पांच सौ डॉलर (करीब तीस हजार रुपए) वेतन, स्वास्थ्य बीमा, आवास एवं मुफ्त भोजन, सरकारी पासपोर्ट और हवाई यात्रा के लिए आने-जाने का किराया। यह वेतन-भत्ते किसी बड़ी कंपनी के कर्मचारी के नहीं बल्कि संगीता रिचर्ड को मई, २०१३ तक मिल रहे थे जब तक वह न्यूयॉर्क में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागडे की घरेलू नौकरानी के तौर पर काम कर रही थी। संगीता अब अमेरिका में कहीं लापता है और भारतीय राजनयिक कम वेतन देने के जुर्म में अमेरिकी कानून के कठघरे में।
मामले की विडंबना ही कहिए कि ४५०० डॉलर प्रतिमाह का वेतन न दे पाने के लिए १९९९ बैच की विदेश सेवा अधिकारी खोबरागडे को गिरफ्तार किया गया। इतनी तनख्वाह भारत की उप महावाणिज्य दूत के तौर पर खुद देवयानी को भी नहीं मिल रही। अंदरखाने भारतीय कूटनीतिक खेमा मानता है कि अगर केवल कागजी दस्तावेजों के आधार पर तौलें तो देवयानी कठघरे में खड़ी हैं। उन्हें तय ९.५ डॉलर प्रतिघंटा की दर से नौकरानी को वेतन न देने के आरोप लगे हैं।
दरअसल, देवयानी ने नौकरानी के वीजा के लिए आवेदन करते वक्त न्यूनतम वेतन की जानकारी दी थी। वहीं, भारतीय राजनयिकों का कहना है कि वीजा आवेदन की सूचनाएं देखने के बाद ही उसे वीजा दिया गया। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक जून, २०१३ में संगीता के देवयानी का घर छोड़कर जाने के बाद भारत ने २४ जून को उसे ढूंढने में मदद भी मांगी थी। यह बात और है कि इस बारे में आज तक भारतीय दूतावास को अमेरिका में मदद हासिल नहीं हुई।
अमेरिका में तैनात रह चुके एक भारतीय के शब्दों में घरेलू नौकरों को मिलने वाली सुविधाओं को केवल वेतन के आधार पर नहीं तौला जा सकता। स्वास्थ्य बीमा, सरकारी खर्च पर हवाई यात्रा और आवास व भोजन समेत कई सुविधाएं उन्हें वेतन के अतिरिक्त हासिल होती हैं जो अमेरिका में न्यूनतम दर से वेतन प्राप्त करने वालों को हासिल नहीं हैं। सूत्रों के मुताबिक अमेरिका में तैनात करीब सौ भारतीय राजनयिकों में से केवल १५-२० ही हैं जिन्हें घरेलू नौकर रखने की इजाजत है।
देवयानी के मामले में भारतीय खेमे की सारी प्रतिक्रिया इस प्रकरण में हुई पुलिस कार्रवाई को लेकर है। विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार बीते साठ सालों में कहीं भी किसी भारतीय राजनयिक की कपड़े उतरवाकर तलाशी नहीं ली गई। लिहाजा अभूतपूर्व घटना की प्रतिक्रिया स्वाभाविक है।
साभार- दैनिक नईदुनिया से