संकल्प से सृष्टि का श्रृंगार होगा,
नव-चेतन का मार्ग प्रशस्त होगा,
नव-ऊर्जा का आलोक प्रस्फुटित होगा,
नव-वर्ष में नव-वतन का उदय होगा।
आंतक मुक्त कश्मीर होगा,
सियासत के नीड़ों से भ्रष्टाचार का सफाया होगा,
दागी-गुंडों का फिर न नामोनिशां होगा,
नव-वर्ष में नव-वतन का उदय होगा।
नए साल की दस्तक मन में नए उत्साह का संचार करती है। जब कैलेंडर बदलता है तो हम सभी अपने जीवन में एक सकारात्मक बदलाव की उम्मीद करते हैं। जिन सपनों व संकल्पों को हम बीते साल में पूरा नहीं कर पाए, उन्हें आने वाले समय में पूरा होने की उम्मीद रखते हैं। हम सभी नए साल पर कुछ संकल्प लेते हैं। कवित्री शिखा अग्रवाल ने इस कविता में इन सभी को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है नव वर्ष पर अपनी कविता ” संकल्प” में। आगे वह संकल्पों को यूं बयां करती हैं…..
बलात्कारियों का खात्मा होगा,
दहेज प्रथा का जड़ उन्मूलन होगा,
टका मंडीं में फिर न दुल्हन का व्यापार होगा,
नव-वर्ष में नव-वतन का उदय होगा।
ऑन लाइन काव्य सृजन मंच द्वारा समय-समय पर काव्य सृजन में सृजनात्मक विकास की दृष्टि से कई प्रतियोगिताएं कराई जाती हैं। विख्यात कवि दुष्यंत जी की प्रसिद्ध कविता की दो पंक्तियां दी गई थी जिसे अपने सृजन कौशल से आगे बढ़ाना था। इस संदर्भ में देखिए कवियित्री की कल्पना का सृजन……..
एक जंगल है तेरी आंखों में
मैं जहां राह भूल जाता हूं
तू किसी रेल सी गुजरती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूं…!
इक समंदर है तेरे दिल में
मैं जहां प्रेम का किनारा भूल जाता हूं
तू किसी शिकारे सी गुजरती है
मैं किसी लहर सा हिलौरें मारता हूं…!
इक सुर्ख गुलाब है तेरे गेसुओं में
मैं जहां हर सुगन्धी भूल जाता हूं
तू किसी नजारे सी गुजरती है
मैं किसी प्रेमी सा महकता रहता हूं…!
सामाजिक, पारिवारिक, नारी सशक्तिकरण, आदिवासियों, मजदूरों, प्रकृति, देशप्रेम आदि आसपास परिवेश के अनेक प्रसंगों पर कविता लिखने वाली रचनाकार शिखा अग्रवाल हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में गद्य और पद्य दोनों विधाओं में कविताएं और विभिन्न सामाजिक संदेश परक आलेख लिखती हैं। कविताओं में कहीं कहीं उर्दू का प्रयोग आवश्यकता के अनुसार किया गया है। इनकी कविताओं में विभिन्न रसों का समावेश दिखाई देता हैं। रचनाएं मनोरंजन करती हैं, समाज को जागृत करती हैं और संदेश प्रधान हैं। बाल कविताओं की भाषा शैली अत्यंत सहज और सरल है। अंग्रेजी की की कविताएं गहरे अर्थ और भावनात्मक पुट लिए हैं। अपने स्तर पर शोध कर विभिन्न विषयों पर एकल और साझा रूप से पुस्तकें लिखी हैं।
इनकी 45 कावितों का संग्रह ” मन दर्पण के प्रतिबिंब ” राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के आर्थिक अनुदान सहयोग से प्रकाशित हुआ है। इनके कविता संग्रह पर कोटा के प्रसिद्ध कथाकार और समीक्षक विजय जोशी कहते हैं, “सृजन सन्दर्भों को समर्पित कवयित्री शिखा अग्रवाल की कविताएँ अपने समय के स्पन्दन को ध्वनित करती हैं।’ इसकी भूमिका जोशी ने लिखते हुए उनकी नवीनतम पुस्तक ” अनुभूतियों के पथ पर ” में भी काव्य संग्रह की समीक्षा को स्थान दिया है।
इनकी कविताओं में अनेक विषयों को लिया गया है। “आज थोड़ा धुंआ” कविता में सपनों के धूमिल होते हुए सपनों का संदेश, “बेमौसम बरसात में” विरह के आंसू की व्यथा, “तलाश” में मुट्ठीभर आनंद की तलाश का संदेश, “फूल की भूल में” फूल के जर्जर होते अस्तित्व की व्यथा, “गुरूर” में मानव के अहंकार की आत्मकथा, “आंसू” में शहादत पर बहने वाले आंसुओं की दास्तां,”फर्श से अर्श” कविता में मानव मन की अनगिनत आकांक्षाओं का तानाबाना, “कारण” में एक दूसरे की रचनाओं को प्रोत्साहन न देने के पीछे बलवती होती ईर्ष्या , “अप्प दीपोभव” में महात्मा बुद्ध के प्रति समर्पण का भाव, “परख” में प्रेमिका के प्रेमी के पति इंतजार की परीक्षा, “शहादत” में भारत की आज़ादी के लिए दिए गए बलिदान की दास्तां, “चांद की दास्तां” में चंद्रमा की खूबसूरती की इबारत, “बेबसी” में एक गरीब महरी की मजबूरी, “एक थी चिड़िया” में उम्र की बेबसी, “सहारा” में सर्द रात में एक मूंगफली वाले की सुलगता आत्मबल , “मजदूर नहीं मजबूर” में मजदूर की समाज में शोचनीय दशा, “जिंदगी तुझ से कहां जी भरता है” में जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण, “शमशान की शान” में शमशान के ओजस्वी रूप का बयान,”पिता” में पिता का स्थान ,”अनछुए दरख़्त”में प्रकृति की सुंदरता का चित्रण, “थोड़ा थोड़ा” में जीवन में संतुष्टि का महत्व, “दर्द ए जख्म” में जख्म की तड़प, “मेले” में भारतीय संस्कृति में मेलों का महत्व, “नुक्स” में मानव का दूसरों में कमी निकलने का प्राकृतिक गुण, “शम्मे वतन में” आज़ादी के लिए महान क्रांतिकारियों का संघर्ष, “नूरे नजर” में सांप्रदायिक सद्भावना, “करुणा की प्रति मूर्ति” में मां का महत्व,”असुर अनल” में दहेज के खिलाफ आवाज़, “रिमझिम बारिश” में बचपन के भोलेपन की बारिश और “अर्पण समर्पण” में गुरु शिष्य परंपरा की ज्वलंत मशाल जैसे विषयों और प्रसंगों को छू कर समाज को संदेश देने की कोशिश की गई है।
बड़ी और संदेश प्रधान कविताओं के साथ – साथ अनेक बाल कविताएं भी लिख कर बच्चों का मनोरंजन किया है। सृजित एक बाल कविता ” भूरा की मां” में छिपे गहरे संदेश की बानगी देखिए……….
भूरा की मां बड़ी तेज थी,
काम बहुत करवाती थी ।
न करने पर डांट बड़ी लगाती थी,
रूठ जाने पर पुचकार भी लेती थी।
सुबह-सवेरे भूरा झाड़ू लगाता,
पतीले में दूध उबलता ।
गंदे बर्तन न मांजने पर,
मां से मार भी बहुत खाता।
मदर्स-डे पर चार भाइयों की बधाई आई,
शहरी सभ्यता उन्हें रास आई ।
उस दिन मां को खांसी बहुत आई,
भूरा दौड़ा-दौड़ा लाया दवाई ।
बधाई की उसे याद न आई ,
मां की पीड़ा जो देखी न गई।
मां की आंख में पानी आ गया,
भूरा जैसा बेटा जो पा लिया।
ऐसी ही अन्य बाल कविताओं में शामिल “परीक्षा की पाठशाला” में परीक्षा की वजह से बच्चों में बढ़ता तनाव, “झूलता घंटा” में बालमन की बैचेनी, “मुंह चिढ़ाता जूता” में पैसे की बचत का महत्व, “बुलबुल का नाच” में पेड़ बचाव, परिंदे बचाव का संदेश, “हरिया की साइकिल” में मंजिल और मेहनत में रिश्ता, “घूमता लट्टू” में टूटती अकड़ का संदेश, “गोल गेंद” में मित्र से बिछड़ने की व्यथा, “पापा जल्दी आ जाना” में पापा के इंतजार में तकती नन्हीं आंखें, “एक बंदर घर के अंदर” में बंदर की शेतानियां, “मेढ़क दादा” में नेकी और सेवा का मोल, “बस्ते का बोझा” में बच्चों के शारीरिक नुकसान,”पीली बोतल”में बोतल फूटने पर बालमन का डर, “पूरी परांठा” में बढ़ती उम्र में छूट गई कुछ चीजें, “हंसता हाथी” में मतवाले हाथी की मस्ती “पतलून वाला दोस्त” में खोया दोस्त पाने की जिद्द ,”अ अनार” में रोज मेहनत करने का सबक, टूटी टोंटी में बूंद बूंद का महत्व, “चोरी के अमरूद” में डंडे की मार से आई शामत, “काला टायर” में दोस्त की हार सहन न कर पाने की बैचेनी, “परचून की दुकान में ” पढ़ाई का महत्व दर्शाया जा कर मनोरंजन पूर्ण लिखा गया है।
अंग्रेजी भाषा में भी इन्होंने कई कविताएं लिखी हैं। बानगी स्वरूप “अ लोनली नाइट” में मन के खालीपन की भावना, “द रेड वाइब्स” में लाल रंग का महत्व, “माय मदर्स परफ्यूम” में मां की स्मृतियां, “फ्लोटिंग वर्ल्ड” में समुंद्र की आंतरिक खुबसूरती, “द फीलिंग ऑफ गेटिंग लॉस्ट इन बुक” में एक पाठक की भावनाएं, “ए घास्टली घोस्ट” में एक भूत के आंसुओं की पीड़ा, “ऑन विंटर” में गरीबों की परेशानियां का वर्णन, “स्टीमी सिप्स” में कॉफी का स्वाद “वेकिंग अप एंड फॉलिंग अस्लीप” में परेशान सपनों की कहानी, “एनलाइटंस सोल” में आत्म को खुश रखने का भाव, “लुसीड लॉन्गिंग्स” में छ बहनों की ख्वाइश, “वननेस” में भावनाओं का उतार चढ़ाव, “डांसिंग बेल्स” में परमात्मा के प्रति समर्पण और “फीलिंग देट एंब्रेस मी” में अनकही भावनाओं को महसूस करना जैसे विषय भावनात्मक रूप से लिखा है।
बाल कविताओं पर बाल काव्य संग्रह ” किलकारी” प्रकाशन की तैयारी में हैं। दिल्ली के ’साहित्य चेतना मंच’ द्वारा उनकी साझा काव्य संग्रह ’रंगरेज रंग जिंदगी के’ में प्रकाशित चार कविताओं के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। इस चौथे संकलन में देश की 26 रचनाकारों की 104 कविताओं को प्रकाशित किया गया है। इनकी अब तक स्वास्थ्य पर लिखी “हेल्थ केयर”, “भीलवाड़ा टेक्सटाइल सिटी”, और अंग्रेजी भाषा में ” इनक्रेडिबल उदयपुर – द बेस्ट हॉलीडे डेस्टिनेशन” पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।
आपने दो अन्य पुस्तकें “विश्व स्तरीय अजमेर” और अंग्रेजी भाषा में “ग्लोबल टू लोकल-वर्ल्ड हेरिटेज लिस्टेड विथ यूनेस्को” साझा रूप से लिखी हैं। हाल ही में फैशन पर अंग्रेजी भाषा में आपकी 7 वीं पुस्तक ’फैशन-एन इंस्टिंक्ट’ प्रकाशित हुई हैं। ये सभी पुस्तकें इनके गहन शोध पर आधारित हैं। विविध विषयों पर अब तक 50 से अधिक आलेख देश के विभिन्न समाचार पत्रों और राष्ट्रीय हिंदी समाचार पोर्टल पर प्रकाशित हुए हैं।
परिचय :
साहित्य सृजन और समाजसेवा में सक्रिय शिखा अग्रवाल का जन्म 1 दिसंबर 1980 को कोटा में पिता डॉ.प्रभात कुमार सिंघल और माता मंजु सिंघल के परिवार में दूसरी संतान के रूप में हुआ। बड़ा भाई सौरभ सिरामिक में आई.आई, टी. इंजीनियर है। आप ने एक वर्ष उदयपुर में और शेष समस्त शिक्षा अंग्रेजी लिटरेचर में स्नातकोत्तर और बी.एड. की शिक्षा कोटा से प्राप्त की। उदयपुर के मीरा कला केंद्र से कत्थक नृत्य में एक वर्ष तक नियमित प्रशिक्षण प्राप्त किया है। कोटा के निजी विद्यालय में स्पोकन इंग्लिश में व्याख्या के रूप में कार्य किया। आप भीलवाड़ा में घर से ही स्पोकन इंग्लिश में कोचिंग करती हैं।
साहित्य सृजन के साथ-साथ विभिन्न संस्थाओं से जुड़ कर समाजसेवा में सक्रिय हैं। आपको कई संस्थाओं द्वारा समय – समय पर पुरस्कृत और सम्मानित किया गया है । आपकी रचनाएं देश की प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं और साझा संकलनों में प्रकाशित होती हैं। काव्य गोष्ठियों में काव्य पाठ करती है। ऑन लाइन भी अनेक मंचों में सक्रिय हैं। आप ढाई वर्ष तक कोटा से प्रकाशित पाक्षिक समाचार पत्र ’टुडे आई’ की उप संपादक रही हैं। वर्तमान में भीलवाड़ा में भारत विकास परिषद की मासिक गृह पत्रिका ’मंजूलिका’ का संपादन कर रही हैं। स्वाध्याय,
लेखन,पर्यटन, फोटोग्राफी, नृत्य आपकी अभिरुचि के विषय हैं।
संपर्क :
1-एफ -18, ओल्ड हाउडिंग बोर्ड,
शास्त्री नगर, भीलवाड़ा (राज.)
———————-
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा