Sunday, November 24, 2024
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लॉस एंजेल्स में गूँजे काशी के स्वर

हिंदुस्तान के कोने-कोने में संगीत भरा है और अगर वो काशी की स्वर लहरियां हो तो बात ही क्या है। इसी सन्दर्भ में विश्व हिन्दू परिषद् ने काशी के महान संगीतकारों और कलाकारों को अपने Save a child (SAC) प्रोग्राम के लिए अमेरिका में आमंत्रित किया। लगभग सारे अमेरिका में अपने शानदार कार्यक्रमों से श्रोताओं को मुग्ध करने के बाद ये कलाकार लॉस एंजेल्स आये। ऑरेंज काउंटी के गायत्री मंदिर में जिस विशुद्ध संगीत और सुर की ज़रुरत थी, उससे कहीं ज्यादा भक्ति संगीत और सुरीला कार्यक्रम इन महान कलाकारों ने प्रस्तुत किया।

विश्व हिन्दू परिषद् के SAC प्रोजेक्ट को अमेरिका में लाने  का सारा श्रेय रेनू गुप्ता जी को जाता है जो यह कार्यक्रम अमेरिका में वर्षों से करती आ रहीं हैं। कार्यक्रम के प्रारम्भ में विश्व हिन्दू परिषद् की LA चैप्टर की उपाध्यक्ष श्रीमती चारु शिवाकुमार ने बताया कि SAC से जुड़ने का उनका यह पहला अनुभव है। उन्होंने आगे बताया कि इस कार्यक्रम के द्वारा लगभग ५३ बच्चों को स्पॉंसर किया गया है। चारु जी ने कहा कि SAC कार्यक्रम के द्वारा भारत में पिछड़े ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को शिक्षा के साथ भोजन और रहने की भी व्यवस्था की जाती है।

SAC को समर्पित ये कार्यक्रम अपने निर्धारित समय से प्रारम्भ हुआ। यह कार्यक्रम ३ चरणों मैं पूरा हुआ। प्रथम सत्र था भजनों का। मंच पर आये श्री जय पांडेय,  सुश्री मीरा त्रिपाठी , श्री सुखदेव प्रसाद मिश्रा,  श्री प्रकाश पाण्डेय और श्री यशपाल। जय पाण्डेय और मीरा ने बहुत ही मोहक राम और कृष्ण भजन गाया और उनके साथ उतने ही सुन्दर संगीत का संयोजन किया श्रीप्रकाश जी (तबला), सुखदेव (वायलिन) और वृन्दावन से पधारे यशपाल (कीबोर्ड) जी ने। सभी श्रोता उनके एक-एक भजन पर झूमते नज़र आये।

इसके बाद दूसरा चरण था तबले और वायलिन की सुन्दर जुगलबंदी का। मंच पर आये श्री अशोक पाण्डेय जी और श्री सुखदेव मिश्रा जी। श्री अशोक पाण्डेय जी और श्री सुखदेव जी बनारस की उन गलियों से आते हैं जहाँ सांस-सांस में भक्ति है और संगीत है। कड़ी साधना के बाद वे दोनों आज उस मुकाम पर पहुंचे हैं जहाँ आज वे हैं। पिछले २७ वर्षों से वे दोनों साथ-साथ कार्यक्रम कर रहें हैं। अशोक जी, तबला भूषण और तबला सिरोमनि जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं और उन्होंने भारत के सभी प्रतिष्ठित मंचों की शोभा बधाई है, चाहे वो सारे-गा-मा का मंच हो, राजनेताओं का मंच हो, या फिर फिल्म संगीत हो। उन्होंने अब तक दुनिया भर में लगभग 1500 से ज़्यादा shows किये हैं फिर भी वे अपने आप को संगीत का विद्यार्थी भर समझते हैं और लोगों की ख़ुशी और सबकी भलाई ही उनका अंतिम लक्ष्य है। उनके दोनों बेटे जय और श्री प्रकाश उनके साथ ही जब Soul of Kashi में उनके सामने ही उम्दा प्रदर्शन करते हैं तो यकीनन उनकी छाती गर्व से फूल जाती होगी।

यही हाल सुखदेव जी का भी है, उन्होंने भी सभी सम्मानीय मंचों से अपनी सुर लहरियां बिखेरीं हैं और श्रोता उनकी हर तान पर सम्मोहित होते रहें हैं। ऐसे दो धुरंधरों को एक साथ अपनी प्रस्तुति करते देखना सचमुच अद्भुत था। दोनों ने तबले और वायलन की जो जुगलबंदी प्रस्तुत की वह श्रोताओं के द्वारा बहुत सराही गयी और सबने यही कहा कि ऐसा सुन्दर कार्यक्रम उन्होंने कभी नहीं देखा। वॉयलिन के हर महीन सुर को जिस खूबसूरती से अशोक जी ने तबले से साधा, वो अद्भुत था। अशोक जी की जो बात मुझे सबसे अच्छी लगी वो ये कि उन्होंने न सिर्फ अपने को इस कला में पारंगत किया है पर उन्होंने अपने बेटों को और अपने शिष्यों को भी ये कला विरासत में दी है। उनके बेटे श्रीप्रकाश ने तबले पर अद्भुत कला का प्रदर्शन किया और युद्ध, शंख और सीता-राम, सीता-राम की ध्वनियों को अपने तबले से प्रस्फुटित करके सबको चकित कर दिया। अपनी कला से उन्होंने सबको इतना मोहित किया है कि फ्रांस ने उनके सम्मान में डाक टिकट पर उनकी तस्वीर जारी की है जो सचमुच ही भारत और काशी के लिए गर्व का विषय है।

कार्यक्रम का का तीसरा भाग था बॉलीवुड गानों का। मीरा और जय ने रफ़ी साहेब, मुकेश जी, हेमंत कुमार के पुराने सदाबहार गीतों से सबका दिल जीत लिया। नय्यर साहेब को समर्पित उनका एक सेगमेंट इतना सुन्दर था कि दर्शक स्वयं को रोक नहीं पाए और नृत्य करने लगे। एक सुन्दर, सादे और सुमधुर कार्यक्रम का समापन दोनों के देश भक्ति के गीतों से हुआ और दर्शक भाव-विभोर होकर घर लौटे।

कार्यक्रम के अंत में चारु जी सभी का घन्यवाद करते हुए कहा कि  मैं अपने सभी  दानकर्ताओं का बहुत-बहुत धन्यवाद करती हूँ। मुख्यतः, चारु मेहता , डॉ प्रतिभा देसाई , डॉ गुणवंत मेहता , श्रीमती इला मेहता और अशोक मेहता का धन्यवाद किया। उन्होंने अपने सभी स्वयं सेविकों का भी धन्यवाद किया जिनमें सुभास टोलिआ, सुभाष भट्ट, हसमुख मोदी, सुरेखा  मोदी, विलास जाधव , नीला पारिख, अपर्णा हांडे और  राधिका पटेल प्रमुख थे। चारु जी ने अपने पति श्री शिवकुमार जी को भी धन्यवाद कहा। इस कार्यक्रम को कुशलता से इस मुकाम तक पहुँचाने में (केशव पटेल- चेयर, कौशिक पटेल-को-चेयर, अरविन्द पटेल-कन्वीनिअर, हर्क वासा-मार्केटिंग निर्देशक, अरविन्द पटेल और चारु शिवकुमार-संयोजक) ने अपना अमूल्य समय और सहयोग दिया। कार्यक्रम के संचालन का सौभाग्य श्रीमती चारु शिवकुमार के साथ मुझे भी मिला जिसे लोगों ने बेहद सराहा।

उम्मीद है आत्मीय सुरों में गूंधी गयी ये शाम देर तक लोगों के जेहन में गूंजती रहेगी और भारत का हर ज़रूरतमंद बच्चा, कहीं न कहीं इन्हीं सुरों के सहारे अपने जीवन को काशी बना पाएगा।

रचना श्रीवास्तव, लॉस एंजेल्स, कैलिफ़ोर्निया में रहती हैं और वहां से हिन्दी मीडिया के लिए नियमित रिपोर्टिंग करती हैं।
All Pictures: Dr. Avinash Srivastava (अविनाश श्रीवास्तव)
Rachana Srivastava
Reporter, Writer, and Poetess
Los Angeles, CA

श्री सुरेश प्रभु इंडियन चैंबर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर के अध्यक्ष मनोनीत

इंडियन चैंबर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु की नए अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति की घोषणा  की है। । विश्व कृषि मंच के बोर्ड सदस्य और पूर्व केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग, रेलवे, बिजली, रसायन एवं उर्वरक तथा पर्यावरण एवं वन मंत्री सुरेश प्रभु को नवगठित 24 सदस्यों वाले आईसीएफए बोर्ड द्वारा अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया है। सार्वजनिक सेवा में दशकों के अनुभव वाले एक प्रतिष्ठित राजनेता, राजनयिक और प्रशासक प्रभु, पारदर्शी, विकासोन्मुख शासन के लिए एक कुशल रणनीतिकार के रूप में अपनी वैश्विक पहचान बनाई है।

“वैश्विक क्षेत्र में उनके व्यापक अनुभव, कई संयुक्त राष्ट्र निकायों में काम करने और जी-7 और जी-20 देशों के लिए भारत के शेरपा के रूप में, प्रभु कृषि व्यापार, प्रौद्योगिकी और कृषि में निवेश को बढ़ावा देने के अपने मिशन में आईसीएफए का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं, और सहयोग और साझेदारी के माध्यम से वैश्विक स्तर पर आईसीएफए की उपस्थिति का विस्तार करके भारत में खाद्य और कृषि पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना”, निवर्तमान अध्यक्ष डॉ. एमजे खान ने कहा, जबकि “श्री।” कृषि सहित विभिन्न क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देने वाली नीतियों को आकार देने में प्रभु का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। कृषि के भविष्य के लिए प्रभु का दृष्टिकोण भारतीय कृषि की क्षमता को उजागर करने और किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में जलवायु-लचीली टिकाऊ कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने के आईसीएफए के लक्ष्यों के साथ संरेखित है।

अपनी नई भूमिका में, प्रभु का लक्ष्य किसानों को बाजार के अवसरों का लाभ उठाने में मदद करने के साथ-साथ नवीन कृषि प्रौद्योगिकियों, नीति अनुसंधान और वकालत और कृषि व्यवसायों, कृषि व्यापार और वैश्विक जुड़ाव को बढ़ावा देना है। डॉ. खान ने कहा कि भारत की पहली कृषि निर्यात नीति 2018 में श्री प्रभु के नेतृत्व में शुरू की गई थी, जिसके परिणामस्वरूप 2018 में कृषि निर्यात 15 मिलियन मीट्रिक टन से बढ़कर 2022 में 38 मिलियन मीट्रिक टन हो गया। सभी हितधारकों के साथ सहयोगात्मक रूप से काम करने की उनकी प्रतिबद्धता भारत में अधिक लचीली खाद्य प्रणाली बनाने के लिए कृषि मूल्य श्रृंखला से कृषि के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र बनाने और किसानों की आय बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी।

उनका नेतृत्व किसान कल्याण, डिजिटल तकनीकी उन्नति और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता पर मजबूत फोकस के साथ कृषि क्षेत्र के लिए अवसर पैदा करने के चैंबर के एजेंडे को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण होगा।

नवगठित आईसीएफए बोर्ड के साथ अपनी पहली बातचीत के दौरान, प्रभु ने अधिक समृद्ध कृषक समुदाय को बढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ, भारत के कृषि परिदृश्य को बदलने के लिए अपने दृष्टिकोण को रेखांकित किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आईसीएफए उन समाधानों के विकास को प्राथमिकता देगा जो जलवायु परिवर्तन और तेजी से विकसित हो रहे वैश्विक बाजारों से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करते हुए कृषि आय, उत्पादकता और स्थिरता को बढ़ाएंगे।

इस अवसर पर बोलते हुए, सुरेश प्रभु ने कहा, “मैं भारतीय खाद्य एवं कृषि चैंबर के अध्यक्ष की भूमिका निभाने पर गौरवान्वित हूँ। मेरा मानना है कि नवाचार का लाभ उठाकर, हितधारकों के साथ सहयोग करके, तथा किसानों और संपूर्ण खाद्य एवं कृषि मूल्य श्रृंखला दोनों को लाभ पहुँचाने वाली नीतियों पर ध्यान केंद्रित करके, हम भारत को कृषि और खाद्य सुरक्षा में वैश्विक नेता के रूप में बदल सकते हैं। मैं इस दृष्टिकोण को साकार करने के लिए सभी हितधारकों के साथ मिलकर काम करने के लिए तत्पर हूँ।”

अपने नामांकन पर टिप्पणी करते हुए, प्रभु ने कहा, “मैं ऐसे समय में यह भूमिका निभाने पर गौरवान्वित हूँ, जब कृषि क्षेत्र को बड़े अवसरों और गंभीर चुनौतियों, दोनों का सामना करना पड़ रहा है। हम मिलकर प्रौद्योगिकी का लाभ उठा सकते हैं, बुनियादी ढाँचे और आपूर्ति श्रृंखलाओं में सुधार कर सकते हैं, तथा यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हमारे किसानों को उनकी उपज का उचित मुआवज़ा मिले,” साथ ही उन्होंने कहा कि उनका ध्यान विश्वव्यापी भागीदारी के माध्यम से भारतीय किसानों के लाभ के लिए सर्वोत्तम वैश्विक कृषि पद्धतियाँ और अधिक बाज़ार पहुँच लाने पर होगा।
भारत सरकार के पशुपालन एवं डेयरी के पूर्व सचिव डॉ. तरुण श्रीधर ने आईसीएफए के नए महानिदेशक का पदभार संभाला है। डॉ. श्रीधर को राज्य सरकार और केंद्र में विभिन्न पदों पर काम करने का 40 साल का अनुभव है, जिसमें संयुक्त सचिव – मत्स्य पालन और सदस्य, कैट शामिल हैं। डॉ. श्रीधर को इस क्षेत्र में उनके विचार नेतृत्व के लिए जाना जाता है, उन्होंने नीतिगत पत्र और लेख लिखे हैं। प्रभु ने विश्वास जताया कि डॉ. श्रीधर के आईसीएफए के महानिदेशक के रूप में नेतृत्व करने से हम नीतिगत मुद्दों और एजेंडे पर मजबूती से काम कर पाएंगे और आईसीएफए को वैश्विक कृषि ज्ञान संगठन के रूप में स्थापित कर पाएंगे।

भारतीय खाद्य एवं कृषि चैंबर सुरेश प्रभु के नेतृत्व और विशेषज्ञता की प्रतीक्षा कर रहा है, क्योंकि यह कृषि क्षेत्र के हितों की रक्षा करना जारी रखेगा और भारत के आर्थिक विकास और खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देगा। आईसीएफए बोर्ड के सह-अध्यक्ष डॉ. अशोक दलवई ने कहा, “आईसीएफए अपने कार्य समूहों, परिषदों और रणनीतिक सहयोग के नेटवर्क के माध्यम से भारत के कृषि क्षेत्र को वैश्विक खाद्य सुरक्षा और स्थिरता पहलों में सबसे आगे रखने के लिए प्रतिबद्ध है।” उन्होंने कहा कि चैंबर का दृष्टिकोण श्री प्रभु के भारतीय कृषि को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाने और घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाजारों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य उत्पादों का उत्पादन करने में सक्षम बनाने के फोकस के अनुरूप है।

महिला लेखन की पूर्व पीठिका की निर्मिति : ‘नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान’

नारी की रचनाधर्मिता ने उनकी कल्पनाशीलता और संवेदनशील प्रतिभा के विविध आयाम अपने रचनाकर्म में व्यक्त कर समकालीन धारा का बखूबी चित्रण ही नहीं किया है वरन् उसे अपनी मौलिक सोच और गहरी दृष्टि से अनुभवों के गलियारों में गहराई से परखा भी है।
इन सभी सन्दर्भों की गहरी विवेचना डॉ. प्रभात कुमार सिंघल की इस कृति “नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान” में परिलक्षित होती है, जिसमें राजस्थान के साहित्यिक और सांस्कृतिक अंचल हाड़ौती ( कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़) की महिला रचनाकारों की साहित्यिक भाव भूमि में विद्यमान रचनात्मक उर्वरकता की सौंधी गंध रचनाओं में गंधायमान है। इस सुगंध से गद्य और पद्य की विविध विधाएँ शैलीगत विशेषताओं के साथ ही नहीं वरन् अभिव्यक्ति की कौशलता से सराबोर हैं।
सृजन की इस विविधता में सामाजिक और पारिवारिक सन्दर्भ में विविध क्षेत्रों से जुड़ी सृजनशील और स्थापित महिला रचनाकारों के साथ – साथ नवोदित महिला रचनाकारों द्वारा सामाजिक सरोकारों से संदर्भित समकालीन परिवेश से संवेदित रचनाओं का लेखन कर  अपनी अनुभूतियों को शब्दों के माध्यम से उकेरा है।
इन सृजनशील महिला रचनाकारों की कथा – कहानियों में जीवन और जगत में उभरते सामाजिक परिवेश के साथ नारी जीवन और  उससे सम्बन्धित सामाजिक समस्याएँ और उनका समाधान उजागर होता है। इनके पात्रों में आत्म-मंथन बना रहता है। वे टूटते, बिखरते, छितरने के बजाय संघर्षरत रहते हैं, वे अन्याय के प्रति संघर्ष को दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए सफलता पाने में सक्षम होते हैं। यही नहीं उनके ये पात्र नारी-उत्पीड़न के विरुद्ध स्वर ऊँचा करने में भी पीछे नहीं हैं।
इन सृजनशील महिला रचनाकारों की कविताएँ भारतीय सांस्कृतिक परिवेश को समेटे हुए सामाजिक शोषण के विरुद्ध मुखर होती हैं। यही नहीं काव्य की विविध विधाओं में उभरी काव्य रचनाओं में मानव-मन की कोमल अनुभूतियाँ और मनोवैज्ञानिक गहराई तो दृष्टिगोचर होती ही है, साथ ही सांस्कृतिक परिवेश का प्रभाव भी स्पष्ट रूप से सामने आकर पाठक को अपने साथ यात्रा करवाता है। इनकी कविताओं में उदात्त प्रेम की सहज अभिव्यक्ति है तो अनुभवों का सजग चेतन स्वरूप भी सामने आता है। जीवन – दर्शन से संदर्भित इन कविताओं में सामाजिक चिंतन के विविध आयाम उभरे हैं तो सांस्कृतिक चेतना और संस्कारों के अटूट सम्बन्ध भी चित्रित हुए हैं।
गद्य की विविध विधाओं में सृजनरत इन महिला रचनकारों का गद्य लेखन विषयवस्तु के अनुरूप सामने आया है, वहीं परिवेशजन्य अनुभूतियाँ अपने शैल्पिक सौन्दर्य से उभरी हैं।
भाषा, शैली के स्तर पर इन महिला रचनाकारों का लेखन सहज, सरल तो है ही साथ ही शिल्प और शैली के स्तर पर नवीन प्रयोग भी सामने आये हैं, यथा पाँच पंक्तियों में नौ शब्दों वाली सायली कविता।
लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने अपनी समीक्षात्मक दृष्टि, सर्वेक्षणात्मक कौशल और शोधात्मक वृत्ति के साथ इन सभी महिला रचनाकारों के लेखन को गहन अध्ययन और साक्षात्कार के माध्यम से उकेरा है। कदाचित् इसीलिए इन आलेखों में रचनाकारों के लेखन का आरम्भिक सन्दर्भ, लेखन पर प्रभाव, लेखन विधा, भाषा, शैली, विषयवस्तु , विशेषता, इनकी सामाजिक उपयोगिता, लेखन का मर्म और सृजन के सामाजिक सरोकारों का विश्लेषण रचनात्मक अवदान के साथ गहनता से उभर कर सामने आया है।
 लेखक ने अपनी अंतर्दृष्टि से रचनाओं का समुचित उल्लेख करते हुए प्रत्येक लेखिका के रचनात्मक भावों को उकेरा है। वहीं रचना के भीतर के तत्वों को विश्लेषित करते हुए उसके मर्म को उजागर किया है। यही नहीं प्रत्येक महिला लेखक के समूचे कृतित्व को अपनी समीक्षा पद्धति से सारगर्भित रूप में प्रस्तुत कर उनके व्यक्तित्व को संक्षेप में उभारा है तथा इन सभी  लेखिकाओं को समकालीन सृजन सन्दर्भों के समक्ष प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत कर सृजन परिवेश को समृद्ध किया है।
अन्ततः यही कि लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल की यह कृति समकालीन महिला लेखन सन्दर्भों में वह सृजनात्मक पड़ाव है, जो आने वाले समय में हाड़ौती अंचल की महिला लेखन की पूर्व पीठिका निर्मित करता है।
समीक्षक – विजय जोशी
प्रकाशक – साहित्यागार, जयपुर
मूल्य – 800₹
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विजय जोशी
174 – बी, आरकेपुरम् , सेक्टर बी,
कोटा – 324010 (राजस्थान)
मो. 9460237653

हाड़ौती अंचल के महिला लेखन का महत्वपूर्ण रेखांकन

1980 के दशक में जब मैंने लिखना शुरू किया था, कोटा के कुछ लेखकों के नाम देश भर की पत्र- पत्रिकाओं में देखने को मिल जाते थे। उनमें दुर्गाशंकर त्रिवेदी, प्रेमजी प्रेम, रामकुमार, वीणा गुप्ता, घनश्याम वर्मा के साथ प्रभात कुमार सिंघल का नाम भी था। पर्यटन स्थलों पर लिखना उन्हें प्रिय था। उस समय वो कोटा में सहायक जनसंपर्क अधिकारी के पद पर कार्यरत थे।

इसी विभाग से संयुक्त निदेशक पद से 2013 में सेवानिवृत्त होने के बाद भी उन्होंने लेखन निरंतर रखा। पिछले दिनों उन्होंने साहित्य और साहित्य साधकों पर लगातार लिखा। पत्रकारिता की दृष्टि से संपन्न एक निरंतर सृजनरत व्यक्ति कोटा के साहित्य जगत् को मिला। यह कोटा के साहित्य जगत् के लिए एक नई उपलब्धि सरीखा था, क्योंकि सक्रिय साहित्यकार प्रायः अपने और अपनों के बारे में लिखना/ लिखवाना पसंद करते हैं लेकिन डाॅ प्रभात कुमार सिंघल ने कोटा के सभी साहित्यकारों के बारे में लिखने का संकल्प लिया और फेसबुक पर लिखी सामग्री को पुस्तक रूप में छपवाया भी।
पिछले दिनों इसी क्रम में उनकी पुस्तक ‘नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान’ छपी। इस पुस्तक के लिए अपेक्षित सामग्री जुटाने में उन्होंने बहुत प्रयास किए। मैं स्वयं इसका साक्षी रहा हूँ जब वो राजस्थान की वरिष्ठ कवियित्री और मेरी माँ श्रीमती प्रेमलता जैन के बारे में वांछित जानकारी लेने इस वय में भी एक सुबह घर पधारे। बाद में।मुझे वाॅट्जएप पर संदेश भेजकर भी उन्होंने बहुत सारी जानकारी चाही।  ये प्रयास उनकी प्रतिबद्धता के परिचायक थे।
यह पुस्तक ऐसी 81 महिला रचनाकारों के बारे में जानकारी देती है, जिनका संबंध हाड़ौती अंचल से है/ या रहा है। कुछ नाम बहुत चर्चित हैं। कुछ नाम सक्रिय रचनाकारों के लिए भी अजाने हैं। प्रभात कुमार जी उन तक पहुँच सके, इसके लिए उन्हें साधुवाद दिया जाना चाहिए। पुस्तक में रचनाकारों की रचनाधर्मिता की समीक्षा नहीं है, उसका परिचय भर है। लेकिन संदर्भ के लिए यह एक महत्वपूर्ण प्रकाशन है।
पुस्तक में रचनाकारों का परिचय उनके नाम के अनुसार अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार हैं। लेखक की बहुत कोशिशों के बावजूद हमारे दौर के कुछ चर्चित नाम इसमें छूट गये हैं। इनमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कोटा का प्रतिनिधित्व करने वाली एकता शबनम, 80 के दशक की लोकप्रिय कवयित्री पूर्णिमा शर्मा, पूनम श्रीवास्तव,  लीला मोदी अंग्रेजी और हिन्दी में लिखने- छपने वाली ॠतु जोशी,  पूनम मेहता, सिद्धायनी जैन जैसे नाम शामिल हैं। मैं लेखक से अपेक्षा करूँगा कि यदि भविष्य में पुस्तक के पुनर्प्रकाशन का योग बने तो एक विशेष खंड उन महिला रचनाकारों पर भी हो जो अब दुनिया में नहीं हैं। इससे नई पीढ़ी को शकुंतला रेणु , कमला कमलेश, कमला शबनम, पार्वती जोशी, डाॅ प्रेम जैन, सरला अग्रवाल, पारस दुलारी आदि के अवदान को भी जानने का मौका मिलेगा।
डाॅ प्रभात कुमार सिंघल अपने सहज और सादा लेखन से अंचल की महिला रचनाकारों के अवदान को रेखांकित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास किया है। उन्हें साधुवाद ।
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नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान/
लेखक- डाॅ प्रभात कुमार सिंघल / साहित्यागार,  जयपुर/
 पृ 448/ मूल्य- 800रू

मधुकर काव्य सृजन संस्थान का साहित्योत्सव

कोटा ।  मधुकर काव्य सृजन संस्थान द्वारा स्वामी विवेकानंद नगर में स्थित
सेन समाज के छात्रावास में एक दिवसीय साहित्योत्सव का आयोजन किया गया।
मंच स्थित अतिथियों द्वारा माँ शारदा के समक्ष द्वीप प्रज्ज्वलित किया
गया, माँ शारदा की सरस्वती वन्दना  गीतकार किशन वर्मा ने की और स्वागत
उद्धबोधन संस्थान अध्यक्ष जोधराज परिहार ने किया। इस अवसर पर चार नवकोपल
का सम्मान किया गया।

अध्यक्षता करते हुए डॉ. गिरी गिरिवर ने कहा कि  हमें पुस्तक को क्रय करने
की परम्परा को बढ़ावा देना चाहिए, आपके साहित्य को समाज पढ़े तो हमें यह
पुस्तकों का मुफ्त वितरण रोकना पढ़ेगा। मुख्य अतिथि तेंवर सिंह हाड़ा  ने
कहा कि आज भी साहित्य सुनना तो बहुत अच्छा जाता हैं, लेकिन पढ़ा बहुत कम
जा रहा है, किताबों का सृजन करें, लेकिन जिन हाथों में वितरण करें उसका
विचार करें, पुस्तक को लिखते समय पाठक की भावना को देखकर ही सृजन होना
चाहिए। समाज को बाल सभाओं की जरूरत है,साहित्य अमर होता है,यह अर्थ के
लिए नहीं, समाज हित लिखा जाता हैं,”।

विशिष्ट अतिथि  रामेश्वर शर्मा ‘रामू भैया’, (संरक्षक, अ.भा. साहित्य
परिषद, चित्तौड़ प्रान्त) ने कहा कि “कोई भी आयोजन सहज नहीं है, मधुकर
काव्य सृजन संस्थान ने त्रैमासिक पत्रिका निकालकर बहुत सारे नये सृजकों
को स्थान दिया है, उसके लिए समर्पण सराहनीय है। ” विशिष्ट अतिथि डॉ.
अनिता वर्मा ने कहा कि ” आजके समय में कोई संवाद नहीं करना चाहते क्योंकि
समय अभाव बहुत है, साहित्य हमारी संवेदना को आकार देता है, रचनाकार समाज
की पीड़ा को बखूबी उकेरता है, बच्चों में तनाव का मुख्य कारण अगर दूर
करने में पुस्तकों की अहम भूमिका हो सकती है। विशिष्ट अतिथि किशनलाल
वर्मा ने भी विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन व संयोजक डॉ. आदित्य कुमार
गुप्ता  ने किया।कैलाशचन्द्र साहू ने आभार व्यक्त किया।

द्वितीय सत्र में वर्तमान परिवेश मे साहित्य से पाठकों की दूरी, कारण
एवं निवारण पर अध्यक्षता  – रघुराज सिंह कर्मयोगी  (वरि. साहित्यकार) ने
कहा कि  आपको अपने आप को जो अपनी किताबों को लिखें जिस पर प्रकाशन पैसे
लगायें आपकी विषय वस्तु उस तरह की  मुख्य अतिथि -डॉ. प्रीति मीणा
प्रोफेसर जेडीबी महाविद्यालय ने कहा कि पुस्तकों को पढ़ने की जरूरत है,
हमें पाठक हमारे घर से पैदा करने होंगे।मुख्य वक्ता  राज कुमार प्रजापत
मोटिवेशनल स्पीकर एवं साहित्यकार) आज मनोरंजन के लिए नहीं लिखा जा रहा
है, आज हजारों कविताओं को हम गुगल पर पढ़ सकते हैं समय बदला है,हमें समय
के साथ बदलना पड़ेगा।  अश्विनी त्रिपाठी , सत्येन्द्र वर्मा-और चेतन मालव
ने पत्र वचन किया। तीसरे सत्र में बाल साहित्य की दशा और दिशा और चौथे
सत्र में हाड़ौती राजस्थानी कथेतर साहित्य विषय पर चर्चा की गई। इन
सत्रों में साहित्यकार विष्णु शर्मा ‘हरिहर’  आशा पाण्डेय ओझा उदयपुर तथा
जितेंद्र निर्माही और जय सिंह आशावत, बूंदी ने क्रमशः अध्यक्षता की और
मुख्य अथिति थे।

हाड़ौती अँचल का बाल साहित्य पर श्यामा शर्मा, प्रीतिमा पुलक , साहित्य
में कहानी पर रेखा पंचोली,योगेश यथार्थ , देवकी दर्पण  एवं नन्दू
राजस्थानी ने पत्रवाचन किया। संचालन नहुष व्यास ने किया। समरोह में बड़ी
संख्या में हाड़ोती के साहित्यकार उपस्थित रहे।
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वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने देश में स्वतंत्र मीडिया को कमजोर किया: संपादक एस. गुरुमूर्ति

‘जन्मभूमि’ पत्रिका के गोल्डन जुबली समारोह में ‘मीडिया की दिशा’ विषय पर आयोजित एक सेमिनार में ‘तुगलक’ पत्रिका के संपादक एस. गुरुमूर्ति ने सोशल मीडिया से उत्पन्न खतरों पर चिंता जताई।

कोझिकोड में  भारतीय जनता पार्टी के मुखपत्र ‘जन्मभूमि’ पत्रिका के गोल्डन जुबली समारोह में ‘मीडिया की दिशा’ विषय   पर आयोजित एक सेमिनार में ‘तुगलक’ पत्रिका के संपादक एस. गुरुमूर्ति ने सोशल मीडिया से उत्पन्न खतरों पर चिंता जताई। उन्होंने सरकारों, राजनीतिक दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे सोशल मीडिया से पैदा हो रहे खतरों के खिलाफ ठोस कदम उठाएं।

गुरुमूर्ति ने कहा कि प्रिंट और प्रसारण मीडिया को अब सोशल मीडिया द्वारा प्रभावित किया जा रहा है, जो कि समाज के लिए एक बड़ा खतरा है। उन्होंने बिना निगरानी के सोशल मीडिया पर प्रकाशित हो रही समाचार सामग्रियों पर भी गंभीर चिंता व्यक्त की। उनके अनुसार, कुछ विदेशी फंडिंग वाले सोशल मीडिया मंच देश में गड़बड़ी फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। यहां तक कि प्रिंट मीडिया भी सोशल मीडिया पर अत्यधिक निर्भर हो चुका है।

गुरुमूर्ति ने भारतीय मीडिया की विभिन्न समयावधियों का उल्लेख करते हुए बताया कि कैसे स्वतंत्रता-पूर्व, स्वतंत्रता-उपरांत, आपातकाल और उसके बाद की अवधि में मीडिया का स्वरूप बदला। उन्होंने कहा कि 1990 के दशक में शुरू हुई वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने देश में स्वतंत्र मीडिया को कमजोर किया।

सेमिनार का संचालन करते हुए  एसएन कॉलेज, कन्नूर के प्रिंसिपल सी. पी. सतीश ने सोशल मीडिया के युग में गलत जानकारी के मुद्दे को उजागर किया। इस पर पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि सोशल मीडिया के विभिन्न ब्रांड्स के कारण भारतीय पत्रकारिता की गुणवत्ता और विश्वसनीयता में गिरावट आई है। चंद्रशेखर ने कहा कि तकनीकी प्रगति ने मीडिया के लिए चुनौतियां खड़ी कर दी हैं, खासकर जब देश में अब 90 करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। इस बढ़ी हुई पहुंच के कारण गलत जानकारी तेजी से फैल रही है। उन्होंने आगाह किया, “अब देश में दंगे भड़काने के लिए हथियार या वाहन की जरूरत नहीं है, एक कंप्यूटर और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ही काफी हैं।”

सेमिनार की अध्यक्षता जनमभूमि पत्रिका के संपादक के. एन. आर. नमबूथिरी ने की।

भारत के प्रमुख स्वामीनारायण मंदिर

उत्तर प्रदेश में अयोध्या के निकट स्थित छपिया स्वामी नारायण संप्रदाय के प्रर्वतक घनश्याम महाराज की जन्म और बचपन की कर्मस्थली है। यहां हर साल कार्तिक पूर्णिमा और चैत्र पूर्णिमा (कार्तिक और चैत्र मास की पूर्णिमा) पर यहां विशाल मेला लगता है, जिसमें हर साल दुनिया के हर हिस्से से लाखों तीर्थयात्री इस स्थान पर आते हैं।

स्वामीनारायण भगवान के मंदिर मन्दिर कुल नौ मंदिरों का निर्माण स्वामीनारायण भगवान ने अपने हाथों से किया था। नीचे जिन नौ मंदिरों की मैं बात कर रहा हूं उनका निर्माण भगवान स्वामीनारायण ने गुजरात में कराया है ।

1.जूनागढ़ स्वामीनारायण मंदिर

श्री स्वामीनारायण मंदिर, जूनागढ़, जिसे श्री राधा रमण मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर को स्वामीनारायण संप्रदाय के संस्थापक स्वामीनारायण ने स्वयं बनाने का आदेश दिया था।जूनागढ़ शहर गिरनार पर्वत की गोद में बसा है । मंदिर के लिए भूमि राजा हेमंतसिंह (जीनाभाई, पांचाल दरबार) द्वारा दान की गई थी, और उनकी स्मृतियाँ यहाँ बनाए रखी गई हैं। इसका आधार शिला 10 मई 1826 ई. को गोपालानंद स्वामी और अन्य वरिष्ठ परमहंसों की उपस्थिति में गुणातीतानंद स्वामी द्वारा रखी गई थी।  निर्माण की देखरेख ब्रह्मानंद स्वामी ने की थी । प्राण प्रतिष्ठा , या देवताओं की स्थापना, शुभ कार्यक्रमों के उत्सव के साथ पूरे दो दिन तक चली।1 मई, 1828 ई को, स्वामी नारायण ने स्वयं श्रीरणछोड़राय और त्रिकमराय को आंतरिक गर्भगृह में स्थापित किया । पूर्वी विंग में, उन्होंने राधारमण देव और हरिकृष्ण महाराज को स्थापित किया और पश्चिमी भाग में उन्होंने सिद्धेश्वर महादेव , पार्वती , गणेश और नंदीश्वर को स्थापित किया। स्वामीनारायण ने गुणातीतानंद स्वामी को पहला महंत (धार्मिक और प्रशासनिक प्रमुख) नियुक्त किया: उन्होंने 40 से अधिक वर्षों तक इस भूमिका में कार्य किया। स्वामीनारायण मंदिर की परिधि 278 फीट है। इस मंदिर में पाँच शिखर और कई मूर्तियाँ हैं।

2.कालूपुर स्वामीनारायण मंदिर अहमदाबाद

पुराने शहर में शानदार, बहुरंगी, लकड़ी की नक्काशी वाला स्वामीनारायण मंदिर, 1822 में स्वामीनारायण हिंदू संप्रदाय के पहले मंदिर के रूप में बनाया गया था। अनुयायियों का मानना है कि संप्रदाय के संस्थापक, स्वामीनारायण सर्वोच्च व्यक्ति थे। यहां प्रतिदिन सुबह 8 बजे हेरिटेज वॉक की शुरुआत आमतौर पर मंदिर में पूजा के साथ होती है, जिसमें भक्तों की भीड़ उमड़ती है। प्रत्येक पैनलिंगकलात्मक अलंकरण के साथ बर्मा सागौन की लकड़ी से बनी है। प्रवेश द्वार की मूर्तियों में राजस्थानी वेशभूषा और रंग भी हैं। मंदिर के मुख्य देवता नर नारायण देव हैं।, श्री राधा कृष्ण देव, श्री धर्मभक्ति माता और हरि कृष्ण महाराज, श्री बाल स्वरूप घनश्याम महाराज और श्री रंगमोहल घनश्याम महाराज भी बिराजमान हैं। मंदिर का पश्चिमी भाग तपस्वी या सांख्य योगी महिलाओं के निवास के रूप में आवंटित किया गया है।

 यह स्वामी नारायण संप्रदाय का पहला मंदिर है, और इसका निर्माण संस्थापक श्री स्वामी नारायण भगवान के निर्देश पर किया गया था। एक अधिकारी सर डनलप स्वामी नारायण की गतिविधियों से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने सरकार की ओर से मंदिर की स्थापना के लिए 5,000 एकड़ जमीन दान कर दी थी। एक बार जब प्रभावशाली संरचना तैयार हो गई, तो उन्होंने मंदिर को 101 तोपों की सलामी दी। बाद में मंदिर के विभिन्न खंड जोड़े गए। मुख्य संरचना को उत्तरी प्रवेशद्वार, नर नारायण मंदिर, अक्षर भवन, रंग महल और पवित्र महिलाओं और छात्रों के लिए आवासों में विभाजित किया गया था। आचार्य महाराजश्री केशवप्रसादजी महाराज द्वारा निर्मित एक हवेली 1871 में बनी।

3.मूली स्वामीनारायण मंदिर

मुलिधाम में संवत 1879 में महासूद 5 (17 जनवरी, 1823) को श्रीजी महाराज ने वेदों में निर्धारित रीति-रिवाजों के अनुसार सभी मूर्तियों की प्राणप्रतिष्ठा की।

मंदिर के मुख्य देव श्री राधाकृष्ण देव जी हैं।मंदिर में श्री हरिकृष्ण महाराज, श्री रणछोड़ जी-त्रिकमजी और श्री धर्मदेव- भक्तिमाता की मूर्तियाँ हैं। प्राण प्रतिष्ठा (उद्घाटन समारोह) के दौरान, श्री हरि ने मुलिधाम, जन्माष्टमी और वसंत पंचमी समाइयो की महिमा के बारे में बताया।

मूलधाम की महिमा स्वयं भगवान श्रीस्वामीनारायण कह रहे हैं और सद्गुरु ब्रह्मचारी श्रीवासुदेवानंद वर्णीजी द्वारा रचित ग्रंथराज श्रीमद् सत्संगीभूषण में लिखा है कि सम्पूर्ण भारत में दस बार तीर्थ करने से जो फल प्राप्त होता है, वह वसंत पंचमी के दिन श्री राधाकृष्णदेव के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है। उस दिन से लेकर आज तक हर वसंत पंचमी के दिन हजारों भक्त इस मंदिर में आते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन श्रीनर नारायण देव पीठाधिपति आचार्य महाराज श्री (कालूपुर, अहमदाबाद) मंदिर परिसर में रंग छिड़ककर रंगोत्सव के दौरान सभी भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।

4.भुज स्वामीनारायण मंदिर

स्वामीनारायण मंदिर, भुज) भुज में एक हिंदू मंदिर है । इस मंदिर का निर्माण स्वामीनारायण संप्रदाय के संस्थापक स्वामीनारायण ने करवाया था । इस मन्दिर के मुख्य देव श्रीनरनारायण देव जी हैं। भुजभक्तों के मांग पर , स्वामी नारायण ने वैष्णवानंद स्वामी को संतों की एक टीम के साथ वहां जाने और एक मंदिर बनाने के लिए कहा। 1822 में, उन्होंने मंदिर स्थल पर मूर्ति स्थापित की और मंदिर की योजना बनाई। एक वर्ष के अंदर उन्होंने नर नारायण का मंदिर बनवाया था।

यह मंदिर नरनारायण देव गढ़ी के अंतर्गत आता है। कच्छ के भुज क्षेत्र से वरिष्ठ भक्त गंगारामभाई जेठी सुंदरजीभाई, जिग्नेश्वर भाई और अन्य लोग गढ़दा गए थे जहाँ भगवान स्वामीनारायण फुलडोल उत्सव में भाग ले रहे थे । उस उत्सव में, भुज के भक्तों ने स्वामीनारायण से मुलाकात की और उनसे भुज में एक मंदिर बनाने का अनुरोध किया। भगवान स्वामीनारायण ने वैष्णवानंद स्वामी को संतों की एक टीम के साथ भुज जाकर एक मंदिर बनाने के लिए कहा। वैष्णवानंद स्वामी और उनके साथ आए संत 1822 में भुज गए, मंदिर की भूमि के पास के स्थान पर डेरा डाला, मंदिर और परिसर की योजना बनाई, सूक्ष्म विवरणों के साथ योजनाओं को क्रियान्वित किया और एक वर्ष की छोटी सी अवधि में उन्होंने नरनारायण देव का मंदिर निवास बनाया । कच्छ क्षेत्र में सत्संग का प्रसार स्वर्गीय गुरु रामानंद स्वामी ने किया था । वे लगातार भुज और कच्छ के अन्य स्थानों का दौरा करते थे।

भगवान स्वामीनारायण ने भारत के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित इस मंदिर को सुशोभित किया था और उन्होंने स्वयं नरनारायण देव की मूर्तियों की स्थापना की थी तथा उनके स्वयं के रूप – हरिकृष्ण महाराज कोआचार्य अयोध्या प्रसादजी महाराज द्वारा मंदिर के केंद्रीय गर्भगृह में स्थापित किया गया था। केंद्रीय गुंबद पर भगवान के इन स्वरूपों के अलावा पूर्वी गुंबद के नीचे राधाकृष्ण देव , हरिकृष्ण महाराज और पश्चिमी गुंबद में घनश्याम महाराज विराजमान हैं। रूप चौकी – आंतरिक मंदिर का मुख्य चौक – में गणपति और हनुमान की प्रतिमाएँ हैं ।

मंदिर के अक्षर भवन में स्वामीनारायण की वे निजी वस्तुएं रखी हैं, जिनका उपयोग उन्होंने अपने जीवन में किया है।

5.वड़ताल स्वामीनारायण मंदिर

लक्ष्मीनारायण देव गादी का मुख्यालय वडताल में इस मंदिर में स्थित है । इसमें मुख्य देव श्री लक्ष्मीनारायण देव जी हैं।

स्वामी नारायण ने वडताल में अपनी मूर्ति भी स्थापित की, जिसका नाम उन्होंने हरिकृष्ण महाराज रखा। मंदिर में तीन मुख्य मंदिर हैं, इस मंदिर का केंद्रीय मंदिर लक्ष्मी नारायण और रणछोड़ राय का है। दाईं ओर भगवान राधा रानी और श्री कृष्ण की उनके महाविष्णु रूप हरिकृष्ण के साथ मूर्ति है और बाईं ओर वासुदेव , धर्म और भक्ति हैं। मंदिर के लकड़ी के खंभों पर रंग-बिरंगी लकड़ी की नक्काशी है।मंदिर परिसर में एकधर्मशाला है। ज्ञानबाग मंदिर के द्वार के उत्तर-पश्चिम में एक उद्यान है जिसमें स्वामीनारायण को समर्पित चार स्मारक हैं। वडताल शहर को वडताल स्वामी नारायण के नाम से भी जाना जाता है।

यहाँ का मंदिर कमल के आकार का है, जिसके भीतरी मंदिर में नौ गुंबद हैं। इस मंदिर के लिए ज़मीन स्वामीनारायण के भक्त जोबन पागी ने दान की थी। मंदिर का निर्माण स्वामी नारायण ने करवाया था और ब्रह्मानंद स्वामी की देखरेख में इसका निर्माण हुआ था । निर्जला एकादशी के दिन वड़ताल से भक्त श्रीजी महाराज से मिलने गढ़डा गए थे । अगले दिन – ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष के द्वादशी दिन – उन्होंने स्वामीनारायण से वड़ताल में कृष्ण मंदिर बनाने का अनुरोध किया। श्रीजी महाराज ने अपने शिष्य एस. जी. ब्रह्मानंद स्वामी को अस्थायी रूप से मुली मंदिर के निर्माण को छोड़ने और वड़ताल मंदिर के निर्माण की योजना बनाने और देखरेख करने के लिए संतों की एक टीम के साथ आगे बढ़ने का आदेश दिया ।

 इस मंदिर का निर्माण 15 महीनों के भीतर पूरा हुआ और लक्ष्मी नारायण देव की मूर्तियों को 3 नवंबर 1824 को वैदिक भजनों और स्थापना समारोह के भक्ति उत्साह के बीच स्वयं स्वामीनारायण ने स्थापित किया। मंदिर के बीच में उन्होंने लक्ष्मीनारायण देव और रणछोड़ की मूर्तियां स्थापित कीं। केंद्रीय मंदिर में विराजमान देवताओं के अतिरिक्त पूजा स्थल की बायीं दीवार में दक्षिणावर्त शंख और शालिग्राम (विष्णु का प्रतीक) की प्रतिमा स्थापित की गई है तथा आंतरिक गुम्बद में भगवान के दस अवतारों की पाषाण प्रतिमाएं स्थापित हैं, साथ ही शेषनाग के आसन पर विराजमान विष्णु की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। दीवारों को रामायणके रंग-बिरंगे चित्र से उतारा गया है। मंदिर की दीवारों को रामायणके रंग-बिरंगे चित्र से उतारा गया है ।

6.गढडा स्वामीनारायण मंदिर

गढड़ा भारत के गुजरात राज्य के बोटाद ज़िले में स्थित एक नगर है। यह घेला नदी के किनारे बसा हुआ है। इसी नगर को स्वामीनारायण सम्प्रदाय के स्थापक भगवान स्वामीनारायण ने अपनी कर्मभूमि बना कर अपना ज़्यादातर जीवनकाल यही गुजारा था, उनका देहावसान भी यही हुआ था। यह नगर अपने स्वामीनारायण मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। जिसे गोपीनाथ जी देव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, गढ़ाड़ा , गुजरात , भारत में एक हिंदू मंदिर है । यह स्वामीनारायण संप्रदाय मंदिर संप्रदाय के संस्थापक स्वामीनारायण द्वारा निर्मित नौ मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण श्री स्वामिनारायण ने स्वयं करा था।

 इस मंदिर के निर्माण के लिए भूमि , गढ़डा में दादा खाचर के दरबार द्वारा दान की गई थी । दादा खाचर और उनका परिवार स्वामीनारायण के भक्त थे। मंदिर उनके अपने निवास के प्रांगण में बनाया गया था।मंदिर के काम की योजना और निष्पादन सीधे स्वामीनारायण के परामर्श और मार्गदर्शन में किया गया था। स्वामीनारायण ने निर्माण की देखरेख की और पत्थर और गारा उठाकर मंदिर के निर्माण में मैनुअल सेवा में भी मदद की। इस मंदिर में दो मंजिल और तीन गुंबद हैं। यह नक्काशी से सुसज्जित है। मंदिर एक विशाल चौकोर पर एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है और इसमें एक सभा कक्ष है जिसमें तपस्वियों और तीर्थ यात्रियों के लिए बड़ी धर्मशालाएँ और रसोईघर हैं। स्वामीनारायण ने 9 अक्टूबर 1828 को इस मंदिर में मूर्तियाँ स्थापित की थीं। गोपीनाथ ( कृष्ण का एक रूप ), उनकी पत्नी राधा और हरिकृष्ण (स्वामीनारायण) केंद्रीय मंदिर में प्रतिष्ठित हैं।स्वामीनारायण के माता-पिता धर्मदेव और भक्तिमाता और वासुदेव (कृष्ण के पिता) की पूजा पश्चिमी मंदिर में की जाती है। रेवती – बलदेवजी , कृष्ण और सूर्यनारायण पूर्वी मंदिर में हैं। हरिकृष्ण की मूर्ति की बनावट स्वामीनारायण जैसी ही है।

7.स्वामी नारायण मंदिर, धोलेरा

यह एक हिंदू मंदिर है ,स्वामीनारायण द्वारा निर्मित नौ श्री स्वामीनारायण मंदिरों में से एक है । धोलेरा अपने आप में एक प्राचीन बंदरगाह शहर है, जो अहमदाबाद जिले के धंधुका से 30 किमी दूर है। तीन शिखरों वाले इस मंदिर के निर्माण की देखरेख और योजना निष्कुलानंद स्वामी,आत्मानंद स्वामी, अक्षरानंद स्वामी और धर्मप्रसाद स्वामी ने की थी । जिस जमीन पर इमारत बनी है, वह दरबार पुंजाभाई ने दान की थी। स्वामीनारायण भगवान जब कमियाला में डेरा डाले हुए थे, तो भक्तों श्री पुंजाभाई और अन्य लोगों ने उनसे धोलेरा जाकर धोलेरा में नए मंदिर में मूर्तियाँ स्थापित करने का अनुरोध किया। स्वामीनारायण भगवान ने ब्राह्मण पुजारियों से स्थापना समारोह के लिए शुभ समय खोजने को कहा।

स्वामी नारायण भगवान ने पंजाबभाई और अन्य भक्तों के अनुरोध पर धोलेरा को सुशोभित किया, और 19 मई 1826 को, और वैदिक भजनों के बीच मंदिर की मुख्य सीट पर मदन मोहन देव और उनके स्वयं के रूप, हरिकृष्ण महाराज की मूर्तियों को स्थापित किया । स्वामीनारायण भगवान ने तब अद्भुतानंद स्वामी को मंदिर का महंत नियुक्त किया । केंद्रीय वेदी पर मदन मोहन देव ( कृष्ण ), राधा जी और हरिकृष्ण महाराज की मूर्तियाँ विराजमान हैं। आंतरिक मंदिर और गर्भगृह में देवताओं के अलावा , हनुमान और गणपति मंदिर की मुख्य सीढ़ी के पास रूप चौकी की शोभा बढ़ाते हैं। पश्चिम में, सीढ़ियों के पास, शेषशायी, सूर्यनारायण , धर्म-भक्ति और घनश्याम महाराज की मूर्तियाँ हैं। शंकर और पार्वती की मूर्तियाँ दाहिनी ओर हैं।

8.श्रीनारायण मंदिर, जूनागढ़

गिरनार पर्वत पर जूनागढ़ शहर में स्थित इस मंदिर में पांच गुंबद और बाहरी सजावट की गई है। इसका निर्माण की व्याख्या ब्रह्मानंद स्वामी ने की थी; इसे पांचाल के दरबार के राजा वलथीसिंह द्वारा दान की गई भूमि पर बनाया गया था। 1 मई 1828 को, स्वामी नारायण ने रणछोड़राय और त्रिकमराय की मूर्तियों की मुख्य वेदिका स्थापित की, जिसका नमूना 278-फुट (85 मीटर) है। गर्भगृह के पत्थर पर स्वामी नारायण का जीवन उकेरा हुआ है।

9.श्रीनारायण मंदिर, गढ़ाडा

गढ़दा(या गढ़पुर) मंदिर के लिए भूमि गढ़दा में दादा खाचर के दरबार द्वारा दान किया गया था। दरबार दादा खाचरऔर उनके परिवार स्वामीनारायण के भक्त थे। मंदिर उन्होंने अपने निवास स्थान पर बनवाया था। इस मंदिर में दो मंजिलें और तीन गुंबद हैं और निर्मित है।स्वामीनारायण ने पत्थर और गारा पर्वत मंदिर के निर्माण में सहायता की, और उन्होंने 9 अक्टूबर 1828 कोगोपीनाथ,राधिकाऔर हरिकृष्ण की प्रतिमाएँ स्थापित कीं।

यहां लक्ष्मी वादी का भी घर है। यह स्वामी नारायण की अस्थियों का दफ़न स्थल है। इस स्थल पर एक मंदिर है जिसमें भाई इच्छाराम, स्वामी नारायण और रघुवीरजी महाराज की मूर्तियाँ हैं।

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)

जनजाति समाज के लिए चलाई जा रही आर्थिक विकास की योजनाएं

जनजाति समाज बहुत ही कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए देश में दूर दराज इलाकों के सघन जंगलो के बीच वनों में रहता है। जनजाति समाज के सदस्य बहुत ही कठिन जीवन व्यतीत करते रहे हैं एवं देश के वनों की सुरक्षा में इस समाज का योगदान अतुलनीय रहा है। चूंकि यह समाज भारत के सुदूर इलाकों में रहता है अतः देश के आर्थिक विकास का लाभ इस समाज के सदस्यों को कम ही मिलता रहा है। इसी संदर्भ में केंद्र सरकार एवं कई राज्य सरकारों ने विशेष रूप से जनजाति समाज के लिए कई योजनाएं इस उद्देश्य से प्रारम्भ की हैं कि इस समाज के सदस्यों को राष्ट्र विकास की मुख्य धारा में शामिल किया जा सके एवं इस समाज की कठिन जीवनशैली को कुछ हद्द तक आसान बनाया जा सके। भारत में सम्पन्न हुई वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजातियों की कुल जनसंख्या 10.43 करोड़ है, जो भारत की कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत है।  जनजाति समाज के सदस्यों को भारतीय राजनीति की मुख्यधारा में शामिल किए जाने के प्रयास भी किए जाते रहे हैं एवं इस समाज के कई प्रतिभाशाली सदस्य तो कई बार केंद्र सरकार के मंत्री, राज्यपाल एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री के पदों तक भी पहुंचे हैं। आज भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू भी आदिवासी समाज से ही आती हैं।

केंद्र सरकार द्वारा जनजाति समाज को केंद्र में रखकर उनके लाभार्थ चलाई जा रही विभिन योजनाओं की विस्तृत जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से एक विशेष पोर्टल का निर्माण किया है। जिसकी लिंक है – भारत सरकार का राष्ट्रीय पोर्टल https://www.इंडिया.सरकार.भारत/ – इस लिंक को क्लिक करने के बाद “खोजें” के बॉक्स में जनजाति समाज को दी जाने वाली सुविधाएं टाइप करने से, भारत सरकार द्वारा प्रदान की जा रही विभिन्न सुविधाओं की सूची निकल आएगी एवं इन योजनाओं का लाभ उठाने के लिए उपयोग किए जाने वाले प्रपत्रों की सूची भी डाउनलोड की जा सकती है।

जनजाति समाज के लिए केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं को दो प्रकार से चलाया जा रहा है। कई योजनाओं का सीधा लाभ जनजाति समाज के सदस्यों को प्रदान किया जाता है। साथ ही, कुछ योजनाओं के अंतर्गत राज्य सरकारों को विशेष केंद्रीय सहायता एवं अनुदान प्रदान किया जाता है और इन योजनाओं को राज्य सरकारों द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। जैसे, जनजातीय उप-योजना के माध्यम से राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को जनजातीय विकास हेतु किए गए प्रयासों को पूरा करने के लिए विशेष केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है। इस सहायता का मूल प्रयोजन पारिवारिक आय सृजन की निम्न योजनाओं जैसे कृषि, बागवानी, लघु सिंचाई, मृदा संरक्षण, पशुपालन, वन, शिक्षा, सहकारिता, मत्स्य पालन, गांव, लघु उद्योगों तथा न्यूनतम आवश्यकता संबंधी कार्यक्रमों से है। इसी प्रकार, जनजातीय विकास हेतु परियोजनाओं की लागत को पूरा करने तथा अनुसूचित क्षेत्र के प्रशासन स्तर को राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों के बराबर लाने के लिए राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को भी अनुदान दिया जाता है। जनजातीय समाज के विद्यार्थियों को गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान करने के लिए आवासीय विद्यालय स्थापित करने हेतु भी उक्त निधियों के कुछ हिस्से का प्रयोग किया जाता है।

राज्य सरकारों को वित्त उपलब्ध कराने सम्बंधी उक्त दो योजनाओं का केवल उदाहरण के लिए वर्णन किया गया है, अन्यथा इसी प्रकार की कई योजनाएं केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं। इसी कड़ी में जनजाति समाज के सदस्यों को सीधे ही लाभ प्रदान करने के उद्देश्य से भी केंद्र सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिनमे मुख्य रूप से शामिल हैं – (1) आदिवासी उत्पादों और उत्पादन विपणन विकास की योजना; (2) एमएसपी योजना की मूल्य श्रृंखला के विकास के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के माध्यम से लघु वनोपज के विपणन हेतु योजना; (3) आदिवासी उत्पादों या निर्माण योजना के विकास और विपणन के लिए संस्थागत सहयोग की योजना; (4) आदिवासी क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण योजना के अंतर्गत वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने की योजना; (5) जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना की योजना; (6) जनजातीय अनुसंधान संस्थानों के लिए अनुदान योजना; (7) उत्कृष्ट केन्द्रों के समर्थन के लिए वित्तीय सहायता योजना जिसका लाभ जनजातीय विकास और अनुसंधान क्षेत्र में काम कर रहे विश्वविद्यालयों और संस्थानों को दिया जाता है। इस योजना का उद्देश्य विभिन्न गैर सरकारी संगठनों की संस्थागत संसाधन क्षमताओं को बढ़ाना और मजबूत बनाना है ताकि इन अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालय के विभागों द्वारा आदिवासी समुदायों पर गुणात्मक, क्रिया उन्मुख और नीति अनुसंधान का संचालन किया जा सके; (8) राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त एवं विकास निगम (एनएसटीएफडीसी) और राज्य अनुसूचित जनजाति वित्त एवं विकास निगम (एसटीएफडीसी) को न्यायसम्य (इक्विटी) सहायता प्रदान करने की योजना। यह योजना केन्द्र सरकार द्वारा वित्त पोषित है और आदिवासी मामले मंत्रालय द्वारा शुरू की गई है; (9) आदिवासी आवासीय विद्यालयों की स्थापना सम्बंधी योजना; (10) अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए केन्द्रीय क्षेत्र की छात्रवृत्ति योजना; (11) अनुसूचित जनजाति के छात्रों की योग्यता उन्नयन संबंधी योजना; (12) अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति योजना। उक्त समस्त योजनाओं की विस्तृत जानकारी उक्त वर्णित पोर्टल पर उपलब्ध है।

इसी प्रकार केंद्र सरकार के साथ साथ कई राज्य सरकारें भी जनजाति समाज के लाभार्थ स्वतंत्र रूप से कुछ योजनाओं का संचालन करती है। मध्यप्रदेश, भारत के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में गिना जाता है एवं मध्यप्रदेश में विविध, समृद्ध एवं गौरवशाली जनजातीय विरासत है जिसका कि मध्यप्रदेश में न केवल संरक्षण एवं संवर्धन किया जा रहा है, अपितु जनजातीय क्षेत्रों के समग्र विकास तथा जनजातीय वर्ग के कल्याण के लिए निरंतर कई प्रकार के कार्य भी किए जा रहे हैं। मध्यप्रदेश में भारत की कुल जनजातीय जनसंख्या की 14.64% जनसंख्या निवास करती है। भारत में 10 करोड़ 45 लाख जनजाति जनसंख्या है, वहीं मध्यप्रदेश में 01 करोड़  53 लाख जनजाति जनसंख्या है। भारत की कुल जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या का प्रतिशत 8.63 है और मध्यप्रदेश में कुल जनसंख्या में जनजाति जनसंख्या का प्रतिशत 21.09 है। मध्यप्रदेश में जनजाति उपयोजना क्षेत्रफल, कुल क्षेत्रफल का 30.19% है। प्रदेश में 26 वृहद, 5 मध्यम एवं 6 लघु जनजाति विकास परियोजनाएं संचालित हैं तथा 30 माडा पॉकेट हैं। मध्यप्रदेश में कुल 52 जिलों में 21 आदिवासी जिले हैं, जिनमें 6 पूर्ण रूप से जनजाति बहुल जिले तथा 15 आंशिक जनजाति बहुल जिले हैं। मध्यप्रदेश में 89 जनजाति विकास खंड हैं। मध्यप्रदेश के 15 जिलों में विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा, भारिया एवं सहरिया के 11 विशेष पिछड़ी जाति समूह अभिकरण संचालित हैं।

मध्यप्रदेश सरकार जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक विकास के साथ ही उनके स्वास्थ्य एवं जनजाति बहुल क्षेत्रों के विकास के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं संचालित कर रही हैं।

(1) मध्यप्रदेश के विशेष पिछड़ी जनजाति बहुल 15 जिलों में आहार अनुदान योजना संचालित की जा रही है, जिसके अंतर्गत विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा, भारिया और सहरिया परिवारों की महिला मुखिया के बैंक खाते में प्रतिमाह रू. 1000 की राशि जमा की जाती रही है।
 (2) आकांक्षा योजना के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति वर्ग के 11वीं एवं 12वीं कक्षा के प्रतिभावान विद्यार्थियों को राष्ट्रीय प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे जईई, नीट, क्लेट की तैयारी के लिए नि:शुल्क कोचिंग एवं छात्रावास की सुविधा प्रदान की जाती है।
 (3) प्रतिभा योजना के अंतर्गत जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों को उच्च शासकीय शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है।
 (4) आईआईटी, एम्स, क्लेट तथा एनडीए की परीक्षा उत्तीर्ण कर उच्च शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश पर रू. 50 हजार रूपये की राशि तथा अन्य परीक्षाओं जेईई, नीट, एनआईआईटी, एफडीडीआई, एनआईएफटी, आईएचएम के माध्यम से प्रवेश लेने पर रू. 25 हजार रूपये की राशि प्रदान की जाती रही है।
(5) महाविद्यालय में अध्ययन करने वाले अनुसूचित जनजाति के जो विद्यार्थी गृह नगर से बाहर अन्य शहरों में अध्ययन कर रहे हैं, उन्हें वहां आवास के लिए संभाग स्तर पर 2000 रूपये, जिला स्तर पर 1250 रूपये तथा विकास खंड एवं तहसील स्तर पर 1000 रूपये प्रतिमाह की वित्तीय सहायता, आवास सहायता योजना के अंतर्गत प्रदान की जाती रही है।
 (6) इसी प्रकार की सहायता अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों को विदेश स्थित उच्च शैक्षणिक संस्थानों में अध्ययन के लिए भी प्रदान की जाती है।
(7) अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों के शैक्षणिक विकास के लिए प्रदेश के 89 जनजाति विकास खंडों में प्राथमिक शालाओं से लेकर उच्चतर माध्यमिक स्तर की शालाएं संचालित की जा रही हैं जिनमें विद्यार्थियों को प्री-मेट्रिक तथा पोस्ट मेट्रिक छात्रवृत्ति दी जा रही है।
 (8) मध्यप्रदेश के अनुसूचित जनजाति के ऐसे विद्यार्थियों, जो सिविल सेवा परीक्षा में निजी संस्थाओं द्वारा कोचिंग प्राप्त कर रहे हैं, को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है। साथ ही अनसूचित जनजाति के प्रदेश के ऐसे विद्यार्थी, जो सिविल सेवा परीक्षा की प्राथमिक परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं, उन्हें 40 हजार रूपये, जो मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं उन्हें 60 हजार रूपये तथा साक्षात्कार सफल होने पर 50 हजार रुपए की राशि दी जाती रही है।
(9) मध्यप्रदेश में जनजातीय लोक कलाकृतियों एवं उत्पादों को लोकप्रिय करने तथा उनसे जनजाति वर्ग को लाभ दिलाए जाने के उद्देश्य से उनकी जी आई टैगिंग कराई जा रही है। प्रथम चरण में

(10 )जनजाति लोक कलाकृतियों एवं उत्पादों  की जीआई ट्रैगिंग कराए जाने की प्रक्रिया प्रारंभ की गई है।

इस प्रकार, केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा जनजाति समाज के लाभार्थ अन्य कई प्रकार की विशेष योजनाएं सफलता पूर्वक चलाई जा रही हैं ताकि जनजाति समाज की कठिन जीवन शैली को कुछ आसान बनाया जा सके एवं जनजाति समाज को देश की मुख्य धारा में शामिल किया जा सके।

प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

परत दर परत लंदन : शहर के अतीत, वर्तमान और भविष्य की दास्तान

यह तो सभी जानते हैं कि लंदन अपने आप में एक अनूठा शहर है और अपने वास्तुशिल्प, इतिहास , कला और संस्कृति की विरासत के कारण दुनिया भर से पर्यटकों  को आकर्षित करता है . लेकिन किसी भी शहर के एक नहीं कई कई चेहरे होते हैं, उसकी परतों के भीतर कुछ और शहर छुपे होते हैं . इसलिए उसे केवल टूरिस्ट ब्रोशर या फिर एक बार की यात्रा से नहीं समझा जा सकता है.

प्रदीप गुप्ता की  यह पुस्तक उनके द्वारा कई बार लंबे समय तक लंदन में रह कर,वहाँ की पैदल  सड़कें नापने, कला दीर्घाओं , म्यूजियम , बुक स्टोर , लाइब्रेरी में समय बिताने , इस शहर को जीने, यहाँ के तौर तरीक़ों, इतिहास, कला और संस्कृति को समझने का नतीजा है. उनका प्रयास यह है कि इसमें गूगल बाबा पर उपलब्ध जानकारी से इतर सामग्री रहे.

उनकी किताब से यह भी पता चलता है कि इस शहर में कई भारत भी छुपे हुए हैं . उदाहरण के लिए साउथहाल का अध्याय लंदन की पंजाबी संस्कृति की जानकारी देता है , अल्पर्टन का अध्याय लंदन में बसे मिनी गुजरात के खाने पीने , पहनने ओढ़ने का रोचक विवरण देता है . इसी तरह से पूर्वी लंदन के ब्रिक लेन में बसे मिनी बांग्लादेश का वृतांत भी रोचक है.

पुस्तक  में इंडिया हाउस की दास्तान भी है जहां से श्यामजी कृष्ण वर्मा सरीखे देशभक्तों ने भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन की दिशा तय की थी . एक अध्याय ईस्ट इंडिया हाउस पर भी है जो ज़मींदोज़ हो चुका है लेकिन जो लंबे समय तक उस ईस्ट इंडिया कमनी का मुख्यालय रहा जो भारत पर लंबे समय तक राज कर गई .

लेखक प्रदीप गुप्ता पेशे से बैंकर रह चुके हैं और पिछले बारह वर्षों से दुनिया भर में निरंतर घूम रहे हैं, पहले भी उनकी तीन पुस्तकें अलास्का, येलोस्टोन नेशनल पार्क, और घूमते घूमते प्रकाशित हो चुकी हैं.

पुस्तक की भूमिका जाने माने भाषाविद्, कवि और डिप्लोमेट अनिल जोशी ने लिखी है जो स्वयं लंबे समय तक लंदन में अपने डिप्लोमेट केरियर के दौरान रह चुके हैं।

प्रकाशक :  आद्विक पब्लिकेशन,41, हसनपुर,
आईपी एक्सटेंशन , पटपड़गंज, दिल्ली -110092
लेखक : प्रदीप गुप्ता
मूल्य : 250/-

डॉ.सिंघल का जबलपुर में सम्मान

कोटा । जबलपुर की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रियाशील संस्था कादंबरी द्वारा शनिवार 9 नवंबर 24 को शहीद स्मारक भवन, जबलपुर में आयोजित अखिल भारतीय साहित्यकार एवं पत्रकार अलंकार सम्मान समारोह में  कोटा के लेखक और पत्रकार  डॉ.प्रभात कुमार सिंघल को पांच हजार रुपए के स्व. सिद्धार्थ भट्ट सम्मान से सम्मानित किया गया। संस्था अध्यक्ष आचार्य भगवत दुबे, मुख्य अथिति कुलाधिपति भोपाल डॉ.संतोष चौबे और सम्मान प्रदाता श्रीमती मीना पुरुषोत्तम भट्ट ने वैजयंती माला पहनाकर , साल ओढ़कर, सम्मान पत्र और राशि प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया। इस अवसर पर देश के विभिन्न अंचलों से आए 118 साहित्यकारों और पत्रकारों को सम्मानित किया गया।
 संस्था के महासचिव राजेश पाठक प्रवीण ने बताया कि  डॉ. सिंघल को यह सम्मान इतिहास, पुरातत्व,कला, संस्कृति, पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में समग्र लेखन के लिए प्रदान किया गए। उन्होंने अब तक 51 पुस्तकों का लेखन और संपादन किया है। अपनी 46 वर्ष की पत्रकार यात्रा के दौरान 10 हजार से अधिक आलेख, फीचर, रिपोर्ताज, स्तंभ और संपादकीय, यात्रा संस्मरण, बाल साहित्य, साक्षात्कार आदि विधाओं में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र – पत्रिकाओं में लिखा हैं। संस्था की स्मारिका के लोकार्पण में भी इन्हें शामिल किया गया।
डॉ.सिंघल को मिले इस सम्मान का हाड़ोती के साहित्यकारों, पत्रकारों, जन संपर्क कर्मियों, और गणमान्य नागरिकों ने उन्हें बधाई देते हुए कहा कि इन्होंने अपने लेखन से हाड़ोती का गौरव बढ़ाया है।