सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने वेबसाइटों को सरकारी विज्ञापन देने के लिए एक नीति तैयार की है, जिसके तहत एजेंसियों का पैनल बनाने और विज्ञापन दर के मानदंड निर्धारित किए गए हैं, ताकि सरकार की ऑनलाइन पहुंच को कारगर बनाया जा सके।
मंत्रालय की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया कि सरकारी विज्ञापन अब उन वेबसाइट्स को दिए जाएंगे, जिनके यूजर्स की संख्या अधिक हो ताकि विज्ञापन को ज्यादा से ज्यादा देखा जा सके। यह सब विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) की देख रेख में होगा। यानी केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों के विज्ञापन जारी करने के लिए डीएवीपी ही मुख्य एजेंसी होगी।
नियमों के अनुसार, डीएवीपी अपने पैनल में उन वेबसाइटों को शामिल करेगी, जो भारत में संचालित हो रही हों और उनका स्वामित्व अधिकार भारतीय कंपनियों के पास हो। वहीं विदेशी कंपनियों के स्वामित्व वाली वेबसाइट को तब शामिल किया जाएगा, जब उन कंपनियों का शाखा कार्यालय भारत में कम से कम एक साल से पंजीकृत हो और संचालन कर रहा हो।
पॉलिसी नियमों के अनुसार, अब स्वायत्त निकाय और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां अब सीधे ही विज्ञापन जारी कर सकेंगी लेकिन उन्हें डीएवीपी द्वारा निर्धारित दरों और इसके पैनल में शामिल एजेंसियों को ही विज्ञापन देने होंगे।
इस नीति के तहत वेबसाइटों के हिट यानी वेबसाइट के इस्तेमाल को तीन श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी में 50 लाख और उससे ज्यादा लोगों द्वारा हिट की जाने वाली वेबसाइट है जबकि दूसरी श्रेणी में 20 लाख से 50 और तीसरी श्रेणी में 25 हजार से 20 लाख तक के हिट वाली वेबसाइट को रखने की व्यवस्था की गई है।
पॉलिसी के तहत डीएवीपी के पास शामिल होने के लिए वेबसाइटों को तय नियमों में हर महीने अपने यूजर्स की जानकारी देनी होगी, जिसके बाद इसकी गहराई से जांच की जाएगी और भारत में वेबसाइट ट्रैफिक की निगरानी करने वाले किसी अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त तीसरे पक्ष से सत्यापित कराया जाएगा।
नीति के तहत वेबसाइट डीएवीपी द्वारा ऑनलाइन बिलिंग से संबंधित महत्वपूर्ण रिपोर्ट उपलब्ध कराने के लिए काम पर रखे गए किसी तीसरे पक्ष एड सर्वर (3-पीएएस) के जरिए सरकारी विज्ञापन दिखाएगा। इस तरह के हर वेबसाइट के यूजर्स के आंकड़े की हर साल अप्रैल के पहले महीने में समीक्षा की जाएगी।