मुम्बई। वर्ली के नेहरू सेंटर हॉल ऑफ हार्मनी में राजकमल प्रकाशन द्वारा आयोजित ‘किताब उत्सव’ के दूसरे दिन कई महत्वपूर्ण आयोजन हुए। कार्यक्रम में आज गुलज़ार और पीयूष मिश्रा ने शिरकत की। ‘किताब उत्सव’ में लगाई गई पुस्तक प्रदर्शनी में दिनभर पुस्तकप्रेमियों की जमघट लगी रही। इस दौरान पाठकों ने बढ़-चढ़कर पुस्तकों की खरीदारी की। कार्यक्रम की शुरुआत ओपन माइक प्रतियोगिता से हुई। इस सत्र में रमणीक सिंह, वरुण गर्ग, सौरभ जैन, अविशेष झा आदि युवा कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया।
इसके बाद मशहूर अभिनेता-नाटककार पीयूष मिश्रा पाठकों से रूबरू हुए। इस सत्र पाठकों ने उनके हाल में प्रकाशित आत्मकथात्मक उपन्यास ‘तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा’ पर आधारित कई सवाल पूछे। पीयूष मिश्रा ने खुलेमन से उन सवालों का जवाब दिया और पाठकों से किताब और अपने निजी जीवन पर लंबी बातचीत की। इस दौरान पीयूष मिश्रा ने कहा कि “मैंने इस किताब मैं जो कुछ लिखा है वो मेरे जीवन का सच है। मैंने जैसा जीवन जिया है, जो अच्छे-बुरे काम किए हैं वो सब इसमें दर्ज है।” आगे उन्होंने कहा “मैं जो कुछ भी करना चाहता था वो सब मैंने किया है। मैं अपने जीवन से संतुष्ट हूँ और अब आगे का जीवन शांति से हँसी-खुशी जीना चाहता हूँ।”
अगले सत्र में भालचन्द्र नेमाडे के चार उपन्यासों ‘बिढार’, ‘हूल’, ‘जरीला’ और ‘झूल’ के हिंदी संस्करणों के आवरण का लोकार्पण हुआ। इसके बाद अंबरीश मिश्र और जयप्रकाश सावंत ने उनसे परिचर्चा की। इस बातचीत में भालचन्द्र नेमाडे ने कहा कि “लेखन से जुड़े हर व्यक्ति की लेखनी में कोई न कोई खासियत होती है। मराठी भाषा में पहले जो लिखा जा रहा था उस परंपरा से आगे जाकर मैंने अपने लेखन को विस्तार दिया है।” आगे उन्होंने कहा कि “हर जगह की अपनी आर्कियोलॉजी होती है। आज हम जो सब देखते हैं, सिर्फ वो सच नहीं है। सच आज से पचास-सौ साल पहले घटित हुआ था या आगे आने वाले समय में होगा। इनके बीच में जो कुछ होता है, आज हमें वही दिखता है।”
कार्यक्रम के एक अन्य सत्र में ‘भारतीय दलित साहित्य : भावी दिशाएँ’ विषय पर लक्ष्मण गायकवाड, शरण कुमार लिम्बाले और अब्दुल बिस्मिल्लाह से अविनाश दास ने बातचीत की। इस दौरान लक्ष्मण गायकवाड ने कहा कि हमारे साहित्य की भावी दिशा यह होनी चाहिए कि हम अपने लेखन से दलितों के प्रति भेदभाव करने वालों को जवाब दें। इसके लिए सभी को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है। वहीं शरण कुमार लिम्बाले ने कहा कि “जातिवाद ने एक ऐसा माहौल बना दिया गया है कि दलितों को हर जगह भेदभाव का सामना करना पड़ता है।” बातचीत को आगे बढ़ाते हुए अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कहा कि “रचना ही एक रचनाकार का धर्म होता है, उसका कोई और धर्म नहीं होता।” आगे उन्होंने कहा कि “भाषा पर किसी भी धर्म का एकाधिकार नहीं होता। यह दुर्भाग्य है कि हम भाषा को किसी एक धर्म से जोड़ देते हैं।” उन्होंने अपने उपन्यास ‘झीनी-झीनी बीनी चदरिया’ के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि “इसे लिखते हुए मैं खुद एक काशी का जुलाहा बन गया था। वहाँ बुनकरों की बस्ती में रहते हुए मुझे करघों की आवाज में एक अनहद नाद सुनाई देने लगा था।”
कार्यक्रम के आखिरी सत्र में मशहूर फिल्म निर्देशक-गीतकार गुलज़ार की नई किताब ‘जिया जले’ का लोकार्पण हुआ, साथ ही उनकी एक अन्य किताब ‘आस पड़ोस’ के आवरण का लोकार्पण हुआ। ‘जिया जले’ किताब गुलज़ार की नसरीन मुन्नी कबीर के साथ बातचीत पर आधारित है जिसका अनुवाद सुप्रसिद्ध रेडियो उद्घोषक युनूस खान ने किया है। लोकार्पण के बाद सलीम आरिफ़ और युनूस खान ने गुलज़ार के साथ गुफ्तगू की जिसमें गुलज़ार ने नसरीन मुन्नी कबीर के साथ बातचीत के दिनों को याद किया। उन्होंने इस किताब के लिखे जाने की पूरी रचना प्रक्रिया और अनुवाद पर बात की और कई किस्से सुनाए। वहीं युनूस खान ने ‘जिया जले’ के अनुवाद के अपने अनुभव श्रोताओं से साझा किए।
गौरतलब है कि हिन्दी के शीर्षस्थ प्रकाशन के रूप में समादृत राजकमल प्रकाशन अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने पर देश के विभिन्न शहरों में ‘किताब उत्सव’ का आयोजन कर रहा है। इस कड़ी में अब तक भोपाल, बनारस, पटना और चंडीगढ़ में ‘किताब उत्सव’ का सफल आयोजन हो चुका है। मुम्बई इस साहित्यिक यात्रा का गवाह बनने वाला पांचवा शहर है।