Sunday, November 17, 2024
spot_img
Homeमीडिया की दुनिया सेथाईलैंड के रहस्यमयी राजा राम दशम का राज्याभिषेक वैदिक पध्दति से हो...

थाईलैंड के रहस्यमयी राजा राम दशम का राज्याभिषेक वैदिक पध्दति से हो रहा है

आल्प्स पर्वतों की गोद में बसा बवेरिया जर्मनी का सबसे दक्षिणवर्ती राज्य है. उसके ऊंचे-ऊंचे पर्वतों और हरी-भरी रमणीय घाटियों के बीच बहुत-सी मनोरम झीलें भी हैं. उन्हीं में से एक है, मात्र 10 हज़ार की जनसंख्या वाले शहर टुत्सिंगन से सटी स्टार्नबेर्गर झील. शहर की इसी झील के तट पर, झाड़ियों वाले एक परकोटे से ढका एक आलीशान मकान है ‘विला स्टोल्बेर्ग’. 2016 में उसे ख़रीदने वाले मालिक के बारे में स्थानीय लोग जितना कम जानते हैं, उतनी ही रंगीन कहानियां सुनाते हैं. ख़रीददारी के समय के जर्मन दलाल का कहना है कि उसकी तो ‘दुनिया भर में ऐसी कई अचल संपत्तियां हैं.’

लोग बताते हैं कि वहां एक ऐसा आदमी रहता है, जो चटकीले पीले रंग के बिना बांहों वाले तंग टी-शर्ट पहने, अक्सर साइकल चलाते दिखता है. टी-शर्ट भी वह इतनी ऊपर चढ़ा लेता है कि रंग-बिरंगे गुदनों (टैटू) से भरा उसका पूरा पेट भी दिखायी पड़ता है. जींस की उसकी ढीली-ढाली पैंट भी कमर से कहीं नीचे तक लटती नज़र आती है. इस रहस्यमय आदमी को लोगों ने बवेरिया की राजधानी म्यूनिख में भी कई बार देखा है. वहां की 44 सेकंड की एक वीडियो क्लिप को फ़ेसबुक पर 4,58,000 बार क्लिक किया गया. थाईलैंड की सरकार को फ़ेसबुक से कहना पड़ा कि इस वीडियो-क्लिप के लिंक और उससे संबंधित टिप्पणियां तुरंत हटायी जायें.

रहस्यमय राजा

कोई माने या न माने, महा वजिरालोंगकोर्न कहलाने वाला यही ग़ैर-राजसी लगता रहस्यमय व्यक्ति थाईलैंड का नया राजा है! पूरे नाम ‘महा वजिरालोंगकोर्न द्रादेबाया वारांकुन’ का अर्थ होगा ‘वज्रधारी इंद्र जैसा सभी महाबली देवताओं का वंशज.’ उसके औपचारिक राज्याभिषेक का छह अप्रैल से चल रहा हिंदू और बौद्ध रीतियों वाला महा-अनुष्ठान छह मई को पूरा होगा. इसी के साथ, थाईलैंड के ‘चक्री’ राजवंश की परंपरा के अनुसार, महा वजिरालोंगकोर्न तब ‘रामा (राम) दशम’ कहलायेंगे.

राजमहल कार्यालय द्वारा एक जनवरी 2019 को घोषित कार्यक्रम के अनुसार, अनुष्ठान का आरंभ शनिवार छह अप्रैल को हुआ. सारे समय राशिफल के आधार पर ज्योतिषियों ने तय किए हैं. उनके बताये के अनुसार दोपहर 11:52 से 12:38 बजे के बीच के शुभकाल में थाईलैंड के सभी 76 प्रदेशों के विभिन्न जलस्रोतों से पानी जमा किया गया. स्थानीय मुख्य मंदिरों के बौद्ध भिक्षुओं ने अपने-अपने क्षेत्र के पानी का शुद्धिकरण किया. आठ से 12अप्रैल के बीच इस पानी के कलश देश भर के प्रमुख बौद्ध मंदिरों में पहुंचाये गये. वहां इस पानी को पवित्र जल बनाया गया.

पवित्र जल

18 अप्रैल को सभी प्रदेशों से आये पवित्र जल को गृहमंत्रालय के भवन में आपस में मिलाया गया. मिश्रित पानी को उसी दिन शाम सवा पांच बजे, एक जुलूस में बैंकॉक के एक सबसे पुराने मंदिर ‘वाट सुथात’ पहुंचा कर वहां अंतिम पवित्रीकरण के लिए रखा गया. अगले दिन इस पवित्रजल को एक बार फिर एक जुलूस के साथ बैंकॉक के पन्नाधारी (इमेरल्ड) बुद्ध भगवान मंदिर में पहुंचाया गया. वहां चार मई को उसका शाही शुद्धिकरण होने के साथ संभवतः गंगाजल भी उसमें मिलाया जायेगा.

22 अप्रैल को तीसरे पहर चार बजे, थाईलैंड के विभिन्न बौद्ध मंदिरों के दस भिक्षुओं ने, पन्नाधारी बुद्ध भगवान मंदिर में पूजा और श्लोकोच्चार के साथ भावी राजकीय फलक (लकड़ी या धातु से बना शाही चिन्ह) को अपना शुभाशीर्वाद दिया. अगले दिन यानी 23 अप्रैल को प्रातः 8:19 बजे, इसी मंदिर में वह स्वर्णिम राजकीय फलक बनाने और उस पर वह राजकीय प्रतीक उत्कीर्ण करने का काम शुरू हुआ, जो नये राजा ‘राम दशम’ की निजी पहचान होगा.

ब्राह्मण पंडित

बैंकॉक के ‘वाट सुथात’ मंदिर के पास के ही ‘देवस्थान’ या ‘ब्राह्मण मंदिर’ कहलाने वाले हिंदू मंदिर के ब्राह्मण पंडितों ने भी इस राजकीय फलक और प्रतीक को अपना शुभाशीर्वाद दिया. उनके पूर्वज तमिलनाडु के रामेश्वरम में रहने वाले ब्राह्मण पंडित थे. वे ही थाईलैंड के ‘चक्री राजवंश’ के सभी राजाओं के महत्वपूर्ण धार्मिंक अनुष्ठानों में पुरोहित का काम करते हैं. 1782 में ‘चक्री’ राजवंश के संस्थापक ‘राम प्रथम’ ने, दो ही वर्षों बाद 1784 में ‘देवस्थान’ मंदिर का निर्माण करवाया था. ‘राम दशम’ बन रहे महा वजिरालोंगकोर्न, दो मई को तीसरे पहर 4:09 बजे, एक समारोह में ‘राम प्रथम’ के स्मारक पर जा कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे.

अगला दिन यानी चार मई एक व्यस्त दिन होगा. सुबह 10:09 बजे ‘चक्रफत फिमर्न’ राजनिवास में नये राजा के शुद्धिकरण का ‘सोंग मुराताभिषेक’ अनुष्ठान शुरू होगा. पहले उनके सिर पर वह पवित्र पानी डाला जायेगा जो पूरे देश में जमा किया गया था. उसके बाद शरीर पर एक लेप लगा कर साफ़ किया जायेगा. लेप हट जाने के बाद वे नौ परतों वाले एक छत्र के नीचे ‘भद्रपिता’ सिंहासन पर बैठेंगे. वहां ‘देवस्थान’ के मुख्य पुरोहित उनके नये आधिकारिक पद वाला राजकीय स्वर्ण-फलक, प्राचीन पवित्र अलंकरण, उनकी प्रभुसत्ता के प्रतीक अस्त्र-शस्त्र आदि उन्हें भेंट करेंगे. अपना राजमुकुट धारण करने के बाद वे अपना प्रथम राजकीय आदेश जारी करेंगे. रत्नजड़ित 66 सेंटीमीटर ऊंचा यह स्वर्ण मुकुट सात किलो भारी है.

‘राम दशम’
4 मई को ही दोपहर 1:19 बजे राजा ‘राम दशम’ के तौर पर वे ‘चक्रफत फिमर्न’ राजनिवास को अपने राजकीय निवास प्रसाद के रूप में स्वीकार करेंगे. य़ह एक प्रकार का गृहप्रवेश समारोह होगा. दोपहर दो बजे वे महल के एक हॉल में अपने राजपरिवार, राजकीय परिषद, मंत्रिमंडल, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, सेना और पुलिस के उच्च पदाधिकारियों, सांसदों, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों आदि महत्वपूर्ण लोगों को ‘दर्शन’ देंगे. उनकी बधाइयां और शुभकामनाएं स्वीकार करेंगे और वहीं से देश की जनता को संबोधित भी करेंगे.

पांच मई का दिन सुबह नौ बजे नये राजा को राजदंड समर्पित करने और राजपरिवार के लोगों को उनकी पदवियां देने के साथ शुरू होगा. शाम साढ़े चार बजे वे एक शाही पालकी में बैठ कर, एक शाही जुलूस के साथ बैंकाक शहर का एक फेरा लगाते हुए आम जनता की बधाइयां स्वीकार करेंगे. राज्याभिषेक समारोह के अंतिम दिन, छह मई को, शाम साढ़े चार बजे, राजा ‘राम दशम’ राजमहल की बाल्कनी पर से एक बार फिर जनता को दर्शन देंगे. एक घंटे बाद वे ‘चक्री महा प्रासाद’ नाम के राजसिंहासन हॉल में एकत्रित विश्व भर के राजदूतों की ओर से उनके देशों की बधाइयां और शुभकामनाएं स्वीकार करेंगे.

सात दशक बाद पहला राज्याभिषेक

थाईलैंड की जनता ने पूरे सात दशकों से कोई राज्याभिषेक नहीं देखा है. ‘चक्री’ राजवंश के राजाओं के क्रम में नये राजा के पिता, भूमिबोल अदुल्यदेय (भूमिबल अतुल्यतेज) नौवें राजा राम (रामा) थे. उनका राज्याभिषेक भी ठीक 70 साल पहले पांच मई 1950 के दिन ही हुआ था. 88 वर्ष की आयु में, 13 अक्टूबर 2016 को, उनका निधन हो गया. उनकी याद में 50 दिनों के शोककाल के बाद, एक दिसंबर 2016 को, महा वजिरालोंगकोर्न नये राजा घोषित किये गये. पूरे एक महीने तक चलने वाले राज्याभिषेक अनुष्ठान के बाद पांच मई से वे थाईलैंड के नये राजा ‘रामा दशम’ कहलायेंगे.

28 जुलाई 1952 को जन्मे महा वजिरालोंगकोर्न का कोई भाई नहीं, केवल दो बहनें हैं, इसलिए वे शुरू से ही राजसिंहासन के उत्तराधिकारी थे. 1972 में उन्हें विधिवत युवराज घोषित भी कर दिया गया. उनकी पढ़ाई-लिखाई इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में हुयी है. ऑस्ट्रेलिया में ही उन्होंने सैनिक शिक्षा भी पायी है. सुरा और सुंदरियों वाली रंगरेलियों के कारण वे चर्चा में भी कुछ कम नहीं रहे हैं. कहा जाता है कि वे अपनी छह विवाहिता पत्नियों और अविवाहित प्रेमिकाओं के कम से कम 13 बच्चों के पिता हैं. यह भी कि वे अपने कुत्ते फू-फू को वायुसेना के जनरल का पद दे रखा है. कई बार वे विदेशी सरकारों को भी नाराज़ कर चुके हैं.

मनमौज़ी युवराज

1987 में जापान की अपनी एक यात्रा के समय युवराज वजिरालोंगकोर्न चाहते थे कि जापान के सम्राट से भेंट के समय उनकी उन दिनों की सहचरी भी उनके साथ रहे. उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गई क्योंकि यह जापान के राजकीय शिष्टाचार नियमों के विरुद्ध होता. समझा जाता है कि इसका बदला लेने के लिए उन्होंने मार्च 1996 में एक सम्मेलन के लिये बैंकाक आए जापानी प्रधानमंत्री के विमान का रास्ता अपने विमान से कुछ समय के लिए रोक दिया. वे एक विमानचालक भी हैं.

युवराज वजिरालोंगकोर्न ने अपने पिता राजा भूमिबोल के जीवनकाल के अंतिम वर्षों में जर्मनी के बवेरिया प्रांत का ‘स्टार्नबेगर्र’ झील वाला विला ख़रीदा थी. 5,600 वर्गमीटर बड़े पार्क वाले इस विला का मूल्य क़रीब चार करोड़ यूरो आंका जाता है. वहां के लोग यही मानते हैं कि युवराज साहब अपनी नयी संगिनी सुतीदा के साथ वहीं रहते थे.

मनचला स्वभाव

सुतीदा पहले एक विमान परिचारिका हुआ करती थीं. 2014 में उन्हें वजिरालोंगकोर्न के अंगरक्षक दस्ते का कमांडर बना दिया गया. कुछ ही समय बाद कर्नल, मेजर जनरल और लेफ्टिनेन्ट जनरल तक का पद दे दिया गया. उन्हें अपने नाम के साथ कुलनाम के तौर पर ‘वजिरालोंगकोर्न’ लिखने की अनुमति और ‘अयुत्थया’ नाम की एक पदवी भी दी गयी. इस पदवी का अर्थ राजकुमारों की ऐसी जीवन-संगिनियां है, जिनके साथ उनका विधिवत विवाह नहीं हुआ है. फिर दो मई को अचानक खबर आई कि उन्होंने सुतीदा से विवाह भी कर लिया है. यानी अब वे थाईलैंड की रानी हो गई हैं.

राजमाता सिरीकित ने अपने इस मनचले पुत्र के बारे में एक बार कहा था, ‘औरतें उसे दिलचस्प पाती हैं और वो औरतों को और अधिक दिलचस्प पाता है.’ इस पारस्परिक दिलचस्पी का ही परिणाम है कि थाईलैंड के नये राजा के 13 बच्चों की पांच मांएं बतायी जाती हैं. तीसरी पत्नी रही श्रीरश्मी सुवादी से उनका 14 साल का एक बेटा है दीपांकोर्न रश्मिज्योती. वही अपने पिता का भावी प्रथम उत्तराधिकारी है. वह फ़िलहाल स्टार्नबेगर्र झील वाले जर्मन शहर टुत्सिंगन के ही एक स्कूल में पढ़ाई कर रहा है.

विश्व का सबसे धनी राजा

थाईलैंड के नये राजा को विश्व का सबसे धनी राजा बताया जा रहा है. उनकी संपत्ति 60 अरब यूरो के बराबर आंकी जाती है. टुत्सिंगन की नगरपालिका के अनुसार वहां उनके विला से संबंधित सभी करों आदि का बिल थाईलैंड का दूतावास चुकाता है. नगरपालिका को अब तक शिकायत का कोई कारण नहीं मिला. थाईलैंड की सरकार पूरा ध्यान रखती है कि राजा या राजघराने के लोगों के बारे में कोई अभद्र या आलोचनात्मक बातें कही या लिखी न जायें. ऐसे लोगों को 15 वर्षों तक जेल की हवा खानी पड़ सकती है.

संभवतः ऐसी ही किसी घटना के कारण, 2014 में युवराज रहे महा वजिरालोंगकोर्न की तीसरी परित्यक्त पत्नी श्रीरश्मि के माता-पिता और भाई-बहनों को जेल में डाल दिया गया. 2015 में उनके अंतरंग लोगों की मंडली के तीन सदस्यों की रहस्यमय ढंग से मृत्यु हो गई.

संविधान में मनपसंद संशोधन

कहा तो यह भी जाता है कि अक्टूबर 2016 में अपने पिता और राजा भूमिबोल के देहांत के बाद युवराज महा वजिरालोंगकोर्न दृश्यपटल से ग़ायब हो गये. कोई नहीं जानता कि थाईलैंड में 2014 से चल रहे सेना के शासन को लेकर उनकी क्या भूमिका रही है. राजपरिवार के पैसे का वे क्या करते हैं. जुलाई 2017 में सैन्य सरकार द्वारा क़ानूनों में संशोधन करवाकर राजघराने की सारी संपत्ति को उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी बना लिया. इससे पहले ‘शाही संपत्ति कार्यालय’ राजघराने की संपत्ति की देखभाल किया करता था.

थाईलैंड एक संवैधानिक राजतंत्र है. लेकिन वहां के नये राजा ने अपने राज्याभिषेक से पहले ही सेना के साथ मिलीभगत करते हुए संविधान में अपनी पसंद के कई संशोधन करवा लिये हैं. भविष्य में पांच नये सरकारी विभाग सीधे उनके आदेश के अधीन होंगे. राजपरिवार और राजमहलों की सुरक्षा तथा उनका प्रबंधन करने वाले विभाग उनमें प्रमुख हैं.

उनके पिता देहांत से पहले जब बीमार थे, तब वे ग़ायब रहे. वजिरालोंगकोर्न तब दिखे जब 2014 में सेना ने निर्वाचित सरकार को हटा कर सत्ता हथिया ली. इन सब कारणों से राजगद्दी पाने के बाद अब उन्हें जनता के दिलों को जीतना और अपनी प्रजा का भी राजा बनना होगा.

साभार- https://satyagrah.scroll.in से

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार