जम्मू। जम्मू कश्मीर के सरहदों से कोई समझौता नहीं होना चाहिए। महाराजा हरि सिंह को यदि सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करनी है तो जम्मू-कश्मीर को उसी रूप में स्थापित किया जाये, जिस रूप में महाराजा छोड़ गये थे। उक्त बातें जम्मू काश्मीर पीपल्स फोरम द्वारा आयोजित महाराजा हरि सिंह के जयन्ती समारोह में मुख्य अतिथि डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कही।
दीन दयाल शोध संस्थान में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि डॉ. जितेन्द्र ने कहा, ‘हरि सिंह का नाम इसलिए इतिहास में नहीं आया क्योंकि आजादी के बाद भारत के इतिहास लेखन का काम एक खास परिवार के इशारों पर चल रहा था। उन्होंने कहा कि महाराजा हरि सिंह एक दूरदर्शी सोच के व्यक्तित्व थे। उन्होंने अपने शासन काल में राष्ट्र और समाज के हित में कई ऐतिहासिक फैसले लिए। स्वास्थ्य का क्षेत्र हो या शिक्षा का क्षेत्र, महाराजा द्वारा किये गये कार्य आज भी उनकी जनता के प्रति उनकी न्यायप्रियता को दर्शाता है।
जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र के निदेशक आशुतोष भटनागर ने कहा कि इतिहास ने जितना अन्याय जम्मू कश्मीर के अंतिम महाराजा हरि सिंह के साथ किया उतना शायद ही किसी अन्य शासक के साथ किया हो। इतिहास का पेट भरने के लिए किसी को अपराधी ठहराना जरुरी था, इसके लिये महाराजा हरि सिंह को शिकार बनाया गया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश के तत्कालिक नेतृत्व ने अपने पाप को छुपाने के लिए महाराजा को ही कटघरे में खड़ा किया। जेकेएससी निदेशक ने कहा कि महाराजा की प्रजावत्सल्यता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब उन्होंने सत्ता सम्भाली तो न्याय ही मेरा पहला धर्म है की घोषणा की। महाराजा से जुड़े कई अनेक ऐसे उदाहरण मिलते हैं जो राज्य की जनता और देश के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
आशुतोष भटनागर ने कहा कि महाराजा हरि सिंह दुनिया के बदलते रुख को पहचान रहे थे। शायद इसीलिये 1931 में ही उन्होंने अपने राज्य में लोकतांत्रिक पद्धति स्थापित करने हेतु कदम बढ़ा दिये थे। 1934 में उन्होंने संवैधानिक व्यवस्था लागू की और 1943 में उन्होंने संवैधानिक सुधारों के अगले चरण के लिए रॉयल कमीशन का गठन किया। हालांकि नेशनल कॉफ्रेंस और मुस्लिम कॉफ्रेंस के विरोध के चलते यह प्रयास फलीभूत नहीं हो सका।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाराजा हरि सिंह के पौत्र व एमएलसी अजातशत्रु ने कहा कि हरि सिंह का नाम राज्य के उन शासकों में आता है जिन्होंने अपने प्रगतिशील दृष्टिकोण के कारण राज्य में अनेक सुधार किये। महाराजा हरि सिंह ने राज्य में दलित समाज के लिये मंदिरों के दरवाज़े उस समय खोल दिये थे, जब अन्य रियासतों में इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। अजातशत्रु ने कार्यक्रम में मुख्य अतिथि व केन्द्रीय मन्त्री के रूप में उपस्थित डॉ. जितेन्द्र सिंह से महाराजा हरि सिंह को भारत रत्न देने व जम्मू एयरपोर्ट का नाम महाराजा हरि सिंह के नाम पर रखने की मांग की।
कार्यक्रम का संचालन महेन्द्र मेहता ने किया। कार्यक्रम में मुख्य रूप एमडीएच के चेयरमैन महाशय धर्मपाल, स्वदेश रत्न, राजीव तुली जी सहित की गणमान्य लोग उपस्थित थे।