Sunday, November 24, 2024
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स्व. रघुवीर सहाय की कुछ चुनिंदा कविताएँ

सुकवि की मुश्किल

ये और आया है एक हल्ला, जो बच सकें तो कहो कि बचिए
जो बच न पायें तो क्या करूँ मैं, जो बच गये तो बहुत समझिए
सुकवि की मुश्किल को कौन समझे, सुकवि की मुश्किल सुकवि की मुश्किल
किसी ने उनसे नहीं कहा था कि आइए आप काव्य रचिए ।


अतुकांत चन्द्रकांत

चंद्रकांत बावन में प्रेम में डूबा था
सत्तावन में चुनाव उसको अजूबा था
बासठ में चिंतित उपदेश से ऊबा था
सरसठ में लोहिया था और …और क्यूबा था
फिर जब बहत्तर में वोट पड़ा तो यह मुल्क नहीं था
हर जगह एक सूबेदार था हर जगह सूबा था

अब बचा महबूबा पर महबूबा था कैसे लिखूँ

बड़ा अफसर

इस विषय पर विचार का कोई प्रश्न नहीं
निर्णय का प्रश्न नहीं
वक्तव्य – अभी नहीं
फिर से समीक्षा का प्रश्न नहीं
प्रश्न से भागता गया
उत्तर देते हुए इस तरह बड़ा अफ़सर।

निंदा|
तुम निंदा के
जितने वाक्य
निंदा में कहते हो

वे
निंदा नहीं
रह गए हैं
और
केवल तुम्हारी
घबराहट
बताते हैं

हिंदी

पुरस्कारों के नाम हिन्दी में हैं
हथियारों के अंग्रेज़ी में
युद्ध की भाषा अंग्रेज़ी है
विजय की हिन्दी

सभी लुजलुजे हैं…..

खोंखियाते हैं, किंकियाते हैं, घुन्‍नाते हैं
चुल्‍लु में उल्‍लू हो जाते हैं

मिनमिनाते हैं, कुड़कुड़ाते हैं
सो जाते हैं, बैठ जाते हैं, बुत्ता दे जाते हैं

झांय झांय करते है, रिरियाते हैं,
टांय टांय करते हैं, हिनहिनाते हैं
गरजते हैं, घिघियाते हैं
ठीक वक़्त पर चीं बोल जाते हैं

सभी लुजलुजे हैं, थुलथुल है, लिब लिब हैं,
पिलपिल हैं,
सबमें पोल है, सब में झोल है, सभी लुजलुजे हैं।

नयी हँसी

महासंघ का मोटा अध्यक्ष
धरा हुआ गद्दी पर खुजलाता है उपस्थ
सर नहीं,

हर सवाल का उत्तर देने से पेश्तर
बीस बड़े अखबारों के प्रतिनिधि पूछें पचीस बार

क्या हुआ समाजवाद
कहें महासंघपति पचीस बार हम करेंगे विचार
आंख मारकर पचीस बार वह, हँसे वह, पचीस बार

हंसें बीच अखबार
एक नयी ही तरह की हँसी यह है

पहले भारत में सामूहिक हास परिहास तो नहीं ही था।
जो आंख से आंख मिला हँस लेते थे

इसमें सब लोग दायें-बायें झांकते हैं
और यह मुंह फाड़कर हँसी जाती है।

राष्ट्र को महासंघ का यह संदेश है

जब मिलो तिवारी से – हँसो – क्योंकि तुम भी तिवारी हो

जब मिलो शर्मा से – हँसो – क्योंकि वह भी तिवारी है

जब मिलो मुसद्दी से

खिसियाओ

जाँतपाँत से परे

रिश्ता अटूट है

राष्ट्रीय झेंप का ।

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