Saturday, November 23, 2024
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डाकघर के माध्यम से घर बैठे बनेगा पेंशनरों का जीवन प्रमाणपत्र – पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव

डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र अभियान 3.0 की शुरुआत, 30 नवंबर तक चलेगा अभियान

अब पेंशनरों को जीवन प्रमाणपत्र जमा करने के लिए कोषागार, बैंक या अन्य किसी विभाग में जाने की जरूरत नहीं है। पेंशनर अपने नजदीकी डाकघर के पोस्टमैन या ग्रामीण डाक सेवक के माध्यम से डिजिटल लाइफ सर्टिफिकेट जारी करवा सकते हैं। इसके लिए मात्र 70 रुपये का शुल्क निर्धारित किया गया है। यह प्रमाण पत्र स्वतः संबंधित विभाग को ऑनलाइन पहुंच जाएगा। इससे पेंशन मिलने में कोई रुकावट नहीं आएगी। उक्त जानकारी राजकोट प्रधान डाकघर में इंडिया पोस्ट पेमेंटस बैंक द्वारा आयोजित डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र शिविर में सौराष्ट्र एवं कच्छ परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने दी। इस अवसर पर राजकोट मंडल के प्रवर अधीक्षक डाकघर श्री एस के बुनकर, इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक के सीनियर मैनेजर श्री संदीप मौर्या और सीनियर पोस्टमास्टर राजकोट श्री अभिजीत सिंह भी उपस्थित रहे।

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि, इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक के माध्यम से केंद्र व राज्य सरकार सभी विभागों के पेंशनरों को घर बैठे डिजिटल लाइफ सर्टिफिकेट प्रदान करने की सुविधा प्रदान की जा रही है। 30 नवंबर तक डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र अभियान 3.0 वृहद रूप से चलेगा। इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक ने 2020 में केंद्रीय, राज्य और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के पेंशनरों के लिए जीवन प्रमाण जनरेट करने के लिए डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र की डोरस्टेप सेवा की शुरुआत की, जो कि पेंशन व पेंशनर्स कल्याण विभाग और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के समन्वय में है। इस पहल का उद्देश्य फेस ऑथेंटिकेशन (चेहरा प्रमाणीकरण) तकनीक और फिंगरप्रिंट बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन की डिजिटल प्रक्रिया के उपयोग को बढ़ावा देना है, जिससे सभी पेंशनरों, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वालों को सुविधाजनक सेवाएं मिल सकें।

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि पेंशनर इस सुविधा को प्राप्त करने के लिए अपने क्षेत्र के पोस्टमैन के साथ-साथ पोस्ट इन्फो मोबाइल एप (https://ccc.cept.gov.in/ServiceRequest/request.aspx) द्वारा ऑनलाइन अनुरोध भी कर सकते हैं। इसके लिए पेंशनर को आधार नंबर, मोबाइल नंबर, बैंक या डाकघर बचत खाता नंबर और पीपीओ नंबर देना होगा। प्रमाण पत्र जनरेशन प्रक्रिया पूरी होने पर, पेंशनर को उनके मोबाइल नंबर पर एक पुष्टि एस.एम.एस प्राप्त होगा और प्रमाण पत्र को https://jeevanpramaan.gov.in/ppouser/login पर अगले दिन के बाद ऑनलाइन देखा जा सकेगा।

           गौरतलब है कि पेंशनरों को प्रत्येक वर्ष  सामान्यतया नवंबर और दिसंबर माह में कोषागारबैंक या संबंधित विभाग में जीवन प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होता है। इसके लिए  दूरदराज इलाके के पेंशनरों को कोषागार आने में कई बार कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है एवं यात्रा आदि में भी काफी व्यय होता है। ऐसे में डाक विभाग की इस पहल से  पेंशनरों को काफी सहूलियत मिलेगी। इसके साथ-साथ पेंशनर डाकिया के माध्यम से घर बैठे पेंशन की धनराशि आधार इनेबल्ड पेमेंट सिस्टम के माध्यम से अपने बैंक खाते से निकाल सकते हैं।

कृषि वस्तुओं के निलंबन का खाद्य कीमतों और कृषि पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव

नई दिल्ली, दिल्ली।

  • शैलेश जे. मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट (SJMSOM), आईआईटी बॉम्बे और बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी (BIMTECH), नोएडा द्वारा प्रस्तुत एक स्वतंत्र शोध
  • अलग-अलग अध्ययनों ने प्रचलित बाजार मिथक ‘कमोडिटी डेरिवेटिव ट्रेडिंग से मुद्रास्फीति बढ़ती है’ को ध्वस्त कर दिया है

भारत के प्रमुख बी-स्कूलों में से एक, बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी (BIMTECH), नोएडा और शैलेश जे मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट (SJMSOM), IIT बॉम्बे ने एक्सचेंज ट्रेडेड कमोडिटीज (ETCDs) पर फ्यूचर डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स के निलंबन के प्रभाव की जांच करने के लिए दो अलग-अलग अध्ययन किए। BIMTECH रिपोर्ट कमोडिटी डेरिवेटिव्स पर रोक का अंडरलाइंड कमोडिटी बाजार पर असर, में जनवरी 2016 से अप्रैल 2024 के बीच सरसों बीज, सोयाबीन, सोया तेल, सरसों तेल और पाम ऑयल का अध्ययन किया गया है । यह रिपोर्ट निर्णायक रूप से बताता है कि ETCDs (एक्सचेंज ट्रेडेड कमोडिटीज) के निलंबन के कारण वास्तविक बाजार में में संदर्भ मूल्य की अभाव की स्तिथि उत्पन्न हो जाती है , और इसके परिणामस्वरूप मंडी भाव एक जैसे नहीं रहते । विभिन्न मंडियों में भाव बहुत अलग-अलग होते हैं और कीमतें भी ज्यादा ऊपर-नीचे होती है।

शैलेश जे मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, आईआईटी बॉम्बे द्वारा किए गए अध्ययन का शीर्षक है – कमोडिटी डेरिवेटिव्स पर रोक का कृषि तंत्र पर प्रभाव । इसमें द्वितीयक और प्राथमिक शोध को मिलाकर व्यापक तरीका अपनाया गया। प्राथमिक आंकड़े महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में सर्वेक्षण और बाजार प्रतिभागियों (किसान और एफपीओ समेत) के गहन साक्षात्कार के जरिये इकट्ठे किए गए।, जिसमें सरसों बीज, सोया तेल, सोयाबीन, चना और गेहूं जैसी कमोडिटी को केंद्र में रखा गया। अध्ययन में इस बात का उल्लेख किया गया है डेरिवेटिव्स अनुबंध किसानों और वैल्यू चेन के दूसरे भागीदारों के लिए भाव तय करने तथा जोखिम संभालने का अहम जरिया होते हैं। इसके जरिये वे उतार-चढ़ाव और कृषि आर्थिक क्षेत्र में दूसरे जोखिमों को संभाल सकते हैं।

साल 2021 में, सेबी ने सात कृषि कमोडिटी/कमोडिटी समूहों में डेरिवेटिव ट्रेडिंग पर रोक लगा दी। इसे 2003 में कमोडिटी एक्सचेंजों के आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक संस्करण के अस्तित्व में आने के बाद से भारतीय कमोडिटी डेरिवेटिव बाजार पर अब तक का सबसे बड़ा प्रतिबंध कहा जा सकता है। हालांकि निलंबन के लिए कोई विशेष कारण नहीं बताया गया, लेकिन ज्यादातर लोग यही मानते हैं कि चढ़ते भावों पर अंकुश लगाने के लिए रोक लगाई गई थी क्योंकि डर था कि डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग से कीमतें बढ़ रही हैं। इस संदर्भ में, भारत के दो प्रतिष्ठित संस्थानों ने कमोडिटी डेरिवेटिव के निलंबन का कमोडिटी इकोसिस्टम पर प्रभाव ‘ का मूल्यांकन करते हुए एक व्यापक अध्ययन किया।

BIMTECH का अध्ययन डॉप्रबीना राजीबडारुचि अरोड़ा, बिमटेक से और डॉपरमा बराई आईआईटीखड़गपुर द्वारा किया गया जो तीन दृष्टिकोणों पर केंद्रित है

  • स्थानीय मंडियों के लिए प्राइस एंकर उपलब्ध नहीं होने का असर।
  • कमोडिटी वायदा पर रोक और थोक तथा रिटेल स्तर पर खाद्य तेल के भाव पर असर।
  • निलंबित वस्तुओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में हेजिंग दक्षता

अध्ययन पर टिप्पणी करते हुए प्रोफेसर प्रबीना राजीब ने कहा, “भारत में कमोडिटी डेरिवेटिव अनुबंध पर समय-समय पर रोक लगाना चलन जैसा बन गया हैजो  केवल डेरिवेटिव क्षेत् के विकास में बाधा डाल रहा हैबल्कि समग्र कमोडिटी पारिस्थितिकी तंत्र के विकास को भी प्रभावित कर रहा है। हालांकिदुनिया भर में कमोडिटी एक्सचेंज सैकड़ों वर्षों से बेरोकटोक कमोडिटी डेरिवेटिव्स अनुबंध चलाते आ रहे हैं, जबकि इन कमोडिटी में अक्सर आपूर्ति और मांग का मेल बिगड़ जाता है और कीमत ऊपर-नीचे होती रहती हैं । इस शोध के माध्यम से भारत में रोक के पीछे अंतर्निहित प्रचलि विश्वास प्रणाली में गहराई से जाना और सबसे प्रमुख इकाई – हमारे किसानों और मूल्य श्रृंखला प्रतिभागियों पर इसके प्रभाव को समझना दिलचस्प था। हमारा अध्ययन स्पष्ट करता है कि डेरिवेटिव वायदा कारोबार के बारे में यह धारणा कि मूल्य मुद्रास्फीति की ओर ले जाती हैगलत हो सकती है। खुदरा और थोक मूल्य के हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि विशेष रू से खाद्य तेलों के लिए केवल निलंबन अवधि के दौरान सभी श्रेणियों में कीमतों में वृद्धि हुई हैबल्कि खुदरा उपभोक्ता  भी अधिक कीमत चुका रहे हैं।

एसोसिएट प्रोफेसर सार्थक गौरव (अर्थशास्त्रऔर सहायक प्रोफेसर पीयूष पांडे (वित्तद्वारा कि गए शैलेश जे मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट आईआईटी बॉम्बे अध्ययन में चार विशिष्ट उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित किया गया।

  • पांच कमोडिटी डेरिवेटिव्स पर रोक के कृषि तंत्र पर हुए असर की पड़ताल करना।
  • कमोडिटी पर रोक के बाद पड़ने वाले प्रभाव की तस्वीर पेश करना और वायदा तथा हाजिस भाव, वॉल्यूम एवं उतार-चढ़ाव के बीच संबंध की पड़ताल करना।
  • यह समझना कि जिस कमोडिटी पर रोक लगाई गई, उसमें अटकलबाजी चिंता का विषय है या नहीं।
  • वास्तविक बाजार में भागीदारी करने वालों के बीच वायदा बाजार की समझ का पता लगाना। इसमें किसान समुदाय भी शामिल है, जिसके वायदा ट्रेडिंग के बारे में अनुभवों का अध्ययन बहुत कम हुआ है।

अपने शोध के बारे में बोलते हुए प्रोफेसर सार्थक गौरव ने टिप्पणी की, हमारे शोध में पाया गया है कि पांच निलंबित वस्तुओं के लि कमोडिटी वायदा कारोबार और हाजिर बाजार की कीमतों के बीच सकारात्मक संबंध का कोई सबूत नहीं हैजो यह दर्शाता है कि वस्तुओं के लिए वायदा कारोबार और खाद्य मुद्रास्फीति के बीच संबंध गलत है। वास्तव मेंतीन राज्यों – महाराष्ट्रमध्य प्रदेश और गुजरात में कमोडिटी वायदा और हाजिर कीमतों के आंकड़ों और सर्वेक्षणों के विश्लेषण पर आधारित ध्ययन दृढ़ता से स्थापित करता है कि जिन कमोडिटी पर रोक लगाई गई और जिन पर रोक नहीं लगाई गईदोनों के ही भाव रोक के बाद भी ऊंचे ही बने रहे और कमोडिटी के रिटेल मूल्य पर घरेलू और विदेशी मां तथा आपूर्ति का असर पड़ता है उन्होंने आगे कहा कि कमोडिटी डेरिवेटिव्स अनुबंध कीमत तय करने में बड़ी भूमिका निभाते हैंजो विश्लेषण से स्पष्ट है। रोक के बाद रेफरेंस प्राइसिंग व्यवस्था खत्म हो जाने तथा मूल्य जोखिम प्रबंधन के तरीके बिगड़ जाने के कारण कमोडिटी के बेहतर भाव तय करने की प्रक्रिया पर प्रतिकूल असर पड़ा है। उचित मूल्य पता लगाने की प्रक्रिया में बाधा आई है और बाजार में प्रवेश तथा भागीदारी पर भी असर पड़ा है। “

दोनों अध्ययनों द्वारा सामने रखे गए दृष्टिकोण को जोड़ते हुए, कमोडिटी पार्टिसिपेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CPAI) के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री संजय रावल ने कहा, कमोडिटी और डेरिवेटिव ट्रेडिंग का निलंबन  केवल कृषि मूल्य श्रृंखला पर नकारात्मक प्रभाव डालता हैबल्कि यह दीर्घ अवधि में तंत्र में निहित विश्वास को भी तोड़ता है। इसलिएयह ध्यान रखना उचित है कि इस तरह के फैसलों का हमारे कमोडिटी बाजार पर भौतिक और वित्तीय दोनों तरह से दीर्घकालिक परिणाम होते हैं। घरेलू खुदरा कीमतों पर अंतरराष्ट्रीय बाजारोंभूराजनीतिक वातावरणमौसम संबंधी विसंगतियोंआपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों आदि जैसे संभावित मौलिक मूल्य को प्रभावित करने वाले कारकों के आलोक में इस तरह के प्रतिगामी कदमों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। उन्होंने आगे बताया कि, “डेरिवेटिव ट्रेडिंग मूल्य खोज और मूल्य जोखिम प्रबंधन के लिए वायदा बाजार के लिए एक रेफरेंस प्राइसिंग प्रदान करती है। यहां तक कि भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 ने कृषि डेरिवेटिव बाजार द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया है। मेरा ईमानदारी से मानना है कि कमोडिटी वायदा बाजार प्रभावी रूप से मूल्य खोज में तभी योगदान दे सकता है जब कई पभोक्ताउत्पादकव्यापारी और एग्रीगेटर इन बाजारों का उपयोग अपने जोखिम को कम करने के लिए रें।

इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट आनंद (आईआरएमए) में कमोडिटी मार्केट्स में उत्कृष्टता केंद्र के प्रोफेसर और समन्वयक डॉराकेश अरवटिया ने हाकमोडिटी डेरिवेटिव्स बाजार संचालित उपकरण हैंजो अस्थिर समय के दौरान ढाल के रूप में का करते हैं – मूल्य श्रृंखला प्रतिभागियों के हितों की रक्षा रते हैं और कमोडिटी बाजारों में स्थिरता लाते हैं। चूंकि ये अपेक्षाकृत नए उपकरण हैंइसलिए उनके बारे में एक निश्चित स्तर की आशंका है। हालांकिसरकार को  उपकरणों का उपयोग किसानों को मूल्य अस्थिरता के बावजूद उनके मूल्य जोखिम का प्रबंधन करने में मदद करने के लिए करना चाहिएन्हें सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिएजिससे वॉल्यूम बढ़े और बाजार का विश्वास मजबूत हो।

55वां अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 20 से 28 नवंबर, 2024 तक गोवा के पणजी में

दुनिया भर की सशक्त कहानियों को प्रदर्शित करने वाली 15 फिल्में 55वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2024 में प्रतिष्ठित गोल्डन पीकॉक के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार हैं। इस वर्ष की प्रतिस्पर्धा में 12 अंतरराष्ट्रीय और 3 भारतीय फिल्मों का समृद्ध मिश्रण है, जिनमें से प्रत्येक को अपनी अनूठे  परिप्रेक्ष्य, आवाज और कलात्मकता के लिए चुना गया है।

सर्वश्रेष्ठ वैश्विक और भारतीय सिनेमा प्रस्तुत करने वाली इनमें से प्रत्येक फिल्म मानवीय मूल्यों, संस्कृति और कहानी कहने की कला का अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।

इस वर्ष, प्रशंसित भारतीय फिल्म निर्माता आशुतोष गोवारीकर के नेतृत्व में प्रतिष्ठित गोल्डन पीकॉक जूरी में पुरस्कार विजेता सिंगापुर के निर्देशक एंथनी चेन, ब्रिटिश-अमेरिकी निर्माता एलिजाबेथ कार्लसन, स्पेनिश निर्माता फ्रैन बोर्गिया और प्रसिद्ध ऑस्ट्रेलियाई फिल्म संपादक जिल बिलकॉक शामिल हैं। साथ में, यह जूरी सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (पुरुष), सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (महिला) और विशेष जूरी पुरस्कार सहित श्रेणियों में विजेताओं का निर्धारण भी करेगी। विजेता फिल्म को महोत्सव के शीर्ष सम्मानों में से एक के साथ 40 लाख रुपए का पुरस्कार मिलेगा।

इस वर्ष की फिल्‍में विभिन्न विषयों और शैलियों की हैं, जिसमें ऐसी फिल्में हैं जो हमें अज्ञात क्षेत्रों में ले जाती हैं, धारणाओं को चुनौती देती हैं और नई आवाज़ों को बढ़ाती हैं।

यहां उल्लेखनीय नामांकित फिल्‍मों की एक झलक दी गई है:

1. फीयर एंड ट्रेम्‍बलिंग (ईरान)
ईरान की दो सबसे प्रतिष्ठित महिला फिल्म निर्माता, मनीजेह हेकमत और फ़ैज़ अज़ीज़खानी, अपनी फिल्म ‘फियर एंड ट्रेम्बलिंग’ में तेजी से बदलती दुनिया में डर और अकेलेपन से जूझ रही वृद्ध महिला मंजर के बारे में एक मार्मिक कहानी प्रस्तुत करती हैं। इस ईरानी फिल्म का इस साल के IFFI में वर्ल्ड प्रीमियर है। यह सामाजिक बदलावों के बीच व्यक्तिगत परिवर्तन और आधुनिक ईरान में महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों को दर्शाती है।

2. गुलिज़ार (तुर्किये)
अपनी पहली फीचर फिल्म में, तुर्किये के लेखक-निर्देशक बेल्किस बराक ने ‘गुलिज़ार’ के जीवन पर प्रकाश डाला है, जो एक युवा महिला है। वह स्वतंत्रता की तलाश में आघात और सामाजिक अपेक्षाओं से जूझ रही है।फेस्टिवल सर्किट में ध्यान आकर्षित करते हुए, फिल्म का प्रीमियर पहले ही टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल 2024 के साथ-साथ सैन सेबेस्टियन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, 2024 में किया जा चुका है।

3. होली काउ (फ्रांस)
फ्रांसीसी फिल्म निर्माता लुईस कौरवोइसियर की पहली फिल्म ‘होली काउ’ मनोरंजक कॉमेडी-ड्रामा है। यह 18 वर्षीय टोटोन पर आधारित है, जिसका लापरवाह जीवन उतार-चढ़ाव भरा है क्योंकि वह अपनी छोटी बहन की जिम्मेदारी लेता है। फिल्म ने कान्स फिल्म फेस्टिवल, 2024 में प्रतिष्ठित यूथ अवार्ड जीता।
पश्चिमी फ्रांसीसी आल्प्स में जुका के पहाड़ी क्षेत्र पर फिल्माई गई यह आकर्षक फिल्म मुख्य नायक के बड़े होने की उथल-पुथल और वयस्कता की जिम्मेदारियों को दर्शाती है।

4. आई एम नेवेंका हूं (स्पेन)
गोया पुरस्कार विजेता निर्देशक इसियार बोलैन की ‘आई एम नेवेंका’ अपने तरीके से समाज के अन्याय से लड़ने की एक महिला की साहसिक कहानी है। फिल्म ने 2024 में आयोजित सैन सेबेस्टियन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में यूस्कैडी बास्क कंट्री 2030 एजेंडा अवार्ड जीता। यह फिल्म पोनफेराडा सिटी काउंसिल की सदस्य नेवेंका फर्नांडीज के मामले का नाटकीय चित्रण है। वह 2001 में उच्च पदस्थ राजनेता पर चला यौन उत्पीड़न का अदालती मामला जीतने वाली स्पेन की पहली महिला बनीं।

सच्ची घटनाओं से प्रेरित, यह फिल्म न्याय के लिए लड़ाई का वर्णन है। यह स्पेन में उत्पीड़न और लैंगिक समानता के बड़े सामाजिक और सांस्कृतिक निहितार्थों की पड़ताल करती है।

5. पैनोप्टीकॉन (जॉर्जिया-यूएसए)
‘पैनोप्टिकॉन’ में, जॉर्जियाई-अमेरिकी निर्देशक जॉर्ज सिकरहुलिद्ज़े की मनोरंजक पहली विशेषता एक युवा जॉर्जियाई किशोर है जो अपने जीवन को आगे बढ़ाते हुए पहचान, नैतिकता और स्वयं के सवालों का सामना करता है। फिल्म ने कार्लोवी वेरी 2024 में एक्युमेनिकल जूरी – स्पेशल मेंशन जीता। मार्मिक नए जमाने  की कहानी यह फिल्म समकालीन सोवियत उपरांत जॉर्जियाई समाज में बड़े होने की चुनौतियों की जांच करती है।

6. पियर्स (सिंगापुर)
पूर्व नेशनल फ़ेंसर और सिंगापुर के उभरते फ़िल्म निर्माता नेलिसिया लो की फिल्म  ‘पियर्स’ को इस साल कार्लोवी वेरी इंटरनेशनल फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार मिला।
यह मनोवैज्ञानिक थ्रिलर फिल्म परिवार और भाई-बहन की प्रतिद्वंद्विता की जटिलताओं को उजागर करती है। प्रतिस्पर्धी तलवारबाजी की उच्च जोखिम वाली दुनिया पर आधारित, यह फिल्म दो भाइयों का अनुसरण करती है क्योंकि वे अपनी महत्वाकांक्षा को संतुलित करने के लिए संघर्ष करते हैं।

7. रेड पथ (ट्यूनीशिया)
सफल ट्यूनीशियाई थिएटर और सिनेमा निर्देशक और निर्माता लोटफी अचौर की नवीनतम फीचर फिल्म ‘रेड पाथ’ एक युवा चरवाहे अचरफ की कहानी बताती है। वह एक बेहद खूबसूरत परिदृश्य में आघात, परंपरा और व्यक्तिगत नुकसान से गुजरता है। फिल्म का प्रीमियर 2024 में प्रतिष्ठित लोकार्नो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में हुआ।

8. शेफर्ड्स (कनाडा-फ्रांस)
नए क्यूबेक सिनेमा की प्रमुख शख्सियतों में से एक, सोफी डेरास्पिया की ‘शेफर्ड्स’ आत्म-पुनर्निर्माण और ग्रामीण जीवन की कठोर वास्तविकताओं पर बनी आश्चर्यजनक फिल्म है।यह उनकी नवीनतम फीचर फिल्म है जिसने टोरंटो अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव, 2024 में सर्वश्रेष्ठ कनाडाई फीचर फिल्म का पुरस्कार जीता। यह फिल्म एक कनाडाई कॉपीराइटर पर आधारित है, जो सांत्वना और नई शुरुआत की तलाश में चरवाहे के रूप में जीवन जीने के लिए फ्रांसीसी आल्प्स में चला जाता है। लेकिन जैसे ही वह अपने नए जीवन में अलगाव और कठिनाई का सामना करता है, उसे अपने अतीत से जूझना पड़ता है। डेरास्पे का उत्कृष्ट निर्देशन दर्शकों को मानवीय लचीलेपन और चरित्र की ताकत के विचारों का पता लगाने के लिए मजबूर करता है।

9. द न्यू ईयर दैट नेवर केम (रोमानिया)
पुरस्कार विजेता रोमानियाई लेखक और निर्देशक बोगदान मुरेसानु की  फिल्म ‘द न्यू ईयर दैट नेवर केम’ दर्शकों को रोमानिया की 1989 की क्रांति के दौरान छह व्यक्तियों के जीवन से रूबरू कराती है। इस फिल्म ने वेनिस इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, 2024 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए ओरिजोंटी अवॉर्ड और स्पेशल मेंशन: ऑथर्स अंडर 40 अवॉर्ड जीता।यह गहरी व्यक्तिगत कहानी के साथ ऐतिहासिक नाटक है। मुरेसानु की यह फिल्म राजनीतिक उथल-पुथल और प्रतिरोध, हानि और आशा की मानवीय कहानियों को एक साथ बुनती है।

10. टॉक्सिक (लिथुआनिया)
अपनी पहली फीचर फिल्म में लिथुआनियाई फिल्म निर्माता और पटकथा लेखक सौले ब्लुवेटे विषाक्तता के बीच दोस्ती की कच्ची और भयावह कहानी प्रस्तुत करते हैं।’टॉक्सिक’ किशोरावस्था, दोस्ती और आत्म-विनाश की जटिलताओं की पड़ताल करती है । फिल्म निर्माता युवाओं के अंधेरे पक्ष पर प्रकाश डालता है, भावनात्मक उथल-पुथल और बड़े होने के दबाव के चित्रण के लिए आलोचकों की प्रशंसा जीतता है।

इस फिल्म ने 77वें लोकार्नो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, 2024 में गोल्डन लेपर्ड, स्वैच फर्स्ट फीचर अवार्ड और एक्युमेनिकल जूरी पुरस्कार जीता।

11. वेव्स (चेक गणराज्य)
चेक अभिनेता, पटकथा लेखक और निर्देशक जिरी मैडल की ‘वेव्स’ उनकी तीसरी फीचर फिल्म है। इसे 97वें अकादमी पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय फीचर फिल्म के लिए चेक गणराज्य की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया है।

यह फिल्म 1968 में चेकोस्लोवाकिया पर सोवियत आक्रमण के दौरान स्थापित शक्तिशाली ऐतिहासिक ड्रामा है। फिल्म पत्रकारों के एक समूह के इर्द-गिर्द घूमती है जो सच्चाई की रिपोर्ट करने के लिए अपना सब कुछ जोखिम में डाल रहे हैं क्योंकि उनके देश की आजादी खतरे में है।

12. हू डू आई बिलॉन्ग टू (ट्यूनीशिया-कनाडा)
‘हू डू आई बिलॉन्ग टू’, प्रसिद्ध ट्यूनीशियाई-कनाडाई फिल्म निर्माता मेरियम जोबेउर की पहली फिल्म है। यह एक टूटे हुए परिवार के बारे में एक हाई-ऑक्टेन लेकिन मार्मिक नाटक है। फिल्म एक ट्यूनीशियाई महिला की कहानी बताती है। वह तब अपने मातृ प्रेम और सच्चाई की खोज के बीच फंस जाती है जब उसका बेटा युद्ध से घर लौटता है और पूरे गांव में अंधेरा फैला देता है।

इस फिल्म का प्रीमियर बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल 2024 में हुआ था।

यह फिल्म मातृ प्रेम और व्यक्तिगत बलिदान की जटिल कथा बुनती है। जोबेउर के काम को पहले ही अपनी भावनात्मक गहराई और मजबूत प्रदर्शन के लिए प्रशंसा मिल चुकी है।

13. द गोट लाइफ (भारत)
‘द गोट लाइफ’ में, राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता मलयालम फिल्म निर्देशक ब्लेसी सऊदी अरब के कठोर रेगिस्तान में जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे भारतीय प्रवासी श्रमिक की सच्ची कहानी बताते हैं।यह फिल्म लेखक बेन्यामिन के सबसे ज्यादा बिकने वाले मलयालम उपन्यास आदुजीविथम का रूपांतरण है, जो खाड़ी में मलयाली आप्रवासी मजदूर नजीब की वास्तविक जीवन की कहानी पर आधारित है। यह मनोरंजक नाटक जीवन की प्रतिकूलताओं के बीच प्रवासन, अस्तित्व और मानवीय भावना के विषयों की पड़ताल करता है।

14. आर्टिकल 370 (भारत)
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता आदित्य सुहास जंभाले द्वारा निर्देशित ‘आर्टिकल 370’ भारत के अशांत संवैधानिक परिवर्तनों की पृष्ठभूमि पर आधारित तनावपूर्ण राजनीतिक थ्रिलर है।
यह कहानी अनुच्छेद 370 की जटिलताओं को गहराई से उजागर करती है, जिसने जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान की। यह फिल्म क्षेत्र के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को उत्कृष्टता से चित्रित करती है। निर्देशक ने फिल्म में सत्ता के संघर्ष और व्यक्तिगत बलिदान की कहानी कुशलता से बुनी है।

15. रावसाहब (भारत)
‘रावसाहब’ राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता निखिल महाजन द्वारा निर्देशित बहुप्रतीक्षित मराठी क्राइम थ्रिलर फिल्म है। इस साल के IFFI में इस फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर है। निखिल महाजन की क्राइम थ्रिलर आदिवासी भूमि में मानव-पशु संघर्ष और न्याय की तलाश पर केंद्रित है। यह फिल्म भारत की आदिवासी भूमि पर आधारित मनोरंजक कहानी है।

सिनेमा में महिलाओं की आवाज़ का उत्सव_: उल्लेखनीय है कि इस वर्ष का नामांकन महिला फिल्म निर्माताओं के लिए श्रद्धांजलि भी है क्योंकि, संयोग से, 15 में से 9 फिल्में प्रतिभाशाली महिला फिल्म निर्माताओं द्वारा निर्देशित हैं।

सदा याद रहेगी स्वतंत्रता सेनानी पण्डित राजाराम शर्मा की जीवन गाथा

संत कबीर नगर जिला मुख्यालय खलीलाबाद से लगभग दस किलोमीटर पश्चिम की ओर गोरखपुर – लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसे भुजैनी ग्राम में श्री हर्ष तिवारी के प्रथम पुत्र के रूप में पंडित राजाराम शर्मा का जन्म 17 मई, 1897 ई. को हुआ था। उन्हें उच्च शिक्षा नहीं मिल पाई थी। प्राथमिक और मिडिल स्कूल पास करने के बाद उन्होंने कुछ दिनों तक मगहर तथा बभनान के सरकारी विद्यालयों में अध्यापन कार्य किया था। उनका विवाह श्रीमती अवध राजी देवी के साथ बस्ती जनपद के मूर्हा पट्टी दरियाव में पंडित चंद्रबली दूबे के घर हुआ था। पंडित राजा राम शर्मा के दो पुत्र – श्री सत्य व्रत शर्मा व सत्य देव शर्मा थे। उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री सत्य व्रत शर्मा के परमात्मा प्रसाद तिवारी एवं दूसरे पुत्र धर्मात्मा प्रसाद तिवारी नामक दो पुत्र हैं। उनके पौत्र श्री नित्यानंद तिवारी ने भुजैनी में ही अपने बाबा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री राजाराम शर्मा की स्मृति में सत्यव्रत शर्मा जनक दुलारी जूनियर हाईस्कूल और इंटर कॉलेज भुजैनी की स्थापना किए हुए हैं।

मित्र का संकट देख छोड़ दी थी नौकरी

बभनान में नौकरी के दौरान उनके मित्र और तत्कालीन वहाँ के पोस्ट मास्टर के पिता जी के अंतिम दिनों में उनके दर्शन के लिए छु‌ट्टी के लिए तार पर तार देने के बावजूद छुट्टी नहीं मिली थी।जब उनके पिता जी मर गए, तब छुट्टी मंजूर हुई । इस घटना से दुखी शर्मा जी परवशता और गुलामी से खिन्न होकर नौकरी से इस्तीफा देकर व्यापार करने लगे थे । उन्हें अपने मित्र का दुःख  नहीं देखा गया। इस कष्ट ने उनकी जीवन धारा ही बदल दी।

परिवार को कभी नहीं दिया महत्व

पं. राजाराम शर्मा ने विधायक पद पर रहते हुए अपने परिवार को कभी महत्व नहीं दिया। आज उनके परिजन अपने परिश्रम के बल पर अपने पैरों पर खड़े हैं। कहते थे तुम लोगों के लिए कुछ करेंगे तो लोग ताना मारेंगे कि अपने परिवार के लिए ही किया।

महात्मा गांधी से प्रभावित रहे

महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वराज का आंदोलन जब अपने उत्कर्ष पर था, उसी समय पंडित राजाराम शर्मा ने अपने व्यक्तिगत हितों को तिलांजलि देकर राष्ट्रहित में अपने को पूरी तरह समर्पित कर दिया एवं स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। महात्मा गांधी के प्रति उनके मन में अगाध निष्ठा थी। गांधी जी के प्रति उनके लगाव को देखते हुए स्थानीय लोग उन्हें भी ‘गांधी बाबा’ नाम से पुकारते थे। वे जनता की पीड़ा दूर करने के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उनकी आवाज बनकर विरोध करने लगे।गांधी जी की विचारधारा का उन पर ऐसा रंग चढ़ा कि वे आजीवन जनता के हित में समर्पित रहे। देश हित के आगे अपने परिवार के लिए कुछ नहीं किया। 5 फरवरी, 1921 को गोरखपुर में गांधी जी के सान्निध्य में आकर चरखा और सूत के प्रति झुकाव के साथ-ही-साथ राजनीति में भी उतरने से दुकान प्रायः बंद रहती थी। देश-सेवा और दुकान में से उन्होंने देशसेवा को प्राथमिकता देकर व्यापार भी बंद कर दिया। एक दिन उन्हें चरखे से निकले सूत का ताना तानते हुए देखकर उनके एक मित्र ने कहा, “वाह रे शेख फतहू”। जिससे मित्रों में उनका यही नाम प्रसिद्ध हो गया जो अंग्रेजों के विरुद्ध चलाए जा रहे आंदोलन में फरारी की अवस्था में प्रयुक्त होता रहा। जब लोग उन्हें शेख फतहू नाम से पूछते तो उन्हें पता बता दिया जाता, परंतु उनके असली नाम से पूछने पर टरका दिया जाता था।

स्वतंत्रता आंदोलन में सहभागिता

स्वतंत्रता आंदोलन के ‘नमक सत्याग्रह आंदोलन’ में अपनी सहभागिता निभाने के कारण 20 जून 1930 को श्री शर्मा जी को भारतीय दंड संहिता की धारा 117 के अंतर्गत एक वर्ष की सजा और तीन सौ रुपये जुर्माना तथा जुर्माना न देने पर तीन माह की अतिरिक्त सजा मिली थी।सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान 23 जनवरी, 1932 को उन्हें नौ माह की सजा मिली थी।

शाहपुर से उठी थी आजादी की चिगारी

वर्ष 1935 में कांग्रेस के मंत्रिमंडल का गठन हुआ था । मंत्रिमंडल के गठन के बाद कांग्रेस की पहली रैली डुमरियागंज तहसील क्षेत्र के शाहपुर बाजार में आयोजित हुई थी। इससे पूर्व की कांग्रेस रैलियों में स्थानीय किसानों की सहभागिता गोरों के जुल्म के चलते कम हुआ करती थी । इस रैली में रमाशंकर लाल और पंडित राजाराम शर्मा पहुंचे हुए थे, जिसके बलबूते हजारों किसानों की भीड़ इस रैली में शामिल हुई थी। भारी संख्या में किसानों को रैली में शामिल होने की सूचना मिलते ही ब्रिटिश हुकूमत के कान खड़े हो गए थे और उसने किसानों को परेशान करने के लिए लगान में दोगुने की बढ़ोतरी के आदेश के साथ यह भी निर्देश दिया कि जो किसान लगान नहीं देगा उसकी जमीन जब्त कर ली जाएगी।

 दोगुना लगान देने के खिलाफ किसान उठ खड़े हुए और अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसके बाद एक साथ कई किसानों की जमीन लगान न देने का कारण बताकर अंग्रेजों ने अपने कब्जे में कर लिया। जमीन चले जाने के बाद किसानों पर मानों दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। घर में खाने को कुछ नहीं था, लेकिन किसानों ने हिम्मत हारने की जगह कांग्रेस के पदाधिकारियों से मिलकर अंग्रेजों पर जमीन हड़पने का मुकदमा दायर किया। कलक्टर रफीउल कद्र की अदालत में मुकदमा दर्ज हुआ तो कलक्टर ने यह कहकर मुकदमा खारिज कर दिया कि कांग्रेस के बहकावे में आकर किसान लगान नहीं जमा कर रहे हैं। जिसके चलते उनकी जमीन ले ली गई है। किसानों ने इस आदेश के खिलाफ पुन: यह कहते हुए अपील दायर की कि लगान अचानक दो गुना कैसे बढ़ाया गया? लंबे समय तक यह मुकदमा चला और किसान मीलों पैदल चलकर मुकदमा देखने जाते रहे। वर्ष 1942 में गांधी जी के करो या मरो के नारे के बीच जब यहां के हालात और बिगड़ने लगे तो तत्कालीन कलेक्टर सुधा सिंह ने एक लाख किसानों का लगान माफ करते हुए उन्हें उनकी जमीन वापस कर दी थी । जमीन वापस पाने के बाद यहां के लोगों का हौसला बढ़ा और आजादी की प्राप्ति तक अंग्रेजों की खिलाफत करते रहे।

‘विजय’, ‘पंचमुख’ साप्ताहिक का प्रकाशन

1945 में राजा राम शर्मा ने ‘‘विजय’’ नामक नामक साप्ताहिक का प्रकाशन आरम्भ किया जो गांधी नगर बस्ती के दरिया खां जाने वाली गली के कोने पर मुख्य सड़क पर स्थित विजय प्रेस से छपता था। इस अखबार के पृष्ठ आजादी के आन्दोलन की खबरों से रंगे रहते और तल्ख टिप्पणियां प्रकाशित की जाती थीं। आजादी के बाद 1952 में राजाराम शर्मा और दयाशंकर पाण्डेय ने ‘‘पंचमुख’’ हिन्दी साप्ताहिक का प्रकाशन आरम्भ किया जो 1961 तक श्रीराम प्रेस से छपता रहा। कहना चाहें तो कह सकते  है कि ‘‘पंचमुख’’ आजादी के बाद का पहला अखबार था जो 11 वर्षो तक निरन्तर छपता रहा।

घास की रोटी दिखा नहर पास करवाया

बखिरा झील से निकलकर लगभग पांच किमी. बौरव्यास तक जाने वाली ढोढया पक्की नहर जनपद की पहली सिंचाई परियोजना है। इसके निर्माण की पहल मेहदावल के पहले विधायक राजाराम शर्मा ने की थी। इन्होंने प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं. गोविंद बल्लभ पंत के समक्ष घास की रोटी प्रस्तुत कर इस नहर की मंजूरी दिलाई थी। बाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी जो यहां से विधायक थी, ने इस नहर को पूरा कराया था। तीन दशक तक यह नहर ठीक चली और खेतों की सिंचाई होती रही।

श्री राजा राम शर्मा जी के पौत्र नित्यानंद तिवारी बताते हैं कि स्वर्गीय बाबा जी को ‘वंदे मातरम्’, ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ कहने पर गांधी टोपी लगाने तथा चरखा कातने के विरोध में अंग्रेजों ने उन्हें बस्ती कचहरी से दक्षिण अमहट पुल पर जाड़े में प्रातः कुआनो नदी में नहलाकर उनके दाहिने पैर में घुटने पर ऐसा चोट मारा था कि चार स्थानों पर उनकी चमड़ी उधड़ गई थी, जिसका निशान मृत्यु पर्यन्त तक उनके पैर में बना रहा। 9 फरवरी 1922 कोअहिंसक सत्याग्रहियों के गिरफ्तारी के समय अंग्रेजों ने उन्हें इतना मारा था कि वे मरते-मरते बचे थे। यही नहीं उन्हें आन्दोलन के दौरान पकड़े जाने पर गोरखपुर ले जाते समय ट्रेन से ढकेल दिया था। फिर भी भारत माता का यह सपूत मां की सेवा के लिए जिंदा बचा रहा।

व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में उन्हें 8 जनवरी, 1941 को 4 माह कैद तथा एक सौ रुपये जुर्माने की सजा मिली थी। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भाग लेने के कारण उन्हें 9 अगस्त, 1942 से 2 नवंबर, 1944 तक राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत कठोर करावास का दंड मिला था।

स्वर्गीय शर्मा जी 1952 में निर्वाचन क्षेत्र खलीलाबाद से प्रथम बार विधान सभा सदस्य चुने गए। विधायक बनने के बाद भी जीवन सादा रहा। सक्रिय राजनीति के साथ – साथ सामाजिक कार्यों में भी वे सक्रिय रहे । वे जिला परिषद बस्ती के वाइस चेयरमैन, जिला कांग्रेस कमेटी बस्ती के मंत्री तथा प्रांतीय कांग्रेस की कार्यसमिति के सदस्य भी रहे। 4 जुलाई, 1954 को उन्होंने मेंहदावल में डी.ए.वी. इंटर कालेज की स्थापना की। 1962 तक एम.एल.ए. रहने के बाद अस्वस्थ होने के कारण उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया तथा अपनी मेंहदावल सीट प्रथम महिला मुख्यमंत्री श्रीमती सुचेता कृपलानी के लिए रिक्त कर दी। श्री चंद्रभान गुप्त अपने मुख्यमंत्रित्व काल में उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के नाते 150 एकड़ जमीन नैनीताल में दे रहे थे, परंतु श्री शर्मा जी ने उनकी भावना का स्वागत करते हुए यह कह उस भूमि को लौटा दिया कि मैं तो खुद जमींदार हूँ। आप इस भूमि को भूमि हीनों में बाँट दीजिए। पंडित शर्मा का देहावसान दिनांक 18 नवंबर, 1980 को उनके पैतृक गाँव भुजैनी में ही हुआ था।

रेडक्रॉस सोसायटी से जुड़ने के साथ ही उन्होंने स्काउटिंग भी सीखा था, जिसका प्रभाव उनके जीवन-पर्यंत रहा। अपनी जीवन गाथा ‘मेरे जीवन का सफेद पहलू’ में वे लिखते हैं, “मैं पक्का स्काउट तो नहीं हूँ, किंतु स्काउटों के बहुत से गुण मुझमें हैं। जब मैं कहीं सफर में जाता हूँ तो अपने झोले में चाकू, पेंसिल, नोटबुक, लोटा-डोरी, पोटाश, सूई-धागा और मोमबत्ती आदि जरूर रखता हूँ। अगर हो सका तो अर्क कपूर और अमृत धारा भी रखता हूँ। गर्मी के दिनों में बिच्छू काटने वालों की सेवा करने का सौभाग्य अक्सर मिल जाता है। आग लगने पर अपनी शक्ति से आग बुझाने में काम करता हूँ। किसीको दुख में देखकर मेरे दिल में दर्द उठने लगता है। शक्ति-भर सहायता करने का प्रयत्न करता हूँ। बुड्ढों को देखकर मुझे बड़ा तरस आता है और अपना बुढ़ापा याद आने लगता है। खेत की नाप-जोख, दफ्तरगिरी, प्रूफ रीडरी, सिलाई का काम, साधारण तौर से जानता हूँ। मुझे अपना काम अपने हाथ कर लेने में आनंद आता है। आदमियों से काम लेना मुझे कम आता है।”

पत्रकारिता के क्षेत्र साप्ताहिक ‘विजय’ का प्रकाशन एवं ‘पंचमुख’ के संपादक भी रहे। ‘पंचमुख’ में अंग्रेजों के खिलाफ लिखने से अंग्रेजों ने प्रेस को ही जब्त कर लिया। वे ‘आज’ तथा ‘स्वतंत्र भारत’ के संवाददाता भी वे रहे। 26 जनवरी, सन् 1938 को ‘विजय’ साप्ताहिक का प्रकाशन हुआ, जिसके संपादन का कार्य पं. राजाराम शर्मा ‘अचल’ ही किया करते थे। ‘विजय’ में भी उनकी कविताएँ  प्रकाशित होती रही। इसके प्रायः सभी अंकों में तत्कालीन सामाजिक आर्थिक तथा राजनैतिक पक्षी पर – ’घोचवाफेर’ नाम से वे हास्य व व्यंग्य ‘घर घेमन दादा’ नाम से लिखा करते थे। जेल जाने की सूचना पर ‘नंबर आ गया’ नामी अग्र दादा नाम से ‘विजय’ का प्रकाशन अनिश्चित काल के लिए बंद कर जेल चले गए। ‘विजय’ के संबंध में वे लिखते हैं, “यह बात तो जरूर थी कि मुझे विजय के लिए चुर जाना पड़ा, फिर भी ‘विजय’ मेरी अभिलाषाओं में सर्वोच्च स्थान पर था। अब भी उसका स्थान वही है जो पहले था। ‘विजय’ को अब भी लोग याद करते हैं, मुझे तो परस प्रिय था ही।स्मारक स्वरूप ‘विजय प्रेस’ अवश्य है जो सन् 1942 के स्वतंत्रता युद्ध में दो मास तक जप्त रहा। ‘विजय’ चाहे याद रहे या न रहे, किंतु ‘भर घुमन दादा’ का ‘घाँचवाफेर’ सभी पाठकों को याद रहेगा। ‘साक्षरता दिवस’ के लिए लिखी गई उनकी लंबी कविता ‘अपढ़वा’ लोगों में बहुत ही चर्चित रही, जो विजय के दूसरे वर्ष के प्रथम अंक में छपी थी , जिसकी कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-

तुहरा से बिनती हमार हवे बार-बार,

अबहूँ से अँखिया उघारा ये अपढ़वा।

विद्या क सुंदर सूर्य उदित मुदित मन,

घर-घर भइलें प्रकाश ये अपढ़वा।

चीन और रूस जागे,टरकी जपानजागे,

जागि गईलैं हबसी गुलाम ये अपढ़वा।

तुहरे पड़ोसी अफगान लोगजागि गइलैं,

अबहूँ न जगला तू हाय ये अपढ़वा।

सन् 1943 के ‘बसंत पंचमी’ के पावन पर्व पर भारत माता की गुलामी से मुक्ति न हो पाने के अपने मानसिक भाव को उन्होंने एक पद के द्वारा व्यक्त किया है-

माता की बंदि कटी नहिं हाय रे,

शोक करें या कि मोद मनावैं।

भारत भाग्य खटाई पर्यो,भगवान !

कहो केहि को गोहरावैं।

रंग में भंग भयो भरपूर,

कहो कइसे अब रंग उड़ावैं।

काली घटा उनई चहुँओर,

बसंत मनावैं कि सावन गावें।

पंडित राजाराम शर्मा एक सचेत और जुझारू स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, देशभक्त और स्वाभिमानी व्यक्ति होने के साथ-साथ एक सहृदय कवि भी थे। पराधीन भारत की कुछ-कुछ सोई और कुछ-कुछ जागती हुई जनता को लोकगीतों और लोक-धुनों के जरिये गा-गाकर क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर झकझोरकर जगाया एवं आजादी के मैदान-ए-जंग में कूद पड़ने के लिए देशवासियों का आह्वान भी किया। उनके गीतों में पराधीनता की यातना, देश की दुर्दशा, जनता का दुख-दर्द तथा क्रांति के स्वर बहुत मुखर रूप में प्रकट हुए हैं। पहले वे ‘द्विजदीन’ उपनाम से कविताएँ लिखा करते थे, किंतु इस उपनाम से वीर रस की कविताएँ ठीक नहीं जँचती थीं। इसलिए इस उपनाम को ‘अंचल की अभिलाषा’ शीर्षक कविता लिखने के बाद ‘अचल’ उपनाम से कविता करने लगे। उक्त कविता इस प्रकार है-

‘अचल’ तुम्हारी भक्ति अचल रहे सदैव,

विचल न जाए कहूँ लालच में परि के।

दरके करेजा दुख देखि के दरिद्रन के,

लख ने अनीति नाथ! अंग-अंग फरके।

करके गुलामी, नित खारबनिआँखन में,

देश को जगा दें हम जी के और मर के।

पर के न सोवैं,तौलों,विरत न होवें कबौं,

जौं लौं न देखि लें स्वतंत्र देश करि के ॥

देश को स्वतंत्र कराने के लिए आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें बार- बार जेल जाना पड़ता था, लेकिन स्वतंत्रता-प्राप्ति हेतु वे अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ संकल्पित थे। बार-बार जेल जाना और छूटने के अनुभव को भी उन्होंने अपने कार्य में इस तरह वर्णित किया है-

जब देश ही जेल बना हुआ है,

क्या यहाँ रहना, क्या है बाहर जाना।

मानी स्वदेश पुजारियों का,

इस राज में है कहाँ और ठिकाना।

जब आना ही जाना लगा हुआ है,

तब जेल कहाँ? है मुसाफिर खाना।

ठाना है पै प्रण, सौंह प्रताप की,

प्यारे स्वदेश पै सीस चढ़ाना ॥

रचनाएँ :-

पंडित शर्माजी की कई रचना ‘हृदयोद्‌गार’, ‘उद्धार’ और काव्य रचनाओं का विशाल संग्रहं देखने को मिला।उनकी कुछ रचनाएँ ‘बस्ती गजट’, ‘पंचमुखी’, ‘कृष्ण वाणी’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। अपनी रचनाओं का काल तथा स्थान भी उन्होंने कविताओं के नीचे लिखा है। उनकी अधिकांश रचनाएँ नैनी जेल, बहराइच जेल, गाजीपुर जेल तथा बस्ती जेल में कारावास के दौरान लिखी गई हैं। उनकी रचनाओं के संग्रह को देखने से मैं इस निर्णय पर पहुँचा हूँ कि वह पराधीन भारत की आजादी के लिए छटपटाते हुए एक सच्चे लोक गायक, खरे देशभक्त और स्वदेशी के बाना में सिर से पाँव तक रमे हुए उद्बोधक थे। उन्हें लोकगीतकार के रूप में साहित्य में स्थापित किया जा सकता है। उनके गीत लोक प्रचलित धुनों एवं विभिन्न रागों तथा रागिनियों पर आधारित हैं।

दादरा, चैताल, पद, धमारि, सवैया, भैरवी, कजली, कहरवा, पूर्वी, चैता, झूमर, गजल, लावनी, भजन, झूला, बिरहा, गारी, नकटा, होली आदि उनके प्रिय राग एवं दोहा, कुंडलिया, कवित्त, घनाक्षरी, छप्पय आदि उनके प्रिय छंद रहे हैं। ‘समस्या पूर्ति’ विधा की भी अनेक रचनाएँ उन्होंने की हैं। उनकी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम, गांधीवाद, चरखा प्रेम, भक्ति भावना, स्वदेशी विचार, अखंड देशभक्ति, सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता, निरंकुश अंग्रेजी सत्ता के प्रति खुला विद्रोह और महात्मा गांधी के प्रति अनन्य निष्ठा के स्वर प्रमुख रूप से देखने को मिलते हैं। उदाहरणार्थ-

करिहौं स्वदेश सेवा भरिहौं भलाई तैं,   जारि हौ विदेश वस्त्र खद्दर सिर धरिहौं।

धरिहौं सुपथ को, निगरिहौं बेगारी को, फोरि फूट घट, छूत पापिन बिहारिहौं।

दरिहों कोदो सौं दरिद्र तेरी छाती पै, दारुण विपत्ति दुर्व्यसन मारि डरिहौं।

डरिहीँ न काल हू तें, सत्य सपथ गांधी जी को,

ले के स्वराज, सरकार छारि करिहौं।

6 मई, 1944 को साढ़े आठ बजे दिन में उन्होंने नैनी जेल से महात्मा गांधी जी के छूटने पर एक कविता लिखी थी, जो इस प्रकार है-

छूट गया कारा से गांधी,

मुक्त हुआ अब अपना देश।

युग-युग जिए वृद्ध सेनानी,

हो स्वतंत्र चिर रहे स्वदेश ॥

शासक वर्ग द्वारा धर्म, भाषा आदि के आधार पर ‘फूट डालो और राज्य करो’ की कूटनीति से सचेत करते हुए उन्होंने पंथगत एकता और सांप्रदायिक स‌द्भाव को भी अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बार-बार बनाया है। वे कहते हैं-

मिल के हिंदू मुस्लिमों

सर फूट का अब फोड़ दो,

एकता के सूत्र के सूत्र में

अपनी अपनी गर्दन जोड़ दो।

सत्य के पथ पर चलो,

अन्याय से डरते रहो,

औ सदा अन्यायियों का

धरके मुखड़ा मोड़ दो॥

चुनाव चाहे वर्तमान राजनीति का हो या स्वतंत्रता-प्राप्ति के पूर्व का रहा हो, राजनेता प्रायः इसी सिद्धांत के रहे हैं कि उन्हें उनकी सिद्धि चाहिए, साधन चाहे जैसे हों। अपनी इस सिद्धि के लिए वे चुनाव में जीत हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। मत दाताओं को लुभाने के लिए वे विभिन्न प्रकार के झूठे आश्वासन देते हैं। राज नेताओं की इस चालाकी से मतदाताओं को सचेत करने के लिए 12 अक्टूबर, 1936 को ‘अचल’ जी ने एक लंबी कविता ‘वोटरवा’ लिखी थी, जिसकी कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-

हाथ जोरि पइयाँ लागि, अरज करत बाटी,तनी सुनु बतिया हमार रे वोटरवा।

मघवा महिनवाँ में कौंसिल चुनावहोइहैं,

ओटवा समुझि बूझि दियो रे वोटरवा ॥

ओटवा का हक जौन तुहँके मिलल बाटै,ओके जनि पनियाँ में फेक्यों रे वोटरवा।

जौन तोहर दुखवा और सुखवा में साथ रहैं, अइसन के मेंबर बनायो रे वोटरवा।

X X X X X X X X X X X X X X X

जौन सरकारी चापलूस वोट माँगै अइहैं,बड़ाबड़ा रूपदिखलइहैंरेवोटरवा।

जाई कँवसिलवा में बइठि जम्हाई लीहैं, सरकारी हाँ में हाँ मिलइहैं रे वोटरवा ॥

तुहरी भलइया में कुछ न उपाय करिहैं, अपने हैं मतलब के यार रे वोटरवा।

कपटी कुटिल बहु कल बल छल करि, तहँके फँसाई लीहैं सुनु रे वोटरवा ॥

इनके घुड़िकियाऔ रोबवामें आयो जनि,सकिंहैं न कुछकरि तोररे वोटरवा।

वोटवा और बिटिया पवित्र चीज होखें, बाबूजानिके सुपात्रपात्रदिहौ रे वोटरवा।

भारत छोड़ो आंदोलन(1942) में गिरफ्तार किए जाने पर और बस्ती जेल से नैनी जेल के लिए आंदोलनकारियों को स्थानांतरित किए जाने का एक दृश्य प्रासंगिक है-

हम वा दिन की गति काव कहैं, बरियात चली सजि कै जब रेल में।

आठ नवंबर को पहुँचे,

जमुना वहि वार के सेंट्रल जेल में।

अगुआनी में साहब लोगफिरें,

जस भागत जात हैं ऊँट नकेल में।

रासन बासन एक मिलै नहिं,

नात गरीब मिला यदि जेल में॥

दिनांक 05 सितंबर, 1939 को बहराइच जेल में लिखी गई ‘जेल की रोटी’ नामक कविता में भूखे और बंदी आदमी तथा जेल की दुर्व्यवस्था पर यह कविता एक दस्तावेज है-

जेल की बात बतावें कहा,

कफनी-सी मिलै जहाँ एक लँगोटी।

तेल व नून पे लूट परै,

मरचे के लिए नित छीना घसोटी।

घस को साग छ मास मिले,

नित दाल मिलै भल काली कलूटी।

पूछो ना भाई सोहारी सी लागत,

भूख लगे पर जेल की रोटी।।

स्वराज आंदोलन में ‘चरखा आंदोलन’ की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वह स्वदेशी का मात्र प्रतीक ही नहीं, बल्कि एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय आंदोलन भी रहा है। लोक जीवन में ‘चरखा आंदोलन’ का स्वर वह सामने लाते हैं-

अलबेलवा चरखा खूब चलै।

धुनि-धुनि रुइया मैं पिउनी बनायउँ,

काते सूत्त अधिक निकलै।

सुतवा मैं काति-काति खद्दर बनायउँ,

देखि विदेसिया हाथ मलै।

ओहि रे कपड़वा कै कुर्ता बनायउँ, नौकरशाही देखि जलै।

जो दूँ मनबौं गांधी कै बतिया,

भारत माँ कै बिपति टलै ॥

पराधीन भारत में आजादी और स्वदेशी पर दीवानगी की हद तक आह्वान गीत गानेवाले और आजादी के पश्चात राष्ट्रीय एकता और गरिमा के ध्वजवाहक समाज सेवी पंडित राजाराम शर्मा के कृतित्व का ऋण इस समूचे अंचल पर है। आज के बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबावऔर सामाजिक राष्ट्रीय विघटन के प्रति चिंतित और सचेत वे आजीवन एक संघर्षशील नागरिक बने रहे। उनकी रचनाओं का विपुल भंडार भी प्रायः अप्रकाशित है, किंतु इस धुंध भरे समय में राजाराम शर्मा जैसे समर्पित देशभक्तों के विलोपन की कृतघ्नता आजादी की स्वर्ण जयंती पर एक धब्बे जैसा है। आशा है कि इसे नए सिरे से उनके योगदान का मूल्यांकन करके ऐसे सपूत को अब से सही श्रद्धांजलि दे सकेंगे। हम उन्हीं की निम्नांकित रचना से उन्हें समझ सकते हैं-

मानवता मेरी माता, प्यार मेरे पिता, आस्था मेरी बहिन, श्रम मेरा बंधु।

वेदना बहु रंगिनी मेरी जीवन संगिनी, सुख-दुख के गीत, मेरे सच्चे मीत।

इस भरे-पूरे परिवार में बड़े मजे के साथ जी रहा हूँ।

 

लेखक परिचय:-

 

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)

सार्वजनिक पुस्तकालय में साहित्य आधारित प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता

कोटा 17 अक्टूबर/ राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय में संस्कृति, साहित्य,मीडिया फोरम के तववधान में बुधवार को ” साहित्य और पर्यटन” विषय पर आयोजित प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में कॉलेज स्तर के कला वर्ग में अंकित बंसल , अभिशेषक मीना और विज्ञान वर्ग में आशीष सोनी एवम् अंजु सिंह टॉप चार घोषित किए गए। गुरुवार को घोषित परिणाम के उपरांत उपस्थिति 3 विद्यार्थियों का तिलक लगा कर और माल्यार्पण कर सम्मान किया गया।
इस अवसर पर पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ.दीपक कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि साहित्य और पर्यटन का महत्वपूर्ण अंतर्संबंध है। साहित्य सांस्कृतिक पर्यटन बन जाता है। उन्होंने बताया कि प्रतियोगिता में विभिन्न प्रतियोगिताओं की तैयारी कर रहे कॉलेज स्तर के 57 विद्यार्थियों ने भाग लिया।
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने कहा कि साहित्य हमें संस्कृति से जोड़ता हैं। इंटरनेट के युग में जरूरी है कि विद्यार्थी कालजई साहित्यकारों के साहित्य को पढ़ने में रुचि लेंगे तो वे अपनी संस्कृति और समाज को भी समझेंगे।
प्रतियोगिता में साहित्य, संस्कृति, पर्यटन, भूगोल, धर्म, नदियों, रेगिस्तानों ,चित्रकला, इतिहास एवं पुरातत्व विषयों पर प्रश्न पूछे गए थे। सभी विद्यार्थियों में 30 अंकों में से 50 प्रतिशत से ऊपर अंक प्राप्त किए। एक विद्यार्थी ने 26 अंक और तीन ने 25 अंक प्राप्त करने पर निर्णायक मंडल ने चारों को टॉप घोषित करने का निर्णय लिया।

डॉ. प्रभात सिंघल की पुस्तक “नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान” का लोकार्पण

कोटा / हाड़ोती की महिला रचनाकारों के साहित्यिक अवदान पर लिखी गई डॉ.प्रभात कुमार सिंघल की  पुस्तक “नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान “का लोकार्पण शुक्रवार को मदर टेरेसा स्कूल में साहित्यकारों द्वारा समारोह पूर्वक किया गया। कार्यक्रम का आयोजन श्री आर के पुरम परमार्थ सेवा समिति ,सुमंगल ग्रुप और शिशु भारती शिक्षण संस्थान कोटा के सौजन्य से साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही द्वारा आयोजित किया गया।
वक्ताओं ने कहा यह आंचलिक महिला रचनाकारों पर लिखी राजस्थान में प्रथम कृति है। स्थापित और नवोदित रचनाकारों के मध्य सेतु का कार्य करेगी और शोध की दृष्टि से संदर्भ साबित होगी। मुख्य अथिति समाजसेवी ईश्वर लाल सैनी, अध्यक्ष रेणु गौड़ , विशिष्ट अथिति पी.पी. गुप्ता , योगेंद्र शर्मा, जयपुर के साहित्यकार गोपाल प्रभाकर शर्मा और के. एल. भ्रमर , जितेंद्र निर्मोही, डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव, रेखा पंचोली, महेश पंचोली, नहुष व्यास ने अपने विचार रखे। मुख्य वक्ता कथाकार और समीक्षक विजय जोशी ने कृति के बारे में जानकारी दी। संचालन स्नेहलता शर्मा ने किया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ मां शारदे की वंदना और दीप प्रज्वलन कर किया गया। आयोजको की और से सभी अथितियों का एवम् लेखक की और से कृति निर्माण में सहयोग करने वालों का सम्मान किया गया। कार्यक्रम में महिला रचनाकारों और विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं ने लेखक का सम्मान किया। बूंदी और कोटा के साहित्यकार  कार्यक्रम में उपस्थित रहे।

नारी की चेतना की उड़ान, महिला लेखिकाओं की सशक्त रचनाओँ का दस्तावेज

“या देवी सर्वभूतेषु ज्ञान रूपेण  संस्थित :”
भारतीय संस्कृति में स्त्री को शक्ति स्वरुप माना गया है । वह साक्षात ज्ञान रूप, स्मृति रूप, बुद्धि रूप ,लक्ष्मी रूप है। उसके इसी गुण के कारण उसे देवी के रूप में हमारे  ऋषियों ने माना  है । कुछ दिन पूर्व हमने शक्ति – आराधना का पर्व मनाया ,जहां हम मां की आराधना कर उनसे सहज ही शक्ति और सामर्थ्य मांगी,ताकि हम अपने जीवन में सुख ,शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकें ।
 शक्ति – आराधना के इस परम पावन पर्व के  कुछ दिनों उपरांत हाल ही में डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल  की रचना “नारी चेतना की उड़ान “का  भव्य लोकार्पण हुआ । शक्ति पर्व का समापन और पुस्तक का लोकार्पण एक अद्भुत  संयोग  है । इस पुस्तक में कोटा संभाग की 81 लेखिकाओं को स्थान दिया  है ।
हाडोती क्षेत्र की महिला रचनाकारों की विशेषताओं को, क्षमताओं को ,लेखन की विविध विधाओं को अत्यधिक बारीकी से रेखांकित किया  है । यह पुस्तक इस दृष्टि में भी विशेष उपयोगी रहेगी कि जब भी भविष्य में 21वीं शताब्दी में महिला लेखन की बात होगी ,इस पुस्तक का उदाहरण दिया जाएगा ।  पुस्तक में लेखक ने अपने सूक्ष्म और गंभीर  अन्वेषण दृष्टि से महिला लेखन की जहां बारीकियों को उजागर किया है ,वही उनके जीवन परिचय को भी रेखांकित किया है।
 “साहित्य समाज का दर्पण होता है “यह कथन सर्वथा सत्य है।  पुस्तक को देखकर भविष्य के पाठक अनुमान लगा सकेंगे ,कि हमारे यहां स्त्री को कितनी प्रतिष्ठा और सम्मान दिया जाता रहा  है। वैदिक काल से  लेकर वर्तमान  काल तक जहां अपाला , गार्गी  , मैत्रेई, विश्ववारा, भारती जैसी विदुषी महिलाओं का उल्लेख वैदिक काल में मिलता है वर्तमान समाज में भी हम इस परंपरा को जीवंत बनाए हुए हैं।
भारतीय परिवेश गंभीरता और लेखन का उद्देश्य देखता है । मेरे विचार से इस पुस्तक के संकलन और लेखन के पीछे लेखक का मंतव्य शायद यही रहा होगा कि जहां  अन्य स्थानों पर आज भी  समाज में  स्त्री को दोयम  दर्जा प्राप्त है, भारतीय समाज में आज भी वह  उच्च सोपान पर खड़ी है। सहजता  , सरलता और अपने दायित्व – बोध के प्रति समर्पण ही उसको यह सामर्थ्य प्रदान करता है।
वरिष्ठ साहित्यकारों ने उन्हें आगे बढ़ाने में निश्चय ही विशेष योगदान  दिया है । अपनी स्नेहमयी  दृष्टि से नवोदित  और स्थापित लेखिका साहित्यकारों को वे  हमेशा प्रोत्साहित करते रहे हैं ।
आदरणीय श्री जितेंद्र निर्मोही जी एक ऐसे साहित्यकार हैं ,जो हमेशा कुछ नवीन चिंतन देने का कार्य करते हैं। इस पुस्तक के लेखन में बीज- रोपन का कार्य आप ही के द्वारा हुआ , और उस विचार को फल  रूप में  परिणित किया सिंघल सर ने पुस्तक के रूप में ।
” नई चेतना की उड़ान ” आध्यात्मिक हुए बिना संभव नहीं । दैनिक जीवन की जिम्मेदारियां को पूर्ण करती हुई ,घर और परिवार को संभालती हुई स्त्री जब,लेखन के प्रति समर्पित होती है, तब भी उसके अंतःकरण में दायित्व- बोध  ही चलता रहता है, क्योंकि उसके लिए प्राथमिकता उसका परिवार ही है। योग दर्शन में इसी को निर्विकल्प समाधि कहा गया है। जब सब कुछ भूल कर केवल अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए आत्मस्थ हो जाती है।  महिला लेखिकाओं की चेतना की अभी प्रारंभिक उड़ान है। इसे अभी बहुत आगे तक जाना है।

रतनानी के कहानी संग्रह “तुलसी” का राजस्थान सिंधी अकादमी द्वारा श्रेष्ठ पाण्डुलिपियों में चयन

कोटा 6 नवम्बर । राजस्थान सिन्धी अकादमी  प्रशासक एवं जयपुर संभागीय आयुक्त श्रीमती रश्मि गुप्ता ने बताया कि अकादमी की पाण्डुलिपि प्रकाशन सहयोग योजना में राज्यभर के साहित्यकारों द्वारा प्रस्तुत पाण्डुलिपियों में से 6 श्रेष्ठ पाण्डुलिपियों का चयन किया गया है इसमें कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार किशन रतनानी का कहानी संग्रह   तुलसी भी  शामिल है। तुलसी कहानी संग्रह रतनानी की नई 11 सिंधी  कहानियों का संग्रह है।
 उल्लेखनीय है कि कोटा के किशन रतनानी भारतीय सूचना सेवा के वरिष्ठ अधिकारी और प्रधानमंत्री कार्यालय में पूर्व निदेशक के पदस्थापित रहे हैं।
किशन रतनानी के अब तक कुल 15 कहानी व एकांकी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिसमें से चार पुस्तकों पर उन्हें राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है ।
अकादमी सचिव योगेन्द्र गुरनानी ने बताया कि अन्य श्रेष्ठ चयनित पाण्डुलिपियों में जयपुर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री भगवान अटलानी की पाण्डुलिपि ’’दहशत’’,अजमेर की डा.कमला गोकलानी की पाण्डुलिपि ’’मेरी नजर में’’, अजमेर के डा.सुरेश बबलानी की पाण्डुलिपि ’’सिन्धी बोली ऐं लिपिअ जो इतिहास’’, अजमेर के डा.प्रताप पिंजानी की पाण्डुलिपि ’’विक्रम उर्वशी’’ एवं अजमेर के ही श्री प्रकाश तेजवानी की पाण्डुलिपि ’’सिन्धी व्याकरण’’ सम्मिलित हैं।

चौथे पोकरमल राजरानी गोयल स्मृति राजस्थानी कथा साहित्य पुरस्कार हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित

कोटा/ बीकानेर/ मुक्ति संस्था, बीकानेर  के तत्वावधान में गत वर्षो से प्रति वर्ष *राजस्थानी कथा साहित्य पुरस्कारों* की श्रंखला प्रारंभ की गई थी। मुक्ति संस्था के सचिव कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने बताया कि राजस्थानी भाषा में राष्ट्रीय स्तर पर  *पोकरमल राजरानी गोयल स्मृति राजस्थानी कथा साहित्य पुरस्कार* प्रति वर्ष राजस्थानी कथाकारों को अर्पित किया जाता है। जोशी ने बताया की इस वर्ष दो पुरस्कार दिए जाएंगे पहला पुरस्कार राजस्थानी कथा साहित्य सृजन और दूसरा राजस्थानी महिला कथा सृजन पुरस्कार जो केवल महिलाओं को ही अर्पित किया जायेगा।
जोशी ने बताया कि चयनित दोनों साहित्यकारों को पुरस्कार के तहत ग्यारह – ग्यारह हजार रुपये, शॉल, श्रीफल, स्मृति चिह्न एवं अभिनंदन-पत्र भेंट किए जाएंगे । उन्होंने बताया कि पुरस्कार वितरण  पोकरमल राजरानी गोयल चैरिटेबल ट्रस्ट के सौजन्य से आयोजित होगा।
पोकरमल राजरानी गोयल ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. नरेश गोयल ने बताया कि वर्ष 2020 के बाद प्रकाशित राजस्थानी कहानी संग्रह अथवा उपन्यास की एक प्रति 31 जनवरी 2025 तक *राजेन्द्र जोशी, तपसी भवन नत्थूसर बास ब्रह्म बगीचे के पीछे बीकानेर 334004* के पते पर व्यक्तिगत अथवा डाक से प्रेषित की जा सकती है। पुरस्कार चयन के लिए गठित समिति का निर्णय अन्तिम और मान्य होगा।

बाल दिवस पर बाल साहित्य मेले का आयोजन

कोटा / बाल दिवस के उपलक्ष्य  मंगलवार को केसर काव्य मंच द्वारा महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल बोरखेड़ा में संस्कृति, साहित्य, मीडिया फोरम के तत्वावधान ” साहित्य और सोशल मीडिया”  विषय पर प्रश्नोत्तरी , निबंध प्रतियोगिता , काव्य पाठ तथा साहित्य संस्कृति आदि विषयों पर प्रतियोगिताएं  आयोजित की गई। मुख्य अतिथि के रूप में  प्रोफेसर जेडीबी कॉलेज डॉ. प्रीति मीना रही। उन्होंने छात्रों को साहित्यिक  किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित किया।
केसर मंच की अध्यक्ष डॉ. पुष्पा आर्यन ने साहित्य से छात्रों को जोड़ने के लिए आयोजित कार्यक्रम के लिए स्कूल का आभार जताया। कार्यक्रम की अध्यक्षता एजाज खान जी ने की। संचालन  कौशल किशोर ने किया। सभी प्रतिभागियों को  केसर मंच की ओर से रजिस्टर पेन देकर सम्मानित किया गया।
प्रतियोगिताओं के परिणाम
 निबंध प्रतियोगिता में कक्षा 10 वीं की  नताशा प्रथम और जाह्नवी द्वितीय स्थान पर रही। काव्य पाठ प्रतियोगिता में कक्षा 9 वीं की अक्षिता प्रथम और मांगी द्वितीय स्थान पर रही। प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में कक्षा 10 वीं के  चित्रांश प्रथम, कुशाल द्वितीय और प्रिंस तृतीय स्थान पर रहे।
पर्यटन एवं साहित्य पर प्रश्नोत्तरी में   वृंदालय नि:शुल्क विद्यालय महावीर नगर विस्तार योजना , कोटा में आयोजित ” साहित्य और पर्यटन ” प्रश्नोत्तर प्रतियोगिता में कक्षा 7 की  युक्ति प्रथम, काश 9 का अर्जुन द्वितीय और  कक्षा 10 का विनीत तृतीय स्थान पर रहे।