Monday, November 25, 2024
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उच्च न्यायालय ने जग्गी वासुदेव से पूछा,अपनी बेटियों का विवाह कर दिया तो दूसरों की बेटियों को संन्यासी क्यों बना रहे हो

मद्रास हाईकोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के फाउंडर और आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव से पूछा कि जब आपने अपनी बेटी की शादी कर दी है, तो दूसरों की बेटियों को सिर मुंडवाने और सांसारिक जीवन त्यागकर संन्यासियों की तरह रहने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहे हैं।

दरअसल, कोयंबटूर में तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ याचिका लगाई है। उनका आरोप है कि उनकी दो बेटियों- गीता कामराज उर्फ मां माथी (42 साल) और लता कामराज उर्फ मां मायू (39 साल) को ईशा योग सेंटर में कैद में रखा गया है।

उन्होंने आरोप लगाया कि ईशा फाउंडेशन ने उनकी बेटियों का ब्रेनवॉश किया, जिसके कारण वे संन्यासी बन गईं। उनकी बेटियों को कुछ खाना और दवा दी जा रही है, जिससे उनकी सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो गई है।

जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस वी शिवगणनम की बेंच ने पुलिस को मामले की जांच करने और ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी मामलों की एक लिस्ट तैयार करने का निर्देश दिया है।

सद्गुरु जग्गी वासुदेव पर कुछ विवाद और मुकदमे समय-समय पर चर्चा में रहे हैं, जिनमें उनकी पत्नी और पर्यावरण से जुड़े मुद्दे प्रमुख हैं।

उनकी पत्नी विजयकुमारी की मृत्यु:

सद्गुरु जग्गी वासुदेव की पत्नी विजयकुमारी (विज्जी के नाम से भी जानी जाती थीं) की मृत्यु 1997 में हुई थी। सद्गुरु के अनुसार, उनकी पत्नी ने अपनी इच्छा से समाधि ली थी, जो योगियों द्वारा आत्म-साक्षात्कार की एक प्रक्रिया मानी जाती है। उन्होंने कहा कि यह एक आध्यात्मिक अनुभव था, जिसमें उन्होंने अपने शरीर को जान-बूझकर त्याग दिया।

हालांकि, कुछ लोगों ने विजयकुमारी की मृत्यु को लेकर संदेह जताया और इस मामले की पुलिस में शिकायत भी की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उनकी मृत्यु प्राकृतिक नहीं थी। लेकिन पुलिस जांच में कोई ठोस सबूत नहीं मिला, और मामला बंद कर दिया गया। इसके बाद से यह मुद्दा सार्वजनिक रूप से ज्यादा चर्चा में नहीं रहा।

पर्यावरण से जुड़े विवाद:

ईशा फाउंडेशन द्वारा कोयंबटूर में बनाए गए “ध्यानलिंगम” और ईशा योग केंद्र से जुड़े भूमि अधिग्रहण को लेकर भी कुछ विवाद उठे हैं। कुछ आरोपों के अनुसार, फाउंडेशन ने अनधिकृत रूप से वन भूमि पर निर्माण कार्य किया है। हालाँकि, फाउंडेशन ने इन आरोपों को खारिज किया है और कहा है कि उनके सभी प्रोजेक्ट कानूनी रूप से स्वीकृत हैं।

सद्गुरु द्वारा शुरू की गई “रैली फॉर रिवर्स” पहल, जो नदियों को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से की गई थी, को भी समर्थन के साथ-साथ आलोचना का सामना करना पड़ा। कुछ पर्यावरणविदों ने इसे एक शो के रूप में देखा और इसकी वास्तविक प्रभावशीलता पर सवाल उठाए।

सद्गुरु जग्गी वासुदेव से जुड़े ये विवाद और मुकदमे उनके सार्वजनिक जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन इनकी जांच और परिणामों में कोई ठोस आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं। उनकी पत्नी की मृत्यु और पर्यावरणीय परियोजनाओं को लेकर विवादों के बावजूद, उनके समर्थक उन्हें एक प्रभावशाली आध्यात्मिक नेता और समाज सुधारक मानते हैं, जबकि कुछ आलोचकों ने उनके कार्यों और दावों पर सवाल उठाए हैं।

 

सद्गुरु जग्गी वासुदेव एक प्रसिद्ध भारतीय योगी, आध्यात्मिक गुरु और ईशा फाउंडेशन के संस्थापक हैं। उनका जन्म 3 सितंबर 1957 को कर्नाटक के मैसूर में हुआ था। सद्गुरु ने अपने जीवन को ध्यान और आंतरिक अनुभवों के माध्यम से मानवता के कल्याण के लिए समर्पित किया है।

जीवन और करियर:

सद्गुरु की आध्यात्मिक यात्रा तब शुरू हुई जब 25 साल की उम्र में उन्होंने एक गहन आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त किया। इसके बाद, उन्होंने योग और ध्यान सिखाने का कार्य शुरू किया। 1992 में उन्होंने ईशा फाउंडेशन की स्थापना की, जो एक गैर-लाभकारी संगठन है और दुनिया भर में योग, ध्यान और आध्यात्मिकता से जुड़े कई कार्यक्रम आयोजित करता है।

ईशा फाउंडेशन:

ईशा फाउंडेशन का मुख्य केंद्र तमिलनाडु के कोयंबटूर में स्थित है। यहाँ योग, ध्यान और आत्म-साक्षात्कार के लिए विभिन्न कार्यक्रम और कार्यशालाएँ संचालित होती हैं। ईशा फाउंडेशन पर्यावरण, शिक्षा और सामाजिक उत्थान के लिए भी कई परियोजनाओं पर काम करता है, जिनमें “रैली फॉर रिवर्स” और “प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स” शामिल हैं, जो पर्यावरण संरक्षण पर केंद्रित हैं।

सद्गुरु की शिक्षाएं:

सद्गुरु का मानना है कि योग और ध्यान जीवन को आनंदपूर्ण और अर्थपूर्ण बना सकते हैं। उनकी शिक्षाओं में आंतरिक शांति, आत्म-जागरूकता और संतुलन को प्रमुखता दी जाती है। वह विज्ञान और आध्यात्मिकता के संगम पर जोर देते हैं और विभिन्न देशों में अपनी शिक्षाएं फैलाने के लिए जाने जाते हैं। वे सामाजिक और वैश्विक मुद्दों पर भी अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं।

किताबें और अन्य योगदान:

सद्गुरु ने कई किताबें भी लिखी हैं, जैसे “इनर इंजीनियरिंग,” “डेथ: एन इनसाइड स्टोरी,” और “मिस्टिक्स मस्कुलरिटी,” जिनमें उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों और आध्यात्मिक ज्ञान को साझा किया है। इसके अलावा, सद्गुरु सोशल मीडिया और यूट्यूब पर भी काफी सक्रिय रहते हैं, जहाँ वे लाखों लोगों तक अपनी बातें पहुंचाते हैं।

सद्गुरु की विशेषता यह है कि वे प्राचीन योग और ध्यान को आधुनिक जीवनशैली के साथ जोड़कर एक समृद्ध और शांतिपूर्ण जीवन जीने के तरीके सिखाते हैं।

आराधना, शक्ति, साधना, अध्यात्म और श्रध्दा का प्रतीक है नवरात्र

नवरात्र भारत का एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जिसे देवी दुर्गा की आराधना के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार 9 दिनों तक चलता है, और इसका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व बहुत गहरा है। नवरात्र का उल्लेख न केवल वैदिक साहित्य में मिलता है, बल्कि इसका प्राचीन भारतीय संस्कृति और परंपराओं में भी महत्वपूर्ण स्थान है।नवरात्र का त्योहार भारतीय संस्कृति, इतिहास और धार्मिक परंपराओं में गहरे से जुड़ा हुआ है। यह न केवल देवी शक्ति की आराधना का समय है, बल्कि समाज में एकता, भक्ति, और अच्छाई की जीत का भी प्रतीक है। वैदिक साहित्य में भी नवरात्र को विशेष महत्व दिया गया है और इसका उल्लेख देवी की शक्ति और सृजनात्मक ऊर्जा के प्रतीक के रूप में किया गया है।

हर वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्र मनाया जाता है। इन नौ दिनों में जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की नौ शक्ति रूपों की पूजा (Shardiya Navratri Puja Vidhi) की जाती है। साथ ही नवदुर्गा के निमित्त नौ दिनों तक व्रत-उपवास रखा जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 03 अक्टूबर को देर रात 12 बजकर 18 मिनट से शुरू होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 04 अक्टूबर को देर रात 02 बजकर 58 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है। अतः गुरुवार 03 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होगी। इस विशेष तिथि पर हस्त नक्षत्र और चित्रा नक्षत्र का संयोग बन रहा है। इस वर्ष शारदीय नवरात्र 03 अक्टूबर से लेकर 11 अक्टूबर तक है। वहीं, 12 अक्टूबर को दशहरा यानी विजयादशमी है।शारदीय नवरात्रि के शुभ अवसर पर घटस्थापना मुहूर्त 03 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 22 मिनट तक है। वहीं, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक है। इन दोनों शुभ योग समय में घटस्थापना कर मां दुर्गा की पूजा कर सकते हैं।

नवरात्र का इतिहास:

नवरात्र का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है और इसे देवी शक्ति की पूजा और स्तुति के रूप में देखा जाता है। माना जाता है कि नवरात्र का त्योहार मुख्यतः देवी दुर्गा और उनके नौ रूपों की आराधना से संबंधित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले नवरात्र के नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा की थी और दसवें दिन रावण पर विजय प्राप्त की थी, जिसे दशहरा के रूप में मनाया जाता है।

इतिहास के अनुसार, नवरात्र की उत्पत्ति देवी-देवताओं के समय से मानी जाती है, जब देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक असुर का वध किया था। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

नवरात्र का महत्व:

  1. धार्मिक महत्व: नवरात्र में शक्ति की देवी की पूजा होती है। लोग इस दौरान उपवास रखते हैं, व्रत करते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है।
  2. आध्यात्मिक महत्व: इस दौरान लोग अपने भीतर की नकारात्मकता और दोषों को दूर करने का प्रयास करते हैं और आत्मा की शुद्धि के लिए ध्यान, योग और पूजा करते हैं।
  3. सांस्कृतिक महत्व: भारत के विभिन्न राज्यों में नवरात्र को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। बंगाल में दुर्गा पूजा के रूप में, गुजरात में गरबा और डांडिया के रूप में, जबकि उत्तर भारत में रामलीला और देवी की स्तुति के रूप में। यह विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं को जोड़ने वाला त्योहार है।

वैदिक साहित्य में नवरात्र:

वैदिक साहित्य में नवरात्र को शक्ति उपासना और देवी पूजा से जोड़ा गया है। ऋग्वेद और अथर्ववेद जैसे प्राचीन ग्रंथों में देवी की स्तुति और शक्ति की आराधना के अनेक मंत्र और स्तोत्र मिलते हैं। वेदों में शक्ति को सृजन और संहार की देवी के रूप में देखा गया है। इसके अलावा, मार्कंडेय पुराण में दुर्गा सप्तशती के रूप में देवी के महात्म्य और शक्ति की पूजा का विस्तृत वर्णन है।

  1. देवी सूक्त (ऋग्वेद): यह वैदिक स्तोत्र देवी शक्ति की महिमा का गुणगान करता है और इसे नवरात्र के समय पढ़ा जाता है।
  2. दुर्गा सप्तशती: इसे मार्कंडेय पुराण का हिस्सा माना जाता है, और इसमें देवी दुर्गा के महात्म्य और उनके विभिन्न रूपों की आराधना का वर्णन है। नवरात्र के दिनों में यह ग्रंथ विशेष रूप से पढ़ा जाता है।
  शारदीय नवरात्र  नौ दिन की पूजा आराधना
03 अक्टूबर 2024- मां शैलपुत्री की पूजा
04 अक्टूबर 2024- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
05 अक्टूबर 2024- मां चंद्रघंटा की पूज
06 अक्टूबर 2024- मां कूष्मांडा की पूजा
07 अक्टूबर 2024- मां स्कंदमाता की पूजा
08 अक्टूबर 2024- मां कात्यायनी की पूजा
09 अक्टूबर 2024- मां कालरात्रि की पूजा
10 अक्टूबर 2024- मां सिद्धिदात्री की पूजा
11 अक्टूबर 2024- मां महागौरी की पूजा
12 अक्टूबर 2024- विजयदशमी (दशहरा)

ताशकंद में हमने खोया लाल बहादुर

भाग्य और कर्म के बीच के संघर्ष में कभी कर्म जीतता है तो कभी भाग्य, किन्तु कभी-कभी दोनों के इतर प्रारब्ध बलवान हो जाता है।आध्यात्म और दर्शन के अध्येता प्रारब्ध को सर्वोपरि मानकर नियति के फ़ैसले को अंतिम निर्णय कहते हैं और प्रारब्ध सबकुछ छीनकर भी कभी-कभी उससे कहीं अधिक लौटा देता है। इसी तरह उत्तरप्रदेश के छोटे से नगर मुग़लसराय में रहने वाले लिपिक मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के घर 2 अक्टूम्बर 1904 में एक बालक का जन्म हुआ। घर के लोग उस बालक को प्यार से नन्हे कहने लगे, जिसका मूल नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव हुआ।

गाँव की गलियों में खेलने वाला नन्हे, जिसने महज़ 18 माह की आयु में ही पिता को हमेशा के लिए खो दिया। पिता के देहांत के बाद माँ रामदुलारी नन्हे को लेकर नाना हज़ारीलाल के घर मिर्ज़ापुर आ गई पर दुर्भाग्य से कुछ ही समय बाद नाना भी चल बसे। फिर मौसा रघुनाथ प्रसाद की सहायता से नन्हे का लालन-पालन हुआ, जैसे-तैसे नन्हे ने ननिहाल में रहते हुए प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की, फिर उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। लालबहादुर ने संस्कृत में काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। और इस शास्त्री की उपाधि ने जातिगत पहचान श्रीवास्तव को गौण कर दिया, फिर लाल बहादुर शास्त्री के रूप में पहचान बनी। संघर्षों की टिक-टिक करती घड़ी ने बचपन तो छीन ही लिया पर हौंसलो ने अंगड़ाई लेना स्वीकार नहीं किया। उसी नियति ने उस अबोध बालक के रूप में भारत को दूसरा प्रधानमंत्री दिया। बात देश के दूसरे प्रधानमंत्री और भारतीय किसानों के आदर्श पुरूष की इतनी-सी है कि कर्म की घड़ी यदि निरंतर चलती रहे तो प्रारब्ध के भाल पर भाग्य विजय तिलक करता है।

1928 में शास्त्री जी का विवाह मिर्ज़ापुर निवासी गणेशप्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ। ललिता और शास्त्रीजी की छ: सन्तान हुईं, दो पुत्रियाँ-कुसुम व सुमन और चार पुत्र – हरिकृष्ण, अनिल, सुनील व अशोक। वैसे भी उत्तरप्रदेश की राजनैतिक मिट्टी केंद्रीय क़द तय करती है। उसी मिट्टी में लालबहादुर शास्त्री भी अपने भाग्य से कुश्ती लड़ते हुए जन सेवा के मैदान में थे। संस्कृत भाषा में स्नातक स्तर तक की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् वे भारत सेवक संघ से जुड़ गये और देशसेवा का व्रत लेते हुए यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्रीजी सच्चे गान्धीवादी थे, जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। स्वाधीनता संग्राम के जिन आन्दोलनों में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही, उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन उल्लेखनीय हैं।

भारत छोड़ो आंदोलन में शास्त्री जी ने अभूतपूर्व योगदान दिया। 9 अगस्त 1942 के दिन शास्त्रीजी ने इलाहाबाद पहुँचकर अगस्त क्रान्ति की दावानल को पूरे देश में प्रचण्ड रूप दे दिया। पूरे ग्यारह दिन तक भूमिगत रहते हुए यह आन्दोलन चलाने के बाद 19 अगस्त 1942 को शास्त्रीजी गिरफ़्तार हो गये।

भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मंत्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मंत्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी।

पुलिस मंत्री होने के बाद संवेदनशील शास्त्री जी ने एक अनूठे प्रयोग को किया, जो आज तक नज़ीर बन चुका है। भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग उन्होंने प्रारम्भ कराया। आज भी पुलिस पहले लाठीचार्ज की जगह पानी की बौछार चलाती है।

पण्डित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 1951 में शास्त्री जी अखिल भारत कांग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किए गए। उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया।

जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ़-सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधानमंत्री का पद भार ग्रहण किया। उनके कार्यकाल में 1965 का भारत-पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।

सन् 1965 में भारत और पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के बीच शान्ति समझौते का दौर शुरू हुआ, जिसे ताशकंद समझौता नाम दिया गया, जो भारत और पाकिस्तान के बीच 11 जनवरी, 1966 को हुआ था। इस समझौते के अनुसार यह तय हुआ कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही देश अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे और अपने झगड़ों को शान्तिपूर्ण ढंग से निबटाएँगे। यह समझौता भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री तथा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब ख़ाँ की लम्बी वार्ता के उपरान्त 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद, रूस में हुआ। ‘ताशकंद सम्मेलन’ सोवियत रूस के प्रधानमंत्री द्वारा आयोजित किया गया था। इस समझौते का प्रभाव बेहद समयानुकूल और सशक्त था। क्योंकि इस समझौते के क्रियान्वयन के फलस्वरूप दोनों देशों की सेनाएँ उस सीमा रेखा पर वापस लौट गईं, जहाँ पर वे युद्ध के पूर्व में तैनात थीं। परन्तु इस घोषणा से भारत-पाकिस्तान के दीर्घकालीन सम्बन्धों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। फिर भी ताशकंद घोषणा इस कारण से याद रखी जाएगी कि इस पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही घंटों बाद रहस्यमयी ढंग से भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की दु:खद मृत्यु हो गई।

ताशकंद में अमरीका ने वार्ता का नाटक रचा, क्योंकि कुछ माह पूर्व से भारत-पाकिस्तान युद्ध चल रहा था और पाकिस्तान चाहता था कि भारत युद्ध में जीता हिस्सा लौटा दे, किंतु शास्त्री जी नहीं चाहते थे कि जो भूभाग भारतीय सेना ने जीत लिया है वह लौटाए। कुछ इतिहासकारों की मानें तो शास्त्रीजी ताशकंद जाना भी नहीं चाहते थे, लेकिन देश के कुछ नेताओं ने देश के अंदर ऐसा माहौल पैदा किया कि शास्त्री जी को मजबूरन ताशकंद जाना पड़ा। जब हमारे देश के वो लाल ताशकंद गए तो उन्हें ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया, तब उन्होंने दो टूक शब्दों में कह दिया कि “भारत युद्ध में जीता हुआ हिस्सा वापस नहीं करेगा।” जिसके बाद दबाव भी शास्त्री जी पर डाला गया लेकिन उन्होंने कह दिया कि उनके जीवित रहते जीता हुआ हिस्सा किसी भी कीमत पर वापस नहीं होगा, देश को उनके इस फ़ैसले से बड़ा गर्व हुआ।

भारत के बहादुर ‘लाल’ पर देश घमण्ड कर रहा था, किंतु किसी को क्या पता था कि सियासी चालें ख़ुद शास्त्री जी की गर्दन काटने पर तुली हुई हैं। जिस दिन शास्त्री जी ने हस्ताक्षर किए, उसी रात को शास्त्री जी की रहस्यमयी ढंग से मौत की ख़बर भारत को दे दी गई। पूरा भारत स्तब्ध था किंतु बड़ा झटका तब लगा, जब ख़ुद भारत सरकार के हवाले से कहा गया कि शास्त्री जी को हार्टअटैक पड़ा है। लेकिन शास्त्री जी की पत्नी की मानें तो अंतिम समय जब उन्होंने शास्त्री जी को देखा तो उनका शरीर बिल्कुल नीला पड़ा हुआ था और उनका यह भी कहना था कि उनके पति को ज़हर दिया गया है।

रूस में हुए उनके पोस्टमार्टम की रिपोर्ट का सच तो छुपा दिया गया। शास्त्री जी के अपने ही देश भारत में उनकी मौत की जांच पड़ताल के बजाए उनकी मौत का सच जानने के लिए पोस्टमार्टम तक नहीं कराया गया। जिसके बाद सवाल भी उठे कि भारत आखिर सच क्यों छुपाना चाहता है? ऐसा भी बताया जाता है कि रूस ने भारत को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी भेजी थी, लेकिन उसे जनता को नहीं दिखाया गया। अपने ही देश में उनकी मौत का सच छिपा दिया गया, जिसके संबंध में दलील दी गई कि ये अंतरराष्ट्रीय संबंध की वजह से किया जा रहा है।

शास्त्री जी की मृत्यु के बाद कार्यवाहक के तौर पर गुलजारीलाल नंदा को प्रधानमंत्री बनाया गया और उसके बाद इंदिरा गांधी सत्ता में आईं। उनके रूस से बहुत अच्छे संबंध थे, इस वजह से भी देश को आजतक शास्त्री जी की मौत का सच सुनने को नहीं मिला और अब शास्त्री जी की मौत का रहस्य सिर्फ़ एक कभी न सुलझने वाली पहेली बनकर ही रह गया।

आखिर नियती को यही मंज़ूर था कि “जय जवान-जय किसान” का मूल मंत्र देने वाला राष्ट्र सपूत ऐसे विदा हो जाएगा। आखिर राजनीति की इस दुर्दशा पर देश मौन हो गया। शास्त्री जी की सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त उन्हें भारत रत्‍न से सम्मानित किया गया। लाल बहादुर शास्त्री एक महान व्यक्ति थे, हैं और सदा रहेंगे। क्योंकि भारत भारती के भाल पर लगे तिलक की भाँति यह लाल भी अजर-अमर है।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक
पता: 204, अनु अपार्टमेंट, 21-22 शंकर नगर, इंदौर (म.प्र.)
संपर्क: 9893877455 | 9406653005
अणुडाक: arpan455@gmail.com
अंतरताना:www.arpanjain.com

[ लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं]

नवरात्रि का संदेश : नारी सशक्तीकरण

भारतीय पर्व हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं। इनसे हमें ज्ञात होता है कि हमारी प्राचीन संस्कृति कितनी विशाल, संपन्न एवं समृद्ध है। यदि नवरात्रि की बात करें तो यह पर्व भी भारतीय संस्कृति की महानता को दर्शाता है। विगत कुछ दशकों से देश में महिला सशक्तीकरण की बात हो रही है। कुछ लोग विदेशों के उदाहरण देते हैं कि वहां की महिलाएं सशक्त हैं तथा उन्हें बहुत से अधिकार प्राप्त हैं। किंतु ये लोग अपने देश के इतिहास पर चिंतन एवं मनन नहीं करते हैं। वास्तव में भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है, जहां महिलाओं को पुरुषों के समान माना गया है। उदाहरण के लिए भारत में देवियों की पूजा-अर्चना की जाती है। यहां पर उन्हें भी देवताओं के समान ही पूजा जाता है, अपितु देवियों का स्थान देवता से पहले आता है जैसे राधा कृष्ण, सीता राम आदि। भगवान शिव के साथ देवी पार्वती की भी पूजा की जाती है। भगवान राम के साथ देवी सीता की पूजा की जाती है ।

हमारी मान्यता के अनुसार शक्ति की देवी दुर्गा है। धन एवं समृद्धि की देवी लक्ष्मी है तथा ज्ञान की देवी सरस्वती है। कहने का अभिप्राय यह है कि मनुष्य को जीवन में जिन वस्तुओं की आवश्यकता होती है, वह सब उन्हें इन देवियों से ही तो प्राप्त होती हैं। मानव जीवन को अनुशासन में रखने एवं आदर्श जीवन को स्थापित करने के लिए भगवान हमारे विश्वास और श्रद्धा के केंद्र है।

नवरात्रि देवी दुर्गा को समर्पित एक महत्वपूर्ण पर्व है। नवरात्रि का पर्व वर्ष में चार बार आता है अर्थात चैत्र, आषाढ़, अश्विन, माघ। इनमें से चैत्र एवं आश्विन माह में आने वाली नवरात्रि अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। माघ एवं आषाढ़ माह में आने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है, क्योंकि इनमें कोई सार्वजनिक उत्सव का आयोजन नहीं किया जाता है। आश्विन माह में आने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। इसका  आरंभ अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से होता है। इस दिवस पर शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना की जाती है। नवरात्रि में नौ दिन देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

अर्थात देवी पहली शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथी कूष्मांडा, पांचवी स्कंध माता, छठी कात्यायिनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी एवं नौवीं देवी सिद्धिदात्री है।

शैलपुत्री

नवरात्रि के प्रथम दिन देवी दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। मां शैलपुत्री को सफेद वस्तुएं अत्यंत प्रिय हैं, इसलिए उन्हें सफेद मिष्ठान का भोग लगाया जाता है। यह प्रसाद गाय के शुद्ध घी से बनाया जाता है। सफेद रंग पवित्रता एवं शांति का प्रतीक माना जाता है। जीवन में सर्वाधिक पवित्रता एवं शांति का ही महत्व है। इनके बिना सब व्यर्थ है। देवी की साधना से सुख एवं समृद्धि में वृद्धि होती है।

ब्रह्मचारिणी

नवरात्रि के दूसरे दिन देवी देवी दुर्गा के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर एवं पंचामृत का भोग लगाया जाता है। शक्कर जीवन में मिठास का प्रतीक है। जिस प्रकार भोजन में मिष्ठान का महत्व है, उसी प्रकार जीवन में मधुर वाणी का महत्व है। मृदु भाषी व्यक्ति सबका मन मोह लेते हैं। देवी की साधना से भाग्य में वृद्धि होती है तथा आयु भी लम्बी होती है।

चंद्रघंटा

नवरात्रि के तीसरे दिन देवी दुर्गा के तृतीय स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की जाती है। मां चंद्रघंटा को दुग्ध से बने मिष्ठान एवं खीर का भोग लगाया जाता है। खीर भी दुग्ध से बनाई जाती है। दुग्ध समृद्धि एवं अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है। देवी की साधना से व्यक्ति बुरी शक्तियों से सुरक्षित रहता है।

कुष्मांडा

नवरात्रि के चौथे दिन देवी दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप मां कुष्मांडा की पूजा-अर्चना की जाती है। मां कुष्मांडा को मालपुये का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से मनुष्य की समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

स्कंदमाता

नवरात्रि के पांचवे दिन देवी दुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती है। स्कंदमाता को फल विशेषकर केला अत्यंत प्रिय है, इसलिए उन्हें केले का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से सुख एवं एश्वर्य में वृद्धि होती है।

कात्यायनी

नवरात्रि के छठे दिन देवी दुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना की जाती है। मां कात्यायनी को मीठे पान एवं मधु का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से दुखों का नाश होता है तथा जीवन में सुख का आगमन होता है।

कालरात्रि

नवरात्रि के सातवें दिन देवी दुर्गा के सातवे स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना की जाती है। मां कालरात्रि को गुड़ अत्यंत प्रिय है, इसलिए उन्हें गुड़ से बने व्यंजन का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से समस्त नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है तथा सकारात्मकता में वृद्धि होती है। जीवन सुखी हो जाता है।

महागौरी

नवरात्रि के आठवें दिन देवी दुर्गा के आठवे स्वरूप मां महागौरी की पूजा-अर्चना की जाती है। मां महागौरी को नारियल अत्यंत प्रिय है, इसलिए उन्हें नारियल का भोग लगाया जाता है अर्थात नारियल अर्पित किया जाता है। देवी की साधना से व्यक्ति के रुके हुए कार्य पूर्ण होते हैं।

सिद्धिदात्री

नवरात्रि के अंतिम दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन कन्या पूजन का विधान है। कन्याओं की पूजा की जाती है। उन्हें भोजन ग्रहण कराया जाता है। इसके पश्चात उनके चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। कन्याओं को प्रसाद के साथ उपहार भेंट किए जाते हैं। तदुपरांत देवी को काले चने, हलवा पूड़ी एवं खीर का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है तथा उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

वास्तव में नवरात्रि का पर्व नारी शक्ति का उत्सव है। प्राचीन काल से ही यह पर्व भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति का प्रतीक रहा है। कन्या पूजन इस बात को सिद्ध करता है कि भारतीय समाज में कन्या का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। कन्या भ्रूण हत्या तथा नवजात कन्याओं का वध कर देने जैसी बुराइयां हमारे समाज में कब और कैसे सम्मिलित हो गईं, ज्ञात ही नहीं हो पाया। निरंतर घटता लिंगानुपात अत्यंत चिंता का विषय बना हुआ है। विदेशों में भारत की जिन बुराइयों का उल्लेख कुछ लोग बड़े गर्व के साथ करते हैं, वे बुराइयों तो हमारे समाज में कभी नहीं थीं। जिस समय विश्व के अधिकांश देश अशिक्षित एवं असभ्य थे, उस समय हमारा देश शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी था। पुरुष ही नहीं, अपितु महिलाएं भी शिक्षित थीं। वे शास्त्रार्थ करती थीं, अस्त्र-शस्त्र चलाती थीं। देवियों ने कितने ही राक्षसों का अकेले वध किया है।

 

नारी को ईश्वर ने श्रेष्ठ बनाया है। अनेक मामलों में वह पुरुष से उच्च स्थान पर है। वह जन्मदात्री है। जिस प्रकार एक स्त्री अपने बालकों का पालन-पोषण कर लेती है, उस प्रकार एक पुरुष उनका पालन-पोषण नहीं कर पाता। स्त्री पूरे परिवार का संचालन सुंदर तरीके से करती है। नारी संस्कार की जननी है उसके अंदर ममता, स्नेह, उदारता,आत्मीयता ,प्यार ,दुलार आदि गुण जीवन का हिस्सा है । ईश्वर ने नारी को अत्यंत सबल बनाया है। नारी प्रत्येक क्षेत्र में अपनी योग्यता एवं प्रतिभा का सफल प्रदर्शन कर रही है।

लेखक – सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अध्येता है ।

मो- 8750820740


Dr.Sourabh Malviya

Associate Professor

Deptt. of Journalism $ Mass Communication

University of Lucknow- UP

मो. 8750820740

अद्भुत भारत : एक बानगी

भारत राष्ट्र अपनी विविधताओं के लिए विश्व में अलग और महती स्थान रखता है। यहाँ के विश्व प्रसिद्ध स्थल और प्रकृति की छटा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र तो हैं ही साथ ही  देशवासियों के लिए सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सन्दर्भों के लिए महत्वपूर्ण स्थल हैं। भारत की दार्शनिक पृष्ठभूमि और पौराणिक समृद्धता से सम्पन्न साहित्य इसकी गौरवशाली परम्परा और विकास को उजागर कर जिज्ञासु एवं अध्ययनार्थियों को संस्कृति और संस्कारों से साक्षात्कार कराता है। भारत के प्रत्येक राज्य की अपनी विशेषता है और वहाँ का अपना सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है।
इन्हीं सन्दर्भों को उभारती वरिष्ठ पर्यटन लेखक एवं राजस्थान सरकार में जनसम्पर्क विभाग के पूर्व संयुक्त निदेशक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल की सद्य प्रकाशित छह पुस्तकों की श्रृंखला “अद्भुत भारत ” क्रमशः पूर्व भारत, पश्चिम भारत, उत्तर भारत, दक्षिण भारत, मध्य भारत एवं पूर्वोत्तर भारत जो साहित्यागार प्रकाशन, धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर द्वारा वर्ष 2024 में प्रकाशित हुई हैं।
“अद्भुत भारत ” श्रृंखला की पहली पुस्तक ‘पूर्व भारत ‘ में क्रमशः बिहार, झारखण्ड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल , द्वितीय पुस्तक ‘ पश्चिम भारत ‘ में क्रमशः राजस्थान, महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात दादर – नगर हवेली और दमन – दीव, तीसरी पुस्तक ‘ उत्तर भारत ‘ में क्रमशः जम्मू – कश्मीर, लद्दाख, देवभूमि हिमाचल प्रदेश, चण्डीगढ़, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखण्ड देवताओं की भूमि, उत्तर प्रदेश, चौथी पुस्तक दक्षिणी भारत में कर्नाटक, मैसूर, श्रीरंगपट्टनम, बेंगलूर, केरल, तेलंगाना, तमिलनाडु, चेन्नई, लक्षदीप, अंडमान निकोबार, पडुचेरी, पाँचवीं पुस्तक ‘ पूर्वोत्तर भारत ‘ में क्रमशः अरुणाचल, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, छठी पुस्तक ‘ मध्य भारत ‘ में क्रमशः मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों के प्रमुखतया इतिहास, भूगोल, कृषि, अर्थव्यवस्था, संस्कृति – साहित्य, परिवहन और दर्शनीय स्थलों के बारे में सारगर्भित जानकारी दी गयी है।
 राज्य विशेष के अध्याय प्रारम्भ होने पर वहाँ की सांस्कृतिक आभा बिखेरता रेखांकन उसकी शैलीगत कला का रूप उजागर करता है जो सौन्दर्य भाव को जागृत करता है। प्रत्येक पुस्तक के अन्त में सम्बन्धित विवरण के प्रमुख सन्दर्भ उल्लेखित है जो पुस्तक के शोधात्मक स्वरूप को बनाये रखता है और अधिक जानकारी प्राप्त करने की राह खोलता है।
श्रृंखला की सभी छह पुस्तकों में उल्लेखित राज्यों के ऐतिहासिक परिपेक्ष्य को स्थापना से लेकर विकास के बढ़ते चरण तक तथ्यात्मक रूप से उभारा है। वहीं प्रमुख एवं विख्यात दर्शनीय स्थलों को उनकी विशेषता और स्थापत्य की दृष्टि से विश्लेषित किया है। यही नहीं आरम्भ में प्रत्येक राज्य की विशेषता, सांस्कृतिक परिवेश और प्रसिद्धि को ध्यान में रखकर उनको रेखाचित्रों के माध्यम से दिग्दर्शित किया है। साथ ही पुस्तकों के फ्लैप पर  पूर्व भारत, पश्चिम भारत, उत्तर भारत, दक्षिण भारत, मध्य भारत एवं पूर्वोत्तर भारत के बारे संक्षिप्त जानकारी देकर उन्हें परिचयात्मक रूप से विवेचित करते हुए भारत के राज्यों के बारे में सार्थक और सारगर्भित जानकारी दी गयी है, जो विद्यार्थियों, शोधार्थियों और पर्यटन प्रेमियों के साथ जिज्ञासु पाठकों लिए महत्वपूर्ण और संग्रहणीय है।
इस माने भी कि इन सभी पुस्तकों में लेखक की ‘ अपनी बात ‘ और ‘ भारत का परिचय ‘ एक समान है जो किसी भी एक पुस्तक को पढ़ने पर भी समग्र रूप से पढ़ा जा कर सन्दर्भित किया जा सकता है। ‘अपनी बात ‘ में लेखक ने भारत वर्ष के सांस्कृतिक सौन्दर्य और वैभव के साथ इसकी विविधता, विचित्रता और अनेकता में एकता से उत्कर्ष को विश्लेषित करते हुए भारत के अद्यतन विलक्षण गौरव को उजागर किया है।
अन्ततः यही कि अद्भुत भारत की यह श्रृंखला भारत और भारतीय संस्कृति और इतिहास की जानकारी ही नहीं देती वरन् पर्यटन की दृष्टि से स्थान विशेष की विशिष्टताओं को भी उजागर करती है। इस माने में भी कि यह सभी पुस्तकें  दिशानिर्देशन के लिए सन्दर्भ ग्रन्थ भी हैं।
– विजय जोशी
समीक्षक, कोटा

विश्व के वित्तीय एवं निवेश संस्थान भारत के आर्थिक विकास के अनुमानों को बढ़ा रहे हैं

आज जब विश्व में कई विकसित एवं विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं में विभिन्न प्रकार की आर्थिक  समस्याएं दिखाई दे रही है, वैश्विक स्तर पर कई प्रकार की विपरीत परिस्थितियों के बीच भी भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बनी हुई है। कई विदेशी एवं निवेश संस्थान भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के सम्बंध में पूर्व में दिए गए अपने अनुमानों में संशोधन कर रहे हैं कि आगे आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास की गति और अधिक तेज होगी।

विशेष रूप से कोरोना महामारी के पश्चात भारत ने आर्थिक विकास के क्षेत्र में तेज रफ्तार पकड़ ली है। भारत में आर्थिक क्षेत्र में सुधार कार्यक्रमों को लागू किया गया है। स्टैंडर्ड एवं पूअर (एसएंडपी) नामक विश्व विख्यात क्रेडिट रेटिंग संस्थान ने हाल ही में अपने एक प्रतिवेदन में बताया है कि भारत, केलेंडर वर्ष 2024 में एवं इसके बाद के वर्षों में 6.7 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर के साथ वर्ष 2031 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा तथा भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान वर्तमान के 3.6 प्रतिशत से बढ़कर 4.5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच जाएगा। साथ ही, भारत में प्रति व्यक्ति आय भी बढ़कर उच्च मध्यम आय समूह की श्रेणी की हो जाएगी। भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार भी वर्तमान के 3.92 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। हालांकि एसएंडपी ने भारत में आर्थिक विकास दर के 6.7 प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ़ने का अनुमान लगाया है जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक विकास दर के 7.3 प्रतिशत के अनुमान के विरुद्द 8.2 प्रतिशत की रही है। भारत में अब सरकारी क्षेत्र के साथ ही निजी क्षेत्र भी पूंजीगत खर्चों को बढ़ाने पर ध्यान देता हुआ दिखाई दे रहा है, इससे आगे आने वाले समय में केंद्र सरकार पर पूंजीगत खर्चों में वृद्धि करने सम्बंधी दबाव कम होगा और केंद्र सरकार का बजटीय घाटा और अधिक तेजी से कम होगा, जिससे अंततः विदेशी निवेशक भारत में अपना निवेश बढ़ाने के लिए आकर्षित होंगे।

इसी प्रकार, विश्व बैंक एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी वर्ष 2024, 2025 एवं 2026 में भारत के आर्थिक विकास सम्बंधी अपने अनुमानों के बढ़ाया है। विश्व बैंक का तो यह भी कहना है कि भारत ने केलेंडर वर्ष 2023 में विश्व के वार्धिक आर्थिक विकास में 16 प्रतिशत का योगदान दिया है और इस प्रकार भारत अब विश्व में आर्थिक विकास के इंजिन के रूप में कार्य करता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत ने वर्ष 2023 में 7.2 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल की थी, जो विश्व की अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं द्वारा इसी अवधि में हासिल की गई विकास दर से दुगुनी थी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की आर्थिक विकास दर के वर्ष 2024 के अपने पूर्व अनुमान 6.7 प्रतिशत की विकास दर को बढ़ा कर 7 प्रतिशत कर दिया है।

ओईसीडी देशों के समूह ने भी वर्ष 2024 एवं 2025 में वैश्विक स्तर पर आर्थिक प्रगति के अनुमान जारी किए हैं। इन अनुमानों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर वर्ष 2024 एवं 2025 में सकल घरेलू उत्पाद में 3.2 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की जा सकेगी। वहीं भारत की आर्थिक विकास दर वर्ष 2024 के 6.7 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2025 में 6.8 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। चीन की आर्थिक विकास दर वर्ष 2024 में 4.9 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2025 में 4.5 रहने की सम्भावना है। इसी प्रकार रूस एवं अमेरिका की आर्थिक विकास दर भी वर्ष 2024 में क्रमशः 3.7 प्रतिशत एवं 2.6 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2025 में क्रमशः 1.1 प्रतिशत एवं 1.6 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। कुल मिलाकर आज विश्व के लगभग समस्त वित्तीय एवं निवेश संस्थान आगे आने वाले वर्षों में भारत की आर्थिक विकास दर के बढ़ने के अनुमान लगा रहे हैं।

वैश्विक स्तर पर वित्तीय संस्थानों द्वारा भारत के आर्थिक विकास दर के सम्बंध में लगाए जा रहे अनुमानों के अनुसार यदि भारत आगे आने वाले वर्षों में प्रतिवर्ष 6.7 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल करता है तो भारत वर्ष 2031 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इसके ठीक विपरीत भारत ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में 8.2 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल की थी एवं भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार भारत वित्तीय वर्ष 2024-25 में 7 प्रतिशत से अधिक की आर्थिक विकास दर हासिल करेगा, इस प्रकार तो भारत वर्ष 2031 के पूर्व ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। दूसरे, विश्व में भारत से आगे जापान एवं जर्मनी की अर्थव्यवस्थाएं हैं, आज इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं में कई प्रकार की समस्याएं दिखाई दे रही हैं जिनके चलते इन देशों की आर्थिक विकास दर आगे आने वाले कुछ वर्षों में शून्य रहने की सम्भावना दिखाई दे रही है। इस प्रकार, बहुत सम्भव है कि भारत मार्च 2025 तक जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ देगा एवं मार्च 2026 अथवा मार्च 2027 तक जर्मनी की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ देगा और भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए वर्ष 2031 तक इंतजार ही नहीं करना पड़ेगा।

विश्व बैंक द्वारा जारी वैश्विक आर्थिक सम्भावना रिपोर्ट 2024 ने भी वित्तीय वर्ष 2025 में भारत को विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बने रहने के संकेत दिए हैं। पिछले तीन वर्षों में पहली बार वैश्विक अर्थव्यवस्था वर्ष 2024 में स्थिर होने के संकेत दे रही है। वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर के वर्ष 2024-25 में 2.6 प्रतिशत एवं वर्ष 2025-26 में 2.7 प्रतिशत रहने की सम्भावना विश्व बैंक द्वारा की गई है। इसी प्रकार, मुद्रा स्फीति में भी धीरे धीरे कमी आने के संकेत मिल रहे हैं एवं यह वैश्विक स्तर पर औसतन 3.5 प्रतिशत रहने की सम्भावना है। मुद्रास्फीति उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति को कम करती है एवं उनके व्यय करने की क्षमता को भी हत्तोत्साहित करती है। कई देशों को मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों को बढ़ाना पड़ता है। उच्च ब्याज दरें मुद्रास्फीति को नियंत्रित तो करती हैं परंतु आर्थिक प्रगति को धीमा भी कर देती है जिससे रोजगार के अवसरों में कमी भी दृष्टिगोचर होती है।

उक्त वर्णित वैश्विक आर्थिक सम्भावना रिपोर्ट 2024 के अनुसार दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत ने क्षेत्रीय विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्रों के योगदान से वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत ने 8.2 प्रतिशत की अतुलनीय आर्थिक विकास दर हासिल की है, यह आर्थिक विकास दर देश में मानसून व्यवधानों के कारण कृषि क्षेत्र के उत्पादन वृद्धि में आई कमी के बावजूद हासिल की गई है।  साथ ही, भारत में व्यापक कर आधार से राजस्व में वृद्धि के चलते सकल घरेलू उत्पाद के सापेक्ष राजकोषीय घाटे में कमी हासिल की जा सकी है। विशेष रूप से भारत में व्यापार घाटा भी कम होता दिखाई दे रहा है, जिससे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में समग्र आर्थिक स्थिरता लाने में योगदान मिला है।

जलवायु परिवर्तन के कारण भी विश्व के कई देशों में बाढ़, सूखा एवं तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता और प्रबलता बढ़ती दिखाई दे रही है। इस तरह की आपदाएं बुनियादी ढांचे, निवास स्थानों एवं व्यवसाओं को व्यापक क्षति पहुंचा रही हैं। साथ ही, यह कृषि उत्पादन को भी बाधित कर रही है, जिससे खाद्यान के उत्पादन में कमी एवं इनकी कीमतों में वृद्धि होती दिखाई दे रही है। इससे सरकारी वित्त व्यवस्था पर भी अतिरिक्त भार पड़ रहा है।

विश्व बैंक की आर्थिक सम्भावना रिपोर्ट 2024 ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में तार्किक आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। वर्ष 2024 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थिरता के संकेत जरूर दिए हैं परंतु कोविड महामारी से पहले के विकास के स्तरों की तुलना में वैश्विक स्तर पर विकास अभी भी धीमा बना हुआ है। वैश्विक स्तर पर मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए सभी देशों को मिलकर प्रभावी उपाय करने होंगे। यहां भारत की “वसुधैव क़ुटुम्बकम” एवं “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” जैसी भावनाओं के साथ, वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास के लिए, यदि सभी देश मिलकर आगे बढ़ते हैं तो भारत के साथ साथ पूरे विश्व में भी खुशहाली लाई जा सकती है।

प्रहलाद सबनानी

सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,

भारतीय स्टेट बैंक

के-8, चेतकपुरी कालोनी,

झांसी रोड, लश्कर,

ग्वालियर – 474 009

मोबाइल क्रमांक – 9987949940

ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

छोटे पंख : बड़ी बातें

कहावतें मानव अनुभवों की वह धरोहर और साक्ष्य हैं, जो सदियों से चली आ रही हैं। यदि मानव जाति के सरल, सीधे और समय की कसौटी पर खरे उतरे ज्ञान को देखना चाहते हैं, तो कहावतों से बेहतर उदाहरण कोई नहीं है।यद्यपि  कहावतें मुख्य रूप से सामूहिक अनुभवों से उत्पन्न होती हैं, पर कभी-कभी वे विशेष घटनाओं या कहानियों से भी जन्म लेती हैं।

यहाँ मैं एक कश्मीरी कहावत साझा कर रहा हूँ: “काव गाव पाव ता कावपूत गाव डोड पाव”। इसका अर्थ है: “कौआ एक चौथाई का लेकिन उसका बच्चा (या पोता) सवा चौथाई का।”

इस कहावत के पीछे एक दिलचस्प कहानी छिपी है:

एक बार, एक बूढ़ा कौआ और उसका पोता सड़क के किनारे एक मरे हुए जानवर पर ठूँगे मार रहे थे। अचानक, वहाँ से एक आदमी गुज़रा। उसे देखकर, छोटा कौआ तुरंत उड़कर पास के पेड़ पर जा बैठा। लेकिन बूढ़ा कौआ बिना किसी चिंता के बैठा रहा और खाने में मग्न रहा। जब आदमी चला गया, तो युवा कौआ वापस सड़क पर आया और अपने दादा से पूछा, “दादा, जब आपने उस आदमी को देखा, तो आप उड़कर क्यों नहीं भागे? अगर उसने आप पर पत्थर फेंक दिया होता, तो ?”

बूढ़ा कौआ अपने पोते की मासूमियत पर हंसा और बोला, “मेरे बच्चे, तुम अभी बहुत भोले हो। हमें तभी उड़ना चाहिए जब हम देखें कि आदमी पत्थर उठाने वाला है या उसने पहले ही एक उठा लिया है। पहले से भागने का कोई मतलब नहीं है।”
पोता तुरंत बोला, “दादा, लेकिन अगर आदमी ने पहले से ही अपने पीछे पत्थर छिपा लिया होता, तो ?”

पोते के इस तीखे उत्तर ने बूढ़े कौए को निरुत्तर कर दिया। उसके पास कोई जवाब नहीं था और वह शर्मिंदा होकर वहां से उड़ गया, यह स्वीकार करते हुए कि उसके पोते की बात में गहरी बुद्धिमत्ता थी। इस कहावत के पीछे संदेश यह है कि कभी-कभी छोटे बच्चे, अपनी कम उम्र के बावजूद, इतनी बुद्धिमानी और समझदारी दिखाते हैं कि बड़े लोग भी उनके सामने निरुत्तर हो जाते हैं।

यह कहानी, जो मेरे दादा ने मुझे मेरे बचपन में सुनाई थी, कई महत्वपूर्ण उपदेशों  की याद दिलाती है। सबसे पहले, यह हमें हर स्थिति में सतर्क और सावधान रहने का महत्व बताती है, क्योंकि चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं, जैसी दिखती हैं। बूढ़ा कौआ अपने अनुभव पर निर्भर था और उसने अनुमान लगाया कि कब रुकना है और कब भागना है। लेकिन उसके पोते की यह समझ कि खतरे अदृश्य भी हो सकते हैं, एक गहरी दृष्टि थी, जो यह दर्शाती है कि ख़तरे कभी भी अप्रत्याशित हो सकते हैं। यह कहानी पीढ़ियों के बीच सोचने और दृष्टिकोण के अंतर को भी दर्शाती है। जहां बड़े लोग अनुभव पर भरोसा करते हैं, वहीं कभी-कभी युवा पीढ़ी, बिना किसी पूर्वाग्रह के, नई दृष्टिकोण और गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती है। युवा कौए का प्रश्न दूरदर्शिता को दर्शाता है, यह बताता है कि कभी-कभी सावधानी उस समय भी बरतनी चाहिए जब कोई तात्कालिक ख़तरा न दिखे।

कहावत का सार यह है कि बुद्धिमत्ता हमेशा उम्र पर निर्भर नहीं होती। कभी-कभी युवा मन, जो परंपरा के बंधनों से मुक्त होता है, उन जटिलताओं को पकड़ लेता है और उन ख़तरों को भांप लेता है जिन्हें अनुभवी लोग भी नजरअंदाज कर सकते हैं। यह कहानी यह भी संकेत देती है कि बुद्धिमत्ता पीढ़ियों के बीच विकसित होती रहती है, जहां अनुभव और युवाओं की दृष्टि एक-दूसरे का पूरक हो सकते हैं।

सारांशतः “काव गाव पाव ता कावपूत गाव डोड पाव” कहावत यह सिखाती है कि बुद्धिमत्ता हमेशा उम्र के साथ नहीं आती, और कभी-कभी युवा भी बड़ों को एक मूल्यवान सबक सिखा सकते हैं। जीवन की जटिलताओं को से जूझते हुए  हमें सभी स्रोतों से सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए, चाहे वह उम्र हो या अनुभव, यह स्वीकार करते हुए कि बुद्धिमत्ता किसी भी अप्रत्याशित जगह से निकल सकती है।

DR.S.K.RAINA
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भारतीय सेना का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन- हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद 3 से 5 अक्टूबर तक दिल्ली में

भारतीय नौसेना का इस वर्ष का वार्षिक शीर्ष-स्तरीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन- हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद (आईपीआरडी) 03, 04 और 05 अक्टूबर 2024 को नई दिल्ली में आयोजित किया जाएगा। यह हाल ही में संपन्न गोवा समुद्री संगोष्ठी 2024 के बाद हो रहा है, जिसे भारतीय नौसेना ने 24 और 25 सितंबर 2024 को गोवा में नौसेना युद्ध कॉलेज में आयोजित किया था।

वैचारिक स्थिति के संदर्भ में  जहां गोवा समुद्री संगोष्ठी भारतीय महासागर क्षेत्र में नौसेनाओं और समुद्री एजेंसियों के बीच चर्चा के लिए एक मंच प्रदान करके परिचालन स्तर पर भारतीय नौसेना की सहकारी भागीदारी को प्रदर्शित करना चाहती है, वहीं आईपीआरडी रणनीतिक स्तर पर भारतीय नौसेना की अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी की प्रमुख अभिव्यक्ति है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ‘समग्र’ समुद्री सुरक्षा मुद्दों को संभालती है। राष्ट्रीय समुद्री फाउंडेशन (एनएमएफ) भारतीय नौसेना का ज्ञान भागीदार और आईपीआरडी के प्रत्येक संस्करण का मुख्य आयोजक है।

आईपीआरडी के पहले दो संस्करण क्रमशः 2018 और 2019 में नई दिल्ली में आयोजित किए गए थे। कोविड-19 के चलते आईपीआरडी 2020 आयोजित नहीं किया गया था। इसका तीसरा संस्करण 2021 में वर्चुअल मोड में आयोजित किया गया था। वर्ष 2022 से आईपीआरडी के ये संस्करण भौतिक रूप में आयोजित किए जा रहे हैं और विशेष रूप से हिंद-प्रशांत महासागर पहल (आईपीओआई) के सात स्तंभों से परस्पर जुड़े हुए वेब पर केंद्रित हैं। आईपीआरडी के प्रत्येक संस्करण में आईपीओआई द्वारा पहचाने गए सात घटक- लाइन्स-ऑफ-थ्रस्ट पर क्रमिक रूप से चर्चा करने का प्रयास किया जाता है  ताकि सागर (एसएजीएआर) को “द्वितीय-क्रम-विशिष्टता” प्रदान की जा सके। उसी के अनुरूप आईपीआरडी-2022 का विषय “हिंद-प्रशांत महासागर पहल का संचालन” था जबकि 2023 संस्करण में “हिंद-प्रशांत समुद्री व्यापार और कनेक्टिविटी पर भू-राजनीतिक प्रभाव” पर चर्चा की गई थी।

“हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संसाधन-भू-राजनीति और सुरक्षा” पर ध्यान केंद्रित करते हुए आईपीआरडी (आईपीआरडी-2024) का 2024 संस्करण आईपीओआई वेब के दो महत्वपूर्ण स्तंभों अर्थात “समुद्री संसाधन” और “संसाधन साझाकरण” के कई आयामों का पता लगाएगा और उन पर विस्तारपूर्वक चर्चा करेगा। इस वर्ष का सम्मेलन इस बात पर ध्यान केंद्रित करेगा कि किस तरह से पारंपरिक और नए पहचाने गए समुद्री संसाधन समकालीन भू-राजनीति को संचालित कर रहे हैं और निकट भविष्य में इसमें क्या होने की संभावना है। इसमें मछली के घटते भण्डारण शामिल हैं – साथ ही अवैध, अप्रतिबंधित और अनियमित रूप से (आईयूयू) मछली पकड़ने की गतिविधियों में वृद्धि भी है, विशेष रूप से राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे वाले समुद्री क्षेत्रों में। संसाधन-भू-राजनीति की एक और अभिव्यक्ति कोबाल्ट, लिथियम, निकल और अन्य मुश्किल से मिलने वाले खनिजों के लिए भू-राजनीतिक दौड़ है, साथ ही टेल्यूरियम और नियोडिमियम जैसे दुर्लभ पृथ्वी तत्व (आरईई) भी हैं जिनकी आवश्यकता लाखों बैटरी, सौर पैनल, पवन टर्बाइन और अन्य ऐसे नवीकरणीय-ऊर्जा उपकरणों के लिए होती है जो जीवाश्म-ईंधन से ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों में सफलतापूर्वक रूपांतरण के लिए आवश्यक हैं। इसके अलावा, हाइड्रोकार्बन जैसे अपतटीय ऊर्जा संसाधन, अपने भू-राजनीतिक महत्व को बनाए रखने की संभावना रखते हैं, वहीं अधिक अपरंपरागत वाले, जैसे गैस हाइड्रेट्स और समुद्री नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन, समुद्र से प्राप्त हाइड्रोजन, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भविष्य की भू-आर्थिक रणनीतियों को संचालित करने की संभावना रखते हैं।

आईपीआरडी-2024, वैश्विक रूप से प्रसिद्ध विषय-वस्तुओं के विशेषज्ञों और विशिष्ट वक्ताओं के माध्यम से  भारत-प्रशांत क्षेत्र में संसाधन-भू-राजनीति के व्यापक रुझानों की पहचान करने और नीति-विकल्पों को प्रस्तुत करने की दिशा में प्रयास करेगा। तीन दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में यह भी पता लगाया जाएगा कि किस तरह से सहयोग, सहभागिता और सौहार्द, संसाधन-भू-राजनीति के प्रतिमान के भीतर वैकल्पिक मार्ग प्रदान कर सकते हैं। इस बड़े सम्मेलन का एक विशेष आकर्षण भारत के माननीय रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह का स्मारक संबोधन होगा। आईपीआरडी-2024 में 20 से अधिक देशों से आए दिग्गजों के एक समूह के अलावा विशेष रूप से प्रतिष्ठित वक्ताओं द्वारा “विशेष संबोधनों” की एक श्रृंखला भी शामिल होगी, जिनसे सम्मेलन के विषय पर आकर्षक क्षेत्रीय दृष्टिकोण रखे जाने की उम्मीद है। हमारे छात्र समुदाय, अनुसंधान विद्वानों, प्रतिष्ठित नागरिकों, शिक्षाविदों और चिकित्सकों, राजनयिकों के सदस्यों और भारत और विदेश के थिंक-टैंकों की सक्रिय भागीदारी इस आयोजन को विशेष उत्साह प्रदान करेगी।

पुस्तकालय प्रभारी डॉ. शशि जैन सेवा निवृत

कोटा। राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय कोटा की प्रभारी  डॉ. शशि जैन को सोमवार 30 सितंबर 2024 को सांय सेवा निवृत होने पर स्टाफ और साहित्यकारों द्वारा भावभीनी विदाई दी गई। उन्हें पुस्तकालय संघ द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट सम्मान से सम्मानित किया गया। स्टाफ की ओर से भी अभिनंदन पत्र और स्मृति चिन्ह प्रदान कर 21 किलों के पुस्पा हार से सम्मानित किया गया। संभागीय पुस्तकालय अधीक्षक डॉ . दीपक कुमार श्रीवास्तव, साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही, रामेश्वर शर्मा ‘ रामू भईया ‘, डॉ.कृष्णा कुमारी, विजय जोशी, डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, महेश पंचोली आदि ने अपने विचार व्यक्त कर शशि जैन के कार्यों और सेवाओं की सराहना की गई।
वक्ताओं ने कहां डॉ.शशि जैन अथक परिश्रमी,सबको को साथ ले कर चलने वाली, अपने अधिकारी और सहयोगियों की हितेषी, सब का सहयोग करने वाली रही हैं। उन्होंने
पुस्तकालय की  प्रभारी के रूप में सदैव कर्व्यनिष्ठा से कार्य कर सब का दिल जीता। यहां होने वाले कार्यक्रमों में पूर्ण सक्रियता से अपनी भागीदारी निभाई। संयोजन स्नेह लता शर्मा ने किया।

देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में डाक विभाग की अहम भूमिका-पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव

अहमदाबाद। डाक विभाग देश के सबसे पुराने विभागों में से एक है जो कि देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 1 अक्टूबर, 1854 को स्थापित भारतीय डाक विभाग 170 वर्षों के अपने सफर में तमाम ऐतिहासिक और सामाजिक-आर्थिक घटनाक्रम का साक्षी रहा है। उक्त उद्गार भारतीय डाक विभाग के स्थापना दिवस पर अहमदाबाद जीपीओ में आयोजित समारोह में बतौर मुख्य अतिथि उत्तर गुजरात परिक्षेत्र, अहमदाबाद परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने व्यक्त किये।

इस अवसर पर आयोजित डाक चौपाल के माध्यम से जहाँ लोगों को डाक सेवाओं के बारे में जानकारी दी गई, वहीं पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने विधायक दरियापुर श्री कौशिक भाई जैन, डाक निदेशक सुश्री मीता के शाह, चीफ पोस्टमास्टर श्री गोविन्द शर्मा, एजीएम आईपीपीबी डॉ. राजीव अवस्थी संग  बचत बैंक, सुकन्या समृद्धि योजना, महिला सम्मान बचत पत्र, डाक जीवन बीमा, इण्डिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक की पासबुक, बांड व कार्ड प्रदान किये। जीपीओ में रक्तदान कैंप के माध्यम से ब्लड डोनेशन को भी प्रोत्साहित किया गया। केक काटकर ‘हैप्पी बर्थडे टू इण्डिया पोस्ट’ भी गाया गया।

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि डाक विभाग अब सिर्फ पत्र, पार्सल और मनीऑर्डर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि एक ही छत के नीचे तमाम सेवाओं की उपलब्धता के साथ-साथ वित्तीय समावेशन, डिजिटल इंडिया और अंत्योदय में अहम भूमिका निभा रहा है। बचत बैंक, डाक जीवन बीमा, इण्डिया पोस्ट पेमेन्ट्स बैंक, डाकघर पासपोर्ट सेवा केन्द्र, आधार नामांकन एवं अद्यतनीकरण, कॉमन सर्विस सेंटर, डाकघर निर्यात केंद्र जैसे तमाम जनोन्मुखी कार्य डाकघरों में हो रहे हैं।  ‘डाकिया डाक लाया’ से ‘डाकिया बैंक लाया’ तक के सफर में डाक सेवाओं ने तमाम नए आयाम रचे हैं। डाकघर निर्यात केंद्रों द्वारा ओडीओपी, जीआई, एमएसएमई के उत्पाद विदेशों में पहुँचकर ‘वोकल फॉर लोकल’ एवं ‘आत्मनिर्भर भारत’ की संकल्पना को मजबूत कर रहे हैं।

विधायक दरियापुर श्री कौशिक भाई जैन ने कहा कि, डाकघर हम सभी की यादों से जुड़े हुए हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में डाक सेवाओं में तमाम बदलाव हुए हैं। आज डाकघर सुदूर क्षेत्रों तक में बैंक की भूमिका भी निभा रहे हैं।

निदेशक डाक सेवाएं सुश्री मीता के. शाह ने स्थानीय से लेकर वैश्विक बाजारों तक पहुंचने में डाक नेटवर्क की सुगमता और दक्षता के बारे में बताया। ई-कॉमर्स उत्पादों हेतु कैश ऑन डिलीवरी की सुविधा दी जा रही है।

इस अवसर पर मेनेजर एम.एम.एस श्री धर्म वीर सिंह, एजीएम आईपीपीबी डॉ. राजीव अवस्थी, मुख्य प्रबंधक श्री कपिल मंत्री, डिप्टी चीफ पोस्टमास्टर श्री अल्पेश शाह, सहायक निदेशक सुश्री एम ए पटेल, श्री रितुल गांधी,आईपीपीबी वरिष्ठ प्रबंधक श्री स्नेहल मेशराम सहित तमाम अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित रहे।