26 नंबवर 2008 को पाकिस्तान से 25 वर्षीय कसाब अपने नौ साथियों के साथ, समुद्र के रास्ते होकर भारत मे प्रवेश किया और अंधाधुंधगोलियाँ चलाकर मुंबई शहर पर हमला बोल दिया था, 72 घंटो तक मुंबई की सड़कों पर आतंक और मौत का नंगा नाच होता रहा। कसाब और उसके नौ साथियों ने 250 से ज़्यादा मासूम भारतीयों की निर्मम हत्या कर दी।
ठाणे स्थित 79 वर्षीय दादी जिनके 22 वर्षीय इकलौते पोते सचिन की छत्रपति शिवाजी टर्मिनल पर बेरहमी से हत्या कर दी गई, उन्होंने पूछा, “पाकिस्तान के कसाब और उनके साथी तो मेरे पोते को जानते तक नही थे, फिर मेरे पोते को इतनी निर्ममता से गोलियों से क्यों भून दिया? इस प्रश्न ने भारत के हर नागरिक को भावविह्वल कर झकझोर दिया।
कसाब और उसके नौ साथी भारत के उन मासूम नागरिकों को जानते भी नही थे जिन्हें उन लोगों ने गोलियों से भून दिया था। ये सत्य है कि भारत और पाकिस्तान के संबंध आज़ादी के बाद से ही कटु रहे है, पर क्या ये कारण काफ़ी है एक पाकिस्तानी नवयुवक के दिमाग मेज़हर भरने के लिये, कि वो उन अनजान लोगों के खुन के नदियाँ बहा दे जिसे वो जानता तक नही? ऐसी कौन सी विचारधारा और प्रेरणाहै जो एस नवयुवक के उग्र सोच को हवा देकर उसे वहशी और आतंकवादी बना देती है, जो बम विस्फोट कर उन लोगों को क्षत विक्षतकर देती है जिसका वो नाम तक नही जानते। इस विचारधारा का बीज कहां है? इस प्रश्न का उत्तर कही क़ुरान मजीद मे तो नही है?
कुरान मजीद में सूरा 9 आयात 5 मे लिखा है।
जब पवित्र महीने बीत जाऐं, तो ‘मुश्रिको’ (मूर्तिपूजको ) को जहाँ-कहीं भी पाओ, उसे पकड़ो, घेरो, हर घात की जगह उनकी ताक मे बैठो, और उनका कत्ल कर दो।
https://quran.com/9/5
कुरान मजीद में सूरा 9, आयत 28 मे लिखा है।
हे ‘ईमान’ लाने वालो (केवल एक आल्ला को मानने वालो ) ‘मुश्रिक’ (मूर्तिपूजक) नापाक (अपवित्र) हैं।”
क़ुरान मजीद में सूरा 4, आयत 101 मे लिखा है।
निःसंदेह ‘काफिर (गैर-मुस्लिम) तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।” (कुरान सूरा 4, आयत 101) .
क़ुरान मजीद में सूरा 9, आयत 123 मे लिखा है।
हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) उन ‘काफिरों’ (गैर-मुस्लिमो) से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और तुम उनके साथ सख़्त रहो।
उपरोक्त अनुच्छेद तो बस झांकी है, क़ुरान मजीद मे और भी बहुत सारी आयते हैं जिससे अमानवीय विष का अविरल धारा प्रवाह होता है, जिसे हर भारतीय को अवश्य पढ़ना चाहिये।
ये भारतवर्ष की बदकिस्मति है कि धर्म निरपेक्षता के नाम पर एक ऐसी ग़ैर संवैधानिक धर्म पुस्तक को मान्यता मिली है जो एक नरसंहारका कारण बन सकती है। आज़ादी के बाद पिछले सत्तर वर्षों मे इस संवेदनशील विषय पर संसद मे एक बार भी बहस नही हुई।
वर्तमान काल मे सुप्रीम कोर्ट के वकील श्री करुणेश कुमार शुक्ला जी ने सुप्रीम कोर्ट में इसके प्रति याचिका दायर कि है कि क़ुरान मजीदकी 24 आयतें भारत के संविधान का उल्लंघन करती है।
साभार- https://hindi.trunicle.com/ से