भगवान अलारनाथ के दर्शन हेतु ब्रह्मगिरि में उमड़ा भक्तों का सैलाब

श्रीपुरी धाम के श्रीमंदिर से लगभग 23किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है ब्रह्मगिरि का सुविख्यात भगवान अलारनाथ का मंदिर जहां पर भगवान अलारनाथ जी की काली प्रस्तर की प्रतिमा चतुर्भुज नारायण के रुप में है जो चित्ताकर्षक है । गौरतलब है कि गत 22 जून को देवस्नान पूर्णिमा के दिन अत्यधिक स्नान करने के चलते भगवान बीमार हो गये और उनको चतुर्धा देवविग्रह सहित उनके अपने-अपने अलग-अलग बीमारकक्ष में एकांतवास कराकर उनका आयुर्वेदसम्मत उपचार आरंभ हो गया।श्रीमंदिर का मुख्य कपाट भक्तों के दर्शन के लिए बंद कर दिया गया। तब ते लेकर अगले 14 दिनों तक पुरी धाम आनेवाले समस्त जगन्नाथ भक्त भगवान जगन्नाथ के दर्शन भगवान अलारनाथ के रुप में ही करेंगे

।ब्रह्मगिरि के भगवान अलारनाथ मंदिर का आध्यात्मिक परिवेश अति मोहक है।ऐसा माना जाता है कि सत्युग में स्वयं ब्रह्माजी आकर वहां पर प्रतिदिन तपस्या किया करते थे। वैष्णव मतानुसार ओडिशा के ब्रह्मगिरि के विख्यात भगवान अलारनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं ब्रह्माजी ने ही किया था।यह भी जानकारी मिलती है कि 09वीं सदी में राजा चतुर्थभानुदेव ने इस मंदिर का निर्माण किया था जो स्वयं दक्षिण भारत के एक लोकप्रिय वैष्णव भक्त थे।सच तो यह है कि इस मंदिर का पूर्णरुपेण विकास 14वीं सदी में हुआ।यह मंदिर मुख्य रुप से श्रीकृष्ण भक्तों का मंदिर है।ब्रह्मगिरि के अधिसंख्यक स्थानीय लोग वैष्णव हैं जो साल के 365 दिन अलारनाथ मंदिर जाकर भगवान अलारनाथ की नित्य पूजा-अर्चना करते हैं।

दक्षिण भारत में आज भी विष्णुभक्त चतुर्भुज नारायण के रुप में ही भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। ब्रह्मगिरि के भगवान अलारनाथ मंदिर की देवमूर्ति काले पत्थर की बनी है जो साढे पांच फीट की अति सुंदर देवमूर्ति है।इस मंदिर का महत्त्व प्रतिवर्ष भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के क्रम में उस समय बढ जाता है जब प्रतिवर्ष देवस्नानपूर्णिमा के दिन चतुर्धा देवविग्रहःभगवान जगन्नाथ,बलभद्र जी,सुभद्रा जी तथा सुदर्शन जी अत्यधिक स्नान करने के कारण बीमार हो जाते हैं और उन्हें अगले 15दिनों के लिए इलाज के लिए उनके बीमार कक्ष में एकांतवास करा दिया जाता है। बीमार कक्ष में उनका लगातार 15 दिनों तक उनका आर्युर्वेदसम्मत उपचार होता है।

श्रीमंदिर का मुख्य कपाट अगले 15दिनों के लिए जगन्नाथ भक्तों के दर्शन के लिए बन्द कर दिया जाता है। कहते हैं कि 1510 ई. में अनन्य श्रीकृष्ण भक्त महाप्रभु चैतन्यदेवजी स्वयं वहां जाकर भगवान अलारनाथ के दर्शन किये थे। प्रकृति के सुरम्य परिवेश में अवस्थित ब्रह्मगिरि पर्वत तथा भगवान अलारनाथ का मंदिर आज कई दशकों से सैलानियों का स्वर्ग बना हुआ है। मंदिर में भगवान अलारनाथ को प्रतिदिन खीर का भोग निवेदित किया जाता है जो एक तरह से भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद की तरह ही काफी स्वादिष्ट होता है।

कहते हैं कि जिसप्रकार श्रीमंदिर पुरी धाम के महाप्रसाद की जैसी आध्यात्मिक,सामाजिक और धार्मिक मान्यता है,ठीक उसी प्रकार भगवान अलारनाथ के खीर भोग ग्रहण की भी वैसी ही मान्यता है। गौरतलब है कि 2015 के नवकलेवर से ही से लगातार भगवान अलारनाथ मंदिर ब्रह्मगिरि की साफ-सफाई आदि का जिम्मा ओडिशा सरकार ने अपने हाथों में ले रखा है जिसके बदौलत पुरी जगन्नाथ मंदिर की तरह ही सुंदर परिवेश ब्रह्मगिरि भगवान अलारनाथ मंदिर का बन चुका है।इस वर्ष 2024 में ओड़िशा के नये मुख्यमंत्री मोहन माझी के नेतृत्ववाली प्रदेश सरकार ने वहां पर काफी सुव्यवस्था करा दी है जिससे कि ओडिशा के बडे-बुजुर्ग जगन्नाथ भक्त भी इस वर्ष ब्रह्मगिरि जाकर भगवान अलारनाथ के दर्शन अच्छे से कर सकें क्योंकि ओड़िशा के अधिकांश बड़े-बुजुर्ग अलारनाथ जाकर ही कम से कम एक दिन अलारनाथ भगवान के दर्शनकर संतुष्ट होते हैं।

भगवान अलारनाथ मंदिर प्रशासन की ओर से प्राप्त जानकारी के अनुसार मंदिर की ओर से प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी वहां की पुष्करिणी में भगवान जगन्नाथ की विजय प्रतिमा मदनमोहन आदि की 21दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा भी अनुष्ठित हुई थी। श्रीमंदिर प्रशासन पुरी के निर्देशानुसार इस दौरान पुरी आनेवाले समस्त जगन्नाथ भक्तों से यह विनम्र अपील की जा रही है कि वे अगले 14 दिनों तक समस्त जगन्नाथभक्त ब्रह्मगिरि जाकर वहां स्थित अगवान अलारनाथ के दर्शन भगवान जगन्नाथ के रुप में करें। इस वर्ष महाप्रभु की विश्वप्रतिद्ध रथयात्रा आगामी 07जुलाई को है जो अपने आपमें एक पतितपावनी यात्रा होगी जिसमें रथारुढ़ भगवान जगन्नाथ के दर्शनकर समस्त जगन्नाथ भक्त अपने-अपने मानव जीवन को धन्य करेंगे।

(लेखक ओडिशा की साहित्यिक, सांस्कृतिक व धार्मिक गतिविधियों पर निरंतर लेखन करते रहते हैं और राष्ट्रपति से पुरस्कृत भी हो चुके हैं)




उज्जैन को उज्जयिनी नाम कब मिलेगा

उज्जयिनी – उत्कर्ष के साथ जय करने वाली नगरी उज्जयिनी ! आज के उज्जैन को दूर से देखने जानने वाले बहुत कम लोग जानते होंगे कि उज्जयिनी संसार की सबसे प्राचीन नगरी है . दावा दिल्ली बनारस से लेकर भले ही रोम वेनिस भी करते रहें हो प्रमाण तो उज्जयिनी के पक्ष में ही हैं , आज जो राष्ट्र की राजधानी हैं दिल्ली, वह एक गाँवडा भी नहीं थी जब ईसा पूर्व ५७ में उज्जयिनी सम्राट विक्रमादित्य की राजधानी थी , जिनका शासन नेपाल अरब ईरान से ले कर अफ़ग़ानिस्तान तक था . मिस्र के तूतन खामन की खुदाई में स्वर्ण पत्र पर विक्रमादित्य की प्रशंसा में कविता प्राप्त हुई हैं !

दरअसल , इधर की पीढ़ी को यही पढ़ाया गया कि हम पाँच सो साल ग़ुलाम रहेॉ, मुग़लों, की दो सौ साल ग़ुलाम रहे अंग्रेजो के, तो तुम सदैव से पराजित पराभूत हारे थके लूटे पीटे जुआरी हो महाभारत के ! वर्ष १९४२ में “ विक्रम “ पत्र का प्रकाशन आरंभ कर प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सैनानी पत्रकार सम्पादक और ज्योतिष जगत के सूर्य पद्म भूषण पंडित सूर्य नारायण व्यास ने “ विक्रमादित्य “ पर पृथ्वी राज कपूर को ले कर एक फ़ीचर फ़िल्म बनायी और नयी पीढ़ी को बताया कि तुम सदैव पराजित पीढ़ी नहीं थी.

विक्रम के पराक्रम को स्थापित करने उन्होंने उज्जयिनी में विक्रम विश्वविद्यालय विक्रम कीर्ति मंदिर स्थापित किया , तीन हज़ार पृष्ठ का विक्रम स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित किया हिंदी मराठी अंग्रेज़ी में , विक्रम युग की सवर्ण मुद्रा खोज निकाली , और दुनिया को बताया कि नवरत्न तो विक्रम के दरबार में थे , जिसकी नक़ल कर सम्राट अकबर ने भी कालिदास वराह मिहिर वररुचि वैताल भट्ट शंकु की तर्ज़ पर तानसेन बीरबल टोडरमल रखे !

आज़ादी के पहले और बाद भी मानसिक ग़ुलामी से हम मुक्त नहीं हुए थे . हमारे सारे राजनेता विदेश से पढ़कर आये थे, क्या गांधी ,नेहरू ,पटेल ,सुभाष सभी ,क्या अंबेडकर, क्या जयप्रकाश सब शेक्सपियर तो जानते थे, कालिदास को नहीं . तब उज्जयिनी में १९२८ में अखिल भारतीय कालिदास समारोह आरंभ कर सारे संसार को बताया पंडित सूर्यनारायण व्यास ने की विश्व कवि तो हैं कालिदास , नाटक कार भी शेक्सपियर से बड़ा ! एक समय था उज्जयिनी को महाकाल और पंडित सूर्यनारायण व्यास के नाम से ही जाना जाता था ! आज फिर एक पीढ़ी धर्म और पाखंड में लिप्त उज्जयिनी के असली साहित्यिक सांस्कृतिक वैभव से परिचित नहीं हैं !ॉ

उज्जैन केवल महाकाल की नगरी ही नहीं, कृष्ण बलराम के गुरु महर्षि संदीपनीं की भी नगरी हैं. भास ,शुद्रक, भर्तृहरि,, राजशेखर उदयन वासवदत्ता की भी नगरी हैं . अकेले इस नगरी के बारह बार नाम बदले गये वेद पुराण और उपनिषद काल से .

कनक शृंगा कुश स्थली अवंतिका उज्जयिनी पद्मावती कुमुदवती विशाला प्रतिकल्पा अमरावती जैसे अनेक नाम से सुशोभित उज्जयिनी आज उज्जैन हैं. ज्योतिष की जन्मभूमि जिसका मेघदूत से ले कर कादम्बरी कथा सरित्सागर में खूब गुण गान किया हैं तब से अब के साहित्यकारों ने . पद्म भूषण पंडित सूर्य नारायण व्यास इसे राष्ट्र की राजधानी बनाना चाहते थे . तब तो हुआ नहीं ,आहट हैं की अब होगा ! वे विक्रम संवत् को राष्ट्रीय संवत् बनाना चाहते थे . हमने ईसाई सन् संवत् अपना कर ग्रेगरियन केलेनडर को अपना लिया, जिस से आज हम २०२४ में हैं . पर विक्रम सम्वत् अपनाया होता तो हम होते आज २०८१ में ,याने इक्कीस वी सदी में तो हम कितने साल पहले ही प्रवेश कर जाते !

उज्जैन के साहित्यिक सांस्कृतिक वैभव को सारी दुनिया तक पहुँचाने में व्यास जी जैसे महामना के बाद विगत पचास बरस से दूरदर्शन पर “ जयती जय उज्जयिनी “ काल और संसार के सारे देशों में प्रसारित अंग्रेज़ी में बनी फ़िल्म ‘द टाइम ‘ जिस से संसार को हमने बताया, कि सारे संसार को काल गणना भी हमने सिखायी ! ग्रीनविच मीन टाइम से पहले उज्जयिनी स्टेण्डर्ड टाइम होता था ! आज उज्जयिनी में महाकाल लोक हैं !उज्जयिनी अद्भुत नगरी हैl

उज्जयिनी का जो आलोक था साहित्यिक ,सांस्कृतिक ,पौराणिक ,ऐतिहासिक वह आलोक महाकाल लोक में नहीं दिखाई देता हैं . क्योंकि आस्था ,श्रद्धा ,विश्वास अब धार्मिक पर्यटन में बदल गया हैं . धर्म में धंधा आ जाय तो पवित्रता लुप्त होने लगती हैं . .

यहाँ शक्ति पीठ हरसिद्धि भी हैं तो सिद्धि विनायक से मशहूर बड़े गणपति भी , तांत्रिक पीठ में दक्षिण मुखी महाकाल के अलावा उनके गण काल भैरव भी .आठ हज़ार बरस पुराने राजा भद्र सेन निर्मित इस मंदिर में काल भैरव मदिरा पान करते हैं . जब अपनी फ़िल्म जयती जय उज्जयिनी में पहली बार इसे लाइव दिखाया था तो सारे देश में हलचल मची अनेक देश से वैज्ञानिक भी आये ,मगर वे भी यह खोज नहीं पायें की काल भैरव जो मदिरा पीते हैं वह जाती कहा हैं ?

यहाँ गोरखनाथ संप्रदाय के गुरु मच्छन्दर नाथ की समाधि भी हैं, और भर्तहरी की गुफा भी दर्शनीय स्थल हैं.

भारत भर में जो दिल्ली मथुरा जयपुर बनारस में वेधशाला हैं , उज्जयिनी में भी उन्ही सवाई राजा जयसिंह निर्मित वेध शाला हैं जो आज तक कार्य रत हैं. अपनी फ़िल्म ‘काल’ और’ द टाइम ‘ में काल गणना पर बेहद विस्तार से मैंने बेहद रोचक ढंग से समझाया हैं. यह फ़िल्म यू ट्यूब पर मेरा नाम टाइप करते ही मिल जायेगी. l

फिर समय-समय पर होने वाले अनेक पर्व एवं त्यौहार, मेले-ठेल भी इस नगरी को जीवन्त और जागृत बनाये रखते हैं। कार्तिक मेला, शनिश्चरी अमावस्या-सोमवती अमावस्या तो त्रिवेणी के मेले, कभी श्रावण की सवारी तो कभी चिंतामन की यात्रा, पंचक्रोशी यात्रा और इन सबसे बढ़कर ‘सिंहस्थ पर्व।’

उज्जयिनी का जन्मदिन होता हैं बारह साल में एक बार _ सिहस्थ पर्व के रूप में , कहानी हैं –

‘सिंहस्थ पर्व’ का उज्जयिनी से घनिष्ठ सम्बंध है। भारत की प्राचीन महानगरियों में उज्जयिनी को अत्यंत पवित्र नगरी माना गया है-प्रयाग, नासिक- हरिद्वार, उज्जयिनी इन स्थानों की पवित्रता और श्रेष्ठता यहां होने वाले कुंभ अथवा सिहंस्थ महापर्व के कारण भी मानी जाती हैं। कुंभ या सिंहस्थ पर्व इन्हीं स्थानों पर क्यों मनाया जाता है? इस सम्बंध में ‘स्कंदपुराण’ में एक अत्यंत रोचक कथा- उल्लखित है- देवताओं और दानवों ने समुद्र मन्थन किया, उसमें से अनेक रत्न प्राप्त हुए, उनमें एक ‘अमृत कुंभ कलश’ भी मन्थन से प्राप्त हुआ। उस कुंभ कलश के लिये देवता और दानवों में परस्पर संघर्ष होने लगा।

इंद्र का पुत्र जयन्त उस कलश को लेकर भागा, अमृत हेतु सभी उसके पीछे लग गये, कुंभ कलश भी एक हाथ से दूसरे हाथ पहुंचने लगा देवताओं में भी सूर्य, चन्द्र और गुरू का अमृत कलश संरक्षण मे विशेष सहयोग रहा था, चन्द्र ने कलश को गिरने से सूर्य ने फूटने से तथा बृहस्पति ने असुरों के हाथ में जाने से बचाया था। फिर भी इस संघर्ष में कुंभ में से अमृत की बून्दें छलकीं ये अमृत बून्दें-प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जयिनी नगरी में छलकी थी अतः ये स्थल कुम्भ पर्व के स्थल बन गये, ये ही वे चार तीर्थ हैं जो अमृतत्व बिन्दु के पतन से अमृत्तत्व पा गये। धार्मिक गणों की आस्था है कि कलश से छलकी बूँदों से न सिर्फ यह तीर्थ अपितु यहाँ की पवित्र नदियाँ, गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी एवं क्षिप्रा भी अमृतमयी हो गयी है।

इस कथा में धार्मिक पवित्रता के साथ-साथ खगोलीय एवं वैज्ञानिक महत्व भी समाहित है। ग्रहों और नक्षत्रों की विशिष्ट गतिविधि के कारण ही सिंहस्थ अथवा कुंभ पर्व 12 वर्षों में एक बार एक नगरी में मनाया जाता है ये विशिष्ट ग्रहयोग भी प्रत्येक पवित्र स्थल के लिये पृथक पृथक हैं। जैसे प्रयाग में होने वाले कुम्भ पर्व पर मकर राशि मे सूर्य, वृष राशि में गुरु तथा माघ मास होना आवश्यक है। उज्जयिनी के कुम्भ पर्व को अन्य पर्वो से अधिक महत्व प्राप्त हैं, क्योंकि इसमें ‘सिंहस्थ’ भी समाहित हैं। ‘सिंहस्थ-महात्म्य’ में उज्जयिनी में सिंहस्थ पर्व होने के लिये दस योगों का होना अत्यावश्यक माना गया हैं, वे योग हैं। वैशाख मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, मेष राशि पर सूर्य, सिंह राशि पर बृहस्पति, तुलाराशि पर चन्द्र, स्वाति नक्षत्र, व्यतीपात योग, सोमवार एवं उज्जयिनी की भूमि।

हम जब छोटे थे युवा हुए तो आंदोलन चलाते थे की जब बॉम्बे मुंबई हो गया मद्रास चेन्नई तो उज्जैन का नाम भी उज्जयिनी हो मध्य प्रदेश के नये मुख्य मंत्री ने हमारी बात मानी हैं संभवत आप जब तक इन पंक्तियों को पढ़े उज्जैन फिर उज्जयिनी हो जाय.l

अब यह मेरी उज्जयिनी तो नहीं है चालिस साल पहले जिसे छोड कर , जिसका यश देश देश गाने मैं दिल्ली , मुम्बई , हॉलीवुड गया । जिस पर अनेक ग्रंथ रचे , अनेक फिल्में बनाई, मेरी यह उज्जयिनी तो नहीं । वर्ष अस्सी में तो जरूर था ये नन्हा सा ,छोटा सा ,प्यारा सा आत्मीयता से ओत प्रोत शहर उज्जैन पर उसमें उज्जयिनी धडकती थी , उसमें उज्जयिनी रहती थी । अब जब सारी दुनिया नाप कर आया तो यह धार्मिक टूरिज्म , होटल , दुकान , मंगते भिखारी, पण्डे पुजारी , धर्म का धंधा करने वाला शहर मिला , जहॉं से उज्जयिनी तो गायब है ही उज्जैन भी नहीं रहा । साहित्य, संस्कृति , कला , प्रकृति, कालिदास , विक्रम , भृर्तहरि की उज्जयिनी कहॉं खो गयी ।

अपने साथ उज्जयिनी ले गया था आया तो ऐसा उज्जैन मिला । माननीय मुख्य मंत्री ,

माननीय प्रधान मंत्री का ध्यान गया तब ‘ शिवलोक ‘ को ‘महाकाल लोक‘ कहने का नाम प्रधान मंत्री को सुझाया । उन्होंने मेरी पुस्तक ‘ जयती जय उज्जयिनी‘ पढी । महाकाल वन का ध्यान किया , यहॉं से भैरव , गणेश व हनुमान जी का स्मरण किया । उज्जैन का नाम उज्जयिनी करने की बात तो हुई ।

उज्जयिनी को देश की राजधानी बनाने का स्वप्न जो पं ़ सू़र्यनारायण व्यास छोड गये थे , विक्रम संवत को राष्टीय संवत बनाने का स्वप्न रच गये थे , वह स्वप्न सम्पूर्ण हो ।

राज शेखर व्यास
भारती भवन
गिरीराज हेरिटेज
माधव क्लब रोड , उज्जैन

विजयिनी,दिन अर्पाटमैन्ट
प्लॉट न 7, सैक्टर 4
द्वारका , नई दिल्ली




पश्चिम रेलवे द्वारा 35 जोड़ी स्‍पेशल ट्रेनों के फेरे विस्‍तारित

मुंबई। पश्चिम रेलवे द्वारा यात्रियों की सुविधा तथा उनकी मांग को पूरा करने के उद्देश्य से विशेष किराये पर 35 जोड़ी स्‍पेशल ट्रेनों के फेरे विस्‍तारित किए गए हैं।

पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी श्री विनीत अभिषेक द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार इन ट्रेनों का विवरण निम्नानुसार है:

1. ट्रेन संख्‍या 09209 बांद्रा टर्मिनस-भावनगर टर्मिनस साप्ताहिक स्पेशल जिसे पहले 28 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 26 जुलाई, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्‍या 09208 भावनगर टर्मिनस-बांद्रा टर्मिनस साप्ताहिक स्पेशल जिसे पहले 27 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 25 जुलाई, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

2. ट्रेन संख्‍या 09415 बांद्रा टर्मिनस-गांधीधाम साप्ताहिक स्पेशल जिसे पहले 27 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 25 जुलाई, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्‍या 09416 गांधीधाम-बांद्रा टर्मिनस साप्ताहिक स्पेशल जिसे पहले 27 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 25 जुलाई, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

3. ट्रेन संख्‍या 09007 वलसाड-भिवानी साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 27 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 25 जुलाई, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्या 09008 भिवानी-वलसाड साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 28 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था,अब उसे 26 जुलाई, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

4. ट्रेन संख्या 09493 अहमदाबाद-पटना साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 30 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 28 जुलाई, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्या 09494 पटना-अहमदाबाद साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 2 जुलाई, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 जुलाई, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

5. ट्रेन संख्या 09059 सूरत-ब्रह्मपुर साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 26 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 31 जुलाई, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्या 09060 ब्रह्मपुर-सूरत साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 28 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 2 अगस्त, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

6. ट्रेन संख्या 09425 साबरमती-हरिद्वार द्वि-साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 14 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 24 जून से 29 जुलाई, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्या 09426 हरिद्वार-साबरमती द्वि-साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 15 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 25 जून से 30 जुलाई, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

7. ट्रेन संख्‍या 09211 गांधीग्राम-बोटाद डेली (अनारक्षित) स्पेशल जिसे पहले 29 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्‍या 09212 बोटाद-गांधीग्राम डेली (अनारक्षित) स्पेशल जिसे पहले 29 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

8. ट्रेन संख्‍या 09456 भुज-गांधीनगर केपिटल डेली स्पेशल जिसे पहले 30 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्‍या 09455 गांधीनगर केपिटल-भुज डेली स्पेशल जिसे पहले 30 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

9. ट्रेन संख्‍या 09215 गांधीग्राम-भावनगर टर्मिनस डेली (अनारक्षित) स्पेशल पहले 29 जून, 2024 तक अधिसूचित गया था, अब उसे 30 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्या 09216 भावनगर टर्मिनस-गांधीग्राम डेली (अनारक्षित) स्पेशल, जिसे पहले 29 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

10. ट्रेन संख्या 09529 धोला-भावनगर टर्मिनस डेली (अनारक्षित) स्पेशल, जिसे पहले 30 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे को 30 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्या 09530 भावनगर टर्मिनस- धोला डेली (अनारक्षित) स्पेशल, जिसे पहले 29 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

11. ट्रेन संख्‍या 09055 बांद्रा टर्मिनस-उधना (सप्ताह में 5 दिन) स्पेशल, जिसे पहले 30 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्‍या 09056 उधना-बांद्रा टर्मिनस (सप्ताह में 5 दिन) स्पेशल, जिसे पहले 30 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

12. ट्रेन संख्‍या 09111 वडोदरा-गोरखपुर साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 24 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्‍या 09112 गोरखपुर-वडोदरा साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 26 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 2 अक्टूबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

13. ट्रेन ट्रेन संख्या 09195 वडोदरा–मऊ साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 29 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 28 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्या 09196 मऊ–वडोदरा साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 30 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 29 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

14. ट्रेन संख्या 09417 अहमदाबाद–दानापुर साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 24 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्या 09418 दानापुर–अहमदाबाद साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 25 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 1 अक्टूबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

15. ट्रेन संख्या 09343 डॉ. अंबेडकर नगर–पटना साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 27 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 26 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्‍या 09344 पटना-डॉ अंबेडकर नगर साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 28 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 27 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

16. ट्रेन संख्‍या 09025 वलसाड-दानापुर साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 24 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्‍या 09026 दानापुर-वलसाड साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 25 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 1 अक्टूबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

17. ट्रेन संख्‍या 09045 उधना-पटना साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 28 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 27 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्‍या 09046 पटना–उधना साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 29 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 28 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

18. ट्रेन संख्‍या 09575 राजकोट–जडचर्ला साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 24 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्‍या 09576 जडचर्ला–राजकोट साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 25 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 1 अक्टूबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

19. ट्रेन संख्‍या 09569 राजकोट–बरौनी साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 28 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 27 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्‍या 09570 बरौनी–राजकोट साप्ताहिक स्पेशल, जिसे पहले 30 जून, 2024




पत्नी की खुशी के लिए मिक्सर का आविष्कार कर डाला

ऐसे हुआ था रसोई की #मिक्सी का आविष्कार ।।।
#पत्नी_प्रेम के चलते हुआ मिक्सी का अविष्कार

साल था 1960 । मुम्बई शहर। सत्यप्रकाश माथुर नामक इंजीनियर का विवाह माधुरी माथुर से हुआ और दोनों मुम्बई में बस गये। सत्यप्रकाश पेशे से एक इंजीनियर थे, माधुरी घर का सारा काम काज बखूबी संभाल लेती थी। वह दौर था जब रसोई घर मे विद्युत उपकरणों के नाम पर कुछ भी नहीं होता था। ना फ्रिज ना माइक्रोवेव और ना मिक्सी।

मिक्सी। एक ऐसा उपकरण जिसकी आवाज़ आज पूरे घर को हिला देती है। यह जानना सुखद रहा के मिक्सी का अविष्कार एक हिंदुस्तानी ने किया था और यह जानना और भी सुखद रहा के मिक्सी का आविष्कार एक पति ने अपनी पत्नी की दिनचर्या को सरल बनाने के लिये किया था।

एक रोज़ सत्यप्रकाश माथुर ने अपनी पत्नी को हाथ से मसाला पीसते देखा। बाजुओं का जोर लगा कर मसाला पीसती माधुरी पसीने में तरबतर हो चुकी थी। पेशे से इंजीनियर सत्यप्रकाश ने पता किया के क्या मार्किट में कोई ऐसा विद्युत उपकरण है जो मसाले पीसने का काम कर सके। उन्हें पता चला के एक बारून नामक एक जर्मन कम्पनी है जो हिंदुस्तान में एक ब्लेंडर बेचती है जिससे मसाला पीसने का काम सरल हो सकता है। सत्यप्रकाश ने अपनी गाढ़ी कमाई से महंगा ब्लेंडर खरीदा और धर्मपत्नी को भेंट कर दिया।

दिक्कत यह हो गयी कि ब्लेंडर था जर्मन और मसाले थे हिंदुस्तानी। कुछ दिन बेचारा जर्मन ब्लेंडर हिन्दुतानी मसालों का बोझ सहता रहा और फिर एक दिन उसमें से एक चिंगारी निकली और उसकी मोटर का राम नाम सत्य हो गया।

दूसरी दिक्कत यह हो गयी कि धर्मपत्नी को ब्लेंडर की आदत पड़ गयी और हाथ का काम उन्हें अब मुश्किल लगने लगा।
सत्यप्रकाश जी मोटर ठीक करवाने निकले तो मालूम हुआ के बारून कम्पनी का कोई सर्विस सेंटर हिंदुस्तान में मौजूद ही नहीं है।
दूजी ओर माधुरी माथुर दोबारा ब्लेंडर का काम हाथ से करने लगी और सत्यप्रकाश माथुर को यह बात हज़म नहीं हो रही थी। पेशे से एक इंजीनियर थे और सवाल पत्नी को हो रही असुविधा का था।

काफी मंथन के पश्चात सत्यप्रकाश जी ने एक शाम धर्मपत्नी से कहा के मैं तुम्हारे लिये एक ऐसा उपकरण बनाऊंगा जो तुम्हारा हर काम आसान कर देगा। पत्नी को लगा कि यह पति का प्यार है जो ऐसा कह रहे हैं परंतु सत्यप्रकाश कुछ विशेष करने का निर्णय ले चुके थे।

नाज़ुक से जर्मन ब्लेंडर को छोड़ सत्यप्रकाश ने एक ऐसा उपकरण बनाने की सोची जो भारतीय रसोई के हिसाब से अनुकूल हो। सत्यप्रकाश जोड़तोड़ में जुट गये। कलपुर्जे इक्कठे किये और एक उपकरण बना डाला जिसमे एक शक्तिशाली मोटर लगी हुई थी और भेंटस्वरूप यह पुनः अपनी धर्मपत्नी को भेंट कर दिया।

माधुरी ने उपकरण को इस्तेमाल किया तो आश्चर्यचकित रह गयी। उपकरण सौ फीसदी हिंदुस्तानी रसोई के हिसाब से उपयुक्त था। पत्नी के प्यार में बनी मिक्सी ने एक “बिज़नेस आईडिया” को जन्म दिया। माधुरी ने पतिदेव से कहा के यह उपकरण राष्ट्र की रसोई में क्रांति ला देगा और पत्नी के आग्रह पर इंजीनियर बाबू ने इस उपकरण को विधिवत बनाने की तैयारी शुरू कर दी।

1970 तक सत्यप्रकाश माथुर ने मिक्सी की प्रोडक्शन प्रारंभ कर दी और माधुरी ने इस मिक्सी के लिये एक बेहतरीन नाम भी सुझा दिया।

नाम था : सुमीत
#सुमीत यानी अच्छा मित्र !
1970 के दशक में जब सुमीत मिक्सी जब मार्किट में उतरी तो कमाल का रिस्पॉन्स मिला। हर रोज़ नए ऑर्डर मिलने लगे और प्रोडक्शन बढ़ने लगी। श्रीमती माथुर भी अब श्रीमान जी का हाथ बंटाने लगी और व्यापार दिन प्रतिदिन बढ़ता गया। 1970 का दशक समाप्त होते होते प्रति माह 50,000 से अधिक मिक्सी बिकने लगी। दोनों पति पत्नी ने मिल कर ब्रैंड को इतना विराट बना दिया के मिक्सी का दूसरा नाम ही “सुमीत” बन गया।

एक पति ने अपनी पत्नी का जीवन सरल करने के लिये जिस उपकरण का आविष्कार किया वह आज पांच दशकों बाद भी हर गृहिणी इस्तेमाल कर रही है। उल्लेखनीय है कि हर साक्षात्कार में श्री माथुर अपनी कामयाबी का सारा श्रेय अपनी पत्नी अपनी प्रेयसी को देते रहे।

साभार- https://www.facebook.com/shubham.modanwal.7393 से




ड्रायवर ने कहा, कार की डिक्की में जज साहब बैठे हैंः जस्टिस लीला सेठ की पुस्तक में कई रोचक खुलासे

लीला सेठ हाईकोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस थीं. जब वह रिटायर हुईं तो सरकार ने उन्हें लॉ कमीशन का मेंबर बना दिया. सेठ अपनी आत्मकथा ”घर और अदालत” में लिखती हैं रिटायरमेंट के बाद में मध्यस्थता के काम में उलझ गई थी. उसी दौर में मेरे पास कानून मंत्री का फ़ोन आया. उन्होंने कहा कि सरकार मुझे 15वें विधि आयोग का पूर्णकालिक सदस्य नियुक्त करना चाहती है, जिसका कार्यकाल 1997 से 2000 तक होगा. मैं इस प्रस्ताव से चकित थी. मन में थोड़ी आशंका भी थी. मैंने कानून मंत्री से पूछा कि आयोग का अध्यक्ष कौन होगा. जब उन्होंने बताया कि जस्टिस जीवन रेड्डी अध्यक्ष होंगे तो मैं आयोग से जुड़ने को तैयार हो गई. 10 नवंबर को आयोग ज्वाइन कर लिया.

सेठ लिखती हैं कि जब मैं आयोग में शामिल हुई, तब तब जस्टिस जीवन रेड्डी विदेश गए थे. इसलिये ज्यादा न्यायिक कामकाज नहीं था. पर मेरे कमरे के बाहर हमेशा काफी हलचल रहा करती थी. एक दिन मैं कुछ किताबें और रिपोर्ट पढ़ने की तैयारी कर रही होती, तभी गलियारे में खासा शोर सुनाई दिया. मैंने घंटी बजाई और शोरगुल का कारण जानना चाहा तो मुझे बताया गया कि चपरासी और अन्य लोग चाय पी रहे हैं. ऐसा दिन में कई बार होता. जब मैंने पूछा कि क्या चाय पीते समय इतना शोरगुल मचाना जरूरी है तो मुझे बताया गया कि स्टाफ़ ऐसा कई सालों से कर रहा है और उन्हें भी तनाव दूर करने के लिए कुछ तो चाहिए. धीरे-धीरे मुझे समझ आ गया कि या तो ऊंची आवाज में बातचीत झेलती रहूं या इन लोगों के एकदम गायब जाने को झेलूं, जब बार-बार घंटी बजाने पर भी नहीं आएंगे.

सेठ लिखती हैं कि मैं जल्द ही सरकारी कार्यालयों में अड़ियल और जाति के आधार पर बंटे कामकाज वाले माहौल को समझ गई थी. विधि आयोग शास्त्री भवन की सातवीं मंजिल पर था. मेरे ऑफिस से अटैच कोई बाथरूम नहीं था. कॉमन बाथरूम का नल लीक करता था. वहां एक टूटी हुई हरे रंग की गंदी प्लास्टिक की बाल्टी रखी हुई थी, गुलाबी रंग का मग था जिसका हैंडल टूटा हुआ था और टॉयलेट पेपर भी नहीं था. टॉयलट की खिड़की का शीशा चीकट हो चुका था, क्योंकि उसे बाहर से साफ़ करने की कोई व्यवस्था नहीं थी. खिड़की का एक हिस्सा टूटा हुआ था, जिससे ठंडी हवा को आने से रोकने के लिए दफ़्ती का टुकड़ा लगा दिया गया था.

फ्लश भी नहीं चलता था. उसे ठीक कराने के लिए मुझे हफ्तों लगातार अनुरोध करना पड़ता. कई चिट्ठियां लिखनी पड़ीं, तब जाकर ठीक हुआ, पर थोड़े दिन के बाद वह फिर से टूट जाता. मेरा कमरा देखने में सीपीडब्ल्यूडी के दफ्तर की तरह लगता था. फर्नीचर के आगे बड़े-बड़े अंकों व अक्षरों में नंबर और जानकारी दर्ज थी कि यह किसे आवंटित है, ताकि कोई झगड़ा न हो.

बकौल सेठ, ऑफिस स्टाफ मेज से लगी मेरी कुर्सी पर गुलाबी रंग की तौलिया टांगने पर जोर देता था, जिसमें बैंगनी रंग के बड़े फूल बने थे, ताकि कुर्सी पर बालों का तेल न लगे. मैंने उसे तुरंत हटा दिया. हालांकि साफ़-सफ़ाई और पद की प्रतिष्ठा को लेकर मेरी अज्ञानता पर उन्हें हैरानी थी और उन्होंने इस पर ऐतराज़ भी जताया था. मैंने मेज-कुर्सियों को घुमवाया, पोस्टर और तस्वीरें लगवा दीं, फिर प्लास्टिक के फूलों को फेंकवाया और उनके स्थान पर सिरेमिक फूलदान में हरे मनी प्लांट लगवाए, प्लास्टिक के सारे पेन और पेंसिल केसों को हटवाया, और गोपनीय दस्तावेज़ रखे जाने वाली गंदी सी हरे रंग की स्टील की अलमारी को हिमालय के बर्फ़ीले चित्रों की तस्वीरों से ढंकवाया. मैं घर से डस्टर क्लॉथ लाई और फ़र्नीचरों को साफ किया.

लीला सेठ लिखती हैं कि एक दिन अजीब वाकया हुआ. मुझे सफेद रंग की एम्बेस्डर कार मुहैया कराई गई थी, सरकारी कर्मचारियों को लाने-ले जाने के लिए यही गाड़ी दी गई थी. लेकिन जब मैंने ड्राइवर से अपना सामान कार की डिग्गी में रखने को कहा तो उसने विचित्र नजरों से देखा और उसे पीछे रखने के बजाय अगली सीट पर अपने बगल में रख लिया. जब जब जोर देकर कहा कि मैं चाहती हूं कि मेरा सामान पीछे रखे तो उसने कहा कि वह ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि वहां जस्टिस कुलदीप सिंह ‘बैठे’ हैं।

मुझे उसकी टिप्पणी पर झटका सा लगा. मैंने उससे पूछा कि वह ऐसा क्यों बोल रहा है. उसने कहा कि मैं खुद पीछे देख लूं. उसने जब डिग्गी उठाई तो मैंने वहां एक बड़ा कंप्रेस्ड गैस सिलेंडर रखा देखा, जिसने सामान रखने की पूरी जगह को घेर रखा था. उसने मुझे बताया कि यह सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कुलदीप सिंह के दिए गए एक फ़ैसले का नतीजा है, सभी पुरानी सरकारी एम्बेस्डर कारों को इसी तरह अस्थायी रूप से सीएनजी में बदल दिया गया है.




भाजपा को उत्तर प्रदेश में पराजय के बोध से उतरना ही होगा

उत्तर प्रदेश की जनता ने 2024 लोकसभा चुनावों में हैरान करने वाले चुनाव परिणाम दिये हैं । भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश में 80 में से 80 लोकसभा सीटें जीतने का नारा दिया था किंतु भाजपा गठबंधन मात्र 37 सीटों पर ही सिमटकर रह गया। भाजपा अयोध्या वाले संसदीय क्षेत्र फैजाबाद तक से हार गई जहां प्रभु श्रीराम दिव्य दिव्य एव नव्य राम मंदिर में प्रवेश कर चुके हैं तथा विविध प्रकार के विकास कार्य चल रहे हैं । ये हार हर किसी को आश्चर्य में डाल रही है । आज भी हर तरफ यही चर्चा हो रही है कि अरे भाजपा फैजाबाद में कैसे हार गई ?

आखिर क्यों, फिर यह चर्चा लंबी खिंच जाती है और भाजपा समर्थकों व शुभचिंतकों के माथे पर चिंता की लकीरें खींचने लगती हैं कि अब होगा क्या ? भाजपा का हर शुभचिंतक अपने अपने स्तर पर गहन समीक्षा कर रहा है किंतु क्या बीजेपी आलाकमान व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जनमानस की चिंताओं के साथ खड़े हैं या नहीं। महिलाएं भी अयोध्या पराजय पर चर्चा कर रही हैं कि फ्री राशन, घर, शौचालय, दवाई व राम मंदिर के बाद भी भाजपा क्यों पराजित हो गई?

प्रदेश में भाजपा की पराजय के जो मुख्य बिंदु निकलकर सामने आ रहे हैं उसमें प्रत्याशियों का गलत चयन, राजग गठबंधन के नेताओं की गलत बयानबाजी, क्षत्रियों व राजपूतों की नाराजगी को हलके में ले लेना तथा मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में वोट जिहाद का हो जाना आदि तो था ही मीडिया की मानें तो संघ व भाजपा के बीच आतंरिक टकराव भी एक कारण रहा । वर्तमान समय में जब नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व में ऐसे ऐसे अदभुत कार्य हो रहे हैं जिनका प्रभाव हजार साल तक रहने वाला है उस समय संघ नेतृत्व ने इतनी बड़ी गलती क्यों कर दी?

क्या वो सच ही मोदी जी का अहंकार तोड़ना चाहते थे या अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मार रहे थे ? क्या स्वयं को मातृ संस्था कहने वालों को भी आत्मसंयम का परिचय नहीं देना चाहिए था? ये कठिन प्रश्न मीडिया और सोशल मीडिया में जंगल की आग की तरह फैल चुके हैं। इसे पूरे दावानल में आम सनातनी ठगा सा खड़ा है।

प्रदेश में भाजपा की पराजय के साइड इफैक्ट हर तरफ दिखने लगे हैं। जिन जिलों में इंडी गठबंधन के सांसद बने हैं उन जिलों में आपराधिक गतिविधियों में जबरदस्त तेजी आई है। सीतापुर जिले में नए बने कांग्रेस सांसद ने थाने में धरना देकर एक नाबालिग अपराधी को थाने से ही छुड़ा लिया। इकरा हसन के समर्थकों ने हिन्दुओं पर हमला बोला और सोनभद्र में एक हिन्दू परिवार घर छोड़ने को विवश है, ऐसी ही अनेक घटनाएं प्रकाश में आ रही हैं। लोकसभा चुनाव समाप्त हो जाने के बाद प्रशासनिक अधिकारियों का भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यव्यहार बढ़ता जा रहा है।

राजधानी लखनऊ में वाहन जांच के नाम पर भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी के साथ अभद्रता की गई यद्यपि घटना के बाद ट्रैफिक दारोगा आशुतोष त्रिपाठी को निलंबित कर दिया गया है। राकेश त्रिपाठी का कहना है कि पुलिस भाजपा का झंडा लगा देखकर वाहन को रोक रही है जब लखनऊ में भाजपा प्रवक्ता के साथ इस प्रकार की घटना घटित हो रही है तब प्रदेश के दूसरे जिलों में क्या हाल हो रहा होगा। प्रदेश का पुलिस प्रशासन अभी भी लापरवाही तथा भ्रष्टाचार में संलिप्त है तथा महिला थाने तक में पीड़ितों से रिश्वत मांगी जा रही है। हालाँकि अकबरनगर का अतिक्रमण हटाकर सरकार ने सख्त प्रशासन की अपनी छवि बचाने का प्रयास किया है ।

मीडिया की मानें तो राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने उप्र के अवध क्षेत्र की सीटों पर जीतने का जोर नहीं लगाया, अगर यहाँ पर ताकत लगा दी जाती तो भाजपा की कम से कम आठ सीटें तो और बढ़ ही जातीं किंतु मेड़ ही खेत से मुँह मोड़ चुकी हो तो क्या ही कहा जाए। आम सनातनी योगी मोदी की कम सीटों से दुखी है और समाचारों में देखता है कि ये संघ के असहयोग के कारण हुआ है तो उसका मन व्यथित होता है और संघ पर दशकों से किया गया विश्वास डगमगा जाता है । अहंकार किसी का भी हो लेकिन केवल योगी या मोदी नहीं, संघ भी हारा है और अस्तित्व की लड़ाई से जूझ रहा हिन्दू भी ।

लोकसभा चुनावों के मध्य भाजपा व संघ के बीच मनमुटाव के समाचारों, गलत प्रत्याशी के चयन और उससे भी आगे बढ़कर चयनित प्रत्याशी की गलतबयानी के कारण एक सबसे महत्वपूर्ण सीट हाथ से निकल गई, जिसका व्यापक नकारात्मक प्रभाव दिखाई दे रहा है। रामभक्त विपक्ष के निशाने पर हैं, उनपर तंज कसे जा रहे हैं । श्रीराम जन्मभूमि मंदिर व अयोध्या के विकास कार्यों पर फेक न्यूज़ फैलाई जा रही है, विपक्ष उसको हवा दे रहा है ।अभी हल्की बारिश में अयोध्या धाम के पुराने रेलवे स्टेशन की बाउंड्रीवाल गिर गई जिसको नए स्टेशन की बताकर विकास कार्यों पर कीचड़ उछाला गया। भला हो समय रहते जागरुक नागरिकों ने उसका खंडन कर दिया ।

उप्र में योगी ओर केंद्र में मोदी जी कमजोर हो गये तो नुकसान तो हिंदुत्व का ही होना है। संघ अगर अभी नहीं चेता तो उप्र में भी वहीं हालात हो जाएंगे जो केरल से लेकर तमिलनाडु और बंगाल तक हो रहा हैं। गैर बीजेपी शासित राज्यों में भाजपा और संघ के कार्यकताओं की हत्याएं हो रही हैं। संघ को अपनी शाखा तक लगाने तक में समस्या का सामना करना पड़ रहा है। हिंदू जनमानस अपने उत्सव तक नहीं मना पा रहा है। 2022 के विधानसभा चुनावों के समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक अपील करी थी कि जरा सी गलती से सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा और 2024 में कुछ लोगों के संकुचित सोच के कारण वही गलती हो गई है।

उत्तर प्रदेश में भी जब सपा, बसपा व कांग्रेस आदि दलों की सरकारें हुआ करती थीं तो संघ के स्वयंसेवक जब अपनी शाखा लगाने के लिए पार्कों में जाते थे तब सपा और बसपा के गुंडे व समर्थक भगवा ध्वज उठाकर बहा देते थे और स्वयंसेवकों के साथ दुर्व्यव्यहार किया जाता था। योगी राज मे कम से कम संघ की शाखाएँ सुरक्षित हैं। प्रदेश में जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी तो गांवों में हिन्दू जनमानस अपने घरों में सुंदर कांड व रामचरित मानस का पाठ नहीं करा पाता था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को योगीराज में हो रहे हिन्दू हित के कार्यों पर भी अपनी दृष्टि डालनी चाहिए थी।

लगता है कि योगी सरकार के अच्छे कार्य को संघ व संगठन की दृष्टि से नजरअंदाज कर दिया गया। संघ को विचार करना चाहिए कि 2017 के पूर्व प्रदेश के क्या हालात थे और अब क्या हालात हैं? अगर भाजपा और संघ के बीच मनमुटाव को तत्काल कम नहीं किया गया तो प्रदेश में रामराज्य की संकल्पना ध्वस्त हो जाएगी।

वर्तमान लोकसभा चुनावां में भाजपा की पराजय का एक बहुत बड़ा कारण भ्रष्टाचार, आलस्य व लापरवाही में आकंठ डूबे प्रषासनिक अधिकारी व कर्मचारी भी रहें जिन्हाने रामराज्य की अवधारणा का भटठा बैठा दिया। भ्रष्टाचार करने वाले व दलाली खाने वाले अफसर भी इस बार हर हालत में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से छुटकारा पाना चाह रहे थे और यह लोग भी पुरानी पेंषन योजना लागू करने की मांग की आढ़ में विरोधी दलों के साथ मिल गये और प्रदेश में बीजेपी की सीटें कम करवाने के लिए कोई कोरकसर नहीं छा़ेड़ रखी थी। अनेक जगहों से समाचार प्राप्त हो रहे है कि अफसर खुलेआम बीजेपी को हराने के लिए ही काम कर रहे थे।

प्रशासनिक लापरवाही के कारण ही बीजेपी के कार्यकर्ता व समर्थक निराश हो गये और वह अपने घरों से अपना वोट डालने नहीं निकले और यदि निकले भी तो उन लोगों ने दूसरे लोगों को वोट डालने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया। समीक्षा बैठकां मेंं खुलासा हो रहा है कि भाजपा सांसद, विधायकों व जिला टीम के साथ समन्वय व सामंजस्य का घोर अभाव था। अब जब भाजपा का विषेष जांच दल जिलां जिलों में जा रहा है तब वहां उस टीम के सामने ही मारपीट तक हो रही है।संगठन की तमाम कमियों की जानकारी पाप्त हो रही है। भारतीय जनता पार्टी जिन पन्ना प्रमुखां को प्रमुखता दे रही थी उनमें बहुत से फर्जी निकल गये। संगठनात्मक दृष्टि से पन्ना प्रमुख एक बहुत बड़ा फर्जीवाडा साबित हुआ। लखनऊ जैसे ससंसदीय क्षेत्र में एक भी पन्ना प्रमुख नहीं दिखलाई पड़ रहा था तो अन्य जिलों में क्या हश्र हुआ होगा विचारणीय विषय है।

वर्तानम समय में उप्र में भाजपा की पराजय कष्टकारी है। प्रदेश में व्याप्त अनेकानेक कारकों ने रामराज्य की संकल्पना व अवधारणा को तार -तार कर दिया है। इसी कारण प्रदेश में भाजपा को पराजय बोध से निकलना बेहद अनिवार्य हो गया है क्योकि आगामी आने वाला समय ओर कठिन होने जा रहा है। प्रदेश में सपा व कांग्रेस का गठबंधन अब मजबूत हो चुका है तथा अपने निर्वाचित सांसदों के बल पर वह अब अपनी बची हुई्र कमजोरियों को भी कम करने का अभियान प्रारम्भ करने जा रहा है। सपा अब गांवों में पीडीए की पंचयात लगाने जा रही हैं। युवाआें को सपा की ओर जोडने के लिए नये सिरे से अभियान छेडने जा रही है।

बसपा में आकाश आनंद की वापसी हो गई है तथा इस बार बसपा ने लीक से हटकर उपचुनाव में उतरने का मन बना लिया है और ऐलान कर दिया हैं जबकि भाजपा में अभी तक केवल और केवल चिंता व चिंतन ही किया जा रहा है।पष्चिमी उप्र में भाजपा के दो दिग्गज नेता संगीत सेम व संजीव बालियान आपस में उलझ पडे।अतः अब समयआयगा हे कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पाटी्र्र व संघ के मध्य आपसी समन्वय व सामंजस्य स्थापित हो ,सभी को अपनी कार्यषैली ठीक करनी ही होगी।अगर भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में आगामी उपचुनाव जीतनें में सफल रहती है तो फिर हालात नियंत्रण में रहेंगे अन्यथा समस्या गहरा सकती है।

यहां पर सभी को अपने अंदर अहंकार आ गया थ जबकि संघ को भी अपनी ताकत का एहसास है और उसने भाजप को अपनी ताकत का एहसास कराकर एक बहुत बड़ी राजनीतिक भूल की है।अगर संघ को अपनी ताकत का एहसास है तो फिर वह कल्याण सिंह की सरका का पतन होने और बसपा के साथ समझौता समाप्त हो जाने के बाद वह प्रदेश में एक बार भी भाजपा की सरकार बनवाने में सफल क्यों नहीं सका? प्रदेश में भाजपा के पक्ष में दलित व पिछडे समाज के ऐसे नेता की खेज क्यों नहीं कर सका जिसका समाज के प्रत्येक वर्ग में प्रभाव होता और हिंदू समाज को एकजुट भी रख सकता।

उत्तर प्रदेश में अगर भाजपा के नेतृत्व और कार्यकर्ता अभी तक सुधारित नहीं है, तो आने वाले दिनों में समस्याएं और गंभीर हो सकती हैं क्योंकि अब समाजवादी पार्टी के नेतृत्व में गठबंधन की जोश हाई है और बसपा अपने मेकओवर की ओर बढ़ रही है।

आज उत्तर प्रदेश में भाजपा के कम सीटों के आने से संघ को भी उतना ही नुकसान हो रहा है, जितना कि भाजपा को हो रहा है। लोकसभा चुनावों में भाजपा और संघ के बीच मनमुटाव तथा फैजाबाद उम्मीदवार की गलत बयानी और हरकतों के कारण एक महत्वपूर्ण सीट हाथ से निकल गई है, जिसका असर व्यापक स्तर पर दिखाई दे रहा है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर और अयोध्या के विकास कार्यों पर होने वाली हर छोटी-बड़ी घटनाओं को सोशल मीडिया पर उछाला जा रहा है।

सपा सांसद अवधेश प्रसाद अब जनता के समक्ष अपनी बात रख रहे हैं और भाजपा के लोग शांत हैं। फैजाबाद की हार भाजपा के लिए पीड़ादायक साबित हो रही है, क्योंकि समाजवादी पार्टी के सांसद संसद में अब अपनी बात को मजबूती से रखेंगे। अभी हल्की बारिश में अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन की बाउंड्रीवॉल गिर गई है और जगह-जगह जलभराव हो गया है, जिसके बारे में सोशल मीडिया पर विभिन्न प्रकार के व्यंग्यबाण चल रहे हैं।

अब यही समय है कि भारतीय जनता पार्टी और संघ अपने सभी विरोधियों से बाहर निकलकर प्रदेश के हित में काम करें और हार की भावना से ऊपर उठकर समग्र विकास के लिए काम करें।

प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित

फोन नंबर – 9198571540




आपातकाल…

२५ जून १९७५ की वह काली रात..
दुनिया के सबसे बड़े
लोकतांत्रिक देश में, लोकतंत्र का गला,
बर्बरता के साथ घोटने का
विषैला कार्य प्रारंभ हो चुका था…

राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने
धारा ३५२ (१) के अंतर्गत
देश में आतंरिक आपातकाल लागू किया…
उन्हें तो, उस आदेश पर
हस्ताक्षर करने के
मात्र तीस मिनट पहले तक
यह मालूम ही नहीं था,
की देश में आपातकाल लगने वाला हैं..!

आपातकाल याने
आपके / हमारे विचार करने पर
संपूर्ण पाबंदी.
जो कुछ विचार होगा, सोच होगी
वह केवल और केवल सरकार की.
अर्थात प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की.
आप और हम
न तो कुछ लिख सकते थे, न बोल सकते थे…
समाचार पत्रों का
एक – एक अक्षर, छपने से पहले जांचा जाता था.
अगर लिखा हुआ सरकार के विरोध में हैं,
ऐसा दूर दूर तक भी अंदेशा आया,
तो तुरंत उसे निकाल दिया जाता था.
सभा / जुलूस / बैठके आदि पर तो
सीधा प्रतिबंध था.

२६ जून की प्रातः बेला में
देश को यह समाचार मिला.
इससे पहले ही
अधिकतर विरोधी नेताओं को
२५ जून की रात को ही
बंदी बना लिया गया था.
जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी बाजपेयी,
मोरारजी देसाई, लालकृष्ण आडवाणी, मधू लिमये…
सारे जेल के अंदर थे….
४ जुलाई १९७५ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर
प्रतिबंध लगा.
संघ के सरसंघचालक बालासाहब देवरस जी
को भी संघ पर प्रतिबंध लगाने के पहले ही
गिरफ्तार कर लिया था.
संघ के अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ता
जेल की सीखचों में बंद थे.

यह आपातकाल २१ महीने चला.
१९ महीनों बाद, विजय के आत्मविश्वास के साथ,
इंदिरा गाँधी ने, १८ जनवरी १९७७ को
आमचुनावों की घोषणा की.
२१ मार्च, १९७७ को
लोकसभा चुनावों के परिणामों में
यह स्पष्ट हो गया
की लोकतंत्र का गला घोटनेवाली कांग्रेस
बुरी तरह से परास्त हुई हैं,
अनेक राज्यों में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला हैं,
आपातकाल के तिनो दलाल –
इंदिरा – संजय – बंसीलाल
चुनाव हार चुके हैं…
तब जाकर आपातकाल हटाया गया.

इक्कीस महीने…
२५ जून १९७५ की रात से
२१ मार्च १९७७ की रात तक…
इन इक्कीस महीनों में
इस देश को
इंदिरा गाँधी नाम के तानाशाह ने
बंधक बनाकर रखा था.
इन इक्कीस महीनों में
पूरे देश में
कांग्रेस ने अपना पैशाचिक नग्न नृत्य
जारी रखा था.
इन इक्कीस महीनों में
आपातकाल का विरोध करने वाले
अनेक कार्यकर्ताओं की, संघ के स्वयंसेवकों की
जाने गयी…!
संघ के अखिल भारतीय व्यवस्था प्रमुख
पांडुरंग क्षीरसागरजी को
अत्यवस्थ होने के बाद भी
पैरोल नहीं मिला.
उनकी कारावास में ही मृत्यु हुई.
ऐसे कई स्वयंसेवक जेल में ही चल बसे.
कइयों को तो इतनी नृशंस यातनाएं दी,
की वे पूरी जिंदगी अपाहिज बने रहे.
वर्धा के पवनार आश्रम में
सर्वोदयी कार्यकर्ता, प्रभाकर शर्मा ने,
आपातकाल के विरोध में
खुद को जिंदा जला दिया. आत्मदाह कर लिया.

इस आपातकाल का निडरता के साथ, निर्भयता के साथ
विरोध किया तो
संघ के स्वयंसेवकों ने.
एक जबरदस्त भूमिगत आंदोलन चलाया…
भूमिगत पर्चे निकालना,
उनका वितरण करना…
१४ नवंबर १९७५ से
देशव्यापी भव्य सत्याग्रह करना
हजारों युवा स्वयंसेवकों द्वारा
अपना पुरषार्थ प्रकट करते हुए
देश की जेलों को भर देना..
ऐसा बहुत कुछ…!
संघ के सरकार्यवाह माधवराव मुले
भूमिगत थे.
अनेक वरिष्ठ प्रचारक, कार्यकर्त्ता
विपत्तियों की परवाह न करते हुए,
दमन की चिंता को दूर रखते हुए,
गिरफ्तारी के डर को धता बता कर…
निर्भयता के साथ
आपातकाल का विरोध कर रहे थे.

२१ महीनों का यह कालखंड
हमारे लोकतंत्र के इतिहास में,
हमारे स्वाधीन भारत के स्वर्णिम इतिहास में
एक काला अध्याय हैं.

लोकतंत्र की मशाल को
सतत प्रज्वलित रखने के लिए
इस काले अध्याय का स्मरण करना,
इंदिरा गाँधी के,
कांग्रेस के उन काले कारनामों को
याद करना
आवश्यक हैं,
ताकि भविष्य में किसी की हिम्मत ना हो,
इस लोकतंत्र के
धधगते मशाल को
हाथ लगाने की…!




बच्चों के समग्र विकास में सहायक हैं समर कैम्प

श्री रामचरित मानस के बाल काण्ड में उल्लेख है कि गुरु गृह गए पढ़न रघुराई अल्पकाल विद्या सब पाई। अर्थात् गुरू के सानिध्य में व्यक्तित्व निर्माण। गुरुकुल परम्परा में बच्चों को भारतीय ज्ञान परंपरा से परिचित कराते हुए उनके अंदर सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना जागृत की जाती है । भारतीय ज्ञान परम्परा में शिविर आयोजनो का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । ऐसे शैक्षिक संस्थान जो भारतीय संस्कृती के पोषक और संवाहक रहे हैं वो बच्चों के लिए खेल, कला , कौशल शिविरों का आयोजना करते आए हैं। जहां बच्चे प्रकृति के समीप रहकर अपने मौलिक गुणों को परिमार्जित करते हुए आधुनिक ज्ञान के साथ वैदिक ज्ञान और संस्कार के साथ सामूहिक जीवन जीने का अभ्यास करते है । वर्तमान में विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के साथ जीवन कौशल विकास और व्यवहारिक ज्ञान बच्चों के लिए नितांत आवश्यक है ऐसे में शैक्षिक शिविर महत्त्वपूर्ण भुमिका निभा सकते हैं।

वर्तमान में लगभग सभी प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में शैक्षिक शिविर की ही भांति ग्रीष्मकालीन शिविर आयोजित किए जा रहे हैं । जो समर कैंप के नाम से जाने जा रहे हैं । समर कैंप अवकाश के दिनों में कुछ निर्धारित अवधि के लिए एक कार्यक्रम के रुप में चलाया जाता है । इस दौरान विभिन्न प्रकार की गतिविधियां बच्चों के लिए कराई जाती हैं जो पूर्ण रुप से आनंदमय वातावरण में बच्चों की रचनात्मकता को बढ़ावा देकर उनके समग्र विकास के लिए आयोजित की जाती हैं। जिससे बच्चे प्रकृति प्रेम, स्वस्थ जीवन शैली, व्यवस्थित दिनचर्या, सड़क पर चलने का नियम , जल ही जीवन है और स्वच्छता जैसे व्यवहारिक जीवन शैली को समर कैम्प में सीखने का अवसर मिलता है ।

वर्तमान में ग्रामीण,शहरी हर क्षेत्र में समर कैम्प स्कूली शिक्षा में अपना स्थान बनाते नज़र आरहे हैं । सभी शिक्षा बोर्ड इसे स्वीकार करते हुऐ इसका आयोजन करते दिख रहे हैं। गैर शैक्षिक संस्थान भी ग्रीष्मावकाश में ऐसे कैम्पों का आयोजना कर रहे हैं जहां एक ही स्थान पर निश्चित समय के लिए बड़े और बच्चों दोनो के लिए मनोरंजन युक्त आयोजन किए जारहे हैं। इन सभी का उद्देश्य अवकाश के दिनों को आनंदमयी और खुशनुमा बनाते हुए कुछ सीखने और नया करने का अवसर देना है । जिससे बच्चों में मुख्य रुप से कौशल विकास हो सके और बड़े भी इस समय का आनंद उठा सकें। धीरे -धीरे समर कैंप विद्यालयों का हिस्सा बनते जा रहे है जिसका उद्देश्य बच्चों को अनुकूल वातावरण प्रदान कर उनकी प्रतिभाओं का विकास करना है ।

बच्चों और अभिभावकों से शिक्षा से संबंधित बिंदुओं ,नवाचारों एवं आदेशों के क्रम में संचालित क्रियाकलापों पर अक्सर चर्चा होती रहती है। इसी क्रम में उन बच्चों से भी चर्चा का अवसर मिला जिनके स्कूलों में गर्मी की छुट्टियों के बाद समर कैम्प संचालित हो रहे थे। जहां स्कूल इसे उत्साह के साथ संचालित करने में लगे थे वहीं बच्चो से संवाद में पताचला की अधिकांश बच्चे विद्यालय बंद होने के बाद इस समर कैम्प को बोझिल मान कर अतिरिक्त दबाव जैसा महसूस कर रहे। इस विषय को लेकर अलग अलग क्षेत्रो के बच्चों से चर्चा करने पर बच्चो के यही विचार प्राप्त हुए कि इस समर कैम्प का आयोजन स्कूल दिवसों में ही होना चहिए जिससे हम अपने समर वैकेशन के अधिक दिवसों को अपने स्वतंत्र रूचि के अनुसार अपने परिवार, रिश्तेदार के साथ अन्य कार्यों में लगा सकें। निश्चित रुप से एक लंबे सत्र के पढ़ाई में बच्चो के लिए उनकी गर्मी की छुट्टियां बहुत प्रिय होती हैं जिसका बच्चो को बेसब्री से इंतजार रहता है। 6 से 14 वर्ष के बच्चो के सीखने और विकास के क्रम में स्कूलों के शैक्षिक सत्रों में गर्मी की छुट्टियों का बच्चों के समाजिक एवं मानसिक विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान है।

बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा एक बहुत सराहनीय एवं स्वागत योग्य पहल हुई है जिसमें ग्रीष्मावकाश के बाद विद्यालय खुलने पर प्रथम सप्ताह में समर कैम्प का आयोजन करना है । ग्रीष्म अवकाश प्रारंभ होने के अंतिम सप्ताह में तमाम स्कूलों में चलने वाले समर कैम्प पर विचार विमर्श करते हुए, विद्यालय में नामांकन के सापेक्ष उपस्थिति आदि बिंदुओं पर चर्चा में एक विमर्श शिक्षक साथियों की ओर से यह भी आने लगा था कि यदि यह समर कैंप विद्यालय खुलने पर आयोजित हो तो बच्चों को विद्यालय खुलने पर उत्साह के साथ जोड़ने एवं नियमित करने के साथ उनके ग्रीष्म अवकाश के दिनों में बिताए गए व्यक्तिगत स्वतंत्र अनुभवों को बच्चों की अभिव्यक्ति एवं स्वतंत्र चिंतन के साथ जोड़ने में बहुत कारगर सिद्ध होगा।

जिन विद्यालयों में ग्रीष्म अवकाश में समर कैंप का आयोजन किया जा रहा था उन बच्चों से चर्चा होने पर अधिकांश बच्चों ने बताया कि उनको किसी रिश्तेदार के घर घूमने और अपने पसंद के कार्य करने में ज्यादा रुचि है । एक रूटीन में बंध कर समर कैंप की बच्चों ने खुलकर मनाही की । बच्चों से ग्रीष्म अवकाश के दौरान मिलने वाले होमवर्क और असाइनमेंट पर भी चर्चा होती रहती है अधिकांश छोटे बच्चों ने बताया कि वो इसे बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं। वह इस दौरान अपनी व्यक्तिगत रूचि के क्लास ज्वाइन करना पसंद करते हैं या अपने दादी, नानी, के साथ समय व्यतीत करते हुऐ रिश्तेदारों के घर घूमने जाने में ज्यादा रुचि रखने वाले दिखाई देते हैं।

ग्रीष्म अवकाश का एक वह दौर भी था जब समर कैंप और ग्रीष्मकालीन प्रोजेक्ट इतने चलन में नहीं थे । धीरे-धीरे लगभग सभी विद्यालय इससे जुड़ गए हैं लेकिन बच्चों का मन इससे दूर भागता दिखाई दे रहा है। ऐसे में बेसिक शिक्षा विभाग की यह सराहनीय पहल है जिसमें परिषदीय विद्यालय खुलते ही समर कैंप आयोजित किया जाएगा। जिसमें शिक्षक बच्चों के विद्यालय आने के तीन दिन पूर्व से 25 जून से ही विद्यालय में उपस्थित होकर इसकी तैयारी एवं रूपरेखा बनाएंगे कि इस समर कैम्प को वह अपने विद्यालय में बच्चों के लिए और बेहतर, उपयोगी कैसे बना सकते हैं। इससे उपस्थिति बढ़ाने ,बच्चों को उत्साह से विद्यालय के प्रथम दिवस पर ही जोड़ने ,छुट्टियों में बीते हुए अवकाश के दिनों को रचनात्मक ढंग से विद्यालय के कार्यों से जोड़ने में बहुत मदद मिलेगी ।

इसमें महत्वपूर्ण बात यह भी है कि विद्यालय स्तर पर शिक्षक इसे कितने बेहतर तरीके से क्रियान्वित कर सकते हैं । इसमें अलग-अलग कक्षाओं के लिए प्लान बनाकर बच्चों की उनके रुचियों व आयु को ध्यान में रखते हुए अवकाश के बीते हुए दिनों के अनुभवों को कैसे शिक्षक बच्चों के भाव को अभिव्यक्त करने के अवसर के साथ रचनात्मक ढंग देने में सक्षम हो पाते हैं।

शिक्षक द्वारा संयोजित कार्य योजना बनाना इसमें महत्वपूर्ण होगा । जिससे यह मात्र औपचारिकता या स्वागत उत्सव बनकर न रह जाए । वस्तुतः इसमें नेतृत्व क्षमता विकास , रचनात्मकता का विकास , समूहकार्य, पर्यावरण की समझ , प्राकृति से भावानात्मक जुड़ाव ,समस्या समाधान, व्यक्तिगत स्वच्छता का महत्त्व , मूल्य शिक्षा, अवकाश के दिनों का रचनात्मक ढंग से प्रयोग आदि सामिल हैं । इसमें बच्चों को स्वागत के साथ उत्सव की अनुभूति कराकर बच्चों के अभिभावकों को जोड़ना इस सत्र के ग्रीष्मावकाश के बाद उनके पाल्यों की पढ़ाई – लिखाई को सकारात्मक दिशा प्रदान कर सकता है ।

बच्चों के अवकाश के दिनों को समर कैंप में कैसे रचनात्मक ढंग से जोड़कर स्थान दिया जाए यह महत्वपूर्ण बिंदु होना चाहिए । बच्चों से चर्चा कर उनकी रुचियों को भी स्थान देना महत्वपूर्ण होगा । स्वतंत्र ,सहभागी ,भय मुक्त, खुशनुमा, उत्साही वातावरण निर्मित कर बच्चों को सिखाने हेतु पुनः विद्यालय से जोड़कर उनका आत्मविश्वास बढ़ाने में यह समर कैम्प महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। बच्चों द्वारा अवकाश के दिनों में सीखे हुए कौशलों को स्वयं सीखने का सेशन भी इसको उत्साह वर्धक बना सकता है ।

इस समय कैंप के माध्यम से छोटे बच्चों को यह अनुभव कदापि न दें कि बच्चे सोचे कि समर कैम्प हो गया चलो अब पढ़ाई शुरू करते हैं बल्कि इस समर कैंप के माध्यम से ही बच्चों के स्किल,रूचि, उनका आकलन, उनकी समझ एवं अवलोकन के बिंदु समाहित करने होंगे जिससे बच्चों को पूरे सत्र क्रियाकलापों से जोड़ कर कुछ नया सीखने के प्रति उत्साही बनाया रखा जा सके। छोटे बच्चों के लिए इस समर कैम्प को विद्यालय घंटे में ही नियोजित कर व्यवस्थित कर रखा जाए कि बच्चों के अवकाश के दिनों में भी सेंध ना लगे साथ ही बच्चे खुलकर इस समर कैम्प में इंजॉय कर सके और अपने छुपे हुए हुनर को पहचाना सकें । साथ ही उनके लिए आवश्यक बिंदु जिससे वह अवगत नहीं है उन बिंदुओं को जोड़ते हुए इस समर कैम्प को बच्चों के लिए ऐसा उपयोगी बनाया जाए जो सत्र भर एक शैक्षिक आधार बनाए रखे ।जुलाई से बच्चे और अभिभावक इस तरह से तैयार हो पढ़ाई के लिए कि यह सत्र उनके लिए उत्साह और ऊर्जा वाला हो।

छोटे बच्चे (6 से 14) जब ग्रीष्मावकाश के पश्चात पुनः विद्यालय आते हैं और प्रथम दिवस से ही उनसे विषय संबंधी बिंदुओं पर चर्चा होने लगती है, पठन-पाठन टिपिकल तौर से पुस्तकों और कापियों के साथ शुरू हो जाता है तब बच्चे, शिक्षक और विद्यालयी वातावरण में कहीं ना कहीं एक गैप बन जाता है। निश्चित रूप से यह समर कैम्प बच्चों को यह अवसर देगा कि अपने अवकाश के दिनों में बिताए गए समय में उन्होंने क्या किया, क्या सीखा, उनके क्या अनुभव थे, उन्होने किन किन बिंदुओं पर अपने स्कूल को मिस किया ( कमी महसूस की) इन भावों को सहज रूप से अपने साथियों और शिक्षक के साथ सांझा कर पाएंगे ।

बच्चे पुनः अपनी कक्षा में साथी बच्चों और शिक्षकों के साथ अपने ग्रीष्मावकाश केअनुभवों को जीवंत कर पाएंगे जो भावनात्मक रूप एवं आत्मीयता के साथ उन्हे विद्यालय से जोड़ने में सक्षम होगा । निश्चित रूप से बच्चों को विद्यालय में ऊर्जा ,उत्साह और आत्मीयलगाव के साथ जोड़ने के लिए यह समर कैम्प बहुत ही कारगर सिद्ध होगा।

ऋचा सिंह
बेसिक शिक्षा विभाग

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अच्युता सामंता ने सक्रिय राजनीति छोड़ी

भुवनेश्वर।: बीजू जनता दल के प्रमुख नेता और पूर्व सांसद डॉ. अच्युता सामंत ने सक्रिय राजनीति से किनारा कर लिया है। डॉ. सामंत ने कल नवीन निवास में बीजू जनता दल के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मुलाकात के बाद अपना निर्णय व्यक्त किया। साथ ही, उन्होंने राज्यसभा और लोकसभा दोनों में मौका देने के लिए श्री पटनायक को धन्यवाद दिया।

डॉ. सामंत ने कहा कि पिछले 32 वर्षों से समाज सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता अंतिम सांस तक जारी रहेगी। इस साल कंधमाल संसदीय क्षेत्र में अपनी हार के बाद, उन्होंने 9 जून को सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की। दूसरी ओर, डॉ. सामंत ने बीजद के सदस्यों और कंधमाल संसदीय क्षेत्र के लोगों को उनके प्यार और समर्थन के लिए धन्यवाद दिया।

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स्वतन्त्रता सेनानी रामचन्द्र नन्दवाना स्मृति राष्ट्र्रीय सम्मान के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित

चित्तौड़गढ़। साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत संस्थान ’संभावना’ ने अपने संरक्षक और सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी रामचन्द्र नन्दवाना की स्मृति में दिए जाने वाले राष्ट्र्रीय सम्मान के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित की हैं।

संभावना संस्थान के अध्यक्ष लक्ष्मण व्यास ने बताया कि राष्ट्रीय स्तर के इस सम्मान में स्वतंत्रता आंदोलन, प्राच्य विद्या, गांधी अध्ययन, दलित चिंतन या भारतीय मध्यकालीन साहित्य से सम्बंधित किसी एक कृति को चुना जाएगा। सम्मान के लिए तीन निर्णायकों की एक समिति बनाई गई है जो प्राप्त प्रस्तावों पर विचार कर किसी एक कृति का चुनाव करेगी। आयोजन चित्तौड़गढ़ में संभावना द्वारा किया जाएगा। सम्मान में ग्यारह हजार रुपये, प्रशस्ति पत्र और शॉल भेंट की जाती है।

व्यास ने बताया कि चित्तौड़गढ़ जिले के कपासन निवासी रामचन्द्र नन्दवाना ने स्वतंत्रता आंदोलन तथा इसके बाद गांधीवादी आन्दोलनों में आजीवन सहयोग दिया। वे गांधी जी की संस्थाओं हरिजन सेवक संघ और चरखा संघ से जुड़े रहे तथा चित्तौड़गढ़ के गाड़ी लौहार सेवा समिति से भी उनका जुड़ाव रहा। वियोगी हरि, ठक्कर बापा और माणिक्यलाल वर्मा के निकट सहयोगी रहे रामचन्द्र नन्दवाना के जन्म शताब्दी वर्ष से सम्मान प्रारम्भ किया गया है।

उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 के इस सम्मान के लिए विख्यात आलोचक प्रो माधव हाड़ा की मीरां के जीवन पर लिखी गई कृति ‘पचरंग चोला पहर सखी री’ को चुना गया था। अब तक यह सम्मान प्रो माधव हाड़ा, सुधीर विद्यार्थी, प्रो बजरंग बिहारी तिवारी, सोपान जोशी और प्रो अवधेश प्रधान को दिया जा चुका है।

व्यास ने बताया कि संभावना के सहयोगी डॉ कनक जैन को ’स्वतन्त्रता सेनानी रामचन्द्र नन्दवाना स्मृति सम्मान’ का संयोजक बनाया गया है, वे इस सम्मान से सम्बंधित समस्त कार्यवाही का संयोजन करेंगे। सम्मान के लिए प्रविष्टियाँ डॉ जैन को 30 अगस्त 2024 तक उनके पते ( 3, ज्योति नगर, पुलिस लाइन के निकट, चित्तौडगढ़-312001 मो. +91-9413641775 ) पर भिजवाई जा सकेगी।

डॉ कनक जैन
सचिव,
संभावना संस्थान
म-16,हाउसिंग बोर्ड,
कुम्भा नगर,
चित्तौड़गढ़-312001,
मो-09413641775,
ईमेल[email protected]