पहाड़ी रास्ते पर 10 घंटे गाड़ी चलाने के बाद 3 दिन लगातार चलकर कोई भी बुरी तरह थक जाएगा। यदि आपको ऐसा किसी ऊंचाई पर स्थित रेगिस्तान में करना पड़े, जहां ऑक्सीजन की कमी की वजह से आपको धीरे-धीरे सांस लेनी हो, तो आप और भी अधिक थक जाएंगे। मगर क्या हो यदि इस थका देने वाले सफर के अंत में आपका जोरदार तालियों के साथ गर्मजोशी से स्वागत हो, सैंकड़ों विद्यार्थियों द्वारा, जो 5 घंटे से आपकी प्रतीक्षा कर रहे थे…? निश्चित ही इससे थके-मांदे मुसाफिर के चेहरे पर भी एक मुस्कान आ जाएगी।
सुजाता साहू का लद्दाख के एक सरकारी स्कूल में ऐसा ही स्वागत हुआ था, जब वे जुलाई 2010 में पहली बार स्कूल को किताबें, स्टेशनरी और फर्नीचर दान करने वहां गई थीं। सुजाता '17,000 फीट फाउंडेशन" की संस्थापक हैं। अपनी उस पहली यात्रा में वे अकेली ही 25 घोड़ों पर 900 किलो सामग्री लेकर गई थीं। वे कहती हैं, 'लद्दाखी आपके द्वारा किए गए दान की कद्र करते हैं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ें। उनके पास भोजन है, जमीन है लेकिन अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा नहीं। वे अपने बच्चों को पढ़ने के लिए दूर-दराज के इलाकों में भेजते हैं।"
सेवा के लिए नौकरी छोड़ी
गुड़गांव निवासी सुजाता का ट्रेकिंग से परिचय उनके पति ने कराया था। वे दो बच्चों का मां हैं और एक उच्च वर्गीय स्कूल में पढ़ा चुकी हैं। अपने फाउंडेशन की शुरूआत करने के पहले भी वे लद्दाख की यात्रा किया करती थीं और कभी-कभार वहां के बच्चों को विज्ञान और गणित पढ़ा दिया करती थीं। फिर 2010 में आई बाढ़ से हुए नुकसान के बाद उन्होंने लद्दाखी लोगों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बढ़ा दी।
एक साल के भीतर उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और लद्दाख के बच्चों के लिए ही काम करने का निर्णय लिया। 2012 में उन्होंने अपने फाउंडेशन की स्थापना की और लेह के शिक्षा विभाग के साथ एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए। गहन सर्वे करने के बाद उनका लक्ष्य तय हुआ कि स्कूलों को 3 से 4 वर्ष में आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रशिक्षित करना और स्थानीय स्तर पर उनकी क्षमताओं को विकसित करना।
सन् 2014 तक 17,000 फीट फाउंडेशन वहां के स्कूलों को 50,000 पुस्तकें दान कर चुका था। इसके अलावा उसने 15 स्कूलों में खेल के मैदान तैयार किए हैं और 20 स्कूलों को क्लासरूम फर्नीचर दान किया है। सुजाता बताती हैं कि उनका फाउंडेशन 8,000 विद्यार्थियों की प्रत्यक्ष रूप से और लगभग 30,000 विद्यार्थियों की परोक्ष रूप से सहायता कर रहा है। लेह जिले के शिक्षा विभाग ने उनके लाइब्रेरी कार्यक्रम को अनिवार्य कर दिया है और इसे वहां के सभी सरकारी स्कूलों में लागू कर रहा है।
शिक्षकों को प्रशिक्षण
लद्दाख के भूगोल पर गौर किया जाए, तो इन उपलब्धियों का महत्व और उभरकर आता है। 65,000 वर्ग किलोमीटर में फैले लद्दाख में दो जिले हैं, लेह और कारगिल। इसकी कुल जनसंख्या 3 लाख है और यहां 1,000 सरकारी स्कूल हैं। सुजाता बताती हैं, 'हमने पहले लेह के 370 स्कूलों को गोद लिया, जिनमें 60 निजी स्कूल भी शामिल थे। इस समय हम 100 स्कूलों को सहायता दे रहे हैं। 675 सरकारी शिक्षकों को हम प्रशिक्षण दे चुके हैं।
हमारे प्रशिक्षित वॉलंटियर पूरे क्षेत्र में घूम-घूमकर कार्यशालाओं का आयोजन करते हैं, कथा-कथन संबंधी विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, लाइब्रेरी का जायजा लेते हैं और किसी भी मसले के तात्कालिक हल के लिए डेटा एकत्र करते हैं। हम स्कूलों की अधोसंरचना में सुधार करना चाहते हैं।"
विषम परिस्थितियों में काम
फाउंडेशन के वॉलंटियर जिस इलाके में काम करते हैं, वहां बिजली और टेलीफोन कनेक्टिविटी बहुत कम है या फिर है ही नहीं। यह इलाका 6 महीनों के लिए ही खुला रहता है। नवंबर से मार्च तक यहां सड़क से पहुंचना असंभव हो जाता है, जब चारों ओर बर्फ का साम्राज्य स्थापित हो जाता है और तापमान शून्य से 35-40 डिग्री नीचे चला जाता है।
अपने फाउंडेशन के नाम के बारे में सुजाता बताती हैं, 'समुद्र से 17,000 फीट से अधिक ऊपर जाने पर सांस लेना मुश्किल हो जाता है। मगर इसी इलाके में सबसे बड़ा स्कूल है, जहां 100 विद्यार्थी पढ़ते हैं तथा इससे आगे 17 और स्कूल हैं। क्या आप जानते हैं कि यहां युरुत्से नामक एक ऐसा भी गांव है, जहां सिर्फ एक ही मकान है जिसमें 5 लोग रहते हैं? इनमें से एक विद्यार्थी है। जाहिर है, इस गांव में कोई स्कूल नहीं है। यहां से निकटतम गांव तक पैदल जाने में ही ढाई घंटे लग जाते हैं।
पर्यटकों को भी जोड़ा
इन दूरस्थ गांवों तक जाने का विचार भी लोगों को नहीं आता सिवा उन पर्यटकों के, जो टूरिस्ट स्पॉट तलाशते रहते हैं!" इसीलिए अप्रैल 2013 में सुजाता ने 'वॉलंटूर" नाम से एक प्रोजेक्ट शुरू किया। इसके तहत पर्यटकों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि वे किसी एक गांव में रुककर वहां के बच्चों को पढ़ाएं। इसके लिए गांव के ही किसी घर में टूरिस्ट के ठहरने की व्यवस्था की जाती है।
इस समय उनके पास ऐसे 180 वॉलंटियर टूरिस्ट हैं, जिनमें से 90 प्रतिशत भारतीय हैं। इसके अलावा सुजाता 'मैपमायस्कूल" प्रोजेक्ट भी शुरू करने जा रही हैं, जिसमें लद्दाख के सर्वाध्ािक दूरस्थ इलाकों में स्थित स्कूलों की जियो-मैपिंग की जाएगी। इसके बाद कोई पर्यटक वेबसाइट पर ही किसी स्कूल की लोकेशन तलाशकर वहां जा सकेगा। एक अन्य प्रोजेक्ट स्कूली पढ़ाई बीच में छोड़ चुके युवाओं में स्किल विकसित करने के लिए भी बनाया जा रहा है।
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