“शब्दों की यात्रा या उनका चलना मनुष्यों के चलने या उनकी यात्रा से भिन्न होता है। मनुष्य यदि एक स्थान से चलकर दूसरे स्थान पर जाता है, तो पहले स्थान पर उसे हम नहीं देख सकते, किन्तु शब्द एक स्थान से दूसरे, दूसरे से तीसरे और इसी प्रकार और भी कई स्थानों पर जा सकते हैं, और वे हर स्थान पर देखे जा सकते हैं। अंग्रेज़ी के बहुत से शब्द भारत की भाषाओं में भी प्रचलित हैं।”
विश्व हिन्दी दिवस पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, सुप्रसिद्ध भाषाविज्ञानी भोलानाथ तिवारी की एक अनूठी कृति ‘शब्दों का जीवन’ का एक अंश। इस पुस्तक में शब्दों के जन्म, निर्माण, अर्थ, ध्वनि परिवर्तन और आदान-प्रदान आदि से सम्बन्धित भाषावैज्ञानिक तथ्यों को ललित निबन्धों के शिल्प में पेश किया गया है। अत्यन्त मनोरंजक भाषा-शैली में रची गई इस कृति में शब्दों को मनुष्य की तरह ही जन्म लेते, मरते, उलटते-पलटते और उठते-बैठते दिखाया है।
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शब्द चलते हैं
मनुष्य चलता है तो शब्द भी चलते हैं, किन्तु शब्दों के चलने के दो अर्थ होते हैं। एक तो चलने का अर्थ है ‘प्रचलित होना’। कहा जाता है—अमुक शब्द अब नहीं चलता। दूसरा अर्थ होता है ‘आदमी के चलने’ की तरह एक स्थान या देश से दूसरे स्थान पर जाना या यात्रा करना। यहाँ ‘शब्द चलते हैं’ का दूसरा अर्थ ही लिया जा रहा है। शब्दों की यात्रा या उनका चलना मनुष्यों के चलने या उनकी यात्रा से भिन्न होता है। मनुष्य यदि एक स्थान से चलकर दूसरे स्थान पर जाता है, तो पहले स्थान पर उसे हम नहीं देख सकते, किन्तु शब्द एक स्थान से दूसरे, दूसरे से तीसरे और इसी प्रकार और भी कई स्थानों पर जा सकते हैं, और वे हर स्थान पर देखे जा सकते हैं। अंग्रेज़ी के बहुत से शब्द भारत की भाषाओं में भी प्रचलित हैं, पर इसका अर्थ यह नहीं कि यदि वे वहाँ से चलकर आए और यहाँ उपनिवेश बनाकर बस गए तो इंग्लैंड से उनका अस्तित्व ही मिट गया। इस दृष्टि से ब्रह्म की बराबरी करते हुए शब्द सर्वव्यापक हो सकते हैं।
कुछ शब्दों की यात्राएँ यहाँ देखी जा सकती हैं :
अफ़ीम
मूलतः यह शब्द यूनानी है जहाँ इसका रूप है ‘ओपियन’। इसका मूल अर्थ है ‘पोस्ते का रस’। अफ़ीम सबसे पहले कदाचित् यूनान में ही बनी। यूनानी भाषा से यह शब्द लैटिन में पहुँचा और वहाँ इसका रूप हो गया ‘ओपिअम’। वहाँ से फ़्रांसीसी, अंग्रेज़ी, जर्मन आदि सभी यूरोपीय भाषाओं में यह इसी या कुछ भिन्न रूप में प्रविष्ट हो गया। यूनान से इसने अरब की यात्रा की और वहाँ यह ‘अफ़यून’ बन गया। वहाँ से ईरान होते यह भारत पहुँचा तो भारतीय पंडितों ने ‘अहिफेन’ (सर्प का फेन) तथा ‘अफेन’ रूप में इसे संस्कृत पोशाक पहना दी। यही शब्द हिन्दी में ‘अफ़ीम’, गुजराती में ‘अफीण’, मराठी में ‘अफ़ीम’, ‘अफीण’, ‘अफू’ तथा नेपाली में ‘अफिम’ आदि रूपों में मिलता है। चीनी लोग अफ़ीम के बड़े शौकीन रहे हैं, अतः यह शब्द भला वहाँ क्यों न पहुँचता? चीनी में यह ‘अ-फु-यंग’ रूप में मिलता है।
शक्कर
‘शक्कर’ का आदिस्थान भारत है और इसके लिए अपना पुराना संस्कृत शब्द है ‘शर्करा’। प्राकृतों में आकर ‘शर्करा’ का ‘सक्कर’ बना, किन्तु यही ‘शर्करा’ फ़ारसी में जाकर ‘शकर’ तथा अरबी में ‘सुक्कर’ बन गई। अरबी से इस शब्द ने पूरे यूरोप की यात्रा की जहाँ विभिन्न भाषाओं में, विभिन्न रूपों में यह मिलता है। उदाहरणार्थ लैटिन Zuccarum, इटैलियन Zucchero, फ़्रांसीसी Sucre, Cucre, अंग्रेज़ी Secreen, Sugar, jaggary, रूसी ‘साखर’ आदि। इस शब्द ने पूरे भारत की भी यात्रा की है : कश्मीरी ‘शेकर’, गुजराती ‘साकर’, मराठी ‘साखर’, सिन्धी ‘हकुरु’ आदि।
खाँड़
यह भी मूलत: भारतीय शब्द है। संस्कृत ‘खंड’ इसका मूल है। इसने भी पूरे भारत की यात्रा की है : पालि ‘खंडो’, प्राकृत ‘खंडा’, बंगला ‘खाँड’, ओडिया ‘खडा’, हिन्दी ‘खाँड़’, सिन्धी ‘खंडु’, गुजराती-मराठी ‘खाँड’ आदि। यह शब्द भारत के बाहर भी गया : सिंहली ‘कड’, अरबी-फ़ारसी ‘क़न्द’ (भारतीय मिठाई कलाकन्द में कन्द यही शब्द है), अंग्रेज़ी candy आदि।
हिन्द
मूलतः यह शब्द संस्कृत का सिन्धु है और इसका मूल अर्थ बड़ी नदी या समुद्र है। सिन्धु नदी बड़ी थी, अत: उसे सिन्ध नाम दिया गया। उसी आधार पर आसपास का क्षेत्र भी सिन्ध या सिन्धु कहलाया। यह शब्द ईरान पहुँचा तो स के ह में परिवर्तन से यह ‘हिन्दु’ या हिन्द हो गया। यह ‘हिन्द’ धीरे-धीरे पूरे भारत का वाचक हो गया। हिन्द’ में फ़ारसी के ईक प्रत्यय के लगने से ‘हिन्दीक’ बना। यही हिन्दीक यूनान पहुँचा तो ह ध्वनि के लोप से इन्दिका शब्द बना जिसका अर्थ हिन्द या भारत है। यही लैटिन में इन्दिया तथा आधुनिक यूरोपीय भाषाओं में इंडिया और इन्दिया आदि रूपों में मिलता है। चीनी साहित्य में प्रयुक्त इन्तुको इन्तु तथा शिन्तु भी यही है। कहने की आवश्यकता नहीं कि ईरानी शब्द हिन्द और हिन्दु (स्तान) वहाँ से लौटकर फिर भारत में भी आए और यहाँ के विभिन्न प्रदेशों की भाषाओं में कई रूपों में विद्यमान हैं।
गंगा
आज का प्रसिद्ध गंगा (गंगा नदी का नाम) शब्द हिन्दी में संस्कृत से आया माना जाता है। पाणिनी के सूत्रों के आधार पर साधकर इसे शुद्ध संस्कृत शब्द कहा भी जा सकता है। पर यथार्थतः यह शब्द चीनी-परिवार का है और इसका अर्थ पानी है। उधर की यांगट्सीक्यांग, मीक्यांग तथा सीक्यांग आदि नदियों के नामों में क्यांग शब्द यही ‘गांग’ या ‘गंगा’ है। भारत में भी यह गंगा पहले पानी का ही वाचक था। मराठी में तो अब भी गंगा का अर्थ पानी होता है। यहाँ गंगा के अतिरिक्त राम गंगा पाताल गंगा आदि नाम भी उस पुरानी बात की पुष्टि करते हैं। भारत में प्राचीनतम जाति चीन से होकर ही आई थी, अतः यह शब्द उनके साथ यहाँ चला आया था।
खाट
आज का हिन्दी का विद्यार्थी जब अंग्रेज़ी पढ़ना आरम्भ करता है तो उसे रटाया जाता है सी—ओ—टी ‘कॉट’ (cot)—कॉट माने ‘चारपाई’। उसे शायद नहीं पता कि उसकी हिन्दी का ही अत्यन्त प्रचलित शब्द ‘खाट’ यात्रा करता-करता इंग्लैंड पहुँचा और वहाँ घिस-घिसाकर ‘कॉट’ बनकर अंग्रेज़ी भाषा में घर कर गया और इस प्रकार आज वह अपने ही ‘खाट’ शब्द को कॉट बनाकर रट रहा है। यह कुछ वैसी ही बात है जैसे कस्तूरी मृग उस कस्तूरी की सुगन्धि के लिए, जो उसकी अपनी है (उसी के शरीर में है), इधर-उधर दौड़ता-फिरता है।
शब्दों का यह चलना या उनकी यात्रा भाषाओं को बहुत प्रभावित करती है। हिन्दी में लगभग 2500 अरबी शब्द, लगभग 3500 फ़ारसी शब्द, लगभग 3000 अंग्रेज़ी शब्द, लगभग 100 पुर्तगाली शब्द, 100 से ऊपर पश्तो शब्द तथा लगभग 125 तुर्की शब्द इसी प्रकार चलकर आए हैं, जिनका इस समय हिन्दी में धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है। इन्होंने हिन्दी अभिव्यक्ति को काफ़ी प्रभावित किया है। अंग्रेज़ी तथा जर्मन में विदेशी शब्दों की संख्या लगभग 15-15 हज़ार है।
शब्दों की इस प्रकार की यात्राएँ राजनीतिक, व्यापारिक या सांस्कृतिक आदान-प्रदान में होती हैं, और इस प्रकार ये चलते-फिरते शब्द विश्व को एक सूत्र में बाँधने की दिशा में अनादिकाल से प्रयत्नशील हैं—और शायद सदा रहेंगे।
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साभार- https://rajkamalprakashan.com/blog