पूरा नाम: मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ां। उपनाम: ग़ालिब (जिसका अर्थ है “विजेता”) जन्म: 27 दिसंबर 1797, आगरा (मुग़ल साम्राज्य)
ग़ालिब का जन्म एक प्रतिष्ठित तुर्की परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम मिर्ज़ा अब्दुल्ला बेग था, जो एक सैनिक थे। बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया। उनके चाचा मिर्ज़ा नसरुल्लाह बेग ने उनकी परवरिश की। लेकिन जब ग़ालिब 9 साल के थे, तो उनके चाचा का भी निधन हो गया। इन मुश्किलों के बावजूद, ग़ालिब की शिक्षा-दीक्षा में कोई कमी नहीं हुई। उन्होंने फ़ारसी, उर्दू और अरबी की पढ़ाई की और छोटी उम्र में ही शायरी लिखना शुरू कर दिया। 13 साल की उम्र में ही ग़ालिब की शादी उमराव बेगम से हो गई। शादी के बाद ग़ालिब आगरा से दिल्ली आ गए और अपनी ज़िंदगी यहीं बिताई। हालांकि, उनकी शादीशुदा ज़िंदगी बहुत सुखद नहीं रही। ग़ालिब के कोई संतान नहीं थी। उनकी इस पीड़ा का असर उनकी शायरी में भी झलकता है। उन्होंने खुद लिखा:
“पूछते हैं वो कि ग़ालिब कौन है,
कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या।”
ग़ालिब की शायरी का मुख्य विषय प्रेम, दर्द, दर्शन, और इंसानी ज़िंदगी के गहरे अनुभव हैं। उन्होंने उर्दू ग़ज़लों को एक नया आयाम दिया। उनके दौर में ग़ज़लें आमतौर पर प्रेम पर आधारित होती थीं, लेकिन ग़ालिब ने इसमें इंसान के अंदर की गहराई, दुख और अस्तित्व के सवालों को भी शामिल किया।
15 फरवरी 1869 को दिल्ली में ग़ालिब का निधन हुआ।
1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, ग़ालिब ने दिल्ली में हुए बदलावों को करीब से देखा। उन्होंने इस दौर को अपने पत्रों में दर्ज किया। उनका एक पत्र इस दर्द को व्यक्त करता है:
“दिल्ली जो एक शहर था आलम में इंतिख़ाब,
हम रहने वाले हैं उसी उजड़ी हुई बस्ती के।”
ग़ालिब ने उर्दू और फ़ारसी में लिखा। उनकी ग़ज़लें और पत्र आज भी बहुत पढ़े और सराहे जाते हैं।
मुख्य रचनाएँ: दीवान-ए-ग़ालिब: यह उनकी उर्दू शायरी का संकलन है। इसमें उनकी ग़ज़लें शामिल हैं। उर्दू मसनवी और क़सीदे
प्रस्तुत है, गालिब के 20 बेहतरीन शेर…
1.
दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है।
______________________________
2.
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले।
______________________________
3.
इश्क पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।
______________________________
4.
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज-ए-गुफ्तगू क्या है।
______________________________
5.
कोई उम्मीद बर नहीं आती,
कोई सूरत नजर नहीं आती।
______________________________
6.
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख्याल अच्छा है।
______________________________
7.
दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद,
अब कुछ भी नहीं मुझको मुहब्बत के सिवा याद।
______________________________
8.
कर्ज की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां,
रंग लाएगी हमारी फाकामस्ती एक दिन।
______________________________
9.
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतजार होता।
______________________________
10.
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है।
______________________________
11.
मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले।
______________________________
12.
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले।
______________________________
13.
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।
______________________________
14.
बाजीचा-ए-अतफाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शबो-रोज़ तमाशा मेरे आगे।
______________________________
15.
पता नहीं क्या ख्याल है ‘ग़ालिब’,
कि मैं शराब पीकर भी होश में हूं।
______________________________
16.
कभी नेकी भी उसके जी में गर आ जाए है मुझसे,
जफाएं करके अपनी याद शरमा जाए है मुझसे।
______________________________
17.
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।
______________________________
18.
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।
______________________________
19.
इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।
______________________________
20.
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ,
रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ।