लन्दन। ट्रिनिटी कॉलेज ब्रिटेन का वो कॉलेज है जिसके संगीत विभाग को पूरी दुनिया में गंभीरता से लिया जाता है . हाल ही में , इस कॉलेज केसंगीत विभाग के पाठ्यक्रम में शैलेन्द्र के लिखे और शंकर जयकिशन द्वारा संगीतबद्ध फ़िल्म ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ का गीत’अजीब दास्तां है ये, कहां शुरू कहां ख़तम…’ और राजा मेहँदी अली ख़ान ले लिखे और मदन मोहन द्वारा संगीतवद्ध फ़िल्म ‘वो कौन थी’ के लिए बनाये गये गीत ‘लग जा गले के फिर ये हसीं रात हो न हो…’ को शामिल कर लिया है . इन गीतों का संगीत पाठ्यक्रम का हिस्सा बना है.
बधाई इन गीतों के गीतकारों/ संगीतकारों के साथ ही उन कला पारखियों को भी दे दी जानी चाहिए जिन्होंने इन गीतों का चयन किया। हिंदी फ़िल्में विशाल महासागर हैं जिसकी तह तक पहुँचेंगे तो अनमोल हीरे मिलेंगे.
शकील बदायूनीं और साहिर के लिखे कई भजन अपने आप में बेमिसाल हैं , कहीं कहीं तो मंदिरों में प्रार्थना के तौर पर भी गाये जाते हैं .अब समय आ गया है ऐसे ही मोती चुन कर भारत के संगीत विद्यालय भी अपने पाठ्यक्रम में लगाने की कोशिश करें :
तोरा मन दर्पण कहलाये साहिर/ रवि
मन तड़फत हरि दर्शन को आज शकील बदायूनीं / नौशाद
प्रभु तेरो नाम जो ध्याये साहिर/ जयदेव