Monday, November 25, 2024
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वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय नहीं रहे

भोपाल। भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी ने वरिष्ठ पत्रकार श्री उमेश उपाध्याय के असामयिक निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि श्री उपाध्याय के निधन से हिन्दी मीडिया का एक सितारा अस्त हो गया। वे वैश्विक मीडिया के भारत विरोधी चेहरे को उजागर करने वाले साहसी पत्रकार थे।

श्री उमेश उपाध्याय का एक सितंबर को निधन हो गया है। बताया जाता है कि उमेश उपाध्याय के दिल्ली स्थित घर पर कुछ काम चल रहा था, इसी दौरान कुछ काम करते समय वह गिरकर घायल हो गए थे। तत्काल ही उमेश उपाध्याय को अस्पताल ले जाया गया, जहां उनका निधन हो गया।

प्रो.द्विवेदी ने कहा कि एक अनुभवी पत्रकार व कम्युनिकेटर के रूप में उमेश जी ने मीडिया की हर विधा में काम किया। टीवी पत्रकारिता से प्रारंभ कर वे आनलाइन माध्यम और कारपोरेट कम्युनिकेशन के भी सिद्ध हस्ताक्षर बने। उन्होंने एक ग्राउंड रिपोर्टर से एक अनुभवी संपादक तक का सफर तय किया।

श्री उपाध्याय ने प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया’, ‘ऑल इंडिया रेडियो’, ‘डीडी न्यूज’, ‘नेटवर्क18’ और ‘जी न्यूज’ सहित कई अन्य न्यूज नेटवर्क के साथ काम किया। जेएनयू, डीयू और FTII के छात्र रह चुके उमेश उपाध्याय का अंतरराष्ट्रीय संबंधों और मीडिया के प्रति उनका जुनून उनके लेखों में स्पष्ट होता है। उन्होंने कई न्यूज व टॉक शो बनाए।

प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि हाल में आई उनकी किताब ‘वेस्टर्न मीडिया नरेटिव्स ऑन इंडिया फ्रॉम गांधी टू मोदी’ (WESTERN MEDIA NARRATIVES ON INDIA FROM GANDHI TO MODI) उनके विलक्षण अध्यवसायी और शोधकर्ता होने का प्रमाण है।

ऐसे समय में जब देश वैश्विक स्तर पर नरेटिव की जंग लड़ रहा है, वैश्विक मीडिया के भारत विरोधी पाखंड को उजागर करने और उसकी समझ रखने वाले पत्रकार का निधन पीड़ादायक है।

‘हरिवंश: पत्रकारिता का लोकधर्म’ पुस्तक का लोकार्पण

भोपाल। राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश ने कहा है कि 300-400 वर्षों में विचार ने इतिहास को बदला, लेकिन नब्बे के दशक के बाद ‘तकनीक’ ने दुनिया को बदला। हरिवंश आज सप्रे संग्रहालय में अपने ऊपर प्रकाशित पुस्तक ‘हरिवंशः पत्रकारिता का लोकधर्म’ के लोकार्पण व चर्चा कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। पुस्तक को प्रलेक प्रकाशन ने छापा है। लोकार्पण समारोह में पुस्तक के प्रकाशक जितेंद्र पात्रो भी उपस्थित थे।

समारोह को संबोधित करते हुए हरिवंश ने कहा कि मुख्यधारा की पत्रकारिता आदर्शों से दूर चली गई। समारोह को संबोधित करते हुए ‘नवनीत’ के संपादक विश्वनाथ सचदेव ने कहा कि हरिवंश की पत्रकारिता ही लोकधर्म की पत्रकारिता है। पत्रकारिता का धर्म ही है ‘लोक’ की चिंता। आजादी के दौर में पत्रकारिता विशेष कर हिंदी पत्रकारिता ने समाज को एक दिशा दी, किंतु धीरे-धीरे वह अपने उद्येश्यों से भटक गई। जबसे दृश्य माध्यम आया है, पत्रकारिता के स्वरूप में बदलाव आया है।

विश्वनाथ सचदेव ने कहा कि हरिवंश जैसे व्यक्ति पत्रकारिता छोडक़र राजनीति में चले गए यह राजनीति के लिए बड़ी उपलब्धि हो सकती है, किंतु पत्रकारिता की बड़ी क्षति है।
किताब के संपादक कृपाशंकर चौबे ने कहा कि लेखन बहुत ही आसान कार्य है, लेकिन ‘संपादन’ एक जटिल और चुनौतीपूर्ण कार्य है। उन्होंने कहा कि विश्वनाथ सचदेव और हरिवंश जी जैसे लोगों की बदौलत ही पत्रकारिता का लोकधर्म आज बचा हुआ है।

सप्रे संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि हरिवंश जी आई किताब पत्रकारिता की धरोहर है इसके लोकार्पण के साथ ही यह भी मंशा थी कि विश्वनाथ जी, हरिवंश जी और कृपाशंकर चौबे जैसी विभूतियों से पत्रकारित के विद्यार्थियों का संवाद हो, जिससे उनके अनुभवों का लाभ मिल सके। कार्यक्रम के दूसरे चरण में पत्रकारिता के विद्यार्थियों ने तीनों विभूतियों से पत्रकारिता के मौजूदा परिदृश्य को लेकर सवाल किये। आरंभ में संग्रहालय की ओर से डॉ. शिवकुमार अवस्थी, डॉ. रत्नेश, अरविंद श्रीधर ने अतिथियों का स्वागत किया।

संचालन मीडिया शिक्षक लालबहादुर ओझा ने किया तथा आभार प्रदर्शन वरिष्ठ टीवी पत्रकार राजेश बादल ने किया।

बहुआयामी व्यक्तित्व था प्रतीक सोनवलकर का

प्रख्यात साहित्यकार और संयुक्त आयुक्त श्री प्रतीक सोनवलकर जी का मात्र छप्पन वर्ष की आयु में देवलोकगमन साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है | 24 दिसम्बर 1968 को रतलाम में जन्मे , प्रतीक जी के देहांत का समाचार जैसे ही 29 अगस्त 2024 को मिला ,सहसा किसी को विश्वास नहीं हुआ और सब एक दूसरे से दिल को झकझोर देने वाले इस दारुण समाचार की पुष्टि करते रहे | आपको मध्यप्रदेश साहित्य परिषद का वर्ष 2018 का प्रादेशिक श्रीकृष्ण सरल सम्मान ,कविता के लिए प्राप्त हुआ था | वर्ष 2011 में साहित्य के लिए अखिल भारतीय टेपा सम्मान , मालवा रंगमंच सम्मान सहित अनेकों सम्मान और पुरस्कार आपको प्राप्त हुए | आप एक श्रेष्ठ गायक और संगीतज्ञ भी रहे और आकाशवाणी ,दूरदर्शन सहित देश के विभिन्न मंचों से आपने प्रस्तुतियां भी दीं | प्रख्यात संगीतकार खय्याम , अन्नू मलिक , उषा खन्ना ,अमिताभ बच्चन से आप परिचित रहे | प्रतीक जी ने कई गजलकारों और कवियों की रचनाओं को अपना स्वर दिया |


साहित्यिक और संगीत के संस्कार आपको परिवार से मिले | प्रतीक जी के पिताश्री श्री दिनकर सोनवलकर जी दर्शन शास्त्र के विख्यात प्राध्यापक और जाने माने साहित्यकार रहे हैं | दिनकर जी बहुत अच्छे गायक और आचार्य रजनीश के सहपाठी रहे हैं | महाकवि बच्चन , भावनीप्रसाद मिश्र जैसे नामधारी कवियों से उनका सत्संग रहा | जावरा में पढाई के दौरान दिनकर जी मेरे होस्टल के वार्डन रहे और उनसे जीवंत संपर्क वर्ष 1980 में रहा।

दिनकर जी की शख्सियत महान रही और तब जावरा का शासकीय महाविद्यालय प्राध्यापकों की योग्यता और विद्वत्ता के कारण जाना जाता था। अपनी कविता के जरिये व्यंग्य करने वालों कवियों में दिनकर जी अग्रणी थे। दिल्ली की पत्रिका ‘ व्यंग्य यात्रा ‘ ने कबीरी धारा के व्यंग्य कवियों में दिनकर जी की रचनाओं का हाल ही में प्रकाशन किया। साहित्यकार अपनी रचनाओं से ही विख्यात होते हैं और दिनकर जी ऐसे ही महान कवि और व्यंग्यकार रहे।

जाहिर है प्रतीक जी को साहित्य विरासत में मिला और उनके परिवार में माताश्री मीरा दिनकर सोनवलकर भी साहित्य अनुरागी हैं और उनकी एक पुस्तक ‘बिन सत्संग विवेक न होई ‘ प्रकाशित हुई है | प्रतीक जी की धर्मपत्नी डॉ. पंकजा सोनवलकर की काव्य प्रतिभा को उनके ससुर दिनकर जी ने प्रोत्साहित किया और आपके कविता संग्रह ‘भावनाओं के शब्दांश ‘, पांखुरी आदि प्रकाशित हैं | प्रतीक जी की पुत्री दीक्षा देश -विदेश में कथक नृत्य की प्रस्तुतियां दे चुकी हैं | प्रतीक जी के सुपुत्र सार्थक सहित पूरा परिवार साहित्य – संस्कृति के लिए समर्पित है |

प्रतीक जी की प्रकाशित कृतियों में रिश्तों के चक्रव्यूह , समर्पण आदि सम्मिलित हैं | आपने अपने पिताश्री की रचनाओं का प्रकाशन फिर से करवाया जो ‘ प्रतिनिधि रचनाएं – दिनकर सोनवलकर’ के नाम से लोकप्रिय हुआ | श्री दिनकर जी की स्मृतियों को जीवंत रखने और साहित्यिक ,सांस्कृतिक ,सामाजिक और शैक्षणिक गतिविधियों के सञ्चालन के लिए ‘ दिनकर सृजन संस्थान ‘ की स्थापना आपने की और डॉ. पंकजा सोनवलकर इसकी अध्यक्ष बनीं | दिनकर सृजन संस्थान के तत्वाधान में आपने कई आयोजन किये और दिनकर सम्मान से कई साहित्यकारों को सम्मानित किया | दिनकर सृजन संस्थान के ये आयोजन उज्जैन सहित बडनगर , जावरा ,देवास आदि स्थानों पर आपने आयोजित किये | पिछला आयोजन मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के सहयोग से जावरा में साहित्य अकादेमी के निदेशक श्री विकास दवे की उपस्थिति में भव्य रूप से आयोजित किया गया था |

श्री प्रतीक सोनवलकर जी ईमानदार उच्च अधिकारी भी रहे | संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी प्रतीक सोनवलकर जी ने कभी अपने पद का अभिमान नहीं किया और उनसे मिलने पर , एक अलग ही आनंद की अनुभूति होती थी | प्रतीक जी की यादें और उनका व्यवहार सदैव याद रहेगा |

भारत आर्थिक महाशक्ति बनने के रास्ते पर : हरिवंश

वर्धा। राज्‍यसभा के उपसभापति हरिवंश ने कहा कि भारत आर्थिक महाशक्ति बनने के रास्ते पर है। उन्होंने कहा कि आर्थिक समृद्धि प्राप्‍त होने पर भारत का भविष्‍य उज्‍ज्‍वल होगा। श्रम, उद्योग और उद्यम ही भारत के भविष्‍य की दिशा तय करेगा। श्री हरिवंश जी बुधवार को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा में आयोजित ‘भावी दुनिया में भारत’ विषय पर विशेष व्‍याख्‍यान दे रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने की।

राज्‍यसभा के उपसभापति हरिवंश ने आगे कहा कि बिना आर्थिक रूप से सफल हुए कोई भविष्‍य नहीं है। यह अस्तित्‍व से जुड़ा सवाल और पहली बुनियादी सोच है। भारत को सोने की चिडि़या का देश कहा जाता था। इतिहास में हम समृद्ध थे, यही धारणा इस कथन के पीछे थी। उन्‍होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सन 2047 तक भारत को विकसित बनाने का संकल्‍प लिया है। इस संकल्‍प की पूर्ति के लिए हमें 13.5 आर्थिक विकास की दर से आगे बढ़ना होगा। इससे हम आर्थिक रूप से समृद्ध तो होंगी ही, हमारी सारी समस्‍याएं भी हल होंगी।

कोविड़ विपदा का उल्‍लेख करते हुए उन्‍होंने कहा कि इस विपदा का सामना करने के लिए भारत ने महज 9 महीने के भीतर दो-दो टीके बनाए। हममें क्षमता है यह दिखा दिया। अर्जुन के लक्ष्‍य की तरह हमारी नज़र अपने ध्‍येय को साकार करने के लिए होनी चाहिए। मिलकर काम करने से हम नये भारत का निर्माण कर सकते हैं। आज हम तेज उभरती अर्थव्‍यवस्‍था में से एक हैं। यदि हम 2024 तक 55 ट्रिलियन डालर की अर्थव्‍यवस्‍था हासिल करते हैं तो इससे रोजगार में निश्चित ही वृद्धि होगी। उन्‍होंने भविष्‍य के भारत में युवाओं की भूमिका का उल्‍लेख करते हुए कहा कि पूरे भारत में स्‍टार्टअप का माहौल बना हुआ है। युवा रोजगार सृजन करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। हमारी मेधा अनेक बड़ी बड़ी कंपनियों में सेवाएं दे रही हैं। अंतरिक्ष के क्षेत्र में चंद्रयान, मंगलयान और आदित्‍य एल-1 के कारण हम दुनिया में अग्रणी हो रहे हैं। इस क्षेत्र ने 20 हजार करोड़ से भी अधिक का आर्थिक योगदान दिया है। कृषि उद्योग, खिलौना उद्योग में भी हमारा निर्यात बढा है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उल्‍लेख करते हुए उन्‍होंने कहा कि यह दुनिया को बदल देगा। इसमें अभिशाप भी है और अवसर भी। सेमी-कंडक्‍टर निर्माण में भी हम अग्रसर हो रहे है। विकास-विकास और विकास ही लक्ष्‍य हो तब हम आने वाले दिनों में दुनिया में अग्रणी होंगे। उन्‍होंने युवाओं से आह्नान किया वे अपना राष्‍ट्रीय लक्ष्‍य तय करें।

अपने भाषण में उन्‍होंने महात्‍मा गांधी, चाण्‍यक्‍य, मार्क्‍स, बसवेश्‍वर, स्‍वामी विवेकानंद से लेकर एपीजे अब्‍दुल कलाम, नारायण मूर्ति, अजिम प्रेमजी आदि भारत के निर्माताओं के प्रेरक उद्धरणों का उल्‍लेख करते हुए रा‍ष्‍ट्रीय शिक्षा नीति, राजनीति, कौशल भारत आदि विषयों पर अपने विचार रखे।
अध्‍यक्षीय संबोधन में कुलपति प्रो. कृष्‍ण कुमार सिंह ने कहा कि हमें अपनी विरासत और संस्‍कृति का स्‍मरण करते हुए आगे बढ़ना है। हमें नेतृत्‍वकारी भूमिका निभानेवाले लोगों के कार्य सामने रखने होंगे। उन्‍होंने कहा कि पश्चिम की यात्रा शक्तिपथ पर ले जाती है तो भारत की यात्रा मुक्ति पथ पर ले जाती है।

विषय परिवर्तन करते हुए शिक्षा विभाग के अधिष्‍ठाता प्रो. गोपाल कृष्ण ठाकुर ने कहा कि भारत ने युद्ध नहीं बल्कि बुद्ध के संदेश को पूरी दुनिया में पहुचाया है। हमारी चितंन परंपरा दुनिया को भविष्‍य का रास्‍ता दिखाती है। स्‍वागत भाषण जनसंचार विभाग के अध्यक्ष एवं कार्यक्रम के संयोजक प्रो. कृपाशंकर चौबे ने किया।

इस अवसर पर कुलपति प्रो. सिंह ने हरिवंश जी का शॉल, सूतमाला एवं विश्‍वविद्यालय का प्रतीक चिन्‍ह भेंट कर स्‍वागत किया। वर्धा के जिलाधिकारी राहुल कर्डिले ने हरिवंश जी का पुष्‍पगुच्‍छ देकर स्‍वागत किया।

सनातनियों को एकजुट रहने का मन्त्र और विपक्ष की बौखलाहट

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुखर होकर सनातन धर्म और हिंदुत्व की बात करते हैं और निरंतर  हिन्दू समाज को एकता और राष्ट्र प्रथम का सन्देश देते रहते हैं । बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ हो रही वीभत्स हिंसा का संदर्भ लेते हुए उन्होंने अपनी बात को और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा कि ”हम बटेंगे तो कटेंगे“। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का सीधा सन्देश हिन्दू समाज को जातियों में बाँटने से रोकने और हिन्दुओं के लिए इसके कुप्रभावों के प्रति जागरूक करना था।

उत्तर प्रदेश में योगी जी के राज्य का मुखिया बनने के साथ ही सभी थानों में  श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा है जिसने इस पर्व को प्रदेश में एक नया उत्साह दिया है। स्वाभाविक रूप से सेक्युलर यानि हिन्दू विरोधी शक्तियों को यह उल्लास अच्छा नहीं लगता है।

इस बार श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर योगी जी ने आगरा – मथुरा में कई कार्यक्रमों में भाग लिया और जन समुदाय को संबोधित किया। इनमें सबसे अधिक चर्चा उनके आगरा में मारवाड़ शासक  महराजा जसवंत सिंह के सेनापति दुर्गादास राठौर की प्रतिमा अनावरण समारोह को संबोधित करते हुए वक्तव्य की हो रही है। इस वक्तव्य में मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि राष्ट्र से बढ़कर कुछ नहीं  हो सकता, राष्ट्र तभी सशक्त हो सकता है जब हम एकजुट रहेंगे। उन्होंने कहा कि  बांग्लादेश में देख रहे हो न क्या हो रहा है? ऐसी गलती यहां नहीं होनी चाहिए, समाज जाति भाषा के नाम पर बांटने  वाली ताकतों से सावधान रहना होगा।

मुख्यमंत्री ने  श्री कृष्ण जन्माष्टमी बधाई देते हुए कहा, पांच हजार वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने धर्म पथ का अनुसरण करने को सत्य व न्याय का संदेश दिया था। हम सभी लोकमंगल व राष्ट्रमंगल के प्रति पूर्ण समर्पण भाव से कार्य करें। ताकि हम सभी मिलकर विकसित भारत की परिकल्पना को साकार करने के लिए सर्वश्रेष्ठ योगदान कर सकें।इधर कई अवसरों पर मुख्यमंत्री ने सनातन धर्म पर अपने विचार रख रहे हैं तथा स्पष्ट रूप से कहा है कि सनातन धर्म ही भारत का एकमात्र धर्म है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयानों से समाजवादी मुखिया अखिलेश यादव और मुसलमानों के एकमात्र स्वयंभू नेता बनने के लिए लालायित एआईआईएएम के असदुद्दुदीन ओवैसी बौखला गए हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि योगी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। कम से कम उन्हें प्रधानमंत्री का रोल नहीं अदा करना चाहिए। यह वही अखिलेश यादव हैं जिन्होंने लोकसभा में चंद सीटें बढ़ते ही लखनऊ में अपने प्रधानमंत्री पद की चाहत वाले पोस्टर लगवा दिये गये थे।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिंदू जनमानस से बिल्कुल सटीक व स्पष्ट बात कह रहे हैं क्योकि बांग्लादेश में हिंदुओं पर जिस तरह से अत्याचार हुए उस पर दुनिया में किसी ने भी कहीं भी कोई भी आवाज नहीं उठायी। बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में हिंदुओं पर लगातार आत्याचार होते आ रहे हैं  किंतु किसी भी मानवाधिकारी की कलम नहीं चली और जो अमेरिका भारत में होने वाली छोटी मोटी घटनाओं पर उपदेश देता रहता  उसके मन में कोई संवेदना नहीं जागी। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर बांग्लादेश की घटनाओं  पर कड़ी चिंता व्यक्त की तब कहीं जाकर कुछ सुस्ती टूटी है पर वह नाकाफी है तथा बांग्लादेश के दूरदराज के हिस्सों में अभी  भी हिन्दुओं पर उसी प्रकार से अत्याचार किया जा रहा है।

जिस तरह बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ बर्बरता की गई व पवित्र मंदिरों को ध्वस्त किया गया वह बहुत  ही हृदय विदारक था। किंतु इस भयावह मानवीय त्रासदी पर मोमबत्ती हाथ में लेकर एक भी वामपंथी जुलूस नहीं निकला। भारत के तथाकथित वामपंथी व इंडी गठबंधन के सभी नेता व विचारक फिलिस्तीन और  गाजा पर तो आंसू बहाते रहते हैं और सोशल मीडिया पर कैपेंन चलाते रहते हैं किंतु बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा पर मौन हो जाते हैं। इनकी सभी समीक्षाएं व चर्चायें  पूरी तरह से हिंदू विरोध पर ही केन्द्रित रहती हैं क्योकि संगठित हिंदू इनका वोटबैक नहीं है और आजकल ये कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में हिंदू समाज को टुकडों में टुकड़ो में विभाजित करने के लिए हर जगह हिन्दुओं की जाति खोज रहे हैं।

योगी जी के बयानों पर विपक्षी विचारकों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में आगामी उपचुनावों को ध्यान में रखते हुए वह इस प्रकार की बयान बाजी कर रहे हैं, यह तर्क पूरी तरह से असत्य है क्योंकि जब से योगी जी ने मुख्यमंत्री का पदभार संभाला है उन्होंने अयोध्या, मथुरा और काशी को विकास कार्यों के केंद्र में रखा है और विभिन्न अवसरों पर सनातन धर्म पर विचार व्यक्त किये हैं। तथाकथित वामपंथी विचारक यह अर्नगल बात भी कह रहे हैं कि योगी जी के बयानों के कारण बांग्लादेश के साथ संबंध खराब हो सकते है। क्या ऐसे हिन्दू द्रोही वामपंथी समाजवादी  विचारों के कारण हम बांग्लादेश के हिंदुओं की चिंता करना बंद कर दें?

जिस तरह विपक्ष के बड़े नेता कह रहे हैं कि एक दिन भारत के हालात भी बांग्लादेश की तरह होने वाले हैं वह चिंताजनक है। विपक्ष की यह बयानबाजी वास्तव में  हिंदुओं के लिए चेतावनी है। यही कारण है कि योगी जी को हिन्दू समाज से कहना पड़ रहा रहे है कि “हम बटेंगे तो कटंगे“।

योगी जी के बयान की निंदा करने वाले वाही लोग हैं जो माफिया की मौत पर उनके घर पर शोक संवेदना व्यक्त करने जाते रहे हैं। असदुद्दुदीन जैसे लोग चाहते हैं वो संसद में फिलिस्तीन के समर्थन में नारे लगाएं लेकिन भारत संबंधों की दुहाई के नाम पर बांग्लादेश के हिंदुओं को असहाय छोड़ दे।

सच तो यह है कि उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सनातन हिंदू धर्म के ध्वजवाहक बन कर उभर रहे हैं। भले ही राजनैतिक विश्लेषक मुख्यमंत्री के बयानों को मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने की नीति कहें किन्तु वास्तविकता यही है कि योगी आदित्यनाथ सदा से ही सनातन की रक्षा के लिए तत्पर रहे हैं और सनातन की बात करना उनके लिए संकल्प है राजनीति नहीं ।

प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित

फोन नं. – 9198571540

अंतराष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन तथा स्वदेशी जागरण मंच द्वारा उद्यमिता प्रोत्साहन सम्मेलन का आयोजन

अंतराष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन मुंबई तथा स्वदेशी जागरण मंच कोकण प्रांत द्वारा आयोजित मुंबई स्टॉक एक्सचेंज के भव्य सभागृह में उद्यमिता प्रोत्साहन सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रुप में मुंबई स्टॉक एक्सचेंज के एम डी तथा सीईओ श्री
सुंदररमन राममूर्ति उपस्थित थे । स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय सहसंयोजक श्री अजय पतकी तथा अखिल भारतीय महिला विभाग प्रमुख डॉक्टर अमिता पतकी इस सम्मेलन में उपस्थित थे । विशेष अतिथि के नाते श्रीमान माधव नायर एवं चार्टर्ड अकाउंटेंट श्री अशोक अजमेरा एवं आईवीएफ़ के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष कांतिलाल मेहता भी उपस्थित थे।

इस कार्यक्रम में कुमारी दिव्या नंदवानी जी का सम्मान किया गया ।

कार्यक्रम में संबोधित करते हुए मुंबई स्टॉक एक्सचेंज के सीईओ तथा एम डी श्री सुंदर रमन राम मूर्ति जी ने उद्योगी तथा उद्यमी इन शब्दों का अर्थ विषद करते हुए बहुत ही प्रभावी मार्गदर्शन किया । इस कार्यक्रम में “37 करोड़ स्टार्टअप का देश” इस पुस्तक का तथा “मंदिर इकोनॉमिक्स” इस ग्रंथ का लोकार्पण किया गया । अंतराष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन के मुंबई के अध्यक्ष श्री दिलीप माहेश्वरी तथा सेक्रेटरी श्री शिव कनोडिया ने उपस्थित सभी सभी विशेष अतिथियों का स्वागत किया ।

अपने उद्बोधन में स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय सहसंयोजक श्री अजय पतकी जी ने भारत सरकार से मांग करते हुए राष्ट्रीय उद्यमिता अधिकरण स्थापना किया जाए ऐसी स्वदेशी जागरण मंच की मांग को उपस्थित विद्वत जनों के सामने प्रस्तुत किया । इस कार्यक्रम में उद्योग जगत के उद्यमी चार्टर्ड अकाउंटेंट्स, डॉक्टर, वकील, बैंकर्स एवं सर्व सामान्य समाज से श्रोता उपस्थित थे ।

इस कार्यक्रम में युवा उद्यमी कुमारी दिव्या नंदवाना जी का सम्मान तो हुआ साथ में श्रीमान संदीप सिंह जी का भी यथोचित सत्कार किया गया । कार्यक्रम का सूत्र संचालन श्री प्रशांत देशपांडे ने किया । कोकण प्रांत के संयोजक श्री किशोर असवानी जी ने सभी विशेष अतिथियों का तथा उपस्थितो का आभार व्यक्त किया ।

उप्र में नई सोशल मीडिया नीति

उत्तर प्रदेश सरकार ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट पर नियंत्रण और प्रचार के उद्देश्य से एक नई सोशल मीडिया पॉलिसी को मंजूरी दी है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट पर नियंत्रण और प्रचार के उद्देश्य से एक नई सोशल मीडिया पॉलिसी को मंजूरी दी है। इस पॉलिसी के तहत आपत्तिजनक पोस्ट करने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। साथ ही, सोशल मीडिया पर सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं और उपलब्धियों को प्रसारित करने वाले डिजिटल एजेंसी और फर्मों को विज्ञापन के जरिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

सोशल मीडिया पॉलिसी को कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दे दी गई है। इस पॉलिसी का उद्देश्य योगी सरकार की जनहितकारी योजनाओं और उपलब्धियों को अधिकतम लोगों तक पहुंचाना है। इसके तहत, एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम, और यू-ट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स पर सरकारी योजनाओं से संबंधित कंटेंट, वीडियो, पोस्ट और रील्स को शेयर करने पर उन्हें विज्ञापन देकर प्रोत्साहित किया जाएगा।

इस पॉलिसी के तहत, कंटेंट प्रोवाइडर्स को चार कैटेगरी में बांटा गया है, जो उनके सब्सक्राइबर्स और फॉलोअर्स की संख्या पर आधारित हैं। इन कैटेगरीज के लिए विज्ञापन की राशि 30 हजार रुपये से लेकर 5 लाख रुपये प्रति माह तक निर्धारित की गई है। वहीं, यूट्यूब वीडियो शॉट और पॉडकास्ट के लिए यह राशि 4 लाख रुपये से 8 लाख रुपये तक रखी गई है।

इस पॉलिसी के अंतर्गत राष्ट्र विरोधी कंटेंट डालने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। पहले से मौजूद आईटी एक्ट की धारा 66E और 66F के तहत कार्रवाई की जाएगी और इसके साथ ही अभद्र एवं अश्लील कंटेंट पोस्ट करने पर आपराधिक मानहानि के मुकदमे का भी सामना करना पड़ सकता है।

इस नई पॉलिसी के माध्यम से उत्तर प्रदेश सरकार अपने योजनाओं की पहुंच को बढ़ाने के साथ-साथ सोशल मीडिया पर अनुशासन बनाए रखने का प्रयास कर रही है।

पैसे को पैसा खींचता है !

सत्तर के दशक की बात है। मैं उस समय राजस्थान विश्वविद्यालय से सम्बद्ध राजऋषि कॉलेज, अलवर में अध्यापन कार्य कर रहा था. तब हमारी तनख्वाहें नियमित रूप से सिंडिकेट बैंक में जमा होती थीं। यह दौर उन दिनों का था जब न तो ऑनलाइन बैंकिंग थी और न ही मोबाइल एप्स का जमाना। बैंक से जुड़े छोटे-मोटे कार्यों के लिए भी व्यक्ति को बैंक की शाखा में स्वयं जाना पड़ता था।

एक दिन की बात है, मैं अलवर के बाजार में कुछ खरीदारी कर रहा था, तभी मेरी मुलाकात बैंक के एक कर्मचारी, गोयल साहब से हुई। उन्होंने बड़ी विनम्रता से मुझसे कहा, “सर, कल आप बैंक पधारना, आपसे कुछ महत्वपूर्ण बात करनी है।” मैं थोड़ा हैरान था, क्योंकि आमतौर पर बैंक के कर्मचारी किसी ग्राहक से व्यक्तिगत रूप से मिलकर कुछ कहने की पहल नहीं करते। खैर, मैंने उनका आमंत्रण स्वीकार किया और अगले दिन बैंक पहुंचा।

बैंक पहुंचने पर, गोयल साहब मुझे आदरपूर्वक अपने कमरे में ले गए। वहाँ चाय-पानी का प्रबंध किया गया। गोयल साहब की इस मेहमाननवाज़ी ने मुझे और अधिक जिज्ञासु बना दिया। थोड़ी देर बाद, उन्होंने बड़ी संजीदगी से मुझसे पूछा, “सर, आपने कभी सौ रुपये की एफडी (फिक्स्ड डिपॉजिट) पांच साल के लिए कराई थी क्या?”

उनके इस  प्रश्न पर मैं हैरान रह गया। सौ रुपये की एफडी? पांच साल के लिए? मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था। मेरे दिमाग में तुरंत यह ख्याल आया कि सौ रुपये की एफडी से आखिर मिलेगा क्या? मुश्किल से दो सौ रुपये। मैंने तत्काल उत्तर दिया, “भई, सौ की एफडी पांच साल के लिए भला कौन कराएगा? मिलेगा क्या? सिर्फ दो सौ रुपये ।” गोयल साहब मुस्कुराते हुए बोले, “यही तो हम भी सोच रहे थे कि रैणा साहब को यह क्या सूझी जो सौ की एफडी करवाई।” अब मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई थी। मैंने गोयल साहब से अनुरोध किया कि वे कागज निकालें जिनके आधार पर मेरी एफडी बनी हैं। कुछ ही देर में कागज निकाले गए और तब पता चला कि असल में मैंने एफडी के लिए नहीं बल्कि रेकरिंग डिपॉजिट (आर-डी) खोलने के लिए आवेदन किया था। लेकिन गलती से बैंक ने मेरे निवेदन को एफडी खोलने का प्रस्ताव समझ लिया था।

यह घटना पैसे की प्रकृति के बारे में एक महत्वपूर्ण पाठ सिखाती है: “पैसा पैसे को खींचता है।”

Email: skraina123@gmail.com,
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हेलन केलर के संघर्ष और संकल्प की कहानी

हेलेन एडम्स केलर २७ जून १८८० को अमेरिका के टस्कंबिया, अलबामा में पैदा हुईं।जन्म के समय हेलन केलर एकदम स्वस्थ्य थी।उन्नीस  महीनों के बाद वो बीमार हो गयी  और उस बीमारी में उनकी नजर, ज़ुबान  और सुनने की शक्ति चली गयी|  हेलन केलर के माता-पिता के सामने एक चुनौती आ खड़ी हुई कि ऐसा कौन शिक्षक होगा जो हेलन केलर को अच्छी शिक्षा दे पाए और हेलन केलर समझ पाए। ऐसा इसलिए क्योंकि हेलन केलर सामान्य बच्चों से भिन्न थी। इसके बाद उन्हें आखिरकार एक शिक्षक मिल गया जिनका नाम था “एनि सुलिव्हान”। इन्होंने हेलन केलर को हर तरीके से शिक्षा दी, जिसमें उन्होंने मेन्युअल अल्फाबेट और ब्रेल लिपि आदि पद्धतियों से शिक्षा देने की कोशिश की। जै वह कला स्नातक की उपाधि अर्जित करने वाली पहली बधिर और दृष्टिहीन थी। ऐनी सुलेवन के प्रशिक्षण में ६ वर्ष की अवस्था से शुरु हुए ४९ वर्षों के साथ में हेलेन सक्रियता और सफलता की ऊंचाइयों तक पहुँची।

जब गिलमैन स्कूल में मेरा दूसरा साल शुरू हुआ तो मैं आशा से भरी हुई थी और सफल होने का मेरा दृढ़ निश्चय था. लेकिन शुरू के कुछ सप्ताहों में ही मुझे अनपेक्षित परेशानियों का सामना करना पड़ा. श्री गिलमैन इस बात से सहमत हुए थे कि उस साल मुझे मुख्य रूप से गणित पढ़ना चाहिए. मेरे पास फिजिक्स, एल्जेब्रा, ज्योमेट्री, एस्ट्रोनॉमी, ग्रीक और लैटिन विषय थे. दुर्भाग्य से पढ़ाई शुरू करने के लिए बहुत-सी किताबें जिनकी मुझे ज़रूरत थी, समय पर उभरी प्रिंटिंग में तैयार नहीं हो पायीं और महत्त्वपूर्ण सामग्री, जिनकी मेरी पढ़ाई में ज़रूरत थी, की मेरे पास कमी रही. मैं जिन कक्षाओं में थी उनमें बहुत सारे बच्चे थे और मेरे अध्यापकों के लिए यह सम्भव नहीं था कि वे मुझे विशेष निर्देश दे सकें. मिस सुलिवन की मज़बूरी थी कि वह मेरे लिए सभी किताबों को पढ़े और  निर्देशों के लिए उन्हें पढ़ कर मुझे समझाये. इन ग्यारह बरसों में पहली बार यह महसूस हुआ कि जैसे उनका प्यारा हाथ तंग होने लगा था. काम बहुत ज्यादा था और साधन कम थे.एल्जेब्रा और ज्योमेंट्री को कक्षा में लिखना और फिजिक्स के सवाल हल करना मेरे लिए ज़रूरी था और यह तब तक नहीं हो सकता था जब तक कि हम ब्रेल राइटर नहीं लाते. यही वह तरीका था जिससे आगे कदम बढ़ा कर मैं अपने काम को गति दे सकती थी. मैं ब्लैक बोर्ड पर बने ज्योमेट्री के रेखाचित्रों को नहीं देख सकती थी और उनका सही अंदाज़ पाने का केवल एक ही तरीका था कि उन्हें तार पर मुड़े और नुकीले सिरे के सीधे और आड़े-तिरछे तारों से बनाये. मुझे अपने दिमाग में सब कुछ रखना था जैसा श्री कैथ अपनी रिपोर्ट में कहते हैं जैसे रेखाचित्रों की लैटरिंग, उनकी कल्पना और निष्कर्ष, उन्हें बनाने का तरीका और प्रूफ की प्रक्रिया. एक शब्द में कहें तो हर पढ़ाई की अपने अड़चनें हैं. कभी-कभी मैं अपनी हिम्मत खो बैठती और अपनी भावनाओं को इस तरह प्रकट करती कि मुझे उन्हें याद करके भी शर्म आती है.

मुख्य रूप से मेरी परेशानियों के संकेत बाद में मिस सुलिवन के विरुद्ध इस्तेमाल किये जाते. उन मिस सुविलन के जो वहां मौजूद मेरे दयालु दोस्तों में से एकमात्र ऐसी दोस्त थी जो मेरे लिए टेढ़े-मेढ़े को सीधा और कठिन रास्तों को सरल बना सकती थी. हालांकि धीरे-धीरे मेरी परेशानियां ओझल होनी शुरू हो गयीं. उभरी हुई प्रिंटिंग वाली किताबें और दूसरे सामान आ गये और एक नये विश्वास के साथ मैंने अपने आप को काम में लगा लिया. एल्जेब्रा और ज्योमेट्री ऐसे विषय थे जो उन्हें समझने के मेरे प्रयासों को ललकारते. जैसा मैंने पहले कहा मेरे पास गणित के लिए कोई लियाकत नहीं थी, बहुत -सी बातें मुझे उतनी अच्छी तरह समझ नहीं आयी थीं जितना कि मैं चाहती थी. वास्तव में ज्योमेट्रीकल डायग्राम बहुत चिढ़ पैदा करने वाले थे यहां तक कि कुशन पर भी मैं विभिन्न हिस्सों का एक दूसरे से सम्बंध नहीं देख पाती थी. जब तक श्री कैथ ने पढ़ाया तब तक मुझे गणित का स्पष्ट आइडिया नहीं था.

मैं इन सभी परेशानियों से उबरने की शुरूआत कर रही थी तभी एक घटना घटी, जिसने सब कुछ बदल दिया.

मेरी किताबें आने के कुछ पहले श्री गिलमैन ने इस आधार पर मिस सुलिवन के साथ इस बात पर आपत्ति करना शुरू किया कि मैं बहुत ज्यादा मेहनत कर रही हूं और मेरे गम्भीर विरोध के बावजूद उन्होंने मेरे पठन-पाठ के नम्बर घटा दिये. शुरूआत में हम इस बात पर सहमत थे कि यदि ज़रूरी हो तो मैं कॉलेज की तैयारी के लिए पांच साल लूं. लेकिन पहले साल में ही मेरी परीक्षा की सफलता ने मिस सुलिवन, मिस हर्बग (श्री गिलमैन की हेड टीचर) और अन्य को यह दिखा दिया था कि बिना किसी अतिरिक्त मेहनत के मैं अपनी तैयारी और दो साल में पूरी कर सकती हूं. श्री गिलमैन पहले इस बात से सहमत थे, लेकिन जब मेरे काम कुछ पेचीदे हो गये तो उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि मुझ पर काम का बोझ बढ़ गया है इसलिए मुझे तीन साल और इस स्कूल में रहना चाहिए. मुझे उनकी यह योजना पसंद नहीं आयी क्योंकि मैं अपनी क्लास के साथ कॉलेज जाना चाहती थी.

17 नवम्बर को मेरी तबीयत ठीक नहीं थी और मैं स्कूल नहीं गयी. हालांकि मिस सुलिवन जानती थी कि मेरी अस्वस्थता गम्भीर नहीं है लेकिन इस बारे में सुनने के बाद श्री गिल ने यह घोषित कर दिया कि मेरी तबीयत खराब होती जा रही है और मेरी पढ़ाई में इस तरह बदलाव कर दिया कि फाइनल परीक्षा अपनी क्लास के साथ देना मेरे लिए असम्भव हो गया. अंत में श्री गिलमैन और मिस सुलिवन के बीच मतभेद का परिणाम यह हुआ कि मेरी मां ने मेरी बहन मिल्ड्रेड और मुझे कैम्ब्रिज स्कूल से निकाल लिया.

कुछ समय बाद यह व्यवस्था की गयी थी कि मैं ट्यूटर श्री मर्टोन एस मैथ, जो कि कैम्ब्रिज स्कूल के थे, के मार्गदर्शन में अपनी पढ़ाई जारी रखूं. मैंने और मिस सुलिवन ने अपने दोस्तों के साथ बाकी सर्दी बोस्टन से 25 मील दूर वरेंथम के चैम्बरलिंस में बितायी.

फरवरी से जुलाई 1898 तक श्री कैथ हफ्ते में दो बार वरेंथम आते और मुझे एल्जेब्रा, ज्योमेट्री, ग्रीक और लैटिन पढ़ाते. मिस सुलिवन उनके निर्देशों को मेरे लिए इंटरप्रेट करती.

अक्तूबर 1898 में हम बोस्टन वापस आ गये. आठ महीनों तक श्री कैथ मुझे हफ्ते में पांच बार एक-एक घंटे के लिए पढ़ाते रहे. हर बार वे मुझे वह चीज़ समझाते जो मैं पिछली बार नहीं समझ पायी थी, नया काम देते और हफ्ते भर तक मैंने जो ग्रीक एक्सरसाइज अपने टाइपराइटर पर लिखी होती उसे अपने साथ घर ले जाते, उनमें सुधार करते और मुझे वापस लौटाते.

इस तरह कॉलेज के लिए मेरी तैयारी बिना रुकावट के चलती रही. क्लास में निर्देश पाने के बजाय अपने आप पढ़ना मुझे ज्यादा सरल और सुखद लगा. कोई जल्दबाज़ी नहीं, कोई भ्रम नहीं था. मेरी ट्यूटर के पास मुझे समझाने के लिए बहुत समय था इसलिए मैं जल्दी से समझती और स्कूल के बजाय मैंने ज्यादा अच्छा काम किया. गणित के सवालों में मास्टरी हासिल करने में मुझे दूसरे विषयों के मुकाबले ज्यादा परेशानी महसूस होती है. मैं सोचती हूं कि भाषाएं और साहित्य जितना सरल है काश उसकी आधी सरलता एल्जेब्रा और ज्योमेट्री में भी होती. लेकिन श्री कैथ ने गणित को भी रुचिकर बना दिया था, वे सवालों को इतना छोटा बनाने में सफल हो गये थे जिससे वे आसानी से मुझे समझ आ जाते थे. उन्होंने मेरे दिमाग को सजग, उत्सुक बनाये रखा और इसे इस तरह तैयार किया कि पागलों की तरह भटकने और कहीं नहीं पहुंचने के बजाय यह स्पष्ट तर्क दे सके और शांति और तर्कपूर्ण ढंग से निष्कर्ष पर पहुंच सके. चाहे मैं कितनी ही सुस्त क्यों न होऊं, वे हमेशा शांत और सहिष्णु थे, और विश्वास करो, मेरी मूर्खता अक्सर काम के धैर्य को समाप्त कर देती थी.

29 और 30 जून 1899 को मैंने रेडक्लिफ कॉलेज के लिए फाइनल परीक्षा दी. पहले दिन आरम्भिक ग्रीक और उच्च लैटिन और दूसरे दिन ज्योमेट्री, एल्जेब्रा और उच्च ग्रीक का पेपर था.

कॉलेज प्राधिकारियों ने मिस सुलिवन को मेरे लिए परीक्षा पत्र पढ़ाने की अनुमति नहीं दी इसलिए पर्किंस इस्टीट्यूशन फोर ब्लाइंड के एक टीचर श्री यूजेन सी विनिंग को परीक्षा पत्रों को अमेरिकन ब्रेल में कोली करने के लिए नियुक्त किया गया. विनिंग मेरे लिए अजनबी थे और ब्रेल लिखने के अलावा वे किसी भी तरह मुझसे बातचीत नहीं कर सकते थे. निरीक्षक भी अजनबी था. उसने मुझसे किसी भी तरीके से बात करने की कोशिश नहीं की.

भाषाओं के लिए ब्रेल अच्छे से काम आयी लेकिन ज्योमेट्री और एल्जेब्रा में परेशानियां आयीं. मैं बहुत बुरी तरह हैरान हो गयी और बहुमूल्य समय को बर्बाद होने से मुझे बहुत हतोत्साहित महसूस हुआ विशेष रूप से एल्जेब्रा में. यह सही है कि इस देश में सामान्य रूप से काम आने वाली सभी साहित्यिक ब्रेल से मैं परिचित थी- जैसे इंग्लिश, अमेरिकन और न्यूयॉर्क पाइंट, लेकिन इन तीनों ही सिस्टम में ज्योमेट्री और एल्जेब्रा चिह्न और संकेत बहुत कठिन थे तथा मैंने एल्जेब्रा में मैंने केवल इंग्लिश ब्रेल को ही काम में लिया था.

परीक्षा के दो दिन पहली श्री विनिंग ने मुझे हार्वड के एल्जेब्रा के पुराने पेपर की एक कॉपी भेजी. मैंने देखा कि वह पेपर अमेरिकन नोटेशन में था. मैं तुरंत बैठ गयी और श्री विनिंग को लिखा कि वे मुझे सभी चिह्न समझाएं. लौटती डाक से मुझे दूसरा पेपर और चिह्न की सूची मिली. मैं वे नोटेशन याद करने बैठ गयी. लेकिन एल्जेब्रा की परीक्षा के पहले वाली रात जब मैं कुछ कठिन उदाहरणों से जूझ रही थी, तो मैं ब्रेकैटस, ब्रेस और रेडिकल का संयोजन नहीं बता पायी. हम दोनों, श्री कैथ और मैं, परेशान थे और कल की परेशानियों का पूर्वाभास कर रहे थे. लेकिन हम परीक्षा शुरू होने से कुछ पहले ही कॉलेज पहुंच गये और श्री विनिंग ने अमेरिकन संकेत पूरी तरह समझा दिया.


(लेखक  हिंदी अधिकारी रहे हैं और कई पुस्तकों के लेखन के साथ कई पुस्तकों का अनुवाद भी किया है)


( साभार -नवनीत हिंदी डाइजेस्ट के जनवरी 2014 के अंक से )

तकनीक के साथ यात्रा की बदलती तस्वीर

ह्यूबर्ट एच. हंफ्री फेलो बृजेश दीक्षित, मुंबई और अहमदाबाद को जोड़ने वाले भारत के पहले हाई स्पीड रेल कॉरिडोर पर काम कर रहे हैं।

मुंबई और अहमदाबाद के बीच 508 किलोमीटर के फासले को दोनों प्रमुख शहरों के बीच कनेक्टिविटी में सुधार और यात्रा को सुगम बनाने के लिए अत्याधुनिक हाई-स्पीड रेलवे (एचएसआर) के लिहाज से डिजाइन किया गया है।

इस कॉरिडोर के काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं नेशनल हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनएचएसआरसीएल) के कार्यकारी निदेशक बृजेश दीक्षित। उन्होंने हाल ही में मेसाच्यूस्टे्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) से टेक्नोलॉजी पॉलिसी और मैंनेजमेंट के क्षेत्र में हंफ्री फेलोशिप पूरी की है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय द्वारा वित्तपोषित और इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एजुकेशन द्वारा प्रशासित ह्यूबर्ट एच. हंफ्री फेलोशिप प्रोग्राम अंतरराष्ट्रीय पेशेवरों के बीच नेतृत्व कौशल को मजबूत करता है जो स्थानीय और वैश्विक दोनों ही तरह की चुनौतियों से निपटने के लिए मिलकर काम करते हैं।

ह्यूबर्ट एच. हंफ्री फ़ेलो और नेशनल हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनएचएसआरसीएल) के कार्यकारी निदेशक बृजेश दीक्षित फ़ेलोशिप के दौरान मेसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्‍नोलॉजी में। ( फोटोग्राफ साभारःबृजेश दीक्षित)

एचएसआर- आवाजाही का भविष्य

जापान, चीन और पश्चिमी यूरोप में सफल परिचालन के साथ हाई-स्पीड रेलवे दुनिया भर में एक परिचित तकनीकी परिदृश्य बन चुका है। दीक्षित के अनुसार, ‘‘’तेजी से परिवहन के अलावा एचएसआर के कई फायदे हैं जैसे ऊर्जा दक्षता, तकनीकी प्रगति को प्रोत्साहन, जमीन की कीमतों में उछाल और शहरीकरण को रेगुलेट करने के साथ दूसरे क्षेत्रों मे भी कई फायदे हैं।’’ इस बारे में जानकारी देते हुए कि मुंबई-अहमदाबाद के बीच पहले हाई-स्पीड रेल कॉरिडोर के विकास की क्या वजह थी, दीक्षित कहते हैं, ‘‘लगभग 500 किलीमीटर की इंटरसिटी दूरी एचएसआर के लिए आदर्श है। इस गलियारे में भारी यात्री मांग और औद्योगिक एवं आर्थिक विकास की अपार संभावना है।’’

ऐसी बड़ी परियोजनाओं को अनिवार्य रूप से तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें सामाजिक और पर्यावरणीय चिंताओं पर ध्यान देने से लेकर नई प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने और उनकी प्रभावी निगरानी सुनिश्चित करना शामिल है। हालांकि, हंफ्री ़फेलो के रूप में एमआईटी में दीक्षित के अनुभव ने उन्हें तकनीक-आधारित सिस्टम अप्रोच के मूल्यवान दृष्टिकोण से लैस किया जिसे एचएसआर का भी मूल माना जा सकता है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर से ग्रेजुएट दीक्षित को हमेशा से इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काम करने का शौक रहा है। एमआईटी में रहते हुए  दीक्षित जापान की शिंकानसेन हाई-स्पीड ट्रेनों को तैयार करने वाले अधिकारियों के साथ सहयोग करते हुए एक हाई-स्पीड रेल अनुसंधान समूह में शामिल हो गए। वह बताते हैं कि इस अनुभव ने उन्हें ‘‘न केवल जापान में बल्कि मध्य-पूर्व, यूरोप और अमेरिका जैसे अन्य क्षेत्रों में हाई-स्पीड ट्रेनों के विकास के बारे में एक समझ दी।’’ इसके अलावा, दीक्षित ने स्टैटिस्टिकल मॉडलिंग और बिग डेटा, ऑटोमेशन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) और प्लानिंग एवं ट्रांसपोर्टेशन ऑप्टामाइजेशन का भी अध्ययन किया। उन्होंने सेंसिंग और डेटा एनेलेटिक्स का इस्तेमाल करते हुए ट्रेन एसेट मैनेजमेंट के बारे में एक विस्तृत समीक्षा पत्र भी लिखा।

एमआईटी में मिली सीख और दूसरी अंतरराष्ट्रीय प्रणालियों के अनुभव के साथ दीक्षित खुद को न केवल रेलवे, बल्कि दूसरे क्षेत्रों में काम करने के लिए भी सुसज्जित मानते हैं। उनका कहना है, ‘‘एमआईटी में रहने के कारण मुझे अत्याधुनिक संसाधनों से अवगत कराया गया और मुझे बड़ा सोचने और नवोन्मेषी बनने की शिक्षा मिली।’’  महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने सिद्धांतों के ककहरे से ही चीजों का विश्लेषण करना सीखा यानी एक ऐसा नुस्खा जो तमाम जटिलताओं को आसान बना देता है।

फेलोशिप के दौरान ही दीक्षित को प्रकृति, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे विषयों पर कविता लेखन के अपने हुनर का आभास हुआ। वह बताते हैं, ‘‘मैंने अपनी कविताओं की किताब जिसका शीर्षक ‘‘नेचर, साइंस एंड माई म्यूजिंग्स: ए पोयेटिक ओडिसी थ्रू सम इग्जिसटेंशियल क्वेशचंस’’ को पूरा कर लिया है और इसे जल्दी ही प्रकाशित किया जाएगा।’’

हंफ्री फेलो के उनके ग्रुप ने मेन में रिट्रीट के अलावा ब्रेटन वुड्स, न्यू हैंपशायर और वॉशिंगटन, डी.सी का ऑफ कैंपस दौरा किया जिसकी मेज़बानी विदेश मंत्रालय ने की। दीक्षित बताते हैं, ‘‘फेलोशिप प्रोग्राम के तहत मैंने अमेरिकी संस्थानों और रेलरोड से जुड़े संस्थानों का दौरा किया और वहां के अधिकारियों से बातचीत की।’’ उन्हें हॉर्वर्ड युनिवर्सिटी में अर्बनाइजेशन एंड इंटरनेशनल डवलपमेंट विषय पर परिचर्चा में एक पैनलिस्ट के रूप में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। उनके अनुसार, ‘‘मैंने दुनिया भर के देशों से दोस्त बनाए।’’ वह कहते हैं कि इस अनुभव ने उनके दृष्टिकोण को व्यापक बनाया और उन्हें विभिन्न देशों, उनकी संस्कृतियों और उनकी चुनौतियों के बारे में जानने में सक्षम बनाया। दीक्षित कहते हैं, ‘‘हंफ्री फेलोशिप से जुड़ी मेरी तमाम यादें हैं और यह शायद मेरे पेशेवर जीवन का सबसे उत्पादक दौर था।’’

पारोमिता पेन नेवाडा यूनिवर्सिटी, रेनो में ग्लोबल मीडिया विषय की एसोसिएट प्रो़फेसर हैं।साभार- spanmag.com/hi/ से