Wednesday, April 9, 2025
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बच्चों चलें सैर पर. उदयपुर

बच्चों , उदयपुर घूमने के लिए राजस्थान का खूबसूरत शहर है। प्रकृति की सुंदरता के साथ चारों तरफ अरावली पर्वत की चोटियों के बीच मन मोहक झीलों के इस शहर को ” राजस्थान का कश्मीर “झीलों का नगर ” और ” पूर्व का वेनिस” कहा जाता है। साल भर बड़ी संख्या में देशी और विदेशी पर्यटक यहां घूमने आते हैं।
 बच्चों के मनोरंजन और ज्ञान वर्धन के लिए कई दर्शनीय स्थल हैं। करणी माता मंदिर और नीमच माता मंदिर जाने के लिए रोपवे से जाते और आते समय प्रकृति के दृश्य बच्चों को खूब भाते हैं। यहीं पर झील के किनारे ऊंट और घोड़ों की सवारी का भी आनंद लेते हैं। सहेलियों की बाड़ी उद्यान में हाथी की सूंड और घूमती चिड़िया की चोंच तथा कई अन्य प्रकार के फव्वारों की  निराली दुनिया एवं सुखाड़िया सर्किल के फव्वारें और यहां बच्चें जब कई प्रकार की खिलौना बोट में जल क्रीड़ा करते हैं  और ऊंट घोड़ों पर बैठ कर घूमते हैं तो आनंद की सीमा नहीं रहती।
सर्प के आकर की फतेहसागर झील में बोट की सवारी कर झील के मध्य में बने नेहरू उद्यान जाने से खूब मनोरंजन होता है। झील के एक तरफ स्थित मोती मगरी पर मनभावन उद्यान, महाराणा प्रताप स्मारक, इनके भील सेनापतियों की मूर्तियां और पुराने महलों के खंडहर दर्शनीय है।
सज्जन निवास बाग जिसे गुलाब बाग भी कहते हैं में बच्चें चिड़ियाघर में विभिन्न प्रकार के पशु – पक्षी देखने के साथ – साथ टॉय ट्रेन से सवारी का भी खूब मजा लेते हैं। पिछोला झील के किनारे बनी बागोर की हवेली के संग्रहालय में कई आकर-प्रकार और डिजाइन की पगड़ियों और 500 से अधिक देश-विदेश की कठपुतलियों का संग्रह देख बच्चें आश्चर्य में पड़ जाते हैं। सिटी महल के समीप एक से  पुरानी  विंटेज कारों का संग्रह और फतेहप्रकाश महल में आलीशान झूमर देखते ही बनते हैं। सिटी महल में महाराणा प्रताप चौंक और  कांच की मोहक कारीगरी में नाचते मोरों का चौंक के साथ महल बच्चों को यहां के इतिहास से परिचय करता है। महल के पास ही जगदीश चौंक में जगदीश मंदिर की कारीगरी देखते ही बनती है।
प्राचीन संस्कृति की विभिन्न परम्पराओं से परिचय कराते लोक कला संग्रहालय में जब बच्चें नाचती कठपुतलियों का शो देखते हैं तो हर्षित हो उठते हैं। शिल्पग्राम में आदिवादियों के जीवन से जुड़ी वस्तुओं का संग्रहालय आदिवासियों के बारे में तथा आहड़ का संग्रहालय इस क्षेत्र की पुरातत्व सामग्री से बच्चों का ज्ञानवर्धन करते हैं। पास में बनी हैं कारीगरीपूर्ण राजाओं की समाधि छतरियां।
एक पहाड़ी पर बना मानसून महल जो सज्जनगढ़ के नाम से प्रसिद्भ है ऐतिहासिक और रोमांचक स्थल है। चारों तरफ पहाड़ियों के बीच ऊंचाई पर बने इस महल से शहर का नज़ारा भव्य और खूबसूरत दिखाई देता है। गर्मियों में भी यहां आती ठंडी हवा मन को शांति देती है। इस पहाड़ी की तलहटी में विकसित  अभयारण्य में खुले में वन्यजीवों को देखना एक रोमांचक अनुभव होता है। शहर में बोहरा गणेश मंदिर की बड़ी मान्यता है। यहां के निवासी जो दूर देश में बस गए है यहां दर्शन करने आते हैं। महाकाल मंदिर भी यहां का प्रमुख मंदिर है। उदयपुर देश के प्रमुख शहरों से हवाई, रेल और बस सेवाओं से जुड़ा है। पूरे वर्ष में कभी भी उदयपुर घूमने जा सकते हैं।
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डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

असयाद समूह ने ब्रेकबल्क मिडल ईस्ट 2025 में वैश्विक व्यापार व लॉजिस्टिक्स को आकार दिया

मस्कट, ओमान

ओमान के वैश्विक एकीकृत लॉजिस्टिक प्रदाता असयाद समूह ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और ब्रेकबल्क लॉजिस्टिक्स में अपने नेतृत्व व मजबूती का प्रर्दशन करते हुए 10-11 फरवरी को दुबई में आयोजित  कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस दौरान प्रमुख औद्योगिक महारथियों के साथ जुड़ते हुए, Asyad ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के सकारात्मक परिवर्तन, ब्रेकबल्क लॉजिस्टिक्स के भविष्य और वैश्विक व्यापार कनेक्टिविटी में जीसीसी और एमईएनए क्षेत्रों के बढ़ते महत्व पर चर्चा की।

Asyad ने ब्रेकबल्क मिडल ईस्ट 2025 में भाग लियाअसयाद समूह  के मुख्य वाणिज्यिक अधिकारी Juma Al Uraimi ने एकीकृत, कुशल और टिकाऊ लॉजिस्टिक क्षेत्र के लिए समूह के दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए बताया कि “ब्रेकबल्क लॉजिस्टिक्स का परिदृश्य तेजी से विकसित हो रहा है, जो बड़े पैमाने पर औद्योगिक परियोजनाओं, डिजिटल नवाचार और स्थिरता अनिवार्यता के मेलजोल से प्रेरित है”। Asyad व्यापार प्रवाह को बढ़ाने और ओमान को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक महत्वपूर्ण गेटवे के रूप में स्थान देने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों और एकीकृत मल्टीमॉडल समाधानों का लाभ उठाने के लिए प्रतिबद्ध है।

असयाद समूह का नेतृत्व लॉजिस्टिक, आपूर्ति श्रृंखला अनुकूलन और बुनियादी ढांचे के निवेश में डिजिटल परिवर्तनकारी प्रमुख पैनलों में योगदान देता है, जो वैश्विक बाजारों को जोड़ने वाले रणनीतिक लॉजिस्टिक केंद्र के रूप में ओमान की उभरती हुई भूमिका को मजबूत करता है। इस चर्चा में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं का समर्थन करने वाले लॉजिस्टिक समाधानों की बढ़ती मांग पर भी ध्यान केंद्रित किया गया।

पोर्टफ डक्म के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रेगी वेर्मुलेन ने  ऊर्जा ट्रांज़िशन में ओमान की बढ़ती भूमिका पर जोर देते हैं, जिसमें लॉजिस्टिक द्वारा पवन टरबाइन, सौर पैनल और स्वच्छ ऊर्जा बुनियादी ढांचे के लिए आवश्यक अन्य बड़े उपकरणों के परिवहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा रही है।

असयाद समूह के निदेशक जुमा अल मस्करी  ने अनुबंध लॉजिस्टिक के300  बिलियन डालर के अनुमानित विस्तार पर प्रकाश डाला, वैश्विक व्यापार को सुव्यवस्थित करने और आपूर्ति श्रृंखला लागत को अनुकूलित करने में Asyad की भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ओमान की भौगोलिक स्थिति और लॉजिस्टिक बुनियादी ढांचा अंतरराष्ट्रीय व्यवसायों के लिए प्रतिस्पर्धात्मक मौका प्रदान करता है।

हाइड्रोजन लॉजिस्टिक्स में भी Asyad का कार्य एक केंद्र बिंदु है। टॉम एनबर्वाग  प्रेज़िडेंट कमर्शियल स्ट्रैटेजी एंड प्रोडक्ट डेवलपमेंट ने बताया कि सलालाह फ्रीज़ोन में बड़े पैमाने पर ग्रीन हाइड्रोजन और अमोनिया उपक्रमों के लिए समूह द्वारा समर्थन दिया जा रहा है। ये परियोजनाएं वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में ओमान की भूमिका को सुदृढ़ करती हैं।

एआई एलओटी और ऑटोमेशन में 60% से अधिक निवेश के साथ, लॉजिस्टिक्स उद्योग एक डिजिटल परिवर्तन से गुजर रहा है। Asyad नवाचार को अपनाने, व्यापार दक्षता बढ़ाने और वैश्विक लॉजिस्टिक पावरहाउस के रूप में ओमान की स्थिति को मजबूत करने के लिए अपने 4.1+ बिलियन अमरीकी डालर के लॉजिस्टिक ईको-सिस्टम का उपयोग करते हुए सबसे आगे है।

साँप सीढ़ी का खेल भारत की देन है

बचपन में हम सभी ने साँप-सीढ़ी का खेल जरूर खेला होगा। इस खेल में 1 से लेकर 100 तक के खाने बने होते हैं। बोर्ड पर ढेर सारे साँप और सीढिय़ाँ बनी होती हैं। साँप के मुंह पर पहुँचने पर खिलाड़ी को साँप की पूँछवाले खाने पर आना पड़ता है, वहीं सीढ़ी चढ़कर खिलाड़ी कई खाने ऊपर भी पहुँच सकता है। इसमें साँप की संख्या, सीढिय़ों से ज्यादा होती है। हममें से ज्यादातर लोग यही मानते हैं कि यह खेल विदेशों से आया है, लेकिन क्या आपको मालूम है कि यह खेल विदेशों की नहीं बल्कि भारत की ही देन है और इसका जैसा रूप आज हमारे सामने है, यह इसका बदला हुआ रूप है?

किसने बनाया इस खेल को?
प्राचीन भारत में इस खेल को ‘मोक्षपटम्’ के नाम से जाना जाता था। इसे द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व से खेला जाता रहा है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि महाराष्ट्र के 13वीं शताब्दी के सन्त-कवि ज्ञानेश्वर (1275-1296) ने इस खेल को बनाया था। इस खेल को बनाने का मुख्य उद्देश्य बच्चों को सत्कर्म और सद्धर्म की शिक्षा देना था। सीढिय़ाँ अच्छे कर्म को दर्शाती थीं, वहीं साँप हमारे बुरे कर्म को दर्शाते थे। हमारे अच्छे कर्म हमें 100 के करीब लेकर जाते हैं, जिसका अर्थ था मोक्ष। वहीं बुरे कर्म हमें कीड़े-मकोड़े के रूप में दुबारा जन्म लेने पर मजबूर करते हैं। पुराने खेल में साँपों की संख्या सीढिय़ों से अधिक होती थी। इससे यह दर्शाया गया था कि अच्छाई का रास्ता बुरे रास्ते से काफी कठिन है।

किसने दिया इस खेल को नया रूप?

यह खेल उन्नीसवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड पहुँच गया। इसे शायद इंग्लैण्ड के शासक अपने साथ ले गए थे और उन्होंने इसे ‘स्रैक्स एण्ड लैडर्सÓ कहकर प्रचारित किया। 1943 में ये खेल सं.रा. अमेरिका पहुँचा और वहाँ इसे मिल्टन ब्रेडले (1836-1911) ने एक नया रूप देकर इसे थोड़ा आसान बनाया। डेनमार्क के कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ़ क्रॉस-कल्चर एण्ड रीजनल स्टडीज के पीएच.डी.-शोधकर्ता जेकब सचमिट मैडसन ने मोक्षपटम् खेल पर काफी तथ्य जुटाए हैं। उनके शोध का विषय है : री-डिस्कवरिंग दी रिलीजियस ओरिजिन्स ऑफ़ स्नैक्स एण्ड लैडर्स। जेकब ने भारत के शहरों में घूम-घूमकर कपड़े और कागज पर निर्मित मोक्षपटम् और बोर्ड-गेम के 200 से अधिक नमूने एकत्र किए हैं। इनमें सर्वाधिक पुराना मोक्षपट 17वीं शती का है और इसकी सबसे ज्यादा प्रतियाँ गुजरात और राजस्थान में मिली हैं। इनमें वैष्णव, जैन, वेदांत और सूफी-सम्प्रदाय से सम्बन्धित साँप-सीढिय़ाँ सम्मिलित हैं। जेकब द्वारा किए गए शोध से सामने आया है कि संत ज्ञानेश्वर की कालावधि में ‘साँप-सीढ़ी’ का खेल ‘मोक्षपटम्’ के रूप में पहचाना जाता था। कहीं इसे ‘ज्ञान-चौपड़ या ‘परमपद-सोपान’ भी कहा गया है।
जेकब ने कोटा संग्रहालय में सुरक्षित दो मोक्षपटों का अध्ययन किया। इनमें 52 नम्बर के ब्लॉक का अर्थ होता है हिंसा। यहाँ साँप का अर्थ होता है शाप, जो आपको सीधा 34वें घर अर्थात् नरक में ले जाता है। इसी तरह 37वें घर का अर्थ होता है ज्ञान। यहाँ से वरदान की सीढ़ी मिलती है, जो सीधा 64वें घर आनन्दलोक में ले जाती है।
जेकब को गुजरात के एल.डी. म्यूजियम ऑफ़ इण्डोलॉजी में जैन-सम्प्रदाय की एक साँप-सीढ़ी मिली है। इसी तरह जयपुर में महाराजा सवाई मानसिंह म्यूजियम में वैष्णव सम्प्रदाय की साँप-सीढ़ी मिली है। ये दोनों 19वीं शती की हैं।

मोक्षपट से संदेश

मोक्षपट के जो नमूने प्राप्त होते हैं, उनमें पहला घर उत्पत्ति (जन्म) का होता है। इसके बाद क्रमश:होते हैं— 2. माया, 3. क्रोध, 4. लोभ, 5. भूलोक, 6. मोह, 7. मद, 8. मत्सर, 9. काम, 10. तपस्या, 11. गन्धर्वलोक, 12. ईष्र्या, 13. अन्तरिक्ष, 14. भुवर्लोक, 15. नागलोक, 16. द्वेष, 17. दया, 18. हर्ष, 19. कर्म, 20. दान, 21. समान, 22. धर्म, 23. स्वर्ग, 24. कुसंग, 25. सत्संग, 26. शोक, 27. परम धर्म, 28. सद्धर्म, 29. अधर्म, 30. उत्तम गति, 31. स्पर्श, 32. महलोक, 33. गन्ध, 34. रस, 35. नरक, 36. शब्द, 37. ज्ञान, 38. प्राण, 39. अपान, 40. व्यान, 41. जनलोक, 42. अन्न, 43. सृष्टि, 44. अविद्या, 45. सुविद्या, 46. विवेक, 47. सरस्वती, 48. यमुना, 49. गंगा, 50. तपोलोक, 51. पृथिवी, 52. हिंसा, 53. जल, 54. भक्ति, 55. अहंकार, 56. आकाश, 57. वायु, 58. तेज, 59. सत्यलोक, 60. सद्बुद्धि, 61. दुर्बुद्धि, 62. झखलोक, 63. तामस, 64. प्रकृति, 65. दृष्कृत, 66. आनन्दलोक, 67. शिवलोक, 68. वैकुण्ठलोक, 69. ब्रह्मलोक, 70. सवगुण, 71. रजोगुण, 72. तमोगुण।
मोक्षपट में 10वाँ घर तपस्या का है, जहाँ से सीढिय़ाँ 23वें घर स्वर्ग तक ले जाती हैं। इसी प्रकार 24वें घर ‘कुसंग’ में साँप बैठा है, जहाँ पहुँचने पर वह 7वें घर ‘मद’ में ले जाता है। इस प्रकार इस खेल में सीढिय़ाँ वरदानों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जबकि साँप शाप या अवगुणों को दर्शाते हैं। मनुष्य को अपना जीवन कैसे व्यतीत करना चाहिए, इसका तत्त्वज्ञान इस खेल के माध्यम से बताया गया है। एक समय इस खेल को कौडिय़ों तथा पांसे के साथ खेला जाता था। यूरोपीयों ने इस खेल में कई बदलाव किए, परन्तु इसका अर्थ वही रहा अर्थात् अच्छे काम लोगों को स्वर्ग की ओर ले जाते हैं जबकि बुरे काम दुबारा जन्म के चक्र में डाल देते हैं।
(वरिष्ठ पत्रकार एवं इतिहासविद् हैं तथा  महामना मालवीय मिशन, दिल्ली में शोध-सहायक के रूप में कार्यरत हैं )
 
साभार- https://www.bhartiyadharohar.com/  से

भाई की हत्या के बाद कश्मीर से मुंबई आई बहनों की त्रासद कहानी

मुस्लिमों द्वारा कश्मीर घाटी से अपनी हवेली से जबरदस्ती बाहर निकाली गई एक परिवार की तीन लड़कियों की जिनका नाम है सीमा भट्ट, शाका भट्ट और  और सीपीका भट्ट की। सीमा भट्ट कहती हैं कि 1990 में एक दिन अचानक कुछ मुस्लिम आतंकी उनके घर में घुसे उनके बड़े भाई की गोली मारकर हत्या कर दी और हमें सिर्फ 3 घंटे में घर खाली करने का आदेश दिया वरना पूरे परिवार को खत्म करने की धमकी दे दीI
उसके बाद यह भट्ट परिवार तुरंत ही बगैर कुछ सामान लिए अपने आलीशान और विशाल घर से निकल पड़ा और 1 साल तक जम्मू के रिफ्यूजी कैंप में एक कमरे में शरणार्थी बन कर रहा उसके बाद यह परिवार मुंबई शिफ्ट हो गयाIभाई का कत्ल मुस्लिम आतंकियों ने कर दिया था पिता ने तीनों बेटियों को मुंबई में उच्च शिक्षा दिया एक बेटी सीमा इंजीनियरिंग की जिसने 5 साल तक बैंक आफ अमेरिका की मुंबई और हैदराबाद में नौकरी किया और जो 2014 से कनाडा रहती हैI

दूसरी बेटी शाका भट्ट चार्टर्ड अकाउंटेंट है और तीसरी बेटी सीपीका भट्ट  पुणे के सिंबोसिस से एमबीए की डिग्री ली Iलगभग 5 सालों तक नौकरी करने के बाद चार्टर्ड अकाउंटेंट बहन शाका और एमबीए सीपीका ने एक नया स्टार्टअप बनाकर बिजनेस करने का सोचा और उनका ध्यान इस पर गया कि जो ऑफिस वूमेन है उनके लिए अभी तक कोई ऐसा बैग डिजाइन नहीं हुआ है जिसमें वह अपना लैपटॉप और अपनी तमाम पर्सनल चीजें भी एक साथ रखें I

एक बहन ने बैग की डिजाइन बनाई उसके बाद उन्होंने अपना एक स्टार्टअप कंपनी बनाया जिसका नाम रखा होमलैंड फैशन एंड लाइफ़स्टाइल और कुछ बैग डिजाइन करके उसका पोर्टफोलियो उन्होंने इंटरनेट पर डालाI
एक बहन सीमा भट्ट जो कनाडा में रहती है उसने कुछ बैग मंगाकर कनाडा के कुछ स्टोर को दिखाया जो उन्हें बहुत पसंद आया देखते ही देखते इनके लेदर बैग का की सुपरहिट हो गए और आज मिंत्रा से लेकर अमेजॉन पर भी इनके बैग ऑनलाइन बिक रहे हैं अमेरिका कनाडा के मॉल में भी सप्लाई जा रही हैI

मुझे एक खबर याद आ गई जब कश्मीर के एक बेहद खतरनाक आतंकी जिसे सुरक्षाबलों ने मारा था तमाम वामपंथी तमाम मुस्लिम और तमाम तथाकथित बुद्धिजीवी जिसमें प्रशांत भूषण और अरुंधति राय थे उन्होंने यह ट्वीट किया था इसे सेना के जवान ने पिटाई किया था जिसकी वजह से यह आतंकी बनाI

बड़ी बहन ने  बताया  कि एक दिन वह फेसबुक पर थी तभी उन्होंने एक मुस्लिम परिवार का अपने घर का फोटो पोस्ट कर देखा वह चौक गई कि वह घर उनका था उन्होंने कहा कि वह तस्वीर देखने के बाद मैं कई दिनों तक डिप्रेशन में रही मैं बहुत फूट-फूट कर रोए कि जिस हवेली को मेरे दादाजी और मेरे पिताजी ने इतनी मेहनत से बनाया था और जिस हवेली में मेरे बड़े भाई का कत्ल किया गया और जिस हवेली को हमें मात्र कुछ घंटों की नोटिस पर छोड़ने को मजबूर किया गया हमारी उस पुरखों की हवेली पर एक मुस्लिम परिवार कब्जा करके रह रहा है और वह बड़ी बेशर्मी से उनके फोटो फेसबुक पर पोस्ट कर रहा हैI

कश्मीर में धारा 370 लागू होने के बावजूद म्यामार के रोहिंग्या मुस्लिमों को कश्मीर घाटी में बसाया जा सकता है भारतीयों को नहीं.

04 जनवरी 1990 को कश्मीर के एक स्थानीय अखबार ‘आफ़ताब’ ने हिज्बुल मुजाहिदीन द्वारा जारी एक विज्ञप्ति प्रकाशित की। इसमें सभी हिंदुओं को कश्मीर छोड़ने के लिये कहा गया था। एक और स्थानीय अखबार ‘अल-सफा’ में भी यही विज्ञप्ति प्रकाशित हुई।

आतंकियों के फरमान से जुड़ी खबरें प्रकाशित होने के बाद कश्मीर घाटी में अफरा-तफरी मच गयी। सड़कों पर बंदूकधारी आतंकी और कट्टरपंथी क़त्ल-ए-आम करते और भारत-विरोधी नारे लगाते खुलेआम घूमते रहे। अमन और ख़ूबसूरती की मिसाल कश्मीर घाटी जल उठी। जगह-जगह धमाके हो रहे थे, मस्जिदों से अज़ान की जगह भड़काऊ भाषण गूंज रहे थे। दीवारें पोस्टरों से भर गयीं,

कश्मीरी हिन्दुओं के मकानों, दुकानों तथा अन्य प्रतिष्ठानों को चिह्नित कर उस पर नोटिस चस्पा कर दिया गया। नोटिसों में लिखा था कि वे या तो 24 घंटे के भीतर कश्मीर छोड़ दें या फिर मरने के लिये तैयार रहें। आतंकियों ने कश्मीरी हिन्दुओं को प्रताड़ित करने के लिए मानवता की सारी हदें पार कर दीं। यहां तक कि अंग-विच्छेदन जैसे हृदयविदारक तरीके भी अपनाए गये। संवेदनहीनता की पराकाष्ठा यह थी कि किसी को मारने के बाद ये आतंकी जश्न मनाते थे। कई शवों का समुचित दाह-संस्कार भी नहीं करने दिया गया।

19 जनवरी की रात निराशा और अवसाद से जूझते लाखों कश्मीरी हिन्दुओं का साहस टूट गया। उन्होंने अपनी जान बचाने के लिये अपने घर-बार तथा खेती-बाड़ी को छोड़ अपने जन्मस्थान से पलायन का निर्णय लिया। इस प्रकार लगभग 3,50,000 कश्मीरी हिन्दू विस्थापित हो गये।

विस्थापन के पांच वर्ष बाद तक कश्मीरी हिंदुओं में से लगभग 5500 लोग विभिन्न शिविरों तथा अन्य स्थानों पर काल का ग्रास बन गये। इनमें से लगभग एक हजार से ज्यादा की मृत्यु ‘सनस्ट्रोक’ की वजह से हुई; क्योंकि कश्मीर की सर्द जलवायु के अभ्यस्त ये लोग देश में अन्य स्थानों पर पड़ने वाली भीषण गर्मी सहन नहीं कर सके। क़ई अन्य दुर्घटनाओं तथा हृदयाघात का शिकार हुए।

– एक स्थानीय उर्दू अखबार, हिज्ब – उल – मुजाहिदीन की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की- ‘सभी हिंदू अपना सामान बांधें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएं’।
– एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र, अल सफा, ने इस निष्कासन के आदेश को दोहराया।
-मस्जिदों में भारत एवं हिंदू विरोधी भाषण दिए जाने लगे।
या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो

– कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया, जिसमें लिखा था ‘या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो।
दिसम्बर 19 89  से 10 नवम्बर 1990 तक मुफ़्ती मोहम्मद सईद भारत के गृहमंत्री रहा. उसी के समय में यह काम हुआ. आज यह भुला दिया गया है. पर इतिहास को भूलना मुर्खता है.
इसमे कुछ भाग जितेंदर प्रताप सिंह पोस्ट से लिया है।

ब्रिटेन के प्रसिद्ध ट्रैवल राइटर्स 25-26 फरवरी को करेंगे प्रयागराज महाकुंभ 2025 का भ्रमण

प्रयागराज महाकुंभ 2025 की भव्यता और दिव्यता न केवल देशभर के श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रही है, बल्कि विदेशी पर्यटकों और ट्रैवल लेखकों का ध्यान भी अपनी ओर खींच रही है। इसी क्रम में, ब्रिटेन के प्रसिद्ध ट्रैवल राइटर्स का एक दल 25-26 फरवरी को प्रयागराज महाकुंभ का भ्रमण करेगा। इस दल में सॉरचा मैरेड ब्रैडली, एलेक्जेंड्रा निकोल लोवेट और ओइनोन जुडिथ डेल शामिल हैं, जो 24 फरवरी को दिल्ली पहुंचेंगे और 25 फरवरी को प्रयागराज के लिए रवाना होंगे। इस यात्रा के दौरान वे महाकुंभ के अलावा अन्य धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों का भी भ्रमण करेंगे।

उत्तर प्रदेश सरकार प्रदेश के पर्यटन को वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान देने के लिए निरंतर प्रयासरत है। प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश पर्यटन के क्षेत्र में एक नया इतिहास रच रहा है। प्रयागराज महाकुंभ के साथ-साथ दुधवा राष्ट्रीय उद्यान, अयोध्या, वाराणसी और लखनऊ जैसे ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक स्थलों को भी वैश्विक पर्यटन नक्शे पर स्थापित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश घरेलू पर्यटकों की पहली पसंद बन चुका है और शीघ्र ही विदेशी पर्यटन के मामले में भी शीर्ष स्थान प्राप्त करेगा।

विदेशी पर्यटकों के लिए उत्तर प्रदेश बना आकर्षण का केंद्र

पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन विदेशी पर्यटकों तक इसकी जानकारी पहुंचाने की आवश्यकता है। इसी उद्देश्य से विभिन्न अंतरराष्ट्रीय स्तर के ट्रैवल लेखकों और पत्रकारों को आमंत्रित किया जा रहा है, ताकि वे यहां के पर्यटन स्थलों की विशेषताओं को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत कर सकें। ब्रिटेन से आ रहे ट्रैवल लेखकों का यह दौरा भी इसी प्रयास का हिस्सा है, जिससे उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर मजबूती से स्थापित किया जा सके।

पर्यटन एवं संस्कृति विभाग द्वारा प्रयागराज महाकुंभ के दौरान विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष योजनाएं तैयार की गई हैं, ताकि वे इस अद्भुत आयोजन का अनुभव कर सकें। सरकार द्वारा आवासीय सुविधाएं, गाइड सेवा, डिजिटल सूचना केंद्र और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है, जिससे महाकुंभ में आने वाले विदेशी पर्यटकों को भारतीय संस्कृति और परंपराओं से जुड़ने का अवसर मिले।

महाकुंभ के साथ अन्य ऐतिहासिक स्थलों का भी करेंगे भ्रमण

ब्रिटेन के ट्रैवल लेखकों का यह दल केवल महाकुंभ तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि वे प्रयागराज और अन्य महत्वपूर्ण स्थलों का भी भ्रमण करेंगे। इस दौरे के दौरान वे प्रयागराज किला, आनंद भवन, अक्षयवट, अल्फ्रेड पार्क और संगम क्षेत्र का भी दौरा करेंगे। इसके अलावा, वे उत्तर प्रदेश के अन्य प्रमुख पर्यटन स्थलों जैसे अयोध्या, वाराणसी और लखनऊ की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को भी करीब से देखेंगे।

पर्यटन मंत्री ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार प्रदेश की पर्यटन संभावनाओं को और अधिक विकसित करने के लिए कई योजनाओं पर कार्य कर रही है। महाकुंभ के अलावा, सरकार आध्यात्मिक, वन्यजीव, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए नई योजनाएं बना रही है। उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार द्वारा पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए पर्यटक स्थलों के इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार किया जा रहा है, जिससे उन्हें बेहतर अनुभव प्राप्त हो सके।

पर्यटन को वैश्विक मंच पर ले जाने की दिशा में बड़ा कदम

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे पर्यटन संवर्धन के प्रयासों में ब्रिटेन के ट्रैवल लेखकों का यह दौरा एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। इससे उत्तर प्रदेश की पर्यटन नीति को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगी और अधिक से अधिक विदेशी पर्यटक प्रदेश की ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों की ओर आकर्षित होंगे।

यह दौरा न केवल महाकुंभ की भव्यता को दुनिया के सामने लाने में सहायक होगा, बल्कि उत्तर प्रदेश को एक प्रमुख वैश्विक पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करने की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सरकार का उद्देश्य है कि उत्तर प्रदेश की समृद्ध विरासत, आध्यात्मिक स्थलों और प्राकृतिक सौंदर्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिले और यह दुनिया के शीर्ष पर्यटन स्थलों में शामिल हो

भारतभूषण आचार्य समन्तभद्र स्वामी का अपराजित व्यक्तित्व एवं अनुपम कृतित्व

भारतभूषण आचार्य समन्तभद्र स्वामी का अपराजित व्यक्तित्व एवं अनुपम कृतित्व

संपूर्ण भारतीय मनीषा के विकास में तीसरी शताब्दी के महान् मनीषी जैनन्याय के प्रतिष्ठापक आचार्य समन्तभद्र स्वामी का बहुमूल्य योगदान है। आचार्य शुभचंद्र  तो आपकी कृतियों और आपके अजेय व्यक्त्तित्व से इतने प्रभावित हुए कि आपको‘समंतभद्रो भद्रार्थो भातु भारतभूषण:’ कहकर ‘भारतभूषण’ जैसी  गौरवपूर्ण उपाधि तक से विभूषित किये बिना नहीं रह सके।
आपका विस्तृत जीवन परिचय नहीं मिलता। क्योंकि इन्होंने अपनी कृतियों में कहीं कहीं प्रकारान्तर से स्वयं अपने विषय में थोड़े -बहुत ही संकेत दिए हैं। फिर भी परवर्ती साहित्यिक और शिलालेखीय उल्लेखों के आधार पर श्रेष्ठ विद्वानों ने आपके जीवन के विषय में काफी अनुसंधान किया है, तदनुसार आप दक्षिण भारत के चोलराजवंशीय क्षत्रिय महाराजा उरगपुर के सुपुत्र थे। इनके बचपन का नाम शांतिवर्मा था। इसके   अलावा  इनके  मुनिदीक्षा    ग्रहण करने   के पूर्व के जीवन का अन्य वृत्तान्त उपलब्ध नहीं होता।
पवित्र मुनि वेष में साधनारत जब आप दक्षिण भारत के मणुवकहल्ली नामक स्थान में विहार कर रहे थे, उसी समय आपको ‘भस्मकव्याधि’ नामक में बाधाकारी असाथ्य रोग हो गया। इसके बाद भी मुनि दीक्षा के समय धारण किये मूलगुणों आदि व्रतों में शिथिलता का किंचित् विचार तक आपको सहन नहीं था क्योंकि मुक्ति का साक्षात् साधनभूत पवित्र मुनिमुद्रा को धारण कर आगमानुसार श्रमणाचार का पालन करते हुए संयम साधना में आप  निरन्तर   संलग्न रहे।
इसी दौरान आपने सम्पूर्ण आगमों तथा अन्यान्य मतों की विविध विधाओं के अनेक शास्त्रों  का  गहन पारायण कर चुके थे और आपका लक्ष्य अक्षय आगम की ज्ञाननिधि का सार दार्शनिक साहित्य के माध्यम से  यथार्थ धर्म और सम्यक् परम्पराओं की अपूर्व प्रभावना करके संसार में फैल रहे मिथ्यात्व और पाखंडवादी मान्यताओँ,धारणाओं और परम्पराओं को दूर करने का था।
आपके अन्तःकरण में सम्यग्दर्शन का प्रखर तेज होते हुए भी अचानक अन्तहीन भूख के रूप में आई भस्मक व्याधि नामक इस शारीरिक रोग ने महान् लक्ष्यसिद्धी में बाधा डालना शुरु कर दिया। अतः आपने अपने पूज्य आचार्य गुरुवर्य से सल्लेखना-समाधिमरण ग्रहण करने  का अनुरोध किया। किन्तु आपके दीक्षा प्रदाता गुरु भगवन्त इनकी आन्तरिक, प्रतिभा, प्रभावकता और क्षमता से सुपरिचित थे, अतः उन्हें इसकी आज्ञा नहीं दी, अपितु दिगम्बर मु छोड़कर अन्य साधारण साधुवेश में रहकर जिस किसी उपाय से इस पेट की अन्तहीन भूख के रोग-शमन का निर्देश दिया।
भस्मक-व्याधि की प्रबलता उनकी विवशता थी, अतः उन्होंने यत्र-तत्र विहार करते हुए वैसा ही किया। जैनेतर अन्य परम्परा के साधारण साधु के वेष में कुछ समय रहने का आपका प्रमुख उद्देश्य मात्र व्याधिशमन था। आपने बाह्य रूप में भले ही दूसरा वेष धारण कर लिया किन्तु आपके अन्तः में समीचीन जैनधर्म के प्रति जो दृढ़ आस्था के कारण रत्नत्रय का अद्भुत प्रकाश पुंज पूरी जागरूकता के साथ विद्यमान रहा।
 वाराणसी के तत्कालीन नरेश शिवकोटि द्वारा आपसे पूछे जाने पर आपने अपना परिचय इस प्रकार दिया –
काञ्च्यां नग्नाटकोऽहं मलमलिनतनुर्लाम्बुसे पाण्डुपिण्डः, पुण्ड्रोण्डे शाक्यभिक्षुर्दशपुरनगरे मिष्टभोजी परिव्राट्। वाराणस्यामभूवं शशधरधवलः पाण्डुरङ्‌गस्तपस्वी, राजन् ! यस्यास्ति शक्तिः स वदतु पुरतो जैननैर्ग्रन्थवादी ॥
अर्थात् मैं कांची में मलिन भेषधारी दिगम्बर रहा, लाम्बुसनगर में भस्म रमाकर शरीर को श्वेत किया, पुण्ड्रोण्ड में जाकर बौद्धभिक्षु बना, दशपुर नगर में मिष्ट भोजन करने वाला सन्न्यासी बना, वाराणसी में श्वेत वस्त्रधारी तपस्वी बना। राजन् ! आपके सामने यह दिगम्बर जैनवादी खड़ा है, जिसकी शक्ति हो, मुझसे शास्त्रार्थ कर ले।आपने जिन देशों,नगरों ललकारते हुए शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त की, उन स्थानों का उल्लेख इस प्रकार मिलता है–
पूर्वं पाटलिपुत्रमध्यनगरे भेरी मया ताडिता, पश्चान्मालवसिन्धुढक्कविषये काञ्चीपुरे वैदिशे। प्राप्तोऽहं करहाटकं बहुभटं विद्योत्कटं संकटं, वादार्थी विचराम्यहं नरपते शार्दूलविक्रीडितम्।।
अर्थात् राजन् ! सबसे पहले मैंने पाटलिपुत्र नगर में शास्त्रार्थ के लिए भेरी बजाई, फिर मालवा, सिन्धु, ढक्क, काञ्ची, विदिशा आदि स्थानों में जाकर भेरी ताडित की। अब बड़े-बड़े दिग्गज विद्वानों से परिपूर्ण इस करहाटक नगर में आया हूँ। मैं तो शास्त्रार्थ की इच्छा रखता हुआ सिंह के समान घूमता-फिरता हूँ।
इस तरह आचार्य समन्तभद्र भस्मकव्याधि के शमनार्थ वे विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग भेषधारी बनकर रहे।आपने सम्पूर्ण भारत के पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण सर्वत्र भ्रमण करके जिनधर्म की महिमा स्थापित की थी।
इनके अन्दर जो रत्नत्रय धर्म के प्रति अखण्ड और अगाध श्रद्धा का तेज अखंड बना हुआ था, अतः उसी के उत्कृष्ट प्रताप से इस महाव्याधि रूपी महाबाधा को अन्ततः काशी में आकर उन्होंने किस तरह दूर किया ? इस घटना से प्रायः सभी सुपरिचित ही हैं। भस्मकव्याधि शमन के बाद अपने गुरु आचार्यश्री की आज्ञा से प्रायश्चित्तादि पूर्वक उन्होंने पुनः दिगम्बर मुनि-मुद्रा धारण कर संयम एवं साहित्य साधना में अपने को समर्पित कर दिया।
आचार्य समन्तभद्र के वाद-कौशल की धाक उस समय सम्पूर्ण देश में थी। उनके असाधारण व्यक्तित्व की प्रशंसा परवर्ती आचार्यों में सर्वश्री अकलंकदेव, विद्यानन्द स्वामी, जिनसेन, वादिराज, वादीभसिंहसूरि, वसुनन्दी आदि आचार्यों ने मुक्तकण्ठ से की है तथा उन्हें भव्यैकलोकनयन, सुतर्कशास्त्रामृत, सारसागर, वरगुणालय, महाकवीश्वर, सम्यग्ज्ञानमूर्ति आदि महनीय विशेषणों से अलंकृत किया है।
आचार्य नरेन्द्रसेन ने तो अपने ग्रन्थ ‘सिद्धान्तसार संग्रह’ में यहाँ तक लिखा है कि आचार्य गुणधर तुल्य समन्तभद्र के निर्दोष वचन प्राणियों के लिए ऐसा ही दुर्लभ है, जैसा कि मनुष्यत्व का पाना।यथा–
श्रीमत्समन्तभद्रस्यदेवस्यापिवचोऽनघम्।    प्राणिनांदुर्लभंयद्वन्मानुषत्वंतथापुनः।1.11।
इस प्रकार आचार्य समन्तभद्र ने जहाँ अपने समय के अनेक दार्शनिक एकान्तवादों की मीमांसा और समन्वय कर उन्हें यथार्थ स्थिति का बोध कराया, वहीं अनेकान्तवाद, स्याद्वाद, सप्तभंगी नय, प्रमाण इन सिद्धान्तों के विकास हेतु अपने मौलिक चिन्तन द्वारा अनेक नई उद्भावनायें प्रस्तुत कीं।

आचार्य समंतभद्र भारतीय ज्ञान परंपरा के उत्कृष्ट आचार्य थे ।  आप प्रत्येक विषय के ज्ञाता थे। चाहे व्याकरण हो, साहित्य, ज्योतिष ,आयुर्वेद, मंत्रशास्त्र, न्याय, दर्शन एवं धर्म सभी विधाओं में निपुण थे। जब आप भस्मक व्याधि दूर करने के लिए काशी आये, तब काशी नरेश के समक्ष आपने जो अपना परिचय दिया, वह कोई अतिशयोक्ति नहीं थी, अपितु वह तथ्यपूर्ण कथन था।उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा–

आचार्योऽहं कविरहमहं वादिराट् पण्डितोऽहं, दैवज्ञोऽहं भिषगमहं मान्त्रिकस्तान्त्रिकोऽहम्। राजन्नस्यां जलधिवलयामेखलायामिलाया- माज्ञासिद्धः,किमितिबहुना सिद्धसारस्वतोऽहम्।।
अर्थात् मैं आचार्य हूँ, कवि हूँ, शास्त्रार्थियों में श्रेष्ठ हूँ, पण्डित हूँ, ज्योतिषी हूँ, वैद्य हूँ, मान्त्रिक हूँ, तान्त्रिक हूँ। हे राजन्!इस संपूर्ण पृथ्वी पर मैं आज्ञासिद्ध हूँ।अधिक क्या कहूँ ? मैं सिद्धसारस्वत हूँ।
इसीलिए अपने ज्ञानार्णव शास्त्र में आचार्य शुभचन्द्र आपके बारे में लिखते हैं-
समन्तभद्रादिकवीन्द्रभास्वतां स्फुरन्ति यत्रामलसूक्तिरश्मयः। व्रजन्ति खद्योतवदेव हास्यतां न तत्र किं ज्ञानलवोद्धतो जनाः ।
अर्थात् जहाँ समन्तभद्रादि कवीन्द्र रूपी सूयों की निर्दोष सूक्ति रूपी किरणें स्फुरायमान हो रही हैं, वहाँ अल्पज्ञान से अहंकार को प्राप्त हुए मनुष्य जुगनू के समान क्या हास्य को ही प्राप्त नहीं होगें?
महाबाधाकारी भस्मकव्याधि के बीच भी आपने अपनी विलक्षण प्रतिभा का अच्छा उपयोग किया और विभिन्न धर्मों और दर्शनों का निकटता से साक्षात्कार किया और उन परम्पराओं के मूलग्रंथों का उनके अधिकारी विद्वानों के साथ गहन अध्ययन किया। और इस तुलनात्मक अध्ययन का उपयोग उन्होंने अपनी कृतियों में किया। उन्होंने अपने द्वारा सृजित साहित्य में विविध रूपों में उन एकान्तिक दार्शनिक मतों का पूर्वपक्ष के माध्यम से बड़ी ही प्रबलता और तार्किक ढंग से खण्डन करते हुए अनेकान्तवाद के द्वारा जैनदर्शन के अखण्ड सिद्धान्तों की दृढ़ता के साथ स्थापना की। उनके द्वारा लिखित उनकी गहन दार्शनिक चिंतन से भरपूर स्तुतिपरक सभी कृतियाँ ही इस सबके लिए स्पष्ट प्रमाण है।
महान् आचार्य उमास्वामी (प्रथम शताब्दी) द्वारा प्रणीत तत्त्वार्थसूत्र नामक जैनधर्म के प्रतिनिधि ग्रन्थ को जैसे संस्कृत के आद्य जैन सूत्रग्रन्थ और इसके कर्ता के आद्य सूत्रकार होने का गौरव प्राप्त है, वैसे ही स्वामी समन्तभद्र को आद्य स्तुतिकार होने का गौरव प्राप्त है। क्योंकि आपने रत्नकरण्डक श्रावकाचार ग्रन्थ के सिवाय अन्य सभी उच्च दार्शनिक कृतियों को स्तुतियों के माध्यम से बड़ी ही प्रखरता के साथ प्रस्तुत किया है। इसीलिए संस्कृत के जैन स्तोत्र-काव्य का सूत्रपात आपके द्वारा ही हुआ। अतः आपको जैन परंपरा का आद्य स्तुतिकार होने का भी गौरव प्राप्त है.
‘भारतभूषण’उपाधि से अलंकृत–आगमकाल में जिन तत्वों का प्रतिपादन सूत्र रूप में होता था, आपने उन्हें दार्शनिक पद्धति से प्रस्तुत करते हुए स्याद्वाद, अनेकांतवाद, प्रमाण, नय, सप्तभंगी जैसे उत्कृष्ट जैन दार्शनिक अकाट्य सिद्धांतों के आधार से प्रतिपादन किया है. इसीलिए संस्कृत पांडवपुराण के कर्ता आचार्य शुभचंद्र  तो आपकी कृतियों और अजेय व्यक्त्तित्व से इतने प्रभावित हुए कि आपके विषय में ‘समंतभद्रो भद्रार्थो भातु भारतभूषण:’ कहकर आपको ‘भारतभूषण’ जैसी  गौरवपूर्ण उपाधि तक से विभूषित किया है।
यह भी इतिहास में लिखी जाने योग्य पहली घटना है कि किसी मनीषी को प्रदान की जाने यह  सर्वोच्च और सर्वप्राचीन उपाधि है। यह एक आश्चर्यकारी प्रसंग है कि किसी सत्रह सौ वर्ष प्राचीन आचार्य को बृहत्तर भारत की इस सर्वोच्च उपाधि प्रदान की गई हो। वस्तुतः आपकी अगाध ज्ञानगरिमा तथा प्रभावक व्यक्तित्त्व और उत्कृष्ट कृतित्व के आधार से आपको प्रदान की गई यह उपाधि पूर्णतः सार्थक ही है।
वस्तुतः इनके महान् प्रभावक व्यक्तित्व का ज्ञान इससे भी होता है कि इनके द्वारा रचित गागर में सागर की तरह स्तुतिपरक सभी ग्रंथों पर इनके परवर्ती अनेक आचार्यों ने अनेक व्याख्या-ग्रन्थ लिखकर उनके चिन्तन के माध्यम से जैनदर्शन को अधिक विस्तार और विकास की दिशा प्रदान कर अपने जीवन को धन्य माना।इनके परवर्ती सभी आचार्यों ने भी आचार्य समन्तभद्र स्वामी के इस दाय को मात्र स्वीकार ही नहीं किया, अपितु आत्मसात करके उसे विस्तृत करने योगदान  भी किया है।
जैनन्याय के प्रसिद्ध विद्वान् और हमारे गुरुवर्य डाॅ. दरबारी लाल जी कोठिया ने आचार्य विद्यानन्द प्रणीत आप्तपरीक्षा की प्रस्तावना में लिखा है कि- वे वीरशासन के प्रभावक, सम्प्रसारक और युगप्रवर्तक आचार्य हैं। आचार्य अकलंकदेव ने इन्हें कलिकाल में स्याद्वाद रूपी पुण्योदधि के तीर्थ का उत्कृष्ट प्रभावक आचार्य (अष्टशती, पृ. 2)बतलाया है। आचार्य जिनसेन ने (हरिवंश पुराण 1/30) इनके वचनों को भगवान महावीर के वचनतुल्य  प्रकट किया है। वेल्लूर ताल्लुकेका के शिलालेख (सं. 17) में इन्हें भगवान् महावीर के तीर्थ की हजार गुणी वृद्धि करने वाला कहा है।
इस प्रकार जैनन्याय के विकास में स्वामी समन्तभद्राचार्य का प्रमुख स्थान है। इनके परवर्ती अनेक ग्रन्थकारों ने इनकी विविध रूपों में प्रशंसा लिखकर अपने को गौरवान्वित समझा। इतना ही नहीं, दक्षिण भारत में उपलब्ध अनेक शिलालेखों में इनकी यशोगाथा का उल्लेख मिलता है।
आप्तमीमांसा तत्त्वदीपिका नामक (प्रो उदयचंद जी द्वारा लिखित) पुस्तक पर पण्डित कैलाशचन्द जी शास्त्री ने अपने प्राक्कथन में लिखा है कि मीमांसादर्शन के महान् आचार्य शबरस्वामी ने अपने शाबरभाष्य ग्रन्थ में स्वामी समन्तभद्र के आप्त मीमांसा शास्त्र में सर्वज्ञसिद्धि विषयक कारिका ‘‘सूक्ष्मान्तरित दूरार्थाः’’ का अनुकरण करते हुए वेदों को भी सूक्ष्मादि पदार्थों का ज्ञान कराने में समर्थ बतलाया है। इसका भी आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने अपने आप्त मीमांसा ग्रंथ में खंडन किया है.
 विद्वानों (हिन्द तत्त्वज्ञाननो इतिहास, उ. पृ. 112) में ऐसी मान्यता प्रचलित रही कि शबरस्वामी जैनों के भय से वन में शबर अर्थात् भील का वेष धारण करके रहते थे।, इसलिए उन्हें शबर स्वामी कहते थे। शिलालेखों आदि से स्पष्ट है कि आचार्य समन्तभद्र अपने समय के प्रखर तार्किक, वाग्मी और वादी थे। तथा उन्होंने सर्वत्र भ्रमण करके शास्त्रार्थ में अनेक प्रतिवादियों को परास्त किया था। हो सकता है कि आ. समन्तभद्र के भय से ही शबरस्वामी को वन में भील का वेष बनाकर रहना पड़ा हो। इसलिए वे आ. समन्तभद्र के मतों का निराकरण करने का साहस नहीं कर सके। भले ही उनका अनुकरण करके अपने अभीष्ट की सिद्धि करते रहे।
जैसे प्रसिद्ध मीमांसक दार्शनिक आचार्य कुमारिल भट्ट ने आचार्य समन्तभद्र द्वारा स्थापित सर्वज्ञ का खण्डन करने का कथित प्रयास करके अपने पूर्वज शबरस्वामी का बदला चुकाया।(भले ही वे इसमें पूर्णतः सफल नहीं हुए,) वैसे ही आ०अकलंकदेव ने अष्टशती ग्रन्थ में कुमारिलभट्ट  का खण्डन करके अपने पूर्वज समन्तभद्र स्वामी का बदला लिया ही, अष्टसहस्री में आचार्य विद्यानन्द ने मीमांसकों का जोरदार खण्डन करके मयब्याज के बदला ले लिया।
इस प्रकार दिगम्बर जैन परम्परा के अनेक आचार्यों में आचार्य कुन्दकुन्द और आचार्य उमास्वामी के बाद स्वामी समन्तभद्र ही एकमात्र ऐसे गरिमा-मण्डित एवं प्रभावक आचार्य हुए हैं, जिन्होंने जैन दार्शनिक सिद्धान्तों की व्यापक प्रतिष्ठा की और जैनधर्म के दार्शनिक चिन्तन को तर्कपूर्ण शैली में प्रमाणशास्त्रीय पद्धति पर प्रतिष्ठापित कियाl आचार्य अकलंकदेव (7 वीं शती), आ.विद्यानन्द (8वीं शती) आ. माणिक्यनंदि (11वीं शती) और आ.प्रभाचन्द्र (11-12वीं शती) जैसे अनेक परवर्ती दार्शनिक आचार्यों ने जैन प्रमाणशास्त्र का जो विशाल प्रासाद निर्मित किया, उसकी बुनियाद(नींव)रखने का श्रेय आचार्य समन्तभद्र स्वामी को ही प्राप्त है। इसीलिए अनेक आचार्यों ने अपने ग्रन्थों में आपका बहुमान के साथ काफी गुणगान किया है।
आचार्य अकलंकदेव ने आपको भव्य जीवों के लिए अद्वितीय नेत्र एवं ‘स्याद्वादमार्ग का पथिक’ विशेषण दिया है। आपने शास्त्रार्थों में बड़े-बड़े विद्वानों को परास्त किया था। इसलिए आचार्य जिनसेन ने इन्हें कवित्व, गमकत्व, वादित्व और वाग्मित्व आदि गुणों का धनी बताया।
अनेक शिलालेखों और ग्रंथकारों ने अपने ग्रंथों में आपके विभिन्न गुणों और विशेषताओं का उल्लेख कर आपकी उत्कृष्ट महिमा का और जिनशासन के प्रति आपके अनुपम योगदान और समर्पण का उल्लेख करते हुए आपके प्रति अगाध श्रद्धा व्यक्त की है। इसीलिए अनेक शास्त्रीय उल्लेखों में आपको भावी तीर्थंकर तक बतलाया गया है।
तत्कालीन परिस्थितियाँ और दार्शनिक प्रस्थापनायें-
आचार्य समन्तभद्र द्वारा प्रणीत साहित्य के अध्ययन से यह भी स्पष्ट होता है कि इनके समक्ष अनेक दार्शनिकों और उनके विभिन्न मतों की बाढ़ सी आई हुई थी। वस्तुतः विक्रम की दूसरी-तीसरी शती अपने देश में दार्शनिक क्रान्ति का युग रहा है।अन्यान्य भारतीय दार्शनिकों के और आपके द्वारा रचित ग्रंथों के तुलनात्मक अध्ययन से ज्ञात होता है कि आपके युग में अश्वघोष, मातृचेट, नागार्जुन, कणाद, गौतम, जैमिनि जैसे दिग्गज दार्शनिक और इनके अपने- अपने मतों की प्रतिद्वन्दिता चरम पर भी। परस्पर शास्त्रार्थों के माध्यम से परमत खण्डन और स्वमत मण्डन का बाहुल्य था।
उस समय सम्पूर्ण देश में व्यापक इन सब विविध मतों के बीच आचार्य समन्तभद्र ने अपनी अद्भुत् मेधा और तार्किक ढंग से इन विभिन्न एकान्तवादी मतों का सूक्ष्मता से परीक्षण करके प्रबल युक्तियों से उनका खण्डन करके जैन दार्शनिक सिद्धान्तों की शाश्वतता स्थापित की।और अनेकान्तवाद और स्याद्वाद आदि समन्वयवादी सिद्धांतों की जो ध्वजा लहराई, उसका सम्पूर्ण दार्शनिक जगत् में व्यापक प्रभाव हुआ।यही सब तो आपके अपराजित व्यक्तित्व का परिचायक है।

यद्यपि इनसे पूर्व के जैन आगमों में प्रमाणशास्त्र के बीज उपलब्ध होते हैं, किन्तु वास्तविक दार्शनिक मन्तव्यों का प्रमाणशास्त्रीय विकास एवं तार्किक विवेचन मुख्यतः आचार्य समन्तभद्र स्वामी से प्रारम्भ होता है।

 वस्तुतः इनके समक्ष जहाँ एक ओर अपने पूर्वाचार्यों की परम्परा के संरक्षण का दायित्व था, वहीं दूसरी ओर प्रमाणशास्त्र के रूप में विकसित हो रही अन्य दार्शनिक परम्परा भी थी,जिसके साथ उनका सामजंस्य बैठाना था। आचार्य समन्तभद्र ने अपने इस दोहरे दायित्व का निर्वाह बड़ी ही कुशलता के साथ किया।

आचार्य समन्तभद्र स्वामी कृतित्व-  
आपकी उपलब्ध कृतियों में  से रत्नकरण्डक-श्रावकाचार को छोड़कर शेष चारों स्तुतिपरक गहन दार्शनिक कृतियाँ हैं, जिनमें आपने अपने इष्टदेवों की स्तुति के बहाने एकांतवादि दार्शनिकों के मतों का समीक्षापूर्वक खंडन करके अनेकांतवाद की दृढ़ता के साथ स्थापना की है । क्योंकि आपमें सातिशय श्रद्धा गुण के साथ ही गुणग्राहिता अप्रतिम प्रतिभा का गुण भी भरपूर विद्यमान था।
उपलब्ध कृतियाँ– आपके द्वारा प्रणीत उपलब्ध कृतियों में–१.युक्त्यनुशासन-अपरनाम वीरजिनस्तोत्र, २. स्वयम्भूस्तोत्र अपरनाम चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र,  ३.जिनशतक अपरनाम स्तुतिविद्या ४.रत्नकरण्डक-श्रावकाचार और ५.देवागम अपरनाम आप्तमीमांसा–ये वर्तमान में प्रमुख उपलब्ध कृतियाँ हैं।
अनुपलब्ध कृतियाँ– आपके द्वारा सृजित किन्तु अनुपलब्ध कृतियों में जीवसिद्धि और गन्धहस्तिमहाभाष्य नामक रचनाओं का उल्लेख क्रमशः आचार्य जिनसेन ने अपने हरिवंशपुराण में तथा जैन नाटककार हस्तिमल्ल ने अपने ‘‘विक्रान्तकौरवम्’’ नामक नाटक में किया है। कन्नड़़ भाषा के महाकवि महाराजा चामुण्डराय (वि. सं. 1035) ने अपने ग्रंथ ‘त्रिषष्टि-लक्षण महापुराण’ में भी आपके द्वारा रचित ‘गन्धहस्ति महाभाष्य’ का उल्लेख किया है। इनके साथ ही आपके द्वारा रचित तत्त्वानुशासन,प्राकृतव्याकरण,प्रमाणपदार्थ,कर्मप्राभृतटीका–इन अनुपलब्ध ग्रंथों के भी परवर्ती शास्त्रों में संदर्भ सहित उल्लेख प्राप्त होते हैं।
आपके द्वारा सृजित उपलब्ध साहित्य का परिचय–
१.युक्त्यनुशासन– ‘कीर्त्या महत्या भुवि वर्धमानं’—इस काव्य से आरम्भ वर्धमान-वीर जिनेन्द्र की स्तुति से युक्त यह एक उत्कृष्ट दार्शनिक कृति है। इस ग्रंथ का नाम वीर जिन स्तोत्र भी है, जो युक्ति प्रत्यक्ष और आगम के विरुद्ध नहीं है उसे वस्तु की व्यवस्था करने वाले शास्त्र का नाम युक्त्यानुशासन है। इस रचना का उद्देश्य यही है कि जो लोग न्याय-अन्याय को पहचानना चाहते हैं और प्रकृत पदार्थ के गुण दोष जानने की जिनकी इच्छा है, उनके लिए यह स्तोत्र हितकारी उपाय प्रस्तुत करता है ।
आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने भगवान् महावीर के शासन को सर्वोदयी शासन कहा है।वस्तुतः आप भगवान् महावीर के सर्वोदय तीर्थ के भी आप प्रमुख प्रवक्ता थे।
बीसवीं शताब्दी में महात्मा गाँधी जी एवं विनोबा भावे द्वारा प्रचलित सर्वोदय चिंतन का यह सर्व प्राचीन प्रथम उल्लेख माना जाता है।वह इस प्रकार है-
सर्वान्तवत्तद्‌गुणमुख्यकल्पं सर्वान्तशून्यं च मिथोऽनपेक्षम्। सर्वापदामन्तकरं निरन्तं सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव ॥ ६७।।
अर्थात् हे जिनेन्द्रदेव! आपका यह सभी धर्मों से युक्त, गौण और मुख्य की कल्पना से सहित, सभी धर्मों से शून्य, परस्पर अपेक्षा से रहित अर्थात् परिपूर्ण, सभी आपदाओं का अन्त करने वाला और अन्तहीन आपका यह सर्वोदय तीर्थ ही सभी कल्याण करने वाला है।
इस कृति में सप्तभंगी, अनेकांत, स्याद्वाद आदि अनेक सिद्धान्तों का अच्छा विवेचन किया गया है। अन्यान्य दार्शनिकों के नित्यत्व, क्षणिकत्व आदि मतों की युक्तिपूर्वक समीक्षा और खण्डन करते हुए तीर्थंकर महावीर स्वामी के शासन का मंडन किया गया है। इसमें दो प्रस्ताव और चौसठ कारिकायें हैं।  अंतिम चार कारिकाऐं उपसंहार रूप में दी गयी हैं। जिनमें वीरशासन की विशेषताओं, स्तोत्र का उद्देश्य, वीर और महावीर नाम की सार्थकता बतलाते हुए अन्त में मोक्षमार्ग की कामना की गई है।
इस ग्रंथ पर भी आचार्य विद्यानन्द की ‘‘युक्त्यनुशासनालंकार’’ नाम की व्याख्या उपलब्ध है।
२. स्वयंभूस्तोत्र– यह 143 पद्यों और विभिन्न छंदों से युक्त तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थंकरों के गुणानुवाद युक्त भावपूर्ण स्तवन है, इसीलिए इसे चतुर्विंशतिस्तोत्र भी कहते हैं, जो अनेक जैन सिद्धान्तों का दर्पण भी माना जाता है। दूसरों के उपदेश के बिना ही जिन्होंने स्वयं मोक्षमार्ग को जानकर और उसका अनुष्ठान कर अनंत चतुष्टय स्वरूप आत्म विकास को प्राप्त किया है, उन्हें स्वयंभू कहते हैं अतः यह स्वयंभू स्तोत्र सार्थक संज्ञा को प्राप्त है।
नित्य पाठ करने योग्य इसके सभी पद्य गंभीर अर्थ से गर्भित हैं।  इस पर आचार्य प्रभाचंद्र कृत एक लघु संस्कृत व्याख्या है, जिसमें आपने इसे ‘निःशेषजिनोक्तधर्म’ कहा है. इसका कुछ परवर्ती विद्वानों ने हिन्दी पद्यानुवाद भी किया है, जो काफी लोकप्रिय हैं।
३.स्तुतिविद्या (जिनशतक)–
इस ग्रन्थ का मूल नाम स्तुतिविद्या है, जैसा कि प्रथम मंगल पद्म में प्रयुक्त हुए ‘स्तुतिविद्यां प्रसाधये’ प्रतिज्ञा वाक्य से ज्ञात होता है। इसके 116 पद्यों में स्वयंभूस्तोत्र की तरह प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थंकरों का आलंकारिक भाषा में स्तवन है।
यह शब्दालंकार प्रधान ग्रन्थ है। इसमें चित्रालंकार के अनेक रूपों को देखकर      स्वामी समन्तभद्र के अगाध काव्यकौशल का सहज ही पता चल जाता है। इस ग्रन्थ के गत्वेकस्तुतमेव (११६) इस कविनाम गर्भचक्रवाले पद्य के सातवें वलय में ‘शान्तिवर्मनकृतं’ तथा चौथे वलय में ‘जिनस्तुतिशतं’ नाम निकलता है। ग्रन्थ में कई तरह के चक्रवृत्त दिए है। स्वामी समन्तभद्र ने अपने इस ग्रन्थ को ‘समस्तगुणगणोपेता’ और ‘सर्वालंकारभूषिता’ बतलाया है। यह ग्रन्थ इतना गूढ़ है कि बिना संस्कृत और हिन्दी टीका के समझना प्रायः असंभव है। इसी से टीकाकार ने ‘योगिनामपि दुष्करा’ विशेषण द्वारा योगियों के लिए भी दुर्गम बतलाया है।
 इसका शब्दविन्यास अलंकार की विशेषताओं को लिए हुए है। कहीं श्लोक के एक चरण को उल्टा रख देने से दूसरा चरण बना जाता है और पूर्वार्ध को उलटकर रख देने से उत्तरार्द्ध और समूचे श्लोक को उलट कर रख देने से दूसरा श्लोक बन जाता है। ऐसा होने पर भी उनका अर्थ भिन्न-भिन्न है। इस ग्रन्थ के अनेक अनेक पद्य ऐसे हैं, जो एक से अधिक अलंकारों को लिए हुए हैं । कुछ पद्य ऐसे भी हैं कि जो दो-दो अक्षरों से बने हैं ।   संस्कृत में इस पर एक अज्ञातकर्तृक वृत्ति (विवरण) उपलब्ध है।
४. रत्नकरण्डक-श्रावकाचार- सरलतम 150 पद्यों में निबद्ध एवं समीचीन धर्मशास्त्र और उपासकाध्ययन-इन अपरनामों से अभिहित यह श्रावकों के सम्पूर्ण आचार-विचार विषयक अति महत्त्वपूर्ण श्रेष्ठ ग्रंथ है। समीचीन धर्म की देशना इसमें प्रतिपादित होने के कारण यह एक सुव्यवस्थित समीचीन धर्मशास्त्र भी है । इसकी भाषा प्रांजल, मधुर और अर्थ गौरव को लिए हुए हैं । यह ग्रंथरत्न श्रावकधर्म रूपी रत्नों का छोटा सा पिटारा है, इस कारण इसका रत्नकरण्डक-श्रावकाचार नाम सार्थक है।
इस पर आचार्य प्रभाचन्द्र कृत एक अति सुबोध संस्कृत व्याख्या तथा अज्ञातकर्तृक कन्नड़ टीका भी उपलब्ध है।
५.देवागम-आप्तमीमांसा–
जैसे ‘भक्तामर,’एकीभाव’– ये स्तोत्र इन्ही आद्य पदों से आरम्भ होनेके कारण वे उन नामों से प्रसिद्ध हैं, उसी प्रकार यह भी ‘देवागम’ पदसे आरम्भ होनेसे ‘देवागमस्तव’ नामसे अधिक प्रसिद्ध रहा हो और इसीसे ग्रन्थकारों द्वारा वह इसी नामसे विशेषरूप से लिखित हुआ हो।इसलिए प्राचीन ग्रन्थकारों ने आचार्य समन्तभद्र की प्रस्तुत कृति का ‘देवागम’ नाम से ही इसका उल्लेख किया है। अकलङ्कदेको इसपर अपना विवरण (अष्टशती-भाष्य) लिखने की प्रतिज्ञा करते हुए उसके आरम्भ में इसका यही नाम दिया है और उसे’भगवत्स्तव’ (भगवान् का स्तोत्र) कहा है।’
आचार्य विद्यानन्द ने भी अपने’अष्टसहस्री’ ग्रंथ में  आचार्य अकलंकदेव के अष्टशती ग्रंथ में आये ‘स्वोक्तपरिच्छेदे’ पदकी व्याख्या ‘देवागमाख्ये… शास्त्रे’ करके इसका ‘देवागम’ नाम स्वीकार किया है। आचार्य वादिराज, महाकवि हस्तिमल्ल आदि ग्रन्थकारोंने भी अपने ग्रन्थोंमें आ. समन्तभद्र की उल्लेखनीय कृतिके रूपमें इसका देवागम इसी नामसे निर्देश किया है।
आचार्य विद्यानन्द ने अपने ग्रन्थोंमें ‘देवागम’ नामके अतिरिक्त इसके ‘आप्तमीमांसा’ नामका भी उपयोग किया है। आचार्य समन्तभद्र ने स्वयं अपने इसी ग्रंथ की ११४ वीं अन्तिम कारिका में इसका ‘आप्तमीमांसा’ नाम दिया है, जिसे ऊअकलङ्कदेवने’ ‘सर्वज्ञविशेषपरीक्षा’ कहा है।इससे मालूम पड़ता है कि यह कृति जहाँ ‘देवागम’ नामसे जैन साहित्यमें विश्रुत है, वहाँ वह ‘आप्तमीमांसा’ नाम से भी प्रसिद्ध रही है ।
विषय परिचय : यह ग्रंथ११४ कारिकाओं से युक्त दस परिच्छेदोंमें विभक्त है । विषय विभाजन की दृष्टि से  यह दश-संख्यक परिच्छेदों की परिकल्पना हमें आचार्य उमास्वामी विरचित तत्वार्थसूत्र के दस अध्यायों का स्मरण दिलाती है। अन्तर इतना ही है कि तत्वार्थसूत्र गद्यात्मक तथा सिद्धान्तशैलीमें रचित है और देवागम पद्यात्मक एवं दार्शनिक शैली में रचा गया है। उस समय दार्शनिक रचनाएँ, प्रायः कारिकात्मक स्तुतिरूप में रची जाती थी। अतः आचार्य समन्तभद्र ने भी समय की मांगके अनुरूप अपने तीन (स्वयम्भू, युक्त्यानुशासन और देवागम) स्तोत्र दार्शनिक एवं कारिकात्मक शैलीमें रचे है।
इसमें उन विशेषताओं का उल्लेख करके मीमांसा की गई है, जिनसे आप्त स्वीकार करने की बात कही गयी है, जो निर्दोष हो। उसे उन हेतुओं से सामान्य आप्त (सर्वज्ञ) का संस्थापन (अनुमान) किया है, जो साध्यका अविनाभावी तथा निर्दोष है। ग्रन्थकार ने वीर जिन की परीक्षा कर उन्हें सर्वज्ञ और आप्त बतलाया है तथा जिसके वचन युक्ति और शास्त्र से अविरोधी पाए गए उन्हें ही आप्त बतलाया। यहाँ कहा है कि हे भगवान! जिनशासनामृत से बाह्य जो सर्वथा एकान्तवादी हैं वे आप्त नहीं हैं किन्तु जो आप्त के अभिमान से दग्ध सर्वथा एकान्तवादी है, वे आप्त नहीं हैं, उनके द्वारा प्रतिपादित इष्ट तत्त्व प्रत्यक्ष प्रमाण से बाधित हैं। इस कारण भगवान् आप ही निर्दोष है।
इसके बाद इन एकान्तवादियों की भावैकान्त, अभावैकान्त, उभयैकान्त, अवाच्यतैकान्त, द्वैतैकान्त, अद्वैतैकान्त, भेदैकान्त-अभेदैकान्त, पृथक्त्वैकान्त, नित्यैकान्त, अनित्यैकान्त, क्षणिकैकान्त, दैवैकान्त, हेतुवाद, आगमवाद आदि की समीक्षा की गई है और बतलाया है कि इन एकान्तों के कारण लोक, परलोक, बन्ध, मोक्ष, पुण्य, पाप, धर्म, अधर्म, दैव, पुरुषार्थ आदि की व्यवस्था नहीं बन सकती। इनकी सिद्धि स्याद्वाद से होती है। स्याद्वाद के बिना हेय, उपादेय तत्त्वों की व्यवस्था भी नहीं बनती। क्योंकि स्याद्वाद सप्तभंग और नयों की विवक्षा लिए रहता है।

आचार्य समन्तभद्र ने इन एकान्तवादियों को जो वस्तु को सर्वथा एकरूप मान्यता के आग्रह में अनुरक्त हैं, वे एकान्त के पक्षपाती होने के कारण स्व-पर बैरी हैं। क्योंकि उनके मत में शुभ, अशुभ, कर्म, लोक, परलोक आदि की व्यवस्था नहीं बन सकती। क्योंकि वस्तु अनन्त धमर्मात्मक है। उसमें अनन्त धर्मगुणस्वरूप मौजूद हैं।एकान्तवादी उनमें से एक ही धर्म को मानता है। उसी का उन्हें पक्ष है, इसलिए उन्हें स्व-पर बैरी कहा गया है।

 आगे सापेक्ष और निरपेक्ष नयों का संबंध बतलाते हुए कहा है कि निरपेक्ष नय मिथ्या और सापेक्ष नय सम्यक् है, और वस्तु तत्त्व की सिद्धि में सहायक होते हैं। इनसे तत्त्व की महानता का सहज ही बोध हो जाता है।”
इस प्रकार अनेक युक्तियों के बाद वह सामान्य आप्तत्व अर्हत् परमेष्ठी में पर्यवसित किया गया है और कहा गया है कि चूंकि उनका शासन (तत्त्वप्ररूपण) सभी प्रमाणों के  अविरुद्ध है, अतः वही आप्त प्रमाणित है।
देवागम-आप्तमीमांसा पर उपलब्ध व्याख्या साहित्य –- आपके पूर्वोक्त वीतरागी तीर्थंकर के स्तुतिपरक  ग्रंथों में गहन दार्शनिक सिद्धान्तों का कूट-कूट कर समावेश आपकी असाधारण प्रतिभा का द्योतक है। यही कारण है कि आपकी इन स्तुतिपरक दार्शनिक कृतियों पर आचार्य अकलंकदेव और आचार्य विद्यानन्द जैसे अपने युग के उद्भट आचार्यों ने अति उत्कृष्ट और गहन टीकायें, वे भी मौलिक ग्रंथों की तरह लिखकर अपने को गौरवशाली एवं कृतार्थ समझा।
१.अष्टशती- आप्तमीमांसा पर आचार्य अकलंकदेव (सातवीं शती) ने ‘अष्टशती’ के नाम से प्रसिद्ध देवागम विवृत्ति/ देवागम-भाष्य नामक गहन टीका ग्रंथ की रचना की। यह देवागमकी उपलब्ध व्याख्याओंमें सबसे प्राचीन और अत्यन्त दुरूह व्याख्या है। किन्तु यह इतनी जटिल टीका है कि इस पर आचार्य विद्यानन्द कृत अष्टसहस्री जैसे विशाल टीका ग्रंथ के बिना सहारे इसे समझना प्रायः कठिन है।इसके परिच्छेदोंके अन्त मे जो समाप्ति-पुष्पिकावाक्य पाये जाते हैं उनमें इसका आप्तमीमांसाभाष्य (देवागम भाष्य) के नामसे उल्लेख हुआ है।  अष्टशती का मंगलाचरण इस प्रकार है–
वन्दित्वा परमार्हतां समुदयं गां सप्तभंगीविधिं। स्याद्वादामृतगर्भिणीं प्रतिहतैकान्तान्धकारोदयाम्।।१।
इस ग्रन्थ की आठ सौ श्लोक-प्रमाण रचना होने से इसे “अष्टशती’ कहा गया है। इस तरह यह आ० अकलङ्कदेव की व्याख्या देवागम-विवृत्ति,आप्तमीमांसा-भाष्य(देवागम-भाष्य) और अष्टशती इन तीनों नामों से जैन वाङ्मयमें विश्रुत है। इसका प्रायः प्रत्येक स्थल इतना जटिल एवं दुरवगाह है कि साधारण विद्वानों का इसमें प्रवेश सम्भव नहीं है। उसके मर्म एवं रहस्य को आचार्य विद्यानन्द के ‘अष्टसहस्री’ ग्रंथ के सहारे ही ज्ञात किया जा सकता है। भारतीय दर्शनशास्त्रों में इसकी जोड़ की रचना दुर्लभ है।
अष्टसहस्री के अध्ययन में जिस प्रकार कष्टसहस्रीका अनुभव होता है, उसी प्रकार इस अष्टशती के अभ्यास में भी कष्टशती का अनुभव उसके अभ्यासी को पद-पद पर होता है।
२.अष्टसहस्री—आचार्य विद्यानन्द (आठवीं शती) द्वारा देवागम पर लिखित ‘‘देवागमालंकृति’’ नामक यह विशाल व्याख्या है।उनकी यह एक अपूर्व एवं महत्त्वपूर्ण रचना है।इसे आप्तमीमांसालंकृति, आप्तमीमांसालङ्कार,देवागमालङ्कार और देवागमालंकृति-इन नामों से भी साहित्य में    ‘अष्टसहस्री’को उल्लिखित किया गया है।लगता है कि इस अष्टशती की आठ सौ संख्या को ध्यानमें रखकर ही अपनी ‘देवागमालंकृति’ व्याख्या को उन्होंने आठ हजार श्लोक-प्रमाण बनाया और ‘अष्टसहस्री’ नाम रखा।
देवागम की तीनों व्याख्याओं में यह विस्तृत और प्रमेयबहुल व्याख्या है। इसमें मूलग्रंथ देवागम की कारिकाओं के प्रत्येक पद, वाक्य का विस्तृत दार्शनिक विवेचन तो किया ही गया है, साथ ही इसमें आचार्य अकलंकदेव की अष्टशती को भी आत्मसात करते हुए इसका भी विशद् व्याख्यान किया गया है। यह इतनी विशाल और प्रमेयबहुल है कि टीकाकार ने स्वयं इस अष्टसहस्री ग्रंथ को कष्टसहस्री तक कह दिया।
इसमें देवागम की कारिकाओं और उनके प्रत्येक पद-वाक्यादिका विस्तारपूर्वक अर्थोद्घाटन किया है। साथ ही उपर्युक्त अष्टशती के प्रत्येक पद वाक्यादि का भी विशद अर्थ एवं मर्म प्रस्तुत किया है।
अष्टसहस्री में अष्टशती ग्रंथ को इस तरह आत्मसात् कर लिया गया है, कि यदि दोनों को भेद-सूचक पृथक् पृथक् टाइपों में न रखा जाय तो पाठक को यह जानना कठिन है कि कौन सा अष्टशतीका अंश है और कौन सा अष्टसहस्री का। आचार्य विद्यानंद ने अष्टशती के आगे- पीछे और मध्य की आवश्यक एवं अर्थोपयोगी सान्दर्भिक वाक्यरचना करके अष्टशतीको अष्टसहस्री में मणि-प्रवाल-न्याय से अनुस्यूत किया है और अपनी तलस्पर्शिनी अद्भुत प्रतिभाका चमत्कार दिखाया है।
वस्तुतः अष्टशती के अध्ययन से ऐसा लगता है कि यदि आ० विद्यानंद अष्टसहस्री न रचते तो अष्टशती का गूढ़ रहस्य अष्टशती में ही छिपा रहता और मेधावियोंके लिये भी वह रहस्यपूर्ण बनी रहती। देवागम और अष्टशती के व्याख्यानोंके अतिरिक्त इसमें आ०विद्यानंदने अनेकानेक नयी विचारपूर्ण प्रमेयबहुल अपूर्व चर्चाएँ भी प्रस्तुत की हैं। व्याख्याकार ने स्वयं अपनी इस कृति के महत्त्व की उद्घोषणा करते हुए लिखा है–
श्रोतव्याष्टसहस्रीश्रुतैःकिमन्यैःसहस्रसंख्यानैः।
विज्ञायेतययैव स्वसमय-परसमयसद्भावः।।
अर्थात् ‘हजार शास्त्रोंका पढ़ना-सुनना एक तरफ है और एकमात्र इस कृतिका अध्ययन एक ओर है, क्योंकि इस एक के अभ्यास से ही स्वसमय और परसमय दोनोंका ज्ञान हो जाता है।’
व्याख्याकार की यह घोषणा न मदोक्ति है।  अपितु यह अतिशयोक्ति स्वयं इसकी निर्णायिका है। वस्तुतः यह मात्र इन्होंने अपने अष्टसहस्री ग्रंथ की प्रशंसा मात्र में नहीं लिखा, अपितु यह वास्तविकता है।देवागम में दस परिच्छेद हैं, अतः उसके व्याख्यास्वरूप अष्टसहस्त्री में भी दस परिच्छेद हैं। प्रत्येक परिच्छेदका आरम्भ और समाप्ति –ये दोनों एक-एक गम्भीर पद्य द्वारा किये गये हैं।
इस पर लघुसमन्तभद्र (१३वीं शती) ने      ‘अष्टसहस्त्री-विषमपदतात्पर्यटीका’ और श्वेताम्बर विद्वान् यशोविजय (१७ वीं शती) ने l l नाम की व्याख्याएँ लिखी हैं, जो अष्टसहस्त्री के विषमपदों, वाक्यों और स्थलों का स्पष्टीकरण करती हैं। यह देवागमालंकृति सन् १९१५ में सेठ नाथारङ्ग जी गांधी सोलापुर द्वारा प्रकाशित हो चुकी है।
३. आप्तमीमांसा वृत्ति– यह आचार्य वसुनन्दि (11-12वीं शती) प्रणीत संस्कृत में रचित सीधी-सादी सरल किन्तु लघु एवं सारभूत अति संक्षिप्त व्याख्या है। इसमें देवागम की कारिकाओं का सरल सुबोध अर्थ प्रस्तुत किया गया है। न तो इसमें विस्तृत  ऊहापोह है और न अष्टशती या अष्टसहस्री जैसी दुरूहता या गंभीरता है।
यद्यपि वसुनन्दि नाम के कुछ और आचार्यों के नामोल्लेख मिलते हैं, किन्तु प्राकृत भाषा में रचित श्रावकाचार, प्रतिष्ठासारसंग्रह तथा मूलाचार की आचारवृत्ति के रचयिता आचार्य से ये भिन्न हैं।  आप्तमीमांसावृत्तिकार की अन्य रचना ‘जिनशतक टीका’ का उल्लेख मिलता है।
४.आप्तमीमांसा टब्बार्थ (अप्रकाशित) – दिल्ली स्थिति भोगीलाल लहेरचन्द भारतीय विद्या संस्थान में एक समृद्ध भण्डार है, जिसमें पच्चीस हजार से अधिक हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ हैं। इनमें हस्तलिखित क्रमांक 14087 पर बीस पत्रों का महत्त्वपूर्ण ‘‘आप्तमीमांसा टब्बार्थ’’ नामक ग्रन्थ शास्त्र है। जो आचार्य समन्तभद्र के इसी आप्तमीमांसा एवं इसी पर आचार्य वसुनन्दि कृत लघु व्याख्या देवागम वृत्ति पर आधारित प्राचीन गुजराती मिश्रित मारवाड़ी भाषा में अनुवाद जैसा है। यह अभी तक अप्रकाशित है।
 इसकी हस्तलिखित प्रति बड़ी ही जीर्ण-शीर्ण है। इसके पत्र आपस में चिपके होने के कारण बीच में मोटे अक्षरों में लिखित मूल कारिकाओं के अक्षर तो पूरी तरह मिटे हुये हैं किन्तु इसके ऊपर-नीचे छोटे-छोटे अक्षरों कारिकाओं का अर्थ आचार्य वसुनन्दि की टीका के आधार पर लिखा गया है, वे अंश कहीं-कहीं पर अस्पष्ट होने पर भी काफी कुछ सुरक्षित हैं। इसके आरम्भ का संस्कृत मंगलाचरण इस प्रकार है -।।अर्हं।।
नत्वाश्रीमज्जिनाधीशंभव्यानां स्वात्मलब्धये।
देवागमस्तवस्येदं स्तबकार्थं करोम्यहम्।।
इसके बाद बड़े अक्षरों में मध्य में सर्वप्रथम ‘‘मोक्षमार्गस्य नेतारं …. इत्यादि तत्त्वार्थसूत्र का आरम्भिक मंगलाचरण देकर इसके अर्थ के बाद आप्तमीमांसा ग्रन्थ का– देवागम नभोयान चामरादि … यह कारिका देकर ऊपर छोटे अक्षरों में इसके प्रत्येक शब्द का अर्थ प्रस्तुत किया गया है। यथा – देवागम …. देवांरो आगमन स्वर्गसु मनुष्यलोक में तीर्थंकर 1. अवतरण, 2. जन्म, 3. दीक्षा, 4. केवलज्ञानोत्पत्ति, 5. मुक्तिगमन विषैं आवणौ … इस तरह प्रत्येक शब्द का अर्थ बतलाया है।अन्त में … अैसो श्रीमत् समंतभद्र आचार्य है, तीन भुवन में लाधी है जयरी पताका, प्रमाणनय रूप है नेत्र जिसमें स्याद्वाद रूप है शरीर जाकै, देवागमनामा शास्त्र रो संक्षेपरूप विवरणयो दराषणनै वसुनदिना माहू जडमति हू …।
इतिश्री आप्तमीमांसा नाम देवागम रु … दशम परिच्छेदः। संपूर्णा समाप्तं।। संवत् 1912 ना वर्षे भाद्र रा मासे शुक्ल पक्षे त्रयोदशी।
इस प्रति में टब्बाकार लेखक का नाम निर्देश आदि नहीं मिला अथवा मिट गया लगता है।
इन चार व्याख्याओं के अतिरिक्त अष्टसहस्री पर लघुसमन्तभद्र ने ‘‘अष्टसहस्री विषमपद तात्पर्य टीका’’ का उल्लेख मिलता है।एक अन्य टीका श्वेताम्बर परम्परा के महान् विद्वान् उपाध्याय यशोविजय (17वीं शती) ने ‘‘अष्टसहस्री-तात्पर्य विवरण’’नामक ऐसी अच्छी व्याख्या लिखी है, जो अष्टसहस्री के विषमपदों, वाक्यों और स्थलों का स्पष्टीकरण करती है और जो नव्यन्याय शैली में लिखी गयी है।
इस प्रकार आचार्य समन्तभद्र  का श्रमण परम्परा विशेषकर जैन प्रमाणशास्त्र के विकास में अनुपम योगदान को देखते हुए सुप्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. एस. एस. आर. आयंगर ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ ‘‘स्टेडीज इन साउथ इण्डियन जैनिज्म’’ में ठीक ही लिखा है कि – ‘‘दक्षिण भारत में आचार्य समन्तभद्र का उदय न केवल जैनों के इतिहास में ही अपितु संस्कृत साहित्य एवं संस्कृति के इतिहास में भी विशेष युग को रेखांकित करता है।
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प्रोफेसर फूलचंद जैन प्रेमी, अनेकांत विद्या भवन B,23/45 शारदानगर कालोनी, खोजवाँ, वाराणसी, 221010, मोबा. 9670863335,/9450179254
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एकल अभियान की तीन दिवसीय राष्ट्रीय खेलकूद प्रतियोगिता संपन्न


भुवनेश्वर। एकल अभियान की तीन दिवसीय राष्ट्रीय खेलकूद प्रतियोगिताः2025 10 फरवरी को स्थानीय कलिंग स्टेडियम में सुबह संपन्न हो गई। समारोह के मुख्य अतिथि के रुप में ओड़िशा के माननीय मुख्यमंत्री श्री मोहन चरण माझी,सम्मानित अतिथि के रुप में ओड़िय़ा प्रदेश सरकार के खेलमंत्री सूर्यवंशी सूरज,एकल अभियान के अजय अग्रवाल,डॉ ललन कुमार शर्मा,मनसुखलाल सेठिया,विभूति भुषण जेना,दीप कुमार और अनिल बंसल आदि मंचासीन थे। आयोजन समिति के अध्यक्ष उद्योगपति व रोटेरियन अजय अग्रवाल ने सभी मंचस्थ मेहमानों का संक्षिप्त परिचय देते हुए स्वागत किया। उन्होंने ओड़िशा की परिपाटी के तहत सबसे पहले ओडिशा के मुख्यमंत्री तथा खेलमंत्री का अभिवादन पुष्पगुच्छ,शॉल तथा स्मृतिचिह्न भेंटकर किया। मुख्यमंत्री श्री मोहन चरण माझी ने प्रदेश करकार की ओर से पूरे भारत से आयो सभी खिलाड़ियों,कोचेज,अधिकारियों तथा सहयोगियों का स्वागत ओड़िशा सरकार की ओर से किया।

उन्होंने एकल अभियान की उपलब्धियों पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्हें ओड़िशा में हर संभव सहयोग का भी अपनी सरकार की ओर से भरोसा जताया।साथ ही साथ ओड़िशा में ग्रामीण खेलों को सबसे अधिक बढ़ावा देने की अपनी सरकार की वचनवद्धता तथा भावी योजनाओं को दी जानकारी दी। खेलमंत्री ने भी अपने संबोधन में एकल अभियान के शिक्षा,स्वास्थ्य,खेल और राममय भारत की परिकल्पना को साकार करने में संलग्न विभिन्न कार्यों की सराहना की।राई गईं जिनमें कुश्ती,कबड्डी,दौड़,योगाभ्यास आदि थीं। ओड़िशा के सुंदरगढ़ की कबड्डी टीम को मुख्यमंत्री ने चैंपियन ट्रॉफी प्रदान की।

भाजपा ने मिल्किपुर का चुनाव जीतकर बड़ा संदेश दिया

जून 2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद सबसे अधिक चर्चा फैजाबाद संसदीय क्षेत्र में भाजपा की पराजय की हुई, जहाँ श्री रामजन्मभूमि पर दिव्य, भव्य  राम मंदिर का हिन्दू समाज का 500 वर्ष पुराना सपना पूरा होने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। फैजाबाद जीत से विपक्ष का आत्मविश्वास इतना बढ़ गया कि इसके बाद हुई अपनी गुजरात रैली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने, भाजपा के राजनीति से विश्राम ले चुके वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी जी के राम मंदिर आंदोलन को ही हरा देने का दंभ भरा। लोकसभा में  सपा सांसद अवधेश  प्रसाद की तो मानो प्रदर्शनी लगा दी गई बड़बोले नेताओं ने उनको अयोध्या का रजा तक कह दिया।

फैजाबाद संसदीय सीट की हार और अवधेश प्रसाद को अयोध्या का राजा कहे जाने से सनातन समाज में दुःख, निराशा और क्षोभ था। मिल्कीपुर को सनातनी हिन्दुओं ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था क्योंकि सनातनधर्मी प्रभु राम को ही अयोध्या का एकमात्र राजा मानते हैं । यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि जब से सपा मुखिया और कांग्रेस ने अवधेश प्रसाद को अयोध्या का राजा कहना आरम्भ किया तभी से इनकी राजनीति गड़बड़ाने लगी।अब तक प्रदेश में 11 विधानसभा उपचुनाव हो चुके हैं जिसमें भाजपा को आठ सीटों पर सफलता मिली है और प्रदेश में सपा ओैर कांग्रेस गठबंधन भी बिखर रहा है।

राजनैतिक दल के रूप में भाजपा ने मिल्कीपुर चुनाव जीतने के लिए बेहद आक्रामक रणनीति तैयार की और  स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई बार मिल्कीपुर का दौरा किया। जब योगी जी मिल्कीपुर जाते थे तब सपा सांसद का बयान आता था कि योगी जी जितनी बार मिल्कीपुर आयेंगे भाजपा का वोट प्रतिशत उतना ही घटेगा और सपा का उतना ही वोट प्रतिशत बढ़ता जायेगा जबकि परिणाम उसके विपरीत आये हैं । मिल्कीपुर की जनता के बता दिया है कि अयोध्या के एकमात्र राजा प्रभु राम ही है।

मिल्कीपुर की जनता ने विपक्ष के नकारात्मक विचारों के एजेंडे को नकारते हुए विकास और सुशासन का साथ दिया। मिल्कीपर की जनता को अच्छी तरह से समझ में आ गया कि स्थानीय विकास के लिए सत्तारूढ़ भाजपा का विधायक ही आवश्यक है । मिल्कीपुर की जनता ने सपा के परिवारवाद और जातिवाद को नकार दिया है। परिणाम से यह भी साफ हो गया है कि योगी का बटेंगे  तो कटेंगे का नारा जातिवाद के विरुद्व हिंदुत्व की राजनीति को ताकत दे रहा है। इस विजय से भाजपा के लिए एकजुट हिंदुत्व की राजनीति के पथ पर आगे बढ़ना आसान हो गया है।

मिल्कीपुर सीट पर भाजपा को तीसरी बार जीत मिली है ।इससे पहले 1991 और 2017 में जीत मिली और अब 2025 में चंद्रभानु पासवान ने सपा के गढ़ में भगवा परचम लहराने में सफलता हासिल की है।मिल्कीपुर सीट का गठन 1967 में हुआ था और 1969 में तत्कालीन जनसंघ हरिनाथ तिवारी विधायक चुने गये थे।इसके बाद 1974 से 1989 तक यह विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी का अभेद्य किला बन गया।1991 में राम लहर में मथुरा प्रसाद तिवारी ने भाजपा से जीत दर्ज की फिर 2012 तक यहां पर भाजपा  को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2017 में मोदी लहर में भाजपा के बाबा गोरखनाथ विजयी रहे। यह अलग बात है कि इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा के अवधेश प्रसाद ने बाबा को पराजित किया। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने अवधेश  प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया था और वह जीत गये। तभी से भाजपा पर लगातार दबाव बनता जा रहा था कि किसी न सिकी प्रकार से यह सीट हर हाल में जीतकर दिखानी है और योगी जी की टीम ने यह काम कर दिखाया है।

मिल्कीपुर चुनाव से पूर्व प्रयागराज महाकुम्भ -2025 में योगी कैबिनेट ने एक साथ गंगा में पवित्र डुबकी लगाकर मीडिया जगत और जनमानस में इस बात का संदेह पूरी तरह से दूर कर दिया कि योगी कैबिनेट व भाजपा में आपस में कोई मतभेद व मनभेद है। मिल्कीपुर विधानसभा चुनाव में भाजपा भदरसा दुष्कर्म कांड के बहाने सपा पर हमलावर रही। चुनावों के बीच ही वहां पर एक बालिका के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या का एक मामला सामने आया उसके बाद विपक्षी दलों ने भाजपा को घेरने का असफल प्रयास किया। इस घटना को लेकर सभी दलों के नेताओं ने सोशल मीडिया पोस्ट करके राजनीतिक तापमान को गरमाने का असफल प्रयास किया था किंतु आरोपियों के पकड़े जाते ही यह मामला अपने आप गायब हो गया। इस प्रकरण में अवधेश प्रसाद के आंसू भी निकले और  खूब निकले यहां तक की मीडिया में बार- बार  दिखाया भी गया, मतदान के दिन अवधेश प्रसाद ने एक वीडियो बनवाकर चलवाया जिसमें वह हनुमान चालीसा पढ़ रहे थे, किन्तु ऐसी कोई भी ट्रिक इस चुनाव में नहीं चली। मिल्कीपुर की जनता ने इस बार लोकसभा की गलती  को ठीक करने का मन बना लिया था ।

मिल्कीपुर में अबकी बार संघ ने भी काम संभाला और मजबूत किलेबंदी के साथ हर बूथ पर संघ के पदाधिकारी मोर्चा पर डटे रहे। इसका असर मतदान के दिन दिखा भी।  संघ ने मतदाता को मतदान केंद्र तक पहुंचाने में पर्याप्त श्रम किया। मिल्कीपुर जीत से भाजपा का विश्वास बढ़ा है, योगी जी की प्रतिष्ठा बढ़ी है और उनके नारे की लोकप्रियता भी बढ़ रही है। महाकुंभ- 2025 के समापन के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री येगी आदित्यनाथ जी का एक नया अवतार देखने को मिल सकता है। हिंदुत्व की राजनीति में काशी, मथुरा के साथ संभल का अध्याय भी जुड़ चुका है।

प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित

फोन नं.- 9198571540

भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त की हैं असाधारण उपलब्धियां


भारत गौरव
भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त की हैं असाधारण उपलब्धियां
प्रहलाद सबनानी

दिनांक 31 जनवरी 2025 को देश की राष्ट्रपति आदरणीया श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने लोक सभा एवं राज्य सभा के संयुक्त अधिवेशन को अपने सम्बोधन में, हाल ही के समय में, भारत में विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त की गई उपलब्धियों के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा है कि “भारत की विकास यात्रा के इस अमृतकाल को आज मेरी (केंद्र) सरकार अभूतपूर्व उपलब्धियों के माध्यम से नई ऊर्जा दे रही है। तीसरे कार्यकाल में तीन गुना तेज गति से काम हो रहा है। आज देश बड़े निर्णयों और नीतियों को असाधारण गति से लागू होते देख रहा है। और, इन निर्णयों में देश के गरीब, मध्यम वर्ग, युवा, महिलाओं, किसानों को सर्वोच्च प्राथमिकता मिली है।” आदरणीया श्रीमती द्रौपदी मुर्मू द्वारा दिए गए उक्त भाषण में अंशों को जोड़कर इस लेख में यह बताने का प्रयास किया गया है कि किस प्रकार भारत में गरीब वर्ग, युवाओं, मातृशक्ति, किसानों, आदि के लिए विभिन्न योजनाएं सफलतापूर्वक चलाई जा रही हैं।

आज आम नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा और मकान के साथ साथ स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। समस्त परिवारों को आवास सुविधा उपलब्ध कराने के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना का विस्तार करते हुए तीन करोड़ अतिरिक्त परिवारों को नए घर देने का निर्णय लिया गया है। इसके लिए 5 लाख 36 हजार करोड़ रुपए की राशि का खर्च किए जाने की योजना है। इसी प्रकार, गांव में गरीबों को उनकी आवासीय भूमि का हक देने के उद्देश्य से स्वामित्व योजना के अंतर्गत अभी तक 2 करोड़ 25 लाख सम्पत्ति कार्ड जारी किए जा चुके हैं। साथ ही, पीएम किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत लगभग 11 करोड़ किसानों को पिछले कुछ महीनों में 41,000 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान किया गया है। जनजातीय समाज के पांच करोड़ नागरिकों के लिए “धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष” अभियान प्रारंभ हुआ है। इसके लिए अस्सी हजार करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान किया गया है। आज मध्यम वर्ग को मकान/फ्लैट खरीदने के लिए लोन पर सब्सिडी भी दी जा रही है एवं रेरा जैसा कानून बनाकर मध्यम वर्ग के स्वयं के मकान सम्बंधी सपने को सुरक्षा दी गई है।

देश के नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराए जाने के उद्देश्य से आयुषमान भारत योजना चलाई जा रही है। अब इस योजना के अंतर्गत 70 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 6 करोड़ वरिष्ठ नागरिकों को स्वास्थ्य बीमा देने का निर्णय लिया गया है। इन वरिष्ठ नागरिकों को प्रत्येक वर्ष में पांच लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराया जाएगा।

केंद्र सरकार द्वारा आज युवाओं की शिक्षा और उनके लिए रोजगार के नए अवसर तैयार करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। मेधावी छात्रों को उच्च शिक्षा में वित्तीय सहायता देने के लिए पीएम विद्यालक्ष्मी योजना शुरू की गई है। एक करोड़ युवाओं को शीर्ष पांच सौ कंपनियों में इंटर्नशिप के अवसर भी दिये जाएंगे। पेपर लीक की घटनाओं को रोकने और भर्ती में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए नया कानून लागू किया गया है।सहकार से समृद्धि की भावना पर चलते हुए सरकार ने ‘त्रिभुवन’ सहकारी यूनिवर्सिटी की स्थापना का प्रस्ताव स्वीकृत किया है।

जब देश के विकास का लाभ अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को भी मिलने लगता है तभी विकास सार्थक होता है। गरीब को गरिमापूर्ण जीवन मिलने से उसमें जो सशक्तिकरण का भाव पैदा होता है, वो गरीबी से लड़ने में उसकी मदद करता है। स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत बने 12 करोड़ शौचालय, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत निशुल्क दिए गए 10 करोड़ गैस कनेक्शन, 80 करोड़ जरूरतमंदों को राशन, सौभाग्य योजना, जल जीवन मिशन जैसी अनेक योजनाओं ने गरीब को ये भरोसा दिया है कि वो सम्मान के साथ जी सकते हैं। ऐसे ही प्रयासों की वजह से देश के 25 करोड़ लोग गरीबी को परास्त करके आज अपने जीवन में आगे बढ़ रहे हैं। इन्होंने नियो मिडिल क्लास का एक ऐसा समूह तैयार किया है, जो भारत की ग्रोथ को नई ऊर्जा से भर रहा है।

उड़ान योजना ने लगभग डेढ़ करोड़ लोगों का हवाई जहाज में उड़ने का सपना पूरा किया है। जन औषधि केंद्र में 80 प्रतिशत रियायती दरों पर मिल रही दवाओं से, देशवासियों के 30 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा बचे हैं। हर विषय की पढ़ाई के लिए सीटों की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी का बहुत लाभ मध्यम वर्ग को मिला है।

केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के चौथे चरण में पच्चीस हजार बस्तियों को जोड़ने के लिए 70,000 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की हैं। आज जब हमारा देश अटल जी की जन्म शताब्दी का वर्ष मना रहा है, तब प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना उनके विजन का पर्याय बनी हुई है। देश में अब 71 वंदे भारत, अमृत भारत और नमो भारत ट्रेन चल रही हैं, जिनमें पिछले छह माह में ही 17 नई वंदे भारत और एक नमो भारत ट्रेन को जोड़ा गया है।

आगे आने वाले समय में देश के आर्थिक विकास में देश की आधी आबादी अर्थात मातृशक्ति के योगदान को बढ़ाना ही होगा। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत 91 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों को सशक्त किया जा रहा है। देश की दस करोड़ से भी अधिक महिलाओं को इसके साथ जोड़ा गया है। इन्हें कुल नौ लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि बैंक लिंकेज के माध्यम से वितरित की गई है। केंद्र सरकार ने देश में तीन करोड़ लखपति दीदी बनाने लक्ष्य निर्धारित किया है। आज एक करोड़ 15 लाख से भी अधिक लखपति दीदी एक गरिमामय जीवन जी रही हैं। इनमें से लगभग 50 लाख लखपति दीदी, बीते 6 महीने में बनी हैं। ये महिलाएं एक उद्यमी के रूप में अपने परिवार की आय में योगदान दे रही हैं। भारत में सभी के लिए बीमा की भावना के साथ कुछ महीने पूर्व ही बीमा सखी अभियान भी शुरू किया गया है। बैंकिंग और डिजी पेमेंट सखियां दूर दराज के इलाकों में लोगों को वित्तीय व्यवस्था से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। कृषि सखियां नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा दे रही हैं और पशु सखियों के माध्यम से देश का पशुधन मजबूत हो रहा है। आज भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं, पुलिस में भर्ती हो रही हैं और कॉरपोरेट कंपनियों का नेतृत्व भी कर रही हैं। आज बालिकाओं की भर्ती राष्ट्रीय मिलिट्री स्कूलों में भी प्रारंभ हो गई है। नेशनल डिफेंस अकैडमी में भी महिला कैडेट्स की भर्ती शुरू हो गई है।

पिछले एक दशक में मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंड-अप इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसी पहल ने युवाओं को रोजगार के अनेक अवसर प्रदान किए हैं। पिछले दो वर्षों में सरकार ने, रिकॉर्ड संख्या में दस लाख स्थायी सरकारी नौकरियां प्रदान की हैं। युवाओं के बेहतर कौशल और नए अवसरों के सृजन के लिए दो लाख करोड़ रुपए का पैकेज केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत किया गया है। एक करोड़ युवाओं के लिए इंटर्नशिप की व्यवस्था से युवाओं को ग्राउंड पर काम करने का अनुभव प्राप्त होगा। आज भारत में डेढ़ लाख से अधिक स्टार्टअप हैं जो इनोवेशन के स्तंभ के रूप में उभर रहे हैं। एक हजार करोड़ रुपए की लागत से स्पेस सेक्टर में वेंचर कैपिटल फंड की शुरुआत भी की गई है। आज भारत क्यूएस वर्ल्ड फ्यूचर स्किल इंडेक्स 2025 में पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। अर्थात, फ्यूचर ऑफ वर्क श्रेणी में AI और डिजिटल तकनीक अपनाने में भारत दुनिया को रास्ता दिखा रहा है। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भी भारत की रैंकिंग 76 से सुधर कर 39 हो गई है। यह सब भारतीय युवाओं के भरोसे ही सम्भव हो पा रहा है।

देश में आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से विद्यार्थियों के लिए आधुनिक शिक्षा व्यवस्था तैयार की जा रही है। कोई भी शिक्षा से वंचित ना रहे, इसीलिए मातृभाषा में शिक्षा के अवसर दिये जा रहे हैं। विभिन्न भर्ती परीक्षाएं तेरह भारतीय भाषाओं में आयोजित कर, भाषा संबंधी बाधाओं को भी दूर किया गया है। बच्चों में इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए दस हजार से अधिक स्कूलों में अटल टिंकरिंग लैब्स खोली गई हैं। “ईज ऑफ डूइंग रिसर्च” के लिए हाल ही में वन नेशन-वन सब्सक्रिप्शन स्कीम लायी गई है। इससे अंतरराष्ट्रीय शोध की सामग्री निशुल्क उपलब्ध हो सकेगी। पिछले एक दशक में भारत में उच्च शिक्षण संस्थाओं की संख्या बढ़ी है। इनकी गुणवत्ता में भी व्यापक सुधार हुआ है। क्यूएस विश्व यूनिवर्सिटी – एशिया रैंकिंग में भारत के 163 विश्वविद्यालय शामिल हुए हैं। नालंदा विश्वविद्यालय के नये कैंपस का शुभारंभ कर शिक्षा में, भारत का पुराना गौरव वापस लाया गया है।

विकसित भारत के निर्माण में किसान, जवान और विज्ञान के साथ ही अनुसंधान का बहुत बड़ा महत्व है।  भारत को भारत को ग्लोबल इनोवेशन पावरहाउस बनाने के लक्ष्य निर्धारित किया गया है। देश के शिक्षण संस्थाओं में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए पचास हजार करोड़ रुपए की लागत से अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउन्डेशन स्थापित किया गया है। 10,000 करोड़ रुपए की लागत से “विज्ञानधारा योजना” के तहत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में इनोवेशन को बढ़ावा दिया जा रहा है। आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में भारत के योगदान को आगे बढ़ाते हुए “इंडिया ए आई मिशन” प्रारम्भ किया गया है। राष्ट्रीय क्वांटम मिशन से भारत, इस फ्रंटियर टेक्नॉलाजी में दुनिया के अग्रणी देशों की पंक्ति में स्थान बना सकेगा। देश में “बायो – मैन्यूफैक्चरिंग” को बढ़ावा देने के उद्देश्य से BioE3 Policy लायी गई है। यह पॉलिसी भविष्य की औद्योगिक क्रांति का सूत्रधार होगी। बायो इकॉनामी का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों का कुशल उपयोग करना है जिससे पर्यावरण को संरक्षित करते हुए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

भारत के छोटे व्यापारी गांव से लेकर शहरों तक, हर जगह आर्थिक प्रगति को गति देते हैं। केंद्र सरकार छोटे उद्यमियों को अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानते हुए उन्हें स्वरोजगार के नए अवसर दे रही है। MSME के लिए क्रेडिट गारंटी स्कीम और ई-कॉमर्स एक्सपोर्ट हब्स सभी प्रकार के उद्योगों को बढ़ावा दे रहे हैं। मुद्रा ऋण की सीमा को दस लाख रुपए से बढ़ाकर बीस लाख रुपए करने का लाभ करोड़ों छोटे उद्यमियों को हुआ है। केंद्र सरकार ने क्रेडिट एक्सेस को आसान बनाया है। इससे वित्तीय सेवाओं को लोकतांत्रिक बनाया जा सका है। आज लोन, क्रेडिट कार्ड, बीमा जैसे प्रोडक्ट, सबके लिए आसानी से सुलभ हो रहे हैं। दशकों तक भारत के रेहड़ी-पटरी पर दुकान लगाकर आजीविका चलाने वाले भाई-बहन बैंकिंग व्यवस्था से बाहर रहे। आज उन्हें पीएम स्वनिधि योजना का लाभ मिल रहा है। डिजिटल ट्रांजेक्शन रिकॉर्ड के आधार पर उनको बिजनेस बढ़ाने के लिए और लोन मिलता है। ओएनडीसी की व्यवस्था ने डिजिटल कॉमर्स यानी ऑनलाइन शॉपिंग की व्यवस्था को समावेशी बनाया है। आज देश में छोटे बिजनेस को भी आगे बढ़ने का समान अवसर मिल रहा है।

डायरी विधा का मोती है एकांतनामा – इरशाद खान सिकन्दर

-‘एकांतनामा’ हमारी अदृश्य भीतरी उठापटक का जीवंत दस्तावेज़-प्रोफ़ेसर माधव हाड़ा
–  विश्व पुस्तक मेले में ओम नागर की डायरी का लोकार्पण
दिल्ली। भारत ,मंडपम में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में मंगलवार को युवा कवि और गद्यकार ओम नागर की डायरी एकांतनामा का लोकार्पण हुआ। लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि विख्यात शाइर और नाटककार इरशाद खान सिकंदर थे। विशिष्ट अतिथि आलोचक और बनास जन के सम्पादक पल्लव थे और अध्यक्षता विख्यात साहित्य अध्येता प्रो माधव हाड़ा ने की।
अपने वक्तव्य में इरशाद खान सिकन्दर ने कहा कि डायरी जैसी विधा में ओम नागर ने अनेक कृतियों का सृजन किया है जो उनकी प्रयोगशील मेधा का परिचायक है। उन्होंने एकांतनामा को डायरी विधा का मोती बताते हुए कहा कि कोरोना के भयानक दिनों को साहित्य में नागर ने जिस तरह से दर्ज़ कर दिया है उससे यह पुस्तक संग्रहणीय बन पड़ी है। सिकन्दर ने कहा कि नागर की भाषा सरस और प्रवाहमयी है जिसमें गंभीर विमर्श भी पाठक को कठिन नहीं लगता।
विशिष्ट अतिथि पल्लव ने कहा कि भारत में डायरी लिखने का चलन गांधी जी के आंदोलन के साथ शुरू हुआ। आजादी के आंदोलन के फैलते जाने के साथ गांधी जी के अनुयायी और सत्याग्रही डायरी लिखने को जरूरी काम मानते थे। लेकिन इससे भी बहुत पीछे जाकर देखें तो राजाओं के दौर में रोजनामचे लिखने की परम्परा हमारे देश में रही है। उन्होंने कहा कि ‘आत्म’ का प्रवेश डायरी को रचना का रूप देता है जो रोज़नामचा नहीं होती। ओम नागर की डायरी को पल्लव ने गंभीर रचना का उदाहरण बताते हुए कहा कि उनके डायरी लेखन ने नयी शताब्दी में फिर से कथेतर के महत्त्व को प्रतिपादित किया है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में विद्वान अध्येता प्रो माधव हाड़ा ने कहा कि कवि ओम नागर की डायरी ‘एकांतनामा’ हमारी अदृश्य भीतरी उठापटक का जीवंत दस्तावेज़ है। इस डायरी को पढते हुए लगता है जैसे एकांत की भी एक भाषा होती है- यह आपसे बोलता-बतियाता है। कोरोना महामारी में बाहर की उठापटक के अलावा भय, आशंका, चिंता, असुरक्षा, अयाचित एकांत, हताशा, असहायता आदि कितना-कुछ था जो हमारे भीतर बहकर निकल गया, यह सब इस डायरी में दर्ज़ है। प्रो हाड़ा ने कहा कि यह डायरी हमें फिर से हमारी सदी के सबसे भयावह समय के एकांत में खींचकर कुछ सोचने-समझने के लिए प्रेरित करेगी।
इससे पहले सूर्य प्रकाशन मंदिर के स्टाल पर प्रकाशक प्रशांत बिस्सा ने सभी का स्वागत करते हुए अपने प्रकाशन की साठ वर्षों की यात्रा का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी और भारतीय भाषाओं के अनेक महत्त्वपूर्ण रचनाकारों की कृतियां सूर्य प्रकाशन मंदिर से आई हैं।