Tuesday, November 26, 2024
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बांग्लादेश के कपड़ा उद्योग का क्या होगा

बांग्लादेश में इस वक़्त चल रही राजनीतिक उठा-पटक और कम क़ीमत वाले रेडीमेड कपड़ों (RMG) के निर्यात पर निर्भरता की वजह से बांग्लादेश की आर्थिक स्थिरता को ख़तरा पैदा हो गया है. इससे विविधता और लचीलापन लाने की ज़रूरत और उजागर हो गई है

अपनी आज़ादी के 53 वर्षों के भीतर ही बांग्लादेश दक्षिण एशिया के सबसे ग़रीब देशों में से एक से आने वाले दौर के ‘एशियाई टाइगर’ में तब्दील हो गया है. 1971 में अपनी आज़ादी की ख़ूनी लड़ाई और 1970 के भयानक चक्रवात से मची तबाही के साथ सफ़र शुरू करने के बावजूद, बांग्लादेश ने आर्थिक विकास और ख़ास तौर से बने बनाए कपड़ों (RMG) के मामले में काफ़ी अहम छलांगें लगाई हैं. बांग्लादेश के आर्थिक परिवर्तन की शुरुआत 2000 के देश में हुई थी. अगर हम कोरोना की महामारी के दौर को छोड़ दें तो, 2011 से उसकी GDP विकास दर लगातार 6 प्रतिशत से ऊपर रहती आई है.

एक दौर में कृषि पर निर्भर अर्थव्यवस्था से बांग्लादेश ने बड़े नाटकीय ढंग से अपनी तरक़्क़ी का रुख़ मोड़ा है. 1970 के दशक के शुरुआती दौर में बांग्लादेश की GDP में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत हुआ करती थी. लेकिन, तब से अब तक ये हिस्सेदारी घटकर केवल 12 फ़ीसद रह गई है. अब देश की GDP में उद्योगों की हिस्सेदारी बढ़कर 33 प्रतिशत हो गई है, वहीं सेवा क्षेत्र अब 55 प्रतिशत का योगदान करता है. इससे पता चलता है कि बांग्लादेश ने व्यापार के उदारीकरण और औद्योगिक प्रगति के मामले में व्यापक संरचनात्मक सुधार किए हैं.

पहले कृषि के लिए ज़रूरी कच्चा माल आयात करने से अब निर्माण क्षेत्र का कच्चा माल आयात करने तक बांग्लादेश रेडीमेड कपड़ों के निर्यात से होने वाली आमदनी पर बहुत अधिक निर्भर है. स्टील, केमिकल और परिवहन के उपकरण जैसे निर्माण के सेक्टर को बढ़ावा नहीं देने की वजह से आज बांग्लादेश की आमदनी और उसके भविष्य के विकास पर ख़तरे के बादल मंडरा रहे हैं.

रेडीमेड कपड़ों का सेक्टर बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. देश को निर्यात से होने वाली कुल आमदनी में से 84 प्रतिशत हिस्सेदारी इसी सेक्टर की है. रेडीमेड कपड़ों के सेक्टर ने काफ़ी उल्लेखनीय प्रगति की है. 2011 में जहां इसका निर्यात 14.6 अरब डॉलर था, वहीं 2019 में ये बढ़कर 33.1 अरब डॉलर पहुंच गया था. यानी इस सेक्टर की सालाना चक्रवृद्धि विकास दर 7 प्रतिशत रही है. हालांकि, कम क़ीमत वाले कपड़ों पर ज़ोर की वजह से बांग्लादेश का रेडीमेड कपड़ा उद्योग वैश्विक बाज़ार के उतार चढ़ावों के लिहाज़ से हमेशा नाज़ुक स्थिति में रहता है. कोविड-19 की महामारी और रूस-यूक्रेन के युद्ध का असर इस पर साफ़ दिखा.

बांग्लादेश के आर्थिक परिवर्तन की शुरुआत 2000 के देश में हुई थी. अगर हम कोरोना की महामारी के दौर को छोड़ दें तो, 2011 से उसकी GDP विकास दर लगातार 6 प्रतिशत से ऊपर रहती आई है.

अपनी उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद बांग्लादेश का रेडीमेड कपड़ा उद्योग ऐसी कई अहम चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो इसके दूरगामी स्थायित्व के लिए ख़तरा बन सकते हैं. उद्योग के संचालन की बढ़ती लागत और मूलभूत ढांचे की कमियां इसकी राह की बड़ी चुनौतियां हैं. वहीं, वियतनाम जैसे देशों से बढ़ रही कड़ी टक्कर इसे और जटिल बना रही है. यही नहीं, कपड़ा उद्योग का कम मज़दूरी वाले श्रमिकों पर बहुत अधिक निर्भर होना और निर्यात के लिए पश्चिमी देशों के बाज़ारों का मुहताज होना, बांग्लादेश के निर्यात में विविधता की फ़ौरी ज़रूरत को ही उजागर करते हैं

इसी साल जुलाई महीने में बांग्लादेश में उस वक़्त विरोध प्रदर्शन भड़क उठे थे, जब न्यायपालिका ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना सरकार के 2018 के फ़ैसले को पलटते हुए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की एक व्यवस्था हाल के दिनों में बहाल कर दिया था. इस व्यवस्था के तहत सरकारी नौकरियों का 30 प्रतिशत हिस्सा मुक्ति योद्धाओं के परिवारों और दूसरे समूहों के लिए आरक्षित किया गया था. बहुत से छात्रों का तर्क था कि आरक्षण की इस व्यवस्था से क़ाबिलियत पर आधारित अवसर सीमित हो जाते हैं. युवाओं के बीच भयंकर बेरोज़गारी और आर्थिक ठहराव के बीच, विरोध प्रदर्शन बढ़ते गए. पुलिस और सरकार समर्थकों की प्रदर्शनकारियों से हिंसक भिड़ंत हुई, जिसकी वजह से सैकड़ों लोग मारे गए और इससे शेख़ हसीना को इस्तीफ़ा देकर देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.

बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शनों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी निंदा हुई थी. उम्मीद के मुताबिक़, जब जुलाई में आरक्षण व्यवस्था को लेकर सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे थे, तब अमेरिका ने भी बांग्लादेश से कहा था कि वो शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के अधिकारों का सम्मान करे. जनवरी में लगातार चौथी बार चुनाव जीतने के बाद से शेख़ हसीना सरकार के लिए ये सबसे बड़ी चुनौती थी. 3 अगस्त को बांग्लादेश में एक बार फिर प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर पड़े. वो जुलाई में हुई हिंसा में मारे गए 200 से ज़्यादा लोगों के लिए इंसाफ़ मांग रहे थे. इस दौरान सरकार समर्थकों और पुलिस के साथ हुई भिड़ंत में लगभग सौ लोग और मारे गए. इसके बाद पूरे देश में हिंसा भड़क उठी. सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन चला रहे लोग शेख़ हसीना का इस्तीफ़ा मांगने लगे. और सोमवार को आख़िरकार शेख़ हसीना को इस्तीफ़ा देकर देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा.

युवाओं के बीच भयंकर बेरोज़गारी और आर्थिक ठहराव के बीच, विरोध प्रदर्शन बढ़ते गए. पुलिस और सरकार समर्थकों की प्रदर्शनकारियों से हिंसक भिड़ंत हुई, जिसकी वजह से सैकड़ों लोग मारे गए और इससे शेख़ हसीना को इस्तीफ़ा देकर देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.

मानव अधिकार संगठन और अमेरिका एवं ब्रिटेन समेत पश्चिमी देशों की सरकारों ने प्रदर्शनकारियों को सख़्ती से कुचलने और उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनने की कड़ी आलोचना की थी. इशसे पहले शेख़ हसीना ने अमेरिका पर आरोप लगाया था कि वो बांग्लादेश में सरकार बदलने की साज़िश रच रहा है. शेख़ हसीना ने दावा किया था कि इस साज़िश का मक़सद लोकतंत्र को उखाड़ फेंकना और एक अलोकतांत्रिक सरकार को सत्ता में लाना है. संसद में शेख़ हसीना के इस भाषण के बाद से अमेरिका ने मानव अधिकारों के उल्लंघन के आरोपों को लेकर उनकी पार्टी अवामी लीग की और बारीक़ी से पड़ताल करनी शुरू कर दी थी.

इससे पहले जुलाई 2024 में यूरोपीय संघ ने बांग्लादेश के साथ व्यापारिक संबंधों में सहयोग और साझेदारी के नए समझौते (PCA) और विकास की पहलों में मदद बढ़ाने के इरादे से होने वाली बातचीत को स्थगित कर दिया था. यूरोपीय संघ, बांग्लादेश का एक अहम व्यापारिक साझीदारी है और 2023 में बांग्लादेश के कुल व्यापार में EU की हिस्सेदारी 20.7 प्रतिशत थी. यूरोपीय संघ ने बातचीत को नवंबर तक स्थगित करते हुए छात्रों की अगुवाई वाले आंदोलन से निपटने के तौर तरीक़ों को लेकर शेख़ हसीना सरकार की आलोचना भी की थी. यूरोपीय संघ ने मानव अधिकारों और प्रशासन को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए थे.

बांग्लादेश के घरेलू मामलों में पश्चिमी देशों की दख़लंदाज़ी के बावजूद, किसी भी पक्ष द्वारा कड़ा क़दम उठाने का बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर बहुत विपरीत असर पड़ सकता है. निर्यात पर आधारित बांग्लादेश की विकास दर पश्चिमी देशों को निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर है. ऐसे में अगर बांग्लादेश के ऊपर कोई प्रतिबंध लगते हैं या व्यापार में कुछ पाबंदियां लगाई जाती हैं, तो इनका बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है. ऐसे में बांग्लादेश के लिए पश्चिमी देशों के साथ कूटनीतिक संतुलन बनाए रखना ज़रूरी है, ताकि वो किसी तरह के प्रतिबंध लगने से ख़ुद को बचा सके और आर्थिक स्थिरता को बनाए रख सके.

बांग्लादेश के रेडीमेड कपड़ा उद्योग के आयात में पश्चिमी देशों का दबदबा इस बात से ज़ाहिर है कि पश्चिमी देश और विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ उस पर किस तरह से नियंत्रण रखते हैं. इसका बड़ा संकेत बांग्लादेश के बाज़ार की निर्भरता से ज़ाहिर होता है, क्योंकि उसके कपड़ा उद्योग का लगभग 80 प्रतिशत निर्यात इन पश्चिमी बाज़ारों को ही जाता है. कम लागत और बांग्लादेश के कपड़ा कारखानों की व्यापक उत्पादन क्षमता की वजह से पश्चिम के बड़े कपड़ा ब्रांडों के साथ बांग्लादेश का संबंध सामरिक आपूर्तिकर्ता वाला है. रेडीमेड कपड़ा उद्योग बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होने की वजह से ये निर्यात से आमदनी और रोज़गार में बड़ा योगदान देता है. फिर भी, इससे पश्चिमी देशों की मांग, वहां के बाज़ार और बांग्लादेश को लेकर इन देशों की राय पर बांग्लादेश की निर्भरता भी उजागर होती है.

वैसे तो पश्चिमी देश, बांग्लादेश के रेडीमेड कपड़ा उद्योग की स्थिरता में बड़ा योगदान देते हैं. पर इससे बांग्लादेश की बाहरी आर्थिक दबावों और नैतिकता की पड़ताल के आगे कमज़ोरी भी उजागर हो जाती है. इसलिए, बांग्लादेश को चाहिए कि वो अपने निर्यात और आयात के सेक्टरों में सामरिक विविधता और लचीलापन लाने का प्रयास करे, ताकि दूरगामी अवधि में अपनी आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित कर सके. निर्यात के लिए कपड़ों के अलावा दूसरे सामानों पर ज़ोर देने और व्यापारिक साझीदारों में विविधता लाकर कुछ ख़ास देशों पर निर्भरता कम करके बांग्लादेश अपनी अर्थव्यवस्था में ख़लल पड़ने से ख़ुद को बचा सकता है. इसी तरह, आयात के स्रोतों में विविधता लाकर बांग्लादेश ज़रूरी सामानों की आपूर्ति स्थिर बनाए रख सकता है और भू-राजनीतिक तनावों और आपूर्ति श्रृंखलाओं में आने वाली बाधाओं के सामने अपनी कमज़ोरियों को भी कम कर सकता है.

(सौम्या भौमिक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में एसोसिएट फेलो हैं। उनका शोध सतत विकास और वैश्वीकरण अर्थशास्त्र पर केंद्रित है। वह अपनी पीएचडी कर रहे हैं और जादवपुर विश्वविद्यालय, कोलकाता और एंटवर्प विश्वविद्यालय, बेल्जियम (वैश्वीकरण और यूरोपीय एकीकरण के अर्थशास्त्र में विशेषज्ञता) से अर्थशास्त्र में डबल मास्टर डिग्री प्राप्त की है। उन्हें पहले जापान सरकार की JASSO छात्रवृत्ति, टोक्यो फाउंडेशन की SYLFF फ़ेलोशिप और यूरोपीय आयोग की EMJMD फ़ेलोशिप से सम्मानित किया गया था। सौम्य ने विभिन्न सहकर्मी-समीक्षित पत्रिकाओं में कई पत्र प्रकाशित किए हैं और द हिंदू बिजनेस लाइन, इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली, द डिप्लोमैट, काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस, द टेलीग्राफ, फर्स्टपोस्ट, ढाका ट्रिब्यून, ईस्ट एशिया फोरम, फॉर्च्यून ,  इंडिया, द क्विंट और इंडिया टुडे समेत अन्य  जैसे  प्रकाशनों  में नियमित लेखन करते रहे हैं।)

 
साभार-https://www.orfonline.org/hindi/ से 

2036 में कितनी होगी भारत की जनसंख्या

भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने “भारत में महिलाएं और पुरुष 2023” शीर्षक वाली अपनी पुस्तिका का 25वां अंक जारी किया।

यह पुस्तिका एक व्यापक और अंतर्दृष्टिपूर्ण दस्तावेज है जो भारत में महिलाओं और पुरुषों की स्थिति के बारे में समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करने का प्रयास करता है और जनसंख्या, शिक्षा, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था में भागीदारी, निर्णय लेने में सहभागिता आदि जैसे विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला पर डेटा प्रदान करता है। यह जेंडर, शहरी-ग्रामीण विभाजन और भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग डेटा प्रस्तुत करता है, जो महिलाओं और पुरुषों के विभिन्न समूहों के बीच विद्यमान असमानताओं को समझने में मदद करता है। पुस्तिका में विभिन्न मंत्रालयों/विभागों/संगठनों के प्रकाशित आधिकारिक डेटा से प्राप्त महत्वपूर्ण संकेतक शामिल हैं।

“भारत में महिलाएं और पुरुष 2023” न केवल लैंगिक समानता की दिशा में की गई प्रगति को रेखांकित करता है, बल्कि उन क्षेत्रों की भी पहचान करता है जहां महत्वपूर्ण अंतर बने हुए हैं। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक संकेतकों की जांच करके, पुस्तिका समय के साथ रुझानों का कुछ विश्लेषण प्रस्तुत करती है और इस प्रकार नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं और आम जनता को सूचित निर्णय लेने और जेंडर-संवेदनशील नीतियों के विकास में योगदान करने में मदद करती है।

यह रिपोर्ट भारत में महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए जनसांख्यिकीय परिवर्तनों और उनके निहितार्थों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है। यह लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और यह सुनिश्चित करने की वकालत और कार्रवाई करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करता है कि विकास प्रयास समावेशी और टिकाऊ हों।

“भारत में महिलाएं और पुरुष 2023” मंत्रालय की वेबसाइट (https://mospi.gov.in/) पर उपलब्ध है।

पुस्तिका के कुछ मुख्य अंश इस प्रकार हैं:
2036 तक भारत की जनसंख्या के 152.2 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है, महिला प्रतिशत 2011 के 48.5 प्रतिशत की तुलना में मामूली वृद्धि के साथ 48.8 प्रतिशत होगा। संभवतः प्रजनन क्षमता में गिरावट के कारण 15 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों का अनुपात 2011 की तुलना में 2036 में घटने का अनुमान है। इसके विपरीत, इस अवधि के दौरान 60 वर्ष और उससे अधिक आयु की आबादी के अनुपात में अधिक वृद्धि होने का अनुमान है।

2036 में भारत की जनसंख्या में 2011 की जनसंख्या की तुलना में स्त्रियों की संख्या अधिक होने की उम्मीद है, जैसा कि जेंडर अनुपात में परिलक्षित होता है, जिसके 2011 में 943 से बढ़कर 2036 तक 952 होने का अनुमान है। यह लैंगिक समानता में सकारात्मक प्रवृत्ति को दर्शाता है।

यह स्पष्ट है कि 2016 से 2020 तक, 20-24 और 25-29 आयु वर्ग में आयु विशिष्ट प्रजनन दर क्रमशः 135.4 और 166.0 से घटकर 113.6 और 139.6 हो गई है। उपरोक्त अवधि के लिए 35-39 आयु के लिए एएसएफआर 32.7 से बढ़कर 35.6 हो गया है, जो दर्शाता है कि जीवन में व्यवस्थित होने के बाद, महिलाएं परिवार के विस्तार पर विचार कर रही हैं।
2020 में किशोर प्रजनन दर निरक्षर आबादी के लिए 33.9 थी, जबकि साक्षर लोगों के लिए 11.0 थी। यह दर उन लोगों के लिए भी अत्यधिक कम है जो साक्षर हैं, लेकिन निरक्षर महिलाओं की तुलना में बिना किसी औपचारिक शिक्षा के (20.0) के हैं। यह तथ्य महिलाओं को शिक्षा प्रदान करने के महत्व पर फिर से जोर देता है।

मातृत्व मृत्यु दर (एमएमआर) एसडीजी संकेतकों में से एक है और इसे 2030 तक 70 तक लाया जाना एसडीजी ढांचे में स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है। सरकार के निरंतर प्रयासों के कारण, भारत ने समय रहते अपने एमएमआर (2018-20 में 97/लाख जीवित शिशु) को कम करने का प्रमुख मील का पत्थर सफलतापूर्वक हासिल कर लिया है और एसडीजी लक्ष्य को भी हासिल करना संभव होना चाहिए।

शिशु मृत्यु दर में पिछले कुछ वर्षों में पुरुष और महिला दोनों के लिए कमी आ रही है। महिला आईएमआर हमेशा पुरुषों की तुलना में अधिक रही है, लेकिन 2020 में, दोनों 1000 जीवित शिशु पर 28 शिशुओं के स्तर पर बराबर थे। 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर के आंकड़ों से पता चलता है कि यह 2015 में 43 से घटकर 2020 में 32 हो गई है। यही स्थिति लड़के और लड़कियों दोनों के लिए है और लड़के तथा लड़कियों के बीच का अंतर भी कम हुआ है।

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की श्रम बल भागीदारी दर 2017-18 से पुरुष और महिला दोनों आबादी के लिए बढ़ रही है। यह देखा गया है कि 2017-18 से 2022-23 के दौरान पुरुष एलएफपीआर 75.8 से बढ़कर 78.5 हो गया है और इसी अवधि के दौरान महिला एलएफपीआर 23.3 से बढ़कर 37 हो गई है।
15वें राष्ट्रीय चुनाव (1999) तक, 60 प्रतिशत से कम महिला मतदाताओं ने भाग लिया, जिसमें पुरुषों का मतदान 8 प्रतिशत अधिक था। हालांकि, 2014 के चुनावों में महिलाओं की भागीदारी बढ़कर 65.6 प्रतिशत हो गई और 2019 के चुनावों में यह और अधिक बढ़कर 67.2 प्रतिशत हो गई। पहली बार, महिलाओं के लिए मतदान प्रतिशत थोड़ा अधिक रहा, जो महिलाओं में बढ़ती साक्षरता और राजनीतिक जागरूकता के प्रभाव को दर्शाता है।· उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग ने जनवरी 2016 में अपनी स्थापना के बाद से दिसंबर 2023 तक कुल 1,17,254 स्टार्ट-अप को मान्यता दी है। इनमें से 55,816 स्टार्ट-अप महिलाओं द्वारा संचालित हैं, जो कुल मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप का 47.6 प्रतिशत है। यह महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व भारत के स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में महिला उद्यमियों के बढ़ते प्रभाव और योगदान को रेखांकित करता है।

ये वो झंडा है जो देश में सबसे पहले 15 अगस्त 1947 को फहराया गया था

चेन्नई के फोर्ट सेंट जॉर्ज संग्रहालय में 12 फीट लंबा और 8 फीट चौड़ा झंडा सुरक्षित रखा गया है। हमारा यह अनमोल राष्ट्रीय खजाना 15 अगस्त, 1947 को फहराए गए पहले झंडों में से एक है। यह भारत का एकमात्र संरक्षित और सुरक्षित राष्ट्रीय झंडा है, जिसे 1947 में फहराया गया था। यह झंडा भारत के लोगों द्वारा स्वतंत्रता हासिल करने के लिए किए गए समग्र संघर्ष का प्रमाण है। यह शुद्ध रेशम से बना है और इसकी लंबाई लगभग 3.50 मीटर और चौड़ाई 2.40 मीटर है। यह झंडा 15 अगस्त, 1947 को सुबह 5.30 बजे फोर्ट सेंट जॉर्ज में फहराया गया था। संग्रहालय में भारतीय स्वतंत्रता गैलरी भी भारतीय ध्वज के विकास और तिरंगे के पीछे की गाथाओं को प्रदर्शित करती है।

फोर्ट सेंट जॉर्ज में ब्रिटिश बस्ती और उसके बाद फोर्ट सेंट जॉर्ज के आसपास के कई मूल गांवों और यूरोपीय बस्तियों को मद्रास शहर में विलय करके इसके विस्तार से आधुनिक शहर “चेन्नई” का उद्भव हुआ।  यहाँ फोर्ट सेंट जॉर्ज संग्रहालय को स्थापित किया गया, जिसे 31 जनवरी, 1948 से इसे जनता के लिए खोल दिया गया। किले में बिखरे राज के अवशेषों को संरक्षित करने के लिए इस इमारत में संग्रहालय स्थापित करने का विचार 1946 में पुराने मद्रास गार्ड के कर्नल डी.एम. रीड द्वारा रखा गया था। संग्रहालय के रिसेप्शन पर एक चित्र है, जो किले के विकास और 1640 से इसके निर्माण को दर्शाता है। इस संग्रहालय में अब औपनिवेशिक काल की तीन हजार पांच सौ से अधिक कलाकृतियां मौजूद हैं। उनमें से सबसे अच्छी कलाकृतियों को नौ दीर्घाओं में प्रदर्शित किया गया है।

लहू से लिखी कुर्बानी

(स्वतंत्रता दिवस पर विशेष )
दोहराती हूं सुनो लहू से लिखी कुर्बानी,
जिसके कारण धूल भी चंदन है राजस्थानी।
9 मई सन् 1540 का सूरज स्वर्णिम रश्मियां बिखेर रहा था,
दिल्ली में सरताज का सिंहासन डोल रहा था।
सिसोदिया राजवंश में मुगलों का काल जन्मा था,
मेवाड़ मुकुटमणी महाराणा प्रताप जिनका नाम था।
अकबर का दुर्ग में संदेसा आया,
सुन जिसको मेवाड़ी शौर्य पर अंधियारा छाया।
“हमारी अधीनता स्वीकार कर लो,
सियासत हमें समर्पित कर दो,
शाही फरमान न माना तो बहुत पछताओगे,
मेवाड़ी मुकुट की शान न बचा पाओगे,
राणा का शीश कटा पाओगे।”
सुन फरमां बिजली की तरह  क्षितिज तक फैल गया अंबर में,
क्रोध से लरजा राणा का शौर्य ज्वाला बन दौड़ा रक्तधार में।
“गर धरा की आन गई घाव नहीं भरने का,
उठो वीरों !समय आ गया कट मर स्वाभिमान बचाने का ।
एकलिंग की शपथ!
महाप्रलय के घोर प्रभंजन भी अब न रोक पाएंगे,
परचम सिसोदिया राजवंश का ही फहराएंगे।”
बजा कूच का शंख,हर-हर महादेव की ध्वनि लहराई,
सज गए हाथी-घोड़े,सैनिकों ने जय-जयकार लगाई।
शब्द-शब्द राणा का था तूफानी,
अकबर देखेगा अब केसरिया तलवारों का पानी।
जिसके कारण धूल भी चंदन है राजस्थानी,
दोहराती हूं सुनो लहू से लिखी कुर्बानी।
हल्दीघाटी की माटी हुई सुभट अभिमानी,
लाडला आ गया समर करने बन गई क्षत्राणी।
मानसिंह के लाखों सैनिक राणा के चंद सेनानी,
छांट-छांट शीश हलाल कर रहे बन दरिया तूफानी।
बज चले नभ में बरछे, भाले,शर, तरकस,तलवार,
रक्त अरी का पीने को मातृभूमि रही थी जीभ पसार।
चौकड़ी भर-भर चेतक शत्रु का मस्तक फोड़ा था,
तन पर उसके जो राणा का कोड़ा था।
महारूद्र सा गरजा करने को मातृभूमि का सतित्व अभिमानी,
लाल रंग से स्नान कर बन गया शूरवीर अमर-सेनानी।
जिसके कारण धूल भी चंदन है राजस्थानी,
दोहराती हूं सुनो लहू से लिखी कुर्बानी।
अकबर मचला था पानी में आग लगा देने को,
पर पानी प्यासा बैठा था ज्वाला पी लेने को।
धम्मक-धम्मक धमक गया हाथी रामप्रसाद हिमगिरि बनने को,
शंकर का डमरु बन तांडव मचाया मेवाड़ी मान बचाने को।
सूंड में पकड़ तलवार अरी पर कर रहा वार- पे -वार,
मुगलों के अनेकों हाथी दिए पसार।
भीषण रण से दहली दिल्ली की दीवारें,
शत्रु ने रच डाली चक्रव्यूह की लकीरें।
फंस गया वीर सेनानी हुसैन खां का बंदी बना,
यह देख मातृभूमि का सीना चीत्कार उठा!
“अरे कायरों!नीच बांगडों ,छल से क्या रण करते हो?
किस बूते जवां मर्द बनने का दम भरते हो?”
मानो मां पर अंबर ने अग्निशिरा छोड़ा था,
भेंट अनूठी देख अकबर का सीना हुआ चौड़ा था।
अश्रुधार में नहाया हाथी पुकारा गया जब पीरप्रसाद,
स्वामी से बिछुड छा गया घोर अवसाद।
अकबर के छप्पन भोग को मुंह तक ना लगाया था,
त्याग अन्न-जल शहादत की लिख गया नई अमर-गाथा था।
देख यह अकबर का अंतस मन भर आया,
“जिसके हाथी को मैं ना झुका पाया ,उसके स्वामी को क्या झुकाऊंगा?”
कह अकबर भी फूट-फूट कर रोया था।
एक-एक कर कुर्बान हो गए सभी मेवाड़ी पशु सेनानी,
राणा पर लेकिन रंचक आंच न आने पाई।
चेतक-हाथी की शहादत पर भारत मां भी रोई थी,
उसने अपनी दो प्यारी ज्वलंत मणियां खोई थी।
धन्य-धरा ,धन्य-मेवाड़ ,धन्य-बलिदानी!
बस यही है स्वामीभक्ति, शौर्य ,पराक्रम, देशप्रेम की सच्ची कहानी,
जिसके कारण धूल भी चंदन है राजस्थानी,
दोहराती हूं सुनो लहू से लिखी कुर्बानी।

डॉ. श्रीवास्तव की पुस्तक का जयपुर में विमोचन

कोटा । डॉ. एस. आर. रंगानाथन की 132 वी जयंती पर जयपुर मे राष्ट्रीय पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस पर राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय कोटा के संभागीय पुस्तकालयाध्यक्ष डा. दीपक कुमार श्रीवास्तव की पुस्तक का विमोचन जयपुर मे हुआ | “फ्रोम केआस टू क्लेरीटी – ए प्रेक्टीकल एप्रोच टू इन्फोरमेशन मेनेजमेंट “पुस्तक विमोचन समारोह जयपुर स्थित निदेशालय भाषा एवं पुस्तकालय विभाग जयपुर मे हुआ | समारोह मे डॉ. मृदुला चतुर्वेदी विशेषाधिकारी भाषा एवं पुस्तकालय विभाग, डा. रेणुका राठौर उपनिदेशक (अनुवाद) भाषा एवं पुस्तकालय विभाग, संदीप यादव उपनिदेशक भाषा एवं पुस्तकालय विभाग ने विमोचन किया |

यह पुस्तक वर्किंग लाईब्रेरी प्रोफेशन्ल्स को सूचना प्रबंधन के प्रायोगिक पक्ष से रूबरू कराती है | इसने कुल 13 अध्याय है जिसमे प्रमुखत: वर्किंग लाईब्रेरी प्रोफेशनल्स के समक्ष सूचना प्रबन्ध में आने वाली चुनौतिया एवं उनके समाधान के साथ भविष्य की संभावनाओ पर भी फोकस किया गया है। पुस्तक मे केस स्टडीज शामिल होने से पुस्तक मे प्रामाणिकता पर खरा उतरने का प्रयास किया गया। अतिथियों ने डॉ श्रीवास्तव की इस पुस्तक की सराहना की और कहा कि यह पुस्तक लाईब्रेरी से जुड़े हुये प्रोफेशनल्स वर्तमान की स्थितियो और उनकी संभावनाओ को समझने और जानने का मौका मिलेगा |

समारोह मे जयपर मण्डल पुस्तकालयाध्यक्ष पवन पारीक, रामगंजमण्डी से जिला पुस्तकालय अध्यक्ष कैलाश राव एवं बारा के कनिष्ठ सहायक रामेश्वर शर्मा सहित अन्य मौजूद रहे |

Dr. D. K. Shrivastava
INELI South Asia Mentor
IFLA WALL OF FAME ACHIEVER
Divisional Librarian and Head
Govt. Divisional Public Library Kota (Rajasthan)-324009
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Cell No.+91 96947 83261

Librarians Save lives by handling the right books at right time to a kid in need.

गुजरात के मुख्यमंत्री श्री पटेल ने ‘डाक चौपाल’ पर जारी किया विशेष आवरण एवं विरूपण

अहमदाबाद। डाक विभाग द्वारा आवश्यक सरकारी और नागरिक-केंद्रित सेवाओं को जन-जन तक पहुँचाने हेतु हर जिले में डाक चौपाल‘ का आयोजन किया जा रहा है। गुजरात में डाक चौपाल के प्रति लोगों को जागरूक और प्रेरित करने के उद्देश्य से गुजरात के माननीय मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्रभाई पटेल द्वारा नया सचिवालयस्वर्णिम संकुलगांधीनगर में डाक चौपाल पर एक विशेष आवरण एवं विरूपण जारी किया गया। अहमदाबाद मुख्यालय परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव और गांधीनगर मंडल के प्रवर अधीक्षक डाकघर श्री पियूष रजक भी इस अवसर पर उपस्थित रहे।

मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्रभाई पटेल ने डाक चौपाल‘ अभियान की सराहना करते हुए कहा कि डाक चौपाल जनमानस और सरकारी कार्यों के बीच महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम करेंगेजिससे दूरी और पहुँच जैसी बाधाएँ कम होंगी। माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में डाक विभाग की भूमिका में तमाम सकारात्मक बदलाव आये हैं। ऐसे मेंइस पहल का उद्देश्य आवश्यक सरकारी और नागरिक-केंद्रित सेवाओं को समाज के अंतिम छोर तक ले जाना हैजिसका फायदा गुजरात की जनता और सभी लाभार्थियों को मिलेगा। केंद्रीय सेवाओं के साथ-साथ राज्य स्तर की विभिन्न सामाजिक एवं कल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी एक छत के नीचे प्राप्त हो सकेगा।

अहमदाबाद मुख्यालय परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि 15 अगस्त को हर डाकघर में स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने के साथ ही डाक चौपाल‘ के माध्यम से सरकार की तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं और इनके लाभों के प्रति लोगों को जागरूक किया जायेगा। डिजिटल इण्डियावित्तीय समावेशन और अंत्योदय की संकल्पना से समाज के अंतिम व्यक्ति को जोड़ने हेतु गुजरात में विभिन्न जगहों पर डाक चौपाल का आयोजन किया जा रहा है। इनमें ‘सरकारी सेवाएँ आपके द्वार’ के तहत वित्तीय सेवायेंबीमापेमेन्ट्स बैंक सेवायेंडीबीटीई कॉमर्स और निर्यात सेवाएँ सहित तमाम नागरिक केंद्रित सेवाओं के प्रति जागरूकता के साथ लोगों को जोड़ा जा रहा है।

विश्व संवाद केंद्र-मुंबई का ‘देवर्षि नारद पत्रकारिता पुरस्कार 2024’ 17 अगस्त को

मुंबई।   विश्व संवाद केंद्र, मुंबई हर वर्ष पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले पत्रकारों को ‘देवर्षि नारद पत्रकारिता पुरस्कार’ से सम्मानित करता है. गतवर्ष विजेता पत्रकारों को महाराष्ट्र के महामहिम राज्यपाल श्री रमेश बैस द्वारा सम्मानित किया गया था. इस वर्ष का यह बहुप्रतीक्षित पुरस्कार शनिवार, 17 अगस्त 2024 को होना निश्चित हुआ है और इस समारोह के मुख्य अतिथि श्री.ब्रजेश कुमार सिंह (IPS ) महानिदेशक सूचना एवं जनसंपर्क महानिदेशालय,महाराष्ट्र सरकार होंगे.

विश्व संवाद केंद्र, मुंबई के मुख्य संवाद अधिकारी डॉ. निशीथ क. भांडारकर ने  बताया कि इस समारोह का यह 23वां वर्ष है और इसी तारतम्य में इस वर्ष पत्रकारिता और सोशल मीडिया क्षेत्र से जुड़े 8 लोगों को इस पुरस्कार के लिए चुना गया है. देवर्षि नारद पत्रकारिता पुरस्कार समिति के सदस्य सुश्री अश्विनी मयेकर (कार्यकारी संपादक- साप्ताहिक विवेक), श्री प्रसाद काथे (संपादक – जय महाराष्ट्र टीवी चैनल), श्री प्रणव भोंदे(पूर्व संपादक विश्व संवाद केंद्र, मुंबई)  ने श्री सुधीर जोगलेकर (पूर्व निवासी संपादक- लोकसत्ता) की अध्यक्षता में पुरस्कार के विजेताओं का चयन किया है.

वरिष्ठ पत्रकार श्री अजीत गोगटे और एबीपी माझा न्यूज चैनल की रिपोर्टर सुश्री प्रज्ञा पोवले को पत्रकारिता में उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया जाएगा.

कोंकण इतिहास और संस्कृति, साहित्य आंदोलन, पर्यटन, प्रकृति और पर्यावरण जैसे सामाजिक जागरूकता के मुद्दों पर ब्लॉग लिख रहे चिपलून के श्री धीरज वाटेकर को, वहीं मुंबई तरुण भारत के श्री अक्षय मांडवकर को, महाराष्ट्र में वन और वन्यजीव संरक्षण पर तथ्यात्मक समाचार और वीडियो रिपोर्टिंग के लिए युवा पत्रकार श्रेणी में पुरस्कार प्रदान किया जाएगा.

फेसबुक व अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर निरंतर लिखने वाले श्री ओमकार दाभाडकर को, जिन्होंने स्त्रीपुरुष भेदभाव व जातिगत भेदभाव को खत्म करने के तथा समानता जैसे मुद्दों पर नई पीढ़ी को आकर्षित करने वाले उनके लेखन के लिए जाना जाता है. वहीं श्री गौरव ठाकुर, जो भारतीय इतिहास, राजनीति, विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर शोध कर यूट्यूब पर अपने वीडियो प्रसारित करते हैं, को और जो इंस्टाग्राम में अपने भोजन कट्टा हैंडल के माध्यम से समाज की सामाजिक समस्याओं को समाज के सामने लातें हैं उन्हें, साथ ही मराठी लघु उद्यमियों को प्रोत्साहित करने वाले सचिन गायकवाड़ को इस वर्ष देवर्षि नारद पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.

साथ ही, इस अवसर पर मुंबई विश्वविद्यालय के मराठी पत्रकारिता की मेधावी छात्रा सुश्री वनश्री राडये को भी सम्मानित किया जाएगा.

यह समारोह 17 अगस्त सुबह 11:00 बजे कीर्ति कॉलेज ऑडिटोरियम, काशीनाथ धुरु रोड, वीर सावरकर मार्ग, दादर (पश्चिम), मुंबई में आयोजित किया जाएगा। सम्मानित पत्रकारों को इस समारोह में नगद धनराशि, सम्मानपत्र तथा महावस्त्र देकर पुरस्कृत किया जाता है.

अग्रवाल समाज युवक-युवती परिचय सम्मेलन संपन्न

मुंबई। मुंबई अग्रवाल सामूहिक विवाह सम्मेलन द्वारा आयोजित युवक-युवती परिचय सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ. परिचय सम्मेलन रविवार 11 अगस्त को मुंबई में गोरेगांव (प.) के अजन्ता पार्टी हॉल में आयोजित किया गया।  यह परिचय सम्मेलन अग्रवाल, महेश्वरी, खंडेलवाल एवं अग्रवाल जैन के 35 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के अविवाहित एवं तलाकशुदा युवक- युवती, परित्यक्त-परित्यक्ता, विधवा-विधुर एवं दिव्यांगजन के लिए आयोजित किया गया था।  संस्था के संस्थापक अध्यक्ष श्री  डालचंद गुप्ता  ने बताया कि सम्मेलन के लिए युवक-युवतियों और उनके अभिभावकों से बेहद अच्छा रिस्पांस मिला और इसमें 23 अविवाहित युवक -17 अविवाहित युवतियां, 98 परित्यक्त – 12 परित्यक्ता, 6 विधुर-3 विधवा, 3 दिव्यांग युवकों का रजिस्ट्रेशन हुआ।

इस अवसर पर समाज के अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे, इनमें मुख्य रूप से सुनील गोयल (आर.वी. जी), अमरीश अग्रवाल, रमण अग्रवाल, महेश अग्रवाल (मंथन), वीरेंद्र याज्ञिक, मनोज डोकानीया, छाटेलाल अग्रवाल, संस्था की महिला अध्यक्षा शोभा अग्रवाल, व्रजमोहन अग्रवाल, राधेश्याम अग्रवाल, रामनंद अग्रवाल, अतुल जैन, दिनेश जैन, सुभाष अग्रवाल (गोकुलधाम), विनोद अग्रवाल, सुभाष गुप्ता, योगेंद्र अग्रवाल, सुभाष चौधरी,योगेश अग्रवाल, मीना गुप्ता, सुधा अग्रवाल, पार्वती केडिया, सरला अग्रवाल, ज्योति जैन, कल्पना अग्रवाल उपस्थित थे.

इस परिचय सम्मेलन में कार्यक्रम की संयोजिका ज्योति अग्रवाल थीं, वहीं अतिथियों का स्वागत महामंत्री संतोष तुलस्यान, मंच संचालन प्रतिमा गोयल द्वारा एवं आभार प्रदर्शन उपाध्यक्ष विनय अग्रवाल द्वारा किया गया. संस्था के सभी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों ने कार्यक्रम को सफल बनाने में सक्रिय योगदान दिया।

‘राममय भारत’ के मंच पर ‘तुलसीदास’ को साक्षात देख अभिभूत हुए दर्शक

मुंबई के  श्री भागवत परिवार द्वारा प्रकाशित राममय भारत ग्रंथ के विमोचन के अवसर पर तुलसी जयंती की पूर्व संध्या पर जाने माने कलाकार, नाटककार, संगीतकार और गायक शेखर सेन के एकांकी नाटक तुलसी का मंचन एक ऐतिहासिक प्रस्तुति बन गया। शेखर सेन के तुलसी एकांकी की ये 168 वीं प्रस्तुति थी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के चित्रकार श्री वासुदेव कामथ । श्री वीरेन्द्र याज्ञिक ने कार्यक्रम की भूमिका पर प्रकाश डाला। श्री शेखर सेन ने पूरी प्रस्तुति में हर एक संवाद सीधा मंच पर प्रस्तुत किया इसके लिए उन्होंने किसी तरह के बैकग्राउंड स्कोर या लिखित संवाद नहीं  पढ़ा। कार्यक्रम के अंत में उन्होंने सप्रमाण दर्शकों को बताया कि पूरी प्रस्तुति का एक एक संवाद उन्होंने मौखिक ही प्रस्तुत किया है।

शेखर सेन तुलसी के रूप में मंच पर आते हैं और ठाकुर कॉलेज के खचाखच भरे सभागृह में उपस्थित दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। तुलसी के जन्म के 500 साल बाद आकर तुलसी के शब्दों में जब उनके बचपन से लेकर विवाह, रामचरित मानस के लिखने तक की गाथा कारुणिक प्रसंगों, भावपूर्ण अभिनय और तुलसी को साक्षात प्रस्तुत कर करते हैं तो ऐसा लगता है मानों दर्शक किसी टाईम मशीन में यात्रा करते हुए 500 साल पहले के उस दीन हीन तुलसी से साक्षात संवाद कर रहे हैं जिसने अपनी एक पुस्तक से पिछले पाँच सौ वर्षों से भारतीय सनातन परंपरा, राम के चरित्र और रामलीला की संस्कृति में प्राण फूँक रखे हैं।

शेखर सेन की यह पूरी प्रस्तुति अभिनय, कला, संवाद भावभंगिमा, इतिहास संस्कृति और भाषा के प्रवाह से दर्शकों के मन मस्तिष्क से ऐसे गुजरती है मानों वे खुद इस पूरे कालखंड के गवाह बन गए हैं। फिल्म, टीवी और मनोरंजन के फूहड़ता से भरे कार्यक्रमों की भीड़ में शेखर सेन जिस आत्मविश्वास से तुलसी के संघर्षमयी जीवन के माध्यम से भारतीय संस्कृति के इस लुप्त प्राय अध्याय को जीवंत करते हैं उसका अनुभव और स्वाद एक अलौकिक आनंद का गवाह बन जाता है।

शेखर सेन तुलसी के रूप में उनके जीवन के विविध अध्यायों को परत-दर-परत जब सामने लाते हैं तो कई बार दर्शक ये जानकर हैरान रह जाता है कि जिस रामचरित मानस की वजह से गाँव गाँव में पाँच सौ साल से रामलीलाएं चल रही है, टीवी पर रामायण के नाम से कई धारावाहिक बन गए हैं उनको देखने के बाद उसे कभी इस बात का एहसास ही नहीं हो पाता है कि रामचरित मानस के रचयिता तुलसी का संघर्ष और समर्पण किस सीमा तक था।

शेखर सेन की यह प्रस्तुति इस बात का भी एहसास दिलाती है कि जिस मध्य काल में मुगलों का आतंक, युध्द की विभिषिका  के बीच भारतीय जनमानस गुलामी की जिंदगी जी रहा था और तलवारों का दौर था उस युग में अपनी एक कलम से तुलसी ने पूरे इतिहास, भविष्य और संस्कृति के पन्नों पर एक नया अध्याय लिख दिया।

नाटक के सधे हुए मार्मिक संवाद शेखर सेन ने स्वयं लिखे हैं और इसे संगीतबध्द भी किया है। एक-एक संवाद तुलसी की विवशता, जीजिविषा और संकल्प की सिध्दि का गवाह सा बन जाता है। पूरे मंचन में वे 52 बार गायन गायन प्रस्तुत करते हैं और हर दोहे और चौपाई के साथ स्वरों और संगीत का आरोह अवरोह पूरी प्रस्तुति में रस घोल देता है।

तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्माराम शुक्ल दुबे और माता का नाम हुलसी दुबे था। मूल नक्षत्र जैस् अशुभ मुहुर्त में पैदा हुए बचपन में ही अनाथ हो चुके तुलसी को कैसे पार्वती नाम की एक भिखारिन ने पालपोस कर बड़ा किया और कैसे तुलसी को नरहरिदास जैसे गुरु मिले जिन्होंने तुलसी की भक्ति देखकर उन्हें रामचरित मानस लिखने के लिए प्रेरित किया। तुलसी दास अपने जन्म के समय रोए नहीं बल्कि राम का उच्चारण किया। इसलिए उनका नाम रामबोला  रख दिया गया।  जब वे सात साल के थे, तो उनका उपनयन अयोध्या में नरहरिदास द्वारा किया गया था तुलसीदास ने अयोध्या में अपनी शिक्षा शुरू की। तुलसीदास संस्कृत व्याकरण , चार वेद , छह वेदांग , ज्योतिष और हिंदू दर्शन के वेदांगों का अध्ययन किया।

बाल्यकाल से लेकर रामबोला और उसके बाद तुलसी नाम पड़ने का कारण, राम को 14 वर्ष वनवास का कारण, पत्नी रत्नावली से मिली उलाहना से उपजे ज्ञान जैसे तमाम प्रसंग शेखर जी ने जिस भावप्रवणता से प्रस्तुत किए और मंच से दर्शकों के साथ तादात्म्य बनाए रखा वह उनके अभिनय और प्रस्तुति  का चरमोत्कर्ष था।

तुलसीदास जी का विवाह 1526 ई. (वि.सं. 1583) में बुद्धिमती या रत्नावली नाम की एक सुन्दर लड़की से हुआ था। वे राजापुर नामक गांव में अपनी पत्नी के साथ रहते थे।
उनका एक बेटा भी था जिसका नाम तारक था। बचपन में ही उसका निधन हो गया।  तारक की मौत के बाद तुलसीदास जी को अपनी पत्नी से बहुत अधिक आसक्ति हो गई थी। वे उससे कभी दूर नहीं रह सकते थे। एक दिन रत्नावली रक्षा बंधन के लिए अपने भाई के साथ  मायके चली गई। तुलसीदास जी उस समय बाजार में पत्नी के लिए मिठाई लेने गए थे लेकिन लोगों को रामकथा सुनाने में इतने मगन हुए कि ये भूल ही गए कि उनको मिठाई लेकर घर जाना है। जब तुलसीदास जी को इसका पता चला तो वे रात में ही अपनी पत्नी को देखने के लिए उसके घर पहुंच गए। रत्नावली ने उन्हें कहा कि यह उनका शरीर है जो मांस और हड्डियों से बना है। अगर वे उसके प्रति जो मोह रखते हैं, उसका एक भाग भी राम की भक्ति में लगाएं तो वे संसार की माया से मुक्त होकर अमरत्व और आनंद का अनुभव करेंगे। रत्नावली के इन शब्दों सुनकर तुलसीदास के मन में राम भक्ति का उदय हुआ।

शेखर सेन ने इन सभी घटनाओँ के एक एक दृश्य को अपने कुशल आंगिक अभिनय और चेहरे के भावों से इस सजीवता से प्रस्तुत किया कि दर्शकों को पूरे समय यही एहसास होता रहा कि एक पात्र में कई पात्र समाए हुए हैं। खासकर महिला स्वर और अलग अलग पात्रों की आवाजों को उके रही अंदाज में प्रस्तुत करना दर्शकों के लिए एक रोमांचकारी अनुभव था।

राम और हनुमान के साथ उनका सीधा संवाद इस शाम को यादगार बना दिया। मनसुखा की आवाज लगाते तुलसीदास, प्रभु श्रीराम के बाल रूप का दर्शन और बजरंग बली का हर समय साथ पाकर तुलसीदास ने श्रीराम चरित मानस लिखा। विनय पत्रिका रची। श्री हनुमान चालीसा गढ़ी। इन सभी रचनाओँ के सृजन की प्रेरणा तुलसी को कैसे मिलती गई और वे कैसे लिखते गए ये सब कुछ शेखर सेन ने इतनी लयात्मकता, भावप्रवणता और भावभंगिमा से व्यक्त किया कि अगर तुलसी भी कहीं ये कार्यक्रम देख रहे होते तो अपने इस रूपांतरण को देखकर चौंक जाते।

शेखर सेन का जन्म 1961 में हुआ था और उनका लालन-पालन छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक बंगाली परिवार में हुआ। उनके पिता स्वर्गीय डॉ. अरुण कुमार सेन इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ में कुलपति थे। उनके पिता और माता  और स्वर्गीय डॉ. अनीता सेन ग्वालियर घराने के प्रसिध्द शास्त्रीय गायक और संगीतज्ञ थे।

उन्होंने अपने माता-पिता से संगीत सीखा, 1979 में संगीतकार बनने के लिए मुंबई चले गए और 1984 में गजल व भजन गाना शुरू किया। उन्होंने दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों से लेकर रसखान, रहीम, ललितकिशोरी,   भूषण, बिहारी,  कबीर, तुलसीदास, सूरदास जैसे कवियों की रचनाओँ का गायन से अपनी पहचान बनाई 1983 से कई महत्वपूर्ण भजन एल्बम प्रस्तुत किए हैं। वह अपने एकल अभिनय से संगीतमयी नाटकों “तुलसी”, “कबीर”, “विवेकानंद”, “सनमति”, “साहब” और “सूरदास” के कई मंचन देश और दुनिया में कर चुके हैं और लगातार कर रहे हैं।

2015 से  2020 तक वे संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष  भी रहे। शेखर सेन को भारत सरकार ने कला क्षेत्र में अलंकरण से सम्मानित किया है।

विलुप्त हो रहे हमारी संस्कृति को जीवित रखने वाले पर्व और त्यौहार

भारत त्योहारों का देश है और हर महीने कोई न कोई त्योहार पड़ता रहता है ,कुछ राष्ट्रीय पर्व है कुछ हिन्दू धर्म के सांस्कृतिक पर्व ,सभी त्योहारों को ग्रामीण महिलाएं उत्साह उमंग से मनातीं आई हैं,पर अब कुछ त्योहारों में शिक्षित महिलाओं का ध्यान कम जा रहा है। भारत एक ऐसा देश है जहाँ पूरे वर्ष बहुत ही उत्सव मनाया जाता है। हर महीने में पर्व या त्योहार आते हैं जो बहुत ही खुशी से धूम-धाम से मनाए जाते हैं।  हमारे देश की अभी भी संस्कृति और धार्मिकता और राष्ट्रीयता अच्छी है। यहां कई धर्म के लोग रहते हैं जिसमे हिन्दू धर्म प्रमुख है।
हिन्दुओ का सबसे बड़ा त्योहार दीपावली है इसके अलावा मकर संक्रांति , बसन्त पंचमी, शिवरात्रि, होली, हिन्दू नवबर्ष,चैत्र नवरात्र, श्री रामनवमी ,श्री हनुमान जयंती,गुरु पूर्णिमा, नागपंचमी, रक्षाबंधन ,श्री कृष्ण जन्माष्टमी, पितृपक्ष, आश्विन नवरात्र, दशहरा, करवा चौथ , कार्तिक पूर्णिमा, आदि प्रमुख त्योहार हैं। इसाइयों के प्रमुख त्योहार नववर्ष , गुड फ्राइडे, और क्रिसमस डे हैं । मुस्लिमों के त्योहार ईद और बकरीद हैं।

श्रावण शिव जी को समर्पित महीना है। इस माह शिवजी का जलाभिषेक किया जाता है। कांवर के रंग बिरंगे परिधान में प्रकृति पूरी तरह हरी भरी दिखती है। सावन के महीने में पुत्रियाँ ससुराल से अपने माके आती थीं। हैं। गुड्डे – गुड़ियों के खेल होते थे, पेडों पर झूले पड़ते थे और साथ ही सावन कजरी और झूले के गीत बड़े झूम के गाये जाते थे। पूरा का पूरा वातावरण मधुर गीतों से गुंजायमान रहता था ।

श्रावण माह में नागदेवता की पूजा बड़े विधि  विधान के साथ की जाती है। बहनें भाइयों के लिए गुड़िया गांव के मैदान में फेंकने जाती हैं। भाई गुड़िया की पिटाई डंडे से करते हैं। फिर पिट चुकी गुड़ियों को जल में प्रवाहित कर दिया जाता था। लड़किया अपने गांव के बच्चों को भीगे चने और अन्य पकवान खिलाती थी, जो अब समाप्त होने के कगार पर है।

गांवों के मैदानों में मेले जैसा उत्सव रहता था। पुरुष अखाड़े और कुश्ती में जोर आजमाइश करते थे। कुश्ती और गुड़िया के कार्यक्रम के बाद बहनें अपने भाइयों को पान (ताम्बूल) खिलाती थी। हर्षोल्लास के बीच सभी अपने परिजन के साथ घर लौट आते थे। बहनें झूले झूलना शुरू करती थी, एक बार फिर सावन के गीतों से गांव झूम उठते थे।

अब हमारे यह स्थानीय पर्व धीरे- धीरे टीवी, सोशल मीडिया और आधुनिकता की चकाचौंध में गायब होते जा रहे हैं। कांवेंट के विद्यालय केवल ईसाई त्योहार को वरीयता देते हैं। भारतीय पर्व धीरे धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। पहले छोटे उत्सवों होली दीवाली रक्षा बंधन और श्री कृष्ण जन्माष्टमी आदि पावन अवसर पर पूरा गांव इकट्ठा हो जाता था । अपनी खुशियां बाटता था। सबका साथ साथ आयोजन होता रहता था।अब नये ज़माने में ऐसा कोई त्यौहार नहीं जिस पर पूरा गांव इकट्ठा हो सके। हमारी प्राचीन परंपरा विलुप्त होती जा रही है। उसका एक कारण है कि पहले त्योहार कृषि किसानी  को प्रोत्साहित करते थे, उनसे गहरा जुड़ाव था। हमारे त्योहार में जानवरों को भी महत्व दिया जाता था। लेकिन अब न किसानों का किसी को ध्यान है और न जानवरों की सुधि। बैल की जगह ट्रैक्टर ने ले ली है। गाय भी जर्सी पाली जाने लगी है। भैंस भी कोई कोई पाल ले जा रहा है। प्रायः सबकी दौड़ नौकर बनने और शहरों में बसने की हो गयी है।

शिक्षा, सोच, सुख, समाज, संस्कार और सम्बन्ध सब बदल गये हैं। शहरी सोच और सब नशायुक्त गुटका, तम्बाकू और शराब सब पर हावी है। सामुदायिकता का क्षरण हो चुका है। उत्सव, त्यौहार के मायने हमारे लिए बदल गये हैं। श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष भले नहीं पता हों पब, सिनेमा, बार, न्यूक्लियर परिवार क्रिसमस और ईद का त्यौहार हमें अलबत्ता अच्छे से याद है।

बर्थ डे अनवरसरी प्रायः हर सदस्य की मनाई जाने लगी है। टीवी मोबाइल जो कुछ परोस रहा है लोग इस तक ही सिमटते जा रहें हैं।

इन त्योहारों के मौसम में मेरा युवा पीढ़ी से यही निवेदन है कि हम अपनी भारतीय संस्कृति को बरकरार रखें। अपने त्योहार उसके महत्व को भी समझे। जहां तक सम्भव हो, आप कहीं भी हो, कितने भी व्यस्त हो, लेकिन त्योहार पूरा परिवार एक साथ मनाए। इससे बहुत बड़ा असर हमारी आने वाली पीढ़ी पर पड़ेगा और परिवार भी, रिश्ते भी टूटने से बचेंगे।साथ ही हमारी लुप्त होती कलाएं, संस्कृति , छोटे- छोटे त्योहार सब जीवित रहेंगे। हमारे बुजुर्ग जो ज्यादातर गांव में, या बच्चों के विदेश में रहने के कारण, अकेले भी रहते है, आपको सपरिवार देखने से,त्योहार मनाने से, कुछ दिन एक साथ बिताने से खुश हो जाएंगे और उनकी उम्र भी बढ़ जाएगी।

लेखक परिचय :-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। )