भारतीय रेल के बारे में बहुधा कुछ रोमांचकता रहती है एवं विशेषकर ग्रामीण भारत में हर बच्चा एक ट्रेन अथवा इंजन को देख कर उल्लास और भावना से भरा रहता है। सही बात है कि भारतीय रेल विकास का साधन एवं देश के आर्थिक विकास की रीढ़ हैं। अतएव यह महत्वपूर्ण है कि इसका विकास आर्थिक विकास से कम से कम दो प्रतिशत आगे रहे ताकि समग्र विकास की राह में परिवहन संबंधी ढांचागत रोड़ों का न रहना सुनिश्चित किया जा सके। किंतु दुर्भाग्यवश साल दर साल ख़ासकर गठबंधन सरकारों के दौर में भारतीय रेलवे अनेक राजनीतिक समीकरण साधने की प्रवृत्ति के कारण अनियंत्रित लोकलुभावनवाद का शिकार रहा है, जिसका परिणाम इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में पूंजीगत व्यय की अनदेखी के तौर पर हुआ है। इससे भारतीय रेलवे प्रमुख मार्गों के अत्यधिक प्रयोग से चरमराया है। यात्री किराये में भारी छूट से विकास संबंधी गतिविधियों और पहले ही रेल सेवाओं की गिरती स्थिति पर पूंजीगत व्यय के लिये बहुत कम रास्ता छोड़ा है। इस लोकलुभावनवाद के कारण सैंकड़ों परियोजनाएं जिनके लिये शिलान्यास रखा जा चुका था, केवल कागज़ों पर धरी रह गईं एवं संसाधनों के अभाव में अधिक प्रगति नहीं की जा सकी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने शुरुआती कदम में ही लोकलुभावनवाद से बचने का निर्णय लिया ताकि दुनिया में सबसे बड़े रेल निकायों में से एक भारतीय रेल को बचाकर रास्ते पर लाया जा सके। भारत के इतिहास में पहली बार भारतीय रेल के वैभव को पुनर्स्थापित करने एवं संभवतः सबसे आधुनिक रेलवे में से एक रेलवे बनाने का ईमानदार प्रयास किया गया, जिससे संपूर्ण देश में बुलेट ट्रेनों एवं ध्वनि की गति से तेज़ चलने वाली हाइपर लूप ट्रेनों समेत सुरक्षित, आरामदायक एवं तीव्र यात्री ट्रेनें हों तथा नया एवं बेहतर माल-ढुलाई गलियारा हो। सरकार ने इसको एक विश्व स्तरीय तंत्र बनाने के लिये अगले तीन वर्ष में 8 लाख 50 हज़ार करोड़ खर्च करने का लक्ष्य रखा है। इससे विकास पर पड़ने वाले अलग-अलग प्रभावों समेत रोज़गार के बड़े अवसर पैदा होंगे, जैसा देश में पहले कभी नहीं देखा गया।
इस संदर्भ में रेलवे में सर्वांगीण सुधार हेतु इस वर्ष से एक सार्थक कदम, जिस पर अधिक ध्यान नहीं गया है, रेल एवं आम बजट का विलय रहा है। रेल एवं आम बजट के विलय से, रेलवे अन्य स्थानों से निधीयन हेतु बेहतर अवस्था में आ गया है। यद्यपि इससे दो प्रकार के भय भी हैं कि रेलवे की स्वायत्तता कमज़ोर पड़ सकती है एवं यह फैसला रेलवे के निजीकरण से पहले लिया गया फैसला है। इन दोनों प्रकार के भय का पहले ही समाधान किया जा चुका है। लिहाज़ा यह भय निराधार हैं। पिछले कुछ वर्षों में वार्षिक पूंजीगत व्यय को लगभग एक लाख करोड़ तक बढ़ाने के अलावा रेलवे ने बीते तीन वर्षों में यात्रियों की सुविधाएं और सुरक्षा बढ़ाने, रेल लाइनें बिछाकर व्यस्त मार्गों पर आवाजाही सुगम बनाने आदि समेत अनेक शुरुआतें की हैं। देश के चार मेट्रो शहरों दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता एवं दो विकर्ण-मार्गों को जोड़ने वाला 17 प्रतिशत रेल मार्ग लगभग 60 प्रतिशत यात्री एवं मालवाही ट्रैफिक का वाहक है। इन मार्गों का आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल होता है जिससे इनका रखरखाव बेहद कम होता है। रेलवे लाइनों को चौगुना किये जाने की आवश्यकता है एवं रेलवे के पास इसके लिए भूमि एवं संसाधन खोजने की क्षमता होने के बावजूद लोकलुभावनवाद में अतिरिक्त आसक्ति के कारण ऐसा नहीं हो पाया। अब मोदी सरकार ने रेल मंत्री सुरेश प्रभु के नेतृत्व में इस कार्य को गंभीरता से लिया है एवं पहले ही तीन अतिरिक्त मालवाहक गलियारों दिल्ली-चेन्नई, कोलकाता-मुम्बई एवं कोलकाता-विजयवाड़ा की घोषणा की है। साथ ही दो अन्य दिल्ली-मुम्बई एवं लुधियाना-कोलकाता का कार्यान्वयन किया जा रहा है।
सरकार पहले ही जापान की मदद से एक लाख करोड़ की लागत वाली मुम्बई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन की घोषणा कर चुकी है एवं कुछ अन्य महत्वपूर्ण मार्गों का व्यवहारिकता-अध्ययन प्रारम्भ कर दिया गया है। यह वो गतिविधियाँ हैं जिनमें पूर्व में किसी प्रकार की प्रगति नहीं देखी गई। जैसा कि स्वयं सुरेश प्रभु ने कहा है कि व्यवस्थित बदलाव समय की आवश्यकता हैं एवं इस क्षेत्र में प्रगति की गई है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मोदी सरकार के नेतृत्व में रेलवे के बारे में किसी धीमे चलने वाले विशालकाय प्राणि की बजाय एक उत्तरदाई आधुनिक संस्था के रूप में सोच में बदलाव पैदा हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों में रेलवे प्रति वर्ष हासिल की जाने वाली वाले छोटी छोटी उपलब्धियों से इतर अपने यथास्थितिवादी रवैये से काफी आगे जा चुका है। हालाँकि यह महज़ एक शुरुआत है और इस दिशा में बहुत कुछ किये जाने की ज़रुरत है एवं तदनुसार मध्यम व दीर्घ कालावधि के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए योजनाएं बनाई जा रही हैं।
इस बिंदु को दर्शाने के लिए आंकड़ा यह है कि रेलवे ने 2014-16 के मध्य रिकॉर्ड 2828 किलोमीटर ब्रॉडगेज लाइनों की संस्तुति दी है , जो कि 2009 से 2014 के मध्य हुई औसत वार्षिक संस्तुति से 85% अधिक है। 2009 से 2014 के मध्य अनुमोदित प्रतिदिन 4.3 किलोमीटर रेल लाइन के स्थान पर अब 7.7 किलोमीटर लाइन अनुमोदित की गई है। पिछले वर्ष 1730 किलोमीटर का विद्युतीकरण वर्ष 2009 से 2014 तक किये गए 1184 किलोमीटर के वार्षिक औसत विद्युतीकरण से बहुत अधिक है। स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत स्वच्छ रेल क्लीन माई कोच सेवा का शुभारंभ किया गया है एवं स्टेशनों के लिये तृतीय पक्ष स्वच्छता अंकेक्षण शुरू किये जा रहे हैं। उत्तर-पूर्व, जम्मू एवं कश्मीर में संयोजकता में विशेषतया वृद्धि हुई है एवं और अधिक मध्यम उच्च गति की ट्रेनों की शुरुआत की जा रही है। पटरी से उतर चुके ट्रेन तंत्र को वापस पटरी पर लाने के बाद रेलवे ने अगले तीन से पांच वर्षों में अहम विकास की शुरुआत की है। उनमें से कुछ को अभियान के स्तर पर लेने एवं बजट को अराजनीतिक बनाने के अलावा रेलवे, कोच एवं इंजन कारखानों में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश के वर्द्धन, भोजन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये व्यवस्था आईआरसीटीसी को सौंपने एवं सौर ऊर्जा और विद्युत कर्षण पर ज़ोर देगा।
टैल्गो एवं माग्लेव ट्रेनों हेतु किराये के अतिरिक्त चरणबद्ध ढंग से 7000 रेलवे स्टेशनों के वाणिज्यीकरण समेत राजस्व के साधनों में बढ़ोतरी के अलावा राज्यों को भी नई रेल लाइनों के विकास की प्रक्रिया में सम्मिलित करेगा। लाइनों के विस्तार में सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों को शामिल करने के अलावा पूंजीगत व्यय हेतु रेलवे की आर्थिक ज़रूरतों के लिये एलआईसी, स्वायत्त एवं वैश्विक कम क़ीमत वाली पेंशन निधियों का उपयोग किया जाएगा। रेलवे का प्रयत्न बेहतर सिग्नल प्रणाली बनाने एवं पुल बनाकर मानव-रहित एवं मानव-युक्त क्रॉसिंग को ख़त्म करने समेत शून्य-दुर्घटना, मालवहन में 20 प्रतिशत की वृद्धि हेतु 25 टन एक्सल लोड वाले डिब्बों पर स्थानांतरण, बेहतर लेखा प्रणाली एवं माल ढुलाई को बेहतर बनाने के लिये अगले दो वर्षों में 100 छोटी पटरियों का अनुमोदन जैसे कदम उठाना है। कुल मिलाकर रेलवे ने मोदी सरकार के अंतर्गत स्पष्ट परिवर्तन देखा है एवं आने वाले वर्षों में और अधिक उन्नति देखेगा।
( पत्रकारिता में 40 साल अनुभवी के आर सौदामन, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इण्डिया, फाइनेन्शियल क्रॉनिकल एवं टिकर न्य़ूज़ के आर्थिक मामलों के सम्पादक रहे हैं।)
लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं।
I m an ardent admirer of IR
However in d last few months they hav mercilessly charging for cancelling reserved tickets
In fact we pay them in advance and due to any reason if we r required 2 cancel our journey nearly 90 % amount is deducted
In Mumbai pune travel if I cancel my Rs 65 Sr citizens Tkt I get only Rs 5 as refund
Totally sulatanshahi
We r at their mercy and they hav monopoly
I don’t kno how 2 rch Mr Prabhu on mail.
Want to write to him for whatever is worth
And if he is sensible and human perhaps he might act
None of d politicians r sufferers as they travel free or their party pays d Tkt fare
I wish this reaches Mr Prabhu
Regards
Anand Deodhar
Retired Chief Engineer
Water supply operations
MUMBAI
98699 21690
Shri Suresh Prabhu is a tirelessly devoted minister of Railways and his efforts have seen the emergence of Indian Railways as a modern day railway aspiring to be in the forefront with advanced countries of the world. It is by one and all irrespective of political or regional differences that Shei Prabhu is one of the few outstanding ministers in the Central Cabinet of PM Narendra Modi.