Tuesday, November 26, 2024
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अंततः अखंड भारत का सपना होगा साकार

प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी 15 अगस्त 2024 को पूरे भारतवर्ष में 77वां स्वतंत्रता दिवस बहुत ही धूम धाम से मनाया गया। दरअसल, भारतीय नागरिक 15 अगस्त 1947 के पूर्व अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत पराधीन थे  एवं 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों के शासन से मुक्त होकर भारतीय नागरिक स्वाधीन हुए। इसलिए इस पर्व को स्वाधीनता दिवस कहना अधिक तर्कसंगत होगा। स्वतंत्र शब्द दो शब्दों से मिलाकर बना है (1) स्व; एवं (2) तंत्र।

अर्थात स्वयं का तंत्र, इसलिए स्वतंत्रता दिवस कहना तो तभी न्यायोचित होगा जब स्वयं का तंत्र स्थापित हो। भारत के नागरिकों में आज “स्व” के भाव के प्रति जागृति तो दिखाई देने लगी है और वे “भारत के हित सर्वोपरि हैं” की चर्चा करने लगे हैं। परंतु, भारत में तंत्र अभी भी मां भारती के प्रति समर्पित भाव से कार्य करता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है, जिससे कभी कभी असामाजिक तत्व अपने भारत विरोधी एजेंडा पर कार्य करते हुए दिखाई दे जाते हैं और भारत के विभिन्न समाजों में अशांति फैलाने में सफल हो जाते हैं। स्व के तंत्र के स्थापित होने से आश्य यह है कि देश में हिंदू सनातन संस्कृति का अनुपालन सुनिश्चित हो।

प्राचीन काल में भारत विश्व गुरु था। आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों सहित लगभग समस्त क्षेत्रों में भारतीय सनातन संस्कृति का दबदबा था। भारत को उस खंडकाल में सोने की चिड़िया कहा जाता था। भारत के विश्वविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से पूरे विश्व से विद्यार्थी भारत में आते थे। भारत पर शक, हूण, कुषाण एवं यवन के आक्रमण हुए, परंतु भारत पर उनके कुछ समय के शासन के पश्चात वे भारतीय सनातन संस्कृति में ही रच बस गए एवं भारत का हिस्सा बन गए। परंतु, अरब के देशों से मुसलमान एवं ब्रिटेन से अंग्रेजों के भारत पर चले शासन के दौरान उन्होंने भारतीय नागरिकों का बलात धर्म परिवर्तन करवाया, स्थानीय नागरिकों पर अकल्पनीय अत्याचार किए। भारत के बड़े बड़े प्रतिष्ठानों, मंदिरों एवं ज्ञान के स्थानों को नष्ट किया।

अंग्रेजों ने तो भारतीय नागरिकों के साथ छल कपट करते हुए यह भ्रम फैलाया कि अंग्रेजों ने ही भारतीय नागरिकों को जीना सिखाया है अन्यथा भारतीय समाज तो असभ्य, अनपढ़ गंवार था। उन्होंने भारतीय सनातन संस्कृति पर गहरी चोट की। वे भारतीयों में हीन भावना भरने में सफल रहे। भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति को नष्ट किया। गुरुकुल नष्ट किए। अंग्रेजों को नौकर चाहिए थे अतः तात्कालिक शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन किए। इसी प्रकार की शिक्षा प्रणाली देश में आज भी चल रही है, जिसके अंतर्गत शिक्षित भारतीय केवल नौकरी करने के लिए ही उतावाले नजर आते हैं। वे अपना स्वयं का व्यवसाय स्थापित करने के प्रति रुचि ही प्रकट नहीं करते हैं। भारत में उद्योगपति अपने परिवार की विरासत से ही निकले हैं।

भारत को आक्रांताओं एवं अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराने के उद्देश्य से समय समय पर भारत के तत्कालीन राज्यों के शासकों ने युद्ध भी लड़े एवं अपने स्तर पर उस खंडकाल में सफलता भी अर्जित की। जैसे, शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, राणा सांगा आदि के नाम मुख्य रूप से लिए जा सकते हैं। इसी प्रकार, अंगेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ने वाले वीर क्रांतिकारियों में रानी लक्ष्मीबाई, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद के नाम सहज रूप से लिए जा सकते हैं।

स्वाधीनता प्राप्ति के उद्देश्य को लेकर मशाल आगे लेकर चलने वाले कई योद्धाओं में महात्मा गांधी, सरदार पटेल एवं सुभाषचंद्र बोस भी शामिल रहे हैं। इसी समय में विवेकानंद एवं डॉक्टर हेडगेवार ने भी सांस्कृतिक चिंतक के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन सफलतापूर्वक किया था। इस प्रकार, अंततः भारत को 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों के शासन से मुक्ति मिली एवं भारतीय नागरिकों को स्वाधीनता प्राप्त हुई। भारत के लिए यह एक नई सुबह तो थी परंतु यह साथ में विभाजन की त्रासदी भी लेकर आई थी। पूर्व एवं पश्चिमी पाकिस्तान के रूप में एक नए देश ने भी जन्म लिया और इस दौरान करोड़ों नागरिकों ने अपनी जान गवाईं थी।

आखिर भारत का विभाजन हुआ क्यों? यदि इस विषय पर विचार किया जाय तो ध्यान में आता है कि दरअसल अंग्रेजों ने यह भ्रम फैलाया कि भारत में आर्य बाहर से आए हैं और इस प्रकार वे भारतीय नागरिकों में मतभेद पैदा करने में सफल हुए। साथ ही, उन्हें भारतीय नागरिकों में यह भाव पैदा करने में भी सफलता मिली कि भारत एक भौगोलिक इकाई है एवं यह कई राज्यों को मिलाकर एक देश बना है जबकि राष्ट्र एक सांस्कृतिक इकाई होती है न कि भौगोलिक इकाई। उस खंडकाल विशेष में अंग्रेजों द्वारा भारत में किया गया मुस्लिम तुष्टिकरण भी भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार है। राष्ट्रवादी मुसलमानों की उपेक्षा की गई थी एवं उस समय की जनभावना को बिलकुल ही नकार दिया गया था, इसके उदाहरण के रूप में ‘वन्दे मातरम’ कहने पर अंकुश लगाना एवं राष्ट्रीय ध्वज के रूप में भगवा ध्वज को स्वीकार नहीं करना, का वर्णन किया जा सकता है। और फिर, उस समय विशेष पर भारत का नेतृत्व भी मजबूत हाथों में नहीं था। उक्त कई कारणों के चलते भारत को विभाजन की विभीषिका को झेलना पड़ा था और करोड़ों नागरिक इससे बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुए थे।

वैसे तो भारत को पूर्व में भी खंडित किया जाता रहा है परंतु वर्ष 1947 में हुआ विभाजन सबसे अधिक वीभत्स रहा है। वर्ष 1937 में म्यांमार भारत से अलग हुआ था, वर्ष 1914 में तिब्बत को भारत से अलग कर दिया गया था, वर्ष 1906 में भूटान एवं वर्ष 1904 में नेपाल को भारत से अलग कर दो नए देश बना दिये गए थे एवं वर्ष 1876 में अफगानिस्तान ने नए देश के रूप में जन्म लिया था। यह सभी विभाजन भारत को पावन भूमि को विखंडित करते हुए सम्पन्न हुए थे। यह सिलसिला वर्ष 1947 में स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात भी रुका नहीं एवं वर्ष 1948 में भारत के भूभाग को विखंडित कर श्रीलंका के रूप में नए देश का जन्म हुआ। वर्ष 1948 में ही पाकिस्तान के कुछ कबीलों ने भारत के कश्मीर क्षेत्र पर आक्रमण कर कश्मीर के एक हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया था, जिसे आज ‘पाक आकुपाईड कश्मीर’ कहा जाता है। वर्ष 1962 में आक्साई चिन भी भारत से विखंडित हो गया था।

उक्त विखंडित हुए भूभाग से भारत का नाता आज भी बना हुआ है। जैसे, अफगानिस्तान में बामियान बुद्ध की मूर्तियां स्थापित रही हैं, जिन्हें बाद के खंडकाल में तालिबान ने खंडित कर दिया है। महाभारत काल में गांधारी आज के अफगानिस्तान राज्य की निवासी रही है। अफगानिस्तान शिव उपासना का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। इसी प्रकार पाकिस्तान में तो तक्षशिला विश्वविद्यालय रहा है, जिसमें विश्व के अन्य देशों से विद्यार्थी अधय्यन के लिए आते थे। हिंगलाज माता का मंदिर है, भगवान झूलेलाल का अवतरण इस धरा पर हुआ था, साधु बेला, संत कंवरराम, ऋषि पिंगल, ऋषि पाणिनि भी इसी धरा पर रहे हैं।

भगत सिंह, लाला लाजपत राय एवं आचार्य कृपलानी जैसे देशभक्तों ने भी इसी धरा पर जन्म लिया था। बंगला देश में भी आज ढाकेश्वरी मंदिर स्थित है जिसके नाम पर ही बांग्लादेश की राजधानी को ढाका कहा जाता है। जगदीश चंद्र बोस एवं विपिन चंद्र पाल जैसे महान देशभक्तों ने भी इसी धरा पर जन्म लिया है। नेपाल तो अभी हाल ही के समय तक हिंदू राष्ट्र ही रहा है एवं यहां पर कैलाश मानसरोवर, पशुपति नाथ मंदिर, जनकपुर जहां माता सीता का जन्म हुआ था एवं विश्व प्रसिद्ध लुम्बिनी, आदि नेपाल में ही स्थित हैं। इस दृष्टि से यह ध्यान में आता है कि भारत को एक बार पुनः अखंड क्यों नहीं बनाया जाना चाहिए क्योंकि भारत से अलग हुए इन सभी देशों की सांस्कृतिक विरासत तो एक ही दिखाई देती हैं।

महर्षि अरविंद तो कहते ही थे कि भारत अखंड होगा क्योंकि यह ईश्वर की इच्छा है। स्वामी विवेकानंद जी को भरोसा था कि भारत एक सनातन राष्ट्र के रूप में अखंड होगा ही। आज हम सभी भारतवासियों को यह विश्वास अपने मन में जगाना होगा कि भारत एक अखंड राष्ट्र होगा ही इसके लिए मेहनत की पराकाष्ठा जरूर करनी होगी। हिंदू एक संस्कृति है न कि पूजा पद्धति, इस प्रकार का व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा। अखंड भारत में समस्त मत पंथों को मानने वाले नागरिकों को अपनी पूजा पद्धति के लिए छूट होगी ही। इस संदर्भ में विघटनकारी सोच की राजनैतिक पराजय अति आवश्यक है। भविष्य में केवल भारत ही अखंड होगा, ऐसा भी नहीं है। इसके पूर्व एवं पश्चिमी जर्मनी एक हो चुके हैं, वियतमान में भी इसी संदर्भ में बाहरी षड्यंत्र विफल हो चुके हैं। इजराईल देश भी तो अनवरत साधना से ही बन पाया है, फिर भारत क्यों नहीं अखंड हो सकता।

प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

रायपुर में आयोजित 17 अगस्त को दिव्य कला मेला का उद्घाटन करेंगे मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार

20 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से 100 दिव्यांग कारीगर, कलाकार और उद्यमी विविध उत्पादों और सांस्कृतिक विविधता का प्रदर्शन करेंगे
दिव्य कला शक्ति-दिव्यांगजनों को वित्तीय सहायता प्रदान करने और आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए रोजगार मेला और ऋण मेला

रायपुर। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार कल रायपुर में आयोजित 17वें दिव्य कला मेला का उद्घाटन करेंगे। एक सप्ताह की अवधि का यह मेला दिव्यांग कारीगरों और उद्यमियों को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ उनकी प्रतिभा और रचनात्मकता का उत्‍सव मनाएगा। इस कार्यक्रम का आयोजन भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (डीईपीडब्ल्यूडी) द्वारा किया जा रहा है।

यह दिव्य कला मेला 20 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 100 से अधिक दिव्यांग कारीगरों, कलाकारों और उद्यमियों द्वारा तैयार किए गए उत्पादों की एक विविध श्रृंखलाओं के प्रदर्शन के लिए पूर्ण रूप से तैयार है। इसमें घर की सजावट, जीवनशैली के उत्पाद, कपड़े, पर्यावरण के अनुकूल सामान, पैकेज्ड खाद्य पदार्थ आदि वस्‍तुओं का एक अनुपम संग्रह होगा। आगंतुकों को इन हस्तनिर्मित वस्तुओं को देखने और खरीदने का अनूठा अवसर मिलेगा, जिनमें से प्रत्येक अपने निर्माताओं की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और रचनात्मकता को दर्शाता है।

यह मेला सिर्फ़ एक बाज़ार नहीं होगा और दिव्यांगजनों को ‘दिव्य कला शक्ति’ रोजगार मेला और  ऋण मेला के माध्‍यम से एक ही छत के नीचे सशक्त बनाएगा। ऋण मेला जैसी पहलों के माध्‍यम से प्रतिभागियों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी जिससे वे अपने व्यवसाय को आगे बढ़ा सकेंगे और साथ ही आत्मनिर्भर बन सकेंगे ।

यह आयोजित कार्यक्रम दिव्यांग कलाकारों को अपनी प्रतिभा दर्शाने के लिए सुअवसर प्रदान करेगा। इसके साथ ही दिव्य कला शक्ति सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्‍यम से कलाकारों को संगीत, नृत्य और नाटक में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करने के लिए एक मंच प्रदान करेगा।

रायपुर का दिव्य कला मेला वर्ष 2022 से देश में आयोजित होने वाले ऐसे कार्यक्रमों की 17वीं श्रृंखला है। इसके पिछले संस्करणों के आयोजन को दिल्ली, मुंबई, भोपाल और गुवाहाटी जैसे शहरों में व्यापक प्रशंसा मिली है, जिनमें से प्रत्येक ने कौशल विकास और बाजार प्रदर्शन के माध्यम से दिव्यांगजनों के उत्थान और सशक्तिकरण में पूर्ण योगदान दिया है।

इसरो की एक और गगनचुंबी उड़ान

इसरो के नवीनतम पृथ्वी अवलोकन उपग्रह ‘ईओएस-08’ को आज 16 अगस्त, 2024 की  सुबह 9:17 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी)-डी3 द्वारा लांच किया गया।

ईओएस-08 मिशन के प्राथमिक उद्देश्यों में एक माइक्रोसैटेलाइट का डिजाइन और विकास करना, माइक्रोसैटेलाइट बस के साथ सृजित पेलोड उपकरणों का निर्माण करना, तथा भविष्य के परिचालन उपग्रहों के लिए आवश्यक नई प्रौद्योगिकियों को शामिल करना है।

माइक्रोसैट/आईएमएस-1 बस पर निर्मित, ईओएस-08 तीन पेलोड ले जाता है: इलेक्ट्रो ऑप्टिकल इन्फ्रारेड पेलोड (ईओआईआर), ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम-रिफ्लेक्टोमेट्री पेलोड (जीएनएसएस-आर), और एसआईसी यूवी डोसिमीटर। ईओआईआर पेलोड को उपग्रह-आधारित निगरानी, आपदा निगरानी, पर्यावरण निगरानी, आग का पता लगाने, ज्वालामुखी गतिविधि अवलोकन और औद्योगिक और बिजली संयंत्र आपदा निगरानी जैसे अनुप्रयोगों के लिए दिन-रात मिड-वेव आईआर (एमआईआर) और लॉन्ग-वेव आईआर (एलडब्ल्यूआईआर) बैंड में इमेज को प्राप्‍त करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

जीएनएसएस-आर पेलोड समुद्री सतह वायु विश्लेषण, मिट्टी की नमी का आकलन, हिमालयी क्षेत्र में क्रायोस्फीयर अध्ययन, बाढ़ का पता लगाने और अंतर्देशीय जल निकायों का पता लगाने जैसे अनुप्रयोगों के लिए जीएनएसएस-आर-आधारित रिमोट सेंसिंग का उपयोग करने की क्षमता प्रदर्शित करता है। इस बीच, एसआईसी यूवी डोसिमीटर गगनयान मिशन में क्रू मॉड्यूल के व्यूपोर्ट पर यूवी विकिरण की निगरानी करता है और गामा विकिरण के लिए हाई डोज अलार्म सेंसर के रूप में कार्य करता है।

अंतरिक्ष यान मिशन विन्यास 37.4 डिग्री के झुकाव के साथ 475 किमी की ऊंचाई पर एक गोलाकार निम्न पृथ्वी कक्षा (एलईओ) में संचालित करने के लिए सेट किया गया है, और इसका मिशन का कार्यकाल एक वर्ष का है। उपग्रह का द्रव्यमान लगभग 175.5 किलोग्राम है और यह लगभग 420 वाट की पावर का सृजन करता है। यह एसएसएलवी-डी3 लॉन्च वाहन के साथ इंटरफेस करता है।

सैटेलाइट मेनफ्रेम सिस्टम में ईओएस-08 प्रगति को दर्शाता है जैसे कि इंटीग्रेटेड एवियोनिक्स सिस्टम को संचार, बेसबैंड, स्टोरेज और पोजिशनिंग (सीबीएसपी) पैकेज के रूप में जाना जाता है।  यह कई कार्यों को एक एकल, कुशल इकाई में जोड़ता है। यह सिस्टम कमर्शियल ऑफ-द-शेल्फ (सीओटीएस) घटकों और मूल्यांकन बोर्डों का उपयोग करके कोल्ड रिडंडेंट सिस्टम के साथ डिज़ाइन किया गया है, जो 400 जीबी तक के डेटा स्टोरेज का समर्थन करता है। इसके अतिरिक्त, सैटेलाइट में पीसीबी के साथ एम्बेडेड एक स्ट्रक्चरल पैनल, एक एम्बेडेड बैटरी, एक माइक्रो-डीजीए (डुअल जिम्बल एंटीना), एक एम-पीएए (फेज़्ड एरे एंटीना) और एक लचीला सौर पैनल शामिल है। यह ऑनबोर्ड प्रौद्योगिकी प्रदर्शन के लिए प्रमुख घटकों के रूप में कार्य करता है।

उपग्रह अपने एंटीना पॉइंटिंग मैकेनिज्म में एक लघुकृत डिजाइन का उपयोग करता है, जो 6 डिग्री प्रति सेकंड की घूर्णी गति प्राप्त करने और ±1 डिग्री की पॉइंटिंग सटीकता बनाए रखने में सक्षम है। लघुकृत चरणबद्ध सरणी एंटीना संचार क्षमताओं को और बढ़ाता है, जबकि लचीला सौर पैनल एक फोल्डेबल सौर पैनल सब्सट्रेट, जीएफआरपी ट्यूब और सीएफआरपी हनीकॉम्ब रिजिड एैंड पैनल को शामिल करता है, जो बेहतर बिजली उत्पादन और संरचनात्मक मजबूती देता है। इसमें एक पायरोलिटिक ग्रेफाइट शीट डिफ्यूज़र प्लेट, जिसे 350 डब्‍ल्‍यू /एमके की उच्च तापीय चालकता के लिए जाना जाता है, द्रव्यमान को कम करती है और विभिन्न उपग्रह कार्यों में इसका उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, ईओएस-08 मिशन एक काज-आधारित स्थिरता का उपयोग करके हाउसकीपिंग पैनलों को एकीकृत करने की एक नई विधि को अपनाता है, जो असेंबली, एकीकरण और परीक्षण (एआईटी) चरण की अवधि को काफी कम करता है।

ईओएस-08 मिशन एक्स-बैंड डेटा ट्रांसमिशन के माध्यम से अतिरिक्त नवीन योजनाओं को शामिल करते हुए, सैटेलाइट तकनीक में सुधार करता है, एक्स-बैंड डेटा ट्रांसमीटरों के लिए पल्स शेपिंग और फ़्रीक्वेंसी कम्पेंसेटेड मॉड्यूलेशन (एफसीएम) का उपयोग करता है। सैटेलाइट की बैटरी प्रबंधन प्रणाली एसएसटीसीआर-आधारित चार्जिंग और बस विनियमन का उपयोग करती है, जो 6 हर्ट्ज की आवृत्ति पर स्ट्रिंग्स को क्रमिक रूप से शामिल या बाहर करती है।

मिशन के स्वदेशीकरण का प्रयास इसकी सौर सेल निर्माण प्रक्रियाओं और माइक्रोसैट अनुप्रयोगों के लिए नैनो-स्टार सेंसर के उपयोग में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इसके अतिरिक्त, इनर्शियल सिस्टम रिएक्शन व्हील आइसोलेटर से लाभान्वित होता है जो कंपन को कम करता है और टीटीसी और एसपीएस अनुप्रयोगों के लिए एकल एंटीना इंटरफ़ेस का उपयोग किया जाता है। सीओटीएस घटकों के थर्मल गुणों को संभालने के लिए एएफई बीजीए, किनटेक्‍स एफपीजीए, जर्मेनियम ब्लैक कैप्टन और एसटीएएमईटी (एसआई-एआई मिश्र धातु) ब्लैक कैप्टन जैसी सामग्रियों का उपयोग करके थर्मल प्रबंधन की कार्यकुशलता को बेहतर किया जाता है। मिशन में एक ऑटो-लॉन्च पैड इनिशियलाइज़ेशन सुविधा भी शामिल है, जो अभिनव मिशन प्रबंधन के लिए अपनी पूर्ण प्रतिबद्धता दर्शाती है।

राष्ट्रीय ध्वज पहली बार १९४३ में फहराया गया था!

आज देश अपना 78वां स्वाधीनता-दिवस मना रहा है। घर-घर और जगह-जगह राष्ट्रीय ध्वज यानी तिरंगे फहराए जा रहे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में सबसे पहले हमारा राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) कब और कहां फहराया गया था? हम में से ज्यादातर लोग शायद इसके बारे में न जानते हों। लेकिन बता दें भारत की धरती पर सबसे पहले अंडमान निकोबार की राजधानी पोर्ट-ब्लेयर में तिरंगा फहराया गया था और यह तिरंगा फहराया था भारत माता के सपूत प्रसिद्ध स्वतंत्रता-सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने। 29 दिसंबर 1943 को नेताजी सुभाष-चंद्र बोस अंडमान एंड निकोबार द्वीप के पोर्ट-ब्लेयर पहुंचे। वे तीन दिनों के लिए यहां आए थे।

 30 दिसंबर 1943 को  समुद्र के किनारे जिमखाना ग्राउंड(अब फ्लैग पॉइंट) पर नेताजी ने तिरंगा फहराया था और द्वीप-समूह को ब्रिटिश शासन से मुक्त क्षेत्र घोषित किया था। दरअसल,दूसरे विश्वयुद्ध में जापान ने इस द्वीप पर कब्जा कर लिया था। 1942 में जापान का इस पर कब्जा हुआ जो 1945 तक रहा। 29 दिसंबर को उन्होंने इसे सुभाषचंद्र बोस की ‘आजाद हिंद सरकार’ को सौंप दिया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की कहानियों में पोर्ट-ब्लेयर के फ्लैग-पॉइंट में 150 फ़ीट की ऊँचाई पर पूरी शान से लहराता हमारे देश का यह ध्वज आज हमारी राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक बन चुका है।

अपनी पोर्ट-ब्लेयर की यात्रा के दौरान आज पन्द्रह अगस्त २०२४ को इस तिरंगे को देखकर  मन गर्व-मिश्रित आनंद से भर गया। हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में पोर्ट-ब्लेयर को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

DR.S.K.RAINA
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Rajasthan 301001
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15 अगस्त 1947 के बाद क्या हुआ, उस खौफनाक मंजर की दास्तान…

दुर्भाग्य से गांधीजी ने मुस्लिम लीग के बारे में जो मासूम सपने पाल रखे थे, वे टूट कर चूर चूर हो गए. गांधीजी को लगता था, की ‘मुस्लिम लीग को पकिस्तान चाहिये, उन्हें वो मिल गया. अब वो क्यों किसी को तकलीफ देंगे..?’ पांच अगस्त को ‘वाह’ के शरणार्थी शिबिर में उन्होंने यह कहा था, की मुस्लिम नेताओं ने उन्हें आश्वासन दिया हैं, की ‘हिन्दुओं को कुछ नहीं होगा’. पाकिस्तान की असेंब्ली में जीना ने भी यही कहा था, की ‘पाकिस्तान सभी धर्मों के लिए हैं.’
लेकिन ऐसा नहीं था. ऐसा हुआ भी नहीं. असली दंगे तो आजादी मिलने के बाद शुरू हुए. अगस्त का अंतिम सप्ताह, सितंबर और अक्तूबर, १९४७ में जबरदस्त दंगे हुए. १७ अगस्त को रेड्क्लिफ द्वारा विभाजन की रेखा घोषित की गयी. इसके बाद भयानक रक्तपात हुआ. लाखों लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा. अपने लोगों से बिछुड़ना पडा.
विभाजन की इस त्रासदी में लगभग दस लाख लोग मारे गए. डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग विस्थापित हुए.
इस स्वतंत्रता से हमने क्या पाया..?
ढाका की देवी ढाकेश्वरी, अब हमारी नहीं रही. बारीसाल के कालि मंदिर में दर्शन करना और दुर्गा सरोवर में नहाना, हमारे लिए दूभर हो गया. सिख पंथ के संस्थापक गुरुदेव नानक साहब की जन्मस्थली, ननकाना साहिब, अब हमारे देश का हिस्सा नहीं रही. पवित्र गुरुद्वारा पंजा साहिब हमसे दूर हो गया. मां हिंगलाज देवी के दर्शन हमारे लिए दूभर हो गए.
*क्या पाप किया था हमने, की हमें हमारा ही देश पराया हो गया..?*
‘पंजाब बाउंड्री फोर्स’ का मुख्यालय तो स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर ही, लाहौर में जला दिया गया. अक्तूबर में ‘गिलगिट स्काउट’ के मुस्लिम सिपाहियों ने विद्रोह किया और पुरे गिलगिट – बाल्टीस्तान पर कब्जा कर लिया. अक्तूबर के दुसरे पखवाड़े में, पाकिस्तानी सेना ने कबायलीयों के रूप में कश्मीर का कुछ हिस्सा हथियां लिया. अंततः २७ अक्तूबर को, महाराजा हरिसिंह ने काश्मीर के विलय-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए. १९४८ के मार्च में पाकिस्तान ने पुरे कलात के क्षेत्र पर, अर्थात बलूचिस्तान पर, बलात रूप से कब्जा कर लिया.
११ सितंबर, १९४८ को कायदे-आझम जीना का इंतकाल हुआ, और इसके ठीक एक सप्ताह के अंदर, अर्थात १७ सितंबर, १९४८ को, विशालकाय हैदराबाद रियासत को सैनिकी कारवाई करके, भारत में शामिल करवा लिया गया….
३० जनवरी, १९४८ को गांधीजी की ह्त्या की गयी. इसके पहले भी उन्हें मारने के एक / दो प्रयास हुए थे. २१ जून, १९४८ को लार्ड माउंटबेटन, भारत छोड़कर इंग्लैड वापस चले गए.
उन पन्द्रह दिनों के प्रत्येक चरित्र का, प्रत्येक पात्र का भविष्य भिन्न था..!
उन पन्द्रह दिनों ने हमें बहुत कुछ सिखाया….
माउंटबेटन के कहने पर, स्वतंत्र भारत में, यूनियन जैक फहराने के लिए तैयार नेहरु हमने देखे. ‘लाहौर अगर मर रहा हैं, तो आप भी उसके साथ मौत का सामना करो..’ ऐसा जब गांधीजी लाहौर में कह रहे थे, तब, ‘राजा दाहिर की प्रेरणा जगाकर, हिम्मत के साथ, संगठित होकर जीने का सूत्र’, उनसे मात्र ८०० मील की दूरी पर, उसी दिन, उसी समय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख, ‘गुरूजी’, हैदराबाद (सिंध) से बता रहे थे.
कांग्रेस अध्यक्ष की पत्नी, सुचेता कृपलानी कराची में सिन्धी महिलाओं को बता रही थी, की ‘आपके मेकअप के कारण, लो कट ब्लाउज के कारण, मुस्लिम गुंडे आपको छेड़ते हैं’. तब कराची में ही, राष्ट्र सेविका समिति की मौसीजी, हिन्दू महिलाओं को संस्कारित रहकर, बलशाली, सामर्थ्यशाली बनने का सूत्र बता रही थी..! जहां कांग्रेस के हिन्दू कार्यकर्ता, पंजाब, सिंध छोड़कर  हिन्दुस्थान भागने में लगे थे, और मुस्लिम कार्यकर्ता, मुस्लिम लीग के साथ मिल गए थे, वहीँ संघ के स्वयंसेवक डट कर, जान की बाजी लगाकर, हिन्दू – सिखों की रक्षा कर रहे थे. उन्हें सुरक्षित हिन्दुस्थान में पहुचाने का प्रयास कर रहे थे.
फरक था. बहुत फरक था. कार्यशैली में, सोच में, विचारों में… सभी में.
लेकिन, स्वतंत्रता दिवस की पहली वर्षगांठ पर क्या चित्र था..?
हिन्दू – सिखों को बचाने वाले स्वयंसेवक जेल के अंदर थे. उनपर झूठा आरोप लगाया गया था, गांधी ह्त्या का..! देश को एक रखने, अखंड भारत बनाएं रखने के लिए, अपनी सीमित ताकत के साथ, पूरा जोर लगाने वाले, ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ पर प्रतिबंध लगा था. स्वयंसेवकोंकी हिंमत बढाने वाले, बलशाली राष्ट्र की कल्पना करने वाले, संघ के सरसंघचालक गुरुजी, भी जेल में थे. ‘अपना देश सैनिकी शक्ति से संपन्न होना चाहिए’, ऐसा आग्रह रखने वाले, क्रांतिकारियों के मुकुटमणि, वीर सावरकर भी जेल में थे….
और सत्ता किसके पास थी..? अपनी जिद के कारण, नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस गवाने वाले, अभी भी ब्रिटिश सत्ता के सामने झुकने वाले, अंग्रेजी रीति रिवाजों में पूर्णतः पले – बढे, रचे – बसे नेहरु के पास…!
उन पन्द्रह दिनों ने हमें यह स्पष्ट कर दिया, की हम हमारे देश का नेतृत्व किसके हाथों में सौंप रहे थे…!
उन ‘पन्द्रह दिनों’ की यह गाथा यही समाप्त..!
– प्रशांत पोळ
_(‘वे पंद्रह दिन’ इस पुस्तक से)_

मारवाड़ी युवामंच भुवनेश्वर द्वाराअध्यात्मिक प्रवचन का आयोजन

भुवनेश्वर। 78 वें स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर स्थानीय तेरापंथ भवन में सायंकाल मारवाड़ी युवामंच भुवनेश्वर के  अध्यक्ष हरीश अग्रवाल के कुशल नेतृत्व में स्थानीय इस्कान प्रमुख शाश्वत पति दास तथा आमंत्रित आध्यात्मिक प्रवक्ता श्रीपत दुकाराम दास द्वारा पहली बार स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक जीवनोपयोगी आध्यात्मिक प्रवचन आयोजित किया गया जिसमें भुवनेश्वर जनपद के सैकड़ों श्रोता उपस्थित होकर प्रवचन का लाभ उठाए। दोनों वक्ताओं ने जीवन में धर्म को धारणकर आध्यात्मिक जीवन पथ पर चलने का पावन संदेश अपने-अपने प्रवचनों के माध्यम से दिया।

उनके अनुसार आध्यात्मिक प्रवचन सुनने तथा साधु-संतों के मान-सम्मान करने का संदेश दिया जो अपना सम्पूर्ण जीवन आध्यात्मिक चेतना जगाने में व्यतीत करते हैं।दोनों आमंत्रित वक्ताओं का स्वागत मारवाड़ी युवामंच उत्कल प्रांतीय मण्डल-1के राज्य उपाध्यक्ष साकेत अग्रवाल,मारवाड़ी युवामंच भुवनेश्वर के अध्यक्ष हरीश अग्रवाल,संयोजक मनीष केजरीवाल तथा विकास अग्रवाल ने व्यासपीठ पर सनातनी तरीके से किया। आयोजन के आरंभ में श्रीराम नाम तथा श्रीकृष्ण नाम संगीतमय संकीर्तन आयोजन के आकर्षण का मुख्य केन्द्र रहा। लगभग 9.00 बजे रात तक चलनेवाले उस कार्यक्रम के अंत में सभी ने मिलकर पुरी धाम के भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद का सामूहिक सेवन किया।

देश मेरे का गुणगान रहे

देश मेरे का नाम सदा आबाद रहे
जय हिन्द, जय हिन्द, जय हिन्द का गान रहे
रानी लक्ष्मीबाई और भगत सिंह का नाम
सदा ही गुजायमान रहे
जय हिन्द, जय हिन्द, जय हिन्द का नारा हर ओर रहे
विश्व गुरु बन कर भारत ने अपना लोहा मनवाया है
इस सोने की चिड़िया का एक बार फिर
वही मान सम्मान रहे
जय हिन्द, जय हिन्द, जय हिन्द का नाम
सदा आसमान में चमकता रहे
जात पात, हिंदूं मुस्लिम का भेद
न किसी के मन में रहे
देश सदा सब से ऊंचा यही विचार रहे
जय हिन्द जय हिन्द जय हिन्द का नारा
सभी ओर लगता रहे
सीना फोलादी, सेना जांबाजी
सभ्यता का डंका बजता रहे
जय हिन्द, जय हिन्द, जय हिन्द मिल कर सारा जहां कहे।
रेणु सिंह ‘ राधे ‘, कोटा ( राजस्थान )
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आशातीत उन्नति के बाद भी युवा बेरोजगारी बड़ी समस्या — डॉ. सिंघल

कोटा। स्वाधीनता दिवस के अवसर पर कोटा के राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय में स्वाधीनता दिवस समरोह उल्लासपूर्वक मनाया गया। सहायक प्रभारी डॉ.शशि जैन ने  राष्ट्रगान के साथ ध्वजारोहण किया।
इस अवसर  पर सभागार में आयोजित स्वाधीनता दिवस कार्यक्रम में मुख्य अथिति जनसंपर्क विभाग के पूर्व संयुक्त निदेशक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने देश की आज़ादी के लिए और देश की रक्षा में प्राण न्योछावर करने वाले शहीदों को नमन करते हुए कहा कि राजनैतिक स्वंत्रता प्राप्त करने बाद सभी क्षेत्रों में आशातीत उन्नति हुई है। कई क्षेत्रों में शेष आत्मनिर्भर बना है और कुछ क्षेत्रों में आत्मनिर्भर होने की ओर अग्रसर है।आर्थिक रूप से आज भारत दुनिया की तीसरी बड़ी शक्ति बनने जा रहा है। साथ ही यह चिंता का विषय है है कि पुराने घरेलू धंधे समाप्त होने से आज लाखों युवा बेरोजगार है जो बड़ी समस्या है। उन्होने कहा सच्ची आज़ादी और गांधी जिनके स्वराज्य  का सपना तब ही साकार होगा हैं देश के हर युवा के हाथ को रोजगार होगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए फिदरलाईट समूह बैंगलोर के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी राजू गुप्ताने  कहा की हम सबको देश की आजादी को बरकरार रखने के लिए सतर्क रहना होगा। आज जो पड़ोसी देशों की स्थिति सामने है ऐसे भी बाहरी ताकतें हमारे देश की शांति के लिए खतरा बन सहती हैं।
पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ.दीपक श्रीवास्तव ने आज के दिन युवाओं से प्राथमिकता से भविष्य के सपनों को साकार करने के लिए शिक्षा प्राप्ति के लक्ष्य को पूरा करने का आह्वान किया।
विशिष्ठ अथिति डॉ. प्रीति  शर्मा ने ” देश भक्ति गीत ” हर कर्म अपना करेंगे ए वतन तेरे लिए, दिल दिया है जां भी देंगे ए वतन तेरे लिए” प्रस्तुत किया। विशिष्ठ अथिति साहित्यकार रेणु सिंह ‘ राधे ‘ ने अपनी कविता” देश मेरे का नाम सदा आबाद रहे ,जय हिन्द, जय हिन्द, जय हिन्द का गान रहे ‘ प्रस्तुत की। दिलखुश ने पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेई की कविता ” भारत कोई भूमि का टुकड़ा नहीं ,एक जीता जगता राष्ट्रपुरुष है” प्रस्तुत की।
प्रारंभ में  अथितियो ने मां सरस्वती की पूजा अर्चना कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। डॉ.शशि जैन सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। अथितियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया गया। समारोह में गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे।

मारवाड़ी सोसायटी,भुवनेश्वर ने मनाया 78वां स्वतंत्रता दिवस

भुवनेश्वर। 15 अगस्त को सुबह में 9.00 बजे मारवाड़ी सोसायटी,भुवनेश्वर ने अपने मारवाड़भवन में आजाद भारत का 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाया। ध्वजारोहण सोसायटी के उपाध्यक्ष तथा बतौर मुख्य अतिथि चेतन टेकरीवाल ने किया।अवसर पर सोसायटी के सक्रिय पदाधिकारियों में शिव कुमार अग्रवाल,प्रकाश बेताला,सज्जन सुरेका,मुरारीलाल लढानिया,सुरेन्द्र अग्रवाल,विपिन बांका,विमल भूत,साकेत अग्रवाल,मुन्नालाल अग्रवाल,किशन बलोदिया,किशन खण्डेलवाल, शिवकुमार शर्मा तथा चंचल बलोदिया आदि उपस्थित थे। मुख्य अतिथि चेतन टेकरीवाल ने उपस्थित सभी को स्वतंत्रता दिवस की अपनी ओर से शुभ कामना दी

शिव कुमार अग्रवाल ने बताया कि अब से मारवाड़ी समाज भुवनेश्वर के साथ-साथ इससे संबद्ध सभी संगठनों के सभी कार्यक्रम भविष्य में इसी मारवाड़ भवन में आयोजित होंगे। ध्वतारोहण के उपरांत सभी ने राष्ट्रगान गाया तथा भारत मां के जयकारे लगाये। आपसी सौहार्द को सुदृढ़ करने के लिए सभी ने मिलकर सामूहिक अल्पाहार लिया।

एक शामः शहीदों के नाम कवितापाठ

भुवनेश्वर। 15 अगस्त को स्थानीय उत्कल अनुज हिन्दी वाचनालय में हिन्दी विद्वान अशोक पाण्डेय की अध्यक्षता में स्वरचित देशभक्ति कवितापाठ का आयोजन किया गया जिसका आयोजन राष्ट्रीय कविसंगम संस्था की खुर्दधा इकाई के अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह के कुशल नेतृत्व में हुआ और उसका नाम था- एक शामः शहीदों के नाम। विक्रमादित्य सिंह ने मंचसंचालन भी किया। समारोह के मुख्य अतिथि के रुप में संस्था के उत्कल प्रांतीय अध्यक्ष नथमल चेनानी ने योगदान दिया।

अपने अध्यक्षीय भाषण में अशोक पाण्डेय ने कहा कि आज ओड़िशा के स्वतंत्रता सेनानियों की गाथा भी हिन्दी में तैयार करने की जरुरत है जो हमारी ओड़िया अस्मिता को कायम रखेगा। और यह संभव है ओडिया से हिन्दी अनुवाद के माध्यम से।
मुख्यअतिथि नथमल चेनानी ने अपने संबोधन में 78वें स्वतंत्रता दिवस की शाम आयोजित राष्ट्रीय कविसंगम संस्था की खुर्दधा इकाई के अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह तथा सभी ओड़िया-हिन्दी कवि-कवयित्रियों को उनके सुंदर कवितापाठ के लिए बधाई दी। अवसर पर लगभग 30 कवियों ने अपनी-अपनी स्वरचित कविताओं का पाठ किया जिसमें प्रमुख थे किशन खण्डेलवाल,मुरारीलाल लढानिया,विनोद कुमार,रीतु महिपाल,पुष्पलता मिश्र,मंजुला त्रिपाठी,लरोजिनी मिश्र,सोनाली त्रिपाठी,पवित्रमोहन बारीक,जयश्री पटनायक,निरंजन सामंतराय,प्रभु चरण पति,वीणापाणि मिश्र,संयुक्ता महंती, इतिश्री पति,बद्रीनारायण पंजियार,विक्रमादित्य सिंह एवं रश्मि कर आदि ने। कार्यक्रम की संयोजिका थी रीतु महिपाल जिन्होने कार्यक्रम के अंत में आभार व्यक्त किया।