Thursday, July 4, 2024
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एक अफवाह ने एक जाने माने अभिनेता का कैरियर चौपट कर दिया

धर्मेन्द्र के साथ अपना करियर शुरू करने वाले एक सफल अभिनेता की कैंसर की बीमारी की झूठी अफवाह ने उसका पूरा कैरियर चौपट कर दिया।

अगर वो अफवाह ना फैली होती तो शायद आज वो भी धर्मेन्द्र और मुमताज़ की तरह फिल्म इंडस्ट्री में एक जाना-पहचाना नाम होते। इनका नाम है “शैलेश कुमार” 21 अप्रैल 2017 को जोधपुर में गुमनामी में इनका निधन हो गया। ये जोधपुर के ही रहने वाले थे ।और 21 जनवरी 1939 को जोधपुर में ही इनका जन्म भी हुआ था।

किसी ज़माने में ये शैलेश कुमार के नाम से जाने जाते थे, लेकिन इनका वास्तविक नाम शंभुनाथ पुरोहित था,पहले वो आम लोगों की तरह मुंबई घूमने के लिए ही आए थे। जब मुंबई आए तो दोस्तों के साथ एक फिल्म की शूटिंग देखने के लिए एक स्टूडियो में चले गए। स्टूडियो में किसी फिल्म की शूटिंग चल रही थी ..दरअसल वहां बहरूपिया नामक एक फिल्म की शूटिंग चल रही थी। जब वो फ़िल्म की शूटिंग देख रहे थे तो उनपर उस फिल्म के प्रोड्यूसर साहब की नज़र पड़ गई.. (SONY KE KISSE)..उस फिल्म के प्रोड्यूसर का नाम था रती भाई.. पहले पहले हीरो के लिए कोई फ़ोटो सेशन या पोर्ट फोलियो नही हुआ करते थे बस डायरेक्टर या प्रोड्यूसर की एक नज़र ही xray का काम करती थी…

वैसे ही भीड़ में खड़े शैलेश पर रती भाई की नज़र पड़ी तो वो इनकी पर्सनैलिटी से बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने शैलेश को पास बुलाया और शैलेश को फिल्मों में काम करने का ऑफर दे दिया। उन्होंने शैलेश से कहा था के,”तुम फिल्मों में काम करोगे..यकायक शैलेश की तरफ़ आये ऐसे सवाल को वो हज़म नहीं कर सके और
उस वक्त तो शैलेश जी ने रति भाई को मना कर दिया उन्हें जवाब दे दिया। दोस्तो उस वख्त वो बिल्कुल अनाड़ी थे वो कुछ नहीं जानते थे और उन्हें बिल्कुल नहीं पता था कि फिल्मों में काम कैसे किया जाता है। और कुछ दिन वहीं रुक कर वे वापस अपने शहर जोधपुर लौट गए। लेकिन रह रह कर रती भाई की वो बात उनसे हुई मुलाकात उनके दिमाग पर छप गई और उन्हें बेचैन कर रही थी। एक्टिंग का बीज और उस सुनहरे शहर का वो टूर उन्हें याद आ रहा था और अब ऐक्टिंग करने का बीज भी उनके मन-मस्तिष्क में रोपित हो गया था..

एक दिन उन्होंने तय किया कि उन्हें मुंबई वापस जाना चाहिए और फिल्मों में हीरो बनना चाहिए । इससे पहले के वे मुंबई के लिए निकलते, उससे पहले ही घरवालों ने उनकी शादी कर दी। लेकिन मन तो शैलेश साहब का वहीं बम्बई में बस गया था.. और एक्टर बनने का उनका फैसला भी अडिग था।

वैसे तो शैलेश साहब एक अच्छे खासे और अमीर परिवार से थे। लेकिन कहते हैं के वो अपने पिता से पैसे नहीं मांगते थे। तो उन्होंने एक युगत लड़ाई और अभी अभी उनकी शादी हुई थी और उन्हें शादी में जो बतौर तोहफे में एक सोने की चेन ससुराल वालों की तरफ से मिली थी। उन्होंने उस चेन को 75 रुपए में बेचा और आ गए बम्बई। बम्बई आते ही उनकी पहली मुलाकात धर्मेंद्र जी से हुई। उन दिनों धर्मेंद्र भी फिल्में पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे ..वो साल था 1960 और साल 1960 में ही उन्हें पहला मौका भी मिल गयाष उनकी पहली फ़िल्म आई नई मां जिसमें शैलेश जी को पहली दफा अभिनय करने का मौका मिला। फ़िल्म में उनका रोल काफी छोटा था। लेकिन शैलेश ने अपना काम पूरी ईमानदारी से कियाऔर अपनी पहचान भी बना ली।

इसके बाद साल 1961 में आई उनकी फ़िल्म भाभी की चूड़ियां एक ऐसी फिल्म थी जिसने शैलेश कुमार को अपनी पहचान दिलवाई। फिल्म में शैलेश के इलावा बलराज साहनी साहब और मीना कुमारी भी मुख्य भूमिकाओं में थे। शैलेश ने उस फिल्म में मीना कुमारी के देवर का किरदार उस फिल्म में निभाया था। अब शैलेश साहब की गाड़ी तो चल पड़ी थी और इसके बाद शैलेश जी को काम भी खूब मिलता रहा ।

1968 में शैलेश जी के फिल्मी सफ़र में कुछ बदलाव हुए उसके बाद उन्हों ने एक्ट्रेस मुमताज़ के साथ फ़िल्म की जिसका नाम था गोल्डन आई: सीक्रेट एजेंट 077 …इस फिल्म का एक गाना भी काफी मशहूर हुआ था, शायद अपने सुना हो उस गाने के बोल थे “हाय मैं मर जाऊं”। ये फिल्म एक जेम्स बॉन्ड टाइप फ़िल्म थी और एक बी-ग्रेड फिल्म थी। शैलेश साहब ने वो फ़िल्म तो कीऔर वक्त के साथ मुमताज़ तो टॉप की एक्ट्रेस भी बन चुकी थी। और इनके करियर के शुरुआती साथी धर्मेंद्र भी स्टार बन चुके थे। लेकिन शैलेश साहब को कभी भी वो कामयाबी वैसी ख्याति नहीं मिल सकी जिसका ख्वाब उन्होंने देखा था ।

फिर शैलेश जी ने अपनी पत्नी पुष्पा को भी मुंबई ही बुलवा लिया था। कहा जाता है कि जब शैलेश ने 30 की उम्र में डबल जोश के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया तो उन्हें थायरॉइड की बीमारी ने अपना शिकार बना लिया। थाइरोइड का इलाज रेडिएशन थैरिपी के ज़रिए ही होता था। और रेडिएशन थैरिपी मिलती थी सिर्फ टाटा अस्पताल में। लेकिन टाटा अस्पताल मशहूर था कैंसर के मरीज़ों का इलाज करने के लिए। इसलिए जब शैलेश साहब अपना इलाज करवा रहे थे तो किसी ने शैलेश जी को टाटा अस्पताल में आते जाते देखा तो उसकी वजह से उसने इंडस्ट्री में अफवाह उड़ा दी कि शैलेश जी को तो कैंसर हो गया है। उस अफवाह ने शैलेश के करियर में एक विलेन की भूमिका निभाई.. और उस अफवाह का इनके करियर पर बहुत बुरा असर पड़ा।

कुछ दिनों में ही थायरॉइड की बीमारी तो ठीक हो गई। लेकिन शैलेश जी को काम मिलना बंद हो गया। जिसे कुछ दिन पहले धड़ल्ले से काम मिल रहा था.. अब वो बेकार होने लगे थे..उन्होंने खूब हाथ-पैर मारे ..लोगों को समझाया भी लेकिन सब कुछ व्यर्थ रहा। किसी ने भी उन्हें कोई काम नहीं दिया। मायूस होकर अपनी पत्नी के साथ विचार विमश किया और आखिरकार साल 1978 में शैलेश जी अपने परिवार को लेकर अपने घर अपने गृहनगर जोधपुर वापस लौट गए। और फिर अपने अंतिम समय तक अपने आखिरी वक्त तक जोधपुर में ही रहे।

काजल फिल्म में उनपर फ़िल्माया गया गीत मेरे भैया मेरे चन्दा मेरे अनमोल रतन… आज भी राखी और भाईदूज बपर सबसे ज्यादा सुना जाता है।
साभार-https://www.facebook.com/profile.php?id=61555561193787 से

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कश्मीर की महान नायिका रानी दिद्दा की शौर्य गाथा

प्राचीन संस्कृत कवि कल्हण ने कश्मीर के इतिहास की सबसे शक्तिशाली महिला शासक दिद्दा का उल्लेख किया है।राजतरंगिणी,कल्हण द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रन्थ है।

‘राजतरंगिणी’ का शाब्दिक अर्थ है – राजाओं की नदी,जिसका भावार्थ है – ‘राजाओं का इतिहास या समय-प्रवाह’ यह कविता के रूप में है। इसमें कश्मीर का इतिहास वर्णित है जो महाभारत काल से आरम्भ होकर 1154 A.D. तक का है।

महान नायिका रानी_दिद्दा / दित्या देवी (958 ई.-1003 ई.)

26 वर्ष की उम्र में दिद्दा की शादी क्षेमगुप्त से हुई। क्षेमगुप्त कश्मीर के महाराज पर्वगुप्त के बेटे थे। 950 ई. में क्षेमगुप्त कश्मीर के राजा बने, लेकिन कल्हड़ के अनुसार वो एक कमजोर राजा थे जिनका मन अधिकतर जुए और शिकार में लगा रहता था। इसी के चलते दिद्दा को राज काज का काम संभालना पड़ा और धीरे धीरे वो इतनी ताकतवर हो गयीं कि महाराजा के नाम के आगे महारानी का नाम लिया जाने लगा। यहां तक कि शाही मुहरें और सिक्के भी दिद्दा क्षेम के नाम से छपने लगे।

958 के आसपास महाराज क्षेमगुप्त चल बसे और परंपरा अनुसार दिद्दा से सती होने के लिए कहा गया। लेकिन दिद्दा ने ना सिर्फ इससे इंकार किया बल्कि अपने बेटे अभिन्यु को गद्दी पर बिठाकर राजमाता बन गईं और शासन चलाने लगी। लोग इससे हरगिज खुश न थे। स्थानीय सरदारों ने कहा, एक औरत हम पर शासन कैसे कर सकती है।उसका वचन नहीं चल सकता। दिद्दा ने जवाब दिया, मेरा वचन ही है मेरा शासन और सरदारों का विद्रोह बुरी तरह कुचल दिया गया। 972 ई. में महराजा अभिन्यु भी चल बसे लेकिन दिद्दा का शासन चलता रहा।

उन्होंने अपने पोते भीमगुप्त को गद्दी पर बिठाया और राजकाज चलाती रहीं।
रानी दिद्दा का राज्य कश्यपमेरु (कश्मीर) से लेकर मध्य एशिया तक फैला हुआ था।

साम्राज्ञी दिद्दा का शस्त्र प्रशिक्षण :-

सम्राज्ञी दिद्दा ने शस्त्र प्रशिक्षण में महारथ प्राप्त की थी। चारों दिशाओं में ऐसी वीर नारी और कोई नहीं थी। भगवा ध्वज का परचम अश्शूर राज्य तक लहराया था।

महारानी दिद्दा नियुद्ध_कला में निपुण थीं , यह एक प्राचीन भारतीय युद्ध कला (मार्शल आर्ट) है।

▪नियुद्ध का शाब्दिक अर्थ है ‘बिना हथियार के युद्ध’ अर्थात् स्वयं निःशस्त्र रहते हुये आक्रमण तथा संरक्षण करने की कला।
▪यन्त्र-मुक्ता कला – अस्त्र-शस्त्र के उपकरण जैसे घनुष और बाण चलने की कला।
▪पाणि-मुक्ता कला – हाथ से फैंके जाने वाले अस्त्र जैसे कि भाला।
▪मुक्ता-मुक्ता कला – हाथ में पकड कर किन्तु अस्त्र की तरह प्रहार करने वाले शस्त्र जैसे कि बर्छी, त्रिशूल आदि।
▪हस्त-शस्त्र कला – हाथ में पकड कर आघात करने वाले हथियार जैसे तलवार, गदा आदि।
▪ऐसी 52 युद्ध कलाओं का प्रशिक्षण लेकर गुरुकुल से योद्धा बनकर निकली योद्धा दिद्धा ने भविष्यकाल में सम्राज्ञी दिद्दा बन कर भगवा ध्वज का परचम मध्य एशिया तक लहराकर भारतवर्ष एवं सनातन धर्म की गौरवमयी एवं स्वर्णिम इतिहास रच डाला था।

देशद्रोहियों को मौत की सजा :-
दिद्दा ने देशभक्त एवं योग्य लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करके देशद्रोहियों एवं अक्षम प्रशासनिक अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाया।

इस शक्तिशाली रानी ने अनेक गद्दार लोगों को उम्रकैद तथा मृत्युदंड तक दिए। कश्यपमेरु(कश्मीर) राज्य की सुरक्षा के लिए ऐसा करना आवश्यक था। दिद्दा को जहां वामपंथी इतिहासकारों ने निष्ठुर-निर्दयी कहा, वहीं इस रानी को न केवल भारतीय राष्ट्रभक्त एवं विदेशी इतिहासकारों द्वारा कुशल एवं शौर्यशाली प्रशासिका भी कहा गया। रानी दूरदर्शी थी अपने राज्य को अपने देश को सुरक्षित रखने के लिए अन्दर पल रहे आस्तीन के सांपो का सर कुचलना सबसे ज्यादा आवश्यक लगा। उन्हें पता था बाहर से आक्रमण होते नहीं हैं करवाए जाते हैं। जैसे शरीर के किसी हिस्से में घाव हो जाये तो उसका अंदरूनी इलाज सबसे ज्यादा आवश्यक होता अंदरूनी कीटाणु मरेंगे तभी बहार का घाव सूखेगा ठीक उसी तरह देश के अंदर के गद्दारों का जब तक अंत नहीं होता तब तक देश की सीमा सुरक्षित नहीं हो सकती देश को बाहरी आक्रमण झेलने पड़ेंगे।

बाल्कन के कृम_साम्राज्य के शासक बोरिस_द्वितीय ने सन् 969 ई. में कश्मीर पर आक्रमण किया था(जिसे आज बल्ख नाम से जाना जाता है)। किसी समय वह सम्राज्ञी दिद्दा के राज्य का हिस्सा हुआ करता था। महारानी दिद्दा केवल कुशल शासिका ही नहीं एक कुशल रणनीतिज्ञ भी थी। दिद्दा एक कुशल सेना संचालिका होने के नाते सोचा ना जा सके ऐसा युद्धव्यूह की रचना और यवन शासक बोरिस की शक्तिशाली सेना बल ने आधे घंटे के अन्दर घुटने टेक दिए।

जहाँ कायर बोरिस बारह हज़ार सैनिकों की आड़ लेकर लड़ रहा था वही सम्राज्ञी दिद्दा स्वयं मोर्चा सँभालते हुए सेनाबल के आगे खड़ी थी। बोरिस सर्प_व्यूह का प्रहार झेल नहीं पाया और प्राचीन भारतीय युद्ध व्यूह की रचना यवनों की समझ के बाहर थी।

रानी दिद्दा के आगे बचे सैनिकों के साथ हथियार डाल कर आत्मसमर्पण कर दिया एवं बाल्कन , बुल्गारिया की साम्राज्य पर रानी दिद्दा ने केसरिया परचम लहराकर भारतीय इतिहास में स्वर्णिम इतिहास का एक और पृष्ठ जोड़ दिया था।

सन 972 ई. में यारोपोल्क_प्रथम को हरा कर रूस साम्राज्य की एक चौथाई हिस्से पर सम्राज्ञी दिद्दा ने अपना अधिपत्य स्थापित किया था। इस विदुषी अवतरित नारी की रणकौशलता को देख पराजित रूसी राजा ने स्वयं अपने किताब दक्षिण एशिया नारी (South Asian Women)किताब में साम्राज्ञी दिद्दा बुद्धि एवं शक्ति की वर्णन करते हुये कहा है कि:-
भारतभूमि की मिट्टी की वंदना करने की बात लिखी गई है,भारत की मिट्टी विश्वभर में सबसे चमत्कारी मिट्टी हैं जहाँ नर नारी दोनों पराक्रमी होते हैं और भी सम्राज्ञी दिद्दा के बारे में उल्लेखनीय वर्णन किया हैं और आगे लिखता हैं उनकी(यारोपोल्क प्रथम)हार के पीछे यह कारण था की उसका युद्ध(सम्राज्ञी दिद्दा)एक कुशल रणनीतिज्ञ एवं एक बुद्धिमती, पराक्रमी अद्भुत सैन्यसंचालिका से हुई थी इसलिए उसके पास एक ही रास्ता था मृत्यु या आत्मसमर्पण जिसमे से यारोपोल्क प्रथम ने आत्मसमर्पण करना उचित समझा था।

दिद्दा ने नारी शिक्षा एवं उत्थान के अनेकों प्रकल्प शुरू करवाए। कई विकास योजनाएं प्रारंभ हुईं। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अनेक योग्य लोगों को निर्माण कार्यों में दायित्व दिए गए। एक बड़ी योजना के अधीन कई नगर एवं गांव बसाए गए।

दिद्दा ने मठ/मंदिरों के निर्माण में भी पूरी रुचि ली। श्रीनगर (कश्मीर) में आज भी एक मोहल्ला ‘दिद्दामर्ग’ के नाम से जाना जाता है यहीं पर एक विशाल सार्वजनिक भवन दिद्दा मठ के नाम से बनवाया गया। इस विशाल मठ के खंडहर आज भी मौजूद हैं। पराक्रमी उत्पलवंश के एक अति यशस्वी सरदार सिंहराज की पुत्री दिद्दा ने एक शक्तिशाली कूटनीतिज्ञ के रूप में पचास वर्षों तक अपना वर्चस्व बनाए रखा।उत्पलवंश के ख्याति प्राप्त राजाओं ने कश्मीर के इतिहास में अपना गौरवशाली स्थान अपने शौर्य से बनाया है। स्थानीय लोग आज भी लोक कथाओं में दिद्दा की हिम्मत और कुशलता का गुणगान करते हैं।

जब महारानी दिद्दा वृद्धावस्था में पहुंचीं तो उसने अपने भाई उदयराज के युवा पुत्र संग्रामराज का स्वयं अपने हाथों से राज्याभिषेक कर दिया। आगे चलकर इसी सम्राट संग्रामराज ने काबुल राजवंश के अंतिम हिन्दू सम्राट राजा त्रिलोचनपाल के साथ मिलकर ईरान,तुर्किस्तान और भारत के कुछ हिस्सों में भयानक अत्याचार व लूटमार करने वाले क्रूर मुस्लिम आक्रांता महमूद गजनवी को पुंछ (जम्मू-कश्मीर) के लोहरकोट किले के निकटवर्ती जंगलों में दो बार पराजित किया था।

दिद्दा भारत के इतिहास के उन महत्वपूर्ण चरित्रों में से है , जिन्होंने षड्यंत्रों और हत्याओं की राजनीति एवं आक्रमणकारी पर निरंतर विजय प्राप्त की। इस वीरवती साम्राज्ञी ने विद्रोहों एवं कठिनाइयों से ग्रस्त कश्मीर राज्य को अपने साहस और योग्यता से संगठित रखा।

 

(लेखक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मध्यभारत प्रांत का शिक्षा वर्ग इटारसी में प्रारंभ

इटारसी में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग में 324 कार्यकर्ता एवं राजगढ़ में 332 कार्यकर्ता हुए हैं शामिल, 15 दिन चलेगा प्रशिक्षण

भोपाल, 19 मई। राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ के मध्यभारत प्रांत के तरुण व्यवसायी कार्यकर्ताओं एवं महाविद्यालयीन विद्यार्थी कार्यकर्ताओं के लिए संघ शिक्षा वर्ग का आयोजन इटारसी एवं राजगढ़ में किया जा रहा है। दोनों ही स्थानों पर संघ शिक्षा वर्ग 18 मई से प्रारंभ हो गए हैं, जिनका औपचारिक उद्घाटन 19 मई को किया गया। इटारसी के संघ शिक्षा वर्ग का उद्घाटन वर्गाधिकारी श्री घनश्याम रघुवंशी, वर्ग कार्यवाह श्री कदम सिंह मीणा और प्रांत कार्यवाह श्री हेमंत सेठिया ने किया। वहीं, राजगढ़ के वर्ग का उद्घाटन वर्गाधिकारी श्री सुनील पाठक, वर्ग कार्यवाह श्री राघवेन्द्र त्रिपाठी और वर्ग पालक श्री विक्रम सिंह ने किया। संघ शिक्षा वर्ग में शामिल शिक्षार्थियों को शारीरिक, बौद्धिक, योग, सेवा, प्रबंधन और संघ कार्य का प्रशिक्षण प्राप्त होगा। संघ का कार्य व्यक्ति निर्माण का कार्य है। 15 दिन के इस वर्ग में युवा कठोर अनुशासित दिनचर्या का पालन करते हुए अपने व्यक्तित्व को मजबूत करेंगे।

इटारसी के धुरपन ग्राम में स्थित सेवा भारती के छात्रावास आयोजित संघ शिक्षा वर्ग के उद्घाटन में वर्ग कार्यवाह श्री घनश्याम रघुवंशी ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से प्रतिवर्ष अपने कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के लिए संघ शिक्षा वर्ग का आयोजन किया जाता है। संघ शिक्षा वर्ग में हमें मन की साधना, स्व-अनुशासन, त्यागपूर्ण जीवन, सामूहिक जीवन के सामंजस्य को सीखते हुए विविध प्रकार का प्रशिक्षण प्राप्त करना है। यहाँ हमें सामूहिक जीवन को व्यापक संदर्भ में समझने का अवसर मिलता है। उन्होंने कहा कि वर्ग में हमें स्वयं के लिए कठोर अनुशासन का पालन करना है और अपनी सुविधा से पहले सह-शिक्षार्थियों की सुविधा का ध्यान रखना है।

राजगढ़ में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग के उद्घाटन में वर्ग कार्यवाह श्री राघवेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि संघ शिक्षा वर्ग एक साधना है। मन:पूर्वक यह साधना पूर्ण करने से कार्यकर्ता का विकास होता है और उसके भीतर संगठन कार्य का कौशल बढ़ता है। उन्होंने बताया कि संघ शिक्षा वर्ग में शामिल हुए युवा संघ कार्य का प्रशिक्षण तो प्राप्त करेंगे ही, इसके साथ ही उन्हें शारीरिक, बौद्धिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है। सेवा और प्रबंधन के कार्य का प्रशिक्षण भी विशेषतौर से दिया जाता है। उल्लेखनीय है कि संघ के स्वयंसेवक देशभर में डेढ़ लाख से अधिक सेवा कार्यों का संचालन करते हैं। आपात स्थिति में राहत कार्यों में भी संघ के स्वयंसेवक आगे आकर कार्य करते हैं।

संघ की रचना के 31 जिलों के कुल 656 स्वयंसेवक दोनों स्थानों पर आयोजित संघ शिक्षा वर्गों में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। इनमें इटारसी में 324 स्वयंसेवक शामिल हुए हैं और राजगढ़ में 332 स्वयंसेवकों ने हिस्सा लिया है। उल्लेखनीय है कि जिन स्वयंसेवकों ने पूर्व में 7 दिन का प्राथमिक वर्ग का प्रशिक्षण प्राप्त किया होता है और वे संघ के कार्य में सक्रिय रहते हैं, उनमें से ही चयनित कार्यकर्ताओं को संघ शिक्षा वर्ग में भेजा जाता है।

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चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई में नाटक का मंचन

यह एक स्तब्ध कर देने वाला अनुभव था। एक स्त्री को स्त्री होने के नाते समाज में किन-किन हादसों से गुज़रना पड़ता है इस त्रासद दास्तान को #उसके_साथ नाटक के ज़रिए रंगकर्मी आलोक शुक्ला और रूमा रजनी ने अपने असरदार अभिनय से साकार किया। एक तरफ़ आलोक शुक्ला ने विविध पात्रों को उनके विशिष्ट अंदाज़ में पेश किया तो दूसरी तरफ़ रूमा रजनी ने स्त्री की व्यथा कथा और उस पर हो रहे अत्याचार को बहुत मार्मिकता के साथ अभिव्यक्त किया।

रविवार 19 मई 2024 को मृणालताई हाल, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट गोरेगांव में आयोजित चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई के साप्ताहिक आयोजन में दिल्ली की #प्रासंगिक रंग संस्था की ओर से रंगकर्मी आलोक शुक्ला के निर्देशन में ‘उसके साथ’ नाटक का मंचन किया गया। इस नाटक को दर्शकों ने भरपूर सराहा। नाटक के मंचन के बाद कथाकार सूरज प्रकाश ने पूरी टीम को बधाई दी और कहा कि इस नाटक में कई सत्य घटनाओं के अक्स दिखाई पड़ते हैं और ये तस्वीरें विचलित करने वाली हैं।

#धरोहर के अंतर्गत पंजाबी के सुप्रसिद्ध कवि #सुरजीत_पातर की कविताओं का पाठ कवयित्री इला जोशी ने किया। भोपाल से पधारे सहायक पुलिस आयुक्त एवं ओजस्वी कवि चौधरी मदन मोहन सिंह समर के सान्निध्य में आयोजित काव्य संध्या में कई लब्ध प्रतिष्ठित कवियों ने कविता पाठ किया। इनमें विभा रानी, दीप्ति मिश्र, मधु अरोड़ा और सुभाष काबरा जैसे कई प्रतिष्ठित रचनाकार शामिल थे। अभिनेता सतीश दत्ता के गायन से कार्यक्रम का समापन हुआ।

चित्रनगरी की फेसबुक वाल-https://www.facebook.com/share/upb1d3QtmEUre1uK/?mibextid=xfxF2i

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हमारे धर्म से जुड़ेंगे उतने हम स्वयं से व भारत से जुड़ेंगे

भोपाल, भोपाल के सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय में चल रहे दुर्गावाहिनी शौर्य प्रशिक्षण वर्ग के प्राकट्य कार्यक्रम में प्रांत से आई शिक्षार्थी बहिनों ने सात दिन के प्रशिक्षण का भव्य प्रदर्शन किया। मंच पर विश्व हिंदू परिषद के प्रांत कार्याध्यक्ष के एल शर्मा जी ने कहा सनातन धर्म पर हजारों वर्षों के आघात के बाद भी खड़ा हुआ है । मुख्य अतिथि के रूप में सेज यूनिवर्सिटी की निदेशक शिवानी अग्रवाल ने बहिनों को अभिवादन करते हुए दुर्गावाहिनी के वर्ग को उपयोगी बताते हुए कहा कि भारत की मातृशक्ति को सशक्तिकरण की आवश्यकता नहीं स्वतः ही शक्ति स्वरूपा है।

पूर्व पुलिस अकादमी के निदेशक डॉ महेंद्र शुक्ल जी विशेष अतिथि रहे अपने वक्तव्य में उन्होंने सभी बालिकाओं को नमन करते हुए मातृशक्ति को पुरुष की अनुगामी कहा । प्रांत संगठन मंत्री सुरेंद्र सिंह जी व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला संघ चालक की उपस्थित रहे। वर्ग प्रमुख सत्यकीर्ति राने ने वर्ग का प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए कहा कि दुर्गावाहिनी राष्ट्र को सशक्त, स्वाभिमानी, संस्कारी पीढ़ी तैयार करने का काम करेगी।

शारीरिक प्रदर्शन का संचालन वर्ग की मुख्य शिक्षिका सुश्री आकांक्षा, सत्र का संचालन बौद्धिक प्रमुख अदिति तिवारी जी ने आभार प्रांत सह संयोजिका भावना गौर ने किया । मनचासीन अतिथियों का स्वागत मातृशक्ति की सम्मी हरीश, ज्योति वर्मा, कांता कुशवाह, भानु साहू ने की। प्रशिक्षण में शिक्षिका क्रमशः ज्योति कुशवाह, सोनाली नागले, रोशनी आर्य, शिल्पा महाते, शिवानी कुशवाह, मोनिका धाकड़ तनु श्री संस्कृति रजक सहित व्यवस्था प्रमुख ज्योति वर्मा दीदी रश्मि कुशवाह दीदी विभाग मंत्री राजेश साहू जी, सह मंत्री, यतेंद्र जादौन , मनीष कारा कमलेश जी नीरज प्रजापति जी सहित शहर के वरिष्ठ गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

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चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई में नाटक का मंचन

यह एक स्तब्ध कर देने वाला अनुभव था। एक स्त्री को स्त्री होने के नाते समाज में किन-किन हादसों से गुज़रना पड़ता है इस त्रासद दास्तान को #उसके_साथ नाटक के ज़रिए रंगकर्मी आलोक शुक्ला और रूमा रजनी ने अपने असरदार अभिनय से साकार किया। एक तरफ़ आलोक शुक्ला ने विविध पात्रों को उनके विशिष्ट अंदाज़ में पेश किया तो दूसरी तरफ़ रूमा रजनी ने स्त्री की व्यथा कथा और उस पर हो रहे अत्याचार को बहुत मार्मिकता के साथ अभिव्यक्त किया।
रविवार 19 मई 2024 को मृणालताई हाल, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट गोरेगांव में आयोजित चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई के साप्ताहिक आयोजन में दिल्ली की #प्रासंगिक रंग संस्था की ओर से रंगकर्मी आलोक शुक्ला के निर्देशन में ‘उसके साथ’ नाटक का मंचन किया गया। इस नाटक को दर्शकों ने भरपूर सराहा। नाटक के मंचन के बाद कथाकार सूरज प्रकाश ने पूरी टीम को बधाई दी और कहा कि इस नाटक में कई सत्य घटनाओं के अक्स दिखाई पड़ते हैं और ये तस्वीरें विचलित करने वाली हैं।
#धरोहर के अंतर्गत पंजाबी के सुप्रसिद्ध कवि #सुरजीत_पातर की कविताओं का पाठ कवयित्री इला जोशी ने किया। भोपाल से पधारे सहायक पुलिस आयुक्त एवं ओजस्वी कवि चौधरी मदन मोहन सिंह समर के सान्निध्य में आयोजित काव्य संध्या में कई लब्ध प्रतिष्ठित कवियों ने कविता पाठ किया। इनमें विभा रानी, दीप्ति मिश्र, मधु अरोड़ा और सुभाष काबरा जैसे कई प्रतिष्ठित रचनाकार शामिल थे। अभिनेता सतीश दत्ता के गायन से कार्यक्रम का समापन हुआ।
चित्रनगरी की फेसबुक वाल-https://www.facebook.com/share/upb1d3QtmEUre1uK/?mibextid=xfxF2i
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अपने समय की स्वर कोकिला प्रेमलता जैन

“फूलों की कोमल सेज कभी, शूलों का कभी बिछौना है
पूजो तो नारी देवी है, खेलो तो सिर्फ खिलौना है”

यही वह गीत है जिसे किसी जमाने में कवियित्री प्रेमलता जैन पढ़ती थी तो आकाश तालियों की आवाज़ से गूंज उठता था। उनके स्वर माधुर्य की वजह से उन्हें स्वर कोकिला कहा जाता था। इस गीत में इन्होंने आजादी की जंग की आमजन के दिलों में उठती भावनाओं को बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ में भावपूर्ण शब्दों में अभिव्यक्ति दी है। इंकलाब की बोलियां गूंजते जब रास्ते पर दिल में आज़ादी का ज्वार लिए टोलियां निकल पड़ती थी तो कभी खून की होली होती थी तो कभी पुलिस की लाठियां। ऐसे शासन को उलटने और नई संजीवनी देने के संदेश को आगे की पंक्तियों में यूं लिखा है…………..
और “जब निकलती मुक्ति पथ पे टोलियाँ गूँजती हैं इंकलाबी बोलियाँ
क्यों सड़क पे खून की हैं होलियाँ
क्यों पुलिस की भूनती हैं गोलियाँ
ऐसी कुर्सियों को तुम कुलांट दो
भीड़ को नया प्रकाश बाँट दो”

सत्तर के दशक तक स्वर कोकिला कहा जाने वाली कवियित्री 1985 तक कवि सम्मेलनों में खूब सक्रिय रहीं। उस समय उनके हिन्दी और राजस्थानी के गीत बहुत चाव से सुने जाते थे। कवि सम्मेलनों की जान होती थी ये। जिसमें ये नहीं होती थी वह सम्मेलन सूना -सूना रहता था। एक रिक्तता इनका अहसास कराती रहती थी। कहने का तात्पर्य है की किसी भी कवि सम्मेलन की शान थी प्रेमलता।

हिंदी के साथ-साथ राजस्थानी भाषा में भी इन्होंने जम कर काव्य सृजन किया।राजस्थानी गीत संग्रह ‘कनकी’ नाम से प्रकाशित हुआ।

श्रृंगार रस उनकी पहली पसंद थी और राजस्थानी भाषा में उन्होंने श्रृंगार गीत बहुत गीत लिखे। उस समय उनके लोकप्रिय गीतों में एक गीत के मुखड़े की बानगी देखिए……….
सारसड़ी ऐ सारसड़ी
सारस की लड़ली सारसड़ी
कद आवैगी साजनिया संग उड़बा की घड़ी”
इनके हिन्दी गीतों का संग्रह ‘जनपथ के जख्म’ नाम से छपा। इस संग्रह के गीतों में उन्होंने आम आदमी के दुखों को शिद्दत से उकेरा है।
इस संग्रह के गीतों का प्रमुख स्वर था ……..
“खूब छला खादी ने फुटपाथों के नंगे बचपन को
खूब जी लिया है हमने जन-गण-मन के अनुशासन को
रुग्ण हवाओं के झौंके ही मिले हमेशा भोजन को
राजनीति के सर्पों ने कर दिया विषैला जीवन को
गंदे जल से प्रजातंत्र का हो प्रक्षालन क्यों?
जिन तथ्यों में सत्य नहीं उनका अनुमोदन क्यों। ”

संग्रह में इस गीत के भाव बताते हैं की इनका सृजन मुख्य तौर पर देश भक्ति को समर्पित रहा है। संग्रह का विमोचन देश के नामी साहित्यकार राजेंद्र यादव ने 25 अगस्त 1995 को भरतपुर में किया था।

कोटा आने पर इनके गुरु जमना प्रसाद ठाड़ा राही से इन्हें नई साहित्य चेतना मिली। मुंबई के एक कलाकार से इनका गायन मुकाबला भी रामगंजमंडी में हुआ था। इस मुकाबले में इन्होंने विजयश्री को वरन किया और समाज ने इन्हें स्वर्ण पदक प्रदान कर सम्मानित किया था। कुछ समय पहले ही इनकी आत्मकथा का भी प्रकाशन “ओळ्यूँ के आँगणै’ (यादों के आँगन में) नाम से हुआ।

परिचय
प्रेमलता जैन का जन्म 20 अप्रैल 1936 को झालावाड़ जिले के एक प्रतिष्ठित जैन परिवार में हुआ। बचपन बहुत लाड़ में बीता। उनके बड़े भाई नमजी जैन भजन लिखा और गाया करते थे। बाबा देवीलाल जी कोटा रियासत में नाजिम थे और वो भी उर्दू में लिखा करते थे।

शादी के बाद प्रेमलता जी का जीवन आर्थिक और पारिवारिक संकटों में बीता। एक बार तो उन्हें और उनके पति स्वर्गीय श्री लालचंद जैन को चार महीने के लिए जंगलों में भी भटकना पड़ा। उनके साथ उनके देवर इंद्रमल जैन भी थे। दरअसल रिश्ते की एक भाभी से कुछ विवाद हुआ और दंपत्ति ने घर छोड़ने का निर्णय कर लिया। देवर से पुत्रवत प्रेम था तो वो भी साथ हो लिया। किसी ने उनके पति से वादा किया था कि वो आगरा में नौकरी दिला देगा । लेकिन आगरा पहुँच कर वो इस युवा दंपति को ठग कर सारा पैसा ले गया और परदेस में ये भटकते रहे। उस समय आज की तरह संचार के तीव्र माध्यम तो थे नहीं । इन्होंने अपनी आत्मकथा में इस का वर्णन बहुत विस्तार से किया है।

यह अपने भाई की शैली से प्रभावित होकर जैन समाज में भजनों के कार्यक्रम देती रहीं। रामगंजमंडी से इनका परिवार कोटा आ गया। इनके पुत्र अतुल कनक आज नामी रचनाकार हैं जिनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और पुत्र वधु ऋतु जैन के भी दो काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। जीवन के 78 बसंत की बाहर देख चुकी कवियित्री आज भी अपना समय स्वाध्याय और सृजन में बिताती है। पलंग के सिरहाने पर एक सेल्फ में पुस्तकें रखी हैं। नई प्राप्त प्रत्येक पुस्तक को अध्योपान्त पढ़ कर ही दम लेती हैं और सेल्फ में रख देती हैं। गजब की स्वाध्याय वृति युवा रचनाकारों के लिए अनुकरणीय है।

 

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गौसेवा व गौसंक्षण के साथ ही चमत्कारिक घरेलू चिकित्सा को नई पहचान देने वाले उत्तम माहेश्वरी

#उत्तम_माहेश्वरीः पुराना नक्शा इनके पास है।
हम सभी अपना जीवन आनंद के साथ बिताना चाहते हैं, लेकिन आनंद को सही परिप्रेक्ष्य में समझना और उसे प्राप्त करना आसान नहीं होता। इसके लिए नक्शे की जरूरत पड़ती है। प्रायः यह नक्शा हमें वह समाज देता है जिसमें हम जन्म लेते हैं। जब हम इस नक्शे को पढ़ते हुए आगे बढ़ते हैं तो हमारा जीवन सुगम हो जाता है या यूं कहें कि हमारी कठिनाइयां कम हो जाती हैं।

यह नक्शा वास्तव में उन परंपराओं से बनता है जिसे समाज अपने लंबे अनुभव से आकार देता है। परंपराएं हमेशा सही हों, यह जरूरी नहीं। वे रूढ़ और विकृत भी हो जाती हैं, इसलिए देश-काल को ध्यान में रखकर स्वस्थ समाज उन्हें बदलता रहता है, लेकिन वह उन्हें एक सिरे से खारिज नहीं करता। पूरी दुनिया की यही रीति रही है। तथापि, पिछले सौ-डेढ़ सौ वर्षों से कुछ अलग होने लगा है।

आज कई समुदाय समाज के नक्शे को फेंक करके बाजार का दिया नक्शा पढ़ रहे हैं। खान-पान, रहन-सहन और आचार-विचार से जुड़ी उनकी तमाम गतिविधियां परंपराओं की बजाए बाजार के इशारे पर तय होती हैं। यह वर्ग ऊपरी तौर पर खुश है, किंतु अंदर ही अंदर खोखला हो रहा है। धीरे-धीरे उसे भी समझ में आ रहा है कि बाजार के नक्शे में खोट है। लेकिन इस समझ के बावजूद वह असहाय है। वह बाजार के ही नक्शे के सहारे जिंदगी जी रहा है, क्योंकि उसे समाज के पुराने नक्शे के बारे में कुछ भी नहीं मालूम। वह उसे पहले ही फेंक चुका है।

सौभाग्य से पुराना नक्शा अभी लुप्त नहीं हुआ है। जब अधिकतर लोग उसे फेंक रहे थे, तब कुछ लोगों ने उसे संवारने और सहेजने का काम किया। आज ये लोग चारों ओर घूमकर जहां एक ओर बाजार के नक्शे की खोट के बारे में लोगों को सावधान कर रहे हैं, वहीं समाज के बनाए पुराने नक्शे के बारे में लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं।
ऐसे ही एक व्यक्ति हैं जिनका नाम है उत्तम माहेश्वरी। उत्तम जी का जन्म मुंबई में हुआ। पढ़ाई-लिखाई वहीं के स्कूल कालेजों में हुई। बीएड करने के बाद जब नौकरी करने की बात आई तब उन्होंने एक अलग ही राह चुन ली। 1989 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रचारक बन कर वे पूर्वोत्तर भारत चले गए जहां उन्हें स्थानीय लोगों को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई थी।

उत्तम जी को अपना काम अच्छा लग रहा था, लेकिन मुंबई में पला-बढ़ा उनका शरीर पूर्वोत्तर भारत की कठिनाइयों को झेल नहीं पाया। जब तबियत अधिक खराब होने लगी, तब उनके पिताजी उन्हें मुंबई वापस ले आए। मुंबई में स्वास्थ्य लाभ करते हुए उत्तम जी को वेणीशंकर मोरारजी बसु की विश्व मंगल ग्रंथ-माला पढ़ने का मौका मिला। इस ग्रंथ-माला की 32 किताबों ने उनकी आंखें खोल दीं। इसके कारण जमीन, गांव और खेती से जुड़े विषयों में उनकी रुचि बढ़ गई।

एक बार लगन लगी तो उत्तम जी ने जापानी कृषि दार्शनिक मासानोबू फुकुओका को भी समझने का प्रयास किया। इसी क्रम में वे प्रसिद्ध प्राकृतिक कृषक पूनमचंद बाफना और भाष्कर सावे के खेत पर भी गए। वहां जो उन्होंने देखा और अनुभव किया, उसके बाद मुंबई में रहना उनके लिए मुश्किल हो गया। गांव में जाकर खेती और गौ-पालन करना उनकी पहली प्राथमिकता बन गया।

उत्तम जी की इस नई अभिरुचि को उनके पिता डाक्टर गौरी शंकर माहेश्वरी का भरपूर साथ मिला। मकराना, राजस्थान के अपने पुश्तैनी गांव में पिता-पुत्र ने खाली पड़े खेतों पर प्रयोगों का एक नया क्रम प्रारंभ किया। डा. गौरीशंकर देशी गाय के महत्व को समझते थे। जब देश भर में जर्सी गायों को बढ़ावा दिया जा रहा था, उस समय उन्होंने देशी गाय पर आधारित गो गव्य चिकित्सा की बात की और देश-विदेश में घूमकर इसके बारे में लोगों को जागरूक किया था।

गांव में दस वर्ष रहने के बाद परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि उत्तम जी को एक बार फिर से मुंबई आना पड़ा। यहां आकर वे गोरक्षा और स्वदेशी के आंदोलन से जुड़े। उन्हें यह भी समझ में आया कि स्वास्थ्य के नाम पर आम आदमी के साथ कितना बड़ा धोखा हो रहा है। इसे तोड़ने के लिए उत्तम जी ने वर्ष 2005 में एक किताब लिखी जिसका नाम है- स्वास्थ्य षड्यंत्रों के युग में अपने डाक्टर स्वयं बनें। यह किताब लोगों को बहुत पसंद आई। दो वर्ष में ही इसकी सभी प्रतियां बिक गईं। इसी बीच एक और किताब आई जिसका नाम है गो-सुषमा। चित्र-कथा शैली में छपी उत्तम जी की यह किताब इतनी लोकप्रिय हुई कि दो ही वर्ष में इसके तीन संस्करण छापने पड़े।

उत्तम जी की किताब में ऐसी कई छोटी-छोटी बातें संकलित की गई हैं, जो हमारे स्वास्थ्य का आधार हैं किंतु उन्हें हम भूलते जा रहे हैं। जैसे- खड़ा होकर पानी नहीं पीना चाहिए, बार-बार मुंह जूठा नहीं करना चाहिए, भोजन करते समय मौन रहना चाहिए आदि-आदि। इस किताब को पढ़कर कई उपयोगी सूचनाओं के साथ-साथ एक विशेष जीवन दृष्टि भी मिलती है। उत्तम जी साफ-साफ कहते हैं, “इसमें पूरा ज्ञान नहीं है। हमें ज्ञान अपनी परंपराओं और परिवेश से ही मिलेगा, उनको देखने और समझने की दृष्टि देने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है।

पीढ़ियों से चले आ रहे पारंपरिक ज्ञान और देशी गाय को आधार बना कर उत्तम जी रोगियों की चिकित्सा भी करते हैं। ऐसी कई जटिल बीमारियां जिनका एलोपैथी या किसी और पैथी में सटीक इलाज नहीं है, उसे वे कुछ घरेलू नुस्खों और परहेज आदि बताकर ठीक कर देते हैं। जो लोग उत्तम जी के उपचार से सही होते हैं उनके लिए वे किसी भी वैद्य या डाक्टर से बढ़कर हैं किंतु मजे की बात है कि उनके पास सरकार की दी हुई ऐसी कोई डिग्री नहीं है।

अपना उदाहरण देते हुए उत्तम जी कहते हैं कि स्वस्थ रहने या स्वस्थ रहने का तरीका बताने के लिए किसी का डाक्टर या वैद्य होना जरूरी नहीं है। भारतीय परंपरा में पगी हुई उत्तम जी की बातों में इतना दम है कि बड़े-बड़े हास्पिटल भी उन्हें अपने यहां भाषण देने के लिए बुलाते हैं। देश-विदेश के कई सामाजिक मंचों पर भी उत्तम जी की बात बड़े ध्यान से सुनी जाती है।

पिछले दो दशकों में उत्तम जी ने अपने प्रयासों से गोसेवा, गोरक्षा, स्वदेशी और पारंपरिक जीवन शैली से जुड़े विषयों को एक नई उंचाई दी है। आज हजारों-लाखों लोग उनकी बात को सुनते और उस पर अमल करते हैं। लेकिन अफसोस की बात है कि यह सब पर्याप्त नहीं है। उत्तम जी ने जो अभियान प्रारंभ किया है, उसे आगे बढ़ाने में हम सभी को अपनी-अपनी भूमिका निभानी होगी।

#संपर्कः https://www.facebook.com/UttamMaheshwariJi

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राम के पूर्वज हरित राजा भी थे और महर्षि भी

हरित जिसे हरिता , हरितास्य , हरीत और हरितसा के नाम से भी जाना जाता है ,च्यवन ऋषि के पुत्र और सूर्यवंश वंश के एक प्राचीन राजकुमार थे, जिन्हें अपने मातृ पक्ष, हरिता गोत्र से क्षत्रिय वंश के पूर्वज के रूप में जाना जाता था । वह भगवान विष्णु के 7वें अवतार राम के पूर्वज थे ।एक और हरिता  सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र का पौत्र और रोहिताश्व का पुत्र था । किसी एक हरित को राजा यौवनाश्व का पुत्र और सूर्यवंश वंश के राजा अंबरीष का पोता बताया भी बतलाया जाता  है। एक जैसे नाम वाले  हरित ने अयोध्‍या नगरी पर राज किया लेकिन उनके के नाम पर प्रायः पौराणिक साक्ष्यों में परस्पर मतभेद है।  वह सतयुग के अंतिम चरण के शासक थे। हरिशचंद्र अयोध्या के राजा थे। रोहिताश्व बनारस से विहार रोहतास से शासन चलाया था। जबकि अयोध्या इसके पुत्र हरित के पास रहा।

एक सर्वविदित तथ्य है कि हरितास गोत्र से संबंधित ब्राह्मण राजा हरिता के वंशज हैं जो राम के पूर्वज थे और सूर्यवंश से संबंधित क्षत्रिय थे। ऐसी कहानियाँ हैं जो बताती हैं कि कैसे राजा हरिता ने तपस्या की और श्रीमन नारायण से वरदान प्राप्त किया और अपनी तपस्या के आधार पर ब्राह्मण होने का दर्जा प्राप्त किया और अब से उनके सभी वंशज ब्राह्मण बन गए। लिंग पुराण जैसे कुछ पुराणों में ऐसे संदर्भ हैं जो दावा करते हैं कि इस वंश के ब्राह्मणों में भी क्षत्रियों के गुण हैं और इन ब्राह्मणों को ऋषि अंगिरस द्वारा अनुकूलित या सिखाया गया है। हरिथासा गोत्र के लिए दो प्रवरों का उपयोग किया जाता है।

ऋषि मूलतः  मन्त्रद्रष्टा होता है। कम इस्तेमाल किये जाने वाले प्रवर में हरिता को ऋषि के रूप में शामिल किया गया है। हरिता को अपनी तपस्या पूरी होने के बाद ही ऋषि का दर्जा मिल सकता था। और इसलिए यह मान लेना तर्कसंगत होगा कि हरिता की तपस्या पूरी होने के बाद उसके जन्मे पुत्रों के सभी वंशजों में हरिता को प्रवर में एक ऋषि के रूप में शामिल किया गया होगा। लेकिन फिर भी ऐसे पुत्र हो सकते थे जो हरिथाके तपस्या करने से पहले ही पैदा हो गए थे।

चूँकि कहानियों में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने वरदान दिया था कि हरिता के सभी वंशज ब्राह्मण बन जाएंगे, उनकी तपस्या से पहले क्षत्रिय के रूप में पैदा हुए हरिता के पुत्रों को ऋषि अंगिरस द्वारा अनुकूलित किया गया होगा और उन्होंने ब्राह्मण धर्म का पालन किया होगा। दिलचस्प बात यह है कि लिंग पुराण में क्षत्रियों के गुण रखने वाले अंगिरस हरिता के बारे में भी विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। चूँकि प्राचीन काल से हम जानते हैं कि राजा का पुत्र राजा बनेगा और ब्राह्मण का पुत्र ब्राह्मण बनेगा। यदि हरिता ने वास्तव में अपनी तपस्या के आधार पर ब्राह्मण का दर्जा प्राप्त किया है, तो तपस्या पूरी होने के बाद उसके पैदा हुए सभी पुत्र और उनके वंशज क्षत्रियों के गुणों के बिना ब्राह्मण होने चाहिए। यदि हम इसके बारे में सोचें, तो दोहरे गुण होने की संभावना तब अधिक होती है जब कोई व्यक्ति क्षत्रिय के रूप में पैदा हुआ था, लेकिन अंततः उसने ब्राह्मण धर्म अपना लिया (किसी भी कारण से – इस मामले में विष्णु के वरदान के कारण) जो अन्य पर लागू होता प्रतीत होता है हरिता के पुत्र जो संभवतः उसके तपस्या करने से पहले पैदा हुए थे।

ऐसा माना जाता है कि हरिता ने अपने पापों के प्रतीकात्मक प्रायश्चित के रूप में अपना राज्य छोड़ दिया था। श्रीपेरुम्बुदूर के स्थल पुराण के अनुसार, तपस्या पूरी करने के बाद , उनके वंशजों और उन्हें नारायण द्वारा ब्राह्मण का दर्जा दिया गया था ।
हालांकि एक ब्राह्मण वंश, यह गोत्र सूर्यवंश वंश के क्षत्रिय राजकुमार का वंशज है जो पौराणिक राजा मंधात्री के परपोते थे । मंधात्री का वध लवनासुर ने किया था जिसे बाद में राम के भाई शत्रुघ्न ने मार डाला था । यह प्राचीन भारत के सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध वंशों में से एक है, जिसने राम और उनके तीन भाइयों को जन्म दिया।

राजवंश के पहले उल्लेखनीय राजा इक्ष्वाकु थे । सौर रेखा से अन्य ब्राह्मण गोत्र वटुला, शतामर्षण , कुत्सा, भद्रयान हैं। इनमें से कुत्सा और शतामर्षण भी हरिता गोत्र की तरह राजा मान्धाता के वंशज हैं और उनके प्रवरों के हिस्से के रूप में या तो मंधात्री या उनके पुत्र (अंबरीश / पुरुकुत्सा) हैं। पुराणों , हिंदू पौराणिक ग्रंथों की एक श्रृंखला, इस राजवंश की कहानी दस्तावेज़। हरिता इक्ष्वाकु से इक्कीस पीढ़ियों तक अलग हो गई थी। आज तक, कई क्षत्रिय सूर्यवंशी वंश से वंशज होने का दावा करते हैं, ताकि वे राजघराने के अपने दावों को प्रमाणित कर सकें।
यह विष्णु पुराण में हिंदू परंपरा में दर्ज है : अम्बरीषस्य मंधातुस तनयस्य युवनस्वाह पुत्रो भुत तस्माद हरितो यतो नगिरासो हरिताः । “अंबरीश का पुत्र, मंधात्री का पुत्र युवनाश्व था , उससे हरिता उत्पन्न हुई, जिससे हरिता अंगिरास वंशज हुए।

लिंग पुराण में  इस प्रकार दर्शाया गया है :
हरितो युवनस्वास्य हरिता यत आत्मजः एते ह्य अंगिराः पक्षे क्षत्रोपेट द्विजतायः । “युवानस्वा का पुत्र हरित था, जिसके हरिताश पुत्र थे”। “वे दो बार पैदा हुए पुरुषों के अंगिरस के पक्ष में थे, क्षत्रिय वंश के ब्राह्मण।”

वायु पुराण में इस प्रकार दर्शाया गया है :

“वे हरिताश / अंगिरस के पुत्र थे, क्षत्रिय जाति के दो बार पैदा हुए पुरुष (ब्राह्मण या ऋषि अंगिरस द्वारा उठाए गए हरिता के पुत्र थे।
तदनुसार, लिंग पुराण और वायु पुराण दोनों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हरिता गोत्र वाले ब्राह्मण इक्ष्वाकु वंश के हैं और अंगिरस के प्रशिक्षण और तपो शक्ति और भगवान आदि केशव के आशीर्वाद के कारण ब्राह्मण गुण प्राप्त हुए, और दो बार पैदा हुए। स्वामी रामानुज और उनके प्राथमिक शिष्य श्री कूरथज़्वान हरिता गोत्र के थे।

क्षत्रिय से ब्राह्मण का दर्जा मिला :-

श्रीपेरंबुदूर के स्थल पुराण (मंदिर की पवित्रता का क्षेत्रीय विवरण) के अनुसार , हरिता एक बार शिकार अभियान पर निकले थे, जब उन्होंने एक बाघ को गाय पर हमला करते हुए देखा। गाय को बचाने के लिए उसने बाघ को मार डाला, लेकिन गाय भी मारी गई। जब वह अपने कृत्य पर शोक व्यक्त कर रहा था, तब एक दिव्य आवाज ने उसे श्रीपेरंबदूर जाने, मंदिर के तालाब में स्नान करने और नारायण से क्षमा प्रार्थना करने के लिए कहा , जो उसे उसके पापों से मुक्त कर देंगे। राजा ने इस निर्देश का पालन किया, जिसके बाद नारायण उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें उनके पापों से मुक्त कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि देवता ने यह भी घोषणा की थी कि भले ही राजा इतने वर्षों तक क्षत्रिय रहे, उनके आशीर्वाद के कारण, वह और उनके वंशज अब ब्राह्मण का दर्जा प्राप्त करेंगे।

हरीता के ब्राह्मण बनने की कहानी :-

यह स्थलपुराण श्रीपेरंपुदुर मंदिर के मुदल (प्रथम) तीर्थकर (पुजारी) द्वारा सुनाया गया था ।  एक बार हरित नाम का एक महान राजा रहता था; वह राजा अंबरीश के पोते थे , जो श्री राम के पूर्वज हैं।

एक बार वह एक घने जंगल से गुजर रहा था जहाँ उसे एक गाय की कराह सुनाई देती है। वह उस दिशा में जाता है जहां आवाज आ रही थी। वह देखता है कि एक बाघ ने गाय को पकड़ लिया है और वह गाय को मारने ही वाला था।

चूंकि वह क्षत्रिय और राजा है, इसलिए उसे लगता है कि कमजोरों की रक्षा करना उसका कर्तव्य है, और बाघ को मारने में कोई पाप नहीं है। उसका लक्ष्य बाघ है। इस बीच, बाघ भी सोचता है कि उसे कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे राजा को भी कष्ट हो और वह गाय को मार डाले और राजा हरिथा बाघ को मार डाले।

चूंकि उसने गो हत्या (पवित्र गाय की मृत्यु) को होते हुए देखा है, इसलिए राजा गो हाथी दोष (पाप) से प्रभावित होता है । वह चिंतित हो जाता है, जब अचानक वह एक असरेरी (दिव्य आवाज) सुनता है जो उसे सत्यव्रत क्षेत्र में जाने और अनंत सरसु में स्नान करने और भगवान आदि केशव की पूजा करने के लिए कहता है , जिससे उसके पाप गायब हो जाएंगे।

राजा हरिता अयोध्या वापस जाते हैं और वशिष्ठ महर्षि से परामर्श करते हैं , जो उन्हें श्रीपेरंपुदुर महाट्यम के बारे में बताते हैं और बताते हैं कि कैसे भूत गण (जो शिव लोक में भगवान शिव की सेवा करते हैं) ने वहां अपने साप (शाप) से छुटकारा पा लिया, और इसके लिए मार्ग भी जगह। राजा हरिथा तब राज्य चलाने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करता है और श्रीपेरम्पुदुर (चेन्नई, तमिलनाडु के पास) के लिए आगे बढ़ता है ।

वह अनंत सरसु में स्नान करता है और भगवान आदि केशव से प्रार्थना करता है ; थोड़ी देर बाद दयालु भगवान हरित महाराज के सामने प्रकट होते हैं और उन्हें सभी मंत्रों का निर्देश देते हैं जो दोष से छुटकारा पाने में मदद करेंगे । उनका यह भी कहना है कि इतने वर्षों तक वे क्षत्रिय थे, उनके आशीर्वाद से अब वे ब्राह्मण बन गए हैं, और अब से उनके वंशज भी ब्राह्मण होंगे (आज भी उनके वंशज हरिता गोत्र के ब्राह्मण के रूप में जाने जाते हैं)। भगवान उन्हें सभी मंत्रों का उपदेशम भी देते हैं । हरिथा महाराजा आदि केशव मंदिर का पुनर्निर्माण करते हैं, और एक शुभ दिन पर मंदिर का अभिषेक करते हैं।

चाणक्य की तरह एक पहुंचे हुए महर्षि:-

हारीत एक ऋषि थे जिनकी मान्यता अत्यन्त प्राचीन धर्मसूत्रकार के रूप में है। बौधायन धर्मसूत्र, आपस्तम्ब धर्मसूत्र और वासिष्ठ धर्मसूत्रों में हारीत को बार–बार उद्धत किया गया है। हारीत के सर्वाधिक उद्धरण आपस्तम्ब धर्मसूत्र में प्राप्त होते हैं। तन्त्रवार्तिक में हारीत का उल्लेख गौतम, वशिष्ठ, शंख और लिखित के साथ है। परवर्ती धर्मशास्त्रियों ने तो हारीत के उद्धरण बार-बार दिये हैं।

धर्मशास्त्रीय निबन्धों में उपलब्ध हारीत के वचनों से ज्ञात होता है कि उन्होंने धर्मसूत्रों में वर्णित प्रायः सभी विषयों पर अपने विचार प्रकट किए थे। प्रायश्चित (दण्ड) के विषय में हारीत ऋषि के विचार देखिये-

यथावयो यथाकालं यथाप्राणञ्च ब्राह्मणे।
प्रायश्चितं प्रदातव्यं ब्राह्मणैर्धर्मपाठकैः।
येन शुद्धिमवाप्नोति न च प्राणैर्वियुज्यते।
आर्तिं वा महतीं याति न चैतद् व्रतमादिशेत् ॥

अर्थ – धर्मशास्त्रों के ज्ञाता ब्राह्मणों द्वारा पापी को उसकी आयु, समय और शारीरिक क्षमता को ध्यान में रखते हुए दण्ड (प्राय्श्चित) देना चाहिए। दण्ड ऐसा हो कि वह पापी का सुधार (शुद्धि) करे, ऐसा नहीं जो उसके प्राण ही ले ले। पापी या अपराधी के प्राणों को संकट में डालने वाला दण्ड देना उचित नहीं है।

गुहिल वंशी राजा कालभोज बप्पा रावल का गुरु थे हरीत :-

बप्पा रावल (या कालभोज) (शासन: 713-810) मेवाड़ राज्य में क्षत्रिय कुल के गुहिल राजवंश के संस्थापक और एक महापराक्रमी शासक थे। बप्पारावल का जन्म मेवाड़ के महाराजा गुहिल की मृत्यु के 191 वर्ष पश्चात 712 ई. में ईडर में हुआ। उनके पिता ईडर के शाषक महेंद्र द्वितीय थे।बप्पा रावल मेवाड़ के संस्थापक थे कुछ जगहों पर इनका नाम कालाभोज है ( गुहिल वंश संस्थापक- (राजा गुहादित्य )| इसी राजवंश में से सिसोदिया वंश का निकास माना जाता है, जिनमें आगे चल कर महान राजा राणा कुम्भा, राणा सांगा, महाराणा प्रताप हुए।

सिसौदिया वंशी राजा कालभोज का ही दूसरा नाम बापा मानने में कुछ ऐतिहासिक असंगति नहीं होती। इसके प्रजासरंक्षण, देशरक्षण आदि कामों से प्रभावित होकर ही संभवत: जनता ने इसे बापा पदवी से विभूषित किया था। महाराणा कुंभा के समय में रचित एकलिंग महात्म्य में किसी प्राचीन ग्रंथ या प्रशस्ति के आधार पर बापा का समय संवत् 810 (सन् 753) ई. दिया है। दूसरे एकलिंग माहात्म्य से सिद्ध है कि यह बापा के राज्य त्याग का समय था।

बप्पा रावल को रावल की उपाधि भील सरदारों ने दी थी । जब बप्पा रावल 3 वर्ष के थे तब वे और उनकी माता जी असहाय महसूस कर रहे थे , तब भील समुदाय ने उनदोनों की मदद कर सुरक्षित रखा,बप्पा रावल का बचपन भील जनजाति के बीच रहकर बिता और भील समुदाय ने अरबों के खिलाफ युद्ध में बप्पा रावल का सहयोग किया। यदि बप्पा रॉवल जी का राज्यकाल 30 साल का रखा जाए तो वह सन् 723 के लगभग गद्दी पर बैठे होगे। उससे पहले भी उसके वंश के कुछ प्रतापी राजा मेवाड़ में हो चुके थे, किंतु बापा का व्यक्तित्व उन सबसे बढ़कर था। चित्तौड़ का मजबूत दुर्ग उस समय तक मोरी वंश के राजाओं के हाथ में था।

बप्पा रावल और हारित ऋषि की कहानी –

बप्पा रावल नागदा में उन ब्राह्मणों की गाय चराता था, उन गायों में एक गाय सुबह सबसे ज्यादा दूध देती थी व शाम को दूध नहीं देती थी तब ब्राह्मणों को बप्पा पर संदेह हुआ, तब बप्पा ने जंगल में गाय की वास्तविकता जानी चाहिए तो देखा कि वह गाय जंगल में एक गुफा में जाकर बेल पत्तों के ढेर पर अपने दूध की धार छोड़ रही थी, बप्पा ने पत्तों को हटाया तो वहां एक शिवलिंग था वही शिवलिंग के पास ही समाधि लगाए हुए एक योगी थे। बप्पा ने उस योगी हारित ऋषि की सेवा करनी प्रारंभ कर दी इस प्रकार उसे एकलिंग जी के दर्शन हुए वह उसको हारित ऋषि से आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

मुहणोत नैणसी के अनुसार – बप्पा अपने बचपन में हारित ऋषि की गाये चराता था। इस सेवा से प्रसन्न होकर हारित ऋषि ने राष्ट्रसेनी देवी की आराधना से बप्पा के लिए राज्य मांगा देवी ने ऐसा हो का वरदान दिया इसी तरह हारित ऋषि ने भगवान महादेव का ध्यान किया जिससे एकलिंगी का लिंक प्रकट हुआ हारित ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की , जिससे प्रसन्न होकर हारित को वरदान मांगने को कहा। हारित ने महादेव से बप्पा के लिए मेवाड़ का राज्य मांगा।

जब हरित ऋषि स्वर्ग को जा रहे थे तो उन्होंने बप्पा रावल को बुलाया लेकिन बप्पा रावल ने आने में देर कर दी बप्पा उङते हुए विमान के निकट पहुंचने के लिए 10 हाथ शरीर में बढ़ गए। हारित ने बप्पा को मेवाड़ का राज्य तो वरदान में दे ही दिया परंतु यह बप्पा को हमेशा के लिए अमर करना चाहते थे इसलिए उसने अपने मुंह का पान बप्पा को देना चाहा लेकिन मुंह में ना गिरकर बप्पा के पैरों में जा गिरा हारित ऋषि ने कहा कि यह पान तुम्हारे मुंह में गिरता तो तुम सदैव के लिए अमर हो जाते लेकिन फिर भी यह पान तुम्हारे पैरों में पड़ा है तो तुम्हारा अधिकार से मेवाड़ राज्य कभी नहीं हटेगा हारित ऋषि ने बप्पा को एक स्थान बताया जहां उस खजाना 15 करोड़ मुहरें मिलेगी और उस खजाना की सहायता से सैनिक व्यवस्था करके मेवाड़ राज्य विजीत कर लेने का आशीर्वाद दिया

परंपरा से यह प्रसिद्ध है कि हारीत ऋषि की कृपा से बापा ने मानमोरी को मारकर इस दुर्ग को हस्तगत किया। टॉड को यहीं राजा मानका वि. सं. 770 (सन् 713 ई.) का एक शिलालेख मिला था जो सिद्ध करता है कि बापा और मानमोरी के समय में विशेष अंतर नहीं है। चित्तौड़ पर अधिकार करना कोई आसान काम न था। नागभट प्रथम ने अरबों को पश्चिमी राजस्थान और मालवे से मार भगाया। बापा ने यही कार्य मेवाड़ और उसके आसपास के प्रदेश के लिए किया। मौर्य (मोरी) शायद इसी अरब आक्रमण से जर्जर हो गए हों। बापा ने वह कार्य किया जो मोरी करने में असमर्थ थे और साथ ही चित्तौड़ पर भी अधिकार कर लिया। बापा रावल के मुस्लिम देशों पर विजय की अनेक दंतकथाएँ अरबों की पराजय की इस सच्ची घटना से उत्पन्न हुई होंगी।

विश्व प्रसिद्ध महर्षि हरित राशि बप्पा रावल के गुरु थे। वे लकुलीश सम्प्रदाय के आचार्य और श्री एकलिंगनाथ जी के महान भक्त थे। बप्पा रावल को हारीत ऋषि के द्वारा महादेव जी के दर्शन होने की बात मशहूर है।एकलिंगजी का मन्दिर – उदयपुर के उत्तर में कैलाशपुरी में स्थित इस मन्दिर का निर्माण 734 ई. में बप्पा रावल ने करवाया | इसके निकट हारीत ऋषि का आश्रम है।

गोत्र :-
हरिता सगोत्र के ब्राह्मण अपने वंश को उसी राजकुमार से जोड़ते हैं। जबकि अधिकांश ब्राह्मण प्राचीन ऋषियों के वंशज होने का दावा करते हैं, हरिता सगोत्र के लोग ब्राह्मण अंगिरसा द्वारा प्रशिक्षित क्षत्रियों के वंशज होने का दावा करते हैं और इसलिए उनमें कुछ क्षत्रिय और कुछ ब्राह्मण गुण हैं। इसने लिंग पुराण के अनुसार , “क्षत्रियों के गुणों वाले ब्राह्मणों” का निर्माण किया। आज तक, कई राजघराने अपने राजघराने के दावे को साबित करने के लिए सूर्यवंश वंश के इस राजा के वंशज होने का दावा करते हैं। वे हरिता से वंश का दावा करते हैं, और विष्णु पुराण , वायु पुराण , लिंग पुराण जैसे हिंदू ग्रंथों से वैधता की तलाश करते हैं ।

हरीता गौत्र (उपनाम) अरोरा खत्री समुदाय से भी जुड़ जाता हैं। महान ग्रंथों के अनुसार, हरीता (खत्री) सूर्यवंशी हैं और भगवान राम के वंशज भी हैं। हरीता क्षत्रिय वर्ग में आते हैं। अधिकांश हरीता गोत्र के लोग दोहरे विश्वास वाले हिंदू हैं। वे हिंदू और सिख दोनों धर्मों को मानते हैं। वे बहुत पढ़े-लिखे और अच्छे लोग हैं। वे भारत और दुनिया में एक प्रभावशाली समुदाय बनने में भी कामयाब रहे है।

 आज हरीता भारत के सभी क्षेत्रों में रहते हैं, लेकिन वे ज्यादातर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में केंद्रित हैं। वे भारत और दुनिया में एक प्रभावशाली समुदाय बनने में कामयाब रहे है। हरीता लोग भले ही आधुनिक हों, लेकिन उनकी परंपराओं और मूल्यों के साथ उनका बहुत गहरा संबंध है। हरीता लोगों को अपनी भारतीय विरासत पर गर्व है और उन्होंने भारतीय संस्कृति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आज हरीता प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, वित्त, व्यवसाय, इंजीनियरिंग, शिक्षा, निर्माण, मनोरंजन और सशस्त्र बल आदि कई क्षेत्रों में अपना ध्वज फहरा रहे हैं।

पंजाबी संस्कृति की झलक :-

हरीता गोत्र के लोगों में मजबूत पंजाबी संस्कृति पाई जाती है। अद्वितीय, असाधारण, दुनिया भर में लोकप्रिय, पंजाबी संस्कृति वास्तव में जबरदस्त है। रंगीन कपड़े, ढोल, एवं भगड़ा अत्यंत ऊर्जावान और जीवन से भरपूर है। वे स्वादिष्ट भोजन, संगीत, नृत्य और आनंद के साथ त्योहारों को बड़े उत्साह के साथ मनाते है। पंजाबी खाना जायके और मसालों से भरपूर होता है। रोटी पर घी ज्यादा होना, खाने को और अधिक स्वादिष्ट बना देता है। लस्सी को स्वागत पेय के रूप में भी जाना जाता है। मक्के दी रोटी और सरसों दा साग पंजाबी संस्कृति का एक और पारंपरिक व्यंजन है। छोले भटूरे, राजमा चावल, पनीर टिक्का, अमृतसरी कुलचे, गाजर का हलवा, और भी कई तरह के खाने के व्यंजन हैं।

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं।)

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जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड ने राजस्व में सुधार किया

जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (ZEEL) द्वारा शुक्रवार को चौथी तिमाही और 31 मार्च, 2024 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष के परिणामों की घोषणा की, जिसके ठीक बाद, सीईओ व एमडी पुनीत गोयनका ने कहा कि FMCG सेक्टर द्वारा विज्ञापन खर्च में सुधार के चलते कंपनी के विज्ञापन राजस्व में भी सुधार हुआ है।

ब्रॉडकास्टर का विज्ञापन राजस्व वित्तीय वर्ष 2023 की चौथी तिमाही में 1005.8 करोड़ रुपये के मुकाबले 1,110.2 करोड़ रुपये रहा है, जिसने साल-दर-साल  के आधार पर 10% की ग्रोथ दर्ज की है।

पुनीत गोयनका ने कहा कि FMCG सेक्टर ग्रामीण भावनाओं में सुधार के साथ उबर रहा है, जिससे कंपनी के विज्ञापन राजस्व में तिमाही-दर-तिमाही के आधार पर और साल-दर-साल के आधार पर अच्छी वृद्धि हुई है।

इनवेस्टर्स कॉल के दौरान गोयनका ने कहा, “हालांकि FMCG की रिकवरी की गति अभी भी जरूरी बनी हुई है और इस तिमाही में खेल विज्ञापन खर्च का कुछ हिस्सा भी है। हमारा मानना है कि हम विज्ञापन राजस्व में वृद्धि लाने के लिए पिछले वर्षों की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं।”

सब्सक्रिप्शन राजस्व के बारे में बात करते हुए, गोयनका ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अनुकूल मूल्य निर्धारण नीति ढांचे के साथ, सब्सक्रिप्शन राजस्व में क्रमिक वृद्धि को बढ़ावा देने का अवसर मिलेगा।

वित्तीय वर्ष 2023-24 की चौथी तिमाही में कंपनी ने सब्सक्रिप्शन राजस्व में 12% की सालाना वृद्धि के साथ 949 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जो वित्तीय वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही में 847 करोड़ थी।

इनवेस्टर्स कॉल के दौरान, गोयनका ने कहा कि उन्हें वित्तीय वर्ष 2026 तक 18-20% EBITDA हासिल करने की उम्मीद है। गोयनका ने यह भी कहा कि नतीजे पिछली तिमाही के उत्तरार्ध में कंपनी द्वारा उठाए गए कदमों के कारण है और यह वित्तीय वर्ष 2025 के मुनाफे में दिखाई देगा।

वित्त वर्ष 2025 में हमारे प्रदर्शन में हमारी दृश्यता व आत्मविश्वास और वित्तीय वर्ष 2026 तक 18-20% EBITDA की दीर्घकालिक आकांक्षा हासिल करने की हमारी क्षमता और बढ़ गई है। नए वित्तीय वर्ष में, सभी हस्तक्षेप अगले 3-4 महीनों में पूरी तरह से लागू हो जाएंगे और निकट अवधि में कुछ एकमुश्त लागतें होंगी।

उन्होंने कहा कि वे कहते हैं कि अगली सभी तिमाही में सकारात्मक वृद्धि जारी रहनी चाहिए और हम इस अवसर को भुनाने के लिए तैयार हैं।”

कानूनी मोर्चे पर, गोयनका ने कहा कि कंपनी ने कल्वर मैक्स एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड (सोनी पिक्चर्स) के साथ विलय कार्यान्वयन की मांग करते हुए NCLT से अपना आवेदन वापस ले लिया है, लेकिन वह सिंगापुर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (SIAC) में मध्यस्थता की कार्यवाही को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाएगी।

उन्होंने कहा कि हमने यह सुनिश्चित करने के लिए हर आवश्यक दिशा में ठोस प्रयास किए हैं कि हम मितव्ययी बने रहें। हम अपने संसाधनों में सुधार करें और बिजनेस में क्वॉलिटी कंटेंट पर अपना ध्यान केंद्रित रखें।

उन्होंने कहा, “हमने तिमाही के उत्तरार्ध में कई कदम उठाए हैं, जिनके नतीजे वित्त वर्ष 2025 में सामने आएंगे।”

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