बांग्लादेश में इस वक़्त चल रही राजनीतिक उठा-पटक और कम क़ीमत वाले रेडीमेड कपड़ों (RMG) के निर्यात पर निर्भरता की वजह से बांग्लादेश की आर्थिक स्थिरता को ख़तरा पैदा हो गया है. इससे विविधता और लचीलापन लाने की ज़रूरत और उजागर हो गई है
अपनी आज़ादी के 53 वर्षों के भीतर ही बांग्लादेश दक्षिण एशिया के सबसे ग़रीब देशों में से एक से आने वाले दौर के ‘एशियाई टाइगर’ में तब्दील हो गया है. 1971 में अपनी आज़ादी की ख़ूनी लड़ाई और 1970 के भयानक चक्रवात से मची तबाही के साथ सफ़र शुरू करने के बावजूद, बांग्लादेश ने आर्थिक विकास और ख़ास तौर से बने बनाए कपड़ों (RMG) के मामले में काफ़ी अहम छलांगें लगाई हैं. बांग्लादेश के आर्थिक परिवर्तन की शुरुआत 2000 के देश में हुई थी. अगर हम कोरोना की महामारी के दौर को छोड़ दें तो, 2011 से उसकी GDP विकास दर लगातार 6 प्रतिशत से ऊपर रहती आई है.
एक दौर में कृषि पर निर्भर अर्थव्यवस्था से बांग्लादेश ने बड़े नाटकीय ढंग से अपनी तरक़्क़ी का रुख़ मोड़ा है. 1970 के दशक के शुरुआती दौर में बांग्लादेश की GDP में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत हुआ करती थी. लेकिन, तब से अब तक ये हिस्सेदारी घटकर केवल 12 फ़ीसद रह गई है. अब देश की GDP में उद्योगों की हिस्सेदारी बढ़कर 33 प्रतिशत हो गई है, वहीं सेवा क्षेत्र अब 55 प्रतिशत का योगदान करता है. इससे पता चलता है कि बांग्लादेश ने व्यापार के उदारीकरण और औद्योगिक प्रगति के मामले में व्यापक संरचनात्मक सुधार किए हैं.
पहले कृषि के लिए ज़रूरी कच्चा माल आयात करने से अब निर्माण क्षेत्र का कच्चा माल आयात करने तक बांग्लादेश रेडीमेड कपड़ों के निर्यात से होने वाली आमदनी पर बहुत अधिक निर्भर है. स्टील, केमिकल और परिवहन के उपकरण जैसे निर्माण के सेक्टर को बढ़ावा नहीं देने की वजह से आज बांग्लादेश की आमदनी और उसके भविष्य के विकास पर ख़तरे के बादल मंडरा रहे हैं.
रेडीमेड कपड़ों का सेक्टर बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. देश को निर्यात से होने वाली कुल आमदनी में से 84 प्रतिशत हिस्सेदारी इसी सेक्टर की है. रेडीमेड कपड़ों के सेक्टर ने काफ़ी उल्लेखनीय प्रगति की है. 2011 में जहां इसका निर्यात 14.6 अरब डॉलर था, वहीं 2019 में ये बढ़कर 33.1 अरब डॉलर पहुंच गया था. यानी इस सेक्टर की सालाना चक्रवृद्धि विकास दर 7 प्रतिशत रही है. हालांकि, कम क़ीमत वाले कपड़ों पर ज़ोर की वजह से बांग्लादेश का रेडीमेड कपड़ा उद्योग वैश्विक बाज़ार के उतार चढ़ावों के लिहाज़ से हमेशा नाज़ुक स्थिति में रहता है. कोविड-19 की महामारी और रूस-यूक्रेन के युद्ध का असर इस पर साफ़ दिखा.
बांग्लादेश के आर्थिक परिवर्तन की शुरुआत 2000 के देश में हुई थी. अगर हम कोरोना की महामारी के दौर को छोड़ दें तो, 2011 से उसकी GDP विकास दर लगातार 6 प्रतिशत से ऊपर रहती आई है.
अपनी उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद बांग्लादेश का रेडीमेड कपड़ा उद्योग ऐसी कई अहम चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो इसके दूरगामी स्थायित्व के लिए ख़तरा बन सकते हैं. उद्योग के संचालन की बढ़ती लागत और मूलभूत ढांचे की कमियां इसकी राह की बड़ी चुनौतियां हैं. वहीं, वियतनाम जैसे देशों से बढ़ रही कड़ी टक्कर इसे और जटिल बना रही है. यही नहीं, कपड़ा उद्योग का कम मज़दूरी वाले श्रमिकों पर बहुत अधिक निर्भर होना और निर्यात के लिए पश्चिमी देशों के बाज़ारों का मुहताज होना, बांग्लादेश के निर्यात में विविधता की फ़ौरी ज़रूरत को ही उजागर करते हैं
इसी साल जुलाई महीने में बांग्लादेश में उस वक़्त विरोध प्रदर्शन भड़क उठे थे, जब न्यायपालिका ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना सरकार के 2018 के फ़ैसले को पलटते हुए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की एक व्यवस्था हाल के दिनों में बहाल कर दिया था. इस व्यवस्था के तहत सरकारी नौकरियों का 30 प्रतिशत हिस्सा मुक्ति योद्धाओं के परिवारों और दूसरे समूहों के लिए आरक्षित किया गया था. बहुत से छात्रों का तर्क था कि आरक्षण की इस व्यवस्था से क़ाबिलियत पर आधारित अवसर सीमित हो जाते हैं. युवाओं के बीच भयंकर बेरोज़गारी और आर्थिक ठहराव के बीच, विरोध प्रदर्शन बढ़ते गए. पुलिस और सरकार समर्थकों की प्रदर्शनकारियों से हिंसक भिड़ंत हुई, जिसकी वजह से सैकड़ों लोग मारे गए और इससे शेख़ हसीना को इस्तीफ़ा देकर देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.
बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शनों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी निंदा हुई थी. उम्मीद के मुताबिक़, जब जुलाई में आरक्षण व्यवस्था को लेकर सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे थे, तब अमेरिका ने भी बांग्लादेश से कहा था कि वो शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के अधिकारों का सम्मान करे. जनवरी में लगातार चौथी बार चुनाव जीतने के बाद से शेख़ हसीना सरकार के लिए ये सबसे बड़ी चुनौती थी. 3 अगस्त को बांग्लादेश में एक बार फिर प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर पड़े. वो जुलाई में हुई हिंसा में मारे गए 200 से ज़्यादा लोगों के लिए इंसाफ़ मांग रहे थे. इस दौरान सरकार समर्थकों और पुलिस के साथ हुई भिड़ंत में लगभग सौ लोग और मारे गए. इसके बाद पूरे देश में हिंसा भड़क उठी. सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन चला रहे लोग शेख़ हसीना का इस्तीफ़ा मांगने लगे. और सोमवार को आख़िरकार शेख़ हसीना को इस्तीफ़ा देकर देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा.
युवाओं के बीच भयंकर बेरोज़गारी और आर्थिक ठहराव के बीच, विरोध प्रदर्शन बढ़ते गए. पुलिस और सरकार समर्थकों की प्रदर्शनकारियों से हिंसक भिड़ंत हुई, जिसकी वजह से सैकड़ों लोग मारे गए और इससे शेख़ हसीना को इस्तीफ़ा देकर देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.
मानव अधिकार संगठन और अमेरिका एवं ब्रिटेन समेत पश्चिमी देशों की सरकारों ने प्रदर्शनकारियों को सख़्ती से कुचलने और उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनने की कड़ी आलोचना की थी. इशसे पहले शेख़ हसीना ने अमेरिका पर आरोप लगाया था कि वो बांग्लादेश में सरकार बदलने की साज़िश रच रहा है. शेख़ हसीना ने दावा किया था कि इस साज़िश का मक़सद लोकतंत्र को उखाड़ फेंकना और एक अलोकतांत्रिक सरकार को सत्ता में लाना है. संसद में शेख़ हसीना के इस भाषण के बाद से अमेरिका ने मानव अधिकारों के उल्लंघन के आरोपों को लेकर उनकी पार्टी अवामी लीग की और बारीक़ी से पड़ताल करनी शुरू कर दी थी.
इससे पहले जुलाई 2024 में यूरोपीय संघ ने बांग्लादेश के साथ व्यापारिक संबंधों में सहयोग और साझेदारी के नए समझौते (PCA) और विकास की पहलों में मदद बढ़ाने के इरादे से होने वाली बातचीत को स्थगित कर दिया था. यूरोपीय संघ, बांग्लादेश का एक अहम व्यापारिक साझीदारी है और 2023 में बांग्लादेश के कुल व्यापार में EU की हिस्सेदारी 20.7 प्रतिशत थी. यूरोपीय संघ ने बातचीत को नवंबर तक स्थगित करते हुए छात्रों की अगुवाई वाले आंदोलन से निपटने के तौर तरीक़ों को लेकर शेख़ हसीना सरकार की आलोचना भी की थी. यूरोपीय संघ ने मानव अधिकारों और प्रशासन को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए थे.
बांग्लादेश के घरेलू मामलों में पश्चिमी देशों की दख़लंदाज़ी के बावजूद, किसी भी पक्ष द्वारा कड़ा क़दम उठाने का बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर बहुत विपरीत असर पड़ सकता है. निर्यात पर आधारित बांग्लादेश की विकास दर पश्चिमी देशों को निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर है. ऐसे में अगर बांग्लादेश के ऊपर कोई प्रतिबंध लगते हैं या व्यापार में कुछ पाबंदियां लगाई जाती हैं, तो इनका बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है. ऐसे में बांग्लादेश के लिए पश्चिमी देशों के साथ कूटनीतिक संतुलन बनाए रखना ज़रूरी है, ताकि वो किसी तरह के प्रतिबंध लगने से ख़ुद को बचा सके और आर्थिक स्थिरता को बनाए रख सके.
बांग्लादेश के रेडीमेड कपड़ा उद्योग के आयात में पश्चिमी देशों का दबदबा इस बात से ज़ाहिर है कि पश्चिमी देश और विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ उस पर किस तरह से नियंत्रण रखते हैं. इसका बड़ा संकेत बांग्लादेश के बाज़ार की निर्भरता से ज़ाहिर होता है, क्योंकि उसके कपड़ा उद्योग का लगभग 80 प्रतिशत निर्यात इन पश्चिमी बाज़ारों को ही जाता है. कम लागत और बांग्लादेश के कपड़ा कारखानों की व्यापक उत्पादन क्षमता की वजह से पश्चिम के बड़े कपड़ा ब्रांडों के साथ बांग्लादेश का संबंध सामरिक आपूर्तिकर्ता वाला है. रेडीमेड कपड़ा उद्योग बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होने की वजह से ये निर्यात से आमदनी और रोज़गार में बड़ा योगदान देता है. फिर भी, इससे पश्चिमी देशों की मांग, वहां के बाज़ार और बांग्लादेश को लेकर इन देशों की राय पर बांग्लादेश की निर्भरता भी उजागर होती है.
वैसे तो पश्चिमी देश, बांग्लादेश के रेडीमेड कपड़ा उद्योग की स्थिरता में बड़ा योगदान देते हैं. पर इससे बांग्लादेश की बाहरी आर्थिक दबावों और नैतिकता की पड़ताल के आगे कमज़ोरी भी उजागर हो जाती है. इसलिए, बांग्लादेश को चाहिए कि वो अपने निर्यात और आयात के सेक्टरों में सामरिक विविधता और लचीलापन लाने का प्रयास करे, ताकि दूरगामी अवधि में अपनी आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित कर सके. निर्यात के लिए कपड़ों के अलावा दूसरे सामानों पर ज़ोर देने और व्यापारिक साझीदारों में विविधता लाकर कुछ ख़ास देशों पर निर्भरता कम करके बांग्लादेश अपनी अर्थव्यवस्था में ख़लल पड़ने से ख़ुद को बचा सकता है. इसी तरह, आयात के स्रोतों में विविधता लाकर बांग्लादेश ज़रूरी सामानों की आपूर्ति स्थिर बनाए रख सकता है और भू-राजनीतिक तनावों और आपूर्ति श्रृंखलाओं में आने वाली बाधाओं के सामने अपनी कमज़ोरियों को भी कम कर सकता है.
(सौम्या भौमिक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में एसोसिएट फेलो हैं। उनका शोध सतत विकास और वैश्वीकरण अर्थशास्त्र पर केंद्रित है। वह अपनी पीएचडी कर रहे हैं और जादवपुर विश्वविद्यालय, कोलकाता और एंटवर्प विश्वविद्यालय, बेल्जियम (वैश्वीकरण और यूरोपीय एकीकरण के अर्थशास्त्र में विशेषज्ञता) से अर्थशास्त्र में डबल मास्टर डिग्री प्राप्त की है। उन्हें पहले जापान सरकार की JASSO छात्रवृत्ति, टोक्यो फाउंडेशन की SYLFF फ़ेलोशिप और यूरोपीय आयोग की EMJMD फ़ेलोशिप से सम्मानित किया गया था। सौम्य ने विभिन्न सहकर्मी-समीक्षित पत्रिकाओं में कई पत्र प्रकाशित किए हैं और द हिंदू बिजनेस लाइन, इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली, द डिप्लोमैट, काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस, द टेलीग्राफ, फर्स्टपोस्ट, ढाका ट्रिब्यून, ईस्ट एशिया फोरम, फॉर्च्यून , इंडिया, द क्विंट और इंडिया टुडे समेत अन्य जैसे प्रकाशनों में नियमित लेखन करते रहे हैं।)