ऑनलाइन दुनिया में बच्चों की सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं पर साझा पहल करते हुए इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (आईसीपीएफ) और गोवा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (जीएससीपीसीआर) ने पणजी में एक परिचर्चा का आयोजन किया। गोवा में हुई इस तरह की पहली परिचर्चा में बच्चों को ऑनलाइन खतरों से बचाने के उपायों को सशक्त बनाने और साइबर अपराधियों पर लगाम कसने के लिए उन पर निगरानी को मजबूत बनाने के लिए बेहतर रणनीतियां विकसित करने पर विस्तार से चर्चा हुई। बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के मुद्दे पर दिन भर चले इस मंथन में राज्य के जीएससीपीसीआर के अध्यक्ष पीटर फ्लोरियानो बोर्गेस और उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक व आईसीपीएफ के सीईओ ओपी सिंह सहित तमाम अन्य लोग मौजूद थे।
आईसीपीएफ बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा और खास तौर से ऑनलाइन बाल यौन शोषण के खतरों से निपटने के लिए काम करता रहा है। वह खास तौर से बच्चों, अभिभावकों और शिक्षकों के बीच जागरूकता पैदा करने के साथ ही बच्चों को ऑनलाइन यौन शोषण के खतरे से बचाने के लिए वह देश की तमाम कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ भी मिल कर काम कर रहा है। बच्चों के खिलाफ बढ़ते ऑनलाइन खतरों की रोकथाम की तत्काल जरूरत को रेखांकित करते हुए जीएससीपीसीआर के अध्यक्ष पीटर फ्लोरियानो बोर्गेस ने कहा, “मौजूदा डिजिटल दौर में बच्चों के ऑनलाइन यौन उत्पीड़न का शिकार होने का खतरा बढ़ गया है। सीसैम के खतरों के मुकाबले के लिए हमें समग्र रणनीति, सभी संबद्ध पक्षों द्वारा साझा कार्रवाइयों, सभी स्तरों पर जागरूकता का प्रसार और पॉक्सो अधिनियम 2012 पर सख्ती से अमल की जरूरत है। गोवा में चाइल्ड फ्रेंडली बजट अब समय की मांग है।”
मौजूदा हालात के मद्देनजर इन खतरों से निपटने में सभी पक्षों से राय मशविरे की अहमियत पर जोर देते हुए आईसीपीएफ के सीईओ व उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने कहा, “साइबर दुनिया के प्रभावी इस्तेमाल के लिए अपने संसाधनों को सुरक्षित रखते हुए नवोन्मेष को बढ़ावा देने के बीच एक बारीक संतुलन कायम करना आज समय की मांग है। इसे हासिल करने के लिए एक सीमाबद्ध रूपरेखा का होना जरूरी है, हमारा ध्यान इस तरह के अपराधों की रोकथाम और अभियोजन के लिए तकनीक के उपयोग और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के क्षमता निर्माण पर होना चाहिए। इसके साथ ही तमाम हितधारकों की ओर से इस मुद्दे पर जनता को जागरूक करने के लिए समन्वित प्रयासों की भी जरूरत है। ऐसा करने के बाद ही हम अपराधियों में कानून का भय पैदा कर अपने बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकेंगे।”
कोराना महामारी के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं के कारण बच्चों की मोबाइल फोन व लैपटाप तक पहुंच तो हो गई लेकिन साथ ही इससे नए खतरे पैदा हुए हैं। हालिया वर्षों में बच्चों के ऑनलाइन यौन शोषण की घटनाओं में तेजी से इजाफा देखने को मिला है। अप्रैल, 2020 में जारी आईसीपीएफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 100 शहरों में हर महीने औसतन 50 लाख बच्चों से जुड़ी चाइल्ड सेक्स एब्यूज मैटिरियल (सीसैम) सर्च किए गए। इस आंकड़े में डार्क वेब से जुड़ी संख्या शामिल नहीं है। नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लाएटेड चिल्ड्रेन (एनसीएमईसी) के आंकड़ों के अनुसार पिछले 15 वर्षों में सीसैम की ऑनलाइन उपलब्धता में 15 हजार फीसद का इजाफा हुआ है। खास तौर से गोवा में 30 विभिन्न यूआरएल के माध्यम से 43,600 सीसैम सामग्रियां डाउनलोड की गईं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2021 के आंकड़ों के अनुसार बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों के सिर्फ 33 फीसद मामलों में आरोपपत्र दायर हुए। जिन मामलों में आरोपपत्र दायर हुए हैं, उनमें भी 98.3 फीसद मामले अदालतों में लंबित हैं। परिचर्चा के दौरान यह बात भी सामने आई कि चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज मैटीरियल (सीसैम) के मामलों की तह तक जाने में सबसे बड़ी चुनौती सोर्स डाटा को डिकोड करना है जो कि सीडी फार्मेट में होता है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक भारत में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध के मामलों में 400 फीसद की बढ़ोतरी हुई है।
परिचर्चा में अन्य लोगों के अलावा आईसीपीएफ की कार्यकारी निदेशक संपूर्णा बेहुरा, बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकारी निदेशक धनंजय टिंगल, स्कूल ऑफ साइबर सिक्यूरिटी एंड डिजिटल फोरेंसिक्स के डीन एवं नेशनल फोरेंसिक्स साइंस यूनिवर्सिटी कैंपस निदेशक डॉ. नवीन चौधरी और साइबर सेल के पुलिस अधीक्षक अक्षत कौशल मौजूद थे।