आधी रात मेरे घर में कुछ लोग घुस आए थे और उन्होंने हम पर आधी रात में गांव छोड़ने का दबाव बनाया. हम लोगों के दरवाजे खट-खटा कर एक रात के लिए पनाह मांग रहे थे कि मगर कोई हमारी मदद को आगे नहीं आया – शीरीन फातिमा
(मैंने पहली बार जब गाना गाया तो पूरा गांव मेरे खिलाफ हो चुका था.हर कोई मेरे परिवार को कोस रहा था.हमें मुस्लिम मानने से इनकार कर दिया था. यहां तक कि मेरे खानदान को तो मस्जिद में नमाज पढ़ने पर भी पाबंदी लगा दी गई थी, क्योंकि गांव में गाना एक तरह से धर्म के खिलाफ खड़े होना था लेकिन फिर भी मैं रूकी नहीं. आज भी मैं गाती हूं. दिल से गाती हूं. मेरे गानों को सोशल मीडिया पर खूब पसंद किया जा रहा है.पढ़ें, जम्मू-कश्मीर के लेह स्थित बोगडेंग गांव से ताल्लुक रखने वाली पहली महिला बालटी लोक गायिका शीरीन फातिमा की कहानी, जिन्हें हाल ही में जम्मू कश्मीर सरकार की तरफ से संगीत क्षेत्र में योगदान के लिए राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया.)
मैं लेह से दो सौ किलोमीटर की दूरी पर सियाचिन ग्लेशियर के बहुत नजदीक बोंगडोग गांव से ताल्लुक रखती हूं, जो कि पाकिस्तान बॉर्डर से बस महज बीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां गाना तो बहुत दूर की बात है. यहां तो लड़कियों की तालीम ( शिक्षा) पर भी पांबदी थी. मेरा गांव एक बहुत पिछड़ा हुआ गांव था. यहां लड़कियों को बारहवीं से ज्यादा शिक्षा नहीं दी जाती थी. घरों में टीवी नहीं होते थे. लड़कियां शाम ढलना तो बहुत दूर की बात दिन में भी कहीं अकेले आ-जा नहीं सकती थीं.
घर में बंदी की तरह रखने की बात कही जाए तो ये भी गलत नहीं होगा लेकिन हां बस खुदा का शुक्र है कि मेरे खानदान में कोई ऐसा नहीं था. न तो मेरे अब्बा और न ही अम्मी. उन्होंने हमारी परवरिश कभी ऐसे नहीं की. न ही उन्होंने कभी लड़का और लड़की में कोई फर्क किया.इसलिए जब मैंने अपने गाने की ख्वाहिश जाहिर की तो अब्बा ने मेरा पूरा साथ दिया, क्योंकि मेरे दादाजी और अब्बा को भी संगीत का शौक था. इसलिए उन्होंने कभी मुझ पर रोक नहीं लगाई लेकिन मेरे गाने का अंजाम मेरे पूरे परिवार को भुगतना पड़ेगा. ये कभी सोचा नहीं था.
दरअसल जब मैंने पहली बार साल 2002 में सद्भावना कार्यक्रम के अंतर्गत एक जलसा हुआ, वहां मैंने पहली बार गाना गाया. पहली बार स्टेज पर मुझे गाते हुए सुनकर तो गांव वालों ने मेरे खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उन्होंने अब्बा से कहा कि वो कैसे वालिद हैं, अपनी लड़की से गाना गवाते हैं. नाचना-गाना तो धर्म में हराम है. हम सच्चे मुस्लिम नहीं हैं. हमें अपना धर्म छोड़ देना चाहिए. इस तरह की तमाम बातें होती थीं. अब्बा को मस्जिद के भीतर घुसने पर पाबंदी लगा दी गई थी. उन्हें अंदर नहीं घुसने दिया जाता था.
अब्बा ने कई बार बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं था.इसका नतीजा ये हुआ कि हमें समाज से अलग-थलग कर दिया गया है. स्कूल में मुझसे कोई बात नहीं करता था.अब्बा से कोई बोलता नहीं था. हालात इतने खराब हो चुके थे कि हमें अपने ही घर में नजर बंद होना पड़ा था. इन स्थितियों में भी मेरे खानदान ने मुझे आगे बढ़ने से नहीं रोका.
एक बार की बात है,अब्बा को किसी काम के लिए लेह जाना था लेकिन गांव वालों के विद्रोह की वजह से घबराकर अब्बा ने हमारे रिश्तेदार के दो लड़कों को घर में छोड़कर गए थे, जिससे वो हमारी हिफाजत कर सकें. उसी रात की बात है एनजीओ के कुछ कार्यकर्ता गांव वालों के भड़काने पर हमें आधी रात को हमें घर के बाहर निकालने लगे. हमें गांव छोड़ने की धमकी दे रहे थे. डर की वजह से हम रात में ही इधर-उधर भाग रहे थे. अम्मी हम सबको लेकर कि गांव के लोगों के दरवाजे खटखटा रहीं थीं लेकिन किसी ने भी दरवाजा नहीं खोला.
आखिरकार एक गरीब शख्स ने दरवाजा खोला और हमें पनाह दी. मगर उन्होंने भी गांव और परिवार वालों की वजह से अपने घर में पनाह नहीं दी, बल्कि हमें घर की छत पर रहना पड़ा. मैं अम्मी के साथ पूरे एक सप्ताह तक छत पर रहे. आखिरकार जब अब्बू वापस आए तो हमने गांव छोड़ दिया. हम गावं छोड़कर देहरादून आकर रहने लगे. यहां अब्बा के पास खाने-कमाने के लिए कुछ नहीं था फिर रिश्तेदारों की मदद से उन्होंने यहां अपना छोटा सा बिजनेस शुरू किया, जिसके दम पर वो हमारी परवरिश कर रहे थे. इतनी परेशानियों के बावजूद अम्मी और अब्बू दोनों ही मुझे गाने के लिए प्रेरित करते रहें. ये उनकी ही सोच और भरोसे की बदौलत है कि आज मैं गा पा रही हूं.
मेरे पास ज्यादा सुविधा और साधन तो थे नहीं, इसलिए मैंने यूट्यूब और फेसबुक के ज़रिए अपने गाने लोगों तक पहुंचाने का काम किया. मेरे गाने, ग्रीफशत सुला बेक खासा लोकप्रिय हुआ. धीरे-धीरे मुझे लोग सुनने लगे और मुझे पहली बालटी महिला सोशल मीडिया स्टार के रूप में जाना जाने लगा. अफसोस नहीं है कि उस लड़के ने मेरे गाने की वजह से निकाह करने से इनकार कर दिया. मुझे कम नहीं है, क्योंकि उन लोगों की शर्त थी कि मुझे गाना छोड़ना होगा. मुझे ये गंवारा नहीं. इसलिए मैंने खुद ही मना कर दिया. आज इस बात से खुश हूं कि लोग मुझे पहचानते हैं. मुझे सुनते हैं..
अगले महीने हम अपने गांव वापस जा रहे हैं. मैं पहले की तरह ही फेसबुक, यूट्यूब पर अपने गाने अपलोड करती रहूंगी. मुझे उम्मीद है कि मेरी इन कोशिशों का मेरे गांव और बलतिस्तान के लोगों पर अच्छा असर पड़ेगा.
साभार- https://hindi.news18.com/ से