खेल और मनोरंजन जीवन का अहम हिस्सा है। कठिन मेहनत कर जब हम थक जाते हैं तो मनोरंजन ही हमें फिर से नई ऊर्जा प्रदान करता है। पौराणिक काल से ही चौपड़ का खेल प्रचलन में रहा है। भारत में विभिन्न क्षेत्रों में अलग – अलग पारंपरिक खेल और मनोरंजन के साधन और माध्यम प्रचलित रहे हैं।
राजस्थान के हाड़ोती क्षेत्र में भी प्राचीन समय से खेल और मनोरंजन के अनेक साधन मौजूद थे। आजादी से पूर्व हाड़ोती में हाड़ा शासकों का शासन रहा। उस समय के मनोरंजन साधनों को दो वर्ग में देखा जा सकता है। एक शासक परिवार और दूसरा आम जनता जनार्दन। वर्तमान में खेल और मनोरंजन के सभी माध्यम सब के लिए हैं।
चर्चा करें रियासती मनोरंजन की तो उनका सबसे प्रिय साधन शिकार खेलना रहा है। शिकार की तैयारी, जाने के लिए सवारी, मचान बना कर शिकार के लिए इंतजार, मचान से शेर आदि पशुओं का बन्दूक चला कर शिकार करना, कभी – कभी रानी को साथ लेजाना, रानी द्वारा शिकार करना, शेर को मार कर उसे साथ विजय मुद्रा में फोटो लेना, घोड़ों पर हिरण , जंगली सूअर का शिकार आदि प्रसंगों को कोटा और बूंदी चित्र शैलियों में बखूबी देख जा सकता हैं। ये चित्र आप कोटा के राव माधोसिंह संग्रहालय के महलों और बूंदी की चित्रशाला में देख सकते हैं। शिकार कर लाए गए शेर के साथ खींचे गए फोटों का अच्छा संग्रह और पशुओं के सुरक्षित माडल माधोसिंह संग्रहालय में देखे जा सकते हैं। यहीं पर शिकार के काम में लाई जाने वाली बन्दूके भी देखने को मिलती हैं।
गंजफा और चौपड़ खेल के नमूने भी इसी संग्रहालय में देखने को मिलते हैं। गांजफा ताश के पत्तों की तरह खेला जाता था। ये गोल या चौकोर होते थे। इन पर पौराणिक चित्रण देखने को मिलता है। इनके नमूने माधोसिंह संग्रहालय में शीशे की अलमारी में सजे हैं। यह खेल ताश का प्रारंभिक रूप है। घुड़ दौड़, जानवरों की लड़ाई, त्योहारों पर सवारी के आयोजन भी मनोरंजन के पक्ष हैं।
रानियां भी उद्यान में घूमना, फव्वारे के पास बैठ कर आनंद लेना, पक्षियों के साथ वक्त बिताना, नृत्य – संगीत का आनंद, भंवरा या फिरकी घूमना मनोरंजन के साधन हमें भित्ति चित्रों में खूब मिलते हैं।
आमजन के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी प्राचीन मनोरंजन साधन प्रचलन में है। यहां परंपरागत खेलों में ताश, चौपड, शतरंज, गिल्ली, डंडा, ठीकरी, कबड्डी, गोली गेन्द, फटकोल, कुलालकरी, दडीमार, कोड़ामार, चंगापो, अंटीचंटी, आँख-मिचौली, खूँटापद, कुश्ती, भार उठाना, दौड़, सतोलिया, रूमाल झपट्टा, लंगड़ी टांग, कंचे , पतंग उड़ानाआदि खेल जाते थे। पत्थर और डांडियों से खेलने का भी चलन था। फुटबाल और हाकी का भी प्रचलन था। इनमें कुछ खेल बच्चें आज भी खेलते हैं। पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देने के लिए सरकार वर्ष में एक बार ग्रामीण स्तर से लेकर राज्य स्तर तक की प्रतियोगिताएं आयोजित करती हैं। प्रतियोगिताएं हमारे पारंपरिक खेलों का संरक्षण होने में सहायक होती हैं।
वर्तमान में कबड्डी, कुश्ती, फुटबाल, बालिबाल, बास्केटबॉल, लांगटेनिस, और क्रिकेट प्रचलित खेल हैं। इनमें भी क्रिकेट सर्वाधिक लोक प्रिय खेल है। खेल मैदानों से ले कर गली – गली में बच्चें क्रिकेट खेलते दिखाई देते हैं। इंडोर अर्थात कमरों और हाल में खेले जाने वाले खेलों में बैडमिंटन,बिलियर्ड, टेबल टेनिस मुख्य हैं। घरों में ताश, लूडो, सांप सीढी, चौपड़, शतरंज, कैरम आदि प्रमुख खेल प्रचलित हैं। शिक्षण संस्थानों में फुटबॉल, बास्केटबॉल और क्रिकेट प्रमुख हैं। एथलेटिक्स खेलों का प्रचलन प्राचीन समय से ही है।
प्राचीन समय में बच्चों के मनोरंजन साधन खेलों के साथ – साथ पहेलियां बुझाना, दादी – नानी से कहानियां सुनना, अंतराक्षरी करना, चुटकलें सुनना आदि प्रचलित थे। कहानियां सुनना तो लगभग लुप्त प्राय हो गया है।
बच्चों के साथ – साथ बुजुर्गों तक सभी पारंपरिक गीत, संगीत, नाट्य मंचन, रामलीला, पर्व – उत्सवों के आयोजनों, भजन – कीर्तन, धार्मिक कथाओं और भजनों के आयोजन , ट्रांजिस्टर, रेडियों, सिनेमा मनोरंजन के माध्यम हैं। अंचल में पारम्परिक साधनों में भ्रमणशील समूहों द्वारा रामलील, कृष्णलीला, मोरध्वज एवं गोपीचंद के नाटक सम्मिलित हैं। ढाई कड़ी की रामलीला कोटा क्षेत्र में कुछ जगह आज भी देखी जा सकती है। होली एवं सावन-भादों में नृत्य समूह द्वारा लोक नृत्यों की प्रस्तुति की जाती है।
इन सब के साथ – साथ मनोरंजन के आधुनिक साधन टीवी और मोबाइल ने सब को पीछे छोड़ दिया है। पहले लोग धार्मिक किताबें और उपन्यास तथा बच्चें कहानियों की किताबें खूब पढ़ते थे जो काफी पीछे छूट गया हैं। आंख खुलने से लेकर सोने तक मोबाइल हाथ से नहीं छूटता। मोबाइल ने मनोरंजन के क्षेत्र में ऐसी क्रांति ला दी है कि सिनेमा और टीवी से मनोरंजन की निर्भरता में भी कमी आ गई है।बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक मोबाइल से मनोरंजन करते नजर आते हैं। मनोरंजन के प्राचीन प्रचलित स्वरूप अत्यंत सीमित हो कर रह गए हैं। नए मनोरंजन माध्यमों में वाटर पार्क और किड जोन भी शामिल हो गए हैं।
सरकार खेल और खिलाड़ियों को पूरा प्रोत्साहन देती हैं। सरकारी स्तर पर पंचायत स्तर से राज्य स्तर तक विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन कर खेलों के प्रति रुचि जाग्रत करती है। खेल स्टेडियमों की सुविधाओं और प्रशिक्षण के लिए कोच की सेवाएं उपलब्ध कराई गई हैं। हाड़ोती के कई खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हाड़ोती का नाम खेल जगत में रोशन किया है। संगीत, नृत्य, वादन, अभिनय के माध्यम से भी अंचल की प्रतिभाओं ने हाड़ोती का परचम दुनिया में लहराया हैं। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय लोक कलाकार भी पारंपरिक मनोरंजन को साथ समंदर पार ले गए हैं।