आमतौर पर मैं पुस्तक विमोचन समारोहों में जाने से बचता हूं क्योंकि मेरा मानना है कि ये बेहद नरीस व उबाऊ होते हैं जिनमें कुछ विशिष्ट लोग श्रोताओं को अपने ज्ञान व अनुभव का जुशांदा जबरन पिलाने पर तुल जाते हैं। मगर जब श्रुति ने फोन करके एक पूर्व आईएएस अफसर की पुस्तक विमोचन समारोह में चलने का अनुरोध किया तो मुझे लगा कि वहां जरूर जाना चाहिए क्योंकि उसने बताया था कि यह पुस्तक हरियाणा के तीन लालों के साथ उक्त अफसर के अनुभवों पर आधारित है।
जब इंडिया इंटरनेशनल सेंटर पहुंचा तो वहां मंच पर प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के प्रधान सचिव एसके मिश्रा, पूर्व गृह सचिव व सिक्किम के राज्यपाल बाल्मिकी प्रसाद सिंह व दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव ओमेश सहगल को मौजूद देखकर बहुत अच्छा लगा क्योंकि वे सभी रिटायर हो चुके थे और अब अपने मन की बात खुल कर कह सकते थे। पुस्तक का शीर्षक था ‘लाइफ इन द आईएएस’ माई एनकाउंटर्स विद द श्री लाल्स ऑफ हरियाणा’ मुखपृष्ठ पर तीनो लालों बंसीलाल, देवीलाल व भजनलाल की तस्वीरे छपी हुई थी जो कि राज्य के मुख्यमंत्री हुआ करते थे।
ये तीनों एक साथ अपने कार्यकाल में केंद्र की राजनीति को काफी प्रभावित करते आए थे। पुस्तक के लेखक राम वर्मा, इस राज्य के साथ उसके गठन से ही जुड़े थे। जोधपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेंजी के प्रोफेसर रह चुके राम वर्मा 1964 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चुने गए। पहले उन्हें पंजाब काडर आवंटित किया गया था। जब 1 नवंबर 1966 को हरियाणा अस्तित्व में आया तो वे वहां आने वाले अपने बैच के अकेले आईएएस थे। उन्होंने डायरेक्टर पब्लिक रिलेशंस, टूरिज्म के पद से शुरुआत की।
वे आपातकाल के दौरान मुख्यमंत्री बंसीलाल के गृहनगर भिवानी के डिप्टी कमिश्नर थे। उनके रहते ही वहां का मशहूर घंटाघर गिराया गया। बाद में बंसीलाल को रक्षा मंत्री बना दिया गया था। उन्होंने इस मामले की जांच करने वाले रेड्डी आयोग को झेला। वह भी उस समय जबकि तत्कालीन मुख्यमंत्री व बंसीलाल की खड़ाऊ माने जाने वाले बनारसी गुप्ता ने आयोग के सामने यह कहकर अपने हाथ झाड़ लिए कि यह डीसी तो मेरी बात तक नहीं सुनता था और मुझे भिवानी में आने से रोक देता था।
वे भजनलाल के कार्यकाल में जनसंपर्क व पर्यटन निदेशक रहने के साथ राज्य के परिवहन आयुक्त भी रहे जबकि देवी लाल ने उन्हें बिजली बोर्ड का चेयरमैन बनाया। जब बंसीलाल 1996 में दोबारा मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने राम वर्मा को अपना प्रधान सचिव नियुक्त किया। वे बाद में हरियाणा के मुख्य सचिव बने व अगस्त 2007 में सेवा निवृत हो गए।
हालांकि राम वर्मा ने कहा कि यह पुस्तक हरियाणा से ज्यादा उनके व उनके अपने जीवन के बारे में है। मगर जब मैंने उसे पढ़ना शुरू किया तो पहली बार मे ही करीब आधे (160) पन्ने पढ़ डाले। यह बेहद रोचक व जानकारी से भरी होने के बावजूद एक अच्छा संदर्भग्रंथ भी साबित हो सकती है। एक आईएएस अफसर किस तरह से अपने राजनीतिक आकाओं के साथ काम करता है। कैसे वे उसे कभी शक की नजर से देखते हैं तो कभी उसके काम को सहाते हैं इसका पूरी किताब में विस्तार से विवरण दिया गया है। उन्होंने बहुत ईमानदारी के साथ कुछ ऐसी घटनाओं का भी जिक्र किया है जो कि यह साबित करती है कि दो मुख्यमंत्रियों देवीलाल व भजनलाल की खूबियों और कमियों का उन्होने बेबाकी से खुलासा किया है। जहां बहुचर्चित घंटाघर गिराए जाने के आदेश देने का जिक्र करते है तो वहीं यह भी बताते है कि आपातकाल के दौरान जब संजय गांधी के इशारों पर काम कर रही केंद्र सरकार ने तीन बच्चों से ज्यादा के माता पिता सरकारी कर्मचारियों के लिए नसबंदी करवाना अनिवार्य कर दिया था तो उन्होंने भी अपनी नसबंदी करवाई। हालांकि तीन बेटियों के पिता होने के कारण उनकी पत्नी ऐसा नहीं चाहती थी।
पत्रकारों व शराब का काफी पुराना संबंध है। जब राम वर्मा सूचना एवं जनसपर्क विभाग के निदेशक बने तो उन्होंने 8-10 पत्रकारों को रात्रि भोज पर आमंत्रित किया। तब चंडीगढ़ में इतने ही अखबारों के संवाददाता हुआ करते थे। अगले दिन जब संबंधित कर्मचारी ने उनके सामने बिल रखा तो उसमें 80 पत्रकारों को खाने पर आमंत्रित दिखाया गया था। उन्होंने जब इसकी वजह जाननी चाही तो पता चला कि चूंकि हम लोग सरकारी खर्च से पत्रकारों को शराब नहीं पिला सकते है, इसलिए शुरू से यह परंपरा रही है कि शराब के खर्च को खाने में एडजस्ट किया जाए। उन्होंने बिल पर दस्तखत नहीं किए और इस संबंध में मुख्यमंत्री बंसीलाल से बात की। उन्होंने कहा कि पत्रकारों को शराब क्यों पिलाते हों? वर्माजी ने कहा कि अगर खाने के साथ शराब नहीं पिलाई जाएगी तो फिर कोई भी पत्रकार नहीं आएगा। इस पर बंसीलाल ने कहा कि तुम पत्रकारों को शराब पिलाए जाने की अनुमति लेने के लिए नोट तैयार करो, मेरे पास भेजो। उन्होंने वैसा ही किया और शराब, मांसाहार से दूर रहने वाले मुख्यमंत्री ने उस पर अपनी मंजूरी की मोहर लगा दी।
हरियाणा में पर्यटन की शुरुआत कैसे हुई इसकी कहानी बताते हुए कहते है कि एक बार अचानक करनाल पहुंचने का आदेश मिला। जब वे वहां पहुंचे तो कुछ देर में मुख्यमंत्री बंसीलाल व एसके मिश्रा भी पहुंच गए। उन्होंने एसके मिश्रा से पूछा कि मिश्राजी अगर हम दिल्ली से चंडीगढ जा रहे हो व हमें पेशाब लगे तो हम कहां करेंगे? जवाब मिला कि समाने की झाडियों में। इस पर बंसीलाल ने उनसे कहा कि अगर आपकी पत्नी साथ होती वे कहा निवृत होगी? उनके बारे में कोई भी नहीं सोचता है। इसके बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि करनाल लगभग अधबीच मे है। इसलिए यहां एक रेस्टोरेंट व साफ सुथरे टायलेट बनाओ ताकि लोग निवृत हो सके।
और उसके बाद राज्य में पर्यटन स्थलो की बाढ आ गई। मिश्राजी ने आसपास के गड्डो को झील में बदल दिया। इस झील का नाम तत्कालीन राज्यपाल बीएम चक्रवर्ती के नाम पर चक्रवर्ती लेक रखा गया क्योंकि बंसीलाल उनकी बहुत इज्जत करते थे। जब देवीलाल मुख्यमंत्री बने तो वे उन्हें बेहद नापसंद करते थे और उन्हें बंसी का आदमी कहते थे। हालांकि उन्होंने ही उन्हें बिजली बोर्ड का चेयरमैन बनाते हुए कहा कि मैं जानता हूं कि काम तो वर्मा और मिश्रा करते है पर नाम बंसीलाल का होता है। एक बार तो उन्होने राजस्थान से आए अपने खेत के तरबूज खाने के लिए उन्हे बुला लिया।
भजन लाल बाकी मख्यमंत्रियो की तुलना में अक्खड़ नहीं थे। जब केंद्र सरकार ने नेशनल परमिट बांटने शुरू किए तो भजनलाल ने उन्हें 200 लोगों की सूची पकड़ाते हुए कहा कि ये हमारे समर्थक है। इन्हें परमिट पकड़ा दो। हालांकि वर्मा ने केंद्र सरकार के परिवहन मंत्रालय की सलाह पर योग्यता की सूची में आने वालो को ही परमिट तब दिए जब भजनलाल अमेरिका गए हुए थे।
तब उन्होंने ऐसा करने के पहले मुख्यमंत्री से कहा था कि अगर कोई अदालत में चला गया तो सारा आवंटन रद्द हो जाएगा। इस पर भजनलाल ने कहा कि कम-से-कम मेरे पास अपने समर्थको से यह कहने के लिए तो रह जाएगा कि हमने तो तुम्हें परमिट दे दिया था अब क्या कर सकते हैं। एक बार भजनलाल ने उनसे कहा कि अगर मुझे पता होता कि नेहरू खानदान भी पैसे लेता है तो मैं बहुत पहले ही मुख्यमंत्री बन गया होता।
साभार- https://www.nayaindia.com से