Tuesday, July 2, 2024
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समकाल में भारत- बांग्लादेश संबंध

भारत और बांग्लादेश के संबंध 21वीं सदी के लिए महत्वपूर्ण है। भारत पड़ोसी देशों के साथ संबंधों की गतिशीलता और सुधार की दिशा में अग्रसर है। वैश्विक राजनीति में कहा जाता है कि दोस्ती स्थाई नहीं होती है। भारत के लोकप्रिय कवि, विषम परिस्थितियों में धैर्य धारण करने वाले व्यक्तित्व एवं पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी कहते थे कि ” मित्र बदले जा सकते हैं,लेकिन पड़ोसी नहीं” ।

राष्ट्र – राज्यों के परस्पर संबंध आर्थिक लाभ और विकास की राजनीति पर ज्यादा निर्भर होता है। भारत और बांग्लादेश व्यापार समझौते, बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं और क्षेत्रीय चुनौतियों का मिलकर सामना करने में सहयोगी की भूमिका में है। दोनों देशों के संबंध सांस्कृतिक कारकों और लोगों के बीच संबंध मजबूत होने के कारण हुए हैं। ऐतिहासिक , भाषाई और दोनों देशों के मध्य पारिवारिक संबंधों ने पारस्परिक रिश्ते को गर्म जोशी और ऊर्जावान बनाने में सहयोग किया है।

भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों का मुख्य कारक व्यापार है, जो समय के साथ बढ़ता जा रहा है। मोदी सरकार ने पड़ोसियों में विशेष रूप से बांग्लादेश के साथ व्यापार संबंधों को बढ़ाने, इसके राजनीतिक महत्व और आर्थिक संबंधों के उन्नयन पर केंद्रित रहा है।इस अवधि में व्यापार सुविधा, बुनियादी ढांचे के विकास और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी में उल्लेखनीय प्रगति देखा जा रहा है।

भारतीय उपमहाद्वीप में बांग्लादेश भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।भारत बांग्लादेश के लिए दूसरा सबसे बड़ा निर्यात भागीदार है ,जो उसके कुल निर्यात का 12% बनता है। वित्तीय वर्ष 2022 – 24 में दोनों देशों के बीच कुल व्यापार कारोबार प्रभावशाली 14.22 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था ।यह आर्थिक संबंध बांग्लादेश के बीच गहरे संबंध और परस्पर निर्भरता को उजागर करता है। अधिकांश बांग्लादेशी उत्पादों का भारतीय बाजार तक आसान पहुंच भारतीय माल को बांग्लादेश के माध्यम से बांग्लादेशी परिवहन का उपयोग करके उसके पूर्वी क्षेत्र को उसके सुदूर- पूर्वी क्षेत्र में उपयोग किया जाता है।

मोदी शासन के दौरान दोनों देशों के बीच व्यापार में निरंतर वृद्धि देखी जा रही है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में दोनों देशों के बीच व्यापार लगभग 10.2 बिलियन डॉलर था ।यह मोदी के शासनकाल का उन्नयन कल है, जो दोनों देशों देशों को करीब लाने का करण कारक है। रेल कनेक्शन के बढ़ने के कारण दोनों देशों के बीच व्यापार को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका है।

सुंदरबन के विकास जैसी पहल ने भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार संबंधों के उन्नयन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पर्यटन के विकास के दृष्टि से सुंदरबन की विशेष उपादेयता है। यह पर्यावरण पर्यटन की दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है ।भारत और बांग्लादेश में पर्यटन और कृषि के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं ।भारत और बांग्लादेश ने कार्गो परिवहन क्षमता को पहचान कर विकास किए हैं। पूर्वोत्तर भारत से बांग्लादेश तक रेलवे लाइन की स्थापना व्यापार संबंधों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है।

बेहतर रेल कनेक्शन सुंदरबन के क्षेत्र का विकास नदी मार्गों का विकास और नई रेलवे लाइनों की स्थापना जैसी माध्यमों से दोनों देशों ने आर्थिक सहयोग और पारस्परिक समृद्धि की दिशा में काम किया है। भारत और बांग्लादेश के बीच 54 साझा नदियां हैं और इसको लेकर दोनों देशों में कई तरह के सहयोग चल रहा है। जल बंटवारे के मुद्दे को समाधान करने के लिए गठित विशेष रूप से गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों से संबंधित है। संयुक्त नदी आयोग जल संसाधन प्रबंधन पर बातचीत और सहयोग की सुविधा प्रदान करता है, जिससे दोनों देशों को लाभ हो रहा है।

बांग्लादेश का चीन की ओर झुकाव भारत की क्षेत्रीय स्थिति और रणनीतिक आकांक्षाओं के लिए हानिकारक है। 2017 में चीन ने बांग्लादेश को दो मिग पनडुब्बियों की आपूर्ति की थी। इसके अतिरिक्त बांग्लादेश चीन के बेल्ट एवं रोड पहल का क्रियाशील सदस्य है, जिसके तहत चीन में भारी निवेश कर रहा है। स्ट्रिंग का पर्ल्स रणनीति के अंतर्गत चीन भारतीय उपमहाद्वीप में भारत के उभरते शक्ति का घेराबंदी करना चाहता है। इस राजनीतिक स्थिति पर पूर्व राजनयिक मचुकंद दुबे के अनुसार” भारत को चीन का मुकाबला करने के लिए अपने पड़ोसी राज्यों में अधिक निवेश करने की आवश्यकता है”।

भू – राजनीतिक दृष्टि से उत्तर – पूर्व की सुरक्षा के लिए दक्षिण पूर्व एशिया के लिए वैश्विक स्तर पर संचार की समुद्री लाइनों को सुरक्षित करना ,आतंकवाद और कट्टरवाद से लड़ने के लिए और मुखर चीन को संतुलित करने के लिए भारत को बांग्लादेश का बदलते परिवेश में अति आवश्यक है। चीन को संतुलित करने के लिए बांग्लादेश अति आवश्यक पड़ोसी राज्य है ,क्योंकि चीन का वृहद निवेश पाकिस्तान और बांग्लादेश में है ।भारत का परंपरागत तौर पर पाकिस्तान से संबंध सामान्य होने के आसार कम है, लेकिन बांग्लादेश पड़ोसियों में वैदेशिक स्तर पर भारत से मित्रता के लिए दिल से आकांक्षी है।

दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बांग्लादेश है, जबकि भारत बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है । वित्तीय वर्ष 2023 – 24 में दोनों देशों के मध्य कुल व्यापार 15.36 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है । भारत ने 2011 से दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) के तहत तंबाकू और शराब को छोड़कर से सभी वस्तुओं पर बांग्लादेश को शुल्क मुक्ति प्रदान किया है। दोनों देशों के मध्य व्यापक आर्थिक साझेदारी को पर्याप्त रूप से बढ़ाने के लिए व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) पर हस्ताक्षर करने की भी तैयारी कर रहे हैं। इससे दोनों देशों के मध्य रोजगार का अवसर बढ़ेगा और दोनों दोनों देशों के नागरिकों का जीवन गुणात्मक होगा।

यह प्रयास राजनीतिक, आर्थिक और वैदेशिक संबंधों के उन्नयन में अग्रणी भूमिका का निष्पादन करेगा। व्यापारिक संबंधों का उन्नयन करने का भारत को अपार संभावना है जिसका वृद्धि कर सके और बांग्लादेश अपने व्यापारिक संबंधों को और गहरा कर सके । इन दोनों देशों के मध्य संबंध उन्नयन में कपास उत्पादन ,चिकित्सीय विनिर्माण और कृषि उत्पादों का भी व्यापार सम्मिलित है।

भारत और बांग्लादेश का ऊर्जा क्षेत्र में भी अच्छा संबंध है। समकालीन में बांग्लादेश भारत से 116 गीगावॉट ऊर्जा आयात करता है। बिजली के सीमा पर व्यापार में द्विपक्षीय सहयोग प्रदान करने के लिए संस्थागत ढांचा प्रदान करने के लिए संयुक्त कार्य समूह (JWG) और संयुक्त संचालन समिति(JSC) की स्थापना की गई है। दोनों देशों में इस प्रकार समझौता करने से दोनों देशों के बीच ऊर्जा क्षेत्र में अधिक बढ़ोतरी होगी।

भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों के उन्नयन में पर्यटन महत्वपूर्ण क्षेत्र है। बांग्लादेश से बड़ी मात्रा में लोग इलाज के लिए भारत आते हैं। बांग्लादेश से 35% से अधिक लोग भारत इलाज के लिए आते हैं। यह चिकित्सा पर्यटन से भारत के राजस्व का 50% से अधिक का योगदान देते हैं। भारत और बांग्लादेश से दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन(SAARC), और हिंद महासागर रिम संगठन (IORA) जैसे कई क्षेत्रीय बहुपक्षी संगठनों में भागीदार है।

कोविद-19 के दौरान दोनों देशों ने दक्षिण एशिया के देशों में वैश्विक महामारी का मुकाबला करने के लिए संकटकालीन प्रतिक्रिया कोष की स्थापना में एकजुटता दिखाई है। वैश्विक मंचों पर भारत और बांग्लादेश विभिन्न मुद्दों पर एकजुटता दिखाते हैं। बांग्लादेश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थाई सीट के लिए भारत की दावेदारी का प्रबल समर्थन करता है।

भारत और बांग्लादेश समकालीन में एक अच्छे सहयोगी पड़ोसी देश हैं। दोनों देश जल क्षेत्र, पर्यटन क्षेत्र, सामरिक क्षेत्र और ऊर्जा क्षेत्र के प्रमुख सहयोगी हैं ।दोनों देश दूरदर्शी संबंधों पर काम कर रहे हैं ।भारत बांग्लादेश संबंध की निकटता चीन को घेराबंदी करने में सहायक है । दोनों देशों के बीच का संबंध उपलब्धियां को स्वीकार करके ,चुनौतियों को समाधान करके और राजनीतिक जुड़ाव का एक रास्ता तैयार करके दूरदर्शी योजना पर कार्य कर सकते हैं। दोनों देशों के संबंध उभरते वैश्विक संदर्भ में पारस्परिक विकास, स्थिति और समृद्धि का स्तर बड़ाने मेंकर रहे हैं।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के जानकार हैं)

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नारियल की खोल ने दिखाई पैसे कमाने की राह

लखपति बनने के लिए मेहनत और तैयारी लगती है। आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बता रहे हैं जिसने कचरे के रूप में फेंके गए नारियल की खोल से आय का एक नया साधन खोजा।

इस महिला का नाम मारिया कुरियाकोस है।

मारिया ने 2019 में ठेंगा कोको नामक एक कंपनी की स्थापना की। यह कंपनी नारियल शील्ड से टिकाऊ, पर्यावरण के अनुकूल हस्तनिर्मित आइटम बनाती है। केरल में महिला नेतृत्व वाले इस उद्योग ने कई लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किए हैं।

2019 में मारिया कुरियाकोस ने केरल के त्रिशूर जिले में नारियल कवच इकट्ठा करना शुरू किया था। मारिया ने इसको एक अच्छा साफ किया। उसके बाद उस पर सैंडपेपर का उपयोग करके उसकी सतह चिकनी बना दी।

नारियल कवच का उपयोग कचरे के लिए टिकाऊ, पर्यावरण की दृष्टि से अच्छा और हस्तनिर्मित घर-निर्मित उत्पाद के लिए किया गया था। मारिया ने इस व्यवसाय का नाम ठेगा कोको रखा है। मल्लयालम भाषा में ठेंगा शब्द का अर्थ है नारियल।नारियल का पेड़ खास है। इसे कल्पना वृक्ष भी कहा जाता है। इस पेड़ का हर भाग उपयोगी है। मारिया ने 2016 में सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से अर्थशास्त्र में डिग्री की पढ़ाई की। फिर वह आगे की शिक्षा के लिए स्पेन चली गई।

मारिया ने 2017 में एओन हेविट, मुंबई में एक सलाहकार के रूप में काम किया। उसका दिमाग हमेशा उसके दिमाग में था कि नौकरी से बेहतर व्यापार है। उनके दिमाग में कुछ अलग करना था जिससे पर्यावरण और समाज को लाभ मिले। उसके बाद, एक साल में, मारिया ने एक अच्छी कमाई वाली नौकरी छोड़ दी और मैना महिला फाउंडेशन शुरू किया।

मारिया द्वारा शुरू किए गए उद्योग में केरल के विभिन्न क्षेत्रों के किसानों और कुशल श्रमिकों का नेटवर्क है। इसमें कोट्टायम, कोंडुगल्लूर, मेटुपालयम और एलीपी शामिल हैं। इनकी कंपनी में 30 से ज्यादा लोग काम करते हैं जिनमें 80% महिलाएं हैं।

इन महिला श्रमिकों को है 20 से 25 हजार प्रति माह वेतन मारिया के कंपनी के उत्पादों की मांग चेन्नई, हैदराबाद, मुंबई, अहमदाबाद, कोलकाता और दिल्ली जैसे शहरों में होती है। इसके अलावा डेनमार्क, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन जैसे देशों में काफी मांग है। हाल ही में देश में मांग से ज्यादा विदेश में मांग बढ़ी है।

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फिल्मी दुनिया में जिहादियों की पकड़ कितनी गहरी

 

आपने कभी ध्यान दिया है कि फ़िल्मों मे 90 के बाद से गायकों का करियर ग्राफ़ कैसा रहा है??
याद है कुमार शानू जो करियर मे पीक पर चढ़कर अचानक ही, धुँध में खो गये। फिर आये अभिजीत, जिन्हें टाप पर पहुँचकर अचानक ही काम मिलना बंद हो गया। उदित नारायण भी उदय होकर समय से पहले अस्त हो गये। उसके बाद सुखविंदर अपनी धमाकेदार आवाज से फलक पर छा गये और फिर अचानक ही ग्रहण लग गया। उसके बाद आये शान, और शान से बुलंदियों को छूने के अचानक ही कब नीचे आये पता ही नही लगा।

फिर सोनू निगम कब काम मिलना बंद हुआ, लोग समझ ही नही पाये। उसके बाद अरिजीत सिंह, जिनकी मखमली आवाज ने दिलों में जगह बनानी शुरू ही की कि सलमान खान ने उनहे पब्लिकली माफ़ी माँगने के बाद भी ‘जग घूमया’ जैसा गाना नही गवाया और धीरे धीरे उसका करियर खतम करने की साज़िश चलने लगी। सारे ही गायकों को असमय बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

इसके उल्टा इसके पहले चीख़ कर गाने वाले, क़व्वाल नुसरत फ़तेह अली खान को क़व्वाली गाने के लिये बुलाया जाता है, और पाकिस्तानी गायकों के लिये दरवाज़े खोल दिये गए। उसके बाद राहत फ़तेह अली खान आते हैं और बॉलीवुड में उन्हे लगातार काम मिलने लगता है और बॉलीवुड की वजह से सुपरहिट हो जाते है। फिर नये स्टाईल के नाम पर आतिफ़ असलम आते हैं जिसकी आवाज को ट्यूनर मे डाले बग़ैर कोइ गाना नही निकलता है, उन्हे एक के बाद एक अच्छे गाने मिलने लगते हैं। अली जाफ़र जैसे औसत गायक को भी काम मिलने में कोई दिक़्क़त नही आती।

धीरे धीरे पाकिस्तानी हीरो हीरोइन को भी बॉलीवुड मे लाकर स्थापित किया जाने लगा और भारतियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा। पर उरी हमले के बाद, बैक डोर से चुपके से उन्हे लाने की यह चाल, कुछ भारतीयों की नज़र में उनकी यह चाल समझ में आ गयी और उन्होंने निंदा करने की माँग करने की, हिमाक़त कर डाली जो उन्हे नागवार गुज़री और वो पाकिस्तान वापस चले गये।

क्या आपको लगता है कि यह केवल संयोग है तो आप से बड़ा भोला कोई नहीं।
पूरा बॉलीवुड डी कंपनी या पी कंपनी (पाकिस्तान) के इशारों पर चलता है,

गुलशन कुमार जी को इन्होंने सरेराह मरवा दिया और उनके बाद बॉलीवुड से तो जैसे भजन और हिन्दू धार्मिक संगीत अदृश्य हो गया, और संगीत के नाम पर अश्लीलता और धर्म के विरूद्ध एक षड्यन्त्र काम करने लगा और नई युवा पीढ़ी को पथभ्रमित करने का कार्य विशेष रूप से किया गया।

गुलशन कुमार को हटाकर भजन कीर्तन का बॉलिवुड से खात्मा किया गया। अब केवल अली अली मौला बचा है।
खान गैंग ने ये सब पूरी प्लानिंग से किया और कम्युनिस्टों के इशारे पर किया।

https://www.facebook.com/vipin.k.sharma.121

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पश्चिम रेलवे द्वारा 03 जोड़ी स्‍पेशल ट्रेनों के फेरे विस्‍तारित

मुंबई। पश्चिम रेलवे द्वारा यात्रियों की सुविधा तथा अतिरिक्त भीड़ को देखते हुए विशेष किराये पर 03 जोड़ी स्‍पेशल ट्रेनों के फेरे विस्‍तारित किये गये हैं।

पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी श्री विनीत अभिषेक द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार इन ट्रेनों का विवरण इस प्रकार है:

• ट्रेन संख्‍या 03418/03417 उधना – मालदा टाउन (साप्ताहिक) स्पेशल
ट्रेन संख्‍या 03418 उधना – मालदा टाउन स्पेशल जिसे पहले 02 जुलाई, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 जुलाई, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

इसी तरह, ट्रेन संख्‍या 03417 मालदा टाउन – उधना स्पेशल जिसे पहले 30 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 28 जुलाई, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

• ट्रेन संख्‍या 09057/09058 उधना – मंगलुरु (द्वि-साप्ताहिक) स्पेशल

ट्रेन संख्‍या 09057 उधना – मंगलुरु स्पेशल जिसे पहले 30 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 अक्टूबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।
इसी तरह, ट्रेन संख्‍या 09058 मंगलुरु – उधना स्पेशल जिसे पहले 01 जुलाई, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 31 अक्टूबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

• ट्रेन संख्‍या 03110/03109 वडोदरा – सियालदह (साप्ताहिक) स्पेशल
ट्रेन संख्‍या 03110 वडोदरा – सियालदह स्पेशल जिसे पहले 27 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 01 अगस्त, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

इसी तरह, ट्रेन संख्‍या 03109 सियालदह – वडोदरा स्पेशल जिसे पहले 25 जून, 2024 तक अधिसूचित किया गया था, अब उसे 30 जुलाई, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

ट्रेन संख्या 03418, 09057 एवं 03110 के विस्तारित फेरो की बुकिंग 28 जून, 2024 से सभी पीआरएस काउंटरों और आईआरसीटीसी वेबसाइट पर शुरू होगी। ट्रेनों के ठहराव के समय और संरचना के संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए यात्री कृपया www.enquiry.indianrail.gov.in  पर जाकर अवलोकन कर सकते हैं।

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भुवनेश्वर में नादब्रह्म दो दिवसीय संगीत उत्सव आयोजित

भुवनेश्वर ।  स्थानीय गीत गोविंद सदन में सामाजिक-सांस्कृति उत्थान संस्था नादब्रह्म के सौजन्य से दो दिवसीय (25-26 जून की शाम में) संगीत उत्सव आयोजित हुआ जिसमें बतौर मुख्यअतिथि भुवनेश्वर एकाम्र के नवनिर्वाचित विधायक बाबू सिंह ने योगदान दिया। उन्होंने अपने संबोधन में आडिशी संगीत,ओडिशी फोक ऑर्ट तथा डाइंग आर्ट को सतत जीवित और विकसित करनेवाली संस्था के प्रमुख प्रो.जगन्नाथ कुंवर को बधाई दी तथा उनके आमंत्रण पर अपनी-अपनी अद्वितीय कला की प्रस्तुति से सभी को मंत्रमुग्ध करनेवाले संगीत कलाकारों जैसेः गुरु नीमाकांत रुतराय,महापात्रा मिनती भंज,जयमिता कुंवर,महाप्रसाद कर,भाग्यश्री राउत,देवेंद्र गौड़ तथा अन्य नामी कलाकारों को बधाई देते हुए सम्मानित किया।

आयोजक प्रो.जगन्नाथ कुंवर ने बताया कि महाप्रभु के अणासरा के अवसर पर आयोजित दो दिवसीय नादब्रह्म संगीत उत्सव में अनेक संगीतप्रेमी उपस्थित होकर कलाकारों का उत्साह बढ़ाए। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ मृत्युंजय रथ ने किया।

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इमर्जेंसी की क्रूरता के खिलाफ महाराष्ट्र के समाजसेवी प्रभाकर शर्मा ने 1976 में कर लिया था आत्म दाह

जो नेता गण हाल के वर्षों में यह आरोप लगाते रहे हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में अघोषित इमर्जेंसी लगा रखी है,वे असली इमर्जेंसी की एक असली कहानी को यहां पढ़ लें।

 

यह कहानी कलकत्ता से प्रकाशित साप्ताहिक ‘रविवार’ (9 दिसंबर 1979)में छप चुकी है। कहानी यानी आत्मदाह से ठीक पहले तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के नाम प्रभाकर शर्मा की मार्मिक चिट्ठी में वर्णित  कहानी> याद रहे कि शर्मा ने उस पत्र की प्रति ‘सरकारी संत’ विनोबा भावे को भी भेजी थी। पर विनोबा ने उस पत्र की किसी से चर्चा तक नहीं की।  महात्मा गांधी के आह्वान पर प्रभाकर शर्मा ग्राम सेवा क्षेत्र में कूदे थे।
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आपातकाल की जन विरोधी क्रूरता और सत्ताधारियों के नग्न नाच से संतप्तं होकर प्रभाकर शर्मा ने 14 अक्तूबर 1976 को महाराष्ट्र के वर्धा के निकट सुरगांव में अपने शरीर पर तेल छिड़क कर आत्म दाह कर लिया था।

याद रहे कि इमर्जेंसी में विनोबा की पत्रिका ‘‘मैत्री’’ को भी महाराष्ट्र पुलिस ने जब्त कर लिया था।विनोबा उसके संपादक थे। जबकि अभूतपूर्व दमनकारी आपातकाल के समर्थन में विनोबा ने आपातकाल को सार्वजनिक रूप से ‘‘अनुशासन पर्व’’ बता दिया था। याद रहे कि केंद्र सरकार ने आपातकाल में आम लोगों के जीने तक का अधिकार छीन लिया था। देश के विभिन्न जेलों में कैद हजारों छोटे-बड़े प्रतिपक्षी नेताओं व पत्रकारों को अदालत जाने की अनुमति नहीं थी। केंद्र सरकार के इस कदम को भयभीत सुप्रीम कोर्ट का भी पूरा समर्थन मिल गया था।

आपातकाल (1975-77)की क्रूरता के खिलाफ प्रभाकर शर्मा ने  आत्म दाह करने से ठीक पहले प्रधान मंत्री   इंदिरा गांधी को पत्र लिखा-

‘‘इंदिरा जी,मैं आपके पापी राज्य में (जिन्दा)नहीं रहना चाहता।’’

प्रभाकर शर्मा  ने १४ अक्तूबर १९७६ को वर्धा के निकट सुरगाव में वानाशाही के विरोध में अपने शरीर पर तेल छिड़क कर आत्मदाह किया था । आत्मदाह के पूर्व प्रभाकर ने इंदिरा गांधी को जो पत्र लिखा था, उसे हम यथावत प्रकाशित कर रहे हैं।

श्रीमती गांधी

“पिछले वर्ष ईश्वर और मानवता को भूली हुई केंद्रीय सरकार ने मूढ़ पशुबल के सहारे अखबारों का लेखन-स्वातंत्र्य छीन कर जो कुछ सत, उदात्त और महान पुकारा जाता है, उन सब पर निर्मम प्रहार किया था। इस वर्ष पू० विनोबा जी के गोहत्या-प्रति- बंध के लिए आमरण अनशन के समाचार पर प्रतिबंध लगा कर तथा उनके ‘मैत्री’ का अंक जब्त करके उसने भारत की अहिंसक और आध्यात्मिक संस्कृति पर एक और निर्लज्ज प्रहार किया ।

मुगलों के जमाने में ऐसे अत्याचार पर लोगों को कदाचित आश्चर्य नहीं होता, परंतु यह उस तथाकथित कांग्रेसी सरकार ने किया है जिसे गांधी जी के नेतृत्व में अहिंसा की शिक्षा मिली थी । यदि मेरे घर में मीठी-मीठी बातें कर कुछ व्यक्ति घुस आयें और बाद में पिस्तौल दिखा कर मुझे बांध दं, मेरी संपत्ति छीन लें और घर की स्त्रियाँ पर बलात्कार करें तो इस कुकृत्य की भर्त्सना मैं किन शब्दों में करूं’ ? ‘गरीबी हटाओ’ का नारा लगा कर पैसा, चालाकी और भ्रष्टाचार के द्वारा आप प्रधानमंत्री बनी हैं। यह देख कर कि पैरों तले जमीन खिसक रही है, अपन हाथों में सत्ता बनाये रखने के लिए आपने पुलिस और सेना के बल पर, जिनका खर्च जनता से ही वसूल किया जाता है, राक्षसी कानून लगा कर भारत को एक अंधेरी गुफा का रूप दे दिया है।

इस केंद्रीय सरकार को मैं पक्के गुंडों का संगठन मानता हूं। इस गुंडा संगठन ने मानवता, शील, चारित्र्य, न्याय, लज्जा, ईमानदारी और भारतीय संस्कृति को पूर्ण तिलांजलि दे दी है। इस गुंडा संगठन के मनमाने अत्याचारों का संवाद अखबारों में भी नहीं जा सकता। ‘जयप्रकाश जिंदाबाद’ कहने या उनके स्वागत के लिए सड़क पर खड़े रहने का अर्थ हूँ गिरफ्तारी । जालसाजी, भूष्टाचार और काले धन के ल पर प्रधानमंत्री बनी हुई श्रीमती इंदिरा गांधी की इच्छा के विरुद्ध निर्णय देने का

इंदिरा जी,

मैं आपके पापी राज्य में नहीं रहना चाहता प्रभाकर शमां

अर्थ है, न्यायाधीशों का पदच्युतिकरण । सारांश यह है कि आज उनकी (इंदिरा गांधी की) मर्जी है धर्मशास्त्र, सदक है नीति- शास्त्र, इच्छा है संस्कृति, गर्वोन्माद है कानून और हुकार है न्याय । अपने जघन्य कृत्यों के कारण लोकमत का सामना करने का साइस आप खो चुकी हैं, अन्यथा यह हिंसा और गोपनीयता का सहारा क्यों ? लेखन स्वातंत्र्य के अपहरण के कारण न तो शुद्ध लोकमत प्रकट हो सकता है और न कोई सामूहिक अहिंसक आंदोलन हो सकता है। मैं इसे राष्ट्र की अंतरात्मा की हत्या कहूंगा। आप अपनी राजनीतिक चालों से मात्र पशुबल का सहारा ले कर भारत की वर्तमान प्रजा को दब्बू और चरित्रहीन बना रही हैं। और नयी पीढ़ी तो खत्म ही है।

अपनी निरंकुश और स्वच्छंद सत्ता द्वारा भारत को अपनी राक्षसी सत्ताकांक्षा का विश्वरूप दर्शन कराने के लिए यदि आप भारत की सारी जनता को ही एटम बम से ख़त्म कर दें तो कम-से-कम अकेला में तो आपको धन्यवाद देता । संपूर्ण भारत को अपने पैरों तले रौंदनेवाली नरपिशाचिनी की सत्ता के अंतर्गत जीवित रहने की अपेक्षा मेँ हजार बार मल-मूत्र में रंगनेवाले कीड़े का जन्म लेना ज्यादा पसंद करूंगा ।

वर्तमान अवस्था से संतुष्ट हो कर अगर भारत की जनता चुप पड़ी रहती हैं तो भारत वह भारत नहीं रहेगा जहां हजारों संतों और महापुरुषों ने अद्वैत की उपासना द्वारा बुहुमात्मैक्य की अनुभूति प्राप्त कर आध्यात्मिक और अहिंसक संस्कृति के बीज बोये थे। प्रत्युत वह उन लोगों का देश कहलायेगा जिन्होंने शाश्वत सुख और शांति प्रदान करनेवाली अपनी कल्याणमयी माता की संपूर्ण अवज्ञा करके पैसे और भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए अपने शरीर और आत्मा को बेच कर पश्चिम से बन-ठन कर आयी हुई रोगग्रस्त वेश्या को पूजना शुरू कर दिया है।

जब एक ओर सत्ताधीश और उनकी नौकरशाही अपने पद और नौकरियों को रखने के लिए प्रजा का अनेक प्रकार से दमन कर रही है और उन्होंने अपनी अंतरात्मा को इतना कुचल दिया है कि उनका मन- व्यत्व ही समाप्त हो गया है तो दूसरी और शहरी वर्ग ने अपने भोग-विलास, फैशन और ऐश-आराम को सुरक्षित रखने के लिए सरकार के अपमानजनक कानूनों और जुल्मों के आगे घुटने टेक दिये हैं । सत्ता और संपत्ति की पूजा के लिए मनुष्य जाति के नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का यह पतन देख कर मेरा हृदय विदीर्ण हो जाता है तथा मेरी दशा उस व्यक्ति के समान हो जाती हॅ जिसके सामने हजारों बच्चों की हत्या और लाख स्त्रियों पर बलात्कार हो रहा हो । अज्ञान और दारिद्र्य के महासागर में गांव लगानेवाले इन करोड़ों भारतीयों क रहते इन सत्ताधीशों और शहरवासियों को नींद कैसे आती है और अन्न कैसे पचता है ? मुझे तो यह आश्चर्य लगता है।

इस पत्र में मैंने कठोर शब्दों का प्रयोग किया है, किंतु आपके मनकारी यां की तुलना में मेरे शब्द बहुत ही सौम्य मान जाने चाहिए। ईश्वर की दृष्टि में सभी समान हैं। ईश्वर इन मदांध सत्ताधारियों को कभी माफ नहीं करेगा। भावी पीढ़ी आक के मदमस्त अफसरों, मंत्रियों, राष्ट्रपति और पिठ्ठु न्यायाधीशों को सबसे बड़ा अपराधी मानेगी।

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हिंदी साहित्य सम्मेलन एवं ओड़िशा केंद्रीय विश्वविद्यालय कोरापुट के संयुक्त तत्वावधान में 75 वां राष्ट्रीय अधिवेशन संपन्न

भुवनेश्वर। हिंदी साहित्य सम्मेलन,  प्रयाग एवं ओड़िशा केंद्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 75 वें अधिवेशन का समापन समारोह दिनांक 25 जून 2024 को संपन्न हुआ। पूर्वाह्न 10:30 बजे समाजशास्त्र परिषद के परिसंवाद का विषय ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति भविष्य का समाज’ था । इसमें प्रो. भरत कुमार पंडा ने सभापति के रूप में अपना व्याख्यान दिया ।उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान-संपदा संरक्षण, मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा ,शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार तथा समावेशी शिक्षा पर विशेष बल दिया गया है। इस परिसंवाद में विशिष्ट वक्ता डॉ सुशील कुमार उपाध्याय  के साथ-साथ श्री मोहन कृष्ण भारद्वाज , डॉ मनोहर मयूर जमुना देवी एवं डॉ दीप्ति बोकन ने अपने महत्वपूर्ण विचार रखे।

अपराह्न 1:00 बजे के बाद खुला अधिवेशन का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ जिसके अंतर्गत राष्ट्रभाषा हिंदी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान  हेतु ‘साहित्य वाचस्पति’ एवं ‘सम्मेलन सम्मान’ प्रदान किया गया। सबसे पहले प्रोफेसर हेमराज मीणा ने सम्मेलन सम्मान पाने वाले विद्वानों का परिचय देते हुए  उन्हें मंच पर आमंत्रित  किया। श्री मनमोहन गोयल ,श्री सुशील कुमार पात्र, डॉ. भगवान त्रिपाठी,श्री चरण सिंह मीणा, डॉ. चक्रधर प्रधान ,डॉ. मनोज कुमार सिंह, प्रो. हेमराज मीणा, डॉ. मनोहर मयूर जमुना देवी, प्रो. रामकुमार मिश्र ,डॉ. माली पटेल श्रीनिवास राव ,प्रो. विभाष चंद्र झा ,डॉ. अखिलेश निगम अखिल, डॉ. लोकेश्वर प्रसाद सिन्हा आदि को ‘सम्मेलन सम्मान’ से सम्मानित किया गया।

इसके बाद श्री शेषमणि पांडे ने हिंदी साहित्य सम्मेलन के सर्वोच्च सम्मान ‘साहित्य वाचस्पति’ सम्मान के लिए डॉ अजय कुमार पटनायक एवं प्रोफेसर चक्रधर त्रिपाठी का नाम घोषित किया। उन्होंने इन दोनों विद्वानों का विस्तृत परिचय देते हुए उन्हें सम्मान प्रदान करने के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री श्री कुंतक मिश्र को अनुरोध किया। डॉ अजय कुमार  पटनायक ने इस  अवसर पर  हिंदी साहित्य सम्मेलन  के ‘साहित्य वाचस्पति सम्मान’  के राष्ट्रीय महत्व पर प्रकाश  डालते हुए अपने  छात्र जीवन को  याद  किया। उन्होंने कहा कि गंजाम से इलाहाबाद तक पहुंचना उनके समय में आसान नहीं था; किंतु हिंदी पढ़ने के लिए उनमें एक जुनून पैदा हुआ था जिसके कारण सारी कठिनाइयों को पार करते हुए उन्होंने उच्च शिक्षा में हिंदी का अध्ययन किया और हिंदी सेवा में अपने आप को नियोजित किया।

इस अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए  ओड़िशा केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. चक्रधर त्रिपाठी ने अपने ओजपूर्ण संबोधन से  पूरे  सभागार को  मंत्रमुग्ध कर  दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि हिंदी का काम देश को जोड़ कर रखना है ।हिंदी प्रदेश के लोग संयोजक का काम करें तथा भारतवर्ष की अन्य भाषा और संस्कृति को अपनाकर  स्वयं को  समृद्ध करें। ‘ आज नहीं तो कभी नहीं’ इसी मंत्र को सभी हिंदी प्रेमियों को आत्मसात् करना चाहिए।

कार्यक्रम के अंत में हिंदी साहित्य सम्मेलन के साहित्य मंत्री प्रो. रामकिशोर शर्मा ने भारतवर्ष के कोने-कोने से आए हिंदी प्रेमियों को तथा ओड़िशा केंद्रीय विश्वविद्यालय से मिलने वाले आंतरिक सहयोग,  प्रेम पूर्ण व्यवहार,और आतिथ्य का उल्लेख करते हुए कुलपति,कुलसचिव,  वित्त अधिकारी,सुरक्षा अधिकारी, जनसंपर्क अधिकारी समेत सभी को विशेष धन्यवाद दिया । समारोह के अंत में अपने तन -मन राष्ट्र को समर्पित करते हुए सभी ने राष्ट्रगान  किया।

प्रेषक ःडॉ. फगुनाथ भोई

जनसंपर्क अधिकारी

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मेथनॉल और फॉर्मेल्डिहाइड के संयोजन से हाइड्रोजन उत्पादन की नई तकनीक

भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) तिरुपति के शोधकर्ताओं ने ‘हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था’ की ओर बढ़ने के लिए मेथनॉल और फॉर्मेल्डिहाइड के संयोजन से हाइड्रोजन उत्पादन की एक कुशल विधि विकसित की है

शोधकर्ताओं ने माइल्ड कंडीशन्ज़ में मेथनॉल और पैराफॉर्मेल्डिहाइड के मिश्रण से हाइड्रोजन गैस का उत्पादन करने के लिए एक नवप्रवर्तनकारी कृत्रिम विधि विकसित की है। यह विधि एल्काइन्स का हाइड्रोजनीकरण करके एल्केन्स में बदलने के लिए विशेष रूप से प्रभावी साबित हुई है और यह संयोजन एक आशाजनक हाइड्रोजन वाहक हो सकता है, जो रासायनिक संश्लेषण और टिकाऊ ऊर्जा समाधानों में प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है।

जीवाश्म ईंधन की तेजी से हो रही कमी ने वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की खोज को बढ़ावा दिया है, जो टिकाऊ और नवीकरणीय संसाधनों की जरूरत को उजागर करता है। हाइड्रोजन गैस उत्पादन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें ऊर्जा भंडारण, परिवहन और विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं में जीवाश्म ईंधन की जगह को लेने की क्षमता है। बड़े पैमाने पर उत्पादित मेथनॉल और पैराफॉर्मेल्डिहाइड, हाइड्रोजन वाहकों के लिए व्यवहार्य उम्मीदवार के रूप में उभरे हैं। उनकी प्रचुरता और उनका व्यापक रूप से बनाना उन्हें हाइड्रोजन के भंडारण और परिवहन के लिए मूल्यवान बनाता है, जो मुक्त हाइड्रोजन पर महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है।

भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) तिरुपति में प्रोफेसर एकम्बरम बालारमन की अगुवाई में किए गए शोध में क्षार या एक्टिवेटर की आवश्यकता के बिना मेथनॉल और पैराफॉर्मेल्डिहाइड से हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए व्यावसायिक रूप से उपलब्ध निकल उत्प्रेरक का उपयोग किया गया है। इस कुशल उत्प्रेरक प्रणाली ने माइल्ड कंडीशन्ज़ में उल्लेखनीय दक्षता का प्रदर्शन किया है और उत्पन्न हाइड्रोजन को एल्काइन्स के कीमो- और स्टीरियो-चयनात्मक आंशिक हाइड्रोजनीकरण में सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया था। इस प्रक्रिया ने बेहतर सिंथेटिक वैल्यू के साथ जैव सक्रिय अणुओं तक पहुंच को सक्षम बनाया है। इस शोध को एएनआरएफ (पूर्ववर्ती एसईआरबी, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) का एक वैधानिक निकाय) द्वारा समर्थन दिया गया था।

कैटेलिसिस साइंस एंड टेक्नोलॉजी पत्रिका में प्रकाशन के लिए स्वीकृत यह शोध COx-मुक्त हाइड्रोजन उत्पादन के लिए एक नया रास्ता खोलता है, जो ‘हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था’ की प्रगति में योगदान देता है। हाइड्रोजन वाहक के रूप में मेथनॉल और पैराफॉर्मेल्डिहाइड का उपयोग करने की क्षमता, बढ़ती वैश्विक ऊर्जा मांगों के कारण उत्पन्न चुनौतियों को, संबोधित करने की महत्वपूर्ण क्षमता प्रदान करती है। यह विकास स्थायी ऊर्जा समाधानों की खोज में एक महत्वपूर्ण कदम को चिन्हित करता है।

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इतिहास के पन्नों से गुम सेठ रामदास जी गुड़वाले का नाम

सेठ रामदास जी गुडवाला दिल्ली के अरबपति सेठ और बेंकर थे. इनका जन्म दिल्ली में एक अग्रवाल परिवार में हुआ था. इनके परिवार ने दिल्ली में पहली कपड़े की मिल की स्थापना की थी।

सेठ रामदास जी गुड़वाले – 1857 के महान क्रांतिकारी, दानवीर जिन्हें फांसी पर चढ़ाने से पहले अंग्रेजों ने उनपर शिकारी कुत्ते छोड़े जिन्होंने जीवित ही उनके शरीर को नोच खाया।

उनकी अमीरी की एक कहावत थी “रामदास जी गुड़वाले के पास इतना सोना चांदी जवाहरात है की उनकी दीवारो से वो गंगा जी का पानी भी रोक सकते है”

जब 1857 में मेरठ से आरम्भ होकर क्रांति की चिंगारी जब दिल्ली पहुँची तो दिल्ली से अंग्रेजों की हार के बाद अनेक रियासतों की भारतीय सेनाओं ने दिल्ली में डेरा डाल दिया। उनके भोजन और वेतन की समस्या पैदा हो गई । रामजीदास गुड़वाले बादशाह के गहरे मित्र थे ।

रामदास जी को बादशाह की यह अवस्था देखी नहीं गई। उन्होंने अपनी करोड़ों की सम्पत्ति बादशाह के हवाले कर दी और कह दिया “मातृभूमि की रक्षा होगी तो धन फिर कमा लिया जायेगा। ” रामजीदास ने केवल धन ही नहीं दिया, सैनिकों को सत्तू, आटा, अनाज बैलों, ऊँटों व घोड़ों के लिए चारे की व्यवस्था तक की।

सेठ जी जिन्होंने अभी तक केवल व्यापार ही किया था, सेना व खुफिया विभाग के संघठन का कार्य भी प्रारंभ कर दिया उनकी संगठन की शक्ति को देखकर अंग्रेज़ सेनापति भी हैरान हो गए ।सारे उत्तर भारत में उन्होंने जासूसों का जाल बिछा दिया, अनेक सैनिक छावनियों से गुप्त संपर्क किया।

उन्होंने भीतर ही भीतर एक शक्तिशाली सेना व गुप्तचर संघठन का निर्माण किया। देश के कोने कोने में गुप्तचर भेजे व छोटे से छोटे मनसबदार और राजाओं से प्रार्थना की इस संकट काल में सभी सँगठित हो और देश को स्वतंत्र करवाएं।

रामदास जी की इस प्रकार की क्रांतिकारी गतिविधयिओं से अंग्रेज़ शासन व अधिकारी बहुत परेशान होने लगे।

कुछ कारणों से दिल्ली पर अंग्रेजों का पुनः कब्जा होने लगा । एक दिन उन्होंने चाँदनी चौक की दुकानों के आगे जगह-जगह जहर मिश्रित शराब की बोतलों की पेटियाँ रखवा दीं, अंग्रेज सेना उनसे प्यास बुझाती और वही लेट जाती । अंग्रेजों को समझ आ गया की भारत पे शासन करना है तो रामदास जी का अंत बहुत ज़रूरी है ।

सेठ रामदास जी गुड़वाले को धोखे से पकड़ा गया और जिस तरह से मारा गया वो क्रूरता की मिसाल है। पहले उन्हें रस्सियों से खम्बे में बाँधा गया फिर उन पर शिकारी कुत्ते छुड़वाए गए उसके बाद उन्हें उसी अधमरी अवस्था में दिल्ली के चांदनी चौक की कोतवाली के सामने फांसी पर लटका दिया गया।

सुप्रसिद्ध इतिहासकार ताराचंद ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेंट’ में लिखा है –
“सेठ रामदास गुड़वाला उत्तर भारत के सबसे धनी सेठ थे।अंग्रेजों के विचार से उनके पास असंख्य मोती, हीरे व जवाहरात व अकूत संपत्ति थी।

सेठ रामदास जैसे अनेकों क्रांतिकारी इतिहास के पन्नों से गुम हो गए क्या सेठ रामदास जैसे क्रांतिकारियों के बलिदान का ऋण हम चुका पाये???
तुम न समझो देश को आज़ादी यूं ही मिली है।

हर कली इस बाग की,कुछ खून पी कर ही खिली है।
मिट गये वतन के वास्ते,दीवारों में जो गड़े हैं।
महल अपनी आज़ादी के,शहीदों की छातियों पर ही खड़े हैं।।

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किसी जमाने में मायापुरी की फिल्मी गपशप किसी फिल्म से कम रोमांचक नहीं होती थी

मायापुरी भारत की सबसे पुरानी और सबसे अधिक प्रसारित होने वाली हिंदी साप्ताहिक पत्रिका है। इसके प्रकाशन का सफर 1974 में शुरू हुआ और आज भी यह बॉलीवुड और फिल्मी गपशप की दुनिया में अपनी खास जगह बनाए हुए है। मायापुरी का यह सफर मायापुरी प्रकाशन समूह के साथ जुड़ा हुआ है, जिसकी नींव 1882 में अविभाजित पंजाब की राजधानी लाहौर में अरोरबंस प्रेस के नाम से पड़ी थी। विभाजन के बाद, समूह ने अपना मुख्य कार्यालय दिल्ली स्थानांतरित किया और ए.पी. बजाज के नेतृत्व में नई ऊंचाइयों को छुआ।

1974 में मायापुरी समूह ने भारत की पहली साप्ताहिक हिंदी फिल्म पत्रिका मायापुरी लॉन्च की। इस पत्रिका ने बहुत जल्द ही बॉलीवुड की दुनिया में अपनी एक विशेष पहचान बना ली। मायापुरी पत्रिका ने फिल्मी गपशप और बॉलीवुड खबरों को हिंदी पाठकों तक पहुँचाने का कार्य किया और इसे उत्तर भारत में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली फिल्मी पत्रिका बना दिया।

मायापुरी पत्रिका की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसकी प्रति सप्ताह प्रसार संख्या 3,40,000 से अधिक है और पाठकों की संख्या 30,60,000 तक पहुंच चुकी है। यह पत्रिका हर हफ्ते नई-नई फिल्मी खबरों, गपशप और बॉलीवुड सितारों के इंटरव्यूज से भरी होती है। इसने हिंदी भाषी क्षेत्रों में फिल्मी दुनिया की खबरों को लोगों तक पहुँचाने का काम बखूबी किया है।

आज भी मायापुरी पत्रिका हिंदी फिल्मी गपशप की दुनिया में अपनी पकड़ बनाए हुए है। भारत के उत्तरी क्षेत्रों में इसकी व्यापक मांग है और यह नाई की दुकानों से लेकर स्टैंड पर आसानी से उपलब्ध होती है। इस पत्रिका की एक खास पहचान है उसकी चमकदार आवरण और अंदर की रोचक सामग्री, जो इसे पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय बनाती है।

मायापुरी ने अपने स्थापना से लेकर आज तक भारतीय मीडिया जगत में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसने बॉलीवुड के हर छोटे-बड़े समाचार को हिंदी भाषी पाठकों तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई है। मायापुरी समूह की यह पहल और उसके बाद की सफलता एक प्रेरणास्रोत है, जो यह दर्शाता है कि सही समय पर सही कदम उठाकर किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त की जा सकती है।

मायापुरी पत्रिका न सिर्फ एक फिल्मी गपशप पत्रिका है, बल्कि यह भारतीय सिनेमा और उसकी बदलती तस्वीर की साक्षी भी है। यह भारतीय फिल्म उद्योग और उसके प्रशंसकों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करती है और इसे आगे भी जारी रखने का प्रयास करती रहेगी।

साभार-https://www.facebook.com/filmymooz से
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