महर्षि यास्ककृत निरुक्त की वैज्ञानिक व्याख्या
सभी वेदभक्त महानुभावों को सानन्द सूचित किया जाता है कि ‘वेदविज्ञान-आलोक:’ ग्रन्थ (जिस पर देश-विदेश से निरन्तर आशा से अधिक आत्मविश्वास बढ़ाने वाली प्रतिक्रियाएँ मिलती रहती हैं) की अपार सफलता के पश्चात् महर्षि यास्ककृत निरुक्त शास्त्र, जो वेद को समझने हेतु ब्राह्मण ग्रन्थों के पश्चात् महत्त्वपूर्ण आधार ग्रन्थ है, का वैज्ञानिक भाष्य (वेदार्थ-विज्ञानम्) परमगुरु परब्रह्म परमात्मा की अपार कृपा से कल मार्गशीर्ष सप्तमी विक्रम सम्वत् २०८० (04-12-2023) को 14वें अध्याय पर्यन्त समाप्त हुआ। सम्भवतः अब तक किसी भी भाष्यकार ने सम्पूर्ण निरुक्त का भाष्य नहीं किया। अनेक भाष्यकारों ने 13वें व 14वें अध्याय का भाष्य नहीं किया, तो कुछ भाष्यकारों ने 14वें अध्याय को असंगत, खण्डित व कठिन बताकर भाष्य नहीं किया, तो कुछ ने 14वें अध्याय के कुछ खण्डों वा प्रसंगों, वाक्यों वा पदों को क्लिष्ट व अस्पष्ट बताकर भाष्य नहीं किया। तद्यपि जो भी भाष्य आज संसार में उपलब्ध हैं, वे वेद की गरिमा को मिटाने वाले ही हैं, वेद व ऋषियों के महान् ज्ञान-विज्ञान का दिग्दर्शन तो किसी भाष्य से नहीं होता।
ऐसे अन्धकार में ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ वैदिक व आर्ष विज्ञान का ऐसा प्रकाश करेगा, जिससे संसार के सभी वैदिक व आर्ष ग्रन्थों के अध्यापक व अध्येताओं के साथ विश्व के वर्तमान भौतिक वैज्ञानिकों को अनुसन्धान का नूतन मार्ग मिलेगा। आज भौतिकी के मौलिक अनुसंधान के क्षेत्र में विराम सा आ गया है तथा वैदिक ग्रन्थ मात्र कथाओं, प्रवचनों व कर्मकाण्ड मात्र तक ही सीमित कर दिए गए हैं। ऐसी स्थिति में इन ग्रन्थों के अध्येता गुरुकुल के ब्रह्मचारी एवं ब्रह्मचारिणियाँ संसार के वैज्ञानिकों के लिए मार्गदर्शक बन सकेंगे तथा वैदिक गुरुकुल वैज्ञानिकों के लिए तीर्थ बन सकेंगे, ऐसी मुझे आशा है। इसके साथ ही वेदपाठ की सनातन परम्परा विश्व के लिए जिज्ञासा का विषय बनेगी।
यह ग्रन्थ लगभग दो सहस्र पृष्ठों का होगा। इसका नाम वेदार्थ-विज्ञानम् होगा। अभी इसके सम्पादन का कार्य चल रहा है। इसके साथ भौतिक विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं अनेक विषयों के गहन विचारक डॉ. भूप सिंह जी के ग्रन्थ ‘वैदिक संस्कृति की वैज्ञानिकता’ का सम्पादन कार्य भी चल रहा है। यह अद्भुत ग्रन्थ लगभग 600-700 पृष्ठों का होगा। यह ग्रन्थ सभी नास्तिकों व देशविरोधी लोगों को सन्मार्ग पर लाने के साथ कथित आस्तिकों व राष्ट्रभक्तों को वास्तविक आस्तिकता व राष्ट्रभक्ति का परिचय कराएगा एवं विज्ञान प्रेमी युवकों को वेदमार्ग पर लाने में बहुत ही सहायक होगा।
इन दो ग्रन्थों के साथ ही मेरा एक और ग्रन्थ ‘वैदिक रश्मि विज्ञानम्’ भी शीघ्र आने वाला है, जो ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ ग्रन्थ का आधार ग्रन्थ होगा, जो संसार के वैज्ञानिकों के लिए महान् मार्गदर्शन का कार्य करेगा एवं विश्वभर के वेदाभिमानियों में महान् आत्मसम्मान का भाव पैदा करने के साथ-साथ आर्यावर्त (भारतवर्ष) को पुनः जगद्गुरु बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर सिद्ध होगा।
इस कार्य के लिए मैं अपने न्यास परिवार, विश्वभर में व्याप्त वैदिक भौतिकी परिवार के सभी सदस्यों एवं सभी दानदाताओं का हार्दिक धन्यवाद व्यक्त करता हूँ, जिनके सहयोग व ईश्वरकृपा से ही यह असम्भव सा कार्य सम्भव हुआ है।
(लेखक विभिन्न विषयों पर https://hindimedia.in के लिए लिखते रहते हैं।)