैदिक शास्त्रों के अनुसार, पिछले युग में, सत्य युग में अवध के राजा सगर नाम के एक राजा थे, जो भगवान रामचंद्र के 13वें पूर्वज थे। और्वा ने राजकुमार के जातकर्मण और प्रसवोत्तर अन्य पवित्र संस्कार किये। ऋषि और्व ने उसके जात – कर्म आदि संस्कार कर उसका नाम ‘सगर’ रखा तथा उसका उपनयन संस्कार कराया। उस पवित्र ऋषि ने अपने वर्ग की रीति के साथ उसका अभिषेक कराया। भृगु (अर्थात और्व) के पोते से आग्नेय अस्त्र (एक मिसाइल जिसके देवता अग्नि-देव हैं) प्राप्त करने के बाद राजा सगर ने पूरी पृथ्वी पर जाकर तालजंघों और हैहयों को मार डाला। निष्कलंक राजा ने शकों और पहलवों के धर्म (आचार संहिता आदि) को अस्वीकार कर दिया। और्व ने ही उसे वेद, शस्त्रों का उपयोग सिखाया एवं उसे विशेष रूप से भार्गव नामक आग्नेय शस्त्रों को प्रदान किया।उन्होंने उसे वेद और पवित्र ग्रंथ सिखाये । इसके बाद, उन्होंने उसे मिसाइलों और चमत्कारी हथियारों को छोड़ना सिखाया।

वंश परंपरा की जानकारी:-

एक बार यादवी ( नंदनी) को यह सुनकर रोना आ गया कि लड़का ऋषि को ‘पिता’ कह रहा है और जब उसने उससे उसके दुख के बारे में पूछा तो उसने उसे उसके असली पिता और विरासत के बारे में बताया। बुद्धि का विकास होने पर उस बालक ने अपनी मातां से कहा – ” माँ ! यह तो बता, इस तपो वन में हम क्यों रहते हैं और हमारे पिता कहाँ हैं ? ‘ इसी प्रकार के और भी प्रश्न पूछने पर माता ने उससे सम्पूर्ण वृतान्त कह दिया । सगर ने अपना जन्मसिद्ध अधिकार वापस पाने की कोशिश की। उसके बाद राजा ने शक, यवन, काम्बोज, पारद और पहलवों को नष्ट करने का निश्चय किया।

जनता के दबाव में अपना राज्य वापस लिया:-

अयोध्या के लोग , जो तालजंघा से भयभीत रहते थे, वशिष्ठ की सलाह पर चले गए , जिन्होंने उन्हें सलाह दी कि वे सगर को वापस लाकर राज्य पर कब्ज़ा कर लें। लोगों ने अपनी दलील सगर तक पहुँचाने के लिए पाँच दिनों तक और्व के आश्रम के बाहर प्रतीक्षा की। ऋषि के आशीर्वाद से और लोगों के साथ, सगर ने तालजंघा से युद्ध किया, उसका राज्य पुनः जीता और खुद को राजा घोषित किया।

तब तो पिताके राज्य का अपहरण को सहन न कर सकने के कारण उसने हैहय और तालजंघ आदि क्षत्रियों को मार डालने की प्रतिज्ञा की और प्रायः सभी हैहय एवं तालजंघ वंशीय राजाओं को नष्ट कर दिया। यह बड़ा प्रतापी राजा था। उसने पहले तो हैहयों और तालजंघों को मार भगाया फिर शकों, यवनो, पारदों और पह्नवों को परास्त किया।

उसके पश्चात शक, यवन, काम्बोज, पारद और पह्लवगण भी हताहत होकर सगर के कुलगुरु वसिष्ठजीकी शरणमें गये। वसिष्ठ ने इनको जीवनमृतप्राय कर दिया और सगर से कहा कि इनका पीछा करना निष्फल है। सगर के पिता बाहु को जिन दुश्मनों ने राज्य छीन लिया था, उन तालजंघा यवन , शक , हैहय और बर्बरों के जीवन लेने से कुमार सगर को रोका।

अपनी ही प्रतिज्ञा को स्मरण करके, और उसके उपदेशात्मक वचनों को सुनकर; उनके गुरु, सगर ने जाति और अन्य विशेषताओं के उनके पारंपरिक पालन को खत्म कर दिया, और उन्हें अपना भेष और परिधान बदलने के लिए मजबूर किया। उन्होंने शकों के आधे सिर मुंडवाकर उन्हें छुट्टी दे दी। उन्होंने यवनों और कम्बोजों के सिर पूरी तरह से मुंडवा दिये। पारदों को अपने बाल बिखरे हुए रखने के लिए मजबूर किया गया और पहलवों को अपनी मूंछें और दाढ़ी बढ़ाने के लिए मजबूर किया गया। राजा सगर ने कुलगुरु की आज्ञा से इनके भिन्न वेष कर दिये, यवनों के मुंडित शिर शकों को श्रद्ध मुण्डित पारदों को प्रलम्बमान – केश युक्त और पह्नवों को श्मश्रुधारी बना दिया। यह लोग म्लेच्छ हो गये। उन सभी को उस महान आत्मा वाले राजा द्वारा वेदों के अध्ययन और वशंकार मंत्रों के उच्चारण से वंचित कर दिया गया था।

सगर की दो पत्नियाँ :-

सगर की दो पत्नियाँ थीं जिन्होंने अपनी तपस्या से उनके पापों को दूर कर दिया था। दोनों में से बड़ी विदर्भ राज्य की राजकुमारी थी । सगर ने विदर्भ पर भी आक्रमण किया, परन्तु विदर्भराज ने अपनी बेटी केशिनी उसे देकर सन्धि कर ली। बड़ी रानी सुमति रिषि कश्यप की कन्या थी । उनकी छोटी पत्नी द्रविड़ अर्थात असुर अरिष्टनेमि की केशिनी नामक कन्या थी । वह अत्यंत गुणी थी और सौंदर्य में सारे संसार में अद्वितीय थी। चूँकि उन्हें लंबे समय तक कोई संतान नहीं हुई, इसलिए सगर अपनी दोनों पत्नियों के साथ हिमालय चले गए और भृगुप्रस्रवण पर्वत पर तपस्या करने लगे। प्रसन्न होकर भृगु मुनि ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी को वंश चलाने वाले एक पुत्र की प्राप्ति होगी और दूसरी के साठ हज़ार वीर उत्साही पुत्र होंगे।

बड़ी रानी के एक पुत्र और छोटी ने साठ हज़ार पुत्रों की कामना की थी। सुमति के पुत्रों के चरित्र के बारे में भविष्यवाणी की गई है कि वे अधर्मी होंगे, जबकि केशिनी का पुत्र धर्मी होगा। राजा और उनकी रानियाँ अयोध्या लौट आईं और समय के साथ केशिनी ने असमंजस नामक एक पुत्र को जन्म दिया। असमंजस बहुत दुष्ट प्रकृति का था। अयोध्या के बच्चों को सताकर प्रसन्न होता था। सगर ने उसे अपने देश से निकाल दिया। कालांतर में उसका पुत्र हुआ, जिसका नाम अंशुमान था। वह वीर, मधुरभाषी और पराक्रमी था। सुमति ने एक मांस के पिंड जैसा एक तूंबी को जन्म दिया। राजा उसे फेंक देना चाहते थे किंतु तभीआकाश वाणी हुई कि इस तूंबी में साठ हज़ार बीज हैं। घी से भरे एक-एक मटके में एक-एक बीज सुरक्षित रखने पर कालांतर में साठ हज़ार पुत्र प्राप्त होंगे। इसे महादेव का विधान मानकर सगर ने उन्हें वैसे ही सुरिक्षत रखा तथा उन्हें साठ हज़ार उद्धत पुत्रों की प्राप्ति हुई। वे क्रूरकर्मी बालक आकाश में भी विचर सकते थे तथा सब को बहुत तंग करते थे।

अश्वमेध यज्ञ के दौरान सगर पुत्रों की मृत्यु:-

राजा सगर ने विंध्य और हिमालय के मध्य यज्ञ किया। धार्मिक विजय के माध्यम से पूरी पृथ्वी पर विजय प्राप्त करने के बाद, राजा ने अश्व यज्ञ की दीक्षा ली और यज्ञ के घोड़े से विश्व की परिक्रमा करायी।

सगर के पौत्र अंशुमान यज्ञ के घोड़े की रक्षा कर रहे थे। विष्णु पुराण के अनुसार , राजा सगर ने पृथ्वी पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए अश्वमेध यज्ञ किया था।देवताओं के राजा इंद्र यज्ञ के परिणामों से भयभीत हो गए और इसलिए उन्होंने एक पहाड़ के पास बलि का घोड़ा चुराने का फैसला किया। वह राक्षस का रूप धारण कर घोड़ा चुरा लिया। उन्होंने घोड़े को पाताल में ऋषि कपिल के पास छोड़ दिया , जो गहन ध्यान में लीन थे।

इधर सगर ने अपने साठ हज़ार पुत्रों को आज्ञा दी कि वे पृथ्वी खोद-खोदकर घोड़े को ढूंढ़ लायें। जब तक वे नहीं लौटेंगे, सगर और अंशुमान दीक्षा लिये यज्ञशाला में ही रहेंगे। सगर-पुत्रों ने पृथ्वी को बुरी तरह खोद डाला तथा जंतुओं का भी नाश किया। देवतागण ब्रह्मा के पास पहुंचे और बताया कि पृथ्वी और जीव-जंतु दर्द के मारे कैसे चिल्ला रहे हैं। ब्रह्मा ने कहा कि पृथ्वी विष्णु भगवान की स्त्री हैं वे ही कपिल मुनि का रूप धारण कर पृथ्वी की रक्षा करेंगे।

सगर-पुत्र निराश होकर पिता के पास पहुंचे। पिता ने रुष्ट होकर उन्हें फिर से अश्व खोजने के लिए भेजा। हज़ार योजन खोदकर उन्होंने पृथ्वी धारण करने वाले विरूपाक्ष नामक दिग्गज को देखा। उसका सम्मान कर फिर वे आगे बढ़े। दक्षिण में महापद्म, उत्तर में श्वेतवर्ण भद्र दिग्गज तथा पश्चिम में सोमनस नामक दिग्गज को देखा। तदुपरांत उन्होंने कपिल मुनि को देखा तथा थोड़ी दूरी पर अश्व को चरते हुए पाया। उन्होंने कपिल मुनि का निरादर किया, फलस्वरूप मुनि के शाप से वे सब भस्म हो गये।

बहुत दिनों तक पुत्रों को लौटता न देख राजा सगर ने अंशुमान को अश्व ढूंढ़ने के लिए भेजा। वे ढूंढ़ने- ढूंढ़ते अश्व के पास पहुंचे जहां सब चाचाओं की भस्म का स्तूप पड़ा था। जलदान के लिए आसपास कोई जलाशय भी नहीं मिला। तभी पक्षीराज गरुड़ उड़ते हुए वहां पहुंचे और कहा, “ये सब कपिल मुनि के शाप से हुआ है, अत: साधारण जलदान से कुछ न होगा। गंगा का तर्पण करना होगा। इस समय तुम अश्व लेकर जाओ और पिता का यज्ञ पूर्ण करो।” उन्होंने ऐसा ही किया।

सगर द्वारा अश्व खोजने का आदेश :-

राजा सगर के 60,000 पुत्रों और उनके पुत्र असमंजस , जिन्हें सामूहिक रूप से सगरपुत्र (सगर के पुत्र) के रूप में जाना जाता है, को घोड़े को खोजने का आदेश दिया गया था। जब 60,000 पुत्रों ने अष्टदिग्गजों की परिक्रमा की और घोड़े को ऋषि के पासचरते हुए पाया, तो उन्होंने बहुत शोर मचाया।

जैसे ही सगर पुत्रों ने अश्व घुमाया, दक्षिण- पूर्वी महासागर के तट के पास से घोड़ा चोरी हो गया और पृथ्वी के नीचे समा गया। राजा ने अपने पुत्रों से उस स्थान को पूरी तरह से खुदवा दिया। विशाल महासागर के तल को खोदते हुए, वे आदिम प्राणी, भगवान विष्णु से मिले। कपिल के रूप में, भगवान हरि के दर्शन हुए। उसके दर्शन के मार्ग में आकर और उसके तेज से पीड़ित होकर वे सब राजकुमारभगवान कपिल के क्रोध से उनके साठ हजार पुत्र भस्म हो गये।

हमने सुना है कि पुण्यात्मा साठ हजार पुत्रों ने नारायण के तेजोमय तेज में प्रवेश किया। उन सब में केवल चार बेटे जीवित बचे। वे बर्हिकेतु ,सुकेतु ,धर्मरथ और वीर पंचजन थे । उन्होंने प्रभु की परंपरा को कायम रखा। हरि, नारायण ने उन्हें वरदान दिया जैसे – उनकी जाति के लिए चिरस्थायी दर्जा, सौ अश्व यज्ञ करने की क्षमता, पुत्र के रूप में सर्वव्यापी सागर और स्वर्ग में शाश्वत निवास होगा।

घोड़े को अपने साथ ले जाकर नदियों के स्वामी समुद्र ने उसे प्रणाम किया। उनके इसी कार्य से उनका नाम सागर पड़ा । समुद्र से यज्ञ का घोड़ा वापस लाने के बाद, राजा ने बार-बार कुल मिलाकर एक सौ अश्व-यज्ञ किये।

भगीरथ द्वारा बाद में गंगावतरण:-

सगर ने यह समाचार सुनकर अपने पोते अंशुमान को घोड़ा छुड़ाने के लिये भेजा। अंशुमान उसी राह से चलकर जो उसके चाचाओं ने बनाई थी, कपिल के पास गया। उसके स्तव से प्रसन्न होकर कपिल मुनि ने कहा कि “लो यह घोड़ा और अपने पितामह को दो;” और यह बर दिया कि “तुम्हारा पोता स्वर्ग से गंगा लायेगा। उस गंगा-जल के तुम्हारे चचा की हड्डियों में लगते ही सब तर जायेंगे ।” घोड़ा पाकर सगर ने अपना यज्ञ पूरा किया और जो गड्ढा उसके बेटों ने खोदा था उसका नाम सागर रख दिया । हम इससे यह अनुमान करते हैं कि सगर के बेटे सब से पहले बंगाल की खाड़ी तक पहुंचे थे और समुद्र को देखा था।

कई पीढ़ियों बाद, सगर के वंशजों में से एक, भगीरथ ने पाताल से अपने पूर्वजों की आत्माओं को मुक्त करने का कार्य किया। उन्होंने देवी गंगा की तपस्या करके इस कार्य को आगे बढ़ाया और उन्हें स्वर्ग से गंगा नदी के रूप में धरती पर उतारने में सफल रहे और पाताल में 60,000 मृत पुत्रों का अंतिम संस्कार किया।

सगर द्वारा अयोध्या का त्याग:-

अपने बेटों की मृत्यु के बाद, सगर ने अयोध्या की गद्दी त्याग दी और असमंजस के पुत्र अंशुमान को अपना उत्तराधिकारी बनाया। वह और्व के आश्रम में चले गए और अपने बेटे की राख पर गंगा को उतारने के लिए तपस्या करने लगे।

राधे श्याम द्विवेदी

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)

 




बारिश की फुहार लाई एक संदेश

कुछ दिनों से इंदौर में बारिश ने अपनी दस्तक दे दी।
अहा ! क्या कहूँ…!

यूँ ही खिड़की किनारे लगे अपने पौधों को निहार रही थी। सोच ही रही थी कि गर्मी में कितने झुलस जाते हैं । पानी से उनको तरोताजा करने की सोच ही रही थी कि अचानक से मौसम_बेईमान हो गया । इंसानों को बदलते तो देखा था पर मौसम …???

अरे नहीं नहीं … ये मौसम की बेईमानी वैसी नहीं हैं, यह तो हमें पसंद हैं। वो बादलों का घुमड़ घुमड़ करना , रूई सी शक्ल वाले इन बादलों ने कुछ ही देर में अपना मेकअप इस कदर कर लिया मानो मिशन_ए_बारिश की पूर्ण तैयारी हैं ।

ब्लैक_से_व्हाइट होते तो सुना था पर आज व्हाइट से ब्लैक भी देख लिया । हम बार – बार हथेली को फेला रहे थे ये देखने के लिए कि बरखा रानी पधारी या नहीं , क्योंकि उनके लिए रेड कारपेट तो हम सभी ने कब से बिछा रखा था पर इनके नखरे हैं कि ख़त्म होते नहीं।

निराश होकर मैं हाथ अंदर खींच ही रही थी कि अचानक से जोर का झटका लगा ,( सेम वैसा जो अक्सर फिल्मों में होता हैं ) मेरी हथेली पर जोर से एक गोल मटोल बूंद आकर गिरी जो बहुत गुस्से में थी । मैंने पूछा क्यों भई , ” काहे लाल पीली हो रही हो ? इतना अच्छा तो स्वागत का इंतजाम किया हैं।”

कहने लगी ,” इतने ऊपर से गिरूंगी तो मेरी हड्डी पसली न एक हो जाएगी , तुम्हारे लिए मजा है पर मेरे लिए तो सजा हैं, इतना कहकर वो मेरी हथेली से कूद गई l

उसके ऐसा करते ही दूसरी बूंद टपक पड़ी मानो पहली के कूदने का ही इंतजार कर रही थी। होता है होता है ऐसा भी …!

बारिश आने के पहले , बारिश के समय और बारिश के बाद वाकई मौसम सुहावना हो जाता हैं । चारों ओर प्रकृति ऐसी लगती हैं मानो #नव_दुल्हन श्रृंगार किए हुए हो।

हर कोई इन पलों को , इन नजारों को अपने अपने हिसाब से देखता हैं । किसी की कलम लिखने को आतुर हो उठती हैं तो किसी का दिल मधुर मिलन के गीत गुनगुनाने लगता हैं । कोई शायरी में इसे ढालता हैं तो किसी की कल्पना अदृश्य का चित्रण करने लगती हैं। सच में, मानसून_का_आना_प्यार_का_आना_है।बहुत कुछ हैं लिखने को तो पर यहीं विराम देती हूँ वरना तीसरी बूंद पता नहीं सवालों का कौनसा तीर छोड़ेगी !!

मोहिनी गुप्ता
राजगढ़ ( ब्यावरा )
मध्य प्रदेश




‘गेटवे टू द सीः हिस्टोरिक पोर्ट्स एंड डॉक्स ऑफ मुंबई रीजन’ पुस्तक का विमोचन

मुंबई । महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री रमेश बैस ने 22 जून, 2024 (शनिवार) को राजभवन मुंबई में ‘गेटवे टू द सीः हिस्टोरिक पोर्ट्स एंड डॉक्स ऑफ मुंबई रीजन’ नामक पुस्तक का विमोचन किया। पुस्तक प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रकाशित की गई है। पुस्तक में मैरीटाइम मुंबई म्यूजियम सोसाइटी (एमएमएमएस) द्वारा संकलित प्रसिद्ध लेखकों के 18 लेख शामिल हैं।

महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री रमेश बैस ने इस अवसर पर एमएमएमएस और 17 लेखकों और दो संपादकों को सम्मानित किया। उन्होंने मुंबई के नागरिकों को उनके प्राचीन समुद्री इतिहास के बारे में जानने के लिए भी प्रोत्साहित किया। प्रकाशन विभाग द्वारा एशियाटिक सोसाइटी के सहयोग से राजभवन के दरबार हॉल में पुस्तक की प्रस्तुति भी दी गई। आमंत्रित लोगों में इतिहासकार और इतिहास के प्रति उत्साही लोग शामिल थे।

एमएमएमएस द्वारा संकलित यह पुस्तक सोपारा, वसई, वर्सोवा, माहिम, कल्याण, ठाणे, पनवेल, अलीबाग, चौल, मंडद और जंजीरा जैसे मुंबई क्षेत्र के विभिन्न पोर्ट्स और डॉक्स के इतिहास पर आधिकारिक लेखों का संकलन है। इतिहासकारों, शोधकर्ताओं, समुद्री विशेषज्ञों, संरक्षण वास्तुकारों और लेखकों ने सभी 18 अध्यायों में योगदान दिया है। इस पुस्तक का प्रकाशन उपरोक्त प्राचीन बंदरगाहों के बारे में जागरूकता पैदा करने में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है और इसमें मझगांव डॉक, मुंबई पोर्ट, बॉम्बे डॉक, ससून डॉक और फेरी व्हार्फ सहित मुंबई के आधुनिक बंदरगाहों और डॉक के विकास को भी शामिल किया गया है जिसे भाऊचा धक्का के नाम से भी जाना जाता है।

समारोह में मैरीटाइम मुंबई म्यूजियम सोसाइटी के अध्यक्ष कैप्टन केडी बहल, वाइस एडमिरल (सेवानिवृत्त) इंद्रशील राव, संपादक डॉ. शेफाली शाह, उपाध्यक्ष अनीता येवाले, प्रकाशन विभाग की उप निदेशक संगीता गोडबोले और योगदानकर्ता लेखक उपस्थित थे।