सन्दर्भ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी……..
भारतीय धार्मिक साहित्य में यद्यपि सभी अवतारो का वर्णन है किन्तु उनमे श्रीराम और श्रीकृष्ण का वर्णन अति विशद् है।
श्रीकृष्ण का चरित्र नहीं लिखा जा सका, श्रीकृष्ण इतने बहु आयामी है कि कोई भी विद्वान् श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र को नहीं लिख पाया।
सूर के श्याम सदैव बालक है, वात्सल्य रस है सूर के समस्त साहित्य का । भागवत के श्रीकृष्ण सर्वथा अनूठे है और कोई तार्किक मेल नहीं बैठता भागवत के श्रीकृष्ण और महाभारत के श्रीकृष्ण में। गीता के श्रीकृष्ण अप्रतिम गुरु की भूमिका में है, श्रीकृष्ण धुरी है पांडवो की विजय के।
राधा के श्रीकृष्ण या मीरा के कृष्ण स्वयं मूर्तिमान प्रेम है तो उद्धव के कृष्ण परम ज्ञानी है, योगी है। यशोदा के कृष्ण निश्छल बालक है, अबोध।
इतने परस्पर स्वतंत्र और विरोधी व्यक्तित्वों को एक रेखा में करना, पंक्ति बद्ध करना संभव नहीं था और आज भी नहीं है। श्रीराम का चरित्र लिखा जा सका, श्रीराम को मर्यादा में बाँधा जा सकता है जबकि श्रीकृष्ण निर्बंध है, मुक्त है, सर्वथा स्वतंत्र है और इसीलिए श्रीकृष्ण के जीवन को चरित्र नहीं बल्कि लीला कहा गया ।
श्रीकृष्ण गुरु और गोविन्द दोनों है एक साथ, श्रीकृष्ण से बेहतर गुरु कौन हो सकता है ?? जिसने गीता जैसा ज्ञान नृवंश को दिया जो आज भी, 5000 साल से अधिक अवधि के बाद भी,सामयिक है, समीचीन है, प्रायोगिक है।
धन्य है यह भूमि जिसने श्रीकृष्ण को जिया और हम चतुर्वेदी बहुत भाग्यशाली है कि हमारा जन्म स्थान भी मथुरा ही है। श्रीकृष्ण और चतुर्वेदियो का सम्बन्ध नित्य है, अटूट है।
सभी बंधुओ को जन्माष्टमी की शुभ कामनाए, सब मंगलमय हो ।
जय श्री कृष्ण ।