Wednesday, December 25, 2024
spot_img
Homeश्रद्धांजलिस्व. रमेश अग्रवाल : सड़क पर हुई मुलाकात और फिर संघर्ष...

स्व. रमेश अग्रवाल : सड़क पर हुई मुलाकात और फिर संघर्ष में साथ के दो दशक

रमेश अग्रवालजी ने कोई आठ साल पहले अपने बारे में और अपनी उपलब्धियों को लेकर कहा था :” आज जो भी सफलता मेरे पास है उसमें अपने स्वाभाव की तीन बातों को मैं सामने रखता हूं– सहज-सरल रहना’ स्वयं का लो –प्रोफाइल प्रेजेंटेशन और काम के प्रति जुनून”। रमेशजी की शायद ये ही खूबियां थी जिनके कि कारण पिछले पैंतीस सालों के दौरान दैनिक भास्कर प्रकाशन समूह देश के मीडिया जगत में अकल्पनीय ऊंचाइयों पर पहुंच गया, पर रमेशजी ने अपनी एक और विलक्षणता का कभी बखान नहीं किया और वह थी उनकी निडरता और चुनौतियों का साहस के साथ मुकाबला करने की क्षमता। यह गुण उन्हें अपने पिता द्वारका प्रसाद अग्रवाल से खून और संस्कारों में प्राप्त हुआ था। द्वारका प्रसाद जी ने ही वर्ष 1958 में एक टेबलॉयड के आकार वाले दैनिक भास्कर अखबार की शुरुआत की थी। वही दैनिक भास्कर आज 14 राज्यों और 62 संस्करणों के साथ हिंदी, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी भाषाओँ में प्रकाशित होने वाला देश का सबसे बड़ा मीडिया समूह बन गया है।

रमेशजी से मेरी पहली मुलाकात कोई पैंतीस साल पहले इंदौर शहर में एक सड़क पर हुई थी। हमारी इस मुलाकात का रमेशजी ने फिर कई बार सार्वजनिक तौर पर जिक्र भी किया। बात उन दिनों की है जब मैं दिल्ली में इंडियन एक्सप्रेस समूह में आठ वर्षों तक काम करने के बाद 1981 में इंदौर लौटकर नईदुनिया हिंदी दैनिक में काम कर रहा था। नईदुनिया अविभाजित मध्यप्रदेश का और कई मायनों में देश का भी एक बड़ा और प्रतिष्ठित समाचार पत्र था। राजेंद्र माथुर उसके यशस्वी संपादक थे। आपातकाल के दौरान नईदुनिया की भूमिका ने देश के मीडिया जगत के सामने कड़ी चुनौतियां खड़ी कर दी थी।

मैं साईकिल पर सवार था और घर लौट रहा था। तभी बीच सड़क पर पास में एक स्कूटर आकर रुका। स्कूटर एक परिचित चला रहे थे और रमेशजी पीछे की सीट पर बैठे हुए थे। मुझे रोककर रमेशजी ने कहा हम इंदौर से भास्कर का प्रकाशन प्रारंभ करने जा रहे हैं और चाहते हैं कि आप हमारे साथ जुड़ जाएं। मैंने कुछ कारण बताते हुए अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी। रमेशजी ने कोई बुरा नहीं माना। मुस्कुराते हुए बोले फिर से विचार करना, अपन फिर मिलेंगे। उन्हें शायद पता था कि मैं आगे-पीछे ऐसा अवश्य करुंगा। वे ‘ना’ स्वीकार करने वालों में नहीं थे। मौका आया पर कोई दस साल बाद। वर्ष 1993 में मैं दैनिक भास्कर के साथ जुड़ा और फिर लगभग दो दशकों तक रमेशजी की हर यात्रा में शामिल रहा। रमेशजी ने जिन-जिन राज्यों और स्थानों से समूह के प्रकाशनों की शुरुआत की वे वहां-वहां मुझे अपने साथ ले जाते रहे।

रमेशजी की सबसे बड़ी ताकत यह थी कि वे न तो प्रतिस्पर्धियों की चुनौतियों से घबराते थे और न ही राजनेताओं की नाराजगी से डरते थे। ‘रिस्क’ लेने की एक अद्भुत ताकत उनके पास हमेशा मौजूद रहती थी। वे बने-बनाए औपचारिक सिस्टम से अलग अपनी ‘गट फीलिंग’ से काम करते थे और इसे स्वीकार भी करते थे। वे इसी ताकत के दम पर राजनेताओं की नाराजगी और उसके कारण अख़बार को होने वाले वित्तीय नुकसान न की परवाह किये बगैर दैनिक भास्कर को आगे बढ़ाने के काम में परिवार सहित जुटे रहे। रमेशजी ने कहीं भी दैनिक भास्कर की निर्भीक पत्रकारिता के साथ समझौता नहीं किया। वर्ष 1983 में इंदौर संस्करण की शुरुआत के कोई एक-डेढ़ साल बाद ही रमेशजी के सामने वह चुनौती आ गई थी जिसके जरिये प्रदेश और देश को भास्कर की क्षमता का पता चल गया।

दिसम्बर 1984 में यूनियन कार्बाइड के भोपाल स्थित प्लांट से जहरीली गैस के रिसने से हजारों लोगों की मौत हो गई थी। घटना के बाद रमेशजी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के दबाव की परवाह किये बगैर जिस तरह का कवरेज भास्कर में करने की जोखिम उठाई वह चौकाने वाली थी। दैनिक भास्कर को रमेशजी ने गैस-पीड़ितों की आवाज़ बना दिया। इस समय तक उनके सबसे बड़े पुत्र सुधीर अग्रवाल ने कमान नही संभाली थी। मोर्चे पर रमेशजी ही मुख्य रूप से थे।

इंदौर संस्करण की शुरुआत रमेशजी ने अपने पिता की मर्जी के खिलाफ की थी। द्वारका प्रसादजी को नईदुनिया के मुकाबले भास्कर की सफलता के प्रति संदेह था। पर अपने जुनून से रमेशजी ने इंदौर संस्करण को भी सफलता के शिखर पर खड़ा कर दिया। अब तक उनके बड़े पुत्र सुधीर अग्रवाल ने भी इंदौर संस्करण के जरिये उनकी मदद करना प्रारंभ कर दिया था।

वर्ष 1996 में रमेशजी ने तय किया कि भास्कर का अगला ठिकाना राजस्थान बनेगा और जयपुर पहुंचकर राजस्थान पत्रिका को चुनौती दी जायेगी। उस समय कहा जाता था कि पत्रिका को मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावतजी का संरक्षण प्राप्त है अतः भास्कर जयपुर में टिक नहीं सकेगा। नवभारत टाइम्स वहां से प्रारंभ होकर बंद हो चुका था। भास्कर को राजस्थान में एक लम्बे समय तक सरकारी विज्ञापन प्राप्त नहीं हुए। निजी विज्ञापन एजेंसियों ने भी पर्याप्त सहयोग नहीं किया। रमेशजी ने एक लम्बे समय तक वित्तीय घाटा सहते हुए भास्कर के प्रकाशन को जारी रखा और उसे पूरे राजस्थान में ऊंचाइयों पर पहुंचाया।

वर्ष 2003 में जब रमेशजी ने अहमदाबाद से गुजराती दैनिक दिव्य भास्कर की शुरुआत की तो वहां चर्चा चल पड़ी कि भास्कर के गुजराती संस्करण का प्रकाशन भाजपा में मोदीजी के विरोधी गुट द्वारा करवाया जा रहा है। मोदीजी उस समय वहां मुख्यमंत्री थे। कहना होगा कि इस तरह की अफवाहों के चलते रमेशजी ने गुजरात में भी एक लम्बे समय तक सत्ता की नाराजगी और वित्तीय नुकसान को सहा।

रमेशजी भाषाई पत्रकारिता में साहस की एक अद्भुत मिसाल थे। ऐसी मिसाल कि जिसने तमाम सफलताओं के बावजूद किसी भी तरह के अहंकार को अपनी सहज और सरल छवि पर हावी नहीं होने दिया। रमेशजी को श्रेय जाता है कि देश के अलग-अलग राज्यों से भास्कर के संस्करणों की शुरुआत करके न सिर्फ उन्हें सफल बनाया, भाषाई पत्रकारिता को अंग्रेजी के मुकाबले सम्मान का स्थान प्राप्त करवाया। रमेशजी का योगदान सिर्फ दैनिक भास्कर तक ही सीमित नहीं था, वे कई सामाजिक, शैक्षणिक और धार्मिक संस्थाओं के साथ तन-मन-धन से जुड़े हुए थे।वे उन्हें हर प्रकार की मदद करते रहते थे। रमेशजी की अनुपस्थिति से अब देश भर के लाखों लोग अपने-आपको अकेला महसूस करने वाले हैं।

साभार –http://samachar4media.com/ से

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार