Tuesday, July 2, 2024
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पत्नी की खुशी के लिए मिक्सर का आविष्कार कर डाला

ऐसे हुआ था रसोई की #मिक्सी का आविष्कार ।।।
#पत्नी_प्रेम के चलते हुआ मिक्सी का अविष्कार

साल था 1960 । मुम्बई शहर। सत्यप्रकाश माथुर नामक इंजीनियर का विवाह माधुरी माथुर से हुआ और दोनों मुम्बई में बस गये। सत्यप्रकाश पेशे से एक इंजीनियर थे, माधुरी घर का सारा काम काज बखूबी संभाल लेती थी। वह दौर था जब रसोई घर मे विद्युत उपकरणों के नाम पर कुछ भी नहीं होता था। ना फ्रिज ना माइक्रोवेव और ना मिक्सी।

मिक्सी। एक ऐसा उपकरण जिसकी आवाज़ आज पूरे घर को हिला देती है। यह जानना सुखद रहा के मिक्सी का अविष्कार एक हिंदुस्तानी ने किया था और यह जानना और भी सुखद रहा के मिक्सी का आविष्कार एक पति ने अपनी पत्नी की दिनचर्या को सरल बनाने के लिये किया था।

एक रोज़ सत्यप्रकाश माथुर ने अपनी पत्नी को हाथ से मसाला पीसते देखा। बाजुओं का जोर लगा कर मसाला पीसती माधुरी पसीने में तरबतर हो चुकी थी। पेशे से इंजीनियर सत्यप्रकाश ने पता किया के क्या मार्किट में कोई ऐसा विद्युत उपकरण है जो मसाले पीसने का काम कर सके। उन्हें पता चला के एक बारून नामक एक जर्मन कम्पनी है जो हिंदुस्तान में एक ब्लेंडर बेचती है जिससे मसाला पीसने का काम सरल हो सकता है। सत्यप्रकाश ने अपनी गाढ़ी कमाई से महंगा ब्लेंडर खरीदा और धर्मपत्नी को भेंट कर दिया।

दिक्कत यह हो गयी कि ब्लेंडर था जर्मन और मसाले थे हिंदुस्तानी। कुछ दिन बेचारा जर्मन ब्लेंडर हिन्दुतानी मसालों का बोझ सहता रहा और फिर एक दिन उसमें से एक चिंगारी निकली और उसकी मोटर का राम नाम सत्य हो गया।

दूसरी दिक्कत यह हो गयी कि धर्मपत्नी को ब्लेंडर की आदत पड़ गयी और हाथ का काम उन्हें अब मुश्किल लगने लगा।
सत्यप्रकाश जी मोटर ठीक करवाने निकले तो मालूम हुआ के बारून कम्पनी का कोई सर्विस सेंटर हिंदुस्तान में मौजूद ही नहीं है।
दूजी ओर माधुरी माथुर दोबारा ब्लेंडर का काम हाथ से करने लगी और सत्यप्रकाश माथुर को यह बात हज़म नहीं हो रही थी। पेशे से एक इंजीनियर थे और सवाल पत्नी को हो रही असुविधा का था।

काफी मंथन के पश्चात सत्यप्रकाश जी ने एक शाम धर्मपत्नी से कहा के मैं तुम्हारे लिये एक ऐसा उपकरण बनाऊंगा जो तुम्हारा हर काम आसान कर देगा। पत्नी को लगा कि यह पति का प्यार है जो ऐसा कह रहे हैं परंतु सत्यप्रकाश कुछ विशेष करने का निर्णय ले चुके थे।

नाज़ुक से जर्मन ब्लेंडर को छोड़ सत्यप्रकाश ने एक ऐसा उपकरण बनाने की सोची जो भारतीय रसोई के हिसाब से अनुकूल हो। सत्यप्रकाश जोड़तोड़ में जुट गये। कलपुर्जे इक्कठे किये और एक उपकरण बना डाला जिसमे एक शक्तिशाली मोटर लगी हुई थी और भेंटस्वरूप यह पुनः अपनी धर्मपत्नी को भेंट कर दिया।

माधुरी ने उपकरण को इस्तेमाल किया तो आश्चर्यचकित रह गयी। उपकरण सौ फीसदी हिंदुस्तानी रसोई के हिसाब से उपयुक्त था। पत्नी के प्यार में बनी मिक्सी ने एक “बिज़नेस आईडिया” को जन्म दिया। माधुरी ने पतिदेव से कहा के यह उपकरण राष्ट्र की रसोई में क्रांति ला देगा और पत्नी के आग्रह पर इंजीनियर बाबू ने इस उपकरण को विधिवत बनाने की तैयारी शुरू कर दी।

1970 तक सत्यप्रकाश माथुर ने मिक्सी की प्रोडक्शन प्रारंभ कर दी और माधुरी ने इस मिक्सी के लिये एक बेहतरीन नाम भी सुझा दिया।

नाम था : सुमीत
#सुमीत यानी अच्छा मित्र !
1970 के दशक में जब सुमीत मिक्सी जब मार्किट में उतरी तो कमाल का रिस्पॉन्स मिला। हर रोज़ नए ऑर्डर मिलने लगे और प्रोडक्शन बढ़ने लगी। श्रीमती माथुर भी अब श्रीमान जी का हाथ बंटाने लगी और व्यापार दिन प्रतिदिन बढ़ता गया। 1970 का दशक समाप्त होते होते प्रति माह 50,000 से अधिक मिक्सी बिकने लगी। दोनों पति पत्नी ने मिल कर ब्रैंड को इतना विराट बना दिया के मिक्सी का दूसरा नाम ही “सुमीत” बन गया।

एक पति ने अपनी पत्नी का जीवन सरल करने के लिये जिस उपकरण का आविष्कार किया वह आज पांच दशकों बाद भी हर गृहिणी इस्तेमाल कर रही है। उल्लेखनीय है कि हर साक्षात्कार में श्री माथुर अपनी कामयाबी का सारा श्रेय अपनी पत्नी अपनी प्रेयसी को देते रहे।

साभार- https://www.facebook.com/shubham.modanwal.7393 से

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ड्रायवर ने कहा, कार की डिक्की में जज साहब बैठे हैंः जस्टिस लीला सेठ की पुस्तक में कई रोचक खुलासे

लीला सेठ हाईकोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस थीं. जब वह रिटायर हुईं तो सरकार ने उन्हें लॉ कमीशन का मेंबर बना दिया. सेठ अपनी आत्मकथा ”घर और अदालत” में लिखती हैं रिटायरमेंट के बाद में मध्यस्थता के काम में उलझ गई थी. उसी दौर में मेरे पास कानून मंत्री का फ़ोन आया. उन्होंने कहा कि सरकार मुझे 15वें विधि आयोग का पूर्णकालिक सदस्य नियुक्त करना चाहती है, जिसका कार्यकाल 1997 से 2000 तक होगा. मैं इस प्रस्ताव से चकित थी. मन में थोड़ी आशंका भी थी. मैंने कानून मंत्री से पूछा कि आयोग का अध्यक्ष कौन होगा. जब उन्होंने बताया कि जस्टिस जीवन रेड्डी अध्यक्ष होंगे तो मैं आयोग से जुड़ने को तैयार हो गई. 10 नवंबर को आयोग ज्वाइन कर लिया.

सेठ लिखती हैं कि जब मैं आयोग में शामिल हुई, तब तब जस्टिस जीवन रेड्डी विदेश गए थे. इसलिये ज्यादा न्यायिक कामकाज नहीं था. पर मेरे कमरे के बाहर हमेशा काफी हलचल रहा करती थी. एक दिन मैं कुछ किताबें और रिपोर्ट पढ़ने की तैयारी कर रही होती, तभी गलियारे में खासा शोर सुनाई दिया. मैंने घंटी बजाई और शोरगुल का कारण जानना चाहा तो मुझे बताया गया कि चपरासी और अन्य लोग चाय पी रहे हैं. ऐसा दिन में कई बार होता. जब मैंने पूछा कि क्या चाय पीते समय इतना शोरगुल मचाना जरूरी है तो मुझे बताया गया कि स्टाफ़ ऐसा कई सालों से कर रहा है और उन्हें भी तनाव दूर करने के लिए कुछ तो चाहिए. धीरे-धीरे मुझे समझ आ गया कि या तो ऊंची आवाज में बातचीत झेलती रहूं या इन लोगों के एकदम गायब जाने को झेलूं, जब बार-बार घंटी बजाने पर भी नहीं आएंगे.

सेठ लिखती हैं कि मैं जल्द ही सरकारी कार्यालयों में अड़ियल और जाति के आधार पर बंटे कामकाज वाले माहौल को समझ गई थी. विधि आयोग शास्त्री भवन की सातवीं मंजिल पर था. मेरे ऑफिस से अटैच कोई बाथरूम नहीं था. कॉमन बाथरूम का नल लीक करता था. वहां एक टूटी हुई हरे रंग की गंदी प्लास्टिक की बाल्टी रखी हुई थी, गुलाबी रंग का मग था जिसका हैंडल टूटा हुआ था और टॉयलेट पेपर भी नहीं था. टॉयलट की खिड़की का शीशा चीकट हो चुका था, क्योंकि उसे बाहर से साफ़ करने की कोई व्यवस्था नहीं थी. खिड़की का एक हिस्सा टूटा हुआ था, जिससे ठंडी हवा को आने से रोकने के लिए दफ़्ती का टुकड़ा लगा दिया गया था.

फ्लश भी नहीं चलता था. उसे ठीक कराने के लिए मुझे हफ्तों लगातार अनुरोध करना पड़ता. कई चिट्ठियां लिखनी पड़ीं, तब जाकर ठीक हुआ, पर थोड़े दिन के बाद वह फिर से टूट जाता. मेरा कमरा देखने में सीपीडब्ल्यूडी के दफ्तर की तरह लगता था. फर्नीचर के आगे बड़े-बड़े अंकों व अक्षरों में नंबर और जानकारी दर्ज थी कि यह किसे आवंटित है, ताकि कोई झगड़ा न हो.

बकौल सेठ, ऑफिस स्टाफ मेज से लगी मेरी कुर्सी पर गुलाबी रंग की तौलिया टांगने पर जोर देता था, जिसमें बैंगनी रंग के बड़े फूल बने थे, ताकि कुर्सी पर बालों का तेल न लगे. मैंने उसे तुरंत हटा दिया. हालांकि साफ़-सफ़ाई और पद की प्रतिष्ठा को लेकर मेरी अज्ञानता पर उन्हें हैरानी थी और उन्होंने इस पर ऐतराज़ भी जताया था. मैंने मेज-कुर्सियों को घुमवाया, पोस्टर और तस्वीरें लगवा दीं, फिर प्लास्टिक के फूलों को फेंकवाया और उनके स्थान पर सिरेमिक फूलदान में हरे मनी प्लांट लगवाए, प्लास्टिक के सारे पेन और पेंसिल केसों को हटवाया, और गोपनीय दस्तावेज़ रखे जाने वाली गंदी सी हरे रंग की स्टील की अलमारी को हिमालय के बर्फ़ीले चित्रों की तस्वीरों से ढंकवाया. मैं घर से डस्टर क्लॉथ लाई और फ़र्नीचरों को साफ किया.

लीला सेठ लिखती हैं कि एक दिन अजीब वाकया हुआ. मुझे सफेद रंग की एम्बेस्डर कार मुहैया कराई गई थी, सरकारी कर्मचारियों को लाने-ले जाने के लिए यही गाड़ी दी गई थी. लेकिन जब मैंने ड्राइवर से अपना सामान कार की डिग्गी में रखने को कहा तो उसने विचित्र नजरों से देखा और उसे पीछे रखने के बजाय अगली सीट पर अपने बगल में रख लिया. जब जब जोर देकर कहा कि मैं चाहती हूं कि मेरा सामान पीछे रखे तो उसने कहा कि वह ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि वहां जस्टिस कुलदीप सिंह ‘बैठे’ हैं।

मुझे उसकी टिप्पणी पर झटका सा लगा. मैंने उससे पूछा कि वह ऐसा क्यों बोल रहा है. उसने कहा कि मैं खुद पीछे देख लूं. उसने जब डिग्गी उठाई तो मैंने वहां एक बड़ा कंप्रेस्ड गैस सिलेंडर रखा देखा, जिसने सामान रखने की पूरी जगह को घेर रखा था. उसने मुझे बताया कि यह सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कुलदीप सिंह के दिए गए एक फ़ैसले का नतीजा है, सभी पुरानी सरकारी एम्बेस्डर कारों को इसी तरह अस्थायी रूप से सीएनजी में बदल दिया गया है.

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भाजपा को उत्तर प्रदेश में पराजय के बोध से उतरना ही होगा

उत्तर प्रदेश की जनता ने 2024 लोकसभा चुनावों में हैरान करने वाले चुनाव परिणाम दिये हैं । भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश में 80 में से 80 लोकसभा सीटें जीतने का नारा दिया था किंतु भाजपा गठबंधन मात्र 37 सीटों पर ही सिमटकर रह गया। भाजपा अयोध्या वाले संसदीय क्षेत्र फैजाबाद तक से हार गई जहां प्रभु श्रीराम दिव्य दिव्य एव नव्य राम मंदिर में प्रवेश कर चुके हैं तथा विविध प्रकार के विकास कार्य चल रहे हैं । ये हार हर किसी को आश्चर्य में डाल रही है । आज भी हर तरफ यही चर्चा हो रही है कि अरे भाजपा फैजाबाद में कैसे हार गई ?

आखिर क्यों, फिर यह चर्चा लंबी खिंच जाती है और भाजपा समर्थकों व शुभचिंतकों के माथे पर चिंता की लकीरें खींचने लगती हैं कि अब होगा क्या ? भाजपा का हर शुभचिंतक अपने अपने स्तर पर गहन समीक्षा कर रहा है किंतु क्या बीजेपी आलाकमान व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जनमानस की चिंताओं के साथ खड़े हैं या नहीं। महिलाएं भी अयोध्या पराजय पर चर्चा कर रही हैं कि फ्री राशन, घर, शौचालय, दवाई व राम मंदिर के बाद भी भाजपा क्यों पराजित हो गई?

प्रदेश में भाजपा की पराजय के जो मुख्य बिंदु निकलकर सामने आ रहे हैं उसमें प्रत्याशियों का गलत चयन, राजग गठबंधन के नेताओं की गलत बयानबाजी, क्षत्रियों व राजपूतों की नाराजगी को हलके में ले लेना तथा मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में वोट जिहाद का हो जाना आदि तो था ही मीडिया की मानें तो संघ व भाजपा के बीच आतंरिक टकराव भी एक कारण रहा । वर्तमान समय में जब नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व में ऐसे ऐसे अदभुत कार्य हो रहे हैं जिनका प्रभाव हजार साल तक रहने वाला है उस समय संघ नेतृत्व ने इतनी बड़ी गलती क्यों कर दी?

क्या वो सच ही मोदी जी का अहंकार तोड़ना चाहते थे या अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मार रहे थे ? क्या स्वयं को मातृ संस्था कहने वालों को भी आत्मसंयम का परिचय नहीं देना चाहिए था? ये कठिन प्रश्न मीडिया और सोशल मीडिया में जंगल की आग की तरह फैल चुके हैं। इसे पूरे दावानल में आम सनातनी ठगा सा खड़ा है।

प्रदेश में भाजपा की पराजय के साइड इफैक्ट हर तरफ दिखने लगे हैं। जिन जिलों में इंडी गठबंधन के सांसद बने हैं उन जिलों में आपराधिक गतिविधियों में जबरदस्त तेजी आई है। सीतापुर जिले में नए बने कांग्रेस सांसद ने थाने में धरना देकर एक नाबालिग अपराधी को थाने से ही छुड़ा लिया। इकरा हसन के समर्थकों ने हिन्दुओं पर हमला बोला और सोनभद्र में एक हिन्दू परिवार घर छोड़ने को विवश है, ऐसी ही अनेक घटनाएं प्रकाश में आ रही हैं। लोकसभा चुनाव समाप्त हो जाने के बाद प्रशासनिक अधिकारियों का भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यव्यहार बढ़ता जा रहा है।

राजधानी लखनऊ में वाहन जांच के नाम पर भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी के साथ अभद्रता की गई यद्यपि घटना के बाद ट्रैफिक दारोगा आशुतोष त्रिपाठी को निलंबित कर दिया गया है। राकेश त्रिपाठी का कहना है कि पुलिस भाजपा का झंडा लगा देखकर वाहन को रोक रही है जब लखनऊ में भाजपा प्रवक्ता के साथ इस प्रकार की घटना घटित हो रही है तब प्रदेश के दूसरे जिलों में क्या हाल हो रहा होगा। प्रदेश का पुलिस प्रशासन अभी भी लापरवाही तथा भ्रष्टाचार में संलिप्त है तथा महिला थाने तक में पीड़ितों से रिश्वत मांगी जा रही है। हालाँकि अकबरनगर का अतिक्रमण हटाकर सरकार ने सख्त प्रशासन की अपनी छवि बचाने का प्रयास किया है ।

मीडिया की मानें तो राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने उप्र के अवध क्षेत्र की सीटों पर जीतने का जोर नहीं लगाया, अगर यहाँ पर ताकत लगा दी जाती तो भाजपा की कम से कम आठ सीटें तो और बढ़ ही जातीं किंतु मेड़ ही खेत से मुँह मोड़ चुकी हो तो क्या ही कहा जाए। आम सनातनी योगी मोदी की कम सीटों से दुखी है और समाचारों में देखता है कि ये संघ के असहयोग के कारण हुआ है तो उसका मन व्यथित होता है और संघ पर दशकों से किया गया विश्वास डगमगा जाता है । अहंकार किसी का भी हो लेकिन केवल योगी या मोदी नहीं, संघ भी हारा है और अस्तित्व की लड़ाई से जूझ रहा हिन्दू भी ।

लोकसभा चुनावों के मध्य भाजपा व संघ के बीच मनमुटाव के समाचारों, गलत प्रत्याशी के चयन और उससे भी आगे बढ़कर चयनित प्रत्याशी की गलतबयानी के कारण एक सबसे महत्वपूर्ण सीट हाथ से निकल गई, जिसका व्यापक नकारात्मक प्रभाव दिखाई दे रहा है। रामभक्त विपक्ष के निशाने पर हैं, उनपर तंज कसे जा रहे हैं । श्रीराम जन्मभूमि मंदिर व अयोध्या के विकास कार्यों पर फेक न्यूज़ फैलाई जा रही है, विपक्ष उसको हवा दे रहा है ।अभी हल्की बारिश में अयोध्या धाम के पुराने रेलवे स्टेशन की बाउंड्रीवाल गिर गई जिसको नए स्टेशन की बताकर विकास कार्यों पर कीचड़ उछाला गया। भला हो समय रहते जागरुक नागरिकों ने उसका खंडन कर दिया ।

उप्र में योगी ओर केंद्र में मोदी जी कमजोर हो गये तो नुकसान तो हिंदुत्व का ही होना है। संघ अगर अभी नहीं चेता तो उप्र में भी वहीं हालात हो जाएंगे जो केरल से लेकर तमिलनाडु और बंगाल तक हो रहा हैं। गैर बीजेपी शासित राज्यों में भाजपा और संघ के कार्यकताओं की हत्याएं हो रही हैं। संघ को अपनी शाखा तक लगाने तक में समस्या का सामना करना पड़ रहा है। हिंदू जनमानस अपने उत्सव तक नहीं मना पा रहा है। 2022 के विधानसभा चुनावों के समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक अपील करी थी कि जरा सी गलती से सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा और 2024 में कुछ लोगों के संकुचित सोच के कारण वही गलती हो गई है।

उत्तर प्रदेश में भी जब सपा, बसपा व कांग्रेस आदि दलों की सरकारें हुआ करती थीं तो संघ के स्वयंसेवक जब अपनी शाखा लगाने के लिए पार्कों में जाते थे तब सपा और बसपा के गुंडे व समर्थक भगवा ध्वज उठाकर बहा देते थे और स्वयंसेवकों के साथ दुर्व्यव्यहार किया जाता था। योगी राज मे कम से कम संघ की शाखाएँ सुरक्षित हैं। प्रदेश में जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी तो गांवों में हिन्दू जनमानस अपने घरों में सुंदर कांड व रामचरित मानस का पाठ नहीं करा पाता था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को योगीराज में हो रहे हिन्दू हित के कार्यों पर भी अपनी दृष्टि डालनी चाहिए थी।

लगता है कि योगी सरकार के अच्छे कार्य को संघ व संगठन की दृष्टि से नजरअंदाज कर दिया गया। संघ को विचार करना चाहिए कि 2017 के पूर्व प्रदेश के क्या हालात थे और अब क्या हालात हैं? अगर भाजपा और संघ के बीच मनमुटाव को तत्काल कम नहीं किया गया तो प्रदेश में रामराज्य की संकल्पना ध्वस्त हो जाएगी।

वर्तमान लोकसभा चुनावां में भाजपा की पराजय का एक बहुत बड़ा कारण भ्रष्टाचार, आलस्य व लापरवाही में आकंठ डूबे प्रषासनिक अधिकारी व कर्मचारी भी रहें जिन्हाने रामराज्य की अवधारणा का भटठा बैठा दिया। भ्रष्टाचार करने वाले व दलाली खाने वाले अफसर भी इस बार हर हालत में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से छुटकारा पाना चाह रहे थे और यह लोग भी पुरानी पेंषन योजना लागू करने की मांग की आढ़ में विरोधी दलों के साथ मिल गये और प्रदेश में बीजेपी की सीटें कम करवाने के लिए कोई कोरकसर नहीं छा़ेड़ रखी थी। अनेक जगहों से समाचार प्राप्त हो रहे है कि अफसर खुलेआम बीजेपी को हराने के लिए ही काम कर रहे थे।

प्रशासनिक लापरवाही के कारण ही बीजेपी के कार्यकर्ता व समर्थक निराश हो गये और वह अपने घरों से अपना वोट डालने नहीं निकले और यदि निकले भी तो उन लोगों ने दूसरे लोगों को वोट डालने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया। समीक्षा बैठकां मेंं खुलासा हो रहा है कि भाजपा सांसद, विधायकों व जिला टीम के साथ समन्वय व सामंजस्य का घोर अभाव था। अब जब भाजपा का विषेष जांच दल जिलां जिलों में जा रहा है तब वहां उस टीम के सामने ही मारपीट तक हो रही है।संगठन की तमाम कमियों की जानकारी पाप्त हो रही है। भारतीय जनता पार्टी जिन पन्ना प्रमुखां को प्रमुखता दे रही थी उनमें बहुत से फर्जी निकल गये। संगठनात्मक दृष्टि से पन्ना प्रमुख एक बहुत बड़ा फर्जीवाडा साबित हुआ। लखनऊ जैसे ससंसदीय क्षेत्र में एक भी पन्ना प्रमुख नहीं दिखलाई पड़ रहा था तो अन्य जिलों में क्या हश्र हुआ होगा विचारणीय विषय है।

वर्तानम समय में उप्र में भाजपा की पराजय कष्टकारी है। प्रदेश में व्याप्त अनेकानेक कारकों ने रामराज्य की संकल्पना व अवधारणा को तार -तार कर दिया है। इसी कारण प्रदेश में भाजपा को पराजय बोध से निकलना बेहद अनिवार्य हो गया है क्योकि आगामी आने वाला समय ओर कठिन होने जा रहा है। प्रदेश में सपा व कांग्रेस का गठबंधन अब मजबूत हो चुका है तथा अपने निर्वाचित सांसदों के बल पर वह अब अपनी बची हुई्र कमजोरियों को भी कम करने का अभियान प्रारम्भ करने जा रहा है। सपा अब गांवों में पीडीए की पंचयात लगाने जा रही हैं। युवाआें को सपा की ओर जोडने के लिए नये सिरे से अभियान छेडने जा रही है।

बसपा में आकाश आनंद की वापसी हो गई है तथा इस बार बसपा ने लीक से हटकर उपचुनाव में उतरने का मन बना लिया है और ऐलान कर दिया हैं जबकि भाजपा में अभी तक केवल और केवल चिंता व चिंतन ही किया जा रहा है।पष्चिमी उप्र में भाजपा के दो दिग्गज नेता संगीत सेम व संजीव बालियान आपस में उलझ पडे।अतः अब समयआयगा हे कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पाटी्र्र व संघ के मध्य आपसी समन्वय व सामंजस्य स्थापित हो ,सभी को अपनी कार्यषैली ठीक करनी ही होगी।अगर भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में आगामी उपचुनाव जीतनें में सफल रहती है तो फिर हालात नियंत्रण में रहेंगे अन्यथा समस्या गहरा सकती है।

यहां पर सभी को अपने अंदर अहंकार आ गया थ जबकि संघ को भी अपनी ताकत का एहसास है और उसने भाजप को अपनी ताकत का एहसास कराकर एक बहुत बड़ी राजनीतिक भूल की है।अगर संघ को अपनी ताकत का एहसास है तो फिर वह कल्याण सिंह की सरका का पतन होने और बसपा के साथ समझौता समाप्त हो जाने के बाद वह प्रदेश में एक बार भी भाजपा की सरकार बनवाने में सफल क्यों नहीं सका? प्रदेश में भाजपा के पक्ष में दलित व पिछडे समाज के ऐसे नेता की खेज क्यों नहीं कर सका जिसका समाज के प्रत्येक वर्ग में प्रभाव होता और हिंदू समाज को एकजुट भी रख सकता।

उत्तर प्रदेश में अगर भाजपा के नेतृत्व और कार्यकर्ता अभी तक सुधारित नहीं है, तो आने वाले दिनों में समस्याएं और गंभीर हो सकती हैं क्योंकि अब समाजवादी पार्टी के नेतृत्व में गठबंधन की जोश हाई है और बसपा अपने मेकओवर की ओर बढ़ रही है।

आज उत्तर प्रदेश में भाजपा के कम सीटों के आने से संघ को भी उतना ही नुकसान हो रहा है, जितना कि भाजपा को हो रहा है। लोकसभा चुनावों में भाजपा और संघ के बीच मनमुटाव तथा फैजाबाद उम्मीदवार की गलत बयानी और हरकतों के कारण एक महत्वपूर्ण सीट हाथ से निकल गई है, जिसका असर व्यापक स्तर पर दिखाई दे रहा है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर और अयोध्या के विकास कार्यों पर होने वाली हर छोटी-बड़ी घटनाओं को सोशल मीडिया पर उछाला जा रहा है।

सपा सांसद अवधेश प्रसाद अब जनता के समक्ष अपनी बात रख रहे हैं और भाजपा के लोग शांत हैं। फैजाबाद की हार भाजपा के लिए पीड़ादायक साबित हो रही है, क्योंकि समाजवादी पार्टी के सांसद संसद में अब अपनी बात को मजबूती से रखेंगे। अभी हल्की बारिश में अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन की बाउंड्रीवॉल गिर गई है और जगह-जगह जलभराव हो गया है, जिसके बारे में सोशल मीडिया पर विभिन्न प्रकार के व्यंग्यबाण चल रहे हैं।

अब यही समय है कि भारतीय जनता पार्टी और संघ अपने सभी विरोधियों से बाहर निकलकर प्रदेश के हित में काम करें और हार की भावना से ऊपर उठकर समग्र विकास के लिए काम करें।

प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित

फोन नंबर – 9198571540

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आपातकाल…

२५ जून १९७५ की वह काली रात..
दुनिया के सबसे बड़े
लोकतांत्रिक देश में, लोकतंत्र का गला,
बर्बरता के साथ घोटने का
विषैला कार्य प्रारंभ हो चुका था…

राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने
धारा ३५२ (१) के अंतर्गत
देश में आतंरिक आपातकाल लागू किया…
उन्हें तो, उस आदेश पर
हस्ताक्षर करने के
मात्र तीस मिनट पहले तक
यह मालूम ही नहीं था,
की देश में आपातकाल लगने वाला हैं..!

आपातकाल याने
आपके / हमारे विचार करने पर
संपूर्ण पाबंदी.
जो कुछ विचार होगा, सोच होगी
वह केवल और केवल सरकार की.
अर्थात प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की.
आप और हम
न तो कुछ लिख सकते थे, न बोल सकते थे…
समाचार पत्रों का
एक – एक अक्षर, छपने से पहले जांचा जाता था.
अगर लिखा हुआ सरकार के विरोध में हैं,
ऐसा दूर दूर तक भी अंदेशा आया,
तो तुरंत उसे निकाल दिया जाता था.
सभा / जुलूस / बैठके आदि पर तो
सीधा प्रतिबंध था.

२६ जून की प्रातः बेला में
देश को यह समाचार मिला.
इससे पहले ही
अधिकतर विरोधी नेताओं को
२५ जून की रात को ही
बंदी बना लिया गया था.
जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी बाजपेयी,
मोरारजी देसाई, लालकृष्ण आडवाणी, मधू लिमये…
सारे जेल के अंदर थे….
४ जुलाई १९७५ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर
प्रतिबंध लगा.
संघ के सरसंघचालक बालासाहब देवरस जी
को भी संघ पर प्रतिबंध लगाने के पहले ही
गिरफ्तार कर लिया था.
संघ के अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ता
जेल की सीखचों में बंद थे.

यह आपातकाल २१ महीने चला.
१९ महीनों बाद, विजय के आत्मविश्वास के साथ,
इंदिरा गाँधी ने, १८ जनवरी १९७७ को
आमचुनावों की घोषणा की.
२१ मार्च, १९७७ को
लोकसभा चुनावों के परिणामों में
यह स्पष्ट हो गया
की लोकतंत्र का गला घोटनेवाली कांग्रेस
बुरी तरह से परास्त हुई हैं,
अनेक राज्यों में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला हैं,
आपातकाल के तिनो दलाल –
इंदिरा – संजय – बंसीलाल
चुनाव हार चुके हैं…
तब जाकर आपातकाल हटाया गया.

इक्कीस महीने…
२५ जून १९७५ की रात से
२१ मार्च १९७७ की रात तक…
इन इक्कीस महीनों में
इस देश को
इंदिरा गाँधी नाम के तानाशाह ने
बंधक बनाकर रखा था.
इन इक्कीस महीनों में
पूरे देश में
कांग्रेस ने अपना पैशाचिक नग्न नृत्य
जारी रखा था.
इन इक्कीस महीनों में
आपातकाल का विरोध करने वाले
अनेक कार्यकर्ताओं की, संघ के स्वयंसेवकों की
जाने गयी…!
संघ के अखिल भारतीय व्यवस्था प्रमुख
पांडुरंग क्षीरसागरजी को
अत्यवस्थ होने के बाद भी
पैरोल नहीं मिला.
उनकी कारावास में ही मृत्यु हुई.
ऐसे कई स्वयंसेवक जेल में ही चल बसे.
कइयों को तो इतनी नृशंस यातनाएं दी,
की वे पूरी जिंदगी अपाहिज बने रहे.
वर्धा के पवनार आश्रम में
सर्वोदयी कार्यकर्ता, प्रभाकर शर्मा ने,
आपातकाल के विरोध में
खुद को जिंदा जला दिया. आत्मदाह कर लिया.

इस आपातकाल का निडरता के साथ, निर्भयता के साथ
विरोध किया तो
संघ के स्वयंसेवकों ने.
एक जबरदस्त भूमिगत आंदोलन चलाया…
भूमिगत पर्चे निकालना,
उनका वितरण करना…
१४ नवंबर १९७५ से
देशव्यापी भव्य सत्याग्रह करना
हजारों युवा स्वयंसेवकों द्वारा
अपना पुरषार्थ प्रकट करते हुए
देश की जेलों को भर देना..
ऐसा बहुत कुछ…!
संघ के सरकार्यवाह माधवराव मुले
भूमिगत थे.
अनेक वरिष्ठ प्रचारक, कार्यकर्त्ता
विपत्तियों की परवाह न करते हुए,
दमन की चिंता को दूर रखते हुए,
गिरफ्तारी के डर को धता बता कर…
निर्भयता के साथ
आपातकाल का विरोध कर रहे थे.

२१ महीनों का यह कालखंड
हमारे लोकतंत्र के इतिहास में,
हमारे स्वाधीन भारत के स्वर्णिम इतिहास में
एक काला अध्याय हैं.

लोकतंत्र की मशाल को
सतत प्रज्वलित रखने के लिए
इस काले अध्याय का स्मरण करना,
इंदिरा गाँधी के,
कांग्रेस के उन काले कारनामों को
याद करना
आवश्यक हैं,
ताकि भविष्य में किसी की हिम्मत ना हो,
इस लोकतंत्र के
धधगते मशाल को
हाथ लगाने की…!

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बच्चों के समग्र विकास में सहायक हैं समर कैम्प

श्री रामचरित मानस के बाल काण्ड में उल्लेख है कि गुरु गृह गए पढ़न रघुराई अल्पकाल विद्या सब पाई। अर्थात् गुरू के सानिध्य में व्यक्तित्व निर्माण। गुरुकुल परम्परा में बच्चों को भारतीय ज्ञान परंपरा से परिचित कराते हुए उनके अंदर सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना जागृत की जाती है । भारतीय ज्ञान परम्परा में शिविर आयोजनो का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । ऐसे शैक्षिक संस्थान जो भारतीय संस्कृती के पोषक और संवाहक रहे हैं वो बच्चों के लिए खेल, कला , कौशल शिविरों का आयोजना करते आए हैं। जहां बच्चे प्रकृति के समीप रहकर अपने मौलिक गुणों को परिमार्जित करते हुए आधुनिक ज्ञान के साथ वैदिक ज्ञान और संस्कार के साथ सामूहिक जीवन जीने का अभ्यास करते है । वर्तमान में विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के साथ जीवन कौशल विकास और व्यवहारिक ज्ञान बच्चों के लिए नितांत आवश्यक है ऐसे में शैक्षिक शिविर महत्त्वपूर्ण भुमिका निभा सकते हैं।

वर्तमान में लगभग सभी प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में शैक्षिक शिविर की ही भांति ग्रीष्मकालीन शिविर आयोजित किए जा रहे हैं । जो समर कैंप के नाम से जाने जा रहे हैं । समर कैंप अवकाश के दिनों में कुछ निर्धारित अवधि के लिए एक कार्यक्रम के रुप में चलाया जाता है । इस दौरान विभिन्न प्रकार की गतिविधियां बच्चों के लिए कराई जाती हैं जो पूर्ण रुप से आनंदमय वातावरण में बच्चों की रचनात्मकता को बढ़ावा देकर उनके समग्र विकास के लिए आयोजित की जाती हैं। जिससे बच्चे प्रकृति प्रेम, स्वस्थ जीवन शैली, व्यवस्थित दिनचर्या, सड़क पर चलने का नियम , जल ही जीवन है और स्वच्छता जैसे व्यवहारिक जीवन शैली को समर कैम्प में सीखने का अवसर मिलता है ।

वर्तमान में ग्रामीण,शहरी हर क्षेत्र में समर कैम्प स्कूली शिक्षा में अपना स्थान बनाते नज़र आरहे हैं । सभी शिक्षा बोर्ड इसे स्वीकार करते हुऐ इसका आयोजन करते दिख रहे हैं। गैर शैक्षिक संस्थान भी ग्रीष्मावकाश में ऐसे कैम्पों का आयोजना कर रहे हैं जहां एक ही स्थान पर निश्चित समय के लिए बड़े और बच्चों दोनो के लिए मनोरंजन युक्त आयोजन किए जारहे हैं। इन सभी का उद्देश्य अवकाश के दिनों को आनंदमयी और खुशनुमा बनाते हुए कुछ सीखने और नया करने का अवसर देना है । जिससे बच्चों में मुख्य रुप से कौशल विकास हो सके और बड़े भी इस समय का आनंद उठा सकें। धीरे -धीरे समर कैंप विद्यालयों का हिस्सा बनते जा रहे है जिसका उद्देश्य बच्चों को अनुकूल वातावरण प्रदान कर उनकी प्रतिभाओं का विकास करना है ।

बच्चों और अभिभावकों से शिक्षा से संबंधित बिंदुओं ,नवाचारों एवं आदेशों के क्रम में संचालित क्रियाकलापों पर अक्सर चर्चा होती रहती है। इसी क्रम में उन बच्चों से भी चर्चा का अवसर मिला जिनके स्कूलों में गर्मी की छुट्टियों के बाद समर कैम्प संचालित हो रहे थे। जहां स्कूल इसे उत्साह के साथ संचालित करने में लगे थे वहीं बच्चो से संवाद में पताचला की अधिकांश बच्चे विद्यालय बंद होने के बाद इस समर कैम्प को बोझिल मान कर अतिरिक्त दबाव जैसा महसूस कर रहे। इस विषय को लेकर अलग अलग क्षेत्रो के बच्चों से चर्चा करने पर बच्चो के यही विचार प्राप्त हुए कि इस समर कैम्प का आयोजन स्कूल दिवसों में ही होना चहिए जिससे हम अपने समर वैकेशन के अधिक दिवसों को अपने स्वतंत्र रूचि के अनुसार अपने परिवार, रिश्तेदार के साथ अन्य कार्यों में लगा सकें। निश्चित रुप से एक लंबे सत्र के पढ़ाई में बच्चो के लिए उनकी गर्मी की छुट्टियां बहुत प्रिय होती हैं जिसका बच्चो को बेसब्री से इंतजार रहता है। 6 से 14 वर्ष के बच्चो के सीखने और विकास के क्रम में स्कूलों के शैक्षिक सत्रों में गर्मी की छुट्टियों का बच्चों के समाजिक एवं मानसिक विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान है।

बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा एक बहुत सराहनीय एवं स्वागत योग्य पहल हुई है जिसमें ग्रीष्मावकाश के बाद विद्यालय खुलने पर प्रथम सप्ताह में समर कैम्प का आयोजन करना है । ग्रीष्म अवकाश प्रारंभ होने के अंतिम सप्ताह में तमाम स्कूलों में चलने वाले समर कैम्प पर विचार विमर्श करते हुए, विद्यालय में नामांकन के सापेक्ष उपस्थिति आदि बिंदुओं पर चर्चा में एक विमर्श शिक्षक साथियों की ओर से यह भी आने लगा था कि यदि यह समर कैंप विद्यालय खुलने पर आयोजित हो तो बच्चों को विद्यालय खुलने पर उत्साह के साथ जोड़ने एवं नियमित करने के साथ उनके ग्रीष्म अवकाश के दिनों में बिताए गए व्यक्तिगत स्वतंत्र अनुभवों को बच्चों की अभिव्यक्ति एवं स्वतंत्र चिंतन के साथ जोड़ने में बहुत कारगर सिद्ध होगा।

जिन विद्यालयों में ग्रीष्म अवकाश में समर कैंप का आयोजन किया जा रहा था उन बच्चों से चर्चा होने पर अधिकांश बच्चों ने बताया कि उनको किसी रिश्तेदार के घर घूमने और अपने पसंद के कार्य करने में ज्यादा रुचि है । एक रूटीन में बंध कर समर कैंप की बच्चों ने खुलकर मनाही की । बच्चों से ग्रीष्म अवकाश के दौरान मिलने वाले होमवर्क और असाइनमेंट पर भी चर्चा होती रहती है अधिकांश छोटे बच्चों ने बताया कि वो इसे बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं। वह इस दौरान अपनी व्यक्तिगत रूचि के क्लास ज्वाइन करना पसंद करते हैं या अपने दादी, नानी, के साथ समय व्यतीत करते हुऐ रिश्तेदारों के घर घूमने जाने में ज्यादा रुचि रखने वाले दिखाई देते हैं।

ग्रीष्म अवकाश का एक वह दौर भी था जब समर कैंप और ग्रीष्मकालीन प्रोजेक्ट इतने चलन में नहीं थे । धीरे-धीरे लगभग सभी विद्यालय इससे जुड़ गए हैं लेकिन बच्चों का मन इससे दूर भागता दिखाई दे रहा है। ऐसे में बेसिक शिक्षा विभाग की यह सराहनीय पहल है जिसमें परिषदीय विद्यालय खुलते ही समर कैंप आयोजित किया जाएगा। जिसमें शिक्षक बच्चों के विद्यालय आने के तीन दिन पूर्व से 25 जून से ही विद्यालय में उपस्थित होकर इसकी तैयारी एवं रूपरेखा बनाएंगे कि इस समर कैम्प को वह अपने विद्यालय में बच्चों के लिए और बेहतर, उपयोगी कैसे बना सकते हैं। इससे उपस्थिति बढ़ाने ,बच्चों को उत्साह से विद्यालय के प्रथम दिवस पर ही जोड़ने ,छुट्टियों में बीते हुए अवकाश के दिनों को रचनात्मक ढंग से विद्यालय के कार्यों से जोड़ने में बहुत मदद मिलेगी ।

इसमें महत्वपूर्ण बात यह भी है कि विद्यालय स्तर पर शिक्षक इसे कितने बेहतर तरीके से क्रियान्वित कर सकते हैं । इसमें अलग-अलग कक्षाओं के लिए प्लान बनाकर बच्चों की उनके रुचियों व आयु को ध्यान में रखते हुए अवकाश के बीते हुए दिनों के अनुभवों को कैसे शिक्षक बच्चों के भाव को अभिव्यक्त करने के अवसर के साथ रचनात्मक ढंग देने में सक्षम हो पाते हैं।

शिक्षक द्वारा संयोजित कार्य योजना बनाना इसमें महत्वपूर्ण होगा । जिससे यह मात्र औपचारिकता या स्वागत उत्सव बनकर न रह जाए । वस्तुतः इसमें नेतृत्व क्षमता विकास , रचनात्मकता का विकास , समूहकार्य, पर्यावरण की समझ , प्राकृति से भावानात्मक जुड़ाव ,समस्या समाधान, व्यक्तिगत स्वच्छता का महत्त्व , मूल्य शिक्षा, अवकाश के दिनों का रचनात्मक ढंग से प्रयोग आदि सामिल हैं । इसमें बच्चों को स्वागत के साथ उत्सव की अनुभूति कराकर बच्चों के अभिभावकों को जोड़ना इस सत्र के ग्रीष्मावकाश के बाद उनके पाल्यों की पढ़ाई – लिखाई को सकारात्मक दिशा प्रदान कर सकता है ।

बच्चों के अवकाश के दिनों को समर कैंप में कैसे रचनात्मक ढंग से जोड़कर स्थान दिया जाए यह महत्वपूर्ण बिंदु होना चाहिए । बच्चों से चर्चा कर उनकी रुचियों को भी स्थान देना महत्वपूर्ण होगा । स्वतंत्र ,सहभागी ,भय मुक्त, खुशनुमा, उत्साही वातावरण निर्मित कर बच्चों को सिखाने हेतु पुनः विद्यालय से जोड़कर उनका आत्मविश्वास बढ़ाने में यह समर कैम्प महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। बच्चों द्वारा अवकाश के दिनों में सीखे हुए कौशलों को स्वयं सीखने का सेशन भी इसको उत्साह वर्धक बना सकता है ।

इस समय कैंप के माध्यम से छोटे बच्चों को यह अनुभव कदापि न दें कि बच्चे सोचे कि समर कैम्प हो गया चलो अब पढ़ाई शुरू करते हैं बल्कि इस समर कैंप के माध्यम से ही बच्चों के स्किल,रूचि, उनका आकलन, उनकी समझ एवं अवलोकन के बिंदु समाहित करने होंगे जिससे बच्चों को पूरे सत्र क्रियाकलापों से जोड़ कर कुछ नया सीखने के प्रति उत्साही बनाया रखा जा सके। छोटे बच्चों के लिए इस समर कैम्प को विद्यालय घंटे में ही नियोजित कर व्यवस्थित कर रखा जाए कि बच्चों के अवकाश के दिनों में भी सेंध ना लगे साथ ही बच्चे खुलकर इस समर कैम्प में इंजॉय कर सके और अपने छुपे हुए हुनर को पहचाना सकें । साथ ही उनके लिए आवश्यक बिंदु जिससे वह अवगत नहीं है उन बिंदुओं को जोड़ते हुए इस समर कैम्प को बच्चों के लिए ऐसा उपयोगी बनाया जाए जो सत्र भर एक शैक्षिक आधार बनाए रखे ।जुलाई से बच्चे और अभिभावक इस तरह से तैयार हो पढ़ाई के लिए कि यह सत्र उनके लिए उत्साह और ऊर्जा वाला हो।

छोटे बच्चे (6 से 14) जब ग्रीष्मावकाश के पश्चात पुनः विद्यालय आते हैं और प्रथम दिवस से ही उनसे विषय संबंधी बिंदुओं पर चर्चा होने लगती है, पठन-पाठन टिपिकल तौर से पुस्तकों और कापियों के साथ शुरू हो जाता है तब बच्चे, शिक्षक और विद्यालयी वातावरण में कहीं ना कहीं एक गैप बन जाता है। निश्चित रूप से यह समर कैम्प बच्चों को यह अवसर देगा कि अपने अवकाश के दिनों में बिताए गए समय में उन्होंने क्या किया, क्या सीखा, उनके क्या अनुभव थे, उन्होने किन किन बिंदुओं पर अपने स्कूल को मिस किया ( कमी महसूस की) इन भावों को सहज रूप से अपने साथियों और शिक्षक के साथ सांझा कर पाएंगे ।

बच्चे पुनः अपनी कक्षा में साथी बच्चों और शिक्षकों के साथ अपने ग्रीष्मावकाश केअनुभवों को जीवंत कर पाएंगे जो भावनात्मक रूप एवं आत्मीयता के साथ उन्हे विद्यालय से जोड़ने में सक्षम होगा । निश्चित रूप से बच्चों को विद्यालय में ऊर्जा ,उत्साह और आत्मीयलगाव के साथ जोड़ने के लिए यह समर कैम्प बहुत ही कारगर सिद्ध होगा।

ऋचा सिंह
बेसिक शिक्षा विभाग

[email protected]

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अच्युता सामंता ने सक्रिय राजनीति छोड़ी

भुवनेश्वर।: बीजू जनता दल के प्रमुख नेता और पूर्व सांसद डॉ. अच्युता सामंत ने सक्रिय राजनीति से किनारा कर लिया है। डॉ. सामंत ने कल नवीन निवास में बीजू जनता दल के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मुलाकात के बाद अपना निर्णय व्यक्त किया। साथ ही, उन्होंने राज्यसभा और लोकसभा दोनों में मौका देने के लिए श्री पटनायक को धन्यवाद दिया।

डॉ. सामंत ने कहा कि पिछले 32 वर्षों से समाज सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता अंतिम सांस तक जारी रहेगी। इस साल कंधमाल संसदीय क्षेत्र में अपनी हार के बाद, उन्होंने 9 जून को सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की। दूसरी ओर, डॉ. सामंत ने बीजद के सदस्यों और कंधमाल संसदीय क्षेत्र के लोगों को उनके प्यार और समर्थन के लिए धन्यवाद दिया।

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स्वतन्त्रता सेनानी रामचन्द्र नन्दवाना स्मृति राष्ट्र्रीय सम्मान के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित

चित्तौड़गढ़। साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत संस्थान ’संभावना’ ने अपने संरक्षक और सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी रामचन्द्र नन्दवाना की स्मृति में दिए जाने वाले राष्ट्र्रीय सम्मान के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित की हैं।

संभावना संस्थान के अध्यक्ष लक्ष्मण व्यास ने बताया कि राष्ट्रीय स्तर के इस सम्मान में स्वतंत्रता आंदोलन, प्राच्य विद्या, गांधी अध्ययन, दलित चिंतन या भारतीय मध्यकालीन साहित्य से सम्बंधित किसी एक कृति को चुना जाएगा। सम्मान के लिए तीन निर्णायकों की एक समिति बनाई गई है जो प्राप्त प्रस्तावों पर विचार कर किसी एक कृति का चुनाव करेगी। आयोजन चित्तौड़गढ़ में संभावना द्वारा किया जाएगा। सम्मान में ग्यारह हजार रुपये, प्रशस्ति पत्र और शॉल भेंट की जाती है।

व्यास ने बताया कि चित्तौड़गढ़ जिले के कपासन निवासी रामचन्द्र नन्दवाना ने स्वतंत्रता आंदोलन तथा इसके बाद गांधीवादी आन्दोलनों में आजीवन सहयोग दिया। वे गांधी जी की संस्थाओं हरिजन सेवक संघ और चरखा संघ से जुड़े रहे तथा चित्तौड़गढ़ के गाड़ी लौहार सेवा समिति से भी उनका जुड़ाव रहा। वियोगी हरि, ठक्कर बापा और माणिक्यलाल वर्मा के निकट सहयोगी रहे रामचन्द्र नन्दवाना के जन्म शताब्दी वर्ष से सम्मान प्रारम्भ किया गया है।

उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 के इस सम्मान के लिए विख्यात आलोचक प्रो माधव हाड़ा की मीरां के जीवन पर लिखी गई कृति ‘पचरंग चोला पहर सखी री’ को चुना गया था। अब तक यह सम्मान प्रो माधव हाड़ा, सुधीर विद्यार्थी, प्रो बजरंग बिहारी तिवारी, सोपान जोशी और प्रो अवधेश प्रधान को दिया जा चुका है।

व्यास ने बताया कि संभावना के सहयोगी डॉ कनक जैन को ’स्वतन्त्रता सेनानी रामचन्द्र नन्दवाना स्मृति सम्मान’ का संयोजक बनाया गया है, वे इस सम्मान से सम्बंधित समस्त कार्यवाही का संयोजन करेंगे। सम्मान के लिए प्रविष्टियाँ डॉ जैन को 30 अगस्त 2024 तक उनके पते ( 3, ज्योति नगर, पुलिस लाइन के निकट, चित्तौडगढ़-312001 मो. +91-9413641775 ) पर भिजवाई जा सकेगी।

डॉ कनक जैन
सचिव,
संभावना संस्थान
म-16,हाउसिंग बोर्ड,
कुम्भा नगर,
चित्तौड़गढ़-312001,
मो-09413641775,
ईमेल[email protected]

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हस्तीमल हस्ती ने अपनी हस्ती अनंत में विलीन कर दी

झक सफेद कुरते पायजामें में झक सफेद लटों को लहराता हुआ एक शख्स मुंबई की हर साहित्यिक गोष्ठियों में नजर आता था। मुंबई की चौपाल से लेकर हर महफिल में उस शख्स की मौजूदगी एक जादुई एहसास से भिगो देती थी। महफिल में शामिल लोगों को ये जानकर आश्चर्य होता था कि उनके पास चुपचाप बैठा शख्स वह शायर है जिसकी गज़लें गा-गा कर पंकज उधास से लेकर जगजीत सिंह ने पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाई है।

इस शख्स की एक और पहचान थी जो बहुत कम लोगों को पता होती थी, ये पेशे से स्वर्णकार थे और सोने के कारोबार के साथ साथ शब्दों को भी सोने से ज्यादा कीमती बना देने में महारत रखते थे। आज 24 जून को अपरान्ह 3 बजे मुंबई में उनका निधन हो गया।

हस्ती जी का जन्म 11 मार्च 1946 को आमेर जिले के राजसमंद शहर राजस्थान में हुआ था। ‘प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है’ जगजीत सिंह द्वारा गाई गई ये ग़ज़ल बहुत प्रसिद्ध हुई। क्या कहें किससे कहें, कुछ और तरह से भी, प्यार का पहला ख़त आदि इनके प्रमुख रचना संग्रह हैं। इनको विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया जिसमें महाराष्ट्र हिन्दी साहित्य अकादमी प्रमुख है। वे अपने ही खर्च से “युगीन काव्य” के नाम से त्रैमासिक पत्रिका निकालते रहे।

हस्ती जी का एक और परिचय था कि मुंबई में गीतकार शायर या रचनाकार के रूप में संघर्ष कर रहे लोगों को वे भरपूर मदद करते थे। सोने के कारोबारी थे और दिल भी सोने की तरह ही था।

ऊपर फोटो में आप जिस पुस्तक का आवरण देख रहे हैं वह किताब फ्लिपकार्ट पर 541 रुपये की थी मगर अब उपलब्ध नहीं है क्योंकि जितनी पुस्तकें छपी थी सब हाथोंहाथ बिक गई। एक हिंदी लेखक पर लिखी गई पुस्तक हाथों हाथ बिक जाए और उपलब्ध ना हो पाए ऐसा कमाल हस्तीमल हस्ती जैसी हस्ती ही कर सकती थी।

उनके निधन से मुंबई के साहित्य क्षितिज का एक सितारा अस्त हो गया।

कवि कुमार विश्वास ने हस्ती जो को श्रध्दांजलि देते हुए कहा,

” प्यार से सरोबार सादा तबीयत इंसान और बेहद सादा लफ़्ज़ों में कमाल कह देने का हुनर रखने वाले हस्तीमल हस्ती नहीं रहे। मूलतः राजस्थान के रहने वाले हस्तीमल जी मुंबई में गहनों का व्यापार करते थे। एक-एक नगीने को, हीरे को सही जगह जमाकर उसे जगमगाता आभूषण बनाने की हुनरमंदी ने ही शायद उन्हें शब्दों को बरतने की बेहतरीन क़ाबलियत बख्शी थी।

जगजीत सिंह से लेकर हर बड़े गायक ने उनके खूबसूरत लफ़्ज़ों के जिस्म को गायकी की रूह अता की थी। गाहे-बगाहे किसी-किसी मिसरे पर देर तक बतियाने के लिए आने वाले उनके कॉल का ताउम्र अब बस इंतज़ार ही रहेगा। अज्ञात अनंत के उनके लंबे सफ़र के लिए हम सब अदीबों की ओर से उन्हें सादर शुभकामनाएँ।

क्यूँकि बक़ौल ख़ुद हस्तीमल जी
“जिस्म की बात नहीं है उनके दिल तक जाना था,
लंबी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है….।”
अलविदा शायर ए ज़माना…

उनकी अंतिम यात्रा
कल यानी 25 जून को सुबह 11.00 बजे सांताक्रुज़ स्थित उनके निवास से 502 करण, यात्रा होटल के पास भूमि टॉवर के सामने प्रभात कालोनी सांताक्रूज पूर्व से निकलेगी
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क्या ख़ास क्या है आम ये मालूम है मुझे
किसके हैं कितने दाम ये मालूम है मुझे
हम लड़ रहे हैं रात से लेकिन उजाले पर
होगा तुम्हारा नाम ये मालूम है मुझे
ख़ैरात मैं जो बांट रहा हूँ उसी के कल
देने पड़ेंगे दाम ये मालूम है मुझे
रखते हैं कहकहो में छुपा कर उदासियां
ये मयकदे तमाम ये मालूम है मुझे
जब तक हरा-भरा हूँ उसी रोज़ तक हैं बस
सारे दुआ सलाम ये मालूम है मुझे
~हस्तीमल हस्ती
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बारहा ख़ुद को आज़माते हैं
तब कहीं जा के जगमगाते हैं
शक़्ल हमने जिन्हें अता की है
वे हमें आईना दिखाते हैं
बोझ जब मैं उतार देता हूँ
तब मेरे पाँव लड़खड़ाते हैं
सुख परेशां है ये सुना जबसे
हम तो दुख को भी गुनगुनाते हैं
तीरगी तो रहेगी ही ऐ दोस्त
वे कहाँ मेरे घर पे आते हैं
~हस्तीमल हस्ती
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उस जगह सरहदें नहीं होती
जिस जगह नफ़रतें नहीं होती

उसका साया घना नहीं होता
जिसकी गहरी जड़ें नहीं होती

उलझे धागों से हमने समझा है
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा कुछ-कुछ
~हस्तीमल हस्ती
चाहे जितने तोड़ लो तुम मंदिरों के वास्ते
फूल फिर भी कम न होंगे तितलियों के वास्ते

जिस्म की बात नहीं थी, उनके दिल तक जाना था
लंबी दूरी तय करने में वक्त तो लगता है।

आग पीकर भी रौशनी देना
माँ के जैसा है ये दिया कुछ-कुछ

घोड़ा हो या पियादा हो राजा हो या वज़ीर हैं
वक्त के ग़ुलाम ज़रा ध्यान में रहे

कभी कभी तो आप भी हमसे, मिलने की तकलीफ़ करें
हरदम हम ही आएँ-जाएँ यूँ थोड़े ही होता है

बरसों रूत के मिज़ाज सहता है
पेड़ यूं ही बड़ा नहीं होता

काम सभी हम ही निबटाएँ, यूँ थोड़े ही होता है
आप तो बैठे हुक़म चलाएँ, यूँ थोड़े ही होता है

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औरों का भी ख़्याल कभी था अभी नहीं
इंसान इक मिसाल कभी था अभी नहीं
पत्थर भी तैर जाते थे तिनकों की ही तरह
चाहत में वो कमाल कभी था अभी नहीं
क्यों मैंने अपने ऐब छिपा कर नहीं रखे
इसका मुझे मलाल कभी था अभी नहीं
क्या होगा कायनात का गर सच नहीं रहा
हर दिल में ये ख़्याल कभी था अभी नहीं
क्यों दूर-दूर रहते हो पास आओ दोस्तों
ये ‘हस्ती’ तंग-हाल कभी था अभी नहीं

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उस जगह सरहदें नहीं होतीं
जिस जगह नफ़रतें नही होतीं
उसका साया घना नहीं होता

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जूगनू बन या तारा बन
राहों का उजियारा बन
सुर ही तेरा जीवन है
बंसी बन या तारा बन
आवारा का मतलब जान
शौक़ से फिर आवारा बन
एक किसी का क्या बनना
दुनिया भर का प्यारा बन
सच इसां की दुनिया में
घूम रहा बेचारा बन

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काम करेगी उसकी धार
बाकी लोहा है बेकार
कैसे बच सकता था मैं
पीछे ठग थे आगे यार
बोरी भर मेहनत पीसूँ
निकले इक मुट्ठी भर सार
भूखे को पकवान लगें
चटनी, रोटी, प्याज, अचार
जीवन है इक ऐसी डोर
गाठें जिसमें कई हजार
सारे तुगलक चुन चुनकर
हमने बनाई है सरकार
शुक्र है राजा मान गया
दो दूनी होते हैं चार
प्यार वो शै है हस्ती जी
जिसके चेहरे कई हजार

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टूट जाने तलक गिरा मुझको
कैसी मिट्टी का हूँ बता मुझको
मेरी खुशबू भी मर न जाय कहीं
मेरी जड़ से न कर जुदा मुझको
एक भगवे लिबास का जादू
सब समझते हैं पारसा मुझको
अक़्ल कोई सजा़ है या ईनाम
बारहा सोचना पडा़ मुझको
हुस्न क्या चन्द रोज़ साथ रहा
आदतें अपनी दे गया मुझको
कोई मेरा मरज़ तो पहचाने
दर्द क्या और क्या दवा मुझको
मेरी ताक़त न जिस जगह पहुँची
उस जगह प्यार ले गया मुझको
आपका यूँ करीब आ जाना
मुझसे और दूर ले गया मुझको

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कितनी मुश्किल उठानी पड़ी
जब हक़ीक़त छुपानी पड़ी
शर्म आती है ये सोच कर
दोस्ती आजमानी पड़ी
हर मसीहा को हर दौर में
सच की क़ीमत चुकानी पड़ी
जो थी मेरी अना के ख़िलाफ़
रस्म वो भी निभानी पड़ी
रास्ते जो दिखाता रहा
राह उसको बतानी पड़ी
थी हर इक बात जिस बात से
बात वो भी भुलानी पड़ी

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कौन है धूप सा छाँव सा कौन है
मेरे अन्दर ये बहरूपिया कौन है
बेरूख़ी से कोई जब मिले सोचिये
द्श्त में पेड़ को सींचता कौन है
झूठ की शाख़ फल फूल देती नहीं
सोचना चाहिए सोचता कौन है
आँख भीगी मिले नींद में भी मेरी
मुझमें चुपचाप ये भीगता कौन है
अपने बारे में ‘हस्ती’ कभी सोचना
अक्स किसके हो तुम आईना कौन है

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सच के हक़ में खडा हुआ जाए
जुर्म भी है तो ये किया जाए
हर मुसाफ़िर मे शऊर कहाँ
कब रुका जाए कब चला जाए
बात करने से बात बनती है
कुछ कहा जाए कुछ सुना जाए
हर क़दम पर है एक गुमराही
किस तरफ़ मेरा काफ़िला जाए
इसकी तह में है कितनी आवाजें
ख़ामशी को कभी सुना जाए

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सबकी सुनना अपनी करना
प्रेम-नगर से जब भी ग़ुजरना
बरसों याद रक्खें ये मौजे
दरिया से यूँ पार उतरना
अनगिन बूँदों में कुछ को ही
आता है फूलों में ठहरना
फूलों का अंदाज़ सिमटना
खुशबू का अंदाज बिखरना
अपनी मंजिल ध्यान में रख कर
दुनिया की राहों से ग़ुजरना

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बेशक़ मुझको तौल तू, कहाँ मुझे इनक़ार
पहले अपने बाट तो, जाँच-परख ले यार
जाने किससे है बनी प्रीत नाम की डोर
सह जाती है बावरी दुनिया भर का ज़ोर
पार उतर जाए कुशल किसकी इतनी धाक
डूबे अँखियाँ झील में बड़े – बड़े तैराक
होता बिलकुल सामने प्रीत नाम का गाँव
थक जाते फिर भी बहुत राहगीर के पाँव
तन बुनता है चदरिया, मन बुनता है पीर
दास कबीरा सी रही, अपनी भी तक़दीर
फीकी है हर चुनरी फीका हर बन्देज
जो रंगता है रूप को वो असली रंगरेज
~हस्तीमल हस्ती
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चिराग़ दिल का मुकाबिल हवा के रखते हैं,
हरेक हाल में तेवर बला के रखते हैं।
मिला दिया हैं पसीना भले ही मिट्टी में,
हम अपनी आंख का पानी बचा के रखते हैं।
हमें पसंद नहीं जंग में भी मक्कारी,
जिसे निशाने पे रखें बता के रखते हैं।
कहीं ख़ुलूस,कहीं दोस्ती,कहीं पे वफ़ा,
बडॆ करीने से घर को सजा के रखते हैं।
अना पसंद हैं “हस्तीजी” सच सही लेकिन,
नज़र को अपनी हमेशा झुका के रखते हैं।

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जग का खूब तमाशा देखा
मैखानों को प्यासा देखा
रूप नया जीवन का देखा
बूढ़े में जब बच्चा देखा
कोठे देखे सजे-सजीले
मंदिर उजड़ा-उजड़ा
एक झलक उसकी क्या देखी
भूल गया सब जो था देखा
जो न कभी आने वाला है
हमने उसका रस्ता देखा

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रास्ते उल्टे बताये जाएंगे
कुछ सबक यूँ भी सिखाये जाएंगे
जिनका हासिल कुछ नहीं होता कभी
फ़िर वही सपने दिखाये जाएंगे
क्या ख़बर थी असली सिक्कों की तरह
खोटे सिक्के भी चलाये जाएंगे
ख़्वाब बन कर रह गई ये आस भी
हमको अपने हक़ दिलाये जाएंगे
हाथ हर युग में कटेगें ‘हस्तीजी’
ताज जब-जब भी बनाये जाएंगे
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क्या ख़ास क्या है आम ये मालूम है मुझे
किसके हैं कितने दाम ये मालूम है मुझे
हम लड़ रहे हैं रात से लेकिन उजाले पर
होगा तुम्हारा नाम ये मालूम है मुझे
ख़ैरात मैं जो बांट रहा हूँ उसी के कल
देने पड़ेंगे दाम ये मालूम है मुझे
रखते हैं कहकहो में छुपा कर उदासियां
ये मयकदे तमाम ये मालूम है मुझे
जब तक हरा-भरा हूँ उसी रोज़ तक हैं बस
सारे दुआ सलाम ये मालूम है मुझे
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बैंक व्यवस्था यानी आम आदमी को लूटने का एक खुला कारोबार

आज सभी लोगों को पैसा कमाने के बारे में पढ़ाया और समझाया जाता है।लेकिन यह नही बताया जाता पैसा पैदा होता कैसे है।

सरकार,व्यापारी ,किसान,जनता सब कर्ज में है तो सवाल उठता है यह कर्ज दिया किसने ओर इतना सारा कर्ज देने के लिए पैसा आया कहाँ से।

मतलब सभी लोग बैंको के कर्ज में है।हम आगे पढ़ेगें कि बैंकों के बारे में लोगों की क्या क्या ग़लतफ़हमी हैं।

सब लोगों को, बैंक से उधार या लोन या फिर क्रेडिट कार्ड उपयोग करने की प्रणाली नहीं पता होने के कारण 3 तरह की गलतफहमी है

पहली ग़लतफ़हमी ये की बैंक आपको उधार में असली रूपया पैसा दे रहा है ।

दूसरी ग़लतफ़हमी ये की बैंक किसी दूसरे व्यक्ति का पैसा आपको उधार या लोन दे रहा है । किसी दूसरे के पास ज्यादा पैसे थे उसने सोचा कि बैंक में रख देता हूँ ताकी थोडा़ बहुत ब्याज मिल जाये । और वो पैसे आपको लोन या उधार में मिल गये ।

तीसरी ग़लतफ़हमी ये है कि बैंक अपनी मेहनत की कमाई में से कुछ पैसा आपको उधार देता है ।

सच्चाई का इन तीन बातों से कोई लेना देना है ही नहीं । अगर आप पूरी सच्चाई जानना चाहते तो पूरी कहानी पढे़ ।

(1) भूतकाल

कहानी शुरू होती है कई सालो पहले जब सोने और चाँदी के सिक्के चलते थे । तक बैंकिंग सिस्टम नही था । सिर्फ अर्थ-शास्त्र था । आज अर्थ-शास्त्र को बैंकिंग सिस्टम और शेयर बाजार ने पूरी तरह से हथिया लिया है । ये सब कैसे हुआ ये जानते है ।

पहले सोने और चाँदी के सिक्के चलने लगे । जब सोने और चाँदी के सिक्के चलते थे तब बैंकर लोगो ने योजना बनाई और इस योजना के चलते उन्होने लोगो से बोला कि आप अपना सोना चाँदी हमारे पास रखो हम उसकी हिफाजत करेंगे । जब भी कोई सोना चाँदी बैंकर के पास रखता तो उसको रसीद के तौर पर एक “पेपर रसीद” मिल जाती थी । ये पेपर रसीद ही शुरूआती पेपर नोट थे । बैंकर लोगों को रसीद बनाना आसान था बजाय कि सोना खोदने की और लोगो को भी इन कागज के नोट को मार्केट में उपयोग करना आसान था ।

तब जितना सोना होता था उतनी ही रसीद होती थी । फिर बैंकर लोगो को अर्थव्यवस्था में कब्जा जमाने को पहला कदम मिला, उन लोगो ने उधार देना चालू कर दिया ।

जो लोग बचत करते थे उसी सोने में से ही किसी दूसरे को उधार (लोन) मिलता था । इस तरह बैंकर लोगो को पहली बार इतिहास में अर्थशास्त्र को अपनी मर्जी से मोड़ने का पहला प्रावधान मिला । क्योंकि वो उधार दे सकते थे इसका सबके बडा़ फायदा अमीर और बहुत अमीर लोगों को हुआ, क्योंकि अमीरों को बडी़ पूँजी आसानी से मिल गई जिससे उन्होंने बडे़ बडे़ कारखाने लगाये और वो अमीर होते चले गये क्योंकि पैसे से पैसे बनाना बहुत आसान होता है । गरीब को भी लोन मिलता था उससे कोई फायदा नही था ग़रीबों को ।

अब देखते हैं दूसरे कदम को, जिससे बैंकर लोगो ने अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह से कब्जा जमाने कि चाल चली ।

एक दिन बैंकर को लालच आया और ये सोचा की वो उतना ही उधार दे सकता है जितना कि उसके पास सोना होता है । अगर ऐसा हो जाये कि वो उस सोने के नाम की नोट देना चालू कर दे जो उसकी तिजोरी में है ही नहीं तो कैसे रहेगा । ये था दूसरा प्रावधान जिससे काफी सारी ऐसी बैंक नोट बनाये गये जिसके समानांतर कोई सोना था ही नहीं।

लोगों को इस लूट के बारे में पता ही नहीं चल पाया, क्योंकि लोग अब सोने के सिक्को में लेनदेन करते ही नही थे , वो तो कागज के नोट से ही लेनदेन करते थे । और सारे लोग एक साथ मिलकर अपना सोना बैंक से निकलवाते नही थे । मान लो अगर सारे लोग अपना सोना बैंक से निकलवाने पहुँच जाये तो बैंक तो लुट जायेगी क्योंकि उसने जितने नोट (रसीद ) बाँट रखी है उतना सोना तो है ही नही बैंक में ।

इस दूसरे कदम के चलते दुनिया के अमीर लोग महाअमीर हो गये क्योंकि अब वो बैंक में रखे सोने के बराबर लोन लेने तक सीमित नही थे, बैंक असली सोने से कई गुणा ज्यादा की रसीदे (नोट) देकर इन अमीर को बडे़ बडे़ लोन सस्ती ब्याज दरों पर देती थी । इस पैसे से इन अमीरों ने बडे़ बडे़ कारखाने लगाये ।

इसके कारण गरीब और ज्यादा गरीब हो गया । कैसे ? अरे भाई मान लो 100 लोग है हर एक के पास 1 किलो सोना है । पूरी अर्थव्य्वस्था है 100 किलो सोने की और हर एक व्यक्ति का मार्केट में रूतबा 1% का है। अब बैंकर लोगो ने 500 किलो की रसीद बना दी है और 400 किलो की रसीद 2 अमीर लोगों को दे दी । यानी जिस आदमी में का रूतबा 1%का था वो अब 0.2% हो गया । यानी बिना किसी मेहनत से बैंक की कृपा से 2 अमीर बंदे 1% के 40.2% पहुँच गये (40 गुणा बढ़त) और बाकी लोग 1% से 0.1% पर लुढ़क गये (5 गुणा निचे) ।

जो गरीब और अमीर के बीच खाई है उसका मुख्य कारण बैंकिंग सिस्टम ही है ।

इन दोनो कदमों के बाद बडते है तीसरे कदम की ओर ।

तीसरे कदम में ये हुआ कि सरकार ने पुराने बैंक खतम कर दिये और सोने चाँदी के सिक्को की जगह पेपर नोट (कागज के नोट) को ही मुख्य करंसी मान लिया । नये बैंक बने जो इस पेपर नोट को रखते थे ।

फिर पेपर नोट चलने लगे । जब पेपर नोट थे तब बैंकर लोगो ने योजना बनाई और इस योजना के चलते उन्होंने लोगो से बोला कि आप अपना पेपर नोट हमारे पास रखो हम उसकी हिफाजत करेंगे । जब भी कोई पेपर नोट बैंकर के पास रखता तो उसको रसीद के तौर पर एक “बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड” मिल जाती था । ये रसीद ही शुरूआती “बैंक मनी” थे ।

बैंकर लोगो को “बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड” बनाना आसान था बजाय कि नोट छापने की और लोगो को भी इन “बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड” को मार्केट में उपयोग करना आसान था ।

तब जितना “पेपर मनी” होता था उतनी ही “बैंक मनी” (यानी डिजीटल मनी) होती थी ।

फिर बैंकर लोगो को अर्थव्यवस्था में कब्जा जमाने को चौथा कदम मिला, उन लोगो ने उधार देना चालू कर दिया ।

जो लोग बचत करते थे उसी पैसे में से ही किसी दूसरे को उधार (लोन) मिलता था । इस तरह बैंकर लोगो को फिर से अर्थशास्त्र को अपनी मर्जी से मोड़ने का प्रावधान मिला । क्योंकि वो उधार दे सकते थे इसका सबसे बड़ा फायदा अमीर और बहुत अमीर लोगों को हुआ क्योंकि अमीरों को बडी़ पूँजी आसानी से मिल गई जिससे उन्होने बडे़ बडे़ कारखाने लगाये और वो अमीर होते चले गये क्योंकि पैसे से पैसे बनाना बहुत आसान होता है । गरीब को भी लोन मिलता था उससे कोई फायदा नही था गरीबो को ।

चलो चलते है पाँचवे कदम पर जिससे बैंकर लोगो ने अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह से कब्जा जमाने के चाल चली ।

एक दिन बैंकर को लालच आया और ये सोचा कि वो उतना ही उधार दे सकता है जितना कि उसके पास पेपर नोट होता है । अगर ऐसा हो जाये की वो उस रूपये के नाम की “डिजिटल मनी (चेक, लोन)” देना चालू कर दे जो उसकी तिजोरी में है ही नहीं तो कैसे रहेगा । ये था पाँचवा कदम जिससे काफी सारी ऐसी बैंक मनी बनाये गये जिसके समानांतर कोई रूपया था ही नहीं।

लोगों को इस लूट के बारे में पता ही नही चल पाया क्योंकि लोग अब पेपर नोट में लेनदेन करते ही नही थे , वो तो “चेक, डेबिट कार्ड , क्रेडिट कार्ड और इंटरनेट बैंकिग” से ही लेनदेन करते थे । और सारे लोग एक साथ मिलकर अपना नोट बैंक से निकलवाते नही थे । मान लो अगर सारे लोग अपना पैसा बैंक से निकलवाने पहुँच जाये तो बैंक तो लुट जायेगी क्योंकि उसने जितने डिजिटल मनी बाँट रखी है उतने कागज के नोट तो है ही नही बैंक में ।

(2) वर्तमान

आज महानगरों में रहने वाले लोगों की सेलेरी एटीएम कार्ड के अंदर आती है और कार्ड से ही खर्च हो जाती है । दिल्ली वालो को बस सब्जी और आटो वाले के लिये ही पेपर नोट की जरूरत पड़ती है ।

इस पाँचवे कदम के के चलते दुनिया के महाअमीर लोग और भी महामहाअमीर हो गये क्योंकि अब वो बैंक में रखे नोट के बराबर लोन लेने तक सीमित नही थे, बैंक इनको असली नोट से कई गुना ज्यादा की बैंक मनी देकर इन अमीर को बडे़ बडे़ लोन सस्ती ब्याज दरों पर देने लगी । इस पैसे से इन अमीरों ने बडे़ बडे़ कारखाने लगाये ।

इसके कारण गरीब और गरीब हो गया । कैसे ? वो तो ऊपर बताया ही है । जो गरीब और अमीर के बीच खाई है उसका मुख्य कारण बैंकिंग सिस्टम ही है ।
अब चलते है हमारे असली सवाल की ओर ।

पहली ग़लतफ़हमी ये की बैंक आपका उधार में असली रूपया पैसा दे रहा है ।

दूसरी ग़लतफ़हमी ये की बैंक किसी दूसरे बंदे का पैसा आपको उधार या लोन दे रहा है । किसी दूसरे के पास ज्यादा पैसे थे उसने सोचा कि बैंक में रख देता हूँ ताकी थोडा़ बहुत ब्याज मिल जाये । और वो पैसे आपको लोन या उधार में मिल गये ।

तीसरी ग़लतफ़हमी ये है कि बैंक अपनी मेहनत की कमाई में से कुछ पैसा आपको उधार देता है ।

ये तीनों बाते गलत है, मै बताता हूँ कि असलियत में क्या होता है। माना आपको 2000 रूपये के कैमरे की जरूरत है और आप किसी शोप पर क़ेडिट कार्ड उपयोग करते हो तो बैंक आपको कोई असली रूपया नही देता है । वो आपके खाते में लिख देगा -2000 (माइनस 2 हजार) और दुकान वाले के खाते में लिख देगा +2000 ! चाहे आप लोन लो या किसी भी प्रकार का उधार, बैंक वाले आपको असली के नोट नही देते है वो आपको डिजिटल मनी देते है जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है ।

आज हमारी अर्थव्यवस्था में 5% नकद है और बाकी 95% डिजिटल मनी है जो की हमारे बैंको ने मनमाने तरीके से मार्केट मे डाली है। ये सारा पैसा कम्प्यूटर में ही अस्तित्व रखाता है । हमको पैसा कमाने में बहुत मेहनत लगती है लेकिन बैंक वाले बटन दबा कर मनचाही ”बैंक मनी” अमीर लोगो को धंधे खोलने के नाम पर दे देती है जिसको हमे वापस कमाने के लिये इन कंपनीयों के अंदर काम करना पड़ता है ।

आपको जानकर आश्चर्य होगा की ये सब एक प्रणाली के अंतर्गत होता है जिसको नाम दिया गया है – ”Fractional Reserve System” !

(4) Fractional Reserve System

दुनिया के सारे देशों में एक केंद्रीय बैंक होता है । जैसे यूके में बैंक ओफ इंग्लैंड है, भारत में आरबीआई है अमेरीका में फेडरल बैेक है ।

ये केंद्रीय बैंक अपने अधीन बैंको के साथ ही Fractional Reserve System को चलाते हैं।

हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते है पर बैंकिंग सिस्टम और उसकी प्रणाली में कोई लोकतंत्र नही है । FRS में जो भी नया पैसा बैंक पैदा करती है वो सारा पैसा उधार के रूप में पैदा होता है और उधार चुकाने पर खतम हो जाता है ।

FRS को समझना बहुत आसान है । मान लो रामू ने 100 रूपये (पेपर नोट) बैंक ने जमा किये । तो बैंक उसमें से 5 रूपये रख लेती है बाकी 95 (डिजिटल मनी) वो किसी को लोन वो श्याम को देती है । श्याम इस लोन से मीरा से सामान लेता है, मीरा बैंक में ही 95 लाकर जमा कर देती है ।

मीरा ने जो पैसे बैंक में डाले वो बैंक के ही थे जिसे हम बैंक मनी बोलते है, दिक्कत यहाँ से चालू होती है जब बैंक इस 95 को भी नई जमा पूँजी मान लेती है और फिर से इसे लोन के लिये आगे कर देती है । इस बार बैंक 95 में से 4.25 अपने पास रख लेती है और बाकी के 90.75 रूपये फिर से लोन देती है । इस प्रकार बैंक ने दो बार लोन देकर 100 रूपये के 100 + 95 + 90.75 = 285.75 रूपये दिखा दिये । बार बार इसी चक्र को बरा बार चलाया जाये तो होते है 2000 रूपये ।

इस प्रकार जब भी बैंक में 100 असली पैसा जमा होने पर बैंक 2000 रूपया बना देती है । 1900 रूपया उधार के रूप में बनाया गया है । ये 1900 रूपया डीजीटल मनी है जो बैंक अपनी मनमानी तरीके से बाँटती है ।

भारत की सारी जनता उधार को कभी भी नही चुका सकती क्योंकि उधार ब्याज के साथ चुकाना पड़ता है और सारी जनता को ब्याज के साथ चुकाने के लिये जितनी डिजिटल मनी है उससे ज्यादा मनी लानी पडे़गी । फिर से नई मनी (रूपया) बनाना पडे़गा । बैंक नया रूपया उधार के रूप में ही बनाता है तो ये कभी उधार चुकने वाला नहीं है ।

आसानी से समझने के लिये पूरी दुनिया को एक गाँव मान ले, और सोने के सिक्कों को रूपया । अब मान लो पूरी दुनिया का सोना 100 किलो ही है जो सारा का सारा उधार के रूप में बँट गया तो पूरी जनता को 110 किलो सोना लौटाना पडे़गा जो की संभव ही नहीं है ।

जैसा कि मैने बताया की जब भी बैंक नया लोन देते हैं वो डिजिटल मनी के रूप में नया पैसा पैदा करता है, इसके अलावा एक सच ये भी है की जब लोन चुकाया जाता है तो अर्थव्यवस्था से खतम भी होता है । अगर भारत की जनता किसी जादू से लोन चुका दे तो भारत की 95% पूँजी खतम हो जायेगी ।

इसी बैंकींग सिस्टम ने ही अमीरों को महाअमीर और गरीबों को महागरीब बना दिया है । बडे हुये हाउसिंग प्राईज का जिम्मेदार भी यही सिस्टम है ।

(3)भविष्य

अब धीरे धीरे हमारा सिस्टम आखरी और छठे कदम की ओर जा रहा है । इस सिस्टम में जिस तरीके से सोने चाँदी के सिक्के गायब कर दिये गये उसी तरीके से पेपर नोट भी गायब कर दिये जायेंगे । हमें एक कैशलेश (cashless) समाज की ओर धकेला जा रहा है । जहाँ पर अमीरों और गरीबों के बीच की खाई कभी नही भर पायेगी । सारी अर्थव्यवस्था की नकेल बैंकर माफिया लोग के हाथ में रहेगी।

साभार-https://www.facebook.com/dungarsinghvader.rajpurohit से

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11 साल की उम्र में जबरन शादी,20 साल की उम्र में पिता बना और 21 साल की उम्र में नीट की परीक्षा पास कर ली…

रामलाल भारत के राजस्थान के एक उल्लेखनीय व्यक्ति हैं, जिन्होंने व्यक्तिगत कठिनाइयों और सामाजिक दबावों के बावजूद डॉक्टर बनने के अपने सपने को पूरा किया। रामलाल की यात्रा वास्तव में उल्लेखनीय है, खासकर उन कठिनाइयों के प्रकाश में जिनका उन्होंने बहुत कम उम्र में सामना किया था। रामलाल, जिनका जन्म और पालन-पोषण राजस्थान में हुआ था, की 11 साल की छोटी उम्र में जबरदस्ती शादी कर दी गई और 20 साल की उम्र में वह पिता बन गए। अपनी प्रारंभिक जिम्मेदारियों के बावजूद, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा और वह राष्ट्रीय पात्रता और प्रवेश परीक्षा पास करने के लिए प्रतिबद्ध रहे।

नीट भारत में मेडिकल अध्ययन के लिए सबसे कठिन प्रवेश परीक्षाओं में से एक है। वित्तीय अस्थिरता और अपने परिवार के विरोध के बावजूद रामलाल अपनी पढ़ाई में लगे रहे और 2022 में उन्होंने अपने पांचवें प्रयास में NEET परीक्षा पास कर ली। रामलाल की कहानी उनके अटूट संकल्प और उनकी पत्नी से मिले समर्थन का प्रमाण है, जिन्होंने अपनी शिक्षा केवल 10वीं कक्षा तक पूरी करने के बावजूद, डॉक्टर बनने की उनकी इच्छा में उनका साथ दिया। पूर्ण समर्पण के साथ, रामलाल ने 21 साल की उम्र में NEET 2022 में 720 में से 490 अंक हासिल किए, एक महत्वपूर्ण उपलब्धि जिसने एक प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में उनके प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया।

उनकी यात्रा 74 प्रतिशत प्रभावशाली अंकों के साथ 10वीं कक्षा पूरी करने और विज्ञान स्ट्रीम चुनने के साथ शुरू हुई – एक ऐसा निर्णय जिसने उन्हें चिकित्सा पेशे में शामिल होने की उनकी आकांक्षाओं को साकार करने की राह पर खड़ा कर दिया। प्रत्येक प्रयास के साथ उल्लेखनीय सुधार दिखाते हुए, रामलाल के दृढ़ संकल्प ने उन्हें कोटा में एक कोचिंग कार्यक्रम में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया, जिसकी परिणति NEET 2022 में उनके उल्लेखनीय प्रदर्शन के रूप में हुई।

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