सुप्रीम कोर्ट ने साइबर कानून की विवादित धारा 66ए को रद्द कर दिया है। सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने के मामले पुलिस अब आननफानन गिरफ्तारी नहीं कर सकेगी। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि आईटी एक्ट की धारा 66ए संविधान के अनुच्छेद 19(2) के अनुरूप नहीं है।
उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 19(2) नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता का अधिकारी देती है। सुप्रीम कोर्ट ने ताजा फैसला 66ए समेत कुछ अन्य धाराओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनाया है।
इस फैसले से पहले आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने पर पुलिस किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती थी, जिसकी संवैधानिक वैधता को कई लोगों ने चुनौती दी थी। इस मुद्दे पर सरकार की ओर से तर्क पेश किए जाने के बाद न्यायाधीश जे चेलमेश्वर और न्यायाधीश आरएफ नरीमन की पीठ ने 26 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66A को रद्द करते हुए कहा कि कि ये धारा सीधे तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को झटका है। हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में साफतौर से कहा है कि सोशल साइट पर बेलगाम होकर कुछ नहीं लिखेंगे। कुछ लिखने या पोस्ट करने से पहले विचार करना जरूरी होगा।
हालांकि सरकार की ओर से सुनवाई के दौरान कोर्ट में तर्क दिया गया था कि अगर ये एक्ट खत्म होता है तो इसके दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाएगी।
आपको बता दें कि इस फैसले से पहले धारा 66ए के तहत सोशल नेटवर्किग साइट्स पर विवादास्पद पोस्ट डालने पर तीन साल तक की कैद का प्रावधान था।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट की ओर से आए इस फैसले के बाद किसी की भी आनन-फानन में गिरफ्तारी नहीं होगी। जिसकी मांग याचिकाकर्ताओं की ओर से की गई थी।