पन द्युन” या ‘पनपूजा’ को कश्मीर में देशभर में मनाए जाने वाले गणेश चतुर्थी के त्योहार की तरह ही समान माना जाता है, लेकिन मनाने का तारीका अपना है।
कश्मीरी पंडितों का त्यौहार :’पन -पूज़ा’
पन द्युन” या ‘पनपूजा’ को कश्मीर में देशभर में मनाए जाने वाले गणेश चतुर्थी के त्योहार की तरह ही समान माना जाता है, लेकिन मनाने का तारीका अपना है।
स्व. उमेश उपाध्याय की स्मृति में दिल्ली में प्रार्थना सभा 13 सितंबर को
जाने-माने पत्रकार और लेखक उमेश उपाध्याय की याद में 13 सितंबर 2024 को दिल्ली में प्रार्थना सभा का आयोजन किया जा रहा है। नई दिल्ली में जे.एल.एन मार्ग स्थित एस.पी. मुखर्जी सिविक सेंटर के केदारनाथ साहनी सभागार में 13 सितंबर 2024 की शाम चार से पांच बजे के बीच इस प्रार्थना सभा में उमेश उपाध्याय को श्रद्धांजलि दी जाएगी और उन्हें याद किया जाएगा।
गौरतलब है कि करीब 64 वर्षीय उमेश उपाध्याय का एक सितंबर को निधन हो गया था। दिल्ली में वसंत कुंज स्थित उमेश उपाध्याय के घर पर कुछ निर्माण काम चल रहा था, इसी दौरान निरीक्षण करते समय वह गिरकर घायल हो गए थे। तत्काल ही उमेश उपाध्याय को अस्पताल ले जाया गया, जहां उनका निधन हो गया था।
एक अनुभवी पत्रकार व कम्युनिकेटर उमेश उपाध्याय को प्रिंट, रेडियो, टीवी और डिजिटल मीडिया में करीब चार दशकों का अनुभव था। उन्होंने एक ग्राउंड रिपोर्टर से एक अनुभवी संपादक तक का सफर तय किया था।
इस दौरान उन्होंने ‘प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया’, ‘ऑल इंडिया रेडियो’, ‘डीडी न्यूज’, ‘नेटवर्क18’ और ‘जी न्यूज’ सहित कई अन्य न्यूज नेटवर्क के साथ काम किया। जेएनयू, डीयू और FTII के छात्र रह चुके उमेश उपाध्याय ने कई न्यूज व टॉक शो को प्रड्यूस किया और उसकी एंकरिंग भी की थी।
उमेश उपाध्याय ने कुछ समय पहले ही एक किताब ‘वेस्टर्न मीडिया नरेटिव्स ऑन इंडिया फ्रॉम गांधी टू मोदी’ (WESTERN MEDIA NARRATIVES ON INDIA FROM GANDHI TO MODI) लिखी थी।
द्वारका धाम का वर्तमान स्वरूप
भगवान श्री कृष्ण ने बसाई द्वारका
द्वारकाधीश मंदिर में भगवान कृष्ण की एक काले संगमरमर की मूर्ति है। धार्मिक स्थलों के अलावा श्री द्वारकाधीश मंदिर के लिए विश्व प्रसिद्ध है। गोमती नदी के तट पर बसा यह पौराणिक नगर द्वारका भगवान श्री कृष्ण का निवास स्थान था। जब श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा कंस का वध किया, तो उसके ससुर जरासंध क्रोध से पागल हो गए। जरासंध ने 17 बार भगवान कृष्ण की राजधानी मथुरा पर आक्रमण किया और अपने दामाद कंस की मृत्यु का बदला लेने की कोशिश की। जरासंध के बार बार आक्रमण करने से लोगों का जीवन, व्यापार और खेती बर्बाद हो रही थी। लोगों का जीवन बचाने और बार बार के नुकसान से बचने के श्री कृष्ण ने लड़ाई के मैदान को छोड़ दिया और रणछोड़जी नाम भी विख्यात हुए।
गुजरात के जामनगर जिले में स्थित द्वारका भारत के 4 धाम में से एक धाम होने के साथ ही सात मोक्षदायी तथा अति पवित्र नगरों अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, काञ्चीपुरम, अवन्तिका (उज्जैन), द्वारिकापुरी में से एक है। अरब सागर के किनारे बसी द्वारका समुद्री चक्रवात तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण अब तक छः बार समुद्र में डूब चुकी है। द्वारका को भारत के सबसे पवित्र स्थलों – चार धामों, जिनमें बद्रीनाथ, पुरी और रामेश्वरम शामिल हैं – के साथ जोड़ा गया है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण इस शहर का निर्माण करने के लिए उत्तर प्रदेश के ब्रज से यहां पहुंचे थे। अब इस शहर को गोल्डन सिटी के नाम से भी जाना जाता है।
18 लोगों के साथ आए थे कृष्ण
कहा जाता है कि कृष्ण यहां कुल 18 लोगों के साथ आए थे। यहां उन्होंने द्वारिका को बसाया और पूरे 36 साल तक राज किया। इसकी स्थापना 2500 साल पहले भगवान कृष्ण के पोते वज्रनाभ ने की थी। इस मंदिर पर 16वीं और 19वीं शताब्दी पर मंदिर पर हमले किए गए थे। जिसके निशान आज भी हैं। मंदिर एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है, जहां तक पहुंचने के लिए 50 से अधिक सीढ़ियां हैं, इसकी भारी मूर्तिकला वाली दीवारें गर्भगृह को मुख्य कृष्ण मूर्ति से जोड़ती हैं।
द्वारका छह बार समुद्र में डूबी
ऐसा कहा जाता है कि द्वारका छह बार समुद्र में डूबी थी और अब जो हम देखते हैं वह उसका सातवां अवतार है। इस मंदिर की अपने आप में एक दिलचस्प कथा है। मंदिर की मूल संरचना को 1472 में महमूद बेगड़ा ने नष्ट कर दिया था, और बाद में 15वीं-16वीं शताब्दी में इसका पुनर्निर्माण किया गया।
द्वारकाधीश का जगत मंदिर
द्वारकाधीश का मंदिर को जगत मंदिर भी कहा जाता है। इस 5 मजिल ऊँचे भव्य मंदिर की सुन्दरता देखकर और मंदिर के शिखर पर लहराती मनमोहक विशाल ध्वजा को देखकर पलके भी नहीं झपका पाएंगे। मंदिर के शिखर की यह बहुरंगी 84 फुट लम्बी ध्वजा प्रतिदीन पांच बार बदली जाती है। द्वारकाधीश को अर्पण करने के लिए तुलसीदल (मंजरी) की माला और माखन मिश्री का प्रसाद श्रद्धानुसार ले सकते है।
मंदिर में 2 द्वार है मोक्ष द्वार और स्वर्ग द्वार। स्वर्ग द्वार से मंदिर के भीतर प्रवेश किया जाता है। गर्भगृह में विराजित लोक-पालक, ब्रह्मांड नायक, राजाधिराज श्री द्वारकाधीश के दिव्य दर्शन होंगे। आप इनके श्यामवर्णीय, चतुर्भुज, अपने 4 हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किये, कई माणिक रत्नों के आभूषण से सुसज्जित, सुन्दर वेशभूषा से सजे रूप को निहारने का अवसार मिलता है।दर्शन करने के बाद मोक्ष द्वार से बाहर की ओर निकल कर गोमती नदी के दर्शन मिलते हैं।
जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण की प्रतिमा का खास श्रृंगार होता है। उन्हें जरी और कढ़ाई के मखमली पोशाक पहनाई जाती है और कीमती गहनों से सजाया जाता है। जिसके बाद पूजा-अर्चना की जाती है और भगवान कृष्ण को भोग लगाया जाता है।
रणछोड़जी के मन्दिर के सामने एक बहुत लम्बा-चौड़ा 100 फुट ऊंचा जगमोहन है। इसकी पांच मंजिलें है और इसमें 60 खम्बे है। रणछोड़जी के दर्शन के बाद मन्दिर की परिक्रमा की जाती है। मन्दिर की दीवार दोहरी है। दो दावारों के बीच इतनी जगह है कि आदमी समा सके। यही परिक्रमा का रास्ता है।
दही हांडी का उत्सव
द्वारका में जन्माष्टमी केवल पूजा के बारे में नहीं है बल्कि दही हांडी जन्माष्टमी उत्सव के लिए भी प्रसिद्ध है। इस दिन युवाओं को टीमों में विभाजित किया जाता है जो “दही हांडी’ खेल में शामिल होते हैं। बता दें, दही हांडी जन्माष्टमी उत्सव का एक प्रमुख अनुष्ठान है जो युवा भगवान कृष्ण के जीवन और कार्यों को दर्शाता है।
गोमती घाट और मंदिरों के दर्शन
गोमती नदी के किनारे नौ घाट है। जहाँ सरकारी घाट के पास एक निष्पाप कुण्ड है, यहाँ आप गोमती नदी का दर्शन और स्नान कर लीजिये। यहाँ सावलिया जी मंदिर, गोबरधननाथ मंदिर, महाप्रभु बैठक और वासुदेव घाट पर हनुमानजी का मन्दिर है। आखिर में संगम घाट आता है, यहां गोमती नदी का समुद्र से संगम होता है। इस संगम घाट पर नारायणजी का बहुत बड़ा मन्दिर है।
सुदामा सेतु
यह एक जगह है जहाँ आप एक सुंदर सूर्योदय और एक आश्चर्यजनक सूर्यास्त लगभग एक ही स्थान पर देख सकते हैं। सूर्योदय के लिए, सुदामा सेतु पर खड़े होने से बेहतर कोई जगह नहीं है – गोमती नदी के दो किनारों से जुड़ने वाला केबल पुल। यह अपेक्षाकृत नया पुल रिलायंस समूह द्वारा बनाया गया है। पुल, सूर्योदय, और समुद्र के साथ गोमती का मिलन बिंदु – सभी बस आश्चर्यजनक लगते हैं क्योंकि सुबह की किरणें उन पर पड़ती हैं। पुल के पार, नदी को बैठने के लिए साफ-सुथरी बेंचों के साथ एक पैदल मार्ग के साथ लाइन किया गया है। घाटों पर लोग डुबकी लगाते हैं और मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं।
पंच नंदन तीर्थ
आप गोमती घाट के पास बने सुदामा सेतु को पार करके पंचनंदन तीर्थ आ जाइये। यह सुदामा सेतु ऋषिकेश के लक्ष्मण झूले जैसा दीखता है। यहाँ पांच पांडव के नाम पर पांच कुण्ड बने है। आप इन पांचों कुण्ड के जल का आचमन कर लीजिये, आपको आश्चर्य होगा कि चारों तरफ समुद्र का गहरा खारा पानी होने के बाद भी इन कुण्ड के जल का स्वाद मीठा और एक दूसरे से भिन्न है।
समुद्र नारायण मंदिर
यहाँ प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर है, जिसके आँगन में अद्भुद पेड़ है। ऐसा पेड़ आपने पहले नहीं देखा होगा, इस पेड़ के नीचे ऋषि दुर्वासा ने तपस्या की थी।
दुर्वासा और त्रिविक्रम मंदिर
दक्षिण की तरफ बराबर-बराबर दो मंदिर है। एक दुर्वासाजी का और दूसरा मन्दिर त्रिविक्रमजी को टीकमजी कहते है। इनका मन्दिर भी सजा-धजा है। मूर्ति बड़ी लुभावनी है। और कपड़े-गहने कीमती है। त्रिविक्रमजी के मन्दिर के बाद प्रधुम्नजी के दर्शन करते हुए यात्री इन कुशेश्वर भगवान के मन्दिर में जाते है। मन्दिर में एक बहुत बड़ा तहखाना है। इसी में शिव का लिंग है और पार्वती की मूर्ति है।
कुशेश्वर मंदिर
कुशेश्वर शिव के मन्दिर के बराबर-बराबर दक्षिण की ओर छ: मन्दिर और है। इनमें अम्बाजी और देवकी माता के मन्दिर खास हैं। रणछोड़जी के मन्दिर के पास ही राधा, रूक्मिणी, सत्यभामा और जाम्बवती के छोटे-छोटे मन्दिर है। इनके दक्षिण में भगवान का भण्डारा है और भण्डारे के दक्षिण में शारदा-मठ है।
शारदा मठ
शारदा-मठ को आदि गुरू शंकराचार्य ने बनवाया था। उन्होने पूरे देश के चार कोनों में चार मठ बनायें थे। उनमें एक यह शारदा-मठ है। परंपरागत रूप से आज भी शंकराचार्य मठ के अधिपति है। भारत में सनातन धर्म के अनुयायी शंकराचार्य का सम्मान करते है।
द्वारका शहर की परिक्रमा
रणछोड़जी के मन्दिर से द्वारका शहर की परिक्रमा शुरू होती है। पहले सीधे गोमती के किनारे जाते है। गोमती के नौ घाटों पर बहुत से मन्दिर है- सांवलियाजी का मन्दिर, गोवर्धननाथजी का मन्दिर, महाप्रभुजी की बैठक।
हनुमान मंदिर
आगे वासुदेव घाट पर हनुमानजी का मन्दिर है। आखिर में संगम घाट आता है। यहां गोमती समुद्र से मिलती है। इस संगम पर संगम-नारायणजी का बहुत बड़ा मन्दिर है।
चक्र तीर्थ
संगम-घाट के उत्तर में समुद्र के ऊपर एक ओर घाट है। इसे चक्र तीर्थ कहते है। इसी के पास रत्नेश्वर महादेव का मन्दिर है। इसके आगे सिद्धनाथ महादेवजी है, आगे एक बावली है, जिसे ‘ज्ञान-कुण्ड’ कहते है। इससे आगे जूनीराम बाड़ी है, जिससे, राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तिया है। इसके बाद एक और राम का मन्दिर है, जो नया बना है। इसके बाद एक बावली है, जिसे सौमित्री बावली यानी लक्ष्मणजी की बावजी कहते है। काली माता और आशापुरी माता की मूर्तिया इसके बाद आती है।
कैलाश कुण्ड
इनके आगे यात्री कैलासकुण्ड़ पर पहुंचते है। इस कुण्ड का पानी गुलाबी रंग का है। कैलासकुण्ड के आगे सूर्यनारायण का मन्दिर है।
शहर का पूरब का दरवाजा
इसके आगे द्वारका शहर का पूरब की तरफ का दरवाजा पड़ता है। इस दरवाजे के बाहर जय और विजय की मूर्तिया है। जय और विजय बैकुण्ठ में भगवान के महल के चौकीदार है। यहां भी ये द्वारका के दरवाजे पर खड़े उसकी देखभाल करते है। यहां से यात्री फिर निष्पाप कुण्ड पहुंचते है और इस रास्ते के मन्दिरों के दर्शन करते हुए रणछोड़जी के मन्दिर में पहुंच जाते है। यहीं परिश्रम खत्म हो जाती है। यही असली द्वारका है।
इस्कॉन मंदिर
अगर आप द्वारकादीश मंदिर जा रहे हैं, तो यहां के इस्कॉन मंदिर के दर्शन भी जरूर करें। भगवान कृष्ण और देवी राधा की आवास मूर्तियों को समृद्ध परिधानों में लिपटा हुआ और फूलों से अलंकृत किया गया, यह पूरी तरह से पत्थर से निर्मित मंदिर है। हालांकि इस्कॉन मंदिर दुनिया भर के अन्य इस्कॉन मंदिरों से ज्यादा अलग नहीं है, लेकिन इसकी और भव्यता देखते ही बनती है।
भदकेश्वर महादेव मंदिर
भगवान शिव को समर्पित यह छोटा और शांत मंदिर द्वारका के दर्शनीय स्थलों और शांत वातावरण के लिए अवश्य ही देखने योग्य स्थानों में से एक है। अरब सागर के दृश्य के साथ, मंदिर नीले पानी, सुनहरी रेत और दिन भर शांत हवा से घिरा रहता है। भदकेश्वर महादेव मंदिर, लगभग 5000 साल पुराना एक प्राचीन मंदिर है, जिसे अरब सागर में पाए गए एक स्वयंभू शिवलिंग के आसपास बनाया गया था। मंदिर हर साल मानसून के दौरान समुद्र में डूब जाता है, जिसे भक्त प्रकृति द्वारा अभिषेकम की धार्मिक प्रक्रिया को करने का तरीका मानते हैं। सुबह 6:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक मंदिर खुलता है।
द्वारका बीच
द्वारकाधीश मंदिर से करीब 1 किमी की दूरी और समुद्र नारायण मंदिर से कुछ क़दमों की दूरी पर द्वारका बीच है। यहाँ दूर दूर तक फैला सफ़ेद रेत का समुद्री तट द्वारका में आराम करने के लिए सबसे अच्छी जगह है। यहाँ आप ऊंट की सवारी का आनंद ले सकते है। यहाँ समुद्र की लहरे ऊँची आती है इसलिए समुद्र में उछलकूद करते समय ज्यादा आगे तक न जाएँ और बच्चों का ध्यान रखे। शाम को यहाँ शांत और खूबसूरत वातावरण निर्मित हो जाता है।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। )
सौर ऊर्जा का उपयोग करने के लिए पश्चिम रेलवे की पहल
पश्चिम रेलवे के जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, अगस्त-2024 तक पश्चिम रेलवे के सभी 6 मंडलों में 229 स्थानों (136 स्टेशनों और 93 सेवा/कार्यालय भवनों/शेड/कारखानों) पर 13.08 MWp के सौर पैनल लगाए जा चुके हैं। इनमें मुंबई सेंट्रल मंडल पर 50 स्थान, वडोदरा मंडल पर 35 स्थान, रतलाम मंडल पर 60 स्थान, अहमदाबाद मंडल पर 16 स्थान, राजकोट मंडल पर 34 स्थान और भावनगर मंडल पर 34 स्थान शामिल हैं।
ओजोन परत सुरक्षा हेतु जनजागरूकता अभियान
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HEAD OFFICE
Chhattisgarh Environment Conservation Board.
Contact: 0771-2512222, 2512220, Paryavas Bhavan, Sector 19, Atal Nagar, Raipur, Chhattisgarh – 492002
पीएसआई-इंडिया बनी देश की पहली ‘हैपिएस्ट प्लेस टू वर्क’ वाली स्वयंसेवी संस्था
एक मंच दो पुरस्कार में बिकने वालों तुमसे अच्छी कई नगर की गणिकाएं हैं
सत्ता सन्मुख वस्त्रहीन हो बिछने वालो
एक मंच दो पुरस्कार में बिकने वालो
तुमसे अच्छी कई नगर की गणिकाएं हैं
सत्ता में कोई भी आया
खंडकाव्य उसपर लिख डाले
श्वानों जैसे चरण चाट कर
तुमने सब पर डोरे डाले
कभी यहाँ तो कभी वहां पर दिखने वालो
एक मंच दो पुरस्कार में बिकने वालो
तुमसे अच्छी कई नगर की गणिकाएं हैं
जब से धन को बाप बनाया
तब से तुम सब गद्दार हुए
कलम न बेची नारा देकर
खुद बिकने को तैयार हुए
मक्कारों की चरण वन्दना लिखने वालो
एक मंच दो पुरस्कार में बिकने वालो
तुमसे अच्छी कई नगर की गणिकाएं हैं
मरयादा का मोल नहीं तुम
बिलकुल छुट्टे सांड हो गए
नाच रहे हो हिजड़ों जैसे
कवि न हुए तुम भांड हो गए
कविता कहकर पैरोडी से ठगने वालो
एक मंच दो पुरस्कार में बिकने वालो
तुमसे अच्छी कई नगर की गणिकाएं हैं
सच लिखने का साहस गिरवी
मंचों पर हिम्मत की बातें
कठमुल्लों से डर के कारण
भूल गए हिन्दू पर घातें
सत्य त्याग कर यहाँ वहाँ की बकने वालों
एक मंच दो पुरस्कार में बिकने वालो
तुमसे अच्छी कई नगर की गणिकाएं हैं
कवि का जन्म लिया है यदि तो
सब कुछ सच सच बतलाओ ना
सत्य नहीं लिख सकते हो तो
कहीं डूब कर मर जाओ ना
मंचों पर बस पाक चाइना पढ़ने वालो
एक मंच दो पुरस्कार में बिकने वालो
तुमसे अच्छी कई नगर की गणिकाएं हैं
साभार
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जीवन का बीमा
दो मित्र थे। बड़े परिश्रमी और मेहनती। अपने परिश्रम से दोनों एक दिन बड़े सेठ बन गए। दोनों ने बड़ा व्यवसाय खड़ा कर लिया। पहले सेठ ने अपनी सारी संपत्ति का बीमा करवा लिया। उसने अपने मित्र को बार बार यही परामर्श दिया की वह भी अपनी सम्पत्ति का बीमा करवा ले। परन्तु दूसरे मित्र ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। दुर्भाग्य से एक दिन शहर में आग लग गई। दोनों की सारी संपत्ति जल कर राख हो गई। पहले सेठ ने बीमा करवा रखा था इसलिये उसे सारी संपत्ति वापिस मिल गई जबकि दूसरा मित्र निर्धन बन गया। मगर हाथ पछताने के अतिरिक्त उसके पास कोई चारा नहीं बचा था।
मनुष्य का यह जन्म भी सेठ की संपत्ति के समान है। हम सभी को मालूम है की एक दिन इस शरीर को भस्म होना है मगर हम हैं की जीवन के इस अटल सत्य को जानकर भी अनसुना कर देते हैं। हम इसका कभी बीमा नहीं करवाते। न सत्कर्म करते है, न अभ्यास और वैराग्य द्वारा मोक्ष मार्ग को सिद्ध करते हैं, न योग मार्ग के पथिक बनते है, न ईश्वर का साक्षात्कार करते है। इसके विपरीत भोग, दुराचार, पाप, राग-द्वेष, ईर्ष्या, अभिमान, अहंकार, असत्य आदि के चक्कर में अपना बीमा ही करवाना भूल जाते हैं।
वेद में अनेक मन्त्रों के माध्यम से जन्म-मरण और मुक्ति की पवित्र शिक्षा को कहा गया है-
शरीर-रूप बंधन में आकर जीवात्मा जहाँ तहाँ भटकता है- वेद
शरीर नश्वर है इसके रहते हुए जो श्रेष्ठ कर्म किया जा सके कर ले अपने को संभाल के परमात्मा का स्मरण कर-वेद
जीवात्मा वासना वश ऊँची नीची योनियों में शरीर धारण करता है, शरीर अस्थिर है-वेद
मैं नश्वर कच्चे घर(शरीर) में फिर न आऊं- वेद
हमें नश्वर शरीर की प्राप्ति न हो, सर्वथा अखंड सुख-सम्पत्ति मुक्ति को प्राप्त हो।
ॠषि पंचमी पर 35 हजार महिलाओं ने किया अथर्वशीर्ष का पाठ
पुणे।
ॐ नमस्ते गणपतये… ॐ गं गणपतये नमः… मोरया, मोरया… का जाप करते हुए लगभग 35 हजार महिलाओं ने एक साथ इकट्ठा होकर अथर्वशीर्ष का पठण कर गणराय का नमन किया. रविवार (8 सितंबर) को ऋषि पंचमी पर आयोजित कार्यक्रम में ऊर्जावान माहौल में हजारों महिलाओं की भीड़ चरम पर थी.
महिलाएं मध्यरात्रि से ही पारंपरिक वेशभूषा में इस कार्य के लिए उपस्थित होने लगीं. गणेश जी के नाम का जाप, अथर्वशीर्ष का पाठ और फिर महाआरती कर इन महिलाओं ने नारी शक्ति को जागृत किया.
श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई सार्वजनिक गणपति ट्रस्ट और सुवर्णयुग तरूण मंडल की ओर से उत्सव के 132वें वर्ष में उत्सव मंडप के सामने यह अथर्वशीर्ष पठण समारोह आयोजित किया गया.इस अथर्वशीर्ष पठण के लिए ‘दगडूशेठ गणपति’ के उत्सव मंडप से लेकर नाना वाडा तक महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ी. भक्तिरस में डूबे माहौल में आरती के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ. इस गतिविधि में पुणे, मुंबई, लातूर, कोल्हापुर, नासिक और महाराष्ट्र सहित विभिन्न स्थानों से महिलाओं ने भाग लिया. यह पहल का 39वां वर्ष था.
इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अरुणा ढेरे, वृषाली श्रीकांत शिंदे, ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष महेश सूर्यवंशी, सुवर्णयुग तरूण मंडल के अध्यक्ष प्रकाश चव्हाण, यतीश रासने, सौरभ रायकर, मंगेश सूर्यवंशी, शुभांगी भालेराव के साथ, अर्चना भालेराव, प्रो. गौरी कुलकर्णी एवं कार्यकर्ता उपस्थित थे.
कार्यक्रम की शुरुआत में महिलाओं ने शंख बजाया. इसके बाद समारोह शुरू हुआ. मन को शांत करनेवाला ओंकार जाप, गणेश जागर गीत और बाद में मुख्य अथर्वशीर्ष का पाठ कर भगवान गणेश नमन किया गया. हजारों महिलाएं इस समय हाथ उठाकर और तालियाँ बजाकर गणराय को प्रणाम कर रही थीं, वह दृश्य विलोभनीय रहा. गणेशजी का नाम जपते समय हर महिला के चेहरे पर उत्साह झलक रहा था.
‘इंडिया स्टार वर्ल्ड रिकॉर्ड’ ने महिलाओं की इस अथर्वशीर्ष पठण गतिविधि का संज्ञान लिया. ट्रस्ट को इसका प्रमाण पत्र डॉ. दीपक हरके ने दिया