Thursday, July 4, 2024
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कोटा लाइब्रेरी ने अस्थायी असमर्थ के लिए घर पहुँट सेवा शुरू की

कोटा। राष्ट्रीय सार्वजनिक पुस्तकालय दिवस के अवसर पर, राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय कोटा ने अपनी आउटरीच सेवाओं की श्रेणी में एक और नवीन सेवा – “लाईब्रेरी सर्विसेज फॉर टेम्पोरेरी डीसएब्लड” का शुभारंभ किया है। यह सेवा, राजस्थान में अपनी तरह की पहली सेवा है, जो उन लोगों के दरवाजे तक किताबें पहुंचाने का लक्ष्य रखती है जो किसी बीमारी, दुर्घटनाजन्य फ्रैक्चर और इसी तरह की स्थितियों से गुजर रहे हैं। अर्थात अस्थायी असमर्थता के कारण पुस्तकालय का उपयोग नही कर पा रहे हैं |

इस सेवा के अंतर्गत बीमारी से ग्रस्त या किसी दुर्घटना से पीडीत व्यक्ति पुस्तकालय के ओपक से पुस्तक सर्च करके पुस्तकालय के वोलीएंटीयर पुस्तकाय सेवी नरेंद्र शर्मा (9414674746)एवं बिगुल कुमार जैन (7877977363)सेवानिवृत उप मुख्य अभियंता तापीय परियोजना के मोबाईल पर आग्रह कर पुस्तके प्राप्त कर सकते है |

संभागीय पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव ने इस सेवा की घोषणा करते हुए इसके उद्देश्य पर जोर दिया, जिसमें पुस्तकों के चिकित्सीय उपयोग—बिब्लियोथेरेपी—के माध्यम से तनाव को कम करना और स्वास्थ्य लाभ को बढ़ावा देना शामिल है। उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी व्यक्ति पढ़ने के आनंद और आराम से वंचित न हो, खासकर जब वे कठिन समय से गुजर रहे हों।”

नरेंद्र शर्मा एवं बिगुल कुमार जैन जैसे स्वयंसेवक इस नेक कार्य का समर्थन करने के लिए आगे आए हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि अस्थायी विकलांग पाठकों को उनकी किताबें समय पर और देखभाल के साथ मिलें। शर्मा ने व्यक्त किया, “यह देखकर दिल को सुकून मिलता है कि हमारा समुदाय जरूरत के समय एक-दूसरे का समर्थन करने के लिए एकजुट हो रहा है।”

डॉ शशि जैन सहायक पुस्तकालय अध्यक्ष ने बताया कि यह अभिनव सेवा चंडीगढ़ के टीएस स्टेट सेंट्रल लाइब्रेरी के सफल मॉडल से प्रेरित है, जो कोटा के लोगों पर समान सकारात्मक प्रभाव डालने का वादा करती है। जरूरतमंदों के घरों तक पुस्तकालय सेवाओं का विस्तार करके, यह पहल न केवल साक्षरता को बढ़ावा देती है बल्कि सामुदायिक समर्थन और सहयोग की भावना को भी प्रोत्साहित करती है।

राजस्थान में अपनी तरह की पहली सेवा के रूप में, कोटा सार्वजनिक पुस्तकालय की नई पहल उम्मीद की किरण और कठिनाइयों के समय में समुदाय द्वारा संचालित समर्थन की शक्ति का प्रतीक बनने के लिए तैयार है।

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वास्को डिगामा लुटेरा था, भारत को खोजने वाला नहीं

भारतीय इतिहास में वास्कोडिगामा के चरित्र के बारे में ये बातें हमें नहीं बताई गई हैं… 500 साल पुरानी बात है, भारत के दक्षिणी तट पर एक राजा के दरबार में एक यूरोपियन आया था। मई का महीना था, मौसम गर्म था पर उस व्यक्ति ने एक बड़ा सा कोट-पतलून और सिर पर बड़ी सी टोपी डाल रखी थी। उस व्यक्ति को देखकर जहाँ राजा और दरबारी हँस रहे थे, वहीं वह आगन्तुक व्यक्ति भी दरबारियों की वेशभूषा को देखकर हैरान हो रहा था। स्वर्ण सिंहासन पर बैठे जैमोरीन राजा के समक्ष हाथ जोड़े खड़ा वह व्यक्ति वास्कोडिगामा था जिसे हम भारत के खोजकर्ता के नाम से जानते हैं।

यह बात उस समय की है जब यूरोप वालों ने भारत का सिर्फ नाम भर सुन रखा था , पर हाँ… इतना जरूर जानते थे कि पूर्व दिशा में भारत एक ऐसा उन्नत देश है जहाँ से अरबी व्यापारी सामान खरीदते हैं और यूरोपियन्स को महँगे दामों पर बेचकर बड़ा मुनाफा कमाते हैं। भारत के बारे में यूरोप के लोगों को बहुत कम जानकारी थी लेकिन यह “बहुत कम” जानकारी उन्हें चैन से सोने नहीं देती थी… और उसकी वजह ये थी कि वास्कोडिगामा के आने के दो सौ वर्ष पहले (तेरहवीं सदी) पहला यूरोपियन यहाँ आया था जिसका नाम मार्कोपोलो (इटली) था ।

यह व्यापारी शेष विश्व को जानने के लिए निकलने वाला पहला यूरोपियन था जो कुस्तुनतुनिया के जमीनी रास्ते से चलकर पहले मंगोलिया फिर चीन तक गया था। ऐसा नहीं था कि मार्कोपोलो ने कोई नया रास्ता ढूँढा था बल्कि वह प्राचीन शिल्क रूट होकर ही चीन गया था जिस रूट से चीनी लोगों का व्यापार भारत सहित अरब एवं यूरोप तक फैला हुआ था। जैसा कि नाम से ज्ञात हो रहा है चीन के व्यापारी ने जिस मार्ग से होकर अपना अनोखा उत्पाद “रेशम” तमाम देशों तक पहुँचाया था उन मार्गों को “रेशम मार्ग” या सिल्क रूट कहते हैं । (आज की तारीख में यह मार्ग विश्व की अमूल्य धरोहरों में शामिल है)

मार्कोपोलो भारत में कई राज्यों का भ्रमण करते हुए केरल भी गया था। यहाँ के राजाओं की शानो शौकत, सोना-चाँदी जड़ित सिंहासन, हीरों के आभूषण सहित, खुशहाल प्रजा, उन्नत व्यापार आदि देखकर वापस अपने देश लौटा था। भारत के बारे में यूरोप को यह पहली पुख्ता जानकारी मिली थी।
इस बीच एक गड़बड़ हो गई, अरब देशों में पैदा हुआ इस्ला म तब तक इतना ताकतवर हो चुका था कि वह आसपास के देशों में अपना प्रभुत्व जमाता हुआ पूर्व में भारत तक पहुँच रहा था तो वहीं पश्चिम में यूरोप तक।

कुस्तुनतुनीया (Constantinople, वर्तमान टर्की) जो कभी ईसाई रोमन साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी, उसके पतन के बाद वहाँ ऊस्लिमों का शासन हो गया…. और इसी के साथ यूरोप के लोगों के लिए एशिया का प्रवेश का मार्ग बंद हो गया। क्योंकि ऊस्लिमों ने ईसाइयों को एशिया में प्रवेश की इजाजत नहीं दी।
अब यूरोप के व्यापारियों में बेचैनी शुरू हुई। उनका लक्ष्य बन गया कि किसी तरह भारत तक पहुँचने का मार्ग ढूँढा जाए। बात पुर्तगाल पहुँची।

एक नौजवान और हिम्मती नाविक वास्कोडिगामा ने अब भारत को खोजने का बीड़ा उठाया। अपने बेड़े और कुछ साथियों को लेकर निकल पड़ा समुद्र में और आखिरकार कुछ महीनों बाद भारत के दक्षिणी तट कालीकट पर उसने कदम रखा। खैर, अब यूरोप के व्यापारियों के लिए भारत का दरवाजा खुल चुका था। नये समुद्री मार्ग की खोज हो चुकी थी जो यूरोप और भारत को जोड़ सकता था। ।

सिंहासन पर बैठे जैमोरिन राजा से वास्कोडिगामा ने हाथ जोड़कर व्यापार की अनुमति माँगी, अनुमति मिली भी… पर कुछ सालों बाद हालात बदल गए। बहुत सारे पुर्तगाली व्यापारी आने लगे, इन्होंने अपनी ताकत बढ़ाई , साम दाम दंड की नीति अपनाते हुए राजा को कमजोर कर दिया गया और अन्ततः राजा का कत्ल भी इन्हीं पुर्तगालियों के द्वारा करवा दिया गया।

70-80 वर्षों तक पुर्तगालियों द्वारा लूटे जाने के बाद फ्रांसीसी आए। इन्होंने भी लगभग 80 वर्षों तक भारत को लूटा ।

इसके बाद डच (हालैंड वाले) आए, उन्होंने भी खूब लूटा और सबसे अंत में अँगरेज आए पर ये लूटकर भागने के लिए नहीं बल्कि इन्होंने तो लूट का तरीका ही बदल डाला। इन्होंने पहले तो भारत को गुलाम बनाया फिर तसल्ली से लूटते रहे। 20 मई 1498 को वास्कोडिगामा भारत की धरती पर पहला कदम रखा था, और आज के दिन वो राजा के समक्ष अनुमति लेने के लिए हाथ जोड़े खड़ा था। उसके बाद उस लुटेरे और उनके साथियों ने भारत को जितना बर्बाद किया वो इतिहास बन गया।

आज जिसे हम भारत का खोजकर्ता कहते नहीं अघाते हैं, दरअसल वह एक लूटेरा था जो सिर्फ भारत को लूटा ही नहीं था बल्कि यहाँ रक्तपात भी बहुत किया था ,,,, भारतीय इतिहास में वास्कोडिगामा के चरित्र के बारे में ये बातें हमें नहीं बताई गई।

साभार https://www.facebook.com/abhimanyusinghlodhi से

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निदा फ़ाज़ली के 20 लोकप्रिय शेर

निदा फ़ाज़ली (12 अक्टूबर 1938 – 8 फरवरी 2016 )

1.अब किसी से भी शिकायत न रही
जाने किस किस से गिला था पहले

2.अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

3.एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा

4.ग़म है आवारा अकेले में भटक जाता है
जिस जगह रहिए वहाँ मिलते-मिलाते रहिए

5.इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
रात जंगल में कोई शम्अ जलाने से रही

6.कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता

7.कहता है कोई कुछ तो समझता है कोई कुछ
लफ़्ज़ों से जुदा हो गए लफ़्ज़ों के मआनी

8.ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख

9.किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो

10.कुछ लोग यूँही शहर में हम से भी ख़फ़ा हैं
हर एक से अपनी भी तबीअ’त नहीं मिलती

11.कुछ तबीअत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत न हुई
जिस को चाहा उसे अपना न सके जो मिला उस से मोहब्बत न हुई

12.बड़े बड़े ग़म खड़े हुए थे रस्ता रोके राहों में
छोटी छोटी ख़ुशियों से ही हम ने दिल को शाद किया

13.बदला न अपने-आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे

14.बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता

15.दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है

16.नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए
इस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई

17.हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए
कभी तो हौसला कर के नहीं कहा जाए

18.यक़ीन चाँद पे सूरज में ए’तिबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख

19.ये काटे से नहीं कटते ये बाँटे से नहीं बँटते
नदी के पानियों के सामने आरी कटारी क्या

20.ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई
जो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला

(निदा फ़ाज़ली का असल नाम मुक़तिदा हसन था। )

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यूएस सोयाबीन एक्सपोर्ट काउंसिल द्वारा संचालित राइट टू प्रोटीन के बढ़ते कदम

दुबई, संयुक्त अरब अमीरात।

यूएस सोयाबीन एक्सपोर्ट काउंसिल (USSEC) द्वारा संचालित राइट टू प्रोटीन (Right To Protein) ने दुबई, यू.ए.ई में अपने दूसरे पिच2फोर्क (Pitch2Fork) कार्यक्रम की मेजबानी की। प्रोटीन उद्योग में इनोवेशन पर ध्यान देते हुए इस मंच ने बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान के उद्यमियों को निवेशकों के एक पैनल के सामने अपने बढ़ते व्यवसायों को पिच करने का एक अनूठा अवसर प्रदान किया। इस अवसर का लाभ उठाने वाली शॉर्टलिस्ट की गई कंपनियों में ग्लैडफुल (Gladful), हैलो टेम्पे (Hello Tempayy), पोल्टा (Poulta) और वी ग्रो (WeGro) शामिल थे।

पिच2फोर्क 2024 विजेता, हैलो टेम्पेह जजों के साथ और USSEC के जना फ्रिट्ज, उपध्याक्षिका और केविन रोपकी क्षेत्रीय निदेशक – दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ्रीका (SAASSA)

दक्षिण एशिया दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते क्षेत्र के रूप में रैंक करता है, लेकिन प्रोटीन की तेजी से बढ़ती मांग की आपूर्ति अभी भी चुनौतीपूर्ण है। पिच2फोर्क के संभावित प्रभाव पर विचार करते हुए केविन रोपकी, दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ्रीका (SAASSA), USSEC के क्षेत्रीय निदेशक ने बताया कि, “पिच2फोर्क को रणनीतिक रूप से स्टार्टअपस और निवेशकों के बीच आवश्यक नेटवर्किंग को सुविधाजनक बनाने के लिए तैयार किया गया है जो इनोवेशन में तेजी ला रहा है। रुकावटों को देखते हुए भविष्य में लगातार निवेश करके बेहतर पोषण युक्त सुरक्षित कल की ओर प्रोटीन चुनौतियों के समाधान के लिए एक रास्ता तैयार करते हैं।

हेलो टेम्पे, टेम्पेह प्रोडक्शन में उभरता हुआ एक इनोवेटिव भारतीय स्टार्टअप जो ‘प्रोटीन स्टार्टअप ऑफ द ईयर’ के लिए पिच2फोर्क २०२४ ट्रॉफी से सम्मानित किया गया है। अपने उपयोगकर्ता के अनुकूल और स्वादिष्ट पेशकशों के साथ, हैलो टेम्पे भारत में उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध सोया-आधारित प्रोटीन विकल्पों की सरणी का विस्तार कर रहा है। खिताब जीतने के मूल्य को देखते हुए, भारत से हैलो टेम्पे की सह-संस्थापिका और पोषण विशेषज्ञ, मालविका सिद्धार्थ ने कहा, “एक न्यूट्रिशनिस्ट के रूप में, मैं नियमित रूप से किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रोटीन की कमी के प्रभावों को देखती हूं। यही कारण है कि हमने इस अंतर को समाप्त करने के लिए हैलो टेम्पे की स्थापना की। पिच2फोर्क जैसे प्लेटफॉर्म जागरूकता बढ़ाने और पौष्टिक और स्वादिष्ट उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन विकल्प प्रदान करने के लिए हमारे मिशन को बढ़ाने का एक अमूल्य अवसर प्रस्तुत करते हैं।

पाकिस्तान के मुर्गी पालन क्षेत्र से पिच2फोर्क में नामांकित सदस्य के रूप में अपना अनुभव बताते हुए, पोल्टा में ग्लोबल सेल्स एंड मार्केटिंग के जीएम, खुशबख्त अशरफ ने कहा, “ट्रेसबिलिटी, वर्टिकल इंटीग्रेशन और डेटा-संचालित निर्णय लेने के लिए इस तरह के दर्शकों के सामने पोल्टा के इनोवेटिव समाधान पेश करना एक बेहद खास अनुभव था। हम प्रोटीन के उत्पादन को बढ़ाते हुए फार्म-टू-फोर्क ट्रेसेबिलिटी के लिए प्रतिबद्ध हैं और यह पूरी तरह से USSEC और उसके मिशन के अनुकूल है। प्रोटीन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए सभी के सहयोग और साझेदारी पर चर्चा करना खुशी की बात है।

WeGro, बांग्लादेश से एक नॉमिनी अपने स्टार्टअप को पेश करते हुए

मोहम्मद महमुदुर रहमान, वी ग्रो के सह-संस्थापक एवं बांग्लादेश के कृषि-तकनीक क्षेत्र से एक और नामांकित शख्सियत ने बताया कि वी ग्रो में हम किसानों को सशक्त बनाने के लिए वित्तीय, सलाह और बाजार तक पहुंच की सुगमता प्रदान करते हैं। हम मानते हैं कि पिच2फोर्क एक उत्कृष्ट मंच है जो इनोवेटिव समाधानों का स्वागत करता है और बेहतर भविष्य के लिए प्रोटीन अंतर को कम करने का प्रयास करता है।

इस दौरान उपस्थित दर्शक एग्रोशिफ्ट (Agroshift) की जीत से प्रेरित हुए, जो बांग्लादेश का एक कृषि तकनीक स्टार्टअप और पिच2फोर्क २०२२ का विजेता था। एग्रोशिफ्ट एक सर्वव्यापी कृषि-आपूर्ति श्रृंखला मंच के रूप में काम करता है जो किसानों को अपने सूक्ष्म-पूर्ति वितरण नेटवर्क के माध्यम से खरीदारों को उचित मूल्य निर्धारण और बेहतर बाजार पहुंच को सक्षम करने में मदद करता है।

पिच2फोर्क के विख्यात स्पीकर लाइनअप में जाना फ्रिट्ज़, उपध्याक्षिका , USSEC; हेनरी गॉर्डन-स्मिथ, एग्रीटेक्चर (Agritecture) के संस्थापक और सी.ई.ओ; रोमा रॉय चौधरी, इवॉल्व्ड फूड्स (Evolved Foods) की संस्थापिका और सी.ओ.ओ; डीबा गिआनोलिस, USSEC-SAASSA में यूएस सोया सस्टेनेबिलिटी एंड मार्केटिंग की क्षेत्र प्रमुख; और रॉबर्टो विटोन, वेलोरल एडवाइजर्स (Valoral Advisors) के संस्थापक और प्रबंध निदेशक शामिल थे|

यूएस सोय आविष्कार और स्थायी पोषण के मामले में सबसे आगे रहा है – दुनिया भर में अपने ग्राहकों को सुविधा प्रदान करने के लिए लगातार सुधार कर रहा है। दुनिया को स्थायी पोषण देने की प्रतिबद्धता के साथ,अमेरिकी सोयाबीन किसान पिच2फोर्क जैसे प्लेटफार्मंं का समर्थन करते हैं और सोया वैल्यू ऑयल कैलकुलेटर (Soya Value Oil Calculator), स्पेशलिटी यूएस सोया डेटाबेस (Specialty U.S. Soy Database), इन-पॉन्ड रेसवे सिस्टम (IPRS In-Pond Raceway Systems), इंटरनेशनल एक्वाकल्चर फीड फॉर्मूलेशन डेटाबेस (IAFDD International Aquaculture Feed Formulation) और सोया उत्कृष्टता केंद्रों (Soy Excellence Centers) जैसे समाधान प्रदान करते हैं।

राइट टू प्रोटीन (Right To Protein) के बारे में
राइट टू प्रोटीन (Right To Protein) यूएस सोयाबीन एक्सपोर्ट काउंसिल (USSEC) द्वारा संचालित एक जागरूकता अभियान है जो लोगों को बेहतर पोषण, स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पर्याप्त प्रोटीन खपत के महत्व के बारे में शिक्षित करता है। यह बड़े पोषण सुरक्षा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रोटीन स्रोतों के सार्वजनिक ज्ञान उपलब्ध करवाने का लक्ष्य रखता है। प्रोटीन जागरूकता अभियान के रूप में, ‘राइट टू प्रोटीन'(Right To Protein) अच्छे स्वास्थ्य का समर्थन करने, कुपोषण को कम करने और सतत विकास को बढ़ावा देने में प्रोटीन की भूमिका पर जोर देता है। अभियान प्रोटीन की कमी के वैश्विक बोझ के बारे में एवं विशेष रूप से विकासशील देशों में एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति जागरूकता बढ़ाता है । यह पहल उन लोगों के लिए है जो ज्ञान, तकनीकी सहायता या प्रचार भागीदारों को प्रदान करने सहित किसी भी क्षमता में शामिल होना या योगदान करना चाहते हैं।यदि आप हमारे उद्देश्य में समर्थन करते हैं, तो हमारे साथ जुड़ें – righttoprotein.com.

यूएस सोयाबीन एक्सपोर्ट काउंसिल (USSEC) के बारे में
यूएस सोयाबीन एक्सपोर्ट काउंसिल (USSEC) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 80+ देशों में मानव उपभोग, जलीय कृषि और पशुधन फ़ीड के लिए अमेरिकी सोया (U.S. Soy) के उपयोग के लिए बाजार पहुंच को अलग करने, वरीयता बनाने और बढ़ाने पर केंद्रित है। USSEC सदस्य अमेरिकी सोया किसानों, प्रोसेसर, कमोडिटी शिपर्स, व्यापारियों, संबद्ध कृषि व्यवसायों और कृषि संगठनों सहित सोया आपूर्ति श्रृंखला का प्रतिनिधित्व करते हैं। USSEC को यूएस सोयाबीन चेकऑफ, यूएसडीए (USDA), फॉरेन एग्रीकल्चर सर्विस (FAS Foreign Agricultural Services), मैचिंग फंड और उद्योग द्वारा वित्त पोषित किया जाता है।

कृपया www.ussec.org पर विज़िट कर या लिंक्डइन पर नवीनतम जानकारी, संसाधन, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर USSEC और यूएस सोया के बारे में समाचार प्राप्त करें।

मीडिया प्रश्नों के लिए, कृपया संपर्क करें: हिबाह अमीर (ई: [email protected] | फोन नंबर: +92 305 777 9621)

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गलत तथ्यों के आधार पर पटना उच्च न्यायालय में ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ का आवेदन खारिज़

‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई’ द्वारा दाखिल आई ए संख्या -1/2024 माननीय मुख्य न्यायमूर्ति श्री के विनोद चंद्रन वाली न्याय खंड पीठ पटना उच्च न्यायालय का आदेश दिनांक -29 /4./2024 द्वारा बिल्कुल ही झूठे तथ्यों के आधार पर खारिज हो गया है। सीडब्लूजेसी संख्या 17542 /2018 के याचिकाकर्ता इंद्रदेव प्रसाद बताते हैं कि उस पारित आदेश के अनुसार वैश्विक हिंदी सम्मेलन उस रिट याचिका में हस्तक्षेप करना चाह रहा है, जो सरकारी अधिवक्ता का पदमुक्ति आदेश के विरुद्ध दाखिल हुआ है ,जो विद्वान महाधिवक्ता बिहार श्री पी के शाही के झूठे तर्कों पर आधारित है ,जिसके लिए उनके विरुद्ध माननीय उच्च न्यायालय पटना में ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस संख्या -1/2024 दर्ज हो गया है ,जिसके न्यायिक कार्यवाहियों में उनको पद पर रहते हुए डांडिक अवमान का दंड मिल सकता है।

जबकि जिस मामले में ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ इंटरवीन यानी हस्तक्षेप करना चाह रहा था, वह मामला सरकारी अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद का पद मुक्ति आदेश के विरुद्ध था ही नहीं। वह तो उनकी उस याचिका के लिए था जिसमें हिंदी की याचिकाओं का अंग्रेजी अनुवाद दिए जाने का नियम है। गलत तथ्य कैसे पहुंचे और किसने रखे यह भी विचारणीय है।

अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद बताते हैं कि वे तो पदमुक्त हुए ही नहीं हैं। वे हिंदी में वकालत करते हैं इसलिए उनको सरकारी मुकदमों का संचालन करने नहीं दिया जा रहा है, पटना उच्च न्यायालय नियमावली 1916 का भाग दो अध्याय तीन नियम एक के संदर्भ में, जो प्रावधानित करता है कि पटना उच्च न्यायालय में सब आवेदन अंग्रेजी भाषा में दाखिल होगा, उसी हिंदी विरोधी कानून के विरुद्ध उक्त रिट याचिका भारत संघ की राजभाषा हिंदी में दाखिल हुई है, जिसके अंग्रेजी अनुवाद की उनसे मांगी की गई है, इसलिए वैश्विक हिंदी सम्मेलन अपने निदेशक डॉ. एम एल गुप्ता के माध्यम से इंटरवेन यानी हस्तक्षेप करना चाह रहा था।

एक महत्वपूर्ण घटना यह भी हुई कि महाधिवक्ता बिहार श्री पी के शाही के विरुद्ध भारत संघ की राजभाषा हिंदी में ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस संख्या- 1 /2024 दर्ज हुआ है , जिसके संबंध में प्रेस विज्ञप्ति जारी करने पर रोक लगाने की मौखिक प्रार्थना बिहार राज्य की ओर से दिनांक 17/ 5/2024 को की गई, जो माननीय मुख्य न्यायमूर्ति श्री के. विनोद चंद्रन वाली न्याय खानपीठ के मौखिक आदेश से अस्वीकृत हो गया ।

इसलिए उस मुकदमे के संबंध में यह प्रेस विज्ञप्ति जारी हो रही है जिसकी उत्पत्ति निष्पादित मुकदमा सीडब्लूजेसी संख्या 17542/ 2018 से हुई है, जो भारत संघ की राजभाषा हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए है। उसमें पटना उच्च न्यायालय नियमावली 1916 का भाग दोअध्याय तीन नियम एक चुनौती के अधीन है ,जो प्रावधानित करता है कि पटना उच्च न्यायालय में सब आवेदन अंग्रेजी भाषा में दाखिल होगा ।उस मुकदमे में महाधिवक्ता कार्यालय बिहार का वह आदेश भी चुनौती के अधीन है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पटना उच्च न्यायालय नियमावली 1916 के भाग दो अध्याय तीन नियम एक पर आधारित है।

महाधिवक्ता बिहार श्री पी के शाही के अधीनस्थ विधि पदाधिकारी श्री इंद्रदेव प्रसाद हिंदी में वकालत करते हैं, इसलिए उनको सरकारी मुकदमों का संचालन पटना उच्च न्यायालय नियमावली 1916 का भाग 2 अध्याय तीन नियम एक को ढाल बनाकर करने नहीं दिया जा रहा है । इसलिए, वैश्विक वैश्विक हिंदी सम्मेलन मुंबई उस मुकदमा का पक्षकार बनाकर उसका समर्थन करना चाहता था और उसके लिए उन्होंने उस मुकदमे में आई. ए. संख्या -1/2024 दाखिल किया था , जो बिल्कुल ही झूठे तथ्यों के आधार पर खारिज हो गया है कि -“वैश्विक हिंदी सम्मेलन” वैसे मुकदमे में इंटरवेन करना चाह रहा है ,जो सरकारी अधिवक्ता की पदमुक्ति के विरुद्ध दाखिल हुआ है ,जो विद्वान महाधिवक्ता बिहार श्री पी के शाही के झूठे तर्कों पर आधारित है।

उपरोक्त ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस -1/2024 में विद्वान महाधिवक्ता बिहार श्री पीके शाही पर आरोप है कि वे सीडब्लूजेसी संख्या- 17542 /2024 के न्यायिक कार्यवाहियों में बाधा पहुंचाने के लिए कानून को हाथ में ले चुके हैं और कानून को हाथ में लेकर अपने अधीनस्थ विधि पदाधिकारी इंद्रदेव प्रसाद के नाम से आवंटित कुर्सी टेबल को हटवा दिए हैं और हटवाने के पूर्व उनको कोई नोटिस नहीं दिए है ।सुनवाई का कोई मौका नहीं दिए है ! आदेश का कोई कॉपी नहीं दिए है । जब उनके अधीनस्थ विधि पदाधिकारी उनसे आदेश का कॉपी मांगने गए, तो वे बोले कि मैं आपके निष्पादित मामले में मुख्य न्यायमूर्ति का चैंबर गया था -हमको जो कहना था- उनको कह दिया- आपका केसे पुनः सुनवाई पर आ गया-आपके केस में दिनांक -18/ 4 /2024 को पुन: सुनवाई होगी ,आपको जो कुछ भी कहना है ,उसी मुकदमे में कहिएगा ।मैं भी वही रहूंँगा ।

सुनवाई तिथि- 18/ 4/ 2024 को उनके अधीनस्थ विधि पदाधिकारी उनके सामने ही उक्त सारी बातों के अतिरिक्त यह भी बोले कि – “विद्वान महाधिवक्ता बिहार श्री पीके शाही पद से हमसे ऊंचे हैं, किंतु कानून से ऊंचे नहीं है। इनके हाथ भी कानून से बंधे हुए हैं ।इन्होंने कानून तोड़ दिया है। इन्होंने डांडिक अवमान का अपराध किया है। पहले इनको डांडिक अवमान का दंड दिया जाए, जिसके आलोक में पारित माननीय उच्च न्यायालय पटना का आदेश दिनांक- 18/ 4 /2024 के आलोक में उनके विरुद्ध उक्त ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस संख्या -1/ 2024 दर्ज हुआ है ,जो न्यायालय अवमान अधिनियम 1971 की धारा 15 (1) की दृष्टि में पटना उच्च न्यायालय का प्रस्ताव है, जिसके न्यायिक कार्यवाहियों में उनको डांडिक अवमान का दंड मिल सकता है, जिसके पक्षकारों के जमात में पटना उच्च न्यायालय पटना, एडवोकेटस एसोसिएशन पटना उच्च न्यायालय पटना ,भारत संघ, बिहार राज्य ,बार काउंसिल आफ इंडिया ,बिहार बर काउंसिल अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन, दिल्ली, वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई ,भारतीय भाषा अभियान , बिहार प्रदेश का भी नाम समाहित है।

आगे की सुनवाई तिथि 26 जून 2024 निर्धारित है। इस मामले पर केंद्रीय सरकार एवं राज्य सरकारों के जवाबदेह पदाधिकारी के साथ-साथ विद्वान अधिवक्ताओं एवं आम जनों का ध्यान केंद्रित है।

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आम चुनावों में राष्ट्रीय विमर्श अब बहस का विषय ही नहीं

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। आम चुनाव के चार चरण समाप्त हो चुके हैं। आज पांचवे चरण का मतदान जारी है। लोकतंत्र में मतदान मौलिक अधिकार है। यह नागरिकों को चुनाव का अवसर देता है कि कौन सरकार में आए? सरकार कैसी हो? और उन पर कौन शासन करे? यह सत्ता के दावेदारों की विचारधारा, रीति, नीति और दृष्टिकोण को भी जांचने और इच्छानुसार मतदान करने का अवसर होता है। मतदान केवल अधिकार नहीं, उत्तरदायित्व भी है। मतदान से नागरिकों की राजनैतिक इच्छा प्रकट होती है। मतदाताओं के पक्ष को समझा जाता है। चुनाव में मतदाता के सामने भिन्न-भिन्न विचार वाले दल आश्वासन देते हैं। मतदाता उपलब्ध विचारों और वायदों में अपने सपनों वाली सरकार बनाने के लिए वोट देते हैं। मताधिकार मूल्यवान है। मताधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय उद्घोषणा (1948) के द्वारा इसे संरक्षण दिया गया है।

सभी लोकतांत्रिक देशों में चुनाव के समय मुद्दा और विचार आधारित विमर्श चलते हैं। इसीलिए चुनाव महत्वपूर्ण लोकतंत्री उत्सव हैं। अमेरिकी संविधान में चुनाव तंत्र का उल्लेख नहीं है। अमेरिका में संघीय चुनाव कराने के लिए चुनाव नियम हैं। वे अमेरिकी कांग्रेस को चुनाव कराने की शक्ति देते हैं। अमेरिका में स्त्रियों को 1920 तक मताधिकार नहीं था। प्राचीन ग्रीक में मताधिकार केवल पुरुषों तक सीमित रहा है। ब्रिटेन में इसका धीरे-धीरे विकास हुआ। 1918 में महिलाओं को मताधिकार प्राप्त हुआ। भारत में 1950 के पहले से ही 21 वर्ष के ऊपर के सभी नागरिकों को मताधिकार था। बाद में मतदान की पात्रता की आयु 18 वर्ष की गई।

चुनाव राष्ट्रीय विमर्श के खूबसूरत अवसर होते हैं। बहस और विमर्श, वाद-विवाद और संवाद भारत की प्राचीन परम्परा है। प्राचीन काल में भी सभा और समितियां विमर्श का केन्द्र थीं। सम्प्रति पूरा देश सभा या संसद जैसा है। यहां प्रत्येक मतदाता अपनी इच्छा वाले देश और समाज के लिए सजग है।

राष्ट्रीय चिन्ता के सभी विषयों पर राष्ट्रीय विमर्श की आवश्यकता है। लेकिन वर्तमान चुनाव में बुनियादी सवालों पर राष्ट्रीय विमर्श का अभाव है। राष्ट्र सर्वोपरिता, राष्ट्रीय एकता और अखंडता, संविधान के प्रति निष्ठा व भारत की विश्व प्रतिष्ठा जैसे विषय आधारभूत हैं। यह विषय किसी न किसी रूप में हमेशा राष्ट्रीय विमर्श में रहते हैं। लेकिन वर्तमान चुनाव में पृष्ठभूमि में चले गए हैं। हम भारत के लोग संस्कृति के कारण दुनिया के प्राचीनतम राष्ट्र हैं। यहाँ विविधता और बहुलता सतह पर है। लेकिन इन सबको एक सूत्र में बांधे रखने वाली सांस्कृतिक एकता चुनावी विमर्श में नहीं है। राष्ट्र से भिन्न कोई भी अस्मिता अलगाववाद की प्रेरक होती है। साम्प्रदायिकता की चर्चा बहुधा होती रहती है। दल समूह एक दूसरे पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाया करते हैं। लेकिन साम्प्रदायिकता की परिभाषा नदारद है। चुनावी विमर्श में साम्प्रदायिकता के निराकार और साकार खतरे पर विमर्श होना चाहिए था।

सेकुलर विदेशी विचार है। राजनीति में बहुधा इसका दुरुपयोग होता है। व्यावहारिक अर्थ में यह अल्पसंख्यकवाद का पर्याय है। छद्म सेकुलरवाद भी विमर्श में नहीं है। राष्ट्र के समग्र विकास में प्रशासनिक सेवाओं की मुख्य भूमिका है। वे सरकारी नीतियों का क्रियान्वयन करते हैं। प्रशासनिक सुधारों पर अनेक आयोग बन चुके हैं। लेकिन प्रशासन की गुणवत्ता प्रश्नवाचक रहती है। इसी तरह अर्थनीति सबसे महत्वपूर्ण विषय है। यह राष्ट्रीय समृद्धि की संवाहक होती है। महाभारत में नारद ने युधिष्ठिर से पूछा, ”क्या आप अर्थ चिन्तन करते हैं-चिन्तयसि अर्थम्?” अर्थनीति पर सतत् राष्ट्रीय विमर्श अनिवार्य है।

राष्ट्र का आत्मविश्वास होता है राष्ट्रीय विमर्श। भूमण्डलीय ताप में वृद्धि अंतर्राष्ट्रीय समस्या है लेकिन उसका सम्बंध भारत से भी है। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना दायित्व निभाया है। लेकिन भूमण्डलीय ताप चुनाव विमर्श से बाहर है। जल और जीवन पर्यायवाची हैं। जल प्रदूषण राष्ट्रीय स्वास्थ्य का सबसे बड़ा शत्रु है। एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 400 से अधिक जिलों का जल गंभीर रूप से प्रदूषित हो चुका है। भूजल में शीशा, आर्सेनिक, फ्लोराइड और क्रोमियम जैसे जानलेवा रसायन पाए गए हैं। हर साल लगभग ढाई करोड़ लोग जल प्रदूषण की बीमारियों का शिकार होते हैं। बच्चे विकलांग होते हैं। औद्योगिक इकाइयों का विषैला पानी और कचरे भूगर्भ जल में मिलते हैं। बोतल बंद ब्रांडेड पानी और भी खतरनाक है। जल में उपस्थित रसायन बोतल की प्लास्टिक से रासायनिक क्रिया करते हैं और जल जानलेवा हो जाता है। वायु प्रदूषण से भारत भी पीड़ित है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी धूल भरी वायु लोगों के श्वसन तंत्र पर आक्रामक रहती है। ऐसे चिन्ताजनक मुद्दे भी चुनावी विमर्श में नहीं हैं।

कृषि भारत की आजीविका है और किसानों के लिए व्यवसाय भी है। ऋषि और कृषि भारतीय श्रम साधना के शीर्ष पर रहे हैं। चिकित्सा महत्वपूर्ण विषय है। जन स्वास्थ्य और आनंद साथ-साथ रहते हैं। राष्ट्रीय पौरुष का सम्बंध जन स्वास्थ्य से है। स्वस्थ जीवन के लिए उत्तम परिस्थितियां पाना मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21) है। रूग्ण लोग राष्ट्रीय उत्पादन में भागीदार नहीं हो सकते। उत्पादन की दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति राष्ट्र का सक्रिय मानव संसाधन है। अन्य योजनाएं टाली जा सकती हैं। लेकिन चिकित्सा और स्वास्थ्य नहीं। निजी अस्पताल महंगे हैं। राष्ट्रीय संवेदना का अभाव है। गरीबों को 5 लाख तक की चिकित्सा उपलब्ध कराने में ‘आयुष्मान भारत‘ योजना की प्रशंसा होती है। इस दिशा में काफी काम हुआ है। लेकिन जन स्वास्थ्य और कृषि भी राष्ट्रीय विमर्श में नहीं हैं।

नवयुवकों में इंजीनियरिंग सहित अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल होने पर आत्महत्या की प्रवृत्ति दिखाई पड़ रही है। यह राष्ट्रीय चिन्ता का विषय है। ऐसे विषय सरकार के अलावा सामाजिक उत्तरदायित्व से सम्बंधित हैं। भारतीय इतिहास का विरुपण पिछले 10-15 वर्षों से चर्चा का विषय है। इस इतिहास में वास्तविक तथ्य नहीं हैं। आर्य आक्रमण का सिद्धांत झूठा है। दुर्भाग्य से यह चुनाव में कोई मुद्दा नहीं है। समान नागरिक संहिता संविधान का नीति निदेशक तत्व है। पीछे कई बरस से यह राष्ट्रीय चर्चा का विषय है। लेकिन चुनावी विमर्श का मुद्दा नहीं है।

सारा काम सरकारें ही नहीं कर सकती। सामाजिक दायित्व बोध भी जरूरी है। सड़क, पानी, बिजली आदि के सवालों पर अनेक गाँवों में मतदान के बहिष्कार की घटनाएं हुई हैं। इसलिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर विमर्श जरूरी है। संवैधानिक लोकतंत्र में अनेक संस्थाएं हैं। भारतीय लोकतंत्र अति प्राचीन है। जब भारत में लोकतंत्र फल-फूल रहा था तब प्लेटो जैसे विद्वान लोकतंत्री मूल्यों पर चिन्तन कर रहे थे।

प्लेटो ने लिखा है कि, ‘‘जनतंत्र का अविर्भाव तब होता है जब गरीब विरोधियों से शक्तिशाली हो जाते हैं। जनतंत्र शासन का आकर्षक रूप है। उसमें विविधता और अव्यवस्था होती है। यह समान और असमान को समान भाव से एक तरह की समानता प्रदान करता है।‘‘ (दि डायलॉग्स ऑफ प्लेटो, खण्ड 2-रिपब्लिक) प्लेटो के अनुसार जनतंत्र में अव्यवस्था है। भारतीय लोकतंत्र के लिए भी अव्यवस्था की बात कही जा सकती है। इसके लिए भी महत्वपूर्ण मुद्दों पर राष्ट्रीय विमर्श जरूरी है। संविधान निर्माताओं ने उद्देशिका में ही सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय के साथ प्रतिबद्धता व्यक्त की है। व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता अखण्डता सुनिश्चित करने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प व्यक्त किया है। चुनाव इन सब पर चर्चा और विमर्श का महत्वपूर्ण अवसर है।

(लेखक भाजपा के वरिष्ठ नेता एवँ उत्तर प्रदेश विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष हैं)

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कायम रहेगा योगी राज

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संबंध में दिए गए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बयान के पश्चात प्रदेश में सियासी पारा बढ़ गया है। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने लखनऊ में पुनः दावा किया है कि यदि भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सत्ता में आ गई तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हटा दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमित शाह को पीएम बनाने के लिए पिछले डेढ़-दो वर्षों से लगे हुए हैं। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिवराज सिंह चौहान, वसुन्धरा राजे सिंधिया, देवेंद्र फडणवीस, रमन सिंह और मनोहर लाल खट्टर को पहले ही हटा दिया है। अब अमित शाह के प्रधानमंत्री बनने की राह में केवल योगी आदित्यनाथ ही अंतिम कांटा बचे हैं। उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले वर्ष 17 सितंबर को जैसे ही 75 वर्ष के हो जाएंगे, वे प्रधानमंत्री पद छोड़कर अमित शाह को प्रधानमंत्री बना देंगे। इसके पश्चात दो से तीन महीने में योगी आदित्यनाथ को हटा दिया जाएगा। अरविंद केजरीवाल के इस बयान की प्रासंगिकता पर चर्चा हो रही है या चर्चा में रहने के लिए यह राजनीतिक जुमला मात्र है।

वास्तव में अरविंद केजरीवाल भी जानते हैं कि उनका यह बयान असत्य एवं भ्रामक है। वे इस प्रकार के बयान देकर एक ओर तालियां बटोरना चाहते हैं तो दूसरी ओर ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपना रहे हैं।

यद्यपि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केजरीवाल को कड़े शब्दों में उत्तर दे दिया है। उन्होंने बांदा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा- “केजरीवाल की बु्द्धि जेल जाने के बाद फिर गई है। अन्ना हजारे के सपनों पर पानी फेरने वाले केजरीवाल अब मेरा नाम लेकर बातें कर रहे हैं। अन्ना ने जिस कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन किया था, केजरीवाल ने उसे ही अपने गले का हार बना लिया है। जेल जाकर उन्हें पता चल गया है कि अब वह कभी जेल के बाहर नहीं आने वाले हैं।“

इस बयानबाजी के मध्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेतों के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है कि योगी आदित्यनाथ अपना कार्यकाल पूर्ण करेंगे। उन्होंने कहा – “आने वाले पांच सालों में मोदी-योगी पूर्वांचल की तस्वीर और तकदीर दोनों बदलने वाले हैं।” सियासी गलियारे में इस बयान को अरविंद केजरीवाल के बयान से जोड़कर देखा जा रहा है। इस प्रकार श्री नरेंद्र मोदी ने केजरीवाल के बयान को भ्रामक एवं असत्य सिद्ध कर दिया है।

इससे पूर्व गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना कार्यकाल पूर्ण करेंगे तथा वर्ष 2029 के पश्चात् भी वे भाजपा का नेतृत्व करते रहेंगे। प्रधानमंत्री मोदी 75 वर्ष की आयु के पश्चात् भी अपने पद पर बने रहेंगे। इस प्रकार अमित शाह ने यह बात स्पष्ट कर दी है कि उनका प्रधानमंत्री बनने का अभी कोई विचार नहीं है। इसके अतिरिक्त पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी स्पष्ट कर चुके हैं कि 75 वर्ष के पश्चात् सेवानिवृति वाली बात पार्टी के संविधान में नहीं है। इस प्रकार की बातें केवल दुष्प्रचार के लिए बोली जा रही हैं। इसमें दो मत नहीं कि भाजपा का संगठन अत्यंत सुदृढ़ है। इसलिए अरविंद केजरीवाल की भ्रामक बयानबाजी से पार्टी को कोई हानि नहीं होगी।

वास्तव में प्रधानमंत्री भली भांति जानते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में सराहनीय विकास कार्य किए हैं। उनके मुख्यमंत्री काल में प्रदेश ने दिन दोगुनी रात चौगुनी उन्नति की है। प्रदेश की जनता भी उनके विकास एवं जनहित के कार्यों से अति प्रसन्न एवं संतुष्ट है, तभी उसने उन्हें द्वितीय बार भी मुख्यमंत्री चुना।

सर्विदित है कि उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जाता है, क्योंकि यही चुनाव आगे के लोकसभा चुनाव की दिशा निर्धारित करता है। इसीलिए उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव योगी आदित्यनाथ के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रहता है। अपने उत्कृष्ट कार्यों एवं सुशासन के कारण उन्होंने दो बार भारतीय जनता पार्टी को विजयश्री दिलाई है। भारतीय जनता पार्टी ने भी योगी आदित्यनाथ के कार्यों को सराहा तथा उन्हें प्रदेश की बागडोर सौंप दी।

लोकसभा चुनाव 2024 पाचवें चरण तक आते आते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 49 दिनों में कुल 111 जनसभाएं सहित 144 जनसभाएं किए है । इसके अलावा योगी अबतक आठ राज्यों में भी चुनाव प्रचार कर चूकें है । मुख्यमंत्री ने 27 मार्च को मथुरा में प्रबुद्ध सम्मेलन कर प्रदेश की चुनावी कमान संभाल ली थी। 27 मार्च से 19 मई तक कुल 50 दिनों में मुख्यमंत्री लगातार चुनाव प्रचार में लगे हुये है। अब तक उन्होने 15 प्रबुद्ध सम्मेलन और 12 रोड सो किया है। योगी की जनसभाओं में अपार भीड़ उनको सुनने के लिए प्रचण्ड गर्मी में भी जुट रही है ।

इसमें दो मत नहीं है कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रित्व काल में प्रदेश ने लगभग सभी क्षेत्रों में प्रशंसनीय उन्नति की है। प्रदेश में कृषि, उद्योग, रोजगार, आवास, परिवहन, बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा व्यवस्था, संस्कृति, धर्म एवं पर्यावरण आदि क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किए गए हैं। मेधावी विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति प्रदान दी जा रही है। वृद्धजन, विधवा एवं दिव्यांगजन को पेंशन के रूप में आर्थिक सहायता दी जा रही है। सरकार ने अनाथ बच्चों के भरण-पोषण की भी व्यवस्था की है। जिन परिवारों में कमाने वाला कोई नहीं है उन्हें भी आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है। निर्धन परिवार की लड़कियों एवं दिव्यांगजन के विवाह लिए अनुदान दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त योगी सरकार निराश्रित गौवंश के संरक्षण पर भी विशेष ध्यान दे रही है।

उल्लेखनीय है कि योगी आदित्यनाथ पार्टी के चाल, चरित्र एवं चेहरे के अनुसार प्रदेश में हिंदुत्व की छवि को और सुदृढ़ करने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं। उनके कार्य इस बात को सिद्ध करते हैं। चाहे प्राचीन नगरों के नाम परिवर्तित करना हो या काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण करना हो। उनके सभी कार्य इसका साक्षात प्रमाण हैं। उनकी देखरेख में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर के निर्माण का कार्य चल रहा है।

योगी सरकार राज्य के धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं पर्यटन स्थलों के विकास एवं सौन्दर्यीकरण पर विशेष ध्यान दे रही है। योगी सरकार ने बौद्ध सर्किट में श्रावस्ती, कपिलवस्तु, कुशीनगर तथा रामायण सर्किट में चित्रकूट एवं श्रृंगवेरपुर में पर्यटन सुविधाओं का विकास करवाया है। इसी प्रकार बृज तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, नैमि षारण्य तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, विन्ध्य तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, शुक्र धाम तीर्थ विकास परिषद, चित्रकूट तीर्थ विकास परिषद एवं देवीपाटन तीर्थ विकास परिषद का गठन किया गया, ताकि यहां के विकास कार्य सुचारू रूप से हो सकें

सरकार तीर्थ यात्रियों एवं पर्यटकों को अनेक सुविधाएं उपलब्ध करवा रही है। योगी सरकार तीर्थ यात्रियों को कई सुविधाएं प्रदान कर रही है। इसके अंतर्गत कैलाश मानसरोवर के तीर्थ यात्रियों की अनुदान राशि 50 हजार रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये प्रति यात्री की गई है। इसी प्रकार सिंधु दर्शन के लिए अनुदान राशि 20 हजार रुपये की गई।

योगी सरकार प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यथासंभव प्रयास कर रही है। इसके अंतर्गत गोरखपुर के रामगढ़ ताल में वाटर स्पोर्ट्स, पीलीभीत टाइगर रिजर्व एवं चंदौली में देवदारी राजदारी वाटरफॉल का विकास किया गया। स्पिरिचुअल सर्किट के अंतर्गत गोरखपुर, देवीपाटन, डुमरियागंज में पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया। जेवर, दादरी, नोएडा, खुर्जा एवं बांदा में भी पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया। आगरा में शाहजहां पार्क एवं महताब बाग-कछपुरा का कार्य एवं वृन्दावन में बांके बिहारी जी मंदिर क्षेत्र में पर्यटन का विकास किया गया। दुधवा टाइगर रिजर्व एवं पीलीभीत टाइगर रिजर्व स्थलों का विकास किया गया है। सरकार ने महाभारत सर्किट के अंतर्गत महाभारत से संबंधित स्थलों का विकास करवाया है। शक्तिपीठ सर्किट एवं आध्यात्मिक सर्किट से संबंधित स्थलों का भी विकास करवाया गया है। विपक्षी सरकार पर भेदभाव के आरोप लगाते रहते हैं, परन्तु सत्य यही है कि भाजपा सरकार बिना किसी भेदभाव के समान रूप से विकास कार्य करवा रही है। जैन एवं सूफी सर्किट के अंतर्गत आगरा एवं फतेहपुर सीकरी में पर्यटन सुविधाओं का विकास करवाया जाना इस बात का प्रमाण है।

योगी सरकार द्वारा अयोध्या में दीपोत्सव, मथुरा में कृष्णोत्सव, बरसाना में रंगोत्सव, वाराणसी में शिवरात्रि एवं देव दीपावली का आयोजन किया जा रहा है। देश ही नहीं, अपितु विदेशों में भी इसकी चर्चा हो रही है। इसके साथ-साथ सरकार कला एवं साहित्य को भी प्रोत्साहित कर रही है। राज्य में साहित्यकारों एवं कलाकारों को उत्तर प्रदेश गौरव सम्मान प्रदान किए जाने का निर्णय लिया गया।

उल्लेखनीय है कि योगी आदित्यनाथ के शासन में प्रदेश ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पृथक पहचान बनाई है। लगभग सभी क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश देश में अग्रणी रहा है। आज देश में उत्तर प्रदेश मॉडल की चर्चा की जा रही है। ये सब योगी आदित्यनाथ के प्रयास से ही संभव हो सका है।

 

लेखक – एसोसिएट प्रोफेसर लखनऊ विश्वविध्यालय में है ।

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भ्रष्ट नेता और दल्ले वकीलों में राज्य सभा की जुगलबंदी

भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की जैसे ख़ुराक़ बन गई है बड़े और दल्ले वकीलों को राज्य सभा में भेजना। इस लिए भी कि खग जाने खग ही की भाषा। अपराधी राजनेताओं ख़ास कर भ्रष्टाचार में चौतरफा घिरे राजनीतिज्ञों की कमज़ोरी रही है कि किसी न किसी बड़े वकील की शरण में रहने का। भारी फीस के अलावा गुरुदक्षिणा में राज्य सभा सदस्यता से नवाजने का। सोचिए कि आधा घंटा के लिए पचास लाख से एक करोड़ रुपए तक की फीस है , ऐसे वकीलों की। जाहिर है जजों का हिस्सा अलग से देना होता है। जजों और मुअक्किलों के बीच यह वकील ही दलाल बनते हैं। तभी तो आधी रात भी यह सुप्रीम कोर्ट खुलवा लेने की क्षमता रखते हैं। भले ही वह किसी आतंकी का ही मामला क्यों न हो। अभी तुरंत-तुरंत का मामला देख लें। अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन दोनों ही को ई डी ने एक ही एक्ट पी एम एल ए में गिरफ्तार किया है। चुनाव प्रचार के लिए अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत दे दी है। ठीक इसी ज़मानत के बाद , इसी आधार पर हेमंत सोरेन भी सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मांगने पहुंचे। पर उन्हें ज़मानत देने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया।
क्यों ?

इसलिए कि अभिषेक मनु सिंघवी उनके वकील नहीं थे। या कहिए कि हेमंत सोरेन का वकील अभिषेक मनु सिंघवी की तरह सुप्रीम कोर्ट में सेटिंग नहीं कर पाया।
याद कीजिए कि मायावती जब गले तक भ्रष्टाचार में धंस गईं तो उन्हों ने सतीशचंद्र मिश्रा को पकड़ा। सतीश मिश्रा ने जैसे अघोषित ठेका ले लिया कि वह किसी सूरत मायावती को जेल नहीं जाने देंगे। मायावती ने बहुत पहले सतीश चंद्र मिश्रा को न सिर्फ़ राज्य सभा भेजा , लगातार भेजती रहीं। पार्टी में भी सतीश मिश्रा को ससम्मान रखा हुआ है। जाने कितने लोग आए और गए पर सतीश मिश्रा को कोई सूत भर भी नहीं हिला सका। आज तक सतीश मिश्रा और मायावती की बांडिंग बनी हुई है। इन दोनों के फेवीकोल में फ़र्क़ नहीं पड़ा। मायावती के ही रास्ते चलते हुए लालू प्रसाद यादव ने राम जेठमलानी को राज्य सभा में अपनी पार्टी से भेजा। पर जेठमलानी लालू को जेल जाने से नहीं बचा सके। फिर जेठमलानी दिवंगत हो गए। अब तो लालू सज़ायाफ्ता हैं। जेल आते-जाते रहते हैं। स्वास्थ्य के आधार पर पेरोल और ज़मानत का खेल खेलते रहते हैं।

मुलायम सिंह यादव ने भी जेल जाने से बचने के लिए वर्तमान में भाजपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया के पिता वीरेंद्र भाटिया को राज्य सभा में भेजा था। वीरेंद्र भाटिया ने भी मुलायम को जेल जाने से बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जेल जाने से बचने के लिए मुलायम सिर्फ़ वकील के भरोसे ही नहीं रहे। मुलायम पहले कांग्रेस के आगे फिर भाजपा के आगे भी दंडवत रहे मुलायम। अपनी ज़ुबान पर भी लगाम लगाए रखा। जब कि लालू की ज़ुबान मुसलसल बेलगाम रही है। जैसे कि इन दिनों अरविंद केजरीवाल की ज़ुबान मुसलसल बेलगाम है। अटल जी एक समय कहा करते थे , चुप रहना भी एक कला है। जो लालू या केजरीवाल जैसे लोग नहीं जानते और भुगत जाते हैं।

ख़ैर , अब अखिलेश यादव ने भी पुराने कांग्रेसी कपिल सिब्बल को सपा की तरफ से राज्य सभा में बैठा रखा है ताकि जेल की नौबत न आए। जानने वाले जानते हैं कि कपिल सिब्बल वकालत कम , अपनी दलाली के लिए कुख्यात रहे हैं। अभी-अभी वह सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए हैं। राम मंदिर मामले को अपनी दलाली और कुतर्क के मार्फ़त ही सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल लटकाए रखने के लिए परिचित हैं।

इसी तरह पवन खेड़ा जैसों अराजक को खड़े-खड़े अभिषेक मनु सिंघवी ने एफ आई आर होने के बाद कुल दो घंटे में ही सीधे सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत दिलवा दिया। कांग्रेस में चिदंबरम , सलमान खुर्शीद , अभिषेक मनु सिंधवी समेत अनेक वकीलों की फ़ौज सर्वदा से रही है। रहेगी। सोनिया , राहुल , रावर्ट वाड्रा की हिफाजत के लिए। ग़ौरतलब है कि यह तीनों भी ज़मानत पर बाहर हैं।

अलग बात है कि भाजपा में जेल जाने वालों की सूची ऐसी नहीं रही फिर भी अरुण जेटली , सुषमा स्वराज , रविशंकर जैसे अनेक वकीलों की फ़ौज भाजपा ने बनाए रखी। हर छोटी-बड़ी पार्टी के पास इसी तरह वकीलों का फ़ौज-फाटा बना रहता है। वकील पार्टियों को दूहते हैं , पार्टियां इन को। ज़िक्र ज़रूरी है कि रविशंकर ही वह वकील थे जिस ने पटना हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ते हुए चारा घोटाले में सज़ा दिलवाई थी।

अयोध्या में राम मंदिर का मुकदमा भी रविशंकर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जीता था। सकारात्मक , नकारात्मक बहुत से ऐसे उदाहरण हैं। जैसे कि हरीश साल्वे भी एक वकील हैं जो इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में सिर्फ़ एक रुपए की फीस पर कूलभूषण जाधव का मुकदमा लड़ कर जीत लिया था और वह एक रुपया भी नहीं लिया। पर यही हरीश साल्वे सलमान ख़ान जैसे हत्यारे को आनन-फानन मुंबई हाईकोर्ट से ज़मानत दिलवा देते हैं। याद कीजिए मुंबई में हिट एंड रन केस। सड़क की फुटपाथ थके-हारे पर सोए मज़दूरों को शराबी सलमान ख़ान ने अपनी कार से कुचल कर मार दिया था। पर सलमान ख़ान पैसे वाला अभिनेता है। मुंह मांगा पैसा खर्च कर बच जाता है। समय बीत जाने के बाद भी देर शाम तक कोर्ट बैठी रही सलमान ख़ान को ज़मानत देने के लिए। इधर लोवर कोर्ट ने सज़ा घोषित की उधर हाथोहाथ मुंबई हाईकोर्ट ने ज़मानत दी।
तो अनायास ?

बहरहाल अब भ्रष्टाचार के ढेर सारे कुएं खोद लेने के बाद अरविंद केजरीवाल को भी किसी ऐसे वकील की दरकार पड़ गई है जो उन्हें जेल आदि संकटों से मुक्ति दिलाने का ठेका ले ले। सोमनाथ भारती जैसे छुटभैए वकील बेअसर साबित हुए हैं। अभिषेक मनु सिंघवी में केजरीवाल को अपनी ज़रुरत पूरी होती दिख रही है। अभिषेक मनु सिंघवी राज्य सभा में रह चुके हैं। एक बार मुख मैथुन का लाभ लेते हुए एक महिला वकील को जस्टिस बनाने का वायदा करते हुए कैमरे में कैप्चर हो गए तो दुकान फीकी पड़ गई। उस समय वह आलरेडी राज्य सभा में थे भी। बहुतों को जस्टिस बनवा चुके थे। बाद में भी बनवाते रहे पर सार्वजनिक रूप से उस वीडियो के बाद राज्य सभा का फिर रिनुवल नहीं हुआ। कांग्रेस की राजनीति में भी साइडलाइन कर दिए गए। पर कांग्रेस के प्रति निष्ठां बनी रही। अलग बात है यूट्यूब से उस मुख मैथुन वाले वीडियो को सुप्रीम कोर्ट से आदेश दिलवा कर हटवा दिया।

अभिषेक मनु सिंघवी के पिता लक्ष्मीमल्ल सिंघवी भी बड़े वकील रहे थे। वह राज्य सभा में भी रहे। उन की बड़ी प्रतिष्ठा रही है। एक भी दाग नहीं लगा कभी उन पर। दिल्ली के साऊथ एक्सटेंशन में उन के घर पर मेरी उन से अच्छी मुलाक़ात भी रही है। कई बार। लेखकों , पत्रकारों को भी बहुत पसंद करते थे। ख़ुद भी लेखक थे। सरल और विनम्र व्यक्ति थे। अभिषेक मनु सिंघवी ने अपने पिता से क़ानूनी दांव पेंच तो सीख लिया पर शुचिता और नैतिकता बिसार गए हैं। प्रतिष्ठा गंवा दी है।

अभी हिमाचल में कांग्रेस विधायकों की पर्याप्त संख्या होने के बाद भी भाजपा के दांव में फंस कर राज्य सभा की सीट जीतते-जीतते हार गए। वह कहते हैं न कि क़िस्मत अगर ख़राब हो तो ऊंट पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट लेता है। अभिषेक मनु सिंघवी के साथ भी लगभग यही हो गया। सो भाजपा से वह खार खाए बैठे ही थे कि केजरीवाल शराब घोटाले की जद में आ गए। अभिषेक मनु सिंघवी ने यह अवसर बढ़ कर दोनों हाथ से लपक लिया। बीच चुनाव में अरविंद केजरीवाल को अंतरिम ज़मानत दिलवा कर उन्हों ने भाजपा से अपना हिसाब न सिर्फ़ हिसाब बराबर कर लिया बल्कि राज्य सभा में जाने का सौदा भी केजरीवाल से कर लिया। सुप्रीम कोर्ट का वकील वैसे ही तो नहीं , अरविंद केजरीवाल के लिए लोवर कोर्ट में बहस करने पहुंच जाता है।

यह आसान नहीं था। एक समय ऐसे ही कन्हैया कुमार के लिए कपिल सिब्बल पैरवी के लिए पहुंच गए थे। अलग बात है कुछ वकीलों ने कन्हैया कुमार को इस तरह घेर कर मारा कि उन की पेंट ख़राब हो गई। मामला ही ऐसा था। भारत तेरे टुकड़े होंगे , इंशा अल्ला , इंशा अल्ला का नारा कन्हैया कुमार ने जे एन यू में लगाया था। कन्हैया कुमार अभी फिर माला पहन कर थप्पड़ खा गए हैं। केजरीवाल की तरह।

अरविंद केजरीवाल ने अभिषेक मनु सिंघवी को राज्य सभा भेजने में थोड़ी नहीं ज़्यादा हड़बड़ी दिखा दिया। सामंती ऐंठ दिखा दी। स्वाति मालीवाल अभी ताज़ा-ताज़ा राज्य सभा सदस्य बनी हैं। रिपीट तो संजय सिंह भी हुए हैं। पर केजरीवाल को राजनीतिक रूप से सब से ग़रीब , कमज़ोर और अनुपयोगी स्वाति मालीवाल ही लगीं। इस लिए उन्हें ही शिकार बनाया। सुनीता केजरीवाल को सौतिया डाह था ही , सामंती रवैया दिखाते हुए स्वाति मालीवाल को डिक्टेशन दे दिया गया। आप जिस को लेडी सिंघम कहते रहे हों उसे कीड़े-मकोड़े की तरह ट्रीट करेंगे तो एक बार तो कीड़ा-मकोड़ा भी तन कर खड़ा हो जाएगा , अपने अपमान से आजिज आ कर। फिर यह तो स्वाति मालीवाल ठहरी। राज्य सभा की सदस्य ठहरी। राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष ठहरी।

स्वाति का एक नाम तारा है और एक नक्षत्र का भी नाम भी स्वाति है। जाने कौन भारी पड़ा अरविंद केजरीवाल पर कि आए थे हरिभजन को , ओटन लगे कपास वाली दुर्गति हो गई। टेकेन ग्रांटेड ले लिया स्वाति मालीवाल को केजरीवाल ने। अपने दरबार की बांदी मान बैठे। अभ्यस्त थे वह इस के। एक से एक कद्दावर प्रशांत भूषण , योगेंद्र यादव , कुमार विश्वास , आशुतोष , आनंद कुमार आदि-इत्यादि तो छोड़िए , गुरु अन्ना हजारे तक को निपटा चुके थे अपनी अराजक शैली में। तो यह स्वाति मालीवाल क्या चीज़ थी। पर यहीं केजरीवाल गच्चा खा गए। उन की अराजकता की खेती स्वाति मालिवाल नीलगाय बन कर एक रात में चर गई। उन को पता ही नहीं चला। सुबह हुई तो पता चला भी पर सामंती अकड़ और अहंकार में अपने पालतू बिभव कुमार को ले कर लखनऊ आ गए।

स्वाति मालीवाल भड़क गई इस बिंदु पर। अभिषेक मनु सिंघवी और केजरीवाल की खिचड़ी जल गई। केजरीवाल चुनाव प्रचार तो छोड़िए , अब पूरी पार्टी को जेल भेजने के लिए आंदोलनरत हो गए हैं। बिभव की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ आंदोलनरत हो गए। क्यों कि बिभव उन के तमाम राज जानता है और स्वाति मालीवाल सिर्फ़ बिस्तर के राज।

बिलकुल अभी 2 जून को जेल तो खैर केजरीवाल जाएंगे ही पर अभिषेक मनु सिंघवी भी राज्य सभा ज़रूर जाएंगे। क्यों कि अभिषेक मनु सिंघवी की ज़रूरत अब केजरीवाल को लंबे समय तक पड़नी है। और नियमित पड़नी है। पैसा तो बहुत है केजरीवाल के पास अभिषेक मनु सिंघवी को देने के लिए। करोड़ो रुपए दे रहे हैं। देते रहेंगे। पर अभिषेक मनु सिंघवी का ईगो मसाज करने के लिए उन्हें राज्य सभा का सम्मान कहिए , ख़ुराक़ कहिए देनी ही है। अब देखना है कि केजरीवाल किस को बलि का बकरा बनने के लिए चुनते हैं। और कि वह भी आसानी से इस्तीफ़ा दे कर अभिषेक मनु सिंघवी के लिए सीट छोड़ता है कि नहीं। आम आदमी पार्टी के राज्य सभा में पर्याप्त सदस्य हैं।

राज्य सभा सदस्य होना वैसे तो सभी पार्टियों में सर्वदा से महत्वपूर्ण रहा है। आम आदमी पार्टी में तो बहुत ही ज़्यादा। कुमार विश्वास और आशुतोष गुप्ता का तो आम आदमी पार्टी से मोहभंग हुआ ही इस एक राज्य सभा की सदस्यता ख़ातिर। हालां कि यह दोनों ही आम आदमी पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ कर हार चुके थे और चाहते थे कि राज्य सभा मिले। पर केजरीवाल ने दोनों की ठेंगा दिखा दिया। आशुतोष तो अभी भी आम आदमी पार्टी के लिए के ख़िलाफ़ कभी खुल कर नहीं बोलते। भाजपा विरोध और सेक्यूलरिज्म की आड़ में अकसर कोर्निश बजाते रहते हैं। आम आदमी पार्टी से अपने प्यार का इज़हार जताते रहते हैं। लेकिन कुमार विश्वास जब भी कभी अवसर मिलता है अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। प्रशांत भूषण , आनंद कुमार , योगेंद्र यादव जैसे लोगों को भी चूहे की तरह कुतर कर रख दिया।

याद कीजिए कि पीटने को तो प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण भी कई बार पिटे हैं। अपने ही चैंबर में पिटे हैं। आम आदमी पार्टी में रहते हुए हैं। पर उन के लिए पक्ष या विपक्ष में कोई इस तरह नहीं खड़ा हुआ। पिटे बड़े वकील राम जेठमलानी भी थे। चंद्रशेखर के लोगों ने पीटा था। चंद्रशेखर के घर पर ही पीटा था। स्पष्ट है कि चंद्रशेखर की शह पर पीटे गए थे। पर चंद्रशेखर से जब इस जेठमलानी की पिटाई के बाबत पूछा गया तो वह बोले , मुझे इस बारे में नहीं मालूम। पर अगर जेठमलानी जी की पिटाई अगर हुई है तो यह निंदनीय है। मैं इस की निंदा करता हूं। तब जब कि जेठमलानी चंद्रशेखर के घर धरना देने पहुंचे थे कि वह प्रधान मंत्री पद की दावेदारी से अपना नाम वापस ले लें। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने हफ़्ता भर बीत जाने के बाद भी एक बार भी अपने ही शीश महल में स्वाति मालीवाल की पिटाई की निंदा नहीं की है। उलटे स्वाति मालीवाल की पिटाई करने वाले बिभव कुमार के पक्ष में आंदोलनरत हो गए हैं।
यह कौन सी संसदीय परंपरा है भला ! तब जब कि राज्य सभा को उच्च सदन का दर्जा दिया गया है। स्वाति मालीवाल उसी राज्य सभा की सदस्य हैं। यह कहां आ गए हैं हम ?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवँ राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ में रहते हैं)
 
(साभार https://sarokarnama.blogspot.com/ से)
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मुंबई की प्रसिध्द् ‘नेचुरल्स’ आइसक्रीम के संस्थापक रघुनंदन कामथ का निधन

‘नेचुरल्स’(Naturals) आइसक्रीम के  संस्थापक रघुनंदन कामथ का निधन हो गया है। उन्होंने 17 मई को मुंबई के एचएन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह 70 वर्ष के थे। उनके परिवार में पत्नी और दो बेटे हैं।

मैंगलोर के रहने वाले कामथ ने वर्ष 1984 में मुंबई के जुहू में एक ही स्टोर से ‘नेचुरल’ आइसक्रीम की शुरुआत की और इसे पूरे भारत में तमाम स्टोर के साथ एक बड़े ब्रैंड में बदल दिया।

कामथ को ‘आइसक्रीम मैन ऑफ इंडिया’ (Ice Cream Man of India) के रूप में भी जाना जाता था। उनका जन्म मैंगलोर में एक फल विक्रेता के घर हुआ था।

मैंगलोर से मुंबई तक की उनकी उल्लेखनीय यात्रा 14 साल की उम्र में शुरू हुई, जब उन्होंने एक रेस्तरां में काम करना शुरू किया। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वह एक विश्व स्तरीय आइसक्रीम ब्रैंड बनाने में कामयाब रहे।

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छत्तीसगढ़ की योगा टीम ने नेपाल में जीता गोल्ड मैडल

रायपुर। इंडो-नेपाल योगा कॉम्पीटीशन में गोल्ड मैडल हासिल करने वाली छत्तीसगढ़ की योग टीम ने मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय से उनके निवास कार्यालय में सौजन्य मुलाकात की। मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि योग टीम के गोल्ड मैडल हासिल करना छत्तीसगढ़ के लिए गर्व का विषय है, उन्होने टीम के सदस्यों को अपनी बधाई और शुभकामनाएं दी।

खेल एवं युवा कल्याण मंत्री श्री टंक राम वर्मा ने भी छत्तीसगढ़ की योग टीम की प्रदर्शन की सराहना करते हुए बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। गौरतलब है कि इस महीने के 9 से 12 मई को नेपाल में आयोजित हुए इंडो-नेपाल योगा कॉम्पीटीशन में छत्तीसगढ़ के 10 सदस्यीय टीम ने हिस्सा लिया था। इस प्रतियोगीता में टीम को गोल्ड मैडल से नवाजा गया है। इस टीम के कोच ज्योति दीपक कुंभारे हैं। योगा टीम में दिव्या जैन, प्रीत साव, पुष्पा साव, धमेश, छाया जैन, हेमलता, हर्षा, क्षमता शामिल हैं।
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