भोपाल। ‘इस जीवन का मात्र एक ही सत्य है और वो है मृत्यु। जब इस बात को हम जानते ही हैं तो इंसान मौत से डरता क्यों हैं? जीवन की अटल सच्चाई से भयभीत होना वर्तमान खुशियों को बाधित करता है, इसलिए किसी भी प्रकार का डर नहीं रखना चाहिए।” ये उपदेश भले ही आज से हजारों साल पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिए थे, लेकिन आज भी इनकी सार्थकता बरकरार है। गीतोपदेश की इसी सार्थकता को भगवान कृष्ण के रूप में राजस्थान के अलवर से आए मुस्लिम परिवार के युवक शमसाद दर्शकों को रूबरू कराते है, वहीं ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत” का संदेश भी देते हैं।
जी हां, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में चल रहे राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव में शिरकत कर रहा अलग-अलग रूप धारण करने वाला राजस्थान का एक मुस्लिम परिवार सांप्रदायिक सद्भाव की बानगी पेश कर रहा है। बहरूपिया कहलाने वाले मुस्लिम समुदाय के एक ही परिवार के पांच सदस्य महोत्सव में हिंदू देवताओं का न केवल रूप धरते है, बल्कि भगवान के उपदेशों को भी संवादों के जरिए मुंह जुबानी संप्रेषित करते हैं।
भगवान कृष्ण का वेष धारण करने वाले शमसाद ने बताया कि वे कृष्ण का किरदार पिछले सात सालों से निभाते चले आ रहे है। यह हमारा खानदानी पेशा और कला है। हमारी इस कला में हमारा धर्म बाधा नहीं बना। यह काम हम पीढ़ियों से करते आ रहे हैं।
अकबर का रूप धरने वाले बुजुर्ग सुबराती बताते है कि सात पीढ़ियों से हमारे बुजुर्ग बहरूपिया बनकर जीवन यापन करते आए है। परिवार के सदस्य हिंदू देवताओं के चरित्र के अलावा दूसरे किरदार भी निभाते है। एतिहासिक चरित्रों के अलावा अब आधुनिक किरदारों को भी अपना रहे है। महोत्सव में हमारे परिवार के पांच पुरुष सदस्य भाग ले रहे हैं। हमें तरह-तरह के किरदारों का रूप धरने के लिए दो घंटे का समय लगता है।
साभार- दैनिक नईदुनिया से