‘कल नहीं आज’ यह ही सफलता का परम मंत्र है। हमें जीवन के हर क्षेत्र में उसका अनुसरण करना चाहिए। एक अंग्रेज विचारक ने लिखा है-भूतकाल इतिहास है, भविष्य रहस्य है, वर्तमान उपहार है। इसलिए वर्तमान को प्रजेंट कहते हैं। अतः हमें आज के प्रति वफादार और जागरूक बनना चाहिए। जो आज को सार्थक बनाता है, उसके भूत और भविष्य दोनों सफल बन जाते हैं। एक सबक हमेशा गांठ बांधकर रखना होगा कि खेल छोड़ देने वाला कभी नहीं जीतता और जीतने वाला कभी खेल नहीं छोड़ता। यदि बड़े काम नहीं कर सकते, तो छोटे काम बड़े ढंग से करने चाहिए।
हर बार हां ही नहीं ना भी कहना सफलता के लिये जरूरी होता है। क्योंकि हमारी ‘हां’ की तरह ‘ना’ के भी मायने होते हैं। एक समय में हम सब कुछ नहीं चुन सकते। हमें अपनी और अपनों की बेहतरी को ध्यान में रखते हुए चुनाव करने होते हैं। यूं भी हर ‘हां’, कहीं ‘ना’ होती है और हर ‘ना’, कहीं ‘हां’ हो जाती है। मोटिवेशनल स्पीकर बैरी डेवनपोर्ट कहती हैं, ‘हमारी ‘ना’, कभी-कभी हमें उस बेचैनी व अपराधबोध से मुक्त रखती है, जिसे ‘हां’ बोलकर हम अपने पर लाद लेते हैं।’
कभी किसी दिन अपने मन को खंगालने बैठें। हैरत होगी यह देखकर कि रोज के कितने ही काम हम दूसरों की देखा-देखी या उनसे तुलना करते हुए कर रहे होते हैं। जितना हम तुलना करते हैं, उतना ही अभावों से भरते जाते हैं। जो हम हैं, वह नहीं रह पाते। जो सबसे बेहतर कर सकते थे, वह नहीं करते और पूरी तरह दूसरों जैसे हम हो नहीं सकते। नतीजा, खुश नहीं रह पाते। अच्छा तो यह है कि हम तुलना कम करें और जिएं ज्यादा। हमें यह कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि हर एक समस्या में संभावना होती है और हर संभावना में एक समस्या।
हम जिस ओर खड़े हो जाते हैं, वही हमारा रास्ता बन जाता है और वही हमारी तलाश भी। माने हम जानते हैं कि हम क्या है, पर हम नहीं जानते कि हम क्या हो सकते हैं। शायद इसीलिये जिन्दगी हर कदम पर एक संघर्ष बुनती हैं कि हम अपनी क्षमता को जाने। जानें कि हम कितने संभावनाओं से भरे हैं। यह भी जानें कि हमारे जीवन की वास्तविक दिशाएं क्या हैं? उद्देश्य क्या है? बेशक हम हवाओं का रुख नहीं बदल सकते, लेकिन खिड़कियां खोलना-बंद करना हमारे हाथ में हैं। इसके लिये अतीत या भविष्य की बजाय वर्तमान में जीना जरूरी हैं। कल का काम आज ही करना चाहिए। जीवन की असफलता के जो कारण माने गये हैं, उनमें टालने की प्रवृत्ति प्रमुख है। जो वर्तमान के कर्तव्य को भविष्य के लिए टालते रहते हैं। वे किसी भी दायित्व का निर्वाह समय पर नहीं कर सकते। उनके लिए कल कभी नहीं आता। जो समय को नष्ट करता है, वह स्वयं नष्ट हो जाता है। जो समय का उपयोग करता है उसका जीवन सबके लिए उपयोगी हो जाता है।
सुविधावादी और अवसरवादी व्यक्तियों के जीवन में सफलता दुर्बल होती है। ऐसे लोगों का सारा ध्यान अनुकूलताओं और सुविधाजनक अवसरों पर केन्द्रित रहता है। सफलता की देवी तिलक करने से पहले परीक्षा लेती है। वह उसी ललाट पर तिलक करती है जो प्रस्वेद की बूंदों से भीगा होता है। जो व्यक्ति श्रम से कतराते हैं और कर्तव्य विमुख होते हैं, वे विशेष सुविधा की प्रतीक्षा करते रहते हैं। उनके सपने कभी भी सफलता में परिणत नहीं हो सकते। जो प्रतिकूल परिस्थितियों का भी सम्मान करते हैं, वे समभाव से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते रहते हैं। वे अवसर के दास और अनुगामी नहीं होते, अवसर उनका दास और अनुगामी होता है।
आयरिश उपन्यासकार जेम्स जॉयस ने कहा था, ‘गलतियां नए आविष्कारों के लिए राह बनाती हैं।’ कुछ समय पहले अमेजॉन वेबसाइट में काम करने वाले एक वरिष्ठ कर्मचारी की वजह से चैबीस घंटे से अधिक नेटवर्क बाधित रहा। उस शख्स ने गलती से नेटवर्क का रूट बदल दिया था। अपनी गलती का एहसास होते ही उसने तुरंत मेल करके अपने अधिकारियों को इस बारे में बताया, सुधार में लग गया और नौकरी छोड़ने तक की पेशकश की। कंपनी के प्रबंधकों ने उसकी त्वरित कार्यवाही की प्रशंसा की। लीडरशिप मीटिंग में भी उस व्यक्ति का जिक्र करते हुए कहा गया कि गलतियां आपको बहुत कुछ सिखाती भी हैं। हालांकि गलती करने के बाद आपकी प्रतिक्रिया कैसी होती है, इससे भी बहुत कुछ तय होता है। मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. रॉबर्ट वूड्स ने कहा था, ‘आपकी प्राथमिकता में सबसे आगे कौन है? अगर आप हैं, तो आप जानबूझकर गलतियां नहीं करेंगे। अगर गलती सोची-समझी साजिश के तहत कर रहे हैं तो इसके नतीजे बुरे हो सकते हैं। अनजाने में हुई गलतियां, चाहे काम हो या बात, उन्हें समय रहते संभाला जा सकता है।’
चिंतक व लेखिका रेशेल ई. गुडरिच कहती हैं, ‘मैंने कई लोगों का दिल दुखाया है, लोगों के सामने उन्हें गलत कहा है। यह मेरा अतीत था। यह लौट कर मेरे पास जब आया तो मुझे बुरी तरह से धक्का लगा। मैंने इतनी बड़ी गलती कैसे कर दी? इसे सुधारने में बहुत वक्त लगा। लोगों की खासियत है कि वे आपको माफ कर देते हैं, अगर आप माफी लायक हों।’ गलतियों की भरपाई में वाकई काफी समय लग जाता है।
हम सब कुछ बड़ा करना चाहते हैं। कुछ बड़ा हासिल करने के सपने देखते हैं। कुछ ऐसा, जिससे हमारी अलग पहचान बन सके। यह चाहते सब हैं, पर कामयाब बहुत कम ही हो पाते हैं। कारण कि हम खुद को पूरी तरह अपने काम में डुबो नहीं पाते। लीडरशिप कोच रॉबिन शर्मा कहते हैं, ‘कुछ बड़ा करने के लिए जरूरी है कि हम ध्यान भटकाने वाली चीजों से दूर रहें। इसके लिए अपने रास्ते पर ध्यान होना बेहद जरूरी है। हम सब कुछ नहीं कर सकते। पर यह भी सच है कि हम जितना खुद की क्षमताओं के बारे में सोच रहे होते हैं, उससे कहीं अधिक कर सकते हैं। कितनी ही बार हम केवल यही सोच कर पीछे हट जाते हैं कि हम से नहीं होगा। हमसे जो कम हैं, वे आगे बढ़ जाते हैं और हम एक कदम नहीं बढ़ा पाते। लेखक रैल्फ मार्टसन कहते हैं, ‘राह में कई बाधाएं होती हैं, पर इसका मतलब ये नहीं कि उनमें से एक बाधा हम खुद बन जाएं।’
ये हम पर ही है कि हम चाहें तो बिखर जाएं या पहले से बेहतर बन जाएं। हाथ में आए मौके को लपक लें या फिर उसे दूसरों के हाथों में जाने दें। आप बुरी किस्मत कहकर खुद को दिलासा भी दे देते हैं। लेकिन, सच यही है कि यह भाग्य पर नहीं, आप पर निर्भर करता है। आप वही बन जाते हैं, जो आप चुनते हैं। लेखक स्टीफन कोवे कहते हैं, ‘मैं अपने हालात से नहीं, फैसलों से बना हूं।’
विश्व के एक संपन्न व्यक्ति ने अपने अनुभवों में लिखा है- धन के अधिक अर्जन से भी उसका सही नियोजन और उपयोग का ज्ञान जरूरी है। जो समृद्धि के उपयोग की कला नहीं जानते, वे धनवान होकर भी निर्धन हैं। समय के धन का भौतिक वैभव से अधिक महत्व है। इसके सही नियोजन और उपयोग में निरंतर जागरूकता जरूरी है। आज हर व्यक्ति स्वयं को व्यस्त समझ रहा है, पर वह व्यस्त से भी अधिक अस्त-व्यस्त प्रतीत होता है। व्यस्तता जीवन का गुण है, पर अस्त-व्यस्तता एक दोष है। समय की संपत्ति का समुचित उपयोग करने के लिए जीवनशैली को नियमित और व्यवस्थित बनाना जरूरी है।
(ललित गर्ग)
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