Sunday, April 6, 2025
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वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में मध्यमवर्गीय परिवारों को देनी होगी राहत

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को गति देने में मध्यमवर्गीय परिवारों की प्रमुख भूमिका रहती है। देश में ही निर्मित होने वाले विभिन्न उत्पादों की मांग इन्हीं परिवारों के माध्यम से निर्मित होती है। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे परिवार जब मध्यमवर्गीय परिवारों की श्रेणी में शामिल होते हैं तो उन्हें नया स्कूटर, नया फ्रिज, नया एयर कंडिशनर, नया टीवी एवं इसी प्रकार के कई नए पदार्थों (उत्पादों) की आवश्यकता महसूस होती है। साथ ही, नए मकानों की मांग भी मध्यमवर्गीय परिवारों के बीच से ही निर्मित होती है। इसीलिए यह कहा जाता है कि जिस देश में मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या जितनी तेजी से बढ़ती है उस देश का आर्थिक विकास भी उतनी ही तेज गति से आगे बढ़ता है।

भारत में भी हाल ही के वर्षों में मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या में भारी वृद्धि दर्ज हुई है। परंतु, मुद्रा स्फीति, कर का बोझ एवं इन परिवारों की आय में वृद्धि दर में आ रही कमी के चलते इन परिवारों की खर्च करने की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है, जिससे कई कम्पनियों का यह आंकलन सामने आया है कि विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की मांग में कमी दृष्टिगोचर हुई है। विशेष रूप से उपभोक्ता वस्तुओं (Fast Moving Consumer Goods – FMCG) के क्षेत्र में उत्पादन करने वाली कम्पनियों का इस संदर्भ में आंकलन बेहद चौंकाने वाला है। साथ ही, वित्तीय वर्ष 2023-24 की द्वितीय तिमाही में इन कम्पनियों द्वारा उत्पादित उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री एवं लाभप्रदता में भी कमी दिखाई दी है।

गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के लिए केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा चलायी जा रही विभिन्न सहायता योजनाओं का लाभ अब सीधे ही इन परिवारों को पहुंचने लगा है। 80 करोड़ से अधिक नागरिकों को प्रतिमाह मुफ्त अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है। किसानों के खातों में सहायता राशि सीधे ही जमा की जा रही है। विभिन्न राज्यों द्वारा लाड़ली लक्ष्मी योजना, लाड़ली बहिना योजना आदि माध्यम से महिलाओं के खातों में सीधे ही राशि जमा की जा रही है। इसके साथ ही इन परिवारों के सदस्यों को रोजगार के नए अवसर भी उपलब्ध होने लगे हैं। जिससे इस श्रेणी के परिवारों में से कई परिवार अब मध्यमवर्गीय श्रेणी के परिवारों में शामिल हो रहे हैं।

केंद्रीय श्रम मंत्री ने हाल ही में भारतीय संसद को बताया है कि देश में पिछले 10 वर्षों में रोजगार उपलब्ध नागरिकों की संख्या 36 प्रतिशत बढ़कर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 64.33 करोड़ के स्तर पर आ गई है, यह संख्या वर्ष 2014-15 में 47.15 करोड़ के स्तर पर थी। वर्ष 2024 से वर्ष 2014 के बीच, 10 वर्षों में रोजगार में लगभग 7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी अर्थात इस दौरान केवल 2.9 करोड़ अतिरिक्त नौकरियां सृजित हो सकीं थी, जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2024 के बीच 17.19 करोड़ अतिरिक्त नौकरियां सृजित हुई हैं, यह लगभग 6 गुना से अधिक की वृद्धि दर्शाता है। पिछले केवल एक वर्ष अर्थात वित्तीय वर्ष 2023-24 के बीच ही देश में लगभग 4.6 करोड़ नौकरियां सृजित हुई हैं।

कृषि क्षेत्र में वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच रोजगार में 16 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच कृषि के क्षेत्र में रोजगार में 19 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई हैं। इसी प्रकार विनिर्माण के क्षेत्र में भी वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच रोजगार में केवल 6 प्रतिशत दर्ज हुई थी जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच विनिर्माण के क्षेत्र में रोजगार में 15 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। सेवा के क्षेत्र में तो और भी अधिक तेज वृद्धि दर्ज हुई है। वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच सेवा के क्षेत्र में रोजगार 25 प्रतिशत की दर से बढ़ा था, जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच इसमें 36 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इस सबका असर बेरोजगारी की दर में कमी के रूप में देखने में आया है।

देश में बेरोजगारी की दर वर्ष 2017-18 के 6 प्रतिशत से वर्ष 2023-24 में घटकर 3.2 प्रतिशत रह गई है। इसका सीधा असर कामकाजी आबादी अनुपात पर भी पड़ा है जो वर्ष 2017-18 के 46.8 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 58.2 प्रतिशत पर पहुंच गया है। सबसे अच्छी स्थिति तो संगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे नागरिकों की संख्या में वृद्धि से बनी है। क्योंकि संगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे युवाओं को नियोक्ताओं द्वारा कई प्रकार की अतिरिक्त सुविधाएं केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा जारी नियमों के अंतर्गत प्रदान की जाती है। संगठित क्षेत्र में शामिल होने वाले युवाओं (18 से 28 वर्ष के बीच की आयु के) की संख्या में सितम्बर 2017 से सितम्बर 2024 के बीच 4.7 करोड़ की वृद्धि दर्ज हुई है, ये युवा कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ई पी एफ ओ) से भी जुड़े हैं।

यदि किसी देश में मुद्रा स्फीति की दर लगातार लम्बे समय तक उच्च स्तर पर बनी रहे एवं नागरिकों की आय में वृद्धि दर मुद्रा स्फीति में हो रही वृद्धि दर से कम रहे तो इसका सीधा असर मध्यमवर्गीय परिवार के बचत एवं खर्च करने की क्षमता पर पड़ता है। यदि मध्यमवर्गीय परिवार के खर्च करने की क्षमता कम होगी तो निश्चित ही बाजार में विभिन्न उत्पादों की मांग भी कम होगी इससे विभिन्न कम्पनियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की बिक्री भी कम होगी। यह स्थिति हाल ही के समय में भारत की अर्थव्यवस्था में दृष्टिगोचर है। अतः वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट से यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार द्वारा इस प्रकार के प्रयास किए जाएंगे जिससे मुद्रा स्फीति की दर देश में कम बनी रहे एवं मध्यमवर्गीय परिवारों की आय में वृद्धि हो। साथ ही, मध्यमवर्गीय परिवारों की आय पर लगाए जाने वाले आय कर में भी कमी की जानी चाहिए।

बैकों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋणों पर ब्याज दरों में कमी की घोषणा द्वारा भी मध्यमवर्गीय परिवारों को कुछ हद्द तक राहत पहुंचाई जा सकती है। ऋण पर ब्याज दरों में कमी करने से मध्यमवर्गीय परिवारों द्वारा ऋण खातों में जमा की जाने वाली मासिक किस्त की राशि में कमी होती है और उनकी खर्च करने की क्षमता में कुछ हद्द तक सुधार होता है। मध्यमवर्गीय परिवारों के हित में यदि उक्त उपाय नहीं किया जाते हैं तो बहुत सम्भव है कि यह मध्यमवर्गीय परिवार एक बार पुनः कहीं गरीबी रेखा के नीचे नहीं खिसक जाय। अतः वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट के माध्यम से मध्यमवर्गीय परिवारों को राहत प्रदान करने का भरपूर प्रयास किया जाना चाहिए।

प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

राम लखन मिश्र “मृदुल” की काव्य साधना

परिचय

जन्म 1 सितम्बर, 1920 तदनुसार सं० 1977 वि० में उत्तर प्रदेश के सन्त कबीर नगर जिले हैंसर बाजार के पास मुंडेरा नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० रामानन्द मिश्र था । बचपन से ही संस्कृत पैतृक प्रभाव ने इन्हें विद्वता की ओर प्रेरित किया इन्होंने संस्कृत की सर्वोच्च परीक्षा व्याकरणाचार्य उत्तीर्ण करने के बाद सोहगोरा संस्कृत महाविद्यालय में प्रधानाचार्य के पद पर अवकाश पर्यन्त तक कार्य करते रहे । सम्प्रति अपने पद से रिटायर होने के बाद हिन्दी व्याकरण, ज्योतिष साहित्य आदि के विधान के रूप में बहुत होकर साहित्य सूजन में लगे हुये हैं। मृदुल की घनाक्षरी, सवैधा,द्रुतविम्बित छन्दाँ के बड़े अच्छे जानकार है। इनके अधिकांश छंद कानपुर से प्रकाशित “रसराज” में छपते रहे हैं। अभी तक इन्का को कोई काव्य र्संग्रह ना तो प्रकाशित है और न पाण्डुनिधि के रूप में संग्रहीत हैं। कुछ छंद उनके  प्रस्तुत है –

उल्लू अंधकार की ही श्रेष्ठता  बखानता है.

मान को न जानता है खगराज के।

धोबी धन्य धन्य गदहे को कहता है सदा,

गुण को न जानता है वह गजराज के।

मृदुल कला को देखते हैं ना कलाविहीन,

देखेंगे कलक कला दीन द्विजराज के।

जानते रसिक जो हैं वीणावादिनी के भक्त,

रस की क्या जाने मूढ गूढ़ रसराज के।।

– – रसराज, नवम्बर, 1957, पृष्ठ 26

पुनः “किसान” समस्या पूर्ति का अन्य छंद दृष्टव्य है-

कंजकदली की कदली की कुंजकौरक की,

कल ना कहीं की केहरी के कटिमान की।

कुंजर कपोलन की कठोरता  ठठोलबाजी,

काफीउपमा की कौकिला की कलतान की

मृदुल कपोत की सुकेतकी कलीकीकान्ति,

कामिना की कोमलता कमल समान की ।

काली की है केवल कलम जीभ ही परन्तु,

कल्पना नहींकी किसीकवि ने किसान की।

(– रसराज जनवरी फरवरी 1958)

तत्कालीन पूर्तिकारों ने यह छन्द बहुत पसन्द किया है। मृदुल जी के छन्दों में समस्या पूर्ति के प्रकरण अधिक हैं।

दो पूर्तिया पुन. प्रस्तुत हैं।

उभडो पयोधर ये रस बरसानो चहै

यामिनी अंधेरी बेला बीति रही याम की ।

ठहरे यहाँ जो नहीं गहरे गिरोगे कहीं,

सही मानो घटा देखो धन घनश्याम की।

रसभरी “मून” गंभीर कविता सी रम्ब,

वाणी रचना भी है दिखाती घटा घाम की ।

कान्त परदेश पान्ध सूनो गैह है नितान्त,

रातै तो बिताओ कर वा तें देश ग्राम की।

(– रसराज  नवम्बर 1956)

पुनः

कर्म मन बानी को पवित्र कर मानी मूढ,

तेरी यह शान बन पानी रह जायेगी ।

क्षणक्षण बीतता जो फिरि फिरिआयेगा तू,

सौव ले मनुष्यता मन्यता बनानी रहजायेगी

“मृदुल बना ले दोनों लोक उपकारी बन,

भक्त राम नाम सत्य बानी रह जायेगी ।

कवलित करेगा कलेवर कराल काल

कहने को केवल कहानी रह जायेगी।।

(– रसराज  मई 1957)

मृदुल जी खड़ी बोनी, धनाक्षरी और सवैया के उत्कृष्ट छन्दकार हैं। इनमे छन्दों पर संस्कृत साहित्य का विशेष प्रभाव है। कथ्य में कलात्मकता और भाषा में प्रवाह है। इनके शताधिक छंद इनके डायरियों मे पड़े हैं। इनके छन्द पर कलाधर जी का अच्छा प्रभाव पड़ा है। यह मौलिक जी के सन्निकट के कवि हैं। आज भी जो कुछ यह लिख रहे हैं सब उनकी डायरियों ने पड़ा है। यदि इनके छंदों  का एक संग्रह  प्रकाशित हो जाय तो इन्हें जनपद के आधुनिक छंदकारों में बहुसंसित स्थान मिलेगा। खड़ी बोली के साथ-माथ मुदुल जी भोजपुरी के भी समर्थक है। क्योंकि इनका जन्म और निवास भोजपुरी क्षेत्र में ही है। भविष्य में मुदुल जी के साहित्य का प्रकाशन होगा और साहित्य- सुधी समादर करेंगे।

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर  9412300183)

पांच घंटे, कार में सफर, बहती काव्य धारा

नाथद्वारा से कोटा लौटते हुए 6 जनवरी को कार का सफर, पांच घंटे तक पूरे सफर काव्य धारा के झरने का ऐसा  श्रोत बहता रहा कि पता ही नहीं चला कब कोटा पहुंच गए। सफ़र तो सफ़र है। इसलिए आनंद बक्षी ने कहा —
जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मकाम
वो फिर नहीं आते,वो फिर नहीं आते।
  साहित्य मंडल नाथद्वारा का दो दिवसीय राष्ट्रीय बाल साहित्यकार सम्मेलन एवं भगवती प्रसाद देवपुरा स्मृति समारोह समाप्त हो गया था। हमने पांच बजे नाथद्वारा छोड़ दिया था। एक शेर याद आ ही गया –
    तमाम उम्र कौन किसी का साथ देता है।
     कठिन है रहगुजर थोड़ी देर साथ चलो।
जिंदगी के पड़ाव में कैफ़ भोपाली आनंद बक्षी इंदीवर रामावतार त्यागी,इंद्र जीत सिंह तुलसी भी आये। लेकिन सच तो यह है आपके आसपास के गीतकारों, गजलगो के गीत भी कम नहीं ।मीर से चली ग़ज़ल आज़ कहां खड़ी है सब जानते हैं। सांझ का धुंधलका होने चला था कि मैंने भाई साहब रामेश्वर शर्मा रामू भैया को छेड़ दिया। मैं ही उन्हें ग़ज़लों के क्षेत्र में लाया था और मैंने यह भी सिद्ध किया था केवल इस शेर से की वो प्रेम जी प्रेम के बाद लोक के सबसे बड़े गजलगो हैं –
 घणी हूंस सूं चर्या भरी छी, गंगाजल की
 लाता लाता पिंदा गळग्या कस्यां करां।
  बंटवारा में पांती आई म्हा कै असी कड़ाई
  मालपुआ ज्यूं म्हाई तलग्या कस्यां करां ।।
  अदबी माहौल और सूझबूझ ग़ज़ल को बहुत कुछ देती है। गजलगो के पास मातृभाषा भी है, हिन्दी भी और उर्दू ज्ञान भी तो वो सभी मिजाज की ग़ज़ल लिखने लगता है। रामेश्वर शर्मा रामू भैया ने नयी कहानी कहते हुए। ताज़ा तरीन ग़ज़ल का एक मतला और एक शेर पढ़ा —
 जबसे उस मछली ने मेरे,जाल में फंसना छोड़ दिया
   हमने भी दरिया के भीतर रोज़ उतरना छोड़ दिया।
जबसे साकी हुआ मेहरबां गैरों के पैमानों पर
हमने भी मैखाने जाना और बहकना छोड़ दिया।
ग़ज़ल की कहन जब रवायत लेकर भाषा और शिल्प के समन्वय से सामने आती है।दिल में उतरती चली जाती है। मुझे शकील बदायूंनी,साहिर लुधियानवी,राजा मेंहदी अली खान याद आते जा रहे थे। ग़ज़ल का वो शेर सामने आ ही गया जिसकी जरूरत थी —
जब से उसने रुप हमारा बंद किया है पलकों में
 हमने भी दर्पण के आगे रोज़ संवरना छोड़ दिया।
अब मजरुह सुलतानपुरी याद आ गये थे,
” तेरी आंखों के सिवा, दुनिया में रक्खा क्या है”।
     जिंदगी के मायने बदल ही जाते,जब आप आंखों में उतर जाते हैं। हमारे वो दिन याद आ गये जब लड़के मोहब्बत का इजहार कर ही नहीं पाते। लड़कों की हिजाबी देखी नहीं जाती लड़कियां उनकी इस अदा की दिवानी होती थी।साठ का दशक फिल्मी गीतकारों की ग़ज़लों के हुनर का काल था। मुझे यकायक शकील बदायूंनी याद आ गये –
  हम तो इज़हार ए हाल कर बैठे
 बेखूदी में कमाल कर बैठे।
अब मैं भी खुलने लगा , रामेश्वर शर्मा जी को मैं ही समझ सकता हूं । उनसे कैसे प्रस्तुति करवानी है। सफ़र में डा. प्रभात सिंघल थे, उनकी खूबसूरत गाड़ी जिसमें हम आ रहे थे। ग़ज़ले रवानियत पर थी। गाड़ी चला रहे सुरेश को भी मज़ा आ रहा था । सफ़र मुसलसल चल रहा था। एक खामोशी सी आ गई और भाई साहब रामेश्वर शर्मा जी ने कहा ” संत जी यह नहीं चलेगा,आप उर्दू अदब से बहुत करीब बावस्ता रहे हो ,उनको याद करते हुए कुछ सुनाओ”।
     समां सुहाना था। महफ़िल रंग में थी  सिंघल कह रहे थे ” भाई साहब देखा जाए तो हम एक दूसरे को करीब से जानते ही नहीं, आज़ रामेश्वर जी को सुन रहूं हूं। कोटा में एक प्रोग्राम जी भर कर सुनो रखेंगे और इन्हें सुनेंगे”! भाई साहब रामेश्वर शर्मा जी के कहते ही आप सुनाओ। मैं अपना मानस बनाने लगा और कालेज के दिनों की एक कता ( मुक्तक) याद हो आया। पढ़ने लगा –
यूं धीरे धीरे खोलो ना अपने नक़ाब को
निखर निखर के आने दो शोख ए शबाब को
ठहरो तो ज़रा बादलों से पूछ लूं सवाल
पहलू में कैसे रख लिया था अफताब को ।
    शायरी की जब समझ हो तो सुनाने में भी मज़ा आता है। भाई साहब रामेश्वर जी कहने लगे ” लाज़वाब नक़ाब के पीछे आफताब निराली उपमा है”। यह मुक्तक उन दिनों सैंकड़ों युवाओं को याद हो गया था।जब बात आफताब की आई तो फिर मुझे मेहताब भी याद आ ही गया –
उदय सूरज की जाना लालिमा कहां क़ैद रखी है
सुना है लाजवंती तो तेरे बचपन की सखी है
तुझे उस रोज़ देखकर मैंने रोकड़ में लिख दिया
 तेरी कुछ रश्मियां चंदा ने लेके क़र्ज़ रखी है।
 मैंने भाई साहब रामेश्वर शर्मा जी से कहा ” भाई साहब यह वह दौर था जब लड़कियां सिर्फ और सिर्फ मोहब्बत चाहती थी। आज़ की तरह गाड़ी बंगला ऐशो आराम नहीं”. वो बोले ठीक कह रहे हैं आप । मैंने उस दौर की महबूबा की ख्वाहिश बताई –
अगर तुमको मोहब्बत है तो सनम मुझको ग़म दे दो”.
     एकदम मैं फिर अतीत में लौट आया राजा मेंहदी अली खान के गाने उनकी मदन मोहन के साथ जोड़ी फिर सत्तर के दशक का वह दौर जब फिल्म” पाकीज़ा ” हिट हो गई थी और कैफ़ भोपाली हाड़ौती क्षेत्र के प्रवास में थे। जिनके लिए राहत इंदौरी ख़ुद कहते थे” कैफ़ सा मेरे गुरु थे मैं उनके जूते सर पर रख कर घूम सकता था “!
     प्रेम मयूर जी का आवास गर्ल्स हायर सेकेण्डरी स्कूल कैफ़ भोपाली वहां ही ठहरते थे जहां पीने पिलाने को मिले बूंदी का एक हिस्सा मदन मदिर जी ने जो सुनाया याद आ रहा है। खैर फिर कभी गिने चुने लोग एक शानदार नशिस्त जो हमेशा याद रहेगी, हमारे भी यौवन के दिन फरमाइश कैफ़ और मयूर सा कर रहे हैं और मैं सुना रहा हूं —
 सरुर ए मय में मैं चला मैखाने से
झूमकर लौट कर आया ही था बुतखाने से
 सुराही खोलकर जो रुबरु तुझको देखा
 छलक कर मय गिरी बाहर जरा पैमाने से।
आज़ पता लग रहा है शायरी के माने क्या होते हैं और शायर के पीने पिलाने का शौक क्या!
     एक महफ़िल में मैं ओम पुरी से बिल्कुल दूर जा बैठा था।उस महफ़िल में हाड़ा सा भी थे वो भी समझते थे मैं पीने वाले लोगों को दूर से ही सलाम करता हूं। लेकिन यक़ीनन वो दिन बहुत पाकीज़ा था कैफ़ भोपाली जी के किस्से मैंने सुने वो इंसानियत की मिसाल थे। खैर वो महफ़िल और बहक कर कैफ़ सा और मयूर सा का कहना वाह वाह। मैंने फिर एक मुक्तक प्रस्तुत किया –
 बेहिजाबी हिजाब तक पहुंची
  ये तजल्ली नक़ाब तक पहुंची
 देखकर तेरी मस्त नज़रों को
 मेरी तबियत शराब तक पहुंची
     कैफ़ सा बोले ” अरे वाह पंडित जी खूब बिना दो घूंट लिए ऐसा लिख देते हो, हमने खूब पी पर ऐसा नहीं लिख सकते”. मैं जानता था यह हौसला अफजाई थी पहले के लोग ऐसे ही हुआ करते थे। क्या लोग थे वो। मैंने कैफ़ सा से फिल्म “पाकीज़ा” के दौरान कुछ लिखा तो पढ़ने की इल्तज़ा की,वो बोले लो एक शेर जिंदगी में याद करोगे –
 फूल से लिपटी हुई तितली को हटाकर देखो
  आंधियों तुमने दरख्तों को गिराया होगा।
गाड़ी आगे बढ़ रही थी । कलाम भी उरूज़ पर थे हम एक दूसरे को सुनते सुनाते घर आ गए थे। आलेख देश के बहुत बड़े बाल साहित्यकार और साहिर लुधियानवी के जबरदस्त फैन गाज़ियाबाद के रजनी कान्त शुक्ला जी को उनकी चाहत पर।
—————
जितेंद्र निर्मोही
वरिष्ठ साहित्यकार, कोटा

मकर संक्रांति का खगोलीय एवँ वैदिक महत्व

मकर संक्रांति भारत में एक प्रमुख त्योहार है, जिसे खगोलीय दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसे सूर्य के उत्तरायण (उत्तर की ओर बढ़ना) का आरंभ भी माना जाता है।  वेदों, उपनिषदों और सूर्य संहिता में मकर संक्रांति को केवल एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि आत्मा, प्रकृति और ब्रह्मांड के बीच संतुलन का प्रतीक माना गया है। यह दिन हमें हमारे आध्यात्मिक और भौतिक जीवन को संतुलित करने की शिक्षा देता है। हर साल मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इसे ‘सिंक्रोनाइज्ड खगोलीय घटना’ माना जाता है। यह घटना सूर्य के खगोलीय भूमध्य रेखा (celestial equator) से उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ने का प्रतीक है। इसी के साथ दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं।

मकर संक्रांति को सूर्य के उत्तरायण होने की शुरुआत माना जाता है। खगोलशास्त्र में, उत्तरायण वह समय है जब सूर्य पृथ्वी के उत्तरी भाग की ओर अपने झुकाव को बढ़ाना शुरू करता है।
यह उत्तर गोलार्ध के लिए “सकारात्मक ऊर्जा” और “समृद्धि” का संकेत देता है। मकर संक्रांति सूर्य की गति पर आधारित त्योहार है।  यह सर्दियों के सोल्सटाइस (Winter Solstice) के बाद आता है, जब सूर्य अपनी न्यूनतम दक्षिणी स्थिति से उत्तर की ओर बढ़ना शुरू करता है। हालांकि, मकर संक्रांति हर साल 14 या 15 जनवरी को होती है, जबकि सोल्सटाइस 21 या 22 दिसंबर को होता है। इसका कारण सौर कैलेंडर और ग्रेगोरियन कैलेंडर में अंतर है।

यह समय भारत में रबी फसल की कटाई का प्रतीक है।  सूर्य की बदलती स्थिति से दिन में धूप अधिक मिलती है, जिससे खेती के लिए आदर्श मौसम बनता है।

सूर्य का मकर राशि में प्रवेश ऊर्जा के प्रवाह को दर्शाता है। खगोलशास्त्रियों के अनुसार, यह पृथ्वी की अक्षीय झुकाव (axial tilt) और सूर्य के चारों ओर परिक्रमा का नतीजा है।

मकर संक्रांति खगोलीय, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण घटना है। यह केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि प्रकृति और खगोल विज्ञान से जुड़ी एक अद्भुत परंपरा है।

मकर संक्रांति का मूल भारतीय ग्रंथों में एक गहरा आध्यात्मिक और खगोलीय आधार है। वेदों, उपनिषदों और सूर्य संहिता जैसे प्राचीन ग्रंथों में इस दिन को प्रकृति, खगोलशास्त्र और आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ जोड़ा गया है।

ऋग्वेद और यजुर्वेद जैसे ग्रंथों में सूर्य की महिमा और उसकी ऊर्जा के महत्व को कई जगह बताया गया है।  सूर्य को जीवन का स्रोत और उन्नति का प्रतीक माना गया है। मकर संक्रांति पर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश को अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा (तमसो मा ज्योतिर्गमय) का प्रतीक समझा गया है।

भगवद गीता (8.24 अध्याय) में भगवान कृष्ण ने कहा है कि उत्तरायण के दौरान आत्मा जब शरीर त्यागती है, तो वह मोक्ष को प्राप्त करती है।  कठोपनिषद में सूर्य को आत्मा का प्रतीक माना गया है। सूर्य के उत्तरायण होने को आध्यात्मिक ऊर्जा के उदय और आत्मज्ञान की ओर बढ़ने का समय बताया गया है। यह समय साधना, योग और ध्यान के लिए अत्यंत अनुकूल माना गया है।

सूर्य संहिता (खगोलशास्त्र और ज्योतिष पर आधारित ग्रंथ) में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश को महत्वपूर्ण खगोलीय घटना के रूप में बताया गया है। यह दिन सूर्य की गति और उसके प्रभाव का अध्ययन करने के लिए आदर्श माना गया है। मकर संक्रांति को ऋतु चक्र के परिवर्तन और फसल चक्र से जोड़ा गया है। वेदों और सूर्य संहिता के अनुसार, मकर संक्रांति पर सूर्य की ऊर्जा अधिक सकारात्मक मानी जाती है। यह ऊर्जा न केवल प्राकृतिक जीवन बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस समय विशेष रूप से सूर्य को अर्घ्य देने, गंगा स्नान और दान का महत्व बताया गया है।

इंडिया फॉर चिल्ड्रेन को प्रतिष्ठित ‘स्वामी विवेकानंद सम्मान’

बाल अधिकारों के सवाल को देश की मुख्य धारा की मीडिया में जोरदारी से स्थापित करने वाली मीडिया और संचार एजेंसी इंडिया फॉर चिल्ड्रेन को प्रतिष्ठित ‘स्वामी विवेकानंद पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा में भारतीय युवा संसद के अवसर पर केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल उरांव ने इंडिया फॉर चिल्ड्रेन को शांति श्रेणी के तहत यह पुरस्कार प्रदान किया। ये पुरस्कार शांति, पर्यावरण और सेवा श्रेणियों में दिए जाते हैं जिनका चयन विशेषज्ञों की समिति करती है। एमिटी यूनिवर्सिटी के सहयोग से सोशल रिफॉर्म्स एंड रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (एसआरआरओ) ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था।

सामाजिक बदलाव और बच्चों के मुद्दों को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए पुरस्कार विजेताओं के प्रयासों की सराहना करते हुए केंद्रीय मंत्री जुएल उरांव ने स्वामी विवेकानंद को उद्घृत करते हुए कहा “उठो! जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।” उन्होंने कहा, “स्वामीजी के ये शब्द आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि ये युवाओं में आत्मनिर्भरता, अनुशासन और सामूहिक विकास की भावना जगाते हैं, जो हमारे देश का भविष्य हैं।”

बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली देश की एकमात्र मीडिया एजेंसी इंडिया फॉर चिल्ड्रेन के निदेशक अनिल पांडेय ने पुरस्कार के लिए आभार व्यक्त करते हुए कहा, “यह सम्मान संगठन के प्रयासों व इसकी विश्वसनीयता की पुष्टि करने के साथ ही देश के हरेक बच्चे के अधिकारों की रक्षा के लिए हमारे प्रयासों को जारी रखने की हमारी ज़िम्मेदारी को और भी बढ़ा देता है। बाल अधिकारों के मुद्दों को मुख्यधारा के मीडिया में सबसे आगे लाने का हमारा मिशन अब तक सफलता भरा रहा है। हमने एक ऐसा इकोसिस्टम विकसित किया है जहां डिजिटल, प्रिंट और सोशल मीडिया मंचों पर बाल संरक्षण एक प्राथमिकता बन गया है।” उन्होंने कहा, “हमारे प्रयासों के ठोस परिणाम सामने आए हैं। आज मीडिया की धारणा में उल्लेखनीय बदलाव आया है जिससे भारत में बच्चों के मुद्दों के अब ज्यादा स्थान मिलने लगा है। हमें विश्वास है कि हमारे प्रयासों से बच्चों के खिलाफ अपराध – विशेष रूप से बाल विवाह, बाल यौन शोषण, बाल मजदूरी और बच्चों की ट्रैफिकिंग की रोकथाम के प्रयासों में मदद मिलेगी।”

साल 2017 में स्थापित इंडिया फॉर चिल्ड्रेन, देश भर में 250 से अधिक गैरसरकारी संगठनों (एनजीओ) के साथ साझेदारी में बाल संरक्षण और बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। इंडिया फॉर चिल्ड्रेन प्रिंट, डिजिटल, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया मंचों पर बच्चों के मुद्दों को उजागर करने के अलावा मीडिया मीट और मीडिया कार्यशालाओं का आयोजन करने के साथ ही बाल विवाह, बच्चों की ट्रैफिकिंग, यौन शोषण और बाल श्रम के खिलाफ जागरूकता के प्रसार के लिए फिल्में और वीडियो भी बनाता है। अकेले 2024 में, इंडिया फॉर चिल्ड्रेन ने इन मुद्दों पर 10,000 से अधिक मीडिया कवरेज हासिल की है जिनमें से बहुत सी खबरें अखबारों के फ्रंट पेज और टीवी चैनलों के प्राइम टाइम पर थी। ऑनलाइन पहुंच लाखों लोगों तक रही।

सम्मान समारोह में एमिटी लॉ स्कूल के अध्यक्ष डॉ डी के बंद्योपाध्याय, एडिशनल डायरेक्टर डॉ. शेफाली रायजादा, समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु स्वामी विशालानंद, सामाजिक बदलाव के वाहक आध्यात्मिक गुरु प्रदीप भैयाजी और आयोजन समिति के संयोजक प्रमोद कुमार और प्रसिद्ध टीवी पत्रकार दिनेश गौतम भी उपस्थित थे।

विस्तृत जानकारी के लिए संपर्क करें-
जितेंद्र परमार
8595950825

दुल्ला भट्टी की याद में मनाया जाता है लोहड़ी का पर्व

लोहड़ी का पर्व एक राजपूत योद्धा दुल्ला भट्टी कि याद में पtरे पंजाब और उत्तर भारत में मनाया जाता है। लोहड़ी की शुरुआत के बारे में मान्यता है कि यह राजपूत शासक दुल्ला भट्टी द्वारा गरीब कन्याओं सुन्दरी और मुंदरी की शादी करवाने के कारण शुरू हुआ है. दरअसल दुल्ला भट्टी पंजाबी आन का प्रतीक है. पंजाब विदेशी आक्रमणों का सामना करने वाला पहला प्रान्त था ।ऐसे में विदेशी आक्रमणकारियों से यहाँ के लोगों का टकराव चलता था .
दुल्ला भट्टी का परिवार मुगलों का विरोधी था.वे मुगलों को लगान नहीं देते थे. मुगल बादशाह हुमायूं ने दुल्ला के दादा सांदल भट्टी और पिता का वध करवा दिया..
दुल्ला इसका बदला लेने के लिए मुगलों से संघर्ष करता रहा. मुगलों की नजर में वह डाकू था लेकिन वह गरीबों का हितेषी था. मुगल सरदार आम जनता पर अत्याचार करते थे और दुल्ला आम जनता को अत्याचार से बचाता था.
दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उस समय पंजाब में स्थान स्थान पर हिन्दू लड़कियों को यौन गुलामी के लिए बल पूर्वक मुस्लिम अमीर लोगों को बेचा जाता था।
दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न सिर्फ मुक्त करवाया बल्कि उनकी शादी भी हिन्दू लडको से करवाई और उनकी शादी कि सभी व्यवस्था भी करवाई।
सुंदर दास नामक गरीब किसान भी मुगल सरदारों के अत्याचार से त्रस्त था. उसकी दो पुत्रियाँ थी सुन्दरी और मुंदरी. गाँव का नम्बरदार इन लडकियों पर आँख रखे हुए था और सुंदर दास को मजबूर कर रहा था कि वह इनकी शादी उसके साथ कर दे.
सुंदर दास बाह्मण  ने अपनी समस्या दुल्ला भट्टी को बताई. दुल्ला भट्टी ने इन लडकियों को अपनी पुत्री मानते हुए नम्बरदार को गाँव में जाकर ललकारा. उसके खेत जला दिए और लडकियों की शादी वहीं कर दी।जहाँ सुंदर दास बाह्मण चाहता था. इसी के प्रतीक रुप में रात को आग जलाकर लोहड़ी मनाई जाती है.!!
दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया। कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी।  वैसे तो हिन्दु शादी मे 7 फेरे होते है पर उस वख्त जब सुन्दर मुन्दरी की चौथा फेरा हो रहा था तो मुगलो ने दूल्ले को गोली मरवा दी थी और लोगो ने इसी 4 फेरे वाली शादी को ही सम्पूर्ण मान लिया था, तभी से पँजाबी हिन्दु शादी मे 4 फेरे लेते है और बाकी भारत मे 7 फेरे ली जाती है ।इसी कथा की हमायत करता लोहड़ी का यह गीत है, जिसे लोहड़ी के दिन गाया जाता है :
सुंदर मुंदरिए – हो तेरा कौन विचारा-हो
दुल्ला भट्टी वाला-हो
दुल्ले ने धी ब्याही-हो
सेर शक्कर पाई-हो
कुडी दे बोझे पाई-हो
कुड़ी दा लाल पटाका-हो
कुड़ी दा शालू पाटा-हो
शालू कौन समेटे-हो
चाचा गाली देसे-हो
चाचे चूरी कुट्टी-हो
जिमींदारां लुट्टी-हो
जिमींदारा सदाए-हो
गिन-गिन पोले लाए-हो
इक पोला घिस गया जिमींदार वोट्टी लै के नस्स गया – हो!
दुल्ला भट्टी मुगलों कि धार्मिक नीतियों का घोर विरोधी था। वह सच्चे अर्थों में धर्मनिरपेक्ष था.उसके पूर्वज संदल बार रावलपिंडी के शासक थे जो अब पकिस्तान में स्थित हैं। वह सभी पंजाबियों का नायक था। आज भी पंजाब(पाकिस्तान)में बड़ी आबादी भाटी राजपूतों की है जो वहां के सबसे बड़े जमीदार हैं।
लोहड़ी दी लख लख बधाईया..

वर्ष 1979, जनवरी का महीना था। पश्चिम बंगाल के दलदली सुंदरबन डेल्टा में मरीचझापी नामक द्वीप पर बांग्लादेश से भागे करीब 40,000 शरणार्थी एकत्रित हो चुके थे। मुख्यतः नामशूद्र दलित हिंदुओं का यह समूह उस महापलायन के क्रम में छोटी-सी एक कड़ी थी जिसमें बंग्लादेश बन जाने के बाद से लगभग 1 करोड़ उत्पीड़ित हिंदू भारत आकर विभिन्न स्थानों पर बस चुके हैं।

जिन विस्थापितों की पैरवी कर कम्युनिस्टों ने पश्चिम बंगाल में अपनी राजनीतिक ज़मीन मज़बूत की थी, सत्ता में आने के बाद उन्हीं शरणार्थियों के प्रति वामपंथी सरकार का रवैया उपेक्षा से हटकर क्रूरता तक पहुँच गया।

लोहड़ी का पर्व एक राजपूत योद्धा दुल्ला भट्टी कि याद में पुरे पंजाब और उत्तर भारत में मनाया जाता है। लोहड़ी की शुरुआत के बारे में मान्यता है कि यह राजपूत शासक दुल्ला भट्टी द्वारा गरीब कन्याओं सुन्दरी और मुंदरी की शादी करवाने के कारण शुरू हुआ है. दरअसल दुल्ला भट्टी पंजाबी आन का प्रतीक है. पंजाब विदेशी आक्रमणों का सामना करने वाला पहला प्रान्त था ।ऐसे में विदेशी आक्रमणकारियों से यहाँ के लोगों का टकराव चलता था।

दुल्ला भट्टी का परिवार मुगलों का विरोधी था.वे मुगलों को लगान नहीं देते थे. मुगल बादशाह हुमायूं ने दुल्ला के दादा सांदल भट्टी और पिता का वध करवा दिया..
दुल्ला इसका बदला लेने के लिए मुगलों से संघर्ष करता रहा. मुगलों की नजर में वह डाकू था लेकिन वह गरीबों का हितेषी था. मुगल सरदार आम जनता पर अत्याचार करते थे और दुल्ला आम जनता को अत्याचार से बचाता था.
दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उस समय पंजाब में स्थान स्थान पर हिन्दू लड़कियों को यौन गुलामी के लिए बल पूर्वक मुस्लिम अमीर लोगों को बेचा जाता था।
दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न सिर्फ मुक्त करवाया बल्कि उनकी शादी भी हिन्दू लडको से करवाई और उनकी शादी कि सभी व्यवस्था भी करवाई।
सुंदर दास नामक गरीब किसान भी मुगल सरदारों के अत्याचार से त्रस्त था. उसकी दो पुत्रियाँ थी सुन्दरी और मुंदरी. गाँव का नम्बरदार इन लडकियों पर आँख रखे हुए था और सुंदर दास को मजबूर कर रहा था कि वह इनकी शादी उसके साथ कर दे.
सुंदर दास बाह्मण  ने अपनी समस्या दुल्ला भट्टी को बताई. दुल्ला भट्टी ने इन लडकियों को अपनी पुत्री मानते हुए नम्बरदार को गाँव में जाकर ललकारा. उसके खेत जला दिए और लडकियों की शादी वहीं कर दी।जहाँ सुंदर दास बाह्मण चाहता था. इसी के प्रतीक रुप में रात को आग जलाकर लोहड़ी मनाई जाती है.!!
दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया। कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी।  वैसे तो हिन्दु शादी मे 7 फेरे होते है पर उस वख्त जब सुन्दर मुन्दरी की चौथा फेरा हो रहा था तो मुगलो ने दूल्ले को गोली मरवा दी थी और लोगो ने इसी 4 फेरे वाली शादी को ही सम्पूर्ण मान लिया था, तभी से पँजाबी हिन्दु शादी मे 4 फेरे लेते है और बाकी भारत मे 7 फेरे ली जाती है ।इसी कथा की हमायत करता लोहड़ी का यह गीत है, जिसे लोहड़ी के दिन गाया जाता है :
सुंदर मुंदरिए – हो तेरा कौन विचारा-हो
दुल्ला भट्टी वाला-हो
दुल्ले ने धी ब्याही-हो
सेर शक्कर पाई-हो
कुडी दे बोझे पाई-हो
कुड़ी दा लाल पटाका-हो
कुड़ी दा शालू पाटा-हो
शालू कौन समेटे-हो
चाचा गाली देसे-हो
चाचे चूरी कुट्टी-हो
जिमींदारां लुट्टी-हो
जिमींदारा सदाए-हो
गिन-गिन पोले लाए-हो
इक पोला घिस गया जिमींदार वोट्टी लै के नस्स गया – हो!
दुल्ला भट्टी मुगलों कि धार्मिक नीतियों का घोर विरोधी था। वह सच्चे अर्थों में धर्मनिरपेक्ष था.उसके पूर्वज संदल बार रावलपिंडी के शासक थे जो अब पकिस्तान में स्थित हैं। वह सभी पंजाबियों का नायक था। आज भी पंजाब(पाकिस्तान)में बड़ी आबादी भाटी राजपूतों की है जो वहां के सबसे बड़े जमीदार हैं।
लोहड़ी दी लख लख बधाईया..

महाकुंभ में भव्य लेज़र वॉटर स्क्रीन शो का शुभारम्भ

उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में तथा पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री जयवीर सिंह की पहल पर महाकुम्भ-2025 में लगभग 22 करोड़ रूपये की लागत से श्रद्धालुओं के मनोरंजन के लिए पर्यटन विभाग द्वारा स्थापित लेजर शो एवं एक विशेष लेज़र वॉटर स्क्रीन प्रोजेक्शन लाइट और साउंड शो का उद्घाटन आज  शाम किया गया। जिसे टेमफ्लो सिस्टम्स, गाज़ियाबाद ने आधुनिक तकनीक के माध्यम से महाकुंभ की प्राचीन गाथाओं को प्रभावशाली और सजीव रूप में प्रस्तुत किया।

यह जानकारी पर्यटन विभाग के प्रवक्ता ने दी। उन्हांेने बताया कि यमुना नदी के तट पर बोट क्लब के पास स्थित काली घाट पर प्रदर्शित इस शो के दौरान पानी की स्क्रीन पर उभरती अद्भुत छवियों ने प्रयागराज और महाकुंभ की ऐतिहासिक और धार्मिक गाथाओं को जीवंत कर दिया। दर्शकों को इन पवित्र स्थलों की दिव्यता और ऐतिहासिक महत्व का अनुभव करने का अनूठा अवसर प्राप्त हुआ। शो में दिखाए गए दृश्य और ध्वनि ने श्रद्धालुओं को महाकुंभ के गौरवशाली अतीत में खो जाने का अवसर दिया। आम नागरिक इस शो का बिना किसी टिकिट के मुफ्त में आनंद ले सकते हैं। रोज़ शाम 7 से 9 बजे के बीच दो शो दिखाए जायेंगे और हर शो कि अवधि 45 मिनट होंगी।

कार्यक्रम के दौरान सभी आगंतुक लोगों ने इस अभिनव पहल की सराहना की और इसे संस्कृति व परंपरा के संरक्षण का उत्कृष्ट उदाहरण बताया।

यह शो, जो आधुनिक तकनीक और सांस्कृतिक महत्व का संगम है, महाकुंभ 2025 के मुख्य आकर्षणों में से एक बन गया।

महाकुंभ में संस्कृति मंत्रालय का कलाग्राम

अद्वितीय सांस्कृतिक उत्सव: लगभग 15,000 प्रख्यात कलाकार महाकुंभ में प्रस्तुति देंग

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी, 2025 तक आयोजित होने वाला महाकुंभ एक ऐतिहासिक आयोजन होगा, जिसमें दुनिया भर से 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आएंगे। आध्यात्मिकता, परंपरा और सांस्कृतिक विरासत का यह पवित्र संगम एक बार फिर भारत की एकता और भक्ति की चिरस्थायी भावना की पुष्टि करेगा। यूनेस्को द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त महाकुंभ, केवल एक आयोजन नहीं है, बल्कि एक गहन अनुभव है जो सीमाओं को पार करता है और दुनिया भर के लोगों को एकजुट करता है।

4,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह मेला भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं और उन्नत संगठनात्मक क्षमताओं के सामंजस्यपूर्ण मिश्रण का प्रतिनिधित्व करता है। इसके केंद्र में शाही स्नान है, जो गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम पर किया जाने वाला एक अनुष्ठानिक स्नान है , जिसे पापों को धोने और आध्यात्मिक मुक्ति प्रदान करने वाला माना जाता है। ज्योतिषीय रूप से महत्वपूर्ण, महाकुंभ सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति से जुड़े दुर्लभ खगोलीय संरेखण द्वारा निर्धारित किया जाता है , जो भारत के प्राचीन ज्ञान की गहराई को दर्शाता है। पौराणिक कथाओं में निहित और लाखों लोगों द्वारा पूजी जाने वाली यह कालातीत परंपरा ब्रह्मांडीय शक्तियों और मानवीय आध्यात्मिकता के बीच संबंध को रेखांकित करती है।

महाकुंभ में कलाग्राम: सीमाओं से परे एक उत्सव

महाकुंभ में संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा स्थापित कलाग्राम, भारत की विविधता में एकता को दर्शाता है, कला, आध्यात्मिकता और संस्कृति को एक अविस्मरणीय अनुभव में पिरोता है। उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से, यह पहल भक्तों और आगंतुकों के लिए एक परिवर्तनकारी यात्रा की पेशकश करते हुए अपनी विरासत को संरक्षित करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है।

महाकुंभ 2025 में कलाग्राम एक आयोजन से कहीं अधिक है – यह भारत के गौरवशाली अतीत और जीवंत वर्तमान का जीवंत कैनवास है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करने के लिए तैयार है।

शिल्प, भोजन और सांस्कृतिक प्रदर्शनों के माध्यम से कलाग्राम राष्ट्र की कालातीत परंपराओं को प्रदर्शित करने तथा कलात्मक प्रतिभा के साथ आध्यात्मिकता का सम्मिश्रण करने की संस्कृति मंत्रालय की प्रतिबद्धता का प्रमाण है।

आगंतुकों का स्वागत 35 फुट चौड़े तथा 54 फुट ऊंचे भव्य प्रवेश द्वार से होगा, जो 12 ज्योतिर्लिंगों के जटिल चित्रण और भगवान शिव द्वारा हलाहल का सेवन करने की पौराणिक कथा से सुसज्जित है , जो आंतरिक यात्रा के लिए एक राजसी माहौल तैयार करता है।

जीवंत कलाग्राम में 10,000 क्षमता वाला भव्य गंगा पंडाल होगा, साथ ही एरियल, झूंसी और त्रिवेणी क्षेत्रों में तीन अतिरिक्त मंच होंगे, जिनमें प्रत्येक में 2,000 से 4,000 दर्शकों के बैठने की व्यवस्था होगी।

अनुभूति मंडपम : एक अद्भुत 360° दृश्य और ध्वनि अनुभव गंगा अवतरण के दिव्य अवतरण को जीवंत करता है तथा एक आध्यात्मिक और संवेदी चमत्कार का सृजन करता है।
अविरल शाश्वत कुंभ प्रदर्शनी क्षेत्र : एएसआई , आईजीएनसीए और इलाहाबाद संग्रहालय जैसी संस्थाओं द्वारा क्यूरेट किया गया यह क्षेत्र कलाकृतियों , डिजिटल डिस्प्ले और पोस्टर प्रदर्शनियों के माध्यम से कुंभ मेले के समृद्ध इतिहास और महत्व को बयां करता है ।

संस्कृति मंत्रालय और उत्तर प्रदेश सरकार एक उल्लेखनीय सहयोग के तहत एक अद्वितीय सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे हैं। इस भव्य कार्यक्रम में लगभग 15,000 कलाकार शामिल होंगे, जिनमें प्रतिष्ठित पद्म पुरस्कार विजेता और संगीत नाटक अकादमी के सम्मानित कलाकार शामिल होंगे, जो ऐतिहासिक शहर प्रयागराज में कई मंचों पर प्रस्तुति देंगे।

चार धाम की अद्भुत पृष्ठभूमि से सुसज्जित 104 फुट चौड़ा और 72 फुट गहरा मंच इस उत्सव का मुख्य आकर्षण होगा।
इस कार्यक्रम में हमारे समय के कुछ सर्वाधिक प्रसिद्ध कलाकार प्रस्तुति देंगे, जिनमें शामिल हैं:

शंकर महादेवन
मोहित चौहान
कैलाश खेर
हंस राज हंस
हरिहरन
कविता कृष्णमूर्ति
मैथिली ठाकुर

दर्शकों को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और श्रीराम भारतीय कला केंद्र द्वारा भव्य कलाग्राम मंच पर एक सप्ताह तक विशेष प्रस्तुतियों का भी आनंद मिलेगा।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और इलाहाबाद संग्रहालय सहित प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा संग्रहित सांस्कृतिक और ऐतिहासिक खजानों का अन्वेषण किया जा सकेगा।

शास्त्रीय नृत्यों से लेकर जीवंत लोक परंपराओं तक, ये प्रदर्शन कला और आध्यात्मिकता का एक ऐसा ताना-बाना बुनने का वादा करते हैं, जो संस्कृति की सार्वभौमिक भाषा के माध्यम से भक्तों और आगंतुकों को एकजुट करता है। यह अद्वितीय उत्सव लाखों लोगों पर एक अमिट छाप छोड़ेगा, उनकी आध्यात्मिक यात्रा को समृद्ध करेगा और भारत की कालातीत विरासत का सम्मान करेगा।

एनजेडसीसी (हरिद्वार) : लकड़ी की मूर्तियाँ, पीतल के शिवलिंग, ऊनी शॉल।
डब्ल्यूजेडसीसी (पुष्कर) : मिट्टी के बर्तन, कठपुतलियां, लघु चित्रकारी।
ईजेडसीसी (कोलकाता) : टेराकोटा मूर्तियाँ, पट्टचित्र, कांथा कढ़ाई।
एसजेडसीसी (कुंभकोणम) : तंजौर चित्रकारी, रेशमी वस्त्र, मंदिर आभूषण।
एनसीजेडसीसी (उज्जैन) : जनजातीय कला, चंदेरी साड़ियाँ, पत्थर की नक्काशी।
एनईजेडसीसी (गुवाहाटी) : बाँस शिल्प, असमिया रेशम, आदिवासी आभूषण।
एससीजेडसीसी (नासिक) : पैठानी साड़ियाँ, वर्ली कला, लकड़ी की कलाकृतियाँ।

दिव्य चमत्कार और बौद्धिक संलग्नता

एस्ट्रोनाइट स्काई : आकाशीय तारों के अवलोकन सत्र चुनिंदा रातों में मंत्रमुग्ध कर देने वाला ब्रह्मांडीय संबंध प्रदान करेंगे।
पुस्तक प्रदर्शनियाँ : साहित्य अकादमी और क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा आयोजित इन प्रदर्शनियों में कालातीत साहित्यिक कृतियाँ प्रदर्शित की जाएँगी।
सांस्कृतिक वृत्तचित्र : आईजीएनसीए , एसएनए और जेडसीसी द्वारा निर्मित ये फिल्में भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत की गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करेंगी।

प्रौद्योगिकी और प्रभावशाली व्यक्तियों के माध्यम से वैश्विक पहुँच

# महाकुंभ2025 की वैश्विक पहुँच को बढ़ाने के लिए, संस्कृति मंत्रालय प्रभावशाली लोगों के साथ सहयोग कर रही है और डिजिटल प्लेटफॉर्म का लाभ उठा रही है। आकर्षक सामग्री, काउंटडाउन पोस्ट और केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत और टेक्निकल गुरुजी के बीच एक विशेष बातचीत ने परंपरा और प्रौद्योगिकी के मिश्रण को उजागर किया है, जिसने दुनिया भर के दर्शकों के बीच उत्साह पैदा किया है।

महाकुंभ 2025 न केवल भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का उत्सव होगा, बल्कि देश की संगठनात्मक क्षमताओं, सुरक्षा उपायों और स्थिरता के प्रति प्रतिबद्धता में भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। यह लाखों लोगों के लिए एक परिवर्तनकारी अनुभव होने का वादा करता है, जो कालातीत परंपराओं को प्रदर्शित करता है, जिससे महाकुंभ भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक नेतृत्व का प्रतीक बन जाता है।

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उपराष्ट्रपति ने कहा, हम अपने देश में बहुत जल्दी, बिना कोई सवाल पूछे, किसी को भी आदर्श मान लेते हैं

गुरुग्राम। उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने कहा कि, “मानव संसाधन की अपरिहार्यता एक मिथक है। यह विचार कि “आपके बिना चीजें काम नहीं कर सकतीं” सत्य नहीं है। ईश्वर ने आपकी दीर्घायु की सीमा पहले ही निर्धारित कर दी है। इसलिए, उन्होंने यह भी तय कर दिया है कि आप अपरिहार्य नहीं हो सकते।”

युवाओं से स्वयं पर विश्वास करने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा, “…स्वयं पर विश्वास रखें। कोई भी जीवित प्राणी तब तक आपके सम्मान का हकदार नहीं है, जब तक आप उनमें कोई गुण न देखें। चापलूस या पाखंडी बनने की इच्छा कभी नहीं होनी चाहिए। हमें अपने सोचने के तरीके की सराहना करनी चाहिए। हो सकता है कि हम सही हों, हो सकता है कि हम गलत हों। हमेशा दूसरे के दृष्टिकोण को सुनें। यह सोचकर निर्णयात्मक न बनें कि आप अकेले ही सही हैं। हो सकता है कि आपको सुधार की आवश्यकता हो। हो सकता है कि दूसरे के दृष्टिकोण से आपको पता चले कि क्या हो सकता है।”

गुरुग्राम में मास्टर्स यूनियन के चौथे दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में छात्रों और संकाय सदस्यों को संबोधित करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “यह हमारे देश में एक बहुत ही सरल चीज है। हम बहुत जल्दी किसी को आदर्श मान लेते हैं और उसे किसी का प्रतीक बना देते हैं और हम कभी अपने से नहीं पूछते कि वह एक महान वकील क्यों हैं, वह एक महान नेता क्यों हैं, वह एक महान डॉक्टर क्यों हैं, वह एक महान पत्रकार क्यों हैं। हम बस यह मान लेते हैं कि यह है…आपको सवाल पूछना चाहिए, क्यों? एक समय था, जब कौन व्यापार करता था? व्यापारिक परिवार थे, व्यापारिक खानदान थे, उनके गढ़ थे, केवल वे ही इसे करते थे, ठीक वैसे ही जैसे सामंती प्रभु शासन करते थे। लोकतंत्र ने राजनीति को लोकतांत्रिक बनाया। अब, आप देश के आर्थिक, औद्योगिक, वाणिज्यिक और व्यावसायिक परिदृश्य का लोकतंत्रीकरण करने जा रहे हैं। आज, आप एक बड़ी छलांग लगा रहे हैं – मेरे शब्दों पर ध्यान दें, आपको वंश की आवश्यकता नहीं है, आपको परिवार के नाम की आवश्यकता नहीं है, आपको पारिवारिक पूंजी की आवश्यकता नहीं है, आपको एक विचार की आवश्यकता है और वह विचार किसी का विशेष क्षेत्र नहीं है।”

देश की नौकरशाही की क्षमता को रेखांकित करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा कि, “दुनिया की आबादी का छठा हिस्सा भारत में रहता है और इसका सबसे बड़ा लाभ इसकी नौकरशाही है। हमारे पास बेहतरीन मानव संसाधन, नौकरशाही है, जो कोई भी बदलाव ला सकती है, बशर्ते उसका नेतृत्व सही कार्यपालिका करे, जो काम करने में सुगमता प्रदान करे और बाधा न डाले।”

लोकतंत्र को प्रभावी बनाने में युवाओं की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए तथा सांसदों और जन प्रतिनिधियों के कर्तव्यों को दोहराते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “आप मुझे संविधान सभा की याद दिलाते हैं, क्योंकि दो वर्ष, 11 महीने और कुछ दिनों तक संविधान सभा ने 18 सत्रों में विवादास्पद मुद्दों, विभाजनकारी मुद्दों, कठिन मुद्दों पर विचार किया। आम सहमति बनाना आसान नहीं था, लेकिन वे बहस, संवाद, विचार-विमर्श और चर्चा में विश्वास करते थे। उन्होंने कभी व्यवधान और गड़बड़ी में भाग नहीं लिया। और इसलिए, जब मैं यहां अनुशासन की बात करता हूं, तो मुझे संसदीय माहौल की कमी महसूस होती है। लेकिन मुझे यकीन है कि हमारे युवाओं के पास अब सोशल मीडिया के माध्यम से यह कमांड है कि वे हमारे सांसदों और जनप्रतिनिधियों के लिए यह मजबूरी बना देंगे कि वे अपनी शपथ का पालन करें। उन्हें अपने संवैधानिक कार्यों का पालन करना चाहिए। उन्हें अपने दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए।”

एक दशक में हुए आर्थिक विकास और लोगों की अपेक्षाओं में हुई वृद्धि का उल्लेख करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “लोगों ने 10 वर्षों में विकास का स्वाद चखा है। 50 करोड़ लोग बैंकिंग समावेशन में शामिल हो रहे हैं, 17 करोड़ लोगों को गैस कनक्शन मिल रहा है, 12 करोड़ घरों में शौचालय बन रहे हैं। अब उनकी प्यास और बढ़ गई है। उनकी अपेक्षाएं धीरे-धीरे नहीं, बल्कि तेजी से बढ़ रही हैं, हमारा भारत बदल रहा है। हमारे भारत ने मेरे जैसे लोगों के लिए इतना कुछ बदल दिया है, जिसकी हमने कभी कल्पना नहीं की थी, सपना नहीं देखा था, सोचा नहीं था। हमारा भारत आज दुनिया के लिए एक मिसाल बन गया है। दुनिया में किसी भी देश ने पिछले एक दशक में भारत जितना स्थिर विकास नहीं किया है…अब लोगों की अपेक्षाएं बहुत अधिक हैं। उन अपेक्षाओं को पूरा करना होगा। आपको लीक से हटकर सोचना होगा।”

उन्होंने आगे कहा, “आप शासन के सबसे प्रभावशाली हितधारक हैं। आप विकास के इंजन हैं। अगर भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनना है, तो हमें विकसित भारत बनना होगा। चुनौती बहुत बड़ी है। हम पहले से ही पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था हैं… लेकिन आय को आठ गुना बढ़ाना होगा। यह एक बड़ी चुनौती है।”

इस अवसर पर लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के चांसलर श्री अशोक कुमार मित्तल, मास्टर्स यूनियन के संस्थापक श्री प्रथम मित्तल, बोर्ड मास्टर्स यूनियन के बोर्ड सदस्य श्री विवेक गंभीर, छात्र, संकाय और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी मौजूद थे।

पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के गरपंचकोट क्षेत्र में पंचेट पहाड़ी के ऊपर नई वेधशाला

पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के गरपंचकोट क्षेत्र में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान एस.एन. बोस सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज (एस.एन.बी.सी.बी.एस.) की ओर से पंचेट पहाड़ी के ऊपर स्थापित नई वेधशाला खगोलीय पिंडों के वैज्ञानिक अवलोकन में महत्वपूर्ण रूप से सहायक होगी। यहां पर छात्रों को दूरबीनों के संचालन और आंकड़ों को रिकॉर्ड करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। साथ ही, इस वेधशाला के माध्यम से खगोलीय अनुसंधान में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शुरु किया जाएगा और सबसे महत्वपूर्ण रूप से दो ध्रुवों के बीच इस क्षेत्र में अध्ययन की कमी को दूर किया जाएगा ।

यह वेधशाला जमीन से 600 मीटर की ऊंचाई पर और लगभग 86 डिग्री पूर्वी देशांतर पर स्थित है। यह पूर्वी भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया की एक प्रमुख वेधशाला होगी। उत्तर में आर्कटिक महासागर से लेकर दक्षिण में अंटार्कटिका तक फैले 86 डिग्री पूर्वी देशांतर पर बहुत कम वेधशालाएं हैं। यह वेधशाला उस कमी को दूर करेगी। प्रसिद्ध खगोल भौतिक विज्ञानी और अशोका विश्वविद्यालय के कुलपति का मानना है कि कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक चलने वाली अस्थायी खगोलीय घटनाओं के अवलोकन के लिए दुनिया के सभी देशांतरों पर अच्छी वेधशालाओं का होना आवश्यक है। इसलिए, पंचेट वेधशाला रणनीतिक रूप से स्थित है।

एसएन बोस केंद्र ने वेधशाला को मिलकर चलाने और संसाधनों को साझा करने के उत्तरदायित्व के लिए सिद्धू कानू बिरसा विश्वविद्यालय के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।

एसकेबी विश्वविद्यालय में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए उद्घाटन के अवसर पर एसएन बोस सेंटर की निदेशक डॉ. तनुश्री साहा-दासगुप्ता ने कहा कि यह इस केंद्र के लिए गौरव का पल है और उन्हें उम्मीद है कि यह केंद्र अवलोकन संबंधी खगोल विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम होगा।

उद्घाटन समारोह में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के वित्तीय सलाहकार श्री विश्वजीत सहाय ने कहा कि एक वेधशाला सदैव अपने आसपास के क्षेत्र में अपना तंत्र निर्मित करती है और पंचेट वेधशाला से भी यही उम्मीद है।

एसकेबी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. पवित्र कुमार चक्रवर्ती ने कहा कि पश्चिम बंगाल का पिछड़ा जिला माने जाने वाले पुरुलिया में इस स्तर की वेधशाला विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए प्रोत्साहन का एक बड़ा स्रोत हो सकती है।

एस.एन. बोस सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज के खगोल भौतिकी विभाग के डॉ. रामकृष्ण दास, डॉ. सौमेन मंडल और डॉ. तपस बाग ने 2018 में औपचारिक रूप से भूमि के अधिग्रहण के बाद वेधशाला की अवधारणा, लेआउट और इसको चालू करने का काम शुरू किया था। इसके निर्माण स्थल की तैयारी, खगोलीय ‘दृश्य’ और मौसम के मापदंडों का निर्धारण तथा वैज्ञानिक अवलोकन के लिए 14 इंच की दूरबीन लगाना उनके कार्यों में शामिल था।

एसएनबीसीबीएस के शासी निकाय के अध्यक्ष डॉ. बीएन जगताप, रघुनाथपुर के एसडीओ श्री विवेक पंकज और इस केंद्र के वैज्ञानिकों ने उपस्थित रहकर और वर्चुअल तरीके से वेधशाला के उद्घाटन में भाग लिया।