Saturday, November 23, 2024
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फिल्मी गीतों में दीपावली

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दीपावली का त्योहार फिल्मों में भी खास जगह रखता है। कई फिल्मों में इस त्योहार को लेकर खूबसूरत गीत बनाए गए हैं, जो इस त्योहार की खुशियों, रौशनी, और उत्साह को दर्शाते हैं। आइए, कुछ ऐसे फिल्मी गीतों की बात करें जो दीपावली से जुड़े हैं और जिन्हें लोग अक्सर इस मौके पर गुनगुनाते हैं।

  1. दीप जलते हों, फूल खिलते हों” – फिल्म: बेटी-बेटे (1964)
  • गायक: लता मंगेशकर, मुकेश
  • गीतकार: शकील बदायूनी
  • संगीत: रोशन

इस गाने में दीप जलाने और फूल खिलने की बात की गई है, जो दिवाली के माहौल से मेल खाता है। गाने के बोल दिवाली के अवसर पर खुशियों और अच्छे समय की कामना करते हैं। यह गीत आज भी दीवाली के अवसर पर बजाया जाता है।

  1. कभी खुशियों की सहर” – फिल्म: ममता (1966)
  • गायक: लता मंगेशकर, हेमंत कुमार
  • गीतकार: मजरूह सुल्तानपुरी
  • संगीत: रोशन

यह गीत दिवाली का नहीं है, लेकिन इसके बोल और भावनाएँ किसी को भी दिवाली की भावना में ले जा सकते हैं। गाने में आशा और नए सवेरे की बात है, जो दिवाली की सकारात्मकता को दर्शाता है।

  1. हैप्पी दीवाली” – फिल्म: होम डिलीवरी (2005)
  • गायक: वैभव लक्ष्मी, सुनिधि चौहान, कुणाल गांजावाला
  • गीतकार: विशाल ददलानी
  • संगीत: विशाल-शेखर

इस गाने में एक मॉडर्न टच है, और यह दिवाली की खुशियों और दोस्ती के उत्सव को दर्शाता है। “हैप्पी दीवाली” एक मस्ती भरा गाना है, जो युवाओं को खूब पसंद आता है। इसमें दिवाली के अवसर पर दोस्तों और परिवार के साथ जश्न मनाने का ज़िक्र है।

  1. दीवाली आई रे” – फिल्म: अंदाज अपना अपना (1994)
  • गायक: आशा भोंसले, सुरेश वाडकर
  • गीतकार: मजरूह सुल्तानपुरी
  • संगीत: तुषार भाटिया

इस गाने में दीवाली के मौके पर मस्ती और धूम-धड़ाका दिखाया गया है। अमर और प्रेम के किरदार इस गाने में दीवाली की मस्ती में मस्त हैं। गाना काफी एनर्जेटिक है और दीवाली के उत्साह को पूरी तरह से व्यक्त करता है।

  1. अरे दीवाली है दीवाली” – फिल्म: आए दिन बहार के (1966)
  • गायक: मोहम्मद रफी
  • गीतकार: आनंद बख्शी
  • संगीत: लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल

यह गीत दीवाली की खुशियों का संदेश देता है। मोहम्मद रफी की आवाज़ में इस गाने के बोल त्योहार के जश्न और खुशियों को दर्शाते हैं। इसमें दिवाली के अवसर पर अपने करीबियों के साथ समय बिताने और खुशियों को बाँटने का संदेश है।

  1. मंगल दीप जले” – फिल्म: जगते रहो (1956)
  • गायक: लता मंगेशकर
  • गीतकार: शैलेन्द्र
  • संगीत: सलिल चौधरी

यह गीत सीधे तौर पर दीपावली का नहीं है, लेकिन इसमें दीप जलने की बात की गई है, जो दिवाली के त्योहार से जुड़ता है। गाने का अर्थ है कि जीवन में मंगल के दीप जलें, और सभी को सुख-शांति मिले। दिवाली के समय यह गीत बहुत ही सुकूनभरा लगता है।

  1. दीपावली मनाई सुहानी” – फिल्म: शिर्डी के साईं बाबा (1977)
  • गायक: अनूप जलोटा
  • गीतकार: पंडित मदन मोहन मालवीय
  • संगीत: पंडित हृदयनाथ मंगेशकर

यह भजननुमा गीत है जो शिर्डी के साईं बाबा के आशीर्वाद के साथ दीपावली के उत्सव को मनाने की बात करता है। इसमें एक धार्मिक भाव है, जो दिवाली के आध्यात्मिक पहलू को भी छूता है।

  1. सज के झूम उठी है रात, फूलों ने हँस के कहा” – फिल्म: बेमिसाल (1982)
  • गायक: लता मंगेशकर
  • गीतकार: आनंद बख्शी
  • संगीत: आर. डी. बर्मन

इस गाने में फूलों और दीयों का ज़िक्र है, जो दिवाली की रात के सौंदर्य को दर्शाता है। यह गाना दिवाली पर बजाया जाता है और रात के जश्न को रंगीन बनाता है।

फिल्मों में दीपावली के ये गाने त्योहार के दौरान अक्सर बजाए जाते हैं। ये गीत न केवल त्योहार का माहौल बनाते हैं, बल्कि हमारे दिलों में खुशियों और सकारात्मकता का दीप जलाते हैं। दीपावली के अवसर पर इन गीतों को सुनना हमेशा ही आनंददायक होता है।

दीवाली के त्योहार पर कई खूबसूरत और यादगार फिल्मी गीत बने हैं, जो इस उत्सव की खुशियों, रौशनी और प्रेम को दर्शाते हैं। इन गीतों को सुनकर दीवाली का माहौल और भी रंगीन और उमंग भरा हो जाता है। ये फिल्मी गाने दीपावली के उत्सव की भावना को और भी मस्ती से भर देते हैं।

 

  1. दीवाली आई रे” – फिल्म: अंदाज़ अपना अपना (1994)
  • गायक: आशा भोंसले, सुरेश वाडकर
  • गीतकार: मजरूह सुल्तानपुरी
  • संगीत: तुषार भाटिया

यह गाना दीवाली के जश्न का प्रतीक है, जिसमें आमिर खान और सलमान खान के किरदार दीवाली की मस्ती में झूमते नजर आते हैं। यह गीत बहुत ही मजेदार और एनर्जेटिक है, जो दीवाली के माहौल को पूरी तरह से दर्शाता है।

  1. हैप्पी दीवाली” – फिल्म: होम डिलीवरी (2005)
  • गायक: वैभव लक्ष्मी, सुनिधि चौहान, कुणाल गांजावाला
  • गीतकार: विशाल ददलानी
  • संगीत: विशाल-शेखर

यह गाना दीवाली के उत्सव के आधुनिक रंग को दर्शाता है। इसमें दोस्तों और परिवार के साथ दिवाली मनाने की बात की गई है। यह गाना यंग जनरेशन के बीच काफी पॉपुलर है और इसमें दीवाली की उमंग और जश्न को बेहतरीन तरीके से पेश किया गया है।

  1. दीप जलते हों, फूल खिलते हों” – फिल्म: बेटी-बेटे (1964)
  • गायक: लता मंगेशकर, मुकेश
  • गीतकार: शकील बदायूनी
  • संगीत: रोशन

यह गीत सीधा दीवाली का तो नहीं है, लेकिन इसके बोल “दीप जलते हों, फूल खिलते हों” इस पर्व के मौहाल को पूरी तरह से दर्शाते हैं। गाने में दीयों की रोशनी और फूलों की महक से हर दिल को खुशियों से भरने की कामना की गई है, जो दीवाली की भावना से जुड़ी हुई है।

  1. अरे दीवाली है दीवाली” – फिल्म: आए दिन बहार के (1966)
  • गायक: मोहम्मद रफी
  • गीतकार: आनंद बख्शी
  • संगीत: लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल

यह गाना दीवाली के मौके पर परिवार के साथ जश्न मनाने का एक खूबसूरत गीत है। मोहम्मद रफी की आवाज़ में यह गाना दीवाली के उल्लास और आनंद को दर्शाता है। इसमें दीवाली की रात की रौनक और खुशियों को बहुत सुंदरता से प्रस्तुत किया गया है।

  1. मंगल दीप जले” – फिल्म: जागते रहो (1956)
  • गायक: लता मंगेशकर
  • गीतकार: शैलेन्द्र
  • संगीत: सलिल चौधरी

यह गाना एक भजननुमा गीत है, जिसमें जीवन में शांति और मंगल की कामना की गई है। इसे दीपावली पर विशेष रूप से सुना जाता है क्योंकि इसके बोल और संगीत दीयों की रोशनी और सकारात्मकता को बढ़ावा देते हैं।

  1. दीपावली मनाई सुहानी” – फिल्म: शिर्डी के साईं बाबा (1977)
  • गायक: अनूप जलोटा
  • गीतकार: पंडित मदन मोहन मालवीय
  • संगीत: पंडित हृदयनाथ मंगेशकर

यह गीत धार्मिकता से भरा हुआ है और इसमें साईं बाबा की महिमा और दीवाली के अवसर पर शांति की कामना की गई है। इस गीत का माहौल दीवाली की धार्मिक और आध्यात्मिक भावना को प्रकट करता है।

  1. सज के झूम उठी है रात, फूलों ने हंस के कहा” – फिल्म: बेमिसाल (1982)
  • गायक: लता मंगेशकर
  • गीतकार: आनंद बख्शी
  • संगीत: आर. डी. बर्मन

इस गीत में फूलों और दीयों का ज़िक्र है, जो दीवाली की रात के सौंदर्य को दर्शाता है। इस गाने का संगीत और लता मंगेशकर की आवाज़ दीवाली के अवसर को और भी खुशनुमा बना देती है।

  1. प्यारी प्यारी दीवाली आई” – फिल्म: आंखें (1993)
  • गायक: कविता कृष्णमूर्ति
  • गीतकार: इन्दीवर
  • संगीत: बप्पी लहरी

इस गाने में दीवाली के अवसर पर उत्साह और खुशियों का माहौल दिखाया गया है। गीत में दीप जलाने, मिठाई बाँटने और उत्सव की तैयारी का सुंदर वर्णन है। यह गीत विशेषकर बच्चों के बीच बहुत लोकप्रिय है।

हिंदी कवियों की कलम से दीपपर्व का सौंदर्य

दीपावली का त्योहार भारतीय साहित्य और काव्य में विशेष स्थान रखता है। हिंदी साहित्य में कई कवियों और लेखकों ने इस पावन पर्व पर अपनी कविताओं, गीतों और गज़लों के माध्यम से दीयों की रोशनी, खुशियों, और उल्लास को अभिव्यक्त किया है। हिंदी साहित्य में दीपावली पर ऐसी अनेक कविताएँ और गीत लिखे गए हैं, जो इस पर्व की सुंदरता, परंपरा, और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाते हैं। ये कविताएँ न केवल दीपों की रोशनी का वर्णन करती हैं, बल्कि दिलों में प्रेम, एकता, और सद्भावना का दीप जलाने का संदेश भी देती है।

 

  1. मैथिलीशरण गुप्त – दीपावली

मैथिलीशरण गुप्त, जो “राष्ट्रकवि” के रूप में प्रसिद्ध हैं, ने अपनी कविताओं में दीपावली के सांस्कृतिक और धार्मिक पहलुओं को उजागर किया है। उनकी एक कविता की कुछ पंक्तियाँ हैं:

जगत में उजियारा फैलाती,
दीपों की यह कतार है।
हर मन में उमंग जगाती,
दीपावली का त्योहार है।”

इस कविता में दीपावली के प्रकाश और जीवन में इसके महत्व को दर्शाया गया है। यह कविता हमारे दिलों में दीप जलाने और उत्साह जगाने का संदेश देती है।

  1. अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध‘ – दीप की बाती

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ने दीपावली के दीपों को मानवीय रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी कविता में दीप की बाती को प्रतीकात्मक रूप में देखा जा सकता है, जो अंधकार को दूर करने के लिए जलती है। उनकी कविता का अंश:

दीप से दीप जलाओ,
हर घर में उजाला फैलाओ।
अंधियारे को दूर भगाओ,
जीवन को फिर से महकाओ।”

इस कविता में दिवाली का संदेश है कि हर दिल में प्रेम और प्रकाश की भावना जगाओ।

  1. सुभद्रा कुमारी चौहान – दीपों का त्योहार

सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपने लेखन में दीपावली के उत्सव को बच्चों, घर और समाज के दृष्टिकोण से देखा है। उनकी कविता में सरलता और मासूमियत झलकती है। कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:

आई दिवाली, आई दिवाली,
घर-घर दीपों की लाई लाली।
बच्चों के संग खेल रही है,
नई खुशियों की रंग बिरंगी थाली।”

उनकी कविता में दीपावली के उल्लास, रंग-बिरंगी रोशनी, और बच्चों की खुशी का वर्णन है।

  1. रामधारी सिंह दिनकर‘ – उजाले का पर्व

रामधारी सिंह दिनकर ने दीपावली को अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक माना है। उनकी कविताओं में हमेशा से एक गहरी सोच होती है। दिनकर जी की एक कविता में दीपावली को इस प्रकार व्यक्त किया गया है:

जल उठे दीप तम हटे,
जीवन की राहों से छल हटे।
दीप जलाओ, मन हरषाओ,
प्रेम का प्रकाश हर दिल में बसाओ।”

यह कविता दीपों की रोशनी के माध्यम से जीवन के अंधेरे को दूर करने की प्रेरणा देती है।

  1. काका हाथरसी – हास्य कविताएँ

काका हाथरसी ने अपने हास्यपूर्ण अंदाज में दीपावली को लेकर मजेदार कविताएँ लिखी हैं। उनकी कविताओं में दिवाली पर पटाखों की धमक, मिठाइयों की बात, और सामाजिक व्यंग्य झलकता है। उदाहरण के तौर पर:

लक्ष्मी जी का किया स्वागत,
पेट पूजने का बहाना।
रंग-बिरंगी मिठाइयों से,
बढ़ा अपनापन का फसाना।”

काका हाथरसी की कविताओं में दीवाली के हंसी-मजाक और खाने-पीने की खुशी का सुंदर चित्रण मिलता है।

  1. सोहनलाल द्विवेदी – दीपावली की रात

सोहनलाल द्विवेदी ने अपनी कविता “दीपावली की रात” में इस त्योहार की पावनता और दिव्यता को प्रकट किया है। उनकी कविता की कुछ पंक्तियाँ हैं:

दीपों की यह रात सुहानी,
भर दे सब में नई जवानी।
हर दिल में बस जाए खुशी,
दीप जलाओ मन में खुशी।”

उनकी कविता दीपावली की रात की सुंदरता को दर्शाती है, और यह प्रेरणा देती है कि हर दिल में खुशी का दीप जलाएँ।

  1. बालकृष्ण शर्मा नवीन – प्रकाश पर्व

बालकृष्ण शर्मा नवीन ने दीपावली को प्रकाश पर्व के रूप में देखा है, जहाँ अंधकार को हटाकर जीवन में नई आशा और उत्साह का संचार होता है। उनकी कविता का एक अंश:

प्रकाश का यह पर्व निराला,
हर मन में हो खुशियों का उजाला।
दीपों से घर-द्वार सजाएँ,
एकता का संदेश फैलाएँ।”

उनकी कविताओं में दीपावली का संदेश है कि यह त्योहार सबके जीवन में एक नई शुरुआत लेकर आए।

राम की शक्ति पूजा

दिवाली का मतलब है अंधकार को दूर करना लेकिन इसके शाब्दिक अर्थ को ग्रहण करने की बजाय आप अपने आस-पास के अंधियारे को देखें और अनाथ आश्रमों में रहने वाले बच्चों के बीच जाकर, अपने घर के पास की झुग्गी झोपडियों में रहने वाले गरीबों के बीच जाकर या फिर अपने घर में काम करने वाले नौकरों, ड्रायवरों और महरियों के बच्चों को अपने घर बुलाकर उनके साथ दिवाली मनाएं तो तो दीपावली का पर्व मनाना ज्यादा सार्थक होगा।

महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने राम की शक्ति पूजा पर एक कालजयी रचना लिखी थी हमें उम्मीद है हमारे हिन्दी प्रेमी सुधी पाठकजनों को जरुर पसंद आएगी।

फिर देखी भीमा-मूर्ति आज रण देवी जो
आच्छादित किए हुए सम्मुख समग्र नभ को,
ज्योतिर्मय अस्त्र सकल बुझ-बुझकर हुए क्षीण,
पा महानिलय उस तन में क्षण में हुए लीन,
लख शंकाकुल हो गए अतुल-बल शेष-शयन;
खिंच गए दृगों में सीता के राममय नयन;
फिर सुना-हँस रहा अट्टाहास रावण खलखल,
भावित नयनों से सजल गिरे दो मुक्ता-दल।

बैठे मारुति देखते राम-चरणारविन्द-
युग ‘अस्ति-नास्ति’ के एक गुण-गण-अनिन्द्य,
साधना-मध्य भी साम्य-वामा-कर दक्षिण-पद,
दक्षिण करतल पर वाम चरण, कपिवर, गद्गद्
पा सत्य, सच्चिदानन्द रूप, विश्राम धाम,
जपते सभक्ति अजपा विभक्ति हो राम-नाम।
युग चरणों पर आ पड़े अस्तु वे अश्रु-युगल,
देखा कवि ने, चमके नभ में ज्यों तारादल।
ये नहीं चरण राम के, बने श्यामा के शुभ, –
सोहते मध्य में हीरक युग या दो कौस्तुभ;
टूटा वह तार ध्यान का, स्थिर मन हुआ विकल
सन्दिग्ध भाव की उठी दृष्टि, देखा अविकल

बैठे वे वहीं कमल लोचन, पर सजल नयन,
व्याकुल-व्याकुल कुछ चिर प्रफुल्ल मुख निश्चेतन।
“ये अश्रु राम के” आते ही मन में विचार,
उद्वेग हो उठा शक्ति-खोल सागर अपार,
हो श्वसित पवन उच्छवास पिता पक्ष से तुमुल
एकत्र वक्ष पर बहा वाष्प को उड़ा अतुल,
शत पूर्णावर्त, तरंग-भंग, उठते पहाड़,
जल-राशि राशि-जल पर चढ़ता खाता पछाह,
तोड़ता बन्ध-प्रतिसन्ध धरा हो स्फीत -वक्ष
दिग्विजय-अर्थ प्रतिपल समर्थ बढ़ता समक्ष,
शत-वायु-वेग-बल, डूबा अतल में देश-भाव,
जल-राशि विपुल मध मिला अनिल में महाराव

वज्रांग तेजघन बना पवन को, महाकाश
पहुँचा, एकादश रूद्र क्षुब्ध कर अट्टहास।
रावण-महिमा श्यामा विभावरी, अन्धकार,
यह रूद्र राम-पूजन-प्रताप तेज:प्रसार;
इस ओर शक्ति शिव की जो दशस्कन्ध-पूजित,
उस ओर रूद्रवंदन जो रघुनन्दन-कूजित;
करने को ग्रस्त समस्त व्योम कपि बढ़ा अटल,
लख महानाश शिव अचल, हुए क्षण भर चंचल;
श्यामा के पद तल भार धरण हर मन्द्रस्वर
बोले – “सम्वरो, देवि, निज तेज, नहीं वानर
यह, नहीं हुआ शृंगार-युग्म-गत, महावीर
अर्चना राम की मूर्तिमान अक्षय-शरीर,
चिर ब्रह्मचर्य-रत ये एकादश रूद्र, धन्य,
मर्यादा-पुरुषोत्तम के सर्वोत्तम, अनन्य

लीला-सहचर, दिव्यभावधर, इन पर प्रहार
करने पर होगी देवि, तुम्हारी विषम हार;
विद्या का ले आश्रय इस मन को दो प्रबोध,
झुक जाएगा कपि, निश्चय होगा दूर रोध।”
कह हुए मौन शिव; पतन-तनय में भर विस्मय
सहसा नभ से अंजना-रूप का हुआ उदय
बोली माता – “तुमने रवि को जब लिया निगल
तब नहीं बोध था तुम्हें; रहे बालक केवल,
यह वही भाव कर रहा तुम्हें व्याकुल रह-रह
यह लज्जा की है बात कि माँ रहती सह-सह;
यह महाकाश, है जहाँ वास शिव का निर्मल-
पूजते जिन्हें श्रीराम उसे ग्रसने को चल
क्या नहीं कर रहे तुम अनर्थ? सोचो मन में;
क्या दी आज्ञा ऐसी कुछ श्री रघुनन्दन ने?
तुम सेवक हो, छोड़कर धर्म कर रहे कार्य –
क्या असम्भाव्य हो यह राघव के लिए धार्य?”
कपि हुए नम्र, क्षण में माता-छवि हुई लीन,
उतरे धीरे-धीरे गह प्रभुपद हुए दीन।

राम का विषण्णानन देखते हुए कुछ क्षण;
“हे सखा” विभीषण बोले “आज प्रसन्न-वदन
वह नहीं देखकर जिसे समग्र वीर-वानर-
भल्लूक विगत-श्रम हो पाते जीवन निर्जर;
रघुवीर, तीर सब वही तूण में हैं रक्षित,
है वही पक्ष, रण-कुशल-हस्त, बल वही अमित;
हैं वही सुमित्रानन्दन मेघनाद-जित् रण,
हैं वही भल्लपति, वानरेन्द्र सुग्रीव प्रमन,
ताराकुमार भी वही महाबल श्वेत धीर,
अप्रतिभट वही एक अर्बुद-सम महावीर
हैं वही दक्ष सेनानायक है वही समर,
फिर कैसे असमय हुआ उदय भाव-प्रहर!
रघुकुल-गौरव लघु हुए जा रहे तुम इस क्षण,
तुम फेर रहे हो पीठ, हो रहा हो जब जय रण

कितना श्रम हुआ व्यर्थ, आया जब मिलन-समय,
तुम खींच रहे हो हस्त जानकी से निर्दय!
रावण? रावण – लम्पट, खाल कल्मय-गताचार,
जिसने हित कहते किया मुझे पाद-प्रहार,
बैठा उपवन में देगा दुख सीता को फिर,
कहता रण की जय-कथा पारिषद-दल से घिर,
सुनता वसन्त में उपवन में कल-कूजित-पिक
मैं बना किन्तु लंकापति, धिक्, राघव, धिक्-धिक्?’
सब सभा रही निस्तब्ध; राम के स्मित नयन
छोड़ते हुए शीतल प्रकाश देखते विमन,
जैसे ओजस्वी शब्दों का जो था प्रभाव
उससे न इन्हें कुछ चाव, न हो कोई दुराव,
ज्यों ही वे शब्दमात्र – मैत्री की समानुरक्ति,
पर जहाँ गहन भाव के ग्रहण की नहीं शक्ति।

कुछ क्षण तक रहकर मौन सहज निज कोमल स्वर,
बोले रघुमणि – “मित्रवर, विजया होगी न, समर
यह नहीं रहा नर-वानर का राक्षस से रण,
उतरी पा महाशक्ति रावण से आमन्त्रण;
अन्याय जिधर, हैं उधर शक्ति।” कहते छल-छल
हो गये नयन, कुछ बूँद पुन: ढलके दृगजल,
रुक गया कण्ठ, चमक लक्ष्मण तेज: प्रचण्ड
धँस गया धरा में कपि गह-युग-पद, मसक दण्ड
स्थिर जाम्बवान, – समझते हुए ज्यों सकल भाव,
व्याकुल सुग्रीव, – हुआ उर में ज्यों विषम घाव,
निश्चित-सा करते हुए विभीषण कार्यक्रम
मौन में रहा यों स्पन्दित वातावरण विषम।

विदेशों में भी धूमधाम से मनाई जाती है दिवाली

दिवाली का त्योहार, जो रोशनी और खुशियों का प्रतीक है, केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के कई देशों में भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। चलिए जानते हैं कि अलग-अलग देशों में दिवाली कैसे मनाई जाती है:

  1. अमेरिका
  • बड़े शहरों में आयोजन: न्यूयॉर्क, शिकागो, और सैन फ्रांसिस्को जैसे शहरों में भारतीय समुदाय द्वारा बड़े स्तर पर दिवाली मनाई जाती है। यहाँ पर मंदिरों में पूजा होती है, और सामूहिक प्रोग्राम्स जैसे डांस, संगीत और फूड फेस्टिवल्स का आयोजन होता है।
  • लाइटिंग और फायरवर्क्स: कई जगहों पर बड़ी-बड़ी इमारतों को दिवाली के मौके पर रोशन किया जाता है, और फायरवर्क्स का भी आयोजन होता है।
  1. यूके (ब्रिटेन)
  • लेस्टर का दिवाली सेलिब्रेशन: यूके में लेस्टर शहर का दिवाली सेलिब्रेशन दुनिया में सबसे बड़े दिवाली उत्सवों में से एक माना जाता है। यहाँ करीब 40,000 लोग इकट्ठा होते हैं, और सड़कों पर लाइटिंग, फूड स्टॉल्स और म्यूजिक का आयोजन होता है।
  • लंदन में दिवाली: लंदन के ट्राफलगर स्क्वायर में हर साल दिवाली का आयोजन होता है, जिसमें हर धर्म और संस्कृति के लोग शामिल होते हैं।
  1. सिंगापुर
  • लिटिल इंडिया में सजावट: सिंगापुर के लिटिल इंडिया इलाके में दिवाली के दौरान खूबसूरत सजावट की जाती है। यहाँ पर रोशनी की जगमगाहट और सजावट देखने लायक होती है।
  • खास डिस्काउंट्स और ऑफर्स: शॉपिंग मॉल्स में दिवाली के मौके पर विशेष ऑफर्स भी दिए जाते हैं, जिससे लोग खूब खरीदारी करते हैं।
  1. मॉरीशस
  • सरकारी छुट्टी: मॉरीशस में दिवाली पर राष्ट्रीय अवकाश होता है, क्योंकि यहाँ बड़ी संख्या में भारतीय समुदाय है। लोग अपने घरों को सजाते हैं, पूजा करते हैं और मिठाइयाँ बाँटते हैं।
  • कल्चरल इवेंट्स: कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है, जहाँ पर स्थानीय लोग भी भारतीय संस्कृति के साथ दिवाली का आनंद लेते हैं।
  1. फिजी
  • धार्मिक और पारंपरिक कार्यक्रम: यहाँ दिवाली पर मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है, और लोगों के घरों में दीप जलाए जाते हैं। फिजी में भी इसे बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।
  1. कैनेडा
  • मंदिरों और गुरुद्वारों में सेलिब्रेशन: टोरंटो, वैंकूवर, और मॉन्ट्रियल में दिवाली का आयोजन मंदिरों और गुरुद्वारों में होता है। यहाँ लोग एक साथ मिलकर पूजा करते हैं और भारतीय खाने का लुत्फ उठाते हैं।
  • मल्टी-कल्चरल फेस्टिवल्स: कैनेडा में दिवाली का उत्सव सभी समुदायों के लोग एक साथ मिलकर मनाते हैं, जिससे एकता और भाईचारे का संदेश मिलता है।
  1. नेपाल
  • तीहार के रूप में दिवाली: नेपाल में इसे ‘तीहार’ के नाम से मनाया जाता है, जो पाँच दिनों का त्योहार है। यहाँ लोग अपने घरों को सजाते हैं और लक्ष्मी पूजा करते हैं।

विदेशों में दिवाली के उत्सव को देखकर ये लगता है कि ये सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि एक ग्लोबल सेलिब्रेशन बन गया है। भारतीय संस्कृति और परंपरा को दुनियाभर में बढ़ावा मिल रहा है, और दिवाली इसका एक बहुत अच्छा उदाहरण है।

दिवाली का खगोलीय महत्त्व

मेष एवं तुला की संक्रांति में सूर्य विषुवत रेखा (नाड़ीवृत्त) पर रहता है, जिसे देवता 6 माह तक उत्तर की ओर तथा राक्षस 6 माह तक दक्षिण की ओर खींचते हैं। मंदराचल पर्वत ही नाड़ीवृत्त है, जिसके एक भाग में मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशि हैं जिन्हें देवता खींचते हैं। दूसरे भाग में तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन राशि हैं जिन्हें राक्षस खींचते हैं। मंथन से चौदह रत्न निकलते हैं, जिनमें महालक्ष्मी कार्तिक की अमावस्या को प्रकट होती हैं।

कार्तिक कृष्ण अमावस्या को समुद्र मंथन के परिणामस्वरूप महालक्ष्मी का जन्म हुआ था। हम जिस लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं वह अब भी प्रतिवर्ष समुद्रमंथन से निकलती हैं। ज्योतिषशास्त्र, भूगोल या खगोल की दृष्टि से देखें तो सूर्य को सभी ग्रहों का केंद्र एवं राजा माना गया है। सूर्य की बारह संक्रांतियां हैं। नाड़ीवृत्त मध्य में होता है, तीन क्रांतिवृत्त उत्तर को और तीन दक्षिण को होते हैं।

समुद्र मंथन में भगवान विष्णु की ही बड़ी भूमिका रही है और सूर्य ही भगवान विष्णु स्वरूप हैं। सूर्य क्रांतिवृत्त पर विचरण करता है। यह 6 माह उत्तर गोल में एवं 6 माह दक्षिण गोल में विचरण करता है, जिन्हें देवभाग एवं राक्षस भाग भी कहते हैं। मेष एवं तुला की संक्रांति में सूर्य विषुवत रेखा (नाड़ीवृत्त) पर रहता है, जिसे देवता 6 माह तक उत्तर की ओर तथा राक्षस 6 माह तक दक्षिण की ओर खींचते हैं।

मंदराचल पर्वत ही नाड़ीवृत्त है, जिसके एक भाग में मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह व कन्या राशि हैं जिन्हें देवता खींचते हैं। दूसरे भाग में तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ व मीन राशि हैं जिन्हें राक्षस खींचते हैं। मंथन से चौदह रत्न निकलते हैं, जिनमें महालक्ष्मी कार्तिक की अमावस्या को प्रकट होती हैं।

लक्ष्मी, महालक्ष्मी, राजलक्ष्मी, गृहलक्ष्मी आदि लक्ष्मी के अनेक रूप हैं। लक्ष्मी विहीन होने पर लोग ज्योतिष की शरण में भी जाते हैं। दीपावली के लिए पुराणों में अनेक कथाएं हैं। वास्तव में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को पृथ्वी का जन्म हुआ था और पृथ्वी ही महालक्ष्मी के रूप में विष्णु की पत्नी मानी गई है। दीपावली पृथ्वी का जन्मदिन है, इसलिए इस दिन सफाई करके धूमावती नामक दरिद्रा को कूड़े-करकट के रूप में घर से बाहर निकालकर सब ओर ज्योति जलाते हैं तथा श्री कमला लक्ष्मी का आह्वान करते हैं।

दीपावली से पूर्व अच्छी वर्षा से धनधान्य की समृद्धि रूपी लक्ष्मी का आगमन भी होता है। संवत्सर के उत्तरभाग में ऋत सोम तत्व रहता है जो लगातार दक्षिण की ओर बहता रहता है। दक्षिण भाग में ऋत अग्नि रहती है जो हमेशा उत्तर की ओर बहती है। लक्ष्मी का आगमन ऋताग्नि का आगमन ही होता है।

यह दक्षिण से होता है, इसीलिए आज भी भारतीय किसान फसल की पहली कटाई दक्षिण दिशा से ही करता है। ऋताग्नि एक ऐसी ज्योति है जो पूरी प्रजा को सुख-शांति एवं समृद्धि प्रदान करती है और वही महालक्ष्मी है। ज्योतिषशास्त्र में भी जन्मकालीन ग्रहयोगों के आधार पर महालक्ष्मी योग देखा जाता है।

शास्त्रों में कहा गया है-

लक्ष्मीस्थानं त्रिकोणं स्यात् विष्णुस्थानं तु केंद्रकम्।
तयो: संबंधमात्रेण राज्यश्रीलगते नर: ।।

यह योग श्री लक्ष्मी प्राप्ति का संकेत देता है। केंद्रस्थान में लग्न, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव गिने जाते हैं तथा त्रिकोण स्थान में पंचम एवं नवम भाव को माना गया है। जिस व्यक्ति का शरीर स्वस्थ हो, स्थायी संपत्ति, सुख-सुविधा के साधन हों, जीवनसाथी मनोनुकूल हो तो वह विष्णुस्वरूप बन जाता है।
इन सब गुणों का उपयोग सद्बुद्धि एवं धर्मपरायणता के साथ हो तो व्यक्ति महालक्ष्मी एवं राज्यश्री को प्राप्त करने वाला होता है। व्यक्ति यदि कर्मशील होगा, सदाचारी होगा, गुरुनिंदा, चोरी, हिंसा आदि दुराचारों से दूर रहेगा तो लक्ष्मी स्वत: उसके यहां स्थान बना लेगी।

पौराणिक प्रसंगों में स्वयं लक्ष्मी कहती हैं-

नाकर्मशीले पुरुषे वरामि, न नास्तिके, सांकरिके कृतघ्ने।
न भिन्नवृत्ते, न नृशंरावण्रे, न चापि चौरे, न गुरुष्वसूये।।

अत: कर्मशील एवं सदाचारी व्यक्ति को ही राज्यश्री एवं महालक्ष्मी योग बन पाता है। जबकि लोगों की ऐसी धारणा है कि खूब पैसा, धन दौलत हो तो आनंद की प्राप्ति हो सकती है, पर यह धारणा गलत है। ज्योतिषशास्त्र एवं पौराणिक ग्रंथों में महालक्ष्मी का स्वरूप दन-दौलत या संपत्ति के रूप में नहीं बताया गया है।

लक्ष्मीवान उस व्यक्ति को माना गया है जिसका शरीर सही रहे और जिसे जीवन के हर मोड़ पर प्रसन्नता के भाव मिलते रहें। मुद्रा के स्थान एवं खर्च के स्थान को महालक्ष्मीयोग का कारक नहीं माना गया है बल्कि प्राप्त मुद्रा रूपी लक्ष्मी को सद्बुद्धि के साथ कैसे खर्च करके आनंद लिया जाए, इसे माना गया है। इसीलिए महालक्ष्मी पूजन में महालक्ष्मी, महासरस्वती एवं गणोश जी का पूजन एक साथ किया जाता है।

गणोश बुद्धि के देवता हैं तथा सरस्वती ज्ञान की देवी हैं, इसीलिए लक्ष्मी के पहले श्री शब्द लगाया जाता है। यह श्री सरस्वती का बोधक होता है। इसका भाव यह निकलता है कि मुद्रारूपी लक्ष्मी को भी यदि कोई प्राप्त करता है तो श्रेष्ठ गति के साथ जो उसका उपयोग एवं उपभोग करता है, वह आनंद की अनुभूति करता है।

लक्ष्मी पूजन का महत्व पूजा सामग्री और पूजा विधि

दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व होता है। कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या को धन प्रदात्री ‘महालक्ष्मी’ एवं धन के अधिपति ‘कुबेर’ का पूजन किया जाता है। हमारे पौराणिक आख्यानों में इस पर्व को लेकर कई तरह की कथाएँ हैं। भारतीय परंपरा में हर पर्व और त्यौहार का संबंध प्रकृति की पूजा, हमारे सुखद जीवन, आयु, स्वास्थ्य, धन, ज्ञान, वैभव व समृद्धि की उत्तरोत्तर प्राप्ति से है। साथ ही मानव जीवन के दो प्रभाग धर्म और मोक्ष की भी प्राप्ति हेतु विभिन्न देवताओं के पूजन का उल्लेख है। आयु के बिना धन, यश, वैभव का कोई उपयोग ही नहीं है।

 

सर्वप्रथम आयु वृद्धि एवं आरोग्य प्राप्ति की कामना की जाती है। इसके पश्चात तेज, बल और पुष्टि की कामना की जाती है। तत्पश्चात धन, ज्ञान व वैभव प्राप्ति की कामना की जाती है। विशेषकर आयु व आरोग्य की वृद्धि के साथ ही अन्य प्रभागों की प्राप्ति हेतु क्रमिक रूप से यह पर्व धन-त्रयोदशी (धन-तेरस), रूप चतुर्दशी (नरक-चौदस), कार्तिक अमावस्या (दीपावली- महालक्ष्मी, कुबेर पूजन), अन्नकूट (गो-पूजन), भाईदूज (यम द्वितीया) के रूप में पाँच दिन तक मनाया जाता है। धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, नया साल और भैयादूज या भाईदूज ये पाँच उत्सव पाँच विभिन्न सांस्कृतिक विचारधाराओं प्रतिनिधित्व करते हैं।

लक्ष्मी जी का स्थायी निवास अपने यहाँ बनाये रखने के लिये दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा के लिये दिन के सबसे शुभ मुहूर्त समय को लिया जाता है।

 

इस साल दिवाली 31 दिसंबर को मनाई जा रही है।  देश का राष्ट्रीय पंचांग तैयार करने वाले खगोल विज्ञान केंद्र, कोलकाता ने अपने कैलेंडर में दीपावली 31 अक्टूबर को ही बताई है। देश के अधिकतर हिस्सों में 31 अक्टूबर की रात ही लक्ष्मी पूजा की जाएगी। कुछ लोग 1 नवंबर को ये पर्व मनाएंगे।

हिन्दू पंचांग के अनुसार, 31 अक्टूबर, यानी गुरूवार को, कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्था तिथि दोपहर 2 बजकर 40 मिनट से लग रही है. इसका समापन 01 नवंबर को शाम 5 बजकर 13 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, क्योंकि 31 को सूर्यास्त के पहले ही अमावस्या तिथि शुरू हो रही है, इसलिए दीपावली 31 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी. दीपावली के त्योहार पर रात्रि में अमावस्या तिथि होनी चाहिए, जो 1 नवंबर 2024 को शाम के समय में नहीं है.

दीवाली के दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है. इस बार लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त 31 अक्टूबर 2024 को शाम 5 बजे से लेकर रात के 10 बजकर 30 मिनट तक है।

 

पूजन के लिए आवश्यक सामग्री :

धूप बत्ती (अगरबत्ती), चंदन , कपूर, केसर , यज्ञोपवीत 5 , कुंकु , चावल, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी , सौभाग्य द्रव्य-मेहंदी, चूड़ी, काजल, पायजेब, बिछुड़ी आदि आभूषण। नाड़ा (लच्छा), रुई, रोली, सिंदूर, सुपारी, पान के पत्त , पुष्पमाला, कमलगट्टे, निया खड़ा (बगैर पिसा हुआ) , सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, कुशा व दूर्वा (कुश की घांस) , पंच मेवा , गंगाजल , शहद (मधु), शकर , घृत (शुद्ध घी) , दही, दूध, ऋतुफल, (गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े और मौसम के फल जो भी उपलब्ध हो), नैवेद्य या मिष्ठान्न (घर की बनी मिठाई), इलायची (छोटी) , लौंग, मौली, इत्र की शीशी , तुलसी पत्र, सिंहासन (चौकी, आसन) , पंच-पल्लव (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते), औषधि (जटामॉसी, शिलाजीत आदि) , लक्ष्मीजी का पाना (अथवा मूर्ति), गणेशजी की मूर्ति , सरस्वती का चित्र, चाँदी का सिक्का , लक्ष्मीजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र, गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र, अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र, सफेद कपड़ा (कम से कम आधा मीटर), लाल कपड़ा (आधा मीटर), पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार), दीपक, बड़े दीपक के लिए तेल, ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा) , धान्य (चावल, गेहूँ) , लेखनी (कलम, पेन), बही-खाता, स्याही की दवात, तुला (तराजू) , पुष्प (लाल गुलाब एवं कमल) , एक नई थैली में हल्दी की गाँठ, खड़ा धनिया व दूर्वा, खील-बताशे, तांबे या मिट्टी का कलश और श्रीफल।

 

वास्तु सम्मत लक्ष्मी पूजन कैसे करें?

 

कमलासना की पूजा से वैभव:

गृहस्थ को हमेशा कमलासन पर विराजित लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। देवीभागवत में कहा गया है कि कमलासना लक्ष्मी की आराधना से इंद्र ने देवाधिराज होने का गौरव प्राप्त किया था। इंद्र ने लक्ष्मी की आराधना ‘ú कमलवासिन्यै नम:’ मंत्र से की थी। यह मंत्र आज भी अचूक है।

दीपावली को अपने घर के ईशानकोण में कमलासन पर मिट्टी या चांदी की लक्ष्मी की प्रतिमा को विराजित कर, श्रीयंत्र के साथ यदि उक्त मंत्र से पूजन किया जाए और निरंतर जाप किया जाए तो चंचला लक्ष्मी स्थिर होती है। बचत आरंभ होती है और पदोन्नति मिलती है। साधक को अपने सिर पर बिल्व पत्र रखकर पंद्रह श्लोकों वाले श्रीसूक्त का जाप भी करना चाहिए।

लक्ष्मी पूजन

लक्ष्मी का लघु पूजन (सही उच्चारण हो सके, इस हेतु संधि-विच्छेद किया है।) महालक्ष्मी पूजनकर्ता स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएँ और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें। इस हेतु शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके पूजन करें। अपनी जानकारी हेतु पूजन शुरू करने के पूर्व प्रस्तुत पद्धति एक बार जरूर पढ़ लें।

पूजा सामग्री का शुध्दिकरण :

बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-

ॐ अ-पवित्र-ह पवित्रो वा सर्व-अवस्थाम्‌ गतोअपि वा ।
य-ह स्मरेत्‌ पुण्डरी-काक्षम्‌ स बाह्य-अभ्यंतरह शुचि-हि ॥
पुन-ह पुण्डरी-काक्षम्‌ पुन-ह पुण्डरी-काक्षम्‌, पुन-ह पुण्डरी-काक्षम्‌ ।

आसन का शु्ध्दिकरण :
निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-
ॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वम्‌ विष्णु-ना घृता ।
त्वम्‌ च धारय माम्‌ देवि पवित्रम्‌ कुरु च-आसनम्‌ ॥

आचमन कैसे करें:

दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें-

ॐ केशवाय नम-ह स्वाहा,
ॐ नारायणाय नम-ह स्वाहा,
ॐ माधवाय नम-ह स्वाहा ।

अंत में इस मंत्र का उच्चारण कर हाथ धो लें-ॐ गोविन्दाय नम-ह हस्तम्‌ प्रक्षाल-यामि ।

दीपक :
दीपक प्रज्वलित करें (एवं हाथ धोकर) दीपक पर पुष्प एवं कुंकु से पूजन करें-
दीप देवि महादेवि शुभम्‌ भवतु मे सदा ।
यावत्‌-पूजा-समाप्ति-हि स्याता-वत्‌ प्रज्वल सु-स्थिरा-हा ॥
(पूजन कर प्रणाम करें)

स्वस्ति-वाचन :
निम्न मंगल मंत्र बोलें-
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्ध-श्रवा-हा स्वस्ति न-ह पूषा विश्व-वेदा-हा ।
स्वस्ति न-ह ताक्षर्‌यो अरिष्ट-नेमि-हि स्वस्ति नो बृहस्पति-हि-दधातु ॥

द्-यौ-हौ शांति-हि अन्‌-तरिक्ष-गुम्‌ शान्‌-ति-हि पृथिवी शान्‌-ति-हि-आप-ह ।
शान्‌-ति-हि ओष-धय-ह शान्‌-ति-हि वनस्‌-पतय-ह शान्‌-ति-हि-विश्वे-देवा-हा

शान्‌-ति-हि ब्रह्म शान्‌-ति-हि सर्व(गुम्‌) शान्‌-ति-हि शान्‌-ति-हि एव शान्‌-ति-हि सा
मा शान्‌-ति-हि। यतो यत-ह समिहसे ततो नो अभयम्‌ कुरु ।
शम्‌-न्न-ह कुरु प्रजाभ्यो अभयम्‌ न-ह पशुभ्य-ह। सु-शान्‌-ति-हि-भवतु॥
ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्‌-महा-गण-अधिपतये नमः॥

(नोट : पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन की समस्त सामग्री व्यवस्थित रूप से पूजा-स्थल पर रख लें। श्री महालक्ष्मी की मूर्ति एवं श्री गणेशजी की मूर्ति एक लकड़ी के पाटे पर कोरा लाल वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें। गणेश एवं अंबिका की मूर्ति के अभाव में दो सुपारियों को धोकर, पृथक-पृथक नाड़ा बाँधकर कुंकु लगाकर गणेशजी के भाव से पाटे पर रखें व उसके दाहिनी ओर अंबिका के भाव से दूसरी सुपारी स्थापना हेतु रखें।)

 

संकल्प :
अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत, द्रव्य आदि लेकर श्री महालक्ष्मीजी अन्य ज्ञात-अज्ञात देवीदेवताओं के पूजन का संकल्प करें-

हरिॐ तत्सत्‌ अद्यैत अस्य शुभ दीपावली बेलायाम्‌ मम महालक्ष्मी-प्रीत्यर्थम्‌ यथासंभव द्रव्यै-है यथाशक्ति उपचार द्वारा मम्‌ अस्मिन प्रचलित व्यापरे उत्तरोत्तर लाभार्थम्‌ च दीपावली महोत्सवे गणेश, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली, लेखनी कुबेरादि देवानाम्‌ पूजनम्‌ च करिष्ये।
( अब जल छोड़ दें।)

श्रीगणेश-अंबिका पूजन

हाथ में अक्षत व पुष्प लेकर श्रीगणेश एवं श्रीअंबिका का ध्यान करें।

डॉ.एरी.एस.ग्रेका कीस मानवतावादी अवार्ड प्रदान किया गया

भुवनेश्वर। स्थानीय मेफेयर कंवेशन होटल में 4अक्टूर को सायंकाल कीट-कीस की ओर से एक सम्मान समारोह आयोजित किया गया जिसमें  मुख्यअतिथि ओड़िशा प्रदेश के राज्यपाल श्री रघुवर दास तथा सम्मानित अतिथि के रुप में ओड़िशा प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री श्री कनक वर्द्धन सिंहदेव सादर आमंत्रित थे। समारोह के मुख्य आकर्षण थे  डॉ.एरी.एस.ग्रेका,अध्यक्ष, अध्यक्ष,विश्व वालीबॉल परिसंघ  जिन्हें मुख्यअतिथि तथा सम्मानित अतिथि ने कीस मानवतावादी अवार्डः2020 से सम्मानित किया।

उल्लेखनीय  है कि विश्व के कुल 222 एफ. आई. वी. बी. से संबद्ध देश हैं जिन्होंने कल के सम्मान समारोह को सीधे तौर पर देखा।विश्व में वालीबॉल खेल को बढ़ावा देने में डॉ.एरी.एस.ग्रेका,अध्यक्ष,एफ. आई. वी. बी. का बहुत बड़ा योगदान रहा है जिसके लिए यह कीस मानवतावादी अवार्डः2020 उन्हें प्रदान किया गया।अपने स्वागत भाषण में मंचासीन सभी विशिष्ट मेहमानों का स्वागत करते हुए और  डॉ.एरी.एस.ग्रेका,अध्यक्ष,एफ. आई. वी. बी. का परिचय देते हुए कीट-कीस के संस्थापक महान् शिक्षाविद प्रो.डॉ.अच्युत सामंत ने बताया कि इस पुरस्कार की घोषणा 2020 में ही कर दी गई थी लेकिन डॉ. ग्रेका उस समय वैश्विक महामारी कोरोना(कोविड-19) से ग्रसित थे इसलिए वे यह अवार्ड नहीं ले सके थे।
  उल्लेखनीय बात यह है कि एफ. आई. वी. बी. से संबद्ध है भारतीय वॉलीबॉल महासंघ भी है जिसके लगातार चार साल तक अध्यक्ष रह चुके हैं प्रो.डॉ. अच्युत सामंत जिन्होंने कीट-कीस समेत पूरे भारत में वालीबॉल खेल को बढावा दिया है। प्रो.डॉ.अच्युत सामंत ने मि. ग्रेका का परियच देते हुए यह बताया कि 81 वर्षीय डॉ.एरी.एस.ग्रेका ब्राजील के रहनेवाले हैं जिन्होंने लगातार 12 वर्षों से अधिक समय तक एफ. आई. वी. बी. के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे हैं। आज उन्हीं के प्रयासों के बदौलत एफ. आई. वी. बी. के कुल 222 सदस्य देश हैं।
मुख्य अतिथि राज्यपाल, श्री रघुवर दास ने अपने संदेश  में यह बताया कि दुनिया में वॉलीबॉल को बढ़ावा देने और खेल के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के क्षेत्र में डॉ. ग्रेका की प्रतिबद्धता अतुलनीय है।उन्होंने कहा कि कीस मानवतावादी एवार्ड 2008 से ही प्रदान किया जाता रहा है जिसका मूल उद्देश्य मानवता तथा सामाजिक मूल्यों का संरक्षण और सतत विकास है इसलिए पूरी दुनिया में जो भी  इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय और प्रशंसनीय कार्य करते हैं उन व्यक्तित्वों को यह कीस मानवतावादी अवार्ड 2008 से प्रदान किया जाता है जिसके लिए कीट-कीस के संस्थापक विदेह प्रो.डॉ.अच्युत सामंत बधाई के वास्तविक हकदार हैं।
ओड़िशा प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री तथा समारोह के सम्मानित अतिथि मान्यवर कनक वर्द्धन सिंहदेव जो स्वयं अपने छात्रजीवन में एक मशहूर बासकेट बॉल खिलाड़ी रहे हैं और जो चार बार एक दर्शक के रुप में विश्व ओलंपिक देख चुके हैं  ने अपने संदेश में 81 वर्षीय डॉ. ग्रेका की खेल भावना तथा उसको उत्तरोतर आगे बढ़ाने हेतु तथा कीस मानवतावादी अवार्डः2020 से सम्मानित किये जाने पर उनको बधाई दी।इसीक्रम में उन्होंने प्रो.डॉ.अच्युत सामंत की उन्मुक्त कण्ठ से तारीफ की जिन्होंने 2008 से ही कीस मानवतावादी अवार्ड आरंभ कर ओड़िशा प्रदेश को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित कर दिया है जो पूरे प्रदेश के लिए गौरव तथा गरिमा की बात है।

डॉ.ग्रेका ने कीस मानवतावादी अवार्डः2020 मिलने पर गर्व महसूस करते हुए प्रो.डॉ.अच्युत सामंत के प्रति आभार जताया और उनको अपनी ओर से तथा पूरे एफ. आई. वी. बी. की ओर से सम्मानित किया।साथ ही साथ ब्राजील से लाये हुए तोहफे से मुख्य अतिथि तथा सम्मानित अतिथि को भी अपने हाथों से सम्मानित किया।मंचासीन सम्मानित अतिथि तथा डॉ.ग्रेक की पत्नी मैडम मरीना ने उनके पति डॉ.एरी.एस.ग्रेका को मिले कीस मानवतावादी अवार्ड मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त कीं।सच कहा जाय तो आयोजन विश्वस्तरीय रहा जिसमें कीस मानवतावादी अवार्ड के माध्यम से पूरे विश्व को मानवता,करुणा,सद्भावना,प्रेम तथा निःस्वार्थ समाजसेवा का पैगाम ओड़िशा से विश्व के कुल 222 देशों को गया।

भुवनेश्वर में महाराजा अग्रसेन की 5178वीं जयंती मनाई गई

भुवनेश्वर  ।  हाल ही में स्थानीय मंचेश्वर ला फिएस्टा मण्डप में सायंकाल अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन खुर्द्धा इकाई एवं मारवाड़ी युवा मंच भुवनेश्वर के संयुक्त तत्वाधान में महाराजा अग्रसेन की 5178वीं जयंती हर्षोल्लास के साथ मनाई गई।कार्यक्रम का आरंभ रैली तथा परम्परागत दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। मारवाड़ी युवा मंच के कुल 18 छोटे-छोटे बच्चे अग्र समाज के पितामह महाराजा अग्रसेन जी कुल 18 गोत्रों के रुप में मंच के सामने विराजमान थे।
 महाराजा अग्रसेन जी की आरती उतारी गई। तत्पश्चात भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आरंभ हुआ जिसमें महाराजा अग्रसेन जी जीवनी पर आधारित मोहक नृत्य नाटिका का मंचन हुआ।मारवाड़ी युवा मंच के अध्यक्ष हरिश अग्रवाल, मारवाड़ी युवा मंच के प्रांतीय उपाध्यक्ष साकेत अग्रवाल, मंच के सचिव आकाश झुनझुनवाला आदि के नेतृत्व में यह भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। समारोह में आगत सभी मेहमानों को राजस्थानी पगड़ी पहनाकर तथा अग्रसेन महाराज के लॉकेट की माला पहनाकर उनका सम्मान किया गया । सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से महाराजा अग्रसेन के दिखाई पदचिन्हों पर चलने का संकल्प लिया गया ।मुन्ना लाल अग्रवाल एवं मनीष खंडेलवाल ने कार्यक्रम संयोजन का काम किया जबकि  मुन्ना लाल अग्रवाल ने महाराजा अग्रसेन जी का संक्षिप्त परिचय दिया।
समारोह में के प्रारंभ में भुवनेश्वर रसुलगढ़ पुलिस थाना से कार्यक्रम स्थल तक भगवान अग्रसेन की भव्य रैली-झांकी निकाली गई। कोलकाता से आमंत्रित रंगारंग कार्यक्रम की टीम ने  भगवान अग्रसेन जी की जीवनी के ऊपर मोहक नृत्य नाटिका प्रस्तुत की।