किसी भी कार्यक्रम में अगर कोई मंत्री आए और वह भाषण भी दे तो पहले से ही लगता है कि बोर होने के अलावा कोई चारा नहीं, लेकिन केंद्रीय तकनीकी एवँ प्रोद्योगिकी मंत्री श्री हर्षवर्धन को सुनना निश्चित ही एक दुर्लभ अनुभव है। अपनी बात को संजीदगी, शालीनता और पूरे अधिकार से कहना और उन शब्दों का श्रोताओं पर असर होना इस बात का प्रमाण था कि श्रोताओं ने किसी मंत्री का नहीं बल्कि किसी अनुभवी चिंतक और समाजशास्त्री का भाषण सुना हो।
श्री हर्षवर्धन मुंबई में अंतर्राष्ट्रीय वैश्य महा सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में आए थे, लेकिन उन्होंने अपने जानदार वक्तव्य से पूरे आयोजन को सार्थक कर दिया, अन्य वक्ता जहाँ तथ्यहीन और बेमतलब की बातों पर श्रोताओं का समय जाया करके चले गए वहीं श्री हर्षवर्धन ने मानो श्रोताओं को इन उबाऊ भाषणों से ऊबारकर ताज़गी सी भर दी।
श्री हर्षवर्धन ने कहा कि आपने अपने स्कूली दिनों में कई महापुरुषों के बारे में खूब पढ़ा होगा मगर कबी डॉ. आंबेडकर के बारे में नहीं पड़ा। उन्होंने कहा कि मैं कक्षा 9 में थातो संघ की शाखा में जाता था। 11वीं तक आते आते संघ की शाखा में मिले संस्कारों की वजह से इस देश को समझा और मैने अपने नाम से अपना उपनाम हटा दिया। इसके पीछे मेरी सोच यह थी कि जाति व्यवस्था का विरोध होना चाहिए। हमारे देश की संस्कृति बहुआयामी है और यहाँ हर परिवार में हर सदस्य के अपनी पसंद के देवी-देवता हैं। लेकिन ये हमारी संस्कृति का ही कमाल है कि तमाम विविधताओं के बावजूद हम लोग अपने देश के प्रति समर्पित हैं।
श्री हर्षवर्धन ने वहाँ मौजूद वैश्य समाज के तमाम धनी दिग्गजों के सामने एक सवाल उछाला, हम सब अपने आपको महाराजा अग्रसेन के वंशज बताने में गर्व महसूस करते हैं लेकिन क्या हम ईमानदारी से ये कह सकते हैं कि हम महाराजा अग्रसेन के सिध्दातों का कितना पालन करते हैं। उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता पर भाषण देना आसान है मगर इस पर काम करना बहुत मुशकिल है।
उन्होंने कहा कि बड़ी बड़ी डॉक्टरी और एमबीए की डिग्रीयाँ हासिल करने से बेहतर वो लोग हैं जो अभावों के बीच दूसरों की मदद कर रहे हैं। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बड़ी बड़ी डिग्रीयाँ हासिल करने वाले क्रूरता की हदों को पार करते जा रहे हैं। आए दिन हम सुनते हैं कि कोई डॉक्टर गरीब का इलाज नहीं करता।
उन्होंने दिल्ली के अपने शिक्षा मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री रहने के के दौरान के अनुभव को बाँटते हुए कहा, तब एकसरकारी योजना के तहत कुछ बच्चे अपने से बुजुर्गों को पढ़ाने का काम करते थे। मुझे उन बच्चों से मिलने का सौभाग्य मिला तो उनसे मिलना मेरे जीवन का यादगार अनुभव बन गया। दिल्ली की झुग्गी झोपड़ियों की कई लड़कियाँ जो आठवीं के बाद इसलिए स्कूल नहीं जा पाई कि उनका स्कूल घर से दूर था और उनके माता-पिता मजदूरी करने चले जाते थे, घर में उनके छोटे भाई-बहनों की देखरेख वाला कोई नहीं होता था, तो उनको इनकी देखभाल करने की जिम्मेदारी उठाना पड़ती थी। लेकिन इसके साथ ही वो जो काम करती थी उसे देख-सुनकर मेरा सिर उनके आगे सम्मान से झुक गया। वो लड़कियाँ अपने आसपास के बुजुर्ग लोगों को अक्षरज्ञान कराती थी और दिल लगाकर उन्हें पढ़ाती थी। इसी तरह मेरा परिचय एक साईकिल रिक्षा वाले से भी हुआ, जो अपना रिक्षा चलाने के बाद अपने मोहल्ले में लोगों को पढाता था। श्री हर्षवर्धन ने कहा, इन बच्चों और उस रिक्षावाले जैसे लोग समाज के असली हीरो हैं, वो लोग नहीं जो बड़ी बड़ी डिग्रीयाँ लेकर लोगों को लूटने का कोई मौका नहीं छोड़ते।
श्री हर्षवर्धन ने कहा हमारी जीवन शैली ऐसी हो गई है कि हम अपने पारिवारिक मूल्यों, और सामाजिक दायित्वों से कटते जा रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद ऐसे कई परिवार हैं जो जीवन मूल्यों को बचाए हुए हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली में 32 लोगों का एक परिवार है जिसके सभी सदस्य रात को एक साथ खाना खाते हैं।खाने का मीनू घर की सब बहुएँ मिलकर ही तय करती है।
उन्होंने कहा कि आज समाज या राष्ट्र के लिये कुछ करने के लिए भगत सिंह की तरह फाँसी पर लटकने की जरुरत नहीं, हम छोटे-छोटे काम करके भी समाज के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। उन्होंने बताया की मैं 1985 में पहली बार अमरीका गया तो वहाँ चौंकाने वाला अनुभव हुआ वहाँ एक 80 साल के बुजुर्ग सड़क की सफाई कर रहे थे, मैने उनसे पूछा आप ये कार्य क्यों करते हैं तो उन्होंने कहा, इसकाम की प्रेरणा मुझे स्वामी विवेकानंद से मिली।
इस समारोह में केंद्रीय मंत्री श्री पीयूष गोयल भी शामिल हुए और बगैर किसी औपचारिकता के उन्होंने खुद ही अपने भाषण से कार्यक्रम की शुरुआत कर वैश्य समाज को आश्वासन दिया कि सरकार उनकी समस्याओँ के प्रति गंभीर है।
इस समारोह में राजस्थान के सैकड़ों गाँवों में वाटर हार्वेस्टिंग के जरिए क्रांति कर चुकी श्रीमती अमला रुईया को भी सम्मानित किया गया। श्रीमती रुईया ने बताया कि उन्होंने गाँव के ही लोगों के सहयोग से 8 करोड़ की लागत से 115 गाँवों में 216 चैक डैम बनवाकर बंजर जमीन से गाँव में 470 करोड़ की आमदनी का मार्ग प्रशस्त किया।
समारोह में बाँबे अस्पताल के डॉ. चितलांगिया, टीवी कलाकार शैलेष लोढ़ा, उदयोगपति एवँ युगांडा के मानद कौंसुलेट श्री मधुसूदन अग्रवाल व समाज के अन्य प्रतिभावान लोगों का सम्मान किया गया।
श्री हर्षवर्धन ने कहा जब मैं दिल्ली का स्वास्थ्यमंत्री था तो मेरे कुछ डॉक्टर मित्रों ने मेरा ध्यान पोलियो की बीमारी की ओर आकर्षित किया, और मैने प्रण किया कि इस बीमारी को दिल्ली से ही नहीं बल्कि पूरे देश से जड़-मूल से नष्ट करने की दिशा में काम करुंगा, और नतीजा आज पूरी दुनिया के सामने है।
इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय वैश्य महासंघ के अध्यक्ष श्री राकेश मेहता ने कहा कि गुड़ी पड़वा को वैश्य दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश की कुल आमदनी में वैश्य समाज का योगदान 70 प्रतिशत है।
समारोह में महाराष्ट्र के वित्त राज्य मंत्री केसकर ने भी संबोधित किया।
वैश्य महासंघ के श्री बाबूराम गुप्ता ने कहा कि उन्होंने कहा कि दुनियाभर में 26 करोड़ वैश्य हैं। वैश्य महासंघ देश भर में 20 प्रदेशों के साथ ही दुनिया के 10 देशों में भी सक्रिय है। संघ ने आईएएस की तैयारी करने वाले 80 वैश्य छात्रों को 1 लाख रु. की छात्रवृत्ति प्रदान की, जिसमें से 12 आईएएस में चुने भी गए।
समारोह के अंत में श्री डीसी गुप्ता ने आभार व्यक्त किया।