Tuesday, November 26, 2024
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आतंकवादियों की भाषा बोल रहे हैं उमर

भारत के संसद भवन पर हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी हाल के दिनों में जम्मू-कश्मीर में एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गई है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के हालिया बयान ने इस मुद्दे को और भी ज्वलंत बना दिया है। उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि यदि जम्मू-कश्मीर सरकार से अफजल गुरु की फांसी पर सलाह ली जाती, तो वे इस पर असहमति जताते। उनका कहना था कि अफजल गुरु को फांसी देने से कोई ठोस परिणाम प्राप्त नहीं हुए।

गौरतलब है कि अफजल गुरु को 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत फांसी दी गई थी, उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार और जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की सरकार थी। उमर अब्दुल्ला के इस विवादास्पद बयान को लेकर विरोधी पक्ष के नेताओं का कहना है कि संसद हमले के दोषी और राष्ट्रविरोधी तत्वों को फांसी देने से उन्हें परेशानी क्यों हो रही है? सर्वोच्च न्यायालय ने अफजल गुरु के अपराध को गंभीरतम अपराध माना था। विरोधियों का आरोप है कि उमर अब्दुल्ला का यह बयान चुनावी लाभ के लिए आतंकवादियों और पृथकतावादियों से समर्थन प्राप्त करने की कोशिश है। इसी तरह की रणनीति पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने भी अपनाई थी, जब उनके पिता ने चुनाव जीतने के बाद पृथकतावादियों को धन्यवाद दिया था।

सच्चाई यह है कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद और पृथकतावाद की जड़ें पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई हैं। भले ही हमें दूर से ऐसा प्रतीत होता हो कि ये ताकतें खत्म हो गई हैं, लेकिन वहां की स्थानीय स्थिति कुछ और ही है। स्थानीय नेता और कार्यकर्ता जनता के बीच उठते-बैठते हैं और उन्हें क्षेत्र की वास्तविक परिस्थितियों का अच्छा ज्ञान रहता है। इसी कारण ऐसे बयान सामने आ रहे हैं, जो स्थानीय जनमानस की मनोस्थिति को दर्शाते हैं।

DR.S.K.RAINA

+918209074186

विद्यार्थियों को भारतबोध कराएं शिक्षक : प्रो. संजय द्विवेदी

चौरई (छिंदवाड़ा), 8 सितंबर। भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी ) के पूर्व महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी का कहना है कि शिक्षक ही अपने विद्यार्थियों में जीवन मूल्यों और संस्कृति को प्रवाहित करते हैं। देश को जगद्गुरु बनाने के लिए शिक्षक समुदाय को आगे आने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों का दायित्व है कि वे विद्यार्थियों को भारतबोध कराएं। वे यहां चौरई(छिंदवाड़ा) के अन्नपूर्णा मैरिज लान में आयोजित शिक्षक सम्मान समारोह को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे।

समारोह की अध्यक्षता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक, छिन्दवाड़ा श्री भजनलाल चोपड़े ने की। कार्यक्रम में पूर्व विधायक श्री गंभीर सिंह चौधरी, विधानसभा प्रभारी श्री लखन वर्मा, नगर पंचायत चांद अध्यक्ष श्री दानसिंह ठाकुर, नगर पंचायत बिछुआ अध्यक्ष श्री रामचंद्र बोबड़े, अध्यक्ष लोधी समाज श्री अतरलाल वर्मा, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष दीपका चोपड़े, समाजसेवी श्री अजब सिंह लोधी व हरिश्चंद पटेल विशेष अतिथि के नाते शामिल हुए। जिला पंचायत छिन्दवाड़ा के पूर्व उपाध्यक्ष एवं कार्यक्रम संयोजक श्री शैलेन्द्र रघुवंशी (बबलू पटेल) ने अतिथियों का स्वागत किया।

अपने संबोधन में प्रो.संजय द्विवेदी ने कहा कि शिक्षण कार्य महज आजीविका चलाने का माध्यम नहीं है। यह बहुत ही जिम्मेदारी भरा काम है। शिक्षक विद्यार्थियों को सही मायने में जीवन जीने की कला सिखाता है। उन्होंने कहा कि शिक्षक विद्यार्थियों की छिपी हुई प्रतिभा को सामने लाने और उसे निखारने का कार्य करता है।

इस अवसर पर भाजपा नेता संदीप रघुवंशी,युवा पत्रकार श्याम चौरसिया, नितिन रघुवंशी भी उपस्थित रहे।

साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा हिंदी दिवस पर “हिंदी लाओ देश बचाओ” दो दिवसीय आयोजन

कोटा। हिंदी दिवस के अवसर पर
साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा की ओर से नाथद्वारा में दो दिवसीय ” हिंदी लाओ देश बचाओ ” समरोह का आयोजन किया जायेगा। संस्था के प्रधानमंत्री श्याम प्रसाद देवपुरा ने सोमवार को जानकारी देते हुए बताया कि समारोह में देश के 13 राज्यों सहित केलीफोर्निया अमेरिका की साहित्य, संस्कृति, पत्रकारिता आदि क्षेत्रों की 68 प्रतिभाओं को विविध अलंकरणों से सम्मानित किया जाएगा। समारोह में दिल्ली की कत्थक नृत्यांगना डॉ.प्रभा दुबे और साथी कलाकारों का कत्थक नृत्य , अखिल भारतीय कवि सम्मेलन , साहित्यकारों का नगर परिक्रमा एवं पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम भी रखे गए हैं।
देवपुरा ने बताया कि समारोह में दोनों दिन प्रारंभ में हिंदी उपनिषद में विद्वान वक्ताओं द्वारा परिचर्चा आयोजित की जायेगी। राजस्थान सहित उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, तमिलनाडु, असम, महाराष्ट्र, बिहार, पंजाब, झारखंड और कर्नाटक राज्यों की प्रतिभाओं को सम्मानित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि कई वर्षो से हिंदी के विकास के लिए यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम का प्रारंभ संस्था संस्थापक स्व. भगवती प्रसाद देवपुरा द्वारा किया गया था जिसे प्रतिवर्ष निरंतर आयोजित किया जा रहा है। यह संस्था देश की अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं से संबद्ध है। समिति का अपना पुस्तकालय संचालित है जिसमें ग्रंथों का व्यापक संग्रह शोध के लिए उपलब्ध हैं।

साधारण लोग, असाधारण शिक्षक

सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था का बेहद करीबी और आँखों देखा हाल बताती एस. गिरिधर की किताब ‘साधारण लोग असाधारण शिक्षक’ का एक अंश। यह किताब पिछड़े इलाकों और वंचित तबकों के बीच सरकारी स्कूलों का महत्व बताने के साथ उस माहौल और परिवेश का प्रामाणिक वर्णन करती है जिसमें सरकारी स्कूलों के शिक्षक काम करते हैं।

क्या सरकारी स्कूलों के शिक्षकों में अपने काम को लेकर प्रतिबद्धता व्यापारिक (निजी) क्षेत्र के कर्मचारियों से भी कम है? एक ऐसे दौर में यह सवाल थोड़ा बेवकूफ़ाना जान पड़ता है जब सरकारी स्कूल के शिक्षक को हमारी शिक्षा व्यवस्था की हर असफलता के लिए ज़िम्मेदार खलनायक और निजी क्षेत्र को मेहनत व लगन का पर्याय माना जा चुका है। लेकिन हमने बड़ी मुश्किल से यह सबक सीखा है कि बेवकूफ़ाना सवाल न सिर्फ़ पूछे जाने चाहिए बल्कि उनके जवाब भी दिए जाने चाहिए। क्या सितारे और सूरज वाक़ई धरती के चारों तरफ़ घूमते हैं? क्या हैजे़ की महामारियों के पीछे वाक़ई ‘चुड़ैलों’ का हाथ होता था?

2002 से 2016 तक हमने लाखों सरकारी स्कूल शिक्षकों के साथ काम किया (और आज भी कर रहे हैं)। ये कोई संक्षिप्त आदान-प्रदान नहीं बल्कि दीर्घकालिक संवाद थे। हमें कहीं कोई खलनायक नहीं दिखायी दिया— न जंगलों में, न पहाड़ों पर और न ही रेगिस्तान में जिन गाँवों और छोटे-छोटे शहरों में ये शिक्षक रहते हैं, और जहाँ मेरे सहकर्मी भी रहते हैं, वो जगहें हैं जहाँ बाहर से कोई बमुश्किल ही जाता है, यहाँ तक कि ख़ुद को हमेशा सही मानने वाले शिक्षकों के कट्टर आलोचक भी नहीं जाते।

शिक्षक की खलनायक की छवि और वास्तविकता के बीच के सबसे बड़े विरोधाभासों में से एक, जो इन वर्षों में हमने देखा, वह था— स्कूल से शिक्षकों की ‘गैर-मौजूदगी’ की बाबत। यह एक आम राय है— यहाँ तक कि सरकारी तंत्र के ऊपरी पायदानों पर भी और कुछ कथित विद्वत्तापूर्ण शोधों में भी 30 से 50 फ़ीसदी शिक्षकों के स्कूल में गैर-मौजूद होने का दावा किया जाता है। इतने बड़े पैमाने पर या इसके आसपास भी शिक्षक स्कूल से ग़ायब हों, ऐसा हमने कभी नहीं देखा। यहाँ ‘गैर-मौजूदगी’ का मतलब है बिना औपचारिक छुट्टी लिए या बिना किसी वाजिब वजह के शिक्षक का स्कूल से ग़ायब रहना।

लाखों शिक्षकों के साथ पन्द्रह साल के हमारे अनुभव को इन आलोचकों ने महज़ ‘क़िस्से-कहानियाँ’ कहकर ख़ारिज कर दिया, जबकि उनके दावे या तो सुनी-सुनायी बातों पर या पचास शिक्षकों के सैम्पल के अध्ययन पर आधारित थे। यह देखते हुए शिक्षकों के स्कूल से गैर-हाज़िर रहने के मसले पर हमने एक अध्ययन करने का फ़ैसला किया। यह अध्ययन 2017 में अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के शिक्षा में फ़ील्ड स्टडी श्रृंखला के अन्तर्गत प्रकाशित हुआ। इसमें स्कूल में शिक्षकों की गैर- मौजूदगी की दर 2.5 फ़ीसदी पायी गई। इस अध्ययन से शिक्षकों का पक्ष सामने आया। लेकिन तथ्यों पर बिलकुल ध्यान नहीं देते हुए कुछ लोगों ने कहा कि हम शिक्षकों को ‘बचाने’ की कोशिश कर रहे हैं।

जिस हफ़्ते वह अध्ययन प्रकाशित हुआ था, मैं उत्तरकाशी जिले में था। एक स्थानीय लोकप्रिय हिन्दी दैनिक ने सनसनीखेज़ हेडलाइन छापी— ‘स्कूलों के निरीक्षण में ज़िले में 26 शिक्षक स्कूल से नदारद मिले!’। शिक्षकों को ‘नदारद’ बताना एक गम्भीर आक्षेप था। अगले दिन अख़बार को इस बारे में स्पष्टीकरण छापने पर मजबूर होना पड़ा। सिर्फ़ एक शिक्षक अनुपस्थित था, पाँच शिक्षक आधिकारिक अनुमति से छुट्टी पर थे और बाक़ी के बीस शिक्षकों को शिक्षा विभाग ने प्रशिक्षण पर भेजा था। इस छोटी-सी घटना से पता चलता है कि किस तरह शिक्षक की खलनायक वाली छवि बनाने के लिए भ्रामक व्याख्याएँ लगातार इस्तेमाल की जाती हैं।

हमारे शोध अध्ययन से पता चला कि लगभग 18 फ़ीसदी शिक्षक अपने स्कूल में नहीं थे। 2.5 फ़ीसदी शिक्षक बिना कोई कारण बताए स्कूल से नदारद थे, 6 फ़ीसदी छुट्टी पर थे, और लगभग 11 फ़ीसदी शिक्षक किसी वाजिब वजह से बाहर थे (मसलन, विभाग की तरफ़ से प्रशिक्षण के लिए गए हुए)। अपनी रपट और उसके शीर्षक लिखते हुए हमने बिलकुल साफ़-साफ़ ये आँकड़े दिए थे जिसमें 18 फ़ीसदी शिक्षकों की ‘गैर-मौजूदगी’ होने जैसी किसी बात की कोई गुंजाइश ही न हो। यानी उस अख़बार की सनसनीखेज़ ख़बर के पीछे की सच्चाई दरअसल कुछ और थी।

आज के दौर में घटिया दर्जे के मीडिया संस्थानों की जैसे बाढ़ आ गई है, उसको देखते हुए इस तरह की हरकत पर कोई आश्चर्य नहीं होता। मैं इस तरह की बात उन शोधकर्ताओं के लिए नहीं करूँगा जिनके शोधपत्रों ने इस झूठे आख्यान को गढ़ने में भूमिका निभायी है। हालाँकि यह सच है कि इन शोधपत्रों ने वाक़ई शिक्षकों को बलि का बकरा बनाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है। इन शोधपत्रों के फुटनोटों या अन्दर के पन्नों की तालिकाओं में यही बात दर्ज की जाती है कि शोधपत्र के शीर्षक में 25-30 फ़ीसदी शिक्षकों की अनुपस्थिति की जो बात कही जा रही है, उसमें वाजिब कारणों से स्कूल में गैर-हाज़िर शिक्षक भी शामिल हैं और यह भी कि बिना वजह स्कूल में गैर-मौजूदगी का आँकड़ा असल में 3-4.5 फ़ीसदी ही है। इन शोधपत्रों का धड़ल्ले से झूठे प्रचार के लिए इस्तेमाल किया गया है और ऐसे कुछ पत्रों के लेखकों ने इस बारे में कभी कोई स्पष्टीकरण देने की कोशिश भी नहीं की है।

और जब शिक्षक इस निहायत ही झूठे आख्यान का विरोध करते हैं तो इसे गुनहगारों की चिल्ल-पों कहकर ख़ारिज कर दिया जाता है।

ज़ाहिर है कि अगर इतने सारे शिक्षक स्कूल में नहीं होंगे तो पढ़ाई-लिखाई पर असर पड़ेगा। लेकिन यह भी सच है कि इस समस्या के लिए शिक्षकों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। शिक्षकों की पर्याप्त संख्या उपलब्ध कराना व्यवस्था की ज़िम्मेदारी है। यानी शिक्षकों की उपलब्धता की योजना में अवकाश, दूसरी ज़िम्मेदारियाँ व प्रशिक्षण आदि की सम्भावनाओं को ध्यान में रखना होगा।

साभार – https://rajkamalprakashan.com/blog/ से

अल्ट्रा मीडिया एंड एंटरटेनमेंट ग्रुप ने लॉन्च किये हिंदी सुपरहिट्स के दो नये रोमांचक ओटीटी प्लेटफॉर्म

अल्ट्रा प्ले‘ हुआ लाइवपेश कर रहे हैं भारत का पहला ओटीटी प्लेटफॉर्म जो केवल हिंदी कंटेंट पर आधारित हैजो अपने समृद्ध फिल्म संग्रह के माध्यम से हर घर में संपूर्ण मनोरंजन का अनुभव प्रदान करेगा        

अल्ट्रा गाने‘ का पदार्पणहिंदी सिनेमा के बेहतरीन हिट्स की चमक को फिर से जीवंत करेगा             

मुंबई।  अल्ट्रा मीडिया एंड एंटरटेनमेंट ग्रुप ने आज हिंदी सिनेमा और संगीत की समृद्ध विरासत को सम्मानित और संरक्षित करने वाले ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के लॉन्च की घोषणा की। ‘अल्ट्रा प्ले’ और ‘अल्ट्रा गाने’ के लॉन्च के साथ कंपनी ने क्लासिक बॉलीवुड फिल्मों और सदाबहार हिंदी सिनेमा के प्रशंसकों के लिए एक विशेष डिजिटल अनुभव प्रदान किया है। इन प्लेटफॉर्म्स पर दशकों से भारतीय मनोरंजन का प्रतीक रहे फिल्मों और गानों का संग्रह उपलब्ध कराया गया है, जिसके माध्यम से बॉलीवुड के दिग्गजों को सम्मानित किया गया है। इनमें फिल्म इतिहास के मूल्यवान रत्न और प्रसिद्ध क्लासिक्स को रिस्टोर किए गए फॉर्मेट में शामिल किया गया है।

अल्ट्रा प्ले‘ और इसकी विशेषताएँ :

‘अल्ट्रा प्ले’ प्लेटफॉर्म पर 1950 से अब तक प्रदर्शित गुरु दत्त, राज कपूर, शक्ति सामंता, सुभाष घई, विधु विनोद चोपड़ा आदि दिग्गजों द्वारा बनाई गई 2000 से अधिक हिंदी क्लासिक फिल्मों का खजाना उपलब्ध है। ‘हर जमाने का कंटेंट’ वाला यह प्लेटफॉर्म बेहद संतोषजनक मनोरंजन अनुभव प्रदान करता है, जिसका आनंद पूरा परिवार एक साथ बैठकर ले सकता है।

अल्ट्रा गाने‘ का परिचय :

‘अल्ट्रा गाने’ भारत का पहला विशेष वीडियो गाने का ओटीटी प्लेटफार्म है, जो 1940 से आज तक के 4,000 से अधिक सदाबहार हिंदी गाने स्ट्रीम करता है। ‘देख के सुनो’ इनकी टैगलाइन है, और इस प्लेटफार्म पर ‘बाबूजी धीरे चलना’, ‘रूप तेरा मस्ताना’ जैसे कई लोकप्रिय गानों का समृद्ध अनुभव मिलेगा। ‘अल्ट्रा गाने’ प्लेटफार्म पर हर सप्ताह दो नए ओरिजिनल हिंदी गानों का स्ट्रीमिंग किया जाएगा, और ये गाने उभरते कलाकारों के होंगे। इसके अलावा, इस प्लेटफॉर्म पर मराठी, गुजराती और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के वीडियो गाने भी जोड़े जाने की योजना है।

विशेष सब्सक्रिप्शन और सेवाएँ :

अल्ट्रा प्ले‘ और ‘अल्ट्रा गाने‘ दोनों प्लेटफार्म भारत में सिर्फ ₹199 के वार्षिक शुल्क में उपलब्ध हैंऔर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न मूल्य बिंदुओं के साथ पेश किए गए हैं। दर्शक इन फिल्मों और गानों का उच्च गुणवत्ता मेंविज्ञापनमुक्त आनंद ले सकते हैंजिससे यह अनुभव वाकई खास बन जाता है। 

अल्ट्रा मीडिया एंड एंटरटेनमेंट ग्रुप के सीईओ श्री सुशीलकुमार अग्रवाल ने कहा, “अल्ट्रा ने हिंदी, मराठी और अन्य भाषाओं में हजारों शीर्षकों का अधिग्रहण किया है। उसी प्रकार अपनी खुद की ओटीटी ऐप्स शुरू करना हमारे व्यापार का स्वाभाविक विस्तार था। भारत की समृद्ध सिनेमाई और संगीत विरासत को दुनिया भर के दर्शकों तक पहुंचाने के हमारे सतत मिशन में यह एक महत्वपूर्ण चरण है। पुराने हिंदी फिल्मों और गानों का एक स्मरणीय मूल्य है और यह ऐप के विकास का मुख्य स्रोत हैं। हम भविष्य में अन्य भाषाओं में विस्तार के अवसरों पर भी विचार कर रहे हैं, ताकि हमारे आने वाले ओटीटी प्लेटफार्म्स में विविधता लाई जा सके।”

वैनायकी श्री गणेश व्रत/सिद्धिविनायक चतुर्थी/गणेश चतुर्थी

मित्रों! भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि 6 सितंबर दिन शुक्रवार को दिन में 12 बजकर 9 मिनट से प्रारम्भ हो जायेगी जोकि 7 सितंबर शनिवार को दिन में 2 बजकर 6 मिनट तक रहेगी। इसलिए उदया तिथि को आधार बनाकर सिद्धिविनायक गणेश चतुर्थी 7 सितंबर को ही मनाई जाएगी।

भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहते हैं।कलंक चतुर्थी के सम्बन्ध में कुछ पौराणिक कथाओं का वर्णन मिलता है जिसमें गणेश जी द्वारा चंद्रमा को श्राप देने से संबन्धित कथा व इसी दिन चन्द्र दर्शन की वजह से भगवान श्रीकृष्ण को स्यमयंतक मणि की चोरी का झूठा कलंक लगने की कथाएं मुख्यतः प्रचलित हैं। इसलिए आम जनमानस में मान्यता है कि इस दिन चन्द्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए अन्यथा जीवन में किसी भी प्रकार का झूठा कलंक लग जाता है।

हमारी पौराणिक कथाओं में किसी गूढ़ ज्ञान का रहस्य भी छिपा होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार तो भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी में चन्द्र दर्शन वर्जित है। परन्तु इसके पीछे छिपे दार्शनिक पहलू को समझने की भी कोशिश करें। गणेश जी बौद्धिक ज्ञान के देवता हैं।उनके आशीर्वाद से व्यक्ति का बौद्धिक विकास होता है। गणेश जी हमारी बुद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं तो वहीं ‘चन्द्रमा मनसो जात:’ अर्थात् चन्द्रमा हमारे मन का कारक है।  चन्द्रमा हमारे मन का प्रतिनिधित्व करता है। जब गणेश जी का उदय होगा अर्थात् हमारी बुद्धि का उदय होगा तो मन के प्रति हमारी स्वत: समाप्त हो जायेगी। अगर हमारी बुद्धि जाग्रत हो जाये और फिर भी हम अपने मन की ओर देखेंगे या मन की बात मानेंगे तो हमें बुरे परिणाम ही मिलेंगे। हमारे जीवन को कलंकित होना तय है। इसलिए गणेश जी के प्रादुर्भाव दिवस पर चन्द्र दर्शन नहीं करना चाहिए।

*कलंक चतुर्थी व गणेश चतुर्थी व्रत कब मान्य रहेंगे..?*

जैसा कि 6 सितंबर शुक्रवार को ही 12 बजकर 9 मिनट से चतुर्थी तिथि प्रारम्भ हो रही है इसलिए रात्रि में चन्द्र दर्शन निषेध का विधान रहेगा और कलंक चतुर्थी की मान्यता 6 सितंबर शुक्रवार को ही रहेगी क्योंकि अगले दिन 2 बजकर 6 मिनट पर चतुर्थी तिथि समाप्त हो जायेगी, फिर रात्रि में चन्द्र दर्शन संबंधी दोष का कोई अस्तित्व नहीं रहेगा। शुक्रवार के दिन अगर भूलवश चन्द्र दर्शन हो जाएं तो दोष शांति के लिए मन्त्र जाप करना चाहिए। मन्त्र इस प्रकार है — “सिंहःप्रसेनमवधीत्,सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।”

इसी प्रकार गणेश चतुर्थी व्रत उदया तिथि के अनुसार 7 सितंबर दिन शनिवार को मान्य रहेगा। इसी दिन महाराष्ट्र में गणेशोत्सव का प्रारंभ हो जाएगा। बंगाल में इसे सौभाग्य चतुर्थी कहते हैं तो वहीं तमिलनाडु में विनायक चतुर्थी नाम से जानी जाती है। अतः इस दिन बौद्धिक ज्ञान के अधिष्ठाता भगवान गणेश जी की आराधना करते हुए श्रीगणेश चतुर्थी व्रत रखें व हर्षोल्लास के साथ गणेशोत्सव मनायें। जब गणेश जी का आगमन होता है तो शुभ, लाभ, रिद्धि सिद्धि स्वयं स्थापित हो जाते हैं। गणेश जी विघ्नों को नाश करने वाले विघ्नहर्ता हैं व सदैव मंगल करने वाले मंगलमूर्ति हैं।तो आइए भगवान गणेश की पूजा अर्चना करके प्रसन्न करें और अपने मनोवांछित फलों की प्राप्ति करें।
आप सभी को वैनायकी श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं

सौरभ दुबे (Astro Consultant)
*काशी/बनारस/वाराणसी*
*वाट्सएप-9198818164*

 

On Sun, Aug 25, 2024, 11:52 AM ज्योतिष परामर्श <saurabhsd5688@gmail.com> wrote:

भारतीय शिक्षा को रसातल में पहुँचाने की शुरुआत तो नेहरु ने की थी

भारतीय शिक्षा का विकृतीकरण नेहरू की एक मुख्य देन है. आइए इसपर विचार करें…
नेहरु के शिक्षा मंत्री –
11 नवम्बर 1888 को पैदा हुए मक्का में, वालिद का नाम था ” मोहम्मद खैरुद्दीन” और अम्मी मदीना (अरब) की थीं। नाना शेख मोहम्मद ज़ैर वत्री ,मदीना के बहुत बड़े विद्वान थे। मौलाना आज़ाद अफग़ान उलेमाओं के ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे जो बाबर के समय हेरात से भारत आए थे। ये सज्जन जब दो साल के थे तो इनके वालिद कलकत्ता आ गए। सब कुछ घर में पढ़ा और कभी स्कूल कॉलेज नहीं गए। बहुत ज़हीन मुसलमान थे। इतने ज़हीन कि इन्हे मृत्युपर्यन्त “भारत रत्न ” से भी नवाज़ा गया। इतने काबिल कि कभी स्कूल कॉलेज का मुंह नहीं देखा और बना दिए गए भारत के पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री।
इस शख्स का नाम था “मौलाना अबुल कलम आज़ाद “।
इन्होने इस बात का ध्यान रखा कि विद्यालय हो या विश्वविद्यालय कहीं भी इस्लामिक अत्याचार को ना पढ़ाया जाए. इन्होने भारत के इतिहास को ही नहीं अन्य पुस्तकों को भी इस तरह लिखवाया कि उनमे भारत के गौरवशाली अतीत की कोई बात ना आए. आज भी इतिहास का विद्यार्थी भारत के अतीत को गलत ढंग से समझता है।
हमारे विश्वविद्यालयों में – गुरु तेग बहादुर, गुरु गोबिंद सिंह, बन्दा बैरागी, हरी सिंह नलवा, राजा सुहेल देव पासी, दुर्गा दास राठौर के बारे में कुछ नहीं बताया जाता..
आज की तारीख में इतिहास हैं। 1 ) हिन्दू सदैव असहिष्णु थे 2) मुस्लिम इतिहास की साम्प्रदायिकता को सहानुभूति की नज़र से देखा जाये।
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भारतीय संस्कृति की रीढ़ की हड्डी तोड़ने तथा लम्बे समय तक भारत पर राज करने के लिए 1835 में ब्रिटिश संसद में भारतीय शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त करने के लिए मैकाले ने क्या रणनीति सुझायी थी तथा उसी के तहत Indian Education Act- 1858 लागु कर दिया गया।
अंग्रेज़ों ने ” Aryan Invasion Theory” द्वारा भारतीय इतिहास को इसलिए इतना तोडा मरोड़ा कि भारतियों कि नज़र में उनकी संस्कृति निकृष्ट नज़र आये और आने वाली पीढ़ियां यही समझें कि अँगरेज़ बहुत उत्कृष्ट प्रशासक थे।
आज जो पढाया जा रहा है उसका सार है –
1) हिन्दू आर्यों की संतान हैं और वे भारत के रहने वाले नहीं हैं। वे कहीं बाहर से आये हैं और यहाँ के आदिवासियों को मार मार कर तथा उनको जंगलों में भगाकर उनके नगरों और सुन्दर हरे-भरे मैदानों में स्वयं रहते हैं।
2) हिन्दुओं के देवी देवता राम, कृष्ण आदि की बातें झूठे किस्से कहानियां हैं। हिन्दू महामूर्ख और अनपढ़ हैं।
3) हिन्दुओं का कोई इतिहास नहीं है और यह इतिहास अशोक के काल से आरम्भ होता है।
4) हमारे पूर्वज जातिवादी थे. मानवता तो उनमे थी ही नहीं..
5) वेद, जो हिन्दुओं की सर्व मान्य पूज्य पुस्तकें हैं ,गड़रियों के गीतों से भरी पड़ी हैं।
6) हिन्दू सदा से दास रहे हैं –कभी शकों के, कभी हूणों के, कभी कुषाणों के और कभी पठानों तुर्कों और मुगलों के।
7) रामायण तथा महाभारत काल्पनिक किस्से कहानियां हैं।
15 अगस्त 1947, को आज़ादी मिली, क्या बदला ????? रंगमंच से सिर्फ अंग्रेज़ बदले बाकि सब तो वही चला। अंग्रेज़ गए तो सत्ता उन्ही की मानसिकता को पोषित करने वाली कांग्रेस और नेहरू के हाथ में आ गयी। नेहरू के कृत्यों पर तो किताबें लिखी जा चुकी हैं पर सार यही है की वो धर्मनिरपेक्ष कम और मुस्लिम हितैषी ज्यादा था। न मैकाले की शिक्षा नीति बदली और न ही शिक्षा प्रणाली।
शिक्षा प्रणाली जस की तस चल रही है और इसका श्रेय स्वतंत्र भारत के प्रथम और दस वर्षों (1947-58) तक रहे शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलम आज़ाद को दे ही देना चाहिए बाकि जो कसर बची थी वो नेहरू की बिटिया इन्दिरा गाँधी ने तो आपातकाल में विद्यालयों में पढ़ाया जाने वाला इतिहास भी बदल कर पूरी कर दी ।
जिस आज़ादी के समय भारत की 18.73% जनता साक्षर थी उस भारत के प्रधानमंत्री ने अपना पहला भाषण “tryst With Destiny” अंग्रेजी में दिया था आज का युवा भी यही मानता है कि यदि अंग्रेजी न होती तो भारत इतनी तरक्की नहीं कर पाता। और हम यह सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि पता नहीं जर्मनी, जापान,चीन इजराइल ने अपनी मातृभाषाओं में इतनी तरक्की कैसे कर ली।
आज तक हम इससे उबर नही सके हैं. 2018 में NCERT की वे किताबें हैं जो 2005 का संस्करण है–
यह पढ़ाया जा रहा है विद्यार्थियों को —
ICSE एक सरकारी परीक्षा संस्थान है जो CBSE की तरह पूरे भारत में मान्य है. संयोग से इसकी 2016 की इतिहास की पुस्तकें देखी.
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नमूना देखें —
कक्षा 6 –
1-
इतिहास की घटनाओं के समय का माप केवल ईसा के जन्म से पूर्व (BC बिफोर क्राईस्ट) या ईसा के बाद (AC आफ्टर क्राईस्ट) ! जैसे भारत का तो कोई समय था ही नहीं ?
2-
सिंधु घाटी में एक महान सभ्यता अस्तित्व में थी, जिसे आक्रान्ता आर्यों ने तहस नहस कर दिया।
३-
आक्रमण के बाद आर्य भ्रमित थे कि वे अपने वेदों के साथ यहाँ बसें या यहाँ से चले जाएँ ।
4- उसके बाद सम्राट अशोक आते हैं है !! हर जगह बौद्ध धर्म का उल्लेख । उस समय तक मानो हिन्दू थे ही नहीं !
5-
गुप्तकाल। मानो समुद्रगुप्त पहला हिंदू शासक हो । क्योंकि वह सहिष्णु था और वह भी अपवादस्वरुप । पल्लव, चोल, चेर या तो वैष्णव थे अथवा शैव, हिन्दू नहीं । पूरी किताब में हिंदुओं का उल्लेख सिर्फ तीन बार ।
6-
मुखपृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक छठवीं क्लास के आईसीएसई के इतिहास में हिन्दू कहीं मौजूद ही नहीं है। कुछ है तो आर्यों द्वारा किया गया सभ्यताओं का सफाया तथा बौद्धों पर जाति थोपने का उल्लेख।
इन 40 पृष्ठों में 5000 से अधिक वर्षों पुरानी धार्मिक सभ्यता का उल्लेख तक नहीं है । पूरे 300 वर्ष के राजवंशों का इतिहास एक पैरा में निबटा दिया गया ।
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कक्षा 7 संक्षेप में —
कक्षा 7 की इतिहास की पुस्तक में ईसामसीह का प्रचार है और वह केवल इसी के लिए ही लिखी गई है ।
दुनिया भर में इस्लाम का खूनी विजय अभियान, अरबों द्वारा किया गया “एकीकरण” का प्रयास था, जिसने अनेक लेखक, विचारक और वैज्ञानिक दिए ।
तुर्की के आक्रमण से पहले भारत क्या था, इसका उल्लेख केवल दो पृष्ठों में हैं । जबकि हर क्रूर मुग़ल बादशाह पर पूरा अध्याय है। भारत पर अरब आक्रमण एक अच्छी बात थी, उन्होंने हमें सांस्कृतिक पहचान दी । महमूद लुटने इसलिए आया क्योंकि उसे पैसे की जरूरत थी !
जिस कट्टरपंथी कुतबुद्दीन ऐबक ने 27 मंदिरों को नष्ट कर कुतुब मीनार बनबाई वह एक दयालु और उदार आदमी था !
बाबर ने अपने शासनकाल में धार्मिक सहिष्णुता की प्रवृत्ति शुरू की !
औरंगजेब एक रूढ़िवादी और भगवान से डरने वाला मुस्लिम संत था जो अपने जीवन यापन के लिए टोपियां सिलता था। वह अदूरदर्शी शासक अवश्य था ।
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कक्षा 8 से 10 तक संक्षेप में
संक्षेप में बताया जाता है कि मराठा साम्राज्य अस्तित्व में आने के पूर्व ही समाप्त हो गया ।
यहाँ भी ईसाई उत्पीड़न घुसाने का प्रयास, बाइबल पढ़ने वाले गुलामों को निर्दयतापूर्वक दंडित किया जाता था !
सिखाया जाता है कि गोरों का राष्ट्रवाद एक अच्छी बात है, किन्तु जब भारतीय राष्ट्रवादी हों तो वे अतिवादी हैं ।
जाटों का उल्लेख महज सात लाइनों में, और राजपूतों का 12 में मिलता है ! पंजाब का उल्लेख सीधे गुरु गोबिंद सिंह से शुरू होता है ।
उम्मीद के मुताबिक़ हैदर अली और टीपू सुल्तान को बेहतर दिखाया गया है । मैसूर किंगडम की शुरूआत हैदर अली से !
मराठाओं को बस एक पेज में लपेट दिया, शिवाजी को महज एक पंक्ति में । संभाजी कौन ? तो बस एक कमजोर उत्तराधिकारी!
मराठों सिर्फ एक क्षेत्रीय शक्ति थे, जबकि मुगलों और ब्रिटिश साम्राज्य थे।
मुगल साम्राज्य के पतन से अराजकता और अव्यवस्था फैली !
जिन महाराजा रणजीत सिंह का साम्राज्य पंजाब, कश्मीर और पार तक था, उनका उल्लेख केवल 4 लाइनों में हो गया ।
कसाई टीपू को मैसूर का टाइगर बताया गया गया । एक प्रबुद्ध शासक जो अपने समय से आगे का विचार करता था!
तो औरंगजेब एक संत था और कुतबुद्दीन ऐबक एक दयालु, उदार व्यक्ति ! और टीपू तो निश्चित रूप से धर्मनिरपेक्ष, उदार और सहिष्णु था ही !!
मुरदान खान और खलील जैसे ठग देवी काली के उपासक थे जिन्होंने 2 लाख से अधिक लोगों की हत्याएं कीं !!
भारतीय समाज गड्ढे में पड़ा हुआ था इसलिए दमनकारी था। 1843 में अंग्रेजों ने यहाँ गुलामी को अवैध घोषित किया ! (है ना हैरत की बात ? उन्होंने भारत में गुलामी को अवैध घोषित किया अफ्रीका में नहीं !!)
भारतीय शिक्षा? मिशनरियों के आने के पूर्व केवल कुछ गिने चुने शिक्षक अपने घर में ही पढाया करते थे।
जबकि सचाई यह है कि अकेले बिहार में ब्रिटेन से कहीं ज्यादा स्कूल और विश्वविद्यालय थे । बिटिश ने अपनी स्वयं की शिक्षा प्रणाली भारत के अनुसार बनाई ।
हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने वाली सुधारक केवल एनी बेसेंट थीं !!
संयोग से एक सच्चाई जरूर सामने आ गई, वह यह कि ह्यूम ने कांग्रेस का गठन 1857 जैसी घटनाएँ रोकने के लिए किया था, और यह काम कांग्रेस ने बहुत अच्छी तरह से किया भी !
युवाओं ने अभिनव भारत जैसी गुप्त गतिविधियों का संचालन किया, जिन्होंने भारत के बाहर काम किया, यहाँ भी वीर सावरकर का उल्लेख नहीं।
क्रांतिकारी आंदोलन का उल्लेख केवल एक पेज से भी कम में किया गया है। क्योंकि असली नायकों (गांधी, नेहरू) को ज्यादा स्थान की जरूरत है ।
नेहरू – गांधी को स्वतंत्रता का पूरा श्रेय दिया गया है !
गांधी-इरविन समझौते को इतना महत्व दिया गया है कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का बलिदान पूरी तरह गौण हो गया है ।
नेताजी और आजाद हिंद फौज का उल्लेख मात्र एक चौथाई पृष्ठ में मिलता है !
तो यह है हमारी आज की इतिहास शिक्षा का कच्चा चिट्ठा ! नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और उनकी सेना को एक चौथाई पेज, शिवाजी को एक लाइन, लेकिन चाचा जी का स्तवन भरपूर।
और हाँ क्रिकेट तो भूल ही गए । इस औपनिवेशिक खेल को पूरे दो पृष्ठ, आखिर बोस, भगत सिंह और मराठा साम्राज्य की तुलना में यह अधिक महत्वपूर्ण जो हैं।

उत्तराखण्ड में हो अवैध रोहिंग्याओं और मजारों से खतरा

श्यामपुर उत्तराखण्ड का एक सुंदर सा गाँव हैं। वहाँ सभी लोग सुख-शांति से अपना जीवन यापन कर रहे होते हैं। अचानक वहां गाँव के किनारे पर एक फ़क़ीर आकर मिट्टी का एक ढेर बनाता है उस पर चादर डालता है और फिर उसके बग़ल में एक झोपड़ी बनाकर रहने लग जाता है। अब श्यामपुर के लोग आते जाते लोगों को वह फ़क़ीर या मज़ार का ख़ादिम बहलाता-फुसलाता है और लोग वहाँ माथा टेकने लगते हैं। लोगों की श्रद्धा को बढ़वाकर वह ख़ादिम दूसरे चरण में भोले-भाले ग्रामीणों से कहता है कि वे अपने खेत में ही एक छोटे से कोने कहीं मज़ार बना देंगे तो वह आकर उस मज़ार पर नमाज़ पढ़कर उसे भी सिद्ध बना देगा। ख़ादिम के बहकावे में आकर वह ग्रामीण ऐसा ही करता है और अपने खेत में मज़ार बनाकर वहाँ प्रतिदिन दिया-बत्ती करने लग जाता है। लोगों का आना जाना बढ़ता है तो वहाँ एक दानपेटी रख दी जाती है। अब ख़ादिम हर सप्ताह आकर उस दानपेटी से राशि निकालकर ले जाता है। शनैः-शनैः वह ख़ादिम, उसी ग्रामीण के पैसों से मज़ार पर टिन डलवा देता है उसे पक्का निर्माण करवा देता है। इधर मज़ार पर लोगों का आना-जाना बढ़ता है उधर गाँव में कुछ और मुस्लिम परिवार आकर बसने लगते हैं और मज़ारें भी बढ़ने लगती है। अचानक गाँव में लव जिहाद की घटनाएँ बढ़ने लगती हैं। गाँव की लड़कियों मुस्लिम लड़कों के झाँसे में आकर अपना सर्वस्व उन्हें सौंपने लगती है। अब गाँव में कभी गर्भस्थ होने से, कभी इज्जत के डर से, कभी मज़ार के ख़ादिम के नाराज़ होने के डर से तो कभी बाहुबल के सहारे हिंदू लड़कियां मुस्लिम लड़कों से निकाह करने लगती हैं। कभी-कभी तो इस कार्य में हिंदू लड़कियों के परिवार भी दबाव में आकर सहमति देने लगते हैं।

इस कथा में केवल गाँव का नाम काल्पनिक है बाक़ी सब जो लिखा है वह उत्तराखण्ड के कई-कई ग्रामों की स्थिति का सच्चा कच्चा-चिट्ठा है। उत्तराखण्ड में लैंड जिहाद, लव जिहाद, मतांतरण, व्यापार जिहाद इसी प्रकार हज़ारों ग्रामों में अपने पैर पसार चुका है।

इस प्रकार की घटनाओं के बढ़ते जाने पर उत्तराखण्ड की पुष्कर सिंह धामी की सरकार इन घटनाओं का संज्ञान लेती है और स्थिति को समझती है। बात बहुत आगे बढ़ चुकी होती है किंतु पुष्कर सिंह इसे अपनी तेज कार्य योजना से रोकने का प्रयास कर रहे हैं। उत्तराखण्ड सरकार का बुलडोज़र चलने लगता है और ऐसी सैकड़ों नक़ली मज़ारों पर बुलडोज़र चलाकर मज़ारों को ध्वस्त करके मज़ार के आसपास क़ब्ज़ा की गई सैंकड़ों-हज़ारों एकड़ ज़मीन को भी इन ख़ादिमों से मुक्त कराता है।

अब शासन-प्रशासन के देखने में यह भी आता है कि शासकीय ही नहीं बल्कि निजी ज़मीन पर भी ये दिखावटी और अपराधी प्रकार के ख़ादिम मज़ारों के सहारे क़ब्ज़ा किए बैठे होते हैं। इन ज़मीनों के हिंदू जनजातीय स्वामी इन अपराधी ख़ादिमों के बहकावे में आकर, जिन्न-जिन्नात के प्रकोप के भय से अपनी ज़मीनें, पैसा, लड़कियां सब कुछ इन अपराधी ख़ादिमों को दे रहे होते हैं। पिछले दिनों देहरादून के समीप पछुवा नामक ग्राम में ऐसे दो प्रकरण देखने में आए थे, जब अवैध मजार को हटाने गये प्रशासन को हिंदू समाज के जनजातीय और अनुसूचित जाति के लोगों ने रोकने का प्रयास किया।

इन भोले-भाले हिंदू ग्रामीणों का कहना था कि ये मज़ारें तो उन्होंने स्वयं अपनी मन्नत पूर्ण होने पर बनवाई है। प्रशासन जब मामले की गहराई में गया तो ग्रामीणों ने बताया कि – उनको किसी कष्ट के निवारण के लिए ख़ादिम ने मजार पर बुलाया तो वे गये थे। इसके बाद वहाँ के ख़ादिम ने उन्हें बहला-फुसलाकर मन्नत करवा ली और उनसे कहा कि “आप की इच्छा पूरे होने पर चादर चढ़ाना और अपनी जमीन पर बाबा का मजार बनवा देना फिर आपको इतनी दूर यहाँ आने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी और मज़ार के कारण आपका खेत भी दोगुनी उपज देने लगेगा।” कहीं-कहीं तो इन अपराधी ख़ादिमों ने भोले-भाले ग्रामीणों से उनके मंदिरों को ही मज़ार में बदल देने और पूजा पद्धति को बदलने हेतु भयभीत करके तैयार करवा लिया था। कई स्थानों पर निजी ज़मीनों पर बनी इन मज़ारों के पास अन्य मुस्लिम परिवार मित्र बनकर बस जाते और इसके बाद सभी प्रकार के अपराध वहाँ होने लगते। भोले भाले जनजातीय और अनुसूचित जाति के हिंदू ग्रामीण अपनी ज़मीन और लड़कियों को अपने हाथों से छूटते हुए देखते और हाथ मलते ही रह जाते थे।

उत्तराखण्ड की पुलिस ने जब इन मज़ारों की जाँच की तो इसके पीछे एक संगठित गिरोह के सक्रिय होने की बात सामने आई।

यह गिरोह बेरोज़गार मुस्लिमों को ख़ादिमों के कपड़े पहनवाकर, थोड़ा-बहुत बोलने और झाड़ने फूंकने का प्रपंच सिखाकर लैंड जिहाद व लव जिहाद हेतु तैयार करवाकर इस प्रकार की घटनाएँ करवाता था और बड़ी मात्रा में आस्था के नाम पर लोगों से पैसा भी निकलवा लेता था। बड़ी संख्या में इन मज़ारों पर हिंदू बंधु जाने लगते और धन, संपत्ति, ज़ेवर, खाद्यान्न, फल आदि चढ़ाने लगते। इस चढ़ावे से फलते-फूलते वहाँ के ख़ादिम अपनी मज़ार की दूसरी-तीसरी-चौथी ब्रांच खोलते जाते थे। कालू शाह, भूरे शाह, बुल्ले शाह और न जाने कौन-कौन से शाहों के नाम पर पर ये मज़ारें बनाई जाती और कमाई होने पर यहाँ के अपराधी ख़ादिम बग़ल के गाँव में जाकर अपनी फ़्रेंचायजी जैसी एक और मज़ार बनवा लेते थे।

उत्तराखण्ड की पुष्कर सिंह सरकार पर आरोप लग रहें है कि वह दुराग्रह पूर्वक मज़ारों पर बुलडोज़र चला रही है, किंतु सच्चाई कुछ और ही है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के 20 जून 2009 के निर्णय के अनुसार कोई भी धार्मिक स्थल का निर्माण, पुनर्निर्माण या जीर्णोद्धार बिना जिला कलेक्टर की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता है। भूमि के दस्तावेज की प्रति के साथ कलेक्टर को आवेदन देकर और अनुमति लेकर ही यह कार्य किया जा सकता है।

पुष्कर सिंह धामी ने इसी न्यायलीन आदेश का पालन करते हुए तीन सौ से अधिक अवैध मज़ारों को ध्वस्त किया है। ऐसे पचासों मंदिरों को और एक गुरुद्वारे को भी धामी सरकार ने तोड़ दिया है और शासन की पाँच हज़ार एकड़ ज़मीन को ‘लैंड जिहाद’ से मुक्त कराया है।

उत्तराखण्ड राज्य सरकार ने मई 2023 तक कुल मिलाकर 3,793 ऐसे क्षेत्रों की पहचान की है जहां मज़ारों के माध्यम से लैंड जिहाद किया गया है। नैनीताल आश्चर्यजनक रूप से इस कुचक्र का शीर्ष है जहां चौदह सौ तैतीस स्थान और हरिद्वार भी जहां साढ़े ग्यारह सौ स्थानों पर अतिक्रमण करके मज़ारों के सहारे क़ब्ज़े किए गए थे। और भी ज़िलों में यह कहानी बड़े स्तर पर सामने आई है। उत्तराखण्ड में ऐसे अवैध ढाँचों के सहारे लगभग बारह हज़ार हेक्टेयर भूमि अब भी इन कथित ख़ादिमों के पास है, जिसे मुक्त कराया जाना है।

विशेष बात यह है कि उत्तराखंड में इस अभियान को सांप्रदायिक कहकर पुष्कर सिंह सरकार के विरुद्ध वातावरण तैयार किया जा रहा है। मुस्लिम समाज का प्रबुद्ध, धनाड्य वर्ग व मज़हबी नेता भी मज़ारों के माध्यम से अपराध कर रहे इन तथाकथित ख़ादिमों की आलोचना नहीं कर रहें है। मुस्लिम समाज के प्रबुद्ध व अमनपसंद नागरिकों, नेताओं व मज़हबी नेताओं को इस दिशा में आगे आना चाहिये व मज़हब के नाम पर अपराध कर रहे इन लोगों के विरुद्ध फ़तवा जारी करवाना चाहिये। इसके स्थान पर, उत्तराखण्ड का मुस्लिम समाज इन अपराधियों के पक्ष में बन्द, धरने, प्रदर्शन व जुलूस निकालने में रुचि ले रहा है, यह दुखद स्थिति है।

(प्रवीण गुगनानी, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में राजभाषा सलाहकार हैं)
संपर्क 942500227

दिसंबर में मुंबई में होगा वर्ल्ड हिदू इकॉनामिक फोरम का आयोजन

इस साल विश्व हिंदू आर्थिक मंच मुंबई में होगा। तीन दिन का यह कार्यक्रम 13 से 15 दिसंबर तक जियो सेंटर में  आयोजित होगा, जिसमें 1000 से ज्यादा प्रतिनिधि भाग लेंगे। इस बार का विषय ‘भविष्य में सोचें, भविष्य के लिए और विकसित भारत’ रखा गया है।

वर्ल्ड हिदू इकॉनामिक फोरम के संस्थापक स्वामी विज्ञानानंद ने बताया कि    इस साल 13 से 15 दिसंबत तक मुंबई में विश्व हिंदू आर्थिक मंच (WHEF)का आयोजन किया जाएगा। WHEF में इस साल 1000 से ज्यादा प्रतिनिधि भाग लेने आएंगे। इस समागम में भारत के शीर्ष कॉर्पोरेट नेता और वित्तीय/आर्थिक विशेषज्ञ आर्थिक विकास से संबंधित प्रमुख मुद्दों पर विचार-विमर्श करेंगे। तीन दिन तक चलने वाले इस सम्मेलन और एक्सपो का विषय ‘भविष्य में सोचें, भविष्य के लिए और विकसित भारत’ है।

उन्होंंने कहा कि  जो  समाज जो प्रगति करना चाहता है और सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहता है, उसे चार प्रमुख क्षेत्रों अर्थव्यवस्था, शिक्षा, मीडिया और राजनीति पर ध्यान केंद्रित करना होगा। विश्व हिंदू आर्थिक मंच (WHEF) एक ऐसा मंच है जहाँ हम अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करते हैं। एक समाज के रूप में, ऐतिहासिक रूप से, भारत दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद का 33% उत्पादन कर रहा था। ब्रिटिश काल के दौरान हमने अपनी सारी आर्थिक ताकत खो दी। एक बार जब आप आर्थिक रूप से गरीब हो जाते हैं, तो हैजा, मलेरिया आदि जैसी सभी बीमारियाँ फैलने लगती हैं। स्वतंत्रता के बाद हमने नेहरूवादी आर्थिक मॉडल को अपनाया और हम द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के युग में विकास के अवसर से चूक गए। हर दूसरा देश अमीर और समृद्ध हो गया। लोग अमेरिका क्यों जाते हैं इसलिए नहीं कि यह बहुत महान है, बल्कि इसलिए कि यह आर्थिक रूप से समृद्ध है। हमें इस पर ध्यान देने की जरूरत है।

संवादात्मक सत्र दुनिया भर में हिंदू समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों और अवसरों पर विचार-विमर्श करने और इन विचार-विमर्शों के आधार पर ठोस समाधान खोजने का अवसर प्रदान करेंगे। ये सत्र सातों सम्मेलनों के नेतृत्व के बीच सहयोग के रास्ते भी खोलेंगे।

विश्व हिंदू आर्थिक मंच के पिछले संस्करण में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ,केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, तुलसी गब्बार्ड, बिटिश गृह सचिव प्रीति पटेल, पिरामल ग्रुप के अजय पिराम, मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम आदि शामिल हुए थे। इस साल देश के कई राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्य मंत्री सहित टॉप इंडस्ट्रियलिस्ट, टेक्नोलजी और फाइनांस कंपनियों के अध्यक्ष, मैनेजिंग डायरेक्टर्स और सीईओ को मुंबई में WHEF 2024 में आमंत्रित किया गया है।

वर्ल्ड हिदू इकॉनामिक फोरम  में व्याख्यान, पैनल डिसकशन, वर्कशॉप और एक्सपो सहित विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जाएगा, जिसका दृष्टिकोण ‘भविष्य में सोचें, भविष्य के लिए और विकसित भारत’ है। वैश्विक हिंदू समुदाय के साझा मूल्यों और सामूहिक ताकत में निहित, WHEF आर्थिक विकास और सामाजिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।

उन्होंने बताया कि वर्ल्ड हिदू इकॉनामिक फोरम  2024 की शुरुआत 13 दिसंबर को एक भव्य उद्घाटन सत्र से होगी, जिसमें मुख्यमंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों और राज्य मंत्रियों सहित विशिष्ट अतिथि मौजूद रहेंगे। इस अवसर पर सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के शीर्ष वित्तीय विशेषज्ञों के साथ-साथ व्यापार, उद्योग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों के नेताओं के साथ-साथ अन्य उल्लेखनीय उद्योग और सरकारी हस्तियों को मुख्य वक्ता और पैनलिस्ट के रूप में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है।

उन्होंने कहा कि  ‘हांगकांग, नई दिल्ली, लंदन, लॉस एंजिल्स, शिकागो, बैंकॉक और दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रीय आर्थिक केंद्रों में सफल वार्षिक मंचों के बाद, WHEF इस दिसंबर मुंबई में मेजबानी करने के लिए तैयार है।’ इन दिनों में विभिन्न उद्योगों के अर्थशास्त्रियों, अध्यक्षों, प्रबंध निदेशकों और सीईओ सहित प्रतिष्ठित विशेषज्ञ भाग लेंगे। प्रतिनिधित्व किए गए क्षेत्रों में रक्षा और एयरोस्पेस, निर्माण, स्टील उद्योग, सीमेंट उद्योग, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रिक वाहन और मोबिलिटी, परिवहन, कोयला, खनिज और खनन, पारंपरिक बिजली उत्पादन, प्रसारण और वितरण, नवीकरणीय ऊर्जा, तेल और गैस, फार्मास्यूटिकल्स, स्वास्थ्य और कल्याण, चिकित्सा उपकरण प्रौद्योगिकी, रसायन और उर्वरक, कृषि, बैंकिंग और वित्त, बीमा, स्टार्टअप और पारिस्थितिक तंत्र, प्रौद्योगिकी, दूरसंचार, इलेक्ट्रॉनिक्स, फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी), फिल्म और टेलीविजन और आतिथ्य और पर्यटन शामिल हैं।

कार्यक्रम में महाराष्ट्र, असम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में क्षेत्रीय अवसरों पर अतिरिक्त प्लेनरी सेशन होंगे। मंच में तीन ग्रैंड पैनल सत्र, छह प्लेनरी सत्र और छह हॉल में चौबीस समांतर सत्र होंगे। लगभग 1,000 प्रतिभागियों के इन सत्रों में भाग लेने की उम्मीद है।

स्वामी विज्ञानानंद जी का मानना है कि हिंदुओं को स्वीकार्य और सम्माननीय बनाने के लिए हिंदुओं की अर्थव्यवस्था पर काम करना जरूरी है.  हिंदुत्व और हिंदुओं को बनाए रखने के लिए हिंदू अर्थव्यवस्था पर काम करना बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि हमें हिंदुओं को स्वीकार्य और सम्माननीय बनाने के लिए मिलकर काम करना होगा।   जब तक हिंदू अर्थव्यवस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम नहीं करती, भारत और हिंदू वैश्विक पटल पर प्रभावशाली नहीं बन सकते हैं। इस सम्मेलन में  अर्थव्यवस्था, शिक्षा, मीडिया, राजनीति के क्षेत्र में  वैश्विक स्तर पर  हिंदू अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावी बनाया जाए इस पर चर्चा होगी।

स्वामी विज्ञानानंद एवँ वर्ल्ड हिंदू इकॉनामिक फोरम के बारे में

मंच की स्थापना श्री स्वामी विज्ञानानंद ने की है, जो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर के पूर्व छात्र हैं । वे कहते हैं, “हम अब 21वीं सदी में रह रहे हैं, जो हवाई जहाज, इंटरनेट, मोबाइल और अन्य आधुनिक सुविधाओं जैसी सभी उन्नत तकनीकों से लैस है। जब हम अतीत में जाकर अपने पूर्वजों द्वारा झेले गए अत्याचार, विनाश, दमन और अपमान के युग को याद करते हैं, तो हमें इस तथ्य से प्रेरणा लेनी चाहिए कि जब हमारे पूर्वजों ने ऐसे कठिन समय और परिस्थितियों में काम किया और जीवित रहे, तो हमें इन तकनीकी रूप से उन्नत समय में उत्कृष्टता हासिल करने से क्या रोकता है?”

विश्व हिंदू आर्थिक मंच का तीसरा वार्षिक सम्मेलन नई दिल्ली में आयोजित किया गया जिसका विषय था “बढ़ती अर्थव्यवस्था, समृद्ध अर्थव्यवस्था”। WHEF 2014, 21-23 नवंबर 2014 को नई दिल्ली में आयोजित होने वाले पहले विश्व हिंदू कांग्रेस के 7 समानांतर सम्मेलनों में से एक था। 3 दिवसीय कार्यक्रम में 53 देशों के लगभग 1800 प्रतिनिधि शामिल हुए। समाचार पत्रों के अनुसार, मंत्रियों सहित शीर्ष सरकारी अधिकारियों ने इस कार्यक्रम को संबोधित किया और इस आयोजन के लिए पूर्ण समर्थन दिखाया [ 5 ]

प्रमुख वक्ताओं में दलाई लामा , स्वामी दयानंद सरस्वती, डॉ. मोहनराव भागवत , सरसंघचालक, माननीय मंत्री: श्री नितिन गडकरी , सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री, श्रीमती स्मृति ईरानी , मानव संसाधन विकास मंत्री, श्रीमती निर्मला सीतारमण ,  वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री, डॉ. अश्वनी सिंह, वित्त मंत्री, गुयाना गणराज्य; प्रख्यात वैज्ञानिक: जी.माधवन नायर , डॉ. विजय भटकर , प्रमुख शिक्षाविद्: प्रो. एसबी मजूमदार, डॉ. जी विश्वनाथन, प्रो. कपिल कपूर, फिल्म निर्माता प्रियदर्शन और मेजर रवि , दक्षिण की लोकप्रिय फिल्म अभिनेत्री श्रीमती सुकन्या रमेश भी शामिल हुईं और उन्होंने कार्यक्रम में बात की।

बैंकॉक 2013
सम्मेलन का उद्घाटन श्री डी. देवदास, सदस्य आयोजन समिति WHEF बैंकॉक, 2013; श्री सुशील सराफ, अध्यक्ष, आयोजन समिति WHEF 2013, बैंकॉक; श्री अरुण कुमार बजाज, संयोजक, WHEF संचालन समिति; डॉ. गौतम सेन, सदस्य, WHEF संचालन समिति, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस के सेवानिवृत्त व्याख्याता; महामहिम श्री अनिल वाधवा, थाईलैंड में भारत के राजदूत; महामहिम डॉ. ओलरन चैप्रावत, थाईलैंड व्यापार प्रतिनिधि के अध्यक्ष और थाईलैंड के पूर्व उप प्रधान मंत्री द्वारा किया गया। महामहिम डॉ. ओलरन चैप्रावत ने थाईलैंड के प्रधान मंत्री और रॉयल थाई सरकार की ओर से सभी प्रतिनिधियों का स्वागत किया।

7 अलग-अलग सत्र आयोजित किए गए। सत्रों की अध्यक्षता प्रो. (डॉ.) आर. वैद्यनाथन, श्री सुरेश प्रभु , प्रो. (डॉ.) गुना मगेसन जैसे प्रतिभाशाली लोगों ने की। एक सत्र की अध्यक्षता युवा और जीवंत कृतिका बजाज ने की। इसने WHEF और इसकी कई गतिविधियों में युवाओं की अधिक भागीदारी को रेखांकित किया। इस तरह के एक अन्य सत्र का संचालन लिजा भंसाली, प्रीतिका शर्मा और नितिका शर्मा [ 8 ] ने किया, जो आज के युवाओं में उद्यमशीलता पर केंद्रित था। अमित श्रीवास्तव ने २०१२ में बाली में आयोजित विश्व हिंदू और छात्र सम्मेलन में रिपोर्ट प्रस्तुत की। श्री एसवी आनंद ने पुस्तक के विमोचन के अवसर पर श्री एल. गोपाकुमार और श्री विनोद कुमार को ‘ग्लोबल हैंडबुक ऑन फ्लोरिंग’ पुस्तक की पहली प्रति सौंपी।

हांगकांग 2012
दक्षिण पूर्व एशिया के लिए विश्व हिंदू आर्थिक मंच का आयोजन वर्ष 2012 में हांगकांग में किया गया था। यूरोप, एशिया, अफ्रीका और प्रशांत क्षेत्र के विभिन्न देशों से 250 से अधिक प्रमुख व्यवसायी, उद्योगपति, अर्थशास्त्री, बैंकर, अंतर्राष्ट्रीय व्यापारी और व्यापार संघ के नेताओं ने बैठक में भाग लिया। चार पैनल, अर्थात्: सफल मॉडल: वैश्विक बाज़ार में छोटे और मध्यम आकार के उद्यम को सफल बनाना, हिंदू अर्थव्यवस्था का विकास, वैश्विक अर्थव्यवस्था में मेगा रुझान और भारत की अर्थव्यवस्था की संभावनाएं और सफल व्यावसायिक उद्यम के लिए मंत्र, अर्थव्यवस्था और व्यवसाय की बारीकियों पर चर्चा करने के लिए डिज़ाइन किए गए थे। सम्मेलन का उद्घाटन माननीय श्री अनिल कुमार बच्चू, डॉ सुब्रमण्यम स्वामी , डॉ गौतम सेन, डॉ जी माधवन नायर, प्रो (डॉ) आर वैद्यनाथन, डॉ विजय पी भटकर , श्री सुभाष ठाकर, डॉ दिलीप एन कुलकर्णी द्वारा किया गया। प्रगतिशील अर्थव्यवस्था के लिए बुनियादी ढांचे, परिवहन और प्राकृतिक संसाधनों, वैश्विक चुनौतियों और अवसरों, एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी और आर्थिक अवसरों के विकास, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास, और सामाजिक उद्यमिता से लेकर सभी महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई। चर्चा में किसान के साथ-साथ उद्योगपति के कल्याण पर भी चर्चा की गई। पारंपरिक अर्थव्यवस्था की जड़ों को वापस लौटाने की तत्काल आवश्यकता पर सर्वसम्मति थी।

यूरोप के लिए क्षेत्रीय मंच – 2012

विश्व हिंदू आर्थिक मंच – यूरोप के लिए क्षेत्रीय मंच 4 नवंबर 2012 को लंदन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री में आयोजित किया गया। यह यूरोपीय व्यापार केंद्र के केंद्र में आयोजित किया गया था। इस मंच में कई प्रतिभाशाली युवा हिंदू पेशेवरों और व्यापारियों के साथ-साथ कई प्रमुख हिंदू पेशेवर और व्यवसायी भी शामिल हुए। श्री सुभाष ठाकर (WHYC संचालन समिति के सदस्य), और श्री अनिल पुरी (संचालन समिति के सदस्य), प्रो. (डॉ.) आर. वैद्यनाथन, डॉ. गौतम सेन, एसवी आनंद, श्री अरुण बजाज और श्री अनिल पुरी ने सम्मेलन में अपने विचार साझा किए।

दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया के लिए क्षेत्रीय मंच – 2013
विश्व हिंदू आर्थिक मंच – दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया के लिए क्षेत्रीय मंच का आयोजन 6-7 जनवरी 2013 को मलेशिया के बर्जाया टाइम्स स्क्वायर होटल में किया गया। आसियान देशों, भारत, ब्रिटेन और फिजी के प्रतिनिधियों ने इस सम्मेलन में भाग लिया। वक्ताओं में श्री दातो जे. जेगाथेसन, डॉ. गौतम सेन, श्री एसवी आनंद, श्री अरुण बजाज, प्रो. दातुक वी. नादराजन, सुश्री सुशीला मेनन, श्री एमएस सुब्रमण्यम। श्रीलंका में हिंदू अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर एक विशेष सत्र आयोजित किया गया। सत्र का आयोजन श्री दातुक बी सहदेवन, श्री वीके रेगु और अन्य स्वयंसेवकों द्वारा किया गया था।

क्षेत्रीय मंच – उत्तरी अमेरिका – 2013
उत्तरी अमेरिका के लिए विश्व हिंदू आर्थिक मंच 28 अप्रैल 2013 को डलास, टेक्सास में आयोजित किया गया, जिसे दक्षिणी अमेरिका का वित्तीय केंद्र माना जाता है। यह उत्तरी अमेरिका में अपनी तरह का पहला मंच था, जहाँ विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों से हिंदू उद्यमी एक मंच पर एकत्रित हुए। टेक्सास और अमेरिका के अन्य हिस्सों से कई प्रमुख हिंदू व्यवसायी और उद्यम पूंजीपति इस मंच पर मौजूद थे। इस अवसर पर श्री एसवी आनंद, श्री शशि केजरीवाल, श्री नितिन आनंद, श्री दयाकर पुष्कर, डॉ. प्रकाशराव वेलागपुडी और श्री राहुल चंद्रा ने अपने विचार साझा किए।

डलास स्थित विश्व हिंदू फाउंडेशन की टीम वर्चुअल मीटिंग के ज़रिए शामिल हुई और कनाडा स्थित व्यवसायियों को विश्व हिंदू आर्थिक मंच के साथ एकीकृत करने के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। WHEF उत्तरी अमेरिकी क्षेत्रीय अध्याय में अधिक से अधिक हिंदू उद्यमियों को अपने वैश्विक दायरे में विस्तारित करने और एकीकृत करने की उम्मीद करता है और निकट भविष्य में अमेरिका और कनाडा में और अधिक सम्मेलन आयोजित करने की योजना बना रहा है।

क्षेत्रीय मंच – प्रशांत – 2013
प्रशांत क्षेत्र (ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिजी और ओशिनिया) के लिए विश्व हिंदू आर्थिक मंच का आयोजन 4 मई 2013 को फिजी के शेरेटन होटल नाडी में किया गया, जिसका विषय था “दक्षिण प्रशांत समुदाय को समृद्ध बनाना”। [ 11 ] इस मंच में फिजी, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के कई प्रमुख हिंदू व्यापारियों ने भाग लिया। मंच का उद्घाटन फिजी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. नील शर्मा ने किया। फिजी में भारत के उच्चायुक्त श्री विनोद कुमार ने भारत और फिजी के बीच व्यापार बढ़ाने की क्षमता पर जोर दिया और WHEF के प्रयास की सराहना की। श्री जय दयाल ने प्रशांत हिंदू समुदाय को हर तरह से समृद्ध बनाने पर जोर दिया। इस मंच पर शोधपत्र प्रस्तुत करने वाले अन्य प्रमुख लोगों में फिजी राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गणेश चंद, फिजी वाणिज्य आयोग के अध्यक्ष डॉ. महेंद्र रेड्डी, ओशिनिया विकास नेटवर्क के अध्यक्ष और दक्षिण प्रशांत विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर प्रो. बिमन प्रसाद शामिल थे।

मंच पर निम्नलिखित विषयों पर कार्यशालाएं आयोजित की गईं:
युवा हिंदू बिजनेस लीडर्स
महिलाओं में उद्यमशीलता का विकास करना।
श्री नोएल लाल और प्रोफेसर गुना मगेसन ने इन सत्रों की अध्यक्षता की।

क्षेत्रीय मंच – दक्षिण अफ्रीका – 2014
दक्षिण अफ्रीका के लिए विश्व हिंदू आर्थिक मंच का आयोजन लोटस चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा किया गया। सम्मेलन का विषय था अफ्रीका को समृद्ध बनाना। इस कार्यक्रम में दक्षिण अफ्रीका और पड़ोसी देशों के कई प्रतिष्ठित व्यवसायी और बुद्धिजीवी शामिल हुए।आयोजन के वक्ता श्री एसवी आनंद, सीएलआर थे। जेम्स नक्सुमालो, एमईसी माइकल माबुयाखुलु , श्री आकाश सिंह, श्री। अशोक चौगुले, श्री. सुजीत एस नायर, एफआरएसए, श्री. अरविंदा राव, श्री एमके अंगजन, सुश्री प्रशीन सिंह, सुश्री फ़ौज़िया पीर, डॉ. सुरेन पिल्ले, सुश्री सुलोश पिल्ले, और डॉ. अनिल सुकलाल। सदस्यों ने अफ्रीका में व्यापार के अवसरों पर चर्चा की तथा बताया कि इसका उपयोग समग्र अफ्रीका को समृद्ध बनाने के लिए कैसे किया जा सकता है।

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हजारों वर्ष पहले सूर्य के रहस्यों को उजागर करने वाला ग्रंथ सूर्य सिध्दांत

सूर्य सिद्धांत प्राचीन भारत का एक महत्वपूर्ण खगोलीय ग्रंथ है, जिसे भारतीय खगोलशास्त्र और गणित के क्षेत्र में एक अद्वितीय कृति माना जाता है। इस ग्रंथ में पृथ्वी, सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों और तारों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। आइए, इस ग्रंथ के मुख्य पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करें:

1. रचना और समयकाल:

  • सूर्य सिद्धांत का सटीक समयकाल निर्धारित करना मुश्किल है, लेकिन माना जाता है कि यह ग्रंथ कम से कम 1500 साल पुराना है।
  • इसे कई विद्वानों द्वारा समय-समय पर संशोधित किया गया है, और इसके वर्तमान स्वरूप में कुछ तत्व 4वीं और 5वीं शताब्दी के आसपास के हो सकते हैं।

2. लेखक और परंपरा:

  • सूर्य सिद्धांत के लेखक के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन यह ग्रंथ वैदिक परंपरा से जुड़ा हुआ माना जाता है।
  • भारतीय खगोलशास्त्र में सूर्य सिद्धांत को एक प्रमुख स्तंभ के रूप में देखा जाता है और इसे आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त जैसे महान खगोलविदों ने भी उद्धृत किया है।

3. मुख्य विषय और सामग्री:

  • खगोलीय गणनाएँ: सूर्य सिद्धांत में ग्रहों की गति, सूर्य और चंद्रमा के उदय और अस्त, और ग्रहण की घटनाओं की गणना के लिए विस्तृत सूत्र दिए गए हैं।
  • समय मापन: इसमें समय के मापन की विभिन्न पद्धतियों का वर्णन है, जिसमें युग, वर्ष, मास, और दिन की गणना शामिल है।
  • त्रिकोणमिति: सूर्य सिद्धांत में त्रिकोणमितीय गणनाओं का भी उल्लेख मिलता है, जिसका उपयोग खगोलीय घटनाओं की सटीक गणना में किया जाता है।
  • पृथ्वी का आकार और गति: इसमें पृथ्वी को गोल बताया गया है और इसकी परिक्रमा के बारे में जानकारी दी गई है, जो उस समय के लिए एक उन्नत धारणा थी।

4. वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

  • सूर्य सिद्धांत ने उस समय के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया, जिसमें खगोलीय पिंडों की गति और उनके प्रभावों को गणितीय और खगोलीय गणनाओं के माध्यम से समझाया गया है।
  • इसमें दिए गए गणितीय मॉडल ने आधुनिक खगोलशास्त्र की नींव रखने में मदद की है।

5. प्रभाव और महत्व:

  • सूर्य सिद्धांत का प्रभाव भारतीय खगोलशास्त्र पर अत्यधिक पड़ा और यह ग्रंथ सदियों तक अध्ययन और अनुसंधान का मुख्य स्रोत बना रहा।
  • इसे बाद के खगोलविदों द्वारा संदर्भित और संशोधित किया गया, जिससे यह भारतीय विज्ञान में एक अनमोल धरोहर बन गया।

6. अन्य ग्रंथों से तुलना:

  • सूर्य सिद्धांत को आर्यभट्टीय और पंञ्चसिद्धांतिका जैसे अन्य प्राचीन खगोलीय ग्रंथों के साथ भी तुलना की जाती है। ये सभी ग्रंथ एक-दूसरे से प्रेरित और परस्पर जुड़े हुए हैं, लेकिन सूर्य सिद्धांत अपनी विशेष गणितीय और खगोलीय गहराई के लिए अलग स्थान रखता है।

7. आधुनिक युग में उपयोग:

  • आज भी, सूर्य सिद्धांत का अध्ययन भारतीय खगोलशास्त्र के ऐतिहासिक विकास को समझने के लिए किया जाता है।
  • इसके गणितीय सिद्धांतों और खगोलीय गणनाओं का उपयोग उस समय की वैज्ञानिक समझ को आधुनिक दृष्टिकोण से जांचने में किया जाता है।

सूर्य सिद्धांत भारतीय खगोलशास्त्र और गणित का एक अद्वितीय ग्रंथ है, जिसने प्राचीन भारतीय विज्ञान के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसका अध्ययन न केवल ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्राचीन भारत के वैज्ञानिक और गणितीय ज्ञान की गहराई को भी उजागर करता है।

समय का विवरण

सूर्य सिद्धांत के लेखक ने समय को दो प्रकार से परिभाषित किया है: पहला जो निरंतर और अंतहीन है, सभी सजीव और निर्जीव वस्तुओं को नष्ट कर देता है और दूसरा समय जिसे जाना जा सकता है। इस दूसरे प्रकार को आगे दो प्रकारों के रूप में परिभाषित किया गया है: पहला है मूर्त (मापनीय) और अमूर्त (अपरिमेय क्योंकि यह बहुत छोटा या बहुत बड़ा है)। अमूर्त समय वह समय है जो समय के एक अत्यल्प भाग ( त्रुटि ) से शुरू होता है और मूर्त वह समय है जो 4-सेकंड समय स्पंदनों से शुरू होता है जिसे प्राण कहा जाता है जैसा कि नीचे दी गई तालिका में वर्णित है। अमूर्त समय का आगे का विवरण पुराणों में मिलता है जबकि सूर्य सिद्धांत मापनीय समय पर टिका हुआ है।

सूर्य सिद्धांत में कहा गया है कि दो ध्रुव तारे हैं, एक उत्तर और एक दक्षिण आकाशीय ध्रुव पर । सूर्य सिद्धांत अध्याय 12 श्लोक 43 में वर्णन इस प्रकार है:

मेरोरुभयतो मध्ये ध्रुवतारे नभ:स्थिते। निरक्षदेशसंस्थानमुभये क्षितिजाश्रये॥12:43॥

इसका अनुवाद इस प्रकार है “मेरु (अर्थात पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव) के दोनों ओर दो ध्रुवीय तारे आकाश में अपने चरम पर स्थित हैं। ये दोनों तारे विषुवत क्षेत्रों पर स्थित शहरों के क्षितिज में हैं”। [ ४४ ]

साइन तालिका

सूर्य सिद्धांत अध्याय 2 में साइन मानों की गणना करने के तरीके प्रदान करता है। यह 3438 त्रिज्या वाले वृत्त के चतुर्थांश को 24 बराबर खंडों या साइन में विभाजित करता है जैसा कि तालिका में वर्णित है। आधुनिक समय के शब्दों में, इन 24 खंडों में से प्रत्येक का कोण 3.75° है। प्रथम क्रम अंतर वह मान है जिससे प्रत्येक क्रमिक साइन पिछले से बढ़ता है और इसी तरह द्वितीय क्रम अंतर प्रथम क्रम अंतर मानों में वृद्धि है। बर्गेस कहते हैं, यह देखना उल्लेखनीय है कि द्वितीय क्रम अंतर साइन के रूप में बढ़ता है और प्रत्येक, वास्तव में, संबंधित साइन का लगभग 1/225वां हिस्सा होता है। [ 3 ]

पृथ्वी की धुरी के झुकाव (तिरछापन) की गणना

क्रांतिवृत्त का झुकाव 22.1° से 24.5° के बीच बदलता रहता है और वर्तमान में 23.5° है। साइन तालिकाओं और साइन की गणना के तरीकों का अनुसरण करते हुए, सूर्य सिद्धांत समकालीन समय में पृथ्वी के झुकाव की गणना करने का भी प्रयास करता है जैसा कि अध्याय 2 और श्लोक 28 में वर्णित है, पृथ्वी की धुरी की तिरछी स्थिति , श्लोक कहता है “सबसे बड़ी अवनति की साइन 1397 है; इसके द्वारा किसी भी साइन को गुणा करें, और त्रिज्या से विभाजित करें; परिणाम के अनुरूप चाप को अवनति कहा जाता है”।  सबसे बड़ी अवनति क्रांतिवृत्त के तल का झुकाव है। 3438 की त्रिज्या और 1397 की ज्या के साथ, संगत कोण 23.975° या 23° 58′ 30.65″ है जो लगभग 24° है।


ग्रह और उनकी विशेषताएँ

प्रश्न: पृथ्वी गोलाकार कैसे हो सकती है? इस प्रकार स्थलीय ग्लोब (भूगोल) पर हर जगह लोग अपना स्थान ऊंचा मानते हैं, फिर भी यह ग्लोब (गोला) अंतरिक्ष में है जहां न तो ऊपर है और न ही नीचे।

पाठ में पृथ्वी को एक स्थिर ग्लोब के रूप में माना गया है जिसके चारों ओर सूर्य, चंद्रमा और पाँच ग्रह परिक्रमा करते हैं। इसमें यूरेनस, नेपच्यून और प्लूटो का कोई उल्लेख नहीं है।  यह कक्षाओं, व्यासों की गणना करने, उनके भविष्य के स्थानों की भविष्यवाणी करने के लिए गणितीय सूत्र प्रस्तुत करता है और चेतावनी देता है कि विभिन्न खगोलीय पिंडों के लिए सूत्रों में समय के साथ मामूली सुधार आवश्यक हैं। [ ३ ]

पाठ में ” दिव्य-युग ” के लिए बहुत बड़ी संख्याओं के उपयोग के साथ इसके कुछ सूत्रों का वर्णन किया गया है , जिसमें कहा गया है कि इस युग के अंत में , पृथ्वी और सभी खगोलीय पिंड एक ही प्रारंभिक बिंदु पर लौट आते हैं और अस्तित्व का चक्र फिर से दोहराता है। [ ४८ ] दिव्य-युग पर आधारित ये बहुत बड़ी संख्याएँ , जब विभाजित होती हैं और प्रत्येक ग्रह के लिए दशमलव संख्याओं में परिवर्तित होती हैं, तो आधुनिक युग की पश्चिमी गणनाओं की तुलना में यथोचित सटीक नाक्षत्र काल देती हैं