Wednesday, December 25, 2024
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Homeजियो तो ऐसे जियोपरिवेश और संदर्भों को मुखर करते सुमन लता शर्मा के सृजन स्वर

परिवेश और संदर्भों को मुखर करते सुमन लता शर्मा के सृजन स्वर

तुम शीत का उच्छवास हो ,तुम धमनियों का ताप हो
तुम ठिठुरती जिंदगी का हर्ष और उल्लास हो
हो विरह में अगन तुम, प्रेम में आह्लाद हो
ऋतुराज तुम मधुमास हो,संजीवनी अहसास हो
“ऋतुराज”काव्य सृजन में रचनाकार की कल्पना का दरिया बह निकला है। इसका ललित रूप शब्दों में अभिव्यक्त हो उठा है। प्रकृति के अंग-अंग के उल्लास को मणिमाला के मोती की तरह पिरो दिया है। अभिव्यक्ति की सुंदरता अत्यंत मोहक बन पड़ी है। रचना को आगे बढ़ाते हुए लिखती हैं….
तरुवर लता और वल्लरी, बैठे तुम्हारी आस में
नव पात का ओढ़ें  वसन,जब तुम खड़े हो साथ में
हर शाख मद में मस्त हो, झूमे तुम्हारे प्यार में ऋतुराज तुम मधुमास हो,संजीवनी अहसास हो
ओढ़े चुनरिया पीत की ,ज्यों हो शगुन की ताक में
कहीं  दिखती है ये मही, ठाडी खड़ी सी राहमें
सभी के मन मचल रही,फागुनी बयार हो ऋतुराज तुम मधुमास हो ,संजीवनी अहसास हो
प्रकृति सौंदर्य के साथ – साथ स्त्री और बच्चों से संबंधित विषमताओं पर ध्यान आकर्षित कर क्षमताओं से अवगत करवाने के मुख्य ध्येय को लेकर गद्य पद्य दोनों विधाओं में सृजन करने वाली सुमन लता शर्मा ऐसी रचनाकार हैं जो प्रेरक और वर्णात्मक शैली में लिखती हैं। परिस्थिति जन्य विचलन से उठी भाव तरंगों को रचना रूपी सरिता के तट तक पहुंचाती हैं। समाज के किसी दृश्य से उपजे झकझोरने वाले भावों को उजागर करने और समाधान की राह दिखाने की इनकी शैलीगत रचनाओं में सकारात्मकता और दिशा बोध प्रमुख तत्व हैं।
हिंदी और राजस्थानी भाषाओं पर इनका समान अधिकार है। गद्य विधा में कहानी, लघुकथा एवं पत्र लेखन तथा पद्य विधा में कविता ,दोहे एवं गीत लिखना इनकी पसंदीदा विधाएं है। प्रसिद्ध कहानीकार और उपन्यासकार शिवानी से प्रेरित हैं इन्हीं कहानियां। बच्चों की क्षमताऐं, समस्याऐं,प्रकृति ,नारी की विभिन्न भूमिकाऐं, माँ, स्तुति, प्रेम, सामाजिक विषमताएं इनके सृजन के मुख्य विषय हैं, साथ ही लघुकथा ,गीत ,कविताएं स्वयं की सोच और चिंतन के अनुसार भी लिखती हैं। दोनों ही विधाओं की रचनाएं राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में चयनित होना इनके सृजन का प्रभावी पक्ष है।
लेखन का बीजारोपण बचपन में मिले पारिवारिक साहित्यिक माहोल से ही हो गया था। पिता स्व. गौरी शंकर कमलेश राजस्थानी भाषा के रचनाकार थे। कवियों का घर पर आना-जाना, चर्चा, परिचर्चा, गोष्ठियां, इत्यादि देखते-सुनते बचपन बीता। घर में पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं का अंबार रहता था। इसी से  पढ़ने  और लिखने  शौक पैदा हुआ । युवावस्था से ही अपने मन  के भाव कच्चे-पक्के से कागज पर उतरने लगी। इनकी माता राजस्थानी भाषा की लेखिका स्व. कमला कमलेश से इन्हें मार्गदर्शन मिला।  राजकीय सेवा से सेवानिवृत्ति के उपरांत 2017 से इनके लेखन में गति आ गई और पूर्णरूप से सक्रिय हो कर सृजन में लग गई ।
पद्य विधा में लिखे इनके “माया मोह” विषयक दोहों की बानगी देखिए की माया मोह को कितनी प्रभावी अभिव्यक्ति देते हुए आध्यात्म की ओर ले गई हैं…………
धन यौवन  संपन्नता,माया के ही रूप
मुग्ध मनुज को मोहती,कनक कुरंगम धूप ।
माया जग की जेवड़ी,बाँधा सब संसार
प्रभु सुमिरन से काटिये,होवें भव से पार ।
माया मन की नर्तकी,मैं मेरा ही बोल
पर संवेदनहीन मनुज ,मरे चाम का ढोल ।
माया इनकी जामिनी, काम क्रोध मद लोभ
तृषित मन की मरीचिका, परिणति होवे क्षोभ।
मोह ग्रस्त ज्ञानी बने, रागी को बेैराग
माया रक्षक भवाटवी, मीठा बोले काग ।
माया ऐसी रूपसी, तृषा तृप्त ना होय
सरिता से सागर भरे ,पुनि पुनि चाहे तोय।
इनके काव्य सृजन के ख़ज़ाने से ” नयन संवाद” विषयक रचना में  प्रेम की मूक अभिव्यक्ति की कितनी सुंदर संयोजना की है यह रचनाकार की कल्पना को दर्शाती हैं………
 भाव उन्मुक्त हुए ,आँखों से निकल पड़े,
नयनों से नयनो के संवाद हो चले ।
भाव उन्मुक्त हुए ।
होठों पर बंधन था, तटबंध तोड़ चले,
नयनों के पहरों में, नयनों से निकल पड़े।
भाव उन्मुक्त हुए ।
नयनो ने बाँच डाली, प्रीत पाती नयनों में ,
मुखड़े को रक्तिम कर,अनुरागी हो चले ।
भाव उन्मुक्त हुए ।
नयनों से पहुँची जब, नेह धार हृदय में,
सिहरन के साथ-साथ,रोम रोम बोल उठे।
भाव उन्मुक्त हुए ।
अधर स्वयं निशब्द रहे,धड़कन में बोल उठे,
मुखरित हो मौन ने , प्रेम गीत छेड़ दिए।
भाव उन्मुक्त हुए ।
वायु की सर सर से, सरगम के बोल उठे,
नयनों में सपनों के, इंद्रधनुष डोल उठे।
भाव उन्मुक्त हुए,आँखों से निकल पड़े,
नयनों से नयनो के, संवाद हो चले।
गद्य विधा में कहानियां, लघु कथाएं और पाती ( पत्र ) लेखन में प्रवीण रचनाकार ने पाती  परिवार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित की गई पत्र लेखन प्रतियोगिता में पत्र चयन के पश्चात ‘ माँ की पाती बेटी के नाम’ ‘ यादों के गलियारे से’ ‘गौरैया की पुकार’ इत्यादि पुस्तकों में पत्र प्रकाशित हुए। इस दिशा में ये निरंतर सक्रिय हैं।
इनकी संवेदनाओं पर आधारित एक कहानी “संस्कारों के बंधन “का सार देखिए ….
माननीय मूल्यों  का जो रोपण मोहन की गरीब माँ ने  मोहन में किया है वही उसकी पूँजी है, जिसे वह कभी खोना नहीं चाहता। परेशानियों , दुखों और अभावों में बड़ा हुआ मेधावी मोहन अपनी मेहनत और गुरुजनों की विशेष कृपा के सहारे डॉक्टर बन जाता है, किंतु माँ की मृत्यु के कारण अकेला रह जाता है। एक अमीर माता-पिता कोअकेला डाॅक्टर लड़काअपनी इकलौती बेटी के लिए उसे सुयोग्य वर दिखता है। यह सोचकर कि उसे अपने स्तर और जीवन शैली के अनुरूप ढाल लेंगे, विवाह कर देते हैं। यहीं से डॉक्टर मोहन के जीवन में परेशानियां शुरू होती हैं । नई जीवन शैली उसे माँ की शिक्षाओं के साथ समझौते को मजबूर करती है। जिसे वह स्वीकार नहीं कर पाता।
पति-पत्नी दोनों अपने-अपने अनुसार जीने लगते हैं। पति-पत्नी के बीच दूरी बढ़ती जाती है। एक पुत्र ‘मुकुल’ हुआ। डॉक्टर मोहन अपनी माँ से प्राप्त गुणों की पूँजी से उसे समृद्ध करना चाहते हैं।इसलिए पत्नी के द्वारा होने वाले अपमान सहकर भी उसी घर में रहते हैं ,लेकिन अंतत:  समझ जाते हैं कि वह इसमें असफल रहे हैं। माँ की शह से मुकुल माँ की जीवन शैली अपना लेता है। एक उम्मीद जो उन्हें उस घर में रोके हुए थी, टूट जाती है।वह बिना किसी को बताए ,चुपचाप घर छोड़कर वृंदावन में आकर चैरिटेबल अस्पताल में सेवाएं देने लगते हैं। कहानी में मोड़़ तब आता है जब लगभग पाँच वर्ष बाद उनका मित्र ‘मुरली’वृंदावन यात्रा पर जाकर बीमार होता है और उनके अस्पताल में इलाज हेतु पहुंँचता है।
वह बताता है कि डॉक्टर मोहन की पत्नी सुरभि को पक्षाघात हुआ है। बेटे ने प्रेम विवाह कर लिया है। सुरभि घर में उपेक्षित, दुखी और अपमानित है।डॉ. मोहन निर्लिप्तता से सुन कर ,अविचलित ही रहते हैं। लेकिन जब मुरली कहता है कि “सप्तपदी के दौरान तुमने जो वचन सुरभि भाभी को दिए थे क्या वे झूठे थे? क्या तुमने जीवन भर दुख सुख में साथ निभाने का वचन नहीं दिया था?” डॉ. मोहन के संस्कारों के बंधन इतनी मजबूत हैं कि वे सब कटुता भूल अपनी पत्नी का साथ देने हेतु तैयार हो जाते हैं।
इनकी ज्वलंत समस्या “समलैंगिकता ” को आधार बना कर लिखी गई एक लघु कथा की बानगी देखिए जो समलैंगिक संबंधों की कानूनन अवैधता (धारा 377)समाप्ति पर लिखी है । इसमें एक बेरोजगार,आवारा पुत्र जिसकी शादी नहीं हो पा रही थी,अपनी माँ को इस बात की जानकारी देते हुए खुशी जाहिर करता है और अपने पुरुष मित्र को ही घर मे रखने   की स्वीकृति चाहता है।  माँ अपनी लाठी की फटकार से उसे नैतिकता का पाठ पढाती है…… । ये अब तक करीब 80 लघु कथाएं, 30 कहानियां और डेढ़ सौ कविताओं का सृजन कर चुकी हैं।
परिचय :
सुमन लता शर्मा की रचनाओं का विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और ऑन लाइन मंचों पर रचनाओं का प्रकाशन और प्रसारण होता रहा है। साहित्य सृजन के साथ-साथ आप समाज सेवा कार्यों से भी जुड़ी हैं। ये शिक्षा विभाग से सेवा निवृत प्रधानाचार्य हैं। वर्तमान में स्वाध्याय और लेखन में सक्रिय हैं।
संपर्क :
सुमन लता शर्मा
महात्मा गांधी हॉस्पिटल
आजाद पार्क के सामने कोटा देवली रोड.
बूंदी -323001(राजस्थान )
मोबाइल : 94140 00102

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