अवमानना मामले में दोषी कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सीएस कर्णन के मामले में सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि यदि स्थानीय मीडिया जस्टिस कर्नन के बयानों को तरजीह न देती तो मामला तूल नहीं पकड़ता।
दैनिक जागरण में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक कोर्ट का मानना है कि स्थानीय समाचार पत्रों में कर्णन के बयान को इतना हाइलाइट कर दिया गया कि इस पर विदेशी मीडिया की भी नजर पड़ गई, जिसके बाद बीबीसी ने इसे बतंगड़ बना दिया।
दरअसल 13 अप्रैल को कोलकाता हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस सीएस कर्नन ने सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संवैधानिक बेंच के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि ये बातें न्यायिक व्यवस्था की छवि को खराब करने वाली थीं। सात सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने कर्नन पर दिए अपने फैसले में कुछ अन्य घटनाओं का हवाला दिया जिसने न्याय व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया। इसमें 28 अप्रैल का वह आदेश है जिसमें पूर्व जस्टिस ने एयर कंट्रोल अथॉरिटी को आदेश दिया कि संवैधानिक बेंच के सातों न्यायाधीशों को विदेश न जाने दिया जाए। सात मई को उन्होंने सातों जजों को पांच साल सश्रम कारावास की सजा सुना दी। ये सभी बातें देश विदेश में चर्चा का विषय बनी, जिसके चलते नौ मई को सुप्रीम कोर्ट ने कर्नन को छह माह की कैद की सजा सुनाई। उसके बाद वह फरार हो गए और आखिर में कोयंबटूर में पुलिस के हत्थे चढ़े।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 80 पेज के फैसले में मीडिया की जमकर आलोचना की है, जिसकी वजह से कर्नन बेवजह महत्वपूर्ण हुए।