Thursday, December 26, 2024
spot_img
Homeमनोरंजन जगतफिल्मों से गायब है सावन का वो महीना‍ !

फिल्मों से गायब है सावन का वो महीना‍ !

तपती गर्मी में राहत दिलाने वाली सावन की जो फुहारें पहले फिल्मी गीतकारों का कवित्व जगा देती थीं, वैसी उमंग अब बारिश के दृश्य और गीतों में कम ही दिखती है। फिल्मों को भव्य बनाने के चक्कर में प्रकृति से नाता टूटता जा रहा है। फिर भी गाहे-बगाहे फिल्मों में बारिश से जुड़े गीत सुनने को मिल ही जाते हैं। पिछले कुछ अरसे में दो बारिश गीत काफी चर्चित हुए। एक था ‘क्रिएचर’ का ‘मोहब्बत बरसा दे ना तू, सावन आया है’ और दूसरा ‘यारियां’ का ‘इस दर्दे दिल की सिफारिश कोई कर दे जरा, कि मिल जाए वो बारिश जो भिगो दे पूरी तरह।’ सावन भले ही कवियों को लुभाता रहा हो और मानसून का छलावा मौसम विज्ञानियों को उलझाता रहा हो, हिंदी फिल्मों में बारिश गीतों का एक लंबा चलन रहा है।

मोहम्मद रफी का गाया गीत जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात (फिल्म बरसात की रात) हो या मन्ना डे का गाया ‘बूट पालिश’ का गीत ‘लपक झपक तू आ रे बदरवा’ और ‘उजाला’ का ‘झूमता मौसम मस्त महीना’ हो या उससे पहले की बात करें तो जोहरा बाई अंबाले वाली का फिल्म ‘रतन’ के लिए गाया गया गीत ‘रुमझुम बरसे बदरवा’ हो, हर दौर की फिल्मों ने सावन को ऐसा उभारा कि बारिश होते ही ऐसे ही कई मधुर गीत बरबस याद आ जाते हैं। सावन की महिमा बखानते हर भाषा और हर अंचल के लोकगीतों का भी फिल्मों में खूब इस्तेमाल हुआ। 1950 में बनी ‘मशाल’ के प्रदीप के लिखे गीत ‘ऊपर गगन विशाल नीचे गहरा पाताल, बीच में धरतीए वाह मेरे मालिक क्या तेरी लीला, तू ने किया कमाल’ ने इसकी परिपाटी शुरू की। सावन आ जाने पर भी बदरा सूने रहे तो गीत हाजिर।

बादल को संदेशवाहक बनाने वाले गीतों की लंबी कतार है ही। ऐसे में फुहारें पड़ जाएं तो क्या कहने। बारिश की बूंदों में मिलन का उत्साह झलका, विद्रोह की वेदना भी उभरी और उसे लेकर शिकवे शिकायतों का सिलसिला चला। शायद ही कोई ऐसा भाव बचा होगा, जिसे पिरो कर सावन गीत की रचना न हुई हो। पहला सावन गीत जो सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ, वह 1938 में बनीं बांबे टाकीज की फिल्म ‘भाभी’ का था-झुकी आई री बदरिया सावन की, सावन की मन भावन की। इसे फिल्म की नायिका रेणुका ने गाया था। आज संगीतकार कमल दासगुप्ता, गीतकार फैयास हाशमी और गायक जगमोहन का नाम किसी को याद नहीं होगा लेकिन उनकी मेहनत से 1945 से सामने आया गीत- ‘ओए बरखा से पहले बादल मेरा संदेश ले जाना’घर घर में गूंजा। उसी साल फिल्म ‘मुक्ति’ में खुर्शीद व हमीदा के साथ गाया मुकेश का गीत- ‘बदरिया बरस गई उस पार’मुकेश के शुरुआती करिअर का सबसे मजबूत आधार बना।

सावन शब्द को जोड़कर सावन, ‘सावन की घटा’, ‘आया सावन झूम के’, ‘सावन भादो, सावन को आने दो’, ‘प्यासा सावन’ जैसी दजर्नों फिल्में बन गईं। राज कपूर ने 1949 में ‘बरसात’ का दामन थामा तो इसी शीर्षक से बाद में दो बार तो फिल्में बनी हीं। ‘बारिश’, ‘बिन बादल बरसात’, ‘बरसात की रात’, ‘बरसात की एक रात बरखा’, ‘बरखा बहार’ जैसी फिल्मों की लाइन लग गई। बारिश में भीगे सावन गीतों में भी तरह-तरह के प्रयोग हुए। मिलन का उल्लास तो कई गीतों में झलका। ‘नमक हलाल’ में अमितभा बच्चन और स्मिता पाटील पर फिल्माया गया गीत- ‘आज रपट जाएं तो हमें न उठइयो’ सर्वश्रेष्ठ वर्षा गीत माना जाता है। ‘बरसात’ का गीत- ‘बरसात में हमसे मिले तुम सजन’, ‘तुमसे मिले हम’ फिल्म की सफलता का प्रमुख आधार रहा।

‘रिमझिम घिरे सावन सुलग सुलग जाए मन’(मंजिल), ‘रिम झिम रिम झिम, रूम झुम रुम झुम’ (1942 ए लव स्टोरी), ‘टिप टिप बरसा पानी’ (मोहरा), ‘टिप टिप बारिश शुरू हो गई’ (अफसाना प्यार का), ‘दिल में आग लगाए सावन का महीना’ (अलग-अलग), ‘भीगी भीगी रातों में, भीगी बरसातों में’ (अजनबी), ‘सुन सुन सुन बरसात की धुन’ (सर), ‘बादल यूं गरजते हैं’ (बेताब), ‘यह साजिश है बूंदों की’ (फना), ‘चक धूम धूम’ (दिल तो पागल है), ‘देखो जरा देखो बरसात की झड़ी’ (ये दिल्लगी), ‘छतरी ना खोल उड़ जाएगी, हवा तेज है’ (दो झूठ), ‘आखिर तुम्हें आना है जरा देर लगेगी’ (पलगार) ठंडी ठंडी सावन की फुहार, पिया आज खिड़की खुली मत छोड़ना (जागते रहो) जैसे गीतों ने रोमांस का ऐसा रस बहाया कि उसमें सब भींगते रहे। फुहारों के बीच प्रेम की अभिव्यक्ति होती रही तो कई बार ऐसे मौके भी आए जब नायक या नायिका ने सावन आने पर मन में उठती उमंगों का इजहार किया।

विमल राय की फिल्म ‘सुजाता’ में ‘काली घटा छाए मोरा जिया घबराए’ में शैलेंद्र ने नायिका की मनोदशा को बखूबी उभारा। ‘पर्वत से काली घटा टकराई’ (चांदनी),बरसो रे मेघा, मेघा बरसो (गुरु),जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात(बरसात की रात),रिमझिम के तराने लेके आई बरसात(काला बाजार),ओ सजना बरखा बहार आई (परख) आदि गीतों ने सावन आने की खुशी, अपनी उत्कंठा और घबराहट को नायक-नायिका ने महसूस कराया। बारिश होने का उल्लास कुछ गीतों में तो जम कर उभरा और कुछ ऐसा समां बंध गया, मानों पूरी दुनिया आनंद के रस में डूब गई हो। ऐसे तीन गीत सदाबहार हुए।

राज कपूर नूतन को लेकर बनी मनमोहन देसाई के निर्देशन की पहली फिल्म ‘छलिया’ का गीत-‘डम डम डिगा डिगा, मौसम भीगा भीगा’ हो या ‘आया सावन झूम के’ का शीर्षक गीत हो या ‘उसने कहा था’ का सदाबहार गीत-‘रिमझिम के यो प्यारे प्यारे गीत लिए, आई रात सुहानी देखो प्रीत लिए’, सभी में सावन के मौसम का स्वागत करने का उल्लास पूरी तरह झलका। ‘बरसात की रात’का गीत ‘गरजत बरसत सावन आयो री’ तो प्रकृति के बदले हुए रूप को अपने बोलों में समेटे हुए था। विमल राय ने 1953 में किसानों की दुदर्शा पर फिल्म बनाई थी ‘दो बीघा जमीन’। फसल के लिए बारिश की कामना करते किसान सावन आने से ही आस बांध लेते हैं। उनकी इस मन:स्थिति को सलिल चौधरी के संगीतबद्ध किए गीत- ‘हरियाला सावन ढोल बजाता आया’ ने बड़ी मार्मिकता से उभारा। मेघों से बरस जाने की प्रार्थना करने वाला एक गीत-‘काले मेघा काले मेघा पानी तो बरसाओ’ फिल्म ‘लगान’ में भी इस्तेमाल हुआ। मेघों को उलाहना देने वाले या विरह की पीड़ा में साझीदार बनाने वाले कई गीत बने जो ज्यादातर नायिकाओं पर केंद्रित थे।

‘चांदनी’ में नायिका मेघा को उलाहना देती है कि उसने बरस कर उसके जिया में आग लगा दी। ‘अर्पण’ की नायिका बादलों से अनुनय करती है कि वह उसके पिया की तरह परदेस जाकर न बस जाए। ‘जुर्माना’ की नायिका ‘सावन के झूले पड़े, तुम चले आओ’ गाकर अपने प्रिय के लौट आने की कामना करती है। जलता है जिया मेरा भीगी भीगी रातों में (जख्मी),अब के सजन सावन में, आग लगेगी बदन में (चुपके-चुपके),जा री ओ कारी बदलिया (आजाद),घर आजा घिर आई बदरिया सावन की (छोटे नवाब) और नैनो में बदरा छाए, बिजुरी सी चमकी हाय (मेरा साया)जैसे अनगिनत गीत हैं, जिनमें नायिका की पीड़ा व्यक्त हुई। मनोज कुमार की फिल्म ‘रोटी कपड़ा और मकान’ का गीत-हाय हाय ये मजबूरी ये मौसम और ये दूरी’ में तो मिलन के सुख, विछोह की आशंका और उसके लिए मौसम को उलाहना, सब कुछ था। अकेलेपन ने सिर्फ नायिकाओं को ही नहीं तड़पाया।

नायकों की व्यथा भी गीतों के माध्यम से सामने आई। चांदनी का गीत- ‘लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है’ एक उदाहरण भर है। सावन गीतों में मौसम से जुड़े भावों को उभारने की कोशिश तो हुई ही, बारिश में नायिका को भिगो कर उसका ग्लैमर दर्शाने की परंपरा भी साथ-साथ ही चली। उसके लिए न सावन का इंतजार करने की जरूरत महसूस की गई और न ही सावन गीतों की। झीने कपड़े पहना कर नायिका को भिगोना एक ऐसे फार्मूले की शक्ल लेता गया जिसे और ज्यादा सेक्सी बनाने में निर्माताओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके लिए कई बार तो फूहड़ता की सीमा तक लांघ ली गई। फिर भी ऐसे कुछ गीत अपनी कलात्मकता और कल्पनाशील फिल्मांकन की वजह से खूबसूरत भी रहे। ‘श्री 420’ का गीत ‘प्यार हुआ इकरार हुआ’ तो बारिश गीतों में मील का पत्थर माना जाता है। फिल्मों में ऐसे बारिश गीतों की तो बहुतायत रही जिनमें नायिका के अंग प्रत्यंग को भिगो कर सनसनी फैलाने की कोशिश की गई।

साभार https://yathavat.com/ से

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार