Wednesday, April 9, 2025
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हलीम आईना राष्ट्रीय काव्य साहित्य सृजक सम्मान से अलंकृत

कोटा 25 फरवरी/ सरस्वती साहित्य संगम रावतसर (हनुमानगढ़ )के तत्वावधान में राष्ट्रीय कवि हलीम आईना को उनके चर्चित कविता संग्रह ‘आईना बोलता है!’ के लिए स्व. उषा देवी लालचंद सोनी स्मृति राष्ट्रीय काव्य साहित्य सृजक सम्मान -2025 से अलंकृत किया गया।        आईना को यह सम्मान द साइंस एकेडमी सभागार में मुख्य अतिथि डॉ. राजूराम बिजारणिया (लूनकरणसर ), अध्यक्ष विमल चाण्डक, मंच संचालक-सचिव डॉ.सुभाष सोनी ‘अनाम ‘एवं उनके परिजनों द्वारा  सम्मान -पत्र, शॉल, श्रीफल, प्रतीक चिन्ह ,तथा, इक्कावन सौ नकद राशि देकर सम्मानित किया।
इस अवसर पर हलीम आईना ने सबरस काव्य पाठ कर सब का मन मोह लिया।यह जानकारी देते हुए संस्था अध्यक्ष बद्री लाल दिव्य ने बताया कि हलीम आईना के अब तक तीन कविता संग्रह (हँसो भी, हँसाओ भी, हँसो, मत हँसो, आईना बोलता है ) प्रकाशित होकर चर्चित हैं। विगत चार दशकों से इनकी कविताएँ देश -विदेश की प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकाओं एवं संकलनों में प्रकाशित होती रही हैं। साहित्य एवं काव्य मंचों पर हलीम आईना जाना पहचाना नाम है।
आईना के सम्मानित होने पर चाँद शेरी, डॉ. अतुल चतुर्वेदी, डॉ. कृष्णा कुमारी, डॉ. पुरुषोत्तम यक़ीन, डॉ. लखन शर्मा, आनन्द राठी, नेवालाल गुर्जर, डॉ. चंद्र शेखर सुशील, भगवती प्रसाद गौतम, किशन वर्मा, डॉ. अनिता वर्मा, रामदयाल मेहरा, समद राही, सिराज अहमद, लियाकत अंसारी, रजाक अंसारी आदि साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों ने बधाई प्रेषित की है।
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सम्मुख में विजय जोशी द्वारा सम्पादित ” सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक वैभव ” पर चर्चा

कोटा / जवाहर कला केंद्र जयपुर के कृष्णायन सभागार में “सम्मुख” के अन्तर्गत मंचासीन अतिथि अभीषेक तिवारी, नंद भारद्वाज और ईश्वर चंद्र माथुर के सान्निध्य में लेखक साहित्यकार नंद भारद्वाज, देवांशु पद्मनाभ एवं विजय जोशी की पुस्तकों पर चर्चा और कविता पाठ हुआ।
 मंचासीन अतिथियों ने अपने उद्बोधन में चर्चित पुस्तकों पर कहा कि अपनी संस्कृति और सामाजिक संरचना को समझने के लिए ऐसी पुस्तकों को पढ़ना आवश्यक है जो अपने समय को जानने और परखने का अवसर देती हैं।
इस अवसर पर कथाकार एवं समीक्षक विजय जोशी ने अपने संपादन में प्रकाशित ’’सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक वैभव“ के बारे में बताया कि इसमें पुरातत्वविद् रमेश वारिद के समय-समय पर अपनी समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक गरिमा और वैभवशाली पुरासम्पदा पर लिखित एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित चयनित आलेखों का संचयन है। इन आलेखों में शैव दर्शन, शिव पूजन परम्परा और पुरातात्विक सांस्कृतिक एवं कलात्मक चिंतन गहराई से विवेचित हुआ है।
लेखक साहित्यकार नंद भारद्वाज एवं देवांशु पद्मनाभ ने चर्चा में अपनी पुस्तकों का परिचय देकर उनके विशेष सन्दर्भों को उल्लेखित किया। कवयित्री अभिलाषा पारीक, कामना राजावत और शारदा कृष्ण सहित युवा कवि किशन प्रणय ने कविताओं की प्रस्तुति से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।
कार्यक्रम के संयोजक प्रमोद शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए बताया कि साहित्य एवं कला को प्रोत्साहित करने के लिए हर माह यह कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। संचालन अभिलाषा पारीक ने किया।
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न्यायप्रिय और शौर्य की प्रतिमूर्ति महाराज विक्रमादित्य

(विक्रमोत्सव-2025 के अवसर पर विशेष )
भारतवर्ष का इतिहास अनेक न्यायप्रिय और अदम्य साहस दिखाने वाले शासकों से पुष्पित-पल्लवित है। दुर्भाग्य से ऐसे शासकों के प्रति हमारी नवागत पीढ़ी अनजान सी है या उन्हें आधी-अधूरी जानकारी दी गई। मालवा के महाराज विक्रमादित्य से भला कौन परिचित नहीं है? लेकिन नवागत पीढ़ी को यह नहीं मालूम कि विक्रमादित्य के शौर्य भारत के अलावा आसपास के देशों में भी रहा है। विक्रमादित्य पर विपुल साहित्य लिखा गया। महाराज विक्रमादित्य ने किस तरह विक्रम संवत की स्थापना की। विक्रम सम्वत् का प्रवर्तन विक्रमादित्य द्वारा उज्जैन से किया गया। उज्जैन परम्परा से ही काल गणना का एक प्रमुख केंद्र माना जाता रहा और इसीलिए अरब देशों में भी उज्जैन को अजिन कहा जाता रहा। सभी ज्योतिष सिद्धांत ग्रंथों में उज्जैन को मानक माना गया है। आज जो वैश्विक समय के लिए ग्रीनविच की स्थिति है, वह ज्योतिष के सिद्धांत काल में और उसके बाद सैंकड़ों वर्षों तक उज्जैन की रही। यह भी निर्विवाद है कि ज्योतिर्विज्ञान उज्जैन से यूनान और एलेक्जेंड्रिया पहुँचा। काल गणना केंद्र होने से उज्जैन को विश्व के नाभि स्थल की मान्यता भी रही है- ‘स्वाधिष्ठानं स्मृता कांची मणिपूरमवंतिका। नाभि देशे महाकालस्यन्नाम्ना तत्र वै हर:।’ साथ ही महाकालेश्वर की उज्जैन में अवस्थिति काल के विशेष संदर्भ की द्योतक है। इस प्रकार विक्रम सम्वत् ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार भी एक विशेष महत्व रखता है।
भारतवर्ष में विक्रमादित्य युग परिर्वतन और नवजागरण की एक महत्वपूर्ण धुरी रहे हैं। और उनके द्वारा प्रवर्तित विक्रम सम्वत् हमारी एक अत्यंत मूल्यवान धरोहर है। यह भारतीयजन के लिए एक शक्ति और आत्माभिमान का स्रोत भी है। यह भी एक बड़ा कारण है कि विदेशी आक्रांताओं ने भारत गौरव तथा ज्ञान संपदा के प्रमाणों, साक्ष्यों, पुस्तकों, स्थापत्यों के सुनियोजित विनाश का अभियान चलाया। हमारी संपदा को विध्वंस किये जाने के प्रमाण लगातार मिलते रहे हैं। इस अभियान को उपनिवेशवादी इतिहासकारों ने भी अपना भरपूर समर्थन दिया। इन सभी की दुरभिसंधि यही थी कि भारत ज्ञान, विज्ञान, शिक्षा, चिकित्सा, आर्थिकी का नहीं बल्कि अंधेरे का क्षेत्र भर था, जिसके उद्धार के लिए गोरांगप्रभु जन ने देश को लूटा, मिटाया और फिर आधुनिक युग में प्रवेश का टिकट दिया, कृपा पूर्वक। उन्होंने दुनिया की तमाम सभ्यताओं के साथ यही कुछ किया. पश्चिम अभिमुख मानस के इतिहासकारों ने इसी क्रम में विक्रमादित्य को भी ध्वस्त करने की सचेत कोशिश की। ऐसे ही एक इतिहासकार डी. सी. सरकार ने विक्रमादित्य की परंपरा को अनैतिहासिक सिद्ध करने का सघन प्रयास किया। उन्होंने एन्शिएंट मालवा एंड दि विक्रमादित्य ट्रेडिशन की भूमिका में दो टूक कहा कि ईस्वी पूर्व प्रथम शती में पारंपरिक विक्रमादित्य के लिए कोई जगह नहीं है. अलबत्ता उन्होंने माना कि विक्रम सम्वत् की स्थापना विक्रमादित्य ने ही की। लेकिन वह उज्जैन के विक्रमादित्य नहीं हैं. लेकिन विक्रम सम्वत् का अस्तित्व उन्होंने या उन जैसे इतिहासकारों ने स्वीकार किया।
मालव गणों ने शकों को पराजित ही नहीं किया बल्कि उन्हें भारत भूमि छोड़ेने को विवश किया। मालव गणों ने शकों को परास्त कर अवंति क्षेत्र को मालवभूमि बनाया। इसी तिथि से अवंति मालवा कहलाने लगी और विजय तिथि के स्मारक स्वरूप विक्रम सम्वत् का प्रवर्तन हुआ, जिसे कभी-कभी कृत और मालव सम्वत् के रूप में भी संबोधित किया जाता रहा। सम्वत् प्रवर्तन के साथ साथ नये सिक्के भी चलाये गये।
सिक्कों पर अंकित किया गया- ‘मालवान (नां) जय(य:)’. इसी विजय और गण के अवंति में प्रतिष्ठित होने के समय से आगे की काल गणना के लिए मालव सम्वत् या कहें कि विक्रम सम्वत् प्रशस्त हुआ।
भारतीय संस्कृति पर अभिमान करने वालों के लिए यह निश्चय ही गौरव करने योग्य है कि आज भारत वर्ष में प्रवर्तित विक्रम सम्वत्सर बुद्धनिर्वाणकाल गणना को छोड़ कर संसार के प्राय: सभी ऐतिहासिक सम्वतों में प्राचीन है। यह भारत के इतिहास की एक महत्वपूर्ण परिघटना है। विक्रम सम्वत् के उद्भव तक विशुद्ध वैदिक संस्कृति का काल, रामायण और महाभारत का युग, महावीर गौतम बुद्ध का समय, चंद्रगुप्त मौर्य एवं प्रियदर्शी अशोक, पुष्यमित्र शुंग की साहसगाथा, वेद, पुराण, सूत्रग्रंथ एवं स्मृतियों की रचना भारतवर्ष में हो चुकी थी, वैयाकरण पाणिनी और पतंजलि और चाणक्य के पांडित्य तथा राजनीतिक बुद्धिमत्ता चतुर्दिक फैल चुकी थी। विक्रमादित्य का समय भारशिवनागों, समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, स्कंदगुप्त, यशोवर्मन, विष्णुवद्र्धन के बल और प्रताप की चमक से विश्व को चमत्कृत करने का समय था, यह ही वह समय था जब दुनिया कई भागों में भारत की संस्कृति व भारत के धर्म की सुगंधि विस्तारित थी। कालिदास, भवभूति, भारवि, भतृहरि, वराहमिहिर, माघ, दंडी, बाणभट्ट, धन्वन्तरि, कुमारिल भट्ट, आद्य शंकराचार्य, नागार्जुन, आदि की रचनाप्रतिभा चतुर्दिक व्याप्त थी।
विक्रमादित्य के अस्तित्व की गुत्थी भी विक्रम सम्वत् की वजह से अधिक उलझी लगती है क्योंकि विक्रम सम्वत् का प्रवर्तन विदेशी आक्रांता शकों की पराजय और उन्हें देश से बाहर भगाने से आबद्ध हैं। और उपनिवेशवादी मानस इस बात को स्वीकारने के लिए तत्पर ही नहीं है कि भारतवर्ष में विदेशियों को मार भगाने का साहस कभी रहा भी था। विक्रमादित्य उन चुनिंदा शासकों में से थे जिन्होंने देश को विदेशी हमलावरों से मुक्ति दिलाई और इस महती उपलब्धि के उपलक्ष्य में विक्रमादित्य ने विक्रम सम्वत् का प्रवर्तन किया। मान्यता यह भी है कि जनता के ऋण मुक्त होने के अवसर पर उज्जैन में ऋण मुक्तेश्वर महादेव मंदिर तत्समय ही स्थापित हुआ होगा। कथा सरित्सागर में उल्लिखित है ही कि -‘‘न मे राष्ट्रे पराभूतो न दरिद्रो न दुखित:।’ विक्रमादित्य सब लोगों के हितों की रक्षा करता था। उसके राज्य में न कोई दुखी था,न दरिद्र था और न कोई पराभूत। शकों पर अप्रतिम विजय के कारण विक्रमादित्य शकारि भी कहलाये और अप्रतिम साहस प्रदर्शन के कारण साहसांक भी।
मध्यप्रदेश सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रदेश है और इस श्रृंखला में विक्रमोत्सव का आयोजन प्रदेश को एक नई पहचान देगा। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि नेपाल जैसे राष्ट्र में विक्रम संवत से कैलेंडर प्रचलन में है. सम्राट विक्रमादित्य के सुशासन और अन्य महत्वपूर्ण पक्षों की जानकारी पाठ्यक्रम में भी सम्मिलित की जाए। विक्रमोत्सव की सम्पूर्ण परिकल्पना मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की है।  विक्रमोत्सव महाशिवरात्रि से आरंभ होकर सृष्टिकर्ता महादेव के महोत्सव से सृष्टि के आरंभ दिवस वर्ष प्रतिपदा 30 मार्च तक चलेगा। इस विराट आयोजन में सम्राट विक्रमादित्य के युग, भारत उत्कर्ष, नवजागरण और भारत विद्या पर केंद्रित रहेगा. इसके तहत साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ ही ज्योतिर्विज्ञान, विचार गोष्ठियां, इतिहास और विज्ञान समागम, विक्रम व्यापार मेला, लोक एवं जनजातीय संस्कृति पर आधारित गतिविधियां संचालित होंगी।
विक्रमोत्सव में 27 फरवरी से आर्ष भारतीय ऋषि वैज्ञानिक परंपरा, विक्रमकालीन मुद्रा एवं मुद्रांक, श्रीकृष्ण की 64 कलाएँ (मालवा की चितरावन शैली में), श्रीकृष्ण होली पर्व, चौरासी महादेव, जनजातीय प्रतिरूप, सम्राट विक्रमादित्य और अयोध्या, प्राचीन भारतीय वाद्य यंत्र, देवी 108 स्वरूप और देवी अहित्या पर निर्मित स्थापत्य पर प्रदर्शनियां लगाई जाएंगी. साथ ही शैव परंपरा एवं वास्तु-विज्ञान, भारत में संवत परंपरा-वैशिष्ट्य एवं प्रमाण पर शोध संगोष्ठी होगी. वायलिन वादक अनुप्रिया देवेताले अपनी प्रस्तुति देंगी. एक से 3 मार्च 2025 तक वैचारिक समागम के अंतर्गत सम्राट विक्रमादित्य का न्याय विषय पर मंथन होगा. आठ मार्च को लोक रंजन में बोलियों का अखिल भारतीय कवि सम्मेलन होगा. विक्रमोत्सव में दस से 12 मार्च तक अंतर्राष्ट्रीय इतिहास समागम होगा. पन्द्रह से 16 मार्च तक संहिता ज्योतिष एवं वैशिष्ट्य एवं आचार्य वराह मिहिर पर संगोष्ठी, 21 मार्च से महादेव शिल्पकला कार्यशाला तथा प्रतिदिन मांडना शिविर लगाए जाएंगे. इसी क्रम में 21 से 25 मार्च तक पौराणिक फिल्मों का अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव, आदि बिम्ब के अंतर्गत जनजातीय संस्कृतिक पर केंद्रित फिल्मों का प्रदर्शन होगा. साथ ही 21 से 29 मार्च तक विक्रम नाट्य समारोह, वेद अंताक्षरी, 22 मार्च को अखिल भारतीय कवि सम्मेलन, 26-28 मार्च को राष्ट्रीय विज्ञान सम्मेलन और विज्ञान उत्सव होगा.
(लेखक स्तंभकार हैं और कला व संस्कृति से जुड़े विषयों पर लेखन करते हैं)

महाकुंभ ने रचा इतिहास : योगी सरकार का अतुल्य प्रयास

उत्तर प्रदेश के प्रयाग में आयोजित महाकुंभ सफलतापूर्वक संपन्न हो गया। चूंकि उत्तर प्रदेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध राज्य है, इसलिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। इसके अंतर्गत योगी सरकार ने महाकुंभ के भव्य आयोजन के लिए 6,990 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। उन्होंने महाकुंभ के सफल आयोजन के लिए संबंधित अधिकारियों को विशेष निर्देश दिए थे।
उल्लेखनीय है कि प्रयागराज में 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा स्नान के साथ कुंभ मेले का शुभारंभ हुआ था तथा 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के अंतिम स्नान के साथ इसका समापन हो गया। इस समयावधि में 50 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने स्नान किया। शाही स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर, 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर, 3 फरवरी को बसंत पंचमी पर, 12 फरवरी को माघी पूर्णिमा पर तथा 26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर हुआ। इन विशेष दिनों में श्रद्धालुओं की अत्यधिक भीड़ अधिक देखी गई।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ सहित देश के लगभग सभी राजनेता, अभिनेता, खिलाड़ी, व्यवसायी आदि संगम में स्नान कर चुके हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संगम में डुबकी लगाई। इसके पश्चात उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि महाकुंभ में आज पवित्र संगम में डुबकी लगाकर मैं भी करोड़ों लोगों की तरह धन्य हुआ। मां गंगा सभी को असीम शांति, बुद्धि, सौहार्द और अच्छा स्वास्थ्य दें।
गृहमंत्री अमित शाह ने संगम में स्नान करने के पश्चात कहा कि कुंभ हमें शांति और सौहार्द का संदेश देता है। कुंभ आपसे यह नहीं पूछता है कि आप धर्म, जाति या संप्रदाय से हैं। यह सभी लोगों को गले लगाता है। इससे पूर्व उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था कि महाकुंभ’ सनातन संस्कृति की अविरल धारा का अद्वितीय प्रतीक है। कुंभ समरसता पर आधारित हमारे सनातन जीवन-दर्शन को दर्शाता है। आज धर्म नगरी प्रयागराज में एकता और अखंडता के इस महापर्व में संगम स्नान करने और संतजनों का आशीर्वाद लेने के लिए उत्सुक हूं।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी संगम में दुबकी लगाई। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा-
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
आज तीर्थराज प्रयागराज में, भारत की शाश्वत आध्यात्मिक विरासत और लोक आस्था के प्रतीक महाकुंभ में स्नान-ध्यान करके स्वयं को कृतार्थ अनुभव कर रहा हूं।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विगत दिसंबर में महाकुंभ के दृष्टिगत प्रयागराज में लगभग 5500 करोड़ रुपये की विभिन्नम विकास परियोजनाओं का लोकार्पण एवं शिलान्याृस किया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह विश्व के सबसे बड़े समागमों में से एक है, जहां 45 दिनों तक चलने वाले महायज्ञ के लिए प्रतिदिन लाखों श्रद्धालुओं का स्वागत किया जाता है और इस अवसर के लिए एक नया नगर बसाया जाता है। प्रयागराज की धरती पर एक नया इतिहास लिखा जा रहा है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि महाकुंभ, देश की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान को नए शिखर पर ले जाएगा। उन्होंने कहा कि एकता के ऐसे महायज्ञ की चर्चा संपूर्ण विश्व में होगी।
भारत को पवित्र स्थलों और तीर्थों की भूमि बताते हुए उन्होंने कहा कि यह गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी, नर्मदा और कई अन्य असंख्य नदियों की भूमि है। प्रयाग को इन नदियों के संगम, संग्रह, समागम, संयोजन, प्रभाव और शक्ति के रूप में वर्णित करते हुए तथा कई तीर्थ स्थलों के महत्व और उनकी महानता के बारे में बताते हुए उन्होंने  कहा कि प्रयाग केवल तीन नदियों का संगम नहीं है, अपितु उससे भी कहीं अधिक है। यह एक पवित्र समय होता है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तब सभी दिव्य शक्तियां, अमृत, ऋषि और संत प्रयाग में उतरते हैं। प्रयाग एक ऐसा स्थान है जिसके बिना पुराण अधूरे रह जाएंगे। प्रयाग एक ऐसा स्थान है जिसकी स्तुति वेदों की ऋचाओं में की गई है। प्रयाग एक ऐसा स्थान है, जहां हर कदम पर पवित्र स्थान और पुण्य क्षेत्र हैं। प्रयागराज के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने एक संस्कृत श्लोक पढ़ा और इसे समझाते हुए कहा कि त्रिवेणी का प्रभाव, वेणीमाधव की महिमा, सोमेश्वर का आशीर्वाद, ऋषि भारद्वाज की तपस्थली, भगवान नागराज वसु जी की विशेष भूमि, अक्षयवट की अमरता और ईश्वर की कृपा यही हमारे तीर्थराज प्रयाग को बनाती है। प्रयागराज एक ऐसी जगह है, जहां धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों तत्व उपलब्ध हैं। प्रयागराज केवल एक भूमि का टुकड़ा नहीं है, यह आध्यात्मिकता का अनुभव करने की जगह है।
उन्होंने कहा कि महाकुंभ हमारी आस्था, आध्यात्म और संस्कृति के दिव्य पर्व की विरासत की जीवंत पहचान है। हर बार महाकुंभ धर्म, ज्ञान, भक्ति और कला के दिव्य समागम का प्रतीक होता है। संगम में डुबकी लगाना करोड़ों तीर्थ स्थ लों की यात्रा के बराबर है। पवित्र डुबकी लगाने वाला व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है। आस्था का यह शाश्वत प्रवाह विभिन्न सम्राटों और राज्यों के शासनकाल, यहां तक कि अंग्रेजों के निरंकुश शासन के दौरान भी कभी नहीं रुका और इसके पीछे प्रमुख कारण यह है कि कुंभ किसी बाहरी ताकतों द्वारा संचालित नहीं होता है। कुंभ मनुष्य की अंतरात्मा की चेतना का प्रतिनिधित्व करता है, वह चेतना जो भीतर से आती है और भारत के हर कोने से लोगों को संगम के तट पर खींचती है। गांवों, कस्बों, शहरों से लोग प्रयागराज की ओर निकलते हैं और सामूहिकता और जनसमूह की ऐसी शक्ति शायद ही कहीं और देखने को मिलती है।
एक बार महाकुंभ में आने के बाद हर कोई एक हो जाता है, चाहे वह संत हो, मुनि हो, ज्ञानी हो या आम आदमी हो और जाति-पंथ का भेद भी खत्म हो जाता है। करोड़ों लोग एक लक्ष्य और एक विचार से जुड़ते हैं। महाकुंभ के दौरान विभिन्न राज्यों से अलग-अलग भाषा, जाति, विश्वास वाले करोड़ों लोग संगम पर एकत्र होकर एकजुटता का प्रदर्शन करते हैं। यही उनकी मान्यता है कि महाकुंभ एकता का महायज्ञ है, जहां हर तरह के भेदभाव का त्याग किया जाता है और यहां संगम में डुबकी लगाने वाला हर भारतीय एक भारत, श्रेष्ठ भारत की सुंदर तस्वीर पेश करता है।
उन्होंने भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा में कुंभ के महत्व पर बल दिया और बताया कि कैसे यह हमेशा से संतों के बीच महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों और चुनौतियों पर गहन विचार-विमर्श का मंच रहा है। उन्होंने कहा कि जब अतीत में आधुनिक संचार के माध्य्म मौजूद नहीं थे, तब कुंभ महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तनों का आधार बन गया, जहां संत और विद्वान राष्ट्र के कल्याण पर चर्चा करने के लिए एकत्र हुए और वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों पर विचार-विमर्श किया, जिससे देश की विचार प्रक्रिया को नई दिशा और ऊर्जा मिली। आज भी कुंभ एक ऐसे मंच के रूप में अपना महत्व बनाए हुए है, जहां इस तरह की चर्चाएं जारी रहती हैं, जो पूरे देश में सकारात्मक संदेश भेजती हैं और राष्ट्रीय कल्याण पर सामूहिक विचारों को प्रेरित करती हैं। भले ही ऐसे समारोहों के नाम, उपलब्धि और मार्ग अलग-अलग हों, लेकिन उद्देश्य और यात्रा एक ही है। कुंभ राष्ट्रीय विमर्श का प्रतीक और भविष्य की प्रगति का एक प्रकाश स्तंभ बना हुआ है।
उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर मौजूदा सरकार के तहत भारत की परंपराओं और आस्था के प्रति गहरा सम्मान है। केंद्र और राज्य दोनों की सरकारें कुंभ में आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाएं प्रदान करना अपनी जिम्मेदारी मानती हैं। सरकार का लक्ष्यक विकास के साथ-साथ भारत की विरासत को समृद्ध करना भी है।
कुंभ सहायक
केंद्र एवं राज्य सरकारों ने महाकुंभ में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं की सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा। कुंभ के लिए पहली बार एआई और चैटबॉट तकनीक के उपयोग को चिह्नित करते हुए ‘कुंभ सहायक’ चैटबॉट का शुभारंभ किया गया, जो ग्यारह भारतीय भाषाओं में संवाद करने में सक्षम है। इससे लोगों को बहुत लाभ हुआ।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गत 10 जनवरी को प्रयागराज स्थित सर्किट हाउस से महाकुंभ 2025 को समर्पित आकाशवाणी के विशेष एफएम चैनल‘कुंभवाणी एवं ‘कुंभ मंगल ध्वनि का लोकार्पण किया। उन्होंने कुंभ मंगल ध्वनि का भी लोकार्पण किया। उन्होंने कहा था कि कुम्भवाणी द्वारा प्रसारित आंखों देखा हाल उन लोगों के लिए विशेष रूप से लाभदायक होगा, जो कुंभ में भाग लेने के लिए प्रयागराज नहीं आ सकेंगे। यह इस ऐतिहासिक महाकुंभ के माहौल को देश व दुनिया तक पहुंचाने में सहायक होगा। देश के लोक सेवा प्रसारक प्रसार भारती की ये पहल न केवल भारत में आस्था की ऐतिहासिक परंपरा को बढ़ावा देगी, अपितु श्रद्धालुओं को महत्वपूर्ण जानकारी देगी व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का घर बैठे अनुभव करवाएगी।
उल्लेखनीय है कि योगी सरकर ने महाकुंभ से पूर्व प्रयागराज के ऐतिहासिक मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया। इसके साथ-साथ मंदिरों का नवीनीकरण भी किया गया। इसके अतिरिक्त राज्य में हरित क्षेत्र के विस्तार को बढ़ावा दिया गया। विशेषकर प्रयागराज जिले में सड़कों के किनारे पौधे लगाए गए। यह भी उल्लेखनीय है कि स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान दिया गया। क्षेत्रों को पॉलीथिन से मुक्त रखने का भी प्रयास किया गया। इसके अंतर्गत महाकुंभ में सिंगल यूज्ड प्लास्टिक पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया था। मेले में प्राकृतिक उत्पाद जैसे दोना, पत्तल, कुल्हड़ एवं जूट व कपड़े के थैलों के प्रयोग को बढ़ावा दिया गया। योगी सरकार ने श्रद्धालुओं की प्रत्येक सुविधा का ध्यान रखा। इसके अंतर्गत यातावात की भी समुचित व्यवस्था की गई। प्रयागराज आने वाली बसों, रेलगाड़ियों एवं वायुयान की संख्या में वृद्धि की गई। महाकुंभ के लिए रेलवे द्वारा लगभग 1200 रेलगाड़ियां तथा परिवहन विभाग द्वारा सात हजार बसों का संचालन किया गया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं हवाई जहाज से मेला स्थल का निरीक्षण किया। इसलिए यह कहना उचित है कि महाकुंभ के सफल आयोजन के लिए योगी सरकार बधाई की पात्र है।
लेखक – लखनऊ विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर है।

पश्चिम रेलवे का लोअर परेल कारखाना : एक घड़ी जो इतिहास की विरासत है

एक शताब्दी से भी अधिक पुरानी हेरिटेज घड़ी और ट्यून्ड बेल रेलवे के  समृद्ध इतिहास की जीवंत गवाही प्रस्‍तुत कर रही है

लोअर परेल वर्कशॉप की हेरिटेज घड़ी: एक कालातीत विरासत

मुंबई के पश्चिम रेल्वे के लोअर परेल वर्कशॉप में मुख्य प्रवेश द्वार के सामने स्थित फिएट बोगी शॉप की दीवार पर हेरिटेज क्लॉक लगी हुई है – जो इतिहास का एक उल्लेखनीय पन्‍ना है, जो 1889 से अनवरत चल रही है। इंग्लैंड के क्रॉयडन की मेसर्स गिलेट एंड कंपनी द्वारा निर्मित यह प्रतिष्ठित घड़ी न केवल एक समय मापने वाला उपकरण है, बल्कि शिल्प कौशल, विरासत और लोअर परेल वर्कशॉप की स्थायी विरासत का प्रतीक है।

हेरिटेज क्लॉक को 1889 में इंग्लैंड के क्रॉयडन में यूनियन रोड सुविधा में मेसर्स गिलेट एंड कंपनी द्वारा तैयार किया गया था, जो 1844 से अपनी घड़ी बनाने की विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध कंपनी है। इसकी स्थापना लोअर परेल वर्कशॉप की स्थापना के साथ हुई, जिससे यह वर्कशॉप के गौरवशाली अतीत का एक अभिन्न अंग बन गया। दशकों से घड़ी ने कारखाने के विकास को देखा है, जो समय बीतने के मूक प्रहरी के रूप में आज भी विद्यमान है।

हेरिटेज क्लॉक मैकेनिकल इंजीनियरिंग का एक चमत्कार है। 213 सेमी के समग्र व्यास और 152 सेमी के डायल व्यास के साथ यह एक प्रभावशाली संरचना है जो ध्यान आकर्षित करती है। घड़ी पीतल के घटकों से बने एक सावधानीपूर्वक डिज़ाइन किए गए गियर ट्रेन के माध्यम से संचालित होती है, जिसे जंग के प्रतिरोध के लिए चुना जाता है। घड़ी को चालू रखने के लिए आवश्यक ऊर्जा एक धातु स्प्रिंग में संग्रहीत होती है, जिसे निर्बाध संचालन सुनिश्चित करने के लिए सप्ताह में एक बार घुमाया जाता है।

इस घड़ी को जो चीज वाकई उल्लेखनीय बनाती है, वह है इसकी सादगी और मजबूती। इसके कॉम्पैक्ट मैकेनिज्म को न्यूनतम रखरखाव की आवश्यकता होती है, जो इसके रचनाकारों की सरलता का प्रमाण है। अपनी उम्र के बावजूद, घड़ी सटीकता के साथ काम करना जारी रखती है, जो 19वीं सदी की शिल्पकला को ट्रिब्‍यूट है।

लोअर परेल स्थित कैरिज एंड वैगन वर्कशॉप के मुख्य कारखाना प्रबंधक श्री परिवेश साहू सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण और रख-रखाव को महत्‍व देते हैं। यह एक सराहनीय प्रयास है जो इस लंबे और संजोए हुए इतिहास की सुरक्षा में योगदान देता है।

हेरिटेज घड़ी के रख-रखाव का काम लोअर परेल वर्कशॉप के मिलराइट शॉप के दो वरिष्ठ तकनीशियनों, श्री राजकुमार सरोज और श्री नॉर्बर्ट डिमेलो को सौंपा गया है, जो अपने समर्पण के साथ 1990 से इस प्राचीन घड़ी के संरक्षक रहे हैं।

इन तकनीशियनों को विशेष प्रशिक्षण दिया गया है, जिन्हें न केवल हेरिटेज घड़ी बल्कि कारखाना के भीतर सभी GA कार्ड टाइम-पंचिंग घड़ियों के रख-रखाव की जिम्मेदारी दी गई है। उनकी अटूट प्रतिबद्धता यह सुनिश्चित करती है कि ये ऐतिहासिक घड़ियाँ सुचारू रूप से चलती रहें, और भविष्य की पीढ़ियों के लिए अपनी विरासत को संरक्षित रखें।

इस जगह के ऐतिहासिक महत्व को बढ़ाने के लिए एक ट्यून्ड घंटी भी है, जिसे 1890 में मेसर्स गिलेट एंड कंपनी ने बनाया था। हेरिटेज क्लॉक के ठीक नीचे स्थित इस घंटी पर कास्ट नंबर 122 अंकित है और इसका वजन 57 किलोग्राम है। 425 मिमी व्यास और 430 मिमी की ऊंचाई के साथ यह कंपनी की शिल्पकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। साथ में, घड़ी और घंटी एक सामंजस्यपूर्ण जोड़ी बनाते हैं, जो लोअर परेल वर्कशॉप के समृद्ध इतिहास को प्रतिध्वनित करते हैं।

हेरिटेज घड़ी और ट्यून की गई घंटी सिर्फ़ कलाकृतियाँ नहीं हैं; वे हमारे पहले आए लोगों की सरलता और समर्पण की जीवंत याद दिलाती हैं। वे लोअर परेल वर्कशॉप की स्थायी भावना और अपनी विरासत को संरक्षित करने की प्रतिबद्धता के प्रमाण के रूप में खड़े हैं।

जैसे-जैसे घड़ी चलती रहती है और घंटी बजती है, वे हमें सटीकता, शिल्प कौशल और हमारे अतीत का सम्मान करने के महत्व के कालातीत मूल्यों की याद दिलाती हैं। हेरिटेज घड़ी सिर्फ़ इतिहास का अवशेष नहीं है – यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का एक प्रकाश स्तंभ है।

सनातन, आस्था व विकास को समर्पित योगी सरकार का बजट

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने वर्ष 2025 -26 के लिए  सनातन को समर्पित करते हुए सामाजिक सरोकारों वाला व्यापक बजट प्रस्तुत किया है जिसमें समाज के प्रत्येक वर्ग तथा जीवन के हर क्षेत्र का ध्यान रखा गया है। सर्वसमावेशी होने के कारण छात्र, किसान, व्यापारी, महिलाएं, विषय विशेषज्ञ और उद्योगपति सभी इस बजट की सराहना कर रहे हैं। बजट में धर्मस्थलों के विकास व पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त धन दिया गया है। प्रदेश सरकार के बजट में हर उस क्षेत्र तक पहुंच बनाने का प्रयास किया गया है जो आर्थिक विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। बजट में अयोध्या, मथुरा, नैमिषारण्य और चित्रकूट जैसे धार्मिक स्थलों पर विशेष ध्यान दिया गया है।

प्रदेश के वित्तमंत्री सुरेश खन्ना ने बजट भाषण का प्रारम्भ महाकुंभ के आयोजन से किया और फिर धर्मस्थलों के विकास के लिए अपना खजाना खोल दिया।

श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर व मां विन्ध्यवासिनी कॉरिडोर की स्थापना के बाद सरकार मथुरा में श्री बांकेबिहारी जी महाराज मंदिर, मथुरा -वृंदावन कॉरिडोर का निर्माण  करायेगी। इसके लिए भूमि उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए 100 करोड़ और निर्माण के लिए 50 करोड़ रु. का प्रावधान किया गया है। नैमिषारण्य में वेद विज्ञान केंद्र की स्थपना के लिए 100 करोड़ रु. खर्च किये जायेंगे। इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए पहले ही 25 करोड़ बजट के साथ पांच एकड़ भूमि  आवंटित की जा चुकी है। इस अंतरराष्ट्रीय स्तर के केंद्र में वैदिक पर्यावरण, वैदिक गणित, वैदिक विधिशास्त्र, वैदिक योग विज्ञान, वैदिक वन औषधियां वनस्पति आदि पाठ्यक्रम  होंगे। यहां पर बड़े वैदिक पुस्तकालय का भी निर्माण  कराया जाएगा, साथ ही वेदशाला,वैदिक संग्रहालय, तारा मंडल, संगोष्ठी कक्ष बनाये जाएंगे। केंद्र में गुरुकुल व आधुनिक पद्धति के अंतर्गत कक्षाएं बनायी जायेंगी।

मुख्यमंत्री पर्यटन स्थल विकास योजना के तहत 400 करोड़ रु.खर्च किये जायेंगे। अयोध्या में पर्यटन अवस्थापना विकास के लिए 150 करोड़ रु. का प्रावधान किया गया है। इसी तरह मथुरा में 125 करोड़ नैमिषारण्य मे 100 करोड़ चित्रकूट में 50 करोड़ खर्च करने का प्रावधान किया गया है। मिर्जापुर में मां विन्ध्यवासिनी मंदिर,मां अष्टभुजा मंदिर मां काली खोह  मंदिर के परिक्रमा पथ व जनसुविधा स्थलों का विकास किया जायेगा।  संरक्षित मंदिरो के जीर्णोद्वार के लिए 30 करोड़,  महाभारत सर्किट के पर्यटन विकास के लिए 10 करोड़, जैन सर्किट के विकास के लिए भी धन उपलब्ध कराया गया है। विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए भी धन का प्रावधान किया गया है।गुरुस्वामी हरिदास की स्मृति में अंतरराष्ट्रीय संगीत समारोह  के लिए एक करोड़ और अयोध्या में जिला स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय के लिए भी एक करोड़  की धनराशि रखी गई है।योगी सरकार ने वर्तमान बजट से धार्मिक पर्यटन के माध्यम से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की लौ प्रदीप्त की है।

बजट में महापुरुषों पर भी ध्यान दिया गया है जिसके अंतर्गत बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के नाम पर लखनऊ में स्मारक और सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की जाएगी। इसके साथ ही हर जिले में 100 एकड़ में पीपीपी मॉडल पर सरदार पटेल जनपदीय आर्थिक क्षेत्र स्थापित किया जायेगा। संत कबीर के नाम पर 10 वस्त्रोद्योग पार्क तथा संत रविदास के नाम पर दो चर्मोद्योग स्थापित किये जाएंगे। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी के जन्म शताब्दी वर्ष में उनके सम्मान में नगरीय क्षेत्रों में पुस्तकालय की  स्थापना की जाएगी।लखनऊ स्थित अटारी कृषि प्रक्षेत्र पर 251 करोड़ रु. की लागत से पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चरण सिंह के नाम पर सीड पार्क की स्थापना होगी।प्रत्येक कृषि मंडी में माता शबरी के नाम पर कैंटीन और विश्रामालाय स्थापित किये जायेंगे।बजट में युवाओं और छात्राओं  को आकर्षित करने के लिए भी प्रावधान किये गये हैं। अब प्रदेश की हर मेधावी छात्रा को स्कूटी दी जायेगी छात्राओं के लिए 400 करोड़ रु. रानी लक्ष्मीबाई स्कूटी योजना  का ऐलान किया गया है। यही नही माता अहिल्याबाई होल्कर के नाम पर श्रमजीवी महिलाओं के लिए छात्रावास भी बनेंगे।

प्रदेश के बजट में युवा उद्यमी अभियान के लिए भी 1000 करोड़ रु.  का प्रावधान किया गया है।संपूर्ण उत्तर प्रदेश के व्यापक विकास का विस्तृत खाका बजट में रखा गया है।बजट के अनुसार अवध में केवल अयोध्या का ही विकास नहीं हो रहा अपितु अवध के हर जिले के विकास की अद्भुत पटकथा लिखी जायेगी।बजट के प्रावधान इस प्रकार से बनाये गये हैं कि एक प्रकार से यह आगामी 25 वर्षों के विकास का रोडमैप प्रस्तुत कर रहा है।

उत्तर प्रदेश में चार नए एक्सप्रेस वे के निर्माण से तीन तीर्थस्थलों  काशी, प्रयागराज व हरिद्वार की यात्रा सरल हो जायेगी।चार नए एक्सप्रेस वे के लिए बजट में 1,050 करोड़ रु. की व्यवस्था कर दी गई है। गंगा एक्सप्रेस वे को प्रयागराज, मिर्जापुर , वाराणसी, चंदौली होते हुए सोनभद्र से जोड़ने के लिए विन्ध्य लिंक एक्सप्रेस वे का निर्माण किया जायेगा।इससे इस क्षेत्र के विकास की गति दोगुनी हो जायेगी व धार्मिक पर्यटन और बढ़ेगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह युवाओं को रोजगार देने वाला बजट है।बजट में एमएसएमई, नई तकनीक, एआई व साइबर  सुरक्षा का भी ध्यान रखा गया है।नए एक्सप्रेस- वे बनने से दूर की यात्रा आसान होगी।नए एक्सप्रेस वे बनने से व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिलेगा।एआई सिटी बनाने की घोषणा से स्टार्टअप और आईटी उद्योग को बढ़ावा मिलेगा।प्रदेश का बजट इंफ्रास्टक्चर को बढ़ावा देने के साथ बेरोजगारों को रोजगारपरक बनाने वाला बजट है।  यह बजट राज्य की तकनीकी प्रगति औद्योगिक विकास और स्वास्थ्य  अवसंरचना के लिए प्रतिबद्धता को दर्शा रहा है। प्रदेश के बजट में सड़क  राजमार्ग  के चौड़ीकरण पर भी पर्याप्त फोकस किया गया है। इसका सर्वाधिक लाभ राजधानी लखनऊ व उसके आसपास के जिलों व कस्बों आदि को मिलेगा ।मोहनलालगंज -गोसाईगंज होते हुए पूर्वांचल एक्सप्रेस- वे निकल रहा है  इसका चौड़ीकरण किया जायेगा। इसी तरह बनी से ही एक रोड हरौनी होते हुए मोहन को निकली है इसे भी दो लेन का किया जायेगा।

यह बजट समग्र विकास वाला बजट है। इसमें किसानों, उद्यमियों,  महिलाओं और युवाओं के लिए अनेक प्रावधान किये गये हैं। बजट में  कोरोना काल में अनाथ 1430 बच्चों को आर्थिक सहायता प्रादन करने के लिए 250 करोड़ रु. का प्रावधान किया गया है। बजट में सात सरोकारों  पर्यावरण संरक्षण ,नारी सशक्तीकरण, जल संरक्षण, सुशिक्षित समाज, जनसंख्या नियोजन, स्वस्थ समाज, गरीबी उन्मूलन पर भी ध्यान दिया गया है।पर्यावरण संरक्षण के लिए बजट का 23 प्रतिशत हिस्सा पर्यावरण अनुकूलन पहली पर खर्च किया जायेगा।

सरकार वनीकरण, कार्बन अवशोषण और पयार्वरण एवं प्राकृतिक संसाधनों के सरंक्षण को और अधिक बढ़ावा देने जा रही है।इसी प्रकार सुशिक्षित समाज के अंतर्गत शिक्षा क्षेत्र पर कुल बजट का 13 प्रतिशत हिस्सा खर्च किया जायेगा।इसी प्रकार स्वस्थ समाज के लिए कुल बजट का छह प्रतिशत हिस्सा स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च होगा। प्रदेश में जलसंरक्षण को बढ़ावा देने के लिए 4500 करोड़ रु. की व्यवस्था की गई है। इसके अंतर्गत वर्षा जल संचयन एवं भूजल संवर्धन के लिए 90 करोड़ रु. की व्यवस्था प्रस्तावित है।इसमें तालाबों का जीर्णोद्धार तथा निर्माणा भी शामिल है। जनसंख्या नियोजन के अंतर्गत युवाओं को नवाचार से जोड़ने के लिए इनोवेशन फंड स्थापित किया जा रहा है। गरीबी उन्मूलन के लिए भी 250 करोड़ रु. की व्यवस्था प्रस्तावित है। बजट में सभी मंडल मुख्यालयों  पर विकास प्राधिकरणों ,नगर निकायों द्वारा कन्वेंशन सेंटर का निर्माण कराया जायेगा।ग्राम पंचायतों में वैवाहिक उत्सव एवं अन्य  सामाजिक  आयोजनों के लिए उत्सव भवन निर्माण की कार्ययोजना पर भी कार्य किया जायेगा।

यह बजट सभी वर्गो के लिए है अर्थात समग्रता पर आधारित है जिससे इसकी छाप वैश्विक होने जा रही है।प्रदेश की सुदृढ़ होती कानून -व्यवस्था से देश विदेश के निवेशक  भी अब आकर्षित हो रहे हैं तथा प्रदेश में भारी निवेश भी हो रहा है। प्रदेश सरकार ने वर्तमान बजट से 2050 तक का लक्ष्य साधने का प्रयास किया है यही कारण है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद  यह अब तक का सबसे बड़ा बजट है जिसका सीधा अर्थ यह हे कि विकास का लक्ष्य और पैमाना बहुत बड़ा है। यह तुष्टिकरण वाला बजट नहीं अपितु सभी के संतुष्टिकरण वाला बजट है।

प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित
फोन नं.- 9198571540

रामेश्वरम कैफे के दिव्या राघवेन्द्र राव की सफलता की कहानी

अगर आप घूमने के लिए कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु गए और मशहूर फूड चेन रामेश्वरम कैफे (Rameshwaram Cafe) का इडली-डोसा नहीं खाई तो फिर आपका सफर पूरा नहीं होता. बेंगलुरु के इंदिरा नगर स्थित 10×10 स्क्वायर फुट की इस कैफे के बाहर लोगों की भारी होती है. यह क्विक सर्विस रेस्टोरेंट दक्षिण भारतीय व्यंजनों (South Indian Cuisine) के लिए प्रसिद्ध है.

इस कैफे की कमाई हर महीने 4.5 करोड़ रुपये है. यह कैफे सालाना 50 करोड़ रुपये से ज्यादा का बिजनेस करता है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर Sejal Sud ने रामेश्वरम कैफे की कहानी बताई है. रामेश्वरम कैफे की स्थापना सीए दिव्या राघवेंद्र राव और राघवेंद्र राव ने साल 2021 में की थी. दिव्या ने आईआईएम-अहमदाबाद से पोस्ट-ग्रेजुएशन किया है. उनका विजन ट्रेडिशनल साउथ इंडियन फूड को सुर्खियों में लाना था.

आईआईएम अहमदाबाद के एक प्रोफेसर ने एक बार दिव्या राघवेन्द्र राव से कहा था, “भारतीय भोजन मैकडोनाल्ड्स या केएफसी की तरह बड़ा नहीं हो सकता है। “दिव्या के लिए, यह आलोचना नहीं थी- यह एक चुनौती थी।

2021 में, उन्होंने और उनके पति, राघवेंद्र राव ने उस चुनौती को स्वीकार किया और रामेश्वरम कैफे लॉन्च किया। उनका लक्ष्य स्पष्ट था: यह साबित करने के लिए कि भारतीय भोजन विश्व के अग्रणी क्विक-सर्विस रेस्तरां (क्यूएसआर) ब्रांडों के समान स्थिरता और दक्षता बनाए रखते हुए वैश्विक स्तर पर विस्तार कर सकता है।
और वे सफल हुए हैं:

उनकी सफलता एक साधारण दर्शन से आती है: हर दिन ताजा, उच्च गुणवत्ता वाले भोजन परोसें , बिना कोने को काटे। ग्राहकों ने भी ध्यान दिया है – उनके व्यापार का 95% वफादार, कार्बनिक फुटबॉल से आता है।
रामेश्वरम नाम भी खास है। यह डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के जन्मस्थान का सम्मान करता है, जो बड़े सपने देखते हुए जमीन पर रहने की उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

आयुर्वेदिक दोहे

हरड़े भरड़े आँवले, लो तीनो सम तोल।
कूट पीस कर छानिए,त्रिफला है अनमोल।।
पाँच भाँति के नमक से,करो चूर्ण तैयार।
दस्तावर है औषधि, कहते पंचसकार।।
ताजे माखन में सखी, केसर लेओ घोल।
मुख व होठों पर लगा,रंग गुलाब अमोल।।
सूखी मेंथी लीजिए, खाएँ मन अनुसार।
किसी तरह पहुँचे उदर,मेटे बहुत विकार।।
ठंड जुकाम भारी लगे, नाक बंद हो जाय।
अजवायन को सेंक कर, सूंघे तो खुल जाय।।
चर्म रोग में पीसिए, अजवायन को खूब।
लेप लगाओ साथिया,मिलता लाभ बखूब।।
फोड़े फुंसी होय तो, अजवायन ले आय।
नींबू रस में पीस कर,औषध मान लगाय।।
अजवाइन गुड़ घी मिला,हल्का गर्म कराय।
वात पित्त कफ संतुलन, सर्दी में हो जाय।।
भारी सर्दी पोष की, करती बेदम हाल।
अदरक नींबू शहद को,पीना संग उबाल।।
मेंथी अजवायन उभय,हरती उदर विकार।
पाचन होता संतुलित, खाएँ किसी प्रकार।।
अदरक के रस में शहद, लेना सखे मिलाय।
पखवाड़े नियमित रखो,श्वाँस कास मिटजाय।
मक्का की रोटी भली,खूब लगाओ भोग।
पाचन के संग लाभ दे,क्षय में रखे निरोग।।
छाछ दही घी दूध ये, शुद्ध हमारा भोज।
गाय पाल सेवा करो ,मेवा पाओ रोज।।
गाजर रस मय आँवला,पीना पूरे मास।
रक्त बने भरपूर तो,नयनन भरे उजास।।
बथुआ केंहि विधि खाइए,मिले लाभ भरपूर।
पाचन भी अच्छा करे, रहे बुढ़ापा दूर।।
चौंलाई में गुण बहुत, रक्त बढ़े भरपूर।
हरी सब्जियों से रहे,मानुष तन मन नूर।।
पालक मेथी मूलियाँ,स्वास्थ्य रक्त दातार।
हरी सब्जियां नित्य लो,रहलो सदाबहार।।
जूस करेला पीजिए, प्रतिदिन बारहो मास।
मधुहारे तुमसे सदा, हो सुखिया आभास।।
दातुन करिए नीम की,होय न दंत विकार।
नीम स्वयं ही वैद्य है, समझो सही प्रकार।।
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जामुन की दातुन करो, गुठली लेय चबाय।
मधुमेही को लाभ हो ,प्रदर प्रमेह नशाय।।
दातुन करो बबूल की,हिलते कभी न दंत।
तन मन शीतलता रहे, शूल बचाओ पंत।।
कच्ची पत्ती नीम की ,प्रातः नित्य चबाय।
रक्त साफ करके सखे,यह मधुमेह मिटाय।।
सदाबहारी फूल जो, प्रात चबालो आप।
दूर करे मधुमेह को, खाओ मधु को माप।।
तुलसी पत्ते औषधी, पीना सदा उबाल।
कितनी भी सर्दी पड़े,होय न बाँका बाल।।
चूर्ण बना कर आँवले, खाओ बारह मास।
नहीं जरूरत वैद्य की,जब तक तन में श्वाँस।
संध्या भोजन बाद में, थोड़ा सा गुड़ खाय।
पाचन भी अच्छा रहे, बुरी डकार न आय।।
लहसुन डालो तेल में,अजवायन अरु हींग।
जोड़ो में मलते रहो , नहीं चुभेंगे सींग।।
सब्जी में खाओ लहसुन, हरता कई विकार।
नेमी धर्मी डर रहे, खाएँ खूब विचार।।
कैसे भी खा लीजीए ,करे सदा ही लाभ।
ग्वार पाठा बल खूब दे,आए तन में आभ।।
दाल चीनि जल घोल कर,पीजिए दोनो वक्त।
पेचिस में आराम हो, मल हो जाए सख्त।।
दालचीनि मुख राखिए, जैसे पान सुबास।
मुख कभी न आएगी, गन्दी श्वाँस कुबास।।
दूध पियो नित ही भला,हल्का मीठा डाल।
ग्रीष्म ऋतु में पीजिए,संगत मिला रसाल।।
ग्वारपाठ रस आँवला ,करे पित्त को नष्ट।
नित्य निहारा पीजीए,स्वास्थ्य रहेगा पुष्ट।।
तीन भाग रस आँवला,एक भाग मधु साथ।
प्रातः सायं पीजिए, नेत्र नए हो जात।।
हल्दी डालें दूध में, छोटी चम्मच एक।
कफ खाँसी के शूल मिट,स्वस्थ रहोगे नेक।।
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हल्दी चम्मच एक भर, पीवे छाछ मिलाय।
खुजली फुन्शी दाद भी,जल्दी से मिटजाय।।
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बेसन नींबू नीर मधु, सबको लेय मिलाय।
चेहरे पर लेपन करो,सुन्दरता बढ़ि जाय।।
शहद मिला कर दूध पी,जीवन रहे निरोग।
दीर्घायु होकर करो, जीवन के सुखभोग।।
भोजन के संग छाछ तो,होती अमरित मान।
स्वस्थ पुष्ट तन मन रहे, बनी रहेगी शान।।
सौ रोगों की औषधी, देखी परखी मान।
पिए गुनगुना नीर तो,बनी रहे तन जान।।
दिन के भोजन में रखो, दही कटोरी एक।
पाचक रस निर्माण कर,मेटे व्याधि अनेक।।
अजवायन की भाप से,मिटे शीत के रोग।
गर्म भाप को सूँघिए ,रहना शीत निरोग।।
लो अजवायन छाछ से,पेट रहे तन्दरुस्त।
कीड़े मरते पेट के, भोजन करना मस्त।।
सौंफ हींग सेंधा नमक, पीपल उसमे डाल।
जीरा छाछ मिला य पी, रहे न उदर मलाल।।
भूतों को सावन पिला, कार्तिक पिला सपूत।
ग्रीष्मकाल में सब पियो,उत्तम छाछ अकूत।।

विलुप्त होते कला रुपों का संरक्षण

लोकसंगीत वाद्ययंत्रों की धुन और ध्वनि पर आधारित गीत मात्र से कहीं आगे की चीज़ है। पश्चिमी राजस्थान के कुछ समुदायों के लिए तो यह उनके अस्तित्व का हिस्सा है। ये समुदाय अपनी भावनाओं को जाहिर करने और अपने इतिहास को मौखिक रूप से बताने के लिए लोकसंगीत का सहारा लेते हैं, जो शायद युवा पीढी तक अगर न पहुंचा, तो इतिहास में गुम भी हो सकता है।

अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज़ (एआईआईएस) ने अमेरिकन एंबेसडर्स फंड फॉर कल्चरल प्रिजर्वेशन (एएफसीपी) की फंडिंग के साथ लांगा और मांगणियार समुदायों में प्रचलित गाथागीतों और मौखिक काव्यों के लुप्त हो रहे संगीत रूपों को संरक्षित और पुनर्जीवित करने पर काम किया है।

एएफसीपी ग्रांट ऐतिहासिक इमारतों एवं स्मारकों, पुरातात्विक महत्व के स्थानों, संग्रहालयों में संग्रहीत वस्तुओं, नृवंशविज्ञान वस्तुओं, चित्रों, पांडुलिपियों और देसी भाषाओं एवं पारंपरिक सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के अन्य रूपों के संरक्षण में मदद करने के लिए अमेरिकी संसाधनों पर निर्भर फंड है। एएफसीपी के माध्यम से, अमेरिका ने पिछले दो दशकों में भारत में 20 से अधिक प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों और अमूर्त विरासतों के दस्तावेजीकरण, संरक्षण और जीर्णोद्धार में 20 लाख डॉलर का निवेश किया है।

एएफसीपी प्रोजेक्ट के तहत, एआईआईएस ने पश्चिमी राजस्थान की लुप्तप्राय संगीत परंपराओं के दस्तावेजीकरण के अंश के रूप में युवा संगीतकारों को शेष समुदायिक कलाकारों का पता लगाने, उनके साक्षात्कार और उनकी रिकॉर्डिंग के लिए प्रशिक्षित किया गया। इसके अलावा, इसमें छह वरिष्ठ संगीतकारों ने छह युवा संगीतकारों को संगीत शैली सिखाई। दिसंबर 2022 में समाप्त हुई इस परियोजना ने यह सुनिश्चित करने में मदद की कि कला का यह स्वरूप विलुप्त होने से बचा रहे।

विलुप्त होती परंपरा

गाथागीत, मौखिक काव्य और अनुष्ठान कथाएं जैसी मौखिक परंपराएं भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि, इसमें अपरिचित भाषा के चलन के कारण कभी-कभी उन्हें अपने समुदाय के भीतर भी आसानी से नहीं समझा जाता है। इसके अलावा, काव्यों और गाथागीतों को अक्सर मंद शैली की कला माना जाता है जो कई-कई घंटों या कई-कई दिनों तक जारी रह सकती हैं। इस कारण से उन्हें आधुनिक जीवनशैली और कार्यक्रमों के साथ समायोजित करना चुनौतीपूर्ण काम हो जाता है।

एआईआईएस ने लोकगीतों पर अनुसंधान से जुड़े संस्थान रूपायन के साथ मिलकर एएफसीपी की उस परियोजना की कमान संभाली जो पश्चिमी राजस्थान के हाशिए पर पड़े दो वंशानुगत संगीत समुदायों मांगणियार और लांगा के गाथागीत प्रदर्शनों पर केंद्रित थी। ये समुदाय अपने गाथागीत दो तरह से पेश करते हैं- पहला, गाथा (जिसे गाया जाता है) या कथा (जिसका पाठ किया जाता है) एवं वार्ता या बात (जिसे सुनाया जाता है)।

एआईआईएस की प्रोजेक्ट डायरेक्टर शुभा चौधरी के अनुसार, आम दर्शकों के लिए इस कला का प्रदर्शन तमाम चुनौतियों के साथ आता है। उनका कहना है, ‘‘कलाकारों को मंच के दर्शकों के लिए गाना बहुत मुश्किल लगता है। कला का यह रूप इंटरएक्टिव यानी संवादी है और उनके समुदाय के लोगों को पता होता है कि उस पर किस तरह की प्रतिक्रिया देनी है। उनमें कई अवसर ऐसे होते हैं जहां पर हुंकार भरने की परंपरा होती है।’’

वह बताती हैं कि हालांकि अपने प्रदर्शनों में दर्शकों के सहयोग के बिना भी लोक कलाकार अपने पारंपरिक संगीत को अपने समुदायों से बाहर भी पहुंचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वह कहती हैं कि जैसे-जैसे कला के इन रूपों का संरक्षण कम होता जा रहा है, वैसे-वैसे उनकी लोकप्रियता भी घटती जा रही है क्योंकि वे शहरी मंचों तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं, जो कला को विलुप्त होने से बचाने में मददगार बन सकते हैं।

कला रूपों का पुनर्जीवन

हालंकि लांगा और मांगणियार समुदायों के प्रदर्शन की शैली एक जैसी नहीं है लेकि न फिर भी उनमें काफी कुछ एक जैसा है। वे इन गाथागीतों के माध्यम से बताए गए प्रदर्शन और कहानियों के संदर्भ को साझा करते हैं। ये समुदाय अधिकतर बाड़मेर, जैसलमेर और जोधपुर में पाए जाते हैं और मारवाड़ के सांस्कृतिक क्षेत्र का निर्माण करते हैं।

दोनों समुदायों के आम गाथागीतों की शैली में रोमांस, वीरता और भक्तिभाव के साथ देवताओं की कहानियों पर दोहे या गीतों को पाया जाता है। ये गाथागीत अधिकतर मारवाड़ी भाषा में हैं।

चौधरी बताती हैं कि, मौखिक परंपरा के दस्तावेजीकरण के साथ प्रोजेक्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि छह प्रशिक्षित संगीतकारों को एक शिष्य बनाने में मदद करके मौखिक परंपरा को जीवित रखने में मदद की जा सके। उनका कहना है, ‘‘हम इस शैली की तरफ लोगों का ध्यान खींचने में सफल रहे हैं जिसे भुलाया जाने लगा था। अब इसे मंच पर बनाए रखने और इसके बारे में जागरूकता बढ़ने से इस शैली में लोगों की दिलचस्पी पैदा हुई है।’’

वैवाहिक आयोजन को निखार देती है कोहबर कला

वैवाहिक कार्यक्रमों में पारंपरिक कोहबर कला निखर उठती है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो कोहबर कला से सजे दीवार देखकर ही पता चल जाता है कि इस घर में वैवाहिक कार्यक्रम आयोजित हुआ है। विवाह कार्यक्रम के शुरू होते ही घर की दीवारों को कोहबर कला से सजाने का काम शुरू हो जाता है। यह कार्य महिलाओं के जिम्मे होती है, जो इसे बखूबी निभाती हैं।
इस कला में विविध रंगों का प्रयोग किया जाता है। घर की दीवारों के साथ दुल्हन के शयन कक्ष में भी कोहबर कला की विशेष आकृति बनाई जाती है। जिसकी विधिवत पूजा अर्चना की जाती है। महिलाएं बताती हैं, कि कोहबर कला के मंगल चिन्ह निर्विघ्न वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न होने की कामना को लेकर बनाया जाता है। यह एक रस्म है, जो वैवाहिक कार्यक्रमों में आवश्यक रूप से निभाया जाता है।कोहबर कला एक पारंपरिक कला है। जिसमें पारंपरिक आकृति बनाई जाती है। इस कला में पशु पक्षी, जल जीव, फल फूल व वनस्पतियों को मुख्य रूप से स्थान दिया जाता है। इसके अलावा स्वास्तिक, कलश आदि को भी चित्र में उकेरा जाता है।पुरातात्विक विशेषज्ञ का कहना है कि कोहबर कला अत्यंत प्राचीन कला है। इस कला की शुरुआत गुफा और कंदराओं में रहने वाले जनजातियों के द्वारा की गई है। गुफा का ही दूसरा नाम कोहबर माना जाता है। जनजातीय महिलाएं गुफओं में ऐसे चित्र बनाया करती थी, जो आज भी किसी न किसी रूप में जीवित है। कोहबर शब्द दो शब्दों ‘ कोह है एवं ‘वर’ से वना माना जाता है। कोह या खोह का अर्थ गुफा होता है।
बर ‘दूल्हे’ को कहा जाता है अत : कोहबर का अर्थ दूल्हे का कमरा है। कोहबर आज भी इसी नाम से प्रचलित है और आज भी कोहबर विहार, मधुबनी/दरभंगा आदि स्थानों यर भव्य रूप से बनाया या लिखा जाता है।कोहबर के चित्रों का विषय सामान्यत: प्रजनन, स्त्री -पुरुष संबंध, जादू-टोना होता है, जिनका प्रतिनिधित्व पतियों,पशु -पक्षियों, टोने-टोटकै के ऐसे प्रतीक चिहों द्वारा किया जाता है, जो वंश बृद्धि के लिये प्रचलित एवं मान्य हैं जैशे-बांस, हाथी, कछुआ, मछली, मोर, सौप, कमल या अन्य फूल आदि। इनके अलावा शिव की विभिन्न आकृतियों और मानव आकृतियों का प्रयोग भी होता है ।
ये चित्र घर की बाहरी अथवा भीतरी दीवारों पर पूरे आकार में अंकित किये जाते हैँ।कोहबहर चित्र बनाने की दो शैलियाँ प्रचलित है। मिटूटी को दीवारों पर पृष्ठभूमि तैयार करने के लिये कानी मिटूटी (मैंगनीज) का लेप हाथ से या झाडू से किया जाता है । सूख जाने पर उसके उपर सफेद मिटूटो (कोऔलीन) का लेप चढाया जाता है। जिस पर गीली अवस्था में ही बास/प्लास्टिक के कंधे से विभिन्न आकृतियाँ” हस प्रकार बनाई जाती है कि उपर की सफेद मिटूटी हट जाती है और नीचे की काली मिटूटी में आकृतियाँ” स्पष्ट हो जाती हैं। कहीं-कहीं अंधी की जगह चार उ-गलियों का प्रयोग भी किया जाता है। दूसरी विधि में दीवारों यर मिटूटी की सतह तैयार कर कूचियों से आकृतियों” बनाई बनायी जाती है या टीहनी के कोर पर कपड़। बांध कर उससे चित्र अंकित किया जाता है। आकृतियों में सामान्यत: सफेद, गेरू, वाला, पीला, हरा आदि रंग का प्रयोग होता है।